#जल संरक्षण तकनीक
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जल संरक्षण के 10 शानदार तरीके: अपनी अगली पीढ़ी के लिए पानी बचाएं
जल संरक्षण के 10 तरीके जल संरक्षण के 10 प्रभावी तरीके जानें और अपनी अगली पीढ़ी के लिए पानी बचाएँ। दैनिक जीवन में आसानी से अपनाए जा सकने वाले उपाय जो पर्यावरण को बचाने में मदद करेंगे।पानी हमारे जीवन का आधार है, लेकिन यह एक सीमित संसाधन भी है। जल संकट की बढ़ती चुनौतियों के बीच, यह हमारा कर्तव्य बन जाता है कि हम जल संरक्षण के प्रति गंभीर हों और अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए इस अमूल्य संसाधन को…
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#इको-फ्रेंडली#ऊर्जा बचत#ग्रीन लिविंग#घरेलू जल बचत#जल प्रबंधन#जल बचत#जल संकट#जल संरक्षण#जल संरक्षण तकनीक#पर्यावरण अनुकूल#पर्यावरण जागरूकता#पर्यावरण संरक्षण#पानी का पुनर्उपयोग#पानी बचाओ#प्राकृतिक संसाधन#रेनवाटर हार्वेस्टिंग#वाटर रीसाइक्लिंग#स्थायी विकास#स्मार्ट वाटर यूज
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tata steel sustainablity : स्मार्ट तकनीक के साथ जल प्रबंधन में टाटा स्टील एफएएमडी की अग्रणी पहल, जोडा फेरो एलॉय प्लांट में रियल-टाइम मॉनिटरिंग और डेटा एनालिटिक्स से 40 फीसदी पानी की खपत में कमी आई
जमशेदपुर : वैश्विक जल संकट की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए, टाटा स्टील के फेरो एलॉयज एंड मिनरल्स डिवीजन (एफएएमडी) ने सतत जल प्रबंधन की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल की है. खनन कार्यों में पानी की खपत को कम करने और जल संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए एफएएमडी नवोन्मेषी और प्रभावी समाधान अपना रहा है, जो सस्टेनेबिलिटी की ओर उसकी मजबूत प्रतिबद्धता को दर्शाता है. खनन गतिविधियों के लिए अत्यधिक जल उपयोग और…
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Smart Agriculture: Aapake Liye Rojagaar ke Dwar
परिचय भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का विशेष स्थान है। यहां की एक बड़ी आबादी अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है। बदलते समय के साथ खेती में भी तकनीकी परिवर्तन हो रहे हैं और इसे अब "स्मार्ट एग्रीकल्चर" के रूप में देखा जा रहा है। यह न केवल खेती के तरीकों में क्रांति ला रहा है, बल्कि रोजगार के नए अवसर भी प्रदान कर रहा है। स्मार्ट एग्रीकल्चर से तात्पर्य है ऐसी तकनीकें और प्रणालियां जो पारंपरिक कृषि को अधिक प्रभावी, उत्पादक और पर्यावरण के अनुकूल बनाती हैं। इस ��धुनिक कृषि प्रणाली ने रोजगार के कई नए द्वार खोले हैं, विशेष रूप से उन युवाओं के लिए जो आधुनिक तकनीक और नवाचार में रुचि रखते हैं।
स्मार्ट एग्रीकल्चर क्या है? स्मार्ट एग्रीकल्चर या स्मार्ट खेती आधुनिक प्रौद्योगिकी और कृषि के सम्मिलन का एक ऐसा मॉडल है जिसमें सटीक उपकरणों, सेंसर, ड्रोन्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) का इस्तेमाल किया जाता है। इसके तहत किसानों को जमीन की उपजाऊता, मौसम की जानकारी, फसल की स्थिति और बाजार के रुझानों के बारे में सटीक जानकारी मिलती है। इससे कृषि के सभी पहलुओं को सही ढंग से मॉनिटर कर बेहतर परिणाम प्राप्त किए जाते हैं।
स्मार्ट एग्रीकल्चर के तहत आधुनिक यंत्रों और नई तकनीकों का प्रयोग किया जाता है जिससे किसानों को अपने खेतों की बेहतर देखभाल करने में मदद मिलती है। इससे न केवल उत्पादकता में वृद्धि होती है बल्कि पानी, खाद, बीज और अन्य संसाधनों का सही उपयोग भी सुनिश्चित होता है।
खेती में रोजगार के अवसर स्मार्ट एग्रीकल्चर के बढ़ते प्रसार के साथ खेती में रोजगार के अवसरों में भी व्यापक विस्तार हुआ है। पहले जहां कृषि में मुख्य रूप से शारीरिक श्रम का महत्व था, अब तकनीकी ज्ञान रखने वाले युवाओं के लिए भी यहां संभावनाएं खुल रही हैं। नीचे कुछ प्रमुख क्षेत्रों पर चर्चा की जा रही है, जहां स्मार्ट एग्रीकल्चर के माध्यम से रोजगार के नए अवसर उत्पन्न हुए हैं:
प्रौद्योगिकी आधारित कृषि उपकरणों का निर्माण और वितरण
स्मार्ट एग्रीकल्चर में विभिन्न प्रकार के सेंसर, ड्रोन्स, और स्वचालित उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है। इन उपकरणों के निर्माण, वितरण और मरम्मत के क्षेत्र में रोजगार के अवसर उत्पन्न हो रहे हैं। युवा उद्यमी इस क्षेत्र में स्टार्टअप शुरू कर सकते हैं या बड़े उद्योगों से जुड़ सकते हैं जो ऐसे उपकरणों का निर्माण और विपणन करते हैं।
कृषि सलाहकार सेवाएं
कृषि सलाहकार सेवाएं एक और प्रमुख क्षेत्र है, जहां तकनीकी ज्ञान रखने वाले व्यक्तियों के लिए रोजगार के नए अवसर हैं। स्मार्ट एग्रीकल्चर के तहत किसानों को मिट्टी के स्वास्थ्य, बीज के चयन, जल प्रबंधन, फसल की देखभाल और बाजार की जानकारी देने वाले कृषि सलाहकारों की मांग बढ़ी है। यदि किसी व्यक्ति के पास कृषि और तकनीक का ज्ञान है, तो ��े इस क्षेत्र में अपना करियर बना सकते हैं।
डेटा एनालिसिस और कृषि सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट
स्मार्ट एग्रीकल्चर में सेंसर और अन्य उपकरणों से लगातार डेटा उत्पन्न होता है। इस डेटा का सही ढंग से विश्लेषण करना और इसके आधार पर निर्णय लेना अत्यंत महत्वपूर्ण है। डेटा एनालिसिस के क्षेत्र में कृषि तकनीशियनों की मांग तेजी से बढ़ी है। साथ ही, ऐसे सॉफ्टवेयर डेवलपर्स की भी आवश्यकता है जो किसानों के लिए अनुकूल ऐप्स और सॉफ्टवेयर विकसित कर सकें। ये ऐप्स किसानों को मौसम की जानकारी, फसल की स्थिति, बाजार के दाम आदि की सटीक जानकारी प्रदान करते हैं, जिससे उनकी खेती को और बेहतर बनाया जा सके।
कृषि में ड्रोन और रोबोटिक्स तकनीक
ड्रोन्स का इस्तेमाल कृषि में तेजी से बढ़ रहा है। फसलों की निगरानी, कीटनाशक का छिड़काव, और अन्य गतिविधियों के लिए ड्रोन तकनीक का प्रयोग किया जा रहा है। ड्रोन ऑपरेटर्स, मेनटेनेंस इंजीनियर और तकनीकी विशेषज्ञों के लिए यहां रोजगार के नए अवसर पैदा हो रहे हैं। इसके अलावा, रोबोटिक्स तकनीक का इस्तेमाल भी कृषि में बढ़ रहा है, जिससे फसलों की देखभाल और उत्पादन की प्रक्रिया को स्वचालित किया जा रहा है।
सस्टेनेबल एग्रीकल्चर और ग्रीन जॉब्स
आज के समय में पर्यावरण संरक्षण और स्थिरता पर जोर दिया जा रहा है। सस्टेनेबल एग्रीकल्चर के अंतर्गत प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करते हुए कृषि की तकनीकों का विकास किया जाता है। इसके अंतर्गत जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता की सुरक्षा और प्राकृतिक संसाधनों का सही इस्तेमाल महत्वपूर्ण है। इस क्षेत्र में सस्टेनेबिलिटी एक्सपर्ट्स, पर्यावरण वैज्ञानिकों और कृषि विशेषज्ञों की आवश्यकता बढ़ी है। ग्रीन जॉब्स के रूप में इसे देखा जा सकता है।
कृषि उत्पादों का प्रोसेसिंग और मार्केटिंग
स्मार्ट एग्रीकल्चर के तहत बेहतर उत्पादन प्राप्त होने पर उसे प्रोसेस कर बाजार में बेचना भी महत्वपूर्ण है। कृषि उत्पादों की प्रोसेसिंग, पैकेजिंग और मार्केटिंग में विशेषज्ञता रखने वाले व्यक्तियों के लिए यहां अपार संभावनाएं हैं। स्मार्ट मार्केटिंग तकनीकों का उपयोग करके किसान अपने उत्पादों को सही कीमत पर बेच सकते हैं। इसके अलावा, इस क्षेत्र में उद्यमिता को भी बढ़ावा मिल रहा है, जिससे नए रोजगार के अवसर उत्पन्न हो रहे हैं।
