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महाशिवरात्रि 2021 : जानिए क्या है शिवरात्रि और महाशिवरात्रि में अंतर
चैतन्य भारत न्यूज फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि कहा गया है। इस बार यह शिवरात्रि 11 मार्च को है। मान्यता है इस दिन शिव आराधना करने से सालभर की शिव पूजा का फल मिलता है। वैसे तो शिवरात्रि हर महीने आती है लेकिन महाशिवरात्रि बड़ा पर्व माना जाता है। आइए जानते हैं शिवरात्रि और महाशिवरात्रि का अंतर। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({});
शिवरात्रि और महाशिवरात्रि का अंतर हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन आने वाली शिवरात्रि को केवल शिवरात्रि कहा जाता है लेकिन फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी के दिन आने वाले शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है। साल में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात भगवान शिव लिंग के रूप में प्रकट हुए थे। इसके अलावा कई लोगों का कहना है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की शादी हुई थी। इसलिए महाशिवरात्रि का पर्व जोर-शोर से मनाया जाता है।
महाशिवरात्रि पर बेल-पत्र चढाने का महत्व पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक, सृष्टि को संकट से बचाने के लिए भगवान शिव ने विष पिया था। वह विष इतना घातक था कि शिव का कंठ नीला पड़ गया। उस विष में इतनी गर्मी थी कि उसे पीने से भगवान शिव का मस्तक गर्म हो गया और उनके शरीर में पानी की कमी होने लगी। इसके बाद समस्त देवताओं ने उनके मस्तक पर बेल-पत्र चढ़ाए और जल अर्पित किया क्योंकि बेल-पत्र की तासीर ठंडी होती है और वह शरीर में पानी की कमी को भी पूरा करता है। ऐसा करने से शिव को बहुत आराम मिला और वह तुरंत प्रसन्न हो गए। इसके बाद भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए महाशिवरात्रि पर उन्हें बेल-पत्र और जल/दूध अर्पित किया जाता है। Read the full article
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महाशिवरात्रि 2020 : इसलिए भगवान शिव पर चढ़ाए जाते हैं बेल-पत्र, जानिए क्या है शिवरात्रि और महाशिवरात्रि में अंतर
चैतन्य भारत न्यूज फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि कहा गया है। इस बार यह शिवरात्रि 21 फरवरी दिन शुक्रवार को है। मान्यता है इस दिन शिव आराधना करने से सालभर की शिव पूजा का फल मिलता है। इस दिन भगवान शिव को बेल-पत्र चढाने का भी काफी महत्व है। वैसे तो शिवरात्रि हर महीने आती है लेकिन महाशिवरात्रि बड़ा पर्व माना जाता है। आइए जानते हैं शिवरात्रि और महाशिवरात्रि का अंतर और शिव को क्यों चढ़ाए बेल-पत्र। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({});
शिवरात्रि और महाशिवरात्रि का अंतर हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन आने वाली शिवरात्रि को केवल शिवरात्रि कहा जाता है लेकिन फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी के दिन आने वाले शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है। साल में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात भगवान शिव लिंग के रूप में प्रकट हुए थे। इसके अलावा कई लोगों का कहना है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की शादी हुई थी। इसलिए महाशिवरात्रि का पर्व जोर-शोर से मनाया जाता है।
