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Ayurvedic Fasting Tips: Janmashtami व्रत पर यूँ रखें शरीर, मन, और आत्मा को बैलेंस
Ayurvedic Fasting Tips: Janmashtami भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का उत्सव, भक्ति और उमंग से भरा होता है। इस दिन व्रत रखना सिर्फ एक धार्मिक परंपरा नहीं है, बल्कि यह शरीर और आत्मा को शुद्ध करने का तरीका भी है। लेकिन मानते हैं ना, व्रत रखना कभी-कभी थोड़ा challenging हो सकता है। “Fasting का नाम सुनते ही पेट में चूहे दौड़ने लगते हैं,” सही ��हा ना? लेकिन अगर हम कहें कि व्रत रखना आसान हो सकता है? कुछ…
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*🌞~ आज दिनांक - 24 सितम्बर 2024 का वैदिक हिन्दू पंचांग , सटीक पर आधारित ~🌞*
BY 🙏Akshay Jamdagni ✍️🌹
*⛅दिनांक - 24 सितम्बर 2024*
*⛅दिन - मंगलवार*
*⛅विक्रम संवत् - 2081*
*⛅अयन - दक्षिणायन*
*⛅ऋतु - शरद*
*⛅मास - आश्विन*
*⛅पक्ष - कृष्ण*
*⛅तिथि - सप्तमी दोपहर 12:38 तक तत्पश्चात अष्टमी*
*⛅नक्षत्र - मृगशिरा रात्रि 09:54 तक तत्पश्चात आर्द्रा*
*⛅योग - व्यतिपात रात्रि 01:27 सितम्बर 25 तक तत्पश्चात वरीयान*
*⛅राहु काल - दोपहर 03:33 से शाम 05:03 तक*
*⛅सूर्योदय - 06:32*
*⛅सूर्यास्त - 06:30*
*⛅दिशा शूल - उत्तर दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 04:54 से 05:41 तक*
*⛅अभिजीत मुहूर्त - दोपहर 12:07 से दोपहर 12:56 तक*
*⛅निशिता मुहूर्त- रात्रि 12:08 सितम्बर 25 से रात्रि 12:55 सितम्बर 25 तक*
*⛅ व्रत पर्व विवरण - सप्तमी श्राद्ध, महालक्ष्मी व्रत पूर्ण, कालाष्टमी, मासिक कृष्ण जन्माष्टमी, द्विपुष्कर योग (प्रातः 06:29 से दोपहर 12:38 तक)*
*⛅विशेष - सप्तमी को ताड़ का फल खाने से रोग बढ़ते हैं और शरीर का नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त प��राण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
*🔹तिल के तेल के औषधीय प्रयोग🔹*
*🔸१] तिल का सेवन १०-१५ मिनट तक मुँह में रखकर कुल्ला करने से शरीर पुष्ट होता है, होंठ नहीं फटते, कंठ नहीं सूखता, आवाज सुरीली होती है, जबड़ा व हिलते दाँत मजबूत बनते हैं और पायरिया दूर होता है ।*
*🔸२] ५० ग्राम तिल के तेल में १ चम्मच पीसी हुई सोंठ और मटर के दाने बराबर हींग डालकर गर्म किये हुए तेल की मालिश करने से कमर का दर्द, जोड़ों का दर्द, अंगों की जकड़न, लकवा आदि वायु के रोगों में फायदा होता है ।*
*🔸३] २०-२५ लहसुन की कलियाँ २५० ग्राम तिल के तेल में डालकर उबालें । इस तेल की बूँदे कान में डालने से कान का दर्द दूर होता है ।*
*🔸४] प्रतिदिन सिर में काले तिलों के शुद्ध तेल से मालिश करने से बाल सदैव मुलायम, काले और घने रहते हैं, बाल असमय सफेद नहीं होते ।*
*🔸५] ५० मि.ली. तिल के तेल में ५० मि.ली. अदरक का रस मिला के इतना उबालें कि सिर्फ तेल रह जाय । इस तेल से मालिश करने से वायुजन्य जोड़ों के दर्द में आराम मिलता है ।*
*🔸६] तिल के तेल में सेंधा नमक मिलाकर कुल्ले करने से दाँतों के हिलने में लाभ होता है ।*
*🔸७] घाव आदि पर तिल का तेल लगाने से वे जल्दी भर जाते हैं ।*
*🔹चार बातों को याद रखो🔹*
*🔸१] ब्रह्मनिष्ठ महापुरुषों व ज्ञानवृद्ध बड़े-बुजुर्गों का आदर करना ।*
*🔸२] छोटों की रक्षा करना और उन पर स्नेह करना ।*
*🔸३] सत्संगी बुद्धिमानों से सलाह लेना और*
*🔸४] मूर्खों के साथ नहीं उलझना ।*
*🔹नम्रता के तीन लक्षण🔹*
*🔸१] कडवी बात का मीठा जवाब देना ।*
*🔸२] क्रोध के अवसर पर भी चुप्पी साधना और*
*🔸३] किसीको दंड देना ही पड़े तो उस समय चित्त को कोमल रखना ।*
🙏Akshay Jamdagni ✍️🌹
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Sanatan Dharm ke Paras Guru Ji dvaara Aayujit Janmaashtami Mahotsav
संसार को गीता का उपदेश देने वाले कृष्ण के जन्म का महोत्सव
महंत पारस जी के अनुसार पुरातन सनातन धर्म में कई धार्मिक त्योहारों को सूचीबद्ध किया गया है,उन प्रमुख धार्मिक त्योहारों में से एक है जन्माष्टमी, जिसे कृष्ण अष्टमी और गोकुलाष्टमी के नाम से भी जानते हैं। यह हिन्दुओं के सबसे प्रतिष्ठित त्योहारों में एक है, जो विष्णु के आंठवे अवतार भगवान कृष्ण के जन्म का उत्सव मानते है। यह उत्सव जीवन में आनंद, भक्ति, सांस्कृतिक अभिव्यक्ति और जीवंतता का प्रतीक है।
यह कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है जो आमतौर पर अगस्त में आता है।
ऐतिहासिक एवं पौराणिक महत्व
