#चंद्रयान-3 का उद्देश्य क्या है
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क्या इस तारीख को चंद्रमा पर सुरक्षित लैंडिंग कर पाएगा चंद्रयान-3 ?
परिचय अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में, प्रत्येक मिशन अनजाने की ओर एक यात्रा है, जिसमें अपेक्षित चुनौतियों और रोमांचक खोजों का सामना करना पड़ता है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ऐसे प्रयासों के मुख्य आदान-प्रदान में है, और उसका चंद्रयान-3 मिशन ने विश्व का ध्यान आकर्षित किया है। इस लेख में, हम चंद्रयान-3 के भूमि गिराने की हाल की अपडेट पर विचार करेंगे, जिसमें ऐसे निर्णयों का परिप्रेक्ष्य और…
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इसरो ने लॉन्च की डिफेंस सैटेलाइट RISAT-2BR1, अंतरिक्ष में बनेगी भारत की खुफिया आंख, चप्पे-चप्पे पर रखेगी नजर
चैतन्य भारत न्यूज श्रीहरिकोटा. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) ने आज यानी 11 दिसंबर 2019 को दोपहर 3:25 बजे सबसे ताकतवर राडार इमेजिंग सैटेलाइट रीसैट-2बीआर1 (RiSAT-2BR1) की सफल लॉन्चिंग कर दी है। इसके साथ इसरो ने चार अन्य देशों के 9 सैटेलाइट लॉन्च किए। इसरो ने यह प्रक्षेपण पीएसएलवी-सी48 रॉकेट के जरिए आंध्र प्रदेश स्थित श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से किया गया। इस सैटेलाइट के जरिए देश की सीमाओं पर नजर रखना आसान हो जाएगा। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({}); इसरो ने बनाया ये ��िकॉर्ड इसरो ने इस लॉन्चिंग के साथ ही एक और रिकॉर्ड बन गया है। ये रिकॉर्ड है- 20 सालों में 33 देशों के 319 सैटेलाइट छोड़ने का। बता दें इसरो ने 1999 से लेकर अब तक कुल 310 विदेशी सैटेलाइट्स अंतरिक्ष में स्थापित किए हैं। यदि आज के आज के 9 सैटेलाइट को मिला दें तो ये संख्या 319 हो गई है। ये 319 सैटेलाइट्स 33 देशों के हैं। The countdown for the launch of #PSLVC48/#RISAT2BR1 mission commenced today at 1640 Hrs (IST) from Satish Dhawan Space Centre (SDSC) SHAR, Sriharikota.#ISRO pic.twitter.com/fJYmCFRpJc — ISRO (@isro) December 10, 2019 क्या है RiSAT-2BR1 की खासियत रीसैट-2बीआर1 रडार इमेजिंग अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट है। इसकी यह खासियत है कि यह बादलों, खराब मौसम और अंधेरे में भी साफ तस्वीरें ले सक��ा है। यानी धरती पर कितना भी मौसम खराब हो। कितने भी बादल छाए हों, इसकी निगाहें उन घने बादलों को चीरकर सीमाओं की स्पष्ट तस्वीर ले पाएगी। अर्थ इमेजिंग कैमरे और रडार तकनीक के चलते यह मुठभेड़-घुसपैठ के वक्त सेना के लिए मददगार होगा। हालांकि, इस सैटेलाइट का मुख्य उद्देश्य कृषि, वन क्षेत्र और आपदा प्रबंधन कार्यों की निगरानी है। 