स्मार्ट इरिगेशन और जल प्रबंधन
कृषि में पानी का सही उपयोग करना हमेशा से एक चुनौती रहा है। स्मार्ट इरिगेशन और जल प्रबंधन तकनीकों के माध्यम से इस समस्या का समाधान किया जा सकता है। पानी की कमी से जूझ रहे क्षेत्रों में सटीक सिंचाई प्रणाली और जल प्रबंधन सेवाओं की मांग बढ़ी है। इसके लिए तकनीकी विशेषज्ञों और इरिगेशन इंजीनियरों की आवश्यकता होती है, जो इस क्षेत्र में रोजगार प्राप्त कर सकते हैं।
स्मार्ट एग्रीकल्चर में रोजगार के अवसरों की संभावनाएं स्मार्ट एग्रीकल्चर ��ें न केवल तकनीकी विशेषज्ञों के लिए बल्कि ग्रामीण युवाओं के लिए भी रोजगार के अवसर हैं। वे जो अपने खेतों में नई तकनीकों को अपनाकर उत्पादन में वृद्धि करना चाहते हैं, वे भी इस क्रांति के हिस्सेदार बन सकते हैं। साथ ही, इस क्षेत्र में वित्तीय सेवाओं, बीमा, और कृषि से जुड़ी कानूनी सेवाओं में भी रोजगार की संभावनाएं हैं। सरकार और निजी क्षेत्र की ओर से भी इस क्षेत्र में निवेश किया जा रहा है, जिससे रोजगार के अवसर और भी बढ़ेंगे।
निष्कर्ष स्मार्ट एग्रीकल्चर न केवल कृषि के तरीके को बदल रहा है, बल्कि यह एक नया रोजगार क्षेत्र भी बना रहा है। "खेती में रोजगार के अवसर" अब केवल पारंपरिक श्रमिकों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि तकनीकी विशेषज्ञों, उद्यमियों और नवाचारकर्ताओं के लिए भी इसमें असीमित संभावनाएं हैं। भारत जैसे देश में, जहां कृषि अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, स्मार्ट एग्रीकल्चर रोजगार के नए द्वार खोलकर युवाओं को बेहतर भविष्य की दिशा में ले जा रहा है।
यह स्पष्ट है कि भविष्य की खेती तकनीकी नवाचारों पर आधारित होगी, और इसके साथ ही रोजगार के नए रूप सामने आएंगे। स्मार्ट एग्रीकल्चर एक ऐसी ही दिशा है, जो रोजगार के साथ-साथ समृद्धि की ओर भी ले जा रही है।
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Crop Rotation In Agriculture:खरीफ मौसम में उन्नत फसल चक्र क्यों महत्वपूर्ण है, जानिए
खरीफ़ सीज़न और फ़सल चक्र (Crop Rotation)
अभी खरीफ़ सीज़न चल रहा है, और इसको ध्यान में रखते हुए हम आपको बताएंगे कि कैसे फ़सल चक्र को समझते हुए अपनी खेती में सुधार कर सकते हैं और पैदावार को बढ़ा सकते हैं। पहले के समय में, जब खेतों में रासायनिक उर्वरकों का अधिक उपयोग नहीं होता था, किसान फ़सल चक्र (Crop rotation) का उपयोग करते थे। यह तरीका खासकर बरसात के मौसम में बोई जाने वाली फ़सलों के लिए बहुत उपयोगी था।
खरीफ़ की फ़सलों में चावल, मक्का, और बाजरा शामिल हैं, जो बरसात शुरू होते ही बोई जाती हैं और सर्दी आने से पहले काट ली जाती हैं। इस दौरान फ़सल चक्र अपनाकर किसान अपने खेत को कई तरह की समस्याओं से बचाते हैं, जैसे कि मिट्टी का कटाव, खरपतवार की वृद्धि, और कीटों का हमला। आजकल भले ही यह तरीका कम इस्तेमाल होता है, लेकिन खरीफ़ की फ़सलों के लिए इसके कई लाभ हैं। यह तकनीक खेत और पर्यावरण दोनों के लिए लाभ��ारी है।
फ़सल चक्र का महत्व
फ़सल चक्र का सबसे महत्वपूर्ण लाभ यह है कि यह मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बनाए रखता है। एक ही प्रकार की फ़सल को बार-बार उगाने से मिट्टी में विशिष्ट पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। इसके विपरीत, फ़सल चक्र अपनाने से विभिन्न फ़सलें विभिन्न पोषक तत्वों का उपयोग करती हैं और मिट्टी को विविध पोषक तत्व मिलते रहते हैं। इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति बनी रहती है और फसलों की पैदावार भी बेहतर होती है।
दूसरा बड़ा लाभ यह है कि फ़सल चक्र से कीट और रोगों का प्रकोप कम होता है। एक ही प्रकार की फ़सल को लगातार उगाने से विशेष कीट और रोगों का प्रकोप बढ़ सकता है, जो उस फ़सल को प्रभावित करते हैं। फ़सल चक्र अपनाने से कीट और रोगों का जीवन चक्र टूटता है और उनके प्रकोप में कमी आती है।
फ़सल चक्र का पर्यावरण पर प्रभाव
फ़सल चक्र का एक और बड़ा लाभ यह है कि यह पर्यावरण को भी संरक्षित करता है। जब किसान फ़सल चक्र अपनाते हैं, तो उन्हें कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों का उपयोग कम करना पड़ता है। इससे मिट्टी, जल, और वायु प्रदूषण में कमी आती है। इसके अलावा, विभिन्न फसलों की जड़ों का प्रभाव मिट्टी की संरचना और जलधारण क्षमता को सुधारता है।
फ़सल चक्र की योजना
फ़सल चक्र की योजना बनाते समय किसान को कई बातों का ध्यान रखना चाहिए। सबसे पहले, उसे अपने क्षेत्र की मिट्टी, जलवायु, और वातावरणीय परिस्थितियों का अध्ययन करना चाहिए। इसके बाद, उसे यह तय करना चाहिए कि कौन-कौन सी फ़सलें उसकी मिट्टी और जलवायु के लिए उपयुक्त हैं। एक समझदार और अनुभवी किसान अपने खेत के लिए सही फ़सल चक्र को चुनकर अच्छी पैदावार और अधिक लाभ उठा सकता है।
उदाहरण के लिए, यदि किसी क्षेत्र की मिट्टी में नाइट्रोजन की कमी है, तो किसान दलहन फ़सलें (जैसे कि मूंग, उड़द, चना आदि) उगा सकता है, जो मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाती हैं। इसके बाद वह गेहूं या धान जैसी फ़सलें उगा सकता है, जो नाइट्रोजन का उपयोग करती हैं। इस तरह से फ़सल चक्र अपनाने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति बनी रहती है और फसलों की पैदावार भी बढ़ती है।
फ़सल चक्र का आर्थिक लाभ
फ़सल चक्र अपनाने से किसान की आमदनी में भी वृद्धि होती है। विभिन्न फ़सलें उगाने से किसान को अलग-अलग समय पर अलग-अलग फसलों का उत्पादन मिलता है। इससे उसकी आय स्थिर रहती है और उसे किसी एक फ़सल पर निर्भर नहीं रहना पड़ता। इसके अलावा, फ़सल चक्र अपनाने से किसान को फसलों की गुणवत्ता भी बेहतर मिलती है, जिससे वह अपने उत्पादों को बेहतर कीमत पर बेच सकता है।
नवीनतम तकनीक और फ़सल चक्र
अच्छी बात यह है कि आजकल वैज्ञानिक और किसान मिलकर इस तरीके को और बेहतर बनाने की कोशिश कर रहे हैं। नई-नई डिवाइस की मदद से अब यह पता लगाना आसान हो गया है कि बरसात के मौसम में कौन सी फ़सल कब और कैसे बोनी चाहिए। इससे दुनियाभर के किसानों को कृषि में फ़सल चक्र अपनाने में मदद मिल रही है।
सारांश
कुल मिलाकर, फ़सल चक्र एक महत्वपूर्ण कृषि तकनीक है, जो किसान को अच्छी पैदावार, बेहतर आमदनी, और ��र्यावरण संरक्षण के लाभ प्रदान करती है। इसे अपनाने से न केवल मिट्टी की उर्वरा शक्ति बनी रहती है, बल्कि कीट और रोगों का प्रकोप भी कम होता है। साथ ही, यह पर्यावरण को भी संरक्षित करता है। इसलिए, सभी किसानों को अपने खेतों में फ़सल चक्र अपनाना चाहिए और इससे होने वाले लाभों का पूरा फायदा उठाना चाहिए।
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अयोध्या में निर्माणाधीन श्रीराम जन्मभूमि मंदिर की विशेषताएं:
1. मंदिर परम्परागत नागर शैली में बनाया जा रहा है।
2. मंदिर की लंबाई (पूर्व से पश्चिम) 380 फीट, चौड़ाई 250 फीट तथा ऊंचाई 161 फीट रहेगी।
3. मंदिर तीन मंजिला रहेगा। प्रत्येक मंजिल की ऊंचाई 20 फीट रहेगी। मंदिर में कुल 392 खंभे व 44 द्वार होंगे।
