#कम बजट वाली फ़िल्में
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aajkitaazakhabar2022 · 3 years ago
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कम, बजट: जी5, वेट य़ैट पर ये ऐसी फिल्में नहीं हैं जो आपको निराश करती हैं!
कम, बजट: जी5, वेट य़ैट पर ये ऐसी फिल्में नहीं हैं जो आपको निराश करती हैं!
हाल ही में उसे उसकी पहचान मिली। आर्थिक रूप से बजट बना रहा है। लेकिन . जी5, वैट, जिस तरह से मौसम में अजीब होता है। अगर आप भी लॉग इन करेंगे तो जॉल्‍ट की लिस्टिंग के लिए l बधाई हो- 2018 में शामिल होने वाले खिलाड़ी ने कौन-कौन से लोग थे। नीना गुप्ता, गजराज राव, सुरेखा सीकरी और सान्या मल्होत्रा ​​की बधाई हो स्वादिष्ट खाने पर उपलब्ध है। फिल्म बजट बजट में 132 करोड़ की कमाई की फिल्म थी। अंधाधुन- ख़ुरखाना…
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moviesextraa · 3 years ago
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साल 2006 ऋतिक रोशन के लिए बहुत सफ़ल साल साबित हुआ । इस साल की दो सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फ़िल्में ऋतिक रोशन की रही । यशराज फिल्म्स की संजय गढ़वी निर्देशित एक्शन फ़िल्म कमाई के मामले में इस साल नंबर वन फ़िल्म बनी। दूसरे स्थान पर रही ऋतिक रोशन की होम प्रोडक्शन की फ़िल्म “क्रिश” जो 2003 में आई “कोई मिल गया” का सीक्वेल थी । धूम 2 भी 2004 में आई यशराज फिल्म्स निर्मित जॉन अब्राहम, अभिषेक बच्चन और उदय चोपड़ा अभिनीत धूम का सीक्वेल थी। धूम 2 वर्ष 2006 में आज ही के दिन रिलीज हुई थी, ये फ़िल्म आज अपनी रिलीज़ को 15साल पूरे कर रही है। चलिए इस मौक़े पर बात करते हैं इस फ़िल्म की मेकिंग से जुड़े कुछ किस्सों की।
फ़िल्म की कास्टिंग
जब किसी हिट मूवी का सीक्वेल बनता है तो उस सीक्वेल से दर्शकों की उम्मीदें बढ़ जाती है। निर्देशक का काम होता है उन दर्शकों की उम्मीदों पर खरा उतरना। धूम के हिट होने के बाद ये बात निर्माता आदित्य चोपड़ा और निर्देशक संजय गढ़वी को अच्छे से पता थी। संजय गढ़वी ने धूम की रिलीज़ से पहले 2006 में एक इंटरव्यू में बताया था कि उनको धूम 2 के लिए जॉन अब्राहम से बड़ा स्टार चाहिए था । उन्होंने ये बात आदित्य चोपड़ा को बताई । आदित्य चोपड़ा ने उनको शाहरुख़ ख़ान, सलमान ख़ान, आमिर ख़ान और ऋतिक रोशन के नाम सुझाए और इन पर संजय गढ़वी की राय जाननी चाही । संजय ने इन चारों में से ऋतिक रोशन को चुना क्यों कि ऋतिक रोशन इन चारों में से सबसे यंग थे और धूम 2 के रोल के लिए इनसे ज्यादा फिट बैठते थे । संजय को लगा कि पोस्टर में अभिषेक बच्चन और उदय चोपड़ा के साथ शाहरुख़ ख़ान, सलमान ख़ान और आमिर ख़ान से ज्यादा ऋतिक रोशन अच्छे लगेंगे। ऋतिक रोशन की अभिषेक बच्चन और उदय चोपड़ा के साथ पुरानी दोस्ती भी थी तो संजय गढ़वी ने इन सब बातों को ध्यान में रखकर धूम 2 के नेगेटिव रोल के लिए ऋतिक रोशन का चुनाव किया। इस तरीके से ऋतिक रोशन की धूम 2 में एंट्री हुई। ऋतिक रोशन के अलावा इस फ़िल्म में ऐश्वर्या राय की भी एंट्री हुई। उनका सुनहरी वाला किरदार भी इस फ़िल्म में नेगेटिव शेड्स लिए हुआ था । फ़िल्म में बिपाशा बसु को सोनाली बोस और मोनाली बोस के डबल रोल के लिए साईन किया गया । ये रोल पहले प्रियंका चोपड़ा को ऑफर हुआ था लेकिन किन्हीं कारणों से उन्होंने इस रोल को करने से मना कर दिया। रिमी सेन का अभिषेक बच्चन की पत्नी के का इस फ़िल्म में भी छोटा सा रोल रखा गया। रिमी सेन की आवाज़ को इस फ़िल्म में डब किया गया था।
इस फ़िल्म के कलाकार���ं को फ़िल्म की तैयारी के लिए ख़ुद को शेप में दिखाने के लिए हर रोज़ कई घंटे जिम में पसीना बहाना पड़ता था। ऐश्वर्या राय का वजन उनकी पिछली फ़िल्म “ब्राइड एंड प्री ज्यूडियस” की स्क्रिप्ट डिमांड के कारण बढ़ गया था । आदित्य चोपड़ा और संजय गढ़वी ने ऐश्वर्या राय को सुनहरी के रोल के लिए सैक्सी दिखने के लिए ऐश को वजन कम करने के लिए कहा। ऋतिक रोशन ने भी इस फ़िल्म के लिए अपना पांच किलो वजन कम किया। कहा जाता है कि बिपाशा बसु ने इस फ़िल्म में खुद को फिट दिखाने के लिए सबसे ज्यादा स्ट्रिक्ट डाइट फॉलो की थी । बिपाशा उनके बिकनी सीन के शूट से तीन दिन पहले तक अपनी डाइट में सिर्फ़ ओरेंज ज्यूस लेती थी।
संगीत और लोकेशन
धूम की तरह धूम 2 का संगीत भी प्रीतम ने कंपोज किया था । फ़िल्म में बैकग्राउंड स्कोर सलीम सुलेमान ने कंपोज किया था । “धूम अगेन” गाने के बोल आसिफ़ अली बेग ने और “क्रेजी किया रे” रीमिक्स गाने के बोल बंटी राजपूत ने लिखे थे । इन दोनों सोंग्स के अलावा बाकी सोंग्स समीर अंजा�� ने लिखे थे। फ़िल्म के संगीत को फ़िल्म क्रिटिक्स से एवरेज रेटिंग मिली लेकिन फ़िल्म के संगीत को दर्शकों ने बहुत सराहा। “धूम अगेन” और क्रेजी किया रे” सोंग्स बहुत पसंद किए गए । “धूम अगेन” गाना उस साल का सबसे ज्यादा पसंद किया जाने वाला गाना बना।
धूम 2 का कैनवास धूम के पहले पार्ट से बहुत बड़ा था। यशराज फिल्म्स ने इसकी मेकिंग में पानी की तरह पैसा बहाया और फ़िल्म को भव्य बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी । धूम जहां 11 करोड़ में बनी थी वहीं धूम 2का बजट 35 करोड़ था । फ़िल्म को दुनियाभर के भव्य लोकेशंस पर फिल्माया गया। इस फ़िल्म की शूटिंग यशराज स्टूडियो,मुंबई, नामीबिया, साउथ अफ्रीका और ब्राज़ील में की गई। ये ब्राज़ील में शूट होने वाली हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री की पहली फ़िल्म बनी। जुलाई 2005 में बाढ़ के कारण यशराज स्टूडियो में बना इस फ़िल्म का भव्य सैट नष्ट हो गया था , उस सैट को दुबारा बनाकर फ़िल्म की शूटिंग हुई। इस फ़िल्म में एक्शन सीक्वेंस को ग्रांड दिखाने के लिए कंप्यूटर ग्राफिक्स, स्पेशल इफेक्ट्स पर भी काफी मेहनत और खर्चा किया गया । फ़िल्म के कई सीन ग्रीन स्क्रीन के सहारे शूट किए गए। नामीबिया के रेगिस्तान में ट्रेन पर ऋतिक रोशन के एक्शन सीक्वेंस और अभिषेक बच्चन का जेट स्काई से झील से बाहर निकलने वाला दृश्य ग्रीन स्क्रीन से शूट किए गए थे।
मार्केटिंग और रिलीज़
कई मूवीज का टीजर और ट्रेलर इतना धमाकेदार होता है कि दर्शक उस टीजर को देखकर ही फ़ैसला कर लेता है कि ये मूवी तो मुझे थियेटर में ही देखनी है। धूम 2 का टीजर भी यशराज फिल्म्स ने कुछ ऐसा ही बनाया था। इस फ़िल्म का टीजर धर्मा प्रोडक्शन की 11 अगस्त 2006 को रिलीज़ हुई मल्टी��्टारर “कभी अलविदा ना कहना” के साथ अटैच किया गया था । मै��ने “कभी अलविदा ना कहना” राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के महाराणा सिनेमा में देखी थी और उस फ़िल्म के साथ धूम 2 का टीजर देखते ही लग गया था कि ये फ़िल्म बॉक्सऑफिस पर चमत्कार करेगी।
