#कैंसर के लक्षण
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drsunilkumar · 2 years ago
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sparshcentre · 1 year ago
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10 आम परेशानियाँ जिनका इलाज़ दर्द निवारण क्लिनिक पर किया जाता है -
कैंसर का दर्द
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कैंसर के रोगियों में दर्द सबसे आम लक्षणों में से एक है। यह कैंसर, कैंसर के इलाज या कारकों के संयोजन के कारण हो सकता है। कैंसर के दर्द का प्रबंधन WHO की सीढ़ी के अनुसार किया जाता है, जो मॉर्फिन या फेंटेनल जैसी ओपिओइड दवाओं तक बढ़ जाता है, और कभी-कभी पेट दर्द के लिए न्यूरोलाइटिक ब्लॉक जैसे सीलिएक प्लेक्सस ब्लॉक की आवश्यकता होती है, जो की पैन क्लिनिक पर किए जाते है l
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2. पीठ दर्द अथवा सायटिका
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पीठ के निचले हिस्से का दर्द विश्व स्तर पर दर्द के प्रमुख कारणों में से एक है। लगभग 80% वयस्क अपने जीवनकाल के दौरान किसी न किसी समय पीठ के निचले हिस्से में दर्द का अनुभव करते हैं। यह मांसपेशियों में खिंचाव से लेकर इंटरवर्टेब्रल डिस्क के खिसकने तक विभिन्न कारणों से हो सकता है। पीठ के निचले हिस्से में दर्द को एक बहु-विषयक दृष्टिकोण ( मल्टीडाइमेंशनल एप्रोच) द्वारा ठीक किया जाता है जिसमें आसन संबंधी सावधानियां, दवाएं, व्यायाम, फिजियोथेरेपी और कुछ न्यूनतम इनवेसिव हस्तक्षेप जैसे मायोफेशियल ट्रिगर प��इंट इंजेक्शन, ट्रांसफोरामिनल या कॉडल एपिड्यूरल स्टेरॉयड, लम्बर डोर्सल रूट गैंग्लियन पल्स्ड आरएफए, फेसेट जॉइंट इंजेक्शन और मेडियन ब्रांच ब्लॉक शामिल हैं। सैक्रोइलियक जॉइंट इंजेक्शन, एंडोस्कोपिक डिस्केक्टॉमी भी अब ऐसी स्थितियों के लिए न्यूनतम इनवेसिव डे केयर प्रक्रिया के रूप में लोकप्रियता हासिल कर रही है।
 3. घुटने के दर्द
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ऑस्टियोआर्थराइटिस (OA) घुटने के दर्द का कारण बनने वाला सबसे आम आर्थराइटिस विकार है। OA के कारण घुटने के दर्द के प्रबंधन के लिए घुटने के व्यायाम और सावधानियों की आवश्यकता होती है। यदि सूजन या जोड़ का बहाव स्पष्ट है, तो इंट्रा-आर्टिकुलर इंजेक्शन की आवश्यकता हो सकती है। ग्रेड 1 या 2 ओए रोगियों को प्लेटलेट रिच प्लाज़्मा इंजेक्शन से लाभ हो सकता है। अधिक उन्नत OA वाले रोगियों में, दर्द से राहत के लिए जेनिक्यूलर नर्व रेडियोफ्रीक्वेंसी एब्लेशन (RFA) किया जा सकता है। जेनिक्यूलर ना आरएफए एक नई तकनीक है जो ऐसे मामलों में घुटने के दर्द से निरंतर राहत प्रदान करती है।
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4) गर्दन और बांह में दर्द
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गर्दन में दर्द एक आम समस्या है, दो-तिहाई आबादी को अपने जीवन में कभी न कभी गर्दन में दर्द होता है। गर्दन और ऊपरी पीठ दोनों में मांसपेशियों की जकड़न या ग्रीवा कशेरुकाओं के पास से निकलने वाली नसों के दबने के कारण गर्दन में दर्द हो सकता है। गर्दन के पहलू जोड़ भी दर्द का कारण हो सकते हैं। गर्दन के दर्द को एक बहु-विषयक दृष्टिकोण द्वारा प्रबंधित किया जाता है जिसमें आसन संबंधी सावधानियां, दवाएं, व्यायाम, फिजियोथेरेपी और कुछ न्यूनतम इनवेसिव हस्तक्षेप जैसे नेक मायोफेशियल ट्रिगर पॉइंट इंजेक्शन, सर्वाइकल एपिड्यूरल स्टेरॉयड, सर्वाइकल मीडियन ब्रांच ब्लॉक और थर्ड ऑक्सीपिटल नर्व ब्लॉक शामिल हैं।
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5. पोस्ट हर्पेटिक न्यूराल्जिया
हर्पीस ज़ोस्टर के चकत्तों के क्षेत्र में दर्द बना रहना। यह आम तौर पर जलन, शूटिंग, धड़कन या बिजली के झटके जैसा दर्द होता है, और आमतौर पर छात�� की दीवार क्षेत्र या आंखों के आसपास चेहरे पर देखा जाता है। प्रबंधन में न्यूरोपैथिक दवाओं, सामयिक मलहम और नर्व इंटरवेंशन का विवेकपूर्ण उपयोग शामिल है।
6) चेहरे की नसो मे दर्द
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ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया अचानक, गंभीर चेहरे का दर्द है। इसे अक्सर तेज शूटिंग दर्द या जबड़े, दांत या मसूड़ों में बिजली का झटका लगने जैसा बताया जाता है। लंबे समय तक ली जाने वाली ओरल मेडिसिन से इसे नियंत्रित किया जा सकता है। यदि दवा राहत प्रदान करने में विफल रहती है, तो गैसेरियन गैंग्लियन आरएफए या गैंग्लियन के बैलून कम्प्रेशन जैसी न्यूनतम इनवेसिव इंटरवेंशनल दर्द प्रक्रियाएं पेश की जा सकती हैं। इस दुर्बल करने वाली बीमारी से निपटने के लिए न्यूरोसर���जिकल प्रक्रियाएं भी उपलब्ध हैं।
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7. तंत्रिका संबंधी (न्यूरोपैथी) दर्द
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तंत्रिकाओं की क्षति या अनुच���त कार्यप्रणाली से उत्पन्न होने वाले दर्द को न्यूरोपैथिक दर्द कहा जाता है। यह जलन, गोली लगने या बिजली के झटके जैसे दर्द के रूप में प्रकट हो सकता है। इस दर्द को आमतौर पर एंटी-न्यूरोपैथिक दवाओं द्वारा नियंत्रित किया जाता है। कभी-कभी दर्द से राहत के लिए नर्व ब्लॉक की आवश्यकता हो सकती है।
8. फाइब्रोमायल्जिया
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फाइब्रोमायल्जिया शरीर में व्यापक दर्द का एक सामान्य कारण है। इसके साथ थकान, बिना ताजगी वाली नींद, बिगड़ा हुआ एकाग्रता, स्मृति समस्याएं और मूड में गड़बड़ी सहित अन्य लक्षण भी हो सकते हैं। फाइब्रोमायल्गिया का प्रबंधन बहु-विषयक है, जिसमें दवाएं, फिजियोथेरेपी और आहार संबंधी परामर्श शामिल हैं।
