#देवभूमि मंदिर
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animalvidoes · 2 months ago
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अल्मोड़ा में स्थित प्रसिद्ध मंदिर | उत्तराखंड के धार्मिक स्थल
अल्मोड़ा, देवभूमि उत्तराखंड का एक प्रमुख जिला है, जो अपनी प्राचीन संस्कृति, धार्मिक स्थलों और प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ अनेक मंदिर हैं जो न केवल धार्मिक बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं। यह ब्लॉग अल्मोड़ा और उसके आसपास के प्रसिद्ध मंदिरों और उनकी विशेषताओं पर प्रकाश डालता है। धार्मिक स्थल और मंदिरों का महत्व – अल्मोड़ा और इसके आसपास के प्रमुख मंदिर 1. भैरव मंदिर – शिव…
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bhaktibharat · 5 months ago
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🐅 नंदा अष्टमी - Nanda Ashtami
❀ देवभूमि उत्तराखंड की सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक विरासत में नंदा देवी महोत्सव।
❀ नंदा देवी उत्तराखंड की पहाड़ियों में सबसे लोकप्रिय देवी में से एक है।
❀ भाद्र मास की शुक्ल अष्टमी के अवसर पर नंदा देवी मेला तीन दिनों तक बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
❀ नंदा अष्टमी के दौरान `नैना देवी मंदिर नैनीताल` में दिन-रात भजन और कीर्तन का आयोजन किया जाता है।
📲 https://www.bhaktibharat.com/festival/nanda-ashtami
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spot-hunter · 10 months ago
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Chandrika Devi Mandir | चंद्रिका देवी मंदिर में आध्यात्मिक अभ्यास और अनुष्ठान
जैसा कि हम सभी जानते ह���ं कि उत्तराखंड एक धार्मिक केंद्र है (Chandrika Devi Mandir | चंद्रिका देवी मंदिर) । यह एक बहुत ही शांतिपूर्ण और गौरवशाली स्थान है। इसे ‘देवभूमि’ के नाम से भी जाना जाता है जिसका अर्थ है ‘भगवान की भूमि’। यह उच्च आध्यात्मिक महत्व का स्थान है। ऐसा माना जाता है कि यह प्राचीन काल से कई हिंदू देवी-देवताओं का घर रहा है। प्रसिद्ध मंदिर, मूर्तियां, स्मारक, वास्तुकला और यहां तक ​​कि…
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rightnewshindi · 11 months ago
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कलयुग की सच्ची सरकार है बाबा सिद्ध चानो, दुनिया न्याय के देवता के रूप में करती है पूजा
कलयुग की सच्ची सरकार है बाबा सिद्ध चानो, दुनिया न्याय के देवता के रूप में करती है पूजा
Baba Siddha Chano: देवभूमि हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा के देहरा उपमंडल के तहत परागपुर के नजदीक डांगड़ा में स्थित बाबा सिद्ध चानो का मंदिर लोगों की आस्था का बड़ा केंद्र है। बाबा सिद्ध चानो को न्याय का देवता और सच्ची सरकार के रूप में पूजा जाता है। माना जाता है कि जिस किसी व्यक्ति को कहीं न्याय नहीं मिलता उसे बाबा के दरबार में न्याय मिलता है। कहा जाता है कि द्वापर युग में कैलाश नाम का एक राजा…
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news-trust-india · 1 year ago
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Ram Mandir : उत्तराखंड में मंदिर प्राण प्रतिष्ठा को लेकर उमंग; सीएम ने बैठक से पहले सुना ‘राम आएंगे’ भजन
Ram Mandir :  सीएम धामी की बैठक से पहले आज राम भजन सुने गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सोशल मीडिया पर साझा किया रामभजन सुबह उत्तराखंड सचिवा��य में भी गूंजा। देवभूमि उत्तराखंड में भी राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा को लेकर उमंग एवं ऊर्जा का माहौल है। ISRO : इसरो ने फ्यूल सेल फ्लाइट का किया सफल परीक्षण मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने निर्देश दिए कि उत्तरायणी पर होने वाले कार्यक्रमों को अयोध्या में…
