#तिलोत्तमा
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धौम्य गोत्र के आस्पद (अल्लैं)
1. लायसे- ये आश्वलायन ऋषि के वंशज 2986 वि0पू0 हैं । ऋग्वेद की आश्वलायन शाखा के कुछ लोग मध्य प्रदेश के रायसेन तथा सबलानों स्थानों में जाकर रहे थे । आश्वलायन जन्मेजय के नागसत्र में सदस्य थे ।
2. भरतवार- ये भरद्वाज के पिता भरत चक्रवर्ती के आश्रय प्राप्त 4882 वि0पू0 सम्मानित सभासद थे । इनने भारत वर्ष देश के अन्तर्गत अपना भरत खंड राज्य स्थापित किया था ।
3. घरवारी- ये गार्हपत्य नामक अग्नि कुल के देव पुरूष थे । वेद में इन्हें"अग्निर्गृपतिर्युवा" कहा है । ऋग्वेद के अनुसार ये सहस्त्रशीर्ष विराज पुरूष के पुत्र थे । वैसांधर अल्ल के माथुर वैश्वानर अग्नि वंशी भी इसी शाखा में थे । वैश्वानर अग्नि ने सरस्वतीतट मथुरा से पुष्कर राजस्थान तक तथा पांचाल देश पीलीभीत व बरैली अल्मौड़ा नैनीताल तक की भूमि में फैले गहन वनों को जलाकर पवित्र देश पांचाल मत्स्य सूरसेन जनपदों के स्वायंभू मनु के प्रदेश ब्रह्मर्षि देश(9200 वि0पू0) को प्रकट किया । गृहपति अग्नि ने पुरूरवा के यज्ञ में मंथु अग्नि पुरगटकर किभाबसु अग्नि प्रगटर की ओर उसके तीन भाग करके (आहवनीय, गार्हपत्य, दक्षियाणाड्नि) तीनों के तीन यज्ञ कुण्डों में स्थापित कर यज्ञ कराया था ।
'तस्य निर्मथाज्जातो जातवेदा विभावसु' ।
इस यज्ञ से 6241 वि0पू0 में प्रतिष्ठान पुर ब्रज के पैठा स्थान में पुत्रेष्टियाग के फलरूप आयु नहुष ययाति पुत्र चन्द्र वन्श की वृद्धि कर्त्ता उत्पत्र हुए थे । विराट प्रजापति (दीर्घविष्णु) 7 के पुत्र थे जो आदि मानव प्रजा के पितर कहे गये हैं । इनमें चार वेद ज्ञाता चतुर्वेद तथा पत्निगृह (पाकशाला) में प्रयुक्त गार्हपत्य अग्नि कर्म के प्राशिक्षक गार्हपत्य अग्नि (9200 वि.पू.) घरवारी प्रधान थे ।
ये 7 आध पित-1. अग्निष्वात 2. सोमप (वर्हिषद) 3. बैराज 4. गार्हपत्य, 5. चतुर्वेथ, 6. एक श्रंग, 7 कुल के नाम के थे । मत्स्य के अनुसार ये सभी महायोगी थे । योग भंग होने पर पृथ्वी पर जन्मे । श्रेष्ठ ब्रह्मवादी होने और पूर्वजन्म के ज्ञान से ये योगाभ्यास में मग्न रहकर प्रजाओं का कल्याण करते थे । इनकी मानसी कन्या मैनां (मैनांगढ़ टीला मथुरा) में उत्पत्र हुई थी जिसके वन्शधर मैनां या मीणां जाति के लोग यहाँ रहते थे जो प्रजा विस्तार होने पर मैनाक पर्वत तथा समस्त राजस्थान और ब्रज क्षेत्र में फैल गये । मैनका अप्सरायें इसी वंश में थी ।
मैना ब्रज के हिमवन्त मेवात के पर्वतीय राजा हिमवन्त को ब्याही थी और उससे हेमवती पार्वती उमां गौरी आदि अनेक नामों वाली पुत्री हुई जो सतीदहन के बाद तप करके भगवान शिव की पत्नी बनी और उससे विनायक गणेश (गणेश टीला) तथा स्कंधस्वामी (खंडवेल तीर्थ मथुरा) वासी विश्व विजयी देवता (स्कैंडेनेविया सिकन्दरिया बन्दरगाह नाम प्रदाता तथा सिकन्दर यूनानी विश्व विजयी को प्रभावशाली नामकरण प्रदाता) पुत्र हुए । ये सातौ आद्यपितर परम कृपालु परोपकारी स्नेहमय स्वभाव के तथा पितृ स्नेह से समस्त प्रजाओं का संरक्षण और संवर्धन करने के कारण ही मानव पितर माने गये ।
4. तिलमने- ये यज्ञ साकल्य हेतु श्यामातिल (कालेतिल) उत्पत्र करने वाले क्षेत्र तिलपत के निवासी तिलमटे लोगों के प्रोहित होने से तिलमने कहलाये । तिलपत का गौकुला जाट बड़ी सेना लेकर औरंगजेब के समय ब्रज में हुए विद्रोह का नेतृत्व करने आया था । दलित मत्तिल नाम के दो यक्षों के सरोवर भी कामबन में दतीला मतीला कुन्ड नाम से थे । ये दत्तिल संगीत शास्त्र ग्रन्थ का प्रमुख आचार्य था तथा उसका दत्तिलम, नाम वाला संगीत ग्रन्थ प्रसिद्ध है ।
तिलोत्तमा अप्सरायें अतिसुन्दर और नृत्य करने वाली इस वन्श में प्रख्यात रही हैं । इस वन्श के तैलंग जनों ने दक्षिण महाराष्ट्र में तिलंगाना प्रदेश बसाया तथा तेल निकालने की क��ा विस्तार किया । यमराज के नर्कों में कोल्हू यन्त्र में पापियों को पेरने या बैलों की जगह जोतने का उल्लेख पुराणों में मिलता है ।
5. शुक्ल- याज्ञवल्क्य के शुक्ल यजु प्रयोगों के अनुयायी शुक्ल कहलाये । शुक्ल वस्त्रधारी 'शुक्लांवर धर विष्णु' भगवान विष्णु देवी सरस्वती, वेदमाता गायत्री- तथा इनके भक्त माथुर ब्राह्मण शुक्त प्रसिद्ध हुए ।
6. व्रह्मपुरि- मथुरा में ब्रह्मलोक तीर्थ के ब्रह्मोपासक ब्रह्मसभा के सदस्य मालाधारी ब्रह्मपुर्या जिस स्थान में रहते थे वह पद्मनाम तीर्थ पद्मावती सरस्वती के तट पर था उसे अभी भी मालावारी चौवे को शिवाजी महाराज द्वारादिया गया हाथी उनके द्वार पर झूमता था जिससे इसे हाथीवारी गली कहते हैं । राव मरहठों में सरदार को तथा राजस्थान में राजा की बांदियों के पुत्र होते हैं । मानाराव को राव की पदवी शिवाजी ने ही प्रदान की तथा जियाजीराव, दौलतराव, सयाजीराव आदि रावों ने अपनी समता का राव पद देकर पचीसियों गांव भेंट कर अपना पूज्य पुरोहित बनाया था । इसी क्षेत्र में पांडे माथुरों का प्राचीन निवास है ।
7. आत्मोती- आत्मा को आत्मतत्व में लीन कर उसके परम गूढ प्रकाश का अनुभव अरने और कराने वाले आत्माहुति ब्रह्मज्ञान विद्या के साधक सिद्ध पुरूष आलोवि प्रसिद्ध थे । भगवान श्री कृष्ण ने गीता में आत्म ज्ञान कहा है ।
8. मौरे- ये मयूरगणों की प्रजा मार्यवन्श केप्रे हित होने से मौरे कहे गये । मौर्यवंश में ही मुरदैत्य प्रजाओं के प्राचीन आवास मोरा मयूरवन, मुरसान, मुरार, मौरैड़, मोरवी मयूरकूट पर्वत (मोरकुटी) हैं तथा मुरदैत्यों का संहार करने के कारण श्री कृष्ण को मुरारी कहा जाता है ।
9. चंदपेरखी- चंद्रवंशी यादवों के मनोरंजन हेतु यादवों की रंगशाला प्रेक्षागृह का निर्माण और उसकी रंगमंचीय व्यवस्था सम्भालने वाले माथुर चन्द्रप्रेक्षी या चैदपेखी थे । माथुरी भाषा में श्रंगार युक्त नारी को पेखने की पूतरी' कहा जाता है । पाणिनि के अनुसार यादव कंस वध का अभिनय (उत्प्रेक्ष दर्शन पेखनां) बड़े उत्साह के साथ आयोजित करते थे ।
10. जोजले- देवों के यजन पूजा आराधना स्तुति पाठ कीर्तन भजन आदि प्रहलाद द्वारा प्रतिपादित नवधा भक्ति के आचार्य 'याजक' संयोजक झूंझर आक्रोश के साथ भक्ति उन्माद में आत्म विस्मृत जुझारून रूवभाव के लोग जोजले कहे जाने लगे ।
11. सोती- यह बड़ी अल्ल है । श्रौत स्मार्त धर्म के उपदे��क सोती थे । श्रौतधर्म में मूलवैदिक संहिताओं के अतिरिक्त वेदांग, उपवेद, ब्राह्मण ग्रन्थ, आरण्यक, परिशिष्ट, निरूद्य, सूत्र, उपनिषद, सहितायें, इतिहास पुराण, आदि अनेक आधार हैं । सूत पुत्र सौति वन्श के जिन्हें वेदाधिकार नहीं था उन शूद्र वर्ण रथकारों को वेदातिरिक्त पुराण विद्या तथा संहितादि अन्य ग्रन्थों का स्वाध्याय प्रदान करते रहने को महर्षि वेद व्यास ने इन्हैं सूतों शौनकों के धर्मोपदेशक के रूप में नियुक्त किय��� था । सोती प्रवासी माथरों के साथ भदावर आदि क्षेत्रों में जाकर बस गये थे ।
