Daturas!
Datura are native to Arizona, California, and generally the southwestern US! They’re most commonly white, and they have big trumpet-shaped blooms! Colours also vary, and can be even yellow or purple!
Their name comes from Hindi, the word धतूरा (pronounced dhatūra), which literally translates to “thorn-apple”. They’re also referred to as ‘devil’s trumpets’ because of their shape, and in Mexico they’re referred to as ‘toloache’, which derives from the Nahuatl ‘tolohuaxihuitl’, meaning “the plant with the nodding head“!
They symbolise ‘deceitful charms’! This comes from the fact that, despite their prettiness, they’re extremely poisonous if ingested. They can also represent new beginnings and a fresh start, especially in Eastern cultures, where they’re used in weddings.
In literature and art, they often symbolise the danger of being led by your own desire; the flowers smell so wonderful and they’re so pretty, but they will make you SO sick. I personally believe they represent the idea of trust, as the flowers open at night to give out a sweet fragrance. The sweet fragrance could give the feeling that opening up to a loved one would make you feel better!
They most often bloom between May to August. They do best in well-drained and slightly acidic soil (ideally a pH of between 5.5 and 7) and in full sun, and they’re pretty low-maintenance! Make sure to water them regularly, and apply a balanced fertiliser every 4-6 weeks during growing season to ensure the flowers will bloom abundantly!
THEY’RE POISONOUS!!! Some are psychoactive, but if ingested they can cause respiratory depression, fever, delirium, hallucinations, death, a WHOLE bunch of stuff!
There’s a legend that they were used in early European witchcraft as an ingredient in the ointment that allowed witches to fly on their broomsticks.
The basics you need to know is that they do well in concealment spells, discernment, divination, or astral travel! You can enchant your jewellery with them to give off an energy of respect or admiration (for instance, if you want to really impress an interviewer or your date)!
You can pair them with Wormwood for a spurned lover, and Thistle for a friend who’s going through a bad breakup!
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Dev Diwali - Kartik Purnima 2023: देव दिवाली पर शिव योग का होगा निर्माण इसका शिव से है गहरा संबंध होगा हर समस्या का समाधान
Dev Deepawali 2023: कार्तिक पूर्णिमा पर देव दिवाली मनाई जाती है. ये दिवाली देवताओं को समर्पित है, इसका शिव जी से गहरा संबंध है. इस दिन धरती पर आते हैं देवतागण कार्तिक पूर्णिमा का दिन कार्तिक माह का आखिरी दिन होता है. इसी दिन देशभर में देव देवाली भी मनाई जाती है लेकिन इस बार पंचांग के भेद के कारण देव दिवाली 26 नवंबर 2023 को मनाई जाएगी और कार्तिक पूर्णिमा का व्रत, स्नान 27 नवंबर 2023 को है. देव दिवाली यानी देवता की दीपावली. इस दिन सुबह गंगा स्नान और शाम को घाट पर दीपदान किया जाता है. कार्तिक पूर्णिमा पर 'शिव' योग का हो रहा है निर्माण, हर समस्या का होगा समाधान |
देव दिवाली तिथि और समय
पूर्णिमा तिथि आरंभ - 26 नवंबर 2023 - 03:53
पूर्णिमा तिथि समापन - 27 नवंबर, 2023 - 02:45
देव दीपावली मुहूर्त - शाम 05:08 बजे से शाम 07:47 बजे तक
पूजन अवधि - 02 घण्टे 39 मिनट्स
शिव मंत्र
ॐ नमः शिवाय
ॐ शंकराय नमः
ॐ महादेवाय नमः
ॐ महेश्वराय नमः
ॐ श्री रुद्राय नमः
ॐ नील कंठाय नमः
देव दिवाली का महत्व
देव दिवाली का सनातन धर्म में बेहद महत्व है। इस पर्व को लोग बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप मनाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव ने इस दिन राक्षस त्रिपुरासुर को हराया था। शिव जी की जीत का जश्न मनाने के लिए सभी देवी-देवता तीर्थ स्थल वाराणसी पहुंचे थे, जहां उन्होंने लाखों मिट्टी के दीपक जलाएं, इसलिए इस त्योहार को रोशनी के त्योहार के रूप में भी जाना जाता है।
इस शुभ दिन पर, गंगा घाटों पर उत्सव मनाया जाता है और बड़ी संख्या में तीर्थयात्री देव दिवाली मनाने के लिए इस स्थान पर आते हैं और एक दीया जलाकर गंगा नदी में छोड़ देते हैं। इस दिन प्रदोष काल में देव दीपावली मनाई जाती है. इस दिन वाराणसी में गंगा नदी के घाट और मंदिर दीयों की रोशनी से जगमग होते हैं. काशी में देव दिवाली की रौनक खास होती है.
Dev diwali Katha : देव दिवाली की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव बड़े पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया था. पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए तारकासुर के तीनों बेटे तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली ने प्रण लिया. इन तीनों को त्रिपुरासुर के नाम से जाना जाता था. तीनों ने कठोर तप कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और उनसे अमरत्व का वरदान मांगा लेकिन ब्रह्म देव ने उन्हें यह वरदान देने से इनकार कर दिया.