महाशिवरात्रि पर बेल-पत्र चढाने का महत्व पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक, सृष्टि को संकट से बचाने के लिए भगवान शिव ने विष पिया था। वह विष इतना घातक था कि शिव का कंठ नीला पड़ गया। उस विष में इतनी गर्मी थी कि उसे पीने से भगवान शिव का मस्तक गर्म हो गया और उनके शरीर में पानी की कमी होने लगी। इसके बाद समस्त देवताओं ने उनके मस्तक पर बेल-पत्र चढ़ाए और जल अर्पित किया क्योंकि बेल-पत्र की तासीर ठंडी होती है और वह शरीर में पानी की कमी को भी पूरा करता है। ऐसा करने से शिव को बहुत आराम मिला और वह तुरंत प्रसन्न हो गए। इसके बाद भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए महाशिवरात्रि पर उन्हें बेल-पत्र और जल/दूध अर्पित किया जाता है। ये भी पढ़े... 21 फरवरी को है महाशिवरात्रि, भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए इस विधि से करें आराधना महाशिवरात्रि 2020 : पाकिस्तान में है सबसे रहस्यमयी शिव मंदिर, यहां सती की याद में भगवान शिव ने बहाए थे आंसू महाशिवरात्रि 2020 : एकमात्र मंदिर जहां स्थापित हैं सैंकड़ों शिवलिंग, दर्शन मात्र से पूरी होती है मनोकामना Read the full article
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महाशिवरात्रि 2020: इस अनोखे मंदिर में एक शिवलिंग में होते हैं 1008 शिवलिंग के दर्शन
चैतन्य भारत न्यूज बड़वानी. इस बार 21 फरवरी यानी शुक्रवार को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाएगा। इस खास अवसर पर हम आपको आज भोलेनाथ के एक ऐसे मंदिर के बारे में बता रहे हैं जहां एक ही शिवलिंग पर छोटे-छोटे 1008 शिवलिंग बने हुए हैं। जी हां... देशभर से श्रद्धालु इस अनोखे शिवलिंग के दर्शन करने आते हैं। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({}); 1100 साल पुराना शिवलिंग भोलेनाथ का यह अनोखा व अतिप्राचीन शिवलिंग मध्यप्रदेश के बड़वानी जिले के निवाली के समीप ग्राम वझर में है। शिवलिंग की ऊंचाई करीब साढ़े तीन फीट है। कहा जाता है कि इस अनोखे शिवलिंग के दर्शन-पूजन से 1008 शिवलिंग की पूजा का पुण्य एकसाथ मिल जाता है। इतिहासकारों के मुताबिक, भोलेनाथ का यह शिवलिंग परमारकालीन राजाओं द्वारा बनवाया गया है। लिहाजा यह 1100 साल से भी ज्यादा पुरानी है। अच्छे से नहीं हो रहा रखरखाव काले पत्थर पर बने एक शिवलिंग पर बड़ी-ही नाजुकता और सफाई से 1008 शिवलिंगों को उकेरा गया है। हालांकि, इस अति महत्वपूर्ण प्राचीन शिवलिंग का रखरखाव अच्छे से नहीं हो रहा है। शिवलिंग को एक पेड़ के नीचे स्थापित किया गया है। पास ही नंदी भगवान की भी एक विशाल प्रतिमा रखी गई है। अन्य देवताओं की प्रतिमा भी विराजित मंदिर परिसर में न सिर्फ 1008 मुख वाला शिवलिंग बल्कि और भी कई देवताओं की प्रतिमा विराजित है। साथ ही यहां जैन प्रभु की प्रतिमाएं भी हैं। उचित रख-रखाव के अभाव के कारण यहां से कुछ प्रतिमाओं को केंद्रीय संग्रहालय इंदौर व अन्य स्थानों पर पहुंचा दिया गया है। वर्षभर जलमग्न रहता है शिवलिंग वझर में स्थित 1008 शिवलिंग वाले मंदिर के अलावा यहां से 3 किमी दूर