12. सोगरे- सोगर गाँव के सोगरिया जाटों के पुरोहित सोगरे हैं ।
13. चौपरे चौपरे या चौपौरिया इनके 4 घर(पौरी) मूल में एक स्थान पर स्थिति थे । एक कथन से चौपड़ का खेल जो कौरव पांडवों के समय में बहुप्रचलित था उसमें ये परम परांगत पासा डालने की मन्त्र विद्या इन्हें सिद्ध थी तथा बड़ी बड़ी राज सभाओं में द्यूत निर्णय के लिए बुलाये और सम्मानित किये जाते थे । शकुनी इनका गांधारी (अफ़ग़ान) शिष्य था ।
प्रकीर्ण परवर्ती आस्पद
इनके अतिरिक्त परवर्तीकाल में माथुरों के कुछ अन्यान्द आस्पद आख्या या ख्यात समयानुसार बनते गये जिनमें से कुछ के नाम हैं – छौंका, भारवारे, तिवारे, नौसैनावासी, तखतवारे, महलवारे, नारेनाग, सकनां, होरीवारे, भरौच, चीबौड़ा, उचाड़ा, भदौरियाद्व, घाट्या, नगरावार, दक्ख, मानाराव, टोपीदास के, देवमन मंसाराम के, लाल चौवे के, गहनियाँ के, पंडिता के, भारवाले, आरतीवारे, नौघर वारे, करमफोर के, कोबीराम के, काहौ, स्वामी, मुकद्दम, चौधरी, पटवारी, निधाये के, हथरौसिया, मुरसानियाँ, करौर्या आदि ।
माथुर चतुर्वेद विरूदावली
माथुरों की वंश वैभव युक्त विरूदावली लल्लू गोपालजी द्वारा प्रस्तुत यहाँ दी जा रही है-
माथुर परिचय-
चौसठ अल्लैं
136 से 138
माथुर चतुर्वेदियों की माता-श्री यमुना मैया
श्री यमुना महारानी माथुरों की परम वात्सल्यमयी कुल प्रतिपालिनी मैया हैं । श्री यमुना विश्व की सबसे पुरातन प्रजा संरक्षिणी देवी हैं । आसुरी सर्ग युग् 12600 वि0पू0 में वे यमयमी के रूप में भाई बहिन सूर्य देव सूरसेन देश में उत्पत्र हुए, और अंतरिक्ष में बिहार करने की कामना से आकाश मंडल (आक्सस नदी, आकाश गंगा और आक्साई चीन आकाशिय उदीचीना प्रदेश) में ��ँचे पर्वतों पर वीणां बजाते हुए बिहार करने को चले गये । वहां यमी ने आसुरी धर्म से प्रभावित होकर अपने भाई की धर्म नीति की परीक्षा हेतु उससे संयोग की याचना की जिसे यमदेव ने द्दठता से ठुकराकर चरित्र श्रेष्ठता का परिचय दिया । इत पवित्र आचरण से नतमस्त होकर असुरों ने उन्हैं जमशेद (यम सिद्ध), जमरूद (यमरूद्र), जुम्मा, जुमेरात जमालू, जमाउल अव्वल, आदि रूपों में पूजित माना । मार्कण्डेय आश्रम (मक्का) में अश्वत्थ लिंग (संग असवद) के मन्दिर में इनका यमुना यम सरोवर आवेजमजम के नाम से पवित्र माना जाता है । 9370 वि.पू. में ब्रह्मदेव की मानसी सृष्टि में ये पुन: कश्यपवंश में माता अदिति के गर्भ से उत्पत्र द्वादश सूर्यों में ज्येष्ठ आदित्य विवस्वान देव के यहाँ संज्ञा माता के गर्भ से मथुरा देव पुरी के प्राजापत्यययाग प्रयाग तीर्थ में अवतरित हुए । यहाँ दिवाकर देव ने पुत्र यमराज को दक्षिण दिशा में यमलोक बसाकर पापी जनों को दण्ड देकर धर्म और सदाचार की मर्यादा बनाये रखने का धर्मराज पद पितामह ब्रह्मा से दिलाया, और सूरसेन (सूर्य सेनाओं का देश) देवलोक का अनुग्रह युक्त शानक अपनी प्रिय पुत्री यमुना को प्रदान किया । आनी बहिन तपती देवी के शाप से जलधारा नदी रूप बनी श्री यमुना भागीरथी गंगा से बहुत युगों प्राचीन हैं । श्रीयमुना की उत्पत्ति 9,320 वि0पू0 है और प्रभु बारादेव ने बसुन्धरा देवी से श्री यमुना का महात्म कहा है । भक्त प्रहलाद ने भी 9254 वि0पू0 में अपनी तीर्थ यात्रा में यमुना तट के तीर्थों की यात्रा की है ।
माथुरों के यमुना पुत्र होने का चरित्र ब्रज रहस्य महोदधि श्री उद्ववाचार्य देव जू ने अपने ब्रज यात्रा ग्रन्थ में कथन किया है जो माथुरों के लिए प्रमाणप है-
एकदा ब्रह्म सदने कश्यपस्य कृतेऽच्वरे ।
समेता सुप्रजा सर्वा कश्यपस्यच औरसा ।।1।।
भक्तिनम्रा धावयन्ता: कर्मान् सम्पादयन्ति ते ।
तान्द्दष्ट्वा भानुतनया मनोभवं मनोदधे ।।2।।
एमाद्दषी प्रजा धन्या मद्गृहेपि भवेदिति ।
तानहं पालयिष्यामि बात्सल्य रस निर्भरा: ।।3।।
पुत्रेष्वेव गृहं धन्यं शोभाढ़यं गृहमेधिनाम् ।
पुत्रका यत्र क्रीडन्ति तदेव सुकृतं गृहम् ।।4।।
एक दिवस शुभ मुहूर्त में ब्रह्मलोक तीर्थ मथुरा में कश्यप महर्षि के आयोजित महासत्र में समस्त देव प्रजा और कश्यप वंशज ब्राह्मण सम्मिलित हुए । ये महर्षि गण अपने पुत्र पौत्रों और पत्नियों ��िरवारों सहित भक्ति से वि��म्र होकर दौड़ दौड़कर यज्ञ कार्यों को बड़े उत्साह से सम्पादन कर रहे थे इन्हैं इस आनन्दमय रूप से देखकर सूर्य पुत्री श्री यमुना महारानी जी ने अपने मन में यह भावना स्थापित की- इस प्रकार की सुन्दर ह्दय को आकर्षित करने वाली प्रजा धन्य है तथा ऐसी प्रजा मेरे भवन में भी स्थापित होनी चाहिए । मैं उनका सनेह मय अन्त: करण से लालन पालन करूँगी और सदा वात्सल्य रस में आनन्द निमग्न रहूँगी ।
आहूता बालका सर्वे सप्तर्षि कुल संभवा: ।
माथुरान् गृह्म उत्संगे पयपानं मुद्रा ददु: ।।5।।
स्नेह निर्झरितं वक्षं तानलिंग्य त्वरान्विता ।
मुहुर्महु मुखं द्दष्ट्वा परमानन्द प्राप्नुयु: ।।6।।
एतानि विप्र जातानि अग्निवंश समुद्भवान् ।
विद्या विनय सम्पत्रान् सदाचार समन्वितान् ।।7।।
माथुरेस्मिन्पुण्यक्षेत्रे पुत्रत्वेन व्रतानि मे ।
अद्यत: मम पुत्रावै लोके ख्याति लभंतिहि ।।8।।
दत्वा बहुगुणं प्रीतिं हैरण्यं भवनानि च ।
स्वगेहे स्थापिता: सर्वे माथुरा मुनि पुंगवा ।।9।।
कदाचिदपि मद्धामं न त्यजेयु: मुनीश्वरा: ।
ममाश्रये द्दढी भूत्वा दुर्गमान् संतरिष्यत: ।।10।।
तब माताजी ने हेला देकर सपत ऋषियों के दल को बुलाया एवं उन माथुर मुनि बालकों को गोद में उठाकर उन्हैं स्नेह से झरते हुए अपने स्तनों का पयपान कराया ।।5।।
प्रेम से झरते हुए वक्ष स्थल से उन्हैं अति आतुर होकर अलिंगन किया तथा उनके मुख बारम्बार निहारकार परम आनन्द का अनुभव किया ।।6।।
माता ने कहा- ये श्रेष्ठ ब्राह्मणों के कुल अग्निवंश में उत्पत्र हैं तथा विद्या विनय और सदाचार से युक्त हैं ।।7।।
इस परम पुण्यमय मथुरा क्षेत्र में मैंने इन्हैं पुत्र पद पर वरण किया है अत: आज से लोग में मेरे पुत्र अर्थात् यमुना पुत्र नाम की ख्याति प्राप्त करेंगे ।।8।।
इतना महान पद देकर माता ने उन माथुर पुत्रों को बहुत श्रेष्ठ अपना अपार प्यार बहुत सा सोना और अनेक उत्तम देवोपम भवन दिए और उन माथुर मुनि पुगवों के पुत्रों को अपने निज भवन में स्थापित किया ।।9।।
उनसे कहा – हे पुत्रो कभी भी कैसे घोर संकट में भी मेरे इस धाम को त्याग मत करना यहाँ रहकर मेरे आश्रय की दृढ़ता को गृहण किए हुए तुम सब दुर्गम संकटों से निश्चय पूर्वक पार हो जाओगे ।।10।।
माता ने अपने पुत्रों को यह उदार बर दिया और इसे पाकर महर्षि अंगिरा ने वेदोक्त 'श्री य���ुना सूक्त' का सरस्वर भक्ति और स्नेह के साथ गान किया जिसे सुनकर माता ने अपार हर्ष का अनुभव किया । यह अति दुर्लभ सद्य फल प्रद कृपा का सहज साधन सूक्त महर्षि अंगिरा ने 9300 वि.पू. में जगज्जनिनी मातु श्री के चरणों में बैठकर सिद्ध किया तथा श्रीमद् उद्धवाचार्य देववर्य इसको धारण कर परम सिद्ध पुरूष बन गये ।
