🐚 आमलकी एकादशी व्रत कथा - Amalaki Ekadashi Vrat Katha
धर्मराज युधिष्ठिर बोले: हे जनार्दन! आपने फाल्गुन के कृष्ण पक्ष की विजया एकादशी का सुंदर वर्णन करते हुए सुनाया। अब आप फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम है? तथा उसकी विधि क्या है? कृपा करके आप मुझे बताइए।
[बृज मे रंगभरनी एकादशी, श्रीनाथद्वारा मे कुंज एकादशी तथा खाटू नगरी मे खाटू एकादशी भी कहा जाता है]
श्री भगवान बोले: हे राजन्, फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम आमलकी एकादशी है। इस व्रत के करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं, तथा इसके प्रभाव से एक हजार गौ दान का फल प्राप्त होता है। इस व्रत के करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। हे राजन्, अब मैं आपको महर्षि वशिष्ठ जी द्वारा राजा मांधाता को सुनाई पौराणिक कथा के बारे मैं बताता हूँ, आप इसे ध्यानपूर्वक सुनें।..
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🚩 फाल्गुन मेला - Falgun Mela
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🐚 एकादशी - Ekadashi
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#karwachauth #karvachauth #karwachauth22 #sargi #sanatandharma #indianfestival #mahadev 💥 करवा चौथ व्रत रखने वालों को लाभ होता है या हानि। उत्तर : संत गरीब दास जी की वाणी में उल्लेख है: कहे जो करवा चौथ कहानी, तास गदहरी निश्चय जानी । करे एकादशी संजम सोई, करवा चौथ गदहरी होई । आठे साते करे कंदूरी, सो तो बने नीच घर सूरी । वाणी से स्पष्ट है कि करवा चौथ व्रत रखने वाली तथा कथा सुनाने वाली दोनों गधी बनती हैं। (at Soniya Vihar Yamuna River New Delhi) https://www.instagram.com/p/Cjp5b6BpnFL/?igshid=NGJjMDIxMWI=
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart88 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart89
प्रश्न 55 :- धर्मदास ने प्रश्न किया हे प्रभु आपकी कृपा द्वापर युग में और किस पुण्यात्मा पर हुई?
उत्तर :- कबीर परमेश्वर (कविर्देव) ने कहा द्वापर युग में एक चन्द्रविजय नामक राजा की रानी इन्द्रमती को पार किया तथा राजा चन्द्रविजय पर भी कृपा की। परमेश्वर कबीर जी द्वारा बताई "रानी इन्द्रमती को पार करने वाली कथा" लेखक (संत रामपाल दास जी महाराज) के शब्दों में :-
"द्वापर युग में इन्द्रमती को शरण में लेना"
द्वापरयुग में चन्द्रविजय नाम का एक राजा था। उसकी पत्नी इन्द्रमती बहुत ही धार्मिक प्रवृति की औरत थी। संत-महात्माओं का बहुत आदर किया करती थी। उसने एक गुरुदेव भी बना रखा था। उनके गुरुदेव ने बताया था कि बेटी साधु-संतों की सेवा करनी चाहिए। संतों को भोजन खिलाने से बहुत लाभ होता है। एकादशी का व्रत, मन्त्र के जाप आदि साधनायें जो गुरुदेव ने बताई थी। उस भगवत् भक्ति में रानी बहुत दृढ़ता से लगी हुई थी। गुरुदेव ने बताया था कि संतों को भोजन खिलाया करेगी तो तू आगे भी रानी बन जाएगी और तुझे स्वर्ग प्राप्ति होगी। रानी ने सोचा कि प्रतिदिन एक संत को भोजन अवश्य खिलाया करूँगी। उसने यह प्रतिज्ञा मन में ठान ली कि मैं खाना बाद में खाया करूँगी, पहले संत को खिलाया करूँगी। इससे मुझे याद बनी रहेगी, कहीं मुझे भूल न पड़ जाये। रानी प्रतिदिन पहले एक संत को भोजन खिलाती फिर स्वयं खाती। वर्षों तक ये क्रम चलता रहा।
एक समय हरिद्वार में कुम्भ के मेले का संयोग हुआ। जितने भी त्रिगुण माया के उपासक संत थे सभी गंगा में स्नान के लिए (प्रभी लेने के लिए) प्रस्थान कर गये। इस कारण से कई दिन रानी को भोजन कराने के लिए कोई संत नहीं मिला। रानी इन्द्रमती ने स्वयं भी भोजन नहीं किया। चौथे दिन अपनी बांदी से कहा कि बांदी देख ले कोई संत मिल जाए तो, नहीं तो आज तेरी मालकिन जीवित नहीं रहेगी। चाहे मेरे प्राण निकल जाएँ परन्तु मैं खाना नहीं खाऊँगी। वह दीन दयाल कबीर परमेश्वर अपने पूर्व वाले भक्त को शरण में लेने के लिए न जाने क्या कारण बना देता है? बांदी ने ऊपर अटारी पर चढ़कर देखा कि सामने से सफेद कपड़े पहने एक संत आ रहा था। द्वापर युग में परमेश्वर कबीर करूणामय नाम से आये थे। बांदी नीचे आई और रानी से कहा कि एक व्यक्ति है जो साधु जैसा नजर आता है। रानी ने कहा कि जल्दी से बुला ला। बांदी महल से बाहर गई तथा प्रार्थना की कि साहेब आपको हमारी रानी ने याद किया है। करूणामय साहेब ने कहा कि रानी ने मुझे क्यों याद किया है, मेरा और रानी का क्या सम्बन्ध ? नौकरानी ने सारी बात बताई।
