#जानकी जयंती कथा
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CM साय 4 मार्च को राजिम कुंभ में होंगे शामिल
रायपुर। राजिम कुंभ कल्प मेला में 4 मार्च जानकी जयंती के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय शामिल होंगे। अंतरराष्ट्रीय कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा का शिव महापुराण कथा सहित अनेक कार्यक्रम आयोजित होंगे। कार्यक्रम की अध्यक्षता उप मुख्यमंत्री अरूण साव करेंगे। वहीं विशिष्ट अतिथि के रूप में कृषि मंत्री श्री राम विचार नेताम, वन मंत्री केदार कश्यप, वाणिज्य और उद्योग…
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Janaki Jayanti 2021: धरती से हुआ था माता सीता का जन्म? जानें रहस्य, पढ़ें आरती
Janaki Jayanti 2021: धरती से हुआ था माता सीता का जन्म? जानें रहस्य, पढ़ें आरती
धरती से हुआ था माता सीता का जन्म? जानें Janaki Jayanti 2021 Katha- सीता (Mata Sita Birth) का अवतरण धरती से हुआ था लेकिन राजा जनक एवं उनकी पत्नी सुनयना से सीता का पालन-पोषण किया था… Janaki Jayanti 2021: आज जानकी जयंती है. महिलाओं ने आज मां सीता को प्रसन्न करने के लिए व्रत रखा है. आज महिलाएं जीवनसाथी और संतान की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं. शाम को पूजा पाठ के बाद व्रत खोलती हैं और माता सीता की…
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📿 तुलसीदास जयंती - Tulsidas Jayanti
❀ गोस्वामी तुलसीदास महान हिंदू महाकाव्य रामचरितमानस के लेखक हैं। ❀ कुछ लोग उन्हें ऋषि वाल्मीकि का अवतार भी मानते हैं। ❀ हनुमान चालीसा, विनय पत्रिका, जानकी मंगल, गीतावली, वैराग्यसंदीपनी जैसे रचनाओं के रचयिता भी हैं। ❀ तुलसीदास जयंती पर तुलसीदास की शिक्षाओं के आधार पर कई संगोष्ठी और सेमिनार आयोजित किए जाते हैं। ❀ साथ ही इस दिन कई स्थानों पर ब्राह्मणों को भोजन कराने का भी ��िधान है। 📲 https://www.bhaktibharat.com/festival/tulsidas-jayanti
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🐚 भक्तमाल सुमेरु तुलसीदास जी: *सत्य कथा* 📲 https://www.bhaktibharat.com/prerak-kahani/goswami-tulsidas-bhaktmal-sumeru
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म्महर्षि बाल्मीकि जयंती की आपसभीको हार्दिक शुभकामनाएं
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बालमीकि मन आनँदु भारी । मंगल मूरति नयन निहारी ॥
तब कर कमल जोरि रघुराई । बोले बचन श्रवन सुखदाई ॥3॥
(मुनि श्री रामजी के पास बैठे हैं और उनकी) मंगल मूर्ति को नेत्रों से देखकर वाल्मीकिजी के मन में बड़ा भारी आनंद हो रहा है । तब श्री रघुनाथजी कमलसदृश हाथों को जोड़कर, कानों को सुख देने वाले मधुर वचन बोले- ॥3॥
तुम्ह त्रिकाल दरसी मुनिनाथा । बिस्व बदर जिमि तुम्हरें हाथा ॥
अस कहि प्रभु सब कथा बखानी । जेहि जेहि भाँति दीन्ह बनु रानी ॥4॥
हे मुनिनाथ! आप त्रिकालदर्शी हैं । सम्पूर्ण विश्व आपके लिए हथेली पर रखे हुए बेर के समान है । प्रभु श्री रामचन्द्रजी ने ऐसा कहकर फिर जिस-जिस प्रकार से रानी कैकेयी ने वनवास दिया, वह सब कथा विस्तार से सुनाई ॥4॥
दोहा :
तात बचन पुनि मातु हित भाइ भरत अस राउ । मो कहुँ दरस तुम्हार प्रभु सबु मम पुन्य प्रभाउ ॥125॥
(और कहा-) हे प्रभो! पिता की आज्ञा (का पालन), माता का हित और भरत जैसे (स्नेही एवं धर्मात्मा) भाई का राजा होना और फिर मुझे आपके दर्शन होना, यह सब मेरे पुण्यों का प्रभाव है ॥125॥
चौपाई :
देखि पाय मुनिराय तुम्हारे । भए सुकृत सब सुफल हमारे ॥
