#काशी की विश्वनाथ मंदिर
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लखनऊ, 26.01.2025 | भारतीय गणतंत्र के 76 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा ट्रस्ट के इंदिरा नगर स्थित कार्यालय में "ध्वजारोहण" कार्यक्रम का आयोजन किया गया | आयोजन के अंतर्गत ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी डॉ॰ हर्ष वर्धन अग्रवाल ने ध्वजारोहण किया व न्यासी डॉ॰ रूपल अग्रवाल तथा स्वयंसेवकों ने राष्ट्रगान गाकर तिरंगे को सलामी दी |
इस अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी डॉ॰ हर्ष वर्धन अग्रवाल ने गणतंत्र दिवस की बधाई देते हुए कहा कि, “आज हम एक ऐतिहासिक दिन मना रहे हैं, जब हमारे भारत ने गणतंत्र के 76 वर्ष पूर्ण कर लिए हैं । 26 जनवरी 1950 को भारत ने अपने संविधान को लागू किया और हमें एक लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में पहचान मिली । यह दिन हमें हमारी विरासत और हमारे विकास की यात्रा को समझने का अवसर प्रदान करता है । हमारी विरासत हमारे महान पूर्वजों के संघर्षों, बलिदानों और संकल्पों का परिणाम है । हमारे देश की धरोहर में संस्कृति, शिक्षा और प्राचीन ज्ञान की गहरी जड़ें हैं । हमें गर्व है कि हमारे देश की महानता हमारे इतिहास में समाहित है । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने हमेशा इस बात पर जोर दिया है कि हम अपनी संस्कृति, अपनी धरोहर और अपने इतिहास से जुड़े रहें । उन्होंने हमारे प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर और भारत के समृद्ध इतिहास को फिर से विश्व में स्थापित किया है । उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने भी प्रदेश की धरोहर को संजोने और संस्कृति के संरक्षण पर ध्यान दिया है । उनके नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में राम मंदिर, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर और अन्य ऐतिहासिक परियोजनाओं का निर्माण हो रहा है, जो हमारी सांस्कृतिक धरोहर को सशक्त बना रहे हैं । हमारी विरासत हमें रास्ता दिखाती है और विकास हमें उस रास्ते पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है । आज, जब हम अपने गणतंत्र के 76 वर्षों का जश्न मना रहे हैं, तो हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम अपनी धरोहर का सम्मान करते हुए, इसे भविष्य में और भी सशक्त बनाएंगे । आइए, हम सभी मिलकर अपनी विरासत और विकास के इस सफर को और ऊंचाइयों तक लेकर जाएं । जय हिंद ! जय भारत !”
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कुंभ मेला 2025: वाराणसी प्रयागराज अयोध्या टूर पैकेज के साथ पवित्र यात्रा
भारत की पवित्रता और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक कुंभ मेला 2025 का आयोजन प्रयागराज में हो रहा है। यह अद्भुत आयोजन न केवल आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है, बल्कि गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम पर आत्मिक शांति का अहसास भी कराता है। यदि आप इस बार कुंभ मेला का हिस्सा बनने की योजना बना रहे हैं, तो Varanasi, Prayagraj, and Ayodhya tour Package आपके लिए एक संपूर्ण विकल्प हो सकता है।
वाराणसी: अध्यात्म और संस्कृति का संगम
वाराणसी, जिसे काशी और बनारस के नाम से भी जाना जाता है, भारत का सबसे प्राचीन शहर है। यहां की गंगा आरती, काशी विश्वनाथ मंदिर और घाटों पर मंत्रमुग्ध करने वाले दृश्य आपकी यात्रा को यादगार बना देंगे। Varanasi, Prayagraj, and Ayodhya tour Package में वाराणसी के प्रमुख धार्मिक स्थलों जैसे कालभैरव मंदिर, संकट मोचन हनुमान मंदिर और अस्सी घाट का भ्रमण शामिल है।
प्रयागराज: संगम नगरी में कुंभ मेला का अनुभव