ग्राम फुलज्वारी में भी एक प्राचीन शिव मंदिर है। यह मंदिर गर्भगृह में है। जानकारी के मुताबिक, गर्भगृह में स्थापित यह शिवलिंग सालभर जलमग्न रहता है। वर्त्तमान में भी मंदिर के गर्भगृह में छह इंच से अधिक पानी भरा हुआ मिला। इस मंदिर के आसपास भी कई खंडित प्राचीन प्रतिमाएं रखी हुई हैं। ये भी पढ़े... महाशिवरात्रि 2020: आखिर क्यों महाशिवरात्रि को कहा जाता है सिद्धि रात्रि? शिव की पूजा से होते हैं दोषमुक्त महाशिवरात्रि 2020 : उज्जैन के राजा हैं महादेव तो रूद्र के रूप हैं काशी के कोतवाल महाशिवरात्रि 2020 : पाकिस्तान में है सबसे रहस्यमयी शिव मंदिर, यहां सती की याद में भगवान शिव ने बहाए थे आंसू Read the full article
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महाशिवरात्रि पर आधी शताब्दी पहले महाकाल के पूजन का समय बताती थी जल घड़ी
चैतन्य भारत न्यूज उज्जैन. मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित कालो के काल महाकाल मंदिर का पौराणिक ग्रंथों में काफी सुंदर वर्णन मिलता है। महाशिवरात्रि के पर्व पर मंदिर में भक्तों का तांता लगा कहता है। जानकारी के मुताबिक, करीब आधी शताब्दी पहले महाशिवरात्रि के अवसर पर बाबा महाकाल के चारों प्रहर की पूजा का समय जल घड़ी तय करती थी। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({}); मंदिर के सभा मंडप में जल घड़ी द्वारा समय की गणना करने वाले जानकर को बैठाया जाता था। जानकर घटी, पल के अनुसार समय निर्धारित कर पुजारियों को जानकारी देते थे। प्रसिद्ध ज्योतिर्विद पं। आनंदशंकर व्यास के मुताबिक, करीब 50 साल पहले मंदिर में घड़ी नहीं हुआ करती थी। उस समय महाशिवरात्रि की पूजा के लिए स्टेट द्वारा जल घड़ी का इंतजाम किया जाता था। घटी के अनुसार समय की गणना कर जल विशेषज्ञ घंटा बजाकर इसकी सूचना देते थे।
ढाई घटी बराबर एक घंटा पं. आनंदशंकर व्यास के मुताबिक, एक घटी 24 मिनट की होती है। यानी ढाई घटी एक घंटे और साठ घटी का दिन रात होता है। इसी के आधार पर एक घंटा पूरा होने पर घंटा बजाया जाता था। इसके अनुसार ही पुजारी महाअभिषेक पूजन का क्रम निर्धारित करते थे। बता दें महाशिवरात्रि पर महाकाल मंदिर में चार प्रहर की पूजा होती है। दोपहर 12 बजे स्टेट द्वारा (वर्तमान में तहसील की ओर से होने वाली पूजा) पूजा की जाती है। फिर शाम को 4 बजे सिंधिया व होलकर राजवंश द्वारा पूजन होता है। इसके बाद रात 11 बजे महानिशाकाल के पूजन की शुरुआत होती है। अगले दिन सुबह तड़के 4 बजे भगवान को सप्तधान अर्पित कर सवामन फूल व फलों का सेहरा सजाया जाता है। तपेले में पानी भरकर बनाई जाती थी जल घड़ी जल घड़ी बनाने की अलग ही कला होती थी। इसके लिए सबसे पहले एक बड़े तपेले में पानी भरा जाता था। फिर उसमे एक कटोरा डाला जाता था और उसके नीचे छिद्र होता था। इस छिद्र के जरिए पानी कटोरे में भरने लग जाता है। उसी से समय की गणना की जाती है। Read the full article
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महाशिवरात्रि 2020 : आज देवों के देव महादेव का दिन, जानिए शिवरात्रि व्रत के नियम और पूजा का तरीका