अब जहँ राउर आयसु होई । मुनि उदबेगु न पावै कोई ॥1॥
हे मुनिराज! आपके चरणों का दर्शन करने से आज हमारे सब पुण्य सफल हो गए (हमें सारे पुण्यों का फल मिल गया) । अब जहाँ आपकी आज्ञा हो और जहाँ कोई भी मुनि उद्वेग को प्राप्त न हो- ॥1॥
मुनि तापस जिन्ह तें दुखु लहहीं । ते नरेस बिनु पावक दहहीं ॥
मंगल मूल बिप्र परितोषू । दहइ कोटि कुल भूसुर रोषू ॥2॥
क्योंकि जिनसे मुनि और तपस्वी दुःख पाते हैं, वे राजा बिना अग्नि के ही (अपने दुष्ट कर्मों से ही) जलकर भस्म हो जाते हैं । ब्राह्मणों का संतोष सब मंगलों की जड़ है और भूदेव ब्राह्मणों का क्रोध करोड़ों कुलों को भस्म कर देता है ॥2॥
अस जियँ जानि कहिअ सोइ ठाऊँ । सिय सौमित्रि सहित जहँ जाऊँ ॥
तहँ रचि रुचिर परन तृन साला । बासु करौं कछु काल कृपाला ॥3॥
��सा हृदय में समझकर- वह स्थान बतलाइए जहाँ मैं लक्ष्मण और सीता सहित जाऊँ और वहाँ सुंदर पत्तों और घास की कुटी बनाकर, हे दयालु! कुछ समय निवास करूँ ॥3॥
सहज सरल सुनि रघुबर बानी । साधु साधु बोले मुनि ग्यानी ॥
कस न कहहु अस रघुकुलकेतू । तुम्ह पालक संतत श्रुति सेतू ॥4॥
श्री रामजी की सहज ही सरल वाणी सुनकर ज्ञानी मुनि वाल्मीकि बोले- धन्य! धन्य! हे रघुकुल के ध्वजास्वरूप! आप ऐसा क्यों न कहेंगे? आप सदैव वेद की मर्यादा का पालन (रक्षण) करते हैं ॥4॥
छन्द :
श्रुति सेतु पालक राम तुम्ह जगदीस माया जानकी । जो सृजति जगु पालति हरति रुख पाइ कृपानिधान की ॥
जो सहससीसु अहीसु महिधरु लखनु सचराचर धनी । सुर काज धरि नरराज तनु चले दलन खल निसिचर अनी ॥
हे राम! आप वेद की मर्यादा के रक्षक जगदीश्वर हैं और जानकीजी (आपकी स्वरूप भूता) माया हैं, जो कृपा के भंडार आपका रुख पाकर जगत का सृजन, पालन और संहार करती हैं । जो हजार मस्तक वाले सर्पों के स्वामी और पृथ्वी को अपने सिर पर धारण करने वाले हैं, वही चराचर के स्वामी शेषजी लक्ष्मण हैं । देवताओं के कार्य के लिए आप राजा का शरीर धारण करके दुष्ट राक्षसों की सेना का नाश करने के लिए चले हैं ।
सोरठा :
राम सरूप तुम्हार बचन अगोचर बुद्धिपर । अबिगत अकथ अपार नेति नेति नित निगम कह । 126 ॥
हे राम! आपका स्वरूप वाणी के अगोचर, बुद्धि से परे, अव्यक्त, अकथनीय और अपार है । वेद निरंतर उसका नेति-नेति कहकर वर्णन करते हैं ॥126॥
चौपाई :
जगु पेखन तुम्ह देखनिहारे । ��िधि हरि संभु नचावनिहारे ॥
तेउ न जानहिं मरमु तुम्हारा । औरु तुम्हहि को जाननिहारा ॥1॥
हे राम! जगत दृश्य है, आप उसके देखने वाले हैं । आप ब्रह्मा, विष्णु और शंकर को भी नचाने वाले हैं । जब वे भी आपके मर्म को नहीं जानते, तब और कौन आपको जानने वाला है? ॥1॥
सोइ जानइ जेहि देहु जनाई । जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई ॥
तुम्हरिहि कृपाँ तुम्हहि रघुनंदन । जानहिं भगत भगत उर चंदन ॥2॥
वही आपको जानता है, जिसे आप जना देते हैं और जानते ही वह आपका ही स्वरूप बन जाता है । हे रघुनंदन! हे भक्तों के हृदय को शीतल करने वाले चंदन! आपकी ही कृपा से भक्त आपको जान पाते हैं ॥2॥
#महर्षि_वाल्मीकि_जयंतीकी_हार्दिक_शुभकामनाएं
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सीता नवमी : कन्या दान और चारधाम तीर्थ के बराबर है यह व्रत, जानें कैसे हुई थी सीता माता की उत्पत्ति