4. मुख्य गर्भगृह में प्रभु श्रीराम का बालरूप (श्रीरामलला सरकार का विग्रह), तथा प्रथम तल पर श्रीराम दरबार होगा।
5. मंदिर में 5 मंडप होंगे: नृत्य मंडप, रंग मंडप, सभा मंडप, प्रार्थना मंडप व कीर्तन मंडप
6. खंभों व दीवारों में देवी देवता तथा देवांगनाओं की मूर्तियां उकेरी जा रही हैं।
7. मंदिर में प्रवेश पूर्व दिशा से, 32 सीढ़ियां चढ़कर सिंहद्वार से होगा।
8. दिव्यांगजन एवं वृद्धों के लिए मंदिर में रैम्प व लिफ्ट की व्यवस्था रहेगी।
9. मंदिर के चारों ओर चारों ओर आयताकार परकोटा रहेगा। चारों दिशाओं में इसकी कुल लंबाई 732 मीटर तथा चौड़ाई 14 फीट होगी।
10. परकोटा के चारों कोनों पर सूर्यदेव, मां भगवती, गणपति व भगवान शिव को समर्पित चार मंदिरों का निर्माण होगा। उत्तरी भुजा में मां अन्नपूर्णा, व दक्षिणी भुजा में हनुमान जी का मंदिर रहेगा।
11. मंदिर के समीप पौराणिक काल का सीताकूप विद्यमान रहेगा।
12. मंदिर परिसर में प्रस्तावित अन्य मंदिर- महर्षि वाल्मीकि, महर्षि वशिष्ठ, महर्षि विश्वामित्र, महर्षि अगस्त्य, निषादराज, माता शबरी व ऋषिपत्नी देवी अहिल्या को समर्पित होंगे।
13. दक्षिण पश्चिमी भाग में नवरत्न कुबेर टीला पर भगवान शिव के प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया है एवं तथा वहां जटायु प्रतिमा की स्थापना की गई है।
14. मंदिर में लोहे का प्रयोग नहीं होगा। धरती के ऊपर बिलकुल भी कंक्रीट नहीं है।
15. मंदिर के नीचे 14 मीटर मोटी रोलर कॉम्पेक्टेड कंक्रीट (RCC) बिछाई गई है। इसे कृत्रिम चट्टान का रूप दिया गया है।
16. मंदिर को धरती की नमी से बचाने के लिए 21 फीट ऊंची प्लिंथ ग्रेनाइट से बनाई गई है।
17. मंदिर परिसर में स्वतंत्र रूप से सीवर ट्रीटमेंट प्लांट, वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट, अग्निशमन के लिए जल व्यवस्था तथा स्वतंत्र पॉवर स्टेशन का निर्माण किया गया है, ताकि बाहरी संसाधनों पर न्यूनतम निर्भरता रहे।
18. 25 हजार क्षमता वाले एक दर्शनार्थी सुविधा केंद्र (Pilgrims Facility Centre) का निर्माण किया जा रहा है, जहां दर्शनार्थियों का सामान रखने के लिए लॉकर व चिकित्सा की सुविधा रहेगी।
19. मंदिर परिसर में स्��ानागार, शौचालय, वॉश बेसिन, ओपन टैप्स आदि की सुविधा भी रहेगी।
20. मंदिर का निर्माण पूर्णतया भारतीय परम्परानुसार व स्वदेशी तकनीक से किया जा रहा है। पर्यावरण-जल संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। कुल 70 एकड़ क्षेत्र में 70% क्षेत्र सदा हरित रहेगा।
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टपक सिंचाई: खेती को आगे बढ़ाने का सबसे सटीक तरीका
पृथ्वी पर जीवन की सबसे महत्वपूर्ण संसाधनों में से एक पानी है। खेती में अनुकूल जल संरचना और समय पर नियमित पानी प्राप्त करना विशेष महत्व रखता है। ट्रेडिशनल मेथड्स ऑफ़ इरिगेशन का उपयोग करते हुए इस मांग को पूरा करना मुश्किल होता है, लेकिन खुशी की बात है कि विज्ञान ने हमें एक उत्कृष्ट विकल्प प्रदान किया है - टपक सिंचाई। यह एक प्रभावी और सतत तरीका है जिसके माध्यम से खेती को आगे बढ़ाया जा सकता है।
टपक सिंचाई विधि एक विशेष तरीका है जिसमें पानी को सीधे पौधों की जड़ों या रेखाओं के पास लाया जाता है। इस प्रक्रिया में, निर्धारित मात्रा में पानी को धीरे-धीरे टपकाया जाता है, जिससे वाणिज्यिक फसलों को समर्पित पोषण मिलता है। यह तकनीक खेती में अनुकूलता, पानी की बचत, मौजूदा स्रोतों का उपयोग, उत्पादकता में वृद्धि और प्रकृति को संरक्षण करने में मदद करती है।
टपक सिंचाई(Drip Irrigation) के अनेक लाभ हैं। पहले, यह प्रभावी रूप से पानी की बचत करता है। पाठकों को यह जानना चाहिए कि टपक सिंचाई तकनीक में, पानी केवल उस स्थान पर पहुँचाया जाता है जहाँ उसकी आवश्यकता होती है, इसलिए पानी की बहुचर्चा होने की संभावना कम होती है। दूसरे, यह पौधों को समर्पित पोषण प्रदान करने में सक्षम होता है, जो फसलों के विकास और उत्पादकता में सुधार करता है।
नेताफिम(Netafim) के टपक सिंचाई सिस्टम में, एक मुख्य संचालन प्रणाली होती है जो निरंतर पानी को धीरे-धीरे टपकाती है और उचित मात्रा में पौधों तक पहुंचाती है। इसके लिए, नेताफिम उच्च गुणवत्ता वाले प्लास्टिक पाइप, टपक कनेक्शन, वायल, और माइक्रो-इरिगेशन(Microirrigation) सामग्री प्रदान करता है।
नेताफिम(Netafim) के टपक सिंचाई सिस्टम के कुछ महत्वपूर्ण लाभ निम्नलिखित हैं:
पोषक प्रदान करने की अधिकता: नेताफिम के सिस्टम के माध्यम से, खेती में पौधों को उचित मात्रा में पोषण मिलता है। पानी सीधे पौधों की जड़ों या रेखाओं के पास पहुंचता है, जिससे पानी की बचत होती है और पोषण की अधिकता सुनिश्चित होती है।
समय और पानी की बचत: नेताफिम के टपक सिंचाई सिस्टम में, पानी केवल उस स्थान पर पहुंचाया जाता है जहां उसकी आवश्यकता होती है, इसलिए पानी की बहुचर्चा होने की संभावना कम होती है। इससे समय और पानी की बचत होती है और उच्च प्रभावशीलता सुनिश्चित होती है।
अधिकतम उत्पादकता: नेताफिम के टपक सिंचाई सिस्टम के माध्यम से, खेती में उत्पादकता में वृद्धि होती है। यह सिस्टम समर्पित पोषण प्रदान करता है, जो पौधों के स्वास्थ्य, विकास और उत्पादन को प्रभावी ढंग से सुनिश्चित करता है।
नेताफिम की उच्च गुणवत्ता, नवीनतम प्रौद्योगिकी और विस्तृत अनुभव से, यह टपक सिंचाई(Drip Irrigation) के लिए एक अत्यंत प्रभावी और समर्थक है। इसका उपयोग करके, किसान अपनी खेती को आगे बढ़ा सकते हैं, जल संरक्षण कर सकते हैं और उच्च प्रदर्शन के साथ अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए netafimindia.com वेबसाइट पर जाएँ। वहाँ आपको नेताफिम(Netafim) के टपक सिंचाई समाधानों के बारे में विस्तृत जानकारी मिलेगी।
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भारत के युवा कार्यकर्ताओं ने नागरिक भागीदारी द्वारा समर्थित तकनीक-संचालित जलवायु कार्रवाई का आह्वान किया
भारत के युवा कार्यकर्ताओं ने नागरिक भागीदारी द्वारा समर्थित तकनीक-संचालित जलवायु कार्रवाई का आह्वान किया
ग्लासगो सम्मेलन पिछले सप्ताह समाप्त हो गया, जिसमें 100 से अधिक राष्ट्राध्यक्षों और वैश्विक नेताओं ने 1.5 डिग्री सेल्सियस लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में मजबूत कार्रवाई करने पर सहमति व्यक्त की। हालाँकि, सम्मेलन में दुनिया भर के युवा कार्यकर्ताओं द्वारा एक समानांतर आंदोलन देखा गया, जिसमें मानवता के लिए जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल द्वारा जारी ��कोड रेड’ के सामने और अधिक तत्काल जलवायु…
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#s4s तकनीक#असम फ़्लोस#गणेश सुब्रमण्यम#ग्लासगो सम्मेलन#जल संरक्षण#जलवायु कार्यकर्ता#जलवायु कार्यकर्ता भारत#जलवायु कार्रवाई भारत#जलवायु क्रिया#जलवायु परिवर्तन#जलवायु परिवर्तन समाचार#ठोस अपशिष्ट प्रबंधन#निधि पंतो#बर्जिस ड्राइवर#यूँ हम परिवर्तन#शुद्ध शून्य उत्सर्जन#सिद्धार्थ शर्मा#सिपाही26#स्नेहा शाही
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Godrej प्रोसेस इक्विपमेंट दहेज इकाई का करेगा विस्तार, वित्तवर्ष 2025 तक राजस्व दोगुना करने का लक्ष्य मुंबई, गोदरेज (Godrej) समूह की प्रमुख क...