कुंभ मेला 2025 का मुख्य आकर्षण प्रयागराज में होगा। संगम तट पर डुबकी लगाकर आप अपने पापों से मुक्ति और आत्मिक शांति का अनुभव कर सकते हैं। प्रयागराज में अक्षयवट, हनुमान मंदिर और इलाहाबाद किला जैसे ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण भी Varanasi, Prayagraj, and Ayodhya tour Package का हिस्सा है।
अयोध्या: भगवान श्रीराम की जन्मभूमि
अयोध्या, भगवान श्रीराम की जन्मस्थली, आध्यात्मिकता और भक्ति का अद्भुत संगम है। राम जन्मभूमि मंदिर, कनक भवन और सरयू नदी के घाटों पर एक दिव्य अनुभव आपका इंतजार कर रहा है। Varanasi, Prayagraj, and Ayodhya tour Package में अयोध्या का धार्मिक महत्व और ऐतिहासिक धरोहरों की यात्रा भी शामिल है।
वाराणसी प्रयागराज अयोध्या टूर पैकेज के फायदे
सुविधाजनक यात्रा: संगठित Varanasi, Prayagraj, and Ayodhya tour Package के माध्यम से आपको हर स्थान पर परिवहन और ठहरने की सुविधा मिलेगी।
स्थानीय गाइड: इन पवित्र स्थलों की धार्मिक और ऐतिहासिक जानकारी से आपकी यात्रा और भी रोचक बन जाएगी।
समय की बचत: पैकेज में सब कुछ पहले से तय होने के कारण आपकी यात्रा का हर पल उपयोगी रहेगा।
यात्रा का सही समय
कुंभ मेला जनवरी 2025 से शुरू होकर मार्च 2025 तक चलेगा। माघ पूर्णिमा और महाशिवरात्रि जैसे प्रमुख स्नान पर्वों पर संगम में डुबकी लगाने का विशेष महत्व है। Varanasi, Prayagraj, and Ayodhya tour Package के माध्यम से आप इन पावन अवसरों का लाभ उठा सकते हैं।
निष्कर्ष
वाराणसी प्रयागराज अयोध्या टूर पैकेज के साथ कुंभ मेला 2025 की यात्रा न केवल आध्यात्मिक शांति प्रदान करेगी, बल्कि आपको भारतीय संस्कृति और धार्मिक धरोहर की गहराई से परिचित कराएगी। अपने जीवन के इस विशेष पल को यादगार बनाने के लिए आज ही अपनी यात्रा की योजना बनाएं।
"सुगम यात्राा" के साथ अपनी यात्रा को सुगम और यादगार बनाएं!
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Varanasi, Prayagraj, and Ayodhya tour Package
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राम मंदिर अयोध्या दर्शन और कुंभ मेला 2025 के लिए वाराणसी प्रयागराज अयोध्या टूर पैकेज – एक दिव्य आध्यात्मिक यात्रा
Varanasi, Prayagraj, and Ayodhya tour Package
भारत की पावन भूमि पर स्थित अयोध्या, भगवान श्रीराम की जन्मभूमि, सनातन संस्कृति और आस्था का प्रमुख केंद्र है। 2025 में कुंभ मेला प्रयागराज में आयोजित होने जा रहा है, जो विश्व का सबसे बड़ा आध्यात्मिक आयोजन माना जाता है। इस दिव्य अवसर पर राम मंदिर दर्शन के साथ संगम स्नान का अनुभव और वाराणसी के पावन स्थलों का दर्शन एक अद्भुत यात्रा बन सकता है। यदि आप वाराणसी, प्रयागराज और अयोध्या की यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो हमारा Varanasi, Prayagraj, and Ayodhya tour Package आपके लिए एक संपूर्ण आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करेगा।
वाराणसी: मोक्ष नगरी में दिव्य अनुभव
वाराणसी, जिसे काशी के नाम से भी जाना जाता है, भारत की सबसे प्राचीन नगरी है। यहां के पावन घाट, काशी विश्वनाथ मंदिर और गंगा आरती हर भक्त को दिव्य शांति प्रदान करते हैं। Varanasi, Prayagraj, and Ayodhya tour Package के अंतर्गत:
काशी विश्वनाथ मंदिर दर्शन
गंगा आरती का दिव्य अनुभव
संकट मोचन हनुमान मंदिर और काल भैरव मंदिर के दर्शन
प्रयागराज: कुंभ मेला 2025 का दिव्य संगम स्नान
प्रयागराज में आयोजित होने वाला कुंभ मेला 2025 विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन होगा। यहां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियों के संगम पर स्नान करना अत्यंत पवित्र माना जाता है। Varanasi, Prayagraj, and Ayodhya tour Package के अंतर्गत कुंभ मेला दर्शन:
कुंभ मेले में संगम स्नान और पूजन
अक्षयवट और बड़े हनुमान मंदिर दर्शन
इलाहाबाद किला और आनंद भवन का भ्रमण
महत्वपूर्ण स्नान तिथियाँ:
मकर संक्रांति (14 जनवरी 2025)
मौ���ी अमावस्या (29 जनवरी 2025)
वसंत पंचमी (3 फरवरी 2025)