इसके द्वारा यमुना उपासना भक्त प्रहलाद, प्रभु वामन देव, हिरण्यकशि पुदैत्यराज, स्वायंभूमनु देव, अंवरीष राजा, शत्रुघ्न, यपरशुराम मुनीन्द्र, वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, दक्ष, उशनाभृंगु, पुरन्दर इन्द्र, वायुदेव ने की तथा महर्षि वेद व्यास के काल में इसकी उपासना से चन्द्रवन्शी यादवों पौरवों आनवों ने विशेषकर नहुष ययाति, यदु, बसुदेव, श्री कृष्ण बलराम, महर्षि वेद व्यास ने माता कालिदी की आराधना करके वेद विभाजन, 18 पुराण प्रतिपादन, महाभारत, श्रीमद् भागवत ब्रह्मसूत्र आदि अनेकानेक शास्त्रों की रचना की ।
यह सर्वप्राचीन, वेदसत्रिहित, सर्व सिद्धित्रद माथुरों का मातृस्तवन सूक्त है जो यहाँ दिया जा रहा है-
हरि: ओउम्- आदित्यासो जायमानां सहस्त्रभारस्वद्रोचिषम् ।
श्यामारूणां वैवस्वतिं श्री यमुनां भजमाहे ।।1।।
संज्ञात्मजां यमस्वसां विश्रयन्ति भृमृतावृधे ।
देवयन्तिं देवगणानाम् वरदां संवृणीमहे ।।2।।
आवाह्मामि श्रीयमुने कालिंदी संशितवृते ।
एह्मेहि विरजे सत्ये राष्ट्र मे शर्म यच्छताम् ।।3।।
कूर्मासनां मणिपृष्ठां वेणु पद्मां भुजद्वयाम् ।
केयूर मेखलांन्वितां महामणि किरीटिनीम् ।।4।।
संमे सन्तु सिद्धि दात्रिं श्री मधुपुर्याधीश्वरिम् ।
धान्यं धनं प्रजां राज्यं विभवं देहि मे जयम् ।।5।।
वर्धयन्तिं महैश्वर्य प्रियं नो अस्तु मातर: ।
नित्यं संसेवनं धेहि पादार्चनं गृणीमहे ।।6।।
वरेण्यां ब्रजाधिष्ठात्रिं वासल्यां सुप्रसादिनीं ।
संरक्षिणी प्रवर्धिनी अकानुकूल्यं बावृधस्व ।।7।।
वैराज धारिणीं विरजां गभस्ति कोटि मास्वतिम् ।
सौरसेनिं गोष्ठ शतिं सोमं क्रतुमयच्छतु ।।8।।
मधु कैट दिनं निघ्नां कौमारीं संपयस्त्रविम् ।
तां माधवीं उपव्हये आर्विभव हिरण्ययी ।।9।।
कालिंदी सरस्वतीत यमुना तिस्त्रो पदेशु भ्राजिता: ।
अरंकृर्ति मधुमर्ति सौर्या गव्यं गृणीमसि: ।।10।।
आयाहि शर्म यच्छति प्रथमं विश्व सृजे ।
अर्यन्त प्र��र्चन्त देवा: साँजलि र्नतकन्��रा: ।।11।।
जिधांसति यमकौर्य शरण्यं ईरयति शर्मम् ।
मूर्त्या मांगल्यमये संसीदस्व कुले मम ।।12।।
तपस्विनीं स्वयं सिद्धां वरेण्यां भर्ग भास्करिम् ।
संगोप्त्रि अक्षयनिधिं गोपशी स्वस्तिरस्तुन: ।।13।।
उपैतु मां महाराज्ञी कीर्ति प्रज्ञां स्थैर्य सह ।
अभिरक्षतु मां नित्यं कालिन्दी माथुरेश्वरी ।।14।।
संकृणुध्वं पदानुगं आत्मानं भर्ग आभर ।
नित्योत्सवा वैजयन्ति अनन्या भीति शन्तमे ।।15।।
यज्ञेश्वरी मन्त्रेश्वरी भक्तानुग्रह तत्परा: ।
कौवेरं निधिं साम्राज्यं महैश्वर्य दधातु मे ।।16।।
तुरीयस्था योग प्रभा सहस्त्रदल मीरिता: ।
आत्मतत्वा परतत्वा महाविद्या पात्वंहस ।।17।।
गोवर्धनं वर्धयन्तिं गवि गोष्ठान्यकरन्महत् ।
मनश्चिन्तां जिघन्वतिं अभिष्टय: सम्प्रमोषि: ।।18।।
त्रिसप्त धामं त्रिदिवं त्रयो त्रिशदभ्यर्चितम् ।
यक्षस्वधामं द्युमन्तं ध्रुवस्यांगिरसस्यहि ।।19।।
प्रहल्लादो उरूक्रमणों हिरप्यकशिपु बलिं: ।
स्वायंभुवश्चांवरीषो अरिघ्नो भार्गवोत्तम: ।।20।।
वशिष्ठो कश्यपश्चात्रि: दक्षो औशनसो भृगु: ।
पुरन्दरस्य वायोश्च विधेहि से महत्पदम् ।।21।।
ब्रह्मविद्या राजविद्या ब्रह्मपारगा: छान्दोगा: ।
सहस्त्रदल संस्थिता: दधातु मेऽजरा मरम् ।।22।।
नारायणीं महत्पदां नमोमि पुत्र वत्सलाम् ।
संवर्धयति सौभाग्यं शं मे सन्तु सुवर्चसा: ।।23।।
यज्ञेश्वरी विस्फुलिंगा आयाहि जातवेदसे ।
प्रियगंधा: प्रियरसा: धियंनो धार्यतां ध्रुवम् ।।24।।
व्यासोवाच-चतुविंशतिकं सूक्तं श्री यमुनाया: प्रमीरितम् ।
जय कामो यशस्कामो श्रेयस्कामो विधारयेत् ।।1।।
शुचिर्भूत्वा ऽनन्यामना जुहुयाच्च साज्यं मधुम् ।
सर्वान्कामान वाप्नोति पदं वैश्रवणोपमम् ।।2।।
यावल्लीलां न पश्येत तावच्छेवा व्रतं चरेत् ।
प्रणतिं दर्शनं जाप्यं सर्व सिद्धि करं मतम् ।।3।।
जयं राज्यं धनं धान्यं आरोग्यं सुप्रजां सुखम् ।
सर्वाधिपत्यं यशसं संसिद्धि जयते ध्रुवम् ।।4।।
दर्शयोद् विग्रहं पुण्यं कैंकर्यत्वं समाचरेत् ।
गुरा: सेवा समायुक्तो सर्व सिद्धि प्रजायते ।।5।।
इत्यंगिरा प्रकथितं श्री यमुना सूक्त मुत्तमम् ।
भक्तिं मुक्तिं रसोद्भांव लीला प्रत्यक्ष कारकम् ।।6।।
आरार्धितं चन्द्रवंशेन नहुषेन ययातिना ।
यदोश्च श्रीकृष्णश्च बलरामेण धार��तम् ।।7।।
वेदव्यासमिदं जप्त्वा ध्यात्वा श्री रविरात्मजाम् ।
कृतवानसर्व शास्त्राणि वेदांश्चापि प्रयणदिता ।।8।।
तस्मात्सर्व प्रयत्नेन गोपयेत्परमं धनम् ।
अस्याराधनया वत्स सर्व सिद्धि प्रजायते ।।9।।
हरि:ओऽम् तत्सत् नमोनम: ।
महर्षि अंगिरा द्वारा सम्पूर्ण माथुर मुनि पुत्रों के साथ गान किये इस सूक्त से माता श्री यमुना अति आनंदित हुई । उन्होंने पुन: कहा-
यो यूयं मम पुत्रान्वै अर्चयिष्यन्ति श्रद्या ।
तेन मे परमातुष्टि भवेदिति न संशय: ।।11।।
माथुरा मम रूपाहि माथुरा मम वल्लभा ।
माथुरे परि तुष्टे वै तुष्टोऽहं नात्र संशय ।।22।।
हे प्रिय पुत्रो ! जो धर्म निष्ठ प्राणी उदार विनय युक्त मन से मेरे तुम पुत्रों माथुरों की अर्चना करेगा तुम्हें सन्तुष्ट करेगा उससे मैं परम सन्तुष्टि प्राप्त करूँगी इसमें सन्देह नहीं है ।।11।। माथुर मेरे ही रूप हैं, माथुर मुझे प्राणों से ज़्यादा प्यारे हैं, माथुर के सन्तुष्ट होने से मैं आप स्वयं आनन्द के साथ सन्तुष्ट होती हूँ यह निश्चित अटल सत्य है ।।22।। इस सन्दर्भ में श्री उद्धाचार्य देवजू के सुपुत्र श्री भगवान मिहारी के कुछ सुन्दर छन्द भी प्राप्त हैं-
कवित्त-
चाह करी मन में रविनं दिनी । सप्त ऋषीन के बालकटेरे । पुत्र बिना घर सून्यों अमंगल, वाल विनोद आनन्द घनेरे ।। 'भगवन्त जू' याविधि पायि सनेह, कहै सब जै जै महासुख हेरे ।। माथुर बाल लगाये हियेते, सो आजु ते पूत भये तुम मेरे ।।1।। मो मथुरा करियो सदा बास, औ कीजो सदां पयपान सुखारी । उत्तम भोजन कंचन वैभव, पाऔ सदा मुद मंगलकारी ।। भगवंतजू पूजियो मोहि सनेह सौ, जो नहीं पूजै सो होई भिखारी पूत सपूत बने रहोगे तो मैं- रच्छा करौं सब काल तिहारी ।2।
यमूना पूत्र कर्त्तव्य
द्वारपै नाम जो मेरौ लिखै, घर भीतर सेवा मेरी पघरावै । मन्त्र जपै नित, ध्यान धरै, सिर सादर नायि मेरे गुन गावै ।। भगवंत प्रसादी बिना नहीं भोजन, पर्थ पै उच्छव हर्ख मनावै । या मति मेरौ आधार गहैं रहैं, एसौ सपूत मेरे मन भावै ।।3।।
कृपा प्रभाव प्रत्यक्ष
राजा नवै, महाराजा गहै पद, मातु कृपा कौ प्रतापु है भारी । संत महंत आचार्ज घनाधिप, आसन दैंई दै मान अपारौ ।। 'भगवंत' ज वैभव ठाठ लगे रहैं, भाव अभाव न हो दुखारी । एसी उदार अपार कृपा, रविनंदनि की महिमां कछु न्यारी ।।