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मनरेगा के तहत जिले में 186 करोड़ रुपयों की राशि व्यय -अतिरिक्त उपायुक्त#news4
14 वें वित्तआयोग के माध्यम से वित्त पोषित योजनाओं को प्राथमिकता के साथ पूरा किया जाए। प्राकृतिक जल स्रोतों के संरक्षण और संवर्धन में प्रयोग हो पारंपरिक तकनीक चंबा, 6 अप्रैल अतिरिक्त उपायुक्त मुकेश रेपस्वाल ने बताया कि जिले में महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत 186 करोड़ रुपयों की राशि वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान विभिन्न विकास कार्यों पर व्यय की गई जबकि अधिनियम के तहत 63 लाख 84…
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कोसी नदी पुर्नजनन अभियान पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए एक सार्थक पहल
कोसी नदी पुर्नजनन अभियान पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए एक सार्थक पहल
अल्मोड़ा: कोसी नदी पुर्नजनन अभियान की ई-वर्चुवल समिट 2020 का आयोजन आज जिला प्रशासन अल्मोड़ा द्वारा किया गया। वीडियो कान्फ्रेसिंग से हुए इस वर्चुवल समिट में देश एवं विदेश के कई प्रतिनिधियों ने प्रतिभाग किया। इस वर्चुवल सम्मेलन का मुख्य उददेश्य जल प्रबन्धन के लिए सही दिशा, ज्ञान एवं तकनीक के आदान-प्रदान के साथ ही प्राकृतिक हिमालय पर्यावरण का स्थायित्व सुनिश्चित किया जाना और जल संरक्षण एवं जल…
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राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन के तहत योजनाएं :
1.वर्षा आधारित क्षेत्र विकास (आरएडी) 2.मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन (SHM) 3.एग्रो फॉरेस्ट्री (एसएमएएफ) पर सब मिशन 4.परम्परागत कृषि विकास योजना (PKVY) 5.मिट्टी और भूमि उपयोग सर्वेक्षण (एसएलयूएसआई) 6.राष्ट्रीय वर्षा क्षेत्र प्राधिकरण (एनआरएए) 7.उत्तर पूर्वी क्षेत्र में मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट (MOVCDNER) 8.नेशनल सेंटर ऑफ ऑर्गेनिक फार्मिंग (NCOF) 9.केंद्रीय उर्वरक गुणवत्ता नियंत्रण और प्रशिक्षण संस्थान (सीएफक्यूसी और टीआई)
यह भी पढ़े :जानिए राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (एनएमएसए) के बारे में
4 मुख्य योजनाए :
1.वर्षा आधारित क्षेत्र विकास (RAD)
कृषि प्रणालियों के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों के विकास और संरक्षण के लिए एक क्षेत्र-आधारित दृष्टिकोण विकसित करता है। यह कृषि के विभिन्न पहलुओं जैसे फसलों, मत्स्य, पशुधन, बागवानी, वानिकी और कृषि आधारित
अन्य गतिविधियों का एक संयोजन है जो राजस्व पैदा करने के स्रोत के रूप में कार्य करेगा।
उन प्रथाओं को लागू करें जो मृदा स्वास्थ्य कार्ड, कृषि भूमि के विकास के आधार पर मिट्टी के पोषक तत्वों को विनियमित करेंगे।
100 हेक्टेयर या अधिक के क्षेत्र के साथ एक क्लस्टर-आधारित दृष्टिकोण का उपयोग करना। नए संपत्ति संसाधन विकसित करें जो अनाज, चारा, बायोमास के लिए श्रेडर, संयुक्त विपणन पहल के लिए बैंक की तरह सामान्य होंगे।
2.ऑन-फार्म जल प्रबंधन (OFWM)
प्राथमिक ध्यान खेत के जल संरक्षण उपकरण और प्रौद्योगिकियों को उन्नत करके पानी का इष्टतम उपयोग है। वर्षा जल के कुशल कटाई और प्रबंधन पर जोर देना।
मनरेगा मिशन से धन का उपयोग करके खेत तालाबों की खुदाई करके खेत पर जल संरक्षण।
3.मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन
टिकाऊ प्रथाओं को बढ़ावा देना जो एक विशिष्ट स्थान पर आधारित मिट्टी के स्वास्थ्य को संरक्षित करते हैं और उन स्थानों पर उगाए जा सकने वाले फसलों जैसे कि अवशेषों के प्रबंधन, जैविक खेती जैसे विभिन्न तकनीकों की मदद से मिट्टी की उर्वरता के विवरण के साथ नए नक्शे बनाते हैं उन्हें स्थूल प्रबंधन और पोषक तत्वों के माइक्रोनमेंटेशन,
इष्टतम भूमि उपयोग, उर्वरकों के सही उपयोग और मिट्टी के क्षरण और क्षरण को कम करने के साथ जोड़ना। भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) तकनीक और वैज्ञानिक सर्वेक्षणों की मदद से मिट्टी और जमीन पर बनाए गए डेटाबेस की मदद से उत्पन्न विषयगत मानचित्रों का उपयोग।
राज्य सरकार, मृदा और भूमि उपयोग सर्वेक्षण (एसएलयूएसआई), नेशनल सेंटर ऑफ ऑर्गेनिक फार्मिंग (एनसीओएफ), केंद्रीय उर्वरक गुणवत्ता नियंत्रण और प्रशिक्षण संस्थान (सीएफक्यूसी और टीआई)।
4.जलवायु परिवर्तन और सतत कृषि: निगरानी, मॉडलिंग और नेटवर्किंग (CCSAMMN)
जलवायु परिवर्तन पर ज्ञान और अद्यतन जानकारी बनाएं और प्रसारित करें।
रेनफेड प्रौद्योगिकियों को फैलाने के लिए पायलट ब्लॉक का समर्थन करें और अन्य योजनाओं या मिशन जैसे MGNREGS, NFSM, RKVY, IWMP, त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (AIBP), NMAET के साथ समन्वय करें।
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What is the beauty tips that every woman should know.
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अच्छी त्वचा के लिए आपको सबसे महंगी, या सबसे जटिल, प्रोडक्ट्स की आवश्यकता नहीं है। विशेषज्ञों का तर्क है कि हम में से अधिकांश को केवल कुछ बुनियादी सौंदर्य रहस्यों पर ध्यान देना चाहिए जो आपको बहुत समय या पैसा खर्च किए बिना देखने और अच्छा महसूस करने में मदद कर सकते हैं।
How does moisturizer protect the skin?
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपकी त्वचा सूखी, सामान्य या तैलीय है। आपको कई की क्रीमों का निवेश नहीं करना चाहिए है, केवल एक उत्पादजो आपकी त्वचा को सूट करता है उसी का इस्तेमॉल करे और आप अपनी १ अच्छी त्वचा पा सकते हैं।
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न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय के एमडी और अमेरिकन सोसाइटी ऑफ ��र्मेटोलॉजिकल सर्जरी के अध्यक्ष, प्रोफेसर, रोडा नारिंस कहते हैं, "कभी-कभी आपको हर प्रकार के प्रोडक्ट की ज़रूरत होती है, एक अच्छा मॉइस्चराइज़र और एक हल्का क्लींजर। 'जब त्वचा शुष्क होती है, तो प्रत्येक झुर्रियों का उच्चारण करता है, जिससे आपके फेस साफ और चमकदार दिखता है
यदि आप अपने 20 या 30 के दशक में हैं, तो डॉक्टर कहते हैं, मॉइस्चराइज़र आपको समय से पहले बूढ़ा होने से बचाने के लिए आवश्यक सुरक्षा प्रदान करेगा,
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लेकिन फिर, आपके लिए एक 'अच्छा' मॉइस्चराइज़र क्या है?
त्वचा विशेषज्ञ कार्लोस ई। क्रचफील्ड III, एमडी, कहते हैं: 'यह एक ऐसा उत्पाद है जो त्वचा में नमी जोड़ता है और त्वचा को सील करता है , जिससे त्वचा अधिक नमी का उत्पादन कर सकती है।' आपको यह देखने की ज़रूरत है कि आपकी त्वचा की व्यक्तिगत ज़रूरतों के अनुसार आपको कौन सी क्रीम चुननी चाहिए।
यदि त्वचा सामान्य से शुष्क हो जाती है, तो मॉइस्चराइज़र की तलाश करें जिसमें अल्फा हाइड्रॉक्साइड शामिल हों। मिनेसोटा स्कूल ऑफ मेडिसिन विश्वविद्यालय में त्वचा विज्ञान के एक एसोसिएट क्लिनिकल प्रोफेसर क्रचफील्ड कहते हैं, मॉइस्चराइज़र त्वचा को अपने आप अधिक नमी पैदा करने में मदद करते हैं।
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यदि त्वचा बहुत शुष्क है, तो वेसिकुलर इमल्शन नामक तकनीक का उपयोग करने वाले उत्पादों का सुझाव देते है। क्रचफील्ड कहते हैं, "यह तकनीक सूक्ष्म क्षेत्रों का उपयोग करती है जो नमी और पानी की परतों का गठन करती हैं, जो निरंतर जल प्राप्त करती हैं।"
यदि त्वचा तैलीय है, तो एक नरम और हल्के मॉइस्चराइज़र की तलाश करें। 'वसा नमी नहीं है; इसलिए आपके पास अतिरिक्त वसा है जिसे आपको अभी भी नम करने की आवश्यकता है। '
अगर यह महीना उस मॉइस्चराइज़र के लिए आपके पास नहीं पहुँचा, तो यहाँ हम आपको प्राकृतिक मास्क की एक श्रृंखला छोड़ते हैं, जो आपको दिव्य त्वचा को उन तत्वों से बनाए रखने में मदद करेगा जो आपके पास शायद घर पर हों
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How sunscreen is the best anti-aging product?
