#देवशयनी एकादशी व्रत की कथा
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bhaktibharat · 1 year ago
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🐚 कामिका एकादशी व्रत कथा - Kamika Ekadashi Vrat Katha
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कामिका एकादशी का महत्त्व:अर्जुन ने कहा: हे प्रभु! मैंने आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी का सविस्तार वर्णन सुना। अब आप मुझे श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी की कथा सुनाने की कृपा करें। इस एकादशी का नाम क्या है? इसकी विधि क्या है? इसमें किस देवता का पूजन होता है? इसका उपवास करने से मनुष्य को किस फल की प्राप्ति होती है?...
..कामिका एकादशी व्रत कथा को पूरा पाठ करने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें 👇 📲 https://www.bhaktibharat.com/katha/kamika-ekadashi-vrat-katha
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🐚 ॐ जय जगदीश हरे आरती - Om Jai Jagdish Hare Aarti 📲 https://www.bhaktibharat.com/aarti/om-jai-jagdish-hare
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dharmikjeevan · 1 year ago
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Devshayani Ekadashi fast Story: Know the benefits and mythology of this Fast. @dharmikjeevan
Devshayani Ekadashi Fast Story
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In this video we will discuss the benefits of Devshayani Ekadashi fast and the welfare story of this fast. This fasting story of Devshayani Ekadashi is taken from Brahma Vaivarta Purana.
Click here for more information!
Devshayani Ekadashi is one of the most important fasts in the Hindu calendar. It is believed that one can attain moksha (liberation from the cycle of birth and death) by observing this fast.
In this video we are also telling the legend of Devshayani Ekadashi fast. The devotee who listens to this story after fasting and worshiping Devshayani Ekadashi with rituals, such a devotee becomes blessed by Lord Vishnu.
Devshayani Ekadashi Vrat is a time for spiritual introspection and purification. By observing this fast one can purify his mind and body and prepare himself for the spiritual journey ahead.
If you are looking for a way to improve your spiritual well-being, then Devshayani Ekadashi Vrat is a great option for you. This video will provide you all the information about this important fast.
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mrdevsu · 3 years ago
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Devshayani Ekadashi: जानिए देवशयनी एकादशी व्रत का सही तरीका
Devshayani Ekadashi: जानिए देवशयनी एकादशी व्रत का सही तरीका
देवशयनी एकादशी: बार एकादशी की शुरुआत 19 नवं��र की तारीख से दिनांक 09 बजकर 59 से इस दिन एकादशी ��िथि को दिनांक 20 जुलाई, 2021 को शाम 07.17 बजे होगा। देवशयनी एकादशी का व्रत को तैनात करने के लिए तैनात को प्रीत: काल उठकर साफ और निर्मल जल से स्नान करना चाहिए। पूजा स्थल पूरी तरह से साफ सफाई के लिए श्रीहरिविष्णु की मूर्ति को ऑनसन पर लागू करें और उनका षोडशोपचारण करें. कपड़े के कपड़े, फूल, पीले चंदन रोग.…
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vishnuelamkulathpalakkad · 2 years ago
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, കാമിക ഏകാദശി ||❤🙏
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സാവൻ മാസത്തിലെ കൃഷ്ണപക്ഷത്തിലെ ഏകാദശിയിലാണ് കാമിക ഏകാദശി വ്രതം ആചരിക്കുന്നത്. ഈ ഏകാദശി ചാതുർമാസത്തിലും ദേവശയനി ഏകാദശിക്ക് ശേഷവും വരുന്നു.
ഒരു ഗ്രാമത്തിൽ ധീരനായ ഒരു ക്ഷത്രിയൻ താമസിച്ചിരുന്നു. ഒരു ദിവസം ചില കാരണങ്ങളാൽ അദ്ദേഹം ബ്രാഹ്മണനുമായി വഴക്കുണ്ടാക്കുകയും ബ്രാഹ്മണൻ മരിക്കുകയും ചെയ്തു. ആ ക്ഷത്രിയൻ സ്വന്തം കൈകൊണ്ട് മരിച്ച ഒരു ബ്രാഹ്മണന്റെ പ്രവൃത്തി ചെയ്യാൻ ആഗ്രഹിച്ചു. എന്നാൽ ഈ ചടങ്ങിൽ പങ്കെടുക്കുന്നത് പണ്ഡിതന്മാർ വിലക്കി. ബ്രഹ്മാവിനെ കൊന്നതിൽ നീ കുറ്റക്കാരനാണെന്ന് ബ്രാഹ്മണർ പറഞ്ഞു.
