#ऋषि कपूर की आयु
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newsaryavart · 5 years ago
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महाराष्ट्र नासिक इगतपुरी के ग्रामीणों ने डीवी के बाद इलाके का नामकरण करके इरफान खान को श्रद्धांजलि दी इरफान खान को महाराजा के इस गांव ने दी ऐसी श्रद्धांजलि, हो रही है जमकर तारीफ | बॉलीवुड - समाचार हिंदी में
महाराष्ट्र नासिक इगतपुरी के ग्रामीणों ने डीवी के बाद इलाके का नामकरण करके इरफान खान को श्रद्धांजलि दी इरफान खान को महाराजा के इस गांव ने दी ऐसी श्रद्धांजलि, हो रही है जमकर तारीफ | बॉलीवुड – समाचार हिंदी में
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इरफान खान महाराज और (महाराष्ट्र) के नासिक (नासिक) जिश के इगतपुरी (इगतपुरी) के पास के एक गांव ने इरफान खान (इरफान खान) को अपने ही अंजज में श्रद्धांजलि दी है। इसी गांव में उनका फार्महाउस भी है।
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bhaktigroupofficial · 4 years ago
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रवि प्रदोष व्रत परिचय एवं प्रदोष व्रत विस्तृत विधि
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प्रत्येक चन्द्र मास की त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत रखने का विधान है. यह व्रत कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों को किया जाता है. सूर्यास्त के बाद के 2 घण्टे 24 मिनट का समय प्रदोष काल के नाम से जाना जाता है. प्रदेशों के अनुसार यह बदलता रहता है. सामान्यत: सूर्यास्त से लेकर रात्रि आरम्भ तक के मध्य की अवधि को प्रदोष काल में लिया जा सकता है।
ऐसा माना जाता है कि प्रदोष काल में भगवान भोलेनाथ कैलाश पर्वत पर प्रसन्न मुद्रा में नृ्त्य करते है. जिन जनों को भगवान श्री भोलेनाथ पर अटूट श्रद्धा विश्वास हो, उन जनों को त्रयोदशी तिथि में पडने वाले प्रदोष व्रत का नियम पूर्वक पालन कर उपवास करना चाहिए।
यह व्रत उपवासक को धर्म, मोक्ष से जोडने वाला और अर्थ, काम के बंधनों से मुक्त करने वाला होता है. इस व्रत में भगवान शिव की पूजन किया जाता है. भगवान शिव कि जो आराधना करने वाले व्यक्तियों की गरीबी, मृ्त्यु, दु:ख और ऋणों से मुक्ति मिलती है।
प्रदोष व्रत की महत्ता
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शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत को रखने से दौ गायों को दान देने के समान पुन्य फल प्राप्त होता है. प्रदोष व्रत को लेकर एक पौराणिक तथ्य सामने आता है कि " एक दिन जब चारों और अधर्म की स्थिति होगी, अन्याय और अनाचार का एकाधिकार होगा, मनुष्य में स्वार्थ भाव अधिक होगी. तथा व्यक्ति सत्कर्म करने के स्थान पर नीच कार्यो को अधिक करेगा।
उस समय में ��ो व्यक्ति त्रयोदशी का व्रत रख, शिव आराधना करेगा, उस पर शिव कृ्पा होगी. इस व्रत को रखने वाला व्यक्ति जन्म- जन्मान्तर के फेरों से निकल कर मोक्ष मार्ग पर आगे बढता है. उसे उतम लोक की प्राप्ति होती है।
व्रत से मिलने वाले फल
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अलग- अलग वारों के अनुसार प्रदोष व्रत के लाभ प्राप्त होते है।
जैसे👉 सोमवार के दिन त्रयोदशी पडने पर किया जाने वाला वर्त आरोग्य प्रदान करता है। सोमवार के दिन जब त्रयोदशी आने पर जब प्रदोष व्रत किया जाने पर, उपवास से संबन्धित मनोइच्छा की पूर्ति होती है। जिस मास में मंगलवार ���े दिन त्रयोदशी का प्रदोष व्रत हो, उस दिन के व्रत को करने से रोगों से मुक्ति व स्वास्थय लाभ प्राप्त होता है एवं बुधवार के दिन प्रदोष व्रत हो तो, उपवासक की सभी कामना की पूर्ति होने की संभावना बनती है।
गुरु प्रदोष व्रत शत्रुओं के विनाश के लिये किया जाता है। शुक्रवार के दिन होने वाल प्रदोष व्रत सौभाग्य और दाम्पत्य जीवन की सुख-शान्ति के लिये किया जाता है। अंत में जिन जनों को संतान प्राप्ति की कामना हो, उन्हें शनिवार के दिन पडने वाला प्रदोष व्रत करना चाहिए। अपने उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए जब प्रदोष व्रत किये जाते है, तो व्रत से मिलने वाले फलों में वृ्द्धि होती है।
व्रत विधि
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सुबह स्नान के बाद भगवान शिव, पार्वती और नंदी को पंचामृत और जल से स्नान कराएं। फिर गंगाजल से स्नान कराकर बेल पत्र, गंध, अक्षत (चावल), फूल, धूप, दीप, नैवेद्य (भोग), फल, पान, सुपारी, लौंग और इलायची चढ़ाएं। फिर शाम के समय भी स्नान करके इसी प्रकार से भगवान शिव की पूजा करें। फिर सभी चीजों को एक बार शिव को चढ़ाएं।और इसके बाद भगवान शिव की सोलह सामग्री से पूजन करें। बाद में भगवान शिव को घी और शक्कर मिले जौ के सत्तू का भोग लगाएं। इसके बाद आठ दीपक आठ दिशाओं में जलाएं। जितनी बार आप जिस भी दिशा में दीपक रखेंगे, दीपक रखते समय प्रणाम जरूर करें। अंत में शिव की आरती करें और साथ ही शिव स्त्रोत, मंत्र जाप करें। रात में जागरण करें।
प्रदोष व्रत समापन पर उद्धापन
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इस व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद व्रत का समापन करना चाहिए. इसे उद्धापन के नाम से भी जाना जाता है।
उद्धापन करने की विधि
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इस व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद व्रत का समापन करना चाहिए. इसे उद्धापन के नाम से भी जाना जाता है।
इस व्रत का उद्धापन करने के लिये त्रयोदशी तिथि का चयन किया जाता है. उद्धापन से एक दिन पूर्व श्री गणेश का पूजन किया जाता है. पूर्व रात्रि में कीर्तन करते हुए जागरण किया जाता है. प्रात: जल्द उठकर मंडप बनाकर, मंडप को वस्त्रों या पद्म पुष्पों से सजाकर तैयार किया जाता है. "ऊँ उमा सहित शिवाय नम:" मंत्र का एक माला अर्थात 108 बार जाप करते हुए, हवन किया जाता है. हवन में आहूति के लिये खीर का प्रयोग किया जाता है।
हवन समाप्त होने के बाद भगवान भोलेनाथ की आरती क��� जाती है। और शान्ति पाठ किया जाता है. अंत: में दो ब्रह्माणों को भोजन कराया जाता है. तथा अपने सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा देकर आशिर्वाद प्राप्त किया जाता है।
रवि त्रयोदशी प्रदोष व्रत
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॥ दोहा ॥
आयु, बुद्धि, आरोग्यता, या चाहो सन्तान ।
शिव पूजन विधवत् करो, दुःख हरे भगवान ॥
किसी समय सभी प्राणियों के हितार्थ परम् पुनीत गंगा के तट पर ऋषि समाज द्वारा एक विशाल सभा का आयोजन किया गया, जिसमें व्यास जी के परम् प्रिय शिष्य पुराणवेत्ता सूत जी महाराज हरि कीर्तन करते हुए पधारे। शौनकादि अट्ठासी हजार ऋषि-मुनिगण ने सूत जी को दण्डवत् प्रणाम किया। सूत जी ने भक्ति भाव से ऋषिगण को आशीर्वाद दे अपना स्थान ग्रहण किया।ऋषिगण ने विनीत भाव से पूछा, “हे परम् दयालु! कलियुग में शंकर भगवान की भक्ति किस आराधना द्वारा उपलब्ध होगी? कलिकाल में जब मनुष्य पाप कर्म में लिप्त हो, वेद-शास्त्र से विमुख रहेंगे । दीनजन अनेक कष्टों से त्रस्त रहेंगे । हे मुनिश्रेष्ठ! कलिकाल में सत्कर्मं में किसी की रुचि न होगी, पुण्य क्षीण हो जाएंगे एवं मनुष्य स्वतः ही असत् कर्मों की ओर प्रेरित होगा । इस पृथ्वी पर तब ज्ञानी मनुष्य का यह कर्तव्य हो जाएगा कि वह पथ से विचलित मनुष्य का मार्गदर्शन करे, अतः हे महामुने! ऐसा कौन-सा उत्तम व्रत है जिसे करने से मनवांछित फल की प्राप्ति हो और कलिकाल के पाप शान्त हो जाएं?”सूत जी बोले- “हे शौनकादि ऋषिगण! आप धन्यवाद के पात्र हैं । आपके विचार प्रशंसनीय व जनकल्याणकारी हैं । आपके ह्रदय में सदा परहित की भावना रहती है, आप धन्य हैं । हे शौनकादि ऋषिगण! मैं उस व्रत का वर्णन करने जा रहा हूं जिसे करने से सब पाप और कष्ट नष्ट हो जाते हैं तथा जो धन वृद्धिकारक, सुख प्रदायक, सन्तान व मनवांछित फल प्रदान करने वाला है । इसे भगवान शंकर ने सती जी को सुनाया था।”सूत जी आगे बोले- “आयु वृद्धि व स्वास्थ्य लाभ हेतु रवि त्रयोदशी प्रदोष का व्रत करें । इसमें प्रातः स्नान कर निराहार रहकर शिव जी का मनन करें ।मन्दिर जाकर शिव आराधना करें । माथे पर त्रिपुण धारण कर बेल, धूप, दीप, अक्षत व ऋतु फल अर्पित करें । रुद्राक्ष की माला से सामर्थ्यानुसार, ॐ नमः शिवाय’ जपे । ब्राह्मण को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें, तत्पश्‍चात मौन व्रत धारण करें । संभव हो तो यज्ञ-हवन कराएं ।‘ॐ ह्रीं क्लीं नमः शिवाय स्वाहा’ मंत्र से यज्ञ-स्तुति दें । इससे अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है । प्रदोष व्रत में व्रती एक बार भोजन करे और पृथ्वी पर शयन करे । इससे सर्व कार्य सिद्ध होते हैं । श्रावण मास में इस व्रत का विशेष महत्व है । सभी मनोरथ इस व्रत को करने से पूर्ण होते है । हे ऋषिगण! यह प्रदोष व्रत जिसका वृत्तांत मैंने सुनाया, किसी समय शंकर भगवान ने सती जी को और वेदव्यास मुनि ने मुझे सुनाया था। ”शौनकादि ऋषि बोले – “हे पूज्यवर! यह व्रत परम् गोपनीय, मंगलदायक और कष्ट हरता कहा गया है । कृपया बताएं कि यह व्रत किसने किया और उसे इससे क्या फल प्राप्त हुआ?”
