Labh Panchami: लाभ पंचमी दीपावली के बाद लाभ पंचमी का विशेष महत्व
दीपावली के बाद लाभ पंचमी का विशेष महत्व है। इस दिन शिव परिवार, मां लक्ष्मी की पूजा के साथ नए व्यापार की शुरुआत करना शुभ माना जाता है।
दीपावली के त्योहार की शुरुआत धनतेरस से होती है और रोशनी के इस त्योहार का अंतिम दिन लाभ पंचमी के रूप में मनाया जाता है। लाभ पंचमी को सौभाग्य पंचमी, ज्ञान पंचमी और लाभ पंचम के नाम से भी जाना जाता है।
मान्यता है इस दिन शिव परिवार और माता लक्ष्मी की पूजा करने से समस्त विघ्नों का नाश होता है और अपने नाम स्वरूप ये तिथि लाभ प्रदान करती है।
लाभ पंचमी की तिथि
इस साल लाभ पंचमी 18 नवंबर 2023 शनिवार को है। गुजरात में यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। बिजनेस करने वाले लोग इस दिन भी शुभ मुहूर्त में अपना प्रतिष्ठान खोलना पसंद करते है। ये तिथि सुख और समृद्धि बढ़ाती है। प्रगति होती है।
लाभ पंचमी महत्व
हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार इस दिन कोई भी नया बिजनेस शुरू किया जा सकता है। दिवाली के बाद व्यापारी वर्ग इस दिन अपने दुकान और प्रतिष्ठान पुनः शुरू करते हैं। लाभ पंचमी पर अबूझ मुहूर्त रहता है। ऐसा माना जाता है कि लाभ पंचमी के दिन की गई पूजा से लोगों के जीवन, व्यवसाय और परिवार में लाभ, सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस दिन व्यवसायी नए खाता बही का उद्घाटन करते हैं और मां लक्ष्मी से व्यापार में वृद्धि के लिए कामना करते हैं।
पूजा विधि
लाभ पंचमी पर सुबह जल्दी नहाने के बाद से सूर्य को जल चढ़ाना चाहिए। इसके बाद शुभ मुहूर्त में भगवान शिव हनुमान जी और गणेश की मूर्तियों की पूजा करें। सुपारी पर मौली लपेटकर चावल के अष्टदल पर श्री गणेश जी के रूप में विराजित करना चाहिए। चंदन, सिंदूर, अक्षत, फूल, दूर्वा से भगवान गणेश जी की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद भगवान शिव को भस्म, बिल्व पत्र, धतूरा, सफेद वस्त्र अर्पित कर पूजन करना चाहिए। भोग चढ़ाएं और फिर नए बही खाता पर शुभ-लाभ लिखकर व्यापार की शुरुआत करें।
कैसे करें पूजन-
1.लाभ पंचमी के दिन अलसुबह जल्दी उठकर दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर नए वस्त्र या साफ-स्वच्छ धुले हुए वस्त्र धारण करें।
घर या दुकान, व्यवसायिक प्रतिष्ठान के मंदिर की साफ-सफाई करके मां सरस्वती, भगवान श्री गणेश तथा धन की देवी लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करें।
जो लोग दिवाली पर मां सरस्वती, श्री गणेश और देवी लक्ष्मी का पूजन नहीं कर सके उनके लिए यह दिन बहुत लाभदायी होता हैं, क्योंकि लाभ पंचमी के दिन पूजन से व्यापार में नित नई ऊंचाइयां हासिल की जा सकती है।
इस दिन बुद्धि और ज्ञान को बढ़ाने के लिए किताबों का पूजन किया जाता हैं।
इस दिन से नए बहीखाते लिखना प्रारंभ करने से कारोबार में सफलता मिलती हैं। अत: नए बहीखाते अवश्य लिखें।
बही खाते में लिखते समय दाईं तरफ लाभ और बाईं तरफ शुभ लिखने से जीवन में शुभता का संचार होता है।
इस दिन नए खाता बही खोलकर उसमें बाईं ओर शुभ और दाईं ओर लाभ बनाने तथा पहले पृष्ठ के केंद्र में शुभ प्रतीक बनाकर व्यापार की शुरुआत करें।
साथ ही लाभ पंचमी के दिन नए बही खाते लिखने की शुरुआत करते समय भगवान श्री गणेश का स्मरण करें ताकि आपका आने वाला जीवन सुख-समृद्धि से भरा रहें।
