#एकादशी की कथा
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करवा चौथ पाखंड पूजा है!
संत गरीबदास जी कृत अमरग्रन्थ के अध्याय पारख के अंग की वाणी नं. 1052 व 1054 में लिखा है:
करैं एकादशी संजम सोई, करवा चौथ गदहरी होई।
आठैं सातैं करैं कंदूरी, सो तो जन्म धारें सूरी।।
कहे जो करूवा चौथि कहानी, तास गदहरी निश्चय जानी।
अर्थात जो करवा चौथ का व्रत रखते हैं या उसकी कथा सुनाते हैं वे गधा बनते हैं।
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#करवाचौथ_है_पाखंड_पूजा
संत गरीबदास जी कृत अमरग्रन्थ के अध्याय पारख के अंग की वाणी नं. 1052 व 1054 में लिखा है:
करैं एकादशी संजम सोई, करवा चौथ गदहरी होई।
आठैं सातैं करैं कंदूरी, सो तो जन्म धारें सूरी।।
कहे जो करूवा चौथि कहानी, तास गदहरी निश्चय जानी।
अर्थात जो करवा चौथ का व्रत रखते हैं या उसकी कथा सुनाते हैं वे गधा बनते हैं।
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God Kabir Increases Age
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#करवाचौथ_है_पाखंड_पूजा
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करवा चौथ पाखंड पूजा है!
संत गरीबदास जी कृत अमरग्रन्थ के अध्याय पारख के अंग की वाणी नं. 1052 व 1054 में लिखा है:
करैं एकादशी संजम सोई, करवा चौथ गदहरी होई।
आठैं सातैं करैं कंदूरी, सो तो जन्म धारें सूरी।।
कहे जो करूवा चौथि कहानी, तास गदहरी निश्चय जानी।
अर्थात जो करवा चौथ का व्रत रखते हैं या उसकी कथा सुनाते हैं वे गधा बनते हैं।
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करवा चौथ पाखंड पूजा है!
संत गरीबदास जी कृत अमरग्रन्थ के अध्याय पारख के अंग की वाणी नं. 1052 व 1054 में लिखा है:
करैं एकादशी संजम सोई, करवा चौथ गदहरी होई।
आठैं सातैं करैं कंदूरी, सो तो जन्म धारें सूरी।।
कहे जो करूवा चौथि कहानी, तास गदहरी निश्चय जानी।
अर्थात जो करवा चौथ का व्रत रखते हैं या उसकी कथा सुनाते हैं वे गधा बनते हैं।
��ुनिए तत्वदर्शी संत के मंगल प्रवचन Sant Rampal Ji Maharaj एप्लीकेशन पर
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करवाचौथ_है_पाखंड_पूजा
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संत गरीबदास जी कृत अमरग्रन्थ के अध्याय पारख के अंग की वाणी नं. 1052 व 1054 में लिखा है:
करैं एकादशी संजम सोई, करवा चौथ गदहरी होई।
आठैं सातैं करैं कंदूरी, सो तो जन्म धारें सूरी।।
कहे जो करूवा चौथि कहानी, तास गदहरी निश्चय जानी।
अर्थात जो करवा चौथ का व्रत रखते हैं या उसकी कथा सुनाते हैं वे गधा बनते हैं।
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करवा चौथ पाखंड पूजा है!
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करवा चौथ पाखंड पूजा है!