628 किेलोग्राम वजनी इस सैटेलाइट की मिशन अवधि 5 वर्ष की होगी। #PSLVC48 carrying #RISAT2BR1 & 9 customer satellites successfully lifts off from Sriharikota pic.twitter.com/Y1pxI98XWg — ISRO (@isro) December 11, 2019 किसके कौनसे सैटेलाइट इसरो का रॉकेट अन्य सभी 10 सैटेलाइट को 576 किलोमीटर ऊपर स्थित अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित करेगा। इनमें जापान, इटली और इजरायल के एक-एक सैटेलाइट हैं। जबकि छह सैटेलाइट अमेरिका के हैं। इसके इसरो की व्यावसायिक कंपनी न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड के साथ करार किए गए हैं। ISRO launches RISAT-2BR1 and 9 customer satellites by PSLV-C48 from Satish Dhawan Space Centre (SDSC) SHAR, Sriharikota; RISAT-2BR1 is a radar imaging earth observation satellite weighing about 628 kg. pic.twitter.com/nc50lOf2Wy — ANI (@ANI) December 11, 2019 ये भी पढ़े... इसरो ने शुरू की मिशन चंद्रयान-3 की तैयारियां, अगले साल होगा लॉन्च चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर ने भेजी चांद की तस्वीर, इसरो ने बताया- चांद की मिट्टी में मौजूद कणों के बारे में पता लगा चंद्रयान-2 : इसरो ने देशवासियों का किया शुक्रियाअदा, लैंडर विक्रम से संपर्क की उम्मीदें खत्म! Read the full article
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भारत का शांति दूत : इसरो आज भेजेगा साउथ एशिया सैटेलाइट, PM मोदी का 6 देशों को बड़ा तोहफा, 5 बातें
भारत का शांति दूत : इसरो आज भेजेगा साउथ एशिया सैटेलाइट, PM मोदी का 6 देशों को बड़ा तोहफा, 5 बातें
http://www.bharatmedia.in/hindi-news-story-1711
श्रीहरिकोटा : भारत की स्पेस डिप्लोमैसी के तहत तैयार हुई साउथ एशिया सैटेलाइट लॉन्च के लिए तैयार है. पहले इसे सार्क सैटेलाइट का नाम दिया गया था, लेकिन पाकिस्तान ने भारत के इस तोहफे का हिस्सा बनने से इंकार कर दिया था. भारत के इस कदम को चीन की स्पेस डिप्लोमैसी के जवाब के तौर पर देखा जा रहा. भारत का ये शांति दूत स्पेस में जाकर कई काम करेगा. श्रीहरिकोटा से उड़ने को तैयार 50 मीटर ऊंचा रॉकेट अंतरिक्ष में एक शांतिदूत की भूमिका निभाने जा रहा है. अपनी 11वीं उड़ान के ज़रिए जीएसएलवी रॉकेट एक खास उपग्रह साउथ एशिया सैटलाइट को अंतरिक्ष में अपनी कक्षा में स्थापित करेगा. यह एक संचार उपग्रह है, जो नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, भारत, मालदीव, श्रीलंका और अफगानिस्तान को दूरसंचार की सुविधाएं मुहैया कराएगा. सार्क देशों में पाकिस्तान को छोड़ बाकी सभी देशों को इस उपग्रह का फायदा मिलेगा. जानकारों के मुताबिक- भारत का यह कदम पड़ोसी देशों पर चीन के बढ़ते प्रभाव का मुक़ाबला करने में काम आएगा.
अब सवाल ये है कि अंतरिक्ष में भारत का ये शांतिदूत क्या-क्या भूमिकाएं निभाएगा. इसरो के मुताबिक-इसके ज़रिए सभी सहयोगी देश अपने-अपने टीवी कार्यक्रमों का प्रसारण कर सकेंगे. किसी भी आपदा के दौरान उनकी संचार सुविधाएं बेहतर होंगी. इससे देशों के बीच हॉट लाइन की सुविधा दी जा सकेगी और टेली मेडिसिन सुविधाओं को भी बढ़ावा मिलेगा.
साउथ एशिया सैटेलाइट की लागत क़रीब 235 करोड़ रुपये है जबकि सैटेलाइट के लॉन्च समेत इस पूरे प्रोजेक्ट पर भारत 450 करोड़ रुपए खर्च करने जा रहा है. यानी पड़ोसी देशों को एक शानदार कीमती तोहफ़ा.
