#डिजिटल लत क्या है
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डिजिटल लत क्या है? कहीं आप इसका शिकार तो नही है?
आटा से भी सस्ता मोबाइल ‘डाटा’ के घोर नकारात्मक प्रभाव अब खुलकर दिखने लगे हैं। इंटरनेट, साइबर संसार, स्मार्टफोन व सोशल मीडिया की ऐसी लत युवाओं में लग चुकी है जिससे वह न सिर्फ वास्तविक दुनिया से कट गया है, बल्कि इसके शिक्षा स्तर और बौद्धिक क्षमता में भी गिरावट दर्ज हो गई है। इसलिए ये जानना भी जरूरी है कैसे डिजिटल लत से छुटकारा पाया जाए। डिजिटल लत क्या है? डिजिटल एडिक्शन एक आवेग नियंत्रण विकार को…
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Parenting tips: सारा दिन फोन में रील्स और शॉर्ट्स देखने की आदत छुड़ाने के लिए बेहतरीन टिप्स
मोबाइल का अधिक उपयोग करती बच्ची बच्चों को फोन की लत से छुड़ाने के प्रभावी टिप्स। रील्स और शॉर्ट्स की आदत कम करने के आसान तरीके। अपने बच्चे के स्वस्थ विकास के लिए मार्गदर्शन पाएं।क्या आपका बच्चा सारा दिन फोन पर रील्स और शॉर्ट्स देखता रहता है? यह चिंता का विषय है, लेकिन आप अकेले नहीं हैं। डिजिटल युग में, बच्चों को स्क्रीन से दूर रखना एक बड़ी चुनौती बन गया है। लेकिन चिंता न करें, इस आदत को बदलना…
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#आदत परिवर्तन#टेक्नोलॉजी संतुलन#पैरेंटिंग टिप्स#फैमिली टाइम#बच्चों की सुरक्षा#बाल विकास#मानसिक स्वास्थ्य#स्क्रीन टाइम#स्मार्टफोन लत
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कोई भी जबरदस्ती हमारे मुंह में ड्रग्स नहीं डालता: श्वेता त्रिपाठी https://ift.tt/2FO5g8w
��ोई भी जबरदस्ती हमारे मुंह में ड्रग्स नहीं डालता: श्वेता त्रिपाठी https://ift.tt/2FO5g8w
मुंबई, 19 सितंबर (आईएएनएस) बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत के 99 प्रतिशत बॉलीवुड द्वारा ड्रग्स का सेवन करने के दावे को गलत मानते हुए अभिनेत्री श्वेता त्रिपाठी ने इसे आधा सच बताया है।
कार्गो और द गॉन गेम जैसी हालिया डिजिटल रिलीज में अभिनय से प्रभावित करने वाली मसान फेम अभिनेत्री ने यह भी कहा कि कंगना का यह भ्रम है कि अभिनेत्रियों को काम पाने के लिए किसी के साथ सोना पड़ता था और यह कहना कि बाहरी लोग सिनेमा की बड़ी बुरी दुनिया में समझौता करने के बाद ही जगह बनाते हैं, ऐसा नहीं है और न ही बॉलीवुड ऐसे काम करता है।
श्वेता ने आईएएनएस से कहा, मुझे लगता है कि ये जो बातें घूम रही हैं कि फिल्म उद्योग के आधे लोग नशा करते हैं, या यह कि महिला अभिनेत्रियां काम पाने के लिए किसी के साथ सोती हैं, और बाहरी लोग बेहतरीन और अच्छी स्क्रिप्ट पाने के लिए और सिनेमा की बड़ी बुरी दुनिया में समझौता करने के बाद ही अपनी जगह बना पाते हैं। नहीं यह वो चीजें नहीं हैं, जैसे हम बॉलीवुड में काम करते हैं।
उन्होंने आगे कहा, मेरा विश्वास करें, जब मैं यह कहती हूं, कोई भी जबरदस्ती हमारे मुंह में ड्रग्स नहीं डाल सकता है! यदि कोई युवा ड्रग्स लेना चाहता है, तो वे इसे कैसे भी ले लेंगे, चाहे वह मुंबई में हो या देश के किसी भी छोटे शहर में रह रहा हो। इसका मुंबई शहर से कोई लेना-देना नहीं है। मैं सभी माता-पिता को बताना चाहती हूं कि अपने बच्चों की परवरिश, सही दिशा में नैतिकता के साथ बढ़ने साथ-साथ उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी ध्यान रखना जरूरी है।