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lokkesari · 2 years ago
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उत्तराखंड राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह(सेवानिवृत्त) ने राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से की मुलाकात
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उत्तराखंड राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह(सेवानिवृत्त) ने राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से की मुलाकात
नई दिल्ली/9 अगस्त/ बुधवार- आज उत्तराखंड राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) ने राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात की । इस अवसर पर उन्होंने राष्ट्रपति को मानसखंड मंदिर माला मिशन पर एक कॉफी टेबल बुक भेंट की।
उत्तराखंड राज्यपाल ने जानकारी देते हुए कहा कि हमने उत्तराखंड के विकास के लिए विभिन्न समसामयिक मुद्दों पर भी चर्चा की।चारधाम यात्रा के साथ-साथ दिसं��र में इन्वेस्टर्स समिट के लिए भी निमंत्रण देने का सौभाग्य मिला।
उन्होंने राष्ट्रपति को देवभूमि उत्तराखंड के लिए सराहना एवं मार्गदर्शन के लिए हृदय से आभार प्रकट करा।
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skmysticvlogs · 2 years ago
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nationalnewsindia · 2 years ago
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uttarakhandrochakjaankari · 2 years ago
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अल्मोड़ा का प्रसिद्ध- कटारमल सूर्य मंदिर। कोणार्क से भी पुराना।
उत्तराखंड देवभूमि के नाम से विश्व प्रसिद्ध है। यह हिंदुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है। यहां अनेक देवी देवताओं के मंदिर हैं जिनका अपना अलग ही महत्व है। इस पोस्ट में आपको एक ऐसे ही मंदिर के बारे में जानकारी मिलेगी जहां सूर्य भगवान की स्तुति की जाती है।  कटारमल सूर्य मंदिर, अल्मोड़ा
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कटारमल सूर्य मंदिर उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा जनपद के अधेली सुनार कटारमल गांव में सूर्य भगवान को समर्पित 'कटारमल सूर्य मंदिर' स्थित है। यह अत्यंत प्राचीन पूर्वामुखी मंदिर उड़ीसा में स्थित 'कोणार्क सूर्य मंदिर' से भी 200 साल पुराना है। यह कोणार्क सूर्य मंदिर के बाद सूर्य भगवान को समर्पित देश का दूसरा सबसे बड़ा मंदिर है। यह मंदिर समुद्रतल से लगभग 2116 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह मंदिर एक सुंदर चट्टान के ढाल पर स्थित है। यहां से कोसी घाटी का सुंदर नजारा देखने को मिलता है। मंदिर की स्थापना भगवान सूर्य देव को समर्पित इस मंदिर का निर्माण कत्यूरी राजा कटारमल द्वारा छठी से नौवीं शताब्दी के बीच हुआ था। यह मंदिर कुमाऊं के विशाल मंदिरों में से एक है। मंदिर के आस पास 45 छोटे-छोटे मंदिरों का समूह है जो इसकी सुंदरता को और निखारता है। बडादित्य दूसरा नाम इस मंदिर में स्थापित भगवान आदित्य की मूर्ति बड़ के पेड़ की लकड़ी से निर्मित है। इस कारण इसे बडादित्य के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर की वास्तुकला
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कटारमल सूर्य मंदिर कटारमल सूर्य मंदिर नागर शैली में निर्मित है। यहां सूर्य देव ध्यान मुद्रा ���ें विराजमान हैं। इस मंदिर की संरचना त्रिरथ है जो वर्गाकार गर्भगृह के साथ शिखर वक्र रेखीय है। इस मंदिर के मुख्य भवन का शिखर खंडित अवस्था में है। मंदिर की संरचना को आधार दिए गए खम्बों पर खूबसूरत नक्काशी की गई है। इस मंदिर के गर्भगृह का प्रवेश द्वार उच्चकोटि की काष्ठ कला से निर्मित है। जिसे वर्तमान में दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में रखा गया है।  यहां भगवान सूर्य देव के साथ-साथ भगवान शिव, गणेश और विष्णु भगवान स���ित कई देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। मंदिर के विभिन्न भागों में की गई नक्काशी मंदिर को और ज्यादा खूबसूरती प्रदान करती है।   कटारमल मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा
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कटारमल सूर्य मंदिर पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन समय में उत्तराखंड की कंदराओं में धर्मद्वेषी असुर ऋषि मुनियों पर अत्याचार किया करते थे। जिससे मुक्ति के लिए द्रोणगिरि, काषय पर्वत व कंजार पर्वत के ऋषियों ने कौशिकी (कोसी) के तट पर आकर भगवान सूर्य देव की तपस्या की।  सूर्य देव ऋषि मुनियों की तपस्या से अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने आशीर्वाद स्वरूप अपने दिव्य तेज को यहां वटशिला में स्थापित किया। इसके बाद इसी वटशिला को कत्यूरी शासक कटारमल द्वारा बडादित्य मंदिर के रूप में विकसित किया और तभी से यह मंदिर कटारमल सूर्य मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हो गया। कटारमल मंदिर से जुड़ी मान्यताएं कटारमल मंदिर के मुख्य भवन का शिखर खण्डित है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर को रातों रात निर्मित किया गया, लेकिन प्रातः जब सूर्य भगवान उदित होने लगे तो मुख्य मंदिर के शिखर का भाग छूट गया। वहीं एक अन्य मान्यता के अनुसार मंदिर के रख-रखाव के अभाव के कारण इसके शिखर का भाग खंडित हो गया। वर्तमान में मंदिर की देखभाल भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा की जा रही है। Read the full article
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everynewsnow · 4 years ago
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देवभूमि की सिद्धपीठ: कालीशिला: यह माता भगवती के सबसे शक्तिशाली और शक्तिशाली मंदिरों में से एक है
देवभूमि की सिद्धपीठ: कालीशिला: यह माता भगवती के सबसे शक्तिशाली और शक्तिशाली मंदिरों में से एक है
कालाशिला मंदिर: जहां बालिका के रूप में प्रकट हुईं देवी मां … देश दुनिया में हिंदुओं की आस्था के प्रतीक कई मंदिर मौजूद हैं। सनातन धर्म में जहां भगव��न की पूजा का विधान है, वहीं शक्ति के रूप में देवी मां को माना गया है, जिनके कई रूपों का भी वर्णन है तो वहीं देवी माता की सिद्ध पीठ भी हैं। इन्हीं में से कुछ सिद्ध पीठ देवभूमि उत्तराखंड में भी मौजूद हैं। ऐसे में आज हम आपको एक ऐसे सिद्धपीठ के बारे में…
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santoshkukreti04-blog · 3 years ago
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यमकेश्वर महादेव मंदिर(Yamkeshwar Mahadev Temple ):- यमकेश्वर महादेव मंदिर भारतवर्ष के देवभूमि उत्तराखण्ड के पोड़ी गढ़वाल जिले के यमकेस्वर ब्लॉक में
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animalvidoes · 8 months ago
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मां स्याही देवी का मंदिर
देवभूमि उत्तराखंड में आपको ऐसे कई मंदिर देखने को मिलेंगे जिनका इतिहास काफी प्राचीन है और लोग की आस्था इन मंदिरों से जुड़ी हुई है. हम आपको ऐसे ही मंदिर पर लेकर आए है जो कि अल्मोड़ा से तकरीबन 36 किलोमीटर की दूरी पर है. मां स्याही देवी का मंदिर यह मंदिर पहाड़ की ऊंची चोटी में बसा हुआ है. jaidevbhumi स्थानीय लोगों के अनुसार, कत्यूरी राजाओं द्वारा इस मंदिर का निर्माण एक रात में किया गया था. मंदिर के…
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spot-hunter · 1 year ago
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Chandrika Devi Mandir | चंद्रिका देवी मंदिर किस लिए प्रसिद्ध है?