भारतीय उपमहाद्वीप के देशों के बीच इस तरह के संचार उपग्रह की ज़रूरत काफ़ी समय से महसूस की जा रही थी. वह भी तब जब कुछ देशों के पास पहले से ही अपने उपग्रह हैं. जैसे जंग से तबाह हुए अफ़गानिस्तान के पास एक संचार उपग्रह अफगानसैट है. यह असल में भारत का ही बना एक पुराना सैटलाइट है, जिसे यूरोप से लीज पर लिया गया है. इसीलिए अफ़गानिस्तान ने अभी साउथ एशिया सैटलाइट की डील पर दस्त��त नहीं किए है, क्योंकि उसका अफ़गानसैट अभी काम कर रहा है.
2015 में आए भयानक भूकंप के बाद नेपाल भी बड़ी शिद्दत से एक संचार उपग्रह की ज़रूरत महसूस कर रहा है. नेपाल ऐसे दो संचार उपग्रह हासिल करना चाहता है.
अंतरिक्ष से जुड़ी तकनीक में भूटान काफ़ी पीछे है. साउथ एशिया सैटेलाइट का उसे बड़ा फ़ायदा होने जा रहा है.
स्पेस टेक्नोलॉज़ी में बांग्लादेश अभी शुरुआती कदम ही उठा रहा है. साल के अंत तक वह अपना ख़ुद का बंगबंधू -1 कम्युनिकेशन सैटेलाइट छोड़ने की योजना बना रहा है.
श्रीलंका 2012 में ही अपना पहला संचार उपग्रह लॉन्च कर चुका है. उसने चीन की मदद से ये सुप्रीम सैट उपग्रह तैयार किया था. लेकिन साउथ एशिया सैटलाइट से उसे अपनी क्षमताओं का इज़ाफ़ा करने में मदद मिलेगी.
समुद्र में मोतियों की तरह बिखरे मालदीव्स के पास स्पेस टैक्नोलॉजी के नाम पर कुछ भी नहीं है. सो उसके लिए तो ये एक बड़ी सौगात से कम नहीं होगा. अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रहा है. ऐसे में यह कहना ग़लत नहीं होगा कि साउथ एशिया सैटलाइट इस दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगा.
इसरो के अध्यक्ष एएस किरण कुमार ने कहा, शाम में 4 बजकर 57 मिनट पर प्रक्षेपण होगा. सभी गतिविधियां सुचारू रूप से चल रही हैं. जीसैट को लेकर जाने वाले जीएसएलवी-एफ09 का प्रक्षेपण यहां से करीब 135 किल���मीटर दूर श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिच केंद्र के दूसरे लांचिंग पैड से होगा. मई 2014 में सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसरो के वैज्ञानिकों से दक्षेस उपग्रह बनाने के लिए कहा था वह पड़ोसी देशों को ‘भारत की ओर से उपहार’ होगा. गत रविवार को ‘मन की बात’ कार्यक्रम में मोदी ने घोषणा की थी कि दक्षिण एशिया उपग्रह अपने पड़ोसी देशों को भारत की ओर से ‘कीमती उपहार’ होगा.
पीएम मोदी ने कहा था, 5 मई को भारत दक्षिण एशिया उपग्रह का प्रक्षेपण करेगा. इस परियोजना में भाग लेने वाले देशों की विकासात्मक जरूरतों को पूरा करने में इस उपग्रह के फायदे लंबा रास्ता तय करेंगे. भविष्य के प्रक्षेपणों के बारे में पूछे जाने पर कुमार ने कहा कि इसरो जीएसएलवी एमके 3 के बाद पीएसएलवी का प्रक्षेपण करेगा. उन्होंने कहा कि इसरो अगले साल की शुरुआत में चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण करेगा. इससे पहले संचार उपग्रह जीएसएटी-8 का प्रक्षेपण 21 मई 2011 को फ्रेंच गुएना के कोउरो से हुआ था.
इस प्रोजेक्ट से जुड़ी खास बातें
1.इस मिशन में अफगानिस्तान, भूटान, नेपाल, बांग्लादेश, मालदीव और श्रीलंका शाम���ल हैं.
2.इससे दक्षिण एशिया के देशों को कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी का फायदा मिलेगा. प्राकृतिक आपदाओं के दौरान कम्युनिकेशन में मददगार होगा
3. इस सैटेलाइट का नाम पहले सार्क रखा गया लेकिन पाकिस्तान के बाहर होने के बाद इसका नाम साउथ ईस्ट सैटेलाइट कर दिया गया. पाकिस्तान ने यह कहते हुए इससे बाहर रहने का फैसला किया कि उसका अपना अंतरिक्ष कार्यक्रम है.
