#काशी विश्वनाथ की मान्यता
Explore tagged Tumblr posts
Text
12 ज्योतिर्लिंगों में से सातवां ज्योतिर्लिंग काशी विश्वनाथ है। इसके दर्शन मात्र से ही लोगों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
🍁 काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग 🍁
वाराणसी एक ऐसा पावन स्थान है जहाँ काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग विराजमान है। यह शिवलिंग काले चिकने पत्थर का है।
काशी, यानि कि वाराणसी सबसे प्राचीन नगरी है। 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ मणिकर्णिका भी यहीं स्थित है। इस मंदिर का कई बार जीर्णोंद्धार हुआ। इस मंदिर के बगल में ज्ञानवापी है।
12 ज्योतिर्लिंगों में से इस ज्योतिर्लिंग का बहुत महत्त्व है। इस ज्योतिर्लिंग पर पंचामृत से अभिषेक होता रहता है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान मरते हुए प्राणियों के कानों में तारक मंत्र बोलते हैं। जिससे पापी लोग भी भव सागर की बाधाओं से मुक्त हो जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि काशी नगरी का प्रलय काल में अंत नहीं होगा।
शिवपुराण के अनुसार काशी में देवाधिदेव विश्वनाथजी का पूजन-अर्चन सर्व पापनाशक, अनंत अभ्युदयकारक, संसाररूपी दावाग्नि से दग्ध जीवरूपी वृक्ष के लिए अमृत तथा भवसागर में पड़े प्राणियों के लिए मोक्षदायक माना जाता है।
ऐसी मान्यता है कि वाराणसी में मनुष्य के देहावसान पर स्वयं महादेव उसे मुक्तिदायक तारक मंत्र का उपदेश करते हैं।
पौराणिक मान्यता है कि काशी में लगभग 511 शिवालय प्रतिष्ठित थे। इनमें से 12 स्वयंभू शिवलिंग, 46 देवताओं द्वारा, 47 ऋषियों द्वारा, 7 ग्रहों द्वारा, 40 गणों द्वारा तथा 294 अन्य श्रेष्ठ शिवभक्तों द्वारा स्थापित किए गए हैं।
काशी या वाराणसी भगवान शिव की राजधानी मानी जाती है इसलिए अत्यंत महिमामयी भी है।
अविमुक्त क्षेत्र, गौरीमुख, त्रिकंटक विराजित, महाश्मशान तथा आनंद वन प्रभृति नामों से मंडित होकर गूढ़ आध्यात्मिक रहस्यों वाली है काशी।
प्रलय काल के समय भगवान शिव जी काशी नगरी को अपने त्रिशूल पर धारण कर लेंगे। भगवान शिव जी को विश्वेश्वर और विश्वनाथ नाम से भी पुकारा जाता है। पुराणों के अनुसार इस नगरी को मोक्ष की नगरी कहा जाता है।
सावन के महीने में भगवान शिव जी के ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने का विशेष महत्त्व है।
काशी विश्वनाथ मंदिर के प्रसिद्धि का कारण--
जो यहां है वो कहीं और नहीं विश्व प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी में गंगा नदी के तट पर विद्यमान हैं। द्वादश ज्योतिर्लिंग में प्रमुख काशी विश्वनाथ जहां वाम रूप में स्थापित बाबा विश्वनाथ शक्ति की देवी मां भगवती के साथ विराजे हैं। मान्यता है कि पवित्र गंगा में स्नान और काशी विश्वनाथ के दर्शन मात्र से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
श्रृंगार के समय सारी मूर्तियां पश्चिम मुखी होती हैं। इस ज्योतिर्लिंग में शिव और शक्ति दोनों साथ ही विराज���े हैं, जो अद्भुत है। ऐसा दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिलता है।
विश्वनाथ दरबार में गर्भगृह का शिखर है। इसमें ऊपर की ओर गुंबद श्री यंत्र से मंडित है।
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग दो भागों में है। दाहिने भाग में शक्ति के रूप में मां भगवती विराजमान हैं। दूसरी ओर भगवान शिव वाम रूप (सुंदर) रूप में विराजमान हैं। इसीलिए काशी को मुक्ति क्षेत्र कहा जाता है।
बाबा विश्वनाथ के दरबार में तंत्र की दृष्टि से चार प्रमुख द्वार इस प्रकार हैं। शांति द्वार, कला द्वार, प्रतिष्ठा द्वार, निवृत्ति द्वार। इन चारों द्वारों का तंत्र की दुनिया में में अलग ही स्थान है। पूरी दुनिया में ऐसा कोई जगह नहीं है जहां शिवशक्ति एक साथ विराजमान हों और साथ में तंत्र द्वार भी हो।बाबा का ज्योतिर्लिंग गर्भगृह में ईशान कोण में मौजूद है।
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग कथा
कथा (1)--
इस ज्योतिर्लिंग के विषय में एक कथा है। जो इस प्रकार है –
भगवान शिव जी अपनी पत्नी पार्वती जी के साथ हिमालय पर्वत पर रहते थे। भगवान शिव जी की प्रतिष्ठा में कोई बाधा ना आये इसलिए पार्वती जी ने कहा कि कोई और स्थान चुनिए।
शिव जी को राजा दिवोदास की वाराणसी नगरी बहुत पसंद आयी। भगवान शिव जी के लिए शांत जगह के लिए निकुम्भ नामक शिवगण ने वाराणसी नगरी को निर्मनुष्य कर दिया। लेकिन राजा को दुःख हुआ। राजा ने घोर तपस्या करके ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और उनसे अपना दुःख दूर करने की प्रार्थना की।
दिवोदास ने बोला कि देवता देवलोक में रहे, पृथ्वी तो मनुष्यों के लिए है। ब्रह्मा जी के कहने पर शिव जी मंदराचल पर्वत पर चले गए। वे चले तो गए लेकिन काशी नगरी के लिए अपना मोह नहीं त्याग सके। तब भगवान विष्णु जी ने राजा को तपोवन में जाने का आदेश दिया। उसके बाद वाराणसी महादेव जी का स्थायी निवास हो गया और शिव जी ने अपने त्रिशूल पर वाराणसी नगरी की स्थापना की।
कथा (2)--
एक और कथा प्रचलित है। एक बार ब्रह्मा जी और विष्णु भगवान में बहस हो गयी थी कि कौन बडा है। तब ब्रह्मा जी अपने वाहन हंस के ऊपर बैठकर स्तम्भ का ऊपरी छोर ढूंढ़ने निकले और विष्णु जी निचला छोर ढूंढने निकले। तब स्तम्भ में से प्रकाश निकला।
उसी प्रकाश में भगवान शिव जी प्रकट हुए। विष्णु जी ने स्वीकार किया कि मैं अंतिम छोर नहीं ढूंढ सका। लेकिन ब्रह्मा जी ने झूठ कहा कि मैंने खोज लिया। तब शिव जी ने ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि उनकी पूजा कभी नहीं होगी क्योंकि खुद की पूजा कराने के लिए उन्होंने झूठ बोला था। तब उसी स्थान पर शिव जी ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हो गए।
कथा (3)--
एक ये भी मान्यता है कि भगवान शिव जी अपने भक्त के सपने में आये और कहा कि तुम गंगा में स्नान करोगे उसके बाद तुम्हे दो शिवलिंगों के दर्शन होंगे। उन दोनों शिवलिंगों को तुम्हे जोड़कर स्थापित करना होगा। तब दिव्य शिवलिंग की स्थापना ��ोगी। तब से ही भगवान शिव माँ पार्वती जी के साथ यहाँ विराजमान हैं।
काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास
द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख काशी विश्वनाथ मंदिर अनादिकाल से काशी में है। यह स्थान शिव और पार्वती का आदि स्थान है इसीलिए आदिलिंग के रूप में अविमुक्तेश्वर को ही प्रथम लिंग माना गया है। इसका उल्लेख महाभारत और उपनिषद में भी किया गया है। ईसा पूर्व 11वीं सदी में राजा हरिश्चन्द्र ने जिस विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था उसी का सम्राट विक्रमादित्य ने जीर्णोद्धार करवाया था। उसे ही 1194 में मुहम्मद गौरी ने लूटने के बाद तुड़वा दिया था।
इतिहासकारों के अनुसार इस भव्य मंदिर को सन् 1194 में मुहम्मद गौरी द्वारा तोड़ा गया था। इसे फिर से बनाया गया, लेकिन एक बार फिर इसे सन् 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह द्वारा तोड़ दिया गया। पुन: सन् 1585 ई. में राजा टोडरमल की सहायता से पं. नारायण भट्ट द्वारा इस स्थान पर फिर से एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया। इस भव्य मंदिर को सन् 1632 में शाहजहां ने आदेश पारित कर इसे तोड़ने के लिए सेना भेज दी।
सेना हिन्दुओं के प्रबल प्रतिरोध के कारण विश्वनाथ मंदिर के केंद्रीय मंदिर को तो तोड़ नहीं सकी, लेकिन काशी के 63 अन्य मंदिर तोड़ दिए गए।
डॉ. एएस भट्ट ने अपनी किताब 'दान हारावली' में इसका जिक्र किया है कि टोडरमल ने मंदिर का पुनर्निर्माण 1585 में करवाया था। 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने एक फरमान जारी कर काशी विश्वनाथ मंदिर ध्वस्त करने का आदेश दिया। यह फरमान एशियाटिक लाइब्रेरी, कोलकाता में आज भी सुरक्षित है। उस समय के लेखक साकी मुस्तइद खां द्वारा लिखित 'मासीदे आलमगिरी' में इस ध्वंस का वर्णन है।
औरंगजेब के आदेश पर यहां का मंदिर तोड़कर एक ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई।
2 सितंबर 1669 को औरंगजेब को मंदिर तोड़ने का कार्य पूरा होने की सूचना दी गई थी। औरंगजेब ने प्रतिदिन हजारों ब्राह्मणों को मुसलमान बनाने का आदेश भी पारित किया था।
सन् 1752 से लेकर सन् 1780 के बीच मराठा सरदार दत्ताजी सिंधिया व मल्हारराव होलकर ने मंदिर मुक्ति के प्रयास किए। 7 अगस्त 1770 ई. में महादजी सिंधिया ने दिल्ली के बादशाह शाह आलम से मंदिर तोड़ने की क्षतिपूर्ति वसूल करने का आदेश जारी करा लिया, परंतु तब तक काशी पर ईस्ट इंडिया कंपनी का राज हो गया था इसलिए मंदिर का नवीनीकरण रुक गया।
1777-80 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई द्वारा इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया था।
अहिल्याबाई होलकर ने इसी परिसर में विश्वनाथ मंदिर बनवाया जिस पर पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने सोने का छत्र बनवाया। ग्वालियर ��ी महारानी बैजाबाई ने ज्ञानवापी का मंडप बनवाया और महाराजा नेपाल ने वहां विशाल नंदी प��रतिमा स्थापित करवाई।
सन् 1809 में काशी के हिन्दुओं ने जबरन बनाई गई मस्जिद पर कब्जा कर लिया था, क्योंकि यह संपूर्ण क्षेत्र ज्ञानवापी मंडप का क्षेत्र है जिसे आजकल ज्ञानवापी मस्जिद कहा जाता है। 30 दिसंबर 1810 को बनारस के तत्कालीन जिला दंडाधिकारी मि. वाटसन ने 'वाइस प्रेसीडेंट इन काउंसिल' को एक पत्र लिखकर ज्ञानवापी परिसर हिन्दुओं को हमेशा के लिए सौंपने को कहा था, लेकिन यह कभी संभव नहीं हो पाया।