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि उत्तराखंड एक धार्मिक केंद्र है। यह एक बहुत ही शांतिपूर्ण और गौरवशाली स्थान है। इसे ‘देवभूमि’ के नाम से भी जाना जाता है जिसका अर्थ है ‘भगवान की भूमि’। यह उच्च आध्यात्मिक महत्व का स्थान है। ऐसा माना जाता है कि यह प्राचीन काल से कई हिंदू देवी-देवताओं का घर रहा है। प्रसिद्ध मंदिर, मूर्तियां, स्मारक, वास्तुकला और यहां तक ​​कि नदियां उस समय के युद्ध और समाज में उनकी भूमिका…
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vividuttarakhand · 4 years ago
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देवभूमि उत्तराखण्ड को शिव का निवास माना गया है. यहां भगवान शिव को कई रूपों में पूजा जाता है. हिमाचल सीमा से सटे उत्तराखण्ड के जौनसार-बावर तथा रवाई जौनपुर में पूजे जाने वाले महासू देवता इन्हीं में से हैं. उत्तरकाशी जिले मुख्यालय से लगभग 150 किमी दूरी पर हनोल में महासू देवता का लोकप्रिय मंदिर है। महासू का अर्थ है महान शिव. इस नाम के सम्बन्ध में माना जाता है कि यह एक देवता न होकर देवकुल का बोधक है — बासक, पिबासक, भूथिया या बौठा, चलदा या चलता. इन चार भाइयों और माता देवलाड़ी को सामूहिक रूप से महासू कहा जाता है. ये सभी अपने-अपने क्षेत्रों के अधिपति और ईष्ट देव हैं लेकिन सभी पूरे क्षेत्र में ही सामान्य रूप से पूजे जाते हैं। हनोल महासू देवता मंदिर का निर्माण हूण राजवंश के पंडित मिहिरकुल हूण ने करवाया था. यह म��दिर हूण स्थापत्य शैली का शानदार नमूना हैं व कला और संस्कृति की अनमोल धरोहर है. कहा जाता है कि इसे हूण भट ने बनवाया था, भट का अर्थ योद्धा होता हैं। बौठा का प्रशासनिक केंद्र हनोल में है. लेकिन इसका प्रभाव क्षेत्र जौनसार-बावर के अतिरिक्त बंगाण में भी है. बासिक का प्रशासनिक केंद्र टौंस नदी के बायीं ओर का बावर व देवसार अर्थात साठीबिल (कौर क्षेत्र). इसे समर्पित मंदिर कूणा, बागी तथा रंग में. टौंस नदी का दक्षिण तटीय इलाका यानि पासीबिल (पांडव क्षेत्र) तथा बंगाण पवासी का प्रशासकीय क्षेत्र है. पवासी के प्रमुख मंदिर बामसू, चींवा, देवती, देववन, माकुड़ी, आराकोट, थैना, बिसोई, लखवाड़, लक्स्यार, रवाटुवा, तथा टगरी गाँवों में हैं. चालदा का अपना कोई क्षेत्र नहीं है. इसे चलदा इसीलिए कहा जाता है कि यह समय-समय पर अपने क्षेत्र के विभिन्न ग्राम समूहों में यात्रा करता रहता है. इसका मूल स्थान यद्यपि हनोल है लेकिन यह समल्टा, उदपल्टा, कोरू और सेरी खतों की भी यात्राएं करता रहता है. अपनी यात्रा के दौरान यह गांव वालों से बकरे की बलि व् अन्य भेंट पूजा स्वीकार करता है. यात्रा के दौरान इसके दल में सौ-दौसौ कर्मचारियों का समूह रहता है, ग्रामीण इन सभी के भोजन और आवास का बंदोबस्त करते हैं. अपनी इस यात्रा के दौरान यह एक रात हनोल के मंदिर में भी विश्राम करता है जो कि बौंठा के प्रशासनिक क्षेत्र में आता है. महासू मंदिर में बौंठा के साथ अन्य तीनों भाई भी मौजूद हैं इस वजह से इसे चारों महासुओं का माना जाता है. इस मंदिर में चारों महासुओं के अलावा इनके चारों वीर — कपला, कैलथा, कैलू और शेर कुड़िया की भी मूर्तियाँ प्रतिष्ठित हैं. Follow:- @vivid_uttarakhand #vividuttarakhand #mahasudevta #mahasudevtatemple (at Uttarakhand) https://www.instagram.com/p/CRD_qufrCha/?utm_medium=tumblr