4.मई 2014 में सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसरो के वैज्ञानिकों से दक्षेस उपग्रह बनाने के लिए कहा था वह पड़ोसी देशों को ‘भारत की ओर से उपहार’
5. इस उपग्रह की लागत करीब 235 करोड़ रुपये है और इसका उद्देश्य दक्षिण एशिया क्षेत्र के देशों को संचार और आपदा सहयोग मुहैया कराना है.
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मिशन चंद्रयान-2 : इतिहास रचने से कुछ कदम दूर भारत, आज ऑर्बिटर से अलग होगा विक्रम लैंडर
चैतन्य भारत न्यूज भारत आज अंतरिक्ष में एक और लंबी छलांग लगाने को तैयार है। 22 जुलाई को लॉन्च हुए चंद्रयान-2 मिशन के तहत चांद की कक्षा में चक्कर लगा रहे ऑर्बिटर से आज दोपहर में विक्रम लैंडर अलग हो जाएगा। फिर करीब 20 घंटे तक विक्रम लैंडर अपने पिता यानी ऑर्बिटर के पीछे-पीछे 2 किमी प्रति सेकंड की रफ्तार से चक्कर लगाता रहेगा। फिर वो विपरीत दिशा में चांद के चक्कर लगाना शुरू कर देगा। अंत में 7 सितंबर को यह चांद पर उतरकर इतिहास रचेगा। चंद्रयान-1 ने चांद पर खोजा था पानी, जानिए चंद्रयान-2 क्या-क्या पता लगाएगा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-2 को तीन हिस्सों से मिलाकर बनाया है। इनमें पहला- ऑर्बिटर, दूसरा- विक्रम लैंडर और तीसरा- प्रज्ञान रोवर है। विक्रम लैंडर के अंदर ही प्रज्ञान रोवर है, जो सॉफ्ट लैंडिंग के बाद बाहर निकलेगा। चंद्रयान-2 का कुल वजन 3.8 टन (3,850 किलोग्राम) है। बता दें लैंडर वो है जिसके जरिए चंद्रयान पहुंचेगा और और रोवर का मतलब उस वाहन से है जो चांद पर पहुंचने के बाद वहां की चीजों को समझेगा और उसकी जानकारी धरती तक पहुंचाएगा। चंद्रयान-2 का मुख्य उद्देश्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की सतह पर पानी के प्रसार और मात्र�� के बारे में जानकारी जुटाना है। इसके अलावा यह चंद्रमा के मौसम, खनिजों और उसकी सतह पर फैले रासायनिक तत्वों का भी अध्ययन करेगा। चंद्रयान-2 चांद पर मिट्टी का विश्लेषण करेगा, उसमें मौजूद मिनरल्स के बारे में जानकारी निकालेगा और वहां पर हिलियम-3 गैस की संभावना तलाशेगा जिससे कि भविष्य में ऊर्जा का बड़ा स्रोत हो सकता है। चंद्रयान-2 ने पहली बार भेजी तस्वीरें, दिखा अंतरिक्ष से धरती का बेहद खूबसूरत नजारा इस मिशन पर दुनियाभर की निगाहें इसलिए भी टिकी हुईं हैं क्योंकि भारत का यह यान चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के उस हिस्से पर उतरेगा जहां अब तक कोई भी देश नहीं पहुंच सका है। 54 दिन की यात्रा पूरी करने के बाद जब 7 सितंबर को लैंडर से निकलकर प्रज्ञान रोवर चंद्रमा की सतह पर चलेगा तो हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा हो जाएगा। ये भी पढ़े... चंद्रमा की कक्षा में स्थापित हुआ चंद्रयान-2 पृथ्वी की कक्षा से बाहर निकलकर चांद के सफर की ओर बढ़ा चंद्रयान-2 चांद को छूने के लिए भारत ने बढ़ाएं अपने कदम, सफलतापूर्वक लॉन्च हुआ चंद्रयान-2, देखें वीडियो Read the full article
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मिशन चंद्रयान-2 : इतिहास रचने से कुछ कदम दूर भारत, आज ऑर्बिटर से अलग होगा विक्रम लैंडर