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करैं एकादशी संजम सोई, करवा चौथ गदहरी होई।
आठैं सातैं करैं कंदूरी, सो तो जन्म धारें सूरी।।
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#करवाचौथ_है_पाखंड_पूजा
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करैं एकादशी संजम सोई, करवा चौथ गदहरी होई।
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🐚 आमलकी एकादशी व्रत कथा - Amalaki Ekadashi Vrat Katha
धर्मराज युधिष्ठिर बोले: हे जनार्दन! आपने फाल्गुन के कृष्ण पक्ष की विजया एकादशी का सुंदर वर्णन करते हुए सुनाया। अब आप फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम है? तथा उसकी विधि क्या है? कृपा करके आप मुझे बताइए।
[बृज मे रंगभरन��� एकादशी, श्रीनाथद्वारा मे कुंज एकादशी तथा खाटू नगरी मे खाटू एकादशी भी कहा जाता है]
श्री भगवान बोले: हे राजन्, फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम आमलकी एकादशी है। इस व्रत के करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं, तथा इसके प्रभाव से एक हजार गौ दान का फल प्राप्त होता है। इस व्रत के करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। हे राजन्, अब मैं आपको महर्षि वशिष्ठ जी द्वारा राजा मांधाता को सुनाई पौराणिक कथा के बारे मैं बताता हूँ, आप इसे ध्यानपूर्वक सुनें।..
..आमलकी एकादशी व्रत कथा को पूरा पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें 👇 📲 https://www.bhaktibharat.com/katha/amalaki-ekadashi-vrat-katha ▶ YouTube https://www.youtube.com/watch?v=m3HmC1h6YWg
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🚩 फाल्गुन मेला - Falgun Mela 📲 https://www.bhaktibharat.com/festival/falgun-mela
🐚 एकादशी - Ekadashi 📲 https://www.bhaktibharat.com/festival/ekadashi
#Amalaki#AmalakiEkadashi#Phalguna#RangbharaniEkadashi#KhatuEkadashi#KunjEkadashi#Ram#ShriRam#JaiShriRam#iskcon#EkadashiVratKatha#Vishnu#ShriHari#PhalgunaShukla#Haribol#HareKrishna#Phagun#Khatu#KhatuShyam#Falgun#FalgunMela
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🙏अब आपकी बारी
खासकर अपने बच्चों को बताएं
क्योंकि ये बात उन्हें कोई दूसरा व्यक्ति नहीं बताएगा...
📜😇 दो पक्ष-
कृष्ण पक्ष ,
शुक्ल पक्ष !
📜😇 तीन ऋण -
देव ऋण ,
पितृ ऋण ,
ऋषि ऋण !
📜😇 चार युग -
सतयुग ,
त्रेतायुग ,
द्वापरयुग ,
कलियुग !
📜😇 चार धाम -
द्वारिका ,
बद्रीनाथ ,
जगन्नाथ पुरी ,
रामेश्वरम धाम !
📜😇 चारपीठ -
शारदा पीठ ( द्वारिका )
ज्योतिष पीठ ( जोशीमठ बद्रिधाम )
गोवर्धन पीठ ( जगन्नाथपुरी ) ,
शृंगेरीपीठ !
📜😇 चार वेद-
ऋग्वेद ,
अथर्वेद ,
यजुर्वेद ,
सामवेद !
📜😇 चार आश्रम -
ब्रह्मचर्य ,
गृहस्थ ,
वानप्रस्थ ,
संन्यास !
📜😇 चार अंतःकरण -
मन ,
बुद्धि ,
चित्त ,
अहंकार !
📜😇 पञ्च गव्य -
गाय का घी ,
दूध ,
दही ,
गोमूत्र ,
गोबर !
📜
📜😇 पंच तत्त्व -
पृथ्वी ,
जल ,
अग्नि ,
वायु ,
आकाश !
📜😇 छह दर्शन -
वैशेषिक ,
न्याय ,
सांख्य ,
योग ,
पूर्व मिसांसा ,
दक्षिण मिसांसा !
📜😇 सप्त ऋषि -
विश्वामित्र ,
जमदाग्नि ,
भरद्वाज ,
गौतम ,
अत्री ,
वशिष्ठ और कश्यप!
📜😇 सप्त पुरी -
अयोध्या पुरी ,
मथुरा पुरी ,
माया पुरी ( हरिद्वार ) ,
काशी ,
कांची
( शिन कांची - विष्णु कांची ) ,
अवंतिका और
द्वारिका पुरी !
📜😊 आठ योग -
यम ,
नियम ,
आसन ,
प्राणायाम ,
प्रत्याहार ,
धारणा ,
ध्यान एवं
समािध !