हम सभी जानते हैं कि सनस्क्रीन त्वचा के कैंसर के खतरे को कम करता है, लेकिन क्या आप यह भी जानते हैं कि यह सुंदरता का एक अद्भुत रहस्य है जो युवा त्वचा को बनाए रखने में मदद करता है? जो लोग सूरज के संपर्क में ��ते हैं, उनके समय से बहुत पहले ही झुर्रियां पड़ जाती हैं।
सनस्क्रीन के संरक्षण के बिना, यदि आप अपनी त्वचा को उजागर करते हैं (भले ही केवल कुछ मिनटों के लिए) हर दिन धूप में रहने से आप अपनी त्वचा में थोड़े समय में आप बदलाव देखेंगे त्वचा में उल्लेखनीय, अमेरिकन एकेडमी ऑफ डर्मेटोलॉजी कहती है।
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'हर दिन धूप में रहने से न केवल अधिक झुर्रियाँ और रेखाएँ दिखाई देंगी, बल्कि धब्बे और नसें भी दिखेंगी।' त्वचा खुरदरी और ढीली हो जाती है,
क्रचफील्ड ने SPF 15 सनस्क्रीन चुनने की सलाह दी। और मेकअप पर लगाने से पहले नियमित सनस्क्रीन का उपयोग करें।
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हमारे समय का अनुपम आदमी : अनुपम मिश्र
आजाद भारत के असली सितारे - 35 “हमारे समय का अनुपम आदमी”- प्रभाष जोशी ने अनुपम मिश्र के बारे में यही कहा था। उनके निधन पर वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए उनका एक व्यक्ति-चित्र खींचा था, “सच्चे, सरल, सादे, विनम्र, हंसमुख, कोर-कोर मानवीय। इस ज़माने में भी बग़ैर मोबाइल, बग़ैर टीवी, बग़ैर वाहन वाले नागरिक। दो जोड़ी कुर्ते-पायजामे और झोले वाले इंस��न। गाँधी मार्ग के पथिक। 'गाँधी मार्ग' के सम्पादक। पर्यावरण के चिन्तक। 'राजस्थान की रजत बूँदें' और 'आज भी खरे हैं तालाब' जैसी बेजोड़ कृतियों के लेखक।” एक अन्य वरिष्ठ पत्रकार प्रियदर्शन के उद्गार से अनुपम मिश्र का उक्त चित्र पूरा बनता है, “स्मार्टफोन और इंटरनेट के इस दौर में वे चिट्ठी-पत्री और पुराने टेलीफोन के आदमी थे। लेकिन वे ठहरे या पीछे छूटे हुए नहीं थे। वे बड़ी तेज़ी से हो रहे बदलावों के भीतर जमे ठहरावों को हमसे बेहतर जानते थे।” सरल, सपाट, टायर से बनी चप्पल पहनने वाले अनुपम एकदम शांत स्वभाव के थे। उनका अपना कोई घर नहीं था। वह गाँधी शांति प्रतिष्ठान के परिसर में ही रहते थे। उनके परिवार में उनकी पत्नी, एक बेटा, बड़े भाई और दो बहनें हैं। 19 दिसम्बर 2016 को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), दिल्ली में इस संत ने अन्तिम सांस ली। वे काफी समय से प्रोस्टेट कैंसर से पीड़ित थे। उस समय उनकी उम्र 68 वर्ष की थी। अनुपम मिश्र का जन्म महाराष्ट्र के वर्धा में सरला मिश्र और प्रसिद्ध हिन्दी कवि भवानी प्रसाद मिश्र के पुत्र के रूप में सन 5 जून 1948 को हुआ था। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से 1969 में संस्कृत से एम.ए. किया और उसके बाद गाँधी शांति प्रतिष्ठान, दिल्ली से जुड़ गये।
अनुपम मिश्र एक लेखक, सम्पादक, छायाकार और पर्यावरणविद् तो थे ही, उनकी छवि एक आदर्श गाँधीवादी संत की थी। पर्यावरण-संरक्षण के प्रति जनचेतना जगाने और सरकारों का ध्यान आकर्षित करने की दिशा में वह तब से काम कर रहे थे, जब देश में पर्यावरण रक्षा का कोई विभाग भी नहीं खुला था। आरम्भ में बिना सरकारी मदद के उन्होंने देश और दुनिया के पर्यावरण की जिस तल्लीनता और बारीकी से खोज-खबर ली, वह सरकारी विभागों और बड़ी-बड़ी परियोजनाओं के लिए भी आसान नहीं है। उन्ही के प्रयास से सूखाग्रस्त अलवर में जल संरक्षण का काम शुरू हुआ था और वहाँसूख चुकी अरवरी नदी में अनवरत जल प्रवाहित होने लगा। इसी तरह उत्तराखण्ड और राजस्थान में भी परम्परागत जल स्रोतों के पुनर्जीवन की दिशा में उन्होंने उल्लेखनीय कार्य किया। गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान दिल्ली में उन्होंने पर्यावरण कक्ष की स्थापना की। वह इस प्रतिष्ठान की पत्रिका ‘गाँधी मार्ग’ के संस्थापक और सम्पादक भी थे। उन्होंने बाढ़ के पानी के प्रबन्धन और तालाबों द्वारा उसके संरक्षण की युक्ति के विकास का अभूतपूर्व कार्य किया। वे 2001 में दिल्ली में स्थापित सेन्टर फार एनवायरमेन्ट एंड फूड सिक्योरिटी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। चंडी प्रसाद भट्ट के साथ काम करते हुए उन्होंने उत्तराखण्ड के ‘चिपको आन्दोलन’ में जंगलों को बचाने के लिये सहयोग किया था। वह जल-संरक्षक राजेन्द्र सिंह की संस्था ‘तरुण भारत संघ’ से भी जुड़े रहे और लम्बे समय तक उसके अध्यक्ष रहे। वे जयप्रकाश नारायण के साथ दस्यु उन्मूलन आन्दोलन में भी सक्रिय रहे। अनुपम मिश्र की प्रसिद्ध पुस्तक है, ‘आज भी खरे हैं तालाब।’ इस पुस्तक के लिए उन्हें 2011 में देश के प्रतिष्ठित जमनालाल बजाज पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह किताब पहली बार 1993 ई. में छपी थी। पाचवाँ संस्करण 2004 में छपा और इसमें कुल 23000 प्रतियाँ छपीं। 2004 तक इसकी एक लाख से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी थीँ। इस पुस्तक ने अपने-अपने क्षेत्र के जलस्रोतों को बचाने की ऐसी अलख जगाई कि सैकड़ों गाँव अपने पैरों पर खड़े हो गये और यह सिलसिला आज भी जारी है। हमारे देश में बेजोड़ और सुंदर शीतल जलाशयों की कितनी विराट परम्परा थी, यह पुस्तक उसका भव्य दर्शन कराती है। तालाब बनाने की विधियों के साथ-साथ अनुपम जी ने उन गुमनाम नायकों को भी अँधेरे कोनों से ढूँढ निकाला जो विकास के नए पैमानों के कारण बिसरा दिए गये थे। ब्रेल सहित 19 भाषाओं में प्रकाशित इस पुस्तक की माँग आज भी यथावत है। अनुपम मिश्र ने इस किताब को कॉपीराइट से मुक्त रखा और कहा कि किताब पढ़िये, अच्छी लगे तो छाप कर बेच दीजिए। उन्होंने इसकी कोई रायल्टी नहीं ली। इसे कोई भी छाप सकता है, प्रचारित कर सकता है, बिना मूल्य या मूल्य के साथ बेच सकता है या वितरित कर सकता है। अपनी पुस्तक “आज भी खरे हैं तालाब” में श्री अनुपम मिश्र ने समूचे भारत के तालाबों, जल-संचयन पद्धतियों, जल-��्रबन्धन, झीलों तथा पानी की अनेक भव्य परम्पराओं की समझ, दर्शन और शोध को लिपिबद्ध किया है। भारत की यह पारम्परिक जल संरचनाएं, आज भी हजारों गाँवों और कस्बों के लिये जीवनरेखा के समान हैं। अनुपम जी का यह कार्य, देश भर में काली छाया की तरह फ़ैल रहे भीषण जलसंकट से निपटने और समस्या को अच्छी तरह समझने में मार्ग दर्शक की भूमिका निभाता है। पर्यावरण और जल-प्रबन्धन के क्षेत्र में वर्षों से लगे रहने का परिणाम हैं उनकी ये पुस्तकें।
पानी के लिए तरसते गुजरात के भुज के हीरा व्यापारियों ने इस पुस्तक से प्रभावित होकर अपने पूरे क्षेत्र में जल-संरक्षण की मुहिम चलाई। पुस्तक से प्रेरणा पाकर पूरे सौराष्ट्र में ऐसी अनेक यात्राएं निकाली गईं। मध्यप्रदेश के सागर जिले के कलेक्टर श्री बी. आर. नायडू ने उनकी पुस्तक से प्रभावित होकर क्षेत्र में काम करना शुरू किया और उनके प्रयास से सागर जिले के 1000 तालाबों का उद्धार हुआ। ऐसी ही एक और अलख के कारण शिवपुरी जिले के लगभग 340 तालाबों की सुध ली गयी। मध्यप्रदेश, पंजाब, बंगाल और महाराष्ट्र के भी सैकड़ों किस्से मिल जाएंगे जहाँ इस पुस्तक ने बदलाव का बिगुल बजाया। यहाँ तक कि फ्रांस की एक लेखिका एनीमोंतो के हाथ जब यह पुस्तक लगी तो एनीमोंतो ने इसे दक्षिण अफ्रीकी रेगिस्तानी क्षेत्रों में पानी के लिए तड़पते लोगों के लिए उपयोगी समझा। उन्होंने इसका फ्रेंच में अनुवाद किया। अनुपम के लिए तालाब केवल जल-स्रोत नहीं थे बल्कि वह सामाजिक आस्था, परम्परागत कला-कौशल और संस्कारशीलता के उदाहरण थे। वे किताबी शिक्षा को केवल औपचारिक शिक्षा मानते थे। आधुनिक शिक्षा में पर्यावरण के पाठ की उपेक्षापर दुख व्यक्त करते हुए अपनी पुस्तक में वे लिखते हैं – "सैकड़ों, हजारों तालाब अचानक शून्य से प्रकट नहीं हुए थे। इनके पीछे एक इकाई थी बनवाने वालों की, तो दहाई थी बनाने वालों की। ये इकाई, दहाई मिलकर सैंकड़ा, हज़ार बनाती थीं। पिछले दो-सौ बरसों में नये किस्म क�� थोड़ी सी पढ़ाई पढ़ गये समाज ने इस इकाई दहाई, सैकड़ा, हज़ार को शून्य ही बना दिया।’’ अपने एक लेख में अनुपम मिश्र, विनोबा भावे की एक उक्ति दोहराते हैं जिसमें विनोबा कहते हैं- “पानी जब बहता है तो वह अपने सामने कोई बड़ा लक्ष्य, बड़ा नारा नहीं रखता, कि मुझे तो बस महासागर से ही मिलना है। वह बहता चलता है। सामने छोटा–सा गड्ढा आ जाए तो पहले उसे भरता है। बच गया तो उसे भर कर आगे बढ़ चलता है। छोटे–छोटे ऐसे अनेक गड्ढों को भरते–भरते वह महासागर तक पहुँच जाए तो ठीक, नहीं तो कुछ छोटे गड्ढों को भर कर ही संतोष पा लेता है। ऐसी विनम्रता हम में आ जाए तो शायद हमें महासागर तक पहुँचने की शिक्षा भी मिल जाएगी।’’ अनुपम का जीवन बिनोबा भावे की इसी उक्ति का प्रायोगिक संस्करण है। यह भी पढ़ें - मन्नू भाई मोटर चली ,पम पम पम अनुपम मिश्र के पिता प्रख्यात गाँधीवादी कवि भवानी प्रसाद मिश्र की ग्रंथावली का सम्पादन करने वाले हिन्दी के प्रतिष्ठित आलोचक विजय बहादुर सिंह ने अनुपम मिश्र के निधन पर लिखा है, “उनका समूचा जीवन एक आधुनिक ऋषि का था, जो जल यज्ञ में अपादमस्त डूबा नहीं, रमा था। जिन लोगों ने थोड़ा बहुत भी वैदिक ग्रंथों के पृष्ठों को उलटा-पुलटा है, वे जानते होंगे कि निसर्ग वरदानों को लेकर ऋषियों की दृष्टि क्या रही है। जल हो, प्रकाश हो, अग्नि हो या फिर आकाश- सबके प्रति एक कृतज्ञता का भाव, न कि अहम्मन्यता, दंभ और स्वामित्व का मुगालता। देश की नदियों की कलकल से जो ध्वनि संगीत फूटता है, उसे उन्होंने ध्यान देकर सुना था। उनके होशंगाबाद से संवाद करती रेवा (नर्मदा) पर उनके पूज्य पिता भी न्योछावर थे। अपनी समूची काव्य सृष्टि के पर्याय के रूप में उन्होंने नर्मदा को उपमित किया था। इन्हीं संस्कारों के चलते वे जीवन भर जल की आरती उतारते रहे।” इसी तरह हिन्दी के एक वरिष्ठ आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी लिखतें हैं, “संतों के व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता है कि वे अपने अनुभव की सहज अभिव्यक्तियाँ करते हैं। अनुपम मिश्र का व्यक्तित्व इसी कारण संतों से मिलता-जुलता था।”
अनुपम मिश्र को गाँधी शांति प्रतिष्ठान उनके पिता भवानी प्रसाद मिश्र ही लेकर गये थे। वहाँ उन्होंने मुद्रण का काम सीखा और किया। संयोगवश राजस्थान गये बीकानेर, तो वहाँ देखा कि मरुभूमि में पानी का संग्रह कैसे किया जाता है। वहाँ जल संग्रह की विधि देखकर वे बहुत प्रभावित हुए और वे उसी मिशन में लग गये। इस जानकारी ने उनके जीवन की दिशा निर्धारित कर दी। आज भूजल स्तर लगातार गिर रहा है, पानी-उद्योग विकसित हो रहा है, कहते हैं कि अगला विश्व युद्ध तेल के लिए नहीं, पानी के लिए लड़ा जाएगा। ऐसे में अनुपम मिश्र जल संकट का समाधान इस तरह से प्रस्तुत करते हैं कि संकट, संकट नहीं लगता और समाधान विश्वसनीय लगता है। उसमें खर्च भी बहुत कम। इस समस्या का समाधान हमारे पास सदियों से मौजूद है लेकिन हम उसे भूल चुके हैं और उल्टे प्रकृति के अक्षय स्रोत के विनाश पर तुले हैं। अनुपम मिश्र द्वारा प्रस्तावित जल के संकट का समाधान सिर्फ जल के संकट का समाधान नहीं है, वह पाँच तत्वों के संकटों का समाधान भी है। इतना ही नहीं, वह इस शैतानी सभ्यता से होने वाले विनाश का विकल्प भी है। भविष्य के विकास की विश्वसनीय दिशा है यह। देश में पानी की कमी तो है नहीं। हर साल भयंकर बाढ़ भी आती है और सूखा भी पड़ता है। फिर यह विडंबना क्यों घटित होती है? जल का यह संकट प्राकृतिक नहीं है, मानव-सृजित है और इसका समाधान भी हमारे ही पास है जिसकी ओर अनुपम मिश्र ने सिर्फ इशारा ही नहीं किया, अपितु प्रयोग करके दिखा भी दिया। अनुपम मिश्र ध्यान दिलाते हैं कि संकट मूलत: हमारी मानसिक गुलामी का है। मानसिक गुलामी की प्रवृत्ति हमारे भीतर अपनी हर वस्तु से घृणा करना सिखाती है, उसकी अवमानना के लिए हमें प्रेरित करती है। हम अपनी भाषा, अपनी संस्कृति, अपने इतिहास और यहाँ तक कि अपने लोगों से भी घृणा करना अपना स्वभाव बना लेते हैं। निस्संदेह राजनैतिक दृष्टि से आज़ाद होने के बावजूद हम मानसिक तौर पर पहले से अधिक गुलाम हुए हैं। आज हम अपनी जानकारी से अपनी परिस्थितियों के अनुकूल न विचार बना पाते हैं, न तकनीक विकसित कर पाते हैं। साहित्य, दर्��न, शिक्षा, स्वास्थ्य, भोजन, संस्कृति, मनोरंजन आदि सबकुछ हम पश्चिम से ले रहे हैं। कितना शर्मनाक है यह?
अनुपम मिश्र बताते है कि हमारे देश में गाँव के आसपास तालाब, पोखर, कूप, चाल, खाल आदि बनाए जाते थे और जल को संरक्षित रखने की व्यवस्था की जाती थी। यह काम पूरे देश में प्रकृति के गुणावगुणों को जाँच-परखकर उसे अनुकूलित कर के कुशलतापूर्वक किया जाता था। इस काम के विशेषज्ञ थे लेकिन वे जनसामान्य में घुले-मिले लोग ही थे। उनकी विशेषज्ञता उन्हें शेष समाज से अलग-थलग नहीं करती थी। अनुपम मिश्र ने यह सारा ब्यौरा देते हुए मध्यकालीन भारत में जल-व्यवस्था का विश्व-कोष तैयार किया है। अनुसंधान का मॉडल प्रस्तुत किया है। पता नहीं कितने शब्दों - अप्रचलित, अर्धप्रचलित भूले-बिसरों - को पुनर्जीवित किया है, उन्हें सार्थक बनाया है। इस विशद धैर्य परीक्षक अनुसंधान प्रक्रिया में उन्होंने आधुनिक, मध्यकालीन और एक हद तक प्राचीन भारत की जाति व्यवस्था, उसके आर्थिक आधार के ढाँचे का भी प्रामाणिक आधार खड़ा किया है। अनुपम मिश्र लिखते हैं, “तालाब निर्माण करने वाली अनेकानेक जातियों में से एक है – गजधर। गजधर वास्तुकार थे। गाँव-समाज हो या नगर-समाज, उनके नवनिर्माण की, रख-रखाव की जिम्मेदारी गजधर निभाते थे। नगर नियोजन से लेकर छोटे से छोटे निर्माण के काम गजधर के कंधों पर टिके थे। वे योजना बनाते थे, कुल काम की लागत निकालते थे, काम में लगने वाली सारी सामग्री जुटाते थे और इस सबके बदले वे अपने जजमान से ऐसा कुछ नहीं माँग बैठते थे जो वे दे न पाएं। लोग भी ऐसे थे कि उनसे जो कुछ बनता, वे गजधर को भेंट कर देते। काम पूरा होने पर पारिश्रमिक के अलावा गजधर को सम्मान भी मिलता था। सरोपा भेंट करना अब शायद सिर्फ सिख परम्परा में ही बचा है पर अभी कुछ ही प��ले तक राजस्थान में गजधर को गृहस्थ की ओर से बड़े आदर के साथ सरोपा भेंट किया जाता रहा है। पगड़ी बाँधने के अलावा चाँदी और कभी सोने के बटन भी भेंट दिए जाते थे। जमीन भी उनके नाम की जाती थी। पगड़ी पहनाए जाने के बाद गजधर अपने साथ काम करने वाली टोली के कुछ और लोगों का नाम बताते थे, उन्हें भी पारिश्रमिक के अलावा यथाशक्ति कुछ न कुछ भेंट दी जाती थी।” (आ.ख.ता. पृ. 18,) निस्संदेह ‘आज भी खरे हैं तालाब’ पुस्तक हमारा विस्मृत आत्मविश्वास लौटाती है। यह भी पढ़ें - अनुपम पथ के अनुपम राही अनुपम मिश्र बताते हैं कि हमारा समाज अपने जीवन के अक्षय स्रोत को बनाने, उसके संरक्षण की विधि को जानता था। तालाब बनाना और उसकी देखभाल करना समाज का स्वत:स्फूर्त सहज सामान्य व्यवहार था। इस संस्कार को हमें दुबारा अर्जित करना होगा। ‘तैरने वाला समाज डूब रहा है।’ नाम की उनकी एक पुस्तक है। यह बिहार की भयंकर बाढ़ के बाद लिखी गयी थी। इसका भी मूल स्वर वही है। परम्परा से लोग बाढ़ की विभीषिका से बचने का रास्ता अपनाना भी जानते थे और अभ्यासवश उन्होंने नदियों का अपने हित में उपयोग करना भी सीख लिया था। बिहार में नंदिया ताल बनाये जाते थे। नंदिया ताल का मतलब वे तालाब जो नदी के अधिक जल के इकट्ठा होने से बन जाते थे या बना लिये जाते थे। नंदिया ताल बाढ़ के प्रकोप को क्रमश: कम कर देते थे। पानी तालाबों में रुक जाने से उसका वेग कम हो जाता था। बाढ़ के प्रलयंकर प्रभाव को रोकने के लिए आश्चर्य में डाल देने वाली योजना थी चारकोसी झाड़ी। चारकोसी झाड़ी का मतलब चार कोस की चौड़ाई का जंगल। जाहिर है कि, ऐसा नपा-तुला जंगल लोग लगाते होंगे। कहते हैं कि इसकी लंबाई पूरे बिहार में ग्यारह-बारह सौ किलोमीटर तक थी और वह पूर्वी उत्तर प्रदेश तक विस्तारित था। ये चार कोसी झाड़ी बाढ़ के प्रबल वेग को रोकने में काफी कारगर होती थीं।