यशराज फिल्म्स ने इस फ़िल्म की मार्केटिंग में कोई कसर नहीं छोड़ी । फ़िल्म को यशराज ने कई जाने माने ब्रांड्स के साथ प्रोमोट किया। फ़िल्म को कोका कोला के साथ “कोक उठा ले, धूम मचा ले” वाली लाइन के साथ प्रोमोट किया गया। भारत की वीडियो गेम कंपनी एफ एक्स लैब्स ने फ़िल्म को प्रोमोट करने के लिए इससे जुड़ा एक गेम लॉन्च किया। पेपे जींस ने अपने कई ब्रांड्स जैसे जींस, शर्ट्स , कैप आदि को धूम 2 से जोड़कर मार्केट में बेचा। इस प्रकार मार्केटिंग से धूम 2 की रिलीज़ से पहले ही धूम 2 की बहुत ज्यादा प्री रिलीज़ हाइप बन गई।
इस फ़िल्म को कुछ लीगल इश्यूज का भी सामना करना पड़ा। मुंबई के पुलिस कमिश्नर ने सेंसर बोर्ड से फ़िल्म के स्पीड बाइक्स के दृश्यों को एडिट करने के लिए कहा। उन्होंने सेंसर बोर्ड को बताया कि ऐसे दृश्य युवाओं में स्पीड से बाइक चलाने को बढ़ावा देते हैं जिससे सड़क दुर्घटनाओं में वृद्धि होती है इसलिए इन दृश्यों को हटाया जाए। फ़िल्म में ऋतिक रोशन और ऐश्वर्या राय के किसिंग सीन पर भी विवाद हुआ और ये कहते हुए इस सीन को कोर्ट में ले जाया गया कि ऐसे सीन नग्नता को बढ़ावा देते हैं।
बॉक्सऑफिस परफॉर्मेंस
धूम 2 इंडिया की उन चुनिंदा फिल्म्स में से है जिन्होंने रिलीज़ से पहले सबसे ज्यादा हाइप क्रिएट की थी। फ़िल्म की यंग स्टार कास्ट, फिल्म के म्यूज़िक, ऋतिक रोशन और ऐश्वर्या राय का लुक , फ़िल्म के एक्शन सींस और यशराज फिल्म्स की मार्केटिंग ने फ़िल्म का ऐसा बज्ज क्रिएट किया कि फ़िल्म की बंपर ओपनिंग लगनी पक्की हो गई । 24 नवंबर 2006 को धूम 2 इंडिया और ओवरसीज में एक साथ रिलीज़ हुई । इंडिया में ये फ़िल्म लगभग 1000 स्क्रीन्स पर रिलीज़ हुई । ये उस वक्त तक की सबसे बडी रिलीज़ थी। रिलीज़ के साथ ही फ़िल्म ने अपना जादू दिखाना शुरू किया। दर्शक पहले शो से फ़िल्म को देखने के लिए टूट पड़े । सिनेमाघरों के सामने दर्शकों की बड़ी बड़ी कतारे देखी गई। फ़िल्म के क्रेज का आलम ये था कि कई सिनेमाघरों को फ़िल्म के एक्स्ट्रा शो दिखाने पड़े। राजस्थान के कोटा में सुबह 6 बजे का मॉर्निंग शो रखा गया। कई शहरों में फ़िल्म के लेट नाईट शो रखे गए। फ़िल्म ने बॉक्सऑफिस पर कामयाबी के पिछले कई रिकॉर्ड्स ध्वस्त कर दिए। फ़िल्म ओपनिंग डे और ओपनिंग वीकेंड में कमाई करने वाली सबसे बडी मूवी बनी। फ़िल्म ने मुम्बई टेरिटरी में बहुत जबरदस्त कमाई की और नया रिकार्ड बनाया। इस फ़िल्म ने डिस्ट्रीब्यूटर्स और एग्जिबिटर्स को मालामाल कर दिया। फ़िल्म ने पहले दिन लगभग 6 करोड की कमाई की ��ो एक रिकॉर्ड था । फ़िल्म के फर्स्ट वीकेंड की कमाई लगभग 18 करोड की रही और पहला वीक 32 करोड़ के साथ खत्म हुआ। फ़िल्म ने इंडियन बॉक्सऑफिस पर लगभग 80 करोड की रुपए की नेट कमाई की जो इसके बजट से दुगुनी थी । फ़िल्म की इंडिया के ग्रॉस कलेक्शन लगभग 114 करोड़ के आसपास रहे। ये फ़िल्म उस साल की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली मूवी थी । फ़िल्म का वर्डिक्ट बॉक्सऑफिस पर ऑल टाईम ब्लॉकबस्टर रहा। इस फ़िल्म के उस वक्त लगभग 2 करोड़ 15 लाख टिकट्स बिके। फ़िल्म का इंडिया का डिस्ट्रीब्यूशन शेयर लगभग 46 करोड का रहा।
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insolubleworld · 3 years ago
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अद्भूतम से राम असुर तक, छोटे बजट की फ़िल्में 19 नवंबर को तेलुगु राज्यों में रिलीज़ हो रही हैं
अद्भूतम से राम असुर तक, छोटे बजट की फ़िल्में 19 नवंबर को तेलुगु राज्यों में रिलीज़ हो रही हैं
दिवाली और दशहरा के अवसर पर, कई बड़े बजट की तेलुगु फिल्में रिलीज़ हुईं। और अब दिसंबर में, मेगास्टार अभिनीत फिल्में कतार में हैं। इस बीच, छोटे बजट की फिल्मों के निर्माता भी इस शुक्रवार 19 नवंबर को सिल्वर स्क्रीन और ओटीटी प्लेटफॉर्म पर अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक 19 नवंबर को सिनेमाघरों और ओटीटी प्लेटफॉर्म पर कम से कम 10 फिल्में रिलीज होने वाली हैं. इस शुक्रवार को रिलीज होने वाली…
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blogbazaar · 5 years ago
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“ “ “ चमन कोहली आज जो विग पहन के कॉलेज गए हैं वो उन्हें परेशान कर रहा है. आदत नहीं है न. और इसलिए वो बार-बार अपने बाल खुजला रहे हैं. वॉशरूम में जाते हैं और विग खोलकर चैन की सांस लेते हैं. लेकिन उनका ये सारा क्रियाकलाप एक एमएमएस के रूप में पूरे कॉलेज में वायरल हो जाता है और चमन कोहली की खूब कॉलेज-हंसाई होती है. अब इस पूरे सिक्वेंस में वही दिक्कत है जो पूरी ‘उजड़ा चमन’ मूवी में है. उस दिक्कत का नाम है- ‘अतिश्योक्ति’. ये दिक्कत इसलिए बड़ी लगती है क्यूंकि फिल्म अपने प्रोमो और अपनी पैकेजिंग में मॉडेस्ट और रियल्टी के करीब लगती है, या ऐसा प्रोजेक्ट करती है. # कहानी- 30 साल का चमन कोहली दिल्ली के हंसराज कॉलेज में हिंदी का प्रोफेसर है. वो और उसकी फैमली लगी हुई है कि कैसे न कैसे चमन की शादी हो जाए. लेकिन इसमें तीन बड़ी अड़चनें हैं. सबसे बड़ी दिक्कत है उसका गंजापन, जिसके चलते हर दूसरी लड़की उसे रिजेक्ट कर देती है और बची हुई आधी लड़कियों की या तो फैमिली रिजेक्ट करती है या उन लड़कियों को कैसे एप्रोच करना है ये चमन नहीं जानता. दूसरी दिक्कत है कि उसके पास वक्त बहुत कम है. क्यूंकि उसके फैमिली पंडित ने कहा है कि अगर 31 साल तक उसकी शादी नहीं हो जाती तो वो आजीवन कुंवारा रहेगा. तीसरी दिक्कत है चमन की खुद की एक्सपेक्टेशन. चमन कोहली के पैरामीटर के हिसाब से अप्सरा बत्रा कुछ भी हो, अप्सरा तो कतई नहीं है. वो चाहे कैसा भी हो, लेकिन उसे लड़की चाहिए खूबसूरत. लेकिन हालात ऐसे बनते हैं कि उसकी ज़िंदगी में अप्सरा बत्रा आ जाती हैं जो चमन के मानकों में खूबसूरती में माइनस मार्किंग पाती हैं. इस सब घटनाओं और आपदाओं के दौरान चमन कोहली के सेल्फ रियलाइजेशन की स्टोरी है ‘उजड़ा चमन’. # रीमेक – रोमांस और कॉमेडी, यानी रॉम-कॉम विधा की ये मूवी, कन्नड़ मूवी ‘ओंडू मोटेया काथे’ का ऑफिशियल रिमेक है. इसलिए ही कन्नड़ मूवी के राइटर और डायरेक्टर राज बी शेट्टी को हिंदी फिल्म में राइटर का क्रेड���ट दिया गया है. स��क्रीनप्ले के हिसाब से कई चीज़ें अलग हैं, कुछ चीज़ें हटाई गई हैं और कुछ जोड़ी गई हैं. जैसे कन्नड़ वाले वर्ज़न में कॉलेज गर्ल का चमन को धोखा देने वाला पार्ट नहीं है जो इस मूवी में जोड़ा गया है. होने