माघ पूर्णिमा (12 फरवरी 2025)
महाशिवरात्रि (26 फरवरी 2025)
अयोध्या: राम मंदिर दर्शन का दिव्य अनुभव
अयोध्या, भगवान श्रीराम की जन्मस्थली, आस्था और भक्ति का प्रमुख केंद्र है। अब राम मंदिर के भव्य निर्माण के बाद यह स्थल श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बन गया है। Varanasi, Prayagraj, and Ayodhya tour Package में अयोध्या दर्शन के मुख्य आकर्षण:
राम जन्मभूमि मंदिर दर्शन
हनुमानगढ़ी और कनक भवन मंदिर दर्शन
सरयू नदी के पावन घाटों पर आरती और स्नान
वाराणसी प्रयागराज अयोध्या टूर पैकेज की विशेषताएँ
वाराणसी प्रयागराज अयोध्या टूर पैकेज आपको एक संगठित और यादगार यात्रा अनुभव प्रदान करता है:
कुंभ मेला विशेष दर्शन: संगम स्नान और कुंभ मेले के प्रमुख आयोजनों का हिस्सा बनने का अवसर।
संपूर्ण यात्रा व्यवस्था: परिवहन, ठहरने और भोजन की संपूर्ण सुविधा।
स्थानीय गाइड: धार्मिक स्थलों की ऐतिहासिक और आध्यात्मिक जानकारी।
समय की बचत: संगठित कार्यक्रम के कारण यात्रा सहज और सुविधाजनक।
यात्रा का सही समय
कुंभ मेला 2025 जनवरी से मार्च 2025 तक आयोजित होगा। इस दौरान प्रयागराज में संगम स्नान का विशेष महत्व होगा। Varanasi, Prayagraj, and Ayodhya tour Package के माध्यम से आप इन दिव्य अवसरों का लाभ उठा सकते हैं और आध्यात्मिक शांति का अनुभव कर सकते हैं।
निष्कर्ष
Varanasi, Prayagraj, and Ayodhya tour Package के साथ कुंभ मेला 2025 का दिव्य अनुभव, राम मंदिर के दर्शन और वाराणसी व प्रयागराज के पवित्र स्थलों की यात्रा आपके जीवन को एक नई आध्यात्मिक ऊर्जा और शांति प्रदान करेगी। इस पावन अवसर को यादगार बनाने के लिए आज ही सुगम यात्राा के साथ अपनी बुकिंग सुनिश्चित करें और आध्यात्मिक आनंद प्राप्त करें!
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Varanasi, Prayagraj, and Ayodhya tour Package
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ज्ञानवापी के बाद कॉलेज में बनी मस्जिद और मजार को लेकर मचा बवाल, छात्रों ने की हनुमान चालीसा पढ़ने की कोशिश
Uttar Pradesh News: वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी ज्ञानवापी मस्जिद के बाद यहां के यूपी कॉलेज में स्थित मस्जिद और मजार को लेकर बवाल बढ़ने लगा है। छात्र संगठनोंं ने मस्जिद और मजार को हटाने की मांग कर दी है। पूर्व छात्रों और नए बने संगठन युवा परिषद के छात्रों ने शुक्रवार को भी यहां पर हनुमान चालीसा पढ़ने की कोशिश की लेकिन पुलिस ने बल प्रयोग कर उनके इरादों को पूरा नहीं होने दिया। इस दौरान…
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मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ में जमीन पर बैठकर कथा सुनी
उत्तरकाशी: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उत्तरकाशी भ्रमण के दौरान श्री शंक्ति मंदिर एवं काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन कर देश व प्रदेश के विकास व ��न कल्याण की कामना की। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने मंदिर परिसर में आयोजित सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ में प्रतिभाग कर अन्य श्रद्धालुओं के साथ जमीन पर बैठकर कथा सुनी। मुख्यमंत्री के समन्वयक किशोर भट्ट एवं उनके परिजनों द्वारा शक्ति मंदिर के…
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"प्रशासन की अगुवाई में श्रमदान"
श्रीमान जिला कलक्टर महोदया के निर्देशानुसार आज प्रातः काशी विश्वनाथ मंदिर (सनसोलाव तालाब) परिसर बीकानेर में श्रम दान/सफाई अभियान एवं पौधारोपण का कार्य बीकानेर के सरकारी विभागों के साथ आबकारी विभाग से डॉ.रश्मि जैन जिला आबकारी अधिकारी बीकानेर, राजेश आचार्य सहायक प्रशासनिक अधिकारी एवं राकेश खत्री आबकारी निरीक्षक आनंद पंवार, लियाकत अली, भीमगिरी, रघुविरसिंह, जबरसिंग तथा अन्य कार्मिक शामिल रहे,जय हिन्द…