ब्रह्मा जी ने त्रिपुरासुर को वरदान दिया कि जब निर्मित तीन पुरियां जब अभिजित नक्षत्र में एक पंक्ति में में होगी और असंभव रथ पर सवार असंभव बाण से मारना चाहे, तब ही उनकी मृत्यु होगी. इसके बाद त्रिपुरासुर का आतंक बढ़ गया. इसके बाद स्वंय शंभू ने त्रिपुरासुर का संहार करने का संकल्प लिया.
काशी से देव दिवाली का संबंध एवं त्रिपुरासुर का वध:
शास्त्रों के अनुसार, एक त्रिपुरासुर नाम के राक्षस ने आतंक मचा रखा था, जिससे ऋषि-मुनियों के साथ देवता भी काफी परेशान हो गए थे। ऐसे में सभी देवतागण भगवान शिव की शरण में पहुंचे और उनसे इस समस्या का हल निकालने के लिए कहा। पृथ्वी को ही भगवान ने रथ बनाया, सूर्य-चंद्रमा पहिए बन गए, सृष्टा सारथी बने, भगवान विष्णु बाण, वासुकी धनुष की डोर और मेरूपर्वत धनुष बने. फिर भगवान शिव उस असंभव रथ पर सवार होकर असंभव धनुष पर बाण चढ़ा लिया त्रिपुरासुर पर आक्रमण क�� दिया. इसके बाद भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही त्रिपुरासुर का वध कर दिया था और फिर सभी देवी-देवता खुशी होकर काशी पहुंचे थे। तभी से शिव को त्रिपुरारी भी कहा जाता है. जहां जाकर उन्होंने दीप प्रज्वलित करके खुशी मनाई थी। इसकी प्रसन्नता में सभी देवता भगवान शिव की नगरी काशी पहुंचे. फिर गंगा स्नान के बाद दीप दान कर खुशियां मनाई. इसी दिन से पृथ्वी पर देव दिवाली मनाई जाती है.
पूजन विधि
देव दीपावली की शाम को प्रदोष काल में 5, 11, 21, 51 या फिर 108 दीपकों में घी या फिर सरसों के भर दें। इसके बाद नदी के घाट में जाकर देवी-देवताओं का स्मरण करें। फिर दीपक में सिंदूर, कुमकुम, अक्षत, हल्दी, फूल, मिठाई आदि चढ़ाने के बाद दीपक जला दें। इसके बाद आप चाहे, तो नदी में भी प्रवाहित कर सकते हैं।
देव दीपावली के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर लें। हो सके,तो गंगा स्नान करें। अगर आप गंगा स्नान के लिए नहीं जा पा रहे हैं, तो स्नान के पानी में थोड़ा सा गंगाजल डाल लें। ऐसा करने से गंगा स्नान करने के बराबर फलों की प्राप्ति होगी। इसके बाद सूर्य देव को तांबे के लोटे में जल, सिंदूर, अक्षत, लाल फूल डालकर अर्घ्य दें। फिर भगवान शिव के साथ अन्य देवी देवता पूजा करें। भगवान शिव को फूल, माला, सफेद चंदन, धतूरा, आक का फूल, बेलपत्र चढ़ाने के साथ भोग लाएं। अंत में घी का दीपक और धूर जलाकर चालीसा, स्तुत, मंत्र का पाठ करके विधिवत आरती कर लें।
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महादेव को रिझाने वाले सावन सोमवार व्रत विधि, पूजा सामग्री, व्रत का फल
सावन सोमवार भगवान शिव की पूजा के लिए समर्पित एक विशेष व्रत है। यह व्रत श्रावण मास के सभी सोमवारों को रखा जाता है। इस मास में भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है, इसलिए इन सोमवारों का व्रत रखना अत्यंत शुभ माना जाता है।
सावन सोमवार व्रत भगवान शिव की भक्ति और आशीर्वाद प्राप्त करने का एक उत्तम अवसर है। यदि आप इस व्रत को पूरे विधि-विधान से रखते हैं तो निश्चित रूप से आपको भगवान शिव की कृपा प्राप्त होगी और आपके सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी।
सावन सोमवार व्रत विधि:
प्रातःकाल: सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
पूजा: घर के मंदिर में भगवान शिव की प्रतिमा या शिवलिंग स्थापित करें।
शिवलिंग को गंगाजल, दूध, और पुष्पों से स्नान कराएं।
बेलपत्र, धतूरा, भांग, आंकड़े, फल, मिठाई आदि अर्पित करें।
घी का दीपक जलाएं और धूप करें।
"ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जाप करें।
शिव चालीसा का पाठ करें।
दिन भर फलाहार करें।
शाम को सूर्यास्त के बाद फिर से पूजा करें।
रात में भोजन ग्रहण करने से पहले शिव आरती करें।
सावन सोमवार पूजा सामग्री:
शिवलिंग या भगवान शिव की प्रतिमा
गंगाजल
दूध
बेलपत्र
धतूरा
भांग
आंकड़े
फल
मिठाई
घी
दीपक
धूप
अगरबत्ती
फूल
शिव चालीसा
सावन सोमवार व्रत का फल:
सावन सोमवार व्रत रखने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।
सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
पापों का नाश होता है।
रोगों से मुक्ति मिलती है।
ग्रहदशाएं अनुकूल होती हैं।
वैवाहिक जीवन सुखमय होता है।
संतान प्राप्ति में सफलता मिलती है।
मोक्ष की प्राप्ति होती है।
सावन सोमवार विशेष बातें:
व्रत के दौरान नकारात्मक विचारों से दूर रहें।
ब्रह्मचर्य का पालन करें।
झूठ बोलने और किसी को भी कष्ट पहुंचाने से बचें।
दान-पुण्य करें।
गरीबों और असहायों की मदद करें।
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Shri Shiva Bilvashtakam: जरूर करें श्री शिव बिल्वाष्टकम् का पाठ, मिलेगा बहुत लाभShri Shiva Bilvashtakam: भोलेनाथ अपने भक्तों की कई परेशानियां दूर कर देते हैं। भगवान शिव की पूजा से पहले जलाभिषेक किया जाता है जिससे वे प्रसन्न होते हैं। इसके साथ ही पूजा करते समय भगवान शिव को धतूरा, फूल और बेलपत्र आदि चीजें भी चढ़ाई जाती हैं।
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होली खेल रहे शिव शंकर गौरा पार्वती के संग भजन लिरिक्स | Holi Khel Rahe Shiv Shankar Goura Parwati Ke Sang Bhajan Lyrics
होली खेल रहे शिव शंकर गौरा पार्वती के संग भजन लिरिक्स
होली खेल रहे शिव शंकर गौरा पार्वती के संग,
गोरा पार्वती के संग माता पार्वती के संग,
होली खेल रहे शिव शंकर....