करूणामय (कबीर) साहेब ने कहा कि रानी को आवश्यकता पड़े तो यहाँ आ जाए, मैं यहाँ खड़ा हूँ। तू बांदी और वह रानी। मैं वहाँ जाऊँ और यदि वह कह दे कि तुझे किसने बुलाया था या उसका राजा ही कुछ कह दे बेटी संतों का अनादर बहुत पापदायक होता है। बांदी फिर वापिस आई और रानी से सब वार्ता कह सुनाई। तब रानी ने कहा कि बांदी मेरा हाथ पकड़ और चल। जाते ही रानी ने दण्डवत् प्रणाम करके प्रार्थना की कि हे परवरदिगार ! चाहती तो ये ��ूँ कि आपको कंधे पर बैठा लूं। करूणामय साहेब ने कहा बेटी! मैं यही देखना चाहता था कि तेरे में कोई श्रद्धा भी है या वैसे ही भूखी मर रही है। रानी ने अपने हाथों खाना बनाया। करूणामय रूप में आए कविर्देव ने कहा कि मैं खाना नहीं खाता। मेरा शरीर खाना खाने का नहीं है। तो रानी ने कहा कि मैं भी खाना नहीं खाऊँगी। करूणामय साहेब जी ने कहा कि ठीक है बेटी लाओ खाना खाते हैं, क्योंकि समर्थ उसी को कहते हैं जो, जो चाहे, सो करे। करूणामय साहेब ने खाना खा लिया, फिर रानी से पूछा कि जो यह तू साधना कर रही है यह तेरे को किसने बताई है? रानी ने कहा कि मेरे गुरुदेव ने आदेश दिया है? कबीर साहेब ने पूछा क्या आदेश दिया है तेरे गुरुदेव ने? इन्द्रमती ने कहा कि विष्णु-महेश की पूजा, एकादशी का व्रत, तीर्थ भ्रमण, देवी पूजा, श्राद्ध निकालना, मन्दिर में जाना, संतों की सेवा करना। करूणामय (कबीर) साहेब ने कहा कि जो साधना तेरे गुरुदेव ने दी है तेरे को जन्म और मृत्यु तथा स्वर्ग-नरक व चौरासी लाख योनियों के कष्ट से मुक्ति प्रदान नहीं करा सकती। रानी ने कहा कि महाराज जी जितने भी संत हैं, अपनी-अपनी प्रभुता आप ही बनाने आते हैं। मेरे गुरुदेव के बारे में कुछ नहीं कहोगे। मैं चाहे मुक्त होऊँ या न होऊँ।
करूणामय (कबीर) साहेब ने सोचा कि इस भोले जीव को कैसे समझाएँ? इन्होंने जो पूंछ पकड़ ली उसको छोड़ नहीं सकते, मर सकते हैं। करूणामय साहेब ने कहा कि बेटी वैसे तो तेरी इच्छा है, मैं निंदा नहीं कर रहा। क्या मैंने आपके गुरुदेव को गाली दी है या कोई बुरा कहा है? मैं तो भक्तिमार्ग बता रहा हूँ कि यह भक्ति शास्त्र विरूद्ध है। तुझे पार नहीं होने देगी और न ही तेरा कोई आने वाला कर्म दण्ड कटेगा और सुन ले आज से तीसरे दिन तेरी मृत्यु हो जाएगी। न तेरा गुरु बचा सकेगा और न तेरी यह नकली साधना बचा सकेगी। (जब मरने की बारी आती है फिर जीव को डर लगता है। वैसे तो नहीं मानता) रानी ने सोचा कि संत झूठ नहीं बोलते। कहीं ऐसा न हो कि मैं तीसरे दिन ही मर जाऊँ। इस डर से करूणामय साहेब से पूछा कि साहेब क्या मेरी जान बच सकती है? कबीर साहेब (करूणामय) ने कहा कि बच सकती है। अगर तू मेरे से उपदेश लेगी, मेरी शिष्या बनेगी, पिछली पूजाएँ त्यागेगी, तब तेरी जान बचेगी। इन्द्रमती ने कहा मैंने सुना है कि गुरुदेव नहीं बदलना चाहिए, पाप लगता है।
कबीर साहेब (करूणामय) ने कहा कि नहीं पुत्री यह भी तेरा भ्रम है। एक वैद्य (डाक्टर) से औषधि न लगे तो क्या दूसरे से नहीं लेते? एक पाँचवीं कक्षा का अध्यापक होता है। फिर एक उच्च कक्षा का अध्यापक होता है। बेटी अगली कक्षा में जाना होगा। क्या सारी उम्र पाँचवीं कक्षा में ही लगी रहेगी? इसको छोड़ना पड़ेगा। तू अब आगे की पढ़ाई पढ़, मैं पढ़ाने आया हूँ। वैसे तो नहीं मानती परन्तु मृत्यु दिखने लगी कि संत कह रहा है तो कहीं बात न बिगड़ जाए। ऐसा विचार करके इन्द्रमती ने कहा कि जैसे आप कहोगे मैं वैसे ही करूँगी। करूणामय (कबीर) साहेब ने उपदेश दिया। कहा कि तीसरे दिन मेरे रूप में काल आयेगा, तू उससे बोलना मत। जो मैंने नाम दिया है दो मिनट तक इसका जाप करना। दो मिनट के बाद उसको देखना है। उसके बाद सत्कार करना है। वैसे तो गुरुदेव आए तो अति शीघ्र चरणों में गिर जाना चाहिए। ये मेरा केवल इस बार आदेश है। रानी ने कहा ठीक है जी। रानी को तो चिंता बनी हुई थी। श्रद्धा से जाप कर रही थी। (कबीर मेरे रूप में काल आयेगा, तू उससे बोलना मत। जो मैंने नाम दिया है दो मिनट तक इसका जाप करना। दो मिनट के बाद उसको देखना है। उसके बाद सत्कार करना है। वैसे तो गुरुदेव आए तो अति शीघ्र चरणों में गिर जाना चाहिए। ये मेरा केवल इस बार आदेश है। रानी ने कहा ठीक है जी। रानी को तो चिंता बनी हुई थी। श्रद्धा से जाप कर रही थी। (कबीर साहेब) करूणामय साहेब का रूप बना कर गुरुदेव रूप में काल आया, आवाज लगाई इन्द्रमती, इन्द्रमती। उसको तो पहले ही डर था, स्मरण करती रही। काल की तरफ नहीं देखा। दो मिनट के बाद जब देखा तो काल का स्वरूप बदल गया। काल का ज्यों का त्यों चेहरा दिखाई देने लगा। करूणामय साहेब का स्वरूप नहीं रहा। जब काल ने देखा कि तेरा तो स्वरूप बदल गया। वह जान गया कि इसके पास कोई शक्ति युक्त मंत्र है। यह कहकर चला गया कि तुझे फिर देखूँगा। अब तो बच गई। रानी बहुत खुश हुई, फूली नहीं समाई। कभी अपनी बांदियों को कहने लगी कि मेरी मृत्यु होनी थी, मेरे गुरुदेव ने मुझे बचा दिया। राजा के पास गई तथा कहा कि आज मेरी मृत्यु होनी थी, मेरे गुरुदेव ने रक्षा कर दी। मुझे लेने के लिए काल आया था। राजा ने कहा कि तू ऐसे ही ड्रामें करती रहती है, काल आता तो क्या तुझे छोड़ जाता? ये संत वैसे बहका देते हैं। अब इस बात को वह कैसे माने? खुशी-खुशी में रानी लेट गई। कुछ देर के बाद सर्प बनकर काल फिर आया और रानी को डस लिया। ज्यों ही सर्प ने डसा रानी को पता चल गया। रानी जोर से चिल्लाई। मुझे साँप ने डंस लिया। नौकर भागे। देखते ही देखते एक मोरी (पानी निकलने का छोटा छिद्र) में से वह सर्प घर से बाहर निकल गया। अपने गुरुदेव को पुकार कर रानी बेहोश हो गई।
