#नई सुबह
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नई सुबह
हर रोज नई सुबह का इंतजार करता रहा पर वो आशाओं उम्मीदों की सुबह ना आई अभी हर रात बीत जाने के बाद सुबह की लालिमा से पूछता रहा इन मायूस चेहरों पर मुस्कान आई नहीं । क्यों इन मासूम आंखों में जिंदगी की चमक दिखती नहीं, मायूसियों के काले बादलों में रोशनी की कोई किरण टिकती नहीं, संघर्ष के पथ पर अग्रसर ये मासूम जिंदगी की जद्दोजहद में मशगूल हैं भूख गरीबी से निजात पाने में आज भी नामाकुल हैं…
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अपने दिन की शुरुआत के लिए 150+ सुप्रभात कोट्स
सुप्रभात प्रेरणादायक कोट्स से आपकी दिनचर्या की शुरुआत करें। इन 150 सकारात्मक विचारों से आपका दिन ऊर्जावान और उत्साहित होगा।एक नया दिन नई उम्मीदों और नई शुरुआत का प्रतीक है। इसलिए अपने दिन की शुरुआत कुछ प्रेरणादायक और सकारात्मक विचारों से करना महत्वपूर्ण है। यह आपके दिन को खुशहाल और सफल बनाने में मदद करेगा। इस लेख में हमने 150 सुप्रभात कोट्स एकत्र किए हैं जो आपकी दिनचर्या की शुरुआत को अधिक…
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#उत्साहवर्धक कोट्स#ऊर्जावान कोट्स#गुड मॉर्निंग कोट्स#जीवन कोट्स#दिन की शुरुआत कोट्स#नई शुरुआत कोट्स#पॉजिटिव थिंकिंग कोट्स#प्रेरणा कोट्स#प्रेरणादायक कोट्स#मोटिवेशनल कोट्स#सकारात्मक कोट्स#सुप्रभात प्रेरक कोट्स#सुबह की उम्मीद कोट्स#सुबह की शुरुआत कोट्स#सुबह के कोट्स
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तू ज़िंदा है तो...
तू ज़िंदा है तो ज़िंदगी की जीत पे यक़ीन कर,
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर।
ये सुबह-ओ-शाम के रँगे हुए गगन को चूमकर,
तू सुन ज़मीन गा रही है कब से झूम-झूम कर!
तू आ मेरा सिंगार कर तू आ मुझे हसीन कर।
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर।
ये ग़म के और चार दिन सितम के और चार दिन,
ये दिन भी जाएँगे गुज़र गुज़र गए हज़ार दिन,
कभी तो होगी इस चमन पे भी बहार की नज़र।
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर।
हमारे कारवाँ का मंज़िलों को इंतज़ार है,
ये आँधियों की बिजलियों की पीठ पर सवार है,
जिधर पड़ेंगे ये क़दम बनेगी एक नई डगर।
हज़ार रूप धर के आई रात तेरे द्वार पर,
मगर तुझे न छल सकी चली गई वो हार कर,
नई सुबह के संग सदा मिली तुझे नई उमर।
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर।
~शंकर शैलेंद्र
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Ishwar TV Satsang | 11-11-2024 | Episode: 2570| Sant Rampal Ji Maharaj L...
#MustListenSatsang
अमेरिका की भविष्यवक्ता फ्लोरेंस ने संत रामपाल जी महाराज के बारे में बताया है कि वो संत अपनी कल्याणकारी विचारधारा से लोगों की मान्यताओं को बदल देगा व पूरे विश्व मे भाईचारा, शांति, सदाचार आधारित एक नई सभ्यता को जन्म देगा।
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"Sant Rampal Ji Maharaj"
➡️ सुनिए जगतगुरु संत रामपाल जी महाराज के मंगल प्रवचन :-
➜ईश्वर TV 📺 पर सुबह 6:00 से 7:00
➜साधना टीवी 📺 पर शाम 7:30 से 8:30
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संत रामपाल जी महाराज के सत्संगों से लाखों पुरुषों ने नशे का त्याग किया है, जिससे उनके परिवार, विशेषकर उनकी पत्नियों का जीवन सुखमय हुआ है। नशा मुक्त समाज की दिशा में उनके प्रयासों ने महिलाओं के जीवन में नई उम्मीद और खुशियां भरी हैं।
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🫴🏻 अब संत रामपाल जी महाराज जी के मंगल प्रवचन प्रतिदिन सुनिए....
🏵️ ईश्वर टी.वी. पर सुबह 6:00 से 7:00 तक
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[प्रेम पत्र खुद के लिए: दिन #8. २२th नवंबर २०२३. बुधवार.]