इतिहास की किताबों में 11 से 15वीं सदी के कालखंड में मंदिरों का जिक्र और उसके विध्वंस की बातें भी सामने आती हैं। मोहम्मद तुगलक (1325) के समकालीन लेखक जिनप्रभ सूरी ने किताब 'विविध कल्प तीर्थ' में लिखा है कि बाबा विश्वनाथ को देव क्षेत्र कहा जाता था।
लेखक फ्यूरर ने भी लिखा है कि फिरोजशाह तुगलक के समय कुछ मंदिर मस्जिद में तब्दील हुए थे। 1460 में वाचस्पति ने अपनी पुस्तक 'तीर्थ चिंतामणि' में वर्णन किया है कि अविमुक्तेश्वर और विशेश्वर एक ही लिंग है।
काशी विश्वेश्वर लिंग ज्योतिर्लिंग है जिसके दर्शन से मनुष्य परम ज्योति को पा लेता है। सभी लिंगों के पूजन से सारे जन्म में जितना पुण्य मिलता है, उतना केवल एक ही बार श्रद्धापूर्वक किए गए 'विश्वनाथ' के दर्शन-पूजन से मिल जाता है। माना जाता है कि सैकड़ों जन्मों के पुण्य के ही फल से विश्वनाथजी के दर्शन का अवसर मिलता है।
गंगा नदी के तट पर विद्यमान श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में वैसे तो सालभर यहां श्रद्धालुओं द्वारा पूजा-अर्चना के लिए आने का सिलसिला चलता रहता है, लेकिन सावन आते ही इस मोक्षदायिनी मंदिर में देशी-विदेशी श्रद्धालुओं का जैसे सैलाब उमड़ पड़ता है।विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में उपलब्ध जानकारी के मुताबिक यह सिलसिला प्राचीनकाल से चला आ रहा है।
इस मंदिर में दर्शन-पूजन के लिए आने वालों में आदिशंकराचार्य, संत एकनाथ, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद, गोस्वामी तुलसीदास जैसे सैकड़ों महापुरुष शामिल हैं।
काशी विश्वनाथ की महत्ता---
भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में शामिल उत्तरप्रदेश की प्राचीन धार्मिक नगरी काशी या वाराणसी
तीनों लोकों में न्यारी इस धार्मिक नगरी में हजारों साल पूर्व स्थापित श्री काशी विश्वनाथ मंदिर विश्वप्रसिद्ध है। हिन्दू धर्म में सर्वाधिक महत्व के इस मंदिर के बारे में कई मान्यताएं हैं।
माना जाता है कि भगवान शिव ने इस 'ज्योतिर्लिंग' को स्वयं के निवास से प्रकाशपूर्ण किया है। पृथ्वी पर जितने भी भगवान शिव के स्थान हैं, वे सभी वाराणसी में भी उन्हीं के सान्निध्य में मौजूद हैं। भगवान शिव मंद�� पर्वत से काशी आए तभी से उत्तम देवस्थान नदियों, वनों, पर्वतों, तीर्थों तथा द्वीपों आदि सहित काशी पहुंच गए।
विभिन्न ग्रंथों में मनुष्य के सर्वविध अभ्युदय के लिए काशी विश्वनाथजी के दर्शन आदि का महत्व विस्तारपूर्वक बताया गया है। इनके दर्शन मात्र से ही सांसारिक भयों का नाश हो जाता है और अनेक जन्मों के पाप आदि दूर हो जाते हैं.
काशी विश्वेश्वर लिंग ज्योतिर्लिंग है जिसके दर्शन से मनुष्य परम ज्योति को पा लेता है। सभी लिंगों के पूजन से सारे जन्म में जितना पुण्य मिलता है, उतना केवल एक ही बार श्रद्धापूर्वक किए गए 'विश्वनाथ' के दर्शन-पूजन से मिल जाता है। माना जाता है कि सैकड़ों जन्मों के पुण्य के ही फल से विश्वनाथजी के दर्शन का अवसर मिलता है।
गंगा नदी के तट पर विद्यमान श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में वैसे तो सालभर यहां श्रद्धालुओं द्वारा पूजा-अर्चना के लिए आने का सिलसिला चलता रहता है, लेकिन सावन आते ही इस मोक्षदायिनी मंदिर में देशी-विदेशी श्रद्धालुओं का जैसे सैलाब उमड़ पड़ता है।
प्रलय काल के समय भगवान शिव जी काशी नगरी को अपने त्रिशूल पर धारण कर लेंगे। भगवान शिव जी को विश्वेश्वर और विश्वनाथ नाम से भी पुकारा जाता है। पुराणों के अनुसार इस नगरी को मोक्ष की नगरी कहा जाता है।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रांगण में भी एक विश्वनाथ का मंदिर बनाया गया है। कहा जाता है कि इस मंदिर का भी उतना ही महत्त्व है जितना पुराने विश्वनाथ मंदिर का है। इस नए मंदिर के विषय में एक कहानी है जो मदन मोहन मालवीय से जुडी हुई है। मालवीय जी शिव जी के उपासक थे। एक दिन उन्होंने शिव भगवान की उपासना की तब उन्हें एक भव्य मूर्ति के दर्शन हुए।
जिससे उन्हें आदेश मिला कि बाबा विश्वनाथ की स्थापना की जाये। तब उन्होंने वहां मंदिर बनवाना शुरू करवाया लेकिन वे बीमार हो गए तब यह जानकार उद्योगपति युगल किशोर विरला ने इस मंदिर की स्थापना का कार्य पूरा करवाया। यहाँ भी हजारों की संख्या में भक्तगण दर्शन करने के लिए आते हैं। विद्यालय प्रांगण में स्थापित होने के कारण यह विद्यार्थियों के लिए आकर्षण का केंद्र है।
0 notes
Text
Astrobhoomi- Happy New Year 2024 Wishes: नए वर्ष कि शुरुआत भगवान के दर्शन से शुरू करें, शास्त्र भी यही कहते हैं।
Happy New Year 2024 Wishes: नए वर्ष कि शुरुआत भगवान के दर्शन से शुरू करें, शास्त्र भी यही कहते हैं। Happy New Year 2024 Wishes: नए वर्ष कि शुरुआत भगवान के दर्शन से शुरू करें, शास्त्र भी यही कहते हैं। दिसंबर 01, 2023 Historical History
Happy New Year 2024 Wishes: नए वर्ष कि शुरुआत भगवान के दर्शन से शुरू करें, शास्त्र भी यही कहते हैं।
Happy New Year 2024 Wishes: नए वर्ष कि शुरुआत भगवान के दर्शन से शुरू करें, शास्त्र भी यही कहते हैं। राम मंदिर इमेजेस। Historical History MNG Image source: social media
Happy New Year 2024 Wishes: आपको बता दें कि शास्त्रों में भी कहा गया कि भगवान के दर्शन से अगर किसी भी शुभ काम की शुरुआत की जाए तो हर काम बन जाता है। जिससे तरक्की और खुशहाली आती है। नए वर्ष की शुरुआत मंदिर में दर्शन के साथ करना ही चाहिए।
Happy New Year 2024 Wishes: नया वर्ष नई उम्मीद और सकारात्मक ऊर्जा के साथ आता है। हमारी कामना है की आने वाला साल 2024 जीवन में खुशियां और समृद्धि लेकर आए। बता दें कि इस कामना से बड़ी संख्या में लोग नए साल की शुरुआत मंदिर में भगवान के दर्शन के साथ शुरू करते हैं। शास्त्रों में भी कहा गया है कि भगवान के दर्शन से अगर किसी शुभ काम की शुरुआत की जाए तो बिगड़ा हर काम बन जाता है। इससे तरक्की और खुशहाली का भी आगमन होता है। अगर आप भी नए साल (New Year 2024) में खास मंदिरों के दर्शन कर आर्शीवाद लेना चाहते हैं तो इन 7 मंदिरों में दर्शन कर साल की शुरुआत करें…
माता वैष्णो देवी मंदिर (Mata Vaishno Devi Temple)
Happy New Year 2024 Wishes: नए साल की शुरुआत आप माता वैष्णो देवी मंदिर में दर्शन से कर सकते हैं। बता दें कि इस दिन बड़ी संख्या में लोग माता के दर्शन करने जाते हैं। इसकी बुकिंग पहले से ही चलती रहती है। माना जाता है कि माता वैष्णो देवी के दर्शन से ही हर मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं और अपने भक्तो को हमेशा खुश हाल रखती हैं।
Happy New Year 2024 Wishes: नए वर्ष कि शुरुआत भगवान के दर्शन से शुरू करें, शास्त्र भी यही कहते हैं। माता वैष्णो देवी मंदिर इमेजेस। Historical History MNG Image source: social media
ये भी पढ़ें: माता वैष्णो देवी मंदिर (Mata Vaishno Devi Temple) के बारे में सम्पूर्ण जानकारी जानें।
सिद्धि विनायक मंदिर, मुंबई
Happy New Year 2024 Wishes: बता दें कि मुंबई का सिद्धिविनायक मंदिर दुनियाभर में फेमस है। यहां हर समय भक्तों का आना जाना लगा रहता है। साल के पहले दिन यहां श्रद्धालुओं का मेला लगता है। मान्यता ये है कि बप्पा का दर्शन करने से भक्त खाली हाथ कभी नहीं जाते हैं। दर्शन मात्र से ही गणपति भक्त के बड़े - बड़े संकट दूर हो जाते हैं।
महाकाल मंदिर, उज्जैन
Happy New Year 2024 Wishes: बता दें कि महाकाल नगरी उज्जैन के राजाधिराज महाकाल हैं। द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन से हर तरह के दुख संकट दूर हो जाते हैं और जीवन में खुशहाली आती है। देश-विदेश से लाखों की भीड़ में श्रद्धालु महाकाल के दर्शन करने जाते हैं। हर दिन मंदिर की भस्म आरती देखने लायक होता है। बाबा महाकाल के दर्शन से खुशहाली और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी
Happy New Year 2024 Wishes: बता दें कि वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर का दर्शन कर नववर्ष की शुरुआत बेहद खास हो सकती है। बाबा भोलेनाथ की त्रिशूल पर बसी काशी में स्विम महादेव निवास करते हैं। यहां की गंगा आरती दुनिया की कोने - कोने में मशहूर है। बाबा विश्वनाथ का दर्शन करने नए साल पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।
बांके बिहारी मंदिर, मथुरा
Happy New Year 2024 Wishes: श्रीकृष्ण जन्मभूमि ,जन्मस्थली मथुरा में बांकेबिहारी का मंदिर है। नए साल की खुशियां को सेलिब्रेट करने बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं और बांके बिहारी का आर्शीवाद प्राप्त करते हैं। यहां आने से ही उनकी हर तकलीफ दुख समाप्त हो जाती है और कान्हा उनकी कामनाएं भी पूरी करते हैं। यहां आने वाला हर व्यक्ति श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन हो जाता है।
श्रीराम जन्मभूमि, अयोध्या
Happy New Year 2024 Wishes: आपको बता दें कि अयोध्या जाकर आप श्रीराम जन्मभूमि के दर्शन के साथ नए साल की शुरुआत कर सकते हैं। ये एक बहुत ही बड़ा आवास मिला है। बता दें कि प्रभु श्रीराम की जन्मस्थली सरयू नदी के किनारे है। प्रभु राम की स्थली सुबह औऱ शाम में बेहद खास होती है। यहां आकर आप हनुमानगढ़ी के दर्शन भी कर आर्शीवाद भी प्राप्त कर सकते हैं।
