#कुंडली में संतान योग
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संतान सुख पाना हर किसी का सपना होता है। कई लोगों को यह खुशखबरी आसानी से मिल जाती है लेकिन कुछ लोगों को संतान पाने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है। क्या आप भी संतान सुख पाना चाहते हैं और इसके लिए कोई समाधान ढूंढ रहें हैं? तो आज ही मिलिए डॉ. विनय बजरंगी से, वह आपकी कुंडली देख कर यह बता सकते हैं कि आपकी कुंडली में संतान योग है या नहीं? और अगर संतान योग है तो आपको संतान सुख कब मिलेगा। वह आपको कुछ आसान उपाय बताएंगे जो आपको जल्द ही पेरेंट्स बनने का सुख देंगे। तो आज ही अपना ऑनलाइन अपॉइंटमेंट बुक करें।
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🍁50 साल बाद महाअष्टमी पर बनेगा बेहद दुर्लभ अनोखा संयोग: इन राशियों के लोग होंगे मालामाल बनेंगे रुके काम!🍁
🌳3 अक्टूबर से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है और समापन 12 अक्टूबर, दशहरा के दिन होगा. शारदीय नवरात्रि की महाअष्टमी इस बार 11 अक्टूबर को मनाई जाएगी. इस दिन माता महागौरी की उपासना की जाती है.
🌳ज्योतिषिय के अनुसार, इस बार महाअष्टमी बहुत ही खास मानी जा रही है क्योंकि इसी दिन महानवमी का संयोग भी बन रहा है. साथ ही, इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग, बुधादित्य योग का संयोग भी बन रहा है. आपको बता दें कि यह संयोग 50 साल बाद बनने जा रहा है.
👉मेष मेष वालों के लिए महाअष्टमी बहुत ही शुभ मानी जा रही है. इस शुभ संयोग से मेष राशि वालों को शुभ समाचार मिल सकता है. बिजनेस से जुड़े लोगों की तरक्की होगी.
👉कर्क कर्क वालों को अच्छी नौकरी प्राप्त हो सकती है. कार्यक्षेत्र में पद प्रतिष्ठा प्राप्त हो सकती है. आर्थिक स्थिति बेहतर रहेगी. इन राजयोगों के कारण इनके पारिवारिक जीवन में शांति बनी रहेगी. सहकर्मियों का सहयोग प्राप्त होगा.
👉कन्या बिजनेस करने वालों को काम के सिलसिले में यात्रा पर जाना पड़ सकता है. यह यात्रा आपके बिजनेस के लिए शुभ फलदायी रहने वाली है. कुल मिलाकर बिजनेस करने वालों के लिए यह समय काफी बेहतर रहने वाला है. इन्हें निवेश के नए रास्ते मिलेंगे.
👉मीन मीन राशि के लोगों को इस दौरान समाज में पद और प्रतिष्ठा प्राप्त होगी. ��िजनेस करने वालों के लिए भी समय अच्छा है धन लाभ होगा. नौकरी करने वाले लोगों के लिए यह राजयोग किसी वर��ान से कम नहीं है. माता रानी का आशीर्वाद प्राप्त होगा.
🌞शारदीय नवरात्रि पंचमी तिथि पर अवश्य आजमाएं यह अचूक उपाय🌞
👉अगर आपके भी जीवन में संतान सुख अभी तक नहीं बन पाया है तो नवरात्रि की पंचमी तिथि पर एक चुनरी में नारियल लपेट लें। इसके बाद नीचे दिए गए मंत्र का जाप करें। मंत्र का जाप करते हुए इस नारियल को चुनरी समेत माँ स्कंदमाता के चरणों में अर्पित कर दे। मंत्र है: “नन्दगोपगृहे जाता यशोदागर्भ सम्भवा. ततस्तौ नाशयिष्यामि विन्ध्याचलनिवासिनी”। पूजा के बाद इस नारियल और चुनरी को अपने शयन कक्षा में अपने सिरहाने रखें। इस छोटे से अचूक उपाय को करने से जल्द ही भक्तों की झोली संतान की किलकारी से माता अवश्य भर देती हैं।
👉इसके अलावा अगर आपके विवाह में रुकावट आ रही है या आपके परिवार में किसी सदस्य के विवाह में रुकावट आ रही है ���ो नवरात्रि की 36 लॉन्ग और छह कपूर लेकर इसमें चावल और हल्दी मिलाकर इसे मां दुर्गा को आहुति दें। ऐसा करने से जल्द ही विवाह के संदर्भ में आ रही सभी रुकावटें दूर होने लगेगी। [विशेष पंचमी तिथि पर]
👉अगर आपका व्यवसाय या नौकरी ठीक से नहीं चल रही है, आपको मनचाही सफलता नहीं मिल रही है, कठिन परिश्रम के बाद भी आप नतीजे से खुश नहीं हैं तो लौंग और कपूर में अमलतास के फूल या कोई भी पीला फूल मिलाकर इससे मां दुर्गा को आहुति दें। ऐसा करने से जल्द ही आपको मनचाही तरक्की और सफलता मिलने लगेगी। [विशेष पंचमी तिथि पर]
👉अगर आपके जीवन में स्वास्थ्य संबंधित परेशानियां निरंतर रूप से बनी हुई है या आपके परिवार में कोई बार-बार बीमार पड़ रहा है तो इस दिन 52 लॉन्ग और 42 कपूर के टुकड़े ले लें। अब इस पर नारियल की गिरी, शहद और मिश्री मिला लें और इससे हवन करें। ऐसा करने से स्वास्थ्य संबंधित सभी परेशानियां जल्द ही दूर होने लगेंगे।
👉इसके अलावा अगर आपके काम में किसी तरह की कोई रुकावट आ रही है, विघ्न आ रहा है या बनते बनते काम बिगड़ जा रहे हैं तो नवरात्रि पर पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी अपने घर में ले आयें। अब इस मिट्टी पर दूध, दही, घी, अक्षत, रोली, अर्पित करें और इसके आगे दिया जलाएं। अगले दिन मिट्टी को वापस पेड़ के नीचे डाल दें। ऐसा करने से जल्द ही आपके जीवन से सभी रुकावटें और बाधाएँ दूर होने लगेगी। [विशेष पंचमी तिथि पर]
👉स्कंद माता का संबंध या यूं कहिए नवरात्रि की पंचमी तिथि का संबंध बुध ग्रह से भी जोड़कर देखा जाता है। ऐसे में अगर आपकी कुंडली में भी बुध ग्रह से संबंधित दोष मौजूद है या बुध ग्रह पीड़ित अवस्था में है और आपको सकारात्मक परिणाम नहीं मिल रहे हैं तो इस दिन स्कंदमाता की प���जा अवश्य करें। ऐसा करने से करियर और व्यवसाय में आपको निश्चित रूप से सफलता मिलेगी और आपकी सभी मनोकामनाएं भी पूर्ण होगी।
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कुंडली में कन्या संतान की अधिकता का योग। Prevalence Of Girl Child Ka Yog...
