#दलितों के खिलाफ अपराध
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आंध्र प्रदेश पुलिस स्टेशन में दलित मैन थ्रशेड, हेड टोंस्ड; दो पुलिस वाले सस्पेंड
आंध्र प्रदेश पुलिस स्टेशन में दलित मैन थ्रशेड, हेड टोंस्ड; दो पुलिस वाले सस्पेंड
पीड़ित प्रसाद को इलाज के लिए राजमुंदरी के सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया। (फोटो: News18)
स्थानीय वाईएसआरसीपी नेता के ट्रक को रोकने के लिए पुलिस ने पीड़ित प्रसाद के खिलाफ भी मामला दर्ज किया है।
News18 हैदराबाद
आखरी अपडेट: 22 जुलाई, 2020, 11:41 AM IST
आंध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरी जिले के सेथनगरम पुलिस स्टेशन में रविवार रात एक दलित व्यक्ति को पीटा गया और उसका सिर काट दिया गया। पीड़ित के…
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आखिर ब्राह्मण ससुरा जायेगा कहाँ, लौट कर आयेगा तो हमारे तलवे चाटने ही : भाजपा
भाजपा विधायकों का आया विवादित बयान कहा- "ब्राह्मण हमारी पैरवी करता आया है, आखिर हमारी पार्टी की पैरवी छोड़ ससुरा जायेगा कहाँ, आयेगा तो भाजपा के पास ही....।
आगामी उत्तर प्रदेश 2022 विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र राजनैतिक पार्टियों में वोट बैंक जुटाने की कवायात् तेज़ हो गई है, इसी का असर है की प्रदेश में हर तरफ जातीपूर्ण सियासी माहौल बहुत ज्यादा गर्म है।
चुनाव उत्���रप्रदेश में हो और जातिवाद की बात न हो..? ऐसा तो संभव ही नहीं है, क्योंकि - उत्तरप्रदेश के हर एक छोटे-बड़े चुनावों में जाती बहुत ज्यादा महत्व रखती है, इसीलिए जैसे ही चुनाव नजदीक आते है, सभी राजनैतिक पार्टियों एवं सत्ता धारी राजनेताओं में जातीय वोट बैंक जुटाने की कवायत् जोरों शोरों से शुरू हो जाती है।
जातीवाद की स्वार्थ पूर्ण राजनीति में सबसे बड़ा मुद्दा जातीय जनगड़ना का होता है, क्योंकि उत्तरप्रदेश में सवर्ण, दलित एवं पिछड़ा मिलाकर कई अन्य समुदाय के लोगों की जनसंख्या अपने-अपने तौर पर सार्वधिक है और इनकी जनसंख्या सत्ता परिवर्तन की ताकत रखती है एवं यहाँ के निवासियों में अपनी अपनी जाती को लेकर कट्टरता बहुत चरमता पर होती है।
जातियों की यदि बात करें तो-
सवर्ण समाज में कुल 4 जातियाँ शामिल है जिनमें सार्वधिक आबादी 14% ब्राह्मणों की है दूसरी क्षत्रिय एवं राजपूत समाज की कुल 10% की आबादी है, तीसरी कायस्थ जाती की 8% वहीं अन्य शेष 10% प्रतिशत आबादी मुस्लिमों की भी इसी समाज की श्रेणि में आती है।
दलितों में - चमार, पासी, कोरी अन्य मिलाकर कुल 22% आबादी दलितों के अधिकार शेत्र में आती है।
पिछड़ा में- यादव, तेली, बनिया सहित अन्य कई जातियाँ 11% की आबादी में आती है।
ऐसा, माना जाता रहा है की इन में से कुछ विशेष जातियों का वोट बैंक किसी एक निर्धारित पार्टी के लिए आरक्षित रहता है जैसे दलितों की पार्टी बहुजन समाज पार्टी BSP इस पार्टी को सार्वधिक वोट दलित समाज से ही प्राप्त होते है वहीं, पिछड़े में बात की जाय तो यादवों और कुर्मियों के वोट समाजवादी पार्टी SP के लिए आरक्षित होते है सार्वधिक वोट सपा को इन्हीं जाती के लोगों से प्राप्त होते है।
इनमें से यदि दलित समाज को छोड़ दिया जाय तो दूसरी सार्वधिक आबादी रखने ��ाली जाती ब्राह्मणों की ही है जो की 14%+ जनसंख्या के साथ बहुल है एवं सत्तापरिवर्तन की ताक़त रखने वाली विशेष दमदार जाती है।
राजनीति का इतिहास इस बात का गवाह रहा है की 2005 के बाद जिस ढंग से उत्तरप्रदेश के राजनैतिक परिवेश में बदलाव आया है वह कहीं न कहीं इसी ब्राह्मण जाती के लोगों की ही देन है।
2006 में ब्राह्मण जाती के 65% बहुल वोटों से ही मायावती की बसपा की सरकार बनी तो इसी बसपा की सरकार की विदाई कर 2012 में 70% बहुल वोटों के साथ ब्राह्मण समुदाय ने अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी सपा की सरकार बनवाई उसके पश्च्यात फिर 2017 में इन्हीं ब्राह्मणों के अमूल्य बहुल 80% वोटों से योगी की भाजपा सरकार की ऐतिहासिक जीत हुई।
आखिर ब्राह्मण समाज क्यों चाहता है एक बार फिर यूपी की सत्ता में परिवर्तन...?
जिस ब्राह्मण जाती के लोगों ने अपने बहुल वोटों से उत्तर प्रदेश की सत्ता में ऐतिहासिक परिवर्तन कर 2017 में योगी आदित्यनाथ की भाजपा सरकार की सत्ता में वापसी करवाई थी कहीं न कहीं वही पार्टी आज उनके समाज के प्रति ही भेदभावि एवं अत्याचारी सिद्ध हुई ऐसे कई गंभीर कानून एवं मामले सरकार की ओर से आये जिनमें ब्राह्मण समाज के लोगों के साथ अन्याय हुआ एवं लोकतांत्रिक पक्षपात किया गया।
आइये जानते है कुछ ऐसी ही घटनाओं एवं किस्सों को जिन के घटित होने के बाद ब्राह्मण समाज का रुझाव एवं प्रेम भाजपा सरकार से भंग होता चला गया और अब वही ब्राह्मण समाज भाजपा की गुलामी से मुक्ति की राह तलाश रहा है।
SC/ST (हरिजन एक्ट) कानून में संशोधन -
2018 में भाजपा की सरकार ने दलितों के उपर हो रहे अत्याचारों एवं शोषण के खिलाफ सख्ती दिखाते हुए SC/ST हरिजन एक्ट कानून में संशोधन करते हुए इसे पहले के मुताबिक ज्यादा सख्त एवं मजबूत किया था तथा इसमें पहले के मुताबिक 35+ धाराओं को इस कानून के अंदर जोड़ा था जिसको लेकर सवर्ण समाज सहित संपूर्ण ब्राह्मण समाज ने इसकी कड़ी निंदा की थी एवं इसके विरोध में कई ब्राह्मण तथा सवर्ण संगठनों ने इस SC/ST कानून का पुरजोर विरोध धरातल पर किया था जिनमें - परशुराम सेना, सवर्ण सेना, सवर्ण आर्मी, करणी सेना एवं आज़ाद सेना जैसे संगठनों ने धरना प्रदर्शन सहित भारत बंद एवं अन्य कई विरोध जताय थे उनमें ये सारे संगठन सबसे ज्यादा आगे थे।
SC/ST कानून को उत्तरप्रदेश एवं कई अन्य राज्यों की क्षेत्री भाषा में हरिजन एक्ट के नाम से भी जाना जाता है, 2018 में भाजपा सरकार ने इस एक्ट में कई महत्वपूर्ण संशोधन किये थे जिसको लेकर भाजपा सरकार का दावा था की उनकी पार्टी दलितों की सबसे बड़ी हित चिंतक पार्टी है और उसने दलितों एवं पिछड़ों के संरक्षण के लिए SC/ST एक्ट में 35 से भी ज्यादा महत्वपूर्ण कड़े संशोधन कर अपने दलित हित चिंतक एवं बाबा साहेब के आदर्शों पर चलने वाली पार्टी का होने का दावा सिद्ध किया था परंतु संशोधन के बाद ही इसके विरोध में सवर्ण समाज ने अपनी आवाज़ उठाई थी परंतु भाजपा की सरकार ने सवर्णो की एक ना सुनी और अपने फैसले पर अड़ी रही एवं SC/ST संशोधन अट्रोसिटी एक्ट बिल संसद में बड़ी आसानी से पारित हो गया। उसके कुछ ही सालों में ये कानून ब्राह्मणों के लिए मानो अभिशाप बन कर कहर ढाने लगा कई ऐसे मामले आये जिनमें सवर्णो एवं खास कर ब्राह्मण जाती के लोगों पर सार्वधिक फ़र्ज़ी मुकदमे हरिजन एक्ट के डलने शुरू हो गए जिसमें यह नियम था की यह एक्ट लगने के तत्पश्चयात् आरोपी को बिना किसी जाँच एवं बिना किसी अधिकारिक गिरफ्तारी के काग्ज़ातो के बिना ही आरोपी को तुरंत जेल में डाल दिया जाता है, फिर SC/ST एक्ट लगाने वाले दलित व्यक्ति को मुवावजे के तौर पर तुरंत उसके खाते में 40,000₹ से लेकर 8,00000₹ तक की धनराशि तुरंत उसके खाते में डलवा दी जाती है फिर चाहे आरोपी का अपराध सिद्ध हुआ हो या नहीं, चाहे मामला छोटा हो या बड़ा इससे भी कोई मतलब नहीं रहता है।