चैतन्य भारत न्यूज भारत आज अंतरिक्ष में एक और लंबी छलांग लगाने को तैयार है। 22 जुलाई को लॉन्च हुए चंद्रयान-2 मिशन के तहत चांद की कक्षा में चक्कर लगा रहे ऑर्बिटर से आज दोपहर में विक्रम लैंडर अलग हो जाएगा। फिर करीब 20 घंटे तक विक्रम लैंडर अपने पिता यानी ऑर्बिटर के पीछे-पीछे 2 किमी प्रति सेकंड की रफ्तार से चक्कर लगाता रहेगा। फिर वो विपरीत दिशा में चांद के चक्कर लगाना शुरू कर देगा। अंत में 7 सितंबर को यह चांद पर उतरकर इतिहास रचेगा। चंद्रयान-1 ने चांद पर खोजा था पानी, जानिए चंद्रयान-2 क्या-क्या पता लगाएगा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-2 को तीन हिस्सों से मिलाकर बनाया है। इनमें पहला- ऑर्बिटर, दूसरा- विक्रम लैंडर और तीसरा- प्रज्ञान रोवर है। विक्रम लैंडर के अंदर ही प्रज्ञान रोवर है, जो सॉफ्ट लैंडिंग के बाद बाहर निकलेगा। चंद्रयान-2 का कुल वजन 3.8 टन (3,850 किलोग्राम) है। बता दें लैंडर वो है जिसके जरिए चंद्रयान पहुंचेगा और और रोवर का मतलब उस वाहन से है जो चांद पर पहुंचने के बाद वहां की चीजों को समझेगा और उसकी जानकारी धरती तक पहुंचाएगा। चंद्रयान-2 का मुख्य उद्देश्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की सतह पर पानी के प्रसार और मात्रा के बारे में जानकारी जुटाना है। इसके अलावा यह चंद्रमा के मौसम, खनिजों और उसकी सतह पर फैले रासायनिक तत्वों का भी अध्ययन करेगा। चंद्रयान-2 चांद पर मिट्टी का विश्लेषण करेगा, उसमें मौजूद मिनरल्स के बारे में जानकारी निकालेगा और वहां पर हिलियम-3 गैस की संभावना तलाशेगा जिससे कि भविष्य में ऊर्जा का बड़ा स्रोत हो सकता है। चंद्रयान-2 ने पहली बार भेजी तस्वीरें, दिखा अंतरिक्ष से धरती का बेहद खूबसूरत नजारा इस मिशन पर दुनियाभर की निगाहें इसलिए भी टिकी हुईं हैं क्योंकि भारत का यह यान चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के उस हिस्से पर उतरेगा जहां अब तक कोई भी देश नहीं पहुंच सका है। 54 दिन की यात्रा पूरी करने के बाद जब 7 सितंबर को लैंडर से निकलकर प्रज्ञान रोवर चंद्रमा की सतह पर चलेगा तो हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा हो जाएगा। ये भी पढ़े... चंद्रमा की कक्षा में स्थापित हुआ चंद्रयान-2 पृथ्वी की कक्षा से बाहर निकलकर चांद के सफर की ओर बढ़ा चंद्रयान-2 चांद को छूने के लिए भारत ने बढ़ाएं अपने कदम, सफलतापूर्वक लॉन्च हुआ चंद्रयान-2, देखें वीडियो Read the full article
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चंद्रयान-1 ने चांद पर खोजा था पानी, जानिए चंद्रयान-2 क्या-क्या पता लगाएगा
चैतन्य भारत न्यूज इसरो का मिशन मून यानी चंद्रयान-2 लॉन्च हो गया है। 2008 में चंद्रयान-1 के जरिए चंद्रमा पर पानी की खोज की गई थी और अब चंद्रयान-2 की बारी है। हम आपको मिशन चंद्रयान-2 से जुड़ीं खास बातें बताने जा रहे हैं... #WATCH: GSLVMkIII-M1 lifts-off from Sriharikota carrying #Chandrayaan2 #ISRO pic.twitter.com/X4ne8W0I3R — ANI (@ANI) July 22, 2019 इसरो के मिशन चंद्रयान-2 पर दुनियाभर के लोगों की निगाहें टिकी हुईं हैं। इस मिशन पर दुनियाभर की निगाहें इसलिए भी टिकी हुईं हैं क्योंकि भारत का यह यान चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के उस हिस्से पर उतरेगा जहां अब तक कोई भी देश नहीं पहुंच सका है। 