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काशी विश्वनाथ मंदिर में तस्वीऱ लेना Elvish Yadav को पड़ेगा भारी, वकील ने दर्ज कराई शिकायत
मशहूर यूट्यूबर कहे जाने वाले एलविश यादव (Elvish Yadav) इन दिनों लगातार सुर्खियों में छाए हुए हैं. गुरुवार को एल्विस ने बाबा काशी विश्वनाथ के दर्शन किए. इस दौरान उन्होंने परिसर के अंदर गर्भ गृह में फोटो भी खिंचवाया जिसे लेकर विवाद हो गया. आपको बता दे की वाराणसी के उपायुक्त से इस बात की शिकायत की गई है और अब माना जा रहा है कि एलविश यादव के खिलाफ बहुत बड़ी कार्रवाई हो सकती है. उन पर यह आरोप लगा है…
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काशी विश्वनाथ मंदिर में टूटा रिकॉर्ड, 7 साल में चार गुना बढ़ी आय, दान और दर्शनार्थियों की संख्या में लगातार हो रही वृद्धि
2021-22 में केडी धाम के रूप में विकसित काशी विश्वनाथ मंदिर और मंदिर क्षेत्र में दुनिया भर के तीर्थयात्रियों सहित दान में रिकॉर्ड चार गुना वृद्धि देखी गई है। वित्तीय वर्ष 2017-18 से 2023-24 तक केवी धाम की आय चार गुना बढ़ गई है। 2020 और 2021 में कोविड-19 महामारी के दौरान भक्तों की संख्या में गिरावट आई, लेकिन बाद के वर्षों में अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज की गई। मंदिर की वार्षिक आय पहले 20.14 करोड़ रुपये…
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varanasi mein ghume ki jagah
कशी को वाराणसी और बनारस नाम से जाना जाता है ! काशी दुनिया का सबसे पुराना और पवित्र शहर है ! वाराणसी की पहचान होती है गंगा नदी से ! वाराणसी वह जगह है जिसे मोक्ष प्राप्ति का केंद्र कहा जाता है ! इस शहर को लेकर हिंदू धर्म में बड़ी मानता है अगर कोई व्यक्ति यहां आकर मर जाता है या कशी मैं उसका अंतिमसंस्कार होता है तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है ! वाराणसी शहर हिंदुओं का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है वाराणसी में देश से ही नहीं बल्कि विदेश से भी लोग यहां की संस्कृति को समझने के लिए आते हैं काशी विश्वनाथ मंदिर दुनिया के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है ! काशी के बारे में कहा जाता है कि यह नगरी भगवान शिवजी की त्रिशूल पर खड़ी है
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मोदी सरकार में आस्था से बन रहा अर्थव्यवस्था का कीर्तिमान! मार्च महीने में काशी विश्वनाथ मंदिर में 11.14 करोड़ रुपये से ज्यादा का दान आया और सावन महीने में भक्तों की संख्या का रिकॉर्ड भी टूट गया। @narendramodi @amitshahofficial @jpnaddaofficial @drmohanyadav51 #ASRE #Gramya #PehlaVoteModiKo #mainhoonmodikaparivar #phitrEkBaarModiSarkar #ModikiGuarentee #PrimeMinisterOfIndia #reelitfeelit #BJPindia #NarendraModiji
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ई बनारस ह गुरु
2 April 2024
वाराणसी का मौसम और वातावरण अत्यंत प्रेरणादायक है। नदी किनारे बैठकर सूर्यास्त का दृश्य देखना, गंगा आरती का अनुभव करना और देवघरों में भगवान की भक्ति करना वाराणसी के आत्मा को चूमता है।
इस शहर में स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव की प्राचीनतम और प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। मैंने भी इस प्रसिद्ध मंदिर का दर्शन किया है और वहां की शांति और ध्यान की वातावरण में जीवन का अद्भुत अनुभव किया है।
वाराणसी का भोजन खास होता है। जितना पुराना यह शहर है, उतना ही उसका खाना रौचक और परंपरागत है। मैंने भी कई लोकप्रिय भोजन का आनंद लिया है, जैसे की बाटी चोक्हा और रसगुल्ला।
वाराणसी के रंग-बिरंगे बाजार, विक्रमादित्य का उद्यान और सर्दियों में मनोरंजन के लिए घूमने के लिए ढेर सारी जगहें हैं। इस शहर की महानता और प्राचीनता के साथ-साथ, यह भारतीय सभ्यता का गौरवशाली हिस्सा भी है।