माथुर चतुर्वेदी ब्राह्मणों की परम स्नेहमयी इन मातु श्री का स्तवन प्राय: प्रत्येक संप्रदाय के आचार्य ने किया है । अपने आराधित इष्ट देव की सिद्धि का साक्षात्कार बिना श्री यमुना मैया की कृपा के होना असंभव मानकर श्री आद्यशंकराचार्य ने श्री यमुना स्तबन-"जययमुने जय भीतिनिवारिणि संकट नाशिनि पाबय माम्", श्री कालिन्दी माता का स्तबन-" धुनोतु मे मनोमलं कलिंदनंदिनी सदा" किया है श्री गर्गाचार्य मुनि की गर्ग संहिता माधुर्य खंड में महर्षि सौमरि का राजा मांधाता को उपदिष्ट श्री यमुना पंचांग(यमुना स्तोत्र, कवच, पटल, अर्चन, सहस्त्रनाम) श्री प्रभु उद्धवाचार्यदेव का यमुना शरणागति स्तोत्र, श्रीमद् बल्लभाचार्य का यमुना अष्टक, श्री गो0 विद्वल नाथजी, श्री हरिराय जी, हरिबल्लभ, माधव, हरिदास, रमेश भट्ट गोकुलेश आदि वैष्णव भक्तों के स्तोत्र, श्री हित हरिवंश (राधा बल्लभी आचार्य) श्री रूप (सनातन) गौड़ीय आचार्य, सम्राट दीक्षित पंडितराज, कविवर ग्वाल, कविवर श्री मुदित मुकुन्द की यमुना लहरी आदि प्रभूत साहित्य हैं, जिसे वेदपाठी श्री बिहारीलाल जी की यमुना पूजन पद्धति में देखा जा सकता हैं ।
श्री मथुरा पुरी में महर्षि अंगिरा द्वारा आराधित श्री यमुना मैया की यह पुरातन देव विग्रह प्रतिमा अनंदमयी मुद्रा में वैदिक सूत्र के अनुसार- "कूर्मासनां मणि पृष्ठां वेणु पद्मां भुज द्वयाम्" छवि को धारण किये हुए यमुना तट पर अपने निजधाम श्री यमुना निकुंज देवस्थान सूर्य गोलपुर (गोल पारा) प्रयाग घाट पर विराजमान हैं । यह माथुरों की परम पूज्य मैया और श्री सिद्धि स्वरूपा हैं । आश्चर्य है कि माथुर मुनीश अपनी परमाराधनीय इस माता की सेवा आराधना करने में निपट उदासीन तणा बहिर्मुख हैं । यहीं श्री उद्धवाचार्य देवजू का प्राचीन ब्रजयात्रा ग्रंथ उनकी छवि जी तथा पादुका जी विराजमान हैं जो सेवा करने पर कृपा सिद्धि प्रदायक हैं ।
वृम्हरात्रि का अधर्म वृद्धि युग
3000 वि.पू. के बाद कलियुग ने अपना पैर जमाया । महाभारत के पश्चात मगध का राजवंश चक्रवर्ती सम्राट बना परिक्षित को कलिप्रेरित प्रयास से ब्राह्मण शाप द्वारा तक्षक नाग ने समाप्त कर दिया । यादव स्वयं ही कलह की अग्नि में कूद गये । द्वारिका की जल प्रलय ने दूर दूर तक समुद्र तटवर्ती देशों को ध्वस्त किया । जनमेजय को नागों की शक्ति के सामने पराभव देखना पड़ा । वैशम्पायन और याज्ञवल्क्य की कलह में यजुर्वेद के कारे गोरे दो टुकड़े हो गये । जरासंध ने मथुरा शूरसेन देश पर 17 आक्रमण किये जिनमें 41 राज्यों के सत्ताधारी सहायक थे । इधर श्री कृष्ण बलराम के साथ मात्र केवल 18 यादव नरेश ही थे । बड़ी सेना के दबाव से वे 32 वर्ष की आयु में अंधक वृष्णि संघ के साथ सुदूर पश्चिम के जल दुर्ग द्वारिका में चले गये ।
जरासंध यादवों का शत्रु था । द्रोपदी स्वयंवर में बृहद्रथ में धनुष उठाते समय घुटने फूट जाने पर उसका पलायन और श्री कृष्ण के समर्थन से अर्जुन का द्रोपदी से विवाह, महर्षि धौम्य की पांडव पौरोहित्य प्रतिष्ठा, कंस का वध और उग्रसेन का राज्यारोहण इसके उत्तेजक हेतु थे । उधर सूत मागध शौनकशूद्र प्राय माने जाते थे । इन्होंने माथुर महामुनीष महर्षि वेद व्यास की सेवा में अपने को समर्पित किया और कृपालु मुनि ने सूतों को पुराणाचार्य पद, शौनक को अथर्वा वेदाचार्य तथा मागधों को माथुरों की मैत्री के साथ गया तीर्थ का पौरोहित्य और वंदीजनों को ब्रह्ममट्ट राय भाट जागा के रूप में वंशावली संरक्षण् के कार्यों में नियुक्त किया । "माथुरों मागधश्चैव" एक मैत्री बनी और माथुरों को उस समय की अपनी उदार नीति के कारण अनेक प्रहार और अपवाद सहन करने पड़े , परिणामत: मथुरा पर अधिकार के बाद जरासँध ने मथुरा को लूटा जलाया या विनष्ट किया हो ऐसा उल्लेख नहीं मिलता ।
जरासंध की शत्रुता यादवों से थी । उसने 86 यादव नरेश और उनकी अविवाहित राजकन्याओं को अपने कारागार में डाल रखीं थीं महाभारत के बाद योद्धाओं की शक्ति समाप्त नहीं हुई थी । मगध साम्राज्य का शौर्य और विस्तार बढ़ रहा था । किन्तु मगध विदेशयी जातीय गांधारी (कंधारी पठान) वंश के उपरिचर बसु की सन्तान होने से वैदिक यज्ञों धर्म और देव पद्यति के प्रति निष्ठावान न थे । उनके ब्राह्मण और क्षत्रिय समाज में उच्चता समानता युक्त सम्मान भी प्राप्त न था फिर भी उन्होंने 3233 से 2011 वि0पू0 तक 1222 बर्ष भारत पर अपना एक छत्र राज्य जमाये रक्खा । इसी अवधि में 1800 वि0 पू0 में ब्रह्म दिवस के कलियुग का अवसान हुआ ।
व्रम्हरात्रि का द्वितिय कलयुग- शौनकसत्र
ब्रहद्रथ वंश के राजा रिपुंजय के बाद शुनक वंशी व्यासशिष्य शौनकों का वंश शासनारूढ़ हुआ । वृहद्रथ वंश ने अपने लंबे राज्यकाल में कोई उल्लेखनीय धर्म कार्य किया हो एसा ज्ञात नहीं होता, किन्तु शुनक वंशियों ने सूतों को पुराणों के क्षेत्र में महान प्रतिष्ठा देकर नैमिषारण्य मिश्रिक आदि नव तीर्थों की स्थापना करके लंबे काल के कथा सत्र आयोजित किये । इन कथा महा सम्मेलनों ��ें 88 हज़ार ऋषि महर्षि, लक्षाबधि प्रजाजन, तथा दानी मानी राजपुरूषों ने भक्ति के साथ 18 पुराणों का कथारस पान किया ं पुराणों का बहुविधि विकास विस्तार और जनसम्मान इसी युग में माथुर वेदव्यास शिष्यों के द्वारा अखिल भारतीय स्तर पर प्रचारित हुआ । माथुर ऋषि महर्षि इन सत्रों के प्रथम कोटि के निर्देशन और सहायक थे । इन सत्रों में श्री कृष्ण की महिमा, उनके रसप्लावित चरित्र, ब्रजभूमि, मथुरा, और माथुर चतुर्वेद ब्रह्मणों की कीर्ति का महान प्रचार हुआ । 5 पीढ़ी राजकर 1873 वि0पू0 में महाराज वंशजों ब्रज औ काशी के नागों का अधिकार मगध साम्राज्य पर आया ।
भाग ब्रज की प्राचीन जाति थी । इस वंश में विंवसार(1727-1689 वि0पू0) अजात शत्रु (1627-1662 वि0पू0) उदायी डदितोदय मथुरा का राजा(1627-1594 वि0पू0), नंदिवर्धन(1594-1554 वि0पू0) तथा महामंदी कालाशोक (1554-1511 वि0पू0) आदि 10 राजा हुए । यह द्वितीय कलि (1800-600 वि0पू0) का समय इतिहास में बहुत क्रान्तिकारी समय हैं । एतिहासिक शंसोधन के अनुसार इस युग में जैन धर्म आचार्य महावीर स्वामी का जन्म 1797 वि0पू0 मेंतथा बुद्धि धर्म प्रवर्तक बुद्धदेव का जन्म 1760 वि0पू0 में हुआ । इन दोनों मतों ने प्राचीन वैदिक धर्म को झकझोर डाला और रात्रि कलियुग का झंझावात खड़ा कर दिया । उदायी या ऊदितोदय के मथुरा पर सासनारूढ़ रहने के उल्लेख बौद्ध साहित्य में है, और उसके समय मथुरा धर्म प्रचार का प्रधान केन्द्र था तथा माथुर अपनी स्वधर्म निष्ठा पर दृढ़ तथा सम्मानित थे ।
महापद्म नंद वंश
1511 वि0पू0 में महापद्मनंद के वंश का महा साम्राज्य स्थापित हुआ । महापद्मनंद एक महान प्रतापी सम्राट था उसके राज्य में माथुरा और मथुरों के वैभव और श्रेष्ठता का महान विस्तार हुआ । सुमाल्य आदि इसके 9 पुत्रों ने मथुरा की वैभव वृद्धि में स्नेहयुक्त योगदान दिया ।
मौर्य वंश