इस दिन श्री गणेश, माता लक्ष्मी और देवी सरस्वती की आरती करें।
देवी-देवताओं को मिठाई का भोग चढ़ाकर देवी लक्ष्मी से अपने लिए दिव्य आशीर्वाद के लिए प्रार्थना करें।
इस दिन अधिक से अधिक लक्ष्मी जी, सरस्वती तथा श्री गणेश एवं शिव जी के मंत्रों का जाप करें।
इस दिन गरीबों तथा असहाय लोगों को भोजन, वस्त्र, रुपए-पैसे तथा अन्य जरूरी सामग्री का दान अवश्य दें।
यह शुभ तिथि विशेष रूप से दीप पर्व का हिस्सा माना जाता है। अत: इस दिन यानी दिवाली के बाद आने वाले लाभ पंचम के दिन दुकान मालिक या व्यापारी अपनी व्यावसाय���क गतिविधियों की शुरुआत करें तो निश्चित ही लाभ होगा।
यह दिन सभी तरह की सांसारिक कामनाओं की पूर्ति करने वाला माना जाता है, अत: पूरे मन से शिव जी का पूजन करें तथा परिवार में सुख-शांति और कष्टों से मुक्ति का वरदान भोलेनाथ से प्राप्त करें।
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दिवाली की शुरुवात , गोवत्स द्वादशी / वसुबारस के साथ ।
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गोवत्स द्वादशी / वसुबारस बनाओ ख़ास AdBanao App के साथ।
वसुबारस क्या है और क्यूँ मानते है|
भारत में त्योहारों की कोई कमी नहीं होती है। यहां त्यौहारों में नई-नई रंगत भर जाती है और धूम-धाम से मनाया जाता है। इन त्यौहारों में भारतीय बहुत उत्साह से भाग लेते हैं। ऐसे ही एक त्यौहार है वसुबारस। यह त्यौहार दीवाली से एक दिन पहले मनाया जाता है। हम इस दिन को भगवान विष्णु और उनकी प्रतिनिधित्व करने वाली गाय के उपासना के रूप में मनाया जाता है।
वसुबारस क्या होता है? इस दिन गाय और उसकी सहायक दूध पिलाने वाली बछड़े का पूजन किया जाता है।
भारत में अधिकतर हिंदू गाय को अत्यंत मूल्यवान व पवित्र मानते है।
इस त्योहार को अनेक राज्यों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है, लेकिन इसका महत्व सब जगह पूरी तरह से समान ही होता है। वसुबारस के दिन गायों की पूजा की विधि अनेक स्थानों पर अलग-अलग होती है। महाराष्ट्र में वसुबारस को गोवत्स द्वादशी के रूप में मनाया जाता है। गुजरात में बाघ बारस नाम से मनाया जाता है।
आंध्र प्रदेश राज्य में पीठापुरम दत्त महासंस्थान में श्रीपाद श्री वल्लभ के श्रीपाद वल्लभ आराधना उत्सव के रूप में मनाया जाता है। अन्य राज्यों में भी वसुबारस को उत्सव के रूप में आयोजित किया जाता है।
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गौ माता को मातृत्व, उर्जा और स्थिरता का प्रतीक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि जिनके घर गाय होती है उनके घर धन और लाभ की प्राप्ति होती है और इसलिए लोग अपनी गाय और बछड़ों को पूजते हैं, उन्हें वसुधा देवी का रूप मानते हैं और उनसे आशीर्वाद लेते हैं।
वसुबारस का महत्व
वसुबारस मुख्यतः देवी गौ माता की पूजा का दिन माना जाता है। गाय को माँ के रूप में मानी जाती है जो हमारे जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसलिए इस दिन हमें एक मौका मिलता है भगवान शिव की तरह, देवी गौ माता की पूजा करने का।