भगवान् श्री कृष्ण हिन्दू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण देवताओं में से एक माने जाते हैं। हिन्दू वैष्णों धर्म में जन्माष्टमी का विशेष महत्त्व है। महंत पारस जी के अनुसार कृष्ण रास लीला की परंपरा जैसे कृष्ण के जन्म के समय मध्यरात्रि में जागरण करना, भक्ति गायन, नृत्य नाटक ,उपवास रखना जन्माष्टमी उत्सव के भाग हैं। कृष्ण देवकी और वासुदेव के आठवें पुत्र हैं। इनका जन्म मथुरा में भाद्रपद माह के आंठवे दिन की आधी रात को हुआ था। कृष्ण का जन्म अराजकता के समय हुआ था जब उनके मामा कंस द्वारा उनके जीवन के लिए संकट था। यह समय ऐसा था जब उनके मामा के द्वारा उत्पीड़न बड़े पैमाने पर था,और सब ओर बुराई फैली हुई थी
महंत पारस जी ने उल्लेख किया है की हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार श्री कृष्ण का जन्म मथुरा के काल कोठरी में आधी रात को हुआ था। कथा के अनुसार मथुरा के अत्याचारी साशक कृष्ण के मामा कंस के लिए एक भविष्यवाणी हुई थी की उसकी बहन देवकी का आठवां पुत्र उसकी मृत्यु का कारण बनेगा। इसलिए उसने अपनी बहन देवकी और जीजा वासुदेव को काल कोठरी में ��ंद कर दिया और उनके हर पुत्र की हत्या कर दी लेकिन उसके आठवें पुत्र श्री कृष्ण को नहीं मा�� सका क्युकी जैसे ही वो मारने के आगे बढ़ा वैसे ही शिशु से योगमाया प्रकट हुई और कहा की उसको मारने वाला जन्म ले चुका है और उसे किसी सुरक्षित स्थान पर पंहुचा दिया गया है जो आगे चलकर उसका वध करेगा। मथुरा के बंदीगृह में जन्म के तुरंत उपरान्त, उनके पिता वसुदेव आनकदुन्दुभि कृष्ण को यमुना पार ले जाते हैं, जिससे बाल श्रीकृष्ण को गोकुल में नन्द और यशोदा को दिया जा सके। इस खबर से मथुरावासियों के भीतर ख़ुशी की लहर दौड़ गयी और उसी दिन से जन्माष्टमी को बेहद उत्साह के साथ मनाया जाने लगा।
श्री कृष्ण के प्रारंभिक जीवन के बारे में दर्शाते है, उनके चंचल कारनामों और दैवीय चमत्कारों, भगवद् गीता सहित विभिन्न ग्रंथों में वर्णित हैं। सनातन धर्म के रक्षक के रूप में श्री कृष्ण की भूमिका और भक्ति, कर्तव्य और प्रेम पर उनकी अभिव्यक्तियाँ और चरित्र हिन्दू दर्शन का मूल हैं।
उत्सव अनुष्ठान और प्रथाएं
हिन्दू समुदायों की विविध सांस्कृतिक प्रथाओं को दर्शाते हुए, जन्माष्टमी समारोह भारत और दुनिया भर में व्यापक रूप से भिन्न होते हैं। हालांकि, सामान्य विषय और अनुष्ठान इन समारोहों को एकजुट करते हैं।
उपवास और प्रार्थना
महंत पारस जी के अनुयायी इस दिन व्रत रखते हैं, जो आमतौर पर सूर्योदय से शुरू होता है और अगले दिन आधी रात के उत्सव के बाद समाप्त होता है। यह व्रत भक्ति और तपस्या का प्रतीक है, जो अनुयायियों को अपनी आध्यात्मिक प्रथाओं पर ध्यान केंद्रित करने की अनुमति देता है। व्रत के दौरान, भक्त प्रार्थना, जप और कृष्ण के जीवन से सम्बंधित ग्रंथों को पढ़ने में, भजन कीर्तन करने में संलग्न होते हैं।
आधी रात का जश्न
जन्माष्टमी का मुख्य आकर्षण आधी रात का उत्सव है, जो कृष्ण के जन्म के सही समय को दर्शाता है। मंदिरों और घरों को फूलों, रौशनी और रंगीन सजावट से सजाया जाता है। उनकी प्रार्थनाएं और भजन गायें जाते हैं,और कृष्ण की छवियों और मूर्तियों को स्न्नान कराया जाता है, सुन्दर सुन्दर कपडे पहनाएं जाते हैं और एक सुन्दर से सजाये गए पालने में रखा जाता है।
भक्त भक्ति गीत गाने, नृत्य करने और कृष्ण के बचपन के कारनामों की पुनरावृत्ति में भाग लेने के लिए इक्कठा होते हैं।
दही हांडी
जन्माष्टमी के सबसे जीवंत और लोकप्रिय पहलुओं में से एक दही हांडी परंपरा है, जो विशेष रूप से महा��ाष्ट्र और भारत के अन्य क्षेत्रों में मनाई जाती है। इस परंपरा में दही, मक्खन और अन्य वस्तुओं से भरी हुई एक मिटटी की हांडी को जमीन से ऊपर लटकाया जाता है। युवा टीम जिन्हे गोविंदा के नाम से जाना जाता है, हांडी तक पहुंचने और उसे तोड़ने के लिए मानव पिरामिड बनाते हैं। यह कृत्य कृष्ण के मक्खन के प्रति प्रेम और उनके शरारती स्वाभाव का प्रतीक है, जो उनकी चंचल भावना और एक नेता और रक्षक के रूप में उनकी भूमिका को दर्शाता है।
कृष्ण जन्माष्टमी के अगले दिन महंत पारस जी के द्वारा दही हांडी का समारोह आयोजन कराई जाती है, लोग दही हांडी तोड़ते हैं जो त्यौहार का एक भाग है। दही हांडी का शाब्दिक अर्थ है दही से भरा मिट्टी का पात्र। दही हांडी के अनुसार श्री कृष्ण अपने सखाओं सहित दही ओर मक्खन जैसे दूध के उत्पादों को ढूंढ कर और चुराकर बाँट देते थे। इसलिए लोग अपने घरों में माखन और दूध की हांडी बालकों की पहुंच से बाहर छिपा देते थे और कृष्ण अपने सखाओं के साथ ऊँचे लटकती हांडियों को तोड़ने के लिए सूच्याकार स्तम्भ बनाते थे। भगवान् कृष्ण की यह लीला भारत भर में हिन्दू मंदिरों के हस्तशिल्पों में, साथ साथ साहित्य में और नृत्य नाटक में प्रदर्शित की जाती है जो बालकों के आनंद और भोलेपन का प्रतीक है।
कृष्ण लीला प्रदर्शन