📜
📜
📜😇 दस दिशाएं -
पूर्व ,
पश्चिम ,
उत्तर ,
दक्षिण ,
ईशान ,
नैऋत्य ,
वायव्य ,
अग्नि
आकाश एवं
पाताल
📜😇 बारह मास -
चैत्र ,
वैशाख ,
ज्येष्ठ ,
अषाढ ,
श्रावण ,
भाद्रपद ,
अश्विन ,
कार्तिक ,
मार्गशीर्ष ,
पौष ,
माघ ,
फागुन !
📜
📜
📜😇 पंद्रह तिथियाँ -
प्रतिपदा ,
द्वितीय ,
तृतीय ,
चतुर्थी ,
पंचमी ,
षष्ठी ,
सप्तमी ,
अष्टमी ,
नवमी ,
दशमी ,
एकादशी ,
द्वादशी ,
त्रयोदशी ,
चतुर्दशी ,
पूर्णिमा ,
अमावास्या !
📜😇 स्मृतियां -
मनु ,
विष्णु ,
अत्री ,
हारीत ,
याज्ञवल्क्य ,
उशना ,
अंगीरा ,
यम ,
आपस्तम्ब ,
सर्वत ,
कात्यायन ,
ब्रहस्प���ि ,
पराशर ,
व्यास ,
शांख्य ,
लिखित ,
दक्ष ,
शातातप ,
वशिष्ठ !
**********************
इस पोस्ट को अधिकाधिक शेयर करें जिससे सबको हमारी सनातन भारतीय संस्कृति का ज्ञान हो।
ऊपर जाने पर एक सवाल ये भी पूँछा जायेगा कि अपनी अँगुलियों के नाम बताओ ।
जवाब:-
अपने हाथ की छोटी उँगली से शुरू करें :-
(1)जल
(2) पथ्वी
(3)आकाश
(4)वायू
(5) अग्नि
ये वो बातें हैं जो बहुत कम लोगों को मालूम होंगी ।
5 जगह हँसना करोड़ो पाप के बराबर है
1. श्मशान में
2. अर्थी के पीछे
3. शौक में
4. मन्दिर में
5. कथा में
सिर्फ 1 बार भेजो बहुत लोग इन पापो से बचेंगे ।।
अकेले हो?
परमात्मा को याद करो ।
परेशान हो?
ग्रँथ पढ़ो ।
उदास हो?
कथाए पढो ।
टेन्शन मे हो?
भगवत गीता पढो ।
फ्री हो?
अच्छी चीजे फोरवार्ड करो
हे परमात्मा हम पर और समस्त प्राणियो पर कृपा करो......
सूचना
क्या आप जानते हैं ?
हिन्दू ग्रंथ रामायण, गीता, आदि को सुनने,पढ़ने से कैन्सर नहीं होता है बल्कि कैन्सर अगर हो तो वो भी खत्म हो जाता है।
व्रत,उपवास करने से तेज़ बढ़ता है,सर दर्द और बाल गिरने से बचाव होता है ।
आरती----के दौरान ताली बजाने से
दिल मजबूत होता है ।
ये मेसेज असुर भेजने से रोकेगा मगर आप ऐसा नही होने दे और मेसेज सब नम्बरो को भेजे ।
श्रीमद भगवत गीता पुराण और रामायण ।
.
''कैन्सर"
एक खतरनाक बीमारी है...
बहुत से लोग इसको खुद दावत देते हैं ...
बहुत मामूली इलाज करके इस
बीमारी से काफी हद तक बचा जा सकता है ...
अक्सर लोग खाना खाने के बाद "पानी" पी लेते है ...
खाना खाने के बाद "पानी" ख़ून में मौजूद "कैन्सर "का अणु बनाने वाले '''सैल्स'''को '''आक्सीजन''' पैदा करता है...
''हिन्दु ग्रंथो मे बताया गया है कि...
खाने से पहले'पानी 'पीना
अ���ृत"है...