ഈ പാപത്തിൽ നിന്ന് മുക്തി നേടാൻ എന്താണ് വഴിയെന്ന് ക്ഷത്രിയൻ ചോദിച്ചു. അപ്പോൾ ബ്രാഹ്മണർ പറഞ്ഞു, ശ്രാവണമാസത്തിലെ കൃഷ്ണപക്ഷ ഏകാദശിയിൽ വ്രതമനുഷ്ഠിച്ച് ശ്രീധരനെ ഭക്തിപൂർവ്വം ആരാധിക്കുകയും ബ്രാഹ്മണരുടെ അനുഗ്രഹം സദുദ്ദേശ്യത്തോടെ നേടുകയും ചെയ്താൽ ഈ പാപത്തിൽ നിന്ന് മുക്തി ലഭിക്കും. വ്രതാനുഷ്ഠാനത്തിന്റെ രാത്രിയിൽ ശ്രീധരൻ ക്ഷത്രിയർക്ക് പ്രത്യക്ഷപ്പെട്ട് പണ്ഡിതന്മാർ നിർദ്ദേശിച്ച രീതി അനുസരിച്ച് ബ്രഹ്മാവിനെ കൊന്ന പാപത്തിൽ നിന്ന് നിങ്ങൾക്ക് മോചനം ലഭിച്ചുവെന്ന് പറഞ്ഞു.
ഈ വ്രതം അനുഷ്ഠിക്കുന്നതിലൂടെ, ബ്രഹ്മാവിനെ വധിച്ചതിന്റെ എല്ലാ പാപങ്ങളും നശിക്കുകയും ഇഹലോകത്ത് സുഖം അനുഭവിക്കുകയും ചെയ്ത ശേഷം ജീവജാലങ്ങൾ ഒടുവിൽ വിഷ്ണുലോകത്തിലേക്ക് പോകുന്നു. ഈ കാമിക ഏകാദശിയുടെ മഹത്വം ശ്രവിച്ചും പാരായണം ചെയ്തും മനുഷ്യർ സ്വർഗത്തിൽ എത്തുന്നു. ,
കാമിക ഏകാദശി വ്രതം മഹാവിഷ്ണുവിനുള്ളതാണ്. ഈ വ്രതം അനുഷ്ഠിക്കുന്നതിലൂടെ എല്ലാത്തരം പാപങ്ങളിൽ നിന്നും മുക്തി ലഭിക്കും. ഈ അശ്വമേധയാഗവും ഇതേ ഫലത്തോടെയാ��് വരുന്നത്. കാമിക വ്രതത്തിന്റെ കഥ ആയിരം പശു ദാനത്തിന് തുല്യമായ ഫലം നൽകുമെന്ന് വിശ്വസിക്കപ്പെടുന്നു.
#entekeralammyindia
|| कामिका एकादशी ||❤🙏
|| Kamika Ekadashi ||
कामिका एकादशी का व्रत सावन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है। यह एकादशी चातुर्मास में आती है और देवशयनी एकादशी के बाद भी।
एक गाँव में एक वीर क्षत्रिय रहता था। एक दिन किसी कारण वश उसकी ब्राह्मण से हाथापाई हो गई और ब्राह्मण की मृत्य हो गई। अपने हाथों मरे गये ब्राह्मण की क्रिया उस क्षत्रिय ने करनी चाही। परन्तु पंडितों ने उसे क्रिया में शामिल होने से मना कर दिया। ब्राह्मणों ने बताया कि तुम पर ब्रह्म-हत्या का दोष है।
इस पर क्षत्रिय ने पूछा कि इस पाप से मुक्त होने के क्या उपाय है। तब ब्राह्मणों ने बताया कि श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को भक्तिभाव से भगवान श्रीधर का व्रत एवं पूजन कर ब्राह्मणों को भोजन कराके सदश्रिणा के साथ आशीर्वाद प्राप्त करने से इस पाप से मुक्ति मिलेगी। पंडितों के बताये हुए तरीके पर व्रत कराने वाली रात में भगवान श्रीधर ने क्षत्रिय को दर्शन देकर कहा कि तुम्हें ब्रह्म-हत्या के पाप से मुक्ति मिल गई है।
इस व्रत के करने से ब्रह्म-हत्या आदि के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और इहलोक में सुख भोगकर प्राणी अन्त में विष्णुलोक को जाते हैं। इस कामिका एकादशी के माहात्म्य के श्रवण व पठन से मनुष्य स्वर्गलोक को प्राप्त करते हैं। ॥
कामिका एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। इस व्रत को करने से हर तरह के पाप से मुक्ति मिलती है। यह अश्वमेध यज्ञ समान फल प्राप्त कर आता है। माना जाता है कि कामिका व्रत की ���था से हजार गोदान के बराबर फल की प्राप्ति होती है।
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humongousdreamerkitten · 2 years ago
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10 जुलाई रविवार को आषाढ़ी एकादशी के दिन करें ये 10 पुण्य के काम
10 जुलाई रविवार को आषाढ़ी एकादशी के दिन करें ये 10 पुण्य के काम
10 जुलाई 2022 रविवार के दिन आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन श्रीहरि विष्णु 4 माह के लिए योगनिद्रा में सो जाएंगे इसीलिए इसे अषाढ़ी एकादशी के साथ ही देवशयनी एकादशी भी कहते हैं। आओ जानते हैं इस दिन कौनसे 10 पुण्य के कार्य करना चाहिए।   1. व्रत : इस दौरान विधिवत व्रत रखने से पुण्य फल की प्राप्त होती है और व्यक्ति निरोगी होता है। 2. पूजा : इस दिन प्रभु श्रीहरि की विधिवत पूजा करने और उनकी कथा…