एक अधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार केवल इस SC/ST एक्ट के 0.31% मामले ही सही पाय गए है बाकी सभी मामले झूठे और बेवजह पाय गए जिनमें आरोपियों को बरी किया गया लेकिन आज भी हर रोज प्रति दिन करीब 1500 झूठे फ़र्ज़ी SC/ST एक्ट के केस निर्दोष ब्राह्मणों एवं सवर्णो पर दलित समुदाय के व्यक्तियों द्वारा लगाया जाता है। यह एक्ट जितना दलितों के लिए फायदेमंद है उससे कई ज्यादा सवर्णो और ब्राह्मणों के लिए विषैला।
फ़र्ज़ी SC/ST हरिजन एक्ट का सबसे बड़ा केस विष्णु तिवारी नाम के व्यक्ति पर था जिसके उपर उसके गाँव के ही कुछ दबंग दलितों ने दलित लड़की का रेप करने पर झूठा हरिजन एक्ट दाखिल कर दिया था जिसमें ब्राह्मण समाज से आने वाले विष्णु तिवारी नाम के युवक को बिना किसी संविधानिक जाँच एवं सबूत के जेल में डाल दिया गया वो भी 2-3 दिन के लिए नहीं बल्कि पूरे 18 सालों के लिए, उस व्यक्ति ने अपने जीवन के महत्वपूर्ण 18 साल एक ऐसे गुनाह की सजा काटी जिसने वह कभी अपनी जिंदगी में किया ही नहीं था बल्कि उसका इस पूरे घटना क्रम से दूर- दूर का कोई लेना देना नहीं था बस गाँव के ही दलित लोगों ने असल अपराधियों के बचाव में विष्णु तिवारी के सर उस अपराध को मढ़ दिया। विष्णु तिवारी उत्तर प्रदेश के गाँव में रहने वाले गरीब किसानी कर अपना जीवन यापन करते थे जब उनपर यह एक्ट लगा तब उन्हे इस बात की भनक भी नहीं थी आखिर उन्हें किस अपराध के लिए जेल में लाकर बंद कर दिया गया है, हालांकि अपने जीवन के कीमती 18 साल और धूमिल हुई इज्जत के साथ 18 सालों के बाद जिला सत्र न्यायालय ने विष्णु तिवारी को बेगुनाह बताते हुए बाइज्जत बरी किया, परंतु क्या सिर्फ बाइज्जत बरी कर देने से उस व्यक्ति के बेशकीमती 18 साल लौटा सकती है कोर्ट या फिर ऐसा अत्याचारी का���ून बनाने वाली सरकार..?
यहाँ, तक की 18 साल जेल काटने के बाद जब विष्णु तिवारी अपने गाँव वापस गए तो ना ही घर बचा था ना ही कोई रोजगार एवं बाहर की नई दुनिया देख कर वह आश्चर्यचकित रह गए और उन्होंने कहा मानों मुझे नया जीवन दान मिला हो, उनके लिए आज के ये स्मार्ट फोन और अन्य तरह तरह की टेक्नोलॉजी एक चमत्कार सी प्रतीत हो रही थी, अपनी जिंदगी के बेशकीमती 18 साल एक ऐसे गुनाह की सजा काटने के बाद भी ना किसी सरकार ने इनकी मदत की ना ही किसी कोर्ट ने अगर कोई इनकी सहायता के लिए आगे आया तो वो था इनका ब्राह्मण समाज जब ब्राह्मण संगठन के संस्थापको को इनके बारे में पता चला तो वो इनकी मदत करने चले आये और इंहे आश्वासन दिलाया की इनके उपर हुए घनघोर् अत्याचार के विरुद्ध इन्हें अपने शेष जीवन सुगमता से जीने हेतु मुआवजा दिलवाया जाय और नौकरी भी परंतु अभी तक इन दोनों में से एक के भी लाभ से ये वंचित है, और किसी को इनकी परवाह नहीं जिन लोगों ने इनपर फ़र्ज़ी कानून लगाए थे उनमें से कुछ अब इस दुनिया में नहीं है और कुछ आज भी खुलेआम अपना जीवन एक निर्दोष का जीवन तबाह कर के आराम से जी रहे है, इस एक घटना से आप समझ सकते है की ये SC/ST कानून सिर्फ और सिर्फ अत्याचार की परिभाषा मात्र है, ना जाने हर दिन कितने विष्णु तिवारी इस एक्ट से पीड़ित होते होंगे।
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वैदिक आरक्षण की काट है संवैधानिक आरक्षण Divya Sandesh
#Divyasandesh
वैदिक आरक्षण की काट है संवैधानिक आरक्षण
Writer Engineer Rajendra Prasad
आजकल सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पूछा जाना कि यह आरक्षण कितनी पीढियों तक चलेगी की ़यह चर्चा गर्म है। इसके पक्ष-विपक्ष में विभिन्न प्रकार की टिप्पणियां आ रही है। यह जाति व्यवस्था सनातनी हिंदुओं द्वारा ‘‘फूट डालो और राज करो‘‘ की नीति के तहत हजारों वर्ष पहले बनाई गई थी, जो आज भी जारी है। कठोर जातिगत भेदभाव के कारण दलित वर्ग को आरक्षण प्रदान किया गया। इससे पहले सभी प्रकार के लाभकारी आरक्षण केवल उच्च जातियों के लिए था। आरक्षण भारतीय समाज के लिए कोई नई बात नहीं है। पहले यह एक विशेष जाति के लिए विशेष नौकरियों में शत प्रतिशत आरक्षण था। छोटी जातियों के आरक्षण का मतलब किसी दूसरे का हिस्सा लेना नहीं है। बल्कि कमजोर वर्ग के हिस्से को दबंगों, शरारतबाजों और चालबाजों से बचाने के लिए यह आरक्षण है। उच्च जातियों को छोटी जातियों का जाति का आरक्षण दिखाई देता है। वे उसका मुखर विरोध करते हैं। लेकिन अपने जाति के नाम पर मिल रहे बड़े आरक्षण और विशेषाधिकार पर चुप रहते हैं। उन्हें छोटी जातियों के नाम पर किए जा रहे शोषण, भेदभाव और अत्याचार दिखाई नहीं देता है।
आरक्षण व्यवस्था वैदिक काल से ही चली आ रही है। यह देश हजारों वर्षों से आरक्षण का देश रहा है। सवर्णों ने सर्वप्र��म अपने लिए आरक्षण की शुरूआत की। स्वतंत्रता के बाद संवैधानिक आरक्षण लाया गया। संवैधानिक आरक्षण वैदिक आरक्षण का छोटा सा काट है, उसकी भरपाई है। यह उसका बहुत ही छोटा सा हिस्सा है। संवैधानिक आरक्षण वैदिक आरक्षण वाले लोगों को यह दिखाने के लिए है कि संवैधानिक आरक्षण वाले भी अवसर मिलने पर सुयोग्य और कुशल होते हैं। लेकिन जब वंचितों को आरक्षण दिया जाने लगा तब वैदिक आरक्षण वाले संवैधानिक आरक्षण वालों को बदनाम करने के साथ ही साथ उसे समाप्त करने के विभिन्न कार्यक्रम चलाने लगे। धनुर्विद्या में एकलब्य के सामने अर्जुन की क्या औकात थी? लेकिन द्रोणाचार्य ने कैसे छल किया ? क्या झूठ, छल और तिकड़म ही सुयोग्यता हैं? ये अपने जन्म और जाति के बल पर सुयोग्य बनते रहते हैं।
सवर्णों के हजारों साल से चले आ रहे आरक्षण की तुलना में दलितों के 75 साल का आरक्षण कितना है? वे हजारों साल से पीढ़ी दर पीढ़ी ब्राह्मण या उच्च जाति क्यों बनते आ रहे हैं? ब्राह्मणों या उच्च जातियों का आरक्षण कब समाप्त होगाा? अशिक्षित ब्राह्मण या उच्च जाति के लोग पढे लिखे दलितों से भी खुद को मन में श्रेष्ठ क्यों समझते हैं? सभी क्षेत्रों में दलितों को आरक्षण नहीं दिया जा रहा है, फिर भी उन्हें जितना मिल रहा है, उससे हिंदू धार्मिक जाति व्यवस्था की मान्यताओं पर सीधी कठोर चोट हो रही है। हमारा संविधान छोटी जातियों के खिलाफ हिंदू धार्मिक ग्रंथों के आदेशों और निर्देशों को अमानवीय मानता है। सभी धार्मिक आदेश और रीति रिवाज जो समानता और मानव अधिकारों का हनन करता है, उसे संविधान के अनुच्छेद 13 के तहत शून्य और निष्प्रभावी कर दिया गया है। इसके आचरण को दण्डनीय अपराध घोषित किया गया है। संविधान ने सामाजिक परिवर्तन और मानवीय गरिमा को गतिशील किया है।
आरक्षण सामाजिक परिवर्तन का एक साधन है। यह वंचित वर्ग का सत्ता में उसका हिस्सा प्रदान करता है। आरक्षण को समाप्त करने के लिए हमें जाति व्यवस्था को समाप्त करना होगा, ताकि जाति के अंत के साथ ही जाति आधारित आरक्षण स्वतः समाप्त हो जायेगाा। पहले के दिनों में लोग जाति पूछते थे। अब लोग जाति का पता लगाते हैं। इतना ही अन्तर आया है। जाति का प्रभुत्व इतना मजबूत है कि जाति जानने के बाद अधिकतर लोगों के व्यवहार और आचरण में बदलाव आ जाता है। जिस तरह अमीर दलित जाति के नाम पर अपमानित किया जाता है, उसी तरह क्या कोई गरीब ब्राह्मण जाति के नाम पर अपमानित किया जाता है? उसका उत्तर होगाा – कभी नहीं ।