को कहीं-कहीं ट्रीटमेंट भी अलग है, जैसे लीड एक्टर-एक्ट्रेस के बीच का कॉन्फ्लिक्ट दोनों ही फिल्मों में अलग तरह से शुरू और अलग ही तरह से खत्म होता है. लेकिन ओवरऑल स्टोरीलाइन में ये सब चीज़ें थोड़ा सा भी अंतर नहीं डालतीं. और कई जगह तो ‘उड़ता चमन’ सीन दर सीन भी अपने कन्नड़ काउन्टरपार्ट की ज़िरॉक्स लगती है. जैसे प्रिंसिपल द्वारा एक स्टूडेंट का फाइन किया जाना या जैसे चमन कोहली द्वारा पंडित को शादी तोड़ने के लिए कन्विंस करना. # बाला से टक्कर – अभी कुछ ही दिनों बाद बाला भी रिलीज़ होने वाली है. उस फिल्म का भी मेन प्लॉट, लीड करैक्टर का गंजा होना ही है. वैसे अगर दोनों फिल्मों के प्रोमो देखें तो समानताएं ज़्यादा और अंतर कम नज़र आते हैं लेकिन ये कितनी हैं और कौन ज़्यादा शाबाशी बटोरेगी वो बाला देखने के बाद ही पता चलेगा. एक फिल्म को अगर पहले रिलीज़ होने और ऑरिजनल मूवी का ऑफिशियल रीमेक होने का एडवांटेज़ मिला है तो दूसरी को आयुष्मान खुराना और भूमि पेडणेकर जैसी बड़ी स्टारकास्ट का. # एक्टिंग- ‘प्यार का पंचनामा 2’ और ‘सोनू के टीटू की स्वीटी’ जैसी हल्की फुल्की फ़िल्में कर चुके सनी सिंह के पास इस फिल्म से अपने को साबित करने का अच्छा मौका था. लेकिन अगर उन्होंने मौका गंवाया नहीं भी तो उसे पूरी तरह से कैश भी नहीं करवा पाए. दो कारणों के चलते. एक तो मूवी के इमोशनल पार्ट इतने स्ट्रॉन्ग नहीं हैं कि उसमें अपना हुनर कोई दिखा पाए. दूसरा उनके एक्सप्रेशन पूरी मूवी में ऑलमोस्ट सेम रहते हैं. हां उन्हें ‘मेकअप’ का एडवांटेज़ ज़रूर मिला है, जिसके चलते उनको पहचानना मुश्किल है. उनकी पिछली मूवीज़ देखने के बाद आप इस बात पर उनकी तारीफ़ ज़रूर करेंगे कि उन्होंने करैक्टर के लो कॉन्फिडेंस और सेल्फ डाउट को काफी अच्छे से कैरी किया है. अतुल कुमार और ग्रुशा कपूर ने अच्छी एक्टिंग की है. लेकिन थोड़ी लाउड भी. जो कि ऑफ़ कोर्स स्क्रिप्ट की मांग थी. मूवी का सबसे बड़ा हासिल हैं मानवी गग्रू. ये पहली बार है जब उन्होंने किसी फुल लेंग्थ फीचर फिल्म में लीड एक्ट्रेस प्ले किया हो. होने को ‘फोर मोर शॉट्स प्लीज़’, ‘ट्रिपलिंग’ और ‘पिचर्स’ जैसी वेब सीरीज़ में उनके काम को काफी सराहा ��या था. इस फिल्म में भी उनके एक्सप्रेशन्स, उनकी एक्टिंग और अपने करैक्टर के लिए की गई उनकी मेहनत पर्दे पर दिखती है और उन्हें बॉलीवुड में अच्छे से स्थापित करने का माद्दा रखती है. चमन के मम्मी पापा बने अतुल कुमार और ग्रुशा कपूर पंजाबी एक्सेंट और दिल्ली वाले हाव भाव बड़ी अच्छी तरह से पकड़ पाए हैं. सबसे अच्छी कॉमिक टाइमिंग सौरभ शुक्ला की है. बेशक वो दो एक छोटे-छोटे सीन में हैं, और बेशक वो सीन और उनका वो रोल उतना दमदार भी नहीं है. शारिब हाशमी ने कॉलेज के पियोन का किरदार बखूबी निभाया है. होने को ऑरिजनल मूवी में इस किरदार के पास करने को ज़्यादा था. हिंदी वाले वर्ज़न में उसकी स्टोरी को काफी कम कर दिया गया है साथ में उससे जुड़ा इमोशन भी सतही बनकर रह गया है. बाकी एक्टर्स का काम रूटीन तरह का है जिसमें कुछ भी अच्छा या बुरा इतना प्रोमिनेंट नहीं है. # स्क्रिप्ट- दो घंटे की मूवी में भी अगर दर्शक एंटरटेन नहीं हो पा रहे हैं तो यकीनन कहीं स्क्रिप्ट में बहुत बड़ा झोल है. फिल्म का कॉन्सेप्ट बहुत अच्छा है. और स्क्रिप्ट के अपने मोमेंट्स भी हैं लेकिन लचर डायरेक्शन उसे पूरी तरह कैश नहीं करवा पाता. चमन और अप्सरा की सगाई के टूटने वाला सीन और चमन का पियोन राज कुमार के घर विज़िट करने वाला सीन काफी पावरफुल और इमोशनल हो सकता था. लेकिन ‘है’ और ‘हो सकता था’ का ये अंतर ही ‘मास्टरपीस’ और ‘औसत’ के बीच का अंतर है. # ह्यूमर और लव कोशेंट- हर हिट रॉम-कॉम मूवी में दो चीज़ें कमोबेश होती ही होती हैं. यूनिक लव स्टोरी और गुदगुदाने वाली कॉमेडी. जैसे ‘जब वी मेट’ या ‘समवन लाइक इट हॉट’. इस मूवी में भी लव स्टोरी यूनिक है, लेकिन इसे देखते हुए आपको बार-बार लगता है जैसे आप छोटे बजट की कोई वेब सीरीज़ देख रहे हों. क्यूंकि ये लव स्टोरी आईडिया के लेवल पर तो यूनिक है, लेकिन स्टोरीबोर्ड से होते हुए स्क्रिप्ट के रास्ते स्क्रीनप्ले तक पहुंचते-पहुंचते अपने साथ कई क्लिशे चिपका लेती है. फिर चाहे वो ‘प्यार की पहली सीढ़ी लड़ाई’ जैसा घिसा पिटा कॉन्सेप्ट हो या लड़की के सामने लड़के का कान पकड़ के कन्फेशन करना या ‘जो भी होता है, अच्छे के लिए होता है’ जैसे डायलॉग्स. ‘ओंडू मोटेया काथे’,’बाला’ और ‘उजड़ा चमन’ के पोस्टर्स. रही बात कॉमेडी की तो वो रिपीटेटिव लगती है जब ‘मेटाबॉलिज्म’,’सेलिबेसी’ और ‘टेस्टोस्टेरोन‘ जैसे एक नहीं तीन-तीन शब्दों को तोड़-मरोड़ के उत्पन्न करने की कोशिश की गई हो. वो सतही लगती है जब एक विशेष प्रकार के कल्चर और एक्सेंट से उत्पन्न करने की कोशिश की गई हो. कहीं-कहीं उबाती और इरिटेट करती है जब टाइमिंग और बैकग्राउंड म्यूज़िक उसका साथ नहीं ��े पाए हों. और वो जब अच्छी लगती है तो याद आता है कि ये वाली सीधे ऑरिजनल कन्नड़ ��ूवी में भी ठीक ऐसी ही थी. # अतिश्योक्ति- फिल्म में कई ऐसी चीज़ें हैं जिसपर आप कहेंगे ऐसा कहां होता है? कुछ चीज़ें फिजिक्स के लेन्ज लॉ की तरह अपने ही स्रोत का विरोध करती लगती हैं. एक तरफ ये गंजेपन और मोटापे को लेकर ‘एक्सेपटेंस’ बढ़ाने का प्रयास करती है दूसरी तरफ दिल्ली और पंजाबियों को लेकर अपने प्री कंसीव नोशन रखती है. जैसे पंजाबी फैमली है तो लाउड होगी. पंजाबी हैं तो शराब पिएंगे ही पिएंगे. और इस चीज़ को हाईलाईट करने के लिए जैसे ही शराब की बात आती है, बैकग्राउंड में ‘पंजाबी’ शब्द सुनाई देता है. एक पुराने से कॉमन बैकग्राउंड म्यूज़िक के रूप में. बैकग्राउंड म्यूज़िक की दिक्कतें यहीं खत्म नहीं होतीं. न केवल इसकी लाउडनेस से बल्कि इसकी टाइमिंग से भी दिक्कत है. कई जगह ये किसी जोक के पंच से सिंक नहीं करता तो कई जगह सीन के साथ. हिंदी का प्रोफेसर, रोमन में टाइप करता है और इकोनॉमिक्स के टीचर के साथ टेबल वाइन के साथ फाइव स्टार में डिनर करता है. तब जबकि उसकी सैलरी, जैसा वो बताता है साठ हज़ार रुपल्ली है. आप कहेंगे कि तो क्या हो गया, ये इम्पॉसिबल तो नहीं. बेशक इम्पॉसिबल नहीं लेकिन अपाच्य ज़रूर है. और तब जबकि जैसा स्टार्ट में कहा था कि मूवी अपनी पैकेजिंग में काफी आर्गेनिक लगती है, या ऐसा प्रोजेक्ट करती है. # दिल्ली- अच्छी बात ये है कि इस फिल्म में दिल्ली अपने ‘पुरानी दिल्ली’ और ‘चांदनी चौक’ वाले पारंपरिक बॉलीवुड रूप में नहीं है. राजौरी गार्डन, हंसराज कॉलेज, मेट्रो स्टेशन, मयूर विहार, हौज़ ख़ास विलेज जैसी जगहें देखकर या उनके बारे में सुनकर एक डेल्हीआईट को कहीं भी ‘आउट ऑफ़ दी वर्ल्ड’ या ‘काल्पनिकता’ का आभास नहीं होता. मूवी का दिल्ली रियल है. # डायलॉग्स- मैं बार-बार रिपीट कर रहा हूं कि हर डिपार्टमेंट में ‘आईडिया’ के लेवल पर कोई दिक्कत नहीं है लेकिन उसकी तामीर, उसके मटरियलाइज़ेशन में परेशानी पैदा की गई है. उगाई गई है. डेलीब्रेटली. यही हाल डायलॉग्स का भी है. जैसे,’ ‘दिलों की बात करता है जमाना, पर मोहब्बत अब भी चेहरे से शुरू होती है.’ जैसे शायराना डायलॉग्स जो अलग तरह से लिखे जाने के बदले सिंपल होते तो ज़्यादा इंपेक्टफुल होते. # म्यूज़िक- मूवी खत्म होने के बाद क्रेडिट रोल होते वक्त यू ट्यूब सेलिब्रेटी और टी सीरीज़ स्टार गुरु रंधावा का गीत सुपरहिट होने का पूरा माद्दा रखता है. बंदया गीत भी अच्छा है. लेकिन इसका म्यूज़िक न तो इसका सबसे अच्छा डिपार्टमेंट है और न ही ऐसा कि बा��ी कमियों के ऊपर पर्दे का काम करे. # ओवरऑल निष्कर्ष- मूवी बुरी नहीं है. लेकिन ऐसी मूवीज़ थियेटर के लिए नहीं होतीं. शुरू होने से पहले ये आपको बताती है कि इसके ऑनलाइन स्ट्रीमिंग राइट्स एमेज़ॉन प्राइम और टीवी राइट्स ज़ी टीवी के पास हैं. बाकी आप समझदार हैं हीं. और साथ में बोनस में ये बता दूं कि मैंने कन्नड़ मूवी ‘ओंडू मोटेया काथे’ नेटफ्लिक्स पर देखी थी. ” - http://moviesbuzz29.blogspot.com/2019/11/ujada-chaman.html from Tumblr https://blogbazaar.tumblr.com/post/188765466819 ” - http://moviesbuzz29.blogspot.com/2019/11/blog-post.html from Tumblr https://blogbazaar.tumblr.com/post/188765696519” - http://moviesbuzz29.blogspot.com/2019/11/blog-post_2.html from Tumblr https://blogbazaar.tumblr.com/post/188769620344
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blogbazaar · 5 years ago
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“ “ चमन कोहली आज जो विग पहन के कॉलेज गए हैं वो उन्हें परेशान कर रहा है. आदत नहीं है न. और इसलिए वो बार-बार अपने बाल खुजला रहे हैं. वॉशरूम में जाते हैं और विग खोलकर चैन की सांस लेते हैं. लेकिन उनका ये सारा क्रियाकलाप एक एमएमएस के रूप में पूरे कॉलेज में वायरल हो जाता है और चमन कोहली की खूब कॉलेज-हंसाई होती है. अब इस पूरे सिक्वेंस में वही दिक्कत है जो पूरी ‘उजड़ा चमन’ मूवी में है. उस दिक्कत का नाम है- ‘अतिश्योक्ति’. ये दिक्कत इसलिए बड़ी लगती है क्यूंकि फिल्म अपने प्रोमो और अपनी पैकेजिंग में मॉडेस्ट और रियल्टी के करीब लगती है, या ऐसा प्रोजेक्ट करती है. # कहानी- 30 साल का चमन कोहली दिल्ली के हंसराज कॉलेज में हिंदी का प्रोफेसर है. वो और उसकी फैमली लगी हुई है कि कैसे न कैसे चमन की शादी हो जाए. लेकिन इसमें तीन बड़ी अड़चनें हैं. सबसे बड़ी दिक्कत है उसका गंजापन, जिसके चलते हर दूसरी लड़की उसे रिजेक्ट कर देती है और बची हुई आधी लड़कियों की या तो फैमिली रिजेक्ट करती है या उन लड़कियों को कैसे एप्रोच करना है ये चमन नहीं जानता. दूसरी दिक्कत है कि उसके पास वक्त बहुत कम है. क्यूंकि उसके फैमिली पंडित ने कहा है कि अगर 31 साल तक उसकी शादी नहीं हो जाती तो वो आजीवन कुंवारा रहेगा. तीसरी दिक्कत है चमन की खुद की एक्सपेक्टेशन. चमन कोहली के पैरामीटर के हिसाब से अप्सरा बत्रा कुछ भी हो, अप्सरा तो कतई नहीं है. वो चाहे कैसा भी हो, लेकिन उसे लड़की चाहिए खूबसूरत. लेकिन हालात ऐसे बनते हैं कि उसकी ज़िंदगी में अप्सरा बत्रा आ जाती हैं जो चमन के मानकों में खूबसूरती में माइनस मार्किंग पाती हैं. इस सब घटनाओं और आपदाओं के दौरान चमन कोहली के सेल्फ रियलाइजेशन की स्टोरी है ‘उजड़ा चमन’. # रीमेक – रोमांस और कॉमेडी, यानी रॉम-कॉम विधा की ये मूवी, कन्नड़ मूवी ‘ओंडू मोटेया काथे’ का ऑफिशियल रिमेक है. इसलिए ही कन्नड़ मूवी के राइटर और डायरेक्टर राज बी शेट्टी को हिंदी फिल्म में राइटर का क्रेडिट दिया गया है. स्क्रीनप्ले के हिसाब से कई चीज़ें अलग हैं, कुछ चीज़ें हटाई गई हैं और कुछ जोड़ी गई हैं. जैसे कन्नड़ वाले वर्ज़न में कॉलेज गर्ल का चमन को धोखा देने वाला पार्ट नहीं है जो इस मूवी में जोड़ा गया है. होने को कहीं-कहीं ट्रीटमेंट भी अलग है, जैसे लीड एक्टर-एक्ट्रेस के बीच का कॉन्फ्लिक्ट दोनों ही फिल्मों में अलग तरह से शुरू और अलग ही तरह से खत्म होता है. लेकिन ओवरऑल स्टोरीलाइन में ये सब चीज़ें थोड़ा सा भी अंतर नहीं डालतीं. और कई जगह तो ‘उड़ता चमन’ सीन दर सीन भी अपने कन्नड़ काउन्टरपार्ट की ज़िरॉक्स लगती है. जैसे प्रिंसिपल द्वारा एक स्टूडेंट का फाइन किया जाना या जैसे चमन कोहली द्वारा पंडित को शादी तोड़ने के लिए कन्विंस करना. # बाला से टक्कर – अभी कुछ ही दिनों बाद बाला भी रिलीज़ होने वाली है. उस फिल्म का भी मेन प्लॉट, लीड करैक्टर का गंजा होना ही है. वैसे अगर दोनों फिल्मों के प्रोमो देखें तो समानताएं ज़्यादा और अंतर कम नज़र आते हैं लेकिन ये कितनी हैं और कौन ज़्यादा शाबाशी बटोरेगी वो बाला देखने के बाद ही पता चलेगा. एक फिल्म को अगर पहले रिलीज़ होने और ऑरिजनल मूवी का ऑफिशियल रीमेक होने का एडवांटेज़ मिला है तो दूसरी को आयुष्मान खुराना और भूमि पेडणेकर जैसी बड़ी स्टारकास्ट का. # एक्टिंग- ‘प्यार का पंचनामा 2’ और ‘सोनू के टीटू की स्वीटी’ जैसी हल्की फुल्की फ़िल्में कर चुके सनी सिंह के पास इस फिल्म से अपने को साबित करने का अच्छा मौका था. लेकिन अगर उन्होंने मौका गंवाया नहीं भी तो उसे पूरी तरह से कैश भी नहीं करवा पाए. दो कारणों के चलते. एक तो मूवी के इमोशनल पार्ट इतने स्ट्रॉन्ग नहीं हैं कि उसमें अपना हुनर कोई दिखा पाए. दूसरा उनके एक्सप्रेशन पूरी मूवी में ऑलमोस्ट सेम रहते हैं. हां उन्हें ‘मेकअप’ का एडवांटेज़ ज़रूर मिला है, जिसके चलते उनको पहचानना मुश्किल है. उनकी पिछली मूवीज़ देखने के बाद आप इस बात पर उनकी तारीफ़ ज़रूर करेंगे कि उन्होंने करैक्टर के लो कॉन्फिडेंस और सेल्फ डाउट को काफी अच्छे से कैरी किया है. अतुल कुमार और ग्रुशा कपूर ने अच्छी एक्टिंग की है. लेकिन थोड़ी लाउड भी. जो कि ऑफ़ कोर्स स्क्रिप्ट की मांग थी. मूवी का सबसे बड़ा हासिल हैं मानवी गग्रू. ये पहली बार है जब उन्होंने किसी फुल लेंग्थ फीचर फिल्म में लीड एक्ट्रेस प्ले किया हो. होने को ‘फोर मोर शॉट्स प्लीज़’, ‘ट्रिपलिंग’ और ‘पिचर्स’ जैसी वेब सीरीज़ में उनके काम को काफी सराहा गया था. इस फिल्म में भी उनके एक्सप्रेशन्स, उनकी एक्टिंग और अपने करैक्टर के लिए की गई उनकी मेहनत पर्दे पर दिखती है और उन्हें बॉलीवुड में अच्छे से स्थापित करने का माद्दा रखती है. चमन के मम्मी पापा बने अतुल कुमार