#कुछ भी नहीं कान 2
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jyotis-things · 6 days ago
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart114 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart115
पवित्र ऋग्वेद में सृष्टी रचना का प्रमाण
ऋग्वेद में सृष्टी रचना का प्रमाण
मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्र 1
सहस्‍त्रशीर्षा पुरूषः सहòाक्षः सहòपात्।
स भूमिं विश्वतों वृत्वात्यतिष्ठद्दशाङ्गुलम्।। 1।।
सहòशिर्षा-पुरूषः-सहòाक्षः-सहòपात्-स-भूमिम्-विश्वतः-वृत्वा-अत्यातिष्ठत्-दशंगुलम्।
अनुवाद:- (पुरूषः) विराट रूप काल भगवान अर्थात् क्षर पुरूष (सहस्रशिर्षा) हजार सिरों वाला (सहस्राक्षः) हजार आँखों वाला (सहस्रपात्) हजार पैरों वाला है (स) वह काल (भूमिम्) पृथ्वी वाले इक्कीस ब्रह्मांडो को (विश्वतः) सब ओर से (दशंगुलम्) दसों अंगुलियोंसे अर्थात् पूर्ण रूप से काबू किए हुए (वृत्वा) गोलाका�� घेरे में घेर कर (अत्यातिष्ठत्) इस से बढ़कर अर्थात् अपने काल लोक में सबसे न्यारा भी इक्कीसवें ब्रह्मण्ड में ठहरा है अर्थात् रहता है।
भावार्थ:- इस मंत्र में विराट (काल/ब्रह्म) का वर्णन है। (गीता अध्याय 10-11 में भी इसी काल/ब्रह्म का ऐसा ही वर्णन है अध्याय 11 मंत्र नं. 46 में अर्जुन ने कहा है कि हे सहस्राबाहु अर्थात् हजार भुजा वाले आप अपने चतुर्भुज रूप में दर्शन दीजिए)
जिसके हजारों हाथ, पैर, हजारों आँखे, कान आदि हैं वह विराट रूप काल प्रभु अपने आधीन सर्व प्राणियों को पूर्ण काबू करके अर्थात् 20 ब्रह्मण्डों को गोलाकार परिधि में रोककर स्वयं इनसे ऊपर (अलग) इक्कीसवें ब्रह्मण्ड में बैठा है।
मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्र 2
पुरूष एवेदं सर्वं यद्भूतं यच्च भाव्यम्।
उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति।। 2।।
पुरूष-एव-इदम्-सर्वम्-यत्-भूतम्-यत्-च-भाव्यम्-उत-अमृतत्वस्य-इशानः-यत्-अन्नेन-अतिरोहति
अनुवाद:- (एव) इसी प्रकार कुछ सही तौर पर (पुरूष) भगवान है वह अक्षर पुरूष अर्थात् परब्रह्म है (च) और (इदम्) यह (यत्) जो (भूतम्) उत्पन्न हुआ है (यत्) जो (भाव्यम्) भविष्य में होगा (सर्वम्) सब (यत्) प्रयत्न से अर्थात् मेहनत द्वारा (अन्नेन) अन्न से (अतिरोहति) विकसित होता है। यह अक्षर पुरूष भी (उत) सन्देह युक्त (अमृतत्वस्य) मोक्ष का (इशानः) स्वामी है अर्थात् भगवान तो अक्षर पुरूष भी कुछ सही है परन्तु पूर्ण मोक्ष दायक नहीं है।
भावार्थ:- इस मंत्र में परब्रह्म (अक्षर पुरुष) का विवरण है जो कुछ भगवान वाले लक्षणों से युक्त है, परन्तु इसकी भक्ति से भी पूर्ण मोक्ष नहीं है, इसलिए इसे संदेहयुक्त मुक्ति दाता कहा है। इसे कुछ प्रभु के गुणों युक्त इसलिए कहा है कि यह काल की तरह तप्तशिला पर भून कर नहीं खाता। परन्तु इस परब्रह्म के लोक में भी प्राणियों को परिश्रम करके कर्माधार पर ही फल प्राप्त होता है तथा अन्न से ही सर्व प्राणियों के शरीर विकसित होते हैं, जन्म तथा मृत्यु का समय भले ही काल (क्षर पुरुष) से अधिक है, परन्तु फिर भी उत्पत्ति प्रलय तथा चैरासी लाख योनियोंमें यातना बनी रहती है।
मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्र 3
एतावानस्य महिमातो ज्यायाँश्च पुरूषः।
पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि।। 3।।
एतावान्-अस्य-महिमा-अतः-ज्यायान्-च-पुरूषः-पादः-अस्य-विश्वा-भूतानि-त्रि-पाद्-अस्य-अमृतम्-दिवि
अनुवाद:- (अस्य) इस अक्षर पुरूष अर्थात् परब्रह्म की तो (एतावान्) इतनी ही (महिमा) प्रभुता है। (च) तथा (पुरूषः) वह परम अक्षर ब्रह्म अर्थात् पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर तो (अतः) इससे भी (ज्यायान्) बड़ा है (विश्वा) समस्त (भूतानि) क्षर पुरूष तथा अक्षर पुरूष तथा इनके लोकों ��ें तथा सत्यलोक तथा इन लोकों में जितने भी प्राणी हैं (अस्य) इस पूर्ण परमात्मा परम अक्षर पुरूष का (पादः) एक पैर है अर्थात् एक अंश मात्रा है। (अस्य) इस परमेश्वर के (त्रि) तीन (दिवि) दिव्य लोक जैसे सत्यलोक-अलख लोक-अगम लोक (अमृतम्) अविनाशी (पाद्) दूसरा पैर है अर्थात् जो भी सर्व ब्रह्मण्डों में उत्पन्न है वह सत्यपुरूष पूर्ण परमात्मा का ही अंश या अंग है।
भावार्थ:- इस ऊपर के मंत्र 2 में वर्णित अक्षर पुरुष (परब्रह्म) की तो इतनी ही महिमा है तथा वह पूर्ण पुरुष कविर्देव तो इससे भी बड़ा है अर्थात् सर्वशक्तिमान है तथा सर्व ब्रह्मण्ड उसी के अंश मात्रा पर ठहरे हैं। इस मंत्र में तीन लोकों का वर्णन इसलिए है क्योंकि चैथा अनामी (अनामय) लोक अन्य रचना से पहले का है। यही तीन प्रभुओं (क्षर पुरूष-अक्षर पुरूष तथा इन दोनों से अन्य परम अक्षर पुरूष) का विवरण श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 15 श्लोक संख्या 16.17 में है
{इसी का प्रमाण आदरणीय गरीबदास साहेब जी कहते हैं कि:- गरीब, जाके अर्ध रूम पर सकल पसारा, ऐसा पूर्ण ब्रह्म हमारा।।
गरीब, अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड का, एक रति नहीं भार। सतगुरु पुरुष कबीर हैं, कुल के सृजनहार।।
इसी का प्रमाण आदरणीय दादू साहेब जी कह रहे हैं कि:-
जिन मोकुं निज नाम दिया, सोई सतगुरु हमार। दादू दूसरा कोए नहीं, कबीर सृजनहार।।
इसी का प्रमाण आदरणीय नानक साहेब जी देते हैं कि:-
यक अर्ज गुफतम पेश तो दर कून करतार। हक्का कबीर करीम तू, बेएब परवरदिगार।।
(श्री गुरु ग्रन्थ साहेब, पृष्ठ नं. 721, महला 1, राग तिलंग)
कून करतार का अर्थ होता है सर्व का रचनहार, अर्थात् शब्द शक्ति से रचना करने वाला शब्द स्वरूपी प्रभु, हक्का कबीर का अर्थ है सत् कबीर, करीम का अर्थ दयालु, परवरदिगार का अर्थ परमात्मा है।}
मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्र 4
त्रिपादूध्र्व उदैत्पुरूषः पादोऽस्येहाभवत्पुनः।
ततो विष्व ङ्व्यक्रामत्साशनानशने अभि।। 4।।
त्रि-पाद-ऊध्र्वः-उदैत्-पुरूषः-पादः-अस्य-इह-अभवत्-पूनः-ततः-विश्वङ्-व्यक्रामत्-सः-अशनानशने-अभि
अनुवाद:- (पुरूषः) यह परम अक्षर ब्रह्म अर्थात् अविनाशी परमात्मा (ऊध्र्वः) ऊपर (त्रि) तीन लोक जैसे सत्यलोक-अलख लोक-अगम लोक रूप (पाद) पैर अर्थात् ऊपर के हिस्से में (उदैत्) प्रकट होता है अर्थात् विराजमान है (अस्य) इसी परमेश्वर पूर्ण ब्रह्म का (पादः) एक पैर अर्थात् एक हिस्सा जगत रूप (पुनर्) फिर (इह) यहाँ (अभवत्) प्रकट होता है (ततः) इसलिए (सः) वह अविनाशी पूर्ण परमात्मा (अशनानशने) खाने वाले काल अर्थात् क्षर पुरूष व न खाने वाले परब्रह्म अर्थात् अक्षर पुरूष के भी (अभि)ऊपर (विश्वङ्)सर्वत्रा (व्यक्रामत्)व्याप्त है अर्थात् उसकी प्रभुता सर्व ब्रह्माण्डों व सर्व प्रभुओं पर है वह कुल का मालिक है। जिसने अपनी शक्ति को सर्व के ऊपर फैलाया है।
भावार्थ:- यही सर्व सृष्टी रचन हार प्रभु अपनी रचना के ऊपर के हिस्से में तीनों स्था��ों (सतलोक, अलखलोक, अगमलोक) में तीन रूप में स्वयं प्रकट होता है अर्थात् स्वयं ही विराजमान है। यहाँ अनामी लोक का वर्णन इसलिए नहीं किया क्योंकि अनामी लोक में कोई रचना नहीं है तथा अकह (अनामय) लोक शेष रचना से पूर्व का है फिर कहा है कि उसी परमात्मा के सत्यलोक से बिछुड़ कर नीचे के ब्रह्म व परब्रह्म के लोक उत्पन्न होते हैं और वह पूर्ण परमात्मा खाने वाले ब्रह्म अर्थात् काल से (क्योंकि ब्रह्म/काल विराट शाप वश एक लाख मानव शरीर धारी प्राणियों को खाता है) तथा न खाने वाले परब्रह्म अर्थात् अक्षर पुरुष से (परब्रह्म प्राणियों को खाता नहीं, परन्तु जन्म-मृत्यु, कर्मदण्ड ज्यों का त्यों बना रहता है) भी ऊपर सर्वत्र व्याप्त है अर्थात् इस पूर्ण परमात्मा की प्रभुता सर्व के ऊपर है, कबीर परमेश्वर ही कुल का मालिक है। जिसने अपनी शक्ति को सर्व के ऊपर फैलाया है जैसे सूर्य अपने प्रकाश को सर्व के ऊपर फैला कर प्रभावित करता है, ऐसे पूर्ण परमात्मा ने अपनी शक्ति रूपी रेंज (क्षमता) को सर्व ब्रह्मण्डों को नियन्त्रित रखने के लिए छोड़ा हुआ है जैसे मोबाईल फोन का टावर एक देशिय होते हुए अपनी शक्ति अर्थात् मोबाइल फोन की रेंज (क्षमता) चहुं ओर फैलाए रहता है। इसी प्रकार पूर्ण प्रभू ने अपनी निराकार शक्ति सर्व व्यापक की है जिससे पूर्ण परमात्मा सर्व ब्रह्मण्डों को एक स्थान पर बैठ कर नियन्त्रित रखता है। इसी का प्रमाण आदरणीय गरीबदास जी महाराज दे रहे हैं (अमृतवाणी राग कल्याण)
तीन चरण चिन्तामणी साहेब, शेष बदन पर छाए।
माता, पिता, कुल न बन्धु, ना किन्हें जननी जाये।।
मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्र 5
तस्माद्विराळजायत विराजो अधि पूरूषः।
स जातो अत्यरिच्यत पश्चाद्भूमिमथो पुरः।। 5।।
तस्मात्-विराट्-अजायत-विराजः-अधि-पुरूषः-स-जातः-अत्यरिच्यत-पश्चात्-भूमिम्-अथः-पुरः।
अनुवाद:- (तस्मात्) उसके पश्चात् उस परमेश्वर सत्यपुरूष की शब्द शक्ति से (विराट्) विराट अर्थात् ब्रह्म, जिसे क्षर पुरूष व काल भी कहते हैं (अजायत) उत्पन्न हुआ है (पश्चात्) इसके बाद (विराजः) विराट पुरूष अर्थात् काल भगवान से (अधि) बड़े (पुरूषः) परमेश्वर ने (भूमिम्) पृथ्वी वाले लोक, काल ब्रह्म तथा परब्रह्म के लोक को (अत्यरिच्यत) अच्छी तरह रचा (अथः) फिर (पुरः) अन्य छोटे-छोटे लोक (स) उस पूर्ण परमेश्वर ने ही (जातः) उत्पन्न किया अर्थात् स्थापित किया।
भावार्थ:- उपरोक्त मंत्र 4 में वर्णित तीनों लोकों (अगमलोक, अलख लोक तथा सतलोक) की रचना के पश्चात पूर्ण परमात्मा ने ज्योति निरंजन (ब्रह्म) की उत्पत्ति की अर्थात् उसी सर्व शक्तिमान परमात्मा पूर्ण ब्रह्म कविर्देव (कबीर प्रभु) से ही विराट अर्थात् ब्रह्म (काल) की उत्पत्ति हुईं। यही प्रमाण गीता अध्याय 3 मन्त्र 15 में है कि अक्षर पुरूष अर्थात् अविनाशी प्रभु से ब्रह्म उत्पन्न हुआ यही प्रमाण अर्थववेद काण्ड 4 अनुवाक 1 सुक्त 3 में है कि पूर्ण ब्रह्म से ब्रह्म की उत्पत्ति हुई उसी पूर्ण ब्रह्म ने (भूमिम्) भूमि आदि छोटे-बड़े सर्व लोकों की रचना की। वह पूर्णब्रह्म इस विराट भगवान अर्थात् ब्रह्म से भी बड़ा है अर्थात् इसका भी मालिक है।
मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्र 15
सप्तास्यासन्परिधयस्त्रिाः सप्त समिधः कृताः।
देवा यद्यज्ञं तन्वाना अबध्नन्पुरूषं पशुम्।। 15।।
सप्त-अस्य-आसन्-परिधयः-त्रिसप्त-समिधः-कृताः-देवा-यत्-यज्ञम्-तन्वानाः- अबध्नन्-पुरूषम्-पशुम्।
अनुवाद:- (सप्त) सात संख ब्रह्मण्ड तो परब्रह्म के तथा (त्रिसप्त) इक्कीस ब्रह्मण्ड काल ब्रह्म के (समिधः) कर्मदण्ड दुःख रूपी आग से दुःखी (कृताः) करने वाले (परिधयः) गोलाकार घेरा रूप सीमा में (आसन्) विद्यमान हैं (यत्) जो (पुरूषम्) पूर्ण परमात्मा की (यज्ञम्) विधिवत् धार्मिक कर्म अर्थात् पूजा करता है (पशुम्) बलि के पशु रूपी काल के जाल में कर्म बन्धन में बंधे (देवा) भक्तात्माओं को (तन्वानाः) काल के द्वारा रचे अर्थात् फैलाये पाप कर्म बंधन जाल से (अबध्नन्) बन्धन रहित करता है अर्थात् बन्दी छुड़ाने वाला बन्दी छोड़ है।
भावार्थ:- सात संख ब्रह्मण्ड परब्रह्म के तथा इक्कीस ब्रह्मण्ड ब्रह्म के हैं जिन में गोलाकार सीमा में बंद पाप कर्मों की आग में जल रहे प्राणियों को वास्तविक पूजा विधि बता कर सही उपासना करवाता है जिस कारण से बलि दिए जाने वाले पशु की तरह जन्म-मृत्यु के काल (ब्रह्म) के खाने के लिए तप्त शिला के कष्ट से पीडि़त भक्तात्माओं को काल के कर्म बन्धन के फैलाए जाल को तोड़कर बन्धन रहित करता है अर्थात् बंधन छुड़वाने वाला बन्दी छोड़ है। इसी का प्रमाण पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि (कविर्) कबिर परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक कबीर है। बम्भारिसि (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ कबीर परमेश्वर (असि) है।
मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्र 16
यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्त्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्।
ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्रा पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः।।16।।
यज्ञेन-यज्ञम्-अ-यजन्त-देवाः-तानि-धर्माणि-प्रथमानि-आसन्-ते-ह-नाकम्- महिमानः- सचन्त- यत्रा-पूर्वे-साध्याः-सन्ति देवाः।
अनुवाद:- जो (देवाः) निर्विकार देव स्वरूप भक्तात्माएं (अयज्ञम्) अधूरी गलत धार्मिक पूजा के स्थान पर (यज्ञेन) सत्य भक्ति धार्मिक कर्म के आधार पर (अयजन्त) पूजा करते हैं (तानि) वे (धर्माणि) धार्मिक शक्ति सम्पन्न (प्रथमानि) मुख्य अर्थात् उत्तम (आसन्) हैं (ते ह) वे ही वास्तव में (महिमानः) महान भक्ति शक्ति युक्त होकर (साध्याः) सफल भक्त जन (नाकम्) पूर्ण सुखदायक परमेश्वर को (सचन्त) भक्ति निमित कारण अर्थात् सत्भक्ति की कमाई से प्राप्त होते हैं, वे वहाँ चले जाते हैं। (यत्रा) जहाँ पर (पूर्वे) पहले वाली सृष्टी के (देवाः) पापरहित देव स्वरूप भक्त आत्माएं (सन्ति) रहती हैं।
भावार्थ:- जो निर्विकार (जिन्होने मांस,शराब, तम्बाकू सेवन करना त्याग दिया है तथा अन्य बुराईयों से रहित है वे) देव स्वरूप भक्त आत्माएं शास्त्र विधि रहित पूजा को त्याग कर शास्त्रानुकूल साधना करते हैं वे भक्ति की कमाई से धनी होकर काल के ऋण से मुक्त होकर अपनी सत्य भक्ति की कमाई के कारण उस सर्व सुखदाई परमात्मा को प्राप्त करते हैं अर्थात् सत्यलोक में चले जाते हैं जहाँ पर सर्व प्रथम रची सृष्टी के देव स्वरूप अर्थात् पाप रहित हंस आत्माएं रहती हैं।
जैसे कुछ आत्माएं तो काल (ब्रह्म) के जाल में फंस कर यहाँ आ गई, कुछ परब्रह्म के साथ सात संख ब्रह्मण्डों में आ गई, फिर भी असंख्य आत्माएं जिनका विश्वास पूर्ण परमात्मा में अटल रहा, जो पतिव्रता पद से नहीं गिरी वे वहीं रह गई, इसलिए यहाँ वही वर्णन पवित्र वेदों ने भी सत्य बताया है। यही प्रमाण गीता अध्याय 8 के श्लोक संख्या 8 से 10 मेंं वर्णन है कि जो साधक पूर्ण परमात्मा की सतसाधना शास्त्राविधी अनुसार करता है वह भक्ति की कमाई के बल से उस पूर्ण परमात्मा को प्राप्त होता है अर्थात् उसके पास चला जाता है। इससे सिद्ध हुआ कि तीन प्रभु हैं ब्रह्म - परब्रह्म - पूर्णब्रह्म। इन्हीं को 1. ब्रह्म - ईश - क्षर पुरुष 2. परब्रह्म – अक्षर पुरुष/अक्षर ब्रह्म ईश्वर तथा 3. पूर्ण ब्रह्म - परम अक्षर ब��रह्म - परमेश्वर – सतपुरुष आदि पर्यायवाची शब्दों से जाना जाता है।
यही प्रमाण ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 17 से 20 में स्पष्ट है कि पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) शिशु रूप धारण करके प्रकट होता है तथा अपना निर्मल ज्ञान अर्थात् तत्वज्ञान (कविर्गीर्भिः) कबीर वाणी के द्वारा अपने अनुयाइयों को बोल-बोल कर वर्णन करता है। वह कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ब्रह्म (क्षर पुरुष) के धाम तथा परब्रह्म (अक्षर पुरुष) के धाम से भिन्न जो पूर्ण ब्रह्म (परम अक्षर पुरुष) का तीसरा ऋतधाम (सतलोक) है, उसमें आकार में विराजमान है तथा सतलोक से चैथा अनामी लोक है, उसमें भी यही कविर्देव (कबीर परमेश्वर) अनामी पुरुष रूप में मनुष्य सदृश आकार में विराजमान है।
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subeshivrain · 12 days ago
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart115
पवित्र ऋग्वेद में सृष्टी रचना का प्रमाण
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मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्र 1
सहस्‍त्रशीर्षा पुरूषः सहòाक्षः सहòपात्।
स भूमिं विश्वतों वृत्वात्यतिष्ठद्दशाङ्गुलम्।। 1।।
सहòशिर्षा-पुरूषः-सहòाक्षः-सहòपात्-स-भूमिम्-विश्वतः-वृत्वा-अत्यातिष्ठत्-दशंगुलम्।
अनुवाद:- (पुरूषः) विराट रूप काल भगवान अर्थात् क्षर पुरूष (सहस्रशिर्षा) हजार सिरों वाला (सहस्राक्षः) हजार आँखों वाला (सहस्रपात्) हजार पैरों वाला है (स) वह काल (भूमिम्) पृथ्वी वाले इक्कीस ब्रह्मांडो को (विश्वतः) सब ओर से (दशंगुलम्) दसों अंगुलियोंसे अर्थात् पूर्ण रूप से काबू किए हुए (वृत्वा) गोलाकार घेरे में घेर कर (अत्यातिष्ठत्) इस से बढ़कर अर्थात् अपने काल लोक में सबसे न्यारा भी इक्कीसवें ब्रह्मण्ड में ठहरा है अर्थात् रहता है।
भावार्थ:- इस मंत्र में विराट (काल/ब्रह्म) का वर्णन है। (गीता अध्याय 10-11 में भी इसी काल/ब्रह्म का ऐसा ही वर्णन है अध्याय 11 मंत्र नं. 46 में अर्जुन ने कहा है कि हे सहस्राबाहु अर्थात् हजार भुजा वाले आप अपने चतुर्भुज रूप में दर्शन दीजिए)
जिसके हजारों हाथ, पैर, हजारों आँखे, कान आदि हैं वह विराट रूप काल प्रभु अपने आधीन सर्व प्राणियों को पूर्ण काबू करके अर्थात् 20 ब्रह्मण्डों को गोलाकार परिधि में रोककर स्वयं इनसे ऊपर (अलग) इक्कीसवें ब्रह्मण्ड में बैठा है।
मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्र 2
पुरूष एवेदं सर्वं यद्भूतं यच्च भाव्यम्।
उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति।। 2।।
पुरूष-एव-इदम्-सर्वम्-यत्-भूतम्-यत्-च-भाव्यम्-उत-अमृतत्वस्य-इशानः-यत्-अन्नेन-अतिरोहति
अनुवाद:- (एव) इसी प्रकार कुछ सही तौर पर (पुरूष) भगवान है वह अक्षर पुरूष अर्थात् परब्रह्म है (च) और (इदम्) यह (यत्) जो (भूतम्) उत्पन्न हुआ है (यत्) जो (भाव्यम्) भविष्य में होगा (सर्वम्) सब (यत्) प्रयत्न से अर्थात् मेहनत द्वारा (अन्नेन) अन्न से (अतिरोहति) विकसित होता है। यह अक्षर पुरूष भी (उत) सन्देह युक्त (अमृतत्वस्य) मोक्ष का (इशानः) स्वामी है अर्थात् भगवान तो अक्षर पुरूष भी कुछ सही है परन्तु पूर्ण मोक्ष दायक नहीं है।
भावार्थ:- इस मंत्र में परब्रह्म (अक्षर पुरुष) का विवरण है जो कुछ भगवान वाले लक्षणों से युक्त है, परन्तु इसकी भक्ति से भी पूर्ण मोक्ष नहीं है, इसलिए इसे संदेहयुक्त मुक्ति दाता कहा है। इसे कुछ प्रभु के गुणों युक्त इसलिए कहा है कि यह काल की तरह तप्तशिला पर भून कर नहीं खाता। परन्तु इस परब्रह्म के लोक में भी प्राणियों को परिश्रम करके कर्माधार पर ही फल प्राप्त होता है तथा अन्न से ही सर्व प्राणियों के शरीर विकसित होते हैं, जन्म तथा मृत्यु का समय भले ही काल (क्षर पुरुष) से अधिक है, परन्तु फिर भी उत्पत्ति प्रलय तथा चैरासी लाख योनियोंमें यातना बनी रहती है।
मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्र 3
एतावानस्य महिमातो ज्यायाँश्च पुरूषः।
पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि।। 3।।
एतावान्-अस्य-महिमा-अतः-ज्यायान्-च-पुरूषः-पादः-अस्य-विश्वा-भूतानि-त्रि-पाद्-अस्य-अमृतम्-दिवि
अनुवाद:- (अस्य) इस अक्षर पुरूष अर्थात् परब्रह्म की तो (एतावान्) इतनी ही (महिमा) प्रभुता है। (च) तथा (पुरूषः) वह परम अक्षर ब्रह्म अर्थात् पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर तो (अतः) इससे भ�� (ज्यायान्) बड़ा है (विश्वा) समस्त (भूतानि) क्षर पुरूष तथा अक्षर पुरूष तथा इनके लोकों में तथा सत्यलोक तथा इन लोकों में जितने भी प्राणी हैं (अस्य) इस पूर्ण परमात्मा परम अक्षर पुरूष का (पादः) एक पैर है अर्थात् एक अंश मात्रा है। (अस्य) इस परमेश्वर के (त्रि) तीन (दिवि) दिव्य लोक जैसे सत्यलोक-अलख लोक-अगम लोक (अमृतम्) अविनाशी (पाद्) दूसरा पैर है अर्थात् जो भी सर्व ब्रह्मण्डों में उत्पन्न है वह सत्यपुरूष पूर्ण परमात्मा का ही अंश या अंग है।
भावार्थ:- इस ऊपर के मंत्र 2 में वर्णित अक्षर पुरुष (परब्रह्म) की तो इतनी ही महिमा है तथा वह पूर्ण पुरुष कविर्देव तो इससे भी बड़ा है अर्थात् सर्वशक्तिमान है तथा सर्व ब्रह्मण्ड उसी के अंश मात्रा पर ठहरे हैं। इस मंत्र में तीन लोकों का वर्णन इसलिए है क्योंकि चैथा अनामी (अनामय) लोक अन्य रचना से पहले का है। यही तीन प्रभुओं (क्षर पुरूष-अक्षर पुरूष तथा इन दोनों से अन्य परम अक्षर पुरूष) का विवरण श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 15 श्लोक संख्या 16.17 में है