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कुंडली में पितृदोष कैसे बनता है इसे कैसे देख सकते है?
पितृदोष कुंडली में एक विशेष प्रकार का दोष है जो पितृ या पूर्वजों के उपासनीय या श्राद्ध के सम्बंध में होता है। इसे कुंडली में कुछ विशेष ग्रहों या भावों की स्थिति से जोड़ा जाता है।
पितृदोष को देखने के लिए कुछ आम लक्षण हो सकते हैं, जैसे कि:
केतु और राहु का संयोग: अगर कुंडली में केतु और राहु का संयोग है, तो यह पितृदोष का होने का संकेत हो सकता है। विशेष रूप से यदि यह ग्रह दुसरे भावों जैसे कि आर्थिक भाव, संतान भाव या धर्म भाव से युक्त होते हैं।
पितृ भाव में केतु या राहु की स्थिति: कुंडली में जिस भाव में केतु या राहु स्थित हो, वहां पितृदोष का संकेत हो सकता है।
पितृ ग्रहों की दृष्टि: अगर कुंडली में पितृ ग्रहों जैसे कि सूर्य, चंद्रमा, बुध, गुरु और शुक्र की दृष्टि या संयोग है, तो भी पितृदोष का संकेत हो सकता है।
विशेष योग: कुछ विशेष योग भी हो सकते हैं जो पितृदोष का कारण बन सकते हैं, जैसे कि पितृदोष योग, कालसर्प योग आदि।
पितृदोष की जांच के लिए किसी ज्योतिषी से परामर्श लेना सबसे अच्छा है, क्योंकि वे आपकी कुंडली को विशेष रूप से देखकर आपको सटीक जानकारी दे सकते हैं कि क्या और कैसे उपाय किए जा सकते हैं। जिसके लिए आप कुंडली चक्र २०२२ सॉफ्टवेयर की मदद ले सकते है. जो आपको एक सटीक जानकारी दे सकता है.
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जन्म कुंडली में धन योग कारक ग्रह कौन सा है ?
जन्म कुंडली में धन योग कारक ग्रह कई अनुभवी ज्योतिषाचार्यों द्वारा अलग-अलग दृष्टिकोण से बताए जाते हैं। हालांकि, धन संबंधी योगों के लिए प्रमुख ग्रह गणेश और लक्ष्मी के प्रतीक होते हैं, जैसे कि बृहस्पति (गुरु) और शुक्र (शुक्रा)।
बृहस्पति (गुरु): गुरु धन, विद्या, धर्म, संस्कार और विश्वास का प्रतीक होता है। उसकी उत्तम स्थिति ��न संबंधी योगों को बढ़ावा देती है, और जीवन में समृद्धि और सफलता की प्राप्ति में सहायक होती है।
शुक्र (शुक्रा): शुक्र भगवान लक्ष्मी का प्रतीक है और सौंदर्य, सुख, संतोष, समृद्धि और संतान का संबंध रखता है। शुक्र की उच्च स्थिति और शुभ योगों में सहयोग प्रदान करने की क्षमता होती है।
इन ग्रहों की सजीव और शुभ दशाएं धन, संपत्ति और समृद्धि के लिए शुभ होती हैं। धन संबंधी योगों को विशेष ग्रहों की स्थिति और युति के साथ संबंधित भव की स्थिति और ग्रहों के संयोगों के अनुसार विश्लेषित किया जाता है। कृपया ध्यान दें कि ये उपाय केवल सामान्य सलाह के रूप में दी गई हैं। जिसके लिए आप कुंडली चक्र २०२२ प्रोफेशनल सॉफ्टवेयर का प्रयोग कर सकते है।
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कुंडली में कारक, अकारक और मारक ग्रह
ज्योतिष शास्त्र में, ग्रहों को उनके प्रभाव के आधार पर तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है - कारक ग्रह, अकारक ग्रह और मारक ग्रह। यहां हम समझेंगे कि कारक ग्रह किसे कहते हैं और इन तीनों प्रकारों के बीच का अंतर।
कारक ग्रह किसे कहते हैं? कारक ग्रह वे ग्रह होते हैं जो किसी व्यक्ति की कुंडली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और उनकी जीवन की विभिन्न घटनाओं को प्रभावित करते हैं। ये ग्रह व्यक्ति के जीवन के लिए शुभ परिणाम लाते हैं और उनकी इच्छाओं को पूरा करने में मदद करते हैं। कारक ग्रह सौभाग्य, धन, संतान, शिक्षा, करियर आदि जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं को संचालित करते हैं।
अकारक ग्रह अकारक ग्रह वे होते हैं जो न तो शुभ होते हैं और न ही अशुभ। ये ग्रह व्यक्ति के जीवन में न्यूटलिटी लाते हैं और उनके प्रभाव को कम करते हैं। हालांकि, अकारक ग्रहों के उपयुक्त योग और गोचर स्थितियों में, वे शुभ परिणाम दे सकते हैं।
मारक ग्रह जैसा कि नाम से पता चलता है, मारक ग्रह व्यक्ति के जीवन में विघ्न डालते हैं और कष्ट पहुंचाते हैं। ये ग्रह नकारात्मक शक्तियों को प्रतिनिधित्व करते हैं और व्यक्ति के लिए बाधाएं और चुनौतियां पैदा करते हैं। हालांकि, मारक ग्रहों के शुभ योग और गोचर स्थितियों में, उनके प्रभाव को कम किया जा सकता है।
कुंडली विश्लेषण में, ये तीनों प्रकार के ग्रह महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। एक सिद्धांत यह है कि कुंडली का संतुलन बनाए रखना महत्वपूर्ण है, जिससे कारक ग्रहों के शुभ प्रभाव को अधिकतम करने और अकारक व मारक ग्रहों के नकारात्मक प्रभावों को न्यू��तम करने में मदद मिल���ी है।
Read More: https://www.futuresamachar.com/hi/karak-akarak-and-marak-planets-in-horoscope-6854
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कुंडली में कारक, अकारक और मारक ग्रह
ज्योतिष शास्त्र में, ग्रहों को उनके प्रभाव के आधार पर तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है - कारक ग्रह, अकारक ग्रह और मारक ग्रह। यहां हम समझेंगे कि कारक ग्रह किसे कहते हैं और इन तीनों प्रकारों के बीच का अंतर।
कारक ग्रह किसे कहते हैं? कारक ग्रह वे ग्रह होते हैं जो किसी व्यक्ति की कुंडली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और उनकी जीवन की विभिन्न घटनाओं को प्रभावित करते हैं। ये ग्रह व्यक्ति के जीवन के लिए शुभ परिणाम लाते हैं और उनकी इच्छाओं को पूरा करने में मदद करते हैं। कारक ग्रह सौभाग्य, धन, संतान, शिक्षा, करियर आदि जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं को संचालित करते हैं।
अकारक ग्रह अकारक ग्रह वे होते हैं जो न तो शुभ होते हैं और न ही अशुभ। ये ग्रह व्यक्ति के जीवन में न्यूटलिटी लाते हैं और उनके प्रभाव को कम करते हैं। हालांकि, अकारक ग्रहों के उपयुक्त योग और गोचर स्थितियों में, वे शुभ परिणाम दे सकते हैं।
मारक ग्रह जैसा कि नाम से पता चलता है, मारक ग्रह व्यक्ति के जीवन में विघ्न डालते हैं और कष्ट पहुंचाते हैं। ये ग्रह नकारात्मक शक्तियों को प्रतिनिधित्व करते हैं और व्यक्ति के लिए बाधाएं और चुनौतियां पैदा करते हैं। हालांकि, मारक ग्रहों के शुभ योग और गोचर स्थितियों में, उनके प्रभाव को कम किया जा सकता है।
कुंडली विश्लेषण में, ये तीनों प्रकार के ग्रह महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। एक सिद्धांत यह है कि कुंडली का संतुलन बनाए रखना महत्वपूर्ण है, जिससे कारक ग्रहों के शुभ प्रभाव को अधिकतम करने और अकारक व मारक ग्रहों के नकारात्मक प्रभावों को न्यूनतम करने में मदद मिलती है।
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कुंडली के चौथे भाव से क्या जानकारी मिलती है?
