#एकादशी की कथा
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करवा चौथ पाखंड पूजा है!
संत गरीबदास जी कृत अमरग्रन्थ के अध्याय पारख के अंग की वाणी नं. 1052 व 1054 में लिखा है:
करैं एकादशी संजम सोई, करवा चौथ गदहरी होई।
आठैं सातैं करैं कंदूरी, सो तो जन्म धारें सूरी।।
कहे जो करूवा चौथि कहानी, तास गदहरी निश्चय जानी।
अर्थात जो करवा चौथ का व्रत रखते हैं या उसकी कथा सुनाते हैं वे गधा बनते हैं।
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#करवाचौथ_है_पाखंड_पूजा
संत गरीबदास जी कृत अमरग्रन्थ के अध्याय पारख के अंग की वाणी नं. 1052 व 1054 में लिखा है:
करैं एकादशी संजम सोई, करवा चौथ गदहरी होई।
आठैं सातैं करैं कंदूरी, सो तो जन्म धारें सूरी।।
कहे जो करूवा चौथि कहानी, तास गदहरी निश्चय जानी।
अर्थात जो करवा चौथ का व्रत रखते हैं या उसकी कथा सुनाते हैं वे गधा बनते हैं।
God Kabir Increases Age
https://bit.ly/KarwaChauthblog
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#करवाचौथ_है_पाखंड_पूजा
God Kabir Increases Age
करवा चौथ पाखंड पूजा है!
संत गरीबदास जी कृत अमरग्रन्थ के अध्याय पारख के अंग की वाणी नं. 1052 व 1054 में लिखा है:
करैं एकादशी संजम सोई, करवा चौथ गदहरी होई।
आठैं सातैं करैं कंदूरी, सो तो जन्म धारें सूरी।।
कहे जो करूवा चौथि कहानी, तास गदहरी निश्चय जानी।
अर्थात जो करवा चौथ का व्रत रखते हैं या उसकी कथा सुनाते हैं वे गधा बनते हैं।
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करवा चौथ पाखंड पूजा है!
संत गरीबदास जी कृत अमरग्रन्थ के अध्याय पारख के अंग की वाणी नं. 1052 व 1054 में लिखा है:
करैं एकादशी संजम सोई, करवा चौथ गदहरी होई।
आठैं सातैं करैं कंदूरी, सो तो जन्म धारें सूरी।।
कहे जो करूवा चौथि कहानी, तास गदहरी निश्चय जानी।
अर्थात जो करवा चौथ का व्रत रखते हैं या उसकी कथा सुनाते हैं वे गधा बनते हैं।
��ुनिए तत्वदर्शी संत के मंगल प्रवचन Sant Rampal Ji Maharaj एप्लीकेशन पर
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करवाचौथ_है_पाखंड_पूजा
संत गरीबदास जी कृत अमरग्रन्थ के अध्याय पारख के अंग की वाणी नं. 1052 व 1054 में लिखा है:
करैं एकादशी संजम सोई, करवा चौथ गदहरी होई।
आठैं सातैं करैं कंदूरी, सो तो जन्म धारें सूरी।।
कहे जो करूवा चौथि कहानी, तास गदहरी निश्चय जानी।
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करवा चौथ पाखंड पूजा है!
संत गरीबदास जी कृत अमरग्रन्थ के अध्याय पारख के अंग की वाणी नं. 1052 व 1054 में लिखा है:
करैं एकादशी संजम सोई, करवा चौथ गदहरी होई।
आठैं सातैं करैं कंदूरी, सो तो जन्म धारें सूरी।।
कहे जो करूवा चौथि कहानी, तास गदहरी निश्चय जानी।
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करवा चौथ पाखंड पूजा है!