9. सीआरपीएस — कॉम्पलैक्स रीजनल पेन सिंड्रोम
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सीआरपीएस एक पुरानी दर्द की स्थिति है जो चोट लगने के बाद आमतौर पर एक अंग (हाथ, पैर, हाथ या पैर) को प्रभावित करती है। ऐसा माना जाता है कि यह परिधीय या केंद्रीय तंत्रिका तंत्र की क्षति या खराबी के कारण होता है। सीआरपीएस के प्रबंधन के लिए पुनर्वास, फिजियोथेरेपी और मनोचिकि��्सा महत्वपूर्ण हैं। सहानुभूति तंत्रिका ब्लॉक जैसे स्टेलेट गैंग्लियन ब्लॉक या लम्बर सिम्पैथेटिक प्लेक्सस ब्लॉक की आवश्यकता हो सकती है।
10. कोक्सीगोडायनिया (पूंछ की हड्डी में दर्द)
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कोक्सीक्स दर्द, जिसे कोक्सीगोडायनिया भी कहा जाता है, टेलबोन के क्षेत्र में दर्द है, विशेष रूप से बैठने पर बढ़ जाता है। इसे डोनट (dough nut) तकिया और सिट्ज़ बाथ जैसे सरल उपायों द्वारा प्रबंधित किया जा सकता है। आमतौर पर NSAIDS का एक कोर्स आवश्यक होता है। यदि दर्द बना रहता है, तो स्थानीय इंजेक्शन या गैंग्लियन इंपार ब्लॉक के रूप में मिनिमल इनवेसिव इंटरवेंशन किया जा सकता है।
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indlivebulletin · 4 days ago
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पेट का कैंसर: पेट का कैंसर होने पर शरीर में होते हैं बदलाव, ऐसे करें पहचान
पेट का कैंसर: पेट का कैंसर जिसे अंग्रेजी में स्टमक कैंसर भी कहा जाता है। इसे पेट का कैंसर भी कहा जाता है। आप भी सोच रहे होंगे कि क्या पुरुषों और महिलाओं में पेट के कैंसर के लक्षण अलग-अलग होते हैं। दरअसल, ऐसा कुछ नहीं होता. पुरुषों और महिलाओं दोनों में कैंसर के लक्षण समान होते हैं। लेकिन यह भी सच है कि इसके लक्षण हर व्यक्ति पर अलग-अलग दिखते हैं। पेट के कैंसर के रोगियों का उपचार इस बात पर निर्भर…
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sahyadrihospital22 · 6 days ago
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ब्लड कैंसर क्या है ?
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ब्लड कैंसर एक बीमारी है जिसमें खून में बनने वाली कोशिकाओं (सेल्स) की वृद्धि असामान्य तरीके से होती है। खून में मुख्यतः तीन प्रकार की कोशिकाएं होती हैं: लाल रक्त कोशिकाएं (RBCs), सफेद रक्त कोशिकाएं (WBCs), और प्लेटलेट्स। जब इनमें से किसी भी प्रकार की कोशिकाएं गलत तरीके से बढ़ने लगती हैं, तो इसे ब्लड कैंसर कहते हैं।
ब्लड कैंसर कैसे होता है?
ब्लड कैंसर क्यों होता है, इसका सटीक कारण अभी तक पूरी तरह से पता नहीं चला है। लेकिन इसके होने के कुछ संभावित कारण ये हो सकते हैं:
आनुवांशिक समस्या: यदि परिवार में किसी को ब्लड कैंसर है, तो यह जोखिम बढ़ सकता है।
रेडिएशन या केमिकल्स: लंबे समय तक रेडिएशन या हानिकारक केमिकल्स के संपर्क में रहने से भी यह हो सकता है।
कमजोर इम्यून सिस्टम: अगर शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता कम हो, तो यह बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है।
ब्लड कैंसर का इलाज डॉक्टर की सलाह से किया जाता है, जिसमें कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी, या बोन मैरो ट्रांसप्लांट जैसे विकल्प हो सकते हैं। शुरुआती लक्षणों पर ध्यान देकर समय पर इलाज शुरू करना जरूरी है।
क्या ब्लड कैंसर ठीक हो सकता है?
खून का कैंसर (ब्लड कैंसर) इलाज़ किया जा सकता है, लेकिन यह इस बात पर निर्भर करता है कि कैंसर का प्रकार क्या है, वह किस स्टेज पर है, और मरीज की उम्र व सेहत कैसी है। कुछ मामलों में पूरी तरह ठीक हो जाना संभव होता है, खासकर अगर जल्दी डायग्नोस हो और सही इलाज़ मिले। इलाज़ में कीमोथेरपी, रेडिएशन, बोन मैरो ट्रांसप्लांट और इम्यूनोथेरपी जैसी तकनीकें शामिल होती हैं। डॉक्टर से सलाह लेना और सही समय पर इलाज़ शुरू करना सबसे ज़रूरी है।
खून के कैंसर (ब्लड कैंसर) के लक्षण
ब्लड कैंसर के शुरुआती लक्षण अक्सर हल्के होते हैं, लेकिन समय पर ध्यान देना ज़रूरी है। मुख्य लक्षणों में शामिल हैं:
लगातार थकावट: बिना किसी कारण के हमेशा थका हुआ महसूस करना।
बार-बार बुखार या संक्रमण: इम्यून सिस्टम कमजोर होने के कारण।
खून बहना या चोट लगने पर जल्दी से ठीक न होना: जैसे नाक से खून आना या चोट लगने पर ज्यादा समय तक खून बहना।
वजन कम होना: बिना डाइट या एक्सरसाइज़ के।
हड्डियों या जोड़ों में दर्द: अक्सर बिना किसी स्पष्ट कारण के।
सूजन या गांठें: गर्दन, बगल या कमर में सूजन।
त्वचा पर लाल या बैंगनी धब्बे: प्लेटलेट्स की कमी के कारण।
सांस लेने में तकलीफ: हल्के काम पर भी।
ब्लड कैंसर से बचाव के उपाय
खून के कैंसर को पूरी तरह से रोकना मुश्किल है, लेकिन कुछ सावधानियां अपनाकर इसका खतरा कम किया जा सकता है:
स्वस्थ भोजन करें: ताजे फल, सब्जियां और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर आहार लें। यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है।
हानिकारक केमिकल्स से बचें: बेंजीन जैसे रसायनों और रेडिएशन के संपर्क में आने से बचें। ये फैक्ट्रियों, पेंट्स और कुछ क्लीनिंग प्रोडक्ट्स में हो सकते हैं।
धूम्रपान न करें: तंबाकू और सिगरेट का सेवन न करें, क्योंकि ये ब्लड कैंसर के जोखिम को बढ़ाते हैं।
स्वच्छता का पालन करें: संक्रमण से बचने के लिए स्वच्छता बनाए रखें।
शारीरिक सक्रियता बनाए रखें: रोजाना हल्का व्यायाम करें और पर्याप्त धूप लें, जिससे विटामिन डी का स्तर ठीक रहे।
पारिवारिक इतिहास पर ध्यान दें: अगर परिवार में किसी को ब्लड कैंसर हुआ है, तो समय-समय पर स्वास्थ्य जांच कराएं।
क्या खून का कैंसर आनुवंशिक (जीन से जुड़ा) होता है?