चौथे भाव को व्यापार भाव भी कहा जाता है, और इसे कुंडली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। यह भाव व्यक्ति की संपत्ति, धन, घर, भूमि, और परिवार से संबंधित होता है। चौथे भाव से जानने वाली कुछ मुख्य जानकारियाँ निम्नलिखित हो सकती हैं:
संपत्ति और धन:चौथे भाव संपत्ति और धन से संबंधित होता है। इसका अध्ययन करके जाना जा सकता है कि व्यक्ति किस प्रकार के धन का स्वामी है और उसे कैसे प्राप्त कर सकता है।
घर और भूमि:चौथे भाव घर और भूमि से जुड़ा होता है। इससे व्यक्ति का निवास स्थान, वास्तु और प्रॉपर्टी से संबंधित जानकारी मिल सकती है।
व्यापार और उद्यमिता:चौथे भाव को व्यापार भी माना जाता है। इससे व्यक्ति की उद्यमिता, व्यापारिक योजनाएं और सफलता की संभावना का अंदाजा किया जा सकता है।
परिवार और आश्रम:चौथे भाव से परिवार और आश्रम से जुड़ी जानकारी प्राप्त होती है। इससे व्यक्ति का परिवारिक जीवन, माता-पिता के साथ संबंध, और गृहस्थ जीवन की विविधता का पता लगता है।
संतान सुख:चौथे भाव का अध्ययन संतान सुख और पुत्र पुत्री से संबंधित होता है। इससे जानकारी मिल सकती है कि व्यक्ति को संतान सुख में कैसी प्राप्ति हो सकती है।
चौथे भाव के स्वामी ग्रह और इसके स्थिति, दृष्टियाँ, और योग के आधार पर इन विषयों का विवेचन किया जाता है। किसी व्यक्ति की पूरी कुंडली को विश्लेषण करके ही यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि चौथे भाव से कौन-कौन सी विषये संबंधित हैं और उसका कैसा प्रभाव हो सकता है। अगर आपको अपनी कुंडली के आधार पर जाना है। तो आप Kundli Chakra 2022 Professional Software का प्रयोग कर सकते है।
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पत्नी परिवार एवं संतान बच्चों से संबंधित समस्याओं का कारण जाने अपनी जन्म कुंडली से ...
इनके जीवन में संतान एवं पत्नी दोनों से संबंधित परेशानी है । संतान लगभग 14 वर्ष का हो चुका है अब पिता की बात सुनता नहीं है । पिता को गाली देता है। पत्नी से मतभेद रहता है और इनके पुत्र और पत्नी दोनों मिलकर उनके विरोधी एवं शत्रु बन गए हैं ।
पत्नी और वैवाहिक जीवन के लिए सप्तम भाव द्वितीय भाव एवं विवाह के कारक शुक्र को देखा जाता है ।
सप्तम भाव का स्वामी अष्टम भाव में विराजमान है । सप्तम भाव में सूर्य और शनि एक साथ विराजमान है एवं उस प केतु की दृष्टि है यह एक वैवाहिक जीवन में परेशानी वाला प्रबल ग्रहण दोष है ।
द्वितीय भाव कुटुंब के सुख के लिए देखा जाता है । द्वितीय भाव का स्वामी मंगल स्वराशि में अर्थात बहुत अच्छा योग बना रहा है परंतु जब आगे देखते हैं इस पर राहु एवं शनि की दृष्टि है ।
मंगल यहां अकेले बहुत अच्छा योग बना रहे थे परंतु उस पर राहु शनि की दृष्टि उस अच्छे योग को परेशानी में परिवर्तन कर दिया ।
संतान का स्वामी चंद्रमा रोग एवं शत्रु के भाव षष्ट भाव में विराजमान है पंचम भाव में राहु विराजमान है एवं केतु की दृष्टि है ऐसे में संतान से संबंधित परेशानी होगी ।
द्वितीय भाव का स्वामी एवं पंचम भाव दोनों ही राहु केतु शनि के प्रभाव में जिसके कारण ऐसे व्यक्ति की वाणी मैं भी दोष होता है बोली में रूखापन रहता है । यह संतान क��� उसके अच्छे भविष्य के लिए कुछ बोलते हैं या समझाते हैं
उसमें रूखापन ज्यादा रहता है जिसके कारण संतान विरोध करने लगा, ऐसे योग में सिर्फ उपाय करने से समस्या का समाधान नहीं हो सकता है ।
यदि ऐसा योग हो तो संतान से प्यार से बात करना चाहिए उसे शांति से समझाना चाहिए, हमें कुंडली को देख कर उसके अनुसार अपने जीवन में जीने के तरीके में परिवर्तन करना आवश्यक है ।
अधिक जानकारी जन्मकुंडली से जुड़ा हुआ परामर्श हस्तरेखा से जुड़ा हुआ साला उपाय विधि प्रयोग या अन्य किसी भी प्रकार की समस्याओं में फंसे हुए हैं तो समाधान के लिए संपर्क करें कॉल 8009078732करें ..