कृष्ण के जीवन के विभिन्न नाट्य रूपांतरण, जिन्हे कृष्ण लीला के नाम से जाना जाता है, जन्माष्टमी के दौरान प्रदर्शित किये जाते हैं। इन प्रदर्शनों में उनके बचपन के चमत्कारों , राक्षसों के साथ उनकी लड़ाई और महाभारत में उनकी भूमिका का पुनर्मूल्यांकन शामिल है। इन नाटकों का मंचन अक्सर सामुदायिक स्थानों और मंदिरों में किया जाता है, जो बड़ी संख्या में दर्शकों को आकर्षित करते हैं, मनोरंजन और आध्यात्मिक संवर्धन दोनों प्रदान करते हैं।
क्षेत्रीय विविधताएं
हिन्दू संस्कृति की विविधता को प्रदर्शित करते हुए, जन्माष्टमी को विशिष्ट क्षेत्रीय स्वादों के साथ मनाया जाता है। हर क्षेत्र और जगह का अपना महत्व है, विविधताएं है। हर क्षेत्र में कृष्ण के अलग अलग नाम हैं, विभिन्न क्षेत्रों में पूजा व्रत की अलग अलग विधियां हैं। लोग इस दिन पवित्रता बनाये रखने के लिए विभिन्न धार्मिक कृत्यों का पालन करते हैं। जिनमे विशेषरूप से रात्रि जागरण, पूजा अर्चना, और भजन कीर्तन शामिल हैं।
इन सभी विभिन्न परम्पराओं और अनोखे तरीकों से जन्माष्टमी मानाने का उद्देश्य भगवान श्री की उपस्थिति और उनकी बाल लीलाओं की याद ताज़ा करना होता है। जन्माष्टमी को त्यौहार न सिर्फ धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक एकता और विविधता का भी प्रतीक है।
मथुरा और वृन्दावन
ब्रज क्षेत्र में कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा और उनका बचपन का घर वृन्दावन, जन्माष्टमी समारोह के केंद्र हैं। मथुरा वृन्दावन में जन्माष्टमी की शोभा कुछ अलग ही देखने को मिलती है उत्सव में भाग ��ेने के लिए भारत और दुनिया के कोनों कोनों से तीर्थयात्री इन शहरों में आते हैं। मथुरा में कृष्ण जन्माष्टमी समारोह विशेष रूप से भव्य होते हैं जिसमे जुलुस, भक्ति गायन और विस्तृत अनुष्ठान होते हैं। वृन्दावन अपनी जीवंत उत्सवों के लिए प्रसिद्ध है, जिसमे कृष्ण की अपने भक्तों के साथ चंचल बातचीत की पुनरावृत्ति भी शामिल है।
पंजाब/हरयाणा
हरियाणा के (शाहाबाद मारकंडा) में महंत श्री पारस जी द्वारा डेरा नसीब दा में कृष्ण जन्माष्टमी बड़े पैमाने पर मनाई जाती है | पंजाब में जन्माष्टमी उत्साह और उमंग के साथ मनाई जाती है। यह त्यौहार भक्ति पूर्ण गायन, नृत्य और भजनों के गायन द्वारा चिन्हित है। गुरूद्वारे भी उत्सव में भाग लेते हैं, जो क्षेत्र में विभिन्न धार्मिक परम्पराओं के सामंजस्य पूर्ण सह अस्तित्व को उजागर करते हैं। जन्माष्टमी पर विशेष रूप से खिचड़ी का प्रसाद बनाया जाता है। इस दिन मंदिरों में खिचड़ी का वितरण किया जाता है , इसे बड़े श्रद्धा भाव से तैयार किया जाता है और सभी भक्तो के बिच प्रसाद रूप वितरित किया जाता है|
गुजरात / राजस्थान
गुजरात में, जन्माष्टमी को धुलेटी के नाम से जाना जाता है। उत्सव में विशेष प्रार्थनाएं, पारम्परिक नृत्य और उत्सव के भोजन की तैयारी शामिल है। यह क्षेत्र अपनी रंग बिरंगे जुलूसों और विस्तृत सजावट के लिए भी जाना जाता है, जो त्यौहार की ख़ुशी की भावना को दर्शाता है।
आध्यात्मिक और सांस्कृतिक प्रभाव
जन्माष्टमी का गहरा आध्यात्मिक महत्व है, जो दैवीय शक्ति और धार्मिकता की जीत का प्रतिनिधित्व करता है। भगवद गीता में वर्णित कृष्ण की शिक्षाएँ कर्तव्य, भक्ति और आत्मा की शाश्वत प्रकृति के महत्व पर जोर देती हैं। ये शिक्षाएँ लाखों अनुयायियों को प्रेरित और मार्गदर्शन करती रहती हैं।
सांस्कृतिक रूप से, जन्माष्टमी जीवन, कला और परंपरा के एक जीवंत उत्सव के ���ूप में कार्य करती है। यह त्यौहार समुदायों को एक साथ लाता है, एकता और साझा खुशी की भावना को बढ़ावा देता है। विभिन्न अनुष्ठान और प्रदर्शन न केवल कृष्ण की दिव्य उपस्थिति का जश्न मनाते हैं बल्कि सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित और बढ़ावा भी देते हैं।
आधुनिक अनुकूलन और वैश्विक उत्सव
हाल के वर्षों में, दुनिया के विभिन्न हिस्सों में होने वाले उत्सवों के साथ, जन्माष्टमी ने भौगोलिक सीमाओं को पार कर लिया है। संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में हिंदू समुदाय भक्ति और उत्साह के साथ जन्माष्टमी मनाते हैं। इन देशों में मंदिर और सांस्कृतिक संगठन भजन सत्र, सांस्कृतिक प्रदर्शन और कृष्ण के जीवन और शिक्षाओं के बारे में शैक्षिक कार्यक्रमों सहित कार्यक्रमों की मेजबानी करते हैं।
जन्माष्टमी की वैश्विक पहुंच हिंदू परंपराओं के प्रति बढ़ती सराहना और कृष्ण की शिक्षाओं की सार्वभौमिक अपील को दर्शाती है। लाइव-स्ट्र��म किए गए कार्यक्रमों, सोशल मीडिया अभियानों और दुनिया भर के भक्तों को जोड़ने वाले ऑनलाइन मंचों के साथ आधुनिक तकनीक ने भी त्योहार के प्रभाव को बढ़ाने में भूमिका निभाई है।
1. धार्मिक महत्व: जन्माष्टमी कृष्ण के जन्म का प्रतीक है, जो पुरे संसार मे एक दिव्य नायक और धार्मिकता के प्रतीक के रूप में पूजनीय हैं। उनकी शिक्षा और जीवन भगवद गीता सहित विभिन्न हिंदू दर्शन और ग्रंथों का केंद्र हैं, जो आध्यात्मिक मार्गदर्शन और नैतिक शिक्षा प्रदान करता है।