Happy New Year 2024 Wishes: नए वर्ष कि शुरुआत भगवान के दर्शन से शुरू करें, शास्त्र भी यही कहते हैं। राम मंदिर इमेजेस। Historical History MNG Image source: social media
तिरुपति बालाजी, आंध्र प्रदेश
Happy New Year 2024 Wishes: बता दें कि आंध्र प्रदेश में तिरुमला तिरुपति बालाजी का मंदिर दुनिया भर में काफी मशहूर है। देश - विदेश से यहां श्रद्धालु आर्शीवाद प्राप्त करने के लिए आते हैं। मंदिर में भगवान विष्णु Venkateswara अवतार में विराजमान हैं। यहां बड़ी संख्या में भक्त का मेला होता हैं। मान्यता है कि मंदिर में बालाजी भगवान के दर्शन से ही सारी मनोकामनाएं और कष्ट दूर हो जाते हैं।
ये भी पढ़ें: तिरुपति बालाजी मंदिर के बारे में सम्पूर्ण जानकारी जानें।
अगर संभव हो तो आप इन 7 मंदिरों में से किसी एक के दर्शन करने से आपका नव वर्ष की शुरुआत भगवान के आर्शीवाद से होगा जो कि आपके जीवन में सुख - समृद्धि और खुशहाली भर देगी। मैं अपनी तरफ से नव वर्ष की शुभकामनाए देता ह��। New Year 2024: नया साल सभी के जीवन में खुशियां लेकर आता है। ऐसे में लोगों को इसका बेसब्री से इंतजार है। नए साल के शुभ अवसर पर कुछ लोग खरीदारी करते हैं तो कुछ घूमने की योजना बनाते हैं। शास्त्रों के अनुसार इस दिन कुछ विशेष कार्य करने से पूरे साल सुख-समृद्���ि बनी रहती हैं। इस दौरान मोर का पंख खरीदना बेहद शुभ होता है। इसलिए लोग नए साल के शुभ अवसर पर इसे घर लाते हैं। साथ ही घर में पूजा पाठ का आयोजन भी किया जाता है।
इस दौरान कुछ लोग अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए योजनाएं भी बनाते हैं तो कुछ अपने अधूरे काम को पूरा करने का प्रण लेते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुछ काम ऐसे भी होते हैं जिनको नए साल पर करने से पूरे साल परेशानियां झेलन…
0 notes
Text
काशी विश्वनाथ कॉरिडोर में हादसा, मकान गिरने से दो मजदूरों की मौत
काशी विश्वनाथ कॉरिडोर में हादसा, मकान गिरने से दो मजदूरों की मौत
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट काशी विश्वनाथ के निर्माणाधीन परिसर में मंगलवार की अलग सुबह एक बड़ा हादसा हो गया. यहाँ पर दो मंजिला मकान गिरने से कोरिडोर के निर्माण कार्य में लगे दो मजदूरों की मौत हो गई जबकि आधा दर्जन मजदूर घायल हो गए. घायलों को शिव प्रसाद गुप्त अस्पताल में भर्ती कराया गया है. ये भी पढ़ें… कोरोना कर्फ्यू: 1 जून से 55 जिलों को राहत, बाकी में बढ़ेगी सख्ती मालदा के रहने…
View On WordPress
#Baba Kashi Vishwanath#Kashi#Kashi Vishwanath Corridor#Kashi Vishwanath Corridor Project#Kashi Vishwanath in Varanasi#Latest varanasi News#varanasi Latest News#Varanasi News in Hindi#काशी की विश्वनाथ मंदिर#काशी विश्वनाथ की मान्यता#काशी विश्वनाथ कॉरिडोर#काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की भव्यता#काशी विश्वनाथ कॉरिडोर परियोजना#काशी विश्वनाथ धाम
0 notes
Text
ज्ञानवापी मस्जिद हिन्दुओं के प्राचीन मंदिर काशी विश्वनाथ को तोड़कर बनाया गया था। इसी कारण समय समय पर ज्ञानवापी मस्जिद पर विवाद होते ही रहते हैं।
वर्तमान समय में कुछ महिलाओं की सर्वे करने की याचिका से ये विवाद फिर से गरमा गया हैं ।
5 महिलाओं ने वाराणसी की लोकल कोर्ट में अगस्त 2021 में माँ श्रृंगार गौरी के मंदिर में पूजा-अर्चना की मांग करते हुए एक याचिका दायर की जो की ज्ञानवापी मस्जिद के परिसर में हैं।
https://desigyani.com/2022/05/latest-news-what-is-puranic-history-of-gyanvapi-maszid.html
माँ श्रृंगार गौरी की पूजा को लेकर मान्यता है की चैत्र नवरात्रि के चौथे दिन देवी श्रृंगार गौरी की आराधना का विशेष महत्व है, इस दिन सुहागिन महिलाएं श्रृंगार गौरी को सिंदूर चढ़ाती हैं और अपने सुहाग की लंबी उम्र की कामना करती है। श्रृंगार और सौंदर्य की देवी श्रृंगार देवी की पूजा से जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
#gyanvapi news#desigyani#gyanvapi masjid#gyanvapi survey#kashi vishwanath mandir#gyanvapi controversy
0 notes
Text
Kashi Vishwanath Temple | काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास
Kashi Vishwanath Temple वाराणसी में पवित्र गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित, काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित 12 ज्योतिर्लिंगों या मंदिरों में से एक है।
Kashi Vishwanath Temple वाराणसी के सबसे प्रतिष्ठित मंदिरों में से एक, काशी विश्वनाथ मंदिर का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है। यह व्यापक रूप से माना जाता है कि पवित्र गंगा में डुबकी लगाने के बाद मंदिर की यात्रा मुक्ति या ‘मोक्ष’ प्राप्त करने का अंतिम तरीका है और इसी कारण से पूरे वर्ष भक्तों का तांता लगा रहता है। एक और मान्यता यह है कि विश्वनाथ मंदिर में स्वाभाविक रूप से मरने वाले लोगों के कानों में…
View On WordPress
#Kashi Vishwanath Temple#Kashi Vishwanath Temple in hindi#काशी विश्वनाथ#काशी विश्वनाथ मंदिर#काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास
0 notes
Photo
काशी विश्वनाथ मंदिर संस्कृत शब्द 'काशी' का अंग्रेजी में अर्थ है "चमकना" और 'विश्वनाथ' का अनुवाद "ब्रह्मांड के भगवान" से होता है, जो शिव को दर्शाता है। इतिहास माना जाता है कि 490 ईस्वी में बनाया गया था, काशी विश्वनाथ मंदिर को भारत के कई आक्रमणों के दौरान नष्ट कर दिया गया था और 1776 में इसे इंदौर की महारानी अहिल्या बाई द्वारा अपने वर्तमान राज्य में फिर से बनाया गया था। #ज्ञान #वापी #खैर म��दिर में एक छोटा कुआँ है जिसे ज्ञान वापी (ज्ञान कुआँ) कहा जाता है। ऐतिहासिक खातों का कहना है कि 2 सितंबर, 1669 को मुगल राजा # औरंगजेब के आक्रमण पर, मंदिर के मुख्य पुजारी आक्रमणकारियों से ज्योतिर्लिंग की रक्षा के लिए शिव लिंग के साथ कुएं में कूद गए और जल समाधि में रहे। सदियों बाद जब ज्योतिर्लिंग फिर से खोजा गया, तब भी वेदी पर दीया जल रहा था और फूल ताजे थे! महान संतों द्वारा देखा गया मंदिर में सभी महान संतों- आदि शंकराचार्य, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, गोस्वामी तुलसीदास, महर्षि दयानंद सरस्वती, गुरुनानक और कई अन्य आध्यात्मिक व्यक्तित्वों ने दौरा किया है। महत्व काशी विश्वनाथ मंदिर भारत की कालातीत सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परंपरा का एक जीवंत अवतार है। मंदिर पवित्र गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है, और शिव के बारह पवित्र ज्योतिर्लिंगों में से एक को स्थापित करता है, जिससे यह शिव मंदिरों में सबसे पवित्र में से एक है। हिंदू मान्यता में, ज्योतिर्लिंग उन जगहों पर स्थित हैं जहां शिव स्वयं प्रकाश के शाफ्ट के रूप में प्रकट हुए और अपने भक्तों को आशीर्वाद दिया, और जहां उनकी दिव्य उपस्थिति हमेशा के लिए जीवित है। मंदिर के मुख्य देवता को "विश्वनाथ" या "विश्वेश्वर" के नाम से जाना जाता है, जिसका अर्थ है ब्रह्मांड का शासक। विश्वनाथ मंदिर के पवित्र शिव लिंग को मंदिर के गर्भगृह में चांदी की वेदी पर रखा गया है। हालाँकि, इतिहास मानता है कि आक्रमणकारियों से विनाश के डर से, मूल विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग एक कुएँ के तल में छिपा हुआ था। ज्ञान वापी, या 'ज्ञान कुआं' के रूप में जाना जाता है, यह मंदिर की दीवारों के भीतर स्थित है और आज भी मूल ज्योतिर्लिंग को माना जाता है। 3500 वर्षों के प्रलेखित इतिहास के साथ दुनिया का सबसे पुराना जीवित शहर, मंदिर शहर को काशी भी कहा जाता है और इसलिए मंदिर को #काशी #विश्वनाथ #मंदिर के नाम से जाना जाता है। 15.5 मीटर ऊंचे स्वर्ण शिखर के कारण इस मंदिर को स्वर्ण मंदिर भी कहा जाता है। https://www.instagram.com/p/CYMLIIEPQRn/?utm_medium=tumblr
0 notes
Photo
जय माता अन्नपूर्णा देवी 🙏 (भोजन, धान, पोषण, पोषक तत्वों और खाद्य संसाधन की देवी) शोषिणीसर्वपापानांमोचनी सकलापदाम्।दारिद्र्यदमनीनित्यंसुख-मोक्ष-प्रदायिनी॥ सनातन धर्म में मां अन्नपूर्णा (Maa Annapurna Devi) को मां जगदंबा का ही एक रूप माना गया है, जिनसे संपूर्ण विश्व का संचालन होता है. मां अन्नपूर्णा को भोजन की देवी माना जाता है और मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ ने काशी समेत पूरी दुनिया का पेट भरने के लिए बाबा ने मां अन्नपूर्णा से ही भिक्षा मांगी थी. #अन्नपूर्णा #annapurnadevi #dhlinfrabulls #dhlinfrabullssamuh #mankiyatra #dhlbharat (at Varanasi - काशी - बनारस) https://www.instagram.com/p/CWTawNzByb-/?utm_medium=tumblr
0 notes
Text
🚩महाशिवरात्रि का ऐसा है इतिहास, इसदिन शिवजी को ऐसे करें प्रसन्न-09 मार्च 2021
🚩तीनों लोकों के मालिक भगवान शिव का सबसे बड़ा त्यौहार महाशिवरात्रि है ।महाशिवरात्रि भारत के साथ कई अन्य देशों में भी धूम-धाम से मनाई जाती है ।
🚩‘स्कंद पुराण के ब्रह्मोत्तर खंड में शिवरात्रि के उपवास तथा जागरण की महिमा का वर्णन है : ‘शिवरात्रि का उपवास अत्यंत दुर्लभ है । उसमें भी जागरण करना तो मनुष्यों के लिए और भी दुर्लभ है । लोक में ब्रह्मा आदि देवता और वशिष्ठ आदि मुनि इस चतुर्दशी की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं । इस दिन यदि किसी ने उपवास किया तो उसे सौ यज्ञों से अधिक पुण्य होता है ।
🚩शिवलिंग का प्रागट्य!
