#छत्रपतिशिवाजीजयंती2021
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जयंती विशेष : 'मराठा साम्राज्य' के गौरव थे छत्रपति शिवाजी महाराज, मुगलों के छुड़ा दिए थे छक्के
चैतन्य भारत न्यूज अपनी वीरता से मुगलों को घुटने टेकने पर मजबूर करने वाले सम्राट छत्रपति शिवाजी की आज 390वीं जयंती है। साल 1674 में उन्होंने ही पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी थी। शिवाजी महाराज को कुछ लोग हिंदू हृदय सम्राट भी कहते हैं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं छत्रपति शिवाजी के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({});
शिवाजी का जन्म 19 फरवरी 1630 में शिवनेरी दुर्ग में हुआ था। उनका पूरा नाम शिवाजी भोंसले था। उनकी माता जीजाबाई तथा पिता शाहजी भोंसले थे। उन्होंने बचपन में राजनीति एवं युद्ध की शिक्षा ली थी। बचपन में शिवाजी अपनी उम्र के बच्चों को इकट्ठा कर उनके नेता बनकर युद्ध करने और किले जीतने का खेल खेला करते थे। जब वह बड़े हुए तो उनका ये खेल वास्तविक कर्म शत्रु बनकर शत्रुओं पर आक्रमण कर उनके किले आदि भी जीतने लगे। शिवाजी ने पुरंदर और तोरण जैसे किलों पर अपना अधिकार जमाया।
शिवाजी एक सेक्युलर शासक थे और वे सभी धर्मों का समान रूप से सम्मान करते थे। वह जबरन धर्मांतरण के सख्त खिलाफ थे। उनकी सेना में मुस्लिम बड़े पद पर मौजूद थे। इब्राहिम खान और दौलत खान उनकी नौसेना के खास पदों पर थे। सिद्दी इब्राहिम उनकी सेना के तोपखानों का प्रमुख था। शिवाजी की मुगलों से पहली मुठभेड़ वर्ष 1656-57 में हुई थी। बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह की मृत्यु के बाद वहां अराजकता का माहौल पैदा हो गया था, जिसका लाभ उठाते हुए मुगल बादशाह औरंगजेब ने बीजापुर पर आक्रमण कर दिया। आदिलशाह ने अपने सेनापति को शिवाजी को मारने के लिए भेजा। दोनों के बीच प्रतापगढ़ किले पर युद्ध हुआ। इस युद्ध में शिवाजी विजयी हुए।
शिवाजी की बढ़ती हुई शक्ति से चिंतित होकर मुगल बादशाह औरंगजेब ने दक्षिण में नियुक्त अपने सूबेदार को उन पर चढ़ाई करने का आदेश दिया, लेकिन सूबेदार को मुंह की खानी पड़ी। शिवाजी से लड़ाई के दौरान उसने अपना पुत्र खो दिया और खुद उसकी अंगुलियां कट गईं। शिवाजी का विवाह 14 मई 1640 में सइबाई निम्बालकर के साथ लाल महल, पूना (अब पुणे) में हुआ था। उनके पुत्र का नाम संभाजी था। संभाजी शिवाजी के ज्येष्ठ पुत्र और उत्तराधिकारी थे जिसने 1680 से 1689 ई. तक राज्य किया।
शिवाजी ने मराठाओं की एक विशाल सेना तैयार की थी। उन्हीं के शासन काल में गुरिल्ला युद्ध के प्रयोग का भी प्रचलन शुरू हुआ। उन्होंने नौसेना भी तैयार की थी। भारतीय नौसेना का उन्हें जनक माना जाता है। 3 अप्रैल 1680 को बीमार होने पर उनकी मृत्यु हो गई। Read the full article
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