चैतन्य भारत न्यूज महाशिवरात्रि हिंदू धर्म में भगवान शिव के प्रति सच्ची आस्था और श्रृद्धा का पर्व माना जाता है। इस बार महाशिवरात्रि 21 फरवरी, शुक्रवार की है। कहा जाता है कि जो भक्त इस दिन श्रद्धा से व्रत रखते हैं उन्हें भगवान शिव की कृपा मिलती है। लेकिन व्रत के दौरान कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। भगवान शिव की पूजा में भक्तजन जाने-अनजाने में कुछ ऐसी गलतियां कर बैठते हैं, जिनके कारण उनकी पूजा या तो अधूरी मानी जाती है या फिर पूजा का पूर्ण फल नहीं प्राप्त होता। इसलिए आप पूजा के दौरान इन बातों का ध्यान रखें। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({});
महाशिवरात्रि पूजा के नियम भगवान शिव के मंदिर में यदि आप शाम के वक्त दर्शन करने जा रहे हैं तो शाम के वक्त जल न चढ़ाएं। शास्त्रों के अनुसार शाम का पहर शिवलिंग पर जल चढ़ाने के लिए उपयुक्त नहीं होता है। जलाभिषेक सुबह की पूजा में करने का विधान है। भगवान शिव की पूजा में शंख का प्रयोग नहीं किया जाता है। मान्यता है कि, भगवान शिव ने शंखचूड़ नामक दैत्य का वध किया था और शंख को उसी राक्षस का अंश माना जाता है। इसलिए शिव पूजा के दौरान शंख नहीं बजाना चाहिए। शिवलिंग का अभिषेक करते समय 'ओम नम: शिवाय' का जाप करना चाहिए। इसके बाद बिल्व -पत्र, धतूरा, फल और फूल अर्पित करना चाहिए। इस दिन भगवान शिव को बेर चढ़ाना ��हुत शुभ माना जाता है।
महाशिवरात्रि व्रत के नियम महाशिवरात्रि के दिन सुबह उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें। इसके बाद शिव मंदिर जाएं या घर के मंदिर में ही शिवलिंग पर जल चढ़ाएं। पूरा दिन भगवान शिव के चरणों में भक्ति के साथ बिताना चाहिए। अगर आप पूरे दिन निराहार व्रत रखना चाहते हैं तो अगले दिन स्नान करके व्रत का पारण कर सकते हैं। इस बीच रात्रि में भोले शंकर का जागरण करना चाहिए। कहा जाता है कि शिवरात्रि में संपूर्ण रात्रि जागरण करने से महापुण्य फल की प्राप्ति होती है। शिवजी को शमी, आक, पलाश और सदाबहार के पुष्प प्रिय होते हैं। ये भी पढ़े... महाशिवरात्रि 2020: आखिर क्यों महाशिवरात्रि को कहा जाता है सिद्धि रात्रि&? शिव की पूजा से होते हैं दोषमुक्त महाशिवरात्रि 2020 : उज्जैन के राजा हैं महादेव तो रूद्र के रूप हैं काशी के कोतवाल महाशिवरात्रि 2020 : एकमात्र मंदिर जहां स्थापित हैं सैंकड़ों शिवलिंग, दर्शन मात्र से पूरी होती है मनोकामना महाशिवरात्रि 2020: आखिर क्यों महाशिवरात्रि को कहा जाता है सिद्धि रात्रि? शिव की पूजा से होते हैं दोषमुक्त Read the full article
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महाशिवरात्रि 2020: भगवान शिव ने माता पार्वती को बताए थे ये 4 रहस्य, खुशहाल जीवन जीने के लिए आप भी जानें
चैतन्य भारत न्यूज फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि कहा गया है। इस बार यह शिवरात्रि 21 फरवरी दिन शुक्रवार को है। मान्यता है इस दिन शिव आराधना करने से सालभर की शिव पूजा का फल मिलता है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं भगवान शिव के उन रहस्यों के बारे में जो उन्होंने माता पार्वती के साथ साझा थे। भगवान शिव ने पार्वती माता को जो पाठ पढ़ाए, वे मानव जीवन, परिवार, और शादीशुदा जिंदगी के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({});