कुटि छोड़ शिव शंकर चल दिए लियो नादिया संग,
गले में रुद्रो की माला और सर्प लिपट रहे अंग,
होली खेल रहे शिव शंकर....
एक मन खा गए भांग धतूरा धड़ियो पी गए भंग,
एक शेर गांजे का पी गए हुए नशे में दंग,
होली खेल रहे शिव शंकर....
कामिनी होली खेल रही हैं देवर जेठा संग,
रघुवर होली खेल रहे हैं सीता जी के संग,
होली खेल रहे शिव शंकर....
राजा इंद्र ने होली खेली इंद्राणी के संग,
राधे होली खेल रही है श्री कृष्णा के संग,
होली खेल रहे शिव शंकर....
विष्णु होली खेल रहे हैं लक्ष्मी जी के संग,
ब्रह्मा विष्णु मिलकर खेले शिव शंकर के संग,
होली खेल रहे शिव शंकर....
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मैहर के मतदान केंद्रों का सामान्य प्रेक्षक ने किया भ्रमण
सतना 5 अप्रैल 2024/लोकसभा क्षेत्र सतनाके लिए नियुक्त सामान्य प्रेक्षक डॉ एस सुरेश कुमार ने शुक्रवार को मैहर के मतदान केंद्रों का निरीक्षण किया। उन्होने ग्रामीण क्षेत्र के ग्राम धतूरा, बेरमा के मतदान केंद्र क्रमांक 61, 62, 63, 64, भरोली के केंद्र क्रमांक 58 एवं अमदरा के केंद्र क्रमांक 32, 33 सहित क्षेत्र के क्रिटिकल, वर्नरेबल एवं शहरी क्षेत्र के मतदान केंद्रों का निरीक्षण कर तैयारियों का जायजा…
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( #Muktibodh_part166 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part167
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 321-322
‘‘काशी नगर में भोजन-भण्डारा (लंगर) देना’’
�� पारख के अंग की वाणी नं. 793-939 :-
सिमटि भेष इकठा हुवा, काजी पंडित मांहि।
गरीबदास चिठा फिर्या, जंबुदीप सब ठांहि।।793।।
मसलति करी मिलापसैं, जीवन जन्म कछु नांहि।
गरीबदास मेला सही, भेष समेटे तांहि।।794।।
सेतबंध रामेश्वरं, द्वारका गढ गिरनार। गरीबदास मुलतान मग, आये भेष अपार।।795।।
हरिद्वार बदरी बिनोद, गंगा और किदार।
गरीबदास पूरब सजे, ना कछु किया बिचार।।796।।
अठारा लाख दफतर चढे, अस्तल बंध मुकाम।
गरीबदास अनाथ जीव, और केते उस धाम।।797।।
बजैं नगारे नौबतां, तुरही और रनसींग। गरीबदास झूलन लगे, उरधमुखी बौह पींघ।।798।।
एक आक धतूरा चबत है, एक खावै खड़घास।
गरीबदास एक अरध मुखी, एक जीमैं पंच गिरास।।799।
एक बिरक्त कंगाल हैं, एक ताजे तन देह।
गरीबदास मुहमुंदियां, एक तन लावै खेह।।800।।
एक पंच अग्नि तपत हैं, एक झरनैं बैठंत।
गरीबदास एक उरधमुख, नाना बिधि के पंथ।।801।।
एक नगन कोपीनियां, इंद्री खैंचि बधाव।
गरीबदास ऐसै बहुत, गरदन पर धरि पांव।।802।।
एक कपाली करत हैं, ऊपर चरण अकाश।
गरीबदास एक जल सिज्या, नाना भांति उपास।।803।।
एक बैठे एक ठाडेसरी, एक मौनी महमंत।
गरीबदास बड़बड़ करैं, ऐसैं बहुत अनंत।।804।।
एक जिकरी जंजालिया, एक ज्ञानी धुनि वेद।
गरीबदास ऐसे बहुत, वृक्ष काटि घर खेद।।805।।
एक उंचै सुर गावहीं, राग बंध रस रीत। गरीबदास ऐसे बहुत, आदर बिना अतीत।।806।।
एक भरड़े सिरडे़ फिरै, एक ज्ञानी घनसार।
गरीबदास उस पुरी में, पड़ी है किलकार।।807।।
एक कमरि जंजीर कसि, लोहे की कोपीन।
गरीबदास दिन रैंन सुध, पडे़ रहैं बे दीन।।808।।