संत गरीबदास जी कृत अमरग्रन्थ के अध्याय पारख के अंग की वाणी नं. 1052 व 1054 में लिखा है:
करैं एकादशी संजम सोई, करवा चौथ गदहरी होई।
आठैं सातैं करैं कंदूरी, सो तो जन्म धारें सूरी।।
कहे जो करूवा चौथि कहानी, तास गदहरी निश्चय जानी।
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#करवाचौथ_है_पाखंड_पूजा
संत गरीबदास जी कृत अमरग्रन्थ के अध्याय पारख के अंग की वाणी नं. 1052 व 1054 में लिखा है:
करैं एकादशी संजम सोई, करवा चौथ गदहरी होई।
आठैं सातैं करैं कंदूरी, सो तो जन्म धारें सूरी।।
कहे जो करूवा चौथि कहानी, तास गदहरी निश्चय जानी।
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🐚 आमलकी एकादशी व्रत कथा - Amalaki Ekadashi Vrat Katha
धर्मराज युधिष्ठिर बोले: हे जनार्दन! आपने फाल्गुन के कृष्ण पक्ष की विजया एकादशी का सुंदर वर्णन करते हुए सुनाया। अब आप फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम है? तथा उसकी विधि क्या है? कृपा करके आप मुझे बताइए।
[बृज मे रंगभरन��� एकादशी, श्रीनाथद्वारा मे कुंज एकादशी तथा खाटू नगरी मे खाटू एकादशी भी कहा जाता है]
श्री भगवान बोले: हे राजन्, फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम आमलकी एकादशी है। इस व्रत के करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं, तथा इसके प्रभाव से एक हजार गौ दान का फल प्राप्त होता है। इस व्रत के करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। हे राजन्, अब मैं आपको महर्षि वशिष्ठ जी द्वारा राजा मांधाता को सुनाई पौराणिक कथा के बारे मैं बताता हूँ, आप इसे ध्यानपूर्वक सुनें।..
..आमलकी एकादशी व्रत कथा को पूरा पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें 👇 📲 https://www.bhaktibharat.com/katha/amalaki-ekadashi-vrat-katha ▶ YouTube https://www.youtube.com/watch?v=m3HmC1h6YWg
For Quick Access Download Bhakti Bharat APP: 📥 https://play.google.com/store/apps/details?id=com.bhakti.bharat.app
🚩 फाल्गुन मेला - Falgun Mela 📲 https://www.bhaktibharat.com/festival/falgun-mela
🐚 एकादशी - Ekadashi 📲 https://www.bhaktibharat.com/festival/ekadashi
#Amalaki#AmalakiEkadashi#Phalguna#RangbharaniEkadashi#KhatuEkadashi#KunjEkadashi#Ram#ShriRam#JaiShriRam#iskcon#EkadashiVratKatha#Vishnu#ShriHari#PhalgunaShukla#Haribol#HareKrishna#Phagun#Khatu#KhatuShyam#Falgun#FalgunMela
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🙏अब आपकी बारी
खासकर अपने बच्चों को बताएं
क्योंकि ये बात उन्हें कोई दूसरा व्यक्ति नहीं बताएगा...
📜😇 दो पक्ष-
कृष्ण पक्ष ,
शुक्ल पक्ष !
📜😇 तीन ऋण -
देव ऋण ,
पितृ ऋण ,
ऋषि ऋण !
📜😇 चार युग -
सतयुग ,
त्रेतायुग ,
द्वापरयुग ,
कलियुग !
📜😇 चार धाम -
द्वारिका ,
बद्रीनाथ ,
जगन्नाथ पुरी ,
रामेश्वरम धाम !
📜😇 चारपीठ -
शारदा पीठ ( द्वारिका )
ज्योतिष पीठ ( जोशीमठ बद्रिधाम )
गोवर्धन पीठ ( जगन्नाथपुरी ) ,
शृंगेरीपीठ !
📜😇 चार वेद-
ऋग्वेद ,
अथर्वेद ,
यजुर्वेद ,
सामवेद !
📜😇 चार आश्रम -
ब्रह्मचर्य ,
गृहस्थ ,
वानप्रस्थ ,
संन्यास !
📜😇 चार अंतःकरण -
मन ,
बुद्धि ,
चित्त ,
अहंकार !
📜😇 पञ्च गव्य -
गाय का घी ,
दूध ,
दही ,
गोमूत्र ,
गोबर !
📜
📜😇 पंच तत्त्व -
पृथ्वी ,
जल ,
अग्नि ,
वायु ,
आकाश !
📜😇 छह दर्शन -
वैशेषिक ,
न्याय ,
सांख्य ,
योग ,
पूर्व मिसांसा ,
दक्षिण मिसांसा !
📜😇 सप्त ऋषि -
विश्वामित्र ,
जमदाग्नि ,
भरद्वाज ,
गौतम ,
अत्री ,
वशिष्ठ और कश्यप!
📜😇 सप्त पुरी -
अयोध्या पुरी ,
मथुरा पुरी ,
माया पुरी ( हरिद्वार ) ,
काशी ,
कांची
( शिन कांची - विष्णु कांची ) ,
अवंतिका और
द्वारिका पुरी !