सबसे बड़ा गुण और पाप भगवान शिव से एक बार माता पार्वती ने पूछा कि मानव का सबसे बड़ा गुण क्या है? मानव सबसे बड़ा पाप कौन सा करता है? भगवान शिव ने इसका उत्तर दिया कि, इस दुनिया में सबसे बड़ा पाप बेईमानी और धोखा करना है। धोखा इस दुनिया ��ा सबसे बड़ा पाप है जो मानव करता है। मानव को अपनी जिंदगी में हमेशा ईमानदार रहना चाहिए।
कभी भी ये इन तीन काम न करें भगवान शिव ने पार्वती को बताया कि किसी भी मनुष्य को वाणी, कर्मों और विचार के माध्यम से पाप नहीं करने चाहिए। यानी पापपूर्ण कर्म नहीं करने चाहिए और विचारों और वाणी में भी अशुद्धता नहीं होनी चाहिए। मनुष्य वही काटता है जो वह बोता है। इसलिए हमेशा व्यक्ति को अपने कर्मों के प्रति सतर्क रहना चाहिए।
सफलता का एक मंत्र भगवान शिव ने बताया कि, मोह ही सभी समस्याओं की जड़ है। मोह-माया सफलता के रास्ते में बाधा उत्पन्न करती है। जब आप दुनिया की सभी तरह की मोह-मायाओं से मुक्त हो जाते हैं तो आपको अपनी जिंदगी में सफलता प्राप्त करने से कोई रोक नहीं हो सकता है।
खुद का मूल्यांकन जरूरी है भगवान शिव ने माता पार्वती को बताया कि, मानव को परिश्रम करने के साथ खुद का मूल्यांकन करते रहना चाहिए। मानव को हमेशा अपने कृत्यों और व्यवहार पर खुद ही नजर रखनी चाहिए। किसी भी मनुष्य को ऐसे कामों में लिप्त नहीं होना चाहिए जो नैतिक रूप से गलत हो। ये भी पढ़े... महाशिवरात्रि 2020: आखिर क्यों महाशिव��ात्रि को कहा जाता है सिद्धि रात्रि? शिव की पूजा से होते हैं दोषमुक्त महाशिवरात्रि 2020 : उज्जैन के राजा हैं महादेव तो रूद्र के रूप हैं काशी के कोतवाल महाशिवरात्रि 2020 : एकमात्र मंदिर जहां स्थापित हैं सैंकड़ों शिवलिंग, दर्शन मात्र से पूरी होती है मनोकामना Read the full article
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महाशिवरात्रि 2020: भगवान शिव ने माता पार्वती को बताए थे ये 4 रहस्य, खुशहाल जीवन जीने के लिए आप भी जानें
चैतन्य भारत न्यूज फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि कहा गया है। इस बार यह शिवरात्रि 21 फरवरी दिन शुक्रवार को है। मान्यता है इस दिन शिव आराधना करने से सालभर की शिव पूजा का फल मिलता है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं भगवान शिव के उन रहस्यों के बारे में जो उन्होंने माता पार्वती के साथ साझा थे। भगवान शिव ने पार्वती माता को जो पाठ पढ़ाए, वे मानव जीवन, परिवार, और शादीशुदा जिंदगी के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({});
सबसे बड़ा गुण और पाप भगवान शिव से एक बार माता पार्वती ने पूछा कि मानव का सबसे बड़ा गुण क्या है? मानव सबसे बड़ा पाप कौन सा करता है? भगवान शिव ने इसका उत्तर दिया कि, इस दुनिया में सबसे बड़ा पाप बेईमानी और धोखा करना है। धोखा इस दुनिया का सबसे बड़ा पाप है जो मानव करता है। मानव को अपनी जिंदगी में हमेशा ईमानदार रहना चाहिए।
कभी भी ये इन तीन काम न करें भगवान शिव ने पार्वती को बताया कि किसी भी मनुष्य को वाणी, कर्मों और विचार के माध्यम से पाप नहीं करने चाहिए। यानी पापपूर्ण कर्म नहीं करने चाहिए और विचारों और वाणी में भी अशुद्धता नहीं होनी चाहिए। मनुष्य वही काटता है जो वह बोता है। इसलिए हमेशा व्यक्ति को अपने कर्मों के प्रति सतर्क रहना चाहिए।