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rudrjobdesk · 2 years ago
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Devshayani Ekadashi Vrat katha Kahani : देवशयनी एकादशी व्रत में जरूर करें इस कथा का पाठ, मनवांछित फल की होगी प्राप्ति
Devshayani Ekadashi Vrat katha Kahani : देवशयनी एकादशी व्रत में जरूर करें इस कथा का पाठ, मनवांछित फल की होगी प्राप्ति
10 जुलाई को देवशयनी एकादशी है। एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं। एकादशी के दिन व्रत नियमों का पालन करने के साथ ही व्रत कथा का भी विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि देवशयनी एकादशी का पाठ करने या सुनने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। भगवान श्रीहरि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। आगे पढ़ें व्रत…
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nisthadhawani · 3 years ago
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जानिए देवशयनी एकादशी की व्रत कथा
जानिए देवशयनी एकादशी की व्रत कथा
आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस बार 20 जुलाई को देवशयनी एकादशी के लिए व्रत रखा जाएगा।  धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह एकादशी बहुत महत्व रखती है। क्यों कि इसी दिन से चातुर्मास की भी शुरूआत हो जाएगी, जिसमें कई प्रकार के मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, देवशयनी एकादशी का व्रत सब व्रतों में उत्तम है। इस व्रत से समस्त पाप नष्ट…
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kisansatta · 4 years ago
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जानें कब हैं देवउठनी एकादशी
जानें शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि और कथा देवउठनी एकादशी को देवोत्थान और प्रबोधनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन तुलसी विवाह करना बहुत शुभ माना जाता है। भगवान विष्णु देवश्यनी एकादशी पर चार महीने की निद्रा अवस्था में चले जाते हैं। जिसके बाद से ही पृथ्व���ं पर सभी तरह के शुभ कार्य बंद हो जाते है। देवश्यनी एकादशी के बाद भगवान विष्णु देवउठनी एकादशी पर फिर से जाग्रत अवस्था में आते हैं। जिसके बाद ही शादी,गृह प्रवेश जैसे शुभ कार्य प्रारंभ होते हैं। देवउठनी एकादशी तिथि 25 नवंबर को देवउठनी एकादशी शुभ मुहूर्त जानिए अक्षय नवमी की व्रत कथा देवउठनी एकादशी तिथि प्रारम्भ – रात 2 बजकर 42 मिनट से (25 नवंबर 2020) देवउठनी एकादशी तिथि समाप्त – अगले दिन सुबह 5 बजकर 10 मिनट तक (26 नवंबर) देवउठनी एकादशी का महत्व देवउठनी एकादशी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती हैं ।
देवउठनी एकादशी को देवोत्थान और प्रबोधनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन तुलसी विवाह करना बहुत शुभ माना जाता है। भगवान विष्णु देवश्यनी एकादशी पर चार महीने की निद्रा अवस्था में चले जाते हैं। जिसके बाद से ही पृथ्वीं पर सभी तरह के शुभ कार्य बंद हो जाते है। देवश्यनी एकादशी के बाद भगवान विष्णु देवउठनी एकादशी पर फिर से जाग्रत अवस्था में आते हैं। जिसके बाद ही शादी,गृह प्रवेश जैसे शुभ कार्य प्रारंभ होते हैं। देवउठनी एकादशी में कब हैं ,
शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु अपनी चार महीनों की निंद से जागते हैं। इसके अलावा यह दिन सभी देवताओं के जागने का दिन भी माना जाता है। देवश्यनी एकादशी के समय ���गवान विष्णु चार महीने की निद्रा अवस्था में चले जाते हैं। जिसके कारण धरती पर सभी तरह के शुभ कार्य करना वर्जित माना जाता है। जिसके बाद भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी पर अपनी निद्रा अवस्था से बाहर आते हैं और धरती पर एक बार फिर से सभी तरह के शुभ कार्य होने प्रारंभ हो जाते हैं। देवउठनी एकादशी को देवोत्थान और प्रबोधनी एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन शालिग्राम जी का विवाह भी तुलसी जी से पूरे रीति रिवाज के साथ कराया जाता है। माना जाता है कि जब देवता अपनी जाग्रत अवस्था में आते हैं तो वह पहली प्रार्थना तुलसी जी की ही स्वीकार करते हैं। जानिए माता महालक्ष्मी ने भी किया था आंवले के पेड़ का Saligram, भगवान शिव और विष्णु हुए थे प्रसन्न देवउठनी एकादशी की पूजा विधि
1. देवउठनी एकादशी के दिन पूजा करने वाले साधक को किसी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान अवश्य ही करना चाहिए। 2. इसके बाद किसी साफ चौकी पर गंगाजल छिड़क कर उसे पवित्र करके उस पर पीला कपड़ा बिछाएं और उनके चरणों की आकृति बनाएं। 3. कपड़ा बिछाने के बाद भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें और उनका चंदन से तिलक करके उन्हें न्हें पीले वस्त्र, पीले फूल,नैवेद्य, फल, मिठाई, बेर सिंघाड़े ,ऋतुफल और गन्ना अर्पित करें। 4.इसके बाद भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करें, उनकी आरती उतारें और उन्हें पीले रंग की मिठाई का भोग लगाएं। शाम के समय पूजा स्थल और अपने घर के मुख्य द्वार पर दीप अवश्य जलाएं सोमवार को ऐसे करें महादेव को प्रसन्न, आपकी मनोकामना करेंगे पूरी 5.पूजा की सभी विधि संपन्न करने के बाद घंटा अवश्य बजाएं और इन वाक्यों का उच्चारण करें उठो देवा, बैठा देवा, आंगुरिया चटकाओ देवा, नई सूत, नई कपास, देव उठाये कार्तिक मास देवउठनी
एकादशी की कथा पौराणिक कथा के अनुसार एक बार लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु से पूछा हे प्रभु आप रात और दिन जागते हैं और सो जाते हैं तो करोड़ो वर्षों तक सोते ही रहते हैं। जब आप सोते हैं तो ��ीनों लोकों में हाहाकार मच जाता है। इसलिए आप अपनी निद्रा का कोई समय क्यों नहीं तय कर लेते। अगर आप ऐसा करेंगे तो मुझे भी कुछ समय आराम करने के लिए मिल जाएगा। माता लक्ष्मी की बात सुनकर भगवान श्री हरि विष्णु मुस्कुराए और बोले हे लक्ष्मी तुम ठीक कह रही हो। मेरे जागने से सभी देवतओं के साथ- साथ तुम्हें भी कष्ट होता है। जिसकी वजह से तुम जरा भी आराम नहीं कर पाती। इसलिए मैने निश्चय किया है कि मैं आज से प्रत्येक वर्ष चार महिनों के लिए वर्षा ऋतु में निद्रा अवस्था में चला जाऊंगा। उस समय तुम्हारे साथ- साथ सभी देवताओं को भी कुछ आराम मिलेगा।मेरी यह निद्रा अल्पनिद्रा और प्रलय कालीन महानिद्रा कहलाएगी। मेरी इस निद्रा से मेरे भक्तों का भी कल्याण होगा। इस समय में मेरा जो भी भक्त मेरे सोने की भावना से मेरी सेवा करेगा और मेरे सोने और जागने के आनंदपूर्वक मनाएगा मैं उसके घर में तुम्हारे साथ निवास करूंगा।
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bhaktibharat · 3 months ago
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🐚 कामिका एकादशी व्रत कथा - Kamika Ekadashi Vrat Katha
कामिका एकादशी का महत्त्व: अर्जुन ने कहा: हे प्रभु! मैंने आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी का सविस्तार वर्णन सुना। अब आप मुझे श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी की कथा सुनाने की कृपा करें। इस एकादशी का नाम क्या है? इसकी विधि क्या है? इसमें किस देवता का पूजन होता है? इसका उपवास करने से मनुष्य को किस फल की प्राप्ति होती है?