{इसी का प्रमाण आदरणीय गरीबदास साहेब जी कहते हैं कि:- गरीब, जाके अर्ध रूम पर सकल पसारा, ऐसा पूर्ण ब्रह्म हमारा।।
गरीब, अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड का, एक रति नहीं भार। सतगुरु पुरुष कबीर हैं, कुल के सृजनहार।।
इसी का प्रमाण आदरणीय दादू साहेब जी कह रहे हैं कि:-
जिन मोकुं निज नाम दिया, सोई सतगुरु हमार। दादू दूसरा कोए नहीं, कबीर सृजनहार।।
इसी का प्रमाण आदरणीय नानक साहेब जी देते हैं कि:-
यक अर्ज गुफतम पेश तो दर कून करतार। हक्का कबीर करीम तू, बेएब परवरदिगार।।
(श्री गुरु ग्रन्थ साहेब, पृष्ठ नं. 721, महला 1, राग तिलंग)
कून करतार का अर्थ होता है सर्व का रचनहार, अर्थात् शब्द शक्ति से रचना करने वाला शब्द स्वरूपी प्रभु, हक्का कबीर का अर्थ है सत् कबीर, करीम का अर्थ दयालु, परवरदिगार का अर्थ परमात्मा है।}
मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्र 4
त्रिपादूध्र्व उदैत्पुरूषः पादोऽस्येहाभवत्पुनः।
ततो विष्व ङ्व्यक्रामत्साशनानशने अभि।। 4।।
त्रि-पाद-ऊध्र्वः-उदैत्-पुरूषः-पादः-अस्य-इह-अभवत्-पूनः-ततः-विश्वङ्-व्यक्रामत्-सः-अशनानशने-अभि
अनुवाद:- (पुरूषः) यह परम अक्षर ब्रह्म अर्थात् अविनाशी परमात्मा (ऊध्र्वः) ऊपर (त्रि) तीन लोक जैसे सत्यलोक-अलख लोक-अगम लोक रूप (पाद) पैर अर्थात् ऊपर के हिस्से में (उदैत्) प्रकट होता है अर्थात् विराजमान है (अस्य) इसी परमेश्वर पूर्ण ब्रह्म का (पादः) एक पैर अर्थात् एक हिस्सा जगत रूप (पुनर्) फिर (इह) यहाँ (अभवत्) प्रकट होता है (ततः) इसलिए (सः) वह अविनाशी पूर्ण परमात्मा (अशनानशने) खाने वाले काल अर्थात् क्षर पुरूष व न खाने वाले परब्रह्म अर्थात् अक्षर पुरूष के भी (अभि)ऊपर (विश्वङ्)सर्वत्रा (व्यक्रामत्)व्याप्त है अर्थात् उसकी प्रभुता सर्व ब्रह्माण्डों व सर्व प्रभुओं पर है वह कुल का मालिक है। जिसने अपनी शक्ति को सर्व के ऊपर फैलाया है।
भावार्थ:- यही सर्व सृष्टी रचन हार प्रभु अपनी रचना के ऊपर के हिस्से में तीनों स्थानों (सतलोक, अलखलोक, अगमलोक) में तीन रूप में स्वयं प्रकट होता है अर्थात् स्वयं ही विराजमान है। यहाँ अनामी लोक का वर्णन इसलिए नहीं किया क्योंकि अनामी लोक में कोई रचना नहीं है तथा अकह (अनामय) लोक शेष रचना से पूर्व का है फिर कहा है कि उसी परमात्मा के सत्यलोक से बिछुड़ कर नीचे के ब्रह्म व परब्रह्म के लोक उत्पन्न होते हैं और वह पूर्ण परमात्मा खाने वाले ब्रह्म अर्थात् काल से (क्योंकि ब्रह्म/काल विराट शाप वश एक लाख मानव शरीर धारी प्राणियों को खाता है) तथा न खाने वाले परब्रह्म अर्थात् अक्षर पुरुष से (परब्रह्म प्राणियों को खाता नहीं, परन्तु जन्म-मृत्यु, कर्मदण्ड ज्यों का त्यों बना रहता है) भी ऊपर सर्वत्र व्याप्त है अर्थात् इस पूर्ण परमात्मा की प्रभुता सर्व के ऊपर है, कबीर परमेश्वर ही कुल का मालिक है। जिसने अपनी शक्ति को सर्व के ऊपर फैलाया है जैसे सूर्य अपने प्रकाश को सर्व के ऊपर फैला कर प्रभावित करता है, ऐसे पूर्ण परमात्मा ने अपनी शक्ति रूपी रेंज (क्षमता) को सर्व ब्रह्मण्डों को नियन्त्रित रखने के लिए छोड़ा हुआ है जैसे मोबाईल फोन का टावर एक देशिय होते हुए अपनी शक्ति अर्थात् मोबाइल फोन की रेंज (क्षमता) चहुं ओर फैलाए रहता है। इसी प्रकार पूर्ण प्रभू ने अपनी निराकार शक्ति सर्व व्यापक की है जिससे पूर्ण परमात्मा सर्व ब्रह्मण्डों को एक स्थान पर बैठ कर नियन्त्रित रखता है। इसी का प्रमाण आदरणीय गरीबदास जी महाराज दे रहे हैं (अमृतवाणी राग कल्याण)
तीन चरण चिन्तामणी साहेब, शेष बदन पर छाए।
माता, पिता, कुल न बन्धु, ना किन्हें जननी जाये।।
मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्र 5
तस्माद्विराळजायत विराजो अधि पूरूषः।
स जातो अत्यरिच्यत पश्चाद्भूमिमथो पुरः।। 5।।
तस्मात्-विराट्-अजायत-विराजः-अधि-पुरूषः-स-जातः-अत्यरिच्यत-पश्चात्-भूमिम्-अथः-पुरः।
अनुवाद:- (तस्मात्) उसके पश्चात् उस परमेश्वर सत्यपुरूष की शब्द शक्ति से (विराट्) विराट अर्थात् ब्रह्म, जिसे क्षर पुरूष व काल भी कहते हैं (अजायत) उत्पन्न हुआ है (पश्चात्) इसके बाद (विराजः) विराट पुरूष अर्थात् काल भगवान से (अधि) बड़े (पुरूषः) परमेश्वर ने (भूमिम्) पृथ्वी वाले लोक, काल ब्रह्म तथा परब्रह्म के लोक को (अत्यरिच्यत) अच्छी तरह रचा (अथः) फिर (पुरः) अन्य छोटे-छोटे लोक (स) उस पूर्ण परमेश्वर ने ही (जातः) उत्पन्न किया अर्थात् स्थापित किया।
भावार्थ:- उपरोक्त मंत्र 4 में वर्णित तीनों लोकों (अगमलोक, अलख लोक तथा सतलोक) की रचना के पश्चात पूर्ण परमात्मा ने ज्योति निरंजन (ब्रह्म) की उत्पत्ति की अर्थात् उसी सर्व शक्तिमान परमात्मा पूर्ण ब्रह्म कविर्देव (कबीर प्रभु) से ही विराट अर्थात् ब्रह्म (काल) की उत्पत्ति हुईं। यही प्रमाण गीता अध्याय 3 मन्त्र 15 में है कि अक्षर पुरूष अर्थात् अविनाशी प्रभु से ब्रह्म उत्पन्न हुआ यही प्रमाण अर्थववेद काण्ड 4 अनुवाक 1 सुक्त 3 में है कि पूर्ण ब्रह्म से ब्रह्म की उत्पत्ति हुई उसी पूर्ण ब्रह्म ने (भूमिम्) भूमि आदि छोटे-बड़े सर्व लोकों की रचना की। वह पूर्णब्रह्म इस विराट भगवान अर्थात् ब्रह्म से भी बड़ा है अर्थात् इसका भी मालिक है।
मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्र 15
सप्तास्यासन्परिधयस्त्रिाः सप्त समिधः कृताः।
देवा यद्यज्ञं तन्वाना अबध्नन्पुरूषं पशुम्।। 15।।
सप्त-अस्य-आसन्-परिधयः-त्रिसप्त-समिधः-कृताः-देवा-यत्-यज्ञम्-तन्वानाः- अबध्नन्-पुरूषम्-पशुम्।
अनुवाद:- (सप्त) सात संख ब्रह्मण्ड तो परब्रह्म के तथा (त्रिसप्त) इक्कीस ब्रह्मण्ड काल ब्रह्म के (समिधः) कर्मदण्ड दुःख रूपी आग से दुःखी (कृताः) करने वाले (परिधयः) गोलाकार घेरा रूप सीमा में (आसन्) विद्यमान हैं (यत्) जो (पुरूषम्) पूर्ण परमात्मा की (यज्ञम्) विधिवत् धार्मिक कर्म अर्थात् पूजा करता है (पशुम्) बलि के पशु रूपी काल के जाल में कर्म बन्धन में बंधे (देवा) भक्तात्माओं को (तन्वानाः) काल के द्वारा रचे अर्थात् फैलाये पाप कर्म बंधन जाल से (अबध्नन्) बन्धन रहित करता है अर्थात् बन्दी छुड़ाने वाला बन्दी छोड़ है।
भावार्थ:- सात संख ब्रह्मण्ड परब्रह्म के तथा इक्कीस ब्रह्मण्ड ब्रह्म के हैं जिन म���ं गोलाकार सीमा में बंद पाप कर्मों की आग में जल रहे प्राणियों को वास्तविक पूजा विधि बता कर सही उपासना करवाता है जिस कारण से बलि दिए जाने वाले पशु की तरह जन्म-मृत्यु के काल (ब्रह्म) के खाने के लिए तप्त शिला के कष्ट से पीडि़त भक्तात्माओं को काल के कर्म बन्धन के फैलाए जाल को तोड़कर बन्धन रहित करता है अर्थात् बंधन छुड़वाने वाला बन्दी छोड़ है। इसी का प्रमाण पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि (कविर्) कबिर परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक कबीर है। बम्भारिसि (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ कबीर परमेश्वर (असि) है।
मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्र 16
यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्त्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्।
ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्रा पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः।।16।।
यज्ञेन-यज्ञम्-अ-यजन्त-देवाः-तानि-धर्माणि-प्रथमानि-आसन्-ते-ह-नाकम्- महिमानः- सचन्त- यत्रा-पूर्वे-साध्याः-सन्ति देवाः।
अनुवाद:- जो (देवाः) निर्विकार देव स्वरूप भक्तात्माएं (अयज्ञम्) अधूरी गलत धार्मिक पूजा के स्थान पर (यज्ञेन) सत्य भक्ति धार्मिक कर्म के आधार पर (अयजन्त) पूजा करते हैं (तानि) वे (धर्माणि) धार्मिक शक्ति सम्पन्न (प्रथमानि) मुख्य अर्थात् उत्तम (आसन्) हैं (ते ह) वे ही वास्तव में (महिमानः) महान भक्ति शक्ति युक्त होकर (साध्याः) सफल भक्त जन (नाकम्) पूर्ण सुखदायक परमेश्वर को (सचन्त) भक्ति निमित कारण अर्थात् सत्भक्ति की कमाई से प्राप्त होते हैं, वे वहाँ चले जाते हैं। (यत्रा) जहाँ पर (पूर्वे) पहले वाली सृष्टी के (देवाः) पापरहित देव स्वरूप भक्त आत्माएं (सन्ति) रहती हैं।
भावार्थ:- जो निर्विकार (जिन्होने मांस,शराब, तम्बाकू सेवन करना त्याग दिया है तथा अन्य बुराईयों से रहित है वे) देव स्वरूप भक्त आत्माएं शास्त्र विधि रहित पूजा को त्याग कर शास्त्रानुकूल साधना करते हैं वे भक्ति की कमाई से धनी होकर काल के ऋण से मुक्त होकर अपनी सत्य भक्ति की कमाई के कारण उस सर्व सुखदाई परमात्मा को प्राप्त करते हैं अर्थात् सत्यलोक में चले जाते हैं जहाँ पर सर्व प्रथम रची सृष्टी के देव स्वरूप अर्थात् पाप रहित हंस आत्माएं रहती हैं।
जैसे कुछ आत्माएं तो काल (ब्रह्म) के जाल में फंस कर यहाँ आ गई, कुछ परब्रह्म के साथ सात संख ब्रह्मण्डों में आ गई, फिर भी असंख्य आत्माएं जिनका विश्वास पूर्ण परमात्मा में अटल रहा, जो पतिव्रता पद से नहीं गिरी वे वहीं रह गई, इसलिए यहाँ वही वर्णन पवित्र वेदों ने भी सत्य बताया है। यही प्रमाण गीता अध्याय 8 के श्लोक संख्या 8 से 10 मेंं वर्णन है कि जो साधक पूर्ण परमात्मा की सतसाधना शास्त्राविधी अनुसार करता है वह भक्ति की कमाई के बल से उस पूर्ण परमात्मा को प्राप्त होता है अर्थात् उसके पास चला जाता है। इससे सिद्ध हुआ कि तीन प्रभु हैं ब्रह्म - परब्रह्म - पूर्णब्रह्म। इन्हीं को 1. ब्रह्म - ईश - क्षर पुरुष 2. परब्रह्म – अक्षर पुरुष/अक्षर ब्रह्म ईश्वर तथा 3. पूर्ण ब्रह्म - परम अक्षर ब्रह्म - परमेश्वर – सतपुरुष आदि पर्यायवाची शब्दों से जाना जाता है।
यही प्रमाण ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 17 से 20 में स्पष्ट है कि पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) शिशु रूप धारण करके प्रकट होता है तथा अपना निर्मल ज्ञान अर्थात् तत्वज्ञान (कविर्गीर्भिः) कबीर वाणी के द्वारा अपने अनुयाइयों को बोल-बोल कर वर्णन करता है। वह कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ब्रह्म (क्षर पुरुष) के धाम तथा परब्रह्म (अक्षर पुरुष) के धाम से भिन्न जो पूर्ण ब्रह्म (परम अक्षर पुरुष) का तीसरा ऋतधाम (सतलोक) है, उसमें आकार में विराजमान है तथा सतलोक से चैथा अनामी लोक है, उसमें भी यही कविर्देव (कबीर परमेश्वर) अनामी पुरुष रूप में मनुष्य सदृश आकार में विराजमान है।
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dhanu-j-92 · 17 days ago
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*पवित्र ऋग्वेद में सृष्टी रचना*
*का प्रमाण ऋग्वेद में सृष्टी*
*रचना का प्रमाण*
मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्र 1
सहस्‍त्रशीर्षा पुरूषः सहक्षः सहपात्।
स भूमिं विश्वतों वृत्वात्यतिष्ठद्दशाङ्गुलम्।। 1।।
सहशिर्षा-पुरूषः-सहक्षः-सहपात्-स-भूमिम्-विश्वतः-वृत्वा-अत्यातिष्ठत्-दशंगुलम्।
अनुवाद:- (पुरूषः) विराट रूप काल भगवान अर्थात् क्षर पुरूष (सहस्रशिर्षा) हजार सिरों वाला (सहस्राक्षः) ह��ार आँखों वाला (सहस्रपात्) हजार पैरों वाला है (स) वह काल (भूमिम्) पृथ्वी वाले इक्कीस ब्रह्मांडो को (विश्वतः) सब ओर से (दशंगुलम्) दसों अंगुलियोंसे अर्थात् पूर्ण रूप से काबू किए हुए (वृत्वा) गोलाकार घेरे में घेर कर (अत्यातिष्ठत्) इस से बढ़कर अर्थात् अपने काल लोक में सबसे न्यारा भी इक्कीसवें ब्रह्मण्ड में ठहरा है अर्थात् रहता है।
भावार्थ:- इस मंत्र में विराट (काल/ब्रह्म) का वर्णन है। (गीता अध्याय 10-11 में भी इसी काल/ब्रह्म का ऐसा ही वर्णन है अध्याय 11 मंत्र नं. 46 में अर्जुन ने कहा है कि हे सहस्राबाहु अर्थात् हजार भुजा वाले आप अपने चतुर्भुज रूप में दर्शन दीजिए)
जिसके हजारों हाथ, पैर, हजारों आँखे, कान आदि हैं वह विराट रूप काल प्रभु अपने आधीन सर्व प्राणियों को पूर्ण काबू करके अर्थात् 20 ब्रह्मण्डों को गोलाकार परिधि में रोककर स्वयं इनसे ऊपर (अलग) इक्कीसवें ब्रह्मण्ड में बैठा है।
मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्र 2
पुरूष एवेदं सर्वं यद्भूतं यच्च भाव्यम्।
उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति।। 2।।
पुरूष-एव-इदम्-सर्वम्-यत्-भूतम्-यत्-च-भाव्यम्-उत-अमृतत्वस्य-इशानः-यत्-अन्नेन-अतिरोहति
अनुवाद:- (एव) इसी प्रकार कुछ सही तौर पर (पुरूष) भगवान है वह अक्षर पुरूष अर्थात् परब्रह्म है (च) और (इदम्) यह (यत्) जो (भूतम्) उत्पन्न हुआ है (यत्) जो (भाव्यम्) भविष्य में होगा (सर्वम्) सब (यत्) प्रयत्न से अर्थात् मेहनत द्वारा (अन्नेन) अन्न से (अतिरोहति) विकसित होता है। यह अक्षर पुरूष भी (उत) सन्देह युक्त (अमृतत्वस्य) मोक्ष का (इशानः) स्वामी है अर्थात् भगवान तो अक्षर पुरूष भी कुछ सही है परन्तु पूर्ण मोक्ष दायक नहीं है।
भावार्थ:- इस मंत्र में परब्रह्म (अक्षर पुरुष) का विवरण है जो कुछ भगवान वाले लक्षणों से युक्त है, परन्तु इसकी भक्ति से भी पूर्ण मोक्ष नहीं है, इसलिए इसे संदेहयुक्त मुक्ति दाता कहा है। इसे कुछ प्रभु के गुणों युक्त इसलिए कहा है कि यह काल की तरह तप्तशिला पर भून कर नहीं खाता। परन्तु इस परब्रह्म के लोक में भी प्राणियों को परिश्रम करके कर्माधार पर ही फल प्राप्त होता है तथा अन्न से ही सर्व प्राणियों के शरीर विकसित होते हैं, जन्म तथा मृत्यु का समय भले ही काल (क्षर पुरुष) से अधिक है, परन्तु फिर भी उत्पत्ति प्रलय तथा चैरासी लाख योनियोंमें यातना बनी रहती है।
मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्र 3
एतावानस्य महिमातो ज्यायाँश्च पुरूषः।
पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि।। 3।।
एतावान्-अस्य-महिमा-अतः-ज्यायान्-च-पुरूषः-पादः-अस्य-विश्वा-भूतानि-त्रि-पाद्-अस्य-अमृतम्-दिवि
अनुवाद:- (अस्य) इस अक्षर पुरूष अर्थात् परब्रह्म की तो (एतावान्) इतनी ही (महिमा) प्रभुता है। (च) तथा (पुरूषः) वह परम अक्षर ब्रह्म अर्थात् पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर तो (अतः) इससे भी (ज्यायान्) बड़ा है (विश्वा) समस्त (भूतानि) क्षर पुरूष तथा अक्षर पुरूष तथा इनके लोकों में तथा सत्यलोक तथा इन लोकों में जितने भी प्राणी हैं (अस्य) इस पूर्ण परमात्मा परम अक्षर पुरूष का (पादः) एक पैर है अर्थात् एक अंश मात्रा है। (अस्य) इस परमेश्वर के (त्रि) तीन (दिवि) दिव्य लोक जैसे सत्यलोक-अलख लोक-अगम लोक (अमृतम्) अविनाशी (पाद्) दूसरा पैर है अर्थात् जो भी सर्व ब्रह्मण्डों में उत्पन्न है वह सत्यपुरूष पूर्ण परमात्मा का ही अंश या अंग है।
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atplblog · 25 days ago
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Price: [price_with_discount] (as of [price_update_date] - Details) [ad_1] गुरु नानकदेव के ‘जपुजी’ पर पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं बीस OSHO Talks "नानक ने परमात्मा को गा-गाकर पाया। गीतों से पटा है मार्ग नानक का। इसलिए नानक की खोज बड़ी भिन्न है। नानक ने योग नहीं किया, तप नहीं किया, ध्यान नहीं किया। नानक ने सिर्फ गाया। और गाकर ही पा लिया। लेकिन गाया उन्होंने इतने पूरे प्राण से कि गीत ही ध्यान हो गया, गीत ही योग बन गया, गीत ही तप हो गया।"—ओशो नानक-वाणी पर ओशो के प्रवचनों ने कुछ ऐसी चीजों को लेकर मेरे आंख-कान खोले, जिनके बारे में पहले ज्यादा नहीं जानता था। हर अमृत वेला के समय में मैंने ओशो के प्रवचनों को सुना, जिनमें ओशो व्याख्या के लिए वेद-उपनिषदों और मुस्लिम सूफी संतों की शिक्षाओं का उल्लेख करते हैं। इससे मेरा यह विश्वास और भी दृढ़ हो गया कि ओशो हमारे देश में जन्मी महान आत्माओं में से एक हैं। ओशो के ये प्रवचन केवल सिखों के लिए ही नहीं, बल्कि उन सबके लिए उपयोगी हैं जो स्वयं को भक्ति-मार्ग की परंपरा से अवगत करना चाहते हैं। खुशवंत सिंह (अंतर्राष्टीय ख्याति-प्राप्त लेखक एवं पत्रकार) पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु: • ध्यान की कीमिया • सुनने की कला • विश्राम का विज्ञान अनुक्रम #1: आदि सचु जुगादि सचु #2: हुकमी हुकमु चलाए राह #3: साचा साहिबु साचु नाइ #4: जे इक गुरु की सिख सुणी #5: नानक भगता सदा विगासु #6: ऐसा नामु निरंजनु होइ #7: पंचा का गुरु एकु धिआनु #8: जो तुधु भावै साई भलीकार #9: आपे बीजि आपे ही खाहु #10: आपे जाणै आपु #11: ऊचे उपरि ऊचा नाउ #12: आखि आखि रहे लिवलाइ #13: सोई सोई सदा सचु साहिब #14: आदेसु तिसै आदेसु #15: जुग जुग एको वेसु #16: नानक उतमु नीचु न कोइ #17: करमी करमी होइ वीचारु #18: नानक अंतु न अंतु #19: सच खंडि वसै निरंकारु #20: नानक नदरी नदरि निहाल उद्धरण : एक ओंकार सतनाम - पहला प्रवचन - आदि सचु जुगादि ��चु "नानक ने गृहस्थ को और संन्यासी को अलग नहीं किया। क्योंकि अगर कर्ता परमेश्वर अलग है सृष्टि से, तो फिर तुम्हें सृष्टि के काम-धंधे से अलग हो जाना चाहिए। जब तुम्हें कर्ता पुरुष को खोजना है तो कृत्य से दूर हो जाना चाहिए, कर्म से दूर हो जाना चाहिए। फिर बाजार है, दूकान है, काम-धंधा है, उससे अलग हो जाना चाहिए। नानक आखिर तक अलग नहीं हुए। यात्राओं पर जाते थे; और जब भी वापस लौटते तो फिर अपनी खेती-बाड़ी में लग जाते। फिर उठा लेते हल-बक्खर। पूरे जीवन, जब भी वापस लौटते घर, तब अपना कामधाम शुरू कर देते। जिस गांव में वे आखिर में बस गए थे, उस गांव का नाम उन्होंने करतारपुर रख लिया था--कर्ता का गांव। अगर परमात्मा कर्ता है, तो तुम यह मत समझना कि वह दूर हो गया है कृत्य से। एक आदमी मूर्ति बनाता है। जब मूर्ति बन जाती है तो मूर्तिकार अलग हो जाता है, मूर्ति अलग हो जाती है। दो हो गए। मूर्तिकार के मरने से मूर्ति नहीं मरेगी। मूर्तिकार मर जाए, मूर्ति रहेगी। मूर्ति के टूटने से मूर्तिकार नहीं मरेगा। मूर्ति टूट जाए, मूर्तिकार बचेगा। दोनों अलग हो गए। परमात्मा और उसकी सृष्टि में ऐसा फासला नहीं है। फिर परमात्मा और उसकी सृष्टि में कैसा संबंध है? वह ऐसा है जैसे नर्तक का। एक आदमी नाच रहा है, तो नृत्य है, लेकिन क्या तुम नृत्य को और नृत्यकार को अलग कर सकोगे? नृत्यकार घर चला जाए, नृत्य तुम्हारे पास छोड़ जा सकेगा? नृत्यकार मरेगा, नृत्य मर जाएगा। नृत्य रुकेगा, फिर वह आदमी नर्तक न रहा। दोनों संयुक्त हैं।…इसलिए नानक कहते हैं, कुछ छोड़ कर कहीं भागना नहीं है। जहां तुम हो, वहीं वह छिपा है। इसलिए नानक ने एक अनूठे धर्म को जन्म दिया है, जिसमें गृहस्थ और संन्यासी एक है। और वही आदमी अपने को सिक्ख कहने का हकदार है, जो गृहस्थ होते हुए संन्यासी हो; संन्यासी होते हुए गृहस्थ हो। सिर के बाल बढ़ा लेने से, पगड़ी बांध लेने से कोई सिक्ख नहीं होता। सिक्ख होना बड़ा कठिन है। गृहस्थ होना आसान है। संन्यासी होना आसान है; छोड़ दो, भाग जाओ जंगल। सिक्ख होना कठिन है। क्योंकि सिक्ख का अर्थ है--संन्यासी, गृहस्थ एक साथ। रहना घर में और ऐसे रहना जैसे नहीं हो। रहना घर में और ऐसे रहना जैसे हिमालय पर हो। करना दूकान, लेकिन याद परमात्मा की रखना। गिनना रुपए, नाम उसका लेना।"—ओशो ASIN ‏ : ‎ B07BSFF627 Publisher ‏ : ‎ OSHO Media International (28 March 2018) Language ‏
: ‎ Hindi File size ‏ : ‎ 2132 KB Text-to-Speech ‏ : ‎ Enabled Screen Reader ‏ : ‎ Supported Enhanced typesetting ‏ : ‎ Enabled Word Wise ‏ : ‎ Not Enabled Print length ‏ : ‎ 524 pages [ad_2]
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indrabalakhanna · 2 months ago
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@FactfulDebates Sadhna TV Satsang | Episode: 3011 | Sant Rampal Ji Mahar...