सफलता का एक मंत्र भगवान शिव ने बताया कि, मोह ही सभी समस्याओं की जड़ है। मोह-माया सफलता के रास्ते में बाधा उत्पन्न करती है। जब आप दुनिया की सभी तरह की मोह-मायाओं से मुक्त हो जाते हैं तो आपको अपनी जिंदगी में सफलता प्राप्त करने से कोई रोक नहीं हो सकता है।
खुद का मूल्यांकन जरूरी है भगवान शिव ने माता पार्वती को बताया कि, मानव को परिश्रम करने के साथ खुद का मूल्यांकन करते रहना चाहिए। मानव को हमेशा अपने कृत्यों और व्यवहार पर खुद ही नजर रखनी चाहिए। किसी भी मनुष्य को ऐसे कामों में लिप्त नहीं होना चाहिए जो नैतिक रूप से गलत हो। ये भी पढ़े... महाशिवरात्रि 2020: आखिर क्यों महाशिवरात्रि को कहा जाता है सिद्धि रात्रि? शिव की पूजा से होते हैं दोषमुक्त महाशिवरात्रि 2020 : उज्जैन के राजा हैं महादेव तो रूद्र के रूप हैं काशी के कोतवाल महाशिवरात्रि 2020 : एकमात्र मंदिर जहां स्थापित हैं सैंकड़ों शिवलिंग, दर्शन मात्र से पूरी होती है मनोकामना Read the full article
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21 फरवरी को है महाशिवरात्रि, भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए इस विधि से करें आराधना
चैतन्य भारत न्यूज महाशिवरात्रि का पर्व इस साल 21 फरवरी को मनाया जाएगा। भगवान शिव और माता पार्वती की इस दिन विशेष पूजा की जाती है। मान्यता है कि महाशिवरात्रि को शिवजी के साथ पार्वती की शादी ह��ई थी। इसी दिन शिवजी ने वैराग्य जीवन छोड़कर गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया था। आइए जानते हैं महाशिवरात्रि का महत्व और पूजन विधि। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({});
महाशिवरात्रि का महत्व फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्द��ी को आने वाली शिवरात्रि को महाशिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। इस दिन को शिव भक्त बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। इस दिन व्रत रखने से कई व्रतों के बराबर पुण्य प्राप्त होने की मान्यता है। इसलिए इस व्रत को व्रतों का राजा कहा गया है। कहा जाता है महाशिवरात्रि को शिवजी के साथ माता पार्वती की शादी हुई थी। इसी दिन शिवजी ने वैराग्य जीवन छोड़कर गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया था। शिव जो वैरागी थी, वह गृहस्थ बन गए। शास्त्रों के मुताबिक, महाशिवरात्रि का व्रत करने वाले साधक को मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही सभी दुखों, पीड़ाओं का अंत तो होता ही है और मनोकामनाएं भी पूर्ण होती है।
महाशिवरात्रि पूजा-विधि इस दिन सुबह जल्दी स्नान कर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद भगवान शिव को चदंन लगाएं और उन्हें फूल, बेलपत्र, भांग, बेर आदि सभी चीजें शिवलिंग पर अर्पित करें। जलाभिषेक करते समय लगातार ऊं नम: शिवाय मंत्र का जाप करते रहना चाहिए। इसके बाद वहीं शिवलिंग के आगे धूप व दीप जलाएं और उनकी आरती करें। भगवान शिव की आरती करने के बाद वहीं बैठकर शिव स्तुति आवश्य करें। आप चाहें तो शिव तांडव स्तोत्र का पाठ भी कर सकते हैं। पूजा के बाद महाशिवरात्रि के दिन गरीबों में दान का काफी महत्व है। अपनी इच्छानुसार दान करें। ये भी पढ़े... सोमवार व्रत करने से बरसती है भगवान शिव की कृपा, जानिए महत्व और पूजन-विधि IRCTC के नए पैकेज में एक साथ होंगे भगवान शिव के 9 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन, इस दिन शुरू होगी यात्रा भगवान शिव के इस रहस्यमयी मंदिर में चढ़ाने के बाद दूध सफेद से हो जाता है नीला Read the full article