खून का कैंसर पूरी तरह से आनुवंशिक (जीन से जुड़ा) नहीं होता, लेकिन कुछ मामलों में परिवार में जीन की गड़बड़ियां इसके जोखिम को बढ़ा सकती हैं।
परिवारिक इतिहास का प्रभाव: अगर परिवार के किसी सदस्य को ब्लड कैंसर हुआ है, तो अगले पीढ़ी में इसका खतरा थोड़ा बढ़ सकता है।
जीन म्यूटेशन: कुछ आनुवंशिक गड़बड़ियां, जैसे डाउन सिंड्रोम या अन्य जन्मजात समस्याएं, ब्लड कैंसर के खतरे को बढ़ा सकती हैं।
आनुवंशिक स्थितियां: कुछ दुर्लभ बीमारियां, जैसे फैनेकोनी एनीमिया, भी ब्लड कैंसर से जुड़ी हो सकती हैं।
हालांकि, ज्यादातर मामलों में ब्लड कैंसर का कारण आनुवंशिक नहीं बल्कि पर्यावरणीय कारक, केमिकल एक्सपोजर या इम्यून सिस्टम की समस्याओं से जुड़ा होता है। अगर परिवार में किसी को ब्लड कैंसर हो, तो डॉक्टर से नियमित जांच करवाना सही कदम हो सकता है।
ब्लड कैंसर से कैसे बचें?
खून के कैंसर से पूरी तरह बचना संभव नहीं है, लेकिन इसके खतरे को कम करने के लिए आप निम्नलिखित उपाय अ��ना सकते हैं:
धूम्रपान और तंबाकू से बचें: तंबाकू उत्पादों का सेवन न करें क्योंकि यह ब्लड कैंसर के जोखिम को बढ़ाता है।
स्वस्थ आहार लें: फल, सब्जियां और पोषण से भरपूर आहार खाएं जो इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है।
हानिकारक केमिकल्स से दूरी बनाएं: बेंजीन जैसे खतरनाक रसायनों और रेडिएशन के संपर्क में आने से बचें।
नियमित व्यायाम करें: शारीरिक रूप से सक्रिय रहना शरीर को स्वस्थ रखने में मदद करता है।
संक्रमण से बचाव करें: स्वच्छता का ध्यान रखें और संक्रमणों से बचने के लिए जरूरी सावधानियां अपनाएं।
पारिवारिक इतिहास पर नजर रखें: अगर परिवार में किसी को ब्लड कैंसर हुआ है, तो समय-समय पर डॉक्टर से परामर्श और स्वास्थ्य जांच कराएं।
खून के कैंसर (ब्लड कैंसर) के प्रकार
खून के कैंसर मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं, जो खून में मौजूद अलग-अलग कोशिकाओं को प्रभावित करते हैं:
ल्यूकेमिया (Leukemia)
यह रक्त और बोन मैरो (हड्डी का गूदा) को प्रभावित करता है।
इसमें सफेद रक्त कोशिकाएं (WBCs) असामान्य रूप से बढ़ने लगती हैं।
यह तीव्र (Acute) और दीर्घकालिक (Chronic) दोनों प्रकार का हो सकता है।
लिम्फोमा (Lymphoma)
यह शरीर के लिंफेटिक सिस्टम (lymphatic system) को प्रभावित करता है।
इसमें लिम्फोसाइट्स (एक प्रकार की सफेद रक्त कोशिका) असामान्य रूप से बढ़ जाती हैं।
मुख्यतः दो प्रकार: हॉजकिन लिम्फोमा (Hodgkin Lymphoma) और नॉन-हॉजकिन लिम्फोमा (Non-Hodgkin Lymphoma)।
मायलोमा (Myeloma)
यह प्लाज्मा कोशिकाओं (plasma cells) को प्रभावित करता है, जो एंटीबॉडी बनाती हैं।
इसमें शरीर की इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाती है।
ब्लड कैंसर: पहचान, इलाज और बचाव के उपाय
ब्लड कैंसर एक गंभीर बीमारी है, लेकिन अगर सही समय पर पहचान हो और उचित इलाज किया जाए, तो मरीज को बेहतर परिणाम मिल सकते हैं। यह बीमारी आनुवंशिक कारणों, पर्यावरणीय कारकों और कमजोर इम्यून सिस्टम से उत्पन्न हो सकती है। सही आहार, शारीरिक सक्रियता और नियमित जांच से इसके जोखिम को कम किया जा सकता है। पुणे में सह्याद्री अस्पताल जैसी प्रमुख स्वास्थ्य सुविधाएं ब्लड कैंसर के इलाज में मदद करती हैं, जहां विशेषज्ञों द्वारा उच्चतम स्तर की देखभाल दी जाती है। समय पर इलाज और विशेषज्ञों की सलाह से इस बीमारी से जूझना संभव है और मरीजों को बेहतर जीवन जीने का अवसर मिल सकता है।
पुणे में ब्लड कैंसर के इलाज के लिए सबसे अच्छा अस्पताल
सह्याद्रि अस्पताल विशेषज्ञों की अत्यधिक कुशल टीम और रोगी देखभाल पर विशेष ध्यान के साथ रक्त कैंसर उपचार सेवाएं देता है। व्यक्तिगत उपचार योजनाओं के प्रति हमारी प्रतिबद्धता, रक्त कैंसर रोगियों के लिए सर्वोत्तम संभव परिणाम सुनिश्चित करती है। सफलता के सिद्ध ट्रैक रिकॉर्ड और रोगी-केंद्रित दृष्टिकोण के साथ, सह्याद्री अस्पताल रक्त कैंसर से पीड़ित लोगों के लिए जीवन की गुण���त्ता में सुधार करने के लिए समर्पित है।
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oraal01 · 20 days ago
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कैंसर कितने समय में फैलता है? शुरुआती लक्षणों से पहचान कैसे करें
कैंसर एक गंभीर बीमारी है जो शरीर में असामान्य कोशिकाओं के अनियंत्रित रूप से बढ़ने के कारण होती है। यह कोशिकाएँ आसपास के टिश्यूज़ (ऊतकों) और अंगों में फैल सकती हैं और शरीर के विभिन्न हिस्सों में मेटास्टेसिस के माध्यम से संक्रमण कर सकती हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि कैंसर कितने दिन में फैलता है और शुरुआती लक्षणों से इसे कैसे पहचाना जा सकता है, ताकि इसका समय पर उपचार हो सके।
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कैंसर की वृद्धि और फैलाव की गति को प्रभावित करने वाले कारक
कैंसर के फैलने की गति को कई कारक प्रभावित करते हैं। ये कारक कैंसर के प्रकार, व्यक्ति की उम्र, जीवनशैली, आनुवंशिकता, और इम्यून सिस्टम (प्रतिरक्षा तंत्र) की ताकत पर निर्भर करते हैं।
कैंसर का प्रकार: सभी कैंसर एक ही गति से नहीं फैलते। कुछ प्रकार के कैंसर, जैसे लंग कैंसर (फेफड़ों का कैंसर) और पैंक्रियाटिक कैंसर (अग्नाशय का कैंसर), तेजी से फैलते हैं। दूसरी ओर, कुछ कैंसर जैसे प्रोस्टेट कैंसर अपेक्षाकृत धीमी गति से बढ़ते हैं।
जीवनशैली और पर्यावरणीय कारक: धूम्रपान, शराब का सेवन, अनियमित खानपान, और प्रदूषित वातावरण भी कैंसर की वृद्धि को तेज़ी से बढ़ा सकते हैं।
आनुवंशिकता: अगर परिवार में किसी को कैंसर हुआ हो, तो अन्य सदस्यों में इसके फैलने की संभावना बढ़ सकती है। आनुवंशिकता भी कैंसर की प्रवृत्ति और गति को प्रभावित कर सकती है।
प्रतिरक्षा तंत्र: इम्यून सिस्टम जितना मजबूत होगा, कैंसर कोशिकाओं के फैलने की संभावना उतनी ही कम होगी। कमजोर प्रतिरक्षा तंत्र के कारण कैंसर का विकास तेजी से हो सकता है।
कैंसर कितने समय में फैलता है?