2. नैतिक और नीतिपरक पाठ: कृष्ण के जीवन को सदाचारी और संतुलित जीवन जीने के मार्गदर्शक के रूप में देखा जाता है। उनके कार्य और सनातन धर्म शिक्षा (कर्तव्य/धार्मिकता), कर्म (कार्य और उसके परिणाम), और भक्ति की अवधारणाओं को संबोधित करते हैं। जन्माष्टमी का उत्सव इन सिद्धांतों की याद दिलाता है।
3. आध्यात्मिक नवीनीकरण: भक्तों के लिए, जन्माष्टमी आध्यात्मिक नवीनीकरण और भक्ति का एक अवसर है। बहुत से लोग कृष्ण का सम्मान करने और उनका आशीर्वाद पाने के लिए उपवास करते हैं, मंदिर सेवाओं में भाग लेते हैं, और प्रार्थना और ध्यान में संलग्न होते हैं।
4. बुराई पर अच्छाई का प्रतीक: माना जाता है कि कृष्ण का जन्म दुनिया को बुराई से छुटकारा दिलाने और सनातन धर्म की बहाली के लिए हुआ था। जन्माष्टमी का उत्सव बुराई पर अच्छाई की जीत और धार्मिकता को बनाए रखने के लिए चल रहे संघर्ष का प्रतीक है।
कृष्ण का चरित्र चित्रण
श्री कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं , जो तीनो लोक के तीन गुणों सतगुण रजोगुण और तमोगुण में से सतगुण के स्वामी हैं। श्री कृष्ण को जन्म से सभी सिद्धियां उयस्थित थी। कालांतर में उन्हें युगपुरुष कहा गया। उन्होंने ही महाभारत के युद्ध में अर्जुन के सारथि और सम्पूर्ण संसार को गीता के ज्ञान दिया था, इस उपदेश के लिए कृष्ण को जगतगुरु का सम्मान दिया जाता है। संसार में कृष्ण के किरदार को शब्दों में बयां नहीं कर सकते वो एक निष्काम कर्मयोगी, आदर्श दार्शनिक , स्थितप्रज्ञ एवं दैवी सम्पदाओं से सुसज्जित महान पुरुष थे।
निष्कर्ष
जन्माष्टमी सिर्फ एक त्योहार ही नहीं त्यौहार से कहीं अधिक है; यह दिव्य प्रेम, धार्मिकता और सांस्कृतिक विरासत का उत्सव है। अपने जीवंत अनुष्ठानों, आनंदमय उत्सवों और गहरे आध्यात्मिक महत्व के माध्यम से, जन्माष्टमी सभी पृष्ठभूमि के लोगों को भगवान कृष्ण के प्रति भक्ति और श्रद्धा की साझा अभिव्यक्ति में एक साथ लाती है। जैसे ही हम इस शुभ अवसर का जश्न मनाते हैं, हमें कृष्ण की कालजयी शिक्षा और प्रेम, करुणा और धार्मिकता के स्थायी मूल्यों की याद आती है जो मानवता को प्रेरित करते रहते हैं। कुल मिलाकर, जन्माष्टमी केवल कृष्ण क�� जन्म का उत्सव नहीं है, बल्कि उनकी शिक्षा और एक सार्थक और नैतिक जीवन जीने में उनकी प्रासंगिकता पर विचार करने का एक अवसर भी है।
भगवान कृष्ण की दिव्य कृपा हम सभी पर बनी रहे और जन्माष्टमी की भावना हमारे दिलों को खुशी और भक्ति से भर दे।
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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की आप सभी को ढेरों शुभकामनायें
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व आज, जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
कान्हा जी भगवान विष्णु के आठवें अवतार हैं। उनकी अद्भुत लीलाओं का वर्णन आज भी उनके भक्तों के जुबान पर है। यह दिव्य त्योहार श्री कृष्ण के जन्मोत्सव का प्रतीक है। हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल यह पर्व (Krishna Janmashatami 2024 Subh Muhurat) 26 अगस्त को मनाया जाएगा तो आइए इसकी पूजा विधि मंत्र और पूजन का समय जानते हैं।
जन्माष्टमी का पर्व बेहद शुभ माना जाता है।
कान्हा जी भगवान विष्णु के आठवें अवतार हैं।
इस साल जन्माष्टमी 26 अगस्त 2024 को मनाई जाएगी
जन्माष्टमी के पर्व को बहुत शुभ माना जाता है। यह त्योहार भगवान कृष्ण को समर्पित है। हिंदू पंचांग के अनुसार, 2024 वर्ष में जन्माष्टमी 26 अगस्त को मनाई जाएगी। ऐसी मान्यता है कि इस दिन (Janmashatami 2024 Subh Muhurat) सच्चे भाव के साथ कान्हा जी की पूजा-अर्चना करने से सुख और शांति की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन में शुभता का आगमन होता है।
करियर में सफलता प्राप्ति के लिए कान्हा जी को अर्पित करें प्रिय फूल, पूजा होगी सफल
जन्माष्टमी का पर्व कान्हा जी को समर्पित है। मान्यता है कि जन्माष्टमी (Janmashtami 2024) पर विधिपूर्वक कान्हा जी की उपासना और व्रत करने से साधक को अक्षय फल की प्राप्ति होगी। साथ ही प्रभु प्रसन्न होंगे। इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे जन्माष्टमी से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण नियम जिनका पालन करने से आप करियर में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
भाद्रपद माह में जन्माष्टमी मनाई जाती है।
इस अवसर पर लड्डू गोपाल का अभिषेक किया जाता है।
प्रभु को प्रिय फूल अर्पित करने चाहिए।