1411 वि0पू0 में कटैलिया जाटों के पुरोहित कौटिल्य चांड़क्य की कूटनीति योजना से परम प्रतापी चंद्रगुप्तमौर्य द्वारा मौर्य वंश के साम्राज्य की नींव पड़ी । मौर्य मूलत: ब्रज के मयूर ग्राम(मोरा गाँव) के निवासी मयूर गण थे । ब्रज की तेजस्विता के फलस्वरूप वे अनेक खंडों में फैलकर स्व्च्छंद और महावलशाली बन कर मुरदैत्य तथा मूर मु��ाई मुरशद कहे जाने लगे । मुरसान, मुरार, मोरवी, मुरैना मोरावां आदि अनेक क्षेत्रों में इनका वंश फैंल चुका था । चंद्रगुप्त के उत्तर भारतीय साम्राज्य में मथुरा एक प्रमुख केन्द्र था, तथा इस वंश के वैभवशाली राजपुरोहित मौरे अल्ल धारी माथुरों के अनेक परिवार अभी भी मथुरा नगर में ��से हुए हैं । मौर्य काल में बौद्ध मत सारे भारत तथा विदेशों में भी ख़ूब फैला । विंदुसार पुत्र सम्राट अशोक इस वंश का सबसे अधिक प्रतापी सम्राट था । इसने मथुरा में अनेक बौद्धस्तूप विहार और सनातन धर्म के देवालय निर्माण कराये, जिनकी वैभव संपति तथा अर्चना विधि के संचालक माथुर ब्राह्मण थे । इस वंश के सम्राट शालिशूक (इंद्रपालित) 1300 वि.पू. के समय बौद्धधर्म बहुत विकृतियों से युक्त हो गया था । बौद्ध राजाओं का आरय पाकर बौद्धभिक्षुओं की संख्या इतनी बढ़ी कि वह भूमि का भार बन गयी ।
कुछ इतिहास ज्ञों के मत से बौद्ध भिक्षु बल पूर्वक ग्रहस्थों के घरों से भिक्षा बसूल करने लगे । वे किसान का अनाज, ग्वालों का दूध घी, कुम्हारों के वर्तन, बजाज, दर्जी, माली, तेली, नाई, वाहन, चालकों के उत्पादनों और साधनों का बिना मूल्य अपहरण करने लगे । किसान, कारीगर, मजदूर, व्ययसायी, विद्वज्जन सभी वस्त्र रंगकर बौद्ध विहारों में भिक्षु बनकर मुफ़्त के माल उड़ाने लगे । राजाओं की सेना सैनिक निशस्त्र भिक्षु बनकर चैन की नींद लेते हुए शौर्य हीन हो गये । राजदंड में क्षमा और दया का प्रवेश होने से चोरी लूट व्यभिचार आदि अपराध बढ़ गये । बौद्ध भिक्षुव्यसनी विलासी और तंत्र मंत्र नग्नासनों सिद्धियों के प्रयोंक्ता बन गये । सारा देश अकर्मण्य दुर्वल, कायर, शौर्यहीन और निस्तेज हो गया । इस अवसर का लाभ उठाने को उत्तर पश्चिम के आसुर क्रूर लोग भारत की दबोच कर अपने आधीन करने के प्रयास करने लगे । देश का धर्म और सुरक्षा महान संकट में पड़ गये ।
भगवान काल्कि का प्रादुर्भाव
ऐसे समय गीता में अपनी धर्म घोषणा के प्रतिपालनार्थ प्रभु ने भगवान काल्कि के रूप् में अवतार धारण किया । प्रभु काल्कि का आविर्भाव संमल ग्राम में विष्णुयशा पराशर बशिष्ठ गोत्रीय ब्राह्मण के यहाँ मौर्य शालिशूक राज के राज्यकाल में 1338 वि0पू0 में हुआ । विष्णुयश को अपने गुरु याज्ञवल्क्य वंशज तपस्वी ब्राह्मण से कृपारूप् आशीर्वाद प्राप्त था । कल्कि ने सिंहल द्वीप में पद्मावती नाम की राजकन्या से विवाह किया और फिर वहाँ से देवदत्त अश्व पर सवार होकर कराल खग्ङ धारण कर वैदिक धर्म के विरोधियों के संहार की घोषणा की । प्रथम उन्होंने विन्ध्येश्वरी नंदपुत्री योगमाया भगवती की आराधना की और फिर आकर मगध देश में ही विशाल धर्म सेना तैयार कर विधर्मियों का दमन आरंभ किया । इस समय बुद्ध धर्म को 450 वर्ष तथा उसके 25 बुद्ध हो चुके थे ।
देश में नास्तिक अधर्मवादी संप्रदायों का ��ोर था । इनमें चावकि निरीश्वरवादी, अजितकेशी, उच्छेवादी, गोशालमंखली, आजोवकी, गोष्ठा माहिल, अनीश्वरवादी, पक्थ काच्चायन अशाश्वत वादी, पूरण काश्यप, सांजय वेल्हीपुत्र विक्षेप वादी आडार कालम अकिर्चिन्नायन बाद (संसार में कहीं कुछ नहीं है), आम्रपालिगणिका उपलि नापित का जात पांत निर्मूलन प्रयास, आदि प्रमुख थे । ये दान धर्म यज्ञ पाप पुण्य स्वर्ग नर्क कुछ नहीं हैं, हत्या चोरी व्यभिचार से पाप नहीं लगता तथा तीर्थ दान पूजा से पुण्य नहीं होता ऐसा घर घर प्रचार करते थे । जैनों के 363 पंथ तथा बौद्धों के अनगिनती थे । मगध, लिच्छवी, शाल्व, बुलि, कोल्लिय, मत्म्त्मे, कौशल आदि अनेकों राजा इन संघों के भक्त थे ।
प्रभु काल्कि ने इन सबका प्रतारण किया । अधिक रक्त पात न करके उन्होंने यज्ञों द्वारा प्रजा को आकर्षित करके और सेना भय से नरेशों को कुमार्ग से विरत करके सारे देश में शाश्वत वैदिक श्रौत स्मार्त पौराणिक धर्म की ध्वजा समग्र भारत वर्ष में फरहादी । लोग लाखों की संख्या में भगवान काल्कि के दर्शनों, यज्ञ महोत्सवों और अपने प्राचीन धर्म को पुन: अंगीकर करने की आने लगे । कहीं कहीं कुछ गर्वित नरेशों ने युद्ध भी किया परन्तु वे पूर्णत: ध्वस्त हुए । फिर उन्होंने सीमा पर आक्रमण की तैयारी करते हुए यवन म्लेच्छ खश, काम्बोज, शवर, बर्वर, भूतवासी सारमेयी, काक, उलूक, चीन, पुर्लिद, श्वपच पिशाच, मल्लार देशों को विजय कर उन्हें धर्मानुकूल बनाया ।
इस धर्म विजय के पश्चात अयोध्या तथा फिर "मथुरा मागमन्मही" 'तस्या, भूपंसूर्यकेतु' मभिषिच्य महाप्रभु' वे मथुरा पधारे यहाँ विशाल यज्ञ आयोजित किया प्रधान ब्राह्मण माथुरों की अर्चना की तया समस्त जीती हुई भूमि ब्राह्मणों को दान करके देदी । माथुरा के बाद गाँव में इस यज्ञ का आयोजन करके प्रभु काल्कि ने मथुरों को वेदवाद प्रचार के लिये संयोजित किया । इस प्रकार अपना अवतार कार्य परिपूर्ण करके वे 1296 वि0पू0 में हिमालय में प्रवेश करके स्वधाम को प्रयाण कर गये । भगवान काल्कि का स्नेह माथुर ब्राह्मणों पर विशेष रूप से था पिंडारक तीर्थ पर जब माथुर महर्षि गण अत्नि वशिष्ठ मृगु पराशर दुर्वासा अंगिरा उनके समीप पहुँचे तो उन्होंने कहा –
मथुरायामहं स्थित्वा हरिष्यामितु वो भयम् ।।26।। युवां शस्त्रास्त्र कुशलौ सेनागण परिच्छदौ । भूत्वा महारथौ लोके मया स�� चरिष्यथ: ।।28।।
भगवान कल्कि का चरित्र दिव्य महान और विस्तार युक्त है । कल्कि पुराण में इसका पूर्ण वर्णन हुआ है । यह पुराण भारत धर्म महामंडल काशी द्वारा 1962 वि0 में निगमागम पुस्तक भंडार बांस का फाटक बाराणसी से प्रकाशित हुआ है तथा बैंकटेश्वर प्रेस बंबई एवं खेमराज श्री कृष्णदास बंबई से भी इसके प्रकाशन हुए हैं । अमरीका की पेन्सिलवेनियाँ विश्वविद्यालय तथा ब्रुकलिन कालेज न्यूया्रक में कल्कि अवतार पर शोधकार्य हुआ है पुराणों में स्कंद पुराण माहेश्वर कल्प के कुमारिकाखंड में तथा महाभारत के बन पर्व 188 तथा 190,191 में भी इस अवतार का कथन है फिर न जाने किस कारण से विद्वद्वर्ग ने ऐसे महान अवतार को अंथकार के गर्त में डाल रक्खा है ।
जगद्गुरु श्री शंकराचार्य और कुमारिल स्वामी