अभिनेत्री ने कहा, मुझे लगता है कि जब हम अपना बैग पैक करते हैं और मुंबई आते हैं, तो हमारे माता-पिता को पूछना चाहिए कि क्या हम ठीक हैं, बजाय इसके कि हमें शुरुआती संघर्ष से हार मान लेना चाहिए, जिससे हम सब गुजरते हैं। अगर हमसे लगातार यह पूछा जाए कि हम कितना पैसा कमाते हैं और कहा जाता है कि हमारा संघर्ष समय की बबार्दी के अलावा कुछ नहीं है, यह वास्तव में किसी भी नवोदित प्रतिभा पर एक अलग तरह का मानसिक दबाव बनाता है। यह ड्रग्स के सेवन के बारे में नहीं है। यह उन मुद्दों के बारे में है जिसका वह सामना करते हैं, जो उन्हें अंधेरे और नशे की लत और मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों की दुनिया में ले जाते हैं। मुझे लगता है कि किसी उद्योग को बदनाम करने के बजाय इन मुद्दों के बारे में बात किया जाना चाहिए।
गौरतलब है कि पिछले कुछ हफ्तों में फिल्म इंडस्ट्री में कई महिला हस्तियों ने बॉलीवुड में फैली नकारात्मकता के खिलाफ आवाज उठाई है। इनमें अभिनेत्री जया बच्चन, हेमा मालिनी, विद्या बालन, उर्मिला मातोंडकर, तापसी पन्नू और गायिका सोना महापात्रा शामिल हैं।
एमएनएस/वीएवी
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Nobody forcefully puts drugs in our mouth: Shweta Tripathi
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क्या आपको पता है कि 10वीं में डिस्टिंक्शन के साथ पास होने वाला एक लड़का 12वीं क्लास में सिर्फ इसलिए फेल हो गया, क्योंकि वो इकोनॉमिक्स के पेपर में पबजी कैसे खेलते हैं? कैसे डाउनलोड करते हैं? ये लिख आया था। 10वीं उसे 73% मिले थे।
ये मामला कर्नाटक का था। उस समय उस लड़के ने मीडिया को बताया कि 10वीं में अच्छे नंबरों से पास होने के बाद उसके घरवालों ने उसे फोन दिलाया। फोन आते ही उसे पबजी खेलने की लत लग गई। लत भी ऐसी कि इसके लिए क्लासेस तक बंक कर देता था। लड़के का कहना था कि उसके दिमाग में हमेशा पबजी ही चलता रहता था और इससे ही उसे समझ आया कि ये गेम कितना खतरनाक है।
कर्नाटक का ये केस बताता है कि पबजी किस तरह दिमाग पर असर डालता है और कैसे एक अच्छा-खासा पढ़ने-लिखने वाला लड़का फेल हो सकता है।
ऐसे कई मामले हैं, जो ��ाबित करते हैं कि पबजी एक गेम नहीं, बल्कि एक बीमारी था। जैसे एक मामला पंजाब का है। यहां एक 17 साल के लड़के ने अपने मां-बाप के अकाउंट से 16 लाख रुपए पबजी पर उड़ा दिए। उसने ये पैसे गेम के अंदर मिलने वाली एसेसरीज और हथियार जैसी चीजें खरीदने पर खर्च किए थे।
ताज्जुब की बात तो ये भी थी कि माता-पिता को इस बारे में पता न चले, इसके लिए बैंक की तरफ से आने वाले मैसेज डिलीट ही कर दिए।
ज्यादा गेम खेलना भी मानसिक रोग, इसे गेमिंग डिसऑर्डर कहते हैं पिछले साल जनवरी में जम्मू-कश्मीर में एक फिटनेस ट्रेनर को पबजी की वजह से अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था। कारण ये था कि वो लगातार 10 दिन से पबजी खेल रहा था, जिस वजह से उसके दिमाग पर इस गेम का असर इस कदर हावी हो गया कि वो अपना मानिसक संतुलन खो बैठा। उस समय डॉक्टरों ने बताया था कि उसका दिमाग ठीक तरह से काम नहीं कर रहा था और वो खुद को भी नुकसान पहुंचा रहा था।