🚩पुराणों में आता है कि ब्रह्मा जी जब सृष्टि का निर्माण करने के बाद घूमते हुए भगवान विष्णु के पास पहुंचे तो देखा कि भगवान विष्णु आराम कर रहे हैं। ब्रह्मा जी को यह अपमान लगा ‘संसार का स्वामी कौन?’ इस ��ात पर दोनों में युद्ध की स्थिति बन गई तो देवताओं ने इसकी जानकारी देवाधिदेव भगवान शंकर को दी।
🚩भगवान शिव युद्ध रोकने के लिए दोनों के बीच प्रकाशमान शिवलिंग के रूप में प्रकट हो गए। दोनों ने उस शिवलिंग की पूजा की। यह विराट शिवलिंग ब्रह्मा जी की विनती पर बारह ज्योतिर्लिंगों में विभक्त हुआ। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को शिवलिंग का पृथ्वी पर प्राकट्य दिवस महाशिवरात्रि कहलाया।
🚩बारह ज्योतिर्लिंग (प्रकाश के लिंग) जो पूजा के लिए भगवान शिव के पवित्र धार्मिक स्थल और केंद्र हैं। वे स्वयम्भू के रूप में जाने जाते हैं, जिसका अर्थ है "स्वयं उत्पन्न"।
🚩1. सोमनाथ यह शिवलिंग गुजरात के सौराष्ट्र में स्थापित है।
🚩2. श्री शैल मल्लिकार्जुन मद्रास में कृष्णा नदी के किनारे पर्वत पर स्थापित है।
🚩3. महाकाल उज्जैन के अवंति नगर में स्थापित महाकालेश्वर शिवलिंग, जहां शिवजी ने दैत्यों का नाश किया था।
🚩4. ॐकारेश्वर मध्यप्रदेश के धार्मिक स्थल ओंकारेश्वर में नर्मदा तट पर पर्वतराज विंध्य की कठोर तपस्या से खुश होकर वरदान देने हेतु यहां प्रकट हुए थे शिवजी। जहां ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थापित हो गया।
🚩5. नागेश्वर गुजरात के द्वारकाधाम के निकट स्थापित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग।
🚩6. बैजनाथ बिहार के बैद्यनाथ धाम में स्थापित शिवलिंग।
🚩7. भीमाशंकर महाराष्ट्र की भीमा नदी के किनारे स्थापित भीमशंकर ज्योतिर्लिंग।
🚩8. त्र्यंम्बकेश्वर (महाराष्ट्र) नासिक से 25 किलोमीटर दूर त्र्यंम्बकेश्वर में स्थापित ज्योतिर्लिंग।
🚩9. घुश्मेश्वर महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में एलोरा गुफा के समीप वेसल गांव में स्थापित घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग।
🚩10. केदारनाथ हिमालय का दुर्गम केदारनाथ ज्योतिर्लिंग। हरिद्वार से 150 पर मील दूरी पर स्थित है।
🚩11. काशी विश्वनाथ बनारस के काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थापित विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग।
🚩12. रामेश्वरम् त्रिचनापल्ली (मद्रास) समुद्र तट पर भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग।
🚩दूसरी पुराणों में ये कथा आती है कि सागर मंथन के समय कालकेतु विष निकला था उस समय भगवान शिव ने संपूर्ण ब्रह्मांड की रक्षा करने के लिये स्वयं ही सारा विषपान कर लिया था। विष पीने से भोलेनाथ का कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ के नाम से पुकारे जाने लगे। पुराणों के अनुसार विषपान के दिन को ही महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाने लगा।
🚩कई जगहों पर ऐसा भी वर्णन आता है कि शिव पार्वती का उस दिन विवाह हुआ था इसलिए भी इस दिन को शिवरात्रि के रूप में मनाने की परंपरा रही है।
🚩पुराणों अनुसार ये भी माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था। प्रलय की ��ेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं। इसीलिए इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा गया।
🚩शिवरात्रि वैसे तो प्रत्येक मास की चतुर्दशी (कृष्ण पक्ष) को होती है परन्तु फाल्गुन (कृष्ण पक्ष) की शिवरात्रि (महाशिवरात्रि) नाम से ही प्रसिद्ध है।
🚩महाशिवरात्रि से संबधित पौराणिक कथा!!
🚩एक बार पार्वती जी ने भगवान शिवशंकर से पूछा, 'ऐसा कौन-सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्युलोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?
🚩उत्तर में शिवजी ने पार्वती को 'शिवरात्रि' के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई- 'एक बार चित्रभानु नामक एक शिकारी था । पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को पालता था। वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी।'
🚩शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी। संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया। अपनी दिनचर्या की ���ांति वह जंगल में शिकार के लिए निकला। लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल-वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा। बेल वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला।
🚩पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरी। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए। एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुंची। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, 'मैं गर्भिणी हूं। शीघ्र ही प्रसव करूंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मार लेना।' शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई।
🚩कुछ ही देर बाद एक और मृगी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख मृगी ने विनम्रतापूर्वक ��िवेदन किया, 'हे पारधी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।' शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई। वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, 'हे पारधी!' मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी। इस समय मुझे मत मारो।
🚩शिकारी हंसा और बोला, सामने आए शिकार को छोड़ दूं, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं। मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे। उत्तर में मृगी ने फिर कहा, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी। इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान मांग रही हूं। हे पारधी! मेरा विश्वास कर, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं।
🚩मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के अभाव में बेल-वृक्ष पर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हृष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा। शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला, हे पारधी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन मृगियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा।
🚩मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया, उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा, 'मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूं।' उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था। उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था। धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गया। भगवान शिव की अनुकंपा स��� उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा।
🚩थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आंसुओं की झड़ी लग गई। उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया। देवलोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहे थे। घटना की परिणति होते ही देवी-देवताओं ने पुष्प-वर्षा की। तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए'।
🚩परंपरा के अनुसार, इस रात को ग्रहों की स्थिति ऐसी होती है जिससे मानव प्रणाली में ऊर्जा की एक शक्तिशाली प्राकृतिक लहर बहती है। इसे भौतिक और आध्यात्मिक रूप से लाभकारी माना जाता है इसलिए इस रात जागरण की सलाह भी दी गयी है ।
🚩शिवरात्रि व्रत की महिमा!!
🚩इस व्रत के विषय में यह मान्यता है कि इस व्रत को जो जन करता है, उसे सभी भोगों की प्राप्ति के बाद, मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत सभी पापों का क्षय करने वाला है ।
🚩महाशिवरात्रि व्रत की विधि!!