सुबह का सूर्योदय नई उम्मीदों के साथ आता है और शाम का सूर्यास्त ये याद दिला कर जाता है की हौसला रख जो शुरू होता है उसका अंत भी लिखा है।
बस इसी के साथ आज उम्मीदों को हाथ थाम कर कल की प्रतिक्षा कर रही हूं। आज ज्यादा नही लिख रही बस इतना ही की उम्मीद मुझे थामे रखना, में रुकने वाली नही।
बस थोड़ा और चल लेना तू राही,
मंजिल इंतजार में बैठी है कब से भी। -♡.सिमरन.♡
रुकना मत क्यों की, कुछ तो लोग कहेंगे, लोगो का काम है कहना।
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#आध्यात्मिक_प्रदर्शनी
आध्यात्मिक प्रदर्शनी में भाग लेने से व्यक्ति को मानसिक शांति, परमात्म ज्ञान और मोक्ष प्राप्ति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है। यह उनके जीवन को नई दिशा और उद्देश्य प्रदान करती है।
Spiritual Exhibition Satlok Ashram
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अमृत भारत योजना के अंतर्गत बढ़नी रेलवे स्टेशन पर हो रहे निर्माण कार्यों का हुआ शिलान्यास,बढ़नी रेलवे स्टेशन पर आयोजित हुआ कार्यक्रम।
बढ़नी आर्य चेतना न्यूज़ धीरेंद्र प्रताप त्रिपाठी गोंडा–गोरखपुर लूप लाइन पर स्थित बढ़नी रेलवे स्टेशन अमृत भारत के अंतर्गत पंद्रह करोड़ पांच लाख की लागत से नई सुविधा के साथ पुरानी स��विधाओं का शिलान्यास कार्यक्रम बढ़नी रेलवे स्टेशन पर आयोजित हुआ।कार्यक्रम के मुख्यातिथि डुमरियागंज के सांसद जगदंबिका पाल एवम अध्यक्षता भाजपा जिला महामंत्री विजयकांत चतुर्वेदी रहे।कार्यक्रम की शुरुवात सोमवार सुबह 10.50…
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Free tree speak काव्यस्यात्मा 1395.
Deh ka sanskaran
देह का संस्करण - कामिनी मोहन।
विशाल महासागर में
डूबता-उभरता मन हूँ।
अनंत ब्रह्माण्ड के भीतर
अन्फ़ास से भरा गतिमान तन हूँ।
नई दुनिया के मंच पर खेलते हुए
अँधेरे-उजाले की चित्रित प्रक्रिया हूँ।
चाहे शांत, अज्ञात रात हो
एक समग्र सुबह की संक्रिया हूँ।
अविश्वास के दूसरी तरफ़ खड़ा मैं
एक और भोर लिए इंतज़ार करता हूँ।
अहंकारवाद की कविता में अलिप्त
देह का संस्करण प्रकाशित करता हूँ।
-© कामिनी मोहन पाण्डेय।
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प्रशन :- ओशो, क्या कुछ आत्माएं शरीर छोड़ने के बाद भटकती रह जाती हैं?
कुछ आत्माएं निश्चित ही शरीर छोड़ने के बाद एकदम से दूसरा शरीर ग्रहण नहीं कर पाती हैं। उसका कारण ? उसका कारण है। और उसका कारण शायद आपने कभी न सोचा होगा कि यह कारण हो सकता है।
दुनिया में अगर हम सारी आत्माओं को विभाजित करें, सारे व्यक्तित्वों को, तो वे तीन तरह के मालूम पड़ेंगे। एक तो अत्यंत निकृष्ट, अत्यंत हीन चित्त के लोग; एक अत्यंत उच्च, अत्यंत श्रेष्ठ, अत्यंत पवित्र किस्म के लोग; और फिर बीच की एक भीड़ जो दोनों का तालमेल है, जो बुरे और भले को मेल-मिलाकर चलती है।
जैसे कि अगर डमरू हम देखें, तो डमरू ��ोनों तरफ चौड़ा है और बीच में पतला होता है। डमरू को उलटा कर लें। दोनों तरफ पतला और बीच में चौड़ा हो जाए, तो हम दुनिया की स्थिति समझ लेंगे। दोनों तरफ छोर और बीच में मोटा - डमरू उलटा । इन छोरों पर थोड़ी-सी आत्माएं हैं। निकृष्टतम आत्माओं को भी मुश्किल हो जाती है नया शरीर खोजने में और श्रेष्ठ आत्माओं को भी मुश्किल हो जाती है नया शरीर खोजने में। बीच की आत्माओं को जरा भी देर नहीं लगती। यहां मरे नहीं, वहां नई यात्रा शुरू हो गई। उसके कारण हैं। उसका कारण यह है कि साधारण, मीडियाकर, मध्य की जो आत्माएं हैं, उनके योग्य गर्भ सदा उपलब्ध रहते हैं।