इसी के साथ देवी लक्ष्मी धन और समृद्धि की देवी मानी जाती है, जो अपने भक्तों के जीवन में खुशहाली और समृद्धि लाती है। वसुबारस के दिन गौ माता की पूजा करने से देवी लक्ष्मी सुख, समृद्धि और सफलता का वरदान देती हैं। वसुबारस के दिन भगवान कुबेर और देवी लक्ष्मी की प्रार्थना करने का एक और सुअवसर होता है। इस दिन अगर हम व्रत रखते हैं, तो यह हमारी मनोकामनाएं पूरी करने में मदद करता है। हमें उम्मीद है कि इस वसुबारस पर आप सभी गौ माता की पूजा कर, देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करें और हर एक से प्यार भरे रिश्तों की स्थापना करें।
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वसुबारस में पूजा विधि
हिंदू धर्म में गौ माता को बड़ा महत्व मिलता है, और विभिन्न उत्सवों में गौ माता की पूजा की जाती है। वसुबारस उत्सव के दौरान भी गौ माता व उसके बछड़ों की पूजा की जाती है। गौ पूजा प्रातःकाल में कि जाती है। गौ माता की पूजा के लिए एक साफ़ थाली उसमें चावल, फूल, दीपक, पंचामृत, नारियल का पानी, शक्कर, हल्दी, कुमकुम आदि आवश्यक चीजें है। उसी के साथ भोग भी आवशक है, भोग स्वरूप गेहूँ के उत्पाद, चना और मूंग की फलियाँ खिलाई जाती हैं|
श्री कृष्ण की पूजा भी वसुबारस में की जाती है। वसुबारस के दिन कर्म करने की महत्वता होती है। दिन के जल्दी सूर्योदय पर उठें और गौ माता की पूजा के बाद महिलाएँ घर के कोने-कोने से आकाश की ओर अभिवादन करती है| यह करने से बड़ी से बड़ी आपदाओं से बचा जा सकता है ऐसी मान्यता है। इसी के साथ दान का भी इस दें पर अनन्य साधारण महत्व है।
गौ माता या कामधेनु जैसी स्वर्गीय गाय की पूजा करने से, हमारे घर सुख शांति और धन कि कभी कमी नहीं रहेगी यह धरना होती है, इसी लिए वसुबारस के दिन लोग अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए गौ माता से आशीर्वाद लेते हैं।
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वसुबारस पर आप अपना बिज़नस कैसे बढ़ा सकते हो?
हम सभी को पता है कि, वसुबारस दिवाली कि शुरुवात मानी जाती है, दिवाली भारत का सबसे बड़ा त्योहार है|
दिवाली खुशियों के साथ साथ बिज़नस बढाने का भी अवसर लेकर आती है|
इस दिवाली आप अपने बिज़नस कि ब्रांडिंग करके अपने बिज़नस को बढ़ा सकते हो| आपके बिज़नस कि ब्रांडिंग के लिए AdBanao ऐप सबसे प्रीमियम और कारगर है|
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तो चलो, दिवाली के साथ अपने बिज़नस ब्रांडिंग का भी उत्सव मानते है, AdBanao से ब्रांडिंग करके इस दिवाली अपना कारोबार बढ़ाते है|
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धनतेरस 2018: धनतेरस पूजन शुभ मुहूर्त, इस पूजा से प्रसन्न होंगी लक्ष्मी, भरेगा धन का भंडार
धनतेरस 2018: धनतेरस पूजन शुभ मुहूर्त, इस पूजा से प्रसन्न होंगी लक्ष्मी, भरेगा धन का भंडार
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समुद्र मंथन से उत्पन्न लक्ष्मी को धन-धान्य की अधिष्ठात्री कहा गया है। मौजूदा परिवेश में धन व समृद्धि के बगैर जीवन जीना वास्तव में कठिन ही नहीं बल्कि असंभव सा हो गया है। धन न केवल जीने के लिए आवश्यक है, बल्कि मात्र दुनिया में यही ऐसा है, जो करोड़ों दोषों को दूर करता है और समाज में प्रसिद्धि व यश भी दिलाता है। धनतेरस के दिन श्री की साधना के लिए किए जाने वाले कुछ अनुभूत प्रयोग जो आपके लिए…
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एक बार यमराज ने अपने दूतों से प्रश्न किया- क्या प्राणियों के प्राण हरते समय तुम्हें किसी पर दया भी आती है? यमदूत संकोच में पड़कर बोले- नहीं महाराज! हम तो आपकी आज्ञा का पालन करते हैं। हमें दया-भाव से क्या प्रयोजन?