*🙏🌼बन्दीछोड़ सतगुरु संत रामपाल जी महाराज जी की जय🌼🙏*
29/08/24, Thursday/गुरुवार
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*Sant Rampal Ji Maharaj
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1🪕कबीर साहेब जी अपनी वाणी में कहते हैं कि-
जो मम संत सत उपदेश दृढ़ावै (बतावै), वाके संग सभि राड़ बढ़ावै।
या सब संत महंतन की करणी, धर्मदास मैं तो से वर्णी।।
कबीर साहेब अपने प्रिय शिष्य धर्मदास को इस वाणी में ये समझा रहे हैं कि जो मेरा संत सत भक्ति मार्ग को बताएगा उसके साथ सभी संत व महंत झगड़ा करेंगे। ये उसकी पहचान होगी।
2🪕सिद्ध तारै पिंड आपना, साधु तारै खंड।
उसको सतगुरु जानियो, जो तार देवै ब्रह्मांड।।
साधक अपना ही कल्याण कर सकता है। परमात्मा से परिचित जो संत हुए हैं वो कुछ डिवीजन, खंड को ही लाभ दे सकते हैं। और सतगुरु उसको जानना जो पूरे विश्व का कल्याण कर दे।
3🪕सतगुरु के लक्षण कहूं, मधूरे बैन विनोद। चार वेद षट शास्त्र, कहै अठारा बोध।।
सतगुरु गरीबदास जी महाराज अपनी वाणी में पूर्ण संत की पहचान बता रहे हैं कि वह चारों वेदों, छः शास्त्रों, अठारह पुराणों आदि सभी ग्रंथों का पूर्ण जानकार होगा।
4🪕यजुर्वेद अध्याय 19 मंत्र 25, 26 में लिखा है कि जो वेदों के अधूरे वाक्यों अर्थात् सांकेतिक शब्दों व एक चौथाई श्लोकों को पूरा करके विस्तार से बताएगा व तीन समय की पूजा बताएगा। सुबह पूर्ण परमात्मा की पूजा, दोपहर को विश्व के देवताओं का सत्कार व संध्या आरती अलग से बताएगा वह जगत का उपकारक संत होता है।
5🪕तत्वदर्शी सन्त वह होता है जो वेदों के सांकेतिक शब्दों को पूर्ण विस्तार से वर्णन करता है जिससे पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति होती है वह वेद के जानने वाला कहा जाता है।
6🪕 पूर्ण सन्त उसी व्यक्ति को शिष्य बनाता है जो सदाचारी रहे। अभक्ष्य पदार्थों का सेवन व नशीली वस्तुओं का सेवन न करने का आश्वासन देता है। पूर्ण सन्त उसी ��े दान ग्रहण करता है जो उसका शिष्य बन जाता है फिर गुरू देव से दीक्षा प्राप्त करके फिर दान दक्षिणा करता है उस से श्रद्धा बढ़ती है। श्रद्धा से सत्य भक्ति करने से अविनाशी परमात्मा की प्राप्ति होती है अर्थात् पूर्ण मोक्ष होता है। पूर्ण संत भिक्षा व चंदा मांगता नहीं फिरेगा।
7🪕पूर्ण गुरु की पहचान
पूर्ण गुरु तीन प्रकार के मंत्रों (नाम) को तीन बार में उपदेश करेगा जिसका वर्णन कबीर सागर ग्रंथ पृष्ठ नं. 265 बोध सागर में मिलता है व गीता जी के अध्याय नं. 17 श्लोक 23 व सामवेद संख्या नं. 822 में मिलता है।
8🪕संतों सतगुरु मोहे भावै, जो नैनन अलख लखावै।। ढोलत ढिगै ना बोलत बिसरै, सत उपदेश दृढ़ावै।।
आंख ना मूंदै कान ना रूदैं ना अनहद उरझावै। प्राण पूंज क्रियाओं से न्यारा, सहज समाधि बतावै।।
9🪕कबीर,सतगुरु के दरबार मे, जाइयो बारम्बार
भूली वस्तु लखा देवे, है सतगुरु दातार।
हमे सच्चे गुरु की शरण मे आकर बार बार उनके दर्शनार्थ जाना चाहिए और ज्ञान सुनना चाहिए।
10🪕गीता अध्याय 15 श्लोक 1 में गीता ज्ञान दाता ने तत्वदर्शी संत (सच्चा सतगुरु) की पहचान बताते हुए कहा है कि वह संत संसार रूपी वृक्ष के प्रत्येक भाग अर्थात जड़ से लेकर पत्ती तक का विस्तारपूर्वक ज्ञान कराएगा।
11🪕संत रामपाल जी महाराज ही एकमात्र सच्चे सतगुरु हैं जो शास्त्रों के बताए अनुसार तीन समय की भक्ति एवं तीन प्रकार के मंत्र जाप अपने साधकों को देते हैं जिससे उन्हें सर्व सुख मिलता है तथा उनका मोक्ष का मार्ग भी आसान हो जाता है।
12🪕जो भी संत शास्त्रों के अनुसार भक्ति साधना बताता है और भक्त समाज को मार्ग दर्शन करता है तो वह पूर्ण संत है अन्यथा वह भक्त समाज का घोर दुश्मन है जो शास्त्रो के विरूद्ध साधना करवा रहा है। इस अनमोल मानव जन्म के साथ खिलवाड़ कर रहा है। ऐसे गुरु या संत को भगवान के दरबार में घोर नरक में उल्टा लटकाया जाएगा।
13🪕कबीर परमेश्वर जी ने कहा है कि जो सच्चा गुरु होगा उसके 4 मुख्य लक्षण होते हैं।
1. सब वेद तथा शास्त्रों को वह ठीक से जानता है।
2. दूसरे वह स्वयं भी भक्ति मन कर्म वचन  से करता है अर्थात उसकी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं होता।
3. तीसरा लक्षण यह है कि वह सर्व अनुयायियों से समान व्यवहार करता है भेदभाव नहीं रखता।
4. चौथा लक्षण यह है कि वह सर्व भक्ति कर्म वेदो ( चार वेद तो सब जानते हैं ऋग्वेद, यजुर्वेद ,सामवेद, अथर्ववेद तथा पांचवा वेद सूक्ष्म वेद सरवन वेदो) के अनुसार करता और कराता है।
14🪕श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 15 श्लोक 1 - 4, 16, 17 में कहा गया है जो संत इस संसार रूपी ��ल्टे लटके हुए वृक्ष के सभी विभाग बता देगा वह पूर्ण गुरु/सच्चा सद्गुरु है।
यह तत्वज्ञान केवल संत रामपाल जी महाराज ही बता रहे हैं।
15🪕जब तक सच्चे गुरु (सतगुरू) की प्राप्ति नहीं होती है तब तक गुरु बदलते रहना चाहिए।
जब तक गुरु मिले ना सांचा। तब तक करो गुरु दस पांचा।।
16🪕आज कलियुग में भक्त समाज के सामने पूर्ण गुरु की पहचान करना सबसे जटिल प्रश्न बना हुआ है। लेकिन इसका बहुत ही लघु और साधारण–सा उत्तर है कि जो गुरु शास्त्रो के अनुसार भक्ति करता है और अपने अनुयाईयों अर्थात शिष्यों द्वारा करवाता है वही पूर्ण संत है।
17🪕जैसे कुम्हार कच्चे घड़े को तैयार करते समय एक हाथ घड़े के अन्दर डाल कर सहारा देता है। तत्पश्चात् ऊपर से दूसरे हाथ से चोटें लगाता है। यदि अन्दर से हाथ का सहारा घड़े को न मिले तो ऊपर की चोट को कच्चा घड़ा सहन नहीं कर सकता वह नष्ट हो जाता है। यदि थोड़ा सा भी टेढ़ापन घड़े में रह जाए तो उस की कीमत नहीं होती। फैंकना पड़ता है। इसी प्रकार गुरूदेव अपने शिष्य की आपत्तियों से रक्षा भी करता है तथा मन को रोकता है तथा प्रवचनों की चोटें लगा कर सर्व त्राुटियों को
निकालता है।
कबीर, गुरू कुम्हार शिष्य कुम्भ है, घड़ घड़ काढे खोट। अन्दर हाथ सहारा देकर, ऊपर मारै चोट।।
18🪕सतगुरु मिले तो इच्छा मेटै, पद मिल पदे समाना।
चल हंसा उस लोक पठाऊँ, जो आदि अमर अस्थाना।।
इच्छा को केवल सतगुरु अथार्त् तत्वदर्शी संत ही समाप्त कर सकता है तथा यथार्थ भक्ति मार्ग पर लगा कर अमर पद अथार्त् पूर्ण मोक्ष प्राप्त कराता है।
19🪕कबीर, सतगुरु शरण में आने से, आई टले बलाय।
जै मस्तिक में सूली हो वह कांटे में टल जाय।।
सतगुरु अथार्त् तत्वदर्शी संत से उपदेश लेकर मर्यादा में रहकर भक्ति करने से प्रारब्ध कर्म के पाप अनुसार यदि भाग्य में सजाए मौत हो तो वह पाप कर्म हल्का होकर
सामने आएगा। उस साधक को कांटा लगकर मौत की सजा टल जाएगी।
20🪕बिन सतगुरू पावै नहीं खालक खोज विचार।
चौरासी जग जात है, चिन्हत नाहीं सार।।
सतगुरू के बिना खालिक (परमात्मा) का विचार यानि यथार्थ ज्ञान नहीं मिलता। जिस कारण से संसार के व्यक्ति चौरासी लाख प्रकार के प्राणियों के शरीरों को प्राप्त करते हैं क्योंकि वे सार नाम, मूल ज्ञान को नहीं पहचानते।
21🪕कबीर, गुरू गोविंद दोनों खड़े, किसके लागूं पाय। बलिहारी गुरू आपणा, गोविन्द दियो बताय।।
बिन गुरू भजन दान बिरथ हैं, ज्यूं लूटा चोर। न मुक्ति न लाभ संसारी, कह समझाऊँ तोर।।
कबीर, गुरू बिन माला फेरते, गुरू बिन देते दान। गुरू बिन दोनों निष्फल हैं, चाहे पूछो बेद पुरान।।
22🪕श्री नानक देव जी ने श्री गुरु ग्रन्थ साहेब जी के पृष्ठ 1342 पर कहा है:-
‘‘गुरु सेवा बिन भक्ति ना होई, अनेक जतन करै जे कोई’’
23🪕श्री गुरु ग्रन्थ साहिब पृष्ठ 946
बिन सतगुरु सेवे जोग न होई। बिन सतगुरु भेटे मुक्ति न होई।
बिन सतगुरु भेटे नाम पाइआ न जाई। बिन सतगुरु भेटे महा दुःख पाई।
बिन सतगुरु भेटे महा गरबि गुबारि। नानक बिन गुरु मुआ जन्म हारि।
24🪕श्री नानक देव जी ने श्री गुरु ग्रन्थ साहेब जी के पृष्ठ 946 पर कहा है:-
‘‘बिन सतगुरु भेंटे मुक्ति न कोई, बिन सतगुरु भेंटे महादुःख पाई।’’
25🪕गुरु के समान कोई तीर्थ नहीं
श्री नानक देव जी ने श्री गुरु ग्रन्थ साहेब जी के पृष्ठ 437 पर कहा है:-
नानक गुरु समानि तीरथु नहीं कोई साचे गुरु गोपाल।
26🪕गरीब, अनंत कोटि ब्रह्मंड का एक रति नहीं भार। सतगुरू पुरूष कबीर हैं कुल के सृजनहार।।
27🪕कबीर, दण्डवत् गोविन्द गुरू, बन्दू अविजन सोय।
पहले भये प्रणाम तिन, नमो जो आगे होय।।
28🪕गुरू बिन काहू न पाया ज्ञाना, ज्यों थोथा भुष छड़े मूढ़ किसाना।
गुरू बिन वेद पढ़े जो प्राणी, समझे न सार रहे अज्ञानी।
कबीर, नौ मन सूत उलझिया, ऋषि रहे झख मार।
सतगुरू ऐसा सुलझा दे, उलझै ना दूजी बार।।
29🪕जो पूर्ण सतगुरु होगा उसमें चार मुख्य गुण होते हैं:-
गुरू के लक्षण चार बखाना, प्रथम वेद शास्त्र को ज्ञाना (ज्ञाता)।
दूजे हरि भक्ति मन कर्म बानी, तीसरे समदृष्टि कर जानी।
चौथे वेद विधि सब कर्मा, यह चार गुरु गुण जानो मर्मा।
कबीर सागर के अध्याय ‘‘जीव धर्म बोध‘‘ के पृष्ठ 1960 पर ये अमृतवाणियां अंकित हैं
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astrovastukosh · 4 months ago
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*🌞~ आज दिनांक - 16 जुलाई 2024 का हिन्दू पंचांग ~🌞*
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*⛅दिन - मंगलवार*
*⛅विक्रम संवत् - 2081*
*⛅अयन - दक्षिणायण*
*⛅ऋतु - वर्षा*
*⛅मास - आषाढ़*
*⛅पक्ष - शुक्ल*
*⛅तिथि - दशमी रात्रि 08:33 तक तत्पश्चात एक��दशी*
*⛅नक्षत्र - विशाखा रात्रि 02:14 जुलाई 17 तक तत्पश्चात अनुराधा*
*⛅योग - साध्य प्रातः 07:19 तक तत्पश्चात शुभ*
*⛅राहु काल - शाम 04:07 से शाम 05:47 तक*
*⛅सूर्योदय - 06:04*
*⛅सूर्यास्त - 07:28*
*⛅दिशा शूल - उत्तर दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 04:39 से 05:21 तक*
*⛅ अभिजीत मुहूर्त - दोपहर 12:19 से दोपहर 01:13*
*⛅निशिता मुहूर्त- रात्रि 12:25 जुलाई 17 से रात्रि 01:07 जुलाई 17 तक*
*⛅ व्रत पर्व विवरण - कर्क संक्रांति पुण्यकाल सूर्योदय से प्रातः 11:29 तक*
*⛅विशेष - दशमी को कलंबी शाक त्याज्य है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
*🔹वर्षा ऋतु में स्वास्थ्यप्रदायक अनमोल कुंजियाँ🔹*
*🔸1. वर्षा ऋतु में मंदाग्नि, वायुप्रकोप, पित्त का संचय आदि दोषों की अधिकता होती है । इस ऋतु में भोजन आवश्यकता से थोड़ा कम करोगे तो आम (कच्चा रस) तथा वायु नहीं बनेंगे या कम बनेंगे, स्वास्थ्य अच्छा रहेगा । भूल से भी थोड़ा ज्यादा खाया तो ये दोष कुपित होकर बीमारी का रूप ले सकते हैं ।*
*🔸2. काजू, बादाम, मावा, मिठाइयाँ भूलकर भी न खायें, इनसे बुखार और दूसरी बीमारियाँ होती हैं ।*
*🔸3. अशुद्ध पानी पियेंगे तो पेचिश व और कई बीमारियाँ हो जाती हैं । अगर दस्त हो गये हों तो खिचड़ी में देशी गाय का घी डाल के खा लो तो दस्त बंद हो जाते हैं । पतले दस्त ज्यादा समय तक न रहें इसका ध्यान रखें ।*
*🔸4. बरसाती मौसम के उत्तरकाल में पित्त प्रकुपित होता है इसलिए खट्टी व तीखी चीजों का सेवन वर्जित है ।*
*🔸5. जिन्होंने बेपरवाही से बरसात में हवाएँ खायी हैं और शरीर भिगाया है, उनको बुढ़ापे में वायुजन्य तकलीफों के दुःखों से टकराना पड़ता है ।*
*🔸6. इस ऋतु में खुले बदन घूमना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है ।*
*🔸7. बारिश के पानी में सिर भिगाने से अभी नहीं तो 20 वर्षों के बाद भी सिरदर्द की पीड़ा अथवा घुटनों का दर्द या वायु संबंधी रोग हो सकते हैं ।*
*🔸8. जो जवानी में ही धूप में सिर ढकने की सावधानी रखते हैं उनको बुढ़ापे में आँखों की तकलीफें जल��दी नहीं होतीं तथा कान, नाक आदि निरोग रहते हैं ।*
*🔸9. बदहजमी के कारण अम्लपित्त (Hyper acidity) की समस्या होती है और बदहजमी से जो वायु ऊपर चढ़ती है उससे भी छाती में पीड़ा होती है । वायु और पित्त का प्रकोप होता है तो अनजान लोग उसे हृदयाघात (Heart Attack) मान लेते हैं, डर जाते हैं । इसमें डरें नहीं, 50 ग्राम जीरा सेंक लो व 50 ग्राम सौंफ सेंक लो तथा 20-25 ग्राम काला नमक लो और तीनों को कूटकर चूर्ण बना के घर में रख दो । ऐसा कुछ हो अथवा पेट भारी हो तो गुनगुने पानी से 5-7 ग्राम फाँक लो ।*
*🔸10. अनुलोम-विलोम प्राणायाम करो – दायें नथुने से श्वास लो, बायें से छोड़ो फिर बायें से लो और दायें से छोड़ो । ऐसा 10 बार करो । दोनों नथुनों से श्वास समान रूप से चलने लगेगा । फिर दायें नथुने से श्वास लिया और 1 से सवा मिनट या सुखपूर्वक जितना रोक सकें अंदर रोका, फिर बायें से छोड़ दिया । कितना भी अजीर्ण, अम्लपित्त, मंदाग्नि, वायु हो, उनकी कमर टूट जायेगी । 5 से ज्यादा प्राणायाम नहीं करना । अगर गर्मी हो जाय तो फिर नहीं करना या कम करना ।*
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shayarikitab · 5 months ago
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Famous 60+ Instagram Attitude Shayari in Hindi
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दोस्तों, हम हिंदी में 50 से ज़्यादा अनूठी और बेहद पसंद की जाने वाली Instagram attitude shayari in Hindi का अपना खास संग्रह पेश करते हुए रोमांचित हैं। ये शायरी आपको गर्व महसूस कराने और आपकी Instagram Stories, Reels और Post पर अलग दिखने के लिए तैयार की गई हैं।. आज की इंस्टाग्राम-प्रेमी दुनिया में, सही Attitude Shayari आपको बाकियों से अलग बना सकती है। हमारा क्यूरेटेड चयन उस अतिरिक्त आकर्षण को जोड़ने और एक बयान देने के लिए एकदम सही है। तो, गोता लगाएँ और उन्हें पढ़ने का आनंद लें!.