और ग्रुशा कपूर पंजाबी एक्सेंट और दिल्ली वाले हाव भाव बड़ी अच्छी तरह से पकड़ पाए हैं. सबसे अच्छी कॉमिक टाइमिंग सौरभ शुक्ला की है. बेशक वो दो एक छोटे-छोटे सीन में हैं, और बेशक वो सीन और उनका वो रोल उतना दमदार भी नहीं है. शारिब हाशमी ने कॉलेज के पियोन का किरदार बखूबी निभाया है. होने को ऑरिजनल मूवी में इस किरदार के पास करने को ज़्यादा था. हिंदी वाले वर्ज़न में उसकी स्टोरी को काफी कम कर दिया गया है साथ में उससे जुड़ा इमोशन भी सतही बनकर रह गया है. बाकी एक्टर्स का काम रूटीन तरह का है जिसमें कुछ भी अच्छा या बुरा इतना प्रोमिनेंट नहीं है. # स्क्रिप्ट- दो घंटे की मूवी में भी अगर दर्शक एंटरटेन नहीं हो पा रहे हैं तो यकीनन कहीं स्क्रिप्ट में बहुत ब���़ा झोल है. फिल्म का कॉन्सेप्ट बहुत अच्छा है. और स्क्रिप्ट के अपने मोमेंट्स भी हैं लेकिन लचर डायरेक्शन उसे पूरी तरह कैश नहीं करवा पाता. चमन और अप्सरा की सगाई के टूटने वाला सीन और चमन का पियोन राज कुमार के घर विज़िट करने वाला सीन काफी पावरफुल और इमोशनल हो सकता था. लेकिन ‘है’ और ‘हो सकता था’ का ये अंतर ही ‘मास्टरपीस’ और ‘औसत’ के बीच का अंतर है. # ह्यूमर और लव कोशेंट- हर हिट रॉम-कॉम मूवी में दो चीज़ें कमोबेश होती ही होती हैं. यूनिक लव स्टोरी और गुदगुदाने वाली कॉमेडी. जैसे ‘जब वी मेट’ या ‘समवन लाइक इट हॉट’. इस मूवी में भी लव स्टोरी यूनिक है, लेकिन इसे देखते हुए आपको बार-बार लगता है जैसे आप छोटे बजट की कोई वेब सीरीज़ देख रहे हों. क्यूंकि ये लव स्टोरी आईडिया के लेवल पर तो यूनिक है, लेकिन स्टोरीबोर्ड से होते हुए स्क्रिप्ट के रास्ते स्क्रीनप्ले तक पहुंचते-पहुंचते अपने साथ कई क्लिशे चिपका लेती है. फिर चाहे वो ‘प्यार की पहली सीढ़ी लड़ाई’ जैसा घिसा पिटा कॉन्सेप्ट हो या लड़की के सामने लड़के का कान पकड़ के कन्फेशन करना या ‘जो भी होता है, अच्छे के लिए होता है’ जैसे डायलॉग्स. ‘ओंडू मोटेया काथे’,’बाला’ और ‘उजड़ा चमन’ के पोस्टर्स. रही बात कॉमेडी की तो वो रिपीटेटिव लगती है जब ‘मेटाबॉलिज्म’,’सेलिबेसी’ और ‘टेस्टोस्टेरोन‘ जैसे एक नहीं तीन-तीन शब्दों को तोड़-मरोड़ के उत्पन्न करने की कोशिश की गई हो. वो सतही लगती है जब एक विशेष प्रकार के कल्चर और एक्सेंट से उत्पन्न करने की कोशिश की गई हो. कहीं-कहीं उबाती और इरिटेट करती है जब टाइमिंग और बैकग्राउंड म्यूज़िक उसका साथ नहीं दे पाए हों. और वो जब अच्छी लगती है तो याद आता है कि ये वाली सीधे ऑरिजनल कन्नड़ मूवी में भी ठीक ऐसी ही थी. # अतिश्योक्ति- फिल्म में कई ऐसी चीज़ें हैं जिसपर आप कहेंगे ऐसा कहां होता है? कुछ चीज़ें फिजिक्स के लेन्ज लॉ की तरह अपने ही स्रोत का विरोध करती लगती हैं. एक तरफ ये गंजेपन और मोटापे को लेकर ‘एक्सेपटेंस’ बढ़ाने का प्रयास करती है दूसरी तरफ दिल्ली और पंजाबियों को लेकर अपने प्री कंसीव नोशन रखती है. जैसे पंजाबी फैमली है तो लाउड होगी. पंजाबी हैं तो शराब पिएंगे ही पिएंगे. और इस चीज़ को हाईलाईट करने के लिए जैसे ही शराब की बात आती है, बैकग्राउंड में ‘पंजाबी’ शब्द सुनाई देता है. एक पुराने से कॉमन बैकग्राउंड म्यूज़िक के रूप में. बैकग्राउंड म्यूज़िक की दिक्कतें यहीं खत्म नहीं होतीं. न केवल इसकी लाउडनेस से बल्कि इसकी टाइमिंग से भी दिक्कत है. कई जगह ये किसी जोक के पंच से सिंक नहीं करता तो कई जगह सीन के साथ. हिंदी का प्रोफेसर, रोमन में टाइप करता है और इकोनॉमिक्स के टीचर के साथ टेबल वाइन के साथ फाइव स्टार में डिनर करता है. तब जबकि उसकी सैलरी, जैसा वो बताता है साठ हज़ार रुपल्ली है. आप कहेंगे कि तो क्या हो गया, ये इम्पॉसिबल तो नहीं. बेशक इम्पॉसिबल नहीं लेकिन अपाच्य ज़रूर है. और तब जबकि जैसा स्टार्ट में कहा था कि मूवी अपनी पैकेजिंग में काफी आर्गेनिक लगती है, या ऐसा प्रोजेक्ट करती है. # दिल्ली- अच्छी बात ये है कि इस फिल्म में दिल्ली अपने ‘पुरानी दिल्ली’ और ‘चांदनी चौक’ वाले पारंपरिक बॉलीवुड रूप में नहीं है. राजौरी गार्डन, हंसराज कॉलेज, मेट्रो स्टेशन, मयूर विहार, हौज़ ख़ास विलेज जैसी जगहें देखकर या उनके बारे में सुनकर एक डेल्हीआईट को कहीं भी ‘आउट ऑफ़ दी वर्ल्ड’ या ‘काल्पनिकता’ का आभास नहीं होता. मूवी का दिल्ली रियल है. # डायलॉग्स- मैं बार-बार रिपीट कर रहा हूं कि हर डिपार्टमेंट में ‘आईडिया’ के लेवल पर कोई दिक्कत नहीं है लेकिन उसकी तामीर, उसके मटरियलाइज़ेशन में परेशानी पैदा की गई है. उगाई गई है. डेलीब्रेटली. यही हाल डायलॉग्स का भी है. जैसे,’ ‘दिलों की बात करता है जमाना, पर मोहब्बत अब भी चेहरे से शुरू होती है.’ जैसे शायराना डायलॉग्स जो अलग तरह से लिखे जाने के बदले सिंपल होते तो ज़्यादा इंपेक्टफुल होते. # म्यूज़िक- मूवी खत्म होने के बाद क्रेडिट रोल होते वक्त यू ट्यूब सेलिब्रेटी और टी सीरीज़ स्टार गुरु रंधावा का गीत सुपरहिट होने का पूरा माद्दा रखता है. बंदया गीत भी अच्छा है. लेकिन इसका म्यूज़िक न तो इसका सबसे अच्छा डिपार्टमेंट है और न ही ऐसा कि बाकी कमियों के ऊपर पर्दे का काम करे. # ओवरऑल निष्कर्ष- मूवी बुरी नहीं है. लेकिन ऐसी मूवीज़ थियेटर के लिए नहीं होतीं. शुरू होने से पहले ये आपको बताती है कि इसके ऑनलाइन स्ट्रीमिंग राइट्स एमेज़ॉन प्राइम और टीवी राइट्स ज़ी टीवी के पास हैं. बाकी आप समझदार हैं हीं. और साथ में बोनस में ये बता दूं कि मैंने कन्नड़ मूवी ‘ओंडू मोटेया काथे’ नेटफ्लिक्स पर देखी थी. ” - http://moviesbuzz29.blogspot.com/2019/11/ujada-chaman.html from Tumblr https://blogbazaar.tumblr.com/post/188765466819 ” - http://moviesbuzz29.blogspot.com/2019/11/blog-post.html from Tumblr https://blogbazaar.tumblr.com/post/188765696519