खाने के बीच मे 'पानी ' पीना शरीर की
''पूजा'' है...
खाना खत्म होने से पहले 'पानी'
''पीना औषधि'' है...
खाने के बाद 'पानी' पीना"
बीमारीयो का घर है...
बेहतर है खाना खत्म होने के कुछ देर बाद 'पानी 'पीये...
ये बात उनको भी बतायें जो आपको "जान"से भी ज्यादा प्यारे है
रोज एक सेब
नो डाक्टर ।
रोज पांच बदाम,
नो कैन्सर ।
रोज एक निबु,
नो पेट बढना ।
रोज एक गिलास दूध,
नो बौना (कद का छोटा)।
रोज 12 गिलास पानी,
नो चेहेरे की समस्या ।
रोज चार काजू,
नो भूख ।
रोज मन्दिर जाओ,
नो टेन्शन ।
रोज कथा सुनो
मन को शान्ति मिलेगी ।।
"चेहरे के लिए ताजा पानी"।
"मन के लिए गीता की बाते"।
"सेहत के लिए योग"।
और खुश रहने के लिए परमात्मा को याद किया करो ।
अच्छी बाते फैलाना पुण्य है.किस्मत मे करोड़ो खुशियाँ लिख दी जाती हैं ।
जीवन के अंतिम दिनो मे इन्सान इक इक पुण्य के लिए तरसेगा ।
जब तक ये मेसेज भेजते रहोगे मुझे और आपको इसका पुण्य मिलता रहेगा...
अच्छा लगा तो मैने भी आपको भेज दिया, आप भी इस पुण्य के भागीदार बनें
*जय माँ सरस्वती*!! जय मां शारदा !! 🙏🙏🌹🌹
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देव प्रबोधिनी एकादशी व्रत की संपूर्ण जानकारी
सभी एकादशियों में देव प्रबोधिनी एकादशी उठनी एकादशी का विशेष महत्व होता है। यह तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है। वहीं आपको बता दें कि देव उठनी एकादशी को देव प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है। हर साल ये पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इस आर्टिकल में देव प्रबोधिनी एकादशी व्रत की संपूर्ण जानकारी मिलेगी। देव प्रबोधिनी एकादशी व्रत की कथा क्या है। देव प्रबोधिनी एकादशी व्रत की पूजा विधि क्या है। देव प्रबोधिनी एकादशी के कितने व्रत रखने चाहिए। देव प्रबोधिनी एकादशी व्रत 2025 में कब है । देव प्रबोधिनी एकादशी व्रत में क्या सावधानियां बरतनी चाहिए। देव प्रबोधिनी एकादशी में कौन - से मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए। देव प्रबोधिनी एकादशी व्रत में कौन - सी आरती करनी चाहिए। देव प्रबोधिनी व्रत में क्या खाना चाहिए। देव प्रबोधिनी एकादशी क्या नहीं खाना चाहिए। देव प्रबोधिनी एकादशी के व्रत रखने के क्या लाभ होते हैं। देव प्रबोधिनी एकादशी व्रतों का उद्यापन कैसे करना चाहिए आदि की संपूर्ण जानकारी होना जरूरी है। इन सभी विधि विधान से देव प्रबोधिनी एकादशी व्रत रखने पर संपूर्ण माना जाता है। तो देव प्रबोधिनी एकादशी की सभी जानकारी इस प्रकार है । अधिक जानकारी हेतु यहां क्लिक करें
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*💥🌞🌹जया एकादशी व्रत कथा*
💥📌जया एकादशी का व्रत बेहद खास और महत्वपूर्ण माना जाता है। कहते हैं कि इस दिन व्रत रखने से साधक को भूत-प्रेत और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिलती है। इस व्रत को लेकर ऐसा कहा जाता है कि जब एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण जी से पूछा कि ये माघ मास की एकादशी का क्या महत्व है, तो इसके उत्तर पर श्री कृष्ण ने कहा कि इसे जया एकादशी कहते हैं और इस दिन सच्चे भाव से उपवास ��खने से व्यक्ति को भूत-पिशाच की योनि का भय नहीं रह जाता है। जया एकादशी के बारे में कहते हुए भगवान कृष्ण ने कहा कि एक बार कि बात है जब नंदन वन में उत्सव चल रहा था, इस उत्सव में सभी देवतागण और सिद्ध संत उपस्थित थे। माना जाता है कि यहां चल रहे कार्यक्रम में गंधर्व गायन कर रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थीं।