Janmashtami 2024: धार्मिक मान्यता है कि भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण का अवतरण हुआ था। इसलिए इस तिथि पर हर साल जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष यह त्योहार आज यानी 26 अगस्त को है। ऐसा माना जाता है कि पूजा के दौरान लड्डू गोपाल को प्रिय फूल अर्पित करने से साधक का जीवन सदैव खुशहाल रहता है और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। ऐसे में आइए जानते हैं प्रभु को कौन से फूल चढ़ाने चाहिए ?
जन्माष्टमी 2024 पूजा शुभ मुहूर्त (Janmashtami 2024 Puja Time)
पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत 26 अगस्त को मध्य रात्रि 03 बजकर 39 मिनट पर शुरू हो गई है। साथ ही इस तिथि का समापन 27 अगस्त को मध्य रात्रि 02 बजकर 19 पर समाप्त होगा। ऐसे में जन्माष्टमी व्रत आज यानी 26 अगस्त को किया जाएगा। कान्हा जी की पूजा करने का शुभ मुहूर्त 27 अगस्त की रात्रि 12 बजकर 01 मिनट से 12 बजकर 45 मिनट तक है।
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Aaj Ka Panchang, 26 August: जानिए सोमवार 26 अगस्त का पंचांग, राहुकाल और शुभ मुहूर्त
26 August 2024 Ka Panchang: 26 अगस्त को भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि और सोमवार का दिन है। अष्टमी तिथि सोमवार देर रात 2 बजकर 20 मिनट तक रहेगी। 26 अगस्त को दोपहर बाद 3 बजकर 55 मिनट से मंगलवार सुबह 5 बजकर 39 मिनट तक सर्वार्थसिद्धि योग रहेगा। साथ ही सोमवार को दोपहर बाद 3 बजकर 55 मिनट तक कृत्तिका नक्षत्र रहेगा। इसके अलावा 26 अगस्त को श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत और कालाष्टमी है। 26 अगस्त 2024 का…
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भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि और सोमवार का दिन है। अष्टमी तिथि सोमवार देर रात 2 बजकर 20 मिनट तक रहेगी। 26 अगस्त को दोपहर बाद 3 बजकर 55 मिनट से मंगलवार सुबह 5 बजकर 39 मिनट तक सर्वार्थसिद्धि योग रहेगा। साथ ही सोमवार को दोपहर बाद 3 बजकर 55 मिनट तक कृत्तिका नक्षत्र रहेगा। इसके अलावा 26 अगस्त को श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत और कालाष्टमी है।
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Janmashtami 2024: जन्माष्टमी पर राशि के अनुसार श्री कृष्ण को पहनाएं ये कपड़े, प्रसन्न होंगे भगवान कृष्णJanmashtami 2024: हर साल भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन लड्डू गोपाल की पूजा की जाती है और व्रत रखने का विधान है।
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जन्माष्टमी व्रत की विधि और महत्व
जन्माष्टमी व्रत की विधि और महत्व हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। यह व्रत भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में किया जाता है, जो भाद्रपद माह की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है।यह व्रत भक्तों को भगवान श्रीकृष्ण के ��्रति अपनी भक्ति और श्रद्धा प्रकट करने का अवसर प्रदान करता है। व्रत रखने से मन की शुद्धि, आत्मिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति होती है। वैकुंठ के ज़रिए आप पंडित जी को ऑनलाइन बुक कर सकते हैं जो कि यह सुनिश्चित करेंगे कि आपका जन्माष्टमी व्रत और पूजा विधिपूर्वक सम्पन्न हो।
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Dhaniya panjiri
०Dhaniya panjiri recipe प्रसाद फलाहार व्रत में यह ही खाई जाती है सामान्यत पंजीरी आटे की होने के कारण फलहार व्रत में प्रसाद के रूप में नहीं ली जाती व्रत करने वाले लोग व्रत खोलते समय पहले इस पंजीरी को खाकर ही अपना व्रत खोलते हैं ।०धनिया पंजीरी विशेष रुप से जन्माष्टमी के दिन फलाहार व्रत खोलने में भी खाई जाती है । वैसे आप धनिया की पंजीरी कभी भी बनाकर खा सकते है ये बहुत स्वादिष्ट और पौष्टिक…
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*🌞~ आज दिनांक - 27 जुलाई 2024 का वैदिक और सटीक हिन्दू पंचांग ~🌞*
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*⛅दिन - शनिवार*
*⛅विक्रम संवत् - 2081*
*⛅अयन - दक्षिणायन*
*⛅ऋतु - वर्षा*
*⛅मास - श्रावण*
*⛅पक्ष - कृष्ण*
*⛅तिथि - सप्तमी रात्रि 09:19 तक तत्पश्चात अष्टमी*
*⛅नक्षत्र - रेवती दोपहर 01:00 तक तत्पश्चात अश्विनी*
*⛅योग - धृति रात्रि 10:44 तक तत्पश्चात शूल*
*⛅राहु काल - प्रातः 09:27 से प्रातः 11:07 तक*
*⛅सूर्योदय - 06:08*
*⛅सूर्यास्त - 07:24*
*⛅दिशा शूल - पूर्व दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 04:43 से 05:25 तक*
*⛅ अभिजीत मुहूर्त - दोपहर 12:20 से दोपहर 01:13*
*⛅निशिता मुहूर्त- रात्रि 12:25 जुलाई 28 से रात्रि 01:08 जुलाई 28 तक*
