जीवा दत्ता ने सच्चे संत की पहचान करने के उद्देश्य से वट वृक्ष की सूखी टहनी यह सोचकर लगाई कि जो सच्चा संत होगा उसके चरणामृत से ये हरी-भरी हो जाएगी। लेकिन कई संतों का चरणामृत डालने से भी टहनी भरी नहीं हुई तो दोनों निराश हो गए। फिर एक दिन कबीर परमेश्वर जी वहां पहुंचे तो उन्होंने कबीर परमेश्वर जी के चरण धोकर चरणामृत को टहनी में डाला तो तुरंत सूखी टहनी हरी-भरी हो गई। इसका प्रमाण आज भी गुजरात के भरुच शहर के पास अंकलेश्वर नामक स्थान पर है जहां उस पेड़ को कबीर वट वृक्ष के नाम से जाना जाता है।
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अमेरिका के भविष्यवक्ता "श्री एण्डरसन" के अनुसार, भारत के देहात का एक धार्मिक व्यक्ति, एक मानव, एक भाषा और झण्डा की रूपरेखा का संविधान बनाकर संसार को सदाचार, उदारता, मानवीय सेवा व प्यार का सबक देगा । यह मसीहा विश्व में आगे आने वाले हज़ारों वर्षों के लिए धर्म व सुख-शांति भर देगा ।
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उड़ीसा के इन्द्रदमन राजा को कृष्ण जी ने दर्शन देकर मंदिर बनाने को कहा लेकिन उसको समुंदर किसी कारण से बनने नहीं दे रहा था। कृष्ण जी ने यह भी कहा था कि मंदिर में कोई कृष्ण मूर्ति स्थापित नहीं करनी केवल एक पंडित वहाँ रहेगा जो इसका इतिहास बतायेगा। कबीर जी ने वह जगन्नाथ पुरी मंदिर भी बनवाया और समुंदर की लहरों को मंदिर तक नहीं पहुँचने दिया। इससे पहले पांच बार समुंदर वो मंदिर गिरा चुका था। फिर कबीर परमेश्वर जी साधु वेश में प्रकट हुए और अपनी परम शक्ति से समुद्र को रोककर जगन्नाथ का मंदिर बनवाया।
इसका आज भी प्रमाण देखने को मिलता है।
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संत रामपाल जी महाराज ने धर्म की आड़ में होने वाले पाखंड और अंधविश्वास के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने लोगों को यथार्थ भक्ति साधना बताई जो हमारे शास्त्रों में वर्णित है। उन्होंने उन धार्मिक कर्मकांडों और रीति-रिवाजों का विरोध किया, जो समाज को बांटते और भ्रमित करते हैं। उनके इस दृष्टिकोण से कई परंपरागत धार्मिक संस्थान और तथाकथित धर्मगुरु नाराज हुए, लेकिन संत रामपाल जी कभी पीछे नहीं हटे। परिणामस्वरूप उनके संघर्ष से समाज में एक नई आध्यात्मक क्रांति आई और लोगों तक यथार्थ आध्यात्मिक ज्ञान पहुँच रहा है।
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