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा: हे श्रेष्ठ धनुर्धर! मैं श्रावण माह की पवित्र एकादशी की कथा सुनाता हूँ, ध्यानपूर्वक श्रवण करो। एक बार इस एकादशी की पावन कथा को भीष्म पितामह ने लोकहित के लिये नारदजी से कहा था।…
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dharmikjeevan · 1 year ago
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देवशयनी एकादशी व्रत कथा: जानें इस व्रत के लाभ और पौराणिक कथा | @dharmikjeevan
देवशयनी एकादशी व्रत कथा
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इस वीडियो में हम देवशयनी एकादशी व्रत के लाभ और इस व्रत की कल्याणकारी कथा पर चर्चा करेंगे। देवशयनी एकादशी की यह व्रत कथा ब्रह्म वैवर्त पुराण से ली गई है।
अधिक जानकारी के लिए: यहां क्लिक करें!
देवशयनी एकादशी हिंदू कैलेंडर में सबसे महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से मोक्ष (जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति) प्राप्त हो सकता है।
इस वीडियो में हम देवशयनी एकादशी व्रत की पौराणिक कथा को भी बता रहे हैं। जो साधक देवशयनी एकादशी का व्रत एवं विधि-विधान से पूजन करने के उपरांत इस कथा को श्रवण करता है, ऐसा भक्त भगवान विष्णु का कृपा पात्र बनता है।
देवशयनी एकादशी व्रत आध्यात्मिक आत्मनिरीक्षण और शुद्धि का समय है। इस व्रत को करने से व्यक्ति अपने मन और शरीर को शुद्ध कर सकता है और आगे की आध्यात्मिक यात्रा के लिए खुद को तैयार कर सकता है।
यदि आप अपने आध्यात्मिक कल्याण को बेहतर बनाने का कोई रास्ता तलाश रहे हैं, तो देवशयनी एकादशी व्रत आपके लिए एक बढ़िया विकल्प है। यह वीडियो आपको इस महत्वपूर्ण व्रत के बारे में सारी जानकारी प्रदान करेगा।
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praysure · 4 years ago
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परिवर्तिनी एकादशी – जानें व्रत कथा
#परिवर्तिनी #एकादशी – जानें व्रत कथा
परिवर्तिनी एकादशी – जानें व्रत कथा :- हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को व्रत, स्नान, दान आदि के लिये बहुत ही शुभ फलदायी माना जाता है। मान्यता है कि एकादशी व्रत से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं। उपासक पर उनकी कृपा बनी रहती है। प्रत्येक मास में दो एकादशी व्रत आते हैं। हर मास की एकादशियों का खास महत्व माना जाता है। देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु चार माह के…
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humongousdreamerkitten · 2 years ago
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देवशयनी एकादशी पर करें ये 10 शुभ कार्य तो मिलेगा पुण्य, होंगे कष्ट दूर
देवशयनी एकादशी पर करें ये 10 शुभ कार्य तो मिलेगा पुण्य, होंगे कष्ट दूर
Devshayani Ekadashi Devshayani Ekadashi 2022: 10 जुलाई 2022 रविवार के दिन देवशयनी एकादशी का व्रत रखा जाएगा। इस दिन के बाद चातुर्मास प्रारंभ हो जाएंगे। आओ जानते हैं कि इस दिन कौनसे 10 शुभ कार्य करने से मिलता है पुण्य।   1. व्रत : इस दौरान विधिवत व्रत रखने से पुण्य फल की प्राप्त होती है और व्यक्ति निरोगी होता है। 2. पूजा : इस दिन प्रभु श्रीहरि की विधिवत पूजा करने और उनकी कथा सुनने से सभी तरह के…
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myriddhisiddhi · 4 years ago
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देवप्रबोधिनी एकादशी की पौराणिक कथा, देवशयनी एकादशी की व्रत कथा, व्रत विधि