तब श्री सुत जी कथा सुनाने लगे-
व्रत कथा
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“एक ग्राम में एक दीन-हीन ब्राह्मण रहता था । उसकी धर्मनिष्ठ पत्‍नी प्रदोष व्रत करती थी । उनके एक पुत्र था । एक बार वह पुत्र गंगा स्नान को गया । दुर्भाग्यवश मार्ग में उसे चोरों ने घेर लिया और डराकर उससे पूछने लगे कि उसके पिता का गुप्त धन कहां रखा है । बालक ने दीनतापूर्वक बताया कि वे अत्यन्त निर्धन और दुःखी हैं । उनके पास गुप्त धन कहां से आया । चोरों ने उसकी हालत पर तरस खाकर उसे छोड़ दिया । बालक अपनी राह हो लिया । चलते-चलते वह थककर चूर हो गया और बरगद के एक वृक्ष के नीचे सो गया । तभी उस नगर के सिपाही चोरों को खोजते हुए उसी ओर आ निकले । उन्होंने ब्राह्मण-बालक को चोर समझकर बन्दी बना लिया और राजा के सामने उपस्थित किया । राजा ने उसकी बात सुने बगैर उसे कारावार में डलवा दिया । उधर बालक की माता प्रदोष व्रत कर रही थी । उसी रात्रि राजा को स्वप्न आया कि वह बालक निर्दोष है । यदि उसे नहीं छोड़ा गया तो तुम्हारा राज्य और वैभव नष्ट हो जाएगा । सुबह जागते ही राजा ने बालक को बुलवाया । बालक ने राजा को सच्चाई बताई । राजा ने उसके माता-पिता को दरबार में बुलवाया । उन्हें भयभीत देख राजा ने मुस्कुराते हुए कहा- ‘तुम्हारा बालक निर्दोष और निडर है । तुम्हारी दरिद्रता के कारण हम तुम्हें पांच गांव दान में देते हैं ।’ इस तरह ब्राह्मण आनन्द से रहने लगा । शिव जी की दया से उसकी दरिद्रता दूर हो गई।”
प्रदोषस्तोत्रम्
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।। श्री गणेशाय नमः।।
जय देव जगन्नाथ जय शङ्कर शाश्वत । जय सर्वसुराध्यक्ष जय सर्वसुरार्चित ॥ १॥
जय सर्वगुणातीत जय सर्ववरप्रद ।
जय नित्य निराधार जय विश्वम्भराव्यय ॥ २॥
जय विश्वैकवन्द्येश जय नागेन्द्रभूषण ।
ज�� गौरीपते शम्भो जय चन्द्रार्धशेखर ॥ ३॥
जय कोट्यर्कसङ्काश जयानन्तगुणाश्रय । जय भद्र विरूपाक्ष जयाचिन्त्य निरञ्जन ॥ ४॥
जय नाथ कृपासिन्धो जय भक्तार्तिभञ्जन । जय दुस्तरसंसारसागरोत्तारण प्रभो ॥ ५॥
प्रसीद मे महादेव संसारार्तस्य खिद्यतः । सर्वपापक्षयं कृत्वा रक्ष मां परमेश्वर ॥ ६॥
महादारिद्र्यमग्नस्य महापापहतस्य च । महाशोकनिविष्टस्य महारोगातुरस्य च ॥ ७॥
ऋणभारपरीतस्य दह्यमानस्य कर्मभिः । ग्रहैः प्रपीड्यमानस्य प्रसीद मम शङ्कर ॥ ८॥
दरिद्रः प्रार्थयेद्देवं प्रदोषे गिरिजापतिम् । अर्थाढ्यो वाऽथ राजा वा प्रार्थयेद्देवमीश्वरम् ॥ ९॥
दीर्घमायुः सदारोग्यं कोशवृद्धिर्बलोन्नतिः ।
ममास्तु नित्यमानन्दः प्रसादात्तव शङ्कर ॥ १०॥
शत्रवः संक्षयं यान्तु प्रसीदन्तु मम प्रजाः । नश्यन्तु दस्यवो राष्ट्रे जनाः सन्तु निरापदः ॥ ११॥
दुर्भिक्षमरिसन्तापाः शमं यान्तु महीतले । सर्वसस्यसमृद्धिश्च भूयात्सुखमया दिशः ॥ १२॥
एवमाराधयेद्देवं पूजान्ते गिरिजापतिम् । ब्राह्मणान्भोजयेत् पश्चाद्दक्षिणाभिश्च पूजयेत् ॥ १३॥
सर्वपापक्षयकरी सर्वरोगनिवारणी । शिवपूजा मयाऽऽख्याता सर्वाभीष्टफलप्रदा ॥ १४॥
॥ इति प्रदोषस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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कथा एवं स्तोत्र पाठ के बाद महादेव जी की आरती करें
ताम्बूल, दक्षिणा, जल -आरती
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तांबुल का मतलब पान है। यह महत्वपूर्ण पूजन सामग्री है। फल के बाद तांबुल समर्पित किया जाता है। ताम्बूल के साथ में पुंगी फल (सुपारी), लौंग और इलायची भी डाली जाती है । दक्षिणा अर्थात् द्रव्य समर्पित किया जाता है। भगवान भाव के भूखे हैं। अत: उन्हें द्रव्य से कोई लेना-देना नहीं है। द्रव्य के रूप में रुपए, स्वर्ण, चांदी कुछ भी अर्पित किया जा सकता है।
आरती पूजा के अंत में धूप, दीप, कपूर से की जाती है। इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। आरती में एक, तीन, पांच, सात यानि विषम बत्तियों वाला दीपक प्रयोग किया जाता है।
भगवान शिव जी की आरती
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ॐ जय शिव ओंकारा,भोले हर शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ हर हर हर महादेव...॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
तीनों रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
अक्षमाला बनमाला मुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहै भोले शशिधारी ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता।
जगकर्ता जगभर्ता जगपालन कर���ा ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठि दर्शन पावत रुचि रुचि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
लक्ष्मी व सावित्री, पार्वती संगा ।
पार्वती अर्धांगनी, शिवलहरी गंगा ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।
पर्वत सौहे पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।
जटा में गंगा बहत है, गल मुंडल माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
ॐ जय शिव ओंकारा भोले हर शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्द्धांगी धारा ।। ॐ हर हर हर महादेव।।
कर्पूर आरती
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कर्पूरगौरं करुणावतारं, संसारसारम् भुजगेन्द्रहारम्।
सदावसन्तं हृदयारविन्दे, भवं भवानीसहितं नमामि॥
मंगलम भगवान शंभू
मंगलम रिषीबध्वजा ।
मंगलम पार्वती नाथो
मंगलाय तनो हर ।।
मंत्र पुष्पांजलि
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मंत्र पुष्पांजली मंत्रों द्वारा हाथों में फूल लेकर भगवान को पुष्प समर्पित किए जाते हैं तथा प्रार्थना की जाती है। भाव यह है कि इन पुष्पों की सुगंध की तरह हमारा यश सब दूर फैले तथा हम प्रसन्नता पूर्वक जीवन बीताएं।
ॐ यज्ञेन यज्ञमयजंत देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्।
ते हं नाकं महिमान: सचंत यत्र पूर्वे साध्या: संति देवा:
ॐ राजाधिराजाय प्रसह्ये साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे स मे कामान्कामकामाय मह्यम् कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु।
कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नम:
ॐ स्वस्ति साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं
पारमेष्ठ्यं राज्यं माहाराज्यमाधिपत्यमयं समंतपर्यायी सार्वायुष आंतादापरार्धात्पृथिव्यै समुद्रपर्यंता या एकराळिति तदप्येष श्लोकोऽभिगीतो मरुत: परिवेष्टारो मरुत्तस्यावसन्गृहे आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवा: सभासद इति।
ॐ विश्व दकचक्षुरुत विश्वतो मुखो विश्वतोबाहुरुत विश्वतस्पात संबाहू ध्यानधव धिसम्भत त्रैत्याव भूमी जनयंदेव एकः।
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि
तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥
नाना सुगंध पुष्पांनी यथापादो भवानीच
पुष्पांजलीर्मयादत्तो रुहाण परमेश्वर
ॐ भूर्भुव: स्व: भगवते श्री सांबसदाशिवाय नमः। मंत्र पुष्पांजली समर्पयामि।।
प्रदक्षिणा
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��मस्कार, स्तुति -प्रदक्षिणा का अर्थ है परिक्रमा। आरती के उपरांत भगवन की परिक्रमा की जाती है, परिक्रमा हमेशा क्लॉक वाइज (clock-wise) करनी चाहिए। स्तुति में क्षमा प्रार्थना करते हैं, क्षमा मांगने का आशय है कि हमसे कुछ भूल, गलती हो गई हो तो आप हमारे अपराध को क्षमा करें।
यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानि च। तानि सवार्णि नश्यन्तु प्रदक्षिणे पदे-पदे।।
अर्थ: जाने अनजाने में किए गए और पूर्वजन्मों के भी सारे पाप प्रदक्षिणा के साथ-साथ नष्ट हो जाए।
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🎪🛕श्री भक्ति ग्रुप मंदिर🛕🎪
🙏🌹🙏जय श्री राधे कृष्ण🙏🌹🙏
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himanshu12563 · 5 years ago
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बॉलीवुड के जाने-माने अभिनेता ऋषि कपूर का 67 वर्ष की आयु में  न��धन हो गया.अभी बॉलीवुड, एक्टर  इमरान खान की मौत का शोक मना ही रहा था कि उसको एक और  झटका ऋषि कपूर के रूप में लग गया.
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bestnews99 · 5 years ago
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67 साल की उम्र में ऋषि कपूर का निधन
67 साल की उम्र में ऋषि कपूर का निधन: अक्षय कुमार और अमिताभ बच्चन ने लीजेंड को श्रद्धांजलि दी (ऋषि कपूर का निधन)
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ऋषि कपूर का आज 67 वर्ष की आयु में मुंबई में निधन हो गया। अक्षय कुमार, अमिताभ बच्चन और अन्य बॉलीवुड हस्तियों ने दिग्गज अभिनेता को सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलि दी। दिग्गज अभिनेता ऋषि कपूर का 30 अप्रैल को मुंबई में निधन हो गया, अमिताभ बच्चन ने ट्विटर पर एक पोस्ट में इसकी जानकारी दी। वह 67 साल के थे। अभिनेता के लिए अक्षय कुमार, ताप्पे पन्नू और रीमा कागती सहित कई हस्तियों ने उन्हें सोशल मीडिया पर विदाई दी। अमिताभ बच्चन, जिन्होंने कभी कभी, अमर अकबर एंथनी, नसीब और 102 नॉट आउट जैसी फिल्मों में ऋषि कपूर के साथ काम किया है, ने अपने करीबी दोस्त और सहकर्मी की मौत की खबर पहले सोशल मीडिया पर साझा की। बिग बी ने ट्वीट किया, "वह चला गया! ऋषि कपूरगौनिसेले का निधन हो गया।" अक्षय कुमार ने अपने नमस्ते लंदन के सह-कलाकार को भी श्रद्धांजलि अर्पित की और कहा, "ऐसा लगता है जैसे हम एक बुरे सपने के बीच में हैं … बस #RishiKapoor जी के निधन की निराशाजनक खबर सुनी। यह दिल तोड़ने वाला था। वह एक किंवदंती थे।" , एक महान सह-कलाकार और परिवार का एक अच्छा दोस्त। मेरे विचार और प्रार्थना उनके परिवार के साथ। " प्रियंका चोपड़ा ने ऋषि और उनकी पत्नी नीतू कपूर के साथ एक प्यारी छवि साझा की, और कहा, "मेरा जीवन इतना भारी है। यह एक युग का अंत है। # श्रीश्री आपके स्पष्ट दिल और अथक प्रतिभा का कभी भी फिर से सामना नहीं होगा। इस तरह का एक विशेषाधिकार।" आप भी थोड़ा बहुत जानते हैं। नीतू मैम, रिधिमा, रणबीर और परिवार के प्रति मेरी संवेदना। बाकी सब शांति से। सर। " मुल्क में ऋषि कपूर के साथ काम करने वाले तास्पे पन्नू ने ट्वीट किया, "कुछ लिखने की कोशिश कर रहा हूं, मैं अपने दिमाग को अपने हाथों में नहीं डाल सकता। बीच में दिल की तरह यह सिर्फ इ�� बात को समझने में सक्षम नहीं है। वह हंसी, हास्य की भावना, ईमानदारी और यहां तक कि वह बदमाशी थी, याद किया जा��गा। आप जैसा कोई नहीं। " Read the full article
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iloudlyclearbouquetworld · 5 years ago
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ऋषि कपूर का निधन ल्यूकेमिया: फैमिली के साथ दो साल की लड़ाई के बाद सुबह 8.45 बजे हुआ दिग्गज अभिनेता ऋषि कपूर का गुरुवार सुबह 67 वर्ष की आयु में निधन हो गया। अभिनेता पिछले दो वर्षों से ल्यूकेमिया से जूझ रहा था।
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indianscooper · 5 years ago
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ऋषि कपूर ने गुजरे जमाने की अभिनेत्री निम्मी का जिक्र करते हुए शोक व्यक्त किया, वह हमेशा आरके परिवार का हिस्सा थीं: बॉलीवुड समाचार – बॉलीवुड राम 88 वर्ष की आयु में लंबी बीमारी के बाद निधन की अभिनेत्री निमी का निधन हो गया। अभिनेत्री 50 और 60 के दशक के अंत में प्रसिद्ध सितारों में से एक थीं और उन्हें अपनी भूमिकाओं के लिए जाना जाता था। आन, बरसात तथा दीदार। अभिनेत्री को जानने वाले ऋषि कपूर ने उन्हें श्रद्धांजलि दी और कहा कि वह हमेशा आरके परिवार का हिस्सा थीं।
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hellodkdblog · 6 years ago
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ग्रहों की दृष्टि का एक और आयाम:-
ग्रहों की दृष्टि का एक और आयाम:-                                ************************************
ज्योतिष में ग्रहों की दृष्टि!यह सर्वसामान्य विषय है। अतः किसी भूमिका की आवश्यकता नही, किन्तु लेख में पूर्णता का भाव बने अत: इसे हम संक्षेप रुप में ले लेते हैं।
1-अद्यतन ज्योतिष के ऋषि वराह-पाराशर द्वय के अनुयाइयों का मत हैं कि, हमारे नवग्रह अपने स्थित भाव से सप्तम भाव (181-210 अंश तक) को पूर्ण प्रभावित/दृष्टि करते है।        जैसे 1-7, 2-8, 3-9, 4-10, 5-11, 6-127-1, 8-2, 9-3, 10-4, 11-5, 12-6.साथ ही बड़े आकार के तीन ग्रह शनि, बृहस्पति, मंगल और राहु एवं केतु! ये पांच ग्रह सप्तम भाव (181 से 210 अंश) के अतिरिक्त इससे पहले के भावों और आगे के भावों पर भी अपना पूर्ण प्रभाव (दृष्टि) डालते हैं।  जैसे:
( अ )-मंगल अपने स्थित भाव से चौथेभाव (91-120 अंश) और आठवेभाव (211-240 अंश) पर।
( ब )-बृहस्पति भी अपने स्थित भाव से पांचवे भाव (121-150 अंश) और नौवेभाव (241-270 अंश) पर।
(स )-शनि भी अपने स्थित भाव से तीसरे भाव (61-90 अंश) और दसवे भाव (271-300 अंश) पर।
(द )-राहु और केतु भी बृहस्पति के समान अपने स्थान से सातवें (181-210 अंश) पांचवें (121 - 150 अंश) और नवम स्थान (241-27० अंश) को अपने पूर्ण प्रभाव (दृष्टि) से या कहें कि अन्धकारमय बनाते हैं।
मंगल, बृहस्पति और ��नि की ये अतिरिक्त दृष्टियां सूर्य,चंद्र, बुध और शुक्र ग्रह की दृष्टियां ( प्रभाव क्षेत्र) भी मानी जाती हैं, किन्तु इन अतिरिक्त दृष्टि का प्रभाव पूर्ण दृष्टि के समान न मानते हुए मंगल की 4/8 को त्रिपाद (75%), बृहस्पति की 5/7 को द्विपाद (50%) और शनि की 3/10 को एकपाद (25%) ही माना जाता हैं।
2-अब हम ऋषि जैमिनी का आश्रय लेते हैं। जैमिनी ऋषि ग्रहों की दृष्टि को स्वीकार तो करते हैं किन्तु वे ग्रहों की दृष्टि का मूल आधार उसके अधिष्ठित राशिक्षेत्र ( भाव ) से अन्य किसी राशिक्षेत्र पर बने दृष्टियोग को मानते हैं।
ऋषि जैमिनी के अनुसार :
-चर राशियां (1,4,7,10) एवं उस पर आसीन ग्रह स्वयं से अगली स्थिरराशि ( 2,5,8,11) को छोड़ शेष तीनो स्थिर राशियों को देखती है।यह दृष्टि स्वयं से पंचमभाव के 121-150 अंश तक, स्वयं से अष्टमभाव के 211-240 अंश तक, और स्वयं से एकादस भाव के 301-330 अंश तक बनती है।
-स्थिर राशियां (2,5,8,11) एवं उस पर आसीन ग्रह स्वयं से पिछली चरराशि को छोड़ शेष तीनो चर राशियों को देखती है।यह दृष्टि स्वयं से नवम भाव के 241-270 अंश,स्वयं से छठेभाव के 151-180 अंश और स्वयं से तीसरे भाव के 61-90 अंश तक बनती है।
-द्विस्वभाव राशियां (3,6,9,12) एवं उस पर आसीन ग्रह अपनी शेष तीनों द्विस्वभाव राशियों को देखती है। यह दृष्टि स्वयं से चौथे भाव के 91-120 अंश तक, स्वयं से सातवे भाव के 181-210 अंश तक और स्वयं से दसम भाव के 271-300 अंश तक बनती है।  हम पाते है कि फलित ज्योतिष में ग्रहों की दृष्टि के प्रारूप पर मत भिन्नता हो जाती है।
उदाहरणत: ऋषि वराह-पाराशर के मत के अनुसार नवमेश और दसमेश यदि:
1-वे दोनों एक दूसरे की निजराशि में आते हैं,
2-वे दोनों एक राशि में युत आते हैं,
3-वे दोनों एक दूसरे के समसप्तक आते हैं,
4-दोनों ग्रहों में से एक दूसरे की राशि में बैठकर राशिपति को अपनी पूर्णदृष्टि से देखता हैं तो " सत्ता या अधिकार संबंधित राजयोग" होता है।
लेकिन जैमिनी मत में उपरोक्त "सत्ता या अधिकार संबंधित राजयोग" उसी स्थिति में पूर्ण होगा जब:
1-नवमेश और दसमेश में से कोई एक ग्रह यदि चर राशि में है तो दूसरे ग्रह को उससे 5, 8 या 11वे भाव की स्थिरराशि में आना होगा।
2-नवमेश और दसमेश में से कोई एक ग्रह यदि स्थिरराशि में है तो दूसरे ग्रह को उससे 3, 6 या 9 वे भाव की चरराशि में आना होगा।
3-नवमेश और दसमेश में से कोई एक ग्रह यदि द्विस्वभावराशि में है तो दूसरे ग्रह को उससे 4, 7 या 10 वे भाव की द्विस्वभावराशि में ही आना होगा।स्पष्टरुप में ग्रह की दृष्टियों में भेद होते हुए भी फलित तो दोनों से सटीक हैं। लेकिन एक विडंबना है। 
हमने जैमिनी मत को तो समग्ररुप में लिया है लेकिन ऋषि वराह-पाराशर द्वारा प्रदत्त सूर्य,चंद्र,बुध और सूर्य की -एकपाद-25% , -द्विपाद-50% को छोड़िये उनकी त्रिपाद दृष्टि जो कि पूर्ण दृष्टिमान का 75% है उसको भी यथोचित महत्व नही दिया।
पूर्वभाग में हमने ऋषि वराह-पाराशर के ग्रहदृष्टि सिद्धांत के अन्तर्गत ग्रहों की " पाद " दृष्टि सिध्दांत का पूर्नस्मरण किया था।
पाददृष्टि : - किसी ग्रह विशेष की वह दृष्टि जो उसकी तो पूर्ण दृष्टि है किन्तु अन्य ग्रहों के लिए वह आंशिक दृष्टि है।" जैसे:
(अ)- शनि की उनके स्थि�� भाव से 3 रे और 10 वे भावों पर विशेष पूर्ण दृष्टि है किन्तु सू० चं० मं०बु० बृ० और शुक्र के लिए इस दृष्टि का मान उनकी ही पूर्ण दृष्टि का मात्र 25 प्रतिशत है।
(ब)- बृहस्पति की उनके स्थित भाव से 5 वे और 9 वे भावों पर विशेष पूर्ण दृष्टि है किन्तु सू० चं० मं० बु० शुक्र और शनि के लिए इस दृष्टि का मान उनकी ही पूर्ण दृष्टि का मात्र 50 प्रतिशत है।
(स)- मंगल की उनके स्थित भाव से 4 थे और 8 वे भावों पर विशेष पूर्ण दष्टि है किन्तु सू० चं० बु० बृ० शु० और शनि के लिए इस दृष्टि का मान उनकी ही पूर्ण दृष्टि का मात्र 75 प्रतिशत है।दृष्टि की मात्रा के इस विभाजन का कारण समझ में भी आता है। 
भचक्र के भाव संख्या 3 से 10 तक का एक बड़ा विस्तार है। इतनी विशाल कटाक्ष दृष्टि शनि जैसे ग्रह के लिए ही संभव है। इसी प्रकार भचक्र के भाव संख्या 5 से 9 तक का (तनिक कम ) विस्तार वाली दृष्टि बृहस्पति जैसे बृहद ग्रह के लिए ही संभव है। 
भचक्र के विस्तार को तुलनात्मक रुप से ग्रह के समीपस्थ करके (भाव संख्या 4 से 8 तक ) मंगल ग्रह को विशेष त्रिपाद (75%) दृष्टि प्रदान की गई।मंगल इतना विशाल नही कि इन्हें शनि-बृहस्पति के समकक्ष तीन दृष्टि मिलें । किन्तु इसका औचित्य भी समझ में आ जाता है। मंगल स्व,उच्च,मित्र सम के अतिरिक्त शत्रुराशि में भी बलवान बना रहता है। (उत्तरकालामृत, ग्रहभावफल,15)  (नोट:-मंगल को शत्रुराशि पर देख मंगलीयोग समाप्त कहने वाले मित्रों से विशेष आग्रह ) मान कि एक पाद एवं द्विपाद दृष्टि का महत्व बहुत क्षीण होगा, किन्तु प्रश्न यह है कि ज्योतिष के प्रणेताओं ने फलित के लिए स०ू चं० बु० और शुक्र के लिए त्रिपाद दृष्टियों का उपयो��� क्यों नही किया?
नि:संदेह सू० चं० बु० और शुक्र ग्रह श० बृ० मं० की तुलना में छोटे हैं किन्तु एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि ये ग्रह पृथ्वी के अधिकतम समीप होने से हर क्षण जातक को प्रभावित करते रहते हैं।देखा गया है कि कुछ जन्मपत्रिकाएं तो सामान्य ज्योतिषी के हाथों में आते ही स्वयं बोलने लगती हैं। किन्तु कुछ पत्रिकाएं ऐसी भी होती हैं जिनमें कोई प्रमाणिक योग और ग्रहों के परस्पर संबंध स्पष्ट नही होने के कारण प्रबुध्द ज्योतिषी को भी भविष्य कथन के लिए विशेष परिश्रम करना पड़ता हैं।तो क्या हम एक अतिरिक्त साधन के रूप में सभी ग्रहों की त्रिपाददृष्टि (75%) का उपयोग कर सकते हैं?उत्तर है: क्यों नही! किन्तु यह तब ही संभव है जब चौथे भाव एवं अष्टम भाव पर पड़ने वाली इस त्रिपाद दृष्टि (75%) को किसी अतिरिक्त बल से 100% (पूर्ण दृष्टि) बनाया जाय?
वह कैसे? 