600 वि0पू0 से 1800 विक्रम संवत तक ब्रह्मरात्रि का द्वापर युग प्रवर्तित हुआ । इस काल में आंध्रमृत्यु, वाकाटक, सात वाहन, भारशिवनाग, गुप्तवंश, चालुक्य, पल्लव, पांड्य चोल, बल्लभी, मौखरी आदि अनेक वंश उठे और गिरे/हूणों के आक्रमण का ताँता लगा । युग धर्म के अनुसार जो पांखंड मत काल्कि विजय में भेष बदल कर लुप्त हो गये वे पुन: सिर उठाने लगे । अत: धर्मवीज के अंकुर की रक्षा के लिए भगवद अन्श से और दो महापुरूषों ने जन्म धारण किया । इनमें प्रथम श्री कुमारिलभट्ट स्वामी थे जो श्री शंकराचार्य से 57 वर्ष बड़े थे । श्री पी0 एन0 ओक की शोध के अनुसार इनका जन्म लगभग 509 वि0पू0 का है । इन्होंने 97 वर्ष आयु प्राप्त करके आसेतु हिमालय वेदमार्ग की घ्वजा फहरा कर बौद्धों तथा अन्य बचे खुचे पाखन्ड मतों को उन्मूजन किया । श्री शंकराचार्य के बौद्ध मत खन्डन पत्रक में इनका विशेष उल्लेख है । इन्होंने कार्तकिेय स्वामी का अवतार होने से स्वामी पद धारण किया था । मगध विहार के नालंदा विश्व विद्यालय में जबसे बौद्ध आचार्य से न्याय दर्शन पढ़ रहे थे तब गुरु के चरण दबाते समय वेद निन्दा सुनकर अनके नेत्रों से आँसू टपक कर आचार्य के चरणों में गिरे । यह देख बौद्धों ने यह तो वेद वादी है । वे उन्हैं धनवाद के राजा सुघन्वा के सामने ले गये और वहाँ उन्हैं ताड़ना देकर ऊँचे पर्वत से गिराया गया किन्तू वेद सत्य है तो मेरी रक्षा होगी' एसे निश्चय से इनकी रक्षा हुई । तब इन्होंने समस्त भारत वर्ष में वेद धर्म के प्रचार की ���्रतिज्ञा ली । मथुरा के वेदपाठी चतुर्वेदी माथुर ब्राम्हाणों के महत्व को अन��भव कर उन्होंने अपना वेद धर्म आन्दोलन यहीं से श्रीगणेश किया । उन्होंने वेदपाठी चतुर्वेदी ब्राह्मणों का एक वेद प्रचार वर्ग बनाया और उसका केन्द्र जिस स्थान पर रक्खा वह वेदवाद तीर्थ बाद गाँव नाम से अभी भी मथुरा में है तथा इस समूह के वेद वादी माथुरों की भारद्धाज गोत्रिय शाखा कुमारिली या रिली कही जाती है विद्वानों ने इस शाखा को अनअल मनमानी कहा है जबकि उनने इस प्राचीन शाखा के गौरव को जाना ही नहीं । इसके बाद बाद गाँव को आगे चलकर भक्त महात्मा श्री हित हरि वंश जी की जन्म भूमि होने का भी महत्व प्राप्त हुआ है ।
एक बार कुमपरिल स्वामी राजा सुघन्वा के राज महल के नीचे से जा रहे थे । उन्हैं देख राजा की राजकुमारी ने छत पर से व्याथित स्वर में पुकार की 'कि करोमि क्व गच्छामि, को नुइरिष्ययति ।' उन्होंने ऊपर देखा और उत्तर दिया 'मा चितय बरारोहे भट्टाचार्योस्ति भूतले ।।' बौद्धमतानुयामी सुघन्वा राजा ने इन्हैं अनेक कष्ट दिये किन्तु अन्त में पराजित होकर वह इनका शिष्य हो गया और सारे देश में दुन्दुभी घोष करा दिया-
व्यादाथाज्ञां ततो राजा बधाय श्रुति विद्विषां ।
आसेतो रातुषाराद्रे, बौद्धानां वृद्धिं घातकम्
नहनिष्यतिय: स हन्तव्य. भृत्यानित्यन्वशानृप ।
इस राजाज्ञा से सारा बौद्ध समाज निरस्त हो गया ।
विद्यारण्य स्वामी लिखते हैं-
बौद्धादि नास्तिकाध्वस्त वेदमार्ग पुरा किल ।
भट्टाचार्य: कुमाररांश: स्थापयामास भूतले ।।4।।
जगदगुरु श्री आद्यशकराचार्य महाराज- इस समय में 452 वि0पू0 में केरल में शंकर भगवान के अवतार श्री आद्य शंकराचार्य सवामी का प्रादुर्भाव हुआ । वे केवल 32 वर्ष ही भूलव पर विराजे किन्तु इतने समय में ही उन्होंने सन्यास ग्रहण कर भारत वर्ष के समस्त धरा मण्डल का परिभ्रमण कर वैदिक समातन धर्म की अखन्ड ध्वजा फहरा दी ।
उन्होंने देश की चारों सीमाओं पर उत्तर में ज्योतिर्मठ, दक्षिण में श्रृंगेरीमट, पूर्व में गोवर्धन मठ और पश्चिम में शारदा मठ के प्रबल धर्म केन्द्र स्थापित किये । वे मथुरा पुरी भी पधारे और माथुरों का मानकर श्री यमुना महारानी के परम भक्ति पूर्ण दो यमुनाष्टक रचकर गान किये । इनमें से एक में "धुनोतु में मनोमलं कलिंदनदिनी सदा" कहकर महर्षि वेद व्यास के कृष्ण गंगा आश्रम पर विराजमान कलिंदी माता जी तथा दूसरे में जय यमुने जय भीति निवारिणि शंकट नाशिनि पावय माम्" कहकर मधुवन चारिणि भास्कर वाहिनि अर्थात् सूर्य सेन पुरी मथुरा के सूर्य सांव तीर्थ से मधुवन में बहने वाली ��तिहासिक यमुना धारा की वन्दनात्मक सूचना दी है ।
इन स्तोत्रों में श्री महाराज ने 'तटाँतवास दास हँस ता" "ब्रजपुरवासि जनार्जित पातक हारिणि तथा तव पद पंकज आश्रित मानव कहकर यमुना पुत्र माथुरों की ओर संकेत किया है । इसी महान परम्परा के द्वारिका पीठ के श्री शंकराचार्य स्वामी वर्य ने यहाँ माथुरों पर होता आक्षेप सुनकर एक अति महत्वपूर्ण धर्म व्यवस्था माथुरों को स्नेहाई होकर प्रदान की जो इस प्रकार हैं-
श्री शारदा पीठ द्वारिका के पीठाधीश्वर जगद् गुरु श्री शंकराचार्य स्वामी द्वारा घोषित
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jamshedpur jugsalai mla mangal kalindi : विधायक मंगल कालिंदी ने जुगसलाई विधानसभा क्षेत्र की बहनों से बंधवाई राखी, लोगों ने लिया हिस्सा
जमशेदपुर : रक्षाबंधन के शुभ अवसर पर जमशेदपुर के जुगसलाई विधायक मंगल कालिंदी ने जुगसलाई विधानसभा क्षेत्र के बिड़रा गाँव की दीदी तिलोत्तमा कालिन्दी,पटमदा पाइचाडीह की किरण देवी, परसुडीह भाटा बस्ती निवासी शांति लोहार,हलुदबनी पंचायत समिति सदस्य स्वप्ना बेरा, गोविंदपुर की मीना देवी,गोविंदपुर की ममता गोप के आवास जाकर अपनी कलाई पर राखी बंधवाई.(नीचे भी पढ़े) साथ ही रक्षाबंधन की खुशियों को साझा किया और…
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भारतसँग प्रतिस्पर्धा गर्न नसकेपछि नेपालको पहिलो स्वदेशी बेल्चा उद्योग संकटमा
३ भदौ, बुटवल : बुटवलमा रहेको नेपालमै पहिलोपटक उत्पादन सुरु भएको तिलोत्तमा मंगोलियाको बेल्चा उद्योग संकटमा परेको छ । भारतबाट आयातित बेल्चासँग मूल्यमा प्रतिस्पर्धा गर्न नसकेपछि उक्त उद्योग संकटमा परेको उद्योगका सञ्चालक महेश थैवले बताएका छन्। महेशले कोराना महामारीका बेलामा लक्ष्मी स्टिल उद्योगबाट १५ करोड रुपैयाँमा नेपालमै पहिलो पटक बेल्चा उत्पादन सुरु गरेका थिए । तर, अहिले सरकारले बेल्चा बनाउन…
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एक्स्ट्राटेक लिजेन्ड कप: लिजेन्ड्स ९६ लाई पराजित गर्दै २०१४ विश्वकप लिजेन्ड्स फाइनलमा
तिलोत्तमा । २०१४ विश्वकप लिजेन्ड्सले लिजेन्ड्स ९६ लाई पराजित गरेको छ । रुपन्देहीको तिलोत्तमामा निर्माण गरिएको एक्स्ट्राटेक ओभल क्रिकेट मैदानमा सम्पन्न 'एक्स्ट्राटेक लिजेन्ड कप' को पहिलो खेलमा २०१४ विश्वकप लिजेन्ड्सले लिजेन्ड्स ९६ लाइ ५ विकेटले पराजित गरेको हो । लिजेंड्स ९६ ले दिएको ६८ रनको लक्ष्य पछाएको २०१४ विश्वकप लिजेण्डसले ९.४ ओभरमा ५ विकेट गुमाउदै लक्ष्य पुरा गरेको थियो । २०१४…
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Manan Karne yogya Katha:
*🌳 "मिट्टी का प्रभाव" 🌳*
जिस भूमि मेँ जैसे कर्म किए जाते हैँ, वैसे ही संस्कार वह भूमि भी प्राप्त कर लेती है।
इसलिए गृहस्थ को अपना घर सदैव पवित्र रखना चाहिए।
मार्कण्डेय पुराण मेँ एक कथा आती है- राम लक्ष्मण सीता जब वन में प्रवास कर रहे थे। मार्ग में एक स्थान पर लक्ष्मण का ��न कुभाव से भर गया, मति भ्रष्ट हो गयी।
वे सोचने लगे - कैकेयी ने तो वनवास राम को दिया है मुझे नहीं। मैं राम की सेवा के लिए कष्ट क्यों उठाऊँ?