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महाशिवरात्रि : 59 साल बाद बनेगा ये विशेष योग, साधना सिद्धि के लिए इस विधि से करें पूजा
चैतन्य भारत न्यूज हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि का काफी महत्व है। इस बार महाशिवरात्रि पर्व 21 फरवरी को मनाया जाएगा। कहा जा रहा कि इस महाशिवरात्रि करीब 59 साल बाद एक विशेष योग बन रहा है जो साधना सिद्धि के लिए खास रहता है। यहां योग शश योग है। इस दिन पांच ग्रहों की राशि पुनराप्रवृत्ति भी होगी। शनि व चंद्र मकर राशि, गुरु धनु राशि, बुध कुंभ राशि तथा शुक्र मीन राशि में रहेंगे। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इससे पहले ग्रहों की यह स्थिति और शशयोग वर्ष 1961 में रहे थे। आइए जानते हैं इस योग का महत्व और पूजन-विधि। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({});
शश योग का महत्व ज्योतिषशास्त्र में साधना के लिए तीन रात्रि विशेष मानी गई है। इनमें शरद पूर्णिमा को मोहरात्रि, दीपावली की कालरात्रि तथा महाशिवरात्रि को सिद्धरात्रि कहा गया है। इस बार महाशिवरात्रि पर चंद्र शनि की मकर में युती के साथ शश योग बन रहा है। आमतौर पर श्रवण नक्षत्र में आने वाली शिवरात्रि और मकर राशि के चंद्रमा का योग भी बनता है। जबकि इस बार 59 साल बाद शनि के मकर राशि में होने से तथा चंद्र का संचार अनुक्रम में शनि के वर्गोत्तम अवस्था में शश का योग बन रहा है। चूंकि चंद्रमा मन तथा शनि ऊर्जा कारक ग्रह है। यह योग साधना की सिद्धि के लिए विशेष महत्व रखता है। चंद्रमा को कला तथा शनि को काल पुरुष का पद प्राप्त है। ऐसी स्थिति में कला तथा काल पुरुष के युति संबंध वाली यहां रात्रि शिवरात्रि की श्रेणी में आती है।
सर्वार्थसिद्धि का भी संयोग ज्योतिष्याचार्यों ने बताया कि, इसके साथ ही महाशिवरात्रि पर सर्वार्थसिद्धि का संयोग रहेगा। इस योग में शिव-पार्वती का पूजन श्रेष्ठ माना गया है। शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार शिवरात्रि का पूजन 'निशीथ काल' में करना सर्वश्रेष्ठ रहता है। हालांकि भक्त रात्रि के चारों प्रहरों में से अपनी सुविधा अनुसार यहां पूजन कर सकते हैं।
शिवरात्रि पर ऐसे करें पूजा। मिट्टी के लोटे में पानी या दूध भरकर, ऊपर से बेलपत्र, आक धतूरे के फूल, चावल आदि डालकर शिवलिंग पर चढ़ाना चाहिए। शिव पुराण का पाठ और महामृत्युंजय मंत्र या शिव के पंचाक्षर मंत्र 'ओम नमः शिवाय' का जाप करना चाहिए महाशिवरात्रि के दिन रात्रि जागरण का भी विधान है। ये भी पढ़े... भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए जान लें व्रत के नियम सोमवार को बन रहा है ये विशेष योग, इस विधि से पूजा कर भगवान शिव को करें प्रसन्न IRCTC के नए पैकेज में एक साथ होंगे भगवान शिव के 9 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन, इस दिन शुरू होगी यात्रा Read the full article
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