ऐसे कई मामले आते हैं, जब गेम खेलने वाला खुद को या दूसरों को नुकसान पहुंचाने लगता है या उसकी मानसिक हालत बिगड़ने लगती है। डब्ल्यूएचओ ने ऑनलाइन गेम खेलने की लत को मानसिक रोग की कैटेगरी में शामिल किया है, जिसे 'गेमिंग डिसऑर्डर' कहते हैं। गेमिंग डिसऑर्डर से जूझ रहे व्यक्ति का गेमिंग के ऊपर कोई कंट्रोल नहीं रहता और वो किसी भी जरूरी चीज से पहले गेम को ही प्रायोरिटी देता है।
पबजी खेलने की वजह से ऐसे मामले सामने आने के बाद भी आखिर इसे इतना क्यों खेला जाता है? डॉक्टर शिखा शर्मा इसके दो कारण बताती हैं। डॉ. शिखा राजस्थान के उदयपुर के गीतांजली हॉस्पिटल में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं और साइकोलॉजिस्ट भी हैं। उनके मुताबिक, इसके दो बड़े कारण होत�� हैं। पहला अचीवमेंट और दूसरा मोटिवेशन।
वो बताती हैं, 'गेम में चैलेंज होने के कारण बच्चे इसकी तरफ अट्रेक्ट होते हैं। इसमें ग्रुपिंग होती है। लेवल्स को क्रॉस करना है और बच्चे स्टेज पार करने के बाद मोटिवेट महसूस करते हैं। साथ ही इसे खेलने वाले खुद को अपने साथियों के बीच उनसे बेहतर साबित करने की कोशिश करते हैं।'
पबजी पर बैन लगाना क्यों सही था, इसके 4 कारण सिक्योरिटी रिसर्चर अविनाश जैन बताते हैं कि पबजी समेत चीन की जिन 118 ऐप्स पर बैन लगाया गया है, वो आईटी एक्ट की धारा-69ए के तहत लगा है। इस धारा के तहत अगर सरकार को लगता है कि किसी वेबसाइट या ऐप से देश की सुरक्षा या अखंडता को खतरा है, तो वो उसे ब्लॉक कर सकती है।
अविनाश के मुताबिक, सरकार ने पबजी मोबाइल लाइट और पबजी लाइट पर बैन लगाया है, क्योंकि इन्हें चीनी कंपनी टेंसेंट ने डेवलप किया है। जबकि, पबजी के पीसी और कंसोल वर्जन पर कोई बैन नहीं है, क्योंकि ये कोरियाई कंपनी ब्लूहोल के बनाए गए हैं।
इसके अलावा अविनाश पबजी पर बैन लगाने के कुछ कारण भी गिनाते है...
राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा : ये ऐप डेटा सिक्योरिटी के लिए हार्मफुल हैं, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा है। इसके साथ ही इनसे जासूसी होने का भी खतरा है। ऐप के जरिए चीन की सरकार पॉलिटिकल और मिलिट्री इन्फॉर्मेशन हासिल कर सकती हैं।
यूजर्स की प्राइवेसी को खतरा : ये ऐप कैमरा, माइक्रोफोन और लोकेशन का एक्सेस मांगती हैं और ऐसा शक है कि इस डेटा को चीन की एजेंसियों से साझा किया जाता है।
डेटा लीक होने का खतरा : क्योंकि इन ऐप्स के सर्वर बाहर हैं, इसलिए ये यूजर्स की डिटेल, लोकेशन और पर्सनल डेटा एडवरटाइजर को बेच सकते हैं।
साइबर अटैक का खतरा : पहले भी चीन की ऐप्स में कई स्पाई वेयर मिले हैं, जिसके जरिए यूजर्स के फोन में ट्रोजन आ जाता है। ट्रोजन एक तरह का माल वेयर होता है, जिससे आपका सारा डेटा लिया जा सकता है।