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chaitanyabharatnews · 3 years ago
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देवशयनी एकादशी आज, इस दौरान भूलकर भी ना करें ये काम, जाने पूजा विधि और महत्व
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चैतन्य भारत न्यूज हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का बहुत अधिक महत्व होता है। हर माह में दो बार एकादशी तिथि पड़ती है। एक बार कृष्ण पक्ष में और एक बार शुक्ल पक्ष में। आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी तिथि को देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है जो कि इस बार 20 जुलाई को है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस एकादशी तिथि से भगवान विष्णु विश्राम करते हैं और सृष्टि का संचालन भगवान शिव करते हैं। इस दौरान सभी मांगलिक कार्य जैसे शादी-विवाह, गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत पर अगले चार महीने के लिए विराम लग जाएगा। इसी दिन से चातुर्मास शुरू हो जाते हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु विश्राम के लिए पाताल लोक चले जाते हैं और वे वहां चार मास विश्राम करते हैं। इस बीच पृथ्वी लोक की देखभाल भगवान शिव करते हैं। इसीलिए चातुर्मास में सावन का विशेष महत्व बताया गया है।सावन के महीने में भगवान शिव माता पार्वती के साथ पृथ्वी का भ्रमण करते हैं और अपने भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं। जब भगवान विष्णु पाताल लोक चले जाते हैं तो सभी मांगलिक कार्य स्थगित कर दिए जाते हैं, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इस समय किये गए किसी मांगलिक कार्य का शुभ फल नहीं मिल���ा है। देवशयनी एकादशी के चार मास बाद देव��ठनी एकादशी के दिन से पुनः मांगलिक कार्य शुरू होते हैं। 14 नवंबर को देवउठनी एकादशी पर विष्णु भगवान विश्राम काल पूर्ण कर क्षिर सागर से बाहर आकर पृथ्वी की बागड़ोर अपने हाथों में लेते हैं। चातुर्मास में क्‍या नहीं करना चाह‍िए चातुर्मास का सबसे पहला नियम यह है कि इन 4 महीनों में विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश और तमाम सोलह संस्कार नहीं किए जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इन सभी कार्यों पर सनातन धर्म के सभी देवी-देवताओं को आशीर्वाद देने के लिए बुलाया जाता है मगर भगवान विष्णु शयन काल में रहते हैं इसीलिए वह आशीर्वाद देने नहीं आ पाते हैं। ऐसे में भगवान विष्णु का आशीर्वाद पाने के लिए लोग इन 4 महीनों को छोड़कर अन्य महीनों में शुभ कार्य करते हैं। शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने व पाचन तंत्र को ठीक रखने के लिए पंचगव्य (गाय का दूध, दही, घी, गोमूत्र, गोबर) का सेवन करें। इसके साथ चातुर्मास के पहले महीने यानि सावन में हरी सब्जियां, भादो में दही, अश्विन में दूध और कार्तिक में दाल का सेवन करना वर्जित माना गया है। इसके साथ इन 4 महीनों में तामसिक भोजन, मांस और मदिरा का सेवन भी नहीं करना चाहिए। चातुर्मास के नियमों के अनुसार इन 4 महीनों में शरीर पर तेल नहीं लगाना चाहिए और किसी की निंदा करने से बचना चाहिए। इसके अलावा इन 4 महीनों में मूली, परवल, शहद, गुड़ तथा बैंगन का सेवन करना वर्जित माना गया है। देवशयनी एकादशी की पूजा-विधि देवशयनी एकादशी के दिन सबसे पहले जल्दी उठकर घर की साफ-सफाई करें। स्नान कर घर में पवित्र जल का छिड़काव