करूणामय (कबीर) साहेब वहाँ प्रकट हो गए। लोगों को दिखाने के लिए मंत्र बोला और (वे तो बिना मंत्र भी जीवित कर सकते हैं, किसी जंत्र-मंत्र की आवश्यकता नहीं) इन्द्रमती को जीवित कर दिया। रानी ने बड़ा शुक्र मनाया कि हे बंदी छोड़ ! यदि आज आपकी शरण में नहीं होती तो मेरी मृत्यु हो जाती। साहेब ने कहा कि इन्द्रमती इस काल को मैं तेरे घर में घुसने भी नहीं देता और यह तेरे ऊपर यह हमला भी नहीं करता। परन्तु तुझे विश्वास नहीं होता। तू यह सोचती कि मेर�� ऊपर कोई आपत्ति नहीं आनी थी। गुरुजी ने मुझे बहका कर नाम दे दिया। इसलिए तेरे को थोड़ा-सा झटका दिखाया है, नहीं तो बेटी तेरे को विश्वास नहीं होता।
धर्मदास यहाँ घना अंधेरा, बिन परचय (शक्ति प्रदर्शन) जीव जम का चेरा ।।
302
हिन्दू साहेबान ! नहीं समझे गीता, वेद, पुराण
कबीर साहेब (करूणामय) ने कहा कि अब जब मैं चाहूँगा, तब तेरी मृत्यु होगी।
गरीबदास जी कहते हैं कि :-
गरीब, काल डरै करतार से, जय जय जय जगदीश। जौरा जौरी झाड़ती, पग रज डारे शीश ।।
यह काल, कबीर परमेश्वर से डरता है और यह मौत कबीर साहेब के जूते झाड़ती है अर्थात् नौकर तुल्य है। फिर उस धूल को अपने सिर पर लगाती है कि आप जिसको मारने का आदेश दोगे उसके पास जाऊँगी, नहीं मैं नहीं जाऊँगी।
गरीब, काल जो पीसै पीसना, जौरा है पनिहार। ये दो असल मजूर हैं, मेरे साहेब के दरबार ।।
यह काल जो यहाँ का 21 ब्रह्मण्ड का भगवान (ब्रह्म) है जो ब्रह्मा, विष्णु, महेश का पिता है। ये तो मेरे कबीर साहेब का आटा पीसता है अर्थात पक्का नौकर है और जौरा (मौत) मेरे कबीर साहेब का पानी भरती है अर्थात् एक विशेष नौकरानी है। यह दो असल मजूर मेरे साहेब के दरबार में हैं। कुछ दिनों के बाद करूणामय (कबीर जी) साहेब फिर आए। रानी इन्द्रमती को सतनाम प्रदान किया। फिर कुछ समय के उपरान्त करूणामय साहेब ने रानी इन्द्रमती की अति श्रद्धा देखकर सारनाम दिया। परम पद की उपलब्धि करवाई। परमेश्वर करूणामय रूप से रानी के घर दर्शन देने जाते रहते थे तो इन्द्रमती प्रार्थना किया करती थी कि मेरे पति राजा को समझाओ मालिक, यह भी मान जाये। आपके चरणों में आ जाये तो मेरा जीवन सफल हो जाये। चन्द्रविजय से कबीर साहेब ने प्रार्थना की कि चन्द्रविजय आप भी नाम लो, यह दो दिन का राज और ठाठ है। फिर चौरासी लाख योनियों में प्राणी चला जाएगा। चन्द्रविजय ने कहा कि भगवन मैं तो नाम लूं नहीं और आपकी शिष्या को मना करूँ नहीं, चाहे सारे खजाने को ही दान करो, चाहे किसी प्रकार का सत्संग करवाओ, मैं मना नहीं करूँगा। कबीर साहेब (करूणामय) ने पूछा आप नाम क्यों नहीं लोगे? चन्द्रविजय राजा ने कहा कि मैंने तो बड़े-बड़े राजाओं की पार्टियों में जाना पड़ता है। करूणामय (कबीर साहेब) ने कहा कि पार्टियों में जाने में नाम क्या बाधा करेगा? सभा में जाओ, वहाँ काजू खाओ, दूध पी लो, शरबत (जूस) पी लो, शराब मत प्रयोग करो। शराब पीना महापाप है। परन्तु राजा नहीं माना।
रानी की प्रार्थना पर करूणामय (कबीर) साहेब ने राजा को फिर समझाया कि नाम के बिना ये जीवन ऐसे ही व्यर्थ हो जायेगा। आप नाम ले लो। राजा ने फिर कहा कि गुरू जी मुझे नाम के लिए मत कहना। आपकी शिष्या को मैं मना नहीं करूँगा। चाहे कितना दान करे, कितना सत्संग करवाए। साहेब ने कहा कि बेटी इस दो दिन के झूठे सुख को देखकर इसकी बुद्धि भ्रष्ट हो चुकी है। तू प्रभु के चरणों में लगी रह। अपना आत्मकल्याण करवा। मृत्यु के उपरान्त कोई किसी का पति नहीं, कोई किसी की पत्नी नहीं। दो दिन का सम्बन्ध है। अपना कर्म बना बेटी। जब इन्द्रमती 80 वर्ष की वृद्धा हुई (कहाँ 40 साल की उम्र में मर जाना था)। जब शरीर भी हिलने लगा, तब करूणामय साहेब बोले अब बोल इन्द्रमती क्या चाहती है? चलना चाहती है सतलोक? इन्द्रमती ने कहा कि प्रभु तैयार हूँ, बिल्कुल तैयार हूँ दाता ! करूणामय साहेब ने कहा कि तेरी पोते या पोती या किसी अन्य सदस्य में कोई ममता तो नहीं है? रानी ने कहा बिल्कुल नहीं साहेब। आपने ज्ञान ही ऐसा निर्मल दे दिया। इस गंदे लोक की क्या इच्छा करूँ? कबीर साहेब (करूणामय) जी ने कहा कि चल बेटी। रानी प्राण त्याग गई।