कैंसर के फैलने का समय और उसकी गति कैंसर के प्रकार और व्यक्ति की शारीरिक स्थिति पर निर्भर करती है। आमतौर पर, कैंसर को फैलने और मेटास्टेसिस करने में महीनों से लेकर सालों तक का समय लग सकता है। कुछ मामलों में, मुंह क��� कैंसर कितने दिन में फैलता है और शुरुआती अवस्था में इसका पता चलने पर इसे नियंत्रण में रखा जा सकता है।
शुरुआती लक्षणों से कैंसर की पहचान कैसे करें?
कैंसर के लक्षण विभिन्न प्रकारों और शरीर के प्रभावित हिस्सों के आधार पर अलग-अलग हो सकते हैं। हालांकि, कुछ सामान्य लक्षण होते हैं जिन्हें पहचानकर कैंसर का प्रारंभिक चरण में निदान किया जा सकता है।
1. असामान्य गांठ का उभरना
शरीर के किसी हिस्से में गांठ का महसूस होना कैंसर का एक महत्वपूर्ण लक्षण हो सकता है। यह गांठ अक्सर बिना दर्द के होती है और समय के साथ बढ़ सकती है। अगर आपको किसी गांठ का पता चलता है, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
2. अचानक वजन में कमी
बिना किसी कारण के तेजी से वजन घटने को नजरअंदाज न करें। वजन में अचानक गिरावट कई तरह के कैंसर का संकेत हो सकती है, जैसे पेट, लिवर या पैंक्रियास का कैंसर।
3. लगातार खांसी या सांस लेने में कठिनाई
अगर किसी व्यक्ति को लंबे समय तक खांसी या सांस लेने में कठिनाई होती है और इलाज के बाद भी यह ठीक नहीं हो रही है, तो यह फेफड़ों के कैंसर का लक्षण हो सकता है। इस स्थिति में समय पर चिकित्सा सलाह लेना बहुत जरूरी है।
4. त्वचा में असामान्य परिवर्तन
त्वचा पर अचानक किसी तिल या मस्से का बढ़ना, रंग बदलना, या असामान्य रूप से खून बहना भी कैंसर का प्रारंभिक संकेत हो सकता है। त्वचा कैंसर के मामलों में इस तरह के लक्षण आम होते हैं।
5. अत्यधिक थकान
अगर किसी को बिना शारीरिक गतिविधि के ही लगातार थकान महसूस होती है, तो यह कैंसर का संकेत हो सकता है। अत्यधिक थकान खून की क���ी (एनीमिया) के कारण भी हो सकती है, जो कुछ कैंसर के प्रकारों से जुड़ी होती है।
6. पेट की समस्याएँ
कैंसर के शुरुआती लक्षणों में पेट में दर्द, एसिडिटी, कब्ज, या दस्त जैसे लक्षण भी शामिल हो सकते हैं। अगर ये लक्षण लंबे समय तक बने रहते हैं, तो यह पेट या आंतों के कैंसर का संकेत हो सकते हैं।
7. लगातार बुखार या संक्रमण
यदि किसी व्यक्ति को लंबे समय तक हल्का बुखार या बार-बार संक्रमण हो रहा है, तो इसका मतलब हो सकता है कि उसके शरीर में कैंसर कोशिकाएँ इम्यून सिस्टम को कमजोर कर रही हैं।
8. मूत्र में बदलाव
मूत्र में खून का आना, मूत्र प्रवाह में बदलाव या दर्द भी कैंसर के लक्षण हो सकते हैं। यह प्रोस्टेट या मूत्राशय के कैंसर का संकेत हो सकता है।
समय पर जांच और उपचार का महत्व
कैंसर का समय पर पता चलना और इसका इलाज शुरू करना इसे फैलने से रोक सकता है। नियमित रूप से स्वास्थ्य जांच, विशेषकर अगर आपको कैंसर के खतरे का अनुमान है, तो बहुत जरूरी है। कुछ सामान्य टेस्ट जैसे कि ब्लड टेस्ट, एमआरआई, सीटी स्कैन, और बायोप्सी के माध्यम से कैंसर का निदान किया जा सकता है।
निष्कर्ष
कैंसर कितनी जल्दी फैलता है यह कई कारकों पर निर्भर करता है, परंतु इसके शुरुआती लक्षणों की पहचान करके इसे रोका जा सकता है। अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें, नियमित जांच कराएं, और स्व��्थ जीवनशैली अपनाएं। शुरुआती स्तर पर कैंसर की पहचान इसे नियंत्रित करने में सहायक हो सकती है और सही समय पर उपचार की दिशा में एक बड़ा कदम है।
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drcare4u · 23 days ago
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बढ़ते प्रदूषण से बच्चे हो रहे साइनसाइटिस बीमारी का शिकार, ऐसे दिखते हैं लक्षण
बढ़ते प्रदूषण से हो सकती है साइनसाइटिस की बीमारी Image Credit source: bymuratdeniz/E+/Getty Images देश में हर साल सर्दियों की दस्तक के साथ ही प्रदूषण का स्तर भी बढ़ जाता है. शहरी इलाकों में प्रदूषण ज्यादा होता है. पॉल्यूशन से फेफड़ों की कई बीमारियां होती है. इससे लंग्स इंफेक्शन से लेकर लंग्स कैंसर तक का रिस्क होता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि हवा ही खराब क्वालिटी बच्चों को साइनसाइटिस बीमारी का…
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fytikahealthcareproduct · 1 month ago
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क्या आपका शरीर समय से पहले बूढ़ा हो रहा है?
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आम तौर पर वृद्धावस्था को अक्सर 60 या 65 वर्ष या उससे अधिक की आयु के रूप में परिभाषित किया जाता है। उम्र के इस पड़ाव मे शरीर में कमज़ोरी आना, काम करने मे सुस्ती आना, त्वचा का रुखा पड़ना और शरीर के अंगो के काम करने में धीमापन होना आदि, आम सी बात दिखती है। यह एक नेचुरल प्रक्रिया है जो समय के साथ साथ होती ही है और प्रत्येक व्यक्ति इस प्रक्रिया से गुज़रता है।
पर क्या आपने नोट किया है कि आज के समय में 50 साल की उम्र और यहां तक की 35 -40 की उम्र में ही काफी लोगो मे बुढ़ापे के लक्षण दिखने या महसूस किये जाने शुरू हो जाते हैं। जबकि अगर हम आज भी अपने आस पास के पुराने बुजुर्गो को देखे तो 80-85 वर्ष की आयु मे भी वे बहुत फिट, एक्टिव और निरोगी दिखते हैं।
“आपको ध्यान होगा टेलीविजन आइकन सिद्धार्थ शुक्ला का अचानक दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था।
आंध्र प्रदेश के सूचना प्रौद्योगिकी और उद्योग मंत्री, मेकापति गौतम रेड्डी का 50 वर्ष की आयु मे दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था।
प्रसिद्ध गायक KK का एक शो के दौरान बीमार पड़ने से 53 वर्ष की आयु में निधन हो गया था।“
इन लोगो के निधन से लाखो लोग दंग रह गए कि संपन्न लोग, जो रेगुलर जिम जाते हैं, अच्छा खाना खाते हैं और बेहद स्वस्थ और फिट दिखते हैं, ऐसे लोग अचानक से कैसे मर रहे हैं।
अगर आप अपने आस पास ध्यान दें या अख़बार पढ़ें तो पाएंगे कि बहुत कम उम्र के लोग बड़ी बीमारियों से जूझ रहे होते हैं। कई लोगो की अचानक से मौत होने की खबर आती है। फिर हम सोचते हैं कि ऐसा क्यों हो रहा होगा ?