आरक्षण आर्थिक उन्नति के लिए नहीं दिया जाता है। यह उनके सामाजिक उत्थान और सत्ता में हिस्सेदारी के लिए है। उनकी दबाई गई प्रतिभा को उभारने के लिए है। अनुसूचित जाति, जनजाति या पिछड़ी जाति का कोई व्यक्ति कितना भी धनी क्यों न हो जाए, समाज में ऊँची जातियों के लोग उसे हेय दृष्टि से ही देखते है। ऊँची जातियों को सम्मान देना उसका कत्र्तव्य मान�� जाता है। इन पूर्वाग्रहों को बदलने या निष्प्रभावी करने के लिए जातीय आरक्षण की भूमिका महत्वपूर्ण हो ���ाती है। समानता का अधिकार समान लोगों पर लागू होता है। असमान समाज के लोगों को समान अवसर देना असमानता को बढ़ावा देना ही कहा जाएगाा। दलितों को दी गई रियायतें अधिकार के मामले हैं, न कि दान या परोपकार के मामले हैं। यह जातीय भेदभाव का क्षतिपूरक है। गरीब व्यक्ति कुछ दिनों के बाद अमीर हो सकता है। उसी तरह अमीर व्यक्ति भी गरीब बन सकता है। लेकिन छोटीजाति का व्यक्ति कभी भी बड़ी जाति का व्यक्ति नहीं बन सकता है। क्या किसी अमीर और पढ़े लिखे डोम-भंगी जाति के व्यक्ति को ब्राह्मण बनते आपने देखा है? क्या किसी गरीब और अनपढ़ ब्राह्मण को डोम चमार बनते देखा है? मरने के बाद भी जाति लोगों का पीछा नहीं छोड़ती है ।
उच्च जातियों ने खुद ही आरक्षण का रास्ता दिखाया। आज वे छोटी जातियों के आरक्षण का विरोध कर रहे हैं। आखिर मंदिर का पुजारी ब्राह्मण ही क्यों होगा? शास्त्री की उपाधि पात्र भंगी मंदिर का पुजारी क्यों नहीं हो सकता है? अपने पास पहले से मौजूद आरक्षण को क्यों नहीं छोड़ते? देश का शासक वर्ग यह चाहता है कि जिन जातियों ने आज तक शासन किया है, उसे वैसे ही जारी रहना चाहिए। दो कारणों से उच्च जातियाँ छोटी जातियों के आरक्षण का विरोध कर रही हैं- पहला छोटी जातियों के उध्र्वगामी विकास से उत्पन्न असुरक्षा और दूसरा अपने सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक वर्चस्व को बनाए रखने की प्रबल इच्छा। इस प्रकार की परिवर्तित शक्ति से समाज मे उनकी स्थिति कमजोर होती जा रही है। वे पूर्ण वर्चस्व चाहते हैं। आरक्षण विरोध का मर्म यही है। इसलिए वे इसका कड़ा विरोध कर रहे हैं। अब इस विरोध में न्यायपालिका भी षामिल हो गई है। ऐसे व्यक्ति आरक्षण को आर्थिक प्रश्न बनाकर आम लोगों के बीच भ्रम पैदा करना चाहते हैं। जाति को लेकर दलित आरक्षण की चर्चा अधिकांषतः सवर्ण परिवार अपने बच्चों से करते है। वे यह भ्रम फैलाते हंै कि देष की समस्या जातिवाद नहीं बल्कि आरक्षण है। वह आरक्षण को ही सारी समस्या की जड़ बताते है। यही बात वह अपने बच्चों को सिखाते है। वह अपनी जाति को सर्वश्रेष्ठ बताते हंै। वे अपने बच्चों के दिमाग को दुषित कर देते हैं। लेकिन सामान्यतः दलित परिवार अपने बच्चों को आरक्षण का इतिहास और महत्व नहीं बताते हैं। हमारे राष्ट्र निर्माताओं ने संविधान में आरक्षण द्वारा जाति समस्या के जहर को कम किया है। यह जातीय समता के लिए है। उल्लेखनीय है कि आर्थिक उत्थान के लिए दूसरे गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम हैं, जो सिर्फ गरीबों के लिए चलाए जाते हैं।
आर्थिक आधार पर आरक्षण की माँग धोखेबाजों की माँग जैसी है। जो अपने सामाजिक रूप से हासिये वाले भाइयों के हिस्से को हड़पने के फिराक में रहता है। दलितों-पिछड़ों के आरक्षण का प्रश्न मात्र दलितों-पिछड़ों का प्रश्न नहीं है, उनके लिए यह सामाजिक समता का प्रश्न है, स्वतंत्रता, समानता और बन्धुत्व का प्रश्न है। यह राष्ट्रीय एकीकरण का सवाल है। यह प्रश्न हिन्दू धर्म की अमानवीय प्रथाओं में सुधार का है। ये जातियाँ राष्ट्रविरोधी हैं। जाति राष्ट्रीय एकीकरण में बाधक है। जातिप्रथा और छुआछूत को देश की एकता और अखण्डता तथा लोकतंत्र के लिए भयंकर खतरा है। जो लोग आर्थिक आधार पर आरक्षण का जोर शोर से नारा लगाते हैं कि जातीय आरक्षण से कार्य कुशलता और दक्षता का हनन होता है। उन्हें जानना चाहिए कि क्या आर्थिक आधार से लाभान्वित लोगों की दक्षता बढ़ जाएगी? क्या वे ज्यादा कार्यकुशल हो जाएंगे? क्या जातीय रूप से प्रताड़ित दलितों की प्रतिभा का हनन नहीं होता है ? क्या इस आरक्षण से अधिकतर गरीबों को रोजगार मिल जाएगा? क्या सभी पढ़े लिखे दलितों को रोजगार मिल जाता है? क्या दलित बेरोजगार नहीं है? क्या दलितों का आरक्षण समाप्त कर देने से बेरोजगारी खत्म हो जाएगी ? क्या आरक्षण का रिश्ता बेरोजगारी से है? वस्तुतः आरक्षण से बेरोजगारी का कोई रिश्ता ही नहीं है। ऐसे ही लोग जानबूझकर अप्रासंगिक मामले उठा कर अपना स्वार्थ साधना चाहते हैं। इसके बहाने वे दलितों को मिल रहे आरक्षण को हड़पना चाहते हैं। आर्थिक आधार पर आरक्षण का नारा लगाने वाले, यदि जाति समाप्त करो, अनिवार्य रूप से अंतर्जातीय विवाह कानून बनाओ का आंदोलन चलाते तो देष की बहुत सी समस्याएं हल हो जाती। जो लोग दलित आरक्षण को समाप्त करने का नारा लगाते हैं ,उन्हें पहले जाति समाप्त करो का नारा लगाना चाहिए। जाति की समाप्ति के साथ दलित-पिछड़ा आरक्षण स्वतः समाप्त हो जाएगाा।
कुछ लोग कहते हैं कि आरक्षण से जातिवाद को बढ़ावा मिलता है। इससे जाति खत्म होने की बजाय बढ़ती है। क्या यह ऐसा है? प्रश्न उठता है कि क्या गैर-आरक्षित जातियों का जातिवाद खत्म हो गया है? गैर-आरक्षित जातियों का जातिवाद तो कब का खत्म हो जाना चाहिए था। लेकिन उनके बीच दलितों से ज्यादा आपसी संघर्ष क्यों है? निश्चित ही आरक्षण से जातिवाद नहीं बढ़ा है। कुछ लोग कहते हैं कि दलित खुद जाति खत्म नहीं करते हैं। अकेले दलित कैसे जाति समाप्त कर सकते हैं? प्रश्न उठता है कि दलित की जाति समाप्त हो जाने से क्या शेष लोगों की जाति खत्म हो जाएगी? निश्चित ही इससे जाति समाप्त नहीं होगी। जबतक सभी समाजों के लोग जाति समाप्त करने के लिए प्रयास नहीं करेंगे,जाति समाप्त नहीं हो सकती है। हमारे संविधान निर्माताओं ने कार्यकुशलता और वितरक न्याय के बीच संतुलन रखने का प्रयत्न किया था ताकि प्रशासन वास्तविक बन सके। उन्होंने कार्यकुशलता के जरूरतों की उपेक्षा नहीं की थी, बल्कि यह अनिवार्य कर दिया कि राज्य की सेवाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के दावों पर विचार हो। कार्यकुशलता से उनका अभिप्राय परंपरागत अर्थ में अथवा मात्र कार्यकुशलता के लिए कार्यकुशलता का संरक्षण करना नहीं था बल्कि एक ऐसी कार्यकुशलता से था जो परिवर्तन की प्रकृति के अनुरूप हो।
यहाँ हीरा चोर को पुरस्कृत किया जाता है और खीरा चोर को दंड़ित किया जाता है। यह भ्रष्टाचार और जातिवाद हमारे अच्छे नागरिकों का मनोबल और ��ाष्ट्रवाद के ताने बाने को छिन्न भिन्न कर रहा है। भ्रष्टाचार और जातिवाद न्याय का गला घोटता है। आज लोग मानने लगे हैं कि जो जितना बड़ा, है, वह उतना भ्रष्ट। यह राष्ट्र के भरोसे का दुरुपयोग और उसके साथ धोखा करना है। न्यायपालिका, सार्वजनिक सेवाओं, सार्वजनिक जीवन और सरकारी गतिविधियों के अन्य क्षेत्रों में भ्रष्टाचार और जातिवाद सर्वत्र दिखाई देता है। इसे मिटाना आसान काम नहीं है। जब कानून लागू करने वाले सभी कानूनी संस्थान भी भ्रष्टाचार और जातिवाद में शामिल हैं, तो यह कैसे मिटाया जा सकता है? इसका हल कैसे निकले? यह एक बडी चुनौती है। क्या भारतीय संस्थाओं में भ्रष्टाचार और पक्षपात कभी खत्म होगा? अथवा यह केवल दिवास्वप्न ही बना रहेगा? क्या सर्वोच्च न्यायलय को इसपर विचार नहीं करना चाहिए? सर्वोच्च न्यायलय की इस पर चुप्पी उसे स्वयं कटघरे में खड़ा करती है। यह जाति कैसे टूटे ? यह भवन खम्भों पर खड़ा है। भवन को गिराना है तो खम्भों को गिरा दें। जिस चीज पर जाति प्रथा, वर्ण व्यवस्था खड़ी है उसे खींच लें वह गिर जायेगी। जाति प्रथा सुरक्षित रखने के लिये ऐसा कानून बनाया। आज समाज में उसको कानून जैसी ही शक्ति प्राप्त है कि एक ही जाति के वर और वधू की शादी जायज मानी जायेगी। आज यदि यह कानून