Instagram Attitude Shayari Collection in Hindi
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बहुत से आए थे हमे गिराने, कुछ ना कर सके बीत गए ज़माने..!!
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मौका मत दो मुझे, मैं वैसे भी सबको छोड़ने के इरादे में हूं..!!!
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दुनिया में आए हो तो जीने का हुनर रखना, दुश्मनों का डर ना होगा, बस अपनो पर नजर रखना..!!!
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वक्त लिया है तो, धमाका भी मजेदार होगा..!!!
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मेहनत इतनी करो के गरीबी ढल जाए, और मुस्कुराओ ऐसे की दुश्मन भी जल जाए..!!!
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खोफ तो हमारा उनसे पूछो, जो अपने ब्वॉयफ्रेंड से कहती हैं पहले इसे ब्लॉक करो.!!!
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अकड़ ना दिखा मेरी जान, इसी अकड़ के चक्कर में तो आधे खानदान से बोलचाल बन्द है..!!!
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बातें हम भी बहुत करते हे, पर उसी से जो बात मन से करे मतलब से नहीं..!!!
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अमीर इतना बनो की पापा की पारी, तुम्हे देख कर सदमे में चली जाए..!!!
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मेरी ब्लैक लिस्ट भी एक बहुत प्यारा सा सहर है, जहां पापा की परियां खुशी खुशी रहती है..!!!
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हर कीमती चीज सिंगल होती है, जैसे सूरज, चांद, और मैं..!!!
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हमारे दिल पर लड़कियां नहीं, पैसा राज करता ��ै..!!!
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वैसे तो मुझमें attitude नहीं है, पर लोग दिखाने पर मजबूर करते है..!!!
Instagram Attitude Shayari for Boys Attitude
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जिनको खोने का डर था उन्हें तो खो दिया, अब किसी के आने जाने से फर्क नही पड़ता..!!!
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मैं हमेशा उन्ही लोगो को इग्नोर करता हु, जिनको लगता है सारी दुनिया उन्ही की दीवानी है..!!!
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अभी तो हर उस आंख में चुभना है, जिसने हमे देखकर कभी नजरे फेरी थी..!!!
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हम शक्ल देख कर आदमी की, अकल का अंदाजा लगा लेते है..!!!
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कभी जरूरत पड़े तो याद कर लेना, हमने बात करना छोड़ा है, साथ देना नही..!!!
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मेरे मिजाज का कोई कसूर नहीं, तेरे सलूक ने मेरा लहजा बदल दिया..!!!
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इज्जत पाने के लिए, इज्जत करनी भी पड़ती है दोस्त..!!!
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माना के घर का सबसे खोटा सिक्का हूं, याद रखना, दुनिया खरीद लूंगा जिस दिन चल पड़ा..!!!
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हथगड़ी और जेल की दीवारों का अब डर नहीं रहा, क्योंकि उम्र से ज्यादा अनुभव है यार..!!!
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देख भाई, मैं उतना ही खराब हु, जितना मेरा बाप शरीफ है..!!!
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कोई कान भरे, और हमारी यारी टूट जाए, ना ना मित्र, इतने कच्चे यार थोड़ी है..!!!
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इतिहास गवाह है के, तीन दोस्तो का ग्रुप, सबसे खतरनाक होता है..!!!
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ताकत का परिचय हम तब देंगे, जब बात हमारे दोस्त पर आयेगी.!!!
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खूबसूरती से धोखा मत खाइए जनाब, तलवार कितनी भी खूबसूरत क्यों ना हो, मांगती खून ही है..!!!
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मोहब्बत से मेरी कभी नहीं बनेगी, मोहब्बत गुलामी मांगती है हम आजाद परिदो की…!!!
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अपना उसूल है जनाब, धंधे में कोई धर्म नही, और दोस्ती में कोई धर्म नही..!!!
2 Line Instagram Attitude Shayari
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जब लोग आपको हल्के में लेने लगे, तब लोगो को अपनी ताकत का एहसास कराना जरूरी है..!!!
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मेरे बिना नहीं जी पाओगे, ये बोलने का हक सिर्फ पैसे का है..!!!
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हम टकराते भी उन्ही से है जनाब, जो अपने आप को शेर समझते है…!!!
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जब काटने की औकात ना हो तो, भोकना भी नही चाहिए..!!!
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सबसे बड़ा हथियार तो दिल है, अगर ये ना कांपा, तो दुनिया आपसे कांपेगी..!!!
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विरासत ��े तय नहीं होंगे, सियासत के फैसले, उड़ान तय करेगी आसमान किसका है..!!!
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चार लोग नही, 400 लोग मेरे बारे में क्या सोचते है, मुझे उससे घंटा फर्क नही पड़ता..!!!
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अब प्यार नही होगा हमसे, जो पसंद आएगा, खरीदा जायेगा..!!!
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हमसे दुश्मनी, जरा संभल कर लेना, ना हम मरने से डरते है ना मारने से..!!!
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जिस जगह हमारी दुश्मनी सबसे ज्यादा है, वहां भी हम बेखौफ कदम रखते है..!!!
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हम गले लगाने से लेकर, घर से उठने तक का दम रखते है..!!!
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हालातो से हार जाने वाला मत समझना, आज हवा तेरी है, कल तूफान हमारा होगा..!!!
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जब बात हमारी इज्जत पर आए, तो हम भूल जाते है हम कहा खड़े है..!!!
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  बहुत सवाल उठ रहे है हमारी खामोशी पर, सब्र करो, जवान, खतरनाक, मिलेगा…!!!
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पहले तो block कर गई हवा में आके, अब story देखती है हमारी fake id बना के…!!!
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दोस्त ऐसे रक्खो, जो तुम्हारे गलत होने पर भी तुम्हारे साथ हूं…!!
Instagram Attitude Shayari For Alone Boy
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  पैसा कमाओ मेरे यार, रिश्ते ��नेंगे भी, और चलेंगे भी…!!!
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मेरा दिमाग, Made in Chaina है, कब खराब हो जाए कुछ पता नही…!!!
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अंजाम चाहे जो भी हो, लेकिन खेल तो अब बड़ा ही खेलेंगे..!!!
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तितलियों के पास जाने से बेहतर है, फूल का बगीचा लगा लो तितलियां खुद आपके पास आएंगी..!!!
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खेलने की उम्र में नाम बनाया है, दुश्मन तो पैदा होने ही थे..!!! Instagram Attitude Shayari Video in Hindi Read Also Read the full article
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dhambir123 · 5 months ago
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🧩बन्दीछोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की जय🧩
15/06/24
*🍀Instagram सेवा🍀*
🐚  *मालिक कि दया से Instagram पर सेवा करेंगे जी।*
Topic:- *कबीर परमेश्वर जी के साथ हुई 52 बदमाशी*
📍📍
📎इंस्टाग्राम पर स्टोरी भी लगानी है और स्टोरी के साथ सत्संग की YouTube लिंक भी लगानी है।
⤵️ इन टैग्स के साथ और आश्रम के टैग्स के साथ Post करेंगें।
#अत्याचार_की_अति
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#अत्याचार_की_अति
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#SaintRampalJiQuotes
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#SantRampalJiQuotes #KabirIsGod
🏚आश्रम के टैग है ये 👇🏻 जो हर पोस्ट में 1-2 टैग यूज़ में लेना
#Satlok
#SatlokAshram
#SantRampalJiMaharaj        
#KabirisGod                 
#SupremeGodKabir    
⭐ Instagram पर आश्रम की Id को भी ज़रूर follow करें और वहाँ की सभी posts को like भी करें।
Sa news channel⤵️
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Spiritual leader Saint Rampal Ji ⤵️
https://instagram.com/spiritualleadersaintrampalji?igshid=1uxkqykueu1j7
Satlok Ashram
https://instagram.com/satlokashram001?igshid=MzRlODBiNWFlZA==
📷''' सेवा से सम्बंधित photo वेबसाइट पर हैं डाऊनलोड कर लें जी।
*Hindi*
https://www.satsaheb.org/52-kasni-hindi-0624/
*English*
https://www.satsaheb.org/52-kasni-english-2/
*Odia*
https://www.satsaheb.org/52-kasni-odia/
*Bengali*
https://www.satsaheb.org/bengali-52-kasni-0624/
*Assamese*
https://www.satsaheb.org/52-kasni-assamese/
*Gujarati*
https://www.satsaheb.org/gujarati-52-kasni-2/
*Punjabi*
https://www.satsaheb.org/52-kasni-punjabi/
*Telugu*
https://www.satsaheb.org/telugu-52-kasni-0624/
*Marathi*
https://www.satsaheb.org/52-kasni-marathi/
*⛳सेवा Points* ⤵
💥नकली धर्मगुरुओं ने मिलकर एक बार सिकंदर लोधी राजा को बहकाकर कबीर साहेब को हाथी से कुचलवाने की सजा दिलवा दी।
कबीर परमात्मा जी के हाथ पाँव बांध कर उन्हें एक मद��स्त खूनी हाथी के आगे डाल दिया।
जब हाथी कबीर परमात्मा को मारने के लिए आगे बढ़ा तो उसे परमात्मा ��े एक बब्बर शेर का रूप दिखा दिया। जिसे देखकर हाथी भयभीत हो गया व डर कर भाग गया। सिकंदर लोधी को भी परमात्मा ने अपना विराट रूप दिखाया। राजा थर्र थर्र काँपता हुआ नीचे आया और कबीर परमेश्वर को दंडवत प्रणाम किया व क्षमा याचना की।
💥एक बार शेखतकी ने कबीर परमेश्वर पर जंत्र-मंत्र (तांत्रिक विद्या) करके मूठ छोड़ी। उस मूठ का कबीर परमेश्वर पर कोई असर नहीं हुआ, क्योंकि वह पूर्ण परमात्मा हैं। थोड़ी दूर पर एक कूत्ते को लगी जिससे कुत्ता मर गया। तब कबीर परमेश्वर ने उस कुत्ते का कान पकड़ा और कहा कि चल उठ। ऐसा कहते ही कुत्ता उठकर दौड़ गया और उस मूठ से कहा कि, जिसने तुझे छोड़ा था, वापस उसके पास जा। इतना कहते ही वह मूठ वापस जाकर शेखतकी को लगी।
💥दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोधी के पीर शेख तकी ने कबीर परमेश्वर जी को “52 बार” (52 बदमाशी) मारने का षड्यंत्र रचा जिसे बावन कसनी भी कहते हैं। वह हर बार असफल रहा। क्योंकि कबीर परमेश्वर का शरीर मुरी है अर्थात अविनाशी शरीर है। इस प्रकार अविनाशी का नाश करने में कोई सक्षम नहीं हैं। परमेश्वर कबीर साहेब जी पूर्ण ब्रह्म हैं, सर्व शक्तिमान परमात्मा हैं।
शेखतकी ने जुल्म गुजारे, बावन करी बदमाशी |
खूनी हाथी आगे‌ डालै, बांध जूड अविनाशी ||
💥शेख तकी ने हजारों मुसलमानों को इकट्ठा करके कहा कि हम कबीर को उबलते तेल की कढ़ाई में डालेंगे। यदि नहीं मरा तो मान लेंगे कबीर अल्लाह है। कबीर साहेब उबलते तेल की कढ़ाई में स्वयं ही जाकर ऐसे बैठ गए जैसे ठंडे जल में बैठे हों उनके शरीर को खरोच तक नहीं आई।
💥एक बार दिल्ली के सम्राट सिकंदर लोधी ने जनता को शांत करने के लिए अपने हाथों से कबीर साहेब को हथकड़ियाँ लगाई, पैरों में बेड़ी तथा गले में लोहे की भारी बेल डाली और आदेश दिया गंगा दरिया में डुबोकर मारने का। उनको दरिया में फेंक दिया। कबीर परमेश्वर जी की हथकड़ी, बेड़ी और लोहे की बेल अपने आप टूट गयी परमात्मा जल पर सुखासन में बैठे रहे। कुछ नहीं बिगड़ा।
💥शेखतकी ने कबीर परमेश्वर को जान से मारने के लिए गंगा नदी के बीच में ले जाकर उनके हाथ पैरों को जंजीर से बांध कर शरीर पर बड़े बड़े पत्थर बांध कर नदी में डूबो दिया। लेकिन कबीर परमेश्वर नहीं डूबे। गंगा नदी में ऐसे बैठे रहे जैसे पृथ्वी पर बैठे हों।
💥शेखतकी ने सोचा कि कबीर जी को तलवार से काट कर उसके टुकड़े टुकड़े कर दें। शेखतकी ने उनकी हत्या के लिए कुछ गुंडे तैयार किए। शेखतकी उन गुंडों के साथ उनकी कुटिया में आया जहां कबीर साहेब रात में सो रहे थे और उसने कबीर जी ��र बेतहाशा तलवार से वार किए। लेकिन तलवार बार-बार कबीर जी के शरीर से आर-पार निकल गई क्योंकि कबीर साहेब जी का शरीर पांच तत्वों से बना नहीं है वह नूरी शरीर है।
साहिब कबीर को मारण चाल्या, शेखतकी जलील।
आर पार तलवार निकल गई, फिर भी समझा नहीं खलील।।
💥एक बार कबीर साहेब सत्संग कर रहे थे, शेख तकी ने कबीर साहेब को सैनिकों से कोड़े मरवाये। लेकिन कबीर साहेब के शरीर पर कोई निशान नहीं था। क्योंकि कबीर साहेब का शरीर अमर है और कबीर साहेब सर्वशक्तिमान हैं। यह देख वहां बैठे लोग हैरान रह गए और कबीर साहेब की महिमा के नारे लगाने लगे।
💥कबीर परमेश्वर जी एक सत्संग कर रहे थे तब शेखतकी ने सिपाही से कहा कि इनके गले में जहरीला साँप डाल दो लेकिन वो साँप कबीर साहेब के गले में डालते ही सुंदर पुष्पों की माला बन गया। क्योंकि कबीर साहेब पूर्ण परमात्मा हैं।
💥परमात्मा के शरीर में कीलें ठोकने का व्यर्थ प्रयत्न
कबीर साहेब को मारने के लिए एक दिन शेखतकी ने सिपाहियों को आदेश दिया की कबीर साहेब को पेड़ से बांधकर शरीर पर बड़ी बड़ी कील ठोक दो। लेकिन जब कील ठोकने चले तो सिपाहियों के हाथ पैर काम करना बंद हो गए और वो वहाँ से भाग गए और शेखतकी को फिर परमात्मा कबीर साहेब के सामने लज्जित होना पड़ा।
💥दिल्ली के सम्राट सिकंदर लोदी ने जनता को शांत करने के लिए अपने हाथों से हथकड़ियाँ लगाई, पैरों में बेड़ी तथा गले में लोहे की भारी बेल डाली, आदेश दिया गंगा दरिया में डुबोकर मारने का। उनको दरिया में डाल दिया। कबीर परमेश्वर जी की हथकड़ी, बेड़ी और लोहे की बेल अपने आप टूट गयी। परमात्मा जल पर सुखासन में बैठे रहे, कुछ नहीं बिगड़ा।
💥कबीर परमात्मा को हाथी से कुचलवाने की नाकाम कोशिश
सिकंधर लोदी से झूठी शिकायतें करके कबीर जी को पागल हाथी से मरवाने की कोशिश की गई जब हाथी कबीर परमात्मा को मारने के लिए आगे बढ़ा तो उसे कबीर परमात्मा के स्थान पर बब्बर शेर दिखाई दिया। सिकंदर लोदी को भी परमात्मा का विराट रूप दिखाई दिया। हाथी अपनी जान बचा कर भाग गया तथा राजा भी थर्र थर्र काँपता हुआ नीचे आया और कबीर परमेश्वर को दंडवत प्रणाम कर अपनी दुष्टता के लिए माफी मांगी।
💥अविनाशी कबीर साहेब जी की अद्भुत लीलाएं
अत्याचारी शेखतकी ने परमात्मा कबीर साहेब जी को न पहचान कर गर्म तेल के कड़ाहे में बैठाना चाहा।
परमात्मा स्वयं बैठ गए, इस तरह बैठे रहे जैसे ठंडे जल में बैठे हों। ल��गों ने ये चमत्कार देखकर मालिक कबीर जी की जय जयकार की।
💥परमेश्वर कबीर साहिब जी से शेख तकी बहुत ईर्ष्या करता था और इसी ईर्ष्यावश कबीर साहब को मारने के लिए तरह-तरह की तरकीबें अपनाता था।
इसी ईर्ष्यावश उसने कबीर साहेब को खौलते सरसों के तेल की कढ़ाई में डालने की योजना बनाई। कबीर साहेब जी स्वयं कढ़ाई में विराजमान हुए किंतु उनका शरीर ज्यों का त्यों बना रहा। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे ठंडे पानी में कबीर साहेब जी विराजमान हों। यह सब देखकर सभी अचंभित रह गए किंतु शेख तकी फिर भी नहीं माना।
💥पाखण्ड व कुप्रथाओं का विरोध करने से नकली धर्मगुरुओं ने पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब को न पहचानकर उनका घोर विरोध किया, मारने की कुचेष्टा की। कुएं में डाल दिया, गंगा में डुबोया, तोप के गोले दागे, तेल के गर्म क��ाहे में डाला, तलवार से काटा, खूनी हाथी के आगे डाला।
इस प्रकार उनको मारने के बावन बार प्रयास किये। लेकिन वे तो पूर्ण परमात्मा हैं, अविनाशी हैं, वासुदेव हैं।
💥शेखतकी ने एक बार अपने कुछ गुंडों को साथ लेकर रात में सो रहे कबीर साहेब पर तलवार से अनेकों वार करवाकर कबीर साहेब के टुकड़े टुकड़े कर दिए। और फिर कबीर साहेब को मरा हुआ जानकर वापस चले तो पीछे से कबीर परमेश्वर ने कहा कि, पीर जी दूध पीकर जाना। ऐसे थोड़े ही जाते हैं। इस पर शेखतकी और गुंडे भूत समझकर भाग गए।
💥परमेश्वर कबीर साहेब जी को तोप से मारने की साज़िश
शेखतकी ने कहा कि कबीर का तोप से गोले मारकर काम तमाम कर दो। ऐसा ही किया गया तोप यंत्र से गोले चलाए गए परंतु परमेश्वर कबीर साहेब जी के पास एक भी नहीं गया। कोई तो वहीं गंगा जल में जाकर गिर जाय। कई दूसरे किनारे पर जाकर गंगा किनारे शांत हो जाएं। कोई कुछ दूर तालाब में जाकर गिरे। परन्तु परमेश्वर के निकट एक भी न जाय। इस प्रकार शेखतकी 4 पहर (12 घंटे) तक यह जुल्म करता रहा।
तब परमेश्वर कबीर साहेब जी अंतर्ध्यान होकर रविदास जी की कुटिया पर गए और दोनों परमात्मा की चर्चा करने लगे।
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pushpas-posts · 5 months ago