आइये आज हम बात करते हैं समय से पूर्व बुढ़ापे (Premature Aging) की
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समय से पूर्व बुढ़ापा उस समय होता है जब कम उम्र मे भी बुढ़ापे जैसे लक्षण दिखने लगते हैं। यह वह समय होता है जब आपका शरीर आपकी वास्तविक उम्र से ज्यादा उम्र का दिखाई देता है और कमज़ोर महसूस कराता है।
समय से पूर्व बुढ़ापे (Premature Aging) के सामान्य संकेत निम्नलिखित हैं:
त्वचा (skin ) में परिवर्तन - जैसे जल्दी झुर्रियां आना, उम्र के धब्बे (age spots), रूखापन, स्किन टोन का नुकसान होना
आपकी छाती के चारों ओर हाइपरपिगमेंटेशन (त्वचा का रंग गहरा होना) होना
बालों का झड़ना या सफेद होना
गालों का चिपकना
साथ ही बहुत कम उम्र में हृदयरोग (हार्ट इश्यूज ) होना
लिवर सम्बंधित बीमारियां होना
जल्दी थकान
हाई कोलेस्ट्रॉल
हाई ब्लड प्रेशर
डायबिटीज (मधुमेह) होना
तनाव (स्ट्रेस)
नपुंसकता
समय से पूर्व बुढ़ापे के कई कारण हो सकते हैं,
पर्यावरण कारक
आनुवंशिक (जेनेटिक) कारण
हमारी ख़राब जीवन शैली (Life style )
पर्यावरण कारक
पर्यावरण कारणों में यूवी (UV) किरण और सूर्य किरणों के प्रकाश से त्वचा पर फोटोएजिंग परिणाम होता है। UV किरण त्वचा को क्षति पहुंचाती है, जो आयु धब्बों जैसे परिवर्तनों के लिए योगदान करती है। सूर्य प्रकाश त्वचा कैंसर का जोखिम भी बढ़ाता है। साथ ही उच्च ऊर्जा सृजन (HEV) और इन्फ्रारेड प्रकाश भी त्वचा को नुक्सान पहुंचते हैं।
आनुवंशिक (जेनेटिक) कारण
कई शोध मे पाया गया है कि जिस परिवार में किसी व्यक्ति को कैंसर, डायबिटीज, खराब कोलेस्ट्रॉल, लिवर संबंधित समस्या, बाल सफ़ेद होना या गंजा होना, हाई ब्लड प्रेशर आदि होते हैं तो उस परिवार मे आने वाली पीढ़ी को यह समस्या होने के अवसर बढ़ जाते हैं। (लेकिन इन्हे अच्छी जीवन शैली से बहुत कम किया जा सकता है)।
हमारी ख़राब जीवन शैली
ख़राब जीवन शैली कम उम्र में बुढ़ापे का बहुत बड़ा कारण है। आइये जानते हैं कैसे !
आजकल की भाग दौड़ भरी ज़िंदगी मे किसी भी काम के लिए कोई नियमित समय नहीं होता, न तो समय से सोने उठने का समय होता है, न ही सही से नाश्ता, लंच और डिनर करने का समय होता है, एक्सरसाइज तो लोग भूल ही चुके हैं। साथ ही धूम्रपान, अशुद्ध आहार (अनहेल्दी डाइट), शराब सेवन, खराब नींद या कम सोना, स्ट्रेस (तनाव), ड्रग्स सेवन आदि भी शरीर मे समय से पहले बुढ़ापा लाने का बहुत बड़ा कारण हैं।
धूम्रपान: जब आप धूम्रपान करते हैं, निकोटीन जैसे विषैले तत्व आपके शरीर की कोशिकाओं (cells)को परिवर्तित करते हैं। ये विषैले तत्व आपकी त्वचा में कॉलेजन और फाइबर्स को तोड़ने का क़ाम करते हैं, जो त्वचा मे ढ़ीलापन, झुर्रियों, गाउट चेहरे का कारण बनते हैं। साथ ही कैंसर, साँस सम्बंधित बीमारियां, फेफड़ों के रोग, छाती मे दर्द, नपुंसकता और शरीर मे कमज़ोरी जैसी समस्यायें भी होती हैं।
अशुद्ध आहार (अनहेल्दी डाइट): हाइली प्रोसेस्ड फ़ूड चीनी, नमक, वसा और स्टार्च से भरे होते हैं और इससे समय से पहले बुढ़ापा आ सकता है। नवारा विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने अध्ययन किया कि जो लोग रोजाना दो या तीन सर्विंग हाइली प्रोसेस्ड फ़ूड खाते हैं, उनमें उन लोगों की तुलना में शॉर्ट टेलोमेर का खतरा 29-40 प्रतिशत अधिक होता है, जो दो से कम सर्विंग खाते हैं।
हाइली प्रोसेस्ड फ़ूड चीनी दीर्घकालिक बीमारी से भी जुड़े हुए हैं। टेलोमेरेस हमारे गुणसूत्रों और डीएनए को स्थिर करके मदद करते हैं। उम्र के साथ, कोशिकाएं विभाजित हो जाती हैं और टेलोमेर छोटे हो जाते हैं। इससे उम्र बढ़ने की प्रक्रिया तेज़ होती है।
शराब: बहुत अधिक शराब पीने से कैंसर,फैटी लिवर, हाई ब्लड प्रेशर, खराब कोलेस्ट्रॉल, नींद ना आने की समस्या, स्ट्रेस, नपुंसकता आदि जैसी 200 से अधिक बीमारियां या परेशानी हो सकती हैं। इसके ज्यादा सेवन से आपकी इम्युनिटी बहुत ज्यादा स्तर पर खराब होती है।
खराब नींद: अध्ययन दिखाते हैं कि ज्यादा देर तक जागने और कम सोने से आपके कोशिकाओं पर गहरा असर पड़ता है। आपके शरीर के अन्य अंगो को भी आराम भी नहीं मिल पता है। कम नींद या समय से न सोने पर आपको स्ट्रेस भी हो सकता है
तनाव: जब आप तनाव में होते हैं तो आपके मस्तिष्क से कोर्टिसोल, एक तनाव हार्मोन, उत्पन्न होता है। तनाव स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है क्योंकि यह संक्रियाओं को बदल सकता है। यह कॉर्टिसोल और एपिनेफ्रिन जैसे हार्मोनों के उत्पादन को बढ़ा सकता है, जो रक्त चाप और दिल के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। इसके अलावा, यह इम्यून सिस्टम को कमजोर करके रोग प्रतिरोध को कम कर सकता है।
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देखभाल और उपचार
यदि आपको समय से पूर्व बुढ़ापे के संकेत आ रहे हैं तो निम्नलिखित उपाय अपनाएं :
सूर्य की किरणों से बचें: घर से बाहर निकलीं तो सूर्य किरणों से बचने के उपाय अपनाएं। शरीर ढक कर रखें। सूर्य के किरणों से सुरक्षा के लिए सनस्क्रीन का उपयोग करें, ऐसी क्रीम चुने जिसमे कम से कम SPF 30 की मात्रा हो।
धूम्रपान बंद करें: यदि आप धूम्रपान करते हैं, तो तुरंत धूम्रपान बंद करें। धूम्रपान छोड़ने में मदद की आवश्यकता हो, तो आप काउंसिलिंग ले सकते हैं।
अधिक फल और सब्जियों का सेवन करें: एक संतुलित आहार इस समस्या को रोक सकता है। इसीलिए ताज़े फलों और सब्ज़ियों को रोज़ाना अपने आहार मे शामिल करें, साथ ही प्रोटीन युक्त भोजन खाएं। ज्यादा चीनी या रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट का सेवन न करें। शरीर को मज़बूती देने के लिए हर्बल प्रोडक्ट्स, जैसे की प्रोटीन का प्रयोग करें। 