मैं आपको कहना चाहूंगा कि जैसे ही आदमी मरता है, मरते ही उसके सामने सैकड़ों लोग संभोग करते हुए, सैकड़ों जोड़े दिखाई पड़ते हैं, मरते ही । और जिस जोड़े के प्रति वह आकर्षित हो जाता है, वहां गर्भ में प्रवेश कर जाता है। लेकिन बहुत श्रेष्ठ आत्माएं साधारण गर्भ में प्रवेश नहीं कर सकतीं। उनके लिए असाधारण गर्भ की जरूरत है, जहां असाधारण संभावनाएं व्यक्तित्व की मिल सकें। तो श्रेष्ठ आत्माओं को रुक जाना पड़ता है। निकृष्ट आत्माओं को भी रुक जाना पड़ता है, क्योंकि उनके योग्य भी गर्भ नहीं मिलता। क्योंकि उनके योग्य मतलब अत्यंत अयोग्य गर्भ मिलना चाहिए, वह भी साधारण नहीं है। तो श्रेष्ठ और निकृष्ट, दोनों को रुक जाना पड़ता है। साधारण जन एकदम जन्म ले लेता है, उसके लिए कोई कठिनाई नहीं है। उसके लिए निरंतर बाजार में गर्भ उपलब्ध हैं। वह तत्काल किसी गर्भ के प्रति आकर्षित हो जाता है।
सुबह मैंने बारदो की बात की थी। बारदो की प्रक्रिया में मरते हुए आदमी को यह भी कहा जाता है कि अभी तुझे सैकड़ों जोड़े भोग करते हुए, संभोग करते हुए दिखाई पड़ेंगे। तू जरा सोचकर, जरा रुककर, जरा ठहरकर गर्भ में प्रवेश करना। जल्दी मत करना, ठहर, थोड़ा ठहर ! थोड़ा ठहरकर किसी गर्भ में जाना। एकदम मत चले जाना।
जैसे कोई आदमी बाजार में खरीदने गया है सामान। पहली दुकान पर ही प्रवेश कर जाता है। शो रूम में जो भी लटका हुआ दिखाई पड़ जाता है, वही आकर्षित कर लेता है। लेकिन बुद्धिमान ग्राहक दस दुकान भी देखता है उलट-पलट करता है, भाव-ताव करता है, खोजबीन करता है, , फिर निर्णय करता है। नासमझ जल्दी से पहले ही जो उसकी आंख में पड़ जाती है चीज, वहीं चला जाता है।
तो बारदो की प्रक्रिया में मरते हुए आदमी से कहा जाता है कि सावधान! जल्दी मत करना। जल्दी मत करना। खोजना, सोचना, विचारना, जल्दी मत करना। क्योंकि सैकड़ों लोग निरंतर संभोग में हैं। सैकड़ों जोड़े उसे स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं। और जो जोड़ा उसे आकर्षित कर लेता है - और वह जोड़ा उसे आकर्षित करता है जो उसके योग्य गर्भ देने के लिए क्षमतावान होता है।
तो श्रेष्ठ और निकृष्ट आत्माएं रुक जाती हैं। उनके लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती है कि जब उनके योग्य गर्भ मिले। निकृष्ट आत्माओं को उतना निकृष्ट गर्भ दिखाई नहीं पड़ता, जहां वे अपनी संभावनाएं पूरी कर सक��ं। श्रेष्ठ आत्मा को भी नहीं दिखाई पड़ता !
निकृष्ट आत्माएं जो रुक जाती हैं, उनको हम प्रेत कहते हैं। और श्रेष्ठ आत्माएं जो रुक जाती हैं, उनको हम देवता कहते हैं। देवता का अर्थ है, वे श्रेष्ठ आत्माएं जो रुक गई। और प्रेत का अर्थ, भूत का अर्थ है, वे आत्माएं जो निकृष्ट होने के कारण रुक गई। साधारण जन के लिए निरंतर गर्भ उपलब्ध है। वह तत्काल मरा और प्रवेश कर जाता है। क्षण भर की भी देरी नहीं लगती। यहां समाप्त नहीं हुआ, और वहां वह प्रवेश करने लगता है।
जो आत्माएं रुक जाती हैं, क्या वे किसी के शरीर में प्रवेश करके उसे परेशान कर सकती हैं?
इसकी भी संभावना है। क्योंकि वे आत्माएं, जिनको शरीर नहीं मिलता, शरीर के बिना बहुत पीड़ित होने लगती हैं । निकृष्ट आत्माएं शरीर के बिना बहुत पीड़ित होने लगती हैं। श्रेष्ठ आत्माएं शरीर के बिना अत्यंत प्रफुल्लित हो जाती हैं। यह फर्क ध्यान में रखना चाहिए। क्योंकि श्रेष्ठ आत्मा शरीर को निरंतर ही किसी न किसी रूप में बंधन अनुभव करती है और चाहती है कि इतनी हलकी हो जाए कि शरीर का बोझ भी न रह जाए। अंततः वह शरीर से भी मुक्त हो जाना चाहती है, क्योंकि शरीर भी एक कारागृह मालूम होता है। अंततः उसे लगता है कि शरीर भी कुछ ऐसे काम करवा लेता है, जो न करने योग्य हैं। इसलिए वह शरीर के लिए बहुत मोहग्रस्त नहीं होता। निकृष्ट आत्मा शरीर के बिना एक क्षण नहीं जी सकती है। क्योंकि उसका सारा रस, सारा सुख शरीर से ही बंधा होता है।