बना दी जाये कि एक ही जाति के वर और वधू की शाादी नाजायज होगी। उसे कोई सरकारी पद और सरकारी सहायता नहीं दी जाएगी। उसे दंडित किया जाएगा। तब धीरे धीरे जाति प्रथा का बन्धन ढीला पड़ेगा। और यह समाप्त होगी। तब चालिस-पचास साल में हम जाति रूपी कोढ़ से छुटकारा पा सकते ह��ं। तब किसी को आरक्षण की जरुरत नहीं होगी। क्या सर्वोच्च न्यायलय का यह कर्तव्य नहीं है कि वह आरक्षण के साथ यह भी पूछे कि हजारों साल से जाति और जातीय भेदभाव क्यों चला आ रहा है? यह कब समाप्त होगा? इसी क्रम में सर्वोच्च न्यायलय के समक्ष वकीलों द्वारा भी यह मामला उठाया जाना चाहिए कि यह जाति व्यवस्था कब तक जारी रहेगी? जजों की नियुक्ति के लिए कालेजियम व्यवस्था कब तक चलेगी? उल्लेखनीय है कि भारतीय संविधान के मूल अनुच्छेद 312 में भारतीय न्यायिक सेवा के गठन का प्रावधान बनाया गया है लेकिन उसका गठन आजतक नहीं किया गया है। सर्वोच्च न्यायालय खुद इसमें बार बार अड़ंगा लगाती रहती है। देखें आने वाले कल में देष की जनता और वकील किसान आंदोलन की तरह जाति समाप्त करने और कालेजियम व्यवस्था के खिलाफ कब मुखर होगें?
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सीएम योगी के जिले में भी अपराधी बेखौफ, गोरखुपर में हुई दलित महिला की हत्या
सीएम योगी के जिले में भी अपराधी बेखौफ, गोरखुपर में हुई दलित महिला की हत्या
यूपी में दलितों और महिलाओं के खिलाफ अपराध नहीं रुक रहे हैं। न ही अपराधियों में पुलिस का ही कोई खौफ है। भले ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दावा करते हों कि अपराधी प्रदेश छोड़ कर चले गए हैं। हालात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि खुद योगी आदित्यनाथ के क्षेत्र गोरखपुर में दलित महिला की हत्या कर दी गई। घटना बांसगांव थाना क्षेत्र के भुसवल खुर्द गांव में हुई है। महिला अपने खेत पर जानवरों के लिए…
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#CM Yogi#criminal#Dalit woman#Gorakhpur#molestation#murder#UP#अपराधी#गोरखपुर#छेड़छाड़#दलित महिला#यूपी#सीएम योगी#हत्या
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मद्रास एचसी ने टीएन ऑनर किलिंग मामले में पांच अभियुक्तों की मौत की सजा को अलग रखा; लड़की के पिता को हासिल किया
मद्रास एचसी ने टीएन ऑनर किलिंग मामले में पांच अभियुक्तों की मौत की सजा को अलग रखा; लड़की के पिता को हासिल किया
मद्रास उच्च न्यायालय की फाइल फोटो।
पीठ ने पांच अन्य आरोपियों को बिना किसी छूट के न्यूनतम 25 साल के आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
PTI
आखरी अपडेट: 22 जून, 2020, 12:57 अपराह्न IST
मद्रास उच्च न्यायालय ने सोमवार को मुख्य आरोपी को बरी कर दिया और 2016 में तमिलनाडु के तिरुपुर जिले में पूर्ण सार्वजनिक दृश्य में 22 वर्षीय एक व्यक्ति की हत्या के मामले में पांच अन्य को मौत की सजा सुनाई।
अपील पर आदेश…
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#TN सम्मान हत्या का मामला#अभयकत#अलग#एचस#ऑनर#ऑनर किलिंग का मामला#क#कय#कलग#टएन#तमिलनाडु ऑनर किलिंग#दलितों के खिलाफ अपराध#न#पच#पत#म#मत#मदरस#ममल#रख#लडक#सज#हसल
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AAP बोली- विरोध के स्वर कुचलवा रही BJP,संजय सिंह पुलिस हिरासत में
नई दिल्ली। आम आदमी पार्टी (आप) दिल्ली के राज्य सभा सांसद संजय सिंह को उत्तर प्रदेश पुलिस ने हिरासत में ले लिया है। सिंह तीन बार के विधायक निवेन्द्र मिश्रा के परिजनों से मिलकर वापस लौट रहे थे तभी पुलिस ने उन्हें डीटेन कर लिया।
इस बात की जानकारी आप विधायक सौरभ भारद्वाज ने मीडिया से बात करते हुए दी है। ग्रेटर कैलाश से आप विधायक सौरभ भारद्वाज ने कहा उत्तर प्रदेश में कल दिन दहाड़े तीन बार विधायक रहे निवेन्द्र मिश्रा की पीटकर पुलिस की मौजूदगी में हत्या कर दी गई। मृतक के परिजनों से मिलकर सांसद संजय सिंह लौट रहे थे तब यूपी पुलिस ने उन्हें रोका और बिना किसी कारण अटरिया सीतापुर के गेस्ट हाउस में डिटेन किया।
भारद्वाज ने आगे कहा संजय सिंह जी यूपी में हो रहे सभी समाजों पर अत्याचार के खिलाफ आवाज़ उठा रहे हैं। उनकी आवाज़ को दबाने के लिए उन पर मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं। मैं योगी सरकार से कहना चाहूँगा कि आपकी गीदड़ भभकियों से हम डरने वाले नहीं है। आम आदमी पार्टी जनता की आवाज़ उठाती रहेगी। ग्रेटर कैलाश विधायक ने कहा कि योगी आदित्यनाथ ठाकुर समुदाय से आते हैं और ठाकुरों का वर्चस्व प्रशासन के अंदर देखा जा सकता है।
जिसके चलते ब्रा��्मणों और दलितों को लगातार अत्याचार सहना पड़ रहा है। भारद्वाज ने कहा कि यूपी में ब्राह्मण होना सबसे बड़ा अपराध हो गया है। यहां हर द��सरे दिन मरने वाला आदमी या तो मिश्रा है, दुबे है, पांडे है, शर्मा है, बाजपई है। वहीं MCD के कर्मचारियों (जिन्हें सैलरी नहीं मिली) के समर्थन में आम आदमी पार्टी ने विरोध प्रदर्शन किया। एमसीडी प्रभारी दुर्गेश पाठक के नेतृत्व में एक पदयात्रा निकली जानी थी लेकिन दिल्ली पुलिस ने इसकी इजाजत नहीं दी है जिसके बाद आम आदमी पार्टी के पार्षदों ने सिविक सेंटर के बाहर ही धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया है। दुर्गेश पाठक ने बताया, पिछले 6 महीने से MCD के कर्मचारियों को सैलरी नहीं मिली, ये कितने दुर्भाग्य की बात है हमारी एक ही मांग है कि बीजेपी वालों इस्तीफा दो या सैलरी दो।
इसे लेकर आप ने अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से ट्वीट भी किया है। आप ने लिखा "चोरी भी, सीनाजोरी भी। 15 साल से एमसीडी की सत्ता में बैठी बीजेपी भ्रष्टाचार की सीमाएं तो पार करती ही है। पुलिस के सहारे विरोध में उठने वाली आवाज भी कुचलती है। पहले टीचर्स को सैलरी न देने के विरोध में एएपी की पदयात्रा रोकी और दुर्गेश पाठक के नेतृत्व में हो रहे प्रदर्शन पर बर्बरता दिखाई।
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"अपराध खत्म होने" का झूठा प्रचार करती है यूपी सरकार : प्रियंका गांधी लखनऊ. प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ अपराध में साल 2016 से साल 2018 के बीच 21 फीसद की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। उत्तर प्रदेश महिलाओं के खिलाफ अपराध में देश में टॉप पर है। यूपी को अपराध प्रदेश बना दिया। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने महिलाओं संग अपराध में यूपी खराब स्थिति का एक आंकड़ा पेश कर भाजपा सरकार की खिल्ली उड़ाई। प्रियंका ने कहा कि दलितों के खिलाफ होने वाले कुल अपराध के एक तिहाई अपराध यूपी में होते हैं।