चैतन्य भारत न्यूज वैशाख महीने के शुक्लपक्ष के नौवें दिन यानी नवमी तिथि को सीता जयंती मनाई जाती है। इस पर्व को जानकी नवमी भी कहा जाता है। इस बार जानकी नवमी या सीता जयंती 21 मई को है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार जनक नंदिनी एवं प्रभु श्रीराम की अर्द्धांगिनी सीताजी की उत्पत्ति बैसाख मास में शुक्ल पक्ष की नवमी को हुई थी। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन प्रभु श्रीराम और माता जानकी को विधि-विधान पूर्वक पूजा आराधना करने से व्रती को अमोघ फल की प्राप्ति होती है। सीता जन्म कथा वाल्मीकि रामायण के मुताबिक, राज जनक की कोई संतान नहीं थी। इसलिए उन्होंने यज्ञ करने का संकल्प लिया। जिसके लिए उन्हें जमीन तैयार करनी थी। वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुष्य नक्षत्र में जब राजा जनक हल से जमीन को जोत रहे थे, उसी समय पृथ्वी में उनके हल का एक हिस्सा फंस गया। उस जगह खुदाई करने पर मिट्टी के बर्तन में उन्हें कन्या मिली। जोती हुई भूमि और हल की नोक को सीत कहा जाता है, इसलिए उसका नाम सीता रखा गया। सीता नवमी महत्व यह व्रत करने से कन्यादान या चारधाम तीर्थ यात्रा समतुल्य फल की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि सीता नवमी के दिन सुहाग की वस्तुएं दान ��रने से व्रती को कन्या दान के समान फल प्राप्त होता है। ऐसे में इस दिन कुमकुम, चूड़ी, बिंदी आदि चीज़ों का दान जरूर करें। इसके साथ ही जानकी नवमी के दिन विशेष रूप से पूजा आराधना करने से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। अगर आप अपने जीवन में सुख सौभाग्य चाहते हैं तो जानकी माता को सोलह श्रृंगार अर्पित करें। अगर आप पुत्र प्राप्ति की कामना करते हैं तो इसके लिए सीता स्त्रोत का पाठ करें। सीता नवमी पूजा विधि सीता नवमी पर व्रती सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। इसके बाद माता जानकी को प्रसन्न करने के लिए व्रत और पूजा का संकल्प लें। फिर एक चौकी पर माता सीता और श्रीराम की मूर्ति या तस्वीर रखें। राजा जनक और माता सुनयना की पूजा के साथ पृथ्वी की भी पूजा करनी चाहिए। इसके बाद श्रद्धा अनुसार दान का संकल्प लेना चाहिए। कई जगहों पर मिट्टी के बर्तन में धान, जल या अन्न भरकर दान दिया जाता है। Read the full article
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http://www.radheradheje.com/sitaashtami/ सीता अष्टमी (जानकी जन्मोत्सव) इस बार सीता अष्टमी 06 मार्च 2021 दिन शनिवार को पड़ रही है। हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि के दिन जानकी जयंती का पर्व मनाया जाता है। जानकी जन्मोत्सव को सीता अष्टमी और श्री जानकी (सीता) नवमी भी कहा जाता है। वैवाहिक जीवन की समस्याओं को दूर करने के लिये इस दिन माँ सीता और प्रभु श्री राम की पूजा की जाती है। इस दिन माता सीता की पूजा की शुरुआत की गणेश जी और अंबिका जी की अर्चना से की जाती है। इसके बाद सीता जी की मूर्ति या तस्वीर पर पीले फूल, कपड़े और श्रृंगार का सामान चढ़ाकर पूजन किया जाता है। सीता अष्टमी कथा एक बार जब राजा जनक हल से धरती जोत रहे थे। तभी उनका हल किसी कठोर चीज से स्पर्श हुआ जब राजा जनक ने देखा तो वहां से उन्हें एक कलश प्राप्त हुआ। उस कलश में एक सुंदर कन्या थी। राजा जनक के कोई संतान नहीं थी, वे उस कन्या को अपने साथ ले आए। इस कन्या का नाम ही सीता रखा गया। राजा जनक की जेयष्ठ पुत्री हो���े के कारण ये जनक दुलारी कहलायीं। माता सीता को लक्ष्मी जी का ही स्वरूप माना जाता है। जानकी जयंती के दिन दिन माता सीता की विधि-विधान से पूजा की जाती है। तो चलिए जानते हैं सीता अष्टमी का महत्व और पूजा विधि… कैसे मनाएं सीता अष्टमी पर्व- 1. सीता अष्टमी के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत होकर माता सीता और भगवान श्रीराम को प्रणाम कर व्रत करने का संकल्प लें। 