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*🌟बन्दीछोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की जय🌟*
14/06/24
*🪷कबीर परमेश्वर प्रकट दिवस स्पेशल सेवाएं🪷*
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Topic:- *कबीर परमेश्वर जी के साथ हुई 52 बदमाशी*
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💥नकली धर्मगुरुओं ने मिलकर एक बार सिकंदर लोधी राजा को बहकाकर कबीर साहेब को हाथी से कुचलवाने की सजा दिलवा दी।
कबीर परमात्मा जी के हाथ पाँव बांध कर उन्हें एक मदमस्त खूनी हाथी के आगे डाल दिया।
जब हाथी कबीर परमात्मा को मारने के लिए आगे बढ़ा तो उसे परमात्मा ने एक बब्बर शेर का रूप दिखा दिया। जिसे देखकर हाथी भयभीत हो गया व डर कर भाग गया। सिकंदर लोधी को भी परमात्मा ने अपना विराट रूप दिखाया। राजा थर्र थर्र काँपता हुआ नीचे आया और कबीर परमेश्वर को दंडवत प्रणाम किया व क्षमा याचना की।
💥एक बार शेखतकी ने कबीर परमेश्वर पर जंत्र-मंत्र (तांत्रिक विद्या) करके मूठ छोड़ी। उस मूठ का कबीर परमेश्वर पर कोई असर नहीं हुआ, क्योंकि वह पूर्ण परमात्मा हैं। थोड़ी दूर पर एक कूत्ते को लगी जिससे कुत्ता मर गया। तब कबीर परमेश्वर ने उस कुत्ते का कान पकड़ा और कहा कि चल उठ। ऐसा कहते ही कुत्ता उठकर दौड़ गया और उस मूठ से कहा कि, जिसने तुझे छोड़ा था, वापस उसके पास जा। इतना कहते ही वह मूठ वापस जाकर शेखतकी को लगी।
💥दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोधी के पीर शेख तकी ने कबीर परमेश्वर जी को “52 बार” (52 बदमाशी) मारने का षड्यंत्र रचा जिसे बावन कसनी भी कहते हैं। वह हर बार असफल रहा। क्योंकि कबीर परमेश्वर का शरीर मुरी है अर्थात अविनाशी शरीर है। इस प्रकार अविनाशी का नाश करने में कोई सक्षम नहीं हैं। परमेश्वर कबीर साहेब जी पूर्ण ब्रह्म हैं, सर्व शक्तिमान परमात्मा हैं।
शेखतकी ने जुल्म गुजारे, बावन करी बदमाशी |
खूनी हाथी आगे‌ डालै, बांध जूड अविनाशी ||
💥शेख तकी ने हजारों मुसलमानों को इकट्ठा करके कहा कि हम कबीर को उबलते तेल की कढ़ाई में डालेंगे। यदि नहीं मरा तो मान लेंगे कबीर अल्लाह है। कबीर साहेब उबलते तेल की कढ़ाई में स्वयं ही जाकर ऐसे बैठ गए जैसे ठंडे जल में बैठे हों उनके शरीर को खरोच तक नहीं आई।
💥एक बार दिल्ली के सम्राट सिकंदर लोधी ने जनता को शांत करने के लिए अपने हाथों से कबीर साहेब को हथकड़ियाँ लगाई, पैरों में बेड़ी तथा गले में लोहे की भारी बेल डाली और आदेश दिया गंगा दरिया में डुबोकर मारने का। उनको दरिया में फेंक दिया। कबीर परमेश्वर जी की हथकड़ी, बेड़ी और लोहे की बेल अपने आप टूट गयी परमात्मा जल पर सुखासन में बैठे रहे। कुछ नहीं बिगड़ा।
💥शेखतकी ने कबीर परमेश्वर को जान से मारने के लिए गंगा नदी के बीच में ले जाकर उनके हाथ पैरों को जंजीर से बांध कर शरीर पर बड़े बड़े पत्थर बां�� कर नदी में डूबो दिया। लेकिन कबीर परमेश्वर नहीं डूबे। गंगा नदी में ऐसे बैठे रहे जैसे पृथ्वी पर बैठे हों।
💥शेखतकी ने सोचा कि कबीर जी को तलवार से काट कर उसके टुकड़े टुकड़े कर दें। शेखतकी ने उनकी हत्या के लिए कुछ गुंडे तैयार किए। शेखतकी उन गुंडों के साथ उनकी कुटिया में आया जहां कबीर साहेब रात में सो रहे थे और उसने कबीर जी पर बेतहाशा तलवार से वार किए। लेकिन तलवार बार-बार कबीर जी के शरीर से आर-पार निकल गई क्योंकि कबीर साहेब जी का शरीर पांच तत्वों से बना नहीं है वह नूरी शरीर है।
साहिब कबीर को मारण चाल्या, शेखतकी जलील।
आर पार तलवार निकल गई, फिर भी समझा नहीं खलील।।
💥एक बार कबीर साहेब सत्संग कर रहे थे, शेख तकी ने कबीर साहेब को सैनिकों से कोड़े मरवाये। लेकिन कबीर साहेब के शरीर पर कोई निशान नहीं था। क्योंकि कबीर साहेब का शरीर अमर है और कबीर साहेब सर्वशक्तिमान हैं। यह देख वहां बैठे लोग हैरान रह गए और कबीर साहेब की महिमा के नारे लगाने लगे।
💥कबीर परमेश्वर जी एक सत्संग कर रहे थे तब शेखतकी ने सिपाही से कहा कि इनके गले में जहरीला साँप डाल दो लेकिन वो साँप कबीर साहेब के गले में डालते ही सुंदर पुष्पों की माला बन गया। क्योंकि कबीर साहेब पूर्ण परमात्मा हैं।
💥परमात्मा के शरीर में कीलें ठोकने का व्यर्थ प्रयत्न
कबीर साहेब को मारने के लिए एक दिन शेखतकी ने सिपाहियों को आदेश दिया की कबीर साहेब को पेड़ से बांधकर शरीर पर बड़ी बड़ी कील ठोक दो। लेकिन जब कील ठोकने चले तो सिपाहियों के हाथ पैर काम करना बंद हो गए और वो वहाँ से भाग गए और शेखतकी को फिर परमात्मा कबीर साहेब के सामने लज्जित होना पड़ा।
💥दिल्ली के सम्राट सिकंदर लोदी ने जनता को शांत करने के लिए अपने हाथों से हथकड़ियाँ लगाई, पैरों में बेड़ी तथा गले में लोहे की भारी बेल डाली, आदेश दिया गंगा दरिया में डुबोकर मारने का। उनको दरिया में डाल दिया। कबीर परमेश्वर जी की हथकड़ी, बेड़ी और लोहे की बेल अपने आप टूट गयी। परमात्मा जल पर सुखासन में बैठे रहे, कुछ नहीं बिगड़ा।
💥कबीर परमात्मा को हाथी से कुचलवाने की नाकाम कोशिश
सिकंधर लोदी से झूठी शिकायतें करके कबीर जी को पागल हाथी से मरवाने की कोशिश की गई जब हाथी कबीर परमात्मा को मारने के लिए आगे बढ़ा तो उसे कबीर परमात्मा के स्थान पर बब्बर शेर दिखाई दिया। सिकंदर लोदी को भी परमात्मा का विराट रूप दिखाई दिया। हाथी अपनी जान बचा कर भाग गया तथा राजा भी थर्र थर्र काँपता हुआ नीचे आया और कबीर परमेश्वर को दंडवत प्रणाम कर अपनी दुष्टता के लिए माफी मांगी।
💥अविनाशी कबीर साहेब जी की अद्भुत लीलाएं
अत्याचारी शेखतकी ने परमात्मा कबीर साहेब जी को न पहचान कर गर्म तेल के कड़ाहे में बैठाना चाहा।
परमात्मा स्वयं बैठ गए, इस तरह बैठे रहे जैसे ठंडे जल में बैठे हों। लोगों ने ये चमत्कार देखकर मालिक कबीर जी की जय जयकार की।
💥परमेश्वर कबीर साहिब जी से शेख तकी बहुत ईर्ष्या करता था और इसी ईर्ष्यावश कबीर साहब को मारने के लिए तरह-तरह की तरकीबें अपनाता था।
इसी ईर्ष्यावश उसने कबीर साहेब को खौलते सरसों के तेल की कढ़ाई में डालने की योजना बनाई। कबीर साहेब जी स्वयं कढ़ाई में विराजमान हुए किंतु उनका शरीर ज्यों का त्यों बना रहा। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे ठंडे पानी में कबीर साहेब जी विराजमान हों। यह सब देखकर सभी अचंभित रह गए किंतु शेख तकी फिर भी नहीं माना।
💥पाखण्ड व कुप्रथाओं का विरोध करने से नकली धर्मगुरुओं ने पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब को न पहचानकर उनका घोर विरोध किया, मारने की कुचेष्टा की। कुएं में डाल दिया, गंगा में डुबोया, तोप के गोले दागे, तेल के गर्म कड़ाहे में डाला, तलवार से काटा, खूनी हाथी के आगे डाला।
इस प्रकार उनको मारने के बावन बार प्रयास किये। लेकिन वे तो पूर्ण परमात्मा हैं, अविनाशी हैं, वासुदेव हैं।
💥शेखतकी ने एक बार अपने कुछ गुंडों को साथ लेकर रात में सो रहे कबीर साहेब पर तलवार से अनेकों वार करवाकर कबीर साहेब के टुकड़े टुकड़े कर दिए। और फिर कबीर साहेब को मरा हुआ जानकर वापस चले तो पीछे से कबीर परमेश्वर ने कहा कि, पीर जी दूध पीकर जाना। ऐसे थोड़े ही जाते हैं। इस पर शेखतकी और गुंडे भूत समझकर भाग गए।
💥परमेश्वर कबीर साहेब जी को तोप से मारने की साज़िश
शेखतकी ने कहा कि कबीर का तोप से गोले मारकर काम तमाम कर दो। ऐसा ही किया गया तोप यंत्र से गोले चलाए गए परंतु परमेश्वर कबीर साहेब जी के पास एक भी नहीं गया। कोई तो वहीं गंगा जल में जाकर गिर जाय। कई दूसरे किनारे पर जाकर गंगा किनारे शांत हो जाएं। कोई कुछ दूर तालाब में जाकर गिरे। परन्तु परमेश्वर के निकट एक भी न जाय। इस प्रकार शेखतकी 4 पहर (12 घंटे) तक यह जुल्म करता रहा।
तब परमेश्वर कबीर साहेब जी अंतर्ध्यान होकर रविदास जी की कुटिया पर गए और दोनों परमात्मा की चर्चा करने लगे।
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*Dr. Smita Goel Homeopathy Clinic*
सिर दर्द, चक्कर, नॉज़िया- ये वर्टिगो के लक्षण हैं। दिल्ली में तेजी से पैर पसार रही इस बीमारी के रोगियों का किचन में काम करना, सीढ़ियों का इस्तेमाल, अंधेरे में आने-जाने व ड्राइविंग के साथ हैवी मशीनों पर काम करना खतरनाक हो सकता है। मैक्स हॉस्पिटल के ईएनटी एक्सपर्ट डॉ. अतुल मित्तल से वर्टिगो की पहचान, इलाज को लेकर बात की प्रीति सेठ ने
राजधानी में कामकाजी लोगों का गाहे-बगाहे सिर घूमने और चकराने की परेशानी से साबका होता ही रहता है। दस में से चार लोग इसे हल्के में लेते हैं। सुबह कुछ खाया नहीं था, रात उल्टा-सीधा खा लिया था, रात नींद पूरी नहीं हुई थी- जैसी दलीलें देकर खुद को समझा लेते हैं। जबकि हो सकता है कि सिर का बार-बार चकराना, सिर में दर्द का बना रहना वर्टिगो हो। वर्टिगो लैटिन का शब्द है, जिसका अर्थ है चक्कर आना। दरअसल इसमें यह एहसास होता है कि सब कुछ घूम रहा है। आप स्थिर हैं लेकिन कुछ सेकेंड के लिए वातावरण चक्कर लगाने लगता है। खास बात यह कि आड़ा या तिरछा देखने पर इसमें सब घूमता दिखाई देता है। कभी-कभी चक्कर के साथ उल्टी जैसा भी महसूस होता है। वैसे तो चार से छह दिन में यह अपने आप भी ठीक हो जाता है, लेकिन कभी-कभी इसके लिए एक्सपर्ट सलाह की भी आवश्यकता होती है।
सामान्यतया वायरल इन्फेक्शन से हमारे इनर कान में रेस्पिरेटरी ट्रैक इंफेक्शन के कारण होने वाली परेशानी को वर्टिगो कहते हैं। यह ब्रेन में भी हो सकता है और कान के भीतर भी। वर्टिगो कई तरह का है।
बिनायन पैरॉक्सीस्मॉल पोजिशनल वर्टिगो (बीपीपीवी)
बीपीपीवी का मुख्य कारण नहीं मालूम। लेकिन ये बेहद कॉमन व संक्षिप्त पीरियड का वर्टिगो है। नॉर्मली एक मिनट से भी कम। इनर ईयर की मैलफंक्शन के खराब होने पर यह होता है। ये सीवियर नहीं होते। इसमें कानों में घंटी की सी आवाज सुनाई देती है। लंबा चलने पर इसमें हीयरिंग लॉस भी हो सकता है। इसलिए इसमें दी जाने वाली दवाइयां देर तक चलती हैं। इन्हें बिना सलाह के बंद नहीं करना चाहिए, क्योंकि इसके दोबारा होने की आशंका बनी ही रहती है।
मिनियर डिसीज
यह वर्टिगो का तीसरा प्रकार है। ज्यादातर युवाओं को होता है। सीवियर नॉजिया और उल्टी आने के साथ घंटियां कान में सुनाई देती हैं और कान में दबाव महसूस होता है। ज्यादा होने पर सुनने में दिक्कत हो सकती है। कान के अंदर मौजूद फ्लुएड जब ज्यादा होता जाता है, तो ईयर बैलेंस गड़बड़ा जाने पर ऐसा होता है। गंभीर होने पर कई बार सर्जरी की नौबत भी आ जाती है। इसके इलाज के लिए एंटी वर्टिगो मेडिसिन लेनी पड़ती हैं। जिस मूवमेंट से परेशानी होती है, उसे करने से बचें। कई बार दवाओं के साथ बेड रेस्ट (पूर्ण विश्रम) की सलाह भी दी जाती है। इंफेक्शन को दूर करने के लिए एंटीबायटिक दवाएं भी दी जा सकती हैं।
रिकरेंट वैस्टीबुलोपैथी
इसके लक्षण मिनियर डिसीज से मिलते-जुलते हैं। यह अपने आप होता है और स्वयं ठीक भी हो जाता है। लेकिन कई बार मिनियर डिसीज में परिवर्तित हो जाता है। मस्तिष्क से इसका लेना-देना नहीं है। इसका इलाज मिनियर डिसीज की तरह होता है। लाइफस्टाइल में बदलाव लाकर इसे ठीक किया जा सकता है।
वायरल लेबिरिनथाइटिस
मस्तिष्क और कानों के तार जुड़े होते हैं नर्व्स के जरिये। कॉकलियर नव्र्स आवाज और शब्द सुन कर सूचना भेजने का काम करती हैं और वेस्टबुलर नर्व्स उस संदेश के अनुसार शारीरिक स्थिति को बैलेंस करती है। वायरल इंफेक्शन के कारण यदि इन दोनों ही नव्र्स में से किसी का भी बैलेंस गड़बड़ हो जाता है तो वर्टिगो की स्थिति पैदा हो जाती है।
वेस्टीबुलर न्यूरोनिटिस
वेस्टाबुलर नर्व में सूजन के कारण ऐसा होता है। इससे वेस्टाबुलर नर्व्स जो संदेश ब्रेन को देती हैं वे गड़बड़ा जाती हैं। इसमें हीयरिंग लॉस नहीं होता, न ही कानों में सुगबुगाहट और घंटियां सुनाई देती हैं।
डरने की जरूरत नहीं
डॉक्टर को मरीज के लक्षण और परेशानी समझ कर ही आगे इलाज करता है। सामान्यतया शुगर लेवल की जांच के लिए कुछ ब्लड टेस्ट कराए जाते हैं। ईसीजी कराकर हार्ट की स्थिति जानी जाती है। यदि समस्या ब्रेन में है तो कैटस्कैन और एमआरआई कराने की सलाह दी जाती है।
सजग रहें, सतर्क रहें
योग और नियमित व्यायाम से काफी हद तक वर्टिगो को नियंत्रित किया जा सकता है। यह युवा और छोटे बच्चों को भी हो सकता है। यदि दो या तीन दिन से ज्यादा समय तक चक्कर और नॉजिया की फीलिंग के साथ असहजता लग रही हो तो अनदेखी न करें, तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
हर चक्कर वर्टिगो नहीं है
1. कई बार प्रेग्नेंसी में भी चक्कर और नॉज़िया की फीलिंग।
2. ब्रेन की ज्यादातर परेशानियों के भी यही लक्षण होते हैं।
3. नींद पूरी न होने पर भी कई बार चक्कर और नॉज़िया महसूस होता है।
4. ब्लड प्रेशर में भी खून की सप्लाई असुतंलित होने पर ऐसा हो सकता है।
5. डाइबिटीज वालों की आर्टिज़ ठोस होने पर भी ब्रेन में खून की सप्लाई बाधित होने पर चक्कर आ सकते हैं।
6. एनीमिया
7. हाई कोलेस्ट्रॉल
8. कैल्शियम डिसऑर्डर
9. नशे की लत
10. केमिकल चेंजेज या मेटाबॉलिज्म की समस्याएं या हार्मोनल बदलाव
ऐसे में सावधान हो जाएं
आस-पास घूमता दिखने या चक्कर आने पर
नॉज़िया और उल्टी होने पर
कानों में घंटियां-सी सुनाई देने पर
कान में दर्द हो
आंखों से धुंधला दिखे या असंतुलित आई मूवमेंट होने लगे
चलने में दिक्कत आने लगे, सिर हल्का लगने लगे
देर तक खड़े रहने में परेशानी हो
‘साधारण तौर पर एक से दो महीने में एक बार चक्कर आने को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। दो से तीन प्रतिशत मामलों में चक्कर दिमाग में टय़ूमर की वजह से भी हो सकता है। इसलिए सही समय पर जांच करानी चाहिए। जबकि वर्टिगो में अक्सर यह देखा जाता है कि मरीज शुरुआती तकलीफ को नजरअंदाज करता है। पढ़ाई करने वाले या फिर कंप्यूटर पर काम करने वाले लोगों को इसकी समस्या रेडिएशन की वजह से भी हो सकती है। इसलिए काम करने की स्थिति और समय को बदलते रहना चाहिए,जबकि नियमित मेडिटेशन और आहार से भी चक्कर को नियंत्रित किया जा सकता है।
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medrechospital · 1 year ago
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Understanding and Dealing with Tonsil Stones In Hindi
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टॉन्सिल स्टोन, जिसे वैज्ञानिक रूप से टॉन्सिलोलिथ्स के रूप में जाना जाता है, एक आम लेकिन अक्सर नजरअंदाज की जाने वाली समस्या है जो असुविधा और शर्मिंदगी का कारण बन सकती है। ये छोटे, कठोर द्रव्यमान टॉन्सिल की दरारों में बनते हैं और सांसों की दुर्गंध से लेकर गले में खराश तक के लक्षण पैदा कर सकते हैं। इस व्यापक मार्गदर्शिका में, हम टॉन्सिल पथरी के कारणों, लक्षणों, रोकथाम की रणनीतियों और उपचार के विकल्पों का पता लगाएंगे, जिससे आपको इस सामान्य स्थिति को प्रबंधित करने के लिए बहुमूल्य जानकारी मिलेगी।
टॉन्सिल स्टोन के लक्षण और लक्षण: टॉन्सिल स्टोन हमेशा आसानी से ध्यान देने योग्य नहीं होते हैं, लेकिन वे अक्सर लक्षणों का निशान छोड़ जाते हैं जो हैरान करने वाले और परेशान करने वाले दोनों हो सकते हैं। सबसे आम संकेत लगातार खराब सांस है, जिसे वैज्ञानिक रूप से हेलिटोसिस कहा जाता है। ऐसा तब होता है जब मुंह में बैक्टीरिया टॉन्सिल दरारों में जमा मलबे पर कार्य करते हैं, जिससे दुर्गंधयुक्त गैसें निकलती हैं।
सांसों की दुर्गंध के साथ-साथ, टॉन्सिल स्टोन वाले व्यक्तियों को गले में खराश और निगलने में कठिनाई का अनुभव हो सकता है। इन छोटे, कैल्सीफाइड पिंडों की उपस्थिति से कान में दर्द और सामान्य असुविधा भी हो सकती है। टॉन्सिल स्टोन के इन लक्षणों को पहचानना समझने और प्रबंधित करने की दिशा में पहला कदम है।
2. कारण और जोखिम कारक: टॉन्सिल की पथरी तब बनती है जब मृत कोशिकाएं, बलगम और भोजन के कण जैसे अवशेष टॉन्सिल की छोटी जेबों (क्रिप्ट्स) में जमा हो जाते हैं और शांत हो जाते हैं। खराब मौखिक स्वच्छता एक महत्वपूर्ण योगदानकर्ता है, क्योंकि बैक्टीरिया मुंह में पनपते हैं और इन कणों के टूटने की सुविधा प्रदान करते हैं। इसके अतिरिक्त, टॉन्सिल की पुरानी सूजन वाले व्यक्तियों, जिसे क्रोनिक टॉन्सिलिटिस के रूप में जाना जाता है, में टॉन्सिल पथरी विकसित होने का खतरा अधिक होता है।
आहार संबंधी आदतें भी एक भूमिका निभाती हैं। डेयरी उत्पादों में उच्च और पानी में कम मात्रा वाला आहार इन खतरनाक पत्थरों के निर्माण में योगदान कर सकता है। टॉन्सिल स्टोन के कारणों का पता लगाने से व्यक्तियों को निवारक उपाय अपनाने और टॉन्सिल स्टोन की संभावना को कम करने के लिए जीवनशैली में समायोजन करने में मदद मिल सकती है।
3. टॉन्सिल स्टोन से बचाव: टॉन्सिल स्टोन की रोकथाम में अच्छी मौखिक स्वच्छता प्रथाओं को बनाए रखना और जीवनशैली में कुछ समायोजन करना शामिल है। जीभ और गले के पिछले हिस्से सहित नियमित और पूरी तरह से ब्रश करने से बैक्टीरिया और मलबे के संचय को कम करने में मदद मिल सकती है। रोगाणुरोधी माउथवॉश का उपयोग करने से मौखिक वातावरण को टॉन्सिल स्टोन बनने के लिए कम अनुकूल बनाए रखने में मदद मिल सकती है।
पर्याप्त जलयोजन भी महत्वपूर्ण है। अच्छी तरह से हाइड्रेटेड रहने से मुंह को बहुत अधिक शुष्क होने से रोकने में मदद मिलती है, जो टॉन्सिल पत्थरों के विकास में योगदान कर सकता है। इन उपायों के अलावा, आहार में बदलाव पर विचार करना, जैसे कि डेयरी सेवन कम करना और पानी से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन बढ़ाना, टॉन्सिल स्टोन को बनने से रोकने में फायदेमंद हो सकता है।