शरीर के बिना कुछ आनंद लिए जा सकते हैं। जैसे समझें, एक विचारक है। तो विचारक का जो आनंद है, वह शरीर के बिना भी उपलब्ध हो जाता है। क्योंकि विचार का शरीर से कोई संबंध नहीं है। तो अगर एक विचारक की आत्मा भटक जाए, शरीर न मिले, तो उस आत्मा को शरीर लेने की कोई तीव्रता नहीं होती, क्योंकि विचार का आनंद तब भी लिया जा सकता है। लेकिन समझो कि एक भोजन करने में रस लेने वाला आदमी है, तो शरीर के बिना भोजन करने का रस असंभव है। तो उसके प्राण बड़े छटपटाने लगते हैं कि वह कैसे प्रवेश कर जाए। और उसके योग्य गर्भ न मिलता हो, तो वह किसी कमजोर आत्मा में— कमजोर आत्मा से मतलब है ऐसी आत्मा, जो अपने शरीर की मालिक नहीं है—उस शरीर में वह प्रवेश कर सकता है, किसी कमजोर आत्मा की भय की स्थिति में।
और ध्यान रहे, भय का एक बहुत गहरा अर्थ है। भय का अर्थ है जो सिकोड़ दे। जब आप भयभीत होते हैं, तो आप सिकुड़ जाते हैं। जब आप प्रफुल्लित होते हैं, तो आप फैल जाते हैं। जब कोई व्यक्ति भयभीत होता है, तो उसकी आत्मा सिकुड़ जाती है और उसके शरीर में बहुत जगह छूट जाती है, जहां कोई दूसरी आत्मा प्रवेश कर सकती है। एक नहीं बहुत आत्माएं भी एकदम से प्रवेश कर सकती हैं। इसलिए भय की स्थिति में कोई आत्मा किसी शरीर में प्रवेश कर सकती है। और करने का कुल कारण इतना होता है कि उसके जो रस हैं, वे शरीर से बंधे हैं। वे दूसरे के शरीर मैं प्रवेश करके लेने की वह कोशिश करती है। इसकी पूरी संभावना है, इसके पूरे तथ्य हैं, इसकी पूरी वास्तविकता है। इसका यह मतलब हुआ कि एक तो भयभीत व्यक्ति हमेशा खतरे में है। जो भयभीत है, उसे खतरा हो सकता है। क्योंकि वह सिकुड़ी हुई हालत में होता है। वह अपने मकान में, अपने घर के एक कमरे में रहता है, बाकी कमरे उसके खाली पड़े रहते हैं। बाकी कमरों में दूसरे लोग मे��मान बन सकते हैं।
कभी-कभी श्रेष्ठ आत्माएं भी शरीर में प्रवेश करती हैं, कभी-कभी। लेकिन उनका प्रवेश बहुत दूसरे कारणों से होता है। कुछ कृत्य हैं करुणा के, जो शरीर के बिना नहीं किए जा सकते। जैसे समझें, एक घर में आग लगी है, एक घर में आग लग गई है। और कोई उस घर में आग को बचाने को नहीं जा रहा है। भीड़ बाहर घिरी खड़ी है, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं होती कि आग में बढ़ जाए। और तब अचानक एक आदमी बढ़ जाता है। और वह आदमी बाद में बताता है कि मुझे समझ में नहीं आया कि मैं किस ताकत के प्रभाव में बढ़ गया। मेरी तो हिम्मत न थी और वह बढ़ जाता है, और आग बुझाने लगता है, और आग बुझा लेता है, और किसी को बचाकर बाहर निकल आता है। और वह आदमी खुद कहता है कि ऐसा लगता है कि मेरे हाथ की बात नहीं है यह, कुछ किसी और ने मुझसे करवा लिया है। ऐसी किसी घड़ी में जहां कि किसी शुभ कार्य के लिए आदमी हिम्मत न जुटा पाता हो, कोई श्रेष्ठ आत्मा भी प्रवेश कर सकती है। लेकिन ये घटनाएं कम होती हैं।
निकृष्ट आत्मा निरंतर शरीर के लिए आतुर रहती है। उसके सारे रस उनसे बंधे हैं और यह बात भी ध्यान में रख लेनी चाहिए कि मध्य की आत्माओं के लिए कोई बाधा नहीं है, उनके लिए निरंतर गर्भ उपलब्ध हैं।
इसीलिए श्रेष्ठ आत्माएं कभी-कभी सैकड़ों वर्षों के बाद ही पैदा हो पाती हैं। और यह भी जानकर हैरानी होगी कि जब श्रेष्ठ आत्माएं पैदा होती हैं, तो करीब-करीब पूरी पृथ्वी पर श्रेष्ठ आत्माएं एक साथ पैदा हो जाती हैं। जैसे कि बुद्ध और महावीर भारत में पैदा हुए आज से पच्चीस सौ वर्ष पहले। बुद्ध, महावीर दोनों बिहार में पैदा हुए। और उसी समय बिहार में छह और अदभुत विचारक थे। उनका नाम शेष नहीं रह सका, क्योंकि उन्होंने कोई अनुयायी नहीं बनाए और कोई कारण न था, वे बुद्ध और महावीर की ही हैसियत के लोग थे। लेकिन उन्होंने बड़े हिम्मत का प्रयोग किया। उन्होंने कोई अनुयायी नहीं बनाए। उनमें एक आदमी था प्रबुद्ध कात्यायन, एक आदमी था अजित सकंबल, एक था संजय वेलट्ठीपुत्त, एक था मक्खली गोशाल, और लोग थे। उस समय ठीक बिहार में एक साथ आठ आदमी एक ही प्रतिभा के, एक ही क्षमता के पैदा हो गए। और सिर्फ बिहार में, एक छोटे-से इलाके में सारी दुनिया के। ये आठों आत्माएं बहुत देर से प्रतीक्षारत थीं और मौका मिल सका तो एकदम से भी मिल गया।