संपर्क सूत्र - -
परामर्श शुल्क 151 ₹
II ज्योतिष गुरु ओम II
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स्त्री जातक:-
स्त्री जातक:- भाग-9.
योग संख्या-22.
वैधव्य योग:-
*********
सुगमज्योतिष स्त्रीजातक/श्लोक-1 एवं 2 के अनुसार प्रबल वैधव्य योग:-
सप्तमेशो अष्टमें यस्या: सप्तमें निधनाधिपा:।
पापेक्षण युताद् बाला वैधव्यं लभते ध्रुवम्।।
भावार्थ:-
*******: जिस स्त्रीजातक की जन्मपत्रिका में चन्द्रलग्न या जन्मलग्न (जो बलवान हो) से सातवें भाव का स्वामिग्रह आठवें भाव में और आठवें भाव का स्वामिग्रह सातवें भाव में हो,
और ये दोनों ग्रह **नैसर्गिक क्रूर ग्रह से युक्त या दृष्ट हो तो निश्चित ही उसका वैधव्य हो जाता है।
योग संख्या-23.
************
सप्तम-अष्टपती षष्टे व्यये वा पाप पीड़ितौ।
तदा वैधव्य माप्नोति नारी नैवात्र संशय:।।
भावार्थ:-
*****:- जिस स्त्रीजातक की जन्मपत्रिका में चन्द्रलग्न या जन्मलग्न (जो बलवान हो) से सातवें भाव और आठवें भाव के स्वामिग्रह छठे या आठवें भाव में युति या अलग-अलग भी हों,
और ये दोनों ग्रह नैसर्गिक क्रूर ग्रह से यु्ति में हों या देखे जा रहे हों तो निश्चित ही उसका वैधव्य हो जाता है।
योग संख्या-24. ************
बृहद जातक: स्त्री-14. के अनुसार:-
*****************************
क्रूरेअष्टमे विधवता निधनेश्वरोअंशे,
यस्य स्थितो वयसि तस्य समेप्रदिष्टा।
सत्स्वर्थगेषु मरणं स्वयमैवतस्या,
कन्यातगोहरिषु चा अल्पसुतत्वमिन्दो।।
वैधव्यता के संबंध में अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य:-
***********************************
1-लग्न से अष्टम भाव में नैसर्गिक क्रूरग्रह (जैसे शनि,मंगल, राहु, केतु या सूर्य ) हो वे पाप दृष्टि में भी हो तो स्त्री विधवा होती है।
विशेष:- सूर्य को स्वभावत: क्रूर ग्रह माना गया है अतः:जहां-जहां ऋषियों ने " क्रूर " शब्द का प्रयोग किया है वहां सूर्य को भी सम्मलित किया जाएगा।
इसी प्रकार जहां-जहां ऋषियों ने " पाप ग्रह " शब्द का प्रयोग किया है वहां सूर्य को सम्मलित नहीं किया जाएगा। क्योंकि सूर्य को स्वभावत: क्रूर ग्रह तो माना गया है लेकिन पापग्रह नहीं।
क्या अन्तर है क्रूर और पाप स्वभाव के ग्रहों के फलित में?
क्रूर ग्रह केवल भाव से संबंधित कष्ट देते है किन्तु पापा ग्रह उस भाव का नाश कर सकते हैं यदि बलवान हों तो।
2-अष्टमेष के नवांशराशि के स्वामि की दशा-अन्तर्दशा में स्त्री विधवा होती है।
3-शुभग्रह दूसरे भाव में हो तो स्त्री की सुहागन मृत्यु। अर्थात पति से पहले मत्यु हो।
4-चंद्रमा 2,5,6,या 8 में हो तो संतान कम होती है।
5-आठवे भाव में क्रूर ग्रह अपनी उच्च राशि में हो तो देरी से मरण होता है। एक प्रकार से यह दीर्घायु योग है।
6-किसी पापग्रह को चंद्र और मंगल देखे तो निश्चित ही पति का शी��्र मरण। अर्थात वैधव्यता हो जाती है।
योग संख्या-24 ************
** कार्ये पापे कोणेवा ।।
च०पाद/जैमिनी सूत्रम्- 13/ 4.
इसे ऐसा पढ़े:-
वैधवी योगान्निश्चयेन.... कार्ये पापे कोणेवा।।
अर्थात्त: एकादश भाव और उसका कोणभाव अर्थात तीसरे भाव में पापग्रह हों और वह पापग्रह दर्शाया देखा जा रहा हो तो वैधव्यता देते हैं।
योग संख्या-25. **************
जैमिनी सूत्रम् च०पाद 8-9 के अनुसार:-
**उच्चे विलंबात् नीचे क्षिप्रम्।। चंद्रकुजदृष्टौ निश्चयेन।।
अर्थात :- चंद्र और म��गल की दृष्टि से निम्न योगों में वैधव्यता के संभावित काल का निश्चय करें।
1-आठवे भाव में क्रूर ग्रह अपनी उच्चराशि में हो तो विलंब से वैध्व्य होता है।
2-आठवे नभाव में पापग्रह हो जिस पर चंद्र और मंगल की दृष्टि बन रही हो तो देरी से वैधव्य होता है।
योग संख्या:- 26
सुगम ज्योतिष वैधव्य योग श्लौक-2
*****************************
चंद्र: पापेन संयुक्तश् चन्द्रो वा पाप मध्यग:।
चंद्रात् सप्ताषष्टमें पापा भर्तुर् नाशकरा मत:।।
भावार्थ:- यदि चंद्रमा नैसर्गिक पाप ग्रह से देखा जा रहा हो। या चंद्रमा पापकर्तरी दोष में हो और चंद्रमा से सातवें या आठवें भाव में कोई नैसर्गिक पाप ग्रह हो तो पति का नाश हो सकता है। ऐसे योग वाली वह स्त्री विधवा हो सकती है।
अगामि लेख में "चाल चरित्र" ।।
स्त्री जातक:- भाग-10. *******************
योग संख्या-27.