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“ चमन कोहली आज जो विग पहन के कॉलेज गए हैं वो उन्हें परेशान कर रहा है. आदत नहीं है न. और इसलिए वो बार-बार अपने बाल खुजला रहे हैं. वॉशरूम में जाते हैं और विग खोलकर चैन की सांस लेते हैं. लेकिन उनका ये सारा क्रियाकलाप एक एमएमएस के रूप में पूरे कॉलेज में वायरल हो जाता है और चमन कोहली की खूब कॉलेज-हंसाई होती है. अब इस पूरे सिक्वेंस में वही दिक्कत है जो पूरी ‘उजड़ा चमन’ मूवी में है. उस दिक्कत का नाम है- ‘अतिश्योक्ति’. ये दिक्कत इसलिए बड़ी लगती है क्यूंकि फिल्म अपने प्रोमो और अपनी पैकेजिंग में मॉडेस्ट और रियल्टी के करीब लगती है, या ऐसा प्रोजेक्ट करती है. # कहानी- 30 साल का चमन कोहली दिल्ली के हंसराज कॉलेज में हिंदी का प्रोफेसर है. वो और उसकी फैमली लगी हुई है कि कैसे न कैसे चमन की शादी हो जाए. लेकिन इसमें तीन बड़ी अड़चनें हैं. सबसे बड़ी दिक्कत है उसका गंजापन, जिसके चलते हर दूसरी लड़की उसे रिजेक्ट कर देती है और बची हुई आधी लड़कियों की या तो फैमिली रिजेक्ट करती है या उन लड़कियों को कैसे एप्रोच करना है ये चमन नहीं जानता. दूसरी दिक्कत है कि उसके पास वक्त बहुत कम है. क्यूंकि उसके फैमिली पंडित ने कहा है कि अगर 31 साल तक उसकी शादी नहीं हो जाती तो वो आजीवन कुंवारा रहेगा. तीसरी दिक्कत है चमन की खुद की एक्सपेक्टेशन. चमन कोहली के पैरामीटर के हिसाब से अप्���रा बत्रा कुछ भी हो, अप्सरा तो कतई नहीं है. वो चाहे कैसा भी हो, लेकिन उसे लड़की चाहिए खूबसूरत. लेकिन हालात ऐसे बनते हैं कि उसकी ज़िंदगी में अप्सरा बत्रा आ जाती हैं जो चमन के मानकों में खूबसूरती में माइनस मार्किंग पाती हैं. इस सब घटनाओं और आपदाओं के दौरान चमन कोहली के सेल्फ रियलाइजेशन की स्टोरी है ‘उजड़ा चमन’. # रीमेक – रोमांस और कॉमेडी, यानी रॉम-कॉम विधा की ये मूवी, कन्नड़ मूवी ‘ओंडू मोटेया काथे’ का ऑफिशियल रिमेक है. इसलिए ही कन्नड़ मूवी के राइटर और डायरेक्टर राज बी शेट्टी को हिंदी फिल्म में राइटर का क्रेडिट दिया गया है. स्क्रीनप्ले के हिसाब से कई चीज़ें अलग हैं, कुछ चीज़ें हटाई गई हैं और कुछ जोड़ी गई हैं. जैसे कन्नड़ वाले वर्ज़न में कॉलेज गर्ल का चमन को धोखा देने वाला पार्ट नहीं है जो इस मूवी में जोड़ा गया है. होने को कहीं-कहीं ट्रीटमेंट भी अलग है, जैसे लीड एक्टर-एक्ट्रेस के बीच का कॉन्फ्लिक्ट दोनों ही फिल्मों में अलग तरह से शुरू और अलग ही तरह से खत्म होता है. लेकिन ओवरऑल स्टोरीलाइन में ये सब चीज़ें थोड़ा सा भी अंतर नहीं डालतीं. और कई जगह तो ‘उड़ता चमन’ सीन दर सीन भी अपने कन्नड़ काउन्टरपार्ट की ज़िरॉक्स लगती है. जैसे प्रिंसिपल द्वारा एक स्टूडेंट का फाइन किया जाना या जैसे चमन कोहली द्वारा पंडित को शादी तोड़ने के लिए कन्विंस करना. # बाला से टक्कर – अभी कुछ ही दिनों बाद बाला भी रिलीज़ होने वाली है. उस फिल्म का भी मेन प्लॉट, लीड करैक्टर का गंजा होना ही है. वैसे अगर दोनों फिल्मों के प्रोमो देखें तो समानताएं ज़्यादा और अंतर कम नज़र आते हैं लेकिन ये कितनी हैं और कौन ज़्यादा शाबाशी बटोरेगी वो बाला देखने के बाद ही पता चलेगा. एक फिल्म को अगर पहले रिलीज़ होने और ऑरिजनल मूवी का ऑफिशियल रीमेक होने का एडवांटेज़ मिला है तो दूसरी को आयुष्मान खुराना और भूमि पेडणेकर जैसी बड़ी स्टारकास्ट का. # एक्टिंग- ‘प्यार का पंचनामा 2’ और ‘सोनू के टीटू की स्वीटी’ जैसी हल्की फुल्की फ़िल्में कर चुके सनी सिंह के पास इस फिल्म से अपने को साबित करने का अच्छा मौका था. लेकिन अगर उन्होंने मौका गंवाया नहीं भी तो उसे पूरी तरह से कैश भी नहीं करवा पाए. दो कारणों के चलते. एक तो मूवी के इमोशनल पार्ट इतने स्ट्रॉन्ग नहीं हैं कि उसमें अपना हुनर कोई दिखा पाए. दूसरा उनके एक्सप्रेशन पूरी मूवी में ऑलमोस्ट सेम रहते हैं. हां उन्हें ‘मेकअप’ का एडवांटेज़ ज़रूर मिला है, जिसके चलते उनको पहचानना मुश्किल है. उनकी पिछली मूवीज़ देखने के बाद आप इस बात पर उनकी तारीफ़ ज़रूर करेंगे कि उन्होंने करैक्टर के लो कॉन्फिडेंस और सेल्फ डाउट को काफी अच्छे से कैरी किया है. अतुल कुमार और ग्रुशा कपूर ने अच्छी एक्टिंग की है. लेकिन थोड़ी लाउड भी. जो कि ऑफ़ कोर्स स्क्रिप्ट की मांग थी. मूवी का सबसे बड़ा हासिल हैं मानवी गग्रू. ये पहली बार है जब उन्होंने किसी फुल लेंग्थ फीचर फिल्म में लीड एक्ट्रेस प्ले किया हो. होने को ‘फोर मोर शॉट्स प्लीज़’, ‘ट्रिपलिंग’ और ‘पिचर्स’ जैसी वेब सीरीज़ में उनके काम को काफी सराहा गया था. इस फिल्म में भी उनके एक्सप्रेशन्स, उनकी एक्टिंग और अपने करैक्टर के लिए की गई उनकी मेहनत पर्दे पर दिखती है और उन्हें बॉलीवुड में अच्छे से स्थापित करने का माद्दा रखती है. चमन के मम्मी पापा बने अतुल कुमार और ग्रुशा कपूर पंजाबी एक्सेंट और दिल्ली वाले हाव भाव बड़ी अच्छी तरह से पकड़ पाए हैं. सबसे अच्छी कॉमिक टाइमिंग सौरभ शुक्ला की है. बेशक वो दो एक छोटे-छोटे सीन में हैं, और बेशक वो सीन और उनका वो रोल उतना दमदार भी नहीं है. शारिब हाशमी ने कॉलेज के पियोन का किरदार बखूबी निभाया है. होने को ऑरिजनल मूवी में इस किरदार के पास करने को ज़्यादा था. हिंदी वाले वर्ज़न में उसकी स्टोरी को काफी कम कर दिया गया है साथ में उससे जुड़ा इमोशन भी सतही बनकर रह गया है. बाकी एक्टर्स का काम रूटीन तरह का है जिसमें कुछ भी अच्छा या बुरा इतना प्रोमिनेंट नहीं है. # स्क्रिप्ट- दो घंटे की मूवी में भी अगर दर्शक एंटरटेन नहीं हो पा रहे हैं तो यकीनन कहीं स्क्रिप्ट में बहुत बड़ा झोल है. फिल्म का कॉन्सेप्ट बहुत अच्छा है. और स्क्रिप्ट के अपने मोमेंट्स भी हैं लेकिन लचर डायरेक्शन उसे पूरी तरह कैश नहीं करवा पाता. चमन और अप्सरा की सगाई के टूटने वाला सीन और चमन का पियोन राज कुमार के घर विज़िट करने वाला सीन काफी पावरफुल और इमोशनल हो सकता था. लेकिन ‘है’ और ‘हो सकता था’ का ये अंतर ही ‘मास्टरपीस’ और ‘औसत’ के बीच का अंतर है. # ह्यूमर और लव कोशेंट- हर हिट रॉम-कॉम मूवी में दो चीज़ें कमोबेश होती ही होती हैं. यूनिक लव स्टोरी और गुदगुदाने वाली कॉमेडी. जैसे ‘जब वी मेट’ या ‘समवन लाइक इट हॉट’. इस मूवी में भी लव स्टोरी यूनिक है, लेकिन इसे देखते हुए आपको बार-बार लगता है जैसे आप छोटे बजट की कोई वेब सीरीज़ देख रहे हों. क्यूंकि ये लव स्टोरी आईडिया के लेवल पर तो यूनिक है, लेकिन स्टोरीबोर्ड से होते हुए स्क्रिप्ट के रास्ते स्क्रीनप्ले तक पहुंचते-पहुंचते अपने साथ कई क्लिशे चिपका लेती है. फिर चाहे वो ‘प्यार की पहली सीढ़ी लड़ाई’ जैसा घिसा पिटा कॉन्सेप्ट हो या लड़की के सामने लड़के का कान पकड़ के कन्फेशन करना या ‘जो भी होता है, अच्छे के लिए होता है’ जैसे डायलॉग्स. ‘ओंडू मोटेया काथे’,’बाला’ और ‘उजड़ा चमन’ के पोस्टर्स. रही बात कॉमेडी की तो वो रिपीटेटिव लगती है जब ‘मेटाबॉलिज्म’,’सेलिबेसी’ और ‘टेस्टोस्टेरोन‘ जैसे एक नहीं तीन-तीन शब्दों को तोड़-मरोड़ के उत्पन्न करने की कोशिश की गई हो. वो सतही लगती है जब एक विशेष प्रकार के कल्चर और एक्सेंट से उत्पन्न करने की कोशिश की गई हो. कहीं-कहीं उबाती और इरिटेट करती है जब टाइमिंग और बैकग्राउंड म्यूज़िक उसका साथ नहीं दे पाए हों. और वो जब अच्छी लगती है तो याद आता है कि ये वाली सीधे ऑरिजनल कन्नड़ मूवी में भी ठीक ऐसी ही थी. # अतिश्योक्ति- फिल्म में कई ऐसी चीज़ें हैं जिसपर आप कहेंगे ऐसा कहां होता है? कुछ चीज़ें फिजिक्स के लेन्ज लॉ की तरह अपने ही स्रोत का विरोध