और अक्सर ऐसा होता है कि एक श्रृंखला होती है अच्छे की भी और बुरे की भी उसी समय यूनान में सुकरात पैदा हुआ थोड़े समय के बाद, अरस्तू पैदा हुआ, प्लेटो पैदा हुआ। उसी समय चीन में कनफ्यूशियस पैदा हुआ, लाओत्से पैदा हुआ, मेन्शियस पैदा हुआ, च्वांगत्से पैदा उसी समय सारी दुनिया के कोने-कोने में कुछ अद्भुत लोग एकदम से पैदा हुए। सारा पृथ्वी कुछ अदभुत लोगों से भर गई। ऐसा प्रतीत होता है कि ये सारे लोग प्रतीक्षारत थे, प्रतीक्षारत थीं उनकी आत्माएं: और एक मौका ��या और गर्भ उपलब्ध हो सके, और जब ��र्भ उपलब्ध होने का मौका आता है, तो बहुत से गर्भ एक साथ उपलब्ध हो जाते हैं। जैसे कि फूल खिलता है एक फूल का मौसम आया है, एक फूल खिला; और आप पाते हैं कि दूसरा खिला और तीसरा खिला फूल प्रतीक्षा कर रहे थे और खिल गए। सुबह हुई, सूरज निकलने की प्रतीक्षा थी और कुछ फूल खिलने शुरू हुए, कलियां टूटी, इधर फूल खिला, उधर फूल खिला । रात भर से फूल प्रतीक्षा कर रहे थे, सूरज निकला और फूल खिल गए।
ठीक ऐसा ही निकृष्ट आत्माओं के लिए भी होता है। जब पृथ्वी पर उनके लिए योग्य वातावरण मिलता है, तो एक साथ एक श्रृंखला में वे पैदा हो जाते हैं। जैसे हमारे इस युग ने भी हिटलर और स्टेलिन और माओ जैसे लोग एकदम से पैदा किए। एकदम से ऐसे खतरनाक लोग पैदा हुए, जिनको हजारों साल तक प्रतीक्षा करनी पड़ी होगी। क्योंकि स्टैलिन या हिटलर या माओ जैसे आदमियों को भी जल्दी पैदा नहीं किया जा सकता.....
अकेले स्टैलिन ने रूस में कोई साठ लाख लोगों की हत्या की अकेले एक आदमी ने और हिटलर ने अकेले एक आदमी ने कोई एक करोड़ लोगों की हत्या की हिटलर ने हत्या के ऐसे साधन ईजाद किए, जैसे पृथ्वी पर कभी किसी ने नहीं किए थे। हिटलर ने इतनी सामूहिक हत्या की, जैसी कभी किसी आदमी ने नहीं की थी। तैमूरलंग और चंगीजखान सब बचकाने सिद्ध हो गए।
हिटलर ने गैस चेंबर्स बनाए उसने कहा, एक-एक आदमी को मारना तो बहुत महंगा है। एक-एक आदमी को मारो, तो गोली बहुत महंगी पड़ती है। एक-एक आदमी को मारना महंगा है, एक-एक आदमी को कब्र में दफनाना महंगा है। एक-एक आदमी की लाश को उठाकर गांव के बाहर फेंकना बहुत महंगा है। तो कलेक्टिव मर्डर, सामूहिक हत्या कैसे की जाए!
लेकिन सामूहिक हत्या भी करने के उपाय हैं। अभी अहमदाबाद में कर दी या कहीं और की, लेकिन ये बहुत महंगे उपाय हैं। एक-एक आदमी को मारो, बहुत तकलीफ होती है, बहुत परेशानी होती है, और बहुत देर भी लगती है। ऐसे एक-एक को मारोगे, तो काम ही नहीं चल सकता। इधर एक मारो, उधर एक पैदा हो जाता है। ऐसे मारने से कोई फायदा नहीं होता।
तो हिटलर ने गैस चैंबर बनाए। एक-एक चैंबर में पांच-पांच हजार लोगों को इकट्ठा खड़ा करके बिजली का बटन दबाकर एकदम वाष्पीभूत किया जा सकता है। बस पांच हजार लोग खड़े किए, बटन दवा, वे गए। एकदम गए, इसके बाद हॉल खाली। वे गैस बन गए। इतनी तेज चारों तरफ से बिजली गई कि वे गैस हो गए न उनकी कब्र बनानी पड़ी, न उनको कहीं मारकर खून गिराना पड़ा। खून-वून गिराने का जुर्म हिटलर पर कोई नहीं लगा सकता ! अगर पुरानी किताबों से भगवान चलता होगा, तो हिटलर को बिलकुल निर्दोष पाएगा। उसने खून किसी का गिराया नहीं, किसी की छाती में छुरा मारा नहीं, उसने ऐसी तरकीब निकाली जिसका