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SC/ST के खिलाफ बढ़ा अत्याचार, गुजरात में पांच वर्षों में 32% अपराधों की बढ़ोतरी @yadavakhilesh @RahulGandhi @Mayawati SC/ST के खिलाफ बढ़ा अत्याचार, गुजरात में पांच वर्षों में 32% अपराधों की बढ़ोतरी नई दिल्ली: मौजूदा सरकार में दलित समुदाय के लोगो के साथ होने वाले अत्याचार थमने का नाम नहीं ले रहे है। देश में दलितों पर अत्याचार की घटनाओं में इजाफा देखा गया है। गुजरात में 2013 से 2017 के दौरान दलितों के खिलाफ 32% और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के खिलाफ क्राइम 55% बढ़ गया है। यह खुलासा विधानसभा सत्र के दौरान हुआ। इस संबंध में कांग्रेस विधायक ने सितंबर 2018 सवाल पूछा था, जिसके जवाब में गुजरात सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री ईश्वर परमार ने यह रिपोर्ट पेश की। उन्होंने बताया कि 2013 से 2017 तक SC/ST एक्ट के तहत कुल 6185 केस दर्ज किए गए। इन सभी मामलों में दलित पीड़ित थे। इसे भी पढ़ें: अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने आतंकियों के मारे जाने की बात को बताया अफवाह 5 साल में इतने बढ़े मामले : रिपोर्ट के मुताबिक, 2013 में दलित उत्पीड़न के 1147 केस दर्ज हुए थे। वहीं, 2017 में दलित उत्पीड़न से संबंधित 1515 मामले दर्ज किए गए। वहीं, साल 2018 में मार्च तक दलित उत्पीड़न के 414 मामले सामने आए। इनमें से सबसे ज्यादा केस अहमदाबाद (49) दर्ज हुए। इनके बाद जूनागढ़ (34), भावनगर (25), सुरेंद्रनगर (24) और बनासकांठा (23) का नंबर आता है। अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ ज्यादा मामले : राज्य में अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ क्राइम के मामले ज्यादा तेजी से बढ़े हैं। इसे भी पढ़ें: दबंगों के डर से दलित के घर नहीं आई बारात, पुलिस जांच जुटी 2013 से 2017 के दौरान 5 साल में अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ क्राइम के मामले 55 प्रतिशत बढ़कर 1310 तक पहुंच गए। इसके अलावा साल 2018 के पहले 3 महीनों में ही ऐसे 89 मामले दर्ज हुए, जिसमें अनुसूचित जनजाति के लोग पीड़ित थे। इनमें सबसे ज्यादा केस भरूच (14), वडोदरा (11) और पंचमहल (10) में दर्ज हुए। अब तक 50 करोड़ की सहायता राशि बांटी : मंत्री ईश्वर परमार ने बताया कि अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों के खिलाफ क्राइम के अब तक दर्ज 5863 मामलों में गुजरात सरकार पीड़ितों को करीब 50 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता दे चुकी है। इसे भी पढ़ें: विंग कमांडर अभिनंदन के बगल में खड़ी महिला कौन है? जिसकी भारत में हो रही चर्चा उन्होंने बताया कि मार्च 2018 तक सिर्फ 28 पीड़ितों को मुआवजा देना बाकी रह गया है। गौरतलब है कि 28 फरवरी को गांधीनगर में एक कार्यक्रम के दौरान दलितों को संबोधित करते हुए परमार ने कहा था कि 4,500 लाभार्थियों को डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर स्कीम के माध्यम से 69 करोड़ रुपये की ऋण राशि बांटी गई है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल ने शुक्रवार को दावा किया कि गुजरात में पिछले ���ांच वर्षों में दलितों एवं आदिवासियों के खिलाफ अपराध के मामले में बढ़ोतरी हुई है जो भाजपा सरकार की विभाजनकारी और कुछ लोगों को अलग-थलग रखने की राजनीति को दिखाता है। ETCKhabar.com : हिंदी खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें। आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं।
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अति पिछड़ा वर्ग के लोगो ने अपनी मांगो को लेकर दिया धरना
अति पिछड़ा वर्ग के लोगो ने अपनी मांगो को लेकर दिया धरना : आज ��ाजीव गाँधी खेल स्टेडियम के सामने सेक्टर-6 के खुले मैदान में अति दलित पिछड़ा वर्ग के लोगो ने अपनी मांगो को लेकर दिया धरना ! धरने पे बैठे अति दलित पिछड़ा वर्ग के लोगो ने सरकार के सामने निम्न मांगे रखी है, इन्ही मांगो को लेकर राज्यपाल को 7 जनवरी को ज्ञापन सौंपेंगे:- इसे भी पढ़े :- 23 को सांपला में होने वाली सर्वखाप महापंचायत स्थगित अति पिछड़ा वर्ग से संयोजक सरकारी कर्मचारियों पर लगाया गया क्रिमीलेयर कानून समाप्त किया जाये !अति पिछड़ा वर्ग के लिए लागु किया गया सवैधानिक दर्जे का नोटिफिकेशन तरुंत लागु किया जाये !अति पिछड़ा वर्ग का बिहार राज्य की तर्ज पर लागु आरक्षण 16 व 11 प्रतिशत किया जाये !वंचित, शोषित, अति पिछडो के खिलाफ हुए संगीन अपराध व मानवीय अपराध को शीघ्र निपटारे के लिए फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट का शीघ्र गठन किया जाये !सविधान की धारा 340 के तहत दलित वर्ग की तरह विधानसभा व लोकसभा व पंचायत स्तर पर आरक्षण लागु किया जाये !केंद्र सरकार के अधीन सरकारी विभागों में पिछड़ा वर्ग को पूरा 27 प्रतिशत आरक्षण दिया जाये !डॉ. बाबा साहब भीमराव आंबेडकर के नाम से हरियाणा सरकार की खाली पड़ी जमीन पर विश्वविधालय का निर्माण हो तथा इसमें शोषित, दलित, अति पिछड़ा व पिछड़ा वर्ग के लिए मुफ्त शिक्षा का प्रावधान हो !सरकारी विभागों का निजीकरण समाप्त कर स्थाई भर्ती करके विभागों का सुधार किया जाये !विधान सभा में दलितों की 18 सींटे की जाये !मूल निवासी बहुजन समाज की अलग से आर्मी रेजिमेंट बनाई जाये !सरकारी नोकरियो में अति पिछड़ा वर्ग का बैकलॉग पूरा किया जाये !किसानो की तर्ज पर भूमिहीन, दलित व अतिपिछड़ा वर्ग के लोगो को बिना शर्त व बिना ब्याज लोन दिया जाये ! इसे भी पढ़े :- इनेलो और कांग्रेस का गढ़ है जींद, अपने बुते पर कभी खाता नहीं खोल पायी है भाजपा इस धरने में मुख्यरूप से महेंद्र पांचाल, फौजी महाबीर कश्यप, मुकेश सोनी, पवन, सत्यवान पांचाल, ऋषिपाल पांचाल, डॉ. रमेश देशराज, बलवान सिंह बि���ोहद, संदीप बरका, पालेराम बाल्मीकि, जयकिशन, सुनील आदि ने भाग लिया ! अति पिछड़ा वर्ग के लोगो ने अपनी मांगो को लेकर दिया धरना Read the full article
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महिलाओं और दलितों के खिलाफ होने वाले अपराध में टॉप पर उत्तर प्रदेश, प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) ने ट्वीट कर योगी सरकार पर साधा निशाना: 5 जुलाई को भी प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश के अपराध से जुड़े आकंड़ों को लेकर दो पोस्टर्स साझा किए थे
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दलितों के खिलाफ होने वाले कुल अपराध के एक तिहाई अपराध यूपी में होते हैं। यूपी में महिलाओं के खिलाफ अपराध में साल 2016 से 2018 तक 21% की बढ़ोत्तरी हुई। ये सारे आंकड़ें यूपी में बढ़ते अपराधों और अपराध के मजबूत होते शिंकजे की तरफ इशारा कर रहे हैं।..1/2 pic.twitter.com/yD2BKMjb9T
— Priyanka Gandhi Vadra (@priyankagandhi) July 6, 2020
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उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ अपराध में 21 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी: प्रियंका गांधी
उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ अपराध में 21 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी: प्रियंका गांधी
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने उत्तर प्रदेश में अपराध बढ़ने का आरोप लगाते हुए सोमवार को कहा कि राज्य में अपराधियों का शिकंजा कस रहा है।
श्रीमती वाड्रा ने एक ट्वीट में कहा कि राज्य में महिलाओं के खिलाफ अपराध बढे हैं। उन्होंने कहा, “दलितों के खिलाफ होने वाले कुल अपराध के एक तिहाई अपराध उत्तर प्रदेश में होते हैं और महिलाओं…