कितना बड़ा है पबजी का साम्राज्य? साल 2000 में जापान में एक फिल्म आई थी 'बैटल रॉयल'। इस फिल्म में सरकार 100 स्टूडेंट्स को जबरन मौत से लड़ने भेज देती है। इसी फिल्म से प्रभावित होकर ये गेम बनाया गया है। इस गेम को एक साथ 100 लोग भी खेल सकते हैं और एक-दूसरे को तब तक मारते रहते हैं, जब तक कि उनमें से सिर्फ एक न बचा रह जाए।
इस गेम को ��क्षिण कोरियाई कंपनी ब्लूहोल ने बनाया था। लेकिन, ब्लूहोल ने इसका सिर्फ डेस्कटॉप और कंसोल वर्जन ही बनाया था। मार्च 2018 में चीनी कंपनी टेंसेंट ने इसका मोबाइल वर्जन भी उतार दिया।
डाउनलोड्स : पबजी दुनिया में सबसे ज्यादा डाउनलोड किए जाने वाले गेम्स की लिस्ट में टॉप-5 में है। सेंसर टॉवर की रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में पजबी को 73 करोड़ से ज्यादा बार डाउनलोड किया गया है। इसमें से 17.5 करोड़ बार यानी 24% बार भारतीयों ने डाउनलोड किया है। इस हिसाब से पबजी खेलने वालों में हर 4 में से 1 भारतीय है।
रेवेन्यू : गेमिंग की दुनिया में सबसे ज्यादा रेवेन्यू कमाने वाला गेम है पबजी। सेंसर टॉवर के मुताबिक, अभी तक पबजी 3 अरब डॉलर यानी 23 हजार 745 करोड़ रुपए का रेवेन्यू कमा चुका है। पबजी का 50% से ज्यादा चीन से ही मिलता है। जुलाई में पबजी ने 208 मिलियन डॉलर (1,545 करोड़ रुपए) का रेवेन्यू कमाया है। यानी जुलाई में पबजी ने हर 50 करोड़ रुपए कमाए हैं।
भारत में कितना बड़ा है गेमिंग मार्केट? स्टेटिस्टा का डेटा बताता है कि 2019 में दुनिया में गेमिंग का मार्केट 16.9 अरब डॉलर (करीब 1.25 लाख करोड़ रुपए) का था। ग्लोबल गेमिंग मार्केट में भारत की हिस्सेदारी बहुत कम है।
भारत के डिजिटल फ्यूचर पर आई केपीएमजी की रिपोर्ट के मुताबिक, 2019-20 में देश में गेमिंग इंडस्ट्री 62 अरब रुपए की थी। जबकि, 5 साल पहले 2015-16 में 24.3 अरब रुपए की थी।
वहीं, एक अनुमान के मुताबिक, दुनियाभर में 2.5 अरब से ज्यादा गेमर्स हैं, इनमें से 30 करोड़ के आस पास गेमर्स अकेले भारत में ही हैं। अगले साल मार्च तक भारत में गेमर्स की संख्या 36 करोड़ के पार पहुंचने का अनुमान है।
भारत में ऑनलाइन गेमिंग का मार्केट बढ़ने के दो कारण हैं। पहला, हमारे देश में यंग पॉपुलेशन बाकी देशों के मुकाबले ज्यादा है। हमारे यहां 75% आबादी 45 साल से कम उम्र की है। दूसरा, हमारे देश में इंटरनेट यूजर्स की संख्या 56 करोड़ से ज्यादा है। 2025 तक देश में इंटरनेट यूजर्स की संख्या 100 करोड़ के पार पहुंचने का अनुमान है।
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कोटा। स्मार्टफोन का चलन बढ़ने के साथ ही इनसे निकलने वाले रेडिशन हमें कई तरह के नुकसान पहुंचा रहे हैं। जिसका पता तुरंत नहीं लगता। जब पता लगता है तब तक हम हम अपना और अपनी बहुमूल्य आँखों का काफी नुकसान कर चुके होते हैं। स्मार्टफोन हम बड़े प्यार से छोटे बच्चों को भी थमा देते हैं, यह जानते हुए भी कि इनसे निकलने वाले रेडिशन कितने खतरनाक हैं।
अपनी यही आदत बच्चों में ‘नोमोफोबिया’(Smartphone Addiction) जैसा रोग भी दे रही हैं। बाद में इसी आदत के चलते बच्चों और बड़ों में ‘डिजिटल विजन सिंड्रोम'(Digital vision syndrome) जैसी बीमारी हो रही है। आइए ने���्र रोग विशेषज्ञ एवं फेको सर्जन डॉ. सुरेश पांडेय से जाने ‘नोमोफोबिया’ के बारे में –