इस विषय पर स्व० श्री ईश्वरीदत्त द्विवेदी, "निर्णय भाष्कर" (1899-1983) के दो दोहे का उदाहरण करता हूँ।
मित्र क्षेत्र में आकर सब ग्रह,जब राशि सहित त्रिपाद से देखें।                                             ज्यों गुरु मेष रहे बृश्चिक कोपूर्णदष्टि दे निज फल सींचे।। 1.
भावार्थ:- जब कोई ��्रह अपने मित्र (लग्नानुसार त्रिकोणेश ) की राशि में बैठे और वहां से वह ग्रह और वह भावराशि स्वयं से 4थे या 8वे भाव को देखे तो उन भावों में अपने नैसर्गिक स्वभाव के अनुरुप भरपूर कारकता दे देते हैं। अर्थात! यहां मेष के बृहस्पति बृश्चिक राशि वाले भाव से स्वयं से संबंधित फल दे देगें।
उदाहरण: श्री मति सोनिया गाँधी जी। 09-12-1946, 21:30,Turin, Italy. कर्क लग्न।
1-जातक का लग्नेश चंद्र 12 वे भाव में है। (-)
2-लग्न में शनि और एकादस में राहू होने से लग्नेश चंद्र पापकर्त्तरी दोष में है।(-) (-)
3-लग्नेश और अष्टमेष और चंद्र और शनि क्रमस: द्वि और चर स्वभाव में है। : जैमिनि सूत्र। (-)
4-राहू और मंगल षडाष्टक योग में हैं।(-)
उपरोक्त योग स्पष्टरुप से जातक की आयु के संबंध में शुभ संकेत नही करते।फिर वह कौन सा योग है जो जातक को आयुसुख दे रहा है?वह परम योग है: शनि का लग्न भाव में बैठना।
1-कर्क (चर) राशि का अष्टम भाव की कुंभ (स्थिर) राशि को देखना। : जैमिनि दृष्टि सूत्र।
2-शनि का लग्न भाव से त्रिपाद दृष्टि से अष्टम भाव को देखना।
3-राशि और ग्रह दोनों का दोनों का अष्टम भाव को देखना। अब उपरोक्त स्थिति में ऋषि वराह-पाराशर के अनुसार:
अ- यदि कोई भी अष्टमेश अष्टम को देखे तो दीर्घायु।
ब- यदि शनि अष्टम भाव में अपनी राशि को देखे तो अवश्य ही दीर्घायु।
अब इसी उदाहरण से बिलकुल विपरीत फल के रुप में देखते हैं:स्व० श्री राज कपूर (अभिनेता) 14.12 1924, 22-00 पेशावर:पाकिस्तान, कर्कलग्न।
1- जातक का लग्नेश चंद्र स्वराशि है।
2- जातक का अष्टमेष शनि उच्चराशि है।
3-जातक का लग्नेश-अष्टमेष बलवान से दीर्घायु।जातक का लग्नेश-अष्टमेष, चंद्र-शनि दोनों चरराशि पर होने से दीर्घायु का संकेत है।
: जैमिनि दृष्टि सूत्र।फिर वह कौन सा दुर्योग है जो जातक मध्य आयु भी नही भोग पाया।वह दुर्योग योग है: राहु का लग्न भाव में बैठना।
1-कर्क (चर) राशि का अष्टम भाव की कुंभ(स्थिर) राशि को देखना।
2-राहु का लग्न भाव से त्रिपाद दृष्टि से अष्टम भाव को देखना।
3-राहु का लग्न, लग्नेश और अष्टम भाव को कुप्रभिवत करना। अब उपरोक्त स्थिति में ऋषि वराह-पाराशर के अनुसार यदि कोई खल ग्रह लग्न, लग्नेश, अष्टम अष्टमेश! इन चार में से तीन को कुप्रभिवत कर दे तो आयु का संकट हो जाता है।। ......क्रमस:.....
भाग-3 में त्रिपाद दृष्टि के शेष फलित।
ग्रहों की दृष्टि का एक और आयाम:- भाग-3.
*************************************
भाग-2 में हमने ग्रहों की त्रिपाद दृष्टि के संदर्भ में "दो दोहे" का प्रसंग रखा था। (1) मित्र क्षेत्र में आकर सब ग्रह,    जब राशि सहित त्रिपाद से देखें। ज्यों गुरु मेष रहे बृश्चिक को        पूर्णदष्टि दे निज फल सींचे।।
उपरोक्त दोहे पर उदाहरण सहित चर्चा कर चुके हैं। अब:- (2)
निज या उच का कोई भी ग्रह,    जब राशि सहित त्रिपाद से देखें। ज्यों रवि मेष भवन शुभ आकर,      राजयोग सी सृष्टि कर दे।।
भावार्थ: यदि कोई ग्रह किसी शुभ भाव में और अपनी या अपनी उच्चराशि में स्थित होते हैं तो जिस भाव को वे अपनी त्रिपाद दृष्टि से देखते हैं उस भाव से राजयोग जैसे शुभफल प्राप्त होतेे हैं। जैसे शुभभाव में मेषराशि के रवि।
अन्ततः ग्रह���ृष्टि क्या है?  1-ग्रहों का अपना प्रकाश तो है नही। वे सूर्य के जितना सम्मुख होंगे वह उतना ही अधिक प्रदीप्त होंगे।
2- नक्षत्र स्वयं में देदिप्यमान रहते हैं । नक्षत्रपुंजो पर हमारी 12-राशियाँ की कल्पना है। अतः राशि स्वयं में ऊर्जावान और आकृषणवान रहती है।
3-यह भी आवश्यक नही कि प्रत्येक राशि पर कोई ग्रह हो ही। किसी राशि पर किसी ग्रह का होना उस राशि की अतिरिक्त विशेषता है किन्तु स्वयं में भी वह ऊर्जावान और आकृषणवान रहती है। बस इसी प्रकार राशि और ग्रह का संयुक्त प्रभाव ही दृष्टि की कल्पना है।
उदाहरण -1 Shree Shree Ravi Shankar jee, 13.05.1956,00.00,Papanasam(TN)
मकर लग्न में मंगल,सुखभाव पर मेष के सूर्य, पंचम भाव पर बृषभ के बुध+चंद्र+केतु,  छठेभाव पर मिथुन के शुक्र, सप्तमभाव पर कर्क के बृहस्पति, एकादसभाव में बृश्चिक के शनि राहू।
व्याख्या:  1- सुखभाव से मेष के सूर्य दसमभाव पर 7th और एकादसभाव पर 8th से शनि राहु पर मित्रदृष्टि से राजसी वैभव।  2-सप्तमभाव से कर्क के बृहस्पति vth से एकादसभाव पर के शनि+राहु पर, 7th से मकर लग्न पर, 8th से धनभाव पर में कुंभराशि पर दृष्टि। 3-लगनस्थ मकर के मंगल की उच्चस्थ सूर्य पर 4th और 8th दृष्टि से अष्टम भाव की सिंह राशि पर पूर्ण अतिईन्द्रीय शक्ति। सूर्य और बृहस्पति अपनी त्रिपाद दृष्टि से शनि पर एवं मंगल अष्टमभाव पर अधिकार किए हैं।
नोट: यदि हम सूर्य,बृहस्पति और मंगल की 8th दृष्टि पर ध्यान नही देते तो यह तो कह सकते थे कि जातक प्रतिष्ठित तो है किन्तु किस क्षेत्र में प्रतिष्ठित हैं यह कह पाना सरल नही था।
मात्र शुक्र के अतिरिक्त सभी ग्रह शनि से संबंधित है। अष्टम पर मंगल की विशेष दृष्टि है अत: परम सन्यास राजयोग।
उदाहरण -2 Madhuri Dixit(actresses)    15.05.1967. 18.15 मुम्बई। तुलालग्न।
दसम में कर्क में बृ+चं। 1-पंचमेश शनि छठेभाव पर। (-) 2-द्वादस भाव से शत्रु मंगल की दृष्टि।(-) 3-शनि पर कोई शुभ प्रभाव नही। 4-महिलाओं के नवमभाव से भी सन्तान की कल्पना करें तो -भाग्येश अस्त । सूर्य संक्रांति। भाग्येश अष्टमभाव में। पुत्र सन्तान के लिए शुभ नही। लेकिन कर्क के बृहस्पति ( सन्तान के कारक )और चंद्र की अष्टम दृष्टि पंचम पर एवं नवम बृहस्पति की  नवम दृष्टि पंचमेष पर। जातिका पुत्रवती हैं।
उदाहरण -3 अशुभ त्रिपाद दृष्टि:- श्री अजय देवगुण अभिनेता 02.04.1969 , 13:32 दिल्ली, कर्क लग्न। 1-लग्नेश चंद्र और भाग्येश बृहस्पति पराक्रम में। 2-भाग्यभाव में मीनराशि पर सूर्य+शुक्र +बुध। 3-कलाकार योग: बुध,शुक्र और सूर्य या गुरु बलवान होकर परस्पर संबंध बनाए तो।
दोष:- 1-दसम में नीचराशि पर शनि। नि:सन्तान योग: यदि लग्न, द��वादस,चतुर्थ,पंचम और सप्तम क्रूर/पाप प्रभाव में हो तो वंश बेल रुक जाती है।
व्याख्या:-  1-मंगल और शनि का द्वादस पर। 2-लग्नरिक्त। 3-चतुर्थ और सप्तम पर शनि। और अन्त में शनि की भंयकर त्रिपाद दृष्टि पंचम-पंचमेश पर। जबकि सामान्य अध्ययन से इस कुंडली का फलित कहता ���ै:- 1-पंचमेश स्वराशिस्थ। 2-पंचम से पंचम में उच्चस्थ शुक्र के साथ बुध नीचभंगराजयोगी। 3-पंचमेश से पंचम में उच्चस्थ शुक्र के साथ बुध नीचभंगराजयोगी। 4-पंचम से पंचम और पंचमेश से पंचम के उच्चस्थ शुक्र के साथ बुध नीचभंगराजयोगी पर पुत्र के कारकग्रह ग्रह भाग्येश बृहस्पति की दृष्टि।
तार्किक विद्वान कह सकते हैं कि,  1-राशि की राशि पर दृष्टि का सिध्दांत केवल ऋषि जैमिनि (1।1।2।। -से- 1।1।4।। ) ने ही दिया है।
2-जैमिनि और वराह-पाराशर के विधान पृथक हैं। अत: वराह-पाराशर के विधान में ग्रहों की त्रिपाद दृष्टि को ऋषि जैमिनि की राशि दृष्टि से जोड़ कर अतिरिक्त बल 25% बल लेने का विचार हवा-हवाई है। अत: मान्य नही।