एक मूंजौं की मुदरा, केलौं के लंगोट। गरीबदास लंबी जटा, एक मुंडावैं घोट।।809।।
एक रंगीले नाचहीं, करैं अचार बिचार। गरीबदास एक नगन हैं, एकौं खरका भार।।810।।
एक धूंनी तापैं दहूँ, सिंझ्या देह बुझाय। गरीबदास ऐसे बहुत, अन्न जल कछु न खाय।।811।।
एक मूंधे सूंधे पडे़, आसन मोर अधार। गरीबदास ऐसे बहुत, करते हैं जलधार।।812।।
एक पलक मूंदैं नहीं, एक मूंदे रहैं हमेश।
गरीबदास न्यौली कर्म, एक त्राटिक ध्यान हमेश।।813।।
एक बजर आसन करैं, एक पदम प्रबीन।
गरीबदास एक कनफट्टा, एक बजावैं बीन।।814।।
शंख तूर झालरि, बजैं रणसींगे घनघोर। गरीबदास काशीपुरी, दल आये बड जोर।।815।।
एक मकरी फिकरी बहुत, गलरी गाल बजंत।
गरीबदास तिन को गिनै, ऐसे बहुत से पंथ।।816।।
एक हर हर हका करैं, एक मदारी सेख।
गरीबदास गुदरी लगी, आये भेष अलेख।।817।।
एक चढे घोड्यौं फिरैं, एक लड़ावैं फील।
गरीबदास कामी बहुत, एक राखत हैं शील।।818।।
एक तनकौं धोवैं नहीं, एक त्रिकाली न्हाहि।
गरीबदास एक सुचितं, एक ऊपर को बांहि।।819।।
एक नखी निरबांनीया, एक खाखी हैं खुश।
गरीबदास पद ना लख्या, सब कूटत हैं तुश।।820।।
तुश कूटैं और भुस भरैं, आये भेष अटंब।
गरीबदास नहीं बंदगी, तपी बहुत आरंभ।।821।।
ठोडी कंठ लगावहीं, आठ बखत नक ध्यान।
गरीबदास ऐसे बहुत, कथा छंद सुर ज्ञान।।822।।
एक सौदागर भेष में, कस्तूरी ब्यौपार। गरीबदास केसर कनी, सिमट्या भेष अपार।।823।।
एक तिलक धोती करैं, दर्पन ध्यान गियान।
गरीबदास एक अग्नि में, होमत है अन्नपान।।824।।
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 793- 824 का सरलार्थ :- कबीर परमेश्वर जी को काशी शहर से भगाने के उद्देश्य से हिन्दू तथा मुसलमानों के धर्मगुरूओं तथा धर्म के प्रचारकों ने षड़यंत्र के तहत झूठी चिट्ठी में निमंत्रण भेजा कि कबीर जुलाहा तीन दिन का भोजन-भंडारा (लंगर) करेगा। प्रत्येक बार भोजन खाने के पश्चात् दस ग्राम स्वर्ण की मोहर (सोने का सिक्का) तथा एक दोहर (खद्दर की दोहरी सिली चद्दर जो कंबल के स्थान पर सर्दियों में ओढ़ी जाती थी) दक्षिणा में देगा। भोजन में सात प्रकार की मिठाई, हलवा, खीर, पूरी, मांडे, रायता, दही बड़े आदि मिलेंगे। सूखा-सीधा (एक व्यक्ति का आहार, जो भंडारे में नहीं आ सका, उसके लिए) दिया जाएगा। यह सूचना पाकर दूर-दूर के संत अपने शिष्यों समेत निश्चित तिथि को पहुँच गए। काजी तथा पंडित भी उनके बीच में पहुँच गए। चिट्ठी जंबूदीप (पुराने भारत) में सब जगह पहुँची। {ईराक, ईरान, गजनवी, तुर्की, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बिलोचिस्तान, पश्चिमी पाकिस्तान आदि-आदि सब पुराना भारत देश था।} संतजन कहाँ-कहाँ से आए? सेतुबंध, रामेश्वरम्, द्वारका, गढ़ गिरनार, मुलतान, हरिद्वार, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगा घाट। अठारह लाख तो साधु-संत व उनके शिष्य आए थे। अन्य अनाथ (बिना बुलाए) अनेकों व्यक्ति भोजन खाने व दक्षिणा लेने आए थे। जो साधु जिस पंथ से संबंध रखते थे, उसी परंपरागत वेशभूषा को पहने थे ताकि पहचान रहे। अपने पंथ की प्रचलित साधना कर रहे थे। कोई (बाजे) वाद्य यंत्र बजाकर नाच-नाचकर परमात्मा की स्तूति कर रहे थे।