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लोकसभा में तीन तलाक बिल पास, पक्ष में 245 और विरोध में पड़े 11 वोट ल���कसभा में मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक- 2018 गुरुवार को पास हो गया। तलाक-ए-बिद्दत को रोकने के उद्देश्य से लाये गये बिल के कुछ प्रावधानों का कांग्रेस, एआईएडीएमके और समाजवादी पार्टी सहित कई दलों ने विरोध किया। संयुक्त प्रवर समिति में भेजने की मांग की गई। संशोधनों पर वोट पढ़ने से पहले कांग्रेस और एआईएडीएमके ने सदन से वॉकआउट कर दिया, जिसके बाद वोट पड़े तो, तीन तलाक विधेयक के पक्ष में 245 और विरोध में 11 वोट पड़े। तीन तलाक पर वोटिंग का असदुद्दीन ओवैसी द्वारा लाया गया प्रस्ताव गिर गया। प्रस्ताव को सदन से मंजूरी नहीं मिली। ओवैसी के प्रस्ताव के समर्थन में 15 और विरोध में 236 सांसदों ने वोट दिए। विधेयक पर सबसे पहले कांग्रेस की सुष्मिता देव ने चर्चा करते हुए कहा कि उनकी पार्टी इस विधेयक के खिलाफ है, क्योंकि सरकार की मंशा मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने और उनका सशक्तीकरण करने की नहीं बल्कि, मुस्लिम पुरुषों को दंडित करने की है। उन्होंने पूछा कि गुजरात की ऐसी हिंदू महिला जिसे पति ने छोड़ दिया हो, उसके लिए क्या करेंगे कानून मंत्री, दीवानी मामले को आपराधिक बना कर सरकार ने पीड़ित महिलाओं की अनदेखी की है, इस पर मीनाक्षी लेखी ने कहा कि तो समान नागरिक संहिता क्यों स्वीकार नहीं करती कांग्रेस। शाहबानो प्रकरण में कांग्रेस नेतृत्व की आलोचना करते हुए कहा कि उन्होंने कहा कि तब कांग्रेस ने इतिहास बनाने का मौका गंवा दिया था। उन्होंने ने कहा कि यह महिला बनाम पुरुष नहीं बल्कि, मानवाधिकार का मामला है। निकाह पूरे समाज के सामने होता है लेकिन, एक कॉल या मैसेज से शादी खत्म, यह कैसा कानून है? मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि सरकार धार्मिक मामलों में दखलंदाजी न करे। तीन तलाक के बिल पर विस्तृत अध्ययन की जरूरत है। रंजीत रंजन ने कहा कि कुरान में तलाक के लिए बेहतरीन तरीके बताए गए हैं। महिलाओं को भी समान अधिकार दिए गए हैं, इसके प्रति समाज को जागरूक नहीं किया गया। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि तीन तलाक सामाजिक कुरीति है, न कि सिर्फ इस्लाम से जुड़ा मामला। सती प्रथा और बाल विवाह को भी इसी तरह खत्म किया गया। सांसद अनवर राजा ने कहा कि सरकार ने पहले के विधेयक में कोई बड़े संशोधन नहीं किए हैं। यह विधेयक सांप्रदायिक सद्भाव और संविधान के खिलाफ है। भाजपा सांसद भैरों प्रसाद मिश्रा ने लोकसभा में एससी, एसटी और ओबीसी आयोग की तरह पर सवर्ण आयोग ��ठित करने की मांग की। उन्होंने कहा कि बड़ी संख्या में अगड़ी जातियों का शोषण हो रहा है, उनकी समस्याओं को कौन सुलझाएगा? समाजवादी पार्टी के सांसद धर्मेन्द्र यादव ने स्पष्ट रूप से तीन साल के सजा के प्रावधान का खुल कर विरोध किया, उन्होंने दंड के प्रावधान को वापस लेने की बात कहते हुए कहा कि किसी भी धर्म में तलाक पर दंड का प्रावधान नहीं है। उन्होंने कहा कि दो करोड़ से ज्यादा मुस्लिम महिलाओं ने हस्ताक्षर कर के भेजे हैं कि वे शरीयत के अनुसार ही रहना चाहती हैं। उन्होंने बिल को जेपीसी के समक्ष भेजने की मांग की। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में पेंशन बंद कर दी, सिर्फ वोट की राजनीति के लिए ऐसा बिल लाया जा रहा है। बोले- देश भर की महिलाओं को पेंशन दें। आगरा की संजली और बुलंदशहर कांड पर उन्होंने सरकार को कठघरे में खड़ा किया। उन्होंने कहा कि दलितों और पिछड़ों के साथ भी अन्याय हो रहा है। धर्मेन्द्र यादव ने बीच में ही माइक बंद करने से नाराज होकर कागजात फेंक दिए और सदन से वॉक आउट कर गए। केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने लोकसभा में बताया कि तीन तलाक को सुप्रीम कोर्ट के गैरकानूनी करार दिए जाने के बाद देशभर में 248 मामले सामने आए हैं। उत्तर प्रदेश में तीन तलाक के सबसे ज्यादा मामले सामने आए हैं। 20 इस्लामिक देशों में तीन तलाक पर प्रतिबंध है। कानून मंत्री ने कहा कि यह विधेयक महिलाओं को उनके अधिकार और न्याय दिलाने के लिए है, न कि किसी धर्म, समुदाय या विचार विशेष के खिलाफ। पीड़िता या, उससे खून का रिश्ता रखने वालों और विवाह से बने उसके रिश्तेदारों द्वारा ही पुलिस में प्राथमिकी दर्ज करवाने का प्रावधान है। तीन तलाक गैर जमानती अपराध तो है, लेकिन मजिस्ट्रेट पीड़िता का पक्ष सुनकर सुलह करा सकेंगे, जमानत भी दे सकेंगे। पीड़ित महिला मुआवजे की हकदार होगी और दोष सिद्ध होने पर आरोपी पति को तीन साल जेल की सजा दी जा सकेगी। उधर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने सरकार को बधाई दी है, वहीं वरिष्ठ सपा नेता आजम खां ने कहा इससे मुसलमानों का कोई लेना देना नहीं है, जो लोग मुसलमान हैं, वो कुरान को मानते हैं, हदीस को मानते हैं, वह जानते हैं कि तलाक का पूरा तरीका कुरान में दिया हुआ है, हमारे लिए कुरान के उस तरीके के अलावा कोई भी कानून मान्य नहीं है। जो कुरान कहता है, अगर उसके तहत कोई तलाक नहीं देता, खुला नहीं देता तो, ना वो तलाक है, ना खुला है, लिहाजा यह बहस की बात नहीं है। सिर्फ कुरान का कानून और कोई कानून नहीं। हिंदुस्तान ही नहीं, पूरी दुनिया के मुसलमानों को कोई कानून मान्य नहीं है, सिर्फ कुरान है। उन्होंने कहा कि पहले लोग उन औरतों को न्याय दें, जिन्हें शौ��रों ने स्वीकार नहीं किया, जो सड़कों पर फिर रही हैं, शौहरों का घर ढूंढ़ती फिर रही हैं, उन औरतों को तो न्याय दें। (गौतम संदेश की खबरों से अपडेट रहने के लिए एंड्राइड एप अपने मोबाईल में इन्स्टॉल कर सकते हैं एवं गौतम संदेश को फेसबुक और ट्वीटर पर भी फ़ॉलो कर सकते हैं, साथ ही वीडियो देखने के लिए गौतम संदेश चै���ल को सबस्क्राइब कर सकते हैं)
#Lok Sabha debate#Muslim Women&039;s Marriage Rights Protection Bill- 2018 Pass#Parliament#MP Dharmendra Yadav
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बेगुनाह छात्रों की गिरफ़्तारी आखिर कब तक
जब हमारे संविधान का निर्माण हुआ था तब इस बात को ध्यान में रखा गया था की किसी भी बेगुनाह या मासूम को सजा न हो जाए लेकिन आज जब हम आज़ाद और सेक्युलर भारत तस्वीर देखते हैं तो पाते हैं कि सरकार के किसी भी फैसले के खिलाफ प्रश्न उठाने वाले ,तर्क करने वाले या सरकार की किसी नीति के विरुद्ध धरना प्रदर्शन करने वाले को या तो गिरफ्तार कर लिया जाता है या तो उसे आतंकवादी घोषित कर प्रताड़ना जाती है. सरकर की बनाई गई हर नीति से देश का हर नागरिक सहमत हो यह किसी भी देश में किसी भी प्रकार से संभव नहीं है। भारत एक लोकतांत्रिक देश है और यहाँ हर नागरिक को अपने विचार व्यक्त करने का और एक अहिंसक प्रकार से सरकार के विरुद्ध निराशा जताते हुए प्रदर्शन करना बिलकुल जायज़ है। इसका क़तई यह मतलब नहीं के सत्ता में बैठे लोगो से असहमति जताने के लिए किसी व्यक्ति विशेष को या किसी एक समुदाय को आतंकवादी घोषित कर दिया जाए और अपमानित करते हुए उसे उसके घर से बिना उसके परिजनों को सूचित किये गिरफ्तार कर लिया जा।
वही देखने में आता है के विकास दुबे जैसे खतरनाक अपराधी जिस पर पहले से 60 मुक़दमे दर्ज हो और 8 पुलिसकर्मियो की ऑन ड्यूटी हत्या का आरोप हो उसे बड़ी आसानी से बिना किसी चार्जशीट फाइल किये बिना किसी पूछताछ के,एक मनघडंत फ़िल्मी कहानी दर्शा कर एनकाउंटर की भेंट चढ़ा दिया जाता है .दंगे भड़काने वाले भाषण देने वाले कपिल मिश्रा जैसे अपराधी खुले आम घूमते हैं तो वही पिछड़े हुए दलितों और मुस्लमान वर्ग के लोगो की आवाज़ बनने वाले उस्मानी जैसे होनहार छात्र को गिरफ्तार करने के लिए एक आतंकवादी दस्ता जाता है.