शराब पीना कम करें: शराब पीना बहुत कम कर दें। इससे आपके शरीर को जल्दी ही फायदा ��िलना शुरू होगा। यदि शराब पीना नहीं रुक पा रहा है तो आप काउंसिलिंग ले सकते हैं। लिवर को ताकत देने के लिए हर्बल प्रोडक्ट्स प्रयोग करें। 
व्यायाम करें: नियमित व्यायाम शरीर को मज़बूती देता है और आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्युनिटी) को मजबूत करती है,जो एक स्वस्थ जीवन को प्रोत्साहित करता है। दिन मे केवल 30 मिनट पैदल चलना (walk) भी आपको अनेक फायदे देगा।
अपनी त्वचा का ध्यान रखें: रोजाना अपनी त्वचा को अच्छे फेसवाश और साबुन से धोएं ताकि गंद, मेकअप, पसीना या अन्य प्रकार की चीजें हटा सकें जो चिकनाहट का कारण बनती हैं। महंगे त्वचा उत्पादों से दूर रहें जो सुगंधित या उच्च पीएच वाले होते हैं। त्वचा को ध्यान से नमीबद्ध करें, साथ ही त्वचा के लिए अच्छे हर्बल प्रोडक्ट प्रयोग करें ।
अपने तनाव स्तर को कम करें: जितना संभव हो सके, अपने जीवन से ज्यादा से ज्यादा तनाव को कम करने पर काम करें। यदि आप तनाव कम नहीं कर पा रहे, तो तनाव प्रबंधन तकनीकों (स्ट्रेस मैनेजमेंट), जैसे कि ध्यान या व्यायाम की सहायता लें। बाजार मे मौजूद स्ट्रेस कम करने वाले हर्बल प्रोडक्ट्स यूज़ कर सकते हैं। 
अच्छी नींद: कम से कम 7 घंटे की नींद लें। अध्ययन दिखाते हैं कि अच्छी नींद से आपके कोशिकाओं की उम्र जल्दी बढ़ जाती है। आपके शरीर के अन्य अंगो को भी आराम मिलता है और उन्हे दोबारा स्वस्थ होने का समय मिलता है। स्ट्रेस मे भी कमी आती है। 
नियमित तौर पर शरीर की जांच कराएं - जेनेटिक बीमारियों की समय से पहचान के लिए अच्छी लैब से शरीर की जाँच साल मे 2 बार ज़रूर कराएं।
निष्कर्ष
ज्यादातर लोग आजकल 60 की उम्र तक पहुंच कर बहुत ही ज्यादा कमज़ोर हो जाते हैं। हमारी ख़राब जीवन शैली का इसमें बहुत बड़ा योगदान है। लेकिन अगर हम अपने अंदर  थोड़ा सा अनुसाशन ला, अपनी जीवन शैली को ठीक करें तो इन समस्याओं से बच सकते हैं और जिस तरह पुराने बुजुर्ग जो आज भी 70-80 वर्ष की आयु मे फिट और निरोग रहते हैं, उनकी तरह जीवन व्यतीत कर सकते हैं।
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mediahousepressin · 1 month ago
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अक्टूबर ब्रेस्ट कैंसर जागरूकता महीना जानें लक्षण, कारण और बचाव के उपाय
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eradioindia · 2 months ago
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ज्यादा थकान और वजन कम होना… कहीं कैंसर के लक्षण तो नही..?
कैंसर, शरीर की कोशिकाओं की बीमारी है. यह तब होता है जब कोशिकाएं अनियंत्रित रूप से बढ़ती हैं और फैलती हैं.कैंसर दुनिया की सबसे खतरनाक बीमारियों में से एक है. यह धीरे-धीरे मरीज के शरीर को खोखला बनाता जाता है और आखिरी स्टेज पर पहुंचते-पहुंचते इतना घातक हो जाता है कि मौत पक्की मान ली जाती है. दरअसल, कैंसर कोशिकाओं के असामान्य तरीके से बढ़ने की वजह से होता है। इसके खतरे को चार स्टेज में बांटा गया है.…
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drsunildubeyclinic · 2 months ago
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Top Sexologist in Patna, Bihar for Hypogonadism Treatment | Dr. Sunil Dubey
हाइपोगोनाडिज्म (टेस्टोस्टेरोन में कमी) के बारे में:
हाइपोगोनाडिज्म तीन शब्दों (हाइपो + गोनाड + इस्म) से मिलकर बना है, जिसका निम्नलिखित अर्थ है "हाइपो" का अर्थ है नीचे, "गोनाड" का अर्थ है प्रजनन अंग (पुरुष में वृषण, महिला में अंडाशय) और "इस्म" एक चिकित्सा स्थिति के भाव को इंगित करता है।
हाइपोगोनाडिज्म एक चिकित्सा स्थिति है जिसमें यौन हार्मोन का उत्पादन कम हो जाता है या अनुपस्थित होता है, विशेष रूप से पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन और महिलाओं में एस्ट्रोजन, जिससे उनके प्रजनन और यौन कार्य बाधित होता है। यह तब होता है जब गोनाड पर्याप्त मात्रा में यौन हार्मोन का उत्पादन नहीं करते हैं, जिसके निम्नलिखित कारण है –
पुरुषों में हाइपोगोनाडिज्म होने पर –
टेस्टोस्टेरोन में कमी हो जाती है।
शुक्राणु उत्पादन में कमी हो जाती है।
स्तंभन दो�� हो जाता है।
कामेच्छा में कमी आ जाती है।
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महिलाओं में हाइपोगोनाडिज्म होने पर –
एस्ट्रोजन हॉर्मोन में कमी हो जाती है।
अनियमित मासिक धर्म शुरू हो जाता है।
बांझपन का कारण बनता है।
योनि का सूखापन हो जाता है।
विश्व प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य डॉ. सुनील दुबे, जो की पटना में शीर्ष व श्रेठ सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर हैं, कहते हैं कि आनुवंशिक, आघात, संक्रमण, हार्मोन, दवा और उम्र बढ़ने जैसे कई जिम्मेदार कारक है, जो किसी व्यक्ति को इस यौन समस्या हाइपोगोनाडिज्म की ओर ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अध्ययनों और सर्वेक्षणों के अनुसार, यह पाया गया कि पुरुष गुप्त रोगी महिलाओं की तुलना में हाइपोगोनाडिज्म से अधिक पीड़ित होते हैं। वर्त्तमान समय में, भारत में हाइपोगोनाडिज्म से पीड़ित पुरुषों का प्रतिशत 5-20% है जबकि महिलाओं का प्रतिशत 3-12% है। सामान्यतः 40 वर्ष की आयु के बाद पुरुषों या महिलाओं में इस यौन समस्या की संभावना बढ़ जाती है जब यौन हार्मोन का स्तर हर साल 1% कम होते जाता है।
