#Maharishi Balmiki Jayanti
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Digi Clock India
Happy Balmiki Jayanti
On this auspicious day, Digi Clock India extends heartfelt wishes to everyone celebrating Balmiki Jayanti. May the teachings of Maharishi Valmiki inspire us all to lead a life of wisdom, compassion, and virtue.
Let's remember the sage who composed the epic Ramayana, which continues to enlighten and guide us. Embrace the values of righteousness, empathy, and humility, just as Balmiki Ji did.
May this Balmiki Jayanti bring you and your loved ones abundant joy, prosperity, and inner peace.
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म्महर्षि बाल्मीकि जयंती की आपसभीको हार्दिक शुभकामनाएं
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बालमीकि मन आनँदु भारी । मंगल मूरति नयन निहारी ॥
तब कर कमल जोरि रघुराई । बोले बचन श्रवन सुखदाई ॥3॥
(मुनि श्री रामजी के पास बैठे हैं और उनकी) मंगल मूर्ति को नेत्रों से देखकर वाल्मीकिजी के मन में बड़ा भारी आनंद हो रहा है । तब श्री रघुनाथजी कमलसदृश हाथों को जोड़कर, कानों को सुख देने वाले मधुर वचन बोले- ॥3॥
तुम्ह त्रिकाल दरसी मुनिनाथा । बिस्व बदर जिमि तुम्हरें हाथा ॥
अस कहि प्रभु सब कथा बखानी । जेहि जेहि भाँति दीन्ह बनु रानी ॥4॥
हे मुनिनाथ! आप त्रिकालदर्शी हैं । सम्पूर्ण विश्व आपके लिए हथेली पर रखे हुए बेर के समान है । प्रभु श्री रामचन्द्रजी ने ऐसा कहकर फिर जिस-जिस प्रकार से रानी कैकेयी ने वन��ास दिया, वह सब कथा विस्तार से सुनाई ॥4॥
दोहा :
तात बचन पुनि मातु हित भाइ भरत अस राउ । मो कहुँ दरस तुम्हार प्रभु सबु मम पुन्य प्रभाउ ॥125॥
(और कहा-) हे प्रभो! पिता की आज्ञा (का पालन), माता का हित और भरत जैसे (स्नेही एवं धर्मात्मा) भाई का राजा होना और फिर मुझे आपके दर्शन होना, यह सब मेरे पुण्यों का प्रभाव है ॥125॥
चौपाई :
देखि पाय मुनिराय तुम्हारे । भए सुकृत सब सुफल हमारे ॥
अब जहँ राउर आयसु होई । मुनि उदबेगु न पावै कोई ॥1॥
हे मुनिराज! आपके चरणों का दर्शन करने से आज हमारे सब पुण्य सफल हो गए (हमें सारे पुण्यों का फल मिल गया) । अब जहाँ आपकी आज्ञा हो और जहाँ कोई भी मुनि उद्वेग को प्राप्त न हो- ॥1॥
मुनि तापस जिन्ह तें दुखु लहहीं । ते नरेस बिनु पावक दहहीं ॥
मंगल मूल बिप्र परितोषू । दहइ कोटि कुल भूसुर रोषू ॥2॥
क्योंकि जिनसे मुनि और तपस्वी दुःख पाते हैं, वे राजा बिना अग्नि के ही (अपने दुष्ट कर्मों से ही) जलकर भस्म हो जाते हैं । ब्राह्मणों का संतोष सब मंगलों की जड़ है और भूदेव ब्राह्मणों का क्रोध करोड़ों कुलों को भस्म कर देता है ॥2॥
अस जियँ जानि कहिअ सोइ ठाऊँ । सिय सौमित्रि सहित जहँ जाऊँ ॥
तहँ रचि रुचिर परन तृन साला । बासु करौं कछु काल कृपाला ॥3॥
ऐसा हृदय में समझकर- वह स्थान बतलाइए जहाँ मैं लक्ष्मण और सीता सहित जाऊँ और वहाँ सुंदर पत्तों और घास की कुटी बनाकर, हे दयालु! कुछ समय निवास करूँ ॥3॥
सहज सरल सुनि रघुबर बानी । साधु साधु बोले मुनि ग्यानी ॥
कस न कहहु अस रघुकुलकेतू । तुम्ह पालक संतत श्रुति सेतू ॥4॥
श्री रामजी की सहज ही सरल वाणी सुनकर ज्ञानी मुनि वाल्मीकि बोले- धन्य! धन्य! हे रघुकुल के ध्वजास्वरूप! आप ऐसा क्यों न कहेंगे? आप सदैव वेद की मर्यादा का पालन (रक्षण) करते हैं ॥4॥
छन्द :
श्रुति सेतु पालक राम तुम्ह जगदीस माया जानकी । जो सृजति जगु पालति हरति रुख पाइ कृपानिधान की ॥
जो सहससीसु अहीसु महिधरु लखनु सचराचर धनी । सुर काज धरि नरराज तनु चले दलन खल निसिचर अनी ॥
हे राम! आप वेद की मर्यादा के रक्षक जगदीश्वर हैं और जानकीजी (आपकी स्वरूप भूता) माया हैं, जो कृपा के भंडार आपका रुख पाकर जगत का सृजन, पालन और ��ंहार करती हैं । जो हजार मस्तक वाले सर्पों के स्वामी और पृथ्वी को अपने सिर पर धारण करने वाले हैं, वही चराचर के स्वामी शेषजी लक्ष्मण हैं । देवताओं के कार्य के लिए आप राजा का शरीर धारण करके दुष्ट राक्षसों की सेना का नाश करने के लिए चले हैं ।
सोरठा :
राम सरूप तुम्हार बचन अगोचर बुद्धिपर । अबिगत अकथ अपार नेति नेति नित निगम कह । 126 ॥
हे राम! आपका स्वरूप वाणी के अगोचर, बुद्धि से परे, अव्यक्त, अकथनीय और अपार है । वेद निरंतर उसका नेति-नेति कहकर वर्णन करते हैं ॥126॥
चौपाई :
जगु पेखन तुम्ह देखनिहारे । बिधि हरि संभु नचावनिहारे ॥
तेउ न जानहिं मरमु तुम्हारा । औरु तुम्हहि को जाननिहारा ॥1॥
हे राम! जगत दृश्य है, आप उसके देखने वाले हैं । आप ब्रह्मा, विष्णु और शंकर को भी नचाने वाले हैं । जब वे भी आपके मर्म को नहीं जानते, तब और कौन आपको जानने वाला है? ॥1॥
सोइ जानइ जेहि देहु जनाई । जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई ॥
तुम्हरिहि कृपाँ तुम्हहि रघुनंदन । जानहिं भगत भगत उर चंदन ॥2॥
वही आपको जानता है, जिसे आप जना देते हैं और जानते ही वह आपका ही स्वरूप बन जाता है । हे रघुनंदन! हे भक्तों के हृदय को शीतल करने वाले चंदन! आपकी ही कृपा से भक्त आपको जान पाते हैं ॥2॥
#महर्षि_वाल्मीकि_जयंतीकी_हार्दिक_शुभकामनाएं
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Celebration of Balmiki Jayanti: Facts about Maharishi Valmiki
Celebration of Balmiki Jayanti: Facts about Maharishi Valmiki
Balmiki Jayanti is the birthday celebration of Maharishi Valmiki who is the author of Indian epic Ramayana. Valmiki is celebrated as the harbinger-poet in Sanskrit literature. Maharishi Valmiki Jayanti is Hindu holiday much celebrated throughout India.
Celebration of Balmiki Jayanti: Facts about Maharishi Valmiki
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