2. चौकी पर सीताराम का चित्र स्थापित करें 3. सबसे पहले भगवान गणेश का पूजन करें. उसके बाद माता सीता और भगवान श्रीराम की पूजा करें। 4. माता सीता के समक्ष पीले फूल, पीले वस्त्र और और सोलह श्रृंगार का सामान समर्पित करें। 5. माता सीता की पूजा में पीले फूल, पीले वस्त्र ओर सोलह श्रृंगार का समान जरूर चढ़ाना चाहिए। 6. भोग में पीली चीजों को चढ़ाएं और उसके बाद मां सीता की आरती करें। 7. आरती के बाद श्री जानकी रामाभ्यां नमः मंत्र का 108 बार जाप करें। 8. दूध-गुड़ से बने व्यंजन बनाएं और दान करें। 9. शाम को पूजा करने के बाद इसी व्यंजन से व्रत खोलें सीता अष्टमी का महत्व सीता अष्टमी पर व्रत रखने वालों को सौभाग्य, सुख और संतान की प्राप्ति होती है. परिवार में समृद्धि बनी रहती है. https://www.instagram.com/p/CMCcGOsALW7/?igshid=5fyflfacw8o2
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जानकी जयंती विशेष : रामायण में अद्भुत है माता सीता के जन्म की पवित्र कथा
आज जानकी नवमी है। इसे मां सीता के जन्मदिन के तौर पर मनाया जाता है।हर साल वैसाख माह की नवमी तिथि को जानकी नवमी मनाई जाती है। इस दिन लोग मां सीता की पूजा अर्चना करते हैं और व्रत रखते हैं।रामायण के दो प्रमुख पात्र हैं एक भगवान राम और दूसरी उनकी और दूसरी उनकी अर्धांगिनी देवी सीता। देवी सीता की महिमा ऐसी है कि राम से पहले देवी सीता का नाम लिया जाता है। देवी सीता को लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जानकी नवमी के दिन मां सीता और भगवान राम की विधिवत तरीके से पूजा अर्चना करने वाले भक्त को अद्भुत फल की प्राप्ति होती है और वो तरक्की करता है। रामायण में मां जानकी के उत्पत्ति की अद्भुत कहानी है। आइए पढ़ते हैं मां जानकी की जन्म कथा-
पौराणिक ग्रंथ रामायण के अनुसार, एक बार मिथिला राज्य में कई वर्षों से बारिश नहीं हो रही थी। इससे मिथिला नरेश जनक बहुत चिंतित ह�� उठे। इसके लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों से विचार-विमर्श किया और मार्ग प्रशस्त करने का अनुरोध किया। उस समय ऋषि-मुनियों ने राजा जनक को खेत में हल चलाने की सलाह दी।
मां जानकी की कथा- पौराणिक ग्रंथ रामायण के अनुसार, एक बार मिथिला राज्य में कई वर्षों से बारिश नहीं हो रही थी। इससे मिथिला नरेश जनक बहुत चिंतित हो उठे। इसके लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों से विचार-विमर्श किया और मार्ग प्रशस्त करने का अनुरोध किया। उस समय ऋषि-मुनियों ने राजा जनक को खेत में हल चलाने की सलाह दी।
उन्होंने कहा कि अगर आप ऐसा करते हैं तो इंद्र देवता की कृपा जरूर बरसेगी। राजा जनक ने ऋषि मुनियों की बात मानते हुए, वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन खेत में हल चलाया। इसी दौरान उनके हल से कोई वस्तु टकराई, यह देख राजा जनक ने सेवकों ने से उस स्थान की खुदाई करवाया। उस समय खुदाई में उन्हें एक कलश प्राप्त हुआ, जिसमें एक कन्या थी। सेवकों ने इस बात की जानकारी राजा जनक को दी।
राजा जनक विस्मय से भर गए। जब इस बात पर उन्हें यकीन नहीं हुआ तो वह खुद इस बात के प्रमाण के लिए भूमि में पहुंचे। वहां कलश में कन्या को रोता देखकर उन्होंने उसे अपनी गोद में ले लिया। कन्या के स्पर्श मात्र से राजा जनक को वात्सल्य की अनुभूति हुई। तभी से राजा जनक ने कन्या को अपनी पुत्री मानकर उनका पालन-पोषण किया। प्राचीन समय में हल को ‘सीत’ कहा जाता था। इसलिए राजा जनक ने उस कन्या का नाम सीता रख दिया।