54 दिन की यात्रा पूरी करने के बाद जब यह 6 सितंबर को लैंडर से निकलकर प्रज्ञान रोवर चंद्रमा की सतह पर चलेगा तो हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा हो जाएगा। #ISRO #Chandrayaan2 As our journey begins, do you know what is the distance of Moon from Earth? The average distance is 3, 84, 000 km, Vikram lander will land on Moon on the 48th day of the mission, which begins today. Here's different view of #GSLVMkIII-M1 pic.twitter.com/4LFEmT2xxZ — ISRO (@isro) July 22, 2019 बता दें लैंडर वो है जिसके जरिए चंद्रयान पहुंचेगा और और रोवर का मतलब उस वाहन से है जो चांद पर पहुंचने के बाद वहां की चीजों को समझेगा और उसकी जानकारी धरती तक पहुंचाएगा। चंद्रयान-2 का मुख्य उद्देश्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की सतह पर पानी के प्रसार और मात्रा के बारे में जानकारी जुटाना है। इसके अलावा यह चंद्रमा के मौसम, खनिजों और उसकी सतह पर फैले रासायनिक तत्वों का भी अध्ययन करेगा। चंद्रयान-2 चांद पर मिट्टी का विश्लेषण करेगा, उसमें मौजूद मिनरल्स के बारे में जानकारी निकालेगा और वहां पर हिलियम-3 गैस की संभावना तलाशेगा जिससे कि भविष्य में ऊर्जा का बड़ा स्रोत हो सकता है। Launch of Chandrayaan 2 by GSLV MkIII-M1 Vehicle https://t.co/P93BGn4wvT — ISRO (@isro) July 22, 2019 मिशन चंद्रयान-2 ��िशन चंद्रयान-1 से कई मायनों में अलग है। चंद्रयान-2 के जरिए भारत पहली बार चांद की सतह पर उतरेगा। बता दें 2008 में चंद्रयान-1 चांद की कक्षा में जरूर गया था लेकिन वह चंद्रमा पर नहीं उतरा था। चंद्रयान-1 को चांद की सतह से 100 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित कक्षा में स्थापित किया गया था। 🇮🇳 #ISROMissions 🇮🇳 The launch countdown of #GSLVMkIII-M1/#Chandrayaan2 commenced today at 1843 Hrs IST. The launch is scheduled at 1443 Hrs IST on July 22nd. More updates to follow... pic.twitter.com/WVghixIca6 — ISRO (@isro) July 21, 2019 बता दें 22 जुलाई से लेकर 13 अगस्त तक चंद्रयान-2 पृथ्वी के चारों तरफ चक्कर लगाएगा। फिर वह 13 अगस्त से 19 अगस्त तक चांद की तरफ जाने वाली लंबी कक्षा में यात्रा करेगा। इसके बाद 19 अगस्त को चंद्रयान-2 चांद की कक्षा में पहुंचेगा। यहां 13 दिन यानी 31 अगस्त तक चंद्रयान-2 चांद के चारों ओर चक्कर लगाएगा। फिर 1 सितंबर को विक्रम लैंडर ऑर्बिटर से अलग हो जाएगा और यह चांद के दक्षिणी ध्रुव पर जाने के लिए यात्रा शुरू करेगा। 5 दिन की यात्रा के बाद 6 सितंबर को विक्रम लैंडर चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा। चांद की सतह पर उतरने के करीब 4 घंटे बाद रोवर प्रज्ञान लैंडर से निकलकर चांद की सतह पर विभिन्न प्रयोग करने के लिए उतरेगा। ये भी पढ़े... चांद को छूने के लिए भारत ने बढ़ाएं अपने कदम, सफलतापूर्वक लॉन्च हुआ चंद्रयान-2, देखें वीडियो 56 मिनट पहले रोकी गई चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग, जानिए क्या है वजह इन दो महिलाओं के कंधों पर है चंद्रयान-2 मिशन की जिम्मेदारी Read the full article