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panchtattva-adventures · 4 years ago
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Jai tarkeshwar dham
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देवभूमि उत्तराखंड की पावन भूमि पर ढेर सारे पावन मंदिर और स्थल हैं। उत्तराखंड को महादेव शिव की तपस्थली भी कहा जाता है। भगवान शिव इसी धरा पर निवास करते हैं। इसी जगह पर भगवान शिव का एक मंदिर बेहद ही खूबसूरत जगह पर मौजूद है और वह है ताड़केश्वर भगवान का मंदिर।
मान्यता है कि इस मंदिर में मांगी गई हर मन्नत भगवान पूरी करते हैं। यहां हर साल लाखों श्रद्धालु न केवल देश से बल्कि विदेशों से भी आते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, ताड़कासुर नामक राक्षस ने भगवान शिव से अमरता का वरदान प्राप्त करने के लिए इसी स्थान प��� तपस्या की थी। शिवजी से वरदान पाकर ताड़कासुर अत्याचारी हो गया। परेशान होकर देवताओं और ऋषियों से भगवान शिव से प्रार्थन की और ताड़कासुर का अंत करने के लिए कहा।
ताड़कसुर का अंत केवल भगवान शिव और माता पार्वती का पुत्र कार्तिकेय कर सकते थे। भगवान शिव के आदेश पर कार्तिकेय ताड़कासुर से युद्ध करने पहुंच जाते हैं। अपना अंत नजदीक जानकर ताड़कासुर भगवान शिव से क्षमा मांगता है।
भोलेनाथ असुरराज ताड़कासुर को क्षमा कर देते हैं और वरदान देते हैं कि कलयुग में इस स्थान पर मेरी पूजा तुम्हारे नाम से होगी इसलिए असुरराज ताड़कासुर के नाम से यहां भगवान भोलेनाथ ताड़केश्वर कहलाते हैं।
एक अन्य दंतकथा भी यहां प्रसिद्ध है। एक साधु यहां रहते थे जो आस-पास के पशु पक्षियों को सताने वाले को ताड़ते यानी दंड देते थे। इनके नाम से यह मंदिर ताड़केश्वर के नाम से जाना गया।
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unciatrails · 5 years ago
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तुंगनाथ मंदिर ========= देवभूमि उत्तराखंड में दुनिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर मौजूद हैं। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों द्वारा कराया गया है।उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में यह मंदिर तुंगनाथ पर्वत पर ‌‌स्थित है। जिसकी ऊंचाई 3,680 मीटर है। तुंगनाथ पर्वत पर स्थित यह तुंगनाथ मंदिर उत्तराखंड के पंच केदारों में शुमार है और सबसे ऊंचाई पर स्थित है।यह मंदिर 1000 साल पुराना माना जाता है और यहां भगवान शिव के पंच केदारों में से एक रूप में पूजा होती है ऐसा माना जाता है की इस मंदिर का निर्माण पांडवों द्वारा भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया गया था, जो कुरुक्षेत्र में हुए नरसंहार के कारण पाण्डवों से रुष्ट थे।तुंगनाथ की चोटी तीन धाराओं का स्रोत है, जिनसे अक्षकामिनी नदी बनती है। मंदिर चोपता से तीन किलोमीटर दूर स्थित है।इस मंदिर में भगवन शिव के हाथ कि पूजा की जाती है, जो कि वास्तुकला के उत्तर भारतीय शैली का प्रतिनिधित्व करती है। मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार पर नंदी बैल की पत्थर की मूर्ति है । Jai bholenth Pc_@traveller_babu — view on Instagram https://ift.tt/2SZmcfg
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