किन्तु ऐसा नही है। बृहद्जातकम् अध्याय-2 श्लोक-13 में भट्टोत्पल ने भी कहा है कि, "दृष्टि के संबंध में राशि से राशिपर दृष्टि की गणना भी करनी चाहिए।" भट्टोत्पल लिखते हैं "यस्मिन् राशौ स्थित स्तस्माद्यस्त तृतीयो.......गतावर्धदृष्टया "।
श्रीदैवज्ञवैद्यनाथविरचित " जातक पारिजात:" : जो कि विशुध्दरुप से बृहद्जातकम् का ही विस्तार है, के श्लोक सं०23 में ही 06 योग ग्रह-राशिदृष्टि के आधार पर ही दिए हैं।। उदाहरण:- सूर्य विषमराशि में हो और चंद्रमा समराशि में हो तथा दोनों में परस्पर दृष्टि हो तो नपुन्सक का जन्म हो सकता है। यह तब ही संभव है जब सूर्य मेष या तुला पर हो और सूर्य से अष्टम चंद्र बृश्चिक या वृष पर।
अब आपकी जेब में चरराशिस्थ स्व-उच्च-नीच ग्रह की आठवी और द्विस्वभाव राशिस्थ स्व-उच्च-नीच ग्रह की चौथी "त्रिपाद दृष्टि" नाम का एक नया कारतूस है। अपनी बन्दूक में प्रयोग कीजिए।।
एक और आयाम:  केन्द्रीय भाव में चरराशियों में उच्चस्थ ग्रह महापुरुष योग देते है यह तो सर्वविदित है। ये ग्रह अपने शत्रु लग्नों में उत्तम फल देंगे यह भी सर्व विवादित रहा है। किन्तु चरराशियों के केन्द्रीय भाव में उच्चस्थ ग्रह शत्रुलग्नों में क्यों और किस भाव का शुभ फल देते हैं यह रहस्य उस ग्रह की अष्टम दृष्टि से ही हम समझ पाते हैं।
ग्रह-फलित जानने की जिज्ञाषा तो नित नए-नए आयाम तलाशती रहती है। 
मैं ! स्व०पं ईश्वरी दत्त द्विवेदी, "निर्णय भाष्कर" का! जिन्होने मुझे यह सूत्र समझाया था, उनकी पुण्यतिथि पर उनका स्मरण करते हुए इसे जनहिताय समर्पित करता हूं।
इतिशुभम्।।
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jainyupdates · 5 years ago
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Rishi Kapoor ने कर्ज से निकलने के लिए बनाई थी 'बॉबी' फिल्म, खोला था दिल का राज
Rishi Kapoor ने कर्ज से निकलने के लिए बनाई थी ‘बॉबी’ फिल्म, खोला था दिल का राज
नई दिल्ली: करोड़ों लोगों के दिलों पर राज करने वाले अभिनेता ऋषि कपूर (Rishi Kapoor) का निधन हो गया है. उनके निधन से पूरे देश में मातम पसर गया है. जो भी ये खबर सुन रहा है उनके रोंगटे खड़े हो जा रहे हैं और कोई भी आसानी से इस पर भरोसा नहीं कर पा रहा है. बहुत मुश्किल से लोग खुद को संभाल पा रहे हैं. उनकी आयु 67 साल थी. ऋषि कपूर की सुपरहिट ��िल्म ‘बॉबी’ ने सबका दिल जीत लिया था. एक बार ऋषि कपूर ने इस…
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smarthulchal · 5 years ago
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ऋषि कपूर के निधन पर बोले पीएम मोदी- वह प्रतिभा की खान थे - HW News Hindi
ऋषि कपूर के निधन पर बोले पीएम मोदी- वह प्रतिभा की खान थे – HW News Hindi
नेशनल समाचार
मुंबई : बॉलीवुड के जाने माने अभिनेता ऋषि कपूर का 67 वर्षीय के आयु में निधन हो गया। वे पिछले दो साल से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से ��ूझ रहे थे। उनके निधन से फ़िल्म जगत में शोक की लहर है। हर कोई अपने इस चहेते अभिनेता को याद कर श्रधांजलि दे रहा है। ऋषि कपूर के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्वीट कर उन्हें याद किया और श्रधांजलि दी।
पीएम मोदी ने ट्वीट कर लिखा कि ‘’ऋषि…
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prodigitech · 5 years ago
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दिग्गज अभिनेता ऋषि कपूर का 67 वर्ष की आयु में मुंबई के अस्पताल में निधन हो गया
दिग्गज अभिनेता ऋषि कपूर का 67 वर्ष की आयु में मुंबई के अस्पताल में निधन हो गया
दिग्गज अभिनेता ऋषि कपूर ने 30 अप्रैल को अंतिम सांस ली। अभिनेता को बुधवार सुबह मुंबई के एचएन रिलायंस अस्पताल में भर्ती कराया गया। ऋषि कपूर 2018 से कैंसर से जूझ रहे थे, और एक साल से इलाज के लिए अमे��िका में थे। अभिनेता के भाई, रणधीर कपूर ने बुधवार रात मीडिया को बताया कि उनकी तबीयत बिगड़ने के कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
अमिताभ बच्चन ने ट्विटर पर ऋषि कपूर के निधन की खबर की पुष्टि की।
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trendingpark · 5 years ago
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अभिनेता ऋषि कपूर का 67 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। उनके भाई रणधीर कपूर ने पुष्टि की है।
मुंबई: दिग्गज अभिनेता ऋषि कपूर को मुंबई के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था, उनके बड़े भाई रणधीर कपूर ने दी थी ये खबर।
कैंसर से दो साल की लंबी लड़ाई के बाद अभिनेता ऋषि कपूर का 67 साल की उम्र में निधन हो गया है। ऋषि ने ��ुंबई के सर एचएन रिलायंस फाउंडेशन अस्पताल में अंतिम सांस ली। उनकी पत्नी और अभिनेता नीतू कपूर उनके पक्ष में थीं। उनके भाई रणधीर कपूर ने इस खबर की पुष्टि की।
अमिताभ बच्चन ने ट्विटर पर इस खबर की पुष्टि की। "वह चला गया है .. ! ऋषि कपूर .. गए .. बस गुज़र गए .. मैं नष्ट हो गया! "
ऋषि के अस्पताल में भर्ती होने की पुष्टि उनके बड़े भाई, अभिनेता रणधीर कपूर ने की थी। "यह सच है कि उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया है। वह सर एचएन रिलायंस फाउंडेशन अस्पताल में हैं। वह अच्छी तरह से नहीं रख रहे थे और कुछ समस्या थी, इसलिए हमने आज सुबह उन्हें भर्ती कराया, ”रणधीर ने बुधवार शाम को कहा था। यह पूछे जाने पर कि क्या यह एक आपातकालीन स्थिति थी, रणधीर ने कहा: "इसलिए वह अस्पताल गया है। लेकिन मुझे पता है कि वह ठीक हो जाएगा। नीतू (कपूर) उनकी तरफ से है। ”
बॉलीवुड इंडस्ट्री के दिग्गज अभिनेता ऋषि कपूर का हुआ निधन। 67 वर्षीय अभिनेता को बुधवार सुबह उनके परिवार द्वारा एच एन रिलायंस अस्पताल ले जाया गया था। रणधीर ने पीटीआई से कहा, "वह अस्पताल में थे। वह कैंसर से पीड़ित थे और उसे सांस लेने में तकलीफ हो रही थी, इसलिए उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया बुधवार से भरती कराया गया था।" लगभग एक साल तक अमेरिका में कैंसर का इलाज कराने के बाद अभिनेता पिछले साल सितंबर में भारत लौटे थे। 2018 में, ऋषि कपूर को कैंसर का पता चला था, जिसके बाद अभिनेता उपचार प्राप्त करने के लिए एक वर्ष से अधिक समय तक न्यूयॉर्क में थे। वह ठीक होने के बाद सितंबर 2019 में भारत लौट आए। भारत लौटने के बाद, कपूर का स्वास्थ्य अक्सर ध्यान में रहता था। अभिनेता को फरवरी में त्वरित उत्तराधिकार के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनके स्वास्थ्य के बारे में अटकलों के बीच, उन्हें फरवरी की शुरुआत में नई दिल्ली में अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जबकि नई दिल्ली के दौरे पर। ऋषि दिवंगत अभिनेता राज कपूर के दूसरे बेटे और रणधीर, रितु नंदा, रीमा जैन और राजीव कपूर के भाई-बहन थे। उन्होंने 1973 में बॉबी के साथ डिंपल कपाड़िया के साथ अपनी फिल्म की शुरुआत की और उन्हें श्री 420 और मेरा नाम जोकर जैसी फिल्मों में एक बाल कलाकार के रूप में भी देखा गया। वह अमर अकबर एंथोनी, लैला मजनू, राफू चक्कर, सरगम, कर्ज़, बोल राधा बोल और अन्य जैसी हिट फिल्मों का हिस्सा थे। अपने करियर के बाद के चरण में, उन्हें कपूर एंड संस, डी-डे, मुल्क और 102 नॉट आउट जैसी फिल्मों में देखा गया था। अभिनेता को आखिरी बार इमरान हाशमी की द बॉडी में देखा गया था और उन्होंने हाल ही में दीपिका पादुकोण की विशेषता वाली हॉलीवुड फिल्म द इंटर्न की रीमेक, अपनी अगली परियोजना की घोषणा की थी।