करती लगती हैं. एक तरफ ये गंजेपन और मोटापे को लेकर ‘एक्सेपटेंस’ बढ़ाने का प्रयास करती है दूसरी तरफ दिल्ली और पंजाबियों को लेकर अपने प्री कंसीव नोशन रखती है. जैसे पंजाबी फैमली है तो लाउड होगी. पंजाबी हैं तो शराब पिएंगे ही पिएंगे. और इस चीज़ को हाईलाईट करने के लिए जैसे ही शराब की बात आती है, बैकग्राउंड में ‘पंजाबी’ शब्द सुनाई देता है. एक पुराने से कॉमन बैकग्राउंड म्यूज़िक के रूप में. बैकग्राउंड म्यूज़िक की दिक्कतें यहीं खत्म नहीं होतीं. न केवल इसकी लाउडनेस से बल्कि इसकी टाइमिंग से भी दिक्कत है. कई जगह ये किसी जोक के पंच से सिंक नहीं करता तो कई जगह सीन के साथ. हिंदी का प्रोफेसर, रोमन में टाइप करता है और इकोनॉमिक्स के टीचर के साथ टेबल वाइन के साथ फाइव स्टार में डिनर करता है. तब जबकि उसकी सैलरी, जैसा वो बताता है साठ हज़ार रुपल्ली है. आप कहेंगे कि तो क्या हो गया, ये इम्पॉसिबल तो नहीं. बेशक इम्पॉसिबल नहीं लेकिन अपाच्य ज़रूर है. और तब जबकि जैसा स्टार्ट में कहा था कि मूवी अपनी पैकेजिंग में काफी आर्गेनिक लगती है, या ऐसा प्रोजेक्ट करती है. # दिल्ली- अच्छी बात ये है कि इस फिल्म में दिल्ली अपने ‘पुरानी दिल्ली’ और ‘चांदनी चौक’ वाले पारंपरिक बॉलीवुड रूप में नहीं है. राजौरी गार्डन, हंसराज कॉलेज, मेट्रो स्टेशन, मयूर विहार, हौज़ ख़ास विलेज जैसी जगहें देखकर या उनके बारे में सुनकर एक डेल्हीआईट को कहीं भी ‘आउट ऑफ़ दी वर्ल्ड’ या ‘काल्पनिकता’ का आभास नहीं होता. मूवी का दिल्ली रियल है. # डायलॉग्स- मैं बार-बार रिपीट कर रहा हूं कि हर डिपार्टमेंट में ‘आईडिया’ के लेवल पर कोई दिक्कत नहीं है लेकिन उसकी तामीर, उसके मटरियलाइज़ेशन में परेशानी पैदा की गई है. उगाई गई है. डेलीब्रेटली. यही हाल डायलॉग्स का भी है. जैसे,’ ‘दिलों की बात करता है जमाना, पर मोहब्बत अब भी चेहरे से शुरू होती है.’ जैसे शायराना डायलॉग्स जो अलग तरह से लिखे जाने के बदले सिंपल होते तो ज़्यादा इंपेक्टफुल होते. # म्यूज़िक- मूवी खत्म होने के बाद क्रेडिट रोल होते वक्त यू ट्यूब सेलिब्रेटी और टी सीरीज़ स्टार गुरु रंधावा का गीत सुपरहिट होने का पूरा माद्दा रखता है. बंदया गीत भी अच्छा है. लेकिन इसका म्यूज़िक न तो इसका सबसे अच्छा डिपार्टमेंट है और न ही ऐसा कि बाकी कमियों के ऊपर पर्दे का काम करे. # ओवरऑल निष्कर्ष- मूवी बुरी नहीं है. लेकिन ऐसी मूवीज़ थियेटर के लिए नहीं होतीं. शुरू होने से पहले ये आपको बताती है कि इसके ऑनलाइन स्ट्रीमिंग राइट्स एमेज़ॉन प्राइम और टीवी राइट्स ज़ी टीवी के पास हैं. बाकी आप समझदार हैं हीं. और साथ में बोनस में ये बता दूं कि मैंने कन्नड़ मूवी ‘ओंडू मोटेया काथे’ नेटफ्लिक्स पर देखी थी. ” - http://moviesbuzz29.blogspot.com/2019/11/ujada-chaman.html from Tumblr https://blogbazaar.tumblr.com/post/188765466819
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चमन कोहली आज जो विग पहन के कॉलेज गए हैं वो उन्हें परेशान कर रहा है. आदत नहीं है न. और इसलिए वो बार-बार अपने बाल खुजला रहे हैं. वॉशरूम में जाते हैं और विग खोलकर चैन की सांस लेते हैं. लेकिन उनका ये सारा क्रियाकलाप एक एमएमएस के रूप में पूरे कॉलेज में वायरल हो जाता है और चमन कोहली की खूब कॉलेज-हंसाई होती है. अब इस पूरे सिक्वेंस में वही दिक्कत है जो पूरी ‘उजड़ा चमन’ मूवी में है. उस दिक्कत का नाम है- ‘अतिश्योक्ति’. ये दिक्कत इसलिए बड़ी लगती है क्यूंकि फिल्म अपने प्रोमो और अपनी पैकेजिंग में मॉडेस्ट और रियल्टी के करीब लगती है, या ऐसा प्रोजेक्ट करती है. # कहानी- 30 साल का चमन कोहली दिल्ली के हंसराज कॉलेज में हिंदी का प्रोफेसर है. वो और उसकी फैमली लगी हुई है कि कैसे न कैसे चमन की शादी हो जाए. लेकिन इसमें तीन बड़ी अड़चनें हैं. सबसे बड़ी दिक्कत है उसका गंजापन, जिसके चलते हर दूसरी लड़की उसे रिजेक्ट कर देती है और बची हुई आधी लड़कियों की या तो फैमिली रिजेक्ट करती है या उन लड़कियों को कैसे एप्रोच करना है ये चमन नहीं जानता. दूसरी दिक्कत है कि उसके पास वक्त बहुत कम है. क्यूंकि उसके फैमिली पंडित ने कहा है कि अगर 31 साल तक उसकी शादी नहीं हो जाती तो वो आजीवन कुंवारा रहेगा. तीसरी दिक्कत है चमन की खुद की एक्सपेक्टेशन. चमन कोहली के पैरामीटर के हिसाब से अप्सरा बत्रा कुछ भी हो, अप्सरा तो कतई नहीं है. वो चाहे कैसा भी हो, लेकिन उसे लड़की चाहिए खूबसूरत. लेकिन हालात ऐसे बनते हैं कि उसकी ज़िंदगी में अप्सरा बत्रा आ जाती हैं जो चमन के मानकों में खूबसूरती में माइनस मार्किंग पाती हैं. इस सब घटनाओं और आपदाओं के दौरान चमन कोहली के सेल्फ रियलाइजेशन की स्टोरी है ‘उजड़ा चमन’. # रीमेक – रोमांस और कॉमेडी, यानी रॉम-कॉम विधा की ये मूवी, कन्नड़ मूवी ‘ओंडू मोटेया काथे’ का ऑफिशियल रिमेक है. इसलिए ही कन्नड़ मूवी के राइटर और डायरेक्टर राज बी शेट्टी को हिंदी फिल्म में राइटर का क्रेडिट दिया गया है. स्क्रीनप्ले के हिसाब से कई चीज़ें अलग हैं, कुछ चीज़ें हटाई गई हैं और कुछ जोड़ी गई हैं. जैसे कन्नड़ वाले वर्ज़न में कॉलेज गर्ल का चमन को धोखा देने वाला पार्ट नहीं है जो इस मूवी में जोड़ा गया है. होने को कहीं-कहीं ट्रीटमेंट भी अलग है, जैसे लीड एक्टर-एक्ट्रेस के बीच का कॉन्फ्लिक्ट दोनों ही फिल्मों में अलग तरह से शुरू और अलग ही तरह से खत्म होता है. लेकिन ओवरऑल स्टोरीलाइन में ये सब चीज़ें थोड़ा सा भी अंतर नहीं डालतीं. और कई जगह तो ‘उड़ता चमन’ सीन दर सीन भी अपने कन्नड़ काउन्टरपार्ट की ज़िरॉक्स लगती है. जैसे प्रिंसिपल द्वारा एक स्टूडेंट का फाइन किया जाना या जैसे चमन कोहली द्वारा पंडित को शादी तोड़ने के लिए कन्विंस करना. # बाला से टक्कर – अभी कुछ ही दिनों बाद बाला भी रिलीज़ होने वाली है. उस फिल्म का भी मेन प्लॉट, लीड करैक्टर का गंजा होना ही है. वैसे अगर दोनों फिल्मों के प्रोमो देखें तो समानताएं ज़्यादा और अंतर कम नज़र आते हैं लेकिन ये कितनी हैं और कौन ज़्यादा शाबाशी बटोरेगी वो बाला देखने के बाद ही पता चलेगा. एक फिल्म को अगर पहले रिलीज़ होने और ऑरिजनल मूवी का ऑफिशियल रीमेक होने का एडवांटेज़ मिला है तो दूसरी को आयुष्मान खुराना और भूमि पेडणेकर जैसी बड़ी स्टारकास्ट का. # एक्टिंग- ‘प्यार का पंचनामा 2’ और ‘सोनू के टीटू की स्वीटी’ जैसी हल्की फुल्की फ़िल्में कर चुके सनी सिंह के पास इस फिल्म से अपने को साबित करने का अच्छा मौका था. लेकिन अगर उन्होंने मौका गंवाया नहीं भी तो उसे पूरी तरह से कैश भी नहीं करवा पाए. दो कारणों के चलते. एक तो मूवी के इमोशनल पार्ट इतने स्ट्रॉन्ग नहीं हैं