हाइपोगोनाडिज्म के प्रकार:
पुरुषों या महिलाओं के यौन जीवन में हाइपोगोनाडिज्म के तीन प्रकार होते हैं –
प्राथमिक हाइपोगोनाडिज्म: गोनाडल डिसफंक्शन
द्वितीयक हाइपोगोनाडिज्म: पिट्यूटरी या हाइपोथैलेमिक डिसफंक्शन
मिश्रित हाइपोगोनाडिज्म: प्राथमिक और द्वितीयक का संयोजन
हाइपोगोनाडिज्म के कारण:
आनुवंशिक विकार: क्लाइनफेल्टर सिंड्रोम और टर्नर सिंड्रोम
चोट या आघात: वृषण चोट और रीढ़ की हड्डी की चोट
संक्रमण: ऑर्काइटिस (वृषण सूजन) और मेनिन्जाइटिस
कैंसर उपचार: कीमोथेरेपी और विकिरण उपचार
हार्मोनल असंतुलन: पिट्यूटरी ट्यूमर और हाइपोथायरायडिज्म
उम्र बढ़ने: देर से शुरू होने वाला हाइपोगोनाडिज्म (LOH)
दवा: स्टेरॉयड और ओपिओइड (बीपी की दवाएँ)
डॉ. सुनील दुबे जो आयुर्वेद और सेक्सोलॉजी चिकित्सा विज्ञान के विशेषज्ञ हैं, वे दुबे क्लिनिक में प्रतिदिन अभ्यास करते हैं। दुबे क्लिनिक पटना के लंगर टोली चौराहा में स्थित एक प्रमाणित आयुर्वेद और सेक्सोलॉजी चिकित्सा विज्ञान क्लिनिक है। पूरे भारत से भिन्न-भिन्न प्रकार के गुप्त व यौन रोगी अपनी यौन समस्याओं को सुधारने के लिए इस क्लिनिक में आते हैं। वह उनसबो को उनकी गुप्त व यौन समस्याओं के वास्तविक कारणों का पता लगाने में मदद करते हैं और अपना व्यापक आयुर्वेदिक चिकित्सा व उपचार प्रदान करते हैं। वास्तव में, वे बिहार के सर्वश्रेष्ठ सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर पिछले 35 वर्षो से रहे हैं क्योंकि पटना और बिहार के अधिकांश गुप्त व यौन रोगी (विवाहित और अविवाहित) अपने-अपने इलाज और चिकित्सा हेतु उन्हें पहली प्राथमिकता देते हैं। उन्होंने अपने क्लिनिकल सेक्सोलॉजिस्ट पेशे में आयुर्वेद के माध्यम से पुरुषों और महिलाओं के विभिन्न गुप्त व यौन रोगों पर अपना शोध किया है। अपने शोध के पांच वर्षों के बाद, उन्होंने उनके लिए सबसे प्रभावी और रामबाण आयुर्वेदिक उपचार की सफलतापूर्वक खोज की हैं।
उनका कहना है कि किसी भी गुप्त व यौन समस्या को उसके लक्षण खुद का ख्याल रखने का संकेत देते हैं। वास्तव में, हाइपोगोनाडिज्म पुरुषों और महिलाओं में होने वाला एक जटिल यौन समस्या है जो समग्र यौन स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। सभी लोगो को इसके लक्षणों के बारे में पता होना चाहिए जो उनको एहतियात बरतने और उपचार लेने में मदद करते हैं।
पुरुषों में होने वाले हाइपोगोनाडिज्म के लक्षण:
यौन इच्छा या कामेच्छा के स्तर का कम होना।
स्तंभन दोष या इरेक्शन की समस्या का होना।
शुक्राणुओं की संख्या में कमी का होना।
बांझपन की समस्या का होना।
वजन का बढ़ना।
मांसपेशियों का कम होना।
बालों का झड़ना।
महिलाओं में होने वाले हाइपोगोनाडिज्म के लक्षण:
अनियमित मासिक धर्म का होना।
बांझपन की समस्या का होना।
यौन इच्छा या कामेच्छा में कमी का होना।
योनि में सूखापन का होना।
गर्मी लगना व बेच��नी होना।
रात में पसीना आना।
मूड में उतार-चढ़ाव का होना।
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डॉ. सुनील दुबे ने यह भी कहते है कि इस हाइपोगोनाडिज्म के कारण व्यक्ति को अपने यौन या दैनिक जीवन में कई जटिलताओं का सामना करना पड़ता है जैसे- बांझपन, ऑस्टियोपोरोसिस, हृदय रोग, अवसाद, चिंता और रिश्ते से जुड़ी समस्याएं। इसलिए, उन्हें अपने दैनिक जीवन में कुछ बदलाव करके इस यौन समस्या से बचने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए-
स्वस्थ जीवनशैली की आदतों का पालन करना।
नियमित चिकित्सा जांच करवाना।
स्टेरॉयड, ओपिओइड दवाओं जैसे हानिकारक पदार्थों से बचना।
दीर्घकालिक चिकित्सा स्थितियों - मधुमेह और उच्च रक्तचाप का प्रबंधन करना।
हाइपोगोनाडिज्म का निदान और आयुर्वेदिक चिकित्सा व उपचार:
जैसा कि हम पहले ही जान चुके हैं कि 30-50 वर्ष की आयु के 12% भारतीय पुरुष हाइपोगोनाडिज्म से प्रभावित होते हैं। 40 वर्ष की उम्र के बाद, इस यौन समस्या की संभावना बढ़ जाती है और 15% से अधिक पुरुष इससे प्रभावित होते हैं। यदि कोई व्यक्ति अपने यौन स्वास्थ्य का ध्यान रखता है और स्वस्थ दिनचर्या का पालन करता है, तो किसी भी गुप्त व यौन विकार की संभावना कम हो जाती है। वास्तव में, शहरी लोग ग्रामीण लोगों की तुलना में इस यौन समस्या से अधिक पीड़ित होते हैं।
हाइपोगोनाडिज्म का निदान मरीज के शारीरिक परीक्षण, हार्मोन स्तर परीक्षण (टेस्टोस्टेरोन, एलएच, और एफएसएच), वीर्य विश्लेषण (पुरुष), पैल्विक परीक्षा (महिला), और इमेजिंग अध्ययन (अल्ट्रासाउंड या एमआरआई) पर आधारित होता है। अगर हम उपचार के बारे में बात करें, तो –
हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी (एचआरटी)
टेस्टोस्टेरोन थेरेपी
गोनाडोट्रोपिन थेरेपी
प्रजनन उपचार
जीवनशैली में बदलाव (व्यायाम, आहार)
यौन परामर्श
डॉ. सुनील दुबे कहते हैं कि आयुर्वेदिक चिकित्सा व उपचार सभी दवाओं की जड़ है और यह सभी तरह के गुप्त व यौन समस्याओं क�� लिए संपूर्ण समाधान प्रदान करती है। वास्तव में, इस आयुर्वेदिक चिकित्सा की उपचार प्रक्रिया प्रकृति बेस होती है जहाँ यह समग्र स्वास्थ्य सहित विशेष गुप्त व यौन समस्या का ख्याल रखती है। वह दुबे क्लिनिक में सभी प्रकार के गुप्त व यौन रोगियों का इलाज करते हैं जहाँ वे आयुर्वेदिक दवाएँ, प्रभावी भस्म, प्राकृतिक रसायन, स्वदेशी उपचार और महत्वपूर्ण स्वास्थ्य दिशा-निर्देश प्रदान करते हैं।