**********
विवादास्पद प्रकृति:-
**************
सारावली अध्याय-8/17 के अनुसार:-
एकै केन फलं स्याद दृष्टे नान्यै: कुजादिभि: पावै:।
सर्वे: स्वगृहं त्यवक्ता गच्छन्ति वेश्या वदं युवति।।
भावार्थ:- यदि किसी महिला जातक का चंद्रग्रह सभी तीनों पापक ग्रहों जैसे: मंगल, शनि,राहु आदि से देखा जा रहा हो तो:
वह महिला अपना कुल-परिवार त्याग कर नगरवधु सा स्वच्छन्द जीवन जीती हैं।
योगसख्या-28. **************
सारावली अध्याय-45/19.के अनुसार:-
सौरारगृहे तद्वच्छ शिनि सशुक्रे विलग्नगे जाता।
मात्रा साकं कुलटा क्रूरग्रह विक्षिते भवति।।
भावार्थ:- यदि किसी महिला जातक की जन्मकुंडली का लग्नभाव **क्रूरराशि वाला हो,
और इस लग्नभाव में " चंद्र एवं शुक्र की युति " बैठी हो, साथ ही..
इस युति को कोई पापी ग्रह देख रहा है तो इस महिला का चरित्र दूषित हो सकता है।
**क्रूरराशि वाला लग्न किसे कहते हैं?
-यदि जन्मकुंडली का लग्न भाव मंगल की राशियों ( मेष या बृश्चिक) या शनि की राशियों (मकर या कुंभ ) का हो तो उसे क्रूरराशि वाला लग्न कहते हैं।
वैसे भी क्रूरराशि वाले लग्न के ये जातक जीवन भर अपने स्वास्थ्य की चिंता में ग्रस्त रहते हैं।
पति क�� अतिरिक्त पुरु�� की कामना करने वाली:-
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योगसख्या-29. ***************
सारावली अध्याय-45/18.के अनुसार:-
अन्योन्यभाग गतयो सित-कुजयो रन्यपुरुष सक्ता स्यात्।
द्यूने शिशिरकरे वा स्याद्युवतिर् अनुज्ञया भर्तु:।।
भावार्थ:- यदि किसी महिला जातक की जन्मकुंडली में शुक्र और मंगलग्रह एक दूसरे की राशि में हों, या
नवमांशकुंडली में एक दूसरे की राशि में हों तो:
वह महिला पति के अतिरिक्त अन्यपुरुष मित्र भी रख सकती है।
2- शुक्र और मंगल के उपरोक्त योग के साथ यदि जन्मकुंडली के सातवे भाव में चंद्रमा भी हो:
तो उस महिला के अन्यपरुष से मित्रता संबन्ध में उसके पति की भी सहमति हो सकती है। या अपनी स्त्री के इस व्यवहार के बारे में वह सब कुछ जानता है।
दुर्भाग्यवान स्त्री:- *****************
योग संख्या-30
*************
सारावली अध्याय-45/14.के अनुसार:-
शुक्रासितौ यदि परस्पर भागसस्थौ, शौक्रे च दृष्टि पथगावूदये घटांशे।
स्त्रीणा मतीव मदन अग्निमद: प्रवृध्द, सत्रीभि: समंच पुरुषाकृति भूर्लभन्ते।।
भावार्थ यदि किसी महिला जातक की जन्मकुंडली में:
1- जन्मकुंडली में शुक्र और शनिग्रह परस्पर समसप्तक हों या
2- शुक्र और शनिग्रह नवमांशकुंडली में एक दूसरे की राशि में हों या
3-जन्मकुंडली के लग्नभाव में शुक की राशि (2/7) हो किन्तु नवमांशकुंडली का लग्न शनि की राशि (10/11) में हों :
तो वह महिला बलात्कर आदि से पीड़ित हो सकती है।
वह स्वयं नारि सुलभ लज्जा को त्याग कर सकती है।
वह अति कामातुर या अतिक्रुध्द व्यवहार कर सकती है।
एक महिला जिसे दस्युसुंदरी कहा गया।
वह Member of Parliament भी बनी किन्तु भयंकर पापाचरण से पीड़ित हुई। (DOB-10-08-1963, 12.00, Bhind, MP)
योग संख्या-30 का यह एक सशक्त उदाहरण है।
आप स्वयं यह कुंडली बना कर ज्योतिष का चमत्कार देखें।
स्त्री जातक:- भाग-11.
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योग संख्या-31
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सर्वार्थ चिन्तामणि: अध्याय-6/62 के अनुसार:-
विवाह के पश्चात भाग्योदय:-
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भाग्यं विवाहात् परतो वदन्ति शुक्रे अस्तगे चोप चयान्विते वा।
कुटुंबमेता दृश भावयुक्ते लग्नेश्वरे वा शुभदृष्टि योगे।।
भावार्थ:- यदि किसी जातक का शुक्र :-
(क)- सातवें भाव में हो या
(ख)- उपचय 3, 6, 10 या 11 वे भाव में हो,या
(ग)- दूसरे भाव में हो,
और लग्नेश केन्द्र या त्रिकोण भावों में बैठ कर किसी शुभग्रह की दृष्टि में हो तो विवाह के पश्चात उसका भाग्योदय होता है।
योग संख्या-32
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सर्वार्थ चिन्तामणि: अध्याय-6/63. के अनुसार:-
विवाह के पश्चात भाग्यहीनता:-
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तत्कारके दारपतौ कुटुंबनाथे विलग्नाधिपतौ च द:स्थे।
नीच-अरि-मूढांशगते सपापे भाग्यं विवाहात् प्रविनाशमेति।।
भावार्थ:- यदि सप्तमेश, सप्तम का कारक ग्रह शुक्र, लग्नेश और धनेश ये चारों ग्रह यदि 6,8 या 12 वे भाव में हों तो विवाह के तुरन्त पश्चात दंपति के भाग्य की अवनति होती है।
योग संख्या-32
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अवनति के पश्चात पुन: उन्नति का योग:-
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ग्सर्वार्थ चिन्तामणि: अध्याय-6/ 64 वे श्लोक में कहते हैं:-
......
शुभान्विते शोभनदृष्टिपाते नाशात्परं भाग्य मुपैति जात:।।
भावार्थ:- यदि सप्तमेश, सप्तम का कारक ग्रह शुक्र, लग्नेश और धनेश ये चारों ग्रह यदि 6,8 या 12 वे भाव में हों,
किन्तु इन ग्रहों पर केवल शुभग्रह की दृष्टि हो तो अवनति के पश्चात दंपति के भाग्य की पुनः: उन्नति हो सकती है।
योग संख्या-33
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सदा भाग्यवती योग:-
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एव एक सुरराज पुरो वा कैन्द्रे गो अपि नव-पंचमगो वा।
शुभ ग्रहस्य विलोक्यतो वा, शेष खेचरबलेन न किंवा।।
किसी स्त्री जातक की जन्मपत्रिका के किसी केन्द्र या त्रिकोण भाव में (संख्या 1,4,7,10, 5,9, में) बृहस्पति स्थित हों और.....