शरजील उस्मानी की गिरफ़्तारी :
आपको बताते चले, अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र नेता शरजील उस्मानी को बीते बुधवार उनके निवास स्थान सिधारी, आजमगढ़ से गिरफ्तार किया गया जिनके ऊपर आई.पि .सी की धारा “एटेम्पट टू मर्डर “(307),147 (रायटिंग ), 148 (घातक हथियार से लैस होते हुए दंगा), 149 (गैरकानूनी विधानसभा के एक सामान्य वस्तु के अभियोग में अपराध करना), 153 (दंगे भड़काने वाले) and 153 A (जुलूस में हथियार लेकर चलाना) , 188 (लोक सेवकों के आदेश की अवज्ञा), 322 (भड़काऊ शिकायतें), 353 (लोक सेवकों पर हमला) and 506 (आपराधिक धमकी देना) और सेक्शन 67 इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट, के तहत संगीन आरोप लगे है.
“द वायर” की रिपोर्ट के मुताबिक़ उनके भाई का कहना है की बुधवार की शाम को ५ बजे उनके घर ५ लोग सादे कपड़ो में आते हैं और ये दवा करते हैं के वो क्राइम ब्रांच से हैं , परिवारजनों द्वारा उनके वह आने की वजह पूछे जाने पर उनमे से एक ने कहा के “आपको जानने की ज़रूरत नहीं है शरजील को पता है के हम यहाँ क्यों आए हैं “. शरजील के हाथो को बंधा जाता है और उनका सर निचे झुका दिया जाता है. उनके भाई अरीब का कहना है की अपनी पहचान बताए बिना ही वो शरजील के कमरे को देखने की मांग करते हैं उनका कुछ सामान जैसे की ‘लैपटॉप,सारी किताबे और कुछ कपडे साथ ले जाते हैं.आगे बताते हुए उनके भाई ने जानकारी दी कि हम सबको खड़ा कर तस्वीरें ली और शरजील से हमारा क्या सम्बन्ध है यह भी पूछा गया.”
यह गिरफ़्तारी अपने आप में ही एक अजीब संकेत देती है जहाँ विकास दुबे जैसे घातक अपराधी जिसके पास ए के -४७ जैसे खतरनाक हथियार पाने की शंका जताई जाती है उसे बिना हथकड़ी के गिरफ्तार किया जाता है और शरजील जैसे होनहार छात्र को इस तरह अपमानित कर अपने साथ ले जाया जाता ह।
शरजील के पिता तारिक़ उस्मानी का कहना है
“मुझे यकीन है कि यह गिरफ्तारी नहीं है। उन्होंने हमें यह नहीं बताया कि क्या आरोप लगाए जा रहे हैं, उन्होंने हमें उसके साथ कोई बातचीत करने की अनुमति नहीं दी”
माँ सीमा उस्मानी ने कहा
“एक अभिभावक के रूप में, और अधिक महत्��पूर्ण बात, नागरिक के रूप में, हमें यह जानने का अधिकार है”.
ए.एम.यू में भूगोल पढ़ाने वाले उस्मानी के पिता तारिक उस्मानी ने द हिंदू को बताया कि लगभग 24 घंटे तक उन्हें पता नहीं था कि उनका बेटा कहां है। “मेरा छोटा बेटा अरीब, जो कि शरजील के साथ आज़मगढ़ में था, ने मुझे फोन पर बताया कि सादा कपड़ो में पांच पुलिसकर्मियों ने शरजील को तब उठाया जब वह चाय पीने गया। वे उसे निवास पर ले आए और उसका लैपटॉप और किताबें जब्त कर लीं। परिवार के सदस्यों की तस्वीरें खींची गईं, लेकिन जब उन्होंने उद्देश्य पूछा तो उन्हें बताया गया कि शारजील इसके बारे में जानता है। ”
गुरुवार को शाम में ही, डॉ उस्मानी ने कहा, एक स्थानीय पुलिस स्टेशन के एक निरीक्षक ने फोन करके कहा कि उनके बेटे को अदालत में पेश किया गया है।
जहा आजमगढ़ पुलिस ने कोई भी जानकारी न होने की इत्तेला दी तो वही अमर उजाला की एक ���िपोर्ट के मुताबिक़ “जिले के एडिशनल एसपी (क्राइम) अरविं द कुमार ने बताया है कि गिरफ्तारी लखनऊ पुलिस के आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) ने की थी और पिछले दिसंबर में अलीगढ़ में दर्ज मामले से संबंधित है।”
क्या है गिरफ़्तारी की वजह :
आपको बताते चले कि उस्मानी उन लोगों में से एक थे, जिन्होंने कैंपस के अंदर एएमयू में सीएए-एनआरसी-एनपीआर के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था। पुलिस का आरोप है कि छात्रों ने पत्थर फेंके और फैलने से इनकार कर दिया, यह दावा करते हुए कि 19 पुलिसकर्मी मैदान में घायल हुए थे, जिसके बाद उन्होंने विश्वविद्यालय प्रशासन की अनुमति से परिसर में प्रवेश किया।
अपनी ओर से, छात्र पुलिस के दावे का मुकाबला करते हैं और कहते हैं कि पुलिस द्वारा कैंपस के अंदर उन पर हमला किया गया था जिसमें जबरन प्रवेश किया गया था। हर्ष मंडेर और प्रोफेसर चमन लाल के नेतृत्व में एक टीम द्वारा निर्मित एक तथ्य-खोज रिपोर्ट ने इस दावे को पुष्ट किया है, और पुलिस पर गंभीर क्रूरता का आरोप लगाया, खासकर मॉरिसन बॉयज़ हॉस्टल के अंदर, और कहा कि लगभग 100 छात्र घायल हो गए, कम से कम 20 गंभीर रूप से ।
हाल ही में पुलिस ने इस मामले की चार्जशीट फाइल की है जिसका मतलब है कि यह केस अब ट्रायल में है. उस्मानी के वकील अले नबी का कहना है कि “सोमवार को कोर्ट खुलते ही उनकी बेल के लिए अर्ज़ी दी जाएगी उनके खिलाफ दर्ज मामले बेहद संगीन हैं लेकिन फिर भी मुझे यकीन है की उन्हें बेल मिल जाएगी.”
क्या हैं शरजील कि चार्जशीट में :
शरजील की चार्जशीट का संज्ञान लेते वक़्त हमने पाया कि ��ामले के आई.ओ. इंस्पेक्टर अमित कुमार ये दलील देते हैं की छात्रों ने कई सारे वाहन तोड़े हैं लेकिन जब कुछ दिनों बाद कुछ वीडियोज़ सामने आए तो उनमे साफ़ दिखा की पुलिस ही वाहनों को तोड़ रही है. तो इस प्रकार से चार्जशीट में शरजील के खिलाफ लगे कई आरोप असंगत साबित होते हैं.