कि उसमें अपना हुनर कोई दिखा पाए. दूसरा उनके एक्सप्रेशन पूरी मूवी में ऑलमोस्ट सेम रहते हैं. हां उन्हें ‘मेकअप’ का एडवांटेज़ ज़रूर मिला है, जिसके चलते उनको पहचानना मुश्किल है. उनकी पिछली मूवीज़ देखने के बाद आप इस बात पर उनकी तारीफ़ ज़रूर करेंगे कि उन्होंने करैक्टर के लो कॉन्फिडेंस और सेल्फ डाउट को काफी अच्छे से कैरी किया है. अतुल कुमार और ग्रुशा कपूर ने अच्छी एक्टिंग की है. लेकिन थोड़ी लाउड भी. जो कि ऑफ़ कोर्स स्क्रिप्ट की मांग थी. मूवी का सबसे बड़ा हासिल हैं मानवी गग्रू. ये पहली बार है जब उन्होंने किसी फुल लेंग्थ फीचर फिल्म में लीड एक्ट्रेस प्ले किया हो. होने को ‘फोर मोर शॉट्स प्लीज़’, ‘ट्रिपलिंग’ और ‘पिचर्स’ जैसी वेब सीरीज़ में उनके काम को काफी सराहा गया था. इस फिल्म में भी उनके एक्सप्रेशन्स, उनकी एक्टिंग और अपने करैक्टर के लिए की गई उनकी मेहनत पर्दे पर दिखती है और उन्हें बॉलीवुड में अच्छे से स्थापित करने का माद्दा रखती है. चमन के मम्मी पापा बने अतुल कुमार और ग्रुशा कपूर पंजाबी एक्सेंट और दिल्ली वाले हाव भाव बड़ी अच्छी तरह से पकड़ पाए हैं. सबसे अच्छी कॉमिक टाइमिंग सौरभ शुक्ला की है. बेशक वो दो एक छोटे-छोटे सीन में हैं, और बेशक वो सीन और उनका वो रोल उतना दमदार भी नहीं है. शारिब हाशमी ने कॉलेज के पियोन का किरदार बखूबी निभाया है. होने को ऑरिजनल मूवी में इस किरदार के पास करने को ज़्यादा था. हिंदी वाले वर्ज़न में उसकी स्टोरी को काफी कम कर दिया गया है साथ में उससे जुड़ा इमोशन भी सतही बनकर रह गया है. बाकी एक्टर्स का काम रूटीन तरह का है जिसमें कुछ भी अच्छा या बुरा इतना प्रोमिनेंट नहीं है. # स्क्रिप्ट- दो घंटे की मूवी में भी अगर दर्शक एंटरटेन नहीं हो पा रहे हैं तो यकीनन कहीं स्क्रिप्ट में बहुत बड़ा झोल है. फिल्म का कॉन्सेप्ट बहुत अच्छा है. और स्क्रिप्ट के अपने मोमेंट्स भी हैं लेकिन लचर डायरेक्शन उसे पूरी तरह कैश नहीं करवा पाता. चमन और अप्सरा की सगाई के टूटने वाला सीन और चमन का पियोन राज कुमार के घर विज़िट करने वाला सीन काफी पावरफुल और इमोशनल हो सकता था. लेकिन ‘है’ और ‘हो सकता था’ का ये अंतर ही ‘मास्टरपीस’ और ‘औसत’ के बीच का अंतर है. # ह्यूमर और लव कोशेंट- हर हिट रॉम-कॉम मूवी में दो चीज़ें कमोबेश होती ही होती हैं. यूनिक लव स्टोरी और गुदगुदाने वाली कॉमेडी. जैसे ‘जब वी मेट’ या ‘समवन लाइक इट हॉट’. इस मूवी में भी लव स्टोरी यूनिक है, लेकिन इसे देखते हुए आपको बार-बार लगता है जैसे आप छोटे बजट की कोई वेब सीरीज़ देख रहे हों. क्यूंकि ये लव स्टोरी आईडिया के लेवल पर तो यूनिक है, लेकिन स्टोरीबोर्ड से होते हुए स्क्रिप्ट के रास्ते स्क्रीनप्ले तक पहुंचते-पहुंचते अपने साथ कई क्लिशे चिपका लेती है. फिर चाहे वो ‘प्यार की पहली सीढ़ी लड़ाई’ जैसा घिसा पिटा कॉन्सेप्ट हो या लड़की के सामने लड़के का कान पकड़ के कन्फेशन करना या ‘जो भी होता है, अच्छे के लिए होता है’ जैसे डायलॉग्स. ‘ओंडू मोटेया काथे’,’बाला’ और ‘उजड़ा चमन’ के पोस्टर्स. रही बात कॉमेडी की तो वो रिपीटेटिव लगती है जब ‘मेटाबॉलिज्म’,’सेलिबेसी’ और ‘टेस्टोस्टेरोन‘ जैसे एक नहीं तीन-तीन शब्दों को तोड़-मरोड़ के उत्पन्न करने की कोशिश की गई हो. वो सतही लगती है जब एक विशेष प्रकार के कल्चर और एक्सेंट से उत्पन्न करने की कोशिश की गई हो. कहीं-कहीं उबाती और इरिटेट करती है जब टाइमिंग और बैकग्राउंड म्यूज़िक उसका साथ नहीं दे पाए हों. और वो जब अच्छी लगती है तो याद आता है कि ये वाली सीधे ऑरिजनल कन्नड़ मूवी में भी ठीक ऐसी ही थी. # अतिश्योक्ति- फिल्म में कई ऐसी चीज़ें हैं जिसपर आप कहेंगे ऐसा कहां होता है? कुछ चीज़ें फिजिक्स के लेन्ज लॉ की तरह अपने ही स्रोत का विरोध करती लगती हैं. एक तरफ ये गंजेपन और मोटापे को लेकर ‘एक्सेपटेंस’ बढ़ाने का प्रयास करती है दूसरी तरफ दिल्ली और पंजाबियों को लेकर अपने प्री कंसीव नोशन रखती है. जैसे पंजाबी फैमली है तो लाउड होगी. पंजाबी हैं तो शराब पिएंगे ही पिएंगे. और इस चीज़ को हाईलाईट करने के लिए जैसे ही शराब की बात आती है, बैकग्राउंड में ‘पंजाबी’ शब्द सुनाई देता है. एक पुराने से कॉमन बैकग्राउंड म्यूज़िक के रूप में. बैकग्राउंड म्यूज़िक की दिक्कतें यहीं खत्म नहीं होतीं. न केवल इसकी लाउडनेस से बल्कि इसकी टाइमिंग से भी दिक्कत है. कई जगह ये किसी जोक के पंच से सिंक नहीं करता तो कई जगह सीन के साथ. हिंदी का प्रोफेसर, रोमन में टाइप करता है और इकोनॉमिक्स के टीचर के साथ टेबल वाइन के साथ फाइव स्टार में डिनर करता है. तब जबकि उसकी सैलरी, जैसा वो बताता है साठ हज़ार रुपल्ली है. आप कहेंगे कि तो क्या हो गया, ये इम्पॉसिबल तो नहीं. बेशक इम्पॉसिबल नहीं लेकिन अपाच्य ज़रूर है. और तब जबकि जैसा स्टार्ट में कहा था कि मूवी अपनी पैकेजिंग में काफी आर्गेनिक लगती है, या ऐसा प्रोजेक्ट करती है. # दिल्ली- अच्छी बात ये है कि इस फिल्म में दिल्ली अपने ‘पुरानी दिल्ली’ और ‘चांदनी चौक’ वाले पारंपरिक बॉलीवुड रूप में नहीं है. राजौरी गार्डन, हंसराज कॉलेज, मेट्रो स्टेशन, मयूर विहार, हौज़ ख़ास विलेज जैसी जगहें देखकर या उनके बारे में सुनकर एक डेल्हीआईट को कहीं भी ‘आउट ऑफ़ दी वर्ल्ड’ या ‘काल्पनिकता’ का आभास नहीं होता. मूवी का दिल्ली रियल है. # डायलॉग्स- मैं बार-बार रिपीट कर रहा हूं कि हर डिपार्टमेंट में ‘आईडिया’ के लेवल पर कोई दिक्कत नहीं है लेकिन उसकी तामीर, उसके मटरियलाइज़ेशन में परेशानी पैदा की गई है. उगाई गई है. डेलीब्रेटली. यही हाल डायलॉग्स का भी है. जैसे,’ ‘दिलों की बात करता है जमाना, पर मोहब्बत अब भी चेहरे से शुरू होती है.’ जैसे शायराना डायलॉग्स जो अलग तरह से लिखे जाने के बदले सिंपल होते तो ज़्यादा इंपेक्टफुल होते. # म्यूज़िक- मूवी खत्म होने के बाद क्रेडिट रोल होते वक्त यू ट्यूब सेलिब्रेटी और टी सीरीज़ स्टार गुरु रंधावा का गीत सुपरहिट होने का पूरा माद्दा रखता है. बंदया गीत भी अच्छा है. लेकिन इसका म्यूज़िक न तो इसका सबसे अच्छा डिपार्टमेंट है और न ही ऐसा कि बाकी कमियों के ऊपर पर्दे का काम करे. # ओवरऑल निष्कर्ष- मूवी बुरी नहीं है. लेकिन ऐसी मूवीज़ थियेटर के लिए नहीं होतीं. शुरू होने से पहले ये आपको बताती है कि इसके ऑनलाइन स्ट्रीमिंग राइट्स एमेज़ॉन प्राइम और टीवी राइट्स ज़ी टीवी के पास हैं. बाकी आप समझदार हैं हीं. और साथ में बोनस में ये बता दूं कि मैंने कन्नड़ मूवी ‘ओंडू मोटेया काथे’ नेटफ्लिक्स पर देखी थी.
http://moviesbuzz29.blogspot.com/2019/11/ujada-chaman.html
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