अनुपम मिश्र पर्यावरणविद् और पर्यावरण के लेखक हैं। वे मात्र चिन्तक लेखक नहीं हैं। लेखन उनकी आन्दोलन सक्रियता का अंग है। स्वतन्त्र भारत में ऐसे लेखक दुर्लभ हैं जिनके लेखन ने आन्दोलन का रूप लिया हो। उनका लेखन और व्यक्तित्व मानो स्वाधीनता आन्दोलन के युग का कोई बचा रह गया सक्रिय अंश हो। वे अपने लेखन में स्वप्न निर्मित करते हैं। स्वप्न प्राय: भविष्य का देखा जाता है। अनुपम मिश्र के लेखन से अतीत भविष्य का स्वप्न बन जाता है और वह स्वप्न वर्तमान में दृश्य भी होता है। वह केवल मन की आंखों से नहीं खुली आँखों भी कई जगहों पर ��िखलाई पड़ता है। पुस्तक में इसकी जानकारी दी गयी है। अनेक प्रकाशित लेखों में इसकी जानकारी दी गयी है। घनघोर सूखे के समय में आज भी समाचार-पत्रों में ऐसी घटनाओं की जानकारी मिलती है, जहाँ गाँव के लोग अपने सामूहिक श्रम से - ज्यादा पैसा खर्च किये बगैर अपने काम भर का पानी बखूबी संचित कर लेते हैं। (द्रष्टव्य, पहल, जुलाई 2016) राघवेन्द्र शुक्ल ने 19 दिसम्बर 2017 को उनकी बरसी पर लिखा है, “भगीरथ ने पितरों के उद्धार के लिए गंगा का धरती पर अवतरण कराया था। ऐसे में अगर अपने परिवार से इतर सोचते हुए एक व्यापक उद्देश्य की परिणति में कोई एक गंगा की जगह पानी की अनेक गंगाएं धरती पर उतार दे तो यही कहना होगा कि ऐसी शख्सियत भगीरथ से एक क़दम आगे है। तब उसे आधुनिक भगीरथ नहीं कहा जाएगा बल्कि भगीरथ को सतयुग का अनुपम मिश्र कहा जाएगा।” पत्रकार रवीश कुमार ने लिखा कि, “वे मेरे लिए तालाब थे। उनसे पानी भर कर लाता और अपने चैनल पर दर्शकों के सामने उड़ेल देता।” 1996 में उन्हें देश के सर्वोच्च पर्यावरण पुरस्कार ‘इंदिरा गाँधी पर्यावरण पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया। . Read the full article
#'गाँधीमार्ग'केसम्पादक#'राजस्थानकीरजतबूँदें'#‘तैरनेवालासमाजडूबरहाहै#aajbhikharehaintalab#amarnath#anupammishra#anupammishrabirthanniversary#anupammishradeathanniversary#anupammishraji#gandhimargkepathik#gandhimargkesampadak#gandhishantipratishthan#rajasthankirajatbundeun#अनुपममिश्र#अनुपममिश्रपर्यावरणविद्औरपर्यावरणकेलेखक#आजभीखरेहैंतालाब#उत्तराखण्डके‘चिपकोआन्दोलन#गाँधीमार्गकेपथिक#गाँधीमार्ग’केसंस्थापकऔरसम्पादक#गाँधीशान्तिप्रतिष्ठानदिल्ली#चंडीप्रसादभट्ट#जमनालालबजाजपुरस्कार#जल-संरक्षकराजेन्द्रसिंहकीसंस्था‘तरुणभारतसंघ’#पर्यावरणकेचिन्तक#प्रभाषजोशी#बाढ़कीविभीषिकासेबचनेकारास्ता#वरिष्ठपत्रकारओमथानवी#हमारेसमयकाअनुपमआदमी#हमारेसमयकाअनुपमआदमी:अनुपममिश्र
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IoT (इंटरनेट ऑफ थिंग्स) महामारी में बहुत लोकप्रिय हो गया है, क्योंकि यह लोगों के बीच बातचीत को कम करता है। यह एक ही चीज़ पर काम करने के लिए कई लोगों की आवश्यकता के बिना चीजों को जोड़ने में मदद करता है। यह दूर से चीजों को नियंत्रित करने की सुविधा भी प्रदान करता है।
What is IoT?
इंटरनेट ऑफ थिंग्स का अर्थ दुनिया के सभी भौतिक घटकों और चीजों को लेना और उन्हें इंटरनेट से जोड़ना है।
एक इंटरनेट कनेक्शन एक अद्भुत चीज है, यह हमें हर तरह की आसानी प्रदान करता है जो पहले संभव नहीं था। यदि आप 90 के दशक से हैं, तो अपने मोबाइल फोन के बारे में सोचें, जब वह स्मार्टफोन था। आप कॉल और टेक्स्ट कर सकते हैं, लेकिन अब आप कोई भी फिल्म देख सकते हैं या कोई भी गाना सुन सकते हैं।
भ्रम इसलिए नहीं है क्योंकि विषय संकीर्ण है, बल्कि इसलिए है कि यह इतना व्यापक है। जब IoT में बहुत सारे उदाहरण और संभावनाएं हैं, तो आपके दिमाग में इस अवधारणा को तय करना मुश्किल हो सकता है।
स्पष्ट करने में मदद के लिए, चीजों को इंटरनेट से जोड़ने के लाभों और इसकी कमियों को समझना महत्वपूर्ण है।
Advantages of IoT
Monitor Data
IoT का प्राथमिक और मुख्य लाभ निगरानी है। यह हमें आपके घर में आपूर्ति की सटीक मात्रा या हवा की गुणवत्ता जानने में मदद करता है, यह अधिक डेटा भी प्रदान कर सकता है जो पहले आसानी से एकत्र करना संभव नहीं था।
उदाहरण के लिए, यह जानते हुए कि आपके पास प्रिंटर की स्याही कम है, निकट भविष्य में आपको स्टोर की एक और यात्रा से बचा सकता है। साथ ही, उत्पादों की समाप्ति की निगरानी करने से सुरक्षा में सुधार होगा।
Ease of Access
अभी, आप किसी भी स्थान से (लगभग) वास्तविक समय में आवश्यक जानकारी आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। यह केवल एक स्मार्ट डिवाइस और इंटरनेट कनेक्शन लेता है।
हम वास्तविक जीवन में किसी व्यक्ति से पूछने के बजाय, अपना स्थान देखने के लिए Google मानचित्र का उपयोग करते हैं। टिकट बुकिंग पहले से कहीं ज्यादा आसान है। नवीनतम वैज्ञानिक अनुसंधान, या व्यावसायिक विश्लेषण से भी जानकारी आसानी से प्राप्त की जा सकती है। यह केवल एक क्लिक दूर है।
Speedy Operation
यह सारा डेटा डालने से हम कई कार्यों को अद्भुत गति से पूरा कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, IoT स्वचालन को सरल बनाता है। स्मार्ट उद्योग दोहराए जाने वाले कार्यों को स्वचालित करते हैं, इस प्रकार कर्मचारियों को अपना समय और प्रयास अधिक चुनौतीपूर्ण चीजों में निवेश करने की इजाजत देता है।
Adapting to New Standards
चूंकि IoT एक निरंतर परिवर्तनशील विषय है, इसलिए उच्च तकनीक की दुनिया की अन्य तकनीकों की तुलना में इसके परिवर्तन न्यूनतम हैं। IoT के बिना, सभी नवीनतम चीज़ों पर नज़र रखना हमारे लिए जटिल होगा।
Better Time Management
कुल मिलाकर, यह एक चतुर समय बचाने वाला उपकरण है।
हम अपने दैनिक आवागमन के दौरान अपने फोन पर नवीनतम समाचार देख सकते हैं, या अपने पसंदीदा शगल के बारे में एक ब्लॉग देख सकते हैं, एक ऑनलाइन दुकान में एक आइटम खरीद सकते हैं, हम अपने हाथों की हथेली से लगभग सभी चीजें कर सकते हैं। आखिरकार, हमारे पास हमारे लिए बहुत अधिक समय होता है।
हालाँकि, कुछ भी संपूर्ण नहीं है।
Automation and Control
भौतिक वस्तुओं को वायरलेस प्रौद्योगिकी संरचना के साथ डिजिटल और केंद्रीय रूप से जोड़ा और नियंत्रित किया जा रहा है, कामकाज में स्वचालन और नियंत्रण की एक बड़ी मात्रा है। मानवीय हस्तक्षेप के बिना, मशीनें तेजी से और समय पर आउटपुट प्रदान करने के लिए एक दूसरे के साथ संचार कर रही हैं।
Saving Money
IoT का एक अन्य मुख्य लाभ पैसे की बचत है। यदि टैगिंग और निगरानी मशीनों की लागत बचाई गई राशि की तुलना में कम है, तो यही कारण है कि इंटरनेट ऑफ थिंग्स को बहुत व्यापक रूप से अपनाया जा रहा है।
IoT मुख्य रूप से लोगों के दैनिक जीवन में उनके उपकरणों को एक दूसरे के साथ एक कुशल तरीके से ऊर्जा और लागत की बचत और संरक्षण के साथ संवाद करने में सहायक होता है।
डेटा को उपकरणों के बीच संचार और साझा करने की अनुमति देना और फिर इसे हमारे आवश्यक तरीके से अनुवाद करना, हमारे सिस्टम को कुशल बनाता है।
Disadvantages of IoT
Data Breach
डेटा तक पहुंच उत्कृष्ट है। दुर्भाग्य से, हमारा व्यक्तिगत डेटा अधिक खुला है। क्रेडिट कार्ड नंबर सबसे अधिक समझौता की गई जानकारी है, इसके बाद डेबिट कार्ड नंबर होता है।
डेटा उल्लंघनों तनावपूर्ण हैं। कंपनियां भी उनके बारे में चिंता करती हैं और अगर उनके ग्राहकों द्वारा उनके विवरण से समझौता किया जाता है तो वे विश्वास खो सकते हैं। सबसे खराब उपकरणों को कहा जाता है: ऑफ-ब्रांड IoT गैजेट्स, सेकेंड-हैंड स्मार्ट डिवाइस और संदिग्ध ऐप्स।
Dependence on Technology
IoT मुख्य रूप से इंटरनेट कनेक्शन पर निर्भर है। जब कोई नहीं है, तो इसका उपयोग नहीं किया जा सकता है।