इस व्रत में चारों पहर में पूजन किया जाता है। प्रत्येक पहर की पूजा में "ॐ नम: शिवाय" का जप करते रहना चाहिए। अगर शिव मंदिर में यह जप करना संभव न हों, तो घर की पूर्व दिशा में, किसी शान्त स्थान पर जाकर इस मंत्र का जप किया जा सकता है । चारों पहर में किये जाने वाले इन मंत्र जपों से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त उपवास की अवधि में रुद्राभिषेक करने से भगवान शंकर अत्यन्त प्रसन्न होते हैं।
🚩फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी अर्थात् महाशिवरात्रि पृथ्वी पर शिवलिंग के प्राकट्य का दिवस है और प्राकृतिक नियम के अनुसार जीव-शिव के एकत्व में मदद करनेवाले ग्रह-नक्षत्रों के योग का दिवस है । इस दिन रात्रि-जागरण कर ईश्वर की आराधना-उपासना की जाती है । ‘शिव से तात्पर्य है ‘कल्याणङ्क अर्थात् यह रात्रि बडी कल्याणकारी रात्रि है ।
🚩महाशिवरात्रि का पर्व अपने अहं को मिटाकर लोकेश्वर से मिलने के लिए है । आत्मकल्याण के लिए पांडवों ने भी शिवरात्रि महोत्सव का आयोजन किया था, जिसमें सम्मिलित होने के लिए भगवान श्रीकृष्ण द्वारिका से हस्तिनापुर आये थे । जिन्हें संसार से सुख-वैभव लेने की इच्छा होती है वे भी शिवजी की आराधना करते हैं और जिन्हें सद्गति प्राप्त करनी होती है अथवा आत्मकल्याण में रुचि है वे भी शिवजी की आराधना करते हैं ।
शिवपूजा में वस्तु का मूल्य नहीं, भ��व का मूल्य है । भावो हि विद्यते देवः । आराधना का एक तरीका यह है कि उपवास रखकर पुष्प, पंचामृत, बिल्वपत्रादि से चार प्रहर पूजा की जाये । दूसरा तरीका यह है कि मानसिक पूजा की जाये ।
🚩 हम मन-ही-मन भावना करें :
ज्योतिर्मात्रस्वरूपाय निर्मलज्ञानचक्षुषे । नमः शिवाय शान्ताय ब्रह्मणे लिंगमूर्तये ।।
‘ज्योतिमात्र (ज्ञानज्योति अर्थात् सच्चिदानंद, साक्षी) जिनका स्वरूप है, निर्मल ज्ञान ही जिनके नेत्र है, जो लिंगस्वरूप ब्रह्म हैं, उन परम शांत कल्याणमय भगवान शिव को नमस्कार है ।
🚩‘ईशान संहिता में भगवान शिव पार्वतीजी से कहते हैं : फाल्गुने कृष्णपक्षस्य या तिथिः स्याच्चतुर्दशी । तस्या या तामसी रात्रि सोच्यते शिवरात्रिका ।।तत्रोपवासं कुर्वाणः प्रसादयति मां ध्रुवम् । न स्नानेन न वस्त्रेण न धूपेन न चार्चया । तुष्यामि न तथा पुष्पैर्यथा तत्रोपवासतः ।।
🚩‘फाल्गुन के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि को आश्रय करके जिस अंधकारमयी रात्रि का उदय होता है, उसीको ‘शिवरात्रि' कहते हैं । उस दिन जो उपवास करता है वह निश्चय ही मुझे संतुष्ट करता है । उस दिन उपवास करने पर मैं जैसा प्रसन्न होता हूँ, वैसा स्नान कराने से तथा वस्त्र, धूप और पुष्प के अर्पण से भी नहीं होता ।
🚩शिवरात्रि व्रत सभी पापों का नाश करनेवाला है और यह योग एवं मोक्ष की प्रधानतावाला व्रत है ।
🚩महाशिवरात्रि बड़ी कल्याणकारी रात्रि है । इस रात्रि में किये जानेवाले जप, तप और व्रत हजारों गुणा पुण्य प्रदान करते हैं ।
🚩स्कंद पुराण में आता है : ‘शिवरात्रि व्रत परात्पर (सर्वश्रेष्ठ) है, इससे बढकर श्रेष्ठ कुछ नहीं है । जो जीव इस रात्रि में त्रिभुवनपति भगवान महादेव की भक्तिपूर्वक पूजा नहीं करता, वह अवश्य सहस्रों वर्षों तक जन्म-चक्रों में घूमता रहता है ।
🚩यदि महाशिवरात्रि के दिन ‘बं' बीजमंत्र का सवा लाख जप किया जाय तो जोड़ों के दर्द एवं वायु-सम्बंधी रोगों में विशेष लाभ होता है ।
🚩व्रत में श्रद्धा, उपवास एवं प्रार्थना की प्रधानता होती है । व्रत नास्तिक को आस्तिक, भोगी को योगी, स्वार्थी को परमार्थी, कृपण को उदार, अधीर को धीर, असहिष्णु को सहिष्णु बनाता है । जिनके जीवन में व्रत और नियमनिष्ठा है, उनके जीवन में निखार आ जाता है
स्त्रोत : संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित "ऋषि प्रसाद पत्रिका"
0 notes
Text
12 ज्योतिर्लिंगों के नाम और उनसे जुड़ी रोचक जानकारी
शिव हिंदुओं के सबसे अधिक पूजे जाने वाले देवताओं में से एक हैं और देश भर में उनके लिए अनगिनत मंदिर समर्पित हैं। इन मंदिरों में सबसे प्रमुख हैं- शिव के 12 ज्योतिर्लिंग- जो शिव भक्तों के लिए सबसे शुभ तीर्थ स्थल माने जाते हैं। भारत में स्थित 12 ज्योतिर्लिंग इस प्रकार हैं:
1. सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, सौराष्ट्र, गुजरात- बारह ज्योतिर्लिंगों में से सबसे प्रसिद्ध गुजरात का सोमनाथ मंदिर है। इसकी लोकप्रियता के पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि यह एक त्रिवेणी संगम के पास स्थित है।
2. मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग, श्रीशैलम, आंध्र प्रदेश – श्रीशैलम के धार्मिक शहर में स्थित मल्लिकार्जुनस्वामी मंदिर दक्षिण भारत में एक लोकप्रिय शिव मंदिर है। मल्लिकार्जुनस्वामी में मनाई जाने वाली महाशिवरात्रि पूरे भारत में प्रसिद्ध है।
3. महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, उज्जैन, मध्य प्रदेश – उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर यहां का सबसे बड़ा पर्यटक आकर्षण है। रुद्र सागर झील के किनारे स्थित इस मंदिर में प्रतिदिन भारी संख्या में भक्त आते हैं।
4. ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग, शिवपुरी, मध्य प्रदेश – नर्मदा नदी के तट पर पवित्र ओंकारेश्वर में ओंकारम अमलेश्वर ज्योतिर्लिंग है। ऐसी मान्यता है कि यहाँ स्थित लिंग स्वयंभू है, यानि यह लिंग स्वत: प्रकट हुआ था। साल भर यहाँ भक्तों की भारी भीड़ देखी जा सकती है।
5. काशी विश्वनाथ, उत्तर प्रदेश– भगवान शिव को समर्पित, काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर वाराणसी में गंगा नदी के किनारे स्थित है। विश्वनाथ का अर्थ है ब्रह्मांड का शासक। महा शिवरात्रि के अवसर पर दुनिया भर के शिव भक्तों का हुजूम यहाँ देखा जा सकता है।
6. केदारनाथ, उत्तराखंड- ऋषिकेश से 3,583 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर तक पहुँच पाना एक चुनौतीपूर्ण मामला है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों द्वारा किया गया था।
7. भीमाशंकर, महाराष्ट्र– महाराष्ट्र के पुणे में भीमाशंकर मंदिर स्थित है। यह खेड़ तालुका में, भीमाशंकर पहाड़ियों में, भीमा नदी के पास स्थित है। वास्तुकला की नगर शैली में निर्मित यह मंदिर 18 वीं शताब्दी का है।
8. बैद्यनाथ, झारखंड बैद्यनाथ मंदिर या बाबा बैद्यनाथ धाम – यह ज्योतिर्लिंग झारखंड के देवघर में स्थित है। यहाँ प्रत्येक वर्ष, श्रवण मेला में भाग लेने के लिए लाखों श्रद्धालु आते हैं। महा शिवरात्रि मंदिर में मनाया जाने वाला प्रसिद्ध त्योहार है।
9. रामनाथस्वामी, तमिलनाडु– रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग मंदिर भारत में सबसे अधिक पूजे जाने वाले और पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, युद्ध के मैदान में ब्राह्मण रावण को मारने के लिए स्वयं भगवान राम द्वारा यह ज्योतिर्लिंगम बनाया गया था। भगवान राम द्वारा पूजे गए इस लिंगम को रामनाथ के नाम से जाना जाता है। रामनाथस्वामी मंदिर तमिलनाडु के रामेश्वरम द्वीप में स्थित है।
10. नागेश्वर, गुजरात– नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर गुजरात में द्वारका के पास स्थित है। भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान कृष्ण यहाँ रुद्राभिषेक करते थे।
11. त्र्यंबकेश्वर, महाराष्ट्र– के नासिक शहर में स्थित है। मंदिर ब्रह्मगिरी पर्वत की तलहटी में स्थित है। शिवपुराण के अनुसार, गोदावरी और गौतम ऋषि के अनुरोध पर, भगवान शिव ने त्र्यंबकेश्वर के रूप में निवास करने का फैसला किया। यह एक अनोखा ज्योतिर्लिंग माना जाता है: लिंग में भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान शिव के प्रतीक तीन चेहरे हैं।
12. ग्रिशनेश्वर, महाराष्ट्रगिरिशेश्वर- पुराण में वर्णित 12 पवित्र ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह औरंगाबाद, महाराष्ट्र में स्थित है। ग्रिशनेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर लाल चट्टान से बना है। यह भारत में भगवान शिव का सबसे छोटा ज्योतिर्लिंग मंदिर भी है।
·
0 notes
Text
To please Bholenath in the month of Savan, do Rudrabhishek in Kashi Vishwanath