💥🌞इस समय नृत्यांगना पुष्पवती सभा में गायन कर रहे माल्यवान नाम के गंधर्व पर मोहित हो गयी। इसके बाद वह अपने प्रबल आकर्षण के कारण सभा की सभी मर्यादा को भूलकर नृत्य करने लगी थी। वह इस तरह से नृत्य कर रही थी माल्यवान भी उसकी ओर आकर्षित हो जाए। फिर माल्यवान भी उसकी ओर आकर्षित होते हुए अपनी सुध-बुध खो बैठा और वह अपनी गायन की मर्यादा से भटक गया। दोनों के इस अपकर्म से क्रोधित देवराज इन्द्र ने उन्हें श्राप दे दिया था। माना जाता है कि वह श्राप था कि वह दोनों ही स्वर्ग से वंचित हो जाएं, इतना ही नहीं पृथ्वी पर अति नीच पिशाच योनि को प्राप्त हो। कहते हैं कि देवराज इन्द्र के श्राप के प्रभाव से वह दोनों पिशाच बन गए।
💥🚩फिर एक दिन वह दोनों ही अत्यंत दुखी थे, जिस कारण उन्होंने सिर्फ फलाहार का सेवन किया। उसी दिन की रात को ठंड के कारण उन दोनों की मृत्यु हो भी गई। ऐसा माना जाता है कि उस दिन संयोग से माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि थी। इसलिए जाने अनजाने में जया एकादशी का व्रत होने पर उन दोनों को पिशाच योनि से मुक्ति प्राप्त हो गई और मुक्ति मिलने के बाद वह दोनों पहले से भी कई ज्यादा सौंदर्यवान हो गए, साथ ही उन्हें पुन: स्वर्ग लोक में स्थान भी प्राप्त हो गया। इस बात से आश्चर्यचकित देवराज इंद्र ने उन दोनों से पूछा कि आखिर तुम इस श्राप से कैसे मुक्त हुए। देवराज इंद्र के सवाल का उत्तर देते हुए गंधर्व ने बताया कि यह भगवान विष्णु की जया एकादशी के व्रत का प्रभाव है।
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कबीर परमेश्वर निर्वाण दिवस 2025: आइए जानें पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब के सह-शरीर सतलोक गमन की दिव्य कथा
परमेश्वर कबीर बंदी छोड़ जी के 507वें निर्वाण दिवस” के अवसर पर संत रामपाल जी महाराज के पावन सानिध्य में 6 से 8 फरवरी 2025 तक अमर ग्रंथ साहेब का तीन दिवसीय खुला पाठ किया जाएगा। इस अवसर पर 11 सतलोक आश्रमों में विशाल भंडारा, निःशुल्क नाम दीक्षा, रक्तदान शिविर, और दहेज मुक्त विवाह (रमैनी विवाह) जैसे आध्यात्मिक एवं सामाजिक कार्य किए जाएंगे।
क्या कबीर साहेब ही परमेश्वर हैं?
कई लोग कबीर साहेब को मात्र एक संत या कवि मानते हैं, लेकिन शास्त्रों में उनके पूर्ण परमेश्वर होने के प्रमाण मिलते हैं।
वेदों में प्रमाण: ऋग्वेद (मंडल 9, सूक्त 96, मंत्र 18) में "कविर्देव" का उल्लेख है, जो कबीर परमेश्वर की ओर संकेत करता है।
कुरान शरीफ में प्रमाण: सूरत अल-फुरकान (52-59) में भी "कबीर" शब्द परमेश्वर के संदर्भ में आया है।
परमेश्वर कबीर साहेब स्वयं इस धरती पर आए और तत्वज्ञान का प्रचार किया, जिससे जीवों को सही भक्ति और मोक्ष मार्ग की पहचान हो सके।
क्या अन्य देवी-देवता परमेश्वर हैं?
