#खोने
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तू ज़हन में हैं मेरे, तू यह जानता नहीं है... तेरा ज़िक्र कर पूरी दुनिया को नहीं बताना, तू यह मानता नहीं है... ज़माना बहुत ज़ालिम है, कैसे बताऊं...? तुझे खोने का डर कितना सताता है, मेरे महबूब, यह मैं तुझे कैसे जताऊं...?
-adi
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कयामत होगी उस दिन जब तुम कहोगे सुनती हो...
ज़रा बालकनी मे आकर बारिश तो देखो
या की थोड़ा थम जाओ
या की अपनी किताबे किनारे रख कर
मेरी बनाई चाय की दो चुस्की तो लो
और कुछ किस्से मुझे भी सुनाओ
सुनती हो....
अलंकृता (किताब- तुम्हे खोने का शोक)
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*सुमिरन अमूल्य धन है, इसे खोने न दें। 🙏✨कबीर परमात्मा जी कहते हैं, जैसे कंगाल अपना पैसा कभी नहीं भूलता, वैसे ही हमें हर पल ईश्वर का स्मरण करना चाहिए।🌟 GodKabirVani*
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सुमिरन अमूल्य धन है, इसे खोने न दें। 🙏✨कबीर परमात्मा जी कहते हैं, जैसे कंगाल अपना पैसा कभी नहीं भूलता, वैसे ही हमें हर पल ईश्वर का स्मरण करना चाहिए।🌟
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लोग शेयर मार्केट में करियर बनाने से निम्नलिखित कारणों की वजह से डरते हैं:

जोखिम का डर: शेयर मार्केट में निवेश जोखिम भरा हो सकता है। कीमतें ऊपर-नीचे होती रहती हैं, जिससे लोग अपना पैसा खोने का डर महसूस करते हैं। अस्थिरता और अनिश्चितता निवेशकों को चिंता में डाल सकती है।
समझ की कमी: शेयर मार्केट के कामकाज और ट्रेडिंग की बारीकियों को समझना आसान नहीं होता। लोग अगर सही तरीके से जानकारी नहीं रखते या गलत फैसले लेते हैं, तो उन्हें नुकसान हो सकता है।
नियंत्रण का अभाव: शेयर मार्केट बाहरी कारकों, जैसे वैश्विक घटनाओं, राजनीति, या आर्थिक संकटों से प्रभावित होता है। इन पर व्यक्ति का कोई नियंत्रण नहीं होता, जो अनिश्चितता को बढ़ाता है।
शुरुआती असफलता: शेयर मार्केट में शुरुआती असफलताओं का डर लोगों को हतोत्साहित कर सकता है। अगर किसी ने पहले निवेश किया और नुकसान उठाया, तो वे भविष्य में फिर से निवेश करने से डर सकते हैं।
लंबी अवधि का निवेश: कई लोग त्वरित लाभ की उम्मीद करते हैं, लेकिन शेयर मार्केट में सफल निवेश करने के लिए अक्सर धैर्य और लंबी अवधि का दृष्टिकोण आवश्यक होता है। त्वरित लाभ न मिलने से भी लोग हतोत्साहित हो सकते हैं।

विशेषज्ञता की आवश्यकता: शेयर मार्केट में सफल होने के लिए अध्ययन, विश्लेषण और समय की जरूरत होती है। कुछ लोग इसे जटिल मानते हैं और इसे समझने में असमर्थ महसूस करते हैं।
ये सभी कारण शेयर मार्केट में करियर बनाने से लोगों को डराते हैं। हालांकि, सही शिक्षा, ज्ञान और धैर्य से इसमें सफलता पाई जा सकती है.