देवी सीता से संबंधित एक अन्य कथा का उल्लेख अद्भुत रामायण में मिलता है। इस रामायण में लिखा है। इस रामायण में लिखा है कि रावण ने कहा था कि जब उसके हृदय में पनी पुत्री से विवाह की इच्छा उत्पन्न हो तो उसकी पुत्री ही ही उसकी मृत्यु का कारण बने। इस संदर्भ में कथा का विस्तार इस तरह मिलता है कि गृत्समद नाम के ऋषि देवी लक्ष्मी को को पुत्री रूप में पाने के लिए हर दिन मंत्रोच्चार के साथ कुश के अग्र भाग से एक कलश में दूध की बूंदे डालते थे।
एक दिन जब ऋषि आश्रम में नहीं थे तब रावण वहां आ पहुंचा और वहां मौजूद ऋषियों को मारकर उनका रक्त कलश में भर लिया। इस कलश को रावण महल में लाकर छुपा दिया। मंदोदरी उस कलश को लेकर बहुत उत्सुक थी कि आखिर उसमें है क्या। एक दिन जब रावण महल में नहीं था तब चुपके से मंदोदरी ने उस कलश को खोलकर देखा। मंदोदरी कलश को उठाकर सारा रक्त पी गई जिससे वह गर्भवती हो गई। यह भेद सी को पता ना चले इसलिए वह लंका से बहुत दूर अपनी पुत्री को कलश में छुपाकर मिथिला भूमि में छोड़ आई। इस तरह सीता को को रावण की पुत्री बताया जाता है।
इस कथा के अनुसार सीता जी वेदवती नाम की एक स्त्री का पुनर्जन्म थी। वेदवती विष्णु जी की परमभक्त थी और वह उन्हें पति के रूप में पाना चाहती थी। इसलिए भगवान विष्णु ��ो प्रसन्न करने के लिए वेदवती ने कठोर तपस्या की।
कहा जाता है कि एक दिन रावण वहां से निकल रहा था जहां वेदवती तपस्या कर रही थी और वेदवती की सुंदरता को देखकर रावण उस पर मोहित हो गया। रावण ने वेदवती को अपने साथ चलने के लिए कहा लेकिन वेदवती ने साथ जाने से इंकार कर दिया। वेदवती के मना करने पर रावण को क्रोध आ गया और उसने वेदवती के साथ दुर्व्यवहार करना चाहा रावण के स्पर्श करते ही वेदवती ने खुद को भस्म कर लिया और रावण को श्राप दिया कि वह रावण की पुत्री के रूप में जन्म लेंगी और उसकी मृत्यु का कारण बनेंगी।
कुछ समय बाद मंदोदरी ने एक कन्या को जन्म दिया। लेकिन वेदवती के श्राप से भयभीत रावण ने जन्म लेते ही उस कन्या को सागर में फेंक दिया। जिसके बाद सागर की देवी वरुणी ने उस कन्या को धरती की देवी पृथ्वी को सौंप दिया और पृथ्वी ने उस कन्या को राजा जनक और माता सुनैना को सौंप दिया।
जिसके बाद राजा जनक ने सीता का पालन पोषण किया और उनका विवाह श्रीराम के साथ संपन्न कराया। फिर वनवास के दौरान रावण ने सीता का अपहरण किया जिसके कारण श्रीराम ने रावण का वध किया और इस तरह से सीता रावण के वध का कारण बनीं।
जानकी जयंती विशेष : रामायण में अद्भुत है माता सीता के जन्म की पवित्र कथा
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सीताष्टमी का महत्व, पूजा विधि और कथा | Sita Ashtami Mahatva, Puja Vidhi aur Story in Hindi
सीताष्टमी का महत्व, पूजा विधि और कथा
सीताष्टमी या सीता अष्टमी का महत्व, पूजा विधि और कथा | Sita Ashtami ka Mahatva (Signifiance), Puja Vidhi aur Story in Hindi
सीताष्टमी एक हिन्दू पर्व हैं जिसे फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता हैं ऐसा माना जाता हैं इसी तिथि पर माता सीता का जन्म हुआ था. इस पर्व को जानकी जयंती और सीताजी का प्राकट्य दिवसनाम से भी जाना जाता हैं. सीता जी को साक्षात देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता हैं. इस…
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निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !!