वाराणसी शहर मैंने अनेक योद्धाओं और पान्दवों के साथ प्राचीन भारत का वीर इतिहास जीते हैं और मैंने भी ऐसे पलों को अपने आंतरिक अनुभव के रूप में देखा है।
वाराणसी शहर की प्रतिभा और ऐतिहासिक महत्ता का पता लगाने के लिए उसके लाभ उठाएं और इस अद्भुत शहर के सबसे अनूठे पहलू को जाने। उसकी सुंदरता और धार्मिक विरासत के साथ सम्मान और समर्थन करें।
नमः पार्वती पतये हर हर महादेव 🙌❤️
Love & Peace on your way.💕
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मुख्यमंत्री ने ओम आश्रम में मदिर प्राण प्रतिष्ठा में भाग लेकर संतो का लिया आशीर्वाद
राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने कहा कि यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश का अमृतकाल भारत की संस्कृति और आस्था का उदयकाल है। काशी विश्वनाथ में कॉरिडोर एवं उज्जैन के महाकाल मंदिर में महाकाल लोक के निर्माण के अभूतपूर्व कार्यों के साथ ही भारत की संस्कृति एवं विरासत पूरी दुनिया में फिर से स्थापित हो रही है। उन्होंने कहा कि अयोध्या में श्रीराम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा से…
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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वाराणसी पहुंचकर ज्ञानवापी के व्यास जी तहखाने में झांकी दर्शन करने के बाद काशी विश्वनाथ मंदिर में पूजा अर्चना की।
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#UP दिसंबर 2023 में काशी विश्वनाथ मंदिर में अचानक कम हुई दर्शन करने आने वाले भक्तों की संख्या,जानिए क्या है कारण…
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12 ज्योतिर्लिंगों में से सातवां ज्योतिर्लिंग काशी विश्वनाथ है। इसके दर्शन मात्र से ही लोगों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
🍁 काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग 🍁
वाराणसी एक ऐसा पावन स्थान है जहाँ काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग विराजमान है। यह शिवलिंग काले चिकने पत्थर का है।
काशी, यानि कि वाराणसी सबसे प्राचीन नगरी है। 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ मणिकर्णिका भी यहीं स्थित है। इस मंदिर का कई बार जीर्णोंद्धार हुआ। इस मंदिर के बगल में ज्ञानवापी है।
12 ज्योतिर्लिंगों में से इस ज्योतिर्लिंग का बहुत महत्त्व है। इस ज्योतिर्लिंग पर पंचामृत से अभिषेक होता रहता है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान मरते हुए प्राणियों के कानों में तारक मंत्र बोलते हैं। जिससे पापी लोग भी भव सागर की बाधाओं से मुक्त हो जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि काशी नगरी का प्रलय काल में अंत नहीं होगा।
शिवपुराण के अनुसार काशी में देवाधिदेव विश्वनाथजी का पूजन-अर्चन सर्व पापनाशक, अनंत अभ्युदयकारक, संसाररूपी दावाग्नि से दग्ध जीवरूपी वृक्ष के लिए अमृत तथा भवसागर में पड़े प्राणियों के लिए मोक्षदायक माना जाता है।
ऐसी मान्यता है कि वाराणसी में मनुष्य के देहावसान पर स्वयं महादेव उसे मुक्तिदायक तारक मंत्र का उपदेश करते हैं।
पौराणिक मान्यता है कि काशी में लगभग 511 शिवालय प्रतिष्ठित थे। इनमें से 12 स्वयंभू शिवलिंग, 46 देवताओं द्वारा, 47 ऋषियों द्वारा, 7 ग्रहों द्वारा, 40 गणों द्वारा तथा 294 अन्य श्रेष्ठ शिवभक्तों द्वारा स्थापित किए गए हैं।
काशी या वाराणसी भगवान शिव की राजधानी मानी जाती है इसलिए अत्यंत महिमामयी भी है।
अविमुक्त क्षेत्र, गौरीमुख, त्रिकंटक विराजित, महाश्मशान तथा आनंद वन प्रभृति नामों से मंडित होकर गूढ़ आध्यात्मिक रहस्यों वाली है काशी।
प्रलय काल के समय भगवान शिव जी काशी नगरी को अपने त्रिशूल पर धारण कर लेंगे। भगवान शिव जी को विश्वेश्वर और विश्वनाथ नाम से भी पुकारा जाता है। पुराणों के अनुसार इस नगरी को मोक्ष की नगरी कहा जाता है।