परमेश्वर कबीर जी (करूणामय) रानी इन्द्रमती की आत्मा को ऊपर ले गए। इसी ब्रह्मण्ड में एक मानसरोवर है। उस मान सरोवर में इस आत्मा को स्नान कराना होता है। इन्द्रमती को वहाँ पर कुछ समय तक रखा। करूणामय रूप में कबीर परमेश्वर जी ने रानी से पूछा की तेरी कुछ इच्छा तो नहीं यदि इच्छा रही तो दुबारा जन्म लेना पड़ेगा। यदि मन में सन्तान व सम्पत्ति या पति, पत्नी आदि की इच्छा थोड़ी सी भी रह गई तो आत्मा सतलोक नहीं जा सकती। इन्द्रमती ने कहा साहेब आप तो अंतर्यामी हो, कोई इच्छा नहीं है। आपके चरणों की इच्छा है। लेकिन एक मन में शंका बनी हुई है कि मेरा जो पति था, उसने मुझे किसी भी धार्मिक कर्म के लिए कभी मना नहीं किया। नहीं तो आजकल के पति अपनी पत्नियों को बाधा कर देते हैं। यदि वह मुझे मना कर देता तो मैं आपके चरणों में नहीं लग पाती। मेरा कल्याण नहीं होता। उसका इस शुभ कर्म में सहयोग का कुछ लाभ मिलता हो तो कभी उस पर भी दया करना दाता। करूणामय जी ने देखा कि यह नादान इसके पीछे फिर अटक गई। साहेब बोले ठीक है बेटी, अभी तू दो चार वर्ष यहाँ रह।
अब दो वर्ष के बाद राजा भी मरने लगा। क्योंकि नाम ले नहीं रखा था। यम के दूत आए। राजा चौक में चक्कर खाकर गिर गया। यम के दूतों ने उसकी गर्दन को दबाया। राजा की टट्टी और पेशाब निकल गया। करूणामय दाता यदि उसका भक्ति में सहयोग का कोई फल बनता हो तो दया कर लो। रानी को फिर भी थोड़ी-सी ममता बनी थी। परमेश्वर कबीर (करूणामय) ने सोचा की यह फिर काल जाल में फँसेगी। यह सोचकर मानसरोवर से वहाँ गए जहाँ राजा चन्द्रविजय अपने महल में अचेत पड़ा था। यमदूत उसके प्राण निकाल रहे थे। कबीर परमेश्वर जी के आते ही यमदूत ऐसे आकाश
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हिन्दू साहेबान ! नहीं समझे गीता, वेद, पुराण में उड़ गए जैसे मुर्दे से गिद्ध उड़ जाते हैं। चन्द्रविजय होश में आ गया। सामने करूणामय रूप में परमेश्वर कबीर जी खड़े थे। केवल चन्द्रविजय को दिखाई दे रहे थे, किसी अन्य को दिखाई नहीं दे रहे थे। चन्द्रविजय चरणों में गिर कर याचना करने लगा मुझे क्षमा कर दो दाता, मेरी जान बचाओ। क्योंकि उसने देखा कि तेरी जान जाने वाली है। (जब इस जीव की आँख खुलती है कि अब तो बात बिगड़ गई) राजा चन्द्र विजय गिड़गिड़ाता हुआ बोला मुझे क्षमा कर दो दाता, मेरी जान बचा लो मालिक। कबीर परमेश्वर ने कहा राजा आज भी वही बात है, उस दिन भी वही बात थी, नाम लेना होगा। राजा ने कहा मैं नाम ले लूँगा जी, अभी ले लूँगा नाम। कबीर परमेश्वर ने नाम उपदेश दिया तथा कहा कि अब मैं तुझे दो वर्ष की आयु दूँगा, यदि इसमें एक स्वांस भी खाली चला गया तो फिर कर्मदण्ड रह जाएगा।
कबीर, जीवन तो थोड़ा भला, जै सत सुमरण हो। लाख वर्ष का जीवना, लेखे धरे ना को।।
शुभ कर्म में सहयोग दिया हुआ पिछला कर्म और साथ में श्रद्धा से दो वर्ष के स्मरण से तथा तीनों नाम प्रदान करके कबीर साहेब चन्द्रविजय को भी पार कर ले गये। बोलो सतगुरु देव की जय "जय बन्दी छोड़।"
प्रश्न 56 :- धर्मदास जी ने कहा हे कबीर परमेश्वर ! हमारे को तो ब्राह्मणों (विद्वानों) ने यही बताया था कि पाण्डवों की अश्वमेघ यज्ञ को श्री कृष्ण भक्त सुदर्शन सुपच ने सफल की थी तथा भगवान कृष्ण जी ने गीता में कहा है कि अर्जुन ! युद्ध कर तुझे कोई पाप नहीं लगेगा। ये सर्व योद्धा मेरे द्वारा पहले से मार दिए गए हैं। तू निमित्त मात्र बन जा। यदि तू युद्ध में मारा गया तो स्वर्ग जाएगा, यदि युद्ध में जीत गया तो पृथ्वी के राज्य का सुख भोगेगा। उत्तर :- कबीर परमेश्वर ने कहा धर्मदास ! सुदर्शन सुपच श्री कृष्ण भक्त नहीं था वह पूर्ण ब्रह्म का उपासक था। सुन पाण्डवों के यज्ञ के सम्पूर्ण होने की कथा। कृप्या निम्न पढ़ें पाठक जन परमेश्वर कबीर जी द्वारा बताया पाण्डव यज्ञ का प्रकरण जो धर्मदास जी ने स्वसम वेद के पद्य भाग में लिखा है। (लेखक के शब्दों में निम्न :-)
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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Indira Ekadashi Vrat 2024: इंदिरा एकादशी की दिन जरूर पढ़ें ये कथाIndira Ekadashi Vrat 2024: महिष्मती पुर का इन्द्रसेन नामक राजा धार्मिक विचारों वाला राजा था। साथ ही, वह भगवान विष्णु के भक्त थे। एक बार नारद उनके राज्य में आए और राजा ने अत्यंत प्रसन्न होकर
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Putrada Ekadashi Vrat Katha; पुत्रदा एकादशी के दिन यह कथा सुनने से होती है बच्चे की प्राप्ति, हर मनोकामना होती है पूरी
Putrada Ekadashi Vrat Katha in Hindi: पुत्रदा एकादशी श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कहते हैं। इस दिन व्रत रखने का महत्व पद्म पुराण में बहुत ही खास माना गया है। मान्यता है कि जो दंपती भगवान के प्रति ��च्ची श्रृद्धा के साथ ��ह व्रत करते हैं और विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा करते हैं उनके घर में शीघ्र की बच्चों की किलकारियां गूंजने लगती है और साथ ही उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।…
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Sharvana Putrda Ekadashi Vrat Katha