रुद्राभिषेक के शुभ फल :-
व्यापार में उत्पन्न होने वाली बाधाएं दूर होती है।
शिक्षा एवं नौकरी में उन्नति प्राप्त होती है।
घर - परिवार में धन - धान्य की वर्षा होती है।
परिवार में कुशल वातावरण रहता है।
निर्धनता का कष्ट समाप्त होता है।
महादेव के 12 ज्योतिर्लिंगों में शिव के काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग का बहुत ही विशेष महत्व है। ऐसा इसलिए भी माना जाता है क्यूंकि यह शिव का एक मात्र उपासना स्थल है जहां वह वाम रूप से अपनी शक्ति के साथ विराजमान है। सावन में शिव की उपासना को सबसे अहम माना जाता है। इस दौरान इस मंदिर की मान्यता और भी अधिक बढ़ जाती है। यह स्थान भगवान शिव और माता पार्वती का आदि स्थान माना गया है, जिसके कारण आदिलिंग के रूप में अविमुक्तेश्वर को ही प्रथम लिंग कहा जाता है।काशी को शिव का स्थान कहा गया है। मान्यता है की इस मंदिर में सावन माह में ज्योतिर्लिंग पर रुद्राभिषेक करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। उसके सभी कष्ट दूर हो जातें है और उसके दुःख , सुख में परिवर्तित हो जातें है। हिन्दू धर्म के अनुसार प्रलयकाल में भी इस मंदिर को कोई नुकसान नहीं पहुँचता है। इसका स्थान अंत से अनादि काल तक है। इस मंदिर एवं यहाँ उपासना करने वाले भक्तों की रक्षा स्वयं भोलेनाथ करतें है। यदि कोई ��्यक्ति बहुत व्यथित हो तो उसे अपने जीवन में सुख प्राप्ति हेतु काशी विश्वनाथ में रुद्राभिषेक अवश्य करवाना चाहिए।
हमारी सेवाएं : हमारे पंडित जी द्वारा अनुष्ठान से पूर्व संकल्प करवाया जाएगा। साथ ही पूर्ण विधि - विधान से महादेव का पूजनकर रुद्राभिषेक संपन्न किया जाएगा।
प्रसाद : • सूखा भोग • बाबा का भस्म • काला धागा ( हाथ में बांधने हेतु )
Reference URL: https://www.myjyotish.com/astrology-services/puja/saavan-maah-mein-bholenaath-ko-prasann-karane-hetu-kashi-vishwanath-mein-karaen-rudraabhishek
0 notes
Photo
ओंकारेश्वर मंदिर : भोलेनाथ यहां देते हैं साक्षात दर्शन, मान्यता है रोज करने आते हैं शयन
भारत के अधिकांश राज्यों में सावन का महीना किसी त्योहार की तरह मनाया जाता है। मध्य प्रदेश का खंडवा भी उसी में से एक है। जहंा सावन में बड़ी संख्या में शिव भक्त दर्शन व जलाभिषेक करने पहुंचते हैं। भक्तों के लाखों की संख्या में उमड़े सैलाब से यह तीर्थस्थल और भी अद्भुत, अलौकिक और अकल्पनीय हो जाती है।
देश के 12 ज्योर्तिलंगों में से एक ओंकारेश्वर धाम, तीर्थनगरी के नाम से भी मशहूर है। ओंकारेश्वर, नर्मदा नदी में स्थित एक अद्वितीय द्वीप है। 4 किमी लंबा व 2 किमी चैड़ा यह द्वीप, चारों ओर नर्मदा नदी से घिरा छोटा पहाड़ दिखाई पड़ता है। आकाश से यदि इसे देखा जाये तो यह? चिन्ह के सामान प्रतीत होता है। इसे ओंकारेश्वर कहे जाने के पीछे के कई कारणों में से एक कारण यह भी है। को एक आदियुगीन मौलिक ध्वनि माना जाता है जिससे सबकी उत्पत्ति हुई है।
माना जाता है कि सावन में ओंकारजी अपने भक्तों का कुशलक्षेम जानने नगर भ्रमण पर निकलते हैं तो स्वयं शिव स्वरूप भगवान ममलेश्वर उनकी अगवानी करने कोटितीर्थ घाट पहुंचते हैं। ओंकार जी के भ्रमण से एक घंटे पहले ममलेश्वर महादेव खुद नौका विहार कर नगरवासियों का हाल जानते और प्रभु की अगुवाई के बाद उन्हें नगर के बारे में जानकारी देते हैं। यही एक ऐसी तीर्थ नगरी है जहंा द्वादश ज्योतिॄलग नौका विहार करते हैं।
कहते है एक बार पर्वतराज ने भगवान शिव की तपस्या की, वहंा और ��ेवता भी मौजूद थे। देवताओं ने भगवान से प्रार्थना किया कि आप यही निवास कीजिए। उनके आग्रह पर भगवान शिव ने निवास करने का फैसला किया। ओम शब्द की उत्पत्ति श्री ब्रह्मा जी के मुख से हुई है।
मान्यता है कि सभी तीर्थों के दर्शन पश्चात ओंकारेश्वर के दर्शन पूजन एवं सभी तीर्थों का जल लाकर अॢपत करने से हर तरह के कष्ट कट जाते है। ओंकारेश्वर ज्योतिॄलग परिसर एक पांच मंजिला इमारत है जिसकी प्रथम मंजिला पर भगवान महाकालेश्वर का मंदिर है। तीसरी मंजिल पर सिद्धनाथ महादेव चैथी मंजिल पर गुप्तेश्वर महादेव और पांचवी मंजिल पर राजेश्वर महादेव का मंदिर हैं।
मंदिर के पुजारी बताते है कि यहंा पर्वतराज भवध्य ने घाट तपस्या की की घोर तपस्या की थी और उनकी तपस्या के बाद उन्होंने भगवान शिव से प्रार्थना कर कहा कि वह भवध्य क्षेत्र में स्थित निवास करें। उसके बाद भगवान शिव ने उनकी यह बात स्वीकार कर ली। उसके बाद ओमकारेश्वर में भोलेनाथ प्रतिदिन विश्राम करते हैं। पुजररियों का कहना है कि 12 ज्योतिॄलगों में यह एकमात्र ज्योतिॄलग है महादेव शयन करने आते हैं।
भगवान शिव प्रदीप तीनों लोकों में भ्रमण के पश्चात यहंा आकर विश्राम करते हैं। भक्त गण एवं तीर्थ यात्री विशेष रूप से शयन दर्शन के लिए पहुचते हैं। भोलेनाथ के साथ माता पार्वती भी रहती हैं। और रोज रात में यहां सौपड़ खेलते हैं। शयन आरती के बाद ज्योतिॄलग के सामने रोज चौपड़ सजाई जाती है। सबसे आश्चर्यजनक बात यह कि रात में गर्भ गृह में कोई पङ्क्षरदा भी पर नहीं मार सकता। लेकिन सुबह सब कुछ उल्टे मिलते हैं। चौपड़ बिखरा पड़ा रहता है।
आरती का है खास महत्व
ओंकारेश्वर में स्वयंभू शिवभलग के दर्शन से केवल महादेव के ही नहीं बल्कि मां पार्वती के दर्शनों का भी सौभाग्य मिलता है। ओंकारेश्वर राजा मान्धाता की तपस्थी रही है। महादेव के इस धाम में होने वाली तीन बार की आरती का विशेष महत्व माना जाता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि रात की शयन आरती के बाद इस मंदिर में एक अनोखी रस्म होती है। इसमें पूरे विधि-विधान के साथ शिव-पार्वती की आराधना होती है।
शिवभलग के सम्मुख शिव व पार्वती के लिए एक बिछौना लगाया जाता है। शयन पूर्व आमोद हेतु चौपड़ का खेल मड़ा जाता है। भक्तगण यह आरती प्रत्येक रात्री साढ़े 8 बजे देख सकते हैं। यह देश का इकलौता एक ऐसा मंदिर है आज भी तीन राज परिवार की ओर से आरती कराई जाती है। इस आरती को करने के लिए तीनों ही राज परिवारों ने तीन अलग-अलग पुजारी नियुक्त किए हुए है, जो अपने समय की आरती और भोग स्वयं लगा देते हैं।
इसका खर्च राज परिवारों की ओर से उठाया जाता है। यह अनूठी परंपरा कोई नई नहीं है, ��ल्कि बहुत साल पुरानी है। ओंकारेश्वर प्राचीन मंदिरों जैसे मामलेश्वर मंदिर, सिद्धांत मंदिर और गौरी ��ोमनाथ मंदिर का घर है। मुख्य भूमि पर 10वीं सदी में निॢमत मामलेश्वर मंदिर वास्तव में बहुत से छोटे मंदिरों का परिसर है। यह नर्मदा नदी के दक्षिण किनारे पर मंधाता मंदिर की विपरीत दिशा में है। मामलेश्वर मंदिर में मौजूद एक प्राचीन संस्कृति लिखित शिलालेख इसके वास्तविक होने का दावा करता है।
सावन में जलाभिषेक सावन माह में मंदिर का महत्व और भी बढ़ जाता है। कहा जाता है कि जो भक्त नर्मदा में स्नान के बाद नर्मदा जल से भरे कंावड़ से जलाभिषेक करता है उसकी मनोकामनाएं पूरी होती है। पूरे महीने ढोल नगाड़ों के साथ भक्तों द्वारा जुलूस निकाला जाता है, जिसे डोला या पालकी कहते हैं। यह जुलूस सोमवारी सवारी के नाम से जाना जाता है। इस दौरान भक्त नृत्य करते हुए गुलाल उड़ाते हुए ओम शंभू भोले नाथ का उद्घोष करते हैं। यह बड़ा ही सुंदर दृश्य होता है।
पौराणिक मान्यताएं
ऐसा माना जाता है कि सतयुग में जब श्री राम के पूर्वज, इक्ष्वाकु वंश के राजा मान्धता, नर्मदा स्थित ओंकारेश्वर पर राज करते थे, तब ओंकारेश्वर की चमक अत्यंत तेज थी। इसकी चमक से आश्चर्य चकित होकर नारद ऋषि भगवान् शिव के पास पहुंचे तथा उनसे इसका कारण पूछा। भगवान् शिव ने कहा कि प्रत्येक युग में इस द्वीप का रूप परिवॢतत होगा। सतयुग में यह एक विशाल चमचमाती मणि, त्रेता युग में स्वर्ण का पहाड़, द्वापर युग में तांबे तथा कलयुग में पत्थर होगा।
पत्थर का पहाड़, यह है हमारे कलयुग का ओंकारेश्वर। ओंकारेश्वर एक जागृत द्वीप है। इस द्वीप के वसाहत का भाग शिवपुरी कहलाता है। ऐसा माना जाता है कि किसी काल में ब्रम्हपुरी नगरी एवं विष्णुपुरी नगरी भी हुआ करती थीं। तीनों मिलकर त्रिपुरी कहलाते थे। शास्त्रों के अनुसार कम से कम 5500 वर्षों से ओंकारेश्वर अनवरत बसा हुआ है। मंदिर का मंडप अत्यंत मनोहारी है। 60 ठोस पत्थर के स्तंभों पर यक्षी आकृतियों उकेरी गयी हैं।