यमराज ने सोचा कि शायद ये संकोचवश ऐसा कह रहे हैं। अतः उन्हें निर्भय करते हुए वे बोले- संकोच मत करो। यदि कभी कहीं तुम्हारा मन पसीजा हो तो निडर होकर कहो। तब यमदूतों ने डरते-डरते बताया- सचमुच! एक ऐसी ही घटना घटी थी महाराज, जब हमारा हृदय काँप उठा था।
ऐसी क्या घटना घटी थी? -उत्सुकतावश यमराज ने पूछा। दूतों ने कहा- महाराज! हंस नाम का राजा एक दिन शिकार के लिए गया। वह जंगल में अपने साथियों से बिछड़कर भटक गया और दूसरे राज्य की सीमा में चला गया। फिर? वहाँ के राजा हेमा ने राजा हंस का बड़ा सत्कार किया।
उसी दिन राजा हेमा की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया था। ज्योतिषियों ने नक्षत्र गणना करके बताया कि यह बालक विवाह के चार दिन बाद मर जाएगा। राजा के आदेश से उस बालक को यमुना के तट पर एक गुहा में ब्रह्मचारी के रूप में रखा गया। उस तक स्त्रियों की छाया भी न पहुँचने दी गई।
किन्तु विधि का विधान तो अडिग होता है। समय बीतता रहा। संयोग से एक दिन राजा हंस की युवा बेटी यमुना के तट पर निकल गई और उसने उस ब्रह्मचारी बालक से गंधर्व विवाह कर लिया। चौथा दिन आया और राजकुँवर मृत्यु को प्राप्त हुआ। उस नवपरिणीता का करुण विलाप सुनकर हमारा हृदय काँप गया। ऐसी सुंदर जोड़ी हमने कभी नहीं देखी थी। वे कामदेव तथा रति से भी कम नहीं थे। उस युवक को कालग्रस्त करते समय हमारे भी अश्रु नहीं थम पाए थे।
यमराज ने द्रवित होकर कहा- क्या किया जाए? विधि के विधान की मर्यादा हेतु हमें ऐसा अप्रिय कार्य करना पड़ा। महाराज! -एकाएक एक दूत ने पूछा- क्या अकालमृत्यु से बचने का कोई उपाय नहीं है? यमराज नेअकाल मृत्यु से बचने का उपाय बताते हुए कहा- धनतेरस के पूजन एवं दीपदान को विधिपूर्वक करने से अकाल मृत्यु से छुटकारा मिलता है। जिस घर में यह पूजन होता है, वहाँ अकाल मृत्यु का भय पास भी नहीं फटकता।
इसी घटना से धनतेरस के दिन धन्वंतरि पूजन सहित दीपदान की प्रथा का प्रचलन शुरू हुआ।
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धनतेरस 2021 : ऐसे करें भगवान धनवंतरि का पूजन, जानें शुभ मुहूर्त, सही पूजा विधि और सब कुछ
धनतेरस 2021 : ऐसे करें भगवान धनवंतरि का पूजन, जानें शुभ मुहूर्त, सही पूजा विधि और सब कुछ
देश भर में आज यानि 2 नवंबर को धनतेरस का त्योहार मनाया जा रहा है। कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन समुद्र-मंथन के समय आयुर्वेद और आरोग्य के देवता भगवान धन्वंतरि हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए इस तिथि को धनतेरस या धन त्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है।
धनतेरस के दिन की परंपरा-
इस दिन खरीदारी और निवेश करना काफी शुभ माना गया है। धनतेरस के दिन लोग सोने-चांदी के गहने,…
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धनतेरस आज, इस शुभ मुहूर्त में करें खरीदारी