श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (विस्तृत) (Sharvana Putrda Ekadashi Vrat Katha)
श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत विशेषकर उन दंपत्तियों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है जो संतान की कामना करते हैं। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और उनकी कृपा से संतान प्राप्ति की जाती है। इस व्रत की विस्तृत कथा इस प्रकार है:
प्राचीन काल में महिष्मती नगरी नामक एक सुंदर नगर था, जहां महिजित नामक राजा राज्य करता था। राजा…
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*🪷कामिका एकादशी महत्व एवं पूजा विधि और कामिका एकादशी व्रत कथा🪷*
सनातन धर्म में सावन माह कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को कामिका एकादशी मनाई जाती है। इस साल 31 जुलाई बुधवार को कामिका एकादशी है। यह विशेष दिन श्रीहरि विष्णुजी को समर्पित माना जाता है।
इस दिन भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा करने से अकाल मृत्यु का भय नहीं होता है और व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलता है। यह चातुर्मास महीने की पहली एकादशी होती है।
कहा जाता है कि कामिका एकादशी का व्रत रखने से साधक पर विष्णुजी की कृपा बनी रहती है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
पूजा का शुभ मुहूर्त : इस दिन सुबह 05 बजकर 32 मिनट से लेकर सुबह 07 बजकर 32 मिनट तक पूजा का शुभ मुहूर्त बन रहा है। इस बार सर्वार्थ सिद्धि योग में कामिका एकादशी मनाई जाएगी।
व्रत के दिन स्नानादि के बाद साफ और स्वच्छ कपड़े धारण करें।
विष्णुजी का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें। इसके बाद छोटी चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाएं। चौकी पर विष्णुजी और मां लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें। अब मां लक्ष्मी और विष्णुजी के समक्ष दीपक जलाएं। उन्हें फल, फूल, धूप, दीप और नेवैद्य अर्पित करें। विष्णुजी की आरती उतारें और उनके मंत्रों का जाप करें। तत्पश्चात कामिका एकादशी की व्रत कथा पढ़ें। अंत में सभी देवी-देवताओं की आरती उतारें और पूजा समाप्त करें।
कामिका एकादशी का व्रत हरि विष्णु जी को समर्पित है। कामिका एकादशी का महत्व इसलिए भी अधिक रहता है क्योंकि, यह सावन मास में आती है। कामिका एकादशी सावन मास में आने वाली पहली एकादशी है। इसलिए कामिका एकादशी के दिन पद्म पुराण में बताए गए उपाय अपनाने से व्यक्ति को भगवान विष्णु के साथ भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। साथ ही यह उपाय मोक्ष दिलाने वाले और धन संपत्ति लाभ दिलाने वाले हैं। कामिका एकादशी के यह उपाय मोक्ष दिलाने के साथ ही सुख समृद्धि भी बढ़ाएंगे।
*सावन में कामिका एकादशी पर करें ये 6 उपाय, धन संपत्ति से होंगे मालामाल*
पद्मपुराण के अनुसार, कामिका एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा तुलसी की मंजरी से करें ऐसे करने से जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है। यमलोक नहीं जाना पड़ता है।
कामिका एकादशी पर पूजा के समय तिल के तेल से या घी का दीपक भगवान विष्णु को दिखाएं। पद्मपुराण के अनुसार, इस उपाय से पितृ लोक में पितृ संतुष्ट होते हैं और पितरों की कृपा प्राप्त होती है।
*मोक्ष के लिए करें ये उपाय*
इसके अलावा कामिका एकादशी पर आप गौसेवा करें गौमाताओं को भोजन कराएं एवं श्री कृष्ण की लीलाओं का पाठ करें। इसके अलावा विष्णु सहस्त्रनाम, विष्णु चालीसा का पाठ करें ऐसा करने से आपको मोक्ष मिलती है।
एकादशी के दिन तुलसी पीढ़ा को मिट्टी से लेपें। साथ ही तुलसी माता को दीपक दिखाना चाहिए और तुलसी पूजन करना चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य पाप मुक्त होता है और उन्हें सुखों समृद्धि की प्राप्ति होती है।
*कामिका एकादशी पर धन संपत्ति के लिए करें ये उपाय*
एकादशी के दिन गौमाताओं के निमित्त कुछ न कुछ दान अवश्य करें गौसेवा करने से धन संपत्ति में वृद्धि होती है। यदि किसी के जीवन में आर्थिक दिक्कतें चल रही हैं तो वह भी समाप्त हो जाती हैं। इसके अतिरिक्त घर मे हल्दी मिलाकर जल का छिड़काव करें और स्वास्तिक बनाएं ऐसे करने से घर मे देवी लक्ष्मी का वास होता है।
*कामिका एकादशी पर आरोग्य प्राप्ति के लिए उपाय*
कामिका एकादशी सावन की पहली एकादशी होती है। भगवान विष्णु के पूजन के साथ ही भगवान शिव का पंचामृत से अभिषेक करना चाहिए ऐसे करने से आरोग्य और धन वैभव की प्राप्ति होती है।
*🪷 कामिका एकादशी व्रत कथा 🪷*