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bestnews99 · 5 years ago
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67 साल की उम्र में ऋषि कपूर का निधन
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67 साल की उम्र में ऋषि कपूर का निधन
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67 साल की उम्र में ऋषि कपूर का निधन: अक्षय कुमार और अमिताभ बच्चन ने लीजेंड को श्रद्धांजलि दी (ऋषि कपूर का निधन)
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ऋषि कपूर का आज 67 वर्ष की आयु में मुंबई में निधन हो गया। अक्षय कुमार, अमिताभ बच्चन
और अन्य बॉलीवुड हस्तियों ��े दिग्गज अभिनेता को सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलि दी।
दिग्गज अभिनेता ऋषि कपूर का 30 अप्रैल को मुंबई में निधन हो गया, अमिताभ बच्चन ने
ट्विटर पर एक पोस्ट में इसकी जानकारी दी। वह 67 साल के
थे। अभिनेता के लिए अक्षय कुमार, ताप्पे पन्नू और रीमा कागती सहित कई हस्तियों ने उन्हें
सोशल मीडिया पर विदाई दी।
अमिताभ बच्चन, जिन्होंने कभी कभी, अमर अकबर एंथनी, नसीब और 102 नॉट आउट जैसी
फिल्मों में ऋषि कपूर के साथ काम किया है, ने अपने करीबी दोस्त
और सहकर्मी की मौत की खबर पहले सोशल मीडिया पर साझा की। बिग बी ने ट्वीट किया, "वह चला गया! ऋषि कपूरगौनिसेले का निधन हो गया।"
अक्षय कुमार ने अपने नमस्ते लंदन के सह-कलाकार को भी श्रद्धांजलि अर्पित की और कहा,
"ऐसा लगता है जैसे हम एक बुरे सपने के बीच में हैं …
बस #RishiKapoor जी के निधन की निराशाजनक खबर सुनी। यह दिल तोड़ने वाला था। वह
एक किंवदंती थे।" , एक महान सह-कलाकार और परिवार का एक अच्छा दोस्त। मेरे विचार और
प्रार्थना उनके परिवार के साथ। "
प्रियंका चोपड़ा ने ऋषि और उनकी पत्नी नीतू कपूर के साथ एक प्यारी छवि साझा की, और कहा,
"मेरा जीवन इतना भारी है। यह एक युग का अंत है। #
श्रीश्री आपके स्पष्ट दिल और अथक प्रतिभा का कभी भी फिर से सामना नहीं होगा। इस तरह
का एक विशेषाधिकार।" आप भी थोड़ा बहुत जानते हैं। नीतू मैम, रिधिमा, रणबीर और परिवार
के प्रति मेरी संवेदना। बाकी सब शांति से। सर। "
मुल्क में ऋषि कपूर के साथ काम करने वाले तास्पे पन्नू ने ट्वीट किया, "कुछ लिखने की
कोशिश कर रहा हूं, मैं अपने दिमाग को अपने हाथों
में नहीं डाल सकता। बीच में दिल की तरह यह सिर्फ इस बात को समझने में सक्षम नहीं है। वह
हंसी, हास्य की भावना, ईमानदारी और यहां तक कि वह बदमाशी
थी, याद किया जाएगा। आप जैसा कोई नहीं। "
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hellodkdblog · 6 years ago
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ग्रहों की दृष्टि का एक और आयाम:-
ग्रहों की दृष्टि का एक और आयाम:- भाग-1.
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ज्योतिष में ग्रहों की दृष्टि!यह सर्वसामान्य विषय है। अतः किसी भूमिका की आवश्यकता नही, किन्तु लेख में पूर्णता का भाव बने अत: इसे हम संक्षेप रुप में ले लेते हैं।
1-अद्यतन ज्योतिष के ऋषि वराह-पाराशर द्वय के अनुयाइयों का मत हैं कि, हमारे नवग्रह अपने स्थित भाव से सप्तम भाव (181-210 अंश तक) को पूर्ण प्रभावित/दृष्टि करते है।जैसे 1-7, 2-8, 3-9, 4-10, 5-11, 6-127-1, 8-2, 9-3, 10-4, 11-5, 12-6.साथ ही बड़े आकार के तीन ग्रह शनि, बृहस्पति, मंगल और राहु एवं केतु! ये पांच ग्रह सप्तम भाव (181 से 210 अंश) के अतिरिक्त इससे पहले के भावों और आगे के भावों पर भी अपना पूर्ण प्रभाव (दृष्टि) डालते हैं।
जैसे:( अ )-मंगल अपने स्थित भाव से चौथेभाव (91-120 अंश) और आठवेभाव (211-240 अंश) पर।( ब )-बृहस्पति भी अपने स्थित भाव से पांचवे भाव (121-150 अंश) और नौवेभाव (241-270 अंश) पर।(स )-शनि भी अपने स्थित भाव से तीसरे भाव (61-90 अंश) और दसवे भाव (271-300 अंश) पर।(द )-राहु और केतु भी बृहस्पति के समान अपने स्थान से सातवें (181-210 अंश) पांचवें (121 - 150 अंश) और नवम स्थान (241-27० अंश) को अपने पूर्ण प्रभाव (दृष्टि) से या कहें कि अन्धकारमय बनाते हैं।मंगल, बृहस्पति और शनि की ये अतिरिक्त दृष्टियां स��र्य,चंद्र, बुध और शुक्र ग्रह की दृष्टियां ( प्रभाव क्षेत्र) भी मानी जाती हैं, किन्तु इन अतिरिक्त दृष्टि का प्रभाव पूर्ण दृष्टि के समान न मानते हुए मंगल की 4/8 को त्रिपाद (75%), बृहस्पति की 5/7 को द्विपाद (50%) और शनि की 3/10 को एकपाद (25%) ही माना जाता हैं।
2-अब हम ऋषि जैमिनी का आश्रय लेते हैं। जैमिनी ऋषि ग्रहों की दृष्टि को स्वीकार तो करते हैं किन्तु वे ग्रहों की दृष्टि का मूल आधार उसके अधिष्ठित राशिक्षेत्र ( भाव ) से अन्य किसी राशिक्षेत्र पर बने दृष्टियोग को मानते हैं।
ऋषि जैमिनी के अनुसार :
(2.1) -चर राशियां (1,4,7,10) एवं उस पर आसीन ग्रह स्वयं से अगली स्थिरराशि ( 2,5,8,11) को छोड़ शेष तीनो स्थिर राशियों को देखती है।यह दृष्टि स्वयं से पंचमभाव के 121-150 अंश तक, स्वयं से अष्टमभाव के 211-240 अंश तक, और स्वयं से एकादस भाव के 301-330 अंश तक बनती है।
(2.2) -स्थिर राशियां (2,5,8,11) एवं उस पर आसीन ग्रह स्वयं से पिछली चरराशि को छोड़ शेष तीनो चर राशियों को देखती है। यह दृष्टि स्वयं से नवम भाव के 241-270 अंश,स्वयं से छठेभाव के 151-180 अंश और स्वयं से तीसरे भाव के 61-90 अंश तक बनती है।
(2.3) -द्विस्वभाव राशियां (3,6,9,12) एवं उस पर आसीन ग्रह अपनी शेष तीनों द्विस्वभाव राशियों को देखती है। यह दृष्टि स्वयं से चौथे भाव के 91-120 अंश तक, स्वयं से सातवे भाव के 181-210 अंश तक और स्वयं से दसम भाव के 271-300 अंश तक बनती है।हम पाते है कि फलित ज्योतिष में ग्रहों की दृष्टि के प्रारूप पर मत भिन्नता हो जाती है।
उदाहरणत: ऋषि वराह-पाराशर के मत के अनुसार नवमेश और दसमेश यदि:
1-वे दोनों एक दूसरे की निजराशि में आते हैं,
2-वे दोनों एक राशि में युत आते हैं,
3-वे दोनों एक दूसरे के समसप्तक आते हैं,
4-दोनों ग्रहों में से एक दूसरे की राशि में बैठकर राशिपति को अपनी पूर्णदृष्टि से देखता हैं तो " सत्ता या अधिकार संबंधित राजयोग" होता है। लेकिन जैमिनी मत में उपरोक्त "सत्ता या अधिकार संबंधित राजयोग" उसी स्थिति में पूर्ण होगा जब:
1-नवमेश और दसमेश में से कोई एक ग्रह यदि चर राशि में है तो दूसरे ग्रह को उससे 5, 8 या 11वे भाव की स्थिरराशि में आना होगा।
 2-नवमेश और दसमेश में से कोई एक ग्रह यदि स्थिरराशि में है तो दूसरे ग्रह को उससे 3, 6 या 9 वे भाव की चरराशि में आना होगा। 
3-नवमेश और दसमेश में से कोई एक ग्रह यदि द्विस्वभावराशि में है तो दूसरे ग्रह को उससे 4, 7 या 10 वे भाव की द्विस्वभावराशि में ही आना होगा।स्पष्टरुप में ग्रह की दृष्टियों में भेद होते हुए भी फलित तो दोनों से सटीक हैं। लेकिन एक विडंबना है। हमने जैमिनी मत को तो समग्ररुप में लिया है लेकिन ऋषि वराह-पाराशर द्वारा प्रदत्त सूर्य,चंद्र,बुध और सूर्य की -एकपाद-25% , -द्विपाद-50% को छोड़िये उनकी त्रिपाद दृष्टि जो कि पूर्ण दृष्टिमान का 75% है उसको भी यथोचित महत्व नही दिया।
ग्रहों की दृष्टि का एक और आयाम:- भाग-2.