राम जी ने लक्ष्मण से कहा - लक्ष्मण इस स्थल की मिट्टी अच्छी दिखती है, थोड़ी बाँध लो। लक्ष्मण ने एक पोटली बना ली। मार्ग में जब तक लक्ष्मण उस पोटली को लेकर चलते थे तब तक उनके मन में कुभाव ही बना रहता था।
किन्तु..जैसे ही रात्रि में विश्राम के लिए उस पोटली को नीचे रखते उनका मन राम सीता के लिए ममता और भक्ति से भर जाता था।
2-3 दिन यही क्रम चलता रहा जब कुछ समझ नही आया तो लक्ष्मण ने इसका कारण राम जी से पूछा..
श्रीराम ने कारण बताते हुए कहा - भाई! तुम्हारे मन के इस परिवर्तन के लिए दोष तुम्हारा नहीँ बल्कि उस मिट्टी का प्रभाव है, जिस भूमि पर जैसे काम किए जाते हैं उसके अच्छे बुरे परमाणु उस भूमिभाग में और वातावरण में भी छूट जाते हैं। जिस स्थान की मिट्टी इस पोटली में है, वहाँ पर सुंद और उपसुंद नामक दो राक्षसो का निवास था। उन्होंने कड़ी तपस्या के द्वारा ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके अमरता का वरदान माँगा। ब्रह्मा जी ने उनकी माँग तो पूरी की किन्तु कुछ नियन्त्रण के साथ। उन दोंनो भाइयो में बड़ा प्रेम था अतः उन्होंने कहा कि हमारी मृत्यु केवल आपसी विग्रह से ही हो सके। ब्रह्माजी ने वर दे दिया। वरदान पाकर दोनों ने सोचा कि हम कभी आपस में झगड़ने वाले तो हैं नही अतः अमरता के अहंकार में देवों को सताना शुरु कर दिया। जब देवों ने ब्रह्माजी का आश्रय लिया तो ब्रह्माजी ने तिलोत्तमा नाम की अप्सरा का सर्जन करके उन असुरों के पास भेजा। सुंद और उपसुंद ने जब इस सौन्दर्यवती अप्सरा को देखा तो कामांध हो गये तुम मेरी हो और अपनी अपनी कहने लगे तब तिलोत्तमा ने कहा कि मैं तो विजेता के साथ विवाह करुँगी।
तब दोनो भाईयो ने विजेता बनने के लिए ऐसा घोर युद्ध किया कि दोनो आपस मे लड़ के मर गये। वे दोनों असुर जिस स्थान पर झगड़ते हुए मरे थे, उसी स्थान की यह मिटटी है। अतः इस मिटटी में भी द्वेष, तिरस्कार, और वैर का सिंचन हो गया है।
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दुर्घटनामा परी सहकारी बैंकका सञ्चालक देवकोटाको मृत्यु
राष्ट्रिय सहकारी बैंक लिमिटेडका सञ्चालक माधवलाल देवकोटाको सडक दुर्घटनामा परी सोमबार निधन भएको छ । सिद्धार्थ राजमार्ग अन्तरगत बुटवल भैरहवा सडक खण्डको तिलोत्तमाको मणिग्राममा लु ४९ प २२३० नम्बरको मोटरसाइकललाई ना ६ ख ८१६१ नम्बरको ट्रकले ठक्कर दिदा देवकोटा सहित २ जनाको मृत्यु भएको हो । दुर्घटनामा परी बैंकका सञ्चालक, शिक्षा, तालिम तथा सम्मान उप–समितिका संयोजक तिलोत्तमा नगरपालिका निवासी देवकोटा र सोही…
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बच्चों के शुरुआती विकास को सुदृढ़ बनाने के लिए उत्तराखंड सरकार लगातार कार्य कर रही है: मुख्यमंत्री धामी
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बच्चों के शुरुआती विकास को सुदृढ़ बनाने के लिए उत्तराखंड सरकार लगातार कार्य कर रही है: मुख्यमंत्री धामी
कोदेहरादून/8अगस्त/मंगलवार /आज उत्तराखंड मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने देहरादून में राज्य स्त्री शक्ति “तीलू रौतेली” एवं “आंगनवाड़ी कार्यकत्री” पुरस्कार वितरण समारोह मे शिरकत करते हुए कहा कि अपूर्व शौर्य, संकल्प और वीरता की धनी तीलू रौतेली जी की जयंती पर उन्हें नमन करता हू ।उन्होंने अपने दुश्मनों को दांत��ं तले उंगुली दबाने को मजबूर कर दिया था।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारी भारतीय सनातन संस्कृति में माताओं को देवी का दर्जा दिया गया है। हमारी मातृशक्ति किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं है और पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है।
धामी ने कहा कि हमारी सरकार ने आगंनबाड़ी और मिनी आंगनबाड़ी बहनों को सशक्त बनाने के लिए उनके मानदेय में वृद्धि की है। मैं इस मंच के माध्यम से ये विश्वास दिलाना चाहता हूं कि आपके भाई के रूप में जो भी आपके लिए बेहतर होगा किया जाएगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि बच्चों के शुरुआती विकास में को सुदृढ़ बनाने के लिए सरकार लगातार कार्य कर रही है। बच्चों के शुरुआती विकास में इन केंद्रों की अहम भूमिका होती है। मेरे भी दोनों बच्चों ने अपनी शुरुआती शिक्षा आंगनबाड़ी केंद्र से ही की थी।
धामी ने कहा कि हमने तीलू रौतेली पुरस्कार की धनराशि बढ़ाने का निर्णय लिया है। इसके साथ ही आंगनबाड़ी पुरस्कार राशि को भी बढ़ा दिया गया है।
"विरांगना तीलू रोतेला"
तीलू रौतेली या तिलोत्तमा देवी, गढ़वाल उत्तराखण्ड की एक ऐसी वीरांगना जो केवल 15 वर्ष की उम्र में, रणभूमि में कूद पड़ी थीं और सात साल तक जिसने अपने दुश्मन कत्यूरी राजाओं को कड़ी चुनौती दी थी। 22 साल की उम्र में उन्होने 13 गढ़ों पर विजय प्राप्त कर ली थी और अंत में अपने प्राणों की आहुति देकर वीरगति को प्राप्त हो गई। तीलू रौतेली आज एक वीरांगना के रूप में उत्तराखंड वासियों द्वारा याद की जाती हैं।उन्हें उत्तराखंड की लक्ष्मी बाई कहा जाता है।
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पाँच महिनादेखि तलब नपाएपछि तिलोत्तमाका स्वास्थ्यकर्मी आन्दोलित
बुटवल—तिलोत्तमा नगरपालिकामा कार्यरत स्वास्थ्यकर्मीहरु पाँच महिनादेखि तलब नपाएपछि आन्दोलित भएका छन् । नगरपालिकाअन्तर्गतका १७ वटा स्वास्थ्य संस्थामा कार्यरत ७८ जना स्वास्थ्यकर्मीले पुस महिनादेखिको तलब नपाएपछि आन्दोलित भएका हुन् । पाँच महिनासम्म तलब नपाउँदा घर खर्च चलाउन समस्या भएको भन्दैं स्वास्थ्यकर्मीहरुले छिटो तलब पाउने व्यवस्थाका लागि नगरपालिकासँग आग्रह गरेका छन् । यहाँ ४५ जना दरबन्दी तथा…
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Regional Marathi Text Bulletin, Aurangabad
Date : 22 February 2023
Time 01.00 to 01.05 PM
Language Marathi
आकाशवाणी औरंगाबा��
प्रादेशिक बातम्या
दिनांक : २२ फेब्रुवारी २०२३ दुपारी १.०० वा.
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राज्यातल्या सत्तासंघर्षावर आज सलग दुसऱ्या दिवशी सर्वोच्च न्यायालयात सरन्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड यांच्या अध्यक्षतेखालील पाच सदस्यीय घटनापीठासमोर सुनावणी सुरू आहे. शिवसेना नेता निवड प्रक्रिया, एकनाथ शिंदे यांची गटनेते म्हणून निवड, प्रतोद नियुक्ती आदी मुद्यांवर ठाकरे गटाचे वकील कपिल सिब्बल यांचा युक्तिवाद सुरू आहे. ठाकरे गटाच्या युक्तिवादानंतर शिंदे गटाचे वकील युक्तिवाद करतील. उद्या देखील ही सुनावणी सुरू राहणार आहे.
दरम्यान, शिवसेना पक्षनाव आणि धनुष्यबाण हे पक्षचिन्ह शिंदे गटाला देण्याच्या केंद्रीय निवडणूक आयोगाच्या निर्णयाला आव्हान देणाऱ्या ठाकरे गटाच्या याचिकेवर आज दुपारी सर्वोच्च न्यायालयात सुनावणी होणार आहे.
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ठाकरे गटाचे नेते खासदार संजय राऊत यांच्या सुरक्षेत वाढ करण्यात आली आहे त्यांच्या सुरक्षेसाठी एक पोलीस उपनिरीक्षक आणि दोन पोलीस कर्मचारी यांची नियुक्ती करण्यात आली आहे. दरम्यान राऊत यांनी काल केलेल्या आरोपानंतर ठाणे पोलिसांच्या विशेष पथकानं आज नाशिक इथं राऊत यांचा जबाब नोंदवून घेतला. राऊत यांनी मंगळवारी आपल्याला जीवे मारण्याचा कट असल्याचा गंभीर आरोप करणारं पत्र मुंबई आणि ठाणे पोलीस आयुक्तांना पाठवलं होतं. त्यानंतर ही कारवाई करण्यात आली.