एक गाँव में एक वीर क्षत्रिय रहता था। एक दिन किसी कारण वश उसकी ब्राह्मण से हाथापाई हो गई और ब्राह्मण की मृत्य हो गई। अपने हाथों मरे गये ब्राह्मण की क्रिया उस क्षत्रिय ने करनी चाही। परन्तु पंडितों ने उसे क्रिया में शामिल होने से मना कर दिया। ब्राह्मणों ने बताया कि तुम पर ब्रह्म-हत्या का दोष है। पहले प्रायश्चित कर इस पाप से मुक्त हो तब हम तुम्हारे घर भोजन करेंगे।
इस पर क्षत्रिय ने पूछा कि इस पाप से मुक्त होने के क्या उपाय है। तब ब्राह्मणों ने बताया कि श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को भक्तिभाव से भगवान श्रीधर का व्रत एवं पूजन कर ब्राह्मणों को भोजन कराके सदश्रिणा के साथ आशीर्वाद प्राप्त करने से इस पाप से मुक्ति मिलेगी। पंडितों के बताये हुए तरीके पर व्रत कराने वाली रात में भगवान श्रीधर ने क्षत्रिय को दर्शन देकर कहा कि तुम्हें ब्रह्म-हत्या के पाप से मुक्ति मिल गई है।
इस व्रत के करने से ब्रह्म-हत्या आदि के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और इहलोक में सुख भोगकर प्राणी अन्त में विष्णुलोक को जाते हैं। इस कामिका एकादशी के माहात्म्य के श्रवण व पठन से मनुष्य स्वर्गलोक को प्राप्त करते हैं।
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Devshayani Ekadashi Kab Hai 2024 - Bhakti Aanand
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कृष्ण पक्ष योगिनी एकादशी की पावन व्रत कथा
एकादशी का पावन व्रत हमारे धार्मिक एवं आध्यात्मिक जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसके प्रत्येक एकादशी व्रत कथा में एक विशेष रूप से महत्वपूर्ण कार्यक्रम होता है। इस योगिनी एकादशी को व्रती अपने दिल से साधना करते हैं और भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करते हैं। यह व्रत योगिनी एकादशी के शुभ अवसर पर किया जाता है, जो भक्तों को पुण्य प्राप्ति और उनकी इच्छाओं की पूर्ति में मदद करता है।
Read more - सर्वपापों से मुक्ति तथा चैतन्यता की जागृति हेतु करें योगिनी एकादशी व्रत
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🐚 पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा - Pausha Putrada Ekadashi Vrat Katha
पवित्रा एकादशी | वैकुण्ठ एकादशी | पौष पुत्रदा एकादशी का महत्त्व:
धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भग��ान! आपने पौष कृष्ण एकादशी अर्थात सफला एकादशी का माहात्म्य बताकर बड़ी कृपा की। अब आप कृपा करके मुझे पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के विषय में भी बतलाइये। इस एकादशी का क्या नाम है तथा इसके व्रत का क्या विधान है? इसकी विधि क्या है? इसका व्रत करने से किस फल की प्राप्ति होती है? और उसमें कौन-से देवता का पूजन किया जाता है? कृपया यह सब विधानपूर्वक कहिए..
..पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा को पूरा पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें 👇🏻
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षटतिला एकादशी- इस व्रत से दूर होती है दुख-दरिद्रता
माघ महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी के रूप में मनाया जाता है। प्रत्येक एकादशी व्रत का अपना एक विशेष महत्व होता है और इस दिन व्रत करने के साथ दान-पुण्य करना बेहद लाभकारी माना गया है। हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत बहुत ही खास माना जाता है। हर महीने 2 एकादशी और एक साल में कुल 24 एकादशी आती हैं। इस दिन भगवान विष्णु के पूजन का विधान है। आइये जानते हैं क्या है षटतिला एकादशी और क्या है इसका महत्व ?
षटतिला एकादशी कब है ?
इस साल षटतिला एकादशी 6 फरवरी 2024, मंगलवार को मनाई जाएगी। षटतिला एकादशी के दिन पूजन में व्रत कथा का पाठ करना चाहिए। पूजन के अंत में भगवान विष्णु की आरती कर पारण के समय तिल का दान करें। मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ति होती है। इस व्रत को रखने से मनुष्यों को अपने बुरे पापों से मुक्ति मिलती है। शास्त्रों में यह भी बताया है कि केवल षटतिला एकादशी का व्रत रखने से वर्षों की तपस्या का फल प्राप्त होता है।
षटतिला एकादशी का महत्व
षटतिला एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है। महंत श्री पारस भाई जी के अनुसार षटतिला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की श्रद्धा पूर्वक पूजा करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। जीवन में सुख, शांति, समृद्धि और वैभव बना रहता है। षटतिला एकादशी का व्रत रखने से वैवाहिक जीवन सुखमय और खुशहाल बनता है। इसके अलावा इस व्रत की कथा सुनने एवं पढ़ने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि षटतिला एकादशी के दिन अन्न दान करने का बहुत महत्व माना जाता है। इस दिन ब्राह्मण को एक भरा हुआ घड़ा, छतरी, जूतों का जोड़ा, काले तिल और उससे बने व्यंजन और वस्त्र आदि का दान करना चाहिए।
क्यों कहा जाता है इसे षटतिला एकादशी ?