◆ कोई आक तथा धतूरे को खा रहे थे जो बहुत कड़वा तथा नशीला होता है। कोई खड़घास खा रहे थे। कोई उल्टा लटककर वृक्ष के नीचे साधना कर रहा था। कोई सिर नीचे पैर ऊपर को करके साधना यानि तप कर रहा था। कोई केवल पाँच ग्रास भोजन खाता था।
उसका यह नियम था। कोई (मुँहमुंदिया) मुख पर पट्टी बांधकर रखने वाले थे। कोई शरीर के ऊपर (खेह) राख लगाए हुए थे। कोई पाँच धूने लगाकर तपस्या कर रहा था। कोई
तिपाई के ऊपर मटके को रखकर उसमें सुराख करके पानी डालकर नीचे बैठकर जल धारा यानि झरना साधना कर रहे थे। कई नंगे थे। कई केवल कोपीन बांधे हुए थे। कोई अपनी गर्दन के ऊपर दोनों पैर रखकर आसन कर रहे थे। कोई (ठाडेसरी) खडे़ होकर तपस्या कर रहे थे। किसी ने मौन धारण कर रखा था। जो बड़बड़ कर थे, वे भी अनेकों आए थे।
कुछ ऊँचे स्वर से भगवान के शब्द गा रहे थे। अनेकों ऐसे थे जिनके साथ कोई चेला नहीं था। उनका कोई सम्मान नहीं कर रहा था। कोई सिरड़े-भिरडे़ (बिना स्नान किए मैले-कुचैले वस्त्र पहने) रेत-मिट्टी में पड़े थे। संत गरीबदास जी दिव्य दृष्टि से देखकर कह रहे हैं कि काशी पुरी में किलकारी पड़ रही थी। कोई सिर के ऊपर बड़े-बड़े बालों की जटा रखे हुए
थे। कोई-कोई मूंड-मुंडाए हुए थे। कोई अपने पैरों में लोहे की जंजीर बांधे हुए था। कोई लोहे की कोपीन (पर्दे पर लोहे की पतली पत्ती लगाए हुए था) बांधे हुए था। कोई केले के पत्तों का लंगोट बांधे हुए था। कोई त्राटक ध्यान लगा रहा था। कोई आँख खोल ही नहीं रहा था। कोई कान चिराए हुए था। इस प्रकार के अनेकों पंथों के शास्त्रा विरूद्ध साधना करने वाले परमात्मा को चाहने वाले (भेष) पंथ काशी में परमेश्वर कबीर जी द्वारा दिए गए भंडारे के निमंत्रण से इकट्ठे हुए थे। अठारह लाख तो साधु-शिष्य वेश वाले थे। अन्य सामान्य नागरिक भी अनेकों आए थे।
क्रमशः________________
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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हर मनोकामना पूर्ण होगी करे ये अचूक उपाय-Bhoomika kalam
पशुपति व्रत करने की विधि (पशुपति व्रत कैसे करे)
पशुपति व्रत करने की विधि (पशुपति व्रत कैसे करे)
जिस तरह से देवी देवताओ ने भगवान शंकर को प्रसन्न किया था उस विधि का वर्णन शिव महापुराण और रूद्र पुराण में किया गया है.
इन पुराणों के अनुसार पशुपतिनाथ व्रत करने का प्रमुख उद्देश्य भगवान शिव को प्रसन्न करना ही होता है. इस व्रत को करने के लिए निम्नलिखित बातों का विशेष ध्यान रखना होता है.
सर्वप्रथम यह ध्यान रखना है कि पशुपतिनाथ जी का व्रत सोमवार को ही किया जाता है और 5 सोमवार करते हे किसी कारण वश या महामारी की वजह से आप पूजा नही कर पाते तो आप उस दिन सिर्फ उपवास करे उसका अगला सोमवार व्रत पूजा करे और सभी 5 सोमवार की पूजा किसी एक ही मंदिर में करना होती है ।
पशुपति व्रत पूजन सामग्री-
पशुपतिनाथ की पूजा करने के लिए थाली में कुमकुम, अबीर, गुलाल, अश्वगंधा, पीला चंदन, लाल चंदन और थाली में कुछ चावल के दाने रखें, यहाँ पर यह ध्यान रखना है कि चावल के दाने खंडित ना हो.
इसके साथ ही पूजा की थाली में धतूरा और आंकड़ा के फूलों या फलों को भी रख लेना है.