कहीं वर्णन ही नहीं था। उसने बिलकुल नई तरकीब निकाली, गैस चैंबर जिसमें आदमी को खड़ा करो, बिजली की गर्मी तेज करो, एकदम वाष्पीभूत हो जाए, एकदम हवा हो जाए, बात खतम हो गई। उस आदमी का फिर नामोल्लेख भी खोजना मुश्किल है, हड्डी खोजना मुश्किल है, उस आदमी की चमड़ी खोजना मुश्किल है। वह गया। , पहली दफा हिटलर ने इस तरह आदमी उड़ाए जैसे पानी को गर्म करके भाप बनाया जाता है। पानी कहां गया, पता लगाना मुश्किल है। ऐसा खो गया आदमी। ऐसे गैस चैंबर बनाकर उसने अंदाजन एक करोड़ आदमियों को गैस चेंबर में उड़ा दिया।
ऐसे आदमी को जल्दी जन्म मिलना बड़ा मुश्किल है। और अच्छा ही है कि नहीं मिलता। नहीं तो बहुत कठिनाई हो जाए। अब हिटलर को बहुत प्रतीक्षा करनी पड़ेगी फिर बहुत समय लग सकता है अब हिटलर को दोबारा वापस लौटने के लिए। बहुत कठिन मामला है। क्योंकि इतना निकृष्ट गर्भ अब फिर से उपलब्ध हो। और गर्भ उपलब्ध होने का मतलब क्या है? गर्भ उपलब्ध होने का मतलब है उस मां और पिता की लंबी श्रृंखला दुष्टता का पोषण कर रही है-लंबी श्रृंखला । एकाध जीवन में कोई आदमी इतनी दुष्टता पैदा नहीं कर सकता कि उसका गर्भ हिटलर के योग्य हो जाए। एक आदमी कितनी दुष्टता करेगा? एक आदमी कितनी हत्याएं करेगा ? हिटलर जैसा बेटा पैदा करने के लिए, हिटलर जैसा बेटा किसी को अपना मां-बाप चुने इसके लिए सैकड़ों, हजारों, लाखों वर्षों की लंबी कठोरता की परंपरा ही कारगर हो सकती है। यानी सैकड़ों, हजारों वर्ष तक कोई आदमी बूचड़खाने में काम करते ही रहे हों, तब नस्ल इस योग्य हो पाएगी, बीजाणु इस योग्य हो पाएगा कि हिटलर जैसा बेटा उसको पसंद करे और उसमें प्रवेश करे।
ठीक वैसा ही भली आत्मा के लिए भी है। लेकिन सामान्य आत्मा के लिए कोई कठिनाई नहीं है। उसके लिए रोज गर्भ उपलब्ध है। क्योंकि उसकी इतनी भीड़ है और इतने गर्भ चारों तरफ उसके लिए तैयार हैं; और उसकी कोई विशेष, कोई विशेष उसकी मांगें नहीं हैं। उसकी मांगें बड़ी साधारण हैं। वही खाने की, पीने की, पैसा कमाने की, काम-भोग की, इज्जत की, आदर की, पद की, मिनिस्टर हो जाने की, इस तरह की सामान्य इच्छाएं हैं। इस तरह की इच्छाओं वाला गर्भ कहीं भी मिल सकता है, क्योंकि इतनी साधारण कामनाएं हैं कि सभी की हैं। हर मां-बाप ऐसे बेटे को चुनाव के लिए अवसर दे सकता है।
लेकिन अब किसी आदमी को एक करोड़ आदमी मारने हैं, तो ऐसी आत्माओं को प्रतीक्षा करनी पड़ेगी ! और यदि किसी आदमी को ऐसी पवित्रता से जीना है कि उसके पैर का दबाव भी पृथ्वी पर न पड़े, इतने प्रेम से जीना है कि उसका प्रेम भी किसी को कष्ट न दे पाए, उसका प्रेम भी किसी के लिए बोझिल न हो जाए, तो फिर ऐसी आत्माओं को भी प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है।
(मैं मृत्यु सिखाता हूं )
||osho||
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अबकी बार यह पूरब से चलेगा।
••••••••••••••••••••••••••••••••
अच्छा या बुरा नही होकर एक वक्त हैं। जो वक्त बेवक्त खाली हो जाता हैं। उस खालीपन के अंदर कई मौसम एक साथ रहा करते हैं।
आज चमकती हुई धूप हैं। सर्द मौसम बहुत पास से गुजर रहा है। धूप निश्चिंत हैं कि अब सर्द मौसम बाधा नहीं बनेंगे, लेकिन बीच बीच में बेमकसद भटकती असंतुष्ट बदली धूप को आशंकित करती हैं। इस आशंका को तब और बल मिलता हैं, जब हवाएं अट्टहास करती पास से गुजर जाती हैं।
शोर करता यह उद्वेलित मालूम पड़ता हैं जैसे बेमतलब का हो।
बेमतलब का होना इसे और जंगली बनाता हैं। उपेक्षा और तिरस्कार से सख्त हो चुका, यह लोगो को दर्द दे कर अपना गुस्सा निकालता है। अपनी पहचान खातिर बार–बार शोर करता अपनी मौजूदगी का अहसास कराता हैं।
लेकिन इन जाड़ों के बाद वाली धूप में तुम्हारा क्या काम?