*⛅ व्रत पर्व विवरण - कालाष्टमी, मासिक कृष्ण जन्माष्टमी*
*⛅विशेष - सप्तमी को ताड़ का फल खाने से रोग बढ़ते हैं और शरीर का नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
*🌹शनिवार के दिन विशेष प्रयोग*
*🌹 'ब्रह्म पुराण' के 118 वें अध्याय में शनिदेव कहते हैं - 'मेरे दिन अर्थात् शनिवार को जो मनुष्य नियमित रूप से पीपल के वृक्ष का स्पर्श करेंगे, उनके सब कार्य सिद्ध होंगे तथा मुझसे उनको कोई पीड़ा नहीं होगी । जो शनिवार को प्रातःकाल उठकर पीपल के वृक्ष का स्पर्श करेंगे, उन्हें ग्रहजन्य पीड़ा नहीं होगी ।' ( ब्रह्म पुराण )*
*🌹शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष का दोनों हाथों से स्पर्श करते हुए 'ॐ नमः शिवाय' मन्त्र का 108 बार जप करने से दुःख, कठिनाई एवं ग्रहदोषों का प्रभाव शांत हो जाता है । ( ब्रह्म पुराण )*
*🌹हर शनिवार को पीपल की जड़ में जल चढ़ाने और दीपक जलाने से अनेक प्रकार के कष्टों का निवारण होता है । (पद्म पुराण)*
*🔹आर्थिक कष्ट निवारण हेतु🔹*
*🔹एक लोटे में जल, दूध, गुड़ और काले तिल मिलाकर हर शनिवार को पीपल के मूल में चढ़ाने तथा ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ’ मंत्र जपते हुए पीपल की ७ बार परिक्रमा करने से आर्थिक कष्ट दूर होता है ।*
*🔹जो लोग शनिवार को क्षौर कर्म कराते हैं उनके आयुष्य क्षीण होता है, अकाल मृत्यु अथवा दुर्घटना का भय रहेगा।*
*🔹बरकत लाने व सुखमय वातावरण बनाने हेतु*
*🔹जिस घर में भगवान का, ब्रह्मवेत्ता संत का चित्र नहीं है वह घर स्मशान है । जिस घर में माँ-बाप, बुजुर्ग व बीमार का खयाल नहीं रखा जाता उस घर से लक्ष्मी रूठ जाती है । बिल्ली, बकरी व झाड़ू कि धूलि घर में आने से बरकत चली जाती है । गाय के खुर कि धूलि से, सुहृदयता से
, ब्रह्मज्ञानी सत्पुरुष के सत्संग से घर का वातावरण स्वर्गमय, सुखमय, मुक्तिमय हो जाता है ।*
🙏अपने सनातनी भाइयों को यह ज्यादा से ज्यादा शेयर करें और धर्म लाभ कमाए🙏
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राधा अष्टमी के मौके पर भुईमाड़ क्षेत्र में आयोजित हुआ सुंदरकांड पाठ
भुईमाड़। कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था और इसी तिथि की शुक्ल पक्ष में राधारानी का जन्म हुआ था। राधाष्टमी का पर्व कृष्ण जन्माष्टमी के ठीक 15 दिन बाद मनाया जाता है। हर वर्ष राधाष्टमी का पर्व भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को राधाष्टमी का पर्व मनाया जाता है। राधाष्टमी का पर्व बरसाने, मथुरा, वृंदावन समेत पूरे ब्रज में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन ब्रजवासी व्रत…
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*🚩🔱ॐगं गणपतये नमः 🔱🚩*
🌹 *सुप्रभात जय श्री राधे राधे*🌹
📖 *आज का पंचांग, चौघड़िया व राशिफल (अष्टमी तिथि, कृष्ण जन्माष्टमी पर्व)*📖
※══❖══▩राधे राधे▩══❖══※
#वास्तु_ऐस्ट्रो_टेक_सर्विसेज_टिप्स
#हम_सबका_स्वाभिमान_है_मोदी
#योगी_जी_हैं_तो_मुमकिन_है
#देवी_अहिल्याबाई_होलकर_जी
#योगी_जी
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#kedarnath
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#rajasthan
#hinduism
*सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु के अवतार योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव श्री कॄष्ण जन्माष्टमी की आपको तथा आपके परिवार को हार्दिक अनन्त शुभकामनाएं🚩*
।। राधे राधे।।
दिनांक :-07-सितम्बर-2023
वार:--------गुरुवार
तिथी :-------08अष्टमी:-16:15
पक्ष :---------कृष्णपक्ष
माह:--------भाद्रपद
नक्षत्र :--------रोहिणी:-10:25
योग:---------वज्र:-22:02
करण:--------कोलव:-16:15
चन्द्रमा:------वृषभ23:13/मिथुन
सुर्योदय:-------06:24
सुर्यास्त:--------18:48
दिशा शूल--------दक्षिण
निवारण उपाय:----राई का सेवन
ऋतु :------------------शरद ऋतु
गुलीक काल:---09:28से 11:02
राहू काल:-------14:08से15:42
अभीजित-------12:00से12:50
विक्रम सम्वंत .........2080
शक सम्वंत ............1945
युगाब्द ..................5125
सम्वंत सर नाम:-पिंगल
🌞चोघङिया दिन🌞
शुभ:-06:24से07:58तक
चंचल:-11:02से12:36तक
लाभ:-12:36से14:10तक
अमृत:-14:10से15:44तक
शुभ:-17:14से18:48तक
🌗चोघङिया रात🌓
अमृत:-18:48से20:14तक
चंचल:-20:14से21:40तक
लाभ:-00:36से02:02तक
शुभ:-03:32से04:58तक
अमृत:-04:58से06:24तक
आज के विशेष योग
वर्ष का169वा दिन, श्री जम्भोजी जयंती, विश्नोई पंथ, मन्वादि, श्री कृष्ण जन्माष्टमी (वैष्णव), गोपालकाला, श्री जयंती, (रामानुज) मृत्युयोग 10:25 से 30:17तक, रोहिणी व्रत (जैन),
🙏🪷वास्तु टिप्स🪷🙏
घर में कपडो को बिखेर के ना रखे।
सुविचार
जब तक संसार में आसक्ति है, तब तक भगवान् में असली प्रेम नहीं है।👍 राधे राधे...