📜😊 आठ योग -
यम ,
नियम ,
आसन ,
प्राणायाम ,
प्रत्याहार ,
धारणा ,
ध्यान एवं
समािध !
📜
📜
📜😇 दस दिशाएं -
पूर्व ,
पश्चिम ,
उत्तर ,
दक्षिण ,
ईशान ,
नैऋत्य ,
वायव्य ,
अग्नि
आकाश एवं
पाताल
📜😇 बारह मास -
चैत्र ,
वैशाख ,
ज्येष्ठ ,
अषाढ ,
श्रावण ,
भाद्रपद ,
अश्विन ,
कार्तिक ,
मार्गशीर्ष ,
पौष ,
माघ ,
फागुन !
📜
📜
📜😇 पंद्रह तिथियाँ -
प्रतिपदा ,
द्वितीय ,
तृतीय ,
चतुर्थी ,
पंचमी ,
षष्ठी ,
सप्तमी ,
अष्टमी ,
नवमी ,
दशमी ,
एकादशी ,
द्वादशी ,
त्रयोदशी ,
चतुर्दशी ,
पूर्णिमा ,
अमावास्या !
📜😇 स्मृतियां -
मनु ,
विष्णु ,
अत्री ,
हारीत ,
याज्ञवल्क्य ,
उशना ,
अंगीरा ,
यम ,
आपस्तम्ब ,
सर्वत ,
कात्यायन ,
ब्रहस्प���ि ,
पराशर ,
व्यास ,
शांख्य ,
लिखित ,
दक्ष ,
शातातप ,
वशिष्ठ !
**********************
इस पोस्ट को अधिकाधिक शेयर करें जिससे सबको हमारी सनातन भारतीय संस्कृति का ज्ञान हो।
ऊपर जाने पर एक सवाल ये भी पूँछा जायेगा कि अपनी अँगुलियों के नाम बताओ ।
जवाब:-
अपने हाथ की छोटी उँगली से शुरू करें :-
(1)जल
(2) पथ्वी
(3)आकाश
(4)वायू
(5) अग्नि
ये वो बातें हैं जो बहुत कम लोगों को मालूम होंगी ।
5 जगह हँसना करोड़ो पाप के बराबर है
1. श्मशान में
2. अर्थी के पीछे
3. शौक में
4. मन्दिर में
5. कथा में
सिर्फ 1 बार भेजो बहुत लोग इन पापो से बचेंगे ।।
अकेले हो?
परमात्मा को याद करो ।
परेशान हो?
ग्रँथ पढ़ो ।
उदास हो?
कथाए पढो ।
टेन्शन मे हो?
भगवत गीता पढो ।
फ्री हो?
अच्छी चीजे फोरवार्ड करो
हे परमात्मा हम पर और समस्त प्राणियो पर कृपा करो......
सूचना
क्या आप जानते हैं ?
हिन्दू ग्रंथ रामायण, गीता, आदि को सुनने,पढ़ने से कैन्सर नहीं होता है बल्कि कैन्सर अगर हो तो वो भी खत्म हो जाता है।
व्रत,उपवास करने से तेज़ बढ़ता है,सर दर्द और बाल गिरने से बचाव होता है ।
आरती----के दौरान ताली बजाने से
दिल मजबूत होता है ।
ये मेसेज असुर भेजने से रोकेगा मगर आप ऐसा नही होने दे और मेसेज सब नम्बरो को भेजे ।
श्रीमद भगवत गीता पुराण और रामायण ।
.
''कैन्सर"
एक खतरनाक बीमारी है...
बहुत से लोग इसको खुद दावत देते हैं ...
बहुत मामूली इलाज करके इस
बीमारी से काफी हद तक बचा जा सकता है ...
अक्सर लोग खाना खाने के बाद "पानी" पी लेते है ...
खाना खाने के बाद "पानी" ख़ून में मौजूद "कैन्सर "का अणु बनाने वाले '''सैल्��'''को '''आक्सीजन''' पैदा करता है...
''हिन्दु ग्रंथो मे बताया गया है कि...
खाने से पहले'पानी 'पीना
अमृत"है...
खाने के बीच मे 'पानी ' पीना शरीर की
''पूजा'' है...
खाना खत्म होने से पहले 'पानी'
''पीना औषधि'' है...
खाने के बाद 'पानी' पीना"
बीमारीयो का घर है...