वेग से गुजरती इन हवाओं को देख धूप थोड़ी देर के लिए ठिठक पड़ती हैं। जानी पहचानी लेकिन पहचान का कोई सिरा नजर ��हीं आता। मिलने की खुशबू आ रही , लेकिन कैसे मिले थे याद नही! हवाएं शिकायती और उम्मीद की मिलीजुली नजरों से धूप को ताक रही हैं। जैसे कुछ इशारा करना चाह रही हो। "भूल गए क्या वो तपिश जब मुझे गले लगाएं थे? भूल गए वो शाम जब मेरे आगोश में ताजे हुए थे। या सुकून वाली वो रातें जब तुम मेरे सपनो में सोएं थे? अब मुझे तुम्हारी जरूरत हैं और तुम मुझे निचोड़ रहे हो। सूखा डाल रहे हो। कोई कैसे भूल सकता हैं!"
धूप निःशब्द हैं। थोड़ी देर के लिए सहम जाता हैं। यादें पीछा करती हैं और सुबह ओस बन जाती हैं।
बेउम्मीद मुसाफ़िर बन चुका हवा शुष्क हो चला हैं। धूप का सहारा मिले तो अभी भी बरस सकता हैं, लेकिन इसके आसार नजर नहीं आते। धूप को भी फरवरी का कर्तव्य निभाना हैं। ऐसे कैसे उस आवारगी में वापस मुड़ जाए।
एक दर्द फैल रही हैं हवा के अंदर, एक ऐसा दर्द जिसे दस्तक की कमी खाती हैं। जिधर से गुजरती हैं खामोशी पसरा देती हैं। यह सिर्फ खामोशी नही जादुई खामोशी हैं– जो सर्द हैं रूखा सूखा हैं। सामने पड़ने वाले खुद ब खुद इसमें समा जाते हैं।
यह संक्रमण काल हैं, जिधर ठंडी गर्मी आमने –सामने, नजरे मिलाए एक दूसरे से विदा ले रहे हैं। और अंततः किसी एक को विदा हो जाना हैं। बेदिली से ही सही हर बार इस मौसम में सर्द हवा को ही विदा लेनी पड़ती है। कुछ वक्त गुजार चुकने के बाद भला कौन कही जाना चाहता हैं।
लेकिन कोई आगे बढ़ने के वावजूद भी एकाएक चला तो नही जाता?
ये सर्द हवा भी एकबारगी नही चला जाएगा। जाने कितने प्रेमी जोड़ों को एक दूसरे से वादा करते देख मुस्कुराएगा। ईश्वर से इनके लिए रहम की भीख मांगेगा। फरवरी को मार्च बनाएगा। सुर्ख रंगो में रंगते चला जाएगा। ऐसा जाएगा की पेड़ के सारे पत्ते दूर तक उसका पीछा करेंगे।
सड़क छत खेत तालाब से गुजर कर यह उन गलियों से भी गुजरेगा जिन गलियों में शोर हुआ करता था। अब रात की वीरानगी है।
अतीत को ओढ़े उस जर्जर महल के सूखे रंगो को कुरेदता उसके सीलन को अपने साथ लेता जाएगा।
खंडहर हो चुके उस मकान के गलियारों से भी गुजरेगा और बंद किवाड़ वाली उस कमरे में सपनों को मुस्कुराता छोड़ आगे बढ़ जाएगा।
चलते चलते यह नदी बन जाएगा। समतल पे सरपट दौड़ेगा, खाइयों को भरते थमी थमी चलेगा। सामने पहाड़ आए, किनारे हो लेगा। जंगल को सींचते यात्रा चलता रहेगा।
क्या हैं यह जिंदगी? कभी सब दे देती हैं। कभी एक झटके में सब छीन लेती हैं! लेकिन इस लेन देन में जिंदा रहना जरूरी हैं। इस बात का हवा को पता हैं। रौशनी चौराहे मुहल्ले खेत खलिहान ओझल होने लगे हैं।
यहां से अकेलेपन की यात्रा हैं। वापसी की यात्रा की नियति हमेशा से अकेलेपन की रही हैं। अकेलापन अकेला ही रहता हैं। जिस पल किसी के साथ की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, वह पल प्रायः अकेला गुजरता हैं। कुछ सच्चाईयां भयानक होती हैं। उनके नुकीले दांत होते हैं।
उस जगह से बेदखल हो जाते हैं जहां कुछ वक्त गुजार चुके होते हैं। मन रम जाता हैं। अहंकार अपना घर बना लेता हैं, एक सुंदर महल।
और जब यहां से रवानगी होती है तो सब कुछ बदल जाता हैं।
दिलकश अंदाज की जगह भावशून्यता दिखती हैं। स्वागत करती बांहे अब मजबूरियों में कांप रही होती हैं।
शब्दों में इतनी भी हिम्मत नही कि ढंग से विदा कर सके।
सामने कई रास्ते हैं। जो आगे चल कर एक हो जाते हैं।
वह रास्ता रेगिस्तान को जाता हैं। रेगिस्तान सुना ही था सुना ही रहा।
लोग रास्ते बनाते गए और आंधियां निशान मिटाते गई।
ऐसी पल भर में खो जानें वाली रास्तों में वह होकर भी नही था।
किनारे खड़ा वो पेड़ नजदीक आ रहा हैं।
उमंगों की यात्रा में इसी जगह कुछ वक्त के लिए ठहरा था।
पत्तियां नई–नई सी थी। चिड्डियो की आवाज़ें जैसे महबूब की पुकार हो चले थे।
ढोल बाजे दूर कही गांव में बज रहे थे। शायद कोई दुल्हन धड़कते दिल से अपनी बारात का इंतजार कर रही थी।
अब वो गांव दुल्हन को विदा कर अलसाया सा पड़ा था।
पेड़ भी मौन था।
मुझे पहचानता था मालूम नही। बिना पहचान के कौन कही रुकता हैं।