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हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल कार्तिक मास की त्रयोदशी को धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन ही भगवान धनवंतरि पृथ्वी पर समुद्र मंथन के दौरान प्रकट हुए थे। इस साल यह तिथि 2 नवंबर को है।
जानिए धनतेरस पर बनने वाले शुभ मुहूर्त, पूजन विधि व पौराणिक कथा…
धनतेरस पर भगवान कुबेर और आयुर्वेद के प्रणेता भगवान धन्वंतरि की पूजा के साथ…
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💥 करवा चौथ - 01 नवम्बर 2023💥
🌹 कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ का पर्व मनाया जाता है । करवा चौथ के दिन सुहागिन महिला पति की लंबी उम्र के लिए पूर�� दिन निर्जला व्रत रखती हैं । अपने व्रत को चन्द्रमा के दर्शन और उनको अर्घ्य अर्पण करने के बाद ही तोड़ती हैं ।
💥संकष्ट चतुर्थी - 01 नवम्बर 2023💥
🌞क्या है संकष्ट चतुर्थी ?🌞
👉संकष्ट चतुर्थी का मतलब होता है संकट को हरने वाली चतुर्थी । संकष्ट संस्कृत भाषा से लिया गया एक शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘कठिन समय से मुक्ति पाना’।
👉इस दिन व्यक्ति अपने दुःखों से छुटकारा पाने के लिए गणपति की अराधना करता है । पुराणों के अनुसार चतुर्थी के दिन गौरी पुत्र गणेश की पूजा करना बहुत फलदायी होता है । इस दिन लोग सूर्योदय के समय से लेकर चन्द्रमा उदय होने के समय तक उपवास रखते हैं । संकष्ट चतुर्थी को पूरे विधि-विधान से गणपति की पूजा-पाठ की जाती है ।
💥पुण्यदायी तिथियाँ व योग💥
👉 ५ नवम्बर : रविपुष्यामृत योग (सूर्योदय से सुबह १०-२९ तक)
👉 ९ नवम्बर : रमा एकादशी (इसका व्रत चिंतामणि तथा कामधेनु के समान सब मनोरथों को पूर्ण करनेवाला है ।), ब्रह्मलीन मातुश्री श्री माँ महँगीबाजी का महानिर्वाण दिवस
👉 १० नवम्बर : धनतेरस, भगवान धन्वंतरिजी जयंती
👉 ११ नवम्बर : नरक चतुर्दशी (रात्रि में मंत्रजप से मंत्रसिद्धि)
👉 १२ नवम्बर : नरक चतुर्दशी (तैलाभ्यंग स्नान), दीपावली (दीपावली की रात्रि में किया गया जप- तप, ध्यान-भजन अनंत गुना फल देता है।)
👉 १३ नवम्बर : सोमवती अमावस्या (सूर्योदय से दोपहर २-५६ तक) (इस दिन तुलसी की १०८ परिक्रमा करने से दरिद्रता मिटती है।)
👉 १४ नवम्बर : नूतन वर्षारम्भ (गुज.), कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा (पूरा दिन शुभ मुहूर्त)
👉 १५ नवम्बर : भाईदूज
👉 १७ नवम्बर : विष्णुपदी संक्रांति (पुण्यकाल : सूर्योदय से दोपहर १२-२४ तक) (इसमें किये गये ध्यान, जप व पुण्यकर्म का फल लाख गुना होता है । - पद्म पुराण)
👉 १९ नवम्बर : रविवारी सप्तमी (सुबह ७-२३ से २० नवम्बर प्रातः ५-२१ तक)
👉 २० नवम्बर : गोपाष्टमी
👉 २१ नवम्बर : ब्रह्मलीन भगवत्पाद श्री लीलाशाहजी महाराज का महानिर्वाण दिवस, अक्षय-आँवला नवमी