बेहतर है खाना खत्म होने के कुछ देर बाद 'पानी 'पीये...
ये बात उनको भी बतायें जो आपको "जान"से भी ज्यादा प्यारे है
रोज एक सेब
नो डाक्टर ।
रोज पांच बदाम,
नो कैन्सर ।
रोज एक निबु,
नो पेट बढना ।
रोज एक गिलास दूध,
नो बौना (कद का छोटा)।
रोज 12 गिलास पानी,
नो चेहेरे की समस्या ।
रोज चार काजू,
नो भूख ।
रोज मन्दिर जाओ,
नो टेन्शन ।
रोज कथा सुनो
मन को शान्ति मिलेगी ।।
"चेहरे के लिए ताजा पानी"।
"मन के लिए गीता की बाते"।
"सेहत के लिए योग"।
और खुश रहने के लिए परमात्मा को याद किया करो ।
अच्छी बाते फैलाना पुण्य है.किस्मत मे करोड़ो खुशियाँ लिख दी जाती हैं ।
जीवन के अंतिम दिनो मे इन्सान इक इक पुण्य के लिए तरसेगा ।
जब तक ये मेसेज भेजते रहोगे मुझे और आपको इसका पुण्य मिलता रहेगा...
अच्छा लगा तो मैने भी आपको भेज दिया, आप भी इस पुण्य के भागीदार बनें
*जय माँ सरस्वती*!! जय मां शारदा !! 🙏🙏🌹🌹
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पौष पुत्रदा एकादशी 2025: महत्व, तिथि, पूजा विधि और दान
पौष पुत्रदा एकादशी हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण व्रत है जो भगवान विष्णु को समर्पित है। यह व्रत पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है और माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से सभी पापों का नाश हो जाता है।
पौष पुत्रदा एकादशी 2025 की तिथि और समय
तिथि: पौष पुत्रदा एकादशी 2025, 10 जनवरी को मनाई जाएगी।
समय: एकादशी तिथि 9 जनवरी, 2025 को दोपहर 12 बजकर 22 मिनट पर शुरू होगी और 10 जनवरी, 2025 को सुबह 10 बजकर 18 मिनट पर समाप्त होगी।
पारण समय: 11 जनवरी, 2025 को सुबह 07 बजकर 15 मिनट से 08 बजकर 21 मिनट के बीच किया जाएगा।
पौष पुत्रदा एकादशी का महत्व
पुत्र प्राप्ति: यह व्रत मुख्य रूप से पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है।
पापों का नाश: माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से सभी पापों का नाश हो जाता है।
भगवान विष्णु की कृपा: यह व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने का एक शक्तिशाली साधन है।
आध्यात्मिक विकास: यह व्रत आध्यात्मिक विकास और मोक्ष प्राप्ति के लिए भी किया जाता है।
पौष पुत्रदा एकादशी की पूजा विधि
पूजा का समय: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
भगवान विष्णु की पूजा: भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाएं और फूल चढ़ाएं।
व्रत कथा: पौष पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा का पाठ करें।
मंत्र जाप: विष्णु सहस्रनाम का जाप करें।
दान: गरीबों को भोजन और वस्त्र दान करें।
पौष पुत्रदा एकादशी में दान का महत्व
दान करना पौष पुत्रदा एकादशी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। माना जाता है कि इस दिन दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। आप अन्न, वस्त्र, धन आदि दान कर सकते हैं।
पौष पुत्रदा एकादशी का निष्कर्ष
पौष पुत्रदा एकादशी एक पवित्र और शुभ अवसर है। इस दिन व्रत रखने और पूजा करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
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*सफला एकादशी की कथा और व्रत खोलने की विधि : 26 दिसंबर 2024*
युधिष्ठिर ने पूछा : स्वामिन् ! पौष मास के कृष्णपक्ष (गुज., महा. के लिए मार्गशीर्ष) में जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम है? उसकी क्या विधि है तथा उसमें किस देवता की पूजा की जाती है ? यह बताइये ।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं : राजेन्द्र ! बड़ी बड़ी दक्षिणावाले यज्ञों से भी मुझे उतना संतोष नहीं होता, जितना एकादशी व्रत के अनुष्ठान से होता है । पौष मास के कृष्णपक्ष में ‘सफला’ नाम की एकादशी होती है । उस दिन विधिपूर्वक भगवान नारायण की पूजा करनी चाहिए । जैसे नागों में शेषनाग, पक्षियों में गरुड़ तथा देवताओं में श्री��िष्णु श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार सम्पूर्ण व्रतों में एकादशी तिथि श्रेष्ठ है ।