पशुपतिनाथ जी की पूजा सुबह और शाम दोनों समय की जाती सुबह पूजा करने के बाद जितनी भी सामग्री रहती है उतनी शाम को पूरी भगवान शिव को अर्पित करे थाली में कुछ भी न रखे और शाम को सिर्फ कोई भी मीठा प्रसाद बनाकर लेकर जाना हे किसी बर्तन में और वही मंदिर में तीन हिस्से करना रहते हहे दो हिस्से भगवान को अर्पित करते हे और तीसरा हिस्सा खुद घर लाकर खाते हे घर वाले हिस्से में से किसी को प्रसाद नही देते बच्चो को भी नही।
इसके साथ ही पूजा की थाली में 6 दिये (दीपक) रखने है, और उन 6 दिये में से 5 दिये मंदिर में प्रज्वलित करना है और बचा हुआ एक दिया अपने घर के दरवाजे के बाहर दाई तरफ प्रज्वलित करना है.अपनी मनोकामना बोल कर।
सुबह-सुबह हम सभी को फलाहार लेना चाहिए और शाम को पशुपति नाथ जी की पूजा होने के पश्चात ही भोजन ग्रहण करना चाहिए।
लेकिन शाम को भोजन के पहले सभी को प्रसाद ग्रहण करना चाहिए, उसके बाद ही भोजन ग्रहण करना चाहिए. ।
5 वे सोमवार पर उद्यापन किया जाता है
उद्यापन करने की विधि
5 वे सोमवार सुबह और शाम की पूजा उसी प्रकार से होती है जैसी 4 सोमवार में होती है बस 5 वे सोमवार को एक श्रीफल लेकर उसमे लाल मोली लपेट दे और 11 रु चढ़ा कर 108 कुछ भी चावल ,खड़ा मूंग ,बेलपत्र , या फूल आप भगवान शिव को अर्पित करे अपनी मनोकामना बोलकर ।।
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#सन1513_में_काशीभंडारा
एक आक धतूरा चबत है, एक खावै खड़घास। गरीबदास एक अरध मुखी, एक जीमैं पंच गिरास।।
एक बिरक्त कंगाल हैं, एक ताजे तन देह। गरीबदास मुहमुंदियां, एक तन लावै खेह।।
दिव्य धर्म यज्ञ दिवस
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#सन1513_में_काशीभंडारा
18 लाख साधु संतों को अन्द्भुत भंडारा
• पारख के अंग की वाणी नं. 793-939-
सिमटि भेष इकठा हुवा, काजी पंडित मांहि। गरीबदास चिठा फिर्या, जंबुदीप सब ठांहि । 1793 ।। मसलति करी मिलापसै, जीवन जन्म कछु नांहि। गरीबदास मेला सही, भेष समेटे तांहि । ।794 ।। सेतबंध रामेश्वर, द्वारका गढ़ गिरनार। गरीबदास मुलतान मग, आये भेष अपार। 1795 11 हरिद्वार बदरी बिनोद, गंगा और किदार। गरीबदास पूरब सजे, ना कछु किया बिचार । ।796 || अठारा लाख दफतर चढे, अस्तल बंध मुकाम। गरीबदास अनाथ जीव, और केते उस धाम। 1797 11 बर्जे नगारे नौबतां, तुरही और रनसींग। गरीबदास झूलन लगे, उरघमुखी बौह पींध।।798।। एक आक धतूरा चबत है, एक खावै खड़घास। गरीबदास एक अरघ मुखी, एक जीमै पंच गिरास। 1799 | एक बिरक्त कंगाल है, एक ताजे तन देह। गरीबदास मुहमुंदियां, एक तन लावै खेह। 1800।। एक पंच अग्नि तपत हैं, एक झरनै बैठंत। गरीबदास एक उरधमुख, नाना बिधि के पंथ । ।801 ।। एक नगन कोपीनियां, इंद्री खैचि बधाव। गरीबदास ऐसै बहुत, गरदन पर धरि पांव। 1802 11 एक कपाली करत हैं, ऊपर चरण अकाश। गरीबदास एक जल सिज्या, नाना भांति उपास। 1803 ।। एक बैठे एक ठाडेसरी, एक मौनी महमंत। गरीबदास बड़बड़ करें, ऐसें बहुत अनंत। 1804 || एक जिकरी जंजालिया, एक ज्ञानी धुनि वेद। गरीबदास ऐसे बहुत, वृक्ष काटि घर खेद। 1805 ।। एक उंच सुर गावहीं, राग बंध रस रीत। गरीबदास ऐसे बहुत, आदर बिना अतीत। 1806 ।। एक भरड़े सिरड़े फिरै, एक ज्ञानी घनसार। गरीबदास उस पुरी में, पड़ी है किलकार। 1807 11 एक कमरि जंजीर कसि, लोहे की कोपीन। गरीबदास दिन रैन सुध, पड़े रहें बे दीन। 1808 ।। एक मूंजी की मुदरा, केली के लंगोट। गरीबदास लंबी जटा, एक मुंडावै घोट । 1809 ।। एक रंगीले नाचहीं, करें अचार बिचार। गरीबदास एक नगन है, एकौ खरका भार | 1810 || एक घूंनी ताप दहूँ, सिंझ्या देह बुझाय। गरीबदास ऐसे बहुत, अन्न जल कछु न खाय । 1811 ।। एक मूंधे सूंघे पड़े, आसन मोर अधार। गरीबदास ऐसे बहुत, करते हैं जलधार। 1812।। एक पलक मूंदै नहीं, एक मूंदे रहें हमेश। गरीबदास न्यौली कर्म, एक त्राटिक ध्यान हमेश । 1813 11 एक बजर आसन करें, एक पदम प्रबीन। गरीबदास एक कनफट्टा, एक बजावै बीन । ।814 ।। शंख तूर झालरि, बजै रणसींगे घनघोर। गरीबदास काशीपुरी, दल आये बड जोर ।।815।। एक मकरी फिकरी बहुत, गलरी गाल बजंत। गरीबदास तिन को गिनै, ऐसे बहुत से पंथ। 1816 || एक हर हर हका करें, एक मदारी सेख। गरीबदास गुदरी लगी, आये भेष अलेख । 1817 || एक चढे घोड्यौ फिरै, एक लड़ाव फील। गरीबदास कामी बहुत, एक राखत हैं शील। 1818।। एक तनका धोवै नहीं, एक त्रिकाली न्हाहि। गरीबदास एक सुचितं, एक ऊपर को बांहि । ।819।। एक नखी निरबांनीया, एक खाखी हैं खुश। गरीबदास पद ना लख्या, सब कूटत हैं तुश। 1820 ।। तुश कूटे और मुस भरें, आये भेष अटंब। गरीबदास नहीं बंदगी, तपी बहुत आरंभ। 1821 ।।