सावन के महीने में भगवान शिव जी के ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने का विशेष महत्त्व है।
काशी विश्वनाथ मंदिर के प्रसिद्धि का कारण--
जो यहां है वो कहीं और नहीं विश्व प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी में गंगा नदी के तट पर विद्यमान हैं। द्वादश ज्योतिर्लिंग में प्रमुख काशी विश्वनाथ जहां वाम रूप में स्थापित बाबा विश्वनाथ शक्ति की देवी मां भगवती के साथ विराजे हैं। मान्यता है कि पवित्र गंगा में स्नान और काशी विश्वनाथ के दर्शन मात्र से ��ोक्ष की प्राप्ति होती है।
श्रृंगार के समय सारी मूर्तियां पश्चिम मुखी होती हैं। इस ज्योतिर्लिंग में शिव और शक्ति दोनों साथ ही विराजते हैं, जो अद्भुत है। ऐसा दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिलता है।
विश्वनाथ दरबार में गर्भगृह का शिखर है। इसमें ऊपर की ओर गुंबद श्री यंत्र से मंडित है।
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग दो भागों में है। दाहिने भाग में शक्ति के रूप में मां भगवती विराजमान हैं। दूसरी ओर भगवान शिव वाम रूप (सुंदर) रूप में विराजमान हैं। इसीलिए काशी को मुक्ति क्षेत्र कहा जाता है।
बाबा विश्वनाथ के दरबार में तंत्र की दृष्टि से चार प्रमुख द्वार इस प्रकार हैं। शांति द्वार, कला द्वार, प्रतिष्ठा द्वार, निवृत्ति द्वार। इन चारों द्वारों का तंत्र की दुनिया में में अलग ही स्थान है। पूरी दुनिया में ऐसा कोई जगह नहीं है जहां शिवशक्ति एक साथ विराजमान हों और साथ में तंत्र द्वार भी हो।बाबा का ज्योतिर्लिंग गर्भगृह में ईशान कोण में मौजूद है।
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग कथा
कथा (1)--
इस ज्योतिर्लिंग के विषय में एक कथा है। जो इस प्रकार है –
भगवान शिव जी अपनी पत्नी पार्वती जी के साथ हिमालय पर्वत पर रहते थे। भगवान शिव जी की प्रतिष्ठा में कोई बाधा ना आये इसलिए पार्वती जी ने कहा कि कोई और स्थान चुनिए।
शिव जी को राजा दिवोदास की वाराणसी नगरी बहुत पसंद आयी। भगवान शिव जी के लिए शांत जगह के लिए निकुम्भ नामक शिवगण ने वाराणसी नगरी को निर्मनुष्य कर दिया। लेकिन राजा को दुःख हुआ। राजा ने घोर तपस्या करके ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और उनसे अपना दुःख दूर करने की प्रार्थना की।
दिवोदास ने बोला कि देवता देवलोक में रहे, पृथ्वी तो मनुष्यों के लिए है। ब्रह्मा जी के कहने पर शिव जी मंदराचल पर्वत पर चले गए। वे चले तो गए लेकिन काशी नगरी के लिए अपना मोह नहीं त्याग सके। तब भगवान विष्णु जी ने राजा को तपोवन में जाने का आदेश दिया। उसके बाद वाराणसी महादेव जी का स्थायी निवास हो गया और शिव जी ने अपने त्रिशूल पर वाराणसी नगरी की स्थापना की।
कथा (2)--
एक और कथा प्रचलित है। एक बार ब्रह्मा जी और विष्णु भगवान में बहस हो गयी थी कि कौन बडा है। तब ब्रह्मा जी अपने वाहन हंस के ऊपर बैठकर स्तम्भ का ऊपरी छोर ढूंढ़ने निकले और विष्णु जी निचला छोर ढूंढने निकले। तब स्तम्भ में से प्रकाश निकला।
उसी प्रकाश में भगवान शिव जी प्रकट हुए। विष्णु जी ने स्वीकार किया कि मैं अंतिम छोर नहीं ढूंढ सका। लेकिन ब्रह्मा जी ने झूठ कहा कि मैंने खोज लिया। तब शिव जी ने ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि उनकी पूजा कभी नहीं होगी क्योंकि खुद की पूजा कराने के लिए उन्होंने झूठ बोला था। तब उसी स्थान पर शिव जी ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हो गए।
कथा (3)--
एक ये भी मान्यता है कि भगवान शिव जी अपने भक्त के सपने में आये और कहा कि तुम गंगा में स्नान करोगे उसके बाद तुम्हे दो शिवलिंगों के दर्शन होंगे। उन दोनों शिवलिंगों को तुम्हे जोड़कर स्थापित करना होगा। तब दिव्य शिवलिंग की स्थापना होगी। तब से ही भगवान शिव माँ पार्वती जी के साथ यहाँ विराजमान हैं।
काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास
द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख काशी विश्वनाथ मंदिर अनादिकाल से काशी में है। यह स्थान शिव और पार्वती का आदि स्थान है इसीलिए आदिलिंग के रूप में अविमुक्तेश्वर को ही प्रथम लिंग माना गया है। इसका उल्लेख महाभारत और उपनिषद में भी किया गया है। ईसा पूर्व 11वीं सदी में राजा हरिश्चन्द्र ने जिस विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था उसी का सम्राट विक्रमादित्य ने जीर्णोद्धार करवाया था। उसे ही 1194 में मुहम्मद गौरी ने लूटने के बाद तुड़वा दिया था।
इतिहासकारों के अनुसार इस भव्य मंदिर को सन् 1194 में मुहम्मद गौरी द्वारा तोड़ा गया था। इसे फिर से बनाया गया, लेकिन एक बार फिर इसे सन् 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह द्वारा तोड़ दिया गया। पुन: सन् 1585 ई. में राजा टोडरमल की सहायता से पं. नारायण भट्ट द्वारा इस स्थान पर फिर से एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया। इस भव्य मंदिर को सन् 1632 में शाहजहां ने आदेश पारित कर इसे तोड़ने के लिए सेना भेज दी।
सेना हिन्दुओं के प्रबल प्रतिरोध के कारण विश्वनाथ मंदिर के केंद्रीय मंदिर को तो तोड़ नहीं सकी, लेकिन काशी के 63 अन्य मंदिर तोड़ दिए गए।
डॉ. एएस भट्ट ने अपनी किताब 'दान हारावली' में इसका जिक्र किया है कि टोडरमल ने मंदिर का पुनर्निर्माण 1585 में करवाया था। 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने एक फरमान जारी कर काशी विश्वनाथ मंदिर ध्वस्त करने का आदेश दिया। यह फरमान एशियाटिक लाइब्रेरी, कोलकाता में आज भी सुरक्षित है। उस समय के लेखक साकी मुस्तइद खां द्वारा लिखित 'मासीदे आलमगिरी' में इस ध्वंस का वर्णन है।
औरंगजेब के आदेश पर यहां का मंदिर तोड़कर एक ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई।
2 सितंबर 1669 को औरंगजेब को मंदिर तोड़ने का कार्य पूरा होने की सूचना दी गई थी। औरंगजेब ने प्रतिदिन हजारों ब्राह्मणों को मुसलमान बनाने का आदेश भी पारित किया था।
सन् 1752 से लेकर सन् 1780 के बीच मराठा सरदार दत्ताजी सिंधिया व मल्हारराव होलकर ने मंदिर मुक्ति के प्रयास किए। 7 अगस्त 1770 ई. में महादजी सिंधिया ने दिल्ली के बादशाह शाह आलम से मंदिर तोड़ने की क्षतिपूर्ति वसूल करने का आदेश जारी करा लिया, परंतु तब तक काशी पर ईस्ट इंडिया कंपनी का राज हो गया था इसलिए मंदिर का नवीनीकरण रुक गया।
1777-80 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई द्वारा इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया था।
अहिल्याबाई होलकर ने इसी परिसर में विश्वनाथ मंदिर बनवाया जिस पर पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने सोने का छत्र बनवाया। ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने ज्ञानवापी का मंडप बनवाया और महाराजा नेपाल ने वहां विशाल नंदी प्रतिमा स्थापित करवाई।
सन् 1809 में काशी के हिन्दुओं ने जबरन बनाई गई मस्जिद पर कब्जा कर लिया था, क्योंकि यह संपूर्ण क्षेत्र ज्ञानवापी मंडप का क्षेत्र है जिसे आजकल ज्ञानवापी मस्जिद कहा जाता है। 30 दिसंबर 1810 को बनारस के तत्कालीन जिला दंडाधिकारी मि. वाटसन ने 'वाइस प्रेसीडेंट इन काउंसिल' को एक पत्र लिखकर ज्ञानवापी परिसर हिन्दुओं को हमेशा के लिए सौंपने को कहा था, लेकिन यह कभी संभव नहीं हो पाया।
इतिहास की किताबों में 11 से 15वीं सदी के कालखंड में मंदिरों का जिक्र और उसके विध्वंस की बातें भी सामने आती हैं। मोहम्मद तुगलक (1325) के समकालीन लेखक जिनप्रभ सूरी ने किताब 'विविध कल्प तीर्थ' में लिखा है कि बाबा विश्वनाथ को देव क्षेत्र कहा जाता था।
लेखक फ्यूरर ने भी लिखा है कि फिरोजशाह तुगलक के समय कुछ मंदिर मस्जिद में तब्दील हुए थे। 1460 में वाचस्पति ने अपनी पुस्तक 'तीर्थ चिंतामणि' में वर्णन किया है कि अविमुक्तेश्वर और विशेश्वर एक ही लिंग है।