मंदिर के चारों ओर भित्तियों पर देवी-देवताओं के चित्रों की नक्काशी की गयी है। ओंकारेश्वर मंदिर की एक अनोखी बात यह है कि इसमें मुख्य शिवभलग शिखर के नीचे नहीं है, अपितु एक ओर स्थित है। ओंकारेश्वर शिवभलग एक पत्थर के रूप में है जिसके ऊपर निरंतर जल अॢपत होता रहता है। दिन में तीन बार दूध, दही तथा नर्मदा के जल से इसका अभिषेक होता है��� शिवभलग के पृष्टभाग भाग में एक आले पर पार्वती की चांदी की प्रतिमा स्थापित है।
मान्धाता महल इक्ष्वाकु राजा मान्धाता की गद्दी अब भी मंदिर परिसर में देखी जा सकती है। मुख्य मंदिर को चारों ओर से घेरे कई छोटे मंदिर हैं जैसे पंच मुखी हनुमान मंदिर, एक शनि मंदिर एवं द्वारकाधीश को समॢपत एक मंदिर। मंदिर के पीछे बनी ��ीडिय़ों से पहाड़ी की ओर जाने पर समक्ष एक श्वेत ऊंची भित्त दिखायी पड़ती है। यह ओंकारेश्वर के मान्धाता महल की भित्त है। 80 सीडिय़ां पार कर आप इस महल के प्रवेशद्वार तक पहुँच सकते हैं।
इस महल का एक भाग आम जनता हेतु खुला है। भीतर प्रवेश करते ही आप किसी भी उत्तर भारतीय हवेली के समान, भी स्तंभों से घिरा एक खुला प्रांगण देखेंगे। इसके एक ओर सादा, फिर भी चटक रंगों में रंगा दरबार है। इसकी छत पर सुन्दर गोल आकृति उकेरी है जिसकी नक्काशी पर आप बचे-खुचे देख सकते हैं। इस दरबार का श्रेष्ठ आकर्षण है, इसके झरोखों से बाहर का दृश्य। बाहर का दृश्य अत्यंत आकर्षक है। से आप ओंकारेश्वर मंदिर को ऊँचाई से देख सकते हैं। वास्तव में यहीं से देखने के पश्चात मंदिर की विशालता का अहसास होता है।
ओंकारेश्वर परिक्रमा ओंकारेश्वर द्वीप के चारों ओर 16 किमी लंबा परिक्रमा पथ है। परिक्रमा पथ हमारे देश के अधिकतर मंदिरों का अभिन्न अंग है। परिक्रमा पथ कभी गर्भगृह की होती है तो कभी सम्पूर्ण पवित्र क्षेत्र की। कई छोटे-बड़े मंदिर व आश्रम तथा कई बार कुछ गांव भी पवित्र क्षेत्र का भाग होते हैं। भक्तगण मंदिर आकर केवल भगवान् के दर्शन ही नहीं करते, अपितु मंदिर की परिक्रमा भी करते हैं। यह परिक्रमा पथ कई मंदिरों एवं आश्रमों से होकर जाती है जैसे, खेड़ापति हनुमान मंदिर, ओंकारनाथ आश्रम, केदारेश्वर मंदिर, रामकृष्ण मिशन आश्रम, मारकंड आश्रम जिसमें कृष्ण की 12 मीटर ऊंची प्रतिमा है, नर्मदा-कावेरी संगम कुबेर तपस्या कर यक्षों का राजा बना था, ऋण मुक्तेश्वर मंदिर, धर्मराज द्वार, गौरी सोमनाथ मंदिर, पाताली हनुमान मंदिर, सिद्धनाथ मंदिर एवं शिव की एक विशाल प्रतिमा। एक ममलेश्वर मंदिर या अमलेश्वर मंदिर अथवा अमरेश्वर मंदिर, ओंकारेश्वर के ज्योतिॄलग का आधा भाग है।
यह मंदिर नर्मदा के दक्षिण तट पर, गोमती घाट के समीप, मुख्य भूमि पर स्थापित है। कहा जाता है कि इस मंदिर के दर्शन बिना ओंकारेश्वर की तीर्थ यात्रा सम्पूर्ण नहीं होती। ममलेश्वर मंदिर में एक अनोखी प्रथा है, ङ्क्षलगार्चना। इसमें प्रतिदिन हजार बाणङ्क्षलगों की आराधना की जाती है जो मुख्य शिवङ्क्षलग के चारों ओर संकेंद्रित वृत्तों में रखी हुई हैं। इन मंदिरों के अतिरिक्त काशी विश्वनाथ एवं एक विष्णु मंदिर भी है भक्तगण दर्शन के लिये आते हैं। ओंकारेश्वर में ही शंकराचार्य ने वेदान्त में महारथ प्राप्त की थी। ओंकारेश्वर मन्दिर के नीचे एक गुफा में उन्होंने माँ काली का ध्यान कर, तपस्या भी की थी।
https://is.gd/4J6mNI #ItIsBelievedThatHeComesToSleepEveryday, #OmkareshwarTempleBholenathGivesADarshanHere it is believed that he comes to sleep everyday, Omkareshwar Temple: Bholenath gives a darshan here In Focus, Religious, Top #InFocus, #Religious, #Top KISAN SATTA - सच का संकल्प
#it is believed that he comes to sleep everyday#Omkareshwar Temple: Bholenath gives a darshan here#In Focus#Religious#Top
0 notes
Text
Sawan 2020 :Ground report from SShri Kashi Vishwanath Temple, Varanasi Uttar Pradesh | इस बार गर्भगृह तक जाने की नहीं होगी अनुमति, ऑनलाइन होगा रुद्राभिषेक; स्पीड पोस्ट के जरिए श्रद्धालुओं को भेजा जाएगा प्रसाद
New Post has been published on https://jordarnews.in/sawan-2020-ground-report-from-sshri-kashi-vishwanath-temple-varanasi-uttar-pradesh-%e0%a4%87%e0%a4%b8-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%b0-%e0%a4%97%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%ad%e0%a4%97%e0%a5%83%e0%a4%b9/
Sawan 2020 :Ground report from SShri Kashi Vishwanath Temple, Varanasi Uttar Pradesh | इस बार गर्भगृह तक जाने की नहीं होगी अनुमति, ऑनलाइन होगा रुद्राभिषेक; स्पीड पोस्ट के जरिए श्रद्धालुओं को भेजा जाएगा प्रसाद
पहले सावन के सोमवार को दो लाख से ज्यादा लोग दर्शन करते थे लेकिन इस बार प्रशासन का टारगेट 25 हजार लोगों को दर्शन कराने का है
पहली बार यादव समाज के सिर्फ पांच लोग ही जलाभिषेक के लिए जा सकेंगे जबकि पिछले साल एक लाख से ज्यादा लोगों ने भाग लिया था
धर्मेन्द्र सिंह भदौरिया
Jul 06, 2020, 12:18 PM IST
वाराणसी. उत्तर प्रदेश के वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर है। गंगा किनारे बसा यह मंदिर देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। ऐसी मान्यता है कि काशी भगवान शिव के त्रिशूल पर टिकी हुई है। आज से सावन का महीना शुरू हो रहा है। कोरोना के चलते इस बार दर्शन के तौर तरीके बदल गए हैं। दैनिक भास्कर की टीम काशी विश्वनाथ पहुंची और वहां की तैयारियों का जायजा लिया। पढ़िए काशी विश्वनाथ से लाइव रिपोर्ट…
भगवान शिव की नगरी काशी में इस बार सावन की रंगत फीकी है। घाटों से लेकर गलियों तक में सन्नाटा पसरा है। कोरोना की वजह से भक्त और भगवान के बीच सोशल डिस्टेंस आ गया है। गर्भगृह तक जाने की अनुमति किसी श्रद्धालु को नहीं मिलेगी। इस बार सीधे जलाभिषेक भी नहीं हो सकेगा। संक्रमण से बचने के लिए मंदिर को हर 6 घंटे के अंतराल पर सैनिटाइज किया जा रहा है।
कोरोना की वजह से इस बार मंदिर परिसर में भीड़ नहीं होगी। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए सीमित संख्या में ही लोग दर्शन कर सकेंगे।- फोटो- ओपी सोनी
पहली बार यादव समाज के 5 लोग ही जलाभिषेक कर पाएंगे
पहले शहर में जगह-जगह कांवड़ियों के लिए कैंप लगते थे। देशभर से आने वाले कांवड़ियों के रंग में काशी केसरिया हो जाती थी। लेकिन, इस बार यह रंग गायब रहेगा। पहली बार यादव समाज के सिर्फ पांच लोग ही जलाभिषेक के लिए जा सकेंगे। जबकि परंपरा के मुताबिक, हर साल सावन के पहले सोमवार को हजारों की संख्या में वे सीधे गर्भगृह में जाकर जलाभिषेक करते थे। पिछले साल एक लाख से ज्यादा लोगों ने पौने तीन घंटे तक जलाभिषेक क��या था।
पहले सावन के महीने में जहां सैकड़ों की भीड़ होती थी, वहां इस बार सिर्फ पांच श्रद्धालु ही रहेंगे। गौदोलिया से मंदिर तक के रास्ते में सुरक्षाकर्मी ज्यादा और श्रद्धालु कम दिखाई देते हैं। चार नंबर गेट पर सुरक्षाकर्मियों ने भारी संख्या में डेरा डाला हुआ है।
दुग्धाभिषेक करते पुजारी। कोरोना के चलते इस बार ऑनलाइन रुद्राभिषेक की व्यवस्था की गई है। फोटो- ओपी सोनी
स्पीड पोस्ट से भेजा जाएगा प्रसाद
इस बार ऑनलाइन रुद्राभिषेक होगा और डाक विभाग से स्पीड पोस्ट के जरिए श्रद्धालुओं को प्रसाद भेजा जाएगा। यह प्रसाद 251 रुपए में मिल सकेगा। मंदिर में रुद्राभिषेक और आरती के शुल्क में 30 फीसदी तक वृद्धि की जा सकती है। कोरोना की वजह से नागपंचमी के दिन काशी के नागकूप पर भी विद्वानों का जमावड़ा शास्त्रार्थ के लिए नहीं होगा।
सावन माह के दौरान काशी में शिव और राम कथा कहने वाले कई कथावाचक इस बार काशी नहीं आ सकेंगे। शिवमहापुराण की कथा कहने वाले बालव्यास श्रीकांत शर्मा कहते हैं कि करीब तीन दशक से सावन के आखिरी के दस दिन काशी में व्यतीत करता रहा हूं, लेकिन इस बार कथा नहीं कह पाऊंगा।
इस बार मंदिर में रुद्राभिषेक और आरती के शुल्क में 30 फीसदी तक वृद्धि की जा सकती है। स्पीड पोस्ट के जरिए प्रसाद श्रद्धालुओं के घर भेजा जाएगा।
मंदिर परिसर में एक समय में पांच लोग ही रह सकेंगे