👉 २३ नवम्बर : देवउठी-प्रबोधिनी एकादशी (इस दिन जप, होम, दान - सब पुण्यकर्मों का फल अक्षय होता है, गुरु-पूजन से भगवान प्रसन्न होते हैं व भगवान विष्णु की कपूर से आरती करने पर अकाल मृत्यु नहीं होती ।), भीष्मपंचक व्रत प्रारम्भ, चतुर्मास समाप्त ।
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धनतेरस कब है? जाने दिन-तारीख, शुभ मुहूर्त और पूजन विधि
धनतेरस कब है? जाने दिन-तारीख, शुभ मुहूर्त और पूजन विधि
हिंदू मान्यताओं के अनुसार दिवाली से पहले धनतेरस का पर्व आता है. जिसमें धन और समृद्धि के लिए भगवान कुबेर का पूजन किया जाता है। माना जाता है कि देव प्रसन्न होकर घर में धन के भंडार भर देते हैं। इस साल पर 2 नवंबर 2021 को मनाया जाएगा। वहीं पांच दिवसीय दीपोत्सव की शुरुआत भी धनतेरस के पर्व से ही होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी दिन समुद्र मंथन से धन्वंतरि अपने हाथों में अमृत से भरा कलश लेकर प्रकट…
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धनतेरस के दिन माँ लक्ष्मी, देव कुबेर, देव धन्वंतरि और देव यमराज का पूजन किया जाता है।धनतेरस के दिन प्रदोष काल में पूजा करना सर्वश्रेष्ट माना गया है व धनतेरस की पूजा, विधि विधान से करने से अच्छे स्वास्थ्य, धन धान्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
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धनतेरस की शुभकामनाये धनतेरस पूजा मुहूर्त -17:28 से 17:59 त्रयोदशी तिथि प्रारम्भ – नवम्बर 12, 2020 को 21:30 बजे त्रयोदशी तिथि समाप्त – नवम्बर 13, 2020 को 7:59 बजे tak धनतेरस पूजन विधि पूजा के समय घी का दीपक जलाएं. कुबेर को सफेद मिठाई और भगवान धन्वंतरि को पीली मिठाई चढ़ाएं. पूजा करते समय “ॐ ह्रीं कुबेराय नमः” मंत्र का जाप करें. हर प्रकार की खरीदी का मुहूर्त- दोपहर 11.48 से 12.15, 01.30 से 03.00, शाम 06.00 से रात्रि 09.00 तक। गादी बदलने का मुहूर्त- सुबह 09.00 से दोपहर 12.00 तक। पूजन का मुहूर्त- सुबह 09.00 से दोपहर 12.00, दोपहर 01.30 से 03.00, शाम 06.00 से रात्रि 09.00 तक। लग्न-अनुसार- प्रात:- 06.52 से 09.09 (वृश्चिक लग्न) प्रात:- 09.09 से 11.14 (धनु लग्न), दोपहर:- 01.01 से 02.35 (कुंभ लग्न) शाम :-05.45 से रात्रि 08.44 (मेष लग्न),रात :-08.44 से 09.58 (वृषभ लग्न)
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जानिए धनतेरस, खरीदारी का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
धनतेरस 2020: सनातन धर्म में हर एक माह का अपना एक अलग महत्त्व हैं ऐसी तरह कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन धन और वैभव देने वाली इस त्रयोदशी का विशेष महत्व माना गया है। इस माता दिन लक्ष्मी– गणेश और कुबेर की पूजा की जाती है। इस वर्ष धनतेरस गुरुवार यानी 12 नवंबर और शुक्रवार यानी 13 नवंबर को मनाया जाएगा। ऐसा, धनतेरस की तिथि को लेकर लोगों के बीच असमंजस की वजह से है।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, 12 नवंबर को रात 9.30 बजे तक द्वादशी तिथि है। इसीलिए गुरुवार को दिन धनतेरस की पूजा नहीं की जा सकती। वहीं त्रयोदशी तिथि यानी धनतेरस समयानुसार गुरुवार रात 9 बजकर 30 मिनट पर शुरू होगा। जबकि 13 नवंबर शुक्रवार को शाम को 5 बजकर 59 मिनट तक त्रयोदशी है। प्रदोष काल होने के कारण धनतेरस की पूजा 13 नवंबर को करना शुभ है।