सामने सपाट आकाश दिख रहा है। मिलों फैली तन्हाईया बांहे फैलाए खड़ी हैं। स्वागत कोई भी करे अच्छा लगता हैं।
शून्य हो चला है समय। समय का शून्य हो जाना वक्त को थाम लेता हैं।
सुख चुकी हवा को लहरे भींगो देने खातिर पास बुला रही हैं।
कभी लहरों के ऊपर हवा तो कभी हवा के ऊपर लहरें। जैसे ईश्वर सबको अपने आगोश में ले लेते हैं वैसे सागर भी हवा को अपने आगोश में लेकर भिगो रही हैं।
हवा को नया बना रही हैं।
हवा का नया जन्म हो रहा हैं।
अबकी बार यह पूरब से चलेगा।
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हंसी ख्वाब
जिंदगी एक हंसी ख्वाब जो तुम उसी ख्वाब की ताबीर हो तुम हर रोज एक नई आयाम मुझे देती हो मुझे जीने का मकसद देती हो । तेरे आंचल की छांव में हम खुशी का पल ढूंढते हैं, हर नई सुबह एक ख्वाब एक जीने की वजह बुनते हैं । कभी खुशी कभी गम की तहरीर हो किसी पल में हमें हंसी ख्वाबों के सुनहरे झूलों में चांद तारों की सैर कराती हो हमें हर पल जीने का वजह बन जाती हो । जिंदगी एक हंसी ख्वाब हो तुम ।।।
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अपने दिन की शुरुआत के लिए 150+ सुप्रभात कोट्स
सुप्रभात प्रेरणादायक कोट्स से आपकी दिनचर्या की शुरुआत करें। इन 150 सकारात्मक विचारों से आपका दिन ऊर्जावान और उत्साहित होगा।एक नया दिन नई उम्मीदों और नई शुरुआत का प्रतीक है। इसलिए अपने दिन की शुरुआत कुछ प्रेरणादायक और सकारात्मक विचारों से करना महत्वपूर्ण है। यह आपके दिन को खुशहाल और सफल बनाने में मदद करेगा। इस लेख में हमने 150 सुप्रभात कोट्स एकत्र किए हैं जो आपकी दिनचर्या की शुरुआत को अधिक…
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Delhi Mein Vayu Pradushan Se Nahin Mil Rahi Rahat, AQI 'Bahut Kharab'
नई दिल्ली। दिल्ली में वायु प्रदूषण से स्थिति लगातार खराब हो रही है, शुक्रवार को वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 'बहुत खराब' श्रेणी में दर्ज किया गया। सुबह 7 बजे राजधानी का औसत एक्यूआई 332 दर्ज किया गया, जबकि कुछ इलाकों में एक्यूआई 400 के 'गंभीर' स्तर को भी पार कर गया।
दिल्ली -एनसीआर के अन्य शहरों में भी वायु गुणवत्ता बिगड़ गई है। आंकड़ों के अनुसार, ग्रेटर नोएडा में एक्यूआई 272, गाजियाबाद में 258, नोएडा में 249, गुरुग्राम मे��� 258 और फरीदाबाद में 166 दर्ज किया गया।
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Sadhna TV Satsang 04-06-2024 || Episode: 2941 || Sant Rampal Ji Maharaj ...
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सभी प्रसिद्ध भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणी का निष्कर्ष यही है कि 21वीं सदी के प्रारम्भ में दुनिया में एक नई धार्मिक क्रांति का उदय होगा जिसका मुखिया आदि सनातन धर्म की पुनर्स्थापना करेगा। वर्तमान में आदि सनातन धर्म की पुनर्स्थापना करने वाले एकमात्र संत हैं संत रामपाल जी महाराज।
☑️ पुस्तक और डिलीवरी चार्ज बिल्कुल निःशुल्क (फ्री) है।
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"Sant Rampal Ji Maharaj"
➡️ सुनिए जगतगुरु संत रामपाल जी महाराज के मंगल प्रवचन :-
➜साधना टीवी 📺 पर शाम 7:30 से 8:30
➜ईश्वर TV 📺 पर सुबह 6:00 से 7:00
अधिक जानकारी के लिए Saint Rampal Ji Maharaj Youtube Channel Visit करें।
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आज होगी अखिल भारतीय कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक, सीएम सुक्खू और प्रतिभा सिंह भी होंगे शामिल
Himachal News: अखिल भारतीय कांग्रेस वर्किंग कमेटी की शुक्रवार को नई दिल्ली में बैठक होगी। मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह भी बैठक में शामिल होंगे। सुक्खू पहले से ही दिल्ली के दौरे पर हैं। प्रतिभा सिंह गुरुवार सुबह शिमला से दिल्ली के लिए रवाना हुईं। प्रदेश में कांग्रेस की नई कार्यकारिणी गठित करने को लेकर वर्किंग कमेटी की बैठक में हाईकमान से चर्चा होने के…
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