4. टॉन्सिल स्टोन के लिए घरेलू उपचार: जबकि टॉन्सिल स्टोन में अक्सर पेशेवर हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है, ऐसे कई घरेलू उपचार हैं जिनका उपयोग व्यक्ति लक्षणों को प्रबंधित करने और पुनरावृत्ति की आवृत्ति को कम करने के लिए कर सकते हैं। नमक के पानी से गरारे करना एक सरल लेकिन प्रभावी तरीका है जो छोटे टॉन्सिल स्टोन को हटाने और गले की परेशानी को कम करने में मदद कर सकता है।
वॉटर फ्लॉसर या ओरल इरिगेटर टॉन्सिल स्टोन को हटाने के लिए उपयोगी उपकरण हो सकते हैं, खासकर उन लोगों के लिए जिन्हें इसके बनने का खतरा है। हालाँकि, टॉन्सिल के नाजुक ऊतकों को किसी भी तरह की क्षति से बचाने के लिए इन उपकरणों का सावधानी से उपयोग करना आवश्यक है। जो लोग इसके साथ सहज हैं, उनके लिए रुई के फाहे या साफ उंगलियों का उपयोग करके इसे मैन्युअल रूप से हटाना एक अन्य विकल्प है।
5. चिकित्सा उपचार: जब घरेलू उपचार अपर्याप्त साबित हों या टॉन्सिल की पथरी लगातार परेशानी पैदा कर रही हो, तो पेशेवर चिकित्सा सलाह लेने की सलाह दी जाती है। कुछ मामलों में, यदि टॉन्सिल की पथरी किसी संक्रमण से जुड़ी हो तो स्वास्थ्य सेवा प्रदाता एंटीबायोटिक दवाओं की सिफारिश कर सकते हैं। हालाँकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि एंटीबायोटिक्स हमेशा सबसे प्रभावी समाधान नहीं हो सकते हैं, विशेष रूप से बार-बार होने वाली टॉन्सिल पथरी के लिए।
पुराने या गंभीर लक्षणों का अनुभव करने वाले व्यक्तियों के लिए, टॉन्सिल्लेक्टोमी पर विचार किया ��ा सकता है। इस सर्जिकल प्रक्रिया में टॉन्सिल को हटाना शामिल है और यह लगातार टॉन्सिल स्टोन से पीड़ित लोगों के लिए एक प्रभावी दीर्घकालिक समाधान हो सकता है। हालाँकि, संभावित जोखिमों और लाभों को ध्यान में रखते हुए, टॉन्सिल्लेक्टोमी से गुजरने का निर्णय सावधानी से लिया जाना चाहिए।
6. जटिलताएँ और संबंधित स्थितियाँ: टॉन्सिल की पथरी, जबकि अक्सर एक सौम्य स्थिति होती है, कभी-कभी जटिलताओं का कारण बन सकती है, खासकर अगर इलाज न किया जाए। क्रोनिक टॉन्सिलिटिस, जिसकी विशेषता टॉन्सिल की लगातार सूजन है, ऐसी ही एक जटिलता हो सकती है। इस स्थिति में अतिरिक्त चिकित्सा हस्तक्षेप की आवश्यकता हो सकती है, जैसे एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग या, गंभीर मामलों में, टॉन्सिल को सर्जिकल हटाने।
इसके अलावा, टॉन्सिल की पथरी सांसों की दुर्गंध को बढ़ा सकती है, जिससे सामाजिक असुविधा और आत्म-चेतना हो सकती है। टॉन्सिल स्टोन से जुड़ी संभावित जटिलताओं को समझना सक्रिय प्रबंधन और जरूरत पड़ने पर पेशेवर सलाह लेने के महत्व को रेखांकित करता है।
7. टॉन्सिल स्टोन के साथ रहना: मुकाबला करना और प्रबंधन: टॉन्सिल स्टोन का प्रबंधन एक सतत प्रक्रिया है जिसमें कॉम्बिनेशन शामिल होता है निवारक उपायों, घरेलू उपचारों और, कुछ मामलों में, चिकित्सा हस्तक्षेप का आयन। टॉन्सिल स्टोन से जूझ रहे व्यक्तियों के लिए, सांसों की दुर्गंध से निपटने की प्रभावी रणनीति ढूंढना और सामाजिक स्थितियों से निपटना महत्वपूर्ण हो सकता है।
दीर्घकालिक प्रबंधन विकल्पों की खोज, जैसे कि आहार समायोजन और लगातार मौखिक स्वच्छता दिनचर्या बनाए रखना, दैनिक जीवन पर टॉन्सिल पत्थरों के प्रभाव को कम करने में योगदान दे सकता है। इसके अतिरिक्त, टॉन्सिल स्टोन अनुसंधान और उपचार विकल्पों में नवीनतम विकास के बारे में सूचित रहने से व्यक्तियों को अपने स्वास्थ्य के बारे में सूचित निर्णय लेने में सशक्त बनाया जा सकता है।
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blogtozone · 1 year ago
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How To Create Meditation Music On Any DAW Software In Hindi
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1. सही उपकरण चुनें
दोस्तों मैडिटेशन म्यूजिक बनाने के लिए सबसे पहले आपको अपने DAW में अच्छे - अच्छे इंस्ट्रूमेंट को चूसे करना होगा जैसे की आप इंडियन फ्लूट को चूसे कर सख्ते हो, हार्प को चूसे कर सख्ते हो, पियानो को चूसे कर सख्ते हो आदि। आपको कोशिश करना है की आप जो भी इंस्ट्रूमेंट चूसे करो उनमे से सॉफ्ट साउंड निकले क्योकि आपको ऐसा म्यूजिक म्यूजिक बनाना है जिससे लोगो का दिमाग शांत हो जाए और ऐसा म्यूजिक सिर्फ सॉफ्ट साउंड करने वाले इंस्ट्रूमेंट ही बना सख्ते है। अगर आपको समझ नहीं आता है की हम कौनसा इंस्ट्रूमेंट चूसे करे तो आप कोई भी मैडिटेशन म्यूजिक को ध्यान से सुनके, उसमे जो इंस्ट्रूमेंट को use हो रहा है उसे आप अपने म्यूजिक में ऐड कर सख्ते है।
2. एक आरामदायक मेलोडी बनाएं
इंस्ट्रूमेंट को चूसे करने के बाद आपको उन इंस्ट्रूमेंट से अच्छी - अच्छी मेलोडी बनाने की कोशिश करना है। दोस्तों में आपको एक टिप देता हूँ की आप एक स्केल के कुछ रैंडम स्वर को लम्बा खींचे और उन सभी स्वर के बीच में कोई गैप नहीं आना चाहिए, इस मेथड को use करने के बाद जब आप अपनी मेलोडी को सुनोंगे तो आपको भी काफी अच्छा लगेगा उस मेलोडी को सुनने में। तो इस तरह आप कुछ अच्छी मेलोडी बना सख्ते है। दोस्तों जरूरी नहीं है की आप मेरी मेथड को use करके ही मेलोडी बनाओ, आप अपनी खुद की क्रिएटिविटी लगाके भी मेलोडी बना सख्ते हो या फिर कुछ मैडिटेशन म्यूजिक से पार्ट्स उठा - उठा के भी अच्छी मेलोडी बना सख्ते हो। यह आप पर निर्भर करता है की आप किस तरह अपनी मेलोडी बनाते हो।
3. Chords लगाए
गाइस अच्छी मेलोडीज बनाने के बाद आपको बैकग्राउंड म्यूजिक के लिए अच्छे इंस्ट्रूमेंट से अच्छी - अच्छी chords लगानी होगी और इसमें भी आपको यही ध्यान रखना है की आपको chords जल्दी - जल्दी चेंज न हो क्योकि अगर आपकी chords जल्दी - जल्दी चेंज होगी तो उससे आपके म्यूजिक से मैडिटेशन म्यूजिक वाला फील चला जाएगा और आपका म्यूजिक ज्यादा अच्छा नहीं लगेगा लोगो को। और दोस्तों एक बात और आपको अपने म्यूजिक में पॉजिटिव वाइब्स लाना है, तो इसलिए आपको कोशिश करना है की आपके म्यूजिक में ज्यादातर मेजर chords ही लगे क्योकि माइनर chords से आपके म्यूजिक में थोड़ी नेगेटिविटी आ जायेगी। तो इसलिए आपको अपने म्यूजिक में ज्यादातर मेजर नोट्स और chords का use करना है।
4. प्राकृतिक ध्वनियाँ लगाए
ऊपर दिए गए सभी काम करने के बाद आपका मैडिटेशन म्यूजिक काफी हद तक तैयार हो जाएगा। अब आपको अपने म्यूजिक में कुछ नेचुरल साउंड्स को ऐड करना होगा जैसे की आप अपने म्यूजिक में झरने का साउंड ऐड कर सख्ते है, बर्ड्स के गाने का साउंड ऐड कर सख्ते है, बारिश की बूंदो के गिरने का साउंड ऐड कर सख्ते है, आदि आपको कुछ नेचुरल साउंड्स ऐड करना है अपने म्यूजिक में जिससे आपका म्यूजिक सुनने वाला इंसान अपने आप को कही खूबसूरत जगह पर अपने आप को इमेजिन कर सखे। दोस्तों नेचुरल साउंड के ऐड करने से आपके म्यूजिक में चार चाँद लग जाएंगे और आपका म्यूजिक काफी हद तक कम्पलीट हो जाएगा।
5. मिक्स एंड मास्टर
दोस्तों अब आपको अपने म्यूजिक को मिक्स और मास्टर करना है। गाइस मिक्सिंग और मास्टरिंग करते समय आपको एक बात का ख्याल रखना है की आपका कोई भी साउंड काफी ज्यादा लाउड न हो दूसरे साउंड के मुताबिक़ क्योकि इससे आपका म्यूजिक काफी ज्यादा उनप्रोफेशनल लगेगा और आपका म्यूजिक सुनने वाले को मज़ा नहीं आएगा। और आपको अपने म्यूजिक को ज्यादा से ज्यादा सॉफ्ट बनाने की कोशिश करना है और ऐसा बनाना है की सुनने वाले को नींद आजाये। और गाइस आपको एक चीज़ देखना है की आपके पूरे म्यूजिक में कही भी इलेक्ट्रिक या कान में चुबने वाला साउंड न हो क्योकि ऐसे साउंड की वजह से आपका म्यूजिक खराब हो सख्त है, तो आखिर में आपको अपना पूरा म्यूजिक को ध्यान से सुन्ना है और ऐसे साउंड को अपने म्यूजिक से हटाना है। आर्टिकल की पूरी जानकारी जल्द से जल्द चलिए गाइस अब एक बार शुरू से आखरी तक पूरा आर्टिकल revise कर लेते है, सबसे पहले हमे बताया गया की हमे अपने DAW में अच्छे - अच्छे इंस्ट्रूमेंट को select कर लेना है जिससे हम अपना मैडिटेशन म्यूजिक बना सखे जैसे की फ्लूट, हार्प, पियानो आदि। इसके बाद हमे ऐसी मेलोडी बनाने के लिए कहा गया जिसे लोगो को सुनके शान्ति महसूस हो और ऐसी मेलोडी बनाने की हमे टिप भी दी गयी की हमे नोट को ज्यादा से ज्यादा खींचना है तभी ऐसी मेलोडी बन सख्ती है। फिर हमे अपने म्यूजिक में chords को ऐड करने को कहा गया और एक बाद का ख्याल रखने के लिए कहा गया की हमे अपने म्यूजिक में ज्यादा से ज्यादा मेजर chords को ऐड करना है और माइनर chords को अवॉयड करना है क्योकि माइनर चोर्ड्स से हमारे म्यूजिक में नेगेटिविटी आजायेगी। फिर हमे अपने म्यूजिक में नेचुरल साउंड डालने के लिए कहा गया जैसी की बारिश का साउंड, झरने का साउंड, बर्ड्स के गाने का साउंड आदि, इससे हमारे म्यूजिक में चार चाँद लग जाएंगे ऐसा भी कहा गया। फिर आखिर में हमे मिक्सिंग और मास्टरिंग की टिप दी गयी की हमे अपने गाने को ज्यादा से ज्यादा सॉफ्ट बनाना है और जो भी कान में चुबने वाला साउंड है उसे हटाना है। तो इस तरह हम मैडिटेशन म्यूजिक बना सख्ते है, उम्मीद है इस आर्टिकल को पढ़के आप भी मैडिटेशन म्यूजिक बनाने लगोंगे। Read the full article
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santoshdasi · 1 year ago
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*आज गुरु पूर्णिमा है। मालिक की दया से इस अवसर पर पूर्ण गुरु की महिमा बताते है।*
आज के समय में पूर्ण गुरु केवल संत रामपाल जी महाराज जी हैं।
*#सच्चा_सतगुरु_कौन*
*Sant Rampal Ji Maharaj*
*#सच्चा_सतगुरु_कौन*
🪕कबीर साहेब जी अपनी वाणी में कहते हैं कि-
जो मम संत सत उपदेश दृढ़ावै (बतावै), वाके संग सभि राड़ बढ़ावै।
या सब संत महंतन की करणी, धर्मदास मैं तो से वर्णी।।
कबीर साहेब अपने प्रिय शिष्य धर्मदास को इस वाणी में ये समझा रहे हैं कि जो मेरा संत सत भक्ति मार्ग को बताएगा उसके साथ सभी संत व महंत झगड़ा करेंगे। ये उसकी पहचान होगी।
*Sant Rampal Ji Maharaj*
*#सच्चा_सतगुरु_कौन*
🪕सिद्ध तारै पिंड आपना, साधु तारै खंड।
उसको सतगुरु जानियो, जो तार देवै ब्रह्मांड।।
साधक अपना ही कल्याण कर सकता है। परमात्मा से परिचित जो संत हुए हैं वो कुछ डिवीजन, खंड को ही लाभ दे सकते हैं। और सतगुरु उसको जानना जो पूरे विश्व का कल्याण कर दे।
*Sant Rampal Ji Maharaj*
*#सच्चा_सतगुरु_कौन*
🪕सतगुरु के लक्षण कहूं, मधूरे बैन विनोद। चार वेद षट शास्त्र, कहै अठारा बोध।।
सतगुरु गरीबदास जी महाराज अपनी वाणी में पूर्ण संत की पहचान बता रहे हैं कि वह चारों वेदों, छः शास्त्रों, अठारह पुराणों आदि सभी ग्रंथों का पूर्ण जानकार होगा।
*Sant Rampal Ji Maharaj*
*#सच्चा_सतगुरु_कौन*
🪕यजुर्वेद अध्याय 19 मंत्र 25, 26 में लिखा है कि जो वेदों के अधूरे वाक्यों अर्थात् सांकेतिक शब्दों व एक चौथाई श्लोकों को पूरा करके विस्तार से बताएगा व तीन समय की पूजा बताएगा। सुबह पूर्ण परमात्मा की पूजा, दोपहर को विश्व के देवताओं का सत्कार व संध्या आरती अलग से बताएगा वह जगत का उपकारक संत होता है।
*Sant Rampal Ji Maharaj*
*#सच्चा_सतगुरु_कौन*
🪕तत्वदर्शी सन्त वह होता है जो वेदों के सांकेतिक शब्दों को पूर्ण विस्तार से वर्णन करता है जिससे पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति होती है वह वेद के जानने वाला कहा जाता है।
*Sant Rampal Ji Maharaj*
*#सच्चा_सतगुरु_कौन*
🪕 पूर्ण सन्त उसी व्यक्ति को शिष्य बनाता है जो सदाचारी रहे। अभक्ष्य पदार्थों का सेवन व नशीली वस्तुओं का सेवन न करने का आश्वासन देता है। पूर्ण सन्त उसी से दान ग्रहण करता है जो उसका शिष्य बन जाता है फिर गुरू देव से दीक्षा प्राप्त करके फिर दान दक्षिणा करता है उस से श्रद्धा बढ़ती है। श्रद्धा से सत्य भक्ति करने से अविनाशी परमात्मा की प्राप्ति होती है अर्थात् पूर्ण मोक्ष होता है। पूर्ण संत भिक्षा व चंदा मांगता नहीं फिरेगा।
*Sant Rampal Ji Maharaj*
*#सच्चा_सतगुरु_कौन*
🪕पूर्ण गुरु की पहचान
पूर्ण गुरु तीन प्रकार के मंत्रों (नाम) को तीन बार में उपदेश करेगा जिसका वर्णन कबीर सागर ग्रंथ पृष्ठ नं. 265 बोध सागर में मिलता है व गीता जी के अध्याय नं. 17 श्लोक 23 व सामवेद संख्या नं. 822 में मिलता है।
*Sant Rampal Ji Maharaj*
*#सच्चा_सतगुरु_कौन*
🪕संतों सतगुरु मोहे भावै, जो नैनन अलख लखावै।। ढोलत ढिगै ना बोलत बिसरै, सत उपदेश दृढ़ावै।।
आंख ना मूंदै कान ना रूदैं ना अनहद उरझावै। प्राण पूंज क्रियाओं से न्यारा, सहज समाधि बतावै।।
*Sant Rampal Ji Maharaj*
*#सच्चा_सतगुरु_कौन*
🪕कबीर,सतगुरु के दरबार मे, जाइयो बारम्बार
भूली वस्तु लखा देवे, है सतगुरु दातार।
हमे सच्चे गुरु की शरण मे आकर बार बार उनके दर्शनार्थ जाना चाहिए और ज्ञान सुनना चाहिए।
*Sant Rampal Ji Maharaj*
*#सच्चा_सतगुरु_कौन*
🪕गीता अध्याय 15 श्लोक 1 में गीता ज्ञान दाता ने तत्वदर्शी संत (सच्चा सतगुरु) की पहचान बताते हुए कहा है कि वह संत संसार रूपी वृक्ष के प्रत्येक भाग अर्थात जड़ से लेकर पत्ती तक का विस्तारपूर्वक ज्ञान कराएगा।
*Sant Rampal Ji Maharaj*
*#सच्चा_सतगुरु_कौन*
🪕संत रामपाल जी महाराज ही एकमात्र सच्चे सतगुरु हैं जो शास्त्रों के बताए अनुसार तीन समय की भक्ति एवं तीन प्रकार के मंत्र जाप अपने साधकों को देते हैं जिससे उन्हें सर्व सुख मिलता है तथा उनका मोक्ष का मार्ग भी आसान हो जाता है।
*Sant Rampal Ji Maharaj*
*#सच्चा_सतगुरु_कौन*
🪕जो भी संत शास्त्रों के अनुसार भक्ति साधना बताता है और भक्त समाज को मार्ग दर्शन करता है तो वह पूर्ण संत है अन्यथा वह भक्त समाज का घोर दुश्मन है जो शास्त्रो के विरूद्ध साधना करवा रहा है। इस अनमोल मानव जन्म के साथ खिलवाड़ कर रहा है। ऐसे गुरु या संत को भगवान के दरबार में घोर नरक में उल्टा लटकाया जाएगा।
*Sant Rampal Ji Maharaj*
*#सच्चा_सतगुरु_कौन*
🪕कबीर परमेश्वर जी ने कहा है कि जो सच्चा गुरु होगा उसके 4 मुख्य लक्षण होते हैं।
1. सब वेद तथा शास्त्रों को वह ठीक से जानता है।
2. दूसरे वह स्वयं भी भक्ति मन कर्म वचन से करता है अर्थात उसकी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं होता।
3. तीसरा लक्षण यह है कि वह सर्व अनुयायियों से समान व्यवहार करता है भेदभाव नहीं रखता।
4. चौथा लक्षण यह है कि वह सर्व भक्ति कर्म वेदो ( चार वेद तो सब जानते हैं ऋग्वेद, यजुर्वेद ,सामवेद, अथर्ववेद तथा पांचवा वेद सूक्ष्म वेद सरवन वेदो) के अनुसार करता और कराता है।
*Sant Rampal Ji Maharaj*
*#सच्चा_सतगुरु_कौन*
🪕श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 15 श्लोक 1 - 4, 16, 17 में कहा गया है जो संत इस संसार रूपी उल्टे लटके हुए वृक्ष के सभी विभाग बता देगा वह पूर्ण गुरु/सच्चा सद्गुरु है।
यह तत्वज्ञान केवल संत रामपाल जी महाराज ही बता रहे हैं।
*Sant Rampal Ji Maharaj*
*#सच्चा_सतगुरु_कौन*
🪕जब तक सच्चे गुरु (सतगुरू) की प्राप्ति नहीं होती है तब तक गुरु बदलते रहना चाहिए।
जब तक गुरु मिले ना सांचा। तब तक करो गुरु दस पांचा।।
*Sant Rampal Ji Maharaj*
*#सच्चा_सतगुरु_कौन*
🪕आज कलियुग में भक्त समाज के सामने पूर्ण गुरु की पहचान करना सबसे जटिल प्रश्न बना हुआ है। लेकिन इसका बहुत ही लघु और साधारण–सा उत्तर है कि जो गुरु शास्त्रो के अनुसार भक्ति करता है और अपने अनुयाईयों अर्थात शिष्यों द्वारा करवाता है वही पूर्ण संत है।
*Sant Rampal Ji Maharaj*
*#सच्चा_सतगुरु_कौन*
🪕जैसे कुम्हार कच्चे घड़े को तैयार करते समय एक हाथ घड़े के अन्दर डाल कर सहारा देता है। तत्पश्चात् ऊपर से दूसरे हाथ से चोटें लगाता है। यदि अन्दर से हाथ का सहारा घड़े को न मिले तो ऊपर की चोट को कच्चा घड़ा सहन नहीं कर सकता वह नष्ट हो जाता है। यदि थोड़ा सा भी टेढ़ापन घड़े में रह जाए तो उस की कीमत नहीं होती। फैंकना पड़ता है। इसी प्रकार गुरूदेव अपने शिष्य की आपत्तियों से रक्षा भी करता है तथा मन को रोकता है तथा प्रवचनों की चोटें लगा कर सर्व त्राुटियों को
निकालता है।
कबीर, गुरू कुम्हार शिष्य कुम्भ है, घड़ घड़ काढे खोट। अन्दर हाथ सहारा देकर, ऊपर मारै चोट।।
*Sant Rampal Ji Maharaj*
*#सच्चा_सतगुरु_कौन*
🪕सतगुरु मिले तो इच्छा मेटै, पद मिल पदे समाना।
चल हंसा उस लोक पठाऊँ, जो आदि अमर अस्थाना।।
इच्छा को केवल सतगुरु अथार्त् तत्वदर्शी संत ही समाप्त कर सकता है तथा यथार्थ भक्ति मार्ग पर लगा कर अमर पद अथार्त् पूर्ण मोक्ष प्राप्त कराता है।
*Sant Rampal Ji Maharaj*
*#सच्चा_सतगुरु_कौन*
🪕कबीर, सतगुरु शरण में आने से, आई टले बलाय।
जै मस्तिक में सूली हो वह कांटे में टल जाय।।
सतगुरु अथार्त् तत्वदर्शी संत से उपदेश लेकर मर्यादा में रहकर भक्ति करने से प्रारब्ध कर्म के पाप अनुसार यदि भाग्य में सजाए मौत हो तो वह पाप कर्म हल्का होकर
सामने आएगा। उस साधक को कांटा लगकर मौत की सजा टल जाएगी।
*Sant Rampal Ji Maharaj*
*#सच्चा_सतगुरु_कौन*
🪕बिन सतगुरू पावै नहीं खालक खोज विचार।
चौरासी जग जात है, चिन्हत नाहीं सार।।
सतगुरू के बिना खालिक (परमात्मा) का विचार यानि यथार्थ ज्ञान नहीं मिलता। जिस कारण से संसार के व्यक्ति चौरासी लाख प्रकार के प्राणियों के शरीरों को प्राप्त करते हैं क्योंकि वे सार नाम, मूल ज्ञान को नहीं पहचानते।
*Sant Rampal Ji Maharaj*
*#सच्चा_सतगुरु_कौन*