छात्रनेता कि मामले पर राय
ए. एम्. यु. के छात्र नेता,अबुल फ़राज़ शाज़ली का कहना है :
” सी ए ए और एन आर सी कि लड़ाई इस बात पर आधारित थी कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है या हिन्दुओ की मातृभूमि? जब १९४७ में जो भारत बना जिसे हम आज का भारत कहते हैं वह इस क़ानून के आधार पर बना था के यहाँ सभी धर्मो के लोगो को रहने का अधिकार प्राप्त है,अपनी बात को रखने की स्वतंत्रता होगी मगर मौजूदा हालातो में अल्पसंख्यकों और दलितों की आवाज़ को दबाने की कोशिश की जा रही है। जो भी इन समुदायों के पक्ष में बोलता है उसे सरकार हिन्दुओ का दुश्मन बना कर प्रस्तुत कर धर्म के आधार पर भय की राजनीती करती है।”
यह बेहद शर्मनाक वाकिया है और हम सरकर से अपील करते हैं के किसी भी प्रदर्शनकारी के विरुद्ध कार्यवाही करने से पहले यह सुनिश्चित करे कि उनके मौलिक अधिकार उन्हें प्राप्त हो और साथ ही जो जनता उनके फैसले कि विरुद्ध खड़ी है उन्हें यह समझाने का प्रयास करे कि यह फैंसला उनके खिलाफ नहीं है । हमारा यह मांनना है कि सत्ता में बैठे लोग जनता को यह बात स्पष्ट नहीं कर सके कि सी. ऐ. ऐ. और एन. आर. सी. जैसे क़ानून उनके हित में किस प्रकार से है।
लेखक : लुब्ना हाश्मी
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भाग्यश्री नवतके *'दलितों के हाथ-पैर बांध कर पीटती हूं'* *वीडियो में महिला अधिकारी यह भी कहती सुनी जा रही हैं कि उन्होंने ऐसे 21 दलितों पर फर्जी केस किए, जो उनके थाने में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम के तहत केस दर्ज कराने गए थे।* *महाराष्ट्र के बीड जिले से एक वीडियो वायरल हुआ है। कथ��त तौर पर यह वीडियो एक महिला पुलिस अधिकारी है जिसमें वह यह कहती दिख रही हैं कि कैसे वे दलितों और मुसलमानों के खिलाफ झूठे केस दर्ज करती हैं। इस वीडियो के वायरल होने के बाद बवाल मच गया है। वीडियो में अधिकारी यह कहती दिख रही हैं, “मैं दलितों का हाथ पैर बांधकर उनके उपर एट्रोसिटी एक्ट का गुस्सा निकालती हूं।” कथित तौर पर वीडियो में जो अधिकारी दिख रही हैं, वो मजलगांव तालुका की डीएसपी भाग्यश्री नवटाके हैं। वो यह बात अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम के तहत दर्ज मामले के आरोपी से कह रही हैं।* *वीडियो में महिला अधिकारी यह भी कहती सुनी जा रही हैं कि उन्होंने ऐसे 21 दलितों पर फर्जी केस किए, जो उनके थाने में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम के तहत केस दर्ज कराने गए थे। वीडियो की शुरूआत में वो कहती हैं कि उन्होंने मुस्लिमों के खिलाफ इंडियन पैनल कोड की धारा 307 या हत्या के प्रयास के तहत मामले भी दर्ज किए हैं ताकि उन्हें आसानी से जमानत नहीं मिल सके।* *यह वीडियो क्लिक कई टीवी चैनलों पर दिखाया जा रहा है। वीडियो में दिख रही महिला अधिकारी मराठ���यों के एक समूह से बात कर रही हैं। उनकी बातचीत से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि बात करने वाले लोग अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम के तहत दर्ज केस में गिरफ्तारी के बाद जमानत के लिए सलाह लेने आए थे। महिला अधिकारी उन्हें कहती है कि यदि वह उन्हें अभी छोड़ देती हैं तो हिंसक प्रतिक्रिया हो सकती है।* *बातचीत के क्रम में महिला अधिकारी कहती हैं कि कैसे उन्होंने इसी तरह के एक केस को डील किया था, जब वे पुणे शहर के नजदीक पिंपरी में तैनात थी। उन्होंने कहा कि तीन दिनों तक उन्होंने आरोपी मराठी को गिरफ्तार नहीं किया और इसके बदले में बताया कि कैसे दलित के खिलाफ वे झूठा केस दायर करे। उन्होंने आरोपी को सलाह दी थी कि आईपीसी की धारा 122 के तहत वह दलित के ऊपर केस करें क्योंकि यह बिना लाइसेंस के हथियार रखने का अपराध है। इस मामले में भी जल्दी जमानत नहीं मिलती है।* https://www.instagram.com/p/Bq7lxABhjhQFLQhFplRwQP56o4o9PdpcQ4TLfw0/?utm_source=ig_tumblr_share&igshid=du4ucbuqr9yc
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एक जैसे है रंगभेद और जातिवाद… मेरी आंखें बार-बार भर आ रही थीं. उन पुरानी तस्वीरों, अखबार की कतरनों को देख-पढ़ कर सिहर जा रही थी. ये अमेरिकी इतिहास का सबसे डरावना और शर्मनाक पन्ना है. अमेरिका के अलबामा राज्य के मौंटगोमरी शहर में 26 अप्रैल, 2018 को खोला गया लेगेसी म्यूज़ियम ठीक उस जगह पर बना है जहां एक गोदाम में अफ्रीकी-अमेरिकी गुलामों को रखा जाता था. मौंटगोमरी के Equal Justice Initiative ने इसे लिंचिंग से मारे गए अफ्रीकी अमेरिकियों की याद में बनाया है और इनकी संख्या हज़ारों में रही. इस म्यूज़ियम से कुछ ही कदमों की दूरी पर गुलामों की नीलामी के लिए बना चौराहा हुआ करता था और यहां से बह रही अलाबामा नदी उनको लाने ले जाने का ज़रिया. 1860 में मौंटगोमरी गुलामों की ��बसे बड़ी मंडी हुआ करता था. इस म्यूज़ियम में रखे उस वक्त अखबारों में गुलामों को बेचने के लिए निकले विज्ञापन बताते हैं कि कैसे इंसानों को जानवरों की ��रह बेचा जाता था. कैसे उन पर अत्याचार होते थे. जिन जगहों पर पीड़ितों की लिंचिंग हुई वहां की ज़मीन की मिट्टी उनके अपने यहां लाए और ये मिट्टी मर्तबानों में रखी गई है, नाम के साथ. शोध, तस्वीरें और तकनीक इसे एक ना भूलने वाला अनुभव बना देती हैं. ये अनुभव आज के अमेरिका में रंगभेद को एक संदर्भ भी देता है. लेकिन ये म्यूज़ियम एक और चीज़ बताता है कि कैसे आज के अमेरिका में इतनी परिपक्वता और खुलापन है कि वो इस बारे में बात करता है, अपने सबसे शर्मनाक पहलू को छिपाता नहीं. अपने नेताओं के बयानों और कदमों पर सवाल उठाता है. मीडिया घुटने नहीं टेक देता. सोचिए, मैं इस जगह अमेरिकी विदेश मंत्रालय के एक कार्यक्रम के तहत ही गई. उनका रंगभेद हमारा जातिवाद है. लेकिन फर्क है. हम जातिवाद पर, जाति के नाम पर किए अत्याचार पर शर्मसार नहीं होते. हम उसे छिपा लेते हैं या उसे सही करार देते हैं- सीधे या घुमा फिरा कर. यहीं एक लोकतंत्र, एक समाज के तौर पर हम फेल हो जाते हैं. हम अत्याचार के इतिहास को नकारते हैं. दलितों के खिलाफ आज भी हो रहे अत्याचारों को नकार देते हैं. प्रशासन आम तौर पर तभी कार्यवाई करता है जब किसी प्रकार का दबाव हो. हम अब भी भेद-भाव को सहज तौर पर लेते हैं. क्या सिर्फ हत्या बलात्कार ही अपराध हैं? कोई सिर्फ इसलिए हैंडपंप या कुएं से पानी नहीं निकाल सकता क्योंकि वो नीची जाति का है, क्या ये अपराध नहीं? किसी को जाति या धर्म के कारण अगर आप नीचा महसूस करा रहे हैं तो क्या वो अपराध नहीं? उदाहरण इतने हैं कि मैं यहां लिखना भी जरूरी नहीं समझती. और सबसे डरावना यही है कि इसे अब भी अपने देश का शर्मनाक पहलू मान कर पूरे मन से सही करने को हम तैयार नहीं. तभी तो देश के राष्ट्रपति के साथ एक मंदिर में दुर्व्यवहार हो जाता है और हम देखते रह जाते हैं. शायद हमें भी ऐसा ही लेगेसी म्यूज़ियम बनाना चाहिए ताकि अपनी अंदर की गंदगी देखें, समझें और बीते कल की स्याह छाया को आज खत्म कर सकें. पर उससे पहले ये माहौल तो बनाना होगा कि उसके सामने, उसके खिलाफ किसी तथाकथित ऊंची जाति की सेना प्रदर्शन ना शुरू कर दे, उसे आग न लगा दे. टिप्पणियां
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