दिव्य धर्म यज्ञ दिवस
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सावन सोमवार पूजा सामग्री:
🌺 फूल
🌺 पंच फल (पांच मेवा)
🌺 रत्न
🌺 सोना और चांदी
🌺 दक्षिणा
🌺 पूजा के बर्तन
🌺 दही
🌺 शुद्ध देशी घी
🌺 शहद
🌺 गंगाजल
🌺 पवित्र जल
🌺 पंच रस
🌺 इत्र और गंध रोली
🌺 मौली जनेऊ
🌺 पंच मिष्ठान्न
🌺 बिल्वपत्र
🌺 धतूरा
🌺 भांग
🌺 बेर
🌺 आम्र मंजरी
🌺 मंदार पुष्प
🌺 गाय का कच्चा दूध
🌺 कपूर
🌺 धूप और दीप
🌺 रूई
🌺 मलयागिरी
🌺 चंदन
🌺 शिव और मां पार्वती की श्रृंगार सामग्री
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*🌞~आज दिनांक - 11 अप्रैल 2024 का वैदिक हिंदू पंचांग~🌞*
*⛅दिन - गुरुवार*
*⛅विक्रम संवत् - 2081*
*⛅मास - चैत्र*
*⛅पक्ष - शुक्ल*
*⛅तिथि - तृतीया दोपहर 03.03 तक, तत्पश्चात चतुर्थी*
*⛅दिशा शूल - दक्षिण दिशा में*
*⛅व्रत पर्व विवरण- मत्स्य जयंती, गौरी पूजा, गणगौर*
*⛅विशेष -तृतीया को परवल खाना शत्रुओं की वृद्धि करने वाला है । चतुर्थी को मूली खाने से धन का नाश होता है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
*🌹 मत्स्य जयंती - 11 अप्रैल 2024 🌹*
*🌹 भगवान विष्णु के 10 प्रमुख अवतारों में से उनका मत्स्य रूप भी एक है । मत्स्य यानी मछली जिस प्रकार उन्होंने सृष्टि के कल्याण के लिए अपने बाकी अवतार लिए थे ठीक उसी तरह भगवान का यह रूप भी संसार की सुरक्षा के लिए ही था । चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मत्स्य जयंती के रूप में मनाया जाता है । यह दिन श्री हरी विष्णु के मत्स्य अवतार को समर्पित है । मत्स्य जयंती के दिन विष्णु जी की विशेष पूजा की जाती है। भक्त पूरी श्रद्धा के साथ पूजा, पाठ व्रत आदि करते हैं ।*
*🔹चैत्र नवरात्रि (9 अप्रैल से 17 अप्रैल 2024)🔹*
*🌹 नवरात्रि की तृतीया तिथि यानी तीसरा दिन माता चंद्रघंटा की पूजा कि जाती है । यह शक्ति माता का शिवदूती स्वरूप हैं । इनक��� मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है । असुरों के साथ युद्ध में देवी चंद्रघंटा ने घंटे की टंकार से असुरों का नाश किया था । नवरात्रि के तृतीय दिन इनका पूजन किया जाता है । इनके पूजन से साधक को मणिपुर चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वत: प्राप्त हो जाती हैं तथा सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है ।*
*🌹 तृतीया तिथि यानी की तीसरे दिन को माता दुर्गा को दूध का भोग लगाएं । इससे दुखों से मुक्ति मिलती है ।*
*🌹 गणगौर तीज - 11 अप्रैल 2024 🌹*
*🌹 चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को गणगौर तीज का उत्सव मनाया जाता है। इस बार यह पर्व 11 अप्रैल, गुरुवार को है । गणगौर उत्सव में मुख्य रूप से माता पार्वती व भगवान शिव का पूजन किया जाता है । भगवान शंकर-माता पार्वती को प्रसन्न करने के लिए इस दिन कुछ उपाय भी कर सकते हैं। ये उपाय इस प्रकार है-*
*👉🏻 1. देवी भागवत के अनुसार, माता पार्वती का अभिषेक आम अथवा गन्ने के रस से किया जाए तो लक्ष्मी और सरस्वती ऐसे भक्त का घर छोड़कर कभी नहीं जातीं। वहां संपत्ति और विद्या का वास रहता है ।*
*👉🏻 2. शिवपुराण के अनुसार, लाल व सफेद आंकड़े के फूल से भगवान शिव का पूजन करने से भोग व मोक्ष की प्राप्ति होती है ।*
*👉🏻 3. माता पार्वती को घी का भोग लगाएं तथा उसका दान करें । इससे रोगी को कष्टों से मुक्ति मिलती है तथा वह निरोगी होता है ।*
*👉🏻 4. माता पार्वती को शक्कर का भोग लगाकर उसका दान करने से भक्त को दीर्घायु प्राप्त होती है । दूध चढ़ाकर दान करने से सभी प्रकार के दु:खों से मुक्ति मिलती है । मालपुआ चढ़ाकर दान करने से सभी प्रकार की समस्याएं अपने आप ही समाप्त हो जाती है ।*
*👉🏻 5. भगवान शिव को चमेली के फूल चढ़ाने से वाहन सुख मिलता है । अलसी के फूलों से शिव का पूजन करने से मनुष्य भगवान विष्णु को प्रिय होता है ।*