🪕कबीर, गुरू गोविंद दोनों खड़े, किसके लागूं पाय। बलिहारी गुरू आपणा, गोविन्द दियो बताय।।
बिन गुरू भजन दान बिरथ हैं, ज्यूं लूटा चोर। न मुक्ति न लाभ संसारी, कह समझाऊँ तोर।।
कबीर, गुरू बिन माला फेरते, गुरू बिन देते दान। गुरू बिन दोनों निष्फल हैं, चाहे पूछो बेद पुरान।।
*Sant Rampal Ji Maharaj*
*#सच्चा_सतगुरु_कौन*
🪕श्री नानक देव जी ने श्री गुरु ग्रन्थ साहेब जी के पृष्ठ 1342 पर कहा है:-
‘‘गुरु सेवा बिन भक्ति ना होई, अनेक जतन करै जे कोई’’
*Sant Rampal Ji Maharaj*
*#सच्चा_सतगुरु_कौन*
🪕श्री गुरु ग्रन्थ साहिब पृष्ठ 946
बिन सतगुरु सेवे जोग न होई। बिन सतगुरु भेटे मुक्ति न होई।
बिन सतगुरु भेटे नाम पाइआ न जाई। बिन सतगुरु भेटे महा दुःख पाई।
बिन सतगुरु भेटे महा गरबि गुबारि। नानक बिन गुरु मुआ जन्म हारि।
*Sant Rampal Ji Maharaj*
*#सच्चा_सतगुरु_कौन*
🪕श्री नानक देव जी ने श्री गुरु ग्रन्थ साहेब जी के पृष्ठ 946 पर कहा है:-
‘‘बिन सतगुरु भेंटे मुक्ति न कोई, बिन सतगुरु भेंटे महादुःख पाई।’’
*Sant Rampal Ji Maharaj*
*#सच्चा_सतगुरु_कौन*
🪕गुरु के समान कोई तीर्थ नहीं
श्री नानक देव जी ने श्री गुरु ग्रन्थ साहेब जी के पृष्ठ 437 पर कहा है:-
नानक गुरु समानि तीरथु नहीं कोई साचे गुरु गोपाल।
*Sant Rampal Ji Maharaj*
*#सच्चा_सतगुरु_कौन*
🪕गरीब, अनंत कोटि ब्रह्मंड का एक रति नहीं भार। सतगुरू पुरूष कबीर हैं कुल के सृजनहार।।
*Sant Rampal Ji Maharaj*
*#सच्चा_सतगुरु_कौन*
🪕कबीर, दण्डवत् गोविन्द गुरू, बन्दू अविजन सोय।
पहले भये प्रणाम तिन, नमो जो आगे होय।।
*Sant Rampal Ji Maharaj*
*#सच्चा_सतगुरु_कौन*
🪕गुरू बिन काहू न पाया ज्ञाना, ज्यों थोथा भुष छड़े मूढ़ किसाना।
गुरू बिन वेद पढ़े जो प्राणी, समझे न सार रहे अज्ञानी।
कबीर, नौ मन सूत उलझिया, ऋषि रहे झख मार।
सतगुरू ऐसा सुलझा दे, उलझै ना दूजी बार।।
*Sant Rampal Ji Maharaj*
*#सच्चा_सतगुरु_कौन*
🪕जो पूर्ण सतगुरु होगा उसमें चार मुख्य गुण होते हैं:-
गुरू के लक्षण चार बखाना, प्रथम वेद शास्त्र को ज्ञाना (ज्ञाता)।
दूजे हरि भक्ति मन कर्म बानी, तीसरे समदृष्टि कर जानी।
चौथे वेद विधि सब कर्मा, यह चार गुरु गुण जानो मर्मा।
कबीर सागर के अध्याय ‘‘जीव धर्म बोध‘‘ के पृष्ठ 1960 पर ये अमृतवाणियां अंकित हैं।
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mohanrathore · 1 year ago
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*🪞बन्दीछोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की जय🪞
*#सच्चा_सतगुरु_कौन*
🪕कबीर साहेब जी अपनी वाणी में कहते हैं कि-
जो मम संत सत उपदेश दृढ़ावै (बतावै), वाके संग सभि राड़ बढ़ावै।
या सब संत महंतन की करणी, धर्मदास मैं तो से वर्णी।।
कबीर साहेब अपने प्रिय शिष्य धर्मदास को इस वाणी में ये समझा रहे हैं कि जो मेरा संत सत भक्ति मार्ग को बताएगा उसके साथ सभी संत व महंत झगड़ा करेंगे। ये उसकी पहचान होगी।
🪕सिद्ध तारै पिंड आपना, साधु तारै खंड।
उसको सतगुरु जानियो, जो तार देवै ब्रह्मांड।।
साधक अपना ही कल्याण कर सकता है। परमात्मा से परिचित जो संत हुए हैं वो कुछ डिवीजन, खंड को ही लाभ दे सकते हैं। और सतगुरु उसको जानना जो पूरे विश्व का कल्याण कर दे।
🪕सतगुरु के लक्षण कहूं, मधूरे बैन विनोद। चार वेद षट शास्त्र, कहै अठारा बोध।।
सतगुरु गरीबदास जी महाराज अपनी वाणी में पूर्ण संत की पहचान बता रहे हैं कि वह चारों वेदों, छः शास्त्रों, अठारह पुराणों आदि सभी ग्रंथों का पूर्ण जानकार होगा।
🪕यजुर्वेद अध्याय 19 मंत्र 25, 26 में लिखा है कि जो वेदों के अधूरे वाक्यों अर्थात् सांकेतिक शब्दों व एक चौथाई श्लोकों को पूरा करके विस्तार से बताएगा व तीन समय की पूजा बताएगा। सुबह पूर्ण परमात्मा की पूजा, दोपहर को विश्व के देवताओं का सत्कार व संध्या आरती अलग से बताएगा वह जगत का उपकारक संत होता है।
🪕तत्वदर्शी सन्त वह होता है जो वेदों के सांकेतिक शब्दों को पूर्ण विस्तार से वर्णन करता है जिससे पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति होती है वह वेद के जानने वाला कहा जाता है।
🪕 पूर्ण सन्त उसी व्यक्ति को शिष्य बनाता है जो सदाचारी रहे। अभक्ष्य पदार्थों का सेवन व नशीली वस्तुओं का सेवन न करने का आश्वासन देता है। पूर्ण सन्त उसी से दान ग्रहण करता है जो उसका शिष्य बन जाता है फिर गुरू देव से दीक्षा प्राप्त करके फिर दान दक्षिणा करता है उस से श्रद्धा बढ़ती है। श्रद्धा से सत्य भक्ति करने से अविनाशी परमात्मा की प्राप्ति होती है अर्थात् पूर्ण मोक्ष होता है। पूर्ण संत भिक्षा व चंदा मांगता नहीं फिरेगा।
🪕पूर्ण गुरु की पहचान
पूर्ण गुरु तीन प्रकार के मंत्रों (नाम) को तीन बार में उपदेश करेगा जिसका वर्णन कबीर सागर ग्रंथ पृष्ठ नं. 265 बोध सागर में मिलता है व गीता जी के अध्याय नं. 17 श्लोक 23 व सामवेद संख्या नं. 822 में मिलता है।
🪕संतों सतगुरु मोहे भावै, जो नैनन अलख लखावै।। ढोलत ढिगै ना बोलत बिसरै, सत उपदेश दृढ़ावै।।
आंख ना मूंदै कान ना रूदैं ना अनहद उरझावै। प्राण पूंज क्रियाओं से न्यारा, सहज समाधि बतावै।।
🪕कबीर,सतगुरु के दरबार मे, जाइयो बारम्बार
भूली वस्तु लखा देवे, है सतगुरु दातार।
हमे सच्चे गुरु की शरण मे आकर बार बार उनके दर्शनार्थ जाना चाहिए और ज्ञान सुनना चाहिए।
🪕गीता अध्याय 15 श्लोक 1 में गीता ज्ञान दाता ने तत्वदर्शी संत (सच्चा सतगुरु) की पहचान बताते हुए कहा है कि वह संत संसार रूपी वृक्ष के प्रत्येक भाग अर्थात जड़ से लेकर पत्ती तक का विस्तारपूर्वक ज्ञान कराएगा।
🪕संत रामपाल जी महाराज ही एकमात्र सच्चे सतगुरु हैं जो शास्त्रों के बताए अनुसार तीन समय की भक्ति एवं तीन प्रकार के मंत्र जाप अपने साधकों को देते हैं जिससे उन्हें सर्व सुख मिलता है तथा उनका मोक्ष का मार्ग भी आसान हो जाता है।
🪕जो भी संत शास्त्रों के अनुसार भक्ति साधना बताता है और भक्त समाज को मार्ग दर्शन करता है तो वह पूर्ण संत है अन्यथा वह भक्त समाज का घोर दुश्मन है जो शास्त्रो के विरूद्ध साधना करवा रहा है। इस अनमोल मानव जन्म के साथ खिलवाड़ कर रहा है। ऐसे गुरु या संत को भगवान के दरबार में घोर नरक में उल्टा लटकाया जाएगा।
🪕कबीर परमेश्वर जी ने कहा है कि जो सच्चा गुरु होगा उसके 4 मुख्य लक्षण होते हैं।
1. सब वेद तथा शास्त्रों को वह ठीक से जानता है।
2. दूसरे वह स्वयं भी भक्ति मन कर्म वचन  से करता है अर्थात उसकी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं होता।
3. तीसरा लक्षण यह है कि वह सर्व अनुयायियों से समान व्यवहार करता है भेदभाव नहीं रखता।
4. चौथा लक्षण यह है कि वह सर्व भक्ति कर्म वेदो ( चार वेद तो सब जानते हैं ऋग्वेद, यजुर्वेद ,सामवेद, अथर्ववेद तथा पांचवा वेद सूक्ष्म वेद सरवन वेदो) के अनुसार करता और कराता है।
🪕श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 15 श्लोक 1 - 4, 16, 17 में कहा गया है जो संत इस संसार रूपी उल्टे लटके हुए वृक्ष के सभी विभाग बता देगा वह पूर्ण गुरु/सच्चा सद्गुरु है।
यह तत्वज्ञान केवल संत रामपाल जी महाराज ही बता रहे हैं।
🪕जब तक सच्चे गुरु (सतगुरू) की प्राप्ति नहीं होती है तब तक गुरु बदलते रहना चाहिए।
जब तक गुरु मिले ना सांचा। तब तक करो गुरु दस पांचा।।
🪕आज कलियुग में भक्त समाज के सामने पूर्ण गुरु की पहचान करना सबसे जटिल प्रश्न बना हुआ है। लेकिन इसका बहुत ही लघु और साधारण–सा उत्तर है कि जो गुरु शास्त्रो के अनुसार भक्ति करता है और अपने अनुयाईयों अर्थात शिष्यों द्वारा करवाता है वही पूर्ण संत है।
🪕जैसे कुम्हार कच्चे घड़े को तैयार करते समय एक हाथ घड़े के अन्दर डाल कर सहारा देता है। तत्पश्चात् ऊपर से दूसरे हाथ से चोटें लगाता है। यदि अन्दर से हाथ का सहारा घड़े को न मिले तो ऊपर की चोट को कच्चा घड़ा सहन नहीं कर सकता वह नष्ट हो जाता है। यदि थोड़ा सा भी टेढ़ापन घड़े में रह जाए तो उस की कीमत नहीं होती। फैंकना पड़ता है। इसी प्रकार गुरूदेव अपने शिष्य की आपत्तियों से रक्षा भी करता है तथा मन को रोकता है तथा प्रवचनों की चोटें लगा कर सर्व त्राुटियों को
निकालता है।
कबीर, गुरू कुम्हार शिष्य कुम्भ है, घड़ घड़ काढे खोट। अन्दर हाथ सहारा देकर, ऊपर मारै चोट।।
🪕सतगुरु मिले तो इच्छा मेटै, पद मिल पदे समाना।
चल हंसा उस ल���क पठाऊँ, जो आदि अमर अस्थाना।।
इच्छा को केवल सतगुरु अथार्त् तत्वदर्शी संत ही समाप्त कर सकता है तथा यथार्थ भक्ति मार्ग पर लगा कर अमर पद अथार्त् पूर्ण मोक्ष प्राप्त कराता है।
🪕कबीर, सतगुरु शरण में आने से, आई टले बलाय।
जै मस्तिक में सूली हो वह कांटे में टल जाय।।
सतगुरु अथार्त् तत्वदर्शी संत से उपदेश लेकर मर्यादा में रहकर भक्ति करने से प्रारब्ध कर्म के पाप अनुसार यदि भाग्य में सजाए मौत हो तो वह पाप कर्म हल्का होकर
सामने आएगा। उस साधक को कांटा लगकर मौत की सजा टल जाएगी।
🪕बिन सतगुरू पावै नहीं खालक खोज विचार।
चौरासी जग जात है, चिन्हत नाहीं सार।।
सतगुरू के बिना खालिक (परमात्मा) का विचार यानि यथार्थ ज्ञान नहीं मिलता। जिस कारण से संसार के व्यक्ति चौरासी लाख प्रकार के प्राणियों के शरीरों को प्राप्त करते हैं क्योंकि वे सार नाम, मूल ज्ञान को नहीं पहचानते।
🪕कबीर, गुरू गोविंद दोनों खड़े, किसके लागूं पाय। बलिहारी गुरू आपणा, गोविन्द दियो बताय।।
बिन गुरू भजन दान बिरथ हैं, ज्यूं लूटा चोर। न मुक्ति न लाभ संसारी, कह समझाऊँ तोर।।
कबीर, गुरू बिन माला फेरते, गुरू बिन देते दान। गुरू बिन दोनों निष्फल हैं, चाहे पूछो बेद पुरान।।
🪕श्री नानक देव जी ने श्री गुरु ग्रन्थ साहेब जी के पृष्ठ 1342 पर कहा है:-
‘‘गुरु सेवा बिन भक्ति ना होई, अनेक जतन करै जे कोई’’
🪕श्री गुरु ग्रन्थ साहिब पृष्ठ 946
बिन सतगुरु सेवे जोग न होई। बिन सतगुरु भेटे मुक्ति न होई।
बिन सतगुरु भेटे नाम पाइआ न जाई। बिन सतगुरु भेटे महा दुःख पाई।
बिन सतगुरु भेटे महा गरबि गुबारि। नानक बिन गुरु मुआ जन्म हारि।
🪕श्री नानक देव जी ने श्री गुरु ग्रन्थ साहेब जी के पृष्ठ 946 पर कहा है:-
‘‘बिन सतगुरु भेंटे मुक्ति न कोई, बिन सतगुरु भेंटे महादुःख पाई।’’
🪕गुरु के समान कोई तीर्थ नहीं
श्री नानक देव जी ने श्री गुरु ग्रन्थ साहेब जी के पृष्ठ 437 पर कहा है:-
नानक गुरु समानि तीरथु नहीं कोई साचे गुरु गोपाल।
🪕गरीब, अनंत कोटि ब्रह्मंड का एक रति नहीं भार। सतगुरू पुरूष कबीर हैं कुल के सृजनहार।।
🪕कबीर, दण्डवत् गोविन्द गुरू, बन्दू अविजन सोय।
पहले भये प्रणाम तिन, नमो जो आगे होय।।
🪕गुरू बिन काहू न पाया ज्ञाना, ज्यों थोथा भुष छड़े मूढ़ किसाना।
गुरू बिन वेद पढ़े जो प्राणी, समझे न सार रहे अज्ञानी।
कबीर, नौ मन सूत उलझिया, ऋषि रहे झख मार।
सतगुरू ऐसा सुलझा दे, उलझै ना दूजी बार।।
🪕जो पूर्ण सतगुरु होगा उसमें चार मुख्य गुण होते हैं:-
गुरू के लक्षण चार बखाना, प्रथम वेद शास्त्र को ज्ञाना (ज्ञाता)।
दूजे हरि भक्ति मन कर्म बानी, तीसरे समदृष्टि कर जानी।
चौथे वेद विधि सब कर्मा, यह चार गुरु गुण जानो मर्मा।
कबीर सागर के अध्याय ‘‘जीव धर्म बोध‘‘ के पृष्ठ 1960 पर ये अमृतवाणियां अंकित हैं।
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nalinisawant889 · 1 year ago
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#गीता_तेरा_ज्ञान_अमृत_Part_37
पवित्र ऋग्वेद में सृष्टि रचना का प्रमाण
ऋग्वेद मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्र 1
सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्रअक्षः सहस्रपात्
सः भूमिम् विश्वतः वृत्वा अति अतिष्ठ॒त् दशअङ्गुलम् ॥1॥
सहस्रशिर्षा पुरूषः सहस्रअक्षः सहस्रपात् स भूमिम् विश्वतः वृत्वा अत्यातिष्ठत् दशंगुलम्।
अनुवाद:- (पुरूषः) विराट रूप काल भगवान अर्थात् क्षर पुरूष (सहस्रशिर्षा) हजार सिरों वाला (सहस्राक्षः) हजार आँखों वाला (सहस्रपात्) हजार पैरों वाला है (स) वह काल (भूमिम्) पृथ्वी वाले इक्कीस ब्रह्माण्डों को (विश्वतः) सब ओर से (दशंगुलम्) दसों अंगुलियों से अर्थात् पूर्ण रूप से काबू किए हुए (वृत्वा) गोलाकार घेरे में घेर कर (अत्यातिष्ठत्) इस से बढ़कर अर्थात् अपने काल लोक में सबसे न्यारा भी इक्कीसवें ब्रह्माण्ड में ठहरा है अर्थात् रहता है।
भावार्थ:- इस मंत्र में विराट (काल/ब्रह्म) का वर्णन है। (गीता अध्याय 10-11 में भी इसी काल/ब्रह्म का ऐसा ही वर्णन है अध्याय 11 मंत्र नं. 46 में अर्जुन ने कहा है कि हे सहस्राबाहु अर्थात् हजार भुजा वाले आप अपने चतुर्भुज रूप में दर्शन दीजिए।)
जिसके हजारों हाथ, पैर, हजारों आँखे, कान आदि हैं वह विराट रूप काल प्रभु अपने आधीन सर्व प्राणियों को पूर्ण काबू करके अर्थात् 20 ब्रह्माण्डों को गोलाकार परिधि में रोककर स्वयं इनसे ऊपर (अलग) इक्कीसवें ब्रह्माण्ड में बैठा है।
ऋग्वेद मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्र 2
पुरूष एवेदं सर्वं यद्भूतं यच्च भाव्यम्।
उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति।। 2।।
पुरूष एव इदम् सर्वम् यत् भूतम् यत् च भाव्यम् उत अमृतत्वस्य इशानः यत् अन्नेन अतिरोहति
अनुवाद:- (एव) इसी प्रकार कुछ सही तौर पर (पुरूष) भगवान है वह अक्षर पुरूष अर्थात् परब्रह्म है (च) और (इदम्) यह (यत्) जो (भूतम्) उत्पन्न हुआ है (यत्) जो (भाव्यम्) भविष्य में होगा (सर्वम्) सब (यत्) प्रयत्न से अर्थात् मेहनत द्वारा (अन्नेन) अन्न से (अतिरोहति) विकसित होता है। यह अक्षर पुरूष भी (उत) सन्देह युक्त (अमृतत्वस्य) मोक्ष का (इशानः) स्वामी है अर्थात् भगवान तो अक्षर पुरूष भी कुछ सही है परन्तु पूर्ण मोक्ष दायक नहीं है।
भावार्थ:- इस मंत्र में परब्रह्म (अक्षर पुरुष) का विवरण है जो कुछ भगवान वाले लक्षणों से युक्त है, परन्तु इसकी भक्ति से भी पूर्ण मोक्ष नहीं है, इसलिए इसे संदेहयुक्त मुक्ति दाता कहा है। इसे कुछ प्रभु के गुणों युक्त इसलिए कहा है कि यह काल की तरह तप्तशिला पर भून कर नहीं खाता। परन्तु इस परब्रह्म के लोक में भी प्राणियों को परिश्रम करके कर्माधार पर ही फल प्राप्त होता है तथा अन्न से ही सर्व प्राणियों के शरीर विकसित होते हैं, जन्म तथा मृत्यु का समय भले ही क���ल (क्षर पुरुष) से अधिक है, परन्तु फिर भी उत्पत्ति प्रलय तथा चौरासी लाख योनियों में यातना बनी रहती है।
मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्र 3
एतावानस्य महिमातो ज्यायाँश्च पुरूषः।
पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि।। 3।।
तावान् अस्य महिमा अतः ज्यायान् च पुरूषः पादः अस्य विश्वा भूतानि त्रि पाद् अस्य अमृतम् दिवि
अनुवाद:- (अस्य) इस अक्षर पुरूष अर्थात्ा् परब्रह्म की तो (एतावान्) इतनी ही (महिमा) प्रभुता है। (च) तथा (पुरूषः) वह परम अक्षर ब्रह्म अर्थात् पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर तो (अतः) इससे भी (ज्यायान्) बड़ा है (विश्वा) समस्त (भूतानि) क्षर पुरूष तथा अक्षर पुरूष तथा इनके लोकों में तथा सत्यलोक तथा इन लोकों में जितने भी प्राणी हैं (अस्य) इस पूर्ण परमात्मा परम अक्षर पुरूष का (पादः) एक पैर है अर्थात् एक अंश मात्र है। (अस्य) इस परमेश्वर के (त्रि) तीन (दिवि) दिव्य लोक जैसे सत्यलोक-अलख लोक-अगम लोक (अमृतम्) अविनाशी (पाद्) दूसरा पैर है अर्थात् जो भी सर्व ब्रह्माण्डों में उत्पन्न है वह सत्यपुरूष पूर्ण परमात्मा का ही अंश या अंग है।
भावार्थ:- इस ऊपर के मंत्र 2 में वर्णित अक्षर पुरुष (परब्रह्म) की तो इतनी ही महिमा है तथा वह पूर्ण पुरुष कविर्देव तो इससे भी बड़ा है अर्थात् सर्वशक्तिमान है तथा सर्व ब्रह्माण्ड उसी के अंश मात्र पर ठहरे हैं। इस मंत्र में तीन लोकों का वर्णन इसलिए है क्योंकि चौथा अनामी (अनामय) लोक अन्य रचना से पहले का है। यही तीन प्रभुओं (क्षर पुरूष-अक्षर पुरूष तथा इन दोनों से अन्य परम अक्षर पुरूष) का विवरण श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 15 श्लोक संख्या 16-17 में है {इसी का प्रमाण आदरणीय गरीबदास साहेब जी कहते हैं किः-
गरीब, जाके अर्ध रूम पर सकल पसारा, ऐसा पूर्ण ब्रह्म हमारा।।
गरीब, अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड का, एक रति नहीं भार।
सतगुरु पुरुष कबीर हैं, कुल के सृजनहार।।
इसी का प्रमाण आदरणीय दादू साहेब जी कह रहे हैं कि:-
जिन मोकुं निज नाम दिया, सोई सतगुरु हमार।
दादू दूसरा कोए नहीं, कबीर सृजनहार।।
इसी का प्रमाण आदरणीय नानक साहेब जी देते हैं कि:-
यक अर्ज गुफतम पेश तो दर कून करतार।
हक्का कबीर करीम तू, बेएब परवरदिगार।।
(श्री गुरु ग्रन्थ साहेब, पृष्ठ नं. 721, महला 1, राग तिलंग)
कून करतार का अर्थ होता है सर्व का रचनहार, अर्थात् शब्द शक्ति से रचना करने वाला शब्द स्वरूपी प्रभु, हक्का कबीर का अर्थ है सत् कबीर, करीम का अर्थ दयालु, परवरदिगार का अर्थ परमात्मा है।}
मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्र 4
त्रिपादूध्र्व उदैत्पुरूषः पादोऽस्येहाभवत्पुनः।
ततो विष्व ङ्व्यक्रामत्साशनानशने अभि।। 4।।
त्रि पाद ऊध्र्वः उदैत् पुरूषः पादः अस्य इह अभवत् पूनः ततः विश्वङ् व्यक्रामत् सः अशनानशने अभि
अनुवाद:- (पुरूषः) यह परम अक्षर ब्रह्म अर्थात् अविनाशी परमात्मा (ऊध्र्वः) ऊपर (त्रि) तीन लोक जैसे सत्यलोक-अलख लोक-अगम लोक रूप (पाद) पैर अर्थात् ऊपर के हिस्से में (उदैत्) प्रकट होता है अर्थात् विराजमान है (अस्य) इसी परमेश्वर पूर्ण ब्रह्म का (पादः) एक पैर अर्थात् एक हिस्सा जगत रूप (पुनर्) फिर (इह) यहाँ (अभवत्) प्रकट होता है (ततः) इसलिए (सः) वह अविनाशी पूर्ण परमात्मा (अशनानशने) खाने वाले काल अर्थात् क्षर पुरूष व न खाने वाले परब्रह्म अर्थात् अक्षर पुरूष के भी (अभि)ऊपर (विश्वङ्)सर्वत्र (व्यक्रामत्)व्याप्त है अर्थात् उसकी प्रभुता सर्व ब्रह्माण्डों व सर्व प्रभुओं पर है वह कुल का मालिक है। जिसने अपनी शक्ति को सर्व के ऊपर फैलाया है।