ऐसे करें पूजा
धनतेरस पर अपने घर के पूजा गृह में जाकर ॐ धं धन्वन्तरये नमः मंत्र का 108 बार उच्चारण करें। इसके बाद स्वास्थ्य के भगवान धनवंतरी से अच्छी सेहत की कामना करें। धनवन्तरी की पूजा के बाद सबसे पहले प्रथम पूज्य देव भगवान गणेश की पूजा करें। इसके लिए सबसे पहले गणेश जी को दिया अर्पित करें और धूपबत्ती चढ़ाएं। इसके बाद गणेश जी के चरणों में फूल अर्पण करें और मिठाई चढ़ाएं।
इसी तरह लक्ष्मी पूजन करें, लक्ष्मी को फूल और अक्षत के साथ चंदन लगाएं। साथ ही कुबेर देवता की पूजा करें। बाद में दक्षिण दिशा की ओर यमराज को जल दें। तिल का तिल जलाकर सभी की आरती करें। पूजा के पश्चात अनाज का दान करें।
पूजा विधि
1. धनतेरस पूजन के लिए सबसे पहले एक लकड़ी का पट्टा लें और उस पर स्वास्तिक का निशान बना लें।
2. इसके बाद इस पर एक तेल का दिया जला कर रख दें और दिए को किसी चीज से ढक दें।
3. दिए के आस- पास तीन बार गंगा जल छिड़कें।
4.दीपक पर रोली और चावल का तिलक लगाएं।
5. दीपक में थोड़ी सी मिठाई डालकर मीठे का भोग लगाएं।
6. दीपक में 1 रुपया रखें, रुपए चढ़ाकर देवी लक्ष्मी और गणेश जी को अर्पण करें
इसके बाद दीपक को प्रणाम करें और परिवार के लोगों के साथ आशीर्वाद लें।
7. यह दिया अपने घर के मुख्य द्वार पर रख दें, ध्यान रखें कि दिया दक्षिण दिशा की ओर रखा हो।
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कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को रात्रि में मां काली की पूजा का प्रावधान भी है। बंगाल में इस दिन को काली जयंती के नाम से मनाया जाता है इसलिए इस दिन को काली चौदस भी कहा जाता है। माना जाता है कि चतुर्दशी तिथि की रात्रि में मां काली का पूजन करने से समस्त कष्टों से मुक्ति प्राप्त होती है।
नरक चतुर्दशी का सनातन धर्म में विशेष महत्व है। इसे रूप चतुर्दशी, नरक चौदस और काली चौदस के नाम से भी जाना जाता है। धार्��िक मान्यताओं के अनुसार इस दिन विधि विधान से श्री हरि भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने से सौंदर्य की प्राप्ति होती है। तथा शाम के समय यमराज की पूजा करने से नरक की यातनाओं और अकाल मृत्यु का भय खत्म होता है। वहीं इस दिन मां काली की पूजा का भी विधान है। कहा जाता है कि इस दिन मां काली की पूजा अर्चना करने से शत्रुओं पर विजय की प्राप्ति होती है।
नरक चतुर्दशी का पावन पर्व धनतेरस के अगले दिन यानि छोटी दीपावली को मनाया जाता है।
https://shriramjyotishsadan.in/Services_Details.aspx?SId=143
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