*👉🏻 6. भगवान शिव की शमी पत्रों से पूजन करने पर मोक्ष प्राप्त होता है । बेला के फूल से पूजन करने पर शुभ लक्षणों से युक्त पत्नी मिलती है । धतूरे के फूल के पूजन करने पर भगवान शंकर सुयोग्य पुत्र प्रदान करते हैं, जो परिवार का नाम रोशन करता है । लाल डंठल वाला धतूरा पूजन में शुभ माना गया है ।*
*👉🏻 7. भगवान शिव पर ईख (गन्ना) के रस की धारा चढ़ाई जाए तो सभी आनंदों की प्राप्ति होती है । शिव को गंगाजल चढ़ाने से भोग व मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है ।*
*👉🏻 8. देवी भागवत के अनुसार वेद पाठ के साथ यदि कर्पूर, अगरु (सुगंधित वनस्पति), केसर, कस्तूरी व कमल के जल से माता पार्वती का अभिषेक करने से सभी प्रकार के पापों का नाश हो जाता है तथा साधक को थोड़े प्रयासों से ही सफलता मिलती है ।*
*👉🏻 9. जूही के फूल से भगवान शिव का पूजन करने से घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती। दूर्वा से पूजन करने पर आयु बढ़ती है । हरसिंगार के फूलों से पूजन करने पर सुख-सम्पत्ति में वृद्धि होती है ।*
*👉🏻 10. देवी भागवत के अनुसार, माता पार्वती को केले का भोग लगाकर दान करने से परिवार में सुख-शांति रहती है । शहद का भोग लगाकर दान करने से धन प्राप्ति के योग बनते हैं । गुड़ की वस्तुओं का भोग लगाकर दान करने से दरिद्रता का नाश होता है ।*
*👉🏻 11. भगवान शिव को चावल चढ़ाने से धन की प्राप्ति हो सकती है । तिल चढ़ाने से पापों का नाश हो जाता है ।*
*👉🏻 12. द्राक्षा (दाख) के रस से यदि माता पार्वती का अभिषेक किया जाए तो भक्तों पर देवी की कृपा बनी रहती है ।*
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शिवलिंग पर दूध क्यों चढ़ाया जाता है ? 7 आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक तर्क ?
शिवलिंग की पूजा में भक्त गंगाजल, बेलपत्र, धतूरा, कपूर, धान, चावल, दूध, चंदन और भस्म जैसी चीजें चढ़ाते हैं | लेकिन इन सब में दूध का महत्व विशेष रूप से हमेशा चर्चा के विषय में रहता है तो हम इस पोस्ट में बात करेंगे कि आखिर शिवलिंग पर दूध क्यों चढ़ाया जाता है ? दूध चढ़ाने का आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक तर्क को समझने का प्रयास करेंगे Read more
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#Power_Of_TrueWorship
सतभक्ति करने से मानव जीवन सफल हो जाता है। नशा चाहे शराब, बीड़ी, सिगरेट, भांग, धतूरा कैसा भी नशा हो परमात्मा की भक्ति में ऐसी शक्ति है कि सभी बीमारियां दूर हो जाती हैं। परिवार में किसी प्रकार की बुराई नहीं रहती। परमात्मा की कृपा सदा बनी रहती है। अधिक जानकारी के लिए शाम 7:30 बजे साधना चैनल पर सत्संग अवश्य सुने।
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Mahashivratri 2024: महाशिवरात्रि पर भगवान शिव को क्यों चढ़ाया जाता है धतूरा, जानिए वजहMahashivratri 2024: हिंदू धर्म में भोलेनाथ को देवों के देव महादेव कहा जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन ही भोलेनाथ और माता पार्वती का विवाह हुआ था। शिवरात्रि हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है।
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अजब होली खेलें हमारे भोले बाबा भजन लिरिक्स | Ajab Holi Khele Hamare Bhole Baba Bhajan Lyrics
अजब होली खेलें हमारे भोले बाबा भजन लिरिक्स
अजब होली खेलें हमारे भोले बाबा,
अजब होली खेलें गजब होली खेलें......
अबीर गुलाल के थाल भरे है,
थाल भरे है थाल भरे है,
भस्मी की होली खेले हमारे भोले बाबा,
अजब होली खेलें हमारे भोले बाबा.....
ढोलक बाजे मंजीरा बाजे,
जीरा बाजे जीरा बाजे,
डमरू को लेके नाचे हमारे भोले बाबा,
अजब होली खेलें हमारे भोले बाबा.....
मोदक लड्डू के थाल भरे है,
पापड़ गुजिया के थाले भरे है,
धतूरा पाइक नाचे हमारे भोले बाबा,
अजब होली खेलें हमारे भोले बाबा......
कोई पहने साडी कोई धोती कुर्ती,
कोई धोती कुर्ती हाँ कोई धोती कुर्ती,
बाघम्बर ओढ़े नाचे हमारे भोले बाबा,
अजब होली खेलें हमारे भोले बाबा…..
झूम झूम नर नारी नाचे,
नारी नाचे नर नारी नाचे,
भूतो के संग नाचे हमारे भोले बाबा,
अजब होली खेलें हमारे भोले बाबा…..
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