भावार्थ:- यही सर्व सृष्टि रचनहार प्रभु अपनी रचना के ऊपर के हिस्से में तीनों स्थानों (सतलोक, अलखलोक, अगमलोक) में तीन रूप में स्वयं प्रकट होता है अर्थात् स्वयं ही विराजमान है। यहाँ अनामी लोक का वर्णन इसलिए नहीं किया क्योंकि अनामी लोक में कोई रचना नहीं है तथा अकह (अनामय) लोक शेष रचना से पूर्व का है फिर कहा है कि उसी परमात्मा के सत्यलोक से बिछुड़ कर नीचे के ब्रह्म व परब्रह्म के लोक उत्पन्न होते हैं और वह पूर्ण परमात्मा खाने वाले ब्रह्म अर्थात् काल से (क्योंकि ब्रह्म/काल विराट शाप वश एक लाख मानव शरीर धारी प्राणियों को खाता है) तथा न खाने वाले परब्रह्म अर्थात् अक्षर पुरुष से (परब्रह्म प्राणियों को खाता नहीं, परन्तु जन्म-मृत्यु, कर्मदण्ड ज्यों का त्यों बना रहता है) भी ऊपर सर्वत्र व्याप्त है अर्थात् इस पूर्ण परमात्मा की प्रभुता सर्व के ऊपर है, कबीर परमेश्वर ही कुल का मालिक है। जिसने अपनी शक्ति को सर्व के ऊपर फैलाया है जैसे सूर्य अपने प्रकाश को सर्व के ऊपर फैला कर प्रभावित करता है, ऐसे पूर्ण परमात्मा ने अपनी शक्ति रूपी रेंज (क्षमता) को सर्व ब्रह्माण्डों को नियन्त्रिात रखने के लिए छोड़ा हुआ है जैसे मोबाईल फोन का टावर एक देशिय होते हुए अपनी शक्ति अर्थात् मोबाइल फोन की रंेज (क्षमता) चहुं ओर फैलाए रहता है। इसी प्रकार पूर्ण प्रभु ने अपनी निराकार शक्ति सर्व व्यापक की है जिससे पूर्ण परमात्मा सर्व ब्रह्माण्डों को एक स्थान पर बैठ कर नियन्त्रिात रखता है।
इसी का प्रमाण आदरणीय गरीबदास जी महाराज दे रहे हैं (अमृतवाणी राग कल्याण)
तीन चरण चिन्तामणी साहेब, शेष बदन पर छाए।
माता, पिता, कुल न बन्धु, ना किन्हें जननी जाये।।
मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्र 5
तस्माद्विराळजायत विराजो अधि पूरूषः।
स जातो अत्यरिच्यत पश्चाद्भूमिमथो पुरः।। 5।।
तस्मात् विराट् अजायत विराजः अधि पुरूषः स जातः अत्यरिच्यत पश्चात् भूमिम् अथः पुरः।
अनुवाद:- (तस्मात्) उसके पश्चात् उस परमेश्वर सत्यपुरूष की शब्द शक्ति से (विराट्) विराट अर्थात् ब्रह्म, जिसे क्षर पुरूष व काल भी कहते हैं (अजायत) उत्पन्न हुआ है (पश्चात्) इसके बाद (विराजः) विराट पुरूष अर्थात् काल भगवान से (अधि) बड़े (पुरूषः) परमेश्वर ने (भूमिम्) पृथ्वी वाले लोक, काल ब्रह्म तथा परब्रह्म के लोक को (अत्यरिच्यत) अच्छी तरह रचा (अथः) फिर (पुरः) अन्य छोटे-छोटे लोक (स) उस पूर्ण परमेश्वर ने ही (जातः) उत्पन्न किया अर्थात् स्थापित किया।
भावार्थ:- उपरोक्त मंत्र 4 में वर्णित तीनों लोकों (अगमलोक, अलख लोक तथा सतलोक) की रचना के पश्चात पूर्ण परमात्मा ने ज्योति निरंजन (ब्रह्म) की उत्पत्ति की अर्थात् उसी सर्व शक्तिमान परमात्मा पूर्ण ब्रह्म कविर्देव (कबीर प्रभु) से ही विराट अर्थात् ब्रह्म (काल) की उत्पत्ति हुईं। यही प्रमाण गीता अध्याय 3 मन्त्र 15 में है कि अक्षर पुरूष अर्थात् अविनाशी प्रभु से ब्रह्म उत्पन्न हुआ यही प्रमाण अर्थववेद काण्ड 4 अनुवाक 1 सुक्त 3 में है कि पूर्ण ब्रह्म से ब्रह्म की उत्पत्ति हुई उसी पूर्ण ब्रह्म ने (भूमिम्) भूमि आदि छोटे-बड़े सर्व लोकों की रचना की। वह पूर्णब्रह्म इस विराट भगवान अर्थात् ब्रह्म से भी बड़ा है अर्थात् इसका भी मालिक है।
मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्र 15
सप्तास्यासन्परिधयस्त्रिाः सप्त समिधः कृताः।
देवा यद्यज्ञं तन्वाना अबध्नन्पुरूषं पशुम्।। 15।।
सप्त अस्य आसन् परिधयः त्रिसप्त समिधः कृताः देवा यत् यज्ञम् तन्वानाः अबध्नन् पुरूषम् पशुम्।
अनुवाद:- (सप्त) सात संख ब्रह्माण्ड तो परब्रह्म के तथा (त्रिसप्त) इक्कीस ब्रह्माण्ड काल ब्रह्म के (समिधः) कर्मदण्ड दुःख रूपी आग से दुःखी (कृताः) करने वाले (परिधयः) गोलाकार घेरा रूप सीमा में (आसन्) विद्यमान हैं (यत्) जो (पुरूषम्) पूर्ण परमात्मा की (यज्ञम्) विधिवत् धार्मिक कर्म अर्थात् पूजा करता है (पशुम्) बलि के पशु रूपी काल के जाल में कर्म बन्धन में बंधे (देवा) भक्तात्माओं को (तन्वानाः) काल के द्वारा रचे अर्थात् फैलाये पाप कर्म बंधन जाल से (अबध्नन्) बन्धन रहित करता है अर्थात् बन्दी छुड़ाने वाला बन्दी छोड़ है। भावार्थ:- सात संख ब्रह्माण्ड परब्रह्म के तथा इक्कीस ब्रह्माण्ड ब्रह्म के हैं जिन में गोलाकार सीमा में बंद पाप कर्मों की आग में जल रहे प्राणियों को वास्तविक पूजा विधि बता कर सही उपासना करवाता है जिस कारण से बलि दिए जाने वाले पशु की तरह जन्म-मृत्यु के काल (ब्रह्म) के खाने के लिए तप्त शिला के कष्ट से पीड़ित भक्तात्माओं को काल के कर्म बन्धन के फैलाए जाल को तोड़कर बन्धन रहित करता है अर्थात् बंधन छुड़वाने वाला बन्दी छोड़ है। इसी का प्रमाण पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि (कविर्) कबिर परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक कबीर है। बम्भारिसि (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ कबीर परमेश्वर (असि) है।
मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्र 16
यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्त्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्।
ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः।।16।।
यज्ञेन् अयज्ञम अ-यजन्त देवाः तानि धर्माणि प्रथमानि आसन् ते ह नाकम् महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः।
अनुवाद:- जो (देवाः) निर्विकार देव स्वरूप भक्तात्माएं (अयज्ञम्) अधूरी गलत धार्मिक पूजा के स्थान पर (यज्ञेन) सत्य भक्ति धार्मिक कर्म के आधार पर (अयजन्त) पूजा करते हैं (तानि) वे (धर्माणि) धार्मिक शक्ति सम्पन्न (प्रथमानि) मुख्य अर्थात् उत्तम (आसन्) हैं (ते ह) वे ही वास्तव में (महिमानः) महान भक्ति शक्ति युक्त होकर (साध्याः) सफल भक्त जन (नाकम्) पूर्ण सुखदायक परमेश्वर को (सचन्त) भक्ति निमित कारण अर्थात् सत्भक्ति की कमाई से प्राप्त होते हैं, वे वहाँ चले जाते हैं। (यत्र) जहाँ पर (पूर्वे) पहले वाली सृष्टि के (देवाः) पापरहित देव स्वरूप भक्त आत्माएं (सन्ति) रहती हैं।
भावार्थ:- जो निर्विकार (जिन्होने मांस,शराब, तम्बाकू सेवन करना त्याग दिया है तथा अन्य बुराईयों से रहित है वे) देव स्वरूप भक्त आत्माएं शास्त्रा विधि रहित पूजा को त्याग कर शास्त्रानुकूल साधना करते हैं वे भक्ति की कमाई से धनी होकर काल के ��ण से मुक्त होकर अपनी सत्य भक्ति की कमाई के कारण उस सर्व सुखदाई परमात्मा को प्राप्त करते हैं अर्थात् सत्यलोक में चले जाते हैं जहाँ पर सर्व प्रथम रची सृष्टि के देव स्वरूप अर्थात् पाप रहित हंस आत्माएं रहती हैं।
जैसे कुछ आत्माएं तो काल (ब्रह्म) के जाल में फंस कर यहाँ आ गई, कुछ परब्रह्म के साथ सात संख ब्रह्माण्डों में आ गई, फिर भी असंख्य आत्माएं जिनका विश्वास पूर्ण परमात्मा में अटल रहा, जो पतिव्रता पद से नहीं गिरी वे वहीं रह गई, इसलिए यहाँ वही वर्णन पवित्र वेदों ने भी सत्य बताया है। यही प्रमाण गीता अध्याय 8 के श्लोक संख्या 8 से 10 में वर्णन है कि जो साधक पूर्ण परमात्मा की सतसाधना शास्त्राविधि अनुसार करता है वह भक्ति की कमाई के बल से उस पूर्ण परमात्मा को प्राप्त होता है अर्थात् उसके पास चला जाता है। इससे सिद्ध हुआ कि तीन प्रभु हैं ब्रह्म - परब्रह्म - पूर्णब्रह्म। इन्हीं को 1. ब्रह्म - ईश - क्षर पुरुष 2. परब्रह्म - अक्षर पुरुष/अक्षर ब्रह्म ईश्वर तथा 3. पूर्ण ब्रह्म - परम अक्षर ब्रह्म - परमेश्वर - सतपुरुष आदि पर्यायवाची शब्दों से जाना जाता है।
यही प्रमाण ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 17 से 20 में स्पष्ट है कि पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) शिशु रूप धारण करके प्रकट होता है तथा अपना निर्मल ज्ञान अर्थात् तत्वज्ञान (कविर्गीर्भिः) कबीर वाणी के द्वारा अपने अनुयाइयों को बोल-बोल कर वर्णन करता है। वह कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ब्रह्म (क्षर पुरुष) के धाम तथा परब्रह्म (अक्षर पुरुष) के धाम से भिन्न जो पूर्ण ब्रह्म (परम अक्षर पुरुष) का तीसरा ऋतधाम (सतलोक) है, उसमें आकार में विराजमान है तथा सतलोक से चैथा अनामी लोक है, उसमें भी यही कविर्देव (कबीर परमेश्वर) अनामी पुरुष रूप में मनुष्य सदृश आकार में विराजमान है।
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indrabalakhanna · 2 months ago
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1🪕कबीर साहेब जी अपनी वाणी में कहते हैं कि-
जो मम संत सत उपदेश दृढ़ावै (बतावै), वाके संग सभि राड़ बढ़ावै।
या सब संत महंतन की करणी, धर्मदास मैं तो से वर्णी।।
कबीर साहेब अपने प्रिय शिष्य धर्मदास को इस वाणी में ये समझा रहे हैं कि जो मेरा संत सत भक्ति मार्ग को बताएगा उसके साथ सभी संत व महंत झगड़ा करेंगे। ये उसकी पहचान होगी।
2🪕सिद्ध तारै पिंड आपना, साधु तारै खंड।
उसको सतगुरु जानियो, जो तार देवै ब्रह्मांड।।
साधक अपना ही कल्याण कर सकता है। परमात्मा से परिचित जो संत हुए हैं वो कुछ डिवीजन, खंड को ही लाभ दे सकते हैं। और सतगुरु उसको जानना जो पूरे विश्व का कल्याण कर दे।
3🪕सतगुरु के लक्षण कहूं, मधूरे बैन विनोद। चार वेद षट शास्त्र, कहै अठारा बोध।।
सतगुरु गरीबदास जी महाराज अपनी वाणी में पूर्ण संत की पहचान बता रहे हैं कि वह चारों वेदों, छः शास्त्रों, अठारह पुराणों आदि सभी ग्रंथों का पूर्ण जानकार होगा।
4🪕यजुर्वेद अध्याय 19 मंत्र 25, 26 में लिखा है कि जो वेदों के अधूरे वाक्यों अर्थात् सांकेतिक शब्दों व एक चौथाई श्लोकों को पूरा करके विस्तार से बताएगा व तीन समय की पूजा बताएगा। सुबह पूर्ण परमात्मा की पूजा, दोपहर को विश्व के देवताओं का सत्कार व संध्या आरती अलग से बताएगा वह जगत का उपकारक संत होता है।
5🪕तत्वदर्शी सन्त वह होता है जो वेदों के सांकेतिक शब्दों को पूर्ण विस्तार से वर्णन करता है जिससे पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति होती है वह वेद के जानने वाला कहा जाता है।
6🪕 पूर्ण सन्त उसी व्यक्ति को शिष्य बनाता है जो सदाचारी रहे। अभक्ष्य पदार्थों का सेवन व नशीली वस्तुओं का सेवन न करने का आश्वासन देता है। पूर्ण सन्त उसी से दान ग्रहण करता है जो उसका शिष्य बन जाता है फिर गुरू देव से दीक्षा प्राप्त करके फिर दान दक्षिणा करता है उस से श्रद्धा बढ़ती है। श्रद्धा से सत्य भक्ति करने से अविनाशी परमात्मा की प्राप्ति होती है अर्थात् पूर्ण मोक्ष होता है। पूर्ण संत भिक्षा व चंदा मांगता नहीं फिरेगा।
7🪕पूर्ण गुरु की पहचान
पूर्ण गुरु तीन प्रकार के मंत्रों (नाम) को तीन बार में उपदेश करेगा जिसका वर्णन कबीर सागर ग्रंथ पृष्ठ नं. 265 बोध सागर में मिलता है व गीता जी के अध्याय नं. 17 श्लोक 23 व सामवेद संख्या नं. 822 में मिलता है।
8🪕संतों सतगुरु मोहे भावै, जो नैनन अलख लखावै।। ढोलत ढिगै ना बोलत बिसरै, सत उपदेश दृढ़ावै।।
आंख ना मूंदै कान ना रूदैं ना अनहद उरझावै। प्राण पूंज क्रियाओं से न्यारा, सहज समाधि बतावै।।
9🪕कबीर,सतगुरु के दरबार मे, जाइयो बारम्बार
भूली वस्तु लखा देवे, है सतगुरु दातार।
हमे सच्चे गुरु की शरण मे आकर बार बार उनके दर्शनार्थ जाना चाहिए और ज्ञान सुनना चाहिए।
10🪕गीता अध्याय 15 श्लोक 1 में गीता ज्ञान दाता ने तत्वदर्शी संत (सच्चा सतगुरु) की पहचान बताते हुए कहा है कि वह संत संसार रूपी वृक्ष के प्रत्येक भाग अर्थात जड़ से लेकर पत्ती तक का विस्तारपूर्वक ज्ञान कराएगा।
11🪕संत रामपाल जी महाराज ही एकमात्र सच्चे सतगुरु हैं जो शास्त्रों के बताए अनुसार तीन समय की भक्ति एवं तीन प्रकार के मंत्र जाप अपने साधकों को देते हैं जिससे उन्हें सर्व सुख मिलता है तथा उनका मोक्ष का मार्ग भी आसान हो जाता है।
12🪕जो भी संत शास्त्रों के अनुसार भक्ति साधना बताता है और भक्त समाज को मार्ग दर्शन करता है तो वह पूर्ण संत है अन्यथा वह भक्त समाज का घोर दुश्मन है जो शास्त्रो के विरूद्ध साधना करवा रहा है। इस अनमोल मानव जन्म के साथ खिलवाड़ कर रहा है। ऐसे गुरु या संत को भगवान के दरबार में घोर नरक में उल्टा लटकाया जाएगा।
13🪕कबीर परमेश्वर जी ने कहा है कि जो सच्चा गुरु होगा उसके 4 मुख्य लक्षण होते हैं।
1. सब वेद तथा शास्त्रों को वह ठीक से जानता है।
2. दूसरे वह स्वयं भी भक्ति मन कर्म वचन  से करता है अर्थात उसकी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं होता।
3. तीसरा लक्षण यह है कि वह सर्व अनुयायियों से समान व्यवहार करता है भेदभाव नहीं रखता।
4. चौथा लक्षण यह है कि वह सर्व भक्ति कर्म वेदो ( चार वेद तो सब जानते हैं ऋग्वेद, यजुर्वेद ,सामवेद, अथर्ववेद तथा पांचवा वेद सूक्ष्म वेद सरवन वेदो) के अनुसार करता और कराता है।
14🪕श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 15 श्लोक 1 - 4, 16, 17 में कहा गया है जो संत इस संसार रूपी उल्टे लटके हुए वृक्ष के सभी विभाग बता देगा वह पूर्ण गुरु/सच्चा सद्गुरु है।
यह तत्वज्ञान केवल संत रामपाल जी महाराज ही बता रहे हैं।
15🪕जब तक सच्चे गुरु (सतगुरू) की प्राप्ति नहीं होती है तब तक गुरु बदलते रहना चाहिए।
जब तक गुरु मिले ना सांचा। तब तक करो गुरु दस पांचा।।
16🪕आज कलियुग में भक्त समाज के सामने पूर्ण गुरु की पहचान करना सबसे जटिल प्रश्न बना हुआ है। लेकिन इसका बहुत ही लघु और साधारण–सा उत्तर है कि जो गुरु शास्त्रो के अनुसार भक्ति करता है और अपने अनुयाईयों अर्थात शिष्यों द्वारा करवाता है वही पूर्ण संत है।
17🪕जैसे कुम्हार कच्चे घड़े को तैयार करते समय एक हाथ घड़े के अन्दर डाल कर सहारा देता है। तत्पश्चात् ऊपर से दूसरे हाथ से चोटें लगाता है। यदि अन्दर से हाथ का सहारा घड़े को न मिले तो ऊपर की चोट को कच्चा घड़ा सहन नहीं कर सकता वह नष्ट हो जाता है। यदि थोड़ा सा भी टेढ़ापन घड़े में रह जाए तो उस की कीमत नहीं होती। फैंकना पड़ता है। इसी प्रकार गुरूदेव अपने शिष्य की आपत्तियों से रक्षा भी करता है तथा मन को रोकता है तथा प्रवचनों की चोटें लगा कर सर्व त्राुटियों को
निकालता है।
कबीर, गुरू कुम्हार शिष्य कुम्भ है, घड़ घड़ काढे खोट। अन्दर हाथ सहारा देकर, ऊपर मारै चोट।।
18🪕सतगुरु मिले तो इच्छा मेटै, पद मिल पदे समाना।
चल हंसा उस लोक पठाऊँ, जो आदि अमर अस्थाना।।
इच्छा को केवल सतगुरु अथार्त् तत्वदर्शी संत ही समाप्त कर सकता है तथा यथार्थ भक्ति मार्ग पर लगा कर अमर पद अथार्त् पूर्ण मोक्ष प्राप्त कराता है।
19🪕कबीर, सतगुरु शरण में आने से, आई टले बलाय।
जै मस्तिक में सूली हो वह कांटे में टल जाय।।
सतगुरु अथार्त् तत्वदर्शी संत से उपदेश लेकर मर्यादा में रहकर भक्ति करने से प्रारब्ध कर्म के पाप अनुसार यदि भाग्य में सजाए मौत हो तो वह पाप कर्म हल्का होकर
सामने आएगा। उस साधक को कांटा लगकर मौत की सजा टल जाएगी।
20🪕बिन सतगुरू पावै नहीं खालक खोज विचार।
चौरासी जग जात है, चिन्हत नाहीं सार।।
सतगुरू के बिना खालिक (परमात्मा) का विचार यानि यथार्थ ज्ञान नहीं मिलता। जिस कारण से संसार के व्यक्ति चौरासी लाख प्रकार के प्राणियों के शरीरों को प्राप्त करते हैं क्योंकि वे सार नाम, मूल ज्ञान को नहीं पहचानते।
21🪕कबीर, गुरू गोविंद दोनों खड़े, किसके लागूं पाय। बलिहारी गुरू आपणा, गोविन्द दियो बताय।।
बिन गुरू भजन दान बिरथ हैं, ज्यूं लूटा चोर। न मुक्ति न लाभ संसारी, कह समझाऊँ तोर।।
कबीर, गुरू बिन माला फेरते, गुरू बिन देते दान। गुरू बिन दोनों निष्फल हैं, चाहे पूछो बेद पुरान।।
22🪕श्री नानक देव जी ने श्री गुरु ग्रन्थ साहेब जी के पृष्ठ 1342 पर कहा है:-
‘‘गुरु सेवा बिन भक्ति ना होई, अनेक जतन करै जे कोई’’
23🪕श्री गुरु ग्रन्थ साहिब पृष्ठ 946
बिन सतगुरु सेवे जोग न होई। बिन सतगुरु भेटे मुक्ति न होई।
बिन सतगुरु भेटे नाम पाइआ न जाई। बिन सतगुरु भेटे महा दुःख पाई।
बिन सतगुरु भेटे महा गरबि गुबारि। नानक बिन गुरु मुआ जन्म हारि।
24🪕श्री नानक देव जी ने श्री गुरु ग्रन्थ साहेब जी के पृष्ठ 946 पर कहा है:-
‘‘बिन सतगुरु भेंटे मुक्ति न कोई, बिन सतगुरु भेंटे महादुःख पाई।’’
25🪕गुरु के समान कोई तीर्थ नहीं
श्री नानक देव जी ने श्री गुरु ग्रन्थ साहेब जी के पृष्ठ 437 पर कहा है:-
नानक गुरु समानि तीरथु नहीं कोई साचे गुरु गोपाल।
26🪕गरीब, अनंत कोटि ब्रह्मंड का एक रति नहीं भार। सतगुरू पुरूष कबीर हैं कुल के सृजनहार।।
27🪕कबीर, दण्डवत् गोविन्द गुरू, बन्दू अविजन सोय।
पहले भये प्रणाम तिन, नमो जो आगे होय।।
28🪕गुरू बिन काहू न पाया ज्ञाना, ज्यों थोथा भुष छड़े मूढ़ किसाना।
गुरू बिन वेद पढ़े जो प्राणी, समझे न सार रहे अज्ञानी।
कबीर, नौ मन सूत उलझिया, ऋषि रहे झख मार।
सतगुरू ऐसा सुलझा दे, उलझै ना दूजी बार।।
29🪕जो पूर्ण सतगुरु होगा उसमें चार मुख्य गुण होते हैं:-
गुरू के लक्षण चार बखाना, प्रथम वेद शास्त्र को ज्ञाना (ज्ञाता)।
दूजे हरि भक्ति मन कर्म बानी, तीसरे समदृष्टि कर जानी।
चौथे वेद विधि सब कर्मा, यह चार गुरु गुण जानो मर्मा।
कबीर सागर के अध्याय ‘‘जीव धर्म बोध‘‘ के पृष्ठ 1960 पर ये अमृतवाणियां अंकित हैं
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