रा��न् ! ‘सफला एकादशी’ को नाम मंत्रों का उच्चारण करके नारियल के फल, सुपारी, बिजौरा तथा जमीरा नींबू, अनार, सुन्दर आँवला, लौंग, बेर तथा विशेषत: आम के फलों और धूप दीप से श्रीहरि का पूजन करे । ‘सफला एकादशी’ को विशेष रुप से दीप दान करने का विधान है । रात को वैष्णव पुरुषों के साथ जागरण करना चाहिए । जागरण करनेवाले को जिस फल की प्राप्ति होती है, वह हजारों वर्ष तपस्या करने से भी नहीं मिलता ।
नृपश्रेष्ठ ! अब ‘सफला एकादशी’ की शुभकारिणी कथा सुनो । चम्पावती नाम से विख्यात एक पुरी है, जो कभी राजा माहिष्मत की राजधानी थी । राजर्षि माहिष्मत के पाँच पुत्र थे । उनमें जो ज्येष्ठ था, वह सदा पापकर्म में ही लगा रहता था । परस्त्रीगामी और वेश्यासक्त था । उसने पिता के धन को पापकर्म में ही खर्च किया । वह सदा दुराचारपरायण तथा वैष्णवों और देवताओं की निन्दा किया करता था । अपने पुत्र को ऐसा पापाचारी देखकर राजा माहिष्मत ने राजकुमारों में उसका नाम लुम्भक रख दिया। फिर पिता और भाईयों ने मिलकर उसे राज्य से बाहर निकाल दिया । लुम्भक गहन वन में चला गया । वहीं रहकर उसने प्राय: समूचे नगर का धन लूट लिया । एक दिन जब वह रात में चोरी करने के लिए नगर में आया तो सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया । किन्तु जब उसने अपने को राजा माहिष्मत का पुत्र बतलाया तो सिपाहियों ने उसे छोड़ दिया । फिर वह वन में लौट आया और मांस तथा वृक्षों के फल खाकर जीवन निर्वाह करने लगा । उस दुष्ट का विश्राम स्थान पीपल वृक्ष बहुत वर्षों पुराना था । उस वन में वह वृक्ष एक महान देवता माना जाता था । पापबुद्धि लुम्भक वहीं निवास करता था ।
एक दिन किसी संचित पुण्य के प्रभाव से उसके द्वारा एकादशी के व्रत का पालन हो गया । पौष मास में कृष्णपक्ष की दशमी के दिन पापिष्ठ लुम्भक ने वृक्षों के फल खाये और वस्त्रहीन होने के कारण रातभर जाड़े का कष्ट भोगा । उस समय न तो उसे नींद आयी और न आराम ही मिला । वह निष्प्राण सा हो रहा था । सूर्योदय होने पर भी उसको होश नहीं आया । ‘सफला एकादशी’ के दिन भी लुम्भक बेहोश पड़ा रहा । दोपहर होने पर उसे चेतना प्राप्त हुई । फिर इधर उधर दृष्टि डालकर वह आसन से उठा और लँगड़े की भाँति लड़खड़ाता हुआ वन के भीतर गया । वह भूख से दुर्बल और ��ीड़ित हो रहा था । राजन् ! लुम्भक बहुत से फल लेकर जब तक विश्राम स्थल पर लौटा, तब तक सूर्यदेव अस्त हो गये । तब उसने उस पीपल वृक्ष की जड़ में बहुत से फल निवेदन करते हुए कहा: ‘इन फलों से लक्ष्मीपति भगवान विष्णु संतुष्ट हों ।’ यों कहकर लुम्भक ने रातभर नींद नहीं ली । इस प्रकार अनायास ही उसने इस व्रत का पालन कर लिया । उस समय सहसा आकाशवाणी हुई: ‘राजकुमार ! तुम ‘सफला एकादशी’ के प्रसाद से राज्य और पुत्र प्राप्त करोगे ।’ ‘बहुत अच्छा’ कहकर उसने वह वरदान स्वीकार किया । इसके बाद उसका रुप दिव्य हो गया । तबसे उसकी उत्तम बुद्धि भगवान विष्णु के भजन में लग गयी । दिव्य आभूषणों से सुशोभित होकर उसने निष्कण्टक राज्य प्राप्त किया और पंद्रह वर्षों तक वह उसका संचालन करता रहा । उसको मनोज्ञ नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । जब वह बड़ा हुआ, तब लुम्भक ने तुरंत ही राज्य की ममता छोड़कर उसे पुत्र को सौंप दिया और वह स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के समीप चला गया, जहाँ जाकर मनुष्य कभी शोक में नहीं पड़ता ।