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#मानसिक_शांति_नहींतो_कुछनहीं
वर्तमान में लोगों को परेशान करने वाली काफी वजह हैं।
एक तो रोगों से संक्रमित होने का डर, नौकरी खोने का और कारोबार को लेकर अनिश्चितता और अकेलापन जैसी परेशानी। हम इन सभी समस्याओं से निजात पा सकते हैं क्योंकि हमारा वास्तविक मित्र पूर्ण परमात्मा है जो हमारी सारी बाधाओं को दूर करके हमें वास्तविक सुख प्रदान करता है।
अवश्य पढ़ें "ज्ञान गंगा”।
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खो देने के बाद याद आता है कितना कीमती था,
वो वक्त, इंसान और रिश्ता।
कमबख्त, कैसा ये इश्क़ भला,
खोने की क्या ही बात है जब वो कभीं मेरा था ही न भला।
उसकी यादों में खोयी रहती हूँ,
उसके ख्यालों में खो जाती हूँ।
पर क्या फ़ायदा इस प्यार का,
जो बेमतलब और असली नहीं है सच्चा।
मेरे दिल को चोट पहुँचाता है वो,
जो कभी मेरी कदर नहीं किया।
मेरे जज़्बातों का मज़ाक बनाता है वो,
जो सिर्फ़ अपने आप का दिल जलाता है।
कितना खोया, कितना बसाया,
पर उसने कभी मेरे दिल को नहीं समझा,
कमबख्त, कैसा ये इश्क़ भला |
-akku🥹
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I listen to sach keh rha hai dewwana just for this one line "सुन्दर सुन्दर वो हंसीना बड़ी
सुन्दर सुन्दर मैं तो खोने लगा
उसके नशे में बिन पिए बहका"..
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dil aakhir tu kyun rota hai?
"साथ मे तो आज भी नही है तू
फिर भी दिल तुझे खोने से डरता है
पास रहे के भी साथ नही
फिर भी दिल यूं बिलखता है।"
मुस्कुराते हुए मैने कहा,
"साथ अब भी खड़ा हूं तेरे,
पास में तो अब भी हूं तेरे।
शिखवा क्या है इस दिल को,
जो आज भी खफा रहता है मुझसे।
तेरे नज़दीक रहने को जी करता है,
तेरे शिकायते सुनने का जी करता है।
होश खो बैठा हूं यहां मैं,
जो तुझे मुझसे बिछड़ने से डर लगता है।"
🍁🍂
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जगहें
यहां आए नौ महीने पूरे हुए
बल्कि दस दिन ज्यादा
इतने में पनप सकता था एक जीवन
बदली जा सकती थी दुनिया
बच सकते थे बचे-खुचे जंगल
��िखी जा सकती थी एक कविता
या कोई उपन्यास, लंबी कहानी
पलट सकती थी सत्ताएं तानाशाहों की
मूर्त हो सकती थीं जिसके रास्ते
कुछ योजनाएं और थोड़ा बहुत लोकमंगल।
जगह बदलने से क्या बदल जाता है
जीवन भी और इतना कि पूर्ववर्ती जगहों
के अभाव में उपजे नए खालीपन से
घुल-मिल कर पुरानी एकरसताएं
नए भ्रम रचती हैं? क्या आदमी
वही रहता है और केवल धरा नचती है
दिशाएं ठगती हैं?
वैसे, हवा इधर बहुत तेज चलती है
लखपत के किले में जैसे हहराकर गोया
फंस गई हो ईंट-पत्थर के परकोटे में
भटकती हुई कहीं और से आकर
जबकि पौधे बदल ही रहे हैं अभी पेड़ों में
जिन पर बसना बोलना सीख रहे
पक्षी सहसा चहचहा उठते हैं भ्रमवश
आधी रात फ्लड लाइट को समझ कर सूरज
और सहसा नींद उचट जाती है
अब जाकर जाना मैंने इतने दिन बाद
ठीक पांच बजे तड़के यहां भी
कहीं से एक ट्रेन धड़धड़ाती हुई आती है।
जगहें कितनी ही बदलीं मैंने पर
बनी रही मेरी सुबहों में ट्रेन की आवाज
धरती पर अलहदा जगहों को जोड़ती होंगी
शायद कुछ ध्वनियां, छवियां, कोई राज
मसलन, नहीं होती जहां रेल की पटरी
बजती थी वहां भी सुबह एक सीटी
जैसे गाजीपुर या चौबेपुर में पांच बजे ठीक
जबकि इंदिरापुरम में हुआ करता था
और अब शहादरे में भी काफी करीब है
रेलवे स्टेशन तो बनी हुई है
पुरानी लीक।
एक बालकनी है यहां भी
बिलकुल वैसी ही
खड़ा होकर जहां बची हुई दुनिया से
आश्वस्त होना मेरा कायम है आदतन
एक शगल की तरह जब तब
एक मैदान है हरे घास वाला
जैसा वहां था