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, पूर्ण परमेश्वर एक ही होते हैं और वे स्वयं धरती पर आते हैं। ब्रह्मा, विष्णु, महेश जैसे देवता केवल सौंपे गए कार्यों को पूरा करते हैं और वे काल ब्रह्म के अधीन हैं। गीता (अध्याय 18, श्लोक 62) में कहा गया है कि शरण पूर्ण परमात्मा की लेनी चाहिए, जो सभी पापों से मुक्त कर सकते हैं। मोक्ष प्राप्ति के लिए पूर्ण संत से सही मंत्र लेकर भक्ति करना आवश्यक है। अन्यथा, जीव 84 लाख योनियों में जन्म-मरण के चक्र में फंसा रहेगा।
कबीर परमेश्वर का सह-शरीर सतलोक गमन (निर्वाण दिवस)
माघ मास, शुक्ल पक्ष, एकादशी (वि. सं. 1575, सन् 1518) को कबीर परमेश्वर ने मगहर, उत्तर प्रदेश से लाखों लोगों के समक्ष सशरीर सतलोक गमन किया।
मगहर में निर्वाण क्यों लिया?
उस समय काशी (वाराणसी) के पंडितों ने ��ह झूठा प्रचार कर रखा था कि काशी में मरने से स्वर्ग मिलता है, जबकि मगहर में मरने से नरक। कबीर साहेब ने इस अंधविश्वास को तोड़ने के लिए घोषणा की कि वे मगहर में निर्वाण लेंगे। जब उन्होंने चादर ओढ़कर सतलोक गमन किया, तो वहां उपस्थित लोगों ने चादर हटाई, लेकिन शरीर नहीं मिला—सिर्फ सुगंधित फूल पाए गए। हिंदू और मुस्लिम अनुयायियों ने उन फूलों को बांट लिया और अपनी-अपनी परंपराओं के अनुसार स्मारक बना लिए। यह घटना प्रमाणित करती है कि कबीर साहेब जन्म-मरण से परे थे और वे पूर्ण परमात्मा हैं।
काशी करौंत: एक अमानवीय कुप्रथा जिसे कबीर साहेब ने समाप्त किया
काशी में प्राचीन समय से एक अमानवीय परंपरा चल रही थी, जिसे "काशी करौंत" कहा जाता था। काशी में यह मान्यता थी कि काशी में मृत्यु होने पर मोक्ष मिलता है। कुछ स्वार्थी पंडितों और धार्मिक नेताओं ने इसका लाभ उठाने के लिए गंगा के किनारे एक विशाल आरी (करौंत) स्थापित कर दी और प्रचार किया कि यदि कोई वृद्ध व्यक्ति अपनी गर्दन इस आरी से कटवा ले, तो उसे तुरंत स्वर्ग प्राप्त होगा। कई वृद्ध, जो जीवन की कठिनाइयों से तंग आ चुके थे, इस झूठी आस्था के कारण अपनी गर्दन कटवाने लगे। यह प्रथा धीरे-धीरे धार्मिक धोखाधड़ी और व्यापार में बदल गई।
संत गरीबदास जी ने "काशी करौंत" का विरोध किया
महान संत गरीबदास जी ने इस कुप्रथा को खुलकर चुनौती दी।
उन्होंने कहा:
गरीब, बिना भगति क्या होत है, भावैं कासी करौंत लेह।
मिटे नहीं मन बासना, बहुबिधि भर्म संदेह।।
इसका अर्थ है कि बिना भक्ति के, चाहे कोई "काशी करौंत" ले या किसी अन्य विधि से मरे, मोक्ष संभव नहीं। सच्चा मोक्ष केवल तत्वज्ञान और पूर्ण संत से दी गई भक्ति विधि से ही प्राप्त होता है।
पाखंडी धर्मगुरुओं द्वारा फैलाई गई अफवाहें
जब वृद्धों की संख्या बढ़ने लगी और उनका भरण-पोषण कठिन होने लगा, तो धार्मिक नेताओं ने इस "करौंत" प्रथा को एक षड्यंत्र के रूप में फैलाया। लोगों की गर्दन काटी जाती और इसके लिए धन लिया जाता था। यदि किसी कारणवश करौंत ठीक से काम नहीं करता, तो कहा जाता कि "अभी आपका मोक्ष समय नहीं आया है, कुछ दिनों बाद प्रयास करें।" कबीर साहेब ने इस पाखंड को उजागर किया और इसे पूरी तरह से गलत बताया।
कबीर साहेब का दिव्य चमत्कार: सूखी आमी नदी में जल प्रवाहित किया