षटतिला एकादशी पर तिल का विशेष महत्व है। इस व्रत में तिल का छः तरीके से इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए इसे षटतिला एकादशी कहा जाता है। महंत श्री पारस भाई जी के अनुसार षटतिला एकादशी का व्रत करने से स्वर्ण-दान से मिलने वाले पुण्य के समान ही पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन तिल का अत्यंत महत्व है। इस दिन तिल के जल से स्नान करते हैं, तिल का उबटन लगाया जाता है, तिल से हवन किया जाता है। इसके अलावा तिल का भोजन में इस्तेमाल करते हैं, तिल से तर्पण करते हैं और तिल का दान करते हैं। महंत श्री पारस जी ने कहा है कि एकादशी तिथि के दिन पूजा-पाठ करने से भक्तों क�� विशेष लाभ मिलता है और उन्हें सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है।
एकादशी पूजा विधि
एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें। इसके उपरांत मंदिर की सफाई कर मंदिर में गंगाजल छिड़कें। चौकी पर पूजा स्थल में पीला वस्त्र बिछाएं और इस पर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें। भगवान विष्णु को धूप, दीप अर्पित करें।
भगवान विष्णु के सामने तुलसी दल जरूर चढ़ाएं। साथ ही कुमकुम, पीला फूल, पीला चंदन और भोग में पीले रंग की मिठाई और फल के साथ तिल-गुड़ के लड्डू चढ़ाएं। व्रत के दौरान क्रोध, ईर्ष्या आदि जैसे विकारों का त्याग करके फलाहार का सेवन करना चाहिए। साथ ही रात्रि जागरण भी करना चाहिए।
अंत में भगवान विष्णु की आरती उतारें। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना भी इस दिन शुभ माना जाता है। अंत में पूजा समाप्त करने के पश्चात प्रसाद का वितरण करें।
तिल एवं गुड़ के दान का महत्व
महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि जो व्यक्ति षटतिला एकादशी के दिन तिल एवं गुड़ का दान करते हैं, उन्हें मोक्ष मिलता है। ऐसी भी मान्यता है कि षटतिला एकादशी के दिन पितरों का तिल-तर्पण करने से उन्हें सद्गति की प्राप्ति होती है। साथ ही ये भी माना जाता है कि षटतिला एकादशी के दिन व्यक्ति जितने तिल का दान करता है, उतने हजार वर्ष तक बैकुंठलोक में सुख पूर्वक रहता है। महंत श्री पारस भाई जी ने आगे बताया कि जो भी इस दिन तिल का छह तरह से उपयोग करता है उसे कभी धन की कमी नहीं होती और आर्थिक तंगी से छुटकारा मिलता है।
षटतिला एकादशी की व्रत-कथा
प्राचीनकाल में एक ब्राह्मण की विधवा पत्नी थी। वह भगवान विष्णुजी की अनन्य भक्त थी। वह उनकी प्रतिदिन पूजा करती थी। उसने विष्णुजी का आशीर्वाद पाने के लिए एक महीने तक उपवास किया। ऐसा करने पर उसका तन-मन शुद्ध हो गया लेकिन उसने ब्राह्मण को भोजन नहीं खिलाया, न ही कभी देवताओं या ब्राह्मणों के निमित्त अन्न या धन का दान किया। इसलिए ब्राह्मण-भोज का महत्व बताने के लिए षटतिला एकादशी को ब्राह्मण रूप में विष्णुजी महिला के पास गए और उससे भिक्षा मांगी। उसने ब्राह्मण को भोजन नहीं कराया और दान में एक मिट्टी का ढेला दिया।
जब उसकी मृत्यु हुई तो वह बैकुंठधाम तो गई लेकिन वहां उसे एक खाली झोपड़ी मिली। यह सब देखकर उसने सोचा कि वह तो श्रद्धा भाव से विष्णुजी की पूजा करती थी लेकिन उसे खाली झोपड़ी क्यों मिली। इसके बाद विष्णुजी महिला के पास पहुंचे और उसको कारण बताया कि उसने ब्राह्मण को भोजन नहीं कराया था। तब उस दुखी महिला ने भगवान विष्णुजी से इसका हल पूछा। उसकी बात सुनकर विष्णुजी ने उसे षटतिला एकादशी व्रत करने के बारे में बताया। महिला ने विष्णुजी की बात सुनकर श्रद्धा भाव और नियम से व्रत किया। उसकी पूजा से विष्णुजी खुश हुए और उन्होंने कहा कि षटतिला एकादशी के दिन जो भी व्यक्ति इस व्रत को करेगा और ब्राह्मणों को दान देगा तब उसे मोक्ष की प्राप्ति अवश्य होगी एवं जीवन में सुख-शांति का वास होगा। इस दिन तिल का दान करने से रोग, दोष और भय से छुटकारा मिलता है। साथ ही इस दिन तिल का दान करने से अनाज की कभी कमी नहीं होती है और इस व्रत के प्रभाव से दुख-दरिद्रता दूर होती है।
ॐ श्री विष्णवे नम: … “पारस परिवार” की ओर से षटतिला एकादशी की ढेर सारी शुभकामनाएं !!!!