दूसरी ओर, हम मुख्य रूप से IoT के दैनिक उपयोग पर निर्भर हो गए हैं। व्यवसाय और निजी जीवन भी IoT पर निर्भर है।
यदि हमें वांछित जानकारी तक शीघ्रता से पहुंच नहीं मिलती है, तो हम सबसे अनावश्यक सामग्री के बारे में भी परेशान हो जाते हैं। IoT ने हमारे ध्यान अवधि में भारी कमी में योगदान दिया है।
Complexity in Operation
IoT भले ही आसानी से कार्यों का प्रबंधन कर रहा हो, इसके पीछे बहुत सारे जटिल ऑपरेशन किए जाते हैं। अगर गलती से सॉफ्टवेयर गलत कैलकुलेशन करता है, तो यह बाकी प्रोसेस को प्रभावित करेगा।
उपर्युक्त कभी-कभी बहुत महत्वपूर्ण हो सकता है। हम नहीं जानते कि हमारे घर में गलत तापमान से कैसे निपटा जाए।
सबसे खराब स्थिति में, वाटर डैम सॉफ्टवेयर में त्रुटि कोड विनाशकारी बाढ़ का कारण बन सकता है।
यही कारण है कि, कई बार IoT में एक गलती को डीबग करना हमेशा आसान नहीं होता है।
Our Safety
सोचिए अगर कोई चतुर हैकर आपकी दवा के नुस्खे को बदल दे। या यदि कोई स्टोर स्वचालित रूप से आपको कोई ऐसा उत्पाद भेजता है जिससे आपको एलर्जी है, या ऐसा स्वाद जो आपको पसंद नहीं है, या कोई उत्पाद जो पहले ही समाप्त हो चु��ा है। नतीजतन, सुरक्षा अंततः उपभोक्ता के हाथों में सत्यापित करने के लिए है।
चूंकि सभी घरेलू उपकरण, औद्योगिक मशीनरी, सार्वजनिक क्षेत्र की सेवाएं जैसे जल आपूर्ति और परिवहन, और कई अन्य उपकरण सभी इंटरनेट से जुड़े हैं, इस पर बहुत सारी जानकारी उपलब्ध है। यह जानकारी हैकर्स द्वारा हमला करने की संभावना है। यह बहुत विनाशकारी होगा यदि अनधिकृत घुसपैठियों द्वारा निजी और गोपनीय जानकारी का उपयोग किया जाता है।
IoT हमारे लिए कई आश्चर्यजनक चीजें लेकर आया है और यह हमें कई क्षेत्रों में आश्चर्यचकित करता है: व्यवसाय, स्वास्थ्य सेवा, हमारा निजी जीवन। जहां तक कमियों का सवाल है, अब जब आप उनके बारे में अधिक जानते हैं, तो उन्हें नियंत्रण में रखने का प्रयास करें। अपने डेटा को सुरक्षित रखें और इस बात से अवगत रहें कि स्वचालन और आसान पहुंच आपको या आपके व्यवसाय को कैसे प्रभावित कर सकती है।
Inter Compatibility
जैसे-जैसे विभिन्न निर्माताओं के उपकरण एक-दूसरे से जुड़े होंगे, टैगिंग और निगरानी में संगतता की समस्या बढ़ जाती है। इस नुकसान को दूर किया जा सकता है यदि निर्माता एक सामान्य मानक बनाते हैं, लेकिन अभी भी एक संभावना है कि तकनीकी समस्याएं अभी भी बनी रह सकती हैं।
आजकल, हमारे पास वायरलेस-सक्षम डिवाइस हैं और इस तकनीक में भी संगतता समस्याएं अभी भी मौजूद हैं! संगतता के मुद्दों के परिणामस्वरूप लोग एक अलग निर्माता से उपकरण खरीद सकते हैं, जिससे बाजार में इसका एकाधिकार हो सकता है।
Lesser Employment of Menial Staff
गैर-शिक्षित श्रमिकों और सहायकों को दैनिक गतिविधियों के स्वचालन के प्रभाव के रूप में अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ सकता है। इससे समाज में बेरोजगारी पैदा हो सकती है।
यह किसी भी तकनीक के अत्यधिक जोखिम की समस्या है और इसे शिक्षा से दूर किया जा सकता है। दैनिक गतिविधियों के स्वचालित होने के साथ, स्वाभाविक रूप से, मानव श्रम की कम आवश्यकताएं होंगी, मुख्य रूप से, श्रमिक और कम शिक्षित कर्मचारी।
Technology Takes Control of Life
हमारा जीवन तेजी से प्रौद्योगिकी द्वारा नियंत्रित हो रहा है और इस पर निर्भर होगा। युवा पीढ़ी पहले से ही हर छोटे से छोटे काम के लिए तकनीक की आदी है। हमें यह तय करना होगा कि हम अपने दैनिक जीवन का कितना हिस्सा मशीनीकरण और प्रौद्योगिकी द्वारा नियंत्रित करने के लिए तैयार हैं।
आपकी कार यह पहचान सकती है कि आपको कुछ घटकों में समस्या है; यह तकनीशियन से संपर्क करता है और स्थान भेजता है, और आपके फोन पर एक संदेश भेजकर आपको सूचित भी करता है!
आपका अलार्म सुबह 6:30 बजे बजता है; तुम उठो और इसे बंद कर दो। जैसे ही आप अपना अलार्म बंद करते हैं, यह गीजर को आपके पसंदीदा तापमान पर पानी गर्म करने की सूचना देता है और कॉफी बनाने वाला भी कॉफी बनाना शुरू कर देता है!
आप काम से घर लौटते समय अपने रास्ते पर हैं और आप अपने मोबाइल पर एक ऐप का उपयोग करके अपने घर में लाइट, एसी और टीवी को अपने पसंदीदा चैनल पर ट्यून करते हैं ताकि आपका घर आपके स्वागत के लिए तैयार हो जाए। अपना दरवाजा खोलो!
क्या वास्तव में एक वाहन "स्मार्ट" होगा यदि यह मालिकों को सचेत कर सकता है जब उनका खाना उनकी समाप्ति तिथि तक पहुंचने वाला है, उदाहरण के लिए। या शायद यह एक ऑनलाइन कैलेंडर को संदर्भित कर सकता है और कुछ वस्तुओं को वितरित करने के लिए नियमित आधार पर आदेश दे सकता है।
Conclusion
चूंकि IoT के कुछ नुकसान हैं, इसलिए उपभोक्ता का समय और पैसा बचाने के इसके फायदों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। तो निकट भविष्य में, यह बहुत आम होगा जब इंटरनेट ऑफ थिंग्स दैनिक जीवन में रोजमर्रा के उपयोग में होगा। इसकी कमियों को दूर करने के प्रयास पहले से ही चल रहे हैं।
ये इंटरनेट ऑफ थिंग्स के कुछ ही फायदे हैं। ब्लॉग से हमने सीखा कि यह विभिन्न पहलुओं में जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाने की संभावनाओं को खोलता है। लेकिन यह जरूरी है कि हम इस तकनीक का सही तरीके से उपयोग करें ताकि यह तकनीक हमारे लिए सबसे अच्छा काम कर सके।
मेरे ब्लॉग को पढ़ने के लिए अपना बहुमूल्य समय देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। मैं वास्तव में इसकी सराहना करता हूं।
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Ladakh Igu Village Awarded For Conserving 85 Lakh Liters Of Water By Creating Artificial Glacier - कृत्रिम ग्लेशियर बनाकर विश्व के लिए मिसाल बना लद्दाख का इगू, थ्री ईडियट्स के असली 'रैंचो' ने दिया पुरस्कार
Ladakh Igu Village Awarded For Conserving 85 Lakh Liters Of Water By Creating Artificial Glacier – कृत्रिम ग्लेशियर बनाकर विश्व के लिए मिसाल बना लद्दाख का इगू, थ्री ईडियट्स के असली ‘रैंचो’ ने दिया पुरस्कार
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, जम्मू, Updated Tue, 21 Jul 2020 04:48 PM IST
ठंडे मरुस्थल और रूखे पहाड़ों के बीच बर्फ के स्तूप बनाकर लाखों लीटर पानी जमा कर लद्दाख के गांव फिर देश दुनिया के लिए मिसाल बने हैं। इस बार इगू गांव ने बेबी ग्लेशियर बनाकर 85 लाख लीटर पानी स्टोर किया है जबकि तरछित ने 83 लाख और फ्यांग ने 63 लाख लीटर क्षमता का कृत्रिम ग्लेशियर तैयार किया है। जल संरक्षण की इस तकनीक के जनक और…
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बीएयू के कुलपति डाॅ. अजय कुमार सिंह एवं कृषि सचिव डाॅ. एन श्रवण कुमार की अध्यक्षता में जल जीवन हरियाली के तहत माैसम के अनुकुल कृषि कार्यक्रम के तहत विभिन्न तकनीकी विकल्पाें की मदद से कृषि तकनीक का प्रदर्शन किया जा रहा है। केवीके सबाैर ने गाेराडीह प्रखंड के लाेगाई, दामुचक, तरछा, कासीमपुर, सरैया, एवं सन्हाैला प्रखंड के सकरामा गांव का इसके लिए चयन किया है। केवीके ने तरछा एवं कासिमपुर में धान की सीधी बुआई, मेड़ पर मक्के की खेती, जल संरक्षण आदि काे माेबाइल के माध्यम से कुलपति, कृषि सचिव, निदेशक प्रसार शिक्षा सहित स्टेट लेवल के 36 पदाध���कारियाें ने जीवंत रूप में देखा। वरीय वैज्ञानिक डाॅ. विनाेद कुमार ने खरीफ माैसम में किए जा रहे कार्याें के बारे में सचिव काे विस्तार से बताया। अब तक केवीके सबाैर के द्वारा 100 एकड़ किसानाें के खेत पर लेजर लैंड लेवलिंग किया जा चुका है। कार्यक्रम में डाॅ. हाेदा, डाॅ. एके माैर्या, इंजीनियर पंकज कुमार, डाॅ. आशीष चाैरसिया, अल्काज्याेति शर्मा भी माैजूद थे।
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