श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव)
भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ।
हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उता���कर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं।
इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।।
हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया।
वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया।
पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई।
राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा।
हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” !
वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
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राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार ब���शाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवा���) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। ���ब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते ���ैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान ���ा, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बि��ा किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श��रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेव��भाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा क�� पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) - ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, " हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, "प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया" ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
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निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !!
श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव)
भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ।
हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं।
इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।।
हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया।
वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया।
पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई।
राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा।
हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” !
वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
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राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतन��� प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी ���ूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। ���ान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता मे��� भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर��शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बज��ई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल���याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हन��� (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत प��� पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) - ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, " हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होन��� पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, "प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया" ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
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निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !!
श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव)
भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ।
हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं।
इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।।
हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया।
वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया।
पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई।
राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा।
हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” !
वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
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राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधा��ं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत���येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान ज��ंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्श��� को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर���वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ��ी हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) - ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, " हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर���फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, "प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया" ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
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निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !!
श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव)
भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ।
हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं।
इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।।
हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया।
वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया।
पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता ज���नकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई।
राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा।
हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” !
वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
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राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर ��ैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यक���ल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र ���हाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर ���न्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लं��ा पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्��्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्र���ि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) - ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, " हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, "प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया" ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
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निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !!
श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव)
भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ।
हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं।
इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।।
हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया।
वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया।
पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई।
राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा।
हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” !
वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
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राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के ल���ए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिस���ें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री र��म भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हन���मान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वा���े हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनि��� भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) - ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, " हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, "प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया" ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
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निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !!
श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव)
भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को म���ाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ।
हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं।
इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।।
हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया।
वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया।
पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई।
राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा।
हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” !
वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
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राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गय��। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव क��� सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र ह��। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जान�� के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम ��ोने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंक��र का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह ��ेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) - ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, " हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, "प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया" ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
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निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !!
श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव)
भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ।
हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं।
इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।।
हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया।
वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया।
पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई।
राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा।
हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” !
वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
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राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता न��� उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना स��ल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हि���ालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी ��पना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद���रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच म��त्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) - ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, " हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, "प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया" ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
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निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !!
श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव)
भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित ���रती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ।
हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं।
इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।।
हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया।
वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया।
पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई।
राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा।
हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” !
वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
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राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर प��नि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
न���ष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर न��रंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली ���नुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्हों��े समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुं��े, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्��्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच ��ैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान
निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) – ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, ” हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीरा���, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, “प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया” ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
राम भक्त हनुमान निष्काम सेवा भक्ति, श्री राम भक्त हनुमान की !! श्री हनुमान जयंती : १० अप्रैल (उपवास) - ११ अप्रैल (उत्सव) भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। उनका अवतरण दिवस चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इंद्र द्वारा वज्र से प्रहार करने से उनकी हनु (ठुड्डी) टूट जाने के कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाने लगा। प्रहार से मूर्छित हनुमान को जल छिड़ककर पुन: सचेत कर प्रत्येक देवता ने उनको अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए जिसके कारण उनका नाम महावीर हुआ। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि जब मैनाक पर्वत ने राम भक्त हनुमान को विश्राम के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहा, " हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया। वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा। हनुमानजी आज भी हमारे बीच हैं। कहते हैं कि मानव जाति के इतिहास में हनुमानजी से बढ़कर कोई भक्त नहीं हुआ। भक्त तो बहुत हुए, जैसे भक्त प्रहलाद, भक्त नृसिंह मेहता, भैरवनाथ, वैष्णोदेवी के भक्त श्रीधर, शिव के अनेक भक्त आदि लेकिन हनुमानजी तो ऐसे हैं जैसे पर्वतों में हिमालय। तभी कहा जाता है, "प्रभि चरित्र सुनिवे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया" ! वानरराज केसरी के यहाँ माता अंजनी के गर्भ से जन्मे हनुमानजी के लिए कहा जाता है कि वे हिन्दुओं के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर आज भी विद्यमान हैं। मान्यता अनुसार कलयुग के अंत में ही हनुमानजी अपना शरीर छोड़ेंगे।
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