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उत्तम संसदीय कामगिरीबद्दल देशातल्या १३ खासदारांना ‘संसद रत्न पुरस्कार जाहीर झाले आहेत. यामध्ये महाराष्ट्रातील डॉ. अमोल कोल्हे, हिना गावित, फौजिया खान आणि गोपाळ शेट्टी यांचा समावेश आहे. येत्या २५ मार्च रोजी हे पुरस्कार प्रदान करण्यात येणार आहेत. पंतप्रधान नरेंद्र मोदी यांनी पुरस्कार विजेत्या खासदारांचं अभिनंदन केलं आहे.
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गुढीपाडवा तसंच डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जयंतीनिमित्त शिधापत्रिकाधारकांना १०० रुपयांत आनंदाचा शिधा देण्याचा निर्णय राज्य मंत्रिमंडळानं घेतला आहे. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे यांच��या अध्यक्षतेखाली आज ही बैठक झाली. याचा लाभ एक कोटी ६३ लाख शिधा पत्रिकाधारकांना होईल. यापूर्वी दिवाळीत हा आनंदाचा शिधा देण्यात आला होता.
अंत्योदय अन्न योजना, प्राधान्य कुटुंब तसंच औरंगाबाद आणि अमरावती विभागातल्या सर्व आणि नागपूर विभागातल्या वर्धा अशा १४ शेतकरी आत्महत्याग्रस्त जिल्ह्यातल्या दारिद्र्य रेषेवरील केशरी शेतकरी शिधा पत्रिकाधारकांना, एक किलो रवा, एक किलो चना डाळ, एक किलो साखर आणि एक लिटर पामतेल असा आनंदाचा शिधा गुढी पाडव्यापासून पुढील एक महिन्याच्या कालावधीसाठी ई -पॉसद्धारे १०० रुपये प्रतिसंच असा सवलतीच्या दरात दिला जाईल. ई-पॉसची व्यवस्था नसलेल्या ठिकाणी ऑफलाईन पद्धतीने हा शिधा दिला जाईल.
अहमदनगर जिल्ह्यात अकोले तालुक्यातल्या उर्ध्व प्रवरा प्रकल्पाच्या कामास गती देण्यासाठी पाच हजार १७७ कोटी रुपये खर्चास सुधारित मान्यता देण्याचा निर्णय मंत्रिमंडळ बैठकीत घेण्यात आला. यामुळे ६८ हजार हेक्टर जमिनीला सिंचनाचा थेट लाभ होणार आहे.
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जी-20 देशांच्या कृती गटाची पहिली बैठक आजपासून मध्य प्रदेशच्या खजुराहो इथं सुरू होत आहे. २५ फेब्रुवारीपर्यंत चालणाऱ्या या बैठकीत जी-20 गटाच्या सदस्य देशांचे १२५ पेक्षा जास्त प्रतिनिधी हजेरी लावतील. याअंतर्गत भारताच्या प्राचीन खजिन्याचं दर्शन घडवणारं प्रदर्शन आयोजित करण्यात आलं आहे.
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सातवा वेतन आयोग लागू करण्याचे राहून गेलेल्या एक हजार ४१० शिक्षकेत्तर कर्मचाऱ्यांना सातवा वेतन आयोग तात्काळ लागू करण्याचे निर्देश उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस यांनी दिले आहेत. त्यामुळे विद्यापीठातील शिक्षकेत्तर कर्मचाऱ्यांनी पुकारलेला बेमुदत संप आज मागे घेतला आहे.
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औरंगाबाद इथल्या देवगिरी महाविद्यालयात आजपासून फुले-शाहू-आंबेडकर व्याख्यानमालेला सुरुवात होत आहे. रायगड इथले शिवव्याख्याते प्रशांत देशमुख हे आज ‘जगणं सुंदर आहे’ या विषयावर व्याख्यानमालेचं पहिलं पुष्प गुंफतील. उद्या विधिज्ञ उज्ज्वल निकम हे न्यायव्यवस्था आणि जनतेच्या अपेक्षा, या विषयावर आपले विचार मांडतील, तर परवा २४ फेब्रुवारीला ज्येष्ठ विचारवंत किशोर ढमाले हे फुले - शाहू -आंबेडकर यांच्या विचारांची प्रासंगिकता, या विषयावर तिसरं पुष्प गुंफणार आहेत. महाविद्यालयाच्या सभागृहात दररोज संध्याकाळी ��ाडेपाच वाजता ही व्याख्यानमाला होणार आहे.
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इजिप्तची राजधानी कैरो इथं सुरु असलेल्या आ��एसएसएफ नेमबाजी विश्वचषक स्पर्धेत भारताच्या रुद्रांक्ष पाटीलनं दहा मीटर एअर रायफल प्रकारात सुवर्णपदक पटकावलं. तिलोत्तमा सेन हीनं महिलांच्या दहा मीटर एयर रायफल प्रकारात कांस्य पदक जिंकलं. या स्पर्धेत भारत तीन सुवर्ण पदकांसह पदक तालिकेत पहिल्या क्रमांकावर आहे.
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दक्षिण आफ्रिकेत सुरु असलेल्या महिला टी - ट्वेंटी क्रिकेट विश्वचषक स्पर्धेत भारताचा उपान्त्य फेरीचा सामना उद्या ऑस्ट्रेलियासोबत होणार आहे. भारतीय वेळेनुसार संध्याकाळी साडे सहा वाजता सामन्याला सुरुवात होईल. तर स्पर्धेतला दुसरा उपान्त्य सामना परवा २४ तारखेला इंग्लंड आणि दक्षिण आफ्रिकेदरम्यान होणार आहे.
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Financetime.in द नाइट मैनेजर रिव्यु: अनिल कपूर ने बिना पसीना बहाए शो चुरा लिया
अनिल कपूर दर्ज करें रात्रि प्रबंधक. (यूट्यूब के सौजन्य से) प्रपत्र: अनिल कपूर, आदित्य रॉय कपूर, सोभिता धूलिपाला, तिलोत्तमा शोम निदेशक: संदीप मोदी प्रलय: ढाई स्टार (5 में से) एक नई सेटिंग में अत्यधिक सम्मानित श्रृंखला बनाने में जोखिम शामिल हैं।रात्रि प्रबंधकनिर्माता और निर्देशक संदीप मोदी द्वारा श्रीधर राघवन के साथ सह-लिखित इसका एक और प्रमाण है। डिज़्नी+हॉटस्टार शो मूल शो की उच्च उम्मीदों पर खरा…
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प्रधानमन्त्रीको टुङ्गो गठबन्धनभित्रबाटै हुन्छ : माओवादी नेत्री शर्मा
प्रधानमन्त्रीको टुङ्गो गठबन्धनभित्रबाटै हुन्छ : माओवादी नेत्री शर्मा
तिलोत्तमा, १६ मङ्सिर । नेकपा (माओवादी केन्द्र)का नेत्री तथा दाङ क्षेत्र नम्बर २ बाट निर्वाचित प्रतिनिधिसभा सदस्य रेखा शर्माले प्रधानमन्त्रीको टुङ्गो गठबन्धनभित्रबाटै हुनुपर्ने बताउनुभएको छ । उहाँले अहिले निर्वाचनको समानुपातिक मत परिमाण आउने क्रम अझै जारी रहेकाले दलका नेतालाई बाहिरभन्दा पनि पार्टी र गठबन्धनभित्र छलफल गरेर प्रधानमन्त्रीको विषय टुङ्ग्याउन आग्रह गर्नुभयो । बुटवलमा आज आयोजित…
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तिलोत्तमा नयामिल पश्चिम 3 तले नया र आकर्षक घर तु-बिक्रीमा।
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सदैव पवित्र रखें अपना घर और स्थान जिस भूमि में जैसे कर्म किए जाते हैं, वैसे ही संस्कार वह भूमि भी प्राप्त कर लेती है। इसलिए गृहस्थ को अपना घर सदैव पवित्र रखना चाहिए।मार्कण्डेय पुराण में एक कथा आती है कि राम और लक्ष्मण वन में प्रवास... Source link
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भरूवा बन्दुकसहित दुईजना पक्राउ
रूपन्देही, २ पुस । तिलोत्तमा नगरपालिका-११ करैया सामुदायिक वनबाट २ नाल भरुवा बन्दुक, छर्रा र बारुद सहित २ जनालाई प्रहरीले पक्राउ गरेको छ । पक्राउ पर्नेहरूमा देवदह नगरपालिका-१० गैरीगाँउ बस्ने ४८ वर्षीय कर्ण बहादुर परियार र सोही नगरपालिका-१० चरङगे बस्ने ४२ वर्षीय दिपक परियार रहेका छन् । ईलाका प्रहरी कार्यालय बुटवलबाट खटिएको प्रहरीले उनीहरूलाई उक्त बन्दुकसहित पक्राउ गरेको हो । यस सम्बन्धमा…
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मेहुली घोष ने महिलाओं की 10 मीटर एयर राइफल T3 का ट्रायल जीता | अधिक खेल समाचार - टाइम्स ऑफ इंडिया
मेहुली घोष ने महिलाओं की 10 मीटर एयर राइफल T3 का ट्रायल जीता | अधिक खेल समाचार – टाइम्स ऑफ इंडिया
नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल के मेहुली घोष पीछे छोड़ कर्नाटक के तिलोत्तमा सेन शुक्रवार को राष्ट्रीय चयन ट्रायल में महिलाओं की 10 मीटर एयर राइफल टी3 (तीसरा ट्रायल) प्रतियोगिता जीतने के लिए। स्वर्ण पदक प्रतियोगिता में मेहुली ने 16-8 से जीत हासिल की। ओलिंपियन एलावेनिल वालारिवानगुजरात का प्रतिनिधित्व करते हुए, क्वालिफिकेशन राउंड में 632 के साथ शीर्ष पर रहने के बाद कांस्य जीता। प्रतियोगिता के आठवें दिन…
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#ईशा अनिल टकसाले#एलावेनिल वालारिवान#कर्नाटक के तिलोत्तमा सेन#जीना खिट्टा#मेहुलि#मेहुली घोष#हिमाचल प्रदेश
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