जिलों की सीमाओं पर पुलिस तैनात की गई है, अगर कोई श्रद्धालु बाहर से बाबा के दर्शन के लिए आता है तो उसे वापस लौ��ा दिया जाएगा। इस कारण मंदिर के आसपास पूजा, फूल, दूध, श्रृंगार की अतिरिक्त दुकानें भी नहीं लग पाएंगी। श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर के मुख्य पूजारी श्रीकांत मिश्रा कहते हैं कि पहले सुबह से शाम तक अनुष्ठान-पूजन चलता था। लेकिन, इस बार मंदिर परिसर में एक समय में पांच लोग ही रह सकेंगे। ऐसे में रुद्राभिषेक, अनुष्ठान-पूजन संभव ही नहीं होगा।
इस बार गर्भगृह में आने की अनुमति नहीं होगी। चारों दरवाजों पर इसके लिए व्यवस्था की गई है। बाहर से ही श्रृद्धालु जलाभिषेक करेंगे वह सीधे बाबा तक पहुंचेगा।
पहले दो लाख से ज्यादा लोग करते थे दर्शन, इस बार 25 हजार का लक्ष्य
पहले मंदिर परिसर में शास्त्री इस काम को करते थे। मंदिर में दर्शन के लिए पांच किमी से ज्यादा लंबी लाइन लगती थी। सावन के सोमवार को दो लाख से ज्यादा लोग दर्शन करते थे। लेकिन, इस बार प्रशासन का लक्ष्य 25 हजार लोगों को दर्शन कराने का है। मंदिर कार्यपालक समिति के अध्यक्ष और कमिश्नर दीपक अग्रवाल ने बताया कि कोरोना के कारण कुछ सावधानियां बरती जा रही हैं। जलाभिषेक तो होगा लेकिन दूर से ही होगा, गर्भगृह में किसी को भी जाने की अनुमति नहीं होगी।
पहले हर साल एक लाख से ज्यादा यादव बंधु सावन के पहले सोमवार को गर्भगृह में ��लाभिषेक करते थे। इस बार सिर्फ 5 को ही अनुमति है।
मंदिर परिसर में जाने के लिए 3 जोन बनाए गए
गर्भगृह के चारों दरवाजों पर बाहर से ही अर्घ की व्यवस्था की गई है। श्र���्धालु वहीं से बाबा का जलाभिषेक कर सकेंगे और जल सीधे बाबा तक पहुंचेगा। मंदिर परिसर में जाने के लिए तीन जोन बनाए गए हैं। पहला जोन मंदिर के अंदर होगा, जहां केवल 5 श्रद्धालु प्रवेश कर सकेंगे।
गोपसेवा समिति के प्रदेश उपाध्यक्ष विनय यादव कहते हैं कि हर साल कम से कम एक लाख यादव बंधु सावन के पहले सोमवार को देशभर से आकर गर्भगृह में जलाभिषेक करते थे। जिनमें 10 से 12 हजार लोग तो काशी के बाहर से आते थे। लेकिन, यह पहली बार है कि जब सिर्फ 5 लोग ही जलाभिषेक करेंगे। हम बाबा विश्वनाथ से कोरोना मुक्त भारत की प्रार्थना करेंगे। यही प्रार्थना काशी का हर व्यक्ति देश के लिए करेगा।
Source link
0 notes
Text
Maha Shivratri 2020: काशी में मौजूद है आस्था बैंक, जमा होते हैं 'ओम नमः शिवाय' - Mahashivratri 2020 om namah shivaya bank varanasi uttar pradesh
New Post has been published on https://apzweb.com/maha-shivratri-2020-%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%b6%e0%a5%80-%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%ae%e0%a5%8c%e0%a4%9c%e0%a5%82%e0%a4%a6-%e0%a4%b9%e0%a5%88-%e0%a4%86%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%a5%e0%a4%be/
Maha Shivratri 2020: काशी में मौजूद है आस्था बैंक, जमा होते हैं 'ओम नमः शिवाय' - Mahashivratri 2020 om namah shivaya bank varanasi uttar pradesh
वाराणसी में मौजूद है ओम नम: शिवाय बैंक
पैसों की जगह आस्था का होता है लेन-देन
बैंक का जब भी नाम आता है तो दिमाग में एक ऐसी तस्वीर बन जाती है जहां पैसों का लेन-देन किया जाता है. लेकिन क्या आपने ऐसा बैंक दे���ा है जिसमें पैसा नहीं बल्कि आस्था जमा होती है. उत्तर प्रदेश के वाराणसी में एक ऐसा ही बैंक है. इस बैंक में कर्मचारी भी हैं, हिसाब-किताब भी रखा जाता है. अंतर सिर्फ इतना है यहां पैसों की बजाय ओम नमः शिवाय लिखकर जमा किया जाता है.
बाबा विश्वनाथ की नगरी वाराणसी की विश्वनाथ गली में एक ऐसा बैंक मौजूद है, जहां पैसे की जगह आस्था और श्रद्धा भगवान शिव के पंचाक्षरी मन्त्र ओम नमः शिवाय लिखकर जमा होती है. इस बैंक में एक जन्म की जमा पूंजी को दूसरे जन्म में सूद सहित मिलने की बात कही जाती है. बैंक को ओम नमः शिवाय बैंक के नाम से जाना जाता है.
भक्त यहां आते हैं, अपना खाता खुलवाते हैं और बदले में उन्हें एक बुकलेट मिलती है. जिसमें ओम नमः शिवाय लिखकर यहां फिर से जमा करते है. इस बैंक की प्रक्रिया पूरी तरह से निःशुल्क होती है. माना जाता है कि ऐसे करने से खाताधारकों को न सिर्फ शांति का अनुभव होता है बल्कि पुण्य भी मिलता है.
यह भी पढ़ें: Maha Shivratri: जानिए महाशिवरात्रि का महत्व, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
इस बैंक की स्थापना 2002 में बाबा विश्वनाथ के मंदिर में 11 वेद पाठी वैदिक विद्वान ब्राह्मणों ने की थी. तब से लेकर रोजाना ये बैंक सुबह दस बजे से शाम पांच बजे तक खुलता है. सुबह की शुरुआत भगवान शिव की पूजा के साथ होती है. पूरे दिन यहां आस्था को जमा करने वालों का जमावड़ा होता है.
अठारह सालों के सफर में आज इस बैंक में 136 करोड़ से भी ज्यादा ओम नमः शिवाय लिखे पत्रों को जमा किया जा चुका है. इन जमा पत्रों को इस बैंक में बड़े ही जतन से सहेजकर रखा जाता है. मान्यता है कि इससे भक्तों पर बाबा विश्वनाथ की विशेष कृपा बरसती है.
यह भी पढ़ें: महाशिवरात्रि में इन 3 राशि को हो सकता है नुकसान, जानें उपाय
ओम नमः शिवाय बैंक के संरक्षक आचार्य पंडित राजेंद्र त्रिवेदी का कहना है कि वाराणसी, ने��ाल, बर्मा, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका सहित विश्व के दर्जनों देश के शिव भक्तों ने यहां ओम नम: शिवाय लिखकर जमा किया है. यहां ऐसी मान्यता है कि कष्टों के निवारण के लिए बाबा भोलेनाथ की कृपा बरसेगी. दुख, दर्द और कष्ट के निवारण के लिए भक्त यहां जमा करते हैं.
(बृजेश कुमार की रिपोर्ट)
आजतक के नए ऐप से अपने फोन पर पाएं रियल टाइम अलर्ट और सभी खबरें. डाउनलोड करें
!function(e,t,n,c,o,a,f)(window,document,"script"),fbq("init","465285137611514"),fbq("track","PageView"),fbq('track', 'ViewContent'); Source link
0 notes
Text
होली पर्व पर चौसट्टी देवी के दरबार में श्रद्धालुओं ने चढ़ाया अबीर गुलाल Divya Sandesh
#Divyasandesh
होली पर्व पर चौसट्टी देवी के दरबार में श्रद्धालुओं ने चढ़ाया अबीर गुलाल
वाराणसी। रंगों के पर्व होली पर सोमवार को चौसट्टीघाट स्थित चौसट्टी देवी के दरबार में लोगों ने परम्परानुसार अबीर गुलाल चढ़ाया। लोग रंगों की होली समाप्त होने के बाद दरबार में हाजिरी लगाने पहुंचने लगे। महिला श्रद्धालुओं की भीड़ दोपहर बाद मंदिर में उमड़ पड़ी। होली पर्व पर काशी में चौसट्टी देवी के दर्शन पूजन का विधान हैं। परम्परागत तरीके से मां के श्रीचरणों में अबीर गुलाल अर्पित करने के बाद मंदिर में परिक्रमा कर लोग आह्लादित हुए।
काशी में मान्यता है कि राजा दिवोदास का मतिभ्रम करने के लिए स्वयं महादेव ने 64 योगीनियों को काशी भेजा था। काशी की समरसता, धार्मिकता के मोहपाश में योगिनी बंध गयी और काशी में ही बस गयी। अन्तत: शिवशंकर को ब्रह्मा जी के माध्यम से काशी मेें पुन: प्रवेश का अवसर मिला। एक अन्य कथा है कि काशी के महाप्रतापी राजा दिवोदास ने एक समय काशी पुराधिपति के आधिपत्य को चुनौती दे दी थी। उसने बाबा की नगरी के शिवतत्व को क्षीण करने का भी प्रयास किया। उसे अपदस्थ करने के लिए भगवान शिव ने कैलाश शिखर से पहले अष्ट भैरवों व छप्पन विनायकों को काशी भेजा, जो बाद में यहीं स्थापित हो गए। इसी क्रम में चौंसठ योगिनियों ने भी काशी प्रवास किया व बाबा विश्वनाथ के दोबारा काशी पधारने के बाद उनकी कृपा से यहीं पूजित व प्रतिष्ठित हुईं। पुराणों और काशी खंड में भी इन चौंसठ योगिनियों की महिमा बखानी गई है। इस मंदिर का इतिहास लगभग पांच सौ साल से भी अधिक प्राचीन है। इसका निर्माण बंगाल के राजा प्रतापदित्य ने कराया था। मंदिर के प्रवेश द्वार पर सिंहवाहिनी मां दुर्गा विराजमान हैं।
यह खबर भी पढ़ें: दीवार पर नहीं चढ़ पा रहा था नेवला का बच्चा, फिर परिवार ने ऐसे की मदद, देखें दिल को छू लेने वाला VIDEO
होली पर्व पर ही श्री काशी विश्वनाथ दरबार , बाबा कालभैरव, मां अन्नपूर्णा, महामृत्युंजय मंदिर, मां शीत���ा, मां संकठा, मां पिताम्बरा, मां मंगला गौरी, मां दुर्गा, मां महालक्ष्मी, श्री बटुक भैरव, मां कामाख्या, श्री विश्वनाथ मंदिर (बीएचयू), बाबा कीनाराम दरबार, अघोर दरबार पड़ाव में भी भक्तों ने पूरे आस्था के साथ अबीर अर्पित किया।
Download app: अपने शहर की तरो ताज़ा खबरें पढ़ने के लिए डाउनलोड करें संजीवनी टुडे ऐप
0 notes