जब कबीर परमेश्वर मगहर पहुंचे, तो उन्होंने वहां की सूखी आमी नदी में जल प्रवाहित कर दिया। लोगों ने अपनी आंखों से देखा कि कैसे सिर्फ उनके स्पर्श मात्र से सूखी नदी में जल प्रवाहित हुआ। यह प्रमाण है कि कबीर साहेब ही सर्वशक्तिमान परमात्मा हैं।
मोक्ष प्राप्त करने का सही मार्ग क्या है?
कबीर परमेश्वर जी ने बताया कि मोक्ष प्राप्ति के लिए पूर्ण संत से सही नाम दीक्षा लेना आवश्यक है। गीता (अध्याय 17, श्लोक 23) में "ओम तत् सत्" मंत्र का वर्णन है, जिसे केवल पूर्ण तत्वदर्शी संत ही प्रदान कर सकते हैं।
संत रामपाल जी महाराज: वर्तमान में तत्वदर्शी संत
आज संत रामपाल जी महाराज ही प्रमाणित ग्रंथों के आधार पर वास्तविक आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान कर रहे हैं। उनकी शरण में आकर नाम दीक्षा लें और मोक्ष मार्ग प्राप्त करें।
निर्वाण दिवस 2025 के विशेष कार्यक्रम
इस साल 6 से 8 फरवरी 2025 तक, जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में 507वें निर्वाण दिवस के अवसर पर एक विशेष भव्य समागम का आयोजन किया जा रहा है। इस समागम पर आयोजित किए जाने वाले विशेष कार्यक्रम कुछ इस प्रकार हैं:
* निःशुल्क भंडारा: सभी श्रद्धालुओं के लिए 6 से 8 फरवरी 2025 तक निःशुल्क भंडारे का आयोजन होगा।
* निःशुल्क नाम दीक्षा: इस अद्वितीय अवसर पर संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम दीक्षा प्राप्त की जा सकती हैं।
* तीन दिवसीय अखंड पाठ: 6 से 8 फरवरी 2025, 3 दिनों तक संत गरीबदास जी महाराज जी के अमरग्रंथ साहेब जी के अखंड पाठ का आयोजन होगा।
* रक्तदान शिविर, निशुल्क नेत्र व दांतों की जांच, दहेज मुक्त विवाह और आध्यात्मिक प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया है।
* विशेष सत्संग प्रसारण: 8 फरवरी 2025 को संत रामपाल जी महाराज जी के सत्संग का विशेष प्रसारण साधना टीवी चैनल पर सुबह 9:15 बजे (IST) से होगा।
* सोशल मीडिया प्रसारण: इस कार्यक्रम का सीधा प्रसारण निम्नलिखित सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर भी उपलब्ध होगा।
Facebook page:- Spiritual Leader Saint Rampal Ji
YouTube:- Sant Rampal Ji Maharaj
Twitter:- @SaintRampalJiM
आप सभी इस महान आध्यात्मिक अवसर पर अवश्य पधारें करें और इस आध्यात्मिक समागम के आयोजन का लाभ उठाएं। इस आध्यात्मिक समागम में आने के लिए आप निम्न स्थानों पर पहुंच सकते हैं:
1. सतलोक आश्रम धनाना धाम, ���ोनीपत, हरियाणा
2. सतलोक आश्रम मुंडका, दिल्ली
3. सतलोक आश्रम धूरी, पंजाब
4. सतलोक आश्रम खमाणों, पंजाब
5. सतलोक आश्रम सोजत, राजस्थान
6. सतलोक आश्रम शामली, उत्तर प्रदेश
7. सतलोक आश्रम कुरुक्षेत्र, हरियाणा
8. सतलोक आश्रम भिवानी, हरियाणा
9. सतलोक आश्रम बैतूल, मध्य प्रदेश
10. सतलोक आश्रम इंदौर, मध्य प्रदेश
11. सतलोक आश्रम धनुषा, नेपाल
संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम दीक्षा लेने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें ⬇️
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पौष पुत्रदा एकादशी 2025: महत्व, तिथि, पूजा विधि और दान