‘नोमोफोबिया’ का अर्थ है ‘नो मोबाइल फोबिया’। यह एक तरह का फोबिया यानी डर है। जिसमें व्यक्ति को फोन पास नहीं होने का डर लगता है। उसे हमेशा इस बात का डर सताता रहता है कि कहीं उसका फ़ोन खो न जाये। ‘नोमोफोबिया’ से ग्रसित व्यक्ति फ़ोन पास नहीं होने पर बैचेन हो उठता है। नोमोफोबिया से ग्रसित व्यक्ति को ‘नोमोफोब’ कहा जाता है।
‘नोमोफोबिया’ के लक्षण ‘नोमोफोबिया. के लक्षणों को लेकर सभी मनोवैज्ञानिक एकमत नहीं हैं। कई मनोवैज्ञानिक इसे नशे की लत से भी ज्यादा खतरनाक मानते हैं। वहीं कुछ मनोवैज्ञानिक इसे एक भय और मनोविकार का नाम देते हैं, लेकिन फिर भी कुछ सामान्य लक्षण जिनकी मदद से आप ‘नोमोफोबिया’ से ग्रसित व्यक्ति की पहचान कर सकते हैं। (वीडियो देखें )
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‘नोमोफोबिया’ के सामान्य लक्षण
लगातार 5 मिनट भी फोन चेक किए बिना नहीं रह पाना।
फ़ोन की बैटरी खत्म होने पर घबराहट महसूस करना।
फोन के बगैर रहने पर बैचेन हो उठना।
रिंग टोन बजते ही नोटिफिकेशन चेक करने के लिए अधीर हो उठना।
इंटरनेट /नेटवर्क कवरेज न होने पर बैचेन हो उठना।
फ़ोन के खोने अथवा घर पर छूट जाने का डर।
चिंता थकान और स्वभाव में चिड़चिड़ापन।
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ट्विटर से गायब हुई स्वरा भास्कर, ट्रोलिंग नहीं बल्कि कोई और है वजह
बॉलीवुड एक्ट्रेस स्वरा भास्कर ने अपना ट्विटर हैडंल डिएक्टिवेट किया हुआ है। ऐसे में अचानक से ट्विटर हैडंल को डिएक्टिवेट करने को लेकर कई सवाल उठ रहे है। कहा जा रहा है कि उन्होने ट्रोलिंग की वजह से ऐसा किया। लेकिन ऐसा नहीं है।
उन्होंने कहा कि वह कुछ समय तक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से निजात पाने के लिए इससे दूर हैं। उन्होंने बताया, “मैंने इसे डीएक्टीवेट कर दिया है। कुछ समय के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म की लत से दूर हूं। अगले सप्ताह भारत आने के बाद दोबारा वापस इस डिजिटल प्लेटफॉर्म पर आऊंगी।”
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A post shared by Swara Bhasker (@reallyswara) on Jul 19, 2018 at 7:52am PDT
अभिनेत्री आगे कहती हैं, “मैं अपनी छुट्टियों का आनंद नहीं उठा पा रही थी और हर समय टि्वटर पर यह देख रही थी कि भारत में क्या हो रहा है। मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मुझे इसकी लत लग गई है।”
ट्रॉलिंग के सवाल पर उन्होने कहा, “मेरे ट्विटर छोड़ने के पीछे की जिन वजहों का अनुमान लगाया जा रहा है, वह सही नहीं है।” स्वरा ने इस बारे में कहा कि उनके दिए गए जवाब के अलावा कही जा रही सारी बातें महज कयास और अफवाह भर हैं।
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ऐसे छुड़ाएं गैजट्स और सोशल मीडिया की लत
मोबाइल, कंप्यूटर, लैपटॉप, टैबलट्स... पता नहीं और क्या-क्या! हमारे आसपास मौजूद डिवाइसेज जितनी सहूलियत हमें देते हैं, उतना ही सेहत को नुकसान भी पहुंचाते हैं। डिजिटल डीटॉक्स से इस नुकसान को कम किया जा सकता है। आगे जानें, क्या है डिजिटल डीटॉक्स और कैसे इससे फायदा उठा सकते हैं आप... http://dlvr.it/Ny4lyN
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