और उसमें खेलते बच्चे भी
और कभी कभार टहलती हुई औरतें बेढब
दिलाती हैं भरोसा कि हवा कितनी ही
हो जाए संगीन बनी रहेगी उसमें सांस
हम सब की किसी साझे उपक्रम की तरह
उसे कैद करने की साजिशें अपने
उत्कर्ष पर हों जब।
देशकाल में स्थिर यही कुछ छवियां हैं
कुछ ध्वनियां हैं
��्रेन, बच्चे और औरतें
घास के मैदान, बालकनी और बढ़ते हुए पौधे
ये कहीं नहीं जाते
और हर कहीं चले आते हैं
हमारे साथ याद दिलाते
कि हमारे चले जाने के बाद भी
कायम रहती है हर जगह
एक भीतर और एक बाहर से
मिलकर ही बनती है हर जगह
और दोनों के ठीक बीचोबीच होने के
मुंडेर पर लटका आदमी कभी भीतर
तो कभी बाहर झांकते तलाशता है अर्थ
पाने और खोने के।
दो जगहों का फर्क जितना सच है
उतनी ही वास्तविक हैं खिड़कियां
भीत, परदे, मुंडेर और दीवारें
जिनसे बनती है जगहें और
जगहों को जाने वाले।
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इक मन था मेरे पास वो अब खोने लगा है
पाकर तुझे हाय मुझे कुछ होने लगा है
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🔥🔥🔥 👉ओरल सेक्स के लिए हर महिला सहज नहीं होती है। ऐसे में जब उन पर साथी द्वारा दबाव बनाया जाता है, तो ये उनके संबंध बनाने के अनुभव को कड़वाहट से भर देता है। पॉर्न फिल्में देखने के बाद पुरुष साथी के जरिए वैसी ही स्थितियों की उम्मीद करना या पार्टनर पर ऐसा करने का दबाव डालना भी महिलाओं को परेशान कर देता है और वे रुचि खोने लगती हैं क्योंकि ये उनके लिए काफी असहज कर देने वाली स्थितियां होती हैं‼️ 🔥🔥🔥
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क्या हुआ अगर आज वापस रात बीत गयी
क्या हुआ अगर एक और दिन अंत के बारे सोचते सोचते गुज़र गया
खुद से खफा सब है यहां फिर भी दुसरो को मनाते रहते हैं
भीड़ में खोने के मौके और मिलेंगे, ये तुम भी जानते हो
वापस साथ चलना शायद न हो पाए किसी का किसी के संग
और वापस शायद एक और रात इसी बात के बारे सोचते सोचते गुज़र जाए की गलती किसकी थी क्या थी और क्यों थी
क्या फरक पड़ेगा किसी भी सवाल से
अगर उसका उत्तर देने हेतु कोई आस पास ही न हो
झूठ और सच के बीच में घर बनाकर बैठी हूं, दोनों से डर लगता है
इतना शोर है , मुझे मेरे विचार नहीं समझ आ रहे
मेरे कुर्ते की सिलवटों में मैंने तुम्हारी महक छुपा के रखी है
किताब के पन्ने कुछ खाली लगते हैं अब जो मेरे पास किनारे लिखने के लिए शब्द खत्म हो रहे हैं
कुछ सही है कुछ गलत कुछ दोनो ही नहीं है
कुछ यादें हैं कुछ सपने कुछ वास्तविक भी नहीं
किसी भी पंक्ति का कोई अर्थ नहीं
किसी भी दुख का कोई मोल नहीं
सांय में वापस नहीं जा सकते
एक और रात यहीं बिता देंगे
युहीं
बस सोचते सोचते
(senseless sa kuch kyuki neend ni aari lol)
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प्रत्येक व्यक्ति कुछ ऐसा प्राप्त करने के लिए संघर्षरत है जो उसके पास नहीं है, और वह उसके लिए शोकग्रस्त है जो उसने खो दी है। किन्तु जब वह समझ जाता है 'न तो मेरे पास कुछ प्राप्त करने के लिए है और न ही कुछ खोने के लिए; मुझे इस भौतिक संसार से कुछ लेना देना नहीं है' तो वह ब्रह्मभू��ः कहलाता है। वह ब्रह्म - साक्षात्कार है। वृन्दावन, 9 नवम्बर 1972
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न पाने से किसी के है न कुछ खोने से मतलब है
ये दुनियां है इसे तो कुछ न कुछ होने से मतलब है
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तू आती ख्वाबों में मेरे कभी
तू मेरी सांसों में बहती कभी
मैं तुझसे रूबरू, मैं तुझमें डूबा हूं
खोने से मैं डरूं, तू जाने नहीं
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