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अविश्वसनीय "जया एकादशी व्रत कथा: 2024" (मोक्ष प्राप्ति)
जया एकादशी व्रत कथा एक प्राचीन और महत्वपूर्ण कथा है जो भक्ति, उपासना, और भगवान की कृपा के प्रति विश्वास को प्रकट करती है। इस कथा के माध्यम से हमें यह सिखने को मिलता है कि भगवान की भक्ति और सात्विक आचरण से कैसे व्यक्ति अपने कष्टों से मुक्ति प्राप्त कर सकता है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार, इंद्र लोक में एक महान सभा थी, जिसमें सभी देवता और संत उपस्थित थे। वहां एक दिव्य गायन और नृत्य कार्यक्रम चल रहा था जिसमें गंधर्व माल्यवान नामक गायक भी शामिल थे। माल्यवान के सुरीले स्वर और दिव्य नृत्य से सभी को मोहित कर लिया गया। इसके बाद माल्यवान और गंधर्व कन्या पुष्यवती के बीच प्रेम उत्पन्न हुआ, जिससे उनका ध्यान विचलित हो गया और उनका नृत्य विघ्नित हुआ। इसके परिणामस्वरूप, इंद्र ने उन्हें स्वर्ग से निकाल दिया और प्रेत योनि में भेज दिया।
अविश्वसनीय "जया एकादशी व्रत कथा: 2024" (मोक्ष प्राप्ति)
प्रेत योनि में उन्होंने अनेक कष्ट सहा, लेकिन उन्होंने जब जया एकादशी का व्रत निषेध किया और भगवान विष्णु की आराधना की, तब भगवान ने उनकी भक्ति को देखकर उन्हें मोक्ष प्रदान किया। उन्हें फिर से दिव्य शरीर प्राप्त हुआ और वे स्वर्ग की ओर चले गए। इस कथा से यह सिखने को मिलता है कि एकादशी व्रत का पालन करने से हम भगवान की कृपा प्राप्त कर सकते हैं और अपने पापों से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं।
अविश्वसनीय "जया एकादशी व्रत कथा: 2024" (मोक्ष प्राप्ति)
जया एकादशी व्रत का पालन करने से व्रती को आध्यात्मिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। यह व्रत उनकी भक्ति को बढ़ाता है और उन्हें धार्मिक संज्ञान, शांति, और समृद्धि का अनुभव कराता है। इसके माध्यम से हम यह समझते हैं कि ध्यान, साधना, और धार्मिक नियमों का पालन हमें जीवन में सही दिशा देता है और हमें उच्चतम आध्यात्मिक स्थिति की ओर ले जाता है।
अविश्वसनीय "जया एकादशी व्रत कथा: 2024" (मोक्ष प्राप्ति)
इस प्रकार, जया एकादशी व्रत कथा हमें धार्मिक नैतिकता और भक्ति के महत्वपूर्ण सिद्धांतों को समझने में सहायक होती है। यह व्रत हमें अपने जीवन को धार्मिकता, संतुलन, और समृद्धि की ओर ले जाने में मदद करता है और हमें दिव्य अनुभव की प्राप्ति का मार्ग दिखलाता है।
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निर्जला एकादशी का व्रत कैसे रखें? विस्तृत जानकारी
निर्जला एकादशी हिन्दू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण एकादशियों में से एक मानी जाती है। यह ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इस दिन, श्रद्धालु 24 घंटे का व्रत रखते हैं, जिसमें भोजन और जल दोनों का त्याग किया जाता है।
निर्जला एकादशी एक महत्वपूर्ण हिन्दू त्यौहार है जो आध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यह व्रत पापों का नाश करने, मोक्ष प्राप्त करने और मन की शांति पाने का अवसर प्रदान करता है। 'निर्जला' का अर्थ है बिना जल के, इस दिन व्रतधारी अन्न, जल और फल का सेवन नहीं करते।
पौराणिक मान्यता के अनुसार, भीमसेन ने इस व्रत को रखा था क्योंकि वे अन्य एकादशियों का पालन नहीं कर पाते थे। निर्जला एकादशी का व्रत करने से साल भर की सभी एकादशियों का फल प्राप्त होता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है और दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है। व्रतधारी ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर संकल्प लेते हैं और दिनभर व्रत का पालन करते हैं। शाम को विष्णु भगवान की आरती और कथा सुनने के बाद व्रत का पारण किया जाता है।
निर्जला एकादशी का व्रत शारीरिक और मानसिक शुद्धि के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है और इसे करने से समस्त पापों से मुक्ति मिलती है।
क्यों मनाई जाती है निर्जला एकादशी?
इस व्रत के पीछे कई धार्मिक और पौराणिक कथाएं हैं।
पौराणिक कथा:
एक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को शयनावस्था ग्रहण की थी।
तब से इस दिन को मोक्ष प्राप्ति के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।
एक अन्य कथा में, भीष्म पितामह ने निर्जला एकादशी का व्रत मृत्यु शय्या पर रहते हुए रखा था।
धार्मिक महत्व:
निर्जला एकादशी को सभी पापों का नाश करने वाला व्रत माना जाता है।
इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है।
दान-पुण्य करने से भी इस दिन पुण्य प्राप्त होता है।
निर्जला एकादशी का महत्व:
पापों का नाश:
निर्जला एकादशी के व्रत से सभी पापों का नाश होता है।
इस दिन गंगा स्नान और दान-पुण्य करने से पुण्य प्राप्त होता ��ै।
मोक्ष प्राप्ति:
निर्जला एकादशी का व्रत मोक्ष प्राप्ति का द्वार खोलता है।
इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
मन की शांति:
निर्जला एकादशी का व्रत रखने से मन शांत होता है और एकाग्रता बढ़ती है।
यह व्रत आत्म-नियंत्रण और संयम की शक्ति प्रदान करता है।
निर्जला एकादशी व्रत विधि:
व्रत की शुरुआत:
दसमी के दिन सूर्यास्त से पहले स्नान करके व्रत का संकल्प लिया जाता है।
व्रत का पालन:
एकादशी के दिन सूर्योदय से पारण तक भोजन और जल ग्रहण नहीं किया जाता है।
दिनभर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है।
व्रत का पारण:
द्वादशी के दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है।
पारण में फल, दूध, दही आदि का सेवन किया जाता है।
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