इस बृहस्पति पर किसी शुभग्रह की दृष्टि हो
तो फिर आशुभ ग्रह कुछ नही कर सकते।
जीवन मंगलमय रहता है।
स्त्री जातक:- भाग-12.
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योग संख्या-34
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सौभाग्यवान जातिका
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सुगम ज्योतिष,जातकोध्याय-2राजयोग:02.
केन्द्रे च सौम्या यदि पृष्ठभाज (3,6,9,12) पा��: कलत्रभावे च मनुष्य राशे।
राज्ञी भवेत् स्त्री बहुकोष युक्ता, नित्यं प्रशान्ता च सुपुत्रिणी च।।
भावार्थ:- यदि किसी स्त्रीजातक की पत्रिका के जन्मलग्न में केन्द्र भावों में सौम्यग्रह (चंद्र,बुध,शुक्र और बृहस्पति) हों,
साथ ही 3,6,9 और 12वे भाव में पाप -क्रूर ग्रह (मंगल, शनि,राहु,केतु और सूर्य भी) एवं
सातवें भाव में नरराशि (विसमराशि) हो तो वह स्त्री बहुत धनवान, पुत्रवान और सौभाग्यवान होती है।
योग संख्या-35
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पतिव्रता जातिका:-
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सर्वार्थ चिंतामणि अध्याय-6/13 के अनुसार:-
स्वर्क्षे कुटुम्बपती कलत्र भावे यदा त्वेक कलत्र भाक् स्याता ।।
भावार्थ:- यदि किसी स्त्रीजातक की पत्रिका के जन्मलग्न में यदि कुटुम्ब भाव (2) और कलत्रभाव (7) का स्वामि अपनी राशि या अपनी उच्च राशि में हों तो जातिका एकनिष्ठ पतिव्रता रहती है।
पतिव्रता जातिका:-
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सर्वार्थ चिंतामणि अध्याय-6/43 के अनुसार:-
गुरु सहिते-दृष्टे दारनाथे बलान्विते। काले वा तथा भावे पतिव्रत परायणा।।
भावार्थ: यदि किसी स्त्रीजातक की पत्रिका के जन्मलग्न में यदि दारनाथ (7th lord) बलवान हो, बृहस्पति के साथ हो या बृहस्पति की दृष्टि में हो तथा
दारभाव (7th house) का स्थाई कारक ग्रह "शुक्र" बलवान हो तो जातिका एकनिष्ठ होती हैं।
पतिव्रता जातिका:-
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सर्वार्थ चिंतामणि अध्याय-6/45 के अनुसार:-
योग संख्या-36
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कलत्राधिपतौ केंद्र शुभग्रह निरीक्षिते। शुभांशे शुभराशौ वा पतिव्रता परायणा।।
भावार्थ:- यदि किसी जातिका का कलत्राधिपति (lord of 7th house)
क- केंद्रभाव में हो, या
ख- शुभराशियों (2,3,4,6,7,9,12) में हो या
ग- नवांश कुंडली में शुभराशियों (2,3,4,6,7, 9, 12) में हो, तथा
जन्मलग्नकुंडली में किसी नैसर्गिक शुभग्रह (बलवान बुध,शुक्र,चंद्र या बृहस्पति) से **देखा** जा रहा हो (युति नही ) तो जातिका् एकनिष्ठ पतिव्रता होती हैं।
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कुंडली में उत्तम संतान का योग।। Uttam Santan Ka Yoga. #astrology #balaji...
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।। नमो नमः ।। ।।भाग्यचक्र ।। आज का पञ्चाङ्ग :- संवत :- २०७९ दिनांक :- 02 जून 2022 सूर्योदय :- 05:41 सूर्यास्त :- 19:10 सूर्य राशि :- वृषभ चंद्र राशि :- मिथुन मास :- ज्येष्ठ तिथि :- तृतीया वार :- गुरुवार नक्षत्र :- आर्द्रा योग :- गंड करण :- तैतिल अयन:- उत्तरायण पक्ष :- शुक्ल ऋतू :- ग्रीष्म लाभ :- 12:24 - 14:06 अमृत:- 14:07 - 15:48 शुभ :- 17:28 - 19:09 राहु काल :- 14:07 - 15:48 जय श्री महाकाल :- *यदि कुंडली मे बृहस्पति कमजोर हो तो प्रभाव:-* कुटुम्ब में बिखराव और उचित सम्मान नही मिलेगा , वैवाहिक जीवन मे असंतोष, संतान सुख में कमी देगा। मोटापा देगा, लिवर की समस्या दे सकता है, धन आगमन में परेशानी, धर्म मे अरुचि रहेगी। आज का मंत्र :- ""|| ॐ बृं बृहस्पतये नमः।।||"" *🙏नारायण नारायण🙏* जय श्री महाकाल। माँ महालक्ष्मी की कृपा सदैव आपके परिवार पर बनी रहे। 🙏🌹जय श्री महाकाल🌹🙏 श्री महाकालेश्वर ज्योर्तिलिंग का आज का भस्म आरती श्रृंँगार दर्शन। 02 जून 2022 ( गुरुवार ) जय श्री महाकाल। सभी प्रकार के ज्योतिष समाधान हेतु। Whatsapp@9522222969 https://www.facebook.com/Bhagyachakraujjain शुभम भवतु ! 9522222969 https://www.instagram.com/p/CeSbkxKr0yA/?igshid=NGJjMDIxMWI=
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कुंडली में 12 भाव और मनुष्य जीवन में इसका महत्व क्या होता है ?
कुंडली में 12 भाव होते है। इनका मनुष्य जीवन पर बहुत गहरा असर पड़ता है। वैसे तो हर कोई जानना चाहता है कि उनके जीवन में क्या होगा किस तरह के ग्रह केसा पभाव छोड़ेंगे। आपको बेस्ट अस्त्रोलोगेर इन यु. इस. ये. की मदद से यह जानने में सहायता मिलेगी कि तरह से यह आपकी जिंदगी में प्रवेश कर आपकी पूरी जिंदगी को तहस नहस करके रख देते है। यह आपके लिए सही भी हो सकते है और गलत भी हो सकते है। इसके प्रभाव से आपकी जिंदगी में बहुत ही गहरा असर होता है। जो आपके लिए खतरनाक भी साबित हो सकते है। एक तरफ से देखा जाये तो यह सही भी होते है क्योंकि इनका सही दिशा में चलना आपके लिए बहुत फायदेमंद होता है। सही तरीके से किया ��ाम सफलता के 100 दरवाजे खोलता है।
ठीक वैसे ही इनका प्रभाव होता है जो आपकी जिंदगी में बहुत असरदार होते है। यह आपके लिए उच्चित हो सकते है। इसका इस्तेमाल जरूर करे। हर कोई जनता है कि सही और मेहनत से किया गया काम ही उच्चित होता है।
कुंडली में 12 भाव
बेस्ट अस्त्रोलोगेर इन यु. इस. ये. के अनुसार जाने कुंडली के भाव क्या है और कैसे होते है ?