करें। देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु का कमल के पुष्पों से पूजन करना बहुत शुभ माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि, इन चार महीनों के दौरान भगवान शिवजी सृष्टि को चलाते हैं। इसलिए विष्णु के साथ भगवान शिव की पूजा करना शुभ माना गया है। इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की कथा सुनें। देवशयनी एकादशी की पूजा के बाद गरीबों को फल दान करें। देवशयनी एकादशी : चार महीने भगवान विष्णु करेंगे विश्राम, इस दौरान भूलकर भी ना करें ये काम देवशयनी एकादशी पर जरूर पढ़ें यह व्रत कथा, सुनकर मिलता है व्रत का पूर्ण फल जानिए कब है देवशयनी एकादशी, इसका महत्व और पूजा विधि देवशयनी एकादशी: आज से 5 माह तक योग निद्रा में चले जाएंगे भगवान विष्णु, जानें व्रत रखने का शुभ मुहूर्त और पारण का समय Read the full article
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nisthadhawani · 3 years ago
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योगिनी एकादशी व्रत कथा ||Yogini Ekadashi||
योगिनी एकादशी व्रत कथा ||Yogini Ekadashi||
धार्मिक दृष्टिकोण से आषाढ़ का महीना पुण्यदायी माना जाता हैं��� आषाढ़ के महीने में योगिनी एकादशी और देवशयनी एकादशी होती है। योगिनी एकादशी आषाढ़ के महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी को कहते हैं। सभी एकादशियों की तरह यह एकादशी भी भगवान विष्णु को समर्पित हैं। 5  जुलाई को योगिनी एकादशी का व्रत रखा जाएगा। मान्यता हैं कि जो भी मनुष्य इस एकादशी पर व्रत रखता हैं उसे  धरती पर सभी सुख-सुविधाओं का सुख मिलता है और…
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spgcimap-blog · 4 years ago
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पुराण- कथा, धर्म- संहिता, ज्योतिष में  देवशयनी (हरिशयनी) एकादशी (पद्मा एकादशी) तथ्य व महात्म्य ----------------------------------------------------        【इस वर्ष दिनांक 01, जुलाई, 2020 आषाढ़ शुक्ल एकादशी बुधवार को जगन्नाथ- पुरी में जगत प्रसिद्ध "बाहूडा रथयात्रा" तथा समग्र भारत में "देवशयनी (पद्मा) एकादशी" मनाया जाता है। इस देवशयनी/ हरिशयनी- पद्मा एकादशी- तिथि से अगले 148 दिन अर्थात दिनांक 25 नवंबर 2020 बुधवार कार्त्तिक शुक्ल "देवोत्थापनी/ देवोप्रबोधिनी एकादशी" तक श्रीहरि भगवान चतुर्मासी- योगनिद्रा में रहेंगे और स्वाभाविक रूप में इस अवधि के अंदर समस्त प्रकार शुभ कार्यों पर निषेध/ पाबन्दी लागू होंगे।।】    देवशयनी- पद्मा एकादशी    --------------------------------        प्रसंग क्रम में धर्मराज युधिष्ठिर ने प्रश्न पूछा था - "हे केशव ! आषाढ़ी शुक्ल एकादशी का क्या नाम है ? इस व्रत के करने की विधि क्या है और इस अवसर में किस देवता का पूजन किया जाता है ?"       श्रीकृष्ण कहने लगे कि- "हे युधिष्ठिर! जिस कथा को ब्रह्मा जी ने नारद जी से कहा था, वही मैं तुमसे सुनाता हूं :--        "ब्रह्मा जी ने नारद जी को कहा था कि-- कलियुगी जीवों के उद्धार के लिए, समस्त पाप नष्ट करने में सक्षम तथा सब व्रतों में अधिक उत्तम आषाढ़ शुक्ल एकादशी ही 'देवशयनी (पद्मा) एकादशी व्रत' के नाम में प्रख्यात।।"         फिर धर्मराज के आग्रह से श्रीकृष्ण जी ने ब्रह्म जी तथा नारद जी के विच के इस बारे में कथोपकथन को विस्तार से जब सुनाई तो बातावरण में भगवत- आनन्दकन्द- मकरन्द की स्रोत प्रवाहित हुई थी।। देवशयनी- पद्मा एकादशी व्रत- तत्व--------------------------------------         आषाढ़ शुक्ल एकादशी ही देवशयनी- पद्मा एकादशी नाम में प्रसिद्ध। इसी दिन से जगत के पालनहार भगवान विष्णु जी 'पाताल लोक' (भिन्न कथन में 'क्षीर सागर') में योगनिद्रा के लिए चले जाते हैं।