*💊💉आरोग्य उपाय🌱🌿*
*माइग्रेन के निदान के घरेलू उपाय -*
- प्राकृतिक चिकित्सकों के अनुसार, नाक से कुछ दिनों तक नियमित भाप लिया जाए, तो माइग्रेन ठीक हो सकता है।
- सिर, गर्दन और कंधों की मालिश कराएं।
- सिर, माथे और गर्दन पर तौलिया में बर्फ रखकर सिंकाई करें, आराम मिलेगा।
⚜ *तिथि विशेष :-*
*श्री कृष्ण जन्माष्टमी -*
श्री कृष्णजन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण का जनमोत्स्व है। योगेश्वर कृष्ण के भगवद गीता के उपदेश अनादि काल से जनमानस के लिए जीवन दर्शन प्रस्तुत करते रहे हैं। जन्माष्टमी भारत में हीं नहीं बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी इसे पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं। श्रीकृष्ण ने अपना अवतार भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में लिया। चूंकि भगवान स्वयं इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे अत: इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं।
* भगवान श्रीकृष्ण ही थे, जिन्होंने अर्जुन को कायरता से वीरता, विषाद से प्रसाद की ओर जाने का दिव्य संदेश श्रीमदभगवदगीता के माध्यम से दिया।
* कालिया नाग के फन पर नृत्य किया, विदुराणी का साग खाया और गोवर्धन पर्वत को उठाकर गिरिधारी कहलाये।
* समय पड़ने पर उन्होंने दुर्योधन की जंघा पर भीम से प्रहार करवाया, शिशुपाल की गालियाँ सुनी, पर क्रोध आने पर सुदर्शन चक्र भी उठाया।
* अर्जुन के सारथी बनकर उन्होंने पाण्डवों को महाभारत के संग्राम में जीत दिलवायी।
* सोलह कलाओं से पूर्ण वह भगवान श्रीकृष्ण ही थे, जिन्होंने मित्र धर्म के निर्वाह के लिए ग़रीब सुदामा के पोटली के कच्चे चावलों को खाया और बदले में उन्हें राज्य दिया।
*🐏🐂 राशिफल🐊🐬*
🐏 *राशि फलादेश मेष :-*
*(चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, आ)*
लेनदारी वसूल करने के प्रयास सफल रहेंगे। व्यावसायिक यात्रा मनोनुकूल रहेगी। भा��्य का साथ रहेगा। कारोबार में वृद्धि होगी। समय पर कर्ज चुका पाएंगे। नौकरी में उच्चाधिकारी की प्रसन्नता प्राप्त होगी। शेयर मार्केट, म्युचुअल फंड इत्यादि से लाभ होगा। वाणी पर नियंत्रण रखें। जल्दबाजी न करें।
🐂 *राशि फलादेश वृष :-*
*(ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो)*
शारीरिक कष्ट संभव है। पारिवारिक समस्या से चिंता बढ़ सकती है। नई आर्थिक नीति बन सकती है। कार्यस्थल पर सुधार व परिवर्तन से भविष्य में लाभ होगा। सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। पार्टनरों का सहयोग कार्य में गति प्रदान करेगा। शत्रु सक्रिय रहेंगे। पुराना रोग उभर सकता है।
👫 *राशि फलादेश मिथुन :-*
*(का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, ह)*
धार्मिक कार्य में मन लगेगा। कोर्ट व कचहरी के कार्य मनोनुकूल रहेंगे। लाभ के अवसर हाथ आएंगे। भाग्य का साथ मिलेगा। व्यापार-व्यवसाय लाभदायक रहेगा। नौकरी में उन्नति होगी। निवेशादि करने का मन बनेगा। विवेक से कार्य करें, लाभ होगा। शत्रु सक्रिय रहेंगे। परिवार की चिंता बनी रहेगी।
🦀 *राशि फलादेश कर्क :-*
*(ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)*
कीमती वस्तुएं संभालकर रखें। लेन-देन में जल्दबाजी न करें। धनागम होगा। प्रतिद्वंद्वी अपना रास्ता छोड़ देंगे। वाहन व मशीनरी के प्रयोग में सावधानी रखें। किसी भी प्रकार के झगड़ों में न पड़ें। वाणी पर नियंत्रण रखें। जोखिम व जमानत के कार्य टालें। व्यवसाय ठीक चलेगा। आय में निश्चितता रहेगी।
🦁 *राशि फलादेश सिंह :-*
*(मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)*
संपत्ति की खरीद-फरोख्त में सफलता मिलेगी। स्थायी संपत्ति की दलाली बड़ा लाभ दे सकती है। रोजगार प्राप्ति के प्रयास सफल रहेंगे। उन्नति के मार्ग प्रशस्त होंगे। सभी ओर से खुश खबरें प्राप्त होंगी। पारिवारिक चिंता रहेगी। अज्ञात भय सताएगा। जोखिम व जमानत के कार्य टालें।
👩🏻🦰 *राशि फलादेश कन्या :-*
*(ढो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)*
व्यापार-व्यवसाय लाभदायक रहेगा। भूमि व भवन संबंधी कार्य लाभदायक रहेंगे। ऐश्वर्य के साधनों पर व्यय होगा। आय के साधनों में वृद्धि होगी। भाग्योन्नति के प्रयास सफल रहेंगे। नौकरी में उच्चाधिकारी प्रसन्न रहेंगे। शेयर मार्केट व म्युचुअल फंड में निवेश लाभदायक रहेगा।
⚖ *राशि फलादेश तुला :-*
*(रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)*