प्रथम स्थान लग्न होता है जिसमे के व्यक्तित्व, रूप, रंग, आत्म विश्वास, अभिमान, यश-अपयश, सुख-दुख के भावो को पंडित जी देखकर बताते है कि यह किस तरह से अपने जीवन को व्यतीत करेगा। इससे मनुष्य का चरित्र, खुद की कमाई, मकान तथा उसके कोने, दिमागी ताकत, पिछले जन्म का साथ लाया धन, वर्तमान जन्म नियत, पूर्व दिशा और दूसरे से संबंध को परखा जा सकता है।
द्विती भाव में धन लाभ, आर्थिक स्थिति, वाणी, जीभ, संपत्ति, कुटुंब को देखा जा सकता है जिससे कि पत्नी के ससुराल वालो के साथ संबंध किस तरह के होंगे इसको परखा जाता है। धन के लाभ को भी जांचा जा सकता है।
तृतीय भाव में धंधा, भवन, भाई, लेखा जोखा देखा जाता है। इसमें भाई के साथ संबंध को परखा जा सकता है। यह त्रिलोकी का भेद खोलने वाला बन जाता है। इससे आप अपने भाई के बारे जितनी चाहे उतनी जानकारी निकलवा सकते है।
चतुर्थ भाव में माता सुख, शांति, गृह सुख, भूमि, मन, सेहत, सम्मान, पदवी, वाहन सुख, स्तन, छाती को देखा जा सकता है। यह माता और सुख को आपकी जिंदगी में लाता है। बहुत ही प्रिये भाव है जिसकी किस्मत यह होता है उसकी किस्मत चमक जाती है।
पंचम भाव में संतान सुख, प्रेम, शिक्षण, प्रवास, यश, भविष्य, आर्थिक लाभ को देखा जा सकता है। यह संतान से सुख प्राप्ति, भाग्य और धन के राज को खोलने वाला भाव होता है।
षष्ठम भाव से रोग, शोक, शरीर व्याधी त्रास, शत्रु, मामा, नोकर, चाकर, मानसिक क्लेश को देखा जा सकता है। इसमें चाल ढाल, मामा, साले, बहनोई, शरीरिक और आध्यात्मिक शक्तियां, रिश्तेदारों से प्राप्त चीजें और बीमारी का ��ाल बताया जा सकता है।
सप्तम भाव में पत्नी, पति सुख, वैवाहिक सुख, कोर्ट कचेरी, साझेदारी का कार्य, आकर्षण, यश, अपयश को देखा जा सकता है। इसमें विवाह, संपत्ति, खान पान, परवरिश, पूर्वजन्म का धन, चेहरे की चमक, समझदारी, लड़की, बहन, पोती के बारे में पता लगवाया जा सकता है।
अष्टम भाव में मृत्यु, शोक, दु:ख, आर्थिक संकट, नपुंसकता, अनीती, भ्रष्टाचार, तंत्र कर्म को देखा जा सकता है। यह मृत्यु का घर है इसे श्मशान कहा जाता है। अगर न्र ग्रह अकेला हो तो यह मृत्यु का घर नहीं माना जाता है।
नवम भाव में प्रवास, आध्यात्मिक प्रगति, ग्रंथ लेखन, बुद्धिमत्ता, दूसरा विवाह, भाग्य, बहिन, विदेश योग, साक्षात्कार का पता लगाया जा सकता है। इंसान पिछले जन्म से क्या लेके आया है और भाग्य कितना ज्यादा जोर दार है।
दशम भाव में कर्म, व्यापार, नौकरी, पितृ सुख, पद प्रतिष्ठा, राजकाज, अधिकार, सम्मान को देखा जा सकता है और इसमें खुद की जायजाद, पिता का सुख, गमी, बेईज्जती, मक्कारी, होशियारी, इंसाफ, पद प्रतिष्ठा का पता लगाया जा सकता है।
एकादश भाव से मित्र, जमाई, लाभ, धन लाभ, भेंट वस्तु, भिन्नलिंगी से संबंध को देखा जा सकता है और यह आय का घर है बचत का नहीं है।
द्वादश भाव से कर्ज, नुकसान, व्यसन, त्रास, संन्यास, अनैतिकता, उपभोग, आत्महत्या, शय्यासुख को देखा जा सकता है। इसमें अचानक से कुछ होना जैसे कि विचार का आना, घटना का घटना और गुप्त बातों का पता चलना। इसमें ग्रह को देखा जाता है। ग्रह ही आपके बारे में जानकारी देते है।
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पुखराज रत्न किन जातकों को धारण करना चाहिए? जानें पुखराज धारण करने के सभी फायदे
पिछले लेख में हम ज्योतिष में बताए गए सभी प्रमुख रत्नों व उनसे संबंधित ग्रहों के बारे में विस्तार से जान चुके हैं । उसी क्रम में आज हम जानेंगे कि पुखराज रत्न क्या होता है? पुखराज क्या काम करता है? इसके साथ ही यह भी जानेंगे कि किन जातकों को पुखराज रत्न धारण करना चाहिए? साथ ही पुखराज रत्न पहनने से होने वाले सभी लाभों का विस्तार से विश्लेषण भी आज के लेख में किया जाएगा ।
जानिए ज्योतिष के अनुसार कौन सा रत्न आपके लिए शुभ रहेगा। सर्वश्रेष्ठ ज्योतिषियों से ऑनलाइन परामर्श लें और अपनी समस्याओं का सर्वोत्तम समाधान प्राप्त करें। अभी संपर्क करें।
पुखराज रत्न कब धारण किया जाता है?