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पौष पुत्रदा एकादशी हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण व्रत है जो भगवान विष्णु को समर्पित है। यह व्रत पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है और माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से सभी पापों का नाश हो जाता है।
पौष पुत्रदा एकादशी 2025 की तिथि और समय
तिथि: पौष पुत्रदा एकादशी 2025, 10 जनवरी को मनाई जाएगी।
समय: एकादशी तिथि 9 जनवरी, 2025 को दोपहर 12 बजकर 22 मिनट पर शुरू होगी और 10 जनवरी, 2025 को सुबह 10 बजकर 18 मिनट पर समाप्त होगी।
पारण समय: 11 जनवरी, 2025 को सुबह 07 बजकर 15 मिनट से 08 बजकर 21 मिनट के बीच किया जाएगा।
पौष पुत्रदा एकादशी का महत्व
पुत्र प्राप्ति: यह व्रत मुख्य रूप से पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है।
पापों का नाश: माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से सभी पापों का नाश हो जाता है।
भगवान विष्णु की कृपा: यह व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने का एक शक्तिशाली साधन है।
आध्यात्मिक विकास: यह व्रत आध्यात्मिक विकास और मोक्ष प्राप्ति के लिए भी किया जाता है।
पौष पुत्रदा एकादशी की पूजा विधि
पूजा का समय: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
भगवान विष्णु की पूजा: भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाएं और फूल चढ़ाएं।
व्रत कथा: पौष पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा का पाठ करें।
मंत्र जाप: विष्णु सहस्रनाम का जाप करें।
दान: गरीबों को भोजन और वस्त्र दान करें।
पौष पुत्रदा एकादशी में दान का महत्व
दान करना पौष पुत्रदा एकादशी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। माना जाता है कि इस दिन दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। आप अन्न, वस्त्र, धन आदि दान कर सकते हैं।
पौष पुत्रदा एकादशी का निष्कर्ष
पौष पुत्रदा एकादशी एक पवित्र और शुभ अवसर है। इस दिन व्रत रखने और पूजा करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
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उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा
उत्पन्ना एकादशी के दिन एकादशी माता का जन्म हुआ था इसलिए इसे उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। देवी एकादशी भगवान विष्णु की एक शक्ति का रूप है। मान्यता है कि उन्होंने इस दिन उत्पन्न होकर राक्षस मुर का वध किया था।
उत्पन्ना एकादशी व्रत कथाउत्पन्ना एकादशी के दिन एकादशी माता का जन्म हुआ था इसलिए इसे उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। देवी एकादशी भगवान विष्णु की एक शक्ति का रूप है। मान्यता है कि उन्होंने इस दिन उत्पन्न होकर राक्षस मुर का वध किया था। इसलिए इस एकादशी को उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन स्वयं माता एकादशी को आशीर्वाद दिया था और इस व्रत को महान व पूज्नीय बताया था।…
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