व्यावसायिक यात्रा सफल रहेगी। बकाया वसूली के प्रयास सफल रहेंगे। लाभ के अवसर हाथ आएंगे। व्यापार-व्यवसाय ठीक चलेगा। निवेश शुभ रहेगा। नौकरी में संतोष रहेगा। पार्टी व पिकनिक का आनंद मिलेगा। विद्यार्थी वर्ग सफलता हासिल करेगा। शारीरिक कष्ट संभव है।
�� *राशि फलादेश वृश्चिक :-*
*(तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)*
प्रेम-प्रसंग में अनुकूलता रहेगी। पुराना रोग उभर सकता है। दु:खद समाचार प्राप्त हो सकता है। विवाद से क्लेश संभव है। जोखिम व जमानत के कार्य टालें। कीमती वस्तुएं संभालकर रखें। किसी अपरिचित व्यक्ति पर अतिविश्वास न करें। व्यवसाय ठीक चलेगा। आय बनी रहेगी।
🏹 *राशि फलादेश धनु :-*
*(ये, यो, भा, भी, भू, धा, फा, ढा, भे)*
कानूनी अड़चन सामने आएगी। अज्ञात भय सताएगा। व्यावसायिक यात्रा सफल रहेगी। प्रयास सफल रहेंगे। पराक्रम बढ़ेगा। सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। जोखिम उठाने का साहस कर पाएंगे। भाग्य का साथ मिलेगा। नौकरी में उच्चाधिकारी प्रसन्न रहेंगे। शेयर मार्केट मनोनुकूल लाभ देंगे।
🐊 *राशि फलादेश मकर :-*
*(भो, जा, जी, खी, खू, खे, खो, गा, गी)*
स्वास्थ्य का ध्यान रखें। किसी व्यक्ति के व्यवहार से स्वाभिमान को ठेस पहुंच सकती है। घर में अतिथियों का आगमन होगा। शुभ समाचार प्राप्त होंगे। नौकरी में अधिकार मिल सकते हैं। शेयर मार्केट से लाभ होगा। बाहर जाने का मन बनेगा। बड़ा काम करने की योजना बनेगी। लाभ होगा।
🏺 *राशि फलादेश कुंभ :-*
*(गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)*
सुख के साधनों पर व्यय होगा। व्यावसायिक यात्रा सफल रहेगी। व्यापार-व्यवसाय मनोनुकूल लाभ देगा। निवेश शुभ रहेगा। अप्रत्याशित लाभ हो सकता है। सट्टे व लॉटरी से दूर रहें। नौकरी में प्रमोशन मिल सकता है। चोट व रोग से बचें। यश बढ़ेगा। बेचैनी रहेगी। जल्दबाजी न करें।
🐡 *राशि फलादेश मीन :-*
*(दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)*
शारीरिक कष्ट से बाधा संभव है। अप्रत्याशित खर्च सामने आएंगे। वाणी पर नियंत्रण रखें। हल्की हंसी-मजाक न करें। किसी अपरिचित व्यक्ति पर भरोसा न करें। चिंता तथा तनाव रहेंगे। लेन-देन में जल्दबाजी न करें। व्यवसाय ठीक चलेगा। आय बनी रहेगी।
※══❖═══▩राधे राधे▩═══❖══※
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Janmashtami 2023: जन्माष्टमी के पावन पर्व पर करें कृष्ण चालीसा का पाठ, हर काम में मिलेगी सफलता
जन्माष्टमी के पावन पर्व पर करें कृष्ण चालीसा का पाठ, हर काम में मिलेगी सफलता
नई दिल्ली। प्रत्येक वर्ष भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है। इस ��ाल आज यानी 6 सितंबर को कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जा रहा है। वहीं कुछ लोग 7 सितंबर को भी भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाएंगे। जन्माष्टमी दिन श्री कृष्ण के भक्त व्रत रखते हैं और पूजा करते हैं। मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति को साल भर के व्रतों से भी अधिक शुभ फल प्राप्त होते हैं।…
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Janmashtami 2024; जन्माष्टमी पर बन रहा बेहद शुभ योग, व्रत का चार गुना मिलेगा फल; जानें कृष्ण पूजन का शुभ मुहूर्त
Janmashtami 2024: जन्माष्टमी का पर्व भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन मनाई जाती है। जन्माष्टमी पर भगवान विष्णु के आठवें अवतार भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। हर साल जन्माष्टमी का पर्व बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस बार जन्माष्टमी पर बहुत ही शुभ योग बन रहे हैं। जैसे योग भगवान कृष्ण के जन्म के समय बने थे वैसे ही योग इस बार भी बन रहे हैं। बता दें कि इस बार कृष्ण जन्माष्टमी का…
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श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में यह पर्व देशभर में हर्षोल्लास के साथ जाता है मनाया आईये जानें कब
हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है। भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में यह पर्व देशभर में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। कृष्ण जन्मोत्सव के दिन लोग व्रत रखते हैं और रात में 12 बजे कान्हा के जन्म के बाद उनकी पूजा करके व्रत का पारण करते हैं।
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