कोई भी रोगी (मधुमेह, हृदय, किडनी या अन्य) अपनी गुप्त व यौन समस्याओं को सुधारने के लिए इस आयुर्वेदिक दवा का उपयोग कर सकता है। हर दिन, भारत से सौ से ज़्यादा लोग दुबे क्लिनिक से फ़ोन पर संपर्क करके उनसे सलाह लेते हैं। वे ज़रूरतमंद लोगों को ऑन-कॉल कंसल्टेश��� और इन-क्लिनिक ट्रीटमेंट विशेषाधिकारों के ज़रिए अपना समस्त चिकित्सा, इलाज और दवाइयाँ मुहैया कराते हैं।
अगर आप किसी भी प्रकार के गुप्त व यौन समस्या से परेशान है तो दुबे क्लिनिक में फ़ोन पर अपॉइंटमेंट बुक करें। अपॉइंटमेंट का समय रोज़ाना सुबह 8 बजे से शाम 8 बजे तक उपलब्ध है। अपनी सभी गुप्त व यौन समस्याओं का पूर्ण समाधान पाएँ। यह क्लिनिक पूरे भारत में कूरियर के ज़रिए दवाइयाँ पहुँचाने की सुविधा भी प्रदान करता है, जहाँ सफल परामर्श के बाद मरीज़ आसानी से अपनी दवाइयाँ प्राप्त कर सकते हैं। खुशहाल शादीशुदा ज़िंदगी के लिए, सही जगह की ओर एक कदम...
और अधिक जानकारी के लिए: -
दुबे क्लिनिक
भारत का प्रमाणित आयुर्वेदा व सेक्सोलोजी क्लिनिक
डॉ. सुनील दुबे, सीनियर सेक्सोलॉजिस्ट
हेल्पलाइन नंबर: +91 98350-92586
स्थान: दुबे मार्केट, लंगर टोली, चौराहा, पटना-04
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amarkumar123 · 2 months ago
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प्रोस्टेट कैंसर पुरुषों की प्रोस्टेट ग्रंथि में विकसित होने वाला एक प्रकार का कैंसर है। यह ग्रंथि पुरुष प्रजनन प्रणाली का हिस्सा होती है और वीर्य का उत्पादन करती है। शुरुआती चरणों में इस कैंसर के लक्षण मामूली हो सकते हैं, जैसे बार-बार पेशाब आना, खासकर रात में, या पेशाब करने में कठिनाई। उन्नत अवस्था में कैंसर आसपास के अंगों में फैल सकता है। नियमित स्वास्थ्य जांच और उचित उपचार के माध्यम से इसे नियंत्रित किया जा सकता है।
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cgnews24 · 3 months ago
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जानें क्या हैं गर्भाशय कैंसर के लक्षण, इन कारणों की वजह से होता है महिलाओं को बच्चेदानी का कैंसर कैंसर एक ऐसी घातक बीमारी है जिससे न जाने कितने लोग ग्रसित हैं. बच्चे, महिलाएं, पुरुष, बुजुर्ग सभी को यह बीमारी घेर सकती है. लेकिन महिलाओं में आमतौर पर स्तन कैंसर, बच्चेदानी या गर्भाशय का कैंसर देखा जाता है, जिसमें महिलाओं के प्राइवेट पार्ट में असहनीय दर्द, गांठे, इंटरनल ब्लीडिंग जैसी
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valentiscancerhospital · 3 months ago
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प्रोस्टेट कैंसर के लक्षण
जल्दी पेशाब आना
पेशाब में खून आना
वीर्य द्रव में रक्त
स्तंभन दोष की नई शुरुआत परामर्श के लिए आज ही संपर्क करें For more Information Visit-https://www.valentiscancerhospital.com To Book Your Appointment Call - 1800 313 6064
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indlivebulletin · 15 days ago
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पेट का कैंसर: पेट का कैंसर होने पर शरीर में होते हैं बदलाव, ऐसे करें पहचान
पेट का कैंसर: पेट का कैंसर जिसे अंग्रेजी में स्टमक कैंसर भी कहा जाता है। इसे पेट का कैंसर भी कहा जाता है। आप भी सोच रहे होंगे कि क्या पुरुषों और महिलाओं में पेट के कैंसर के लक्षण अलग-अलग होते हैं। दरअसल, ऐसा कुछ नहीं होता. पुरुषों और महिलाओं दोनों में कैंसर के लक्षण समान होते हैं। लेकिन यह भी सच है कि इसके लक्षण हर व्यक्ति पर अलग-अलग दिखते हैं। पेट के कैंसर के रोगी का उपचार इस बात पर निर्भर करता…
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gsuniversityofficial · 3 months ago
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स्तन कैंसर महिलाओं में होने वाले कैंसर के सबसे आम प्रकारों में से एक है। समय पर निदान और उपचार से इसके नतीजे बेहतर हो सकते हैं। यहाँ कुछ प्रारंभिक संकेत दिए गए हैं जिन पर ध्यान देना चाहिए:- स्तन में गांठ, स्तन के आकार या रंग में बदलाव, निप्पल से खून या पानी का आना, स्तन में दर्द, स्तन की त्वचा पर कसाव का होना, स्तन की त्वचा पर गर्मी अगर आपको इनमें से कोई भी लक्षण दिखाई देते हैं, तो तुरंत एक डॉक्टर से संपर्क करें। समय पर जांच और उचित उपचार से स्तन कैंसर को प्रभावी ढंग से मात दी जा सकती है। और अधिक जानकारी के लिए आज ही हमारे ऑनकोलॉजी डिपार्टमेंट में संपर्क करें।
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Mob: +91-7055514537
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Address: - NH-9, Near Railway Station Pilkhuwa, Hapur (U.P.)
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drcare4u · 2 months ago
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न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर क्या है - प्रकार और लक्षण
अवलोकन न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर या एनईटी कोशिकाओं में मौजूद कैंसर होते हैं जो हार्मोन बनाने वाली कोशिकाओं के साथ-साथ तंत्रिका कोशिकाओं के समान होते हैं, जिन्हें न्यूरोएंडोक्राइन कोशिकाओं के रूप में जाना जाता है, जो पूरे शरीर में मौजूद होते हैं। न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर दुर्लभ हैं और शरीर में कहीं भी हो सकते हैं। ट्यूमर अग्न्याशय, मलाशय, परिशिष्ट, छोटी आंत, फेफड़े और अन्य अधिवृक्क ग्रंथियों में होता…
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