इस वर्षा ऋतू के बाद धरती पर किसी प्रकार का मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है। माना जाता है कि इस 'हरिशयनी' के दौरान सूर्य व चंद्र का तेज पृथ्वी पर कम पहुंचता है, जल की मात्रा अधिक हो जाती है, वातावरण में अनेक जीव- जंतु उत्पन्न हो जाते हैं, जो अनेक रोगों का कारण बनते हैं। इसलिए साधु- संत, तपस्वी, मठाधीश इस काल में एक ही स्थान पर रहकर तप, साधना, स्वाध्याय व प्रवचन आदि करते हैं।।         देवशयनी एकादशी की साधारण पूजा विधि ये है की--       जो लोग देवशयनी एकादशी का व्रत रखते हैं, उन्हें प्रात:काल उठकर स्नान करना चाहिए। पूजा स्थल को साफ करने के बाद शंख, चक्र, गदा, पद्म धारी भगवान विष्णु की प्र��िमा को आसन पर यथाविधि बैठाएं और उनकी पूजा करें। भगवान विष्णु को पीले वस्त्र, पीले फूल, पीला चंदन चढ़ाएं। भगवान विष्णु को पान और सुपारी अर्पित करने के बाद धूप, दीप और पुष्प चढ़ाकर आरती उतारें।भगवान विष्णु का पूजन करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराकर स्वयं भोजन या फलाहार ग्रहण करें। एकादशी की रात्र में भगवान विष्णु का भजन व स्तुति करना चाहिए और स्वयं के सोने से पहले भगवान को भी शयन कराना चाहिए।।      देवशयनी एकादशी कथा      -------------------------------          पुराणों में इस देवशयनी एकादशी के बारे में एकाधिक कथा उपलब्ध। उससे एक रोचक कहानी ये है कि-- शंखचूर (शंखचूड़) नामक असुर से भगवान विष्णु का लंबे समय तक युद्ध चला। आषाढ़ शुक्ल एकादशी के दिन भगवान ने शंखचूड़ का वध कर दिया और क्षीर सागर में सोने चले गये। शंखचूड़ जैसे दुरात्मा से मुक्ति दिलाने के कारण देवताओं ने भगवान विष्णु की विशेष पूजा- अर्चना की। 'देवशयनी' और 'देवउत्थापनी'-- ये दोनों 'एकादशी' इसकी विशेष स्मारकी मान्यता प्राप्त।।         एक अन्य कथा के अनुसार वामन अवतार में भगवान विष्णु ने दानवेन्द्र राजा बलि से तीन पग में तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया। इसलिए राजा बलि को पाताललोक वापस जाना पड़ा। लेकिन महादानी बलि की भक्ति और उदारता से भगवान वामन मुग्ध थे। भगवान ने बलि से जब वरदान मांगने के लिए कहा, तो बलि ने भगवान से कहा कि-- "आप सदैव पाताल में ही मेरे पास निवास करें।।"         भक्त की इच्छा पूरी करने के लिए भगवान पाताल में रहने लगे। इससे बैकुंठवासिनी लक्ष्मी माँ दुःखी हो गयी। भगवान विष्णु को वापस बैकुंठ लाने के लिए गरीब स्त्री का वेष बनाकर पाताल लोक पहुंची। लक्ष्मी माँ की दीन- हीन अवस्था को देखकर बलि ने उन्हें अपनी बहन बना लिया।।       बहन बनने के बाद लक्ष्मी जी भाई बलि को अपनी दुःख कहकर जब विष्णु की मांग की, तो महादानी बलि ने भाई की कर्त्तव्य निभाने के लिए वचन दिया। किन्तु विष्णु जी तो बलि के साथ रहने के लिए 'वचन' दे चुके थे, तो लक्ष्मी जी को प्रदत्त बलि के इस 'वचन' कैसे फलित होगा ! देवकूट सफल हुई। और दो तरफ वचन को फलित कर, उस समय से सिर्फ वर्षाऋतु की चतुर्मासी अवधि काल ही (आषाढ़ी देवशयनी एकादशी से कर्त्तिकी देवउत्थापनी एकादशी तक) विष्णु भगवान ने पाताली होकर विष्णु भक्त राजा बलि के साथ रहने लगे।।   (संग्राहक, संकलक, सम्पादक, विनीत परिभाषक : महाप्रभुआश्रित प्रफुल्ल कुमार दाश।।)     जय जगन्नाथ।। ॐ शांतिः।।
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