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56 मिनट पहले रोकी गई 'चंद्रयान-2' की लॉन्चिंग, जानिए क्या है वजह
चैतन्य भारत न्यूज श्��ीहरिकोटा. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के सबसे खास मिशन में से एक 'चंद्रयान-2' की लॉन्चिंग आखिरी समय में रुक गई। लॉन्चिंग से 56.24 मिनट पहले ही चंद्रयान-2 के व्हीकल सिस्टम में तकनीकी खामी आने की वजह से इसे रोकना पड़ा। बता दें चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग 15 जुलाई को तड़के 2:51 बजे होने वाली थी। चंद्रयान-2 को देश के सबसे ताकतवर बाहुबली रॉकेट जियोसिंक्रोनस सेटेलाइट लॉन्च व्हीकल-मार्क-3 (जीएसएलवी-एमके3) से लॉन्च किया जाना था लेकिन 56.24 मिनट पहले काउंटडाउन रोक दिया गया। इसरो के वैज्ञानिक यह पता लगाने में जुट गए हैं कि अचानक से यह तकनीकी खामी कहां से आ गई। इसके बाद इसरो की ओर से आधिकारिक बयान जारी करके इसकी लॉन्चिंग टलने की जानकारी दी गई है। इसरो ने कहा कि, 'प्रक्षेपण से 1 घंटे पहले लॉन्च व्हीकल सिस्टम में तकनीकी खामी सामने आई। इसलिए चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग को टाल दिया गया है। जल्द ही इसके प्रक्षेपण की अगली तारीख का एलान किया जाएगा।' लॉन्चिंग में आई इस रुकावट के चलते इसरो वैज्ञानिकों की 11 साल की मेहनत को छोटा सा झटका लगा है। हालांकि वैज्ञानिक जल्द से जल्द इस समस्या का समाधान निकालकर चंद्रयान-2 की सफल लॉन्चिंग करेंगे। वैसे वैज्ञानिकों द्वारा अंतिम क्षणों में यह तकनीकी खामी खोज लेना बहुत जरुरी था वरना आगे चलकर बड़ा हादसा भी हो सकता था। ये है लॉन्चिंग रोकने का कारण इसरो के सूत्रों ने बताया कि, काउंटडाउन के आखिरी समय में चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग रोकी गई। कुछ मिनट पहले ही क्रायोजेनिक इंजन में लिक्विड हाइड्रोजन भरा गया था। बता दें क्रायोजेनिक इंजन और चंद्रयान-2 को जोड़ने वाले हिस्से को लॉन्च व्हीकल कहते हैं। यान के इस हिस्से में ही प्रेशर लीकेज था। यह तय सीमा पर स्थिर नहीं हो रहा था और रॉकेट लॉन्च के लिए जितना प्रेशर चाहिए था वह नहीं मिल पा रहा था। प्रेशर लगातार घटता जा रहा था। इसलिए इसरो के मून मिशन चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग को आखिरी समय में टालना पड़ा। बता दें इस मिशन का मुख्य उद्देश्य चांद पर पानी का पता लगाना और वहां भूकंप आता है या नहीं ये पता लगाना है। चंद्रयान-2 की लागत 603 करोड़ रुपए और अंतरिक्ष यान की लागत 375 करोड़ रुपए हैं। ये भी पढ़े... इन दो महिलाओं के कंधों पर है चंद्रयान-2 मिशन की जिम्मेदारी कुछ ही घंटों बाद चांद को छूने निकलेगा चंद्रयान-2, जानिए इतना महत्वपूर्ण क्यों है इसरो का यह मिशन Read the full article
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