काशी विश्वेश्वर लिंग ज्योतिर्लिंग है जिसके दर्शन से मनुष्य परम ज्योति को पा लेता है। सभी लिंगों के पूजन से सारे जन्म में जितना पुण्य मिलता है, उतना केवल एक ही बार श्रद्धापूर्वक किए गए 'विश्वनाथ' के दर्शन-पूजन से मिल जाता है। माना जाता है कि सैकड़ों जन्मों के पुण्य के ही फल से विश्वनाथजी के दर्शन का अवसर मिलता है।
गंगा नदी के तट पर विद्यमान श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में वैसे तो सालभर यहां श्रद्धालुओं द्वारा पूजा-अर्चना के लिए आने का सिलसिला चलता रहता है, लेकिन सावन आते ही इस मोक्षदायिनी मंदिर में देशी-विदेशी श्रद्धालुओं का जैसे सैलाब उमड़ पड़ता है।विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में उपलब्ध जानकारी के मुताबिक यह सिलसिला प्राचीनकाल से चला आ रहा है।
इस मंदिर में दर्शन-पूजन के लिए आने वालों में आदिशंकराचार्य, संत एकनाथ, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद, गोस्वामी तुलसीदास जैसे सैकड़ों महापुरुष शामिल हैं।
काशी विश्वनाथ की महत्ता---
भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में शामिल उत्तरप्रदेश की प्राचीन धार्मिक नगरी काशी या वाराणसी
तीनों लोक���ं में न्यारी इस धार्मिक नगरी में हजारों साल पूर्व स्थापित श्री काशी विश्वनाथ मंदिर विश्वप्रसिद्ध है। हिन्दू धर्म में सर्वाधिक महत्व के इस मंदिर के बारे में कई मान्यताएं हैं।
माना जाता है कि भगवान शिव ने इस 'ज्योतिर्लिंग' को स्वयं के निवास से प्रकाशपूर्ण किया है। पृथ्वी पर जितने भी भगवान शिव के स्थान हैं, वे सभी वाराणसी में भी उन्हीं के सान्निध्य में मौजूद हैं। भगवान शिव मंदर पर्वत से काशी आए तभी से उत्तम देवस्थान नदियों, वनों, पर्वतों, तीर्थों तथा द्वीपों आदि सहित काशी पहुंच गए।
विभिन्न ग्रंथों में मनुष्य के सर्वविध अभ्युदय के लिए काशी विश्वनाथजी के दर्शन आदि का महत्व विस्तारपूर्वक बताया गया है। इनके दर्शन मात्र से ही सांसारिक भयों का नाश हो जाता है और अनेक जन्मों के पाप आदि दूर हो जाते हैं.
काशी विश्वेश्वर लिंग ज्योतिर्लिंग है जिसके दर्शन से मनुष्य परम ज्योति को पा लेता है। सभी लिंगों के पूजन से सारे जन्म में जितना पुण्य मिलता है, उतना केवल एक ही बार श्रद्धापूर्वक किए गए 'विश्वनाथ' के दर्शन-पूजन से मिल जाता है। माना जाता है कि सैकड़ों जन्मों के पुण्य के ही फल से विश्वनाथजी के दर्शन का अवसर मिलता है।
गंगा नदी के तट पर विद्यमान श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में वैसे तो सालभर यहां श्रद्धालुओं द्वारा पूजा-अर्चना के लिए आने का सिलसिला चलता रहता है, लेकिन सावन आते ही इस मोक्षदायिनी मंदिर में देशी-विदेशी श्रद्धालुओं का जैसे सैलाब उमड़ पड़ता है।
प्रलय काल के समय भगवान शिव जी काशी नगरी को अपने त्रिशूल पर धारण कर लेंगे। भगवान शिव जी को विश्वेश्वर और विश्वनाथ नाम से भी पुकारा जाता है। पुराणों के अनुसार इस नगरी को मोक्ष की नगरी कहा जाता है।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रांगण में भी एक विश्वनाथ का मंदिर बनाया गया है। कहा जाता है कि इस मंदिर का भी उतना ही महत्त्व है जितना पुराने विश्वनाथ मंदिर का है। इस नए मंदिर के विषय में एक कहानी है जो मदन मोहन मालवीय से जुडी हुई है। मालवीय जी शिव जी के उपासक थे। एक दिन उन्होंने शिव भगवान की उपासना की तब उन्हें एक भव्य मूर्ति के दर्शन हुए।
जिससे उन्हें आदेश मिला कि बाबा विश्वनाथ की स्थापना की जाये। तब उन्होंने वहां मंदिर बनवाना शुरू करवाया लेकिन वे बीमार हो गए तब यह जानकार उद्योगपति युगल किशोर विरला ने इस मंदिर की स्थापना का कार्य पूरा करवाया। यहाँ भी हजारों की संख्या में भक्तगण दर्शन करने के लिए आते हैं। विद्यालय प्रांगण में स्थापित होने के कारण यह विद्यार्थियों के लिए आकर्षण का केंद्र है।
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