जन्म कुंडली के योग कारक ग्रह यानि जो ग्रह आपके लिए लाभकारी हैं, उन्हे बल देने के लिए पुखराज रत्न धारण किया जाता है । जन्म कुंडली में योग कारक व मारक ग्रहों का आपको विशेष ध्यान रखना है क्योंकि जो ग्रह आपके लिए लाभकारी नहीं है या फिर आपको नुकसान पहुँचाने वाला है, अगर रत्न धारण करने से उसे बल प्राप्त हो रहा है तो आपको अत्यधिक नुकसान उठाना पड़ सकता है ।
जिन जातकों की जन्म कुंडली में बृहस्पति कारक ग्रह हों उनके लिए पुखराज रत्न शुभ माना जाता है। जब आपकी जन्म कुंडली में बृहस्पति कमजोर स्थिति में हों या बलहीन हों तो उन्हें बल प्रदान करने के लिए पुखराज रत्न धारण करना चाहिए। पुखराज धारण करने से बृहस्पति को बल मिलता है और जन्म कुंडली में बृहस्पति क��� मजबूत होने के अनगिनत फायदे हैं ।
पुखराज रत्न धारण करने के लाभ-
पुखराज रत्न धारण करने से होने वाले प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं –
पुखराज रत्न परिवार का कारक है। इसे धारण करने से जातक के परिवार में सुख समृद्धि आती है और पारिवारिक संबंधों में मिठास देखने को मिलती है।
पुखराज रत्न नौकरी में आने वाली समस्याओं को भी दूर करता है । अगर जातक को नौकरी प्राप्त करने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है या फिर नौकरी में पदोन्नति नहीं हो रही है, तो पुखराज रत्न इसमें आपकी मदद कर सकता है ।
व्यापार में आने वाली समस्याओं को भी पुखराज रत्न के सहयोग से दूर किया जा सकता है । इसे धारण करने से व्यापार में लाभ का योग बनता है ।
बृहस्पति ज्ञान के कारक ग्रह हैं । पुखराज रत्न से बृहस्पति को बल मिलता है यानि इस बात में कोई संदेह नहीं है कि पुखराज रत्न धारण करने से ज्ञान व बुद्धि से जुड़े कार्यों में सफलता अवश्य प्राप्त होती है ।
संतान से संबंधित किसी समस्या को दूर करने के लिए भी पुखराज रत्न को धारण किया जाता है ।
ऐसा जातक जिसके विवाह में किसी प्रकार की अड़चन आ रही हो, पुखराज रत्न धारण करने से विवाह से संबंधित अड़चन दूर होगी व धूमधाम से विवाह सम्पन्न होगा ।
पुखराज रत्न जातक को मानसिक स्थिरता व शांति भी प्रदान करता है। मानसिक स्वास्थ्य जातक को अन्य क्षेत्रों में बेहतर करने के लिए प्रेरित करता है ।
यह भी पढ़ें:- किसी नए कार्य को प्रारंभ करने के लिए इन शुभ दिनों का रखें ध्यान
पुखराज रत्न धारण करने के लिए शुभ धातु -
पुखराज रत्न धारण करने के लिए स्वर्ण धातु सर्वाधिक शुभ मानी जाती है । अगर किसी जातक की आर्थिक स्थिति स्वर्ण धातु पहनने की अनुमति नहीं देती है तो वह जातक पीतल धातु के साथ पुखराज धारण कर सकता है ।
पुखराज रत्न किस उंगली में धारण करें?
पुखराज रत्न हाथ की पहली उंगली यानि तर्जनी उंगली में धारण करने से सर्वाधिक शुभ फल प्राप्त होता है । पुरुष जातक इसको दायें हाथ में धारण करें और महिला जातक पुखराज को बाएं हाथ में धारण करें।
पुखराज रत्न धारण करने का शुभ मुहूर्त-
शुक्ल पक्ष में बृहस्पतिवार का दिन पुखराज रत्न को धारण करने का शुभ समय माना गया है ।
निष्कर्ष-
इस प्रकार से हमने पुखराज रत्न को धारण करने की सम्पूर्ण विधि व उससे होने वाले फ़ायदों का विस्तार से विश्लेषण किया ।
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💐आपकी कुंडली ओर सन्तान सुख 💐
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💐संतान’... यह एक ऐसा शब्द है जिसका महत्व माता-पिता से अधिक ना कोई समझ सकता है और ना ही इस एहसास को समझा सकता है।##########################💐शादी के कुछ सालों बाद हर दंपति को #संतान सुख हासिल करने की चाहत होती है। महिलाओं के लिए तो मातृत्व सुख की अनुभूति का वर्णन करना भी आसान नहीं है
💐। लेकिन क्या आप जानते हैं कि संतान सुख की प्राप्ति होगी या नहीं ये कुंडली में ग्रहों की कैसी दशा है इस पर भी निर्भर करता है।
💐जन्म कुंडली में संतान योग जन्म कुंडली में संतान विचारने के लिए पंचम भाव का अहम रोल होता है। पंचम भाव से संतान का विचार करना चाहिए
💐। दूसरे संतान का विचार करना हो तो सप्तम भाव से करना चाहिए। तीसरी संतान के बारे में जानना हो तो अपनी जन्म कुंडली के भाग्य स्थान से विचार करना चाहिए भाग्य स्थान यानि नवम भाव से करें।*
💐संतान प्राप्ति के समय को जानने के लिए पंचम भाव, पंचमेश अर्थात पंचम भाव का स्वामी, पंचम कारक गुरु, पंचम भाव में स्थित ग्रह, पंचम भाव और पंचमेश पर दृष्टियों पर ध्यान देना चाहिए।
💐गोचर में जब ग्रह पंचम भाव पर या पंचमेश पर या पंचम भाव में बैठे ग्रहों के भावों पर गोचर करता है तब संतान सुख की प्राप्ति का समय होता है
💐।यदि गुरु गोचरवश पंचम, एकादश, नवम या लग्न में भ्रमण करे तो भी संतान लाभ की संभावना होती है। जब गोचरवश लग्नेश, पंचमेश तथा सप्तमेश एक ही राशि में भ्रमण करे तो संतान लाभ होता है।
💐*संतान सुख मे परेशानी के योग-💐💐*
1* कुंडली मे उपरोक्त 1 ग्रह निर्बल पाप ग्रह अस्त ,शत्रु –नीच राशि में लग्न से 6,8 12 वें भाव में स्थित हों , तो संतान प्राप्ति में बाधा आती है |*
2*पंचम भाव: राशि ( वृष ,सिंह कन्या ,वृश्चिक ) हो तो कठिनता से संतान होती है |*
3*पंचम भाव में क्रूर, पापी ग्रहों की मौज़ूदगी*
4*पंचम भाव में बृहस्पति की मौजूदगी*
5*पंचम भाव पर क्रूर, पापी ग्रहों की दृष्टि*
6*पंचमेश का षष्ठम, अष्टम या द्वादश में जाना*
7*पंचमेश की पापी, क्रूर ग्रहों से युति या दृष्टि संबंध।*
8*पंचम भाव, पंचमेश व संतान कारक बृहस्पति तीनों ही पीड़ित हों।*
9*नवमांश कुण्डली में भी पंचमेश का शत्रु, नीच आदि राशियों में स्थित होना।*
10*पंचम भाव व पंचमेश को कोई भी शुभ ग्रह न देख रहे हों संतानहीनता की स्थिति बन जाती है।*
💐💐ये सभी स्थितियां सन्तान सुख में विलम्ब ओर अवरोधक होती है
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