राजन् ! इस प्रकार जो ‘सफला एकादशी’ का उत्तम व्रत करता है, वह इस लोक में सुख भोगकर मरने के पश्चात् मोक्ष को प्राप्त होता है । संसार में वे मनुष्य धन्य हैं, जो ‘सफला एकादशी’ के व्रत में लगे रहते हैं, उन्हीं का जन्म सफल है । महाराज! इसकी महिमा को पढ़ने, सुनने तथा उसके अनुसार आचरण करने से मनुष्य राजसूय यज्ञ का फल पाता है ।
व्रत खोलने की विधि : द्वादशी को सेवापूजा की जगह पर बैठकर भुने हुए सात चनों के चौदह टुकड़े करके अपने सिर के पीछे फेंकना चाहिए । ‘मेरे सात जन्मों के शारीरिक, वाचिक और मानसिक पाप नष्ट हुए’ - यह भावना करके सात अंजलि जल पीना और चने के सात दाने खाकर व्रत खोलना चाहिए ।
*👉ऐसी ही "सनातन धर्म" की "Astrology और VastuShastra" की रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारी पाने के लिए अभी जुड़ें "Astro Vastu Kosh" से*✍️
*👉9837376839* _*👉WhatsApp*_ 👉https://chat.whatsapp.com/BsWPoSt9qSj7KwBvo9zWID _*👉Whatsapp Channel*_ 👉https://whatsapp.com/channel/0029Va51s5wLtOj7SaZ6cL2E
_*👉Telegram*_ 👉https://t.me/astrovastukosh.
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उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा
उत्पन्ना एकादशी के दिन एकादशी माता का जन्म हुआ था इसलिए इसे उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। देवी एकादशी भगवान विष्णु की एक शक्ति का रूप है। मान्यता है कि उन्होंने इस दिन उत्पन्न होकर राक्षस मुर का वध किया था।
उत्पन्ना एकादशी व्रत कथाउत्पन्ना एकादशी के दिन एकादशी माता का जन्म हुआ था इसलिए इसे उत��पन्ना एकादशी कहा जाता है। देवी एकादशी भगवान विष्णु की एक शक्ति का रूप है। मान्यता है कि उन्होंने इस दिन उत्पन्न होकर राक्षस मुर का वध किया था। इसलिए इस एकादशी को उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार ��स दिन स्वयं माता एकादशी को आशीर्वाद दिया था और इस व्रत को महान व पूज्नीय बताया था।…
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तुलसी विवाह कथा: भगवान विष्णु को क्यों मिला श्राप और क्यों करना पड़ा उन्हें तुलसी से विवाह? इस मिथक को पढ़ें
तुलसी पूजा के लिए कार्तक महीना बहुत खास माना जाता है। इस माह में सुद पक्ष की ��कादशी या द्वादशी तिथि को तुलसी विवाह किया जाता है। इस दिन तुलसी माता का विवाह शालिग्राम स्वरूप भगवान विष्णु से कराया जाता है। इस दिन से विवाह सहित सभी मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं। वैदिक पंचांग के अनुसार इस वर्ष कार्तक मास की सुद द्वादशी तिथि 12 नवंबर 2024 को शाम 4.04 बजे शुरू होगी और अगले दिन 13 नवंबर को दोपहर 1.01…
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पारस भाई देवउठनी एकादशी पर एक शुभ दिन
सनातन धर्म में एकादशी का महत्वपूर्ण स्थान है। पूरे वर्ष में लगभग 24 एकादशियां होती हैं, लेकिन देवउठनी ग्यारस का अपना महत्व है। यह एकादशी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में मनाई जाती है। इस दिन को भगवान विष्णु के चार महीने की योग निद्रा से जागने का प्रतीक माना जाता है। इस दिन से सभी तरह के शुभ कार्य फिर से शुरू हो जाते हैं। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की देवशयन एकादशी के बाद ये सभी शुभ कार्य वर्जित हो जाते हैं।
धार्मिक महत्व और देवउठनी एकादशी।
हिंदू धर्म में प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि भगवान विष्णु देवशयन एकादशी योग निद्रा में चले जाते हैं, जिसके बाद वे चार महीने बाद देवउठनी एकादशी पर जागते हैं। इन चार महीनों को चातुर्मास कहा जाता है। यह समय ध्यान, साधना, संयम और त्याग का प्रतीक कहा जाता है। देवउठनी एकादशी के पावन काल में भगवान विष्णु के शुभ जागरण के साथ ही सभी सकारात्मक कार्यों की शुरुआत हो जाती है। भगवान विष्णु को समर्पित यह दिन अत्यंत फलदायी माना जाता है और इस दिन की गई पूजा और व्रत से विशेष लाभ मिलता है। श्री पारस भाई गुरुजी के अनुसार इस दिन को प्रबोधिनी एकादशी, हरि प्रबोधिनी एकादशी और तुलसी विवाह के नाम से भी जाना जाता है।
पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यता में कहा जाता है कि एक बार हिंदू धर्म की लोकप्रिय देवी मां लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु से अनुरोध किया और उन्हें और देवताओं को चार महीने के लिए अपने काम से आराम करने और योग निद्रा में जाने के लिए कहा। भगवान उनकी बात मान गए और चार महीने के लिए योग निद्रा में चले गए। भगवान ने आषाढ़ माह में यह निद्रा ली और कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को अपना नैतिक कार्य फिर से शुरू किया। जागने के बाद उन्होंने सभी देवताओं को उनके कर्तव्यों के लिए प्रेरित किया। यही कारण है कि इसे देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है।
देवउठनी एकादशी का महत्व
सनातन धर्म में देवउठनी ग्यारस को आध्यात्मिक रूप से भी महत्वपूर्ण माना जाता है पारस भाई जी की मान्यता के अनुसार ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं, जीवन के सभी रोग नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन तुलसी विवाह का विशेष आयोजन किया जाता है। मान्यता है कि इस पवित्र विवाह अनुष्ठान को करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
पारस परिवार के मुखिया श्री पारस भाई गुरुजी के अनुसार और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भी तुलसी विवाह के पीछे एक कथा है। भगवान विष्णु ने राक्षस जालंधर की पत्नी वृंदा को पवित्र तुलसी मां में बदल दिया और फिर उनका विवाह स्वयं विष्णु के एक रूप भगवान शालिग्राम से कराया। तभी से तुलसी विवाह की परंपरा मनाई जाने लगी।
पवित्र देवउठनी ग्यारस व्रत की विधि
सनातन धर्म की पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन सुबह जल्दी स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की तस्वीर के सामने धूपबत्ती और दीपक जलाया जाता है। भगवान विष्णु की मूर्ति के समक्ष फूल, फल, मिठाई, चावल आदि अर्पित किए जाते हैं। इस दिन लोग अपने पूजा स्थल पर तुलसी के पत्ते रखकर उनकी पूजा भी करते हैं। पारस भाई जी के अनुसार तुलसी के पत्ते चढ़ाए बिना भगवान विष्णु की पूजा अधूरी रहती है। इस दिन शाम के समय भगवान विष्णु को मिठाई आदि का भोग लगाया जाता है।
देवउठनी एकादशी व्रत के लाभ
देवउठनी एकादशी का व्रत करने से कई लाभ मिलते हैं। यह व्रत विशेष रूप से पापों से मुक्ति और आत्मिक शांति प्राप्त करने के लिए किया जाता है। सनातन धर्म व्रत अनुष्ठानों का पालन करता है और अपनी आत्मा को इन धार्मिक देवों से जोड़ने का प्रयास करता है। व्रत करने से जीवन में सकारात्मकता आती है और व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक संतुष्टि मिलती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु की कृपा से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि आती है। तुलसी विवाह करने वाले भक्तों को भगवान विष्णु का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है और उनके परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
देवउठनी एकादशी पर ध्यान देने योग्य बाते���
व्रत का पालन: इस दिन व्रत करने से मन शुद्ध होता है और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। व्रती को केवल फलाहार ही करना चाहिए तथा अन्न नहीं खाना चाहिए।
दिनभर विष्णु भजन: इस दिन भगवान विष्णु के भजनों का पाठ करना चाहिए, जिससे मन को शांति मिलती है।
सामूहिक पूजा: इस दिन पूरा परिवार सामूहिक पूजा करके भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करता है।
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