पूर्वभाग में हमने;
1-ऋषि वराह-पाराशर द्वारा के पोषित ग्रह की पूर्ण दृष्टि सिद्धांत का,
2-ऋषि जैमिनी द्वारा स्थापित राशि-ग्रहदृष्टि का सिद्धांत एवं 
3-ऋषि वराह-पाराशर के ग्रहदृष्टि सिद्धांत के अन्तर्गत ग्रहों की " पाद " दृष्टि सिध्दांत का पूर्नस्मरण किया था। 
पाददृष्टि : - किसी ग्रह विशेष की वह दृष्टि जो उसकी तो पूर्ण दृष्टि है किन्तु अन्य ग्रहों के लिए वह आंशिक दृष्टि है।" जैसे:
(अ)- शनि की उनके स्थित भाव से 3 रे और 10 वे भावों पर विशेष पूर्ण दृष्टि है किन्तु सू० चं० मं०बु० बृ० और शुक्र के लिए इस दृष्टि का मान उनकी ही पूर्ण दृष्टि का मात्र 25 प्रतिशत है।
(ब)- बृहस्पति की उनके स्थित भाव से 5 वे और 9 वे भावों पर विशेष पूर्ण दृष्टि है किन्तु सू० चं० मं० बु० शुक्र और शनि के लिए इस दृष्टि का मान उनकी ही पूर्ण दृष्टि का मात्र 50 प्रतिशत है।
(स)- मंगल की उनके स्थित भाव से 4 थे और 8 वे भावों पर विशेष पूर्ण दष्टि है किन्तु सू० चं० बु० बृ० शु० और शनि के लिए इस दृष्टि का मान उनकी ही पूर्ण दृष्टि का मात्र 75 प्रतिशत है।दृष्टि की मात्रा के इस विभाजन का कारण समझ में भी आता है। भचक्र के भाव संख्या 3 से 10 तक का एक बड़ा विस्तार है। इतनी विशाल कटाक्ष दृष्टि शनि जैसे ग्रह के लिए ही संभव है। इसी प्रकार भचक्र के भाव संख्या 5 से 9 तक का (तनिक कम ) विस्तार वाली दृष्टि बृहस्पति जैसे बृहद ग्रह के लिए ही संभव है। भचक्र के विस्तार को तुलनात्मक रुप से ग्रह के समीपस्थ करके (भाव संख्या 4 से 8 तक ) मंगल ग्रह को विशेष त्रिपाद (75%) दृष्टि प्रदान की गई। मंगल इतना विशाल नही कि इन्हें शनि-बृहस्पति के समकक्ष तीन दृष्टि मिलें । किन्तु इसका औचित्य भी समझ में आ जाता है। मंगल स्व,उच्च,मित्र सम के अतिरिक्त शत्रुराशि में भी बलवान बना रहता है। (उत्तरकालामृत, ग्रहभावफल,15) (नोट:-मंगल को शत्रुराशि पर देख मंगलीयोग समाप्त कहने वाले मित्रों से विशेष आग्रह ) 
मान कि एक पाद एवं द्विपाद दृष्टि का महत्व बहुत क्षीण होगा, किन्तु प्रश्न यह है कि ज्योतिष के प्रणेताओं ने फलित के लिए स०ू चं० बु० और शुक्र के लिए त्रिपाद दृष्टियों का उपयोग क्यों नही किया?नि:संदेह सू० चं० बु० और शुक्र ग्रह श० बृ० मं० की तुलना में छोटे हैं किन्तु एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि ये ग्रह पृथ्वी के अधिकतम समीप होने से हर क्षण जातक को प्रभावित करते रहते हैं।  
देखा गया है कि कुछ जन्मपत्रिकाएं तो सामान्य ज्योतिषी के हाथों में आते ही स्वयं बोलने लगती हैं। किन्तु कुछ पत्रिकाएं ऐसी भी होती हैं जिनमें कोई प्रमाणिक योग और ग्रहों के परस्पर संबंध स्पष्ट नही होने के कारण प्रबुध्द ज्योतिषी को भी भविष्य कथन के लिए विशेष परिश्रम करना पड़ता हैं।तो क्या हम एक अतिरिक्त साधन के रूप में सभी ग्रहों की त्रिपाददृष्टि (75%) का उपयोग कर सकते हैं?उत्तर है: क्यों नही! किन्तु यह तब ही संभव है जब चौथे भाव एवं अष्टम भाव पर पड़ने वाली इस त्रिपाद दृष्टि (75%) को किसी अतिरिक्त बल से 100% (पूर्ण दृष्टि) बनाया जाय?वह कैसे?
 इस विषय पर स्व० श्री ईश्वरीदत्त द्विवेदी, "निर्णय भाष्कर" (1899-1983) के दो दोहे का उदाहरण करता हूँ:-
“ मित्र क्षेत्र में आकर सब ग्रह,जब राशि सहित त्रिपाद से देखें।                                           ज्यों गुरु मेष रहे बृश्चिक कोपूर्णदष्टि दे निज फल सींचे।। 
1.भावार्थ:- जब कोई ग्रह अपने मित्र (लग्नानुसार त्रिकोणेश ) की राशि में बैठे और वहां से वह ग्रह और वह भावराशि स्वयं से 4थे या 8वे भाव को देखे तो उन भावों में अपने नैसर्गिक स्वभाव के अनुरुप भरपूर कारकता दे देते हैं। अर्थात! यहां मेष के बृहस्पति बृश्चिक राशि वाले भाव से स्वयं से संबंधित फल दे देगें।
उदाहरण: श्री मति सोनिया गाँधी जी। 09-12-1946, 21:30,Turin, Italy. कर्क लग्न।
1-जातक का लग्नेश चंद्र 12 वे भाव में है। (-)
2-लग्न में शनि और एकादस में राहू होने से लग्नेश चंद्र पापकर्त्तरी दोष में है।(-) (-)
3-��ग्नेश और अष्टमेष और चंद्र और शनि क्रमस: द्वि और चर स्वभाव में है। : जैमिनि सूत्र। (-)
4-राहू और मंगल षडाष्टक योग में हैं।(-)
उपरोक्त योग स्पष्टरुप से जातक की आयु के संबंध में शुभ संकेत नही करते।फिर वह कौन सा योग है जो जातक को आयुसुख दे रहा है?वह परम योग है: शनि का लग्न भाव में बैठना।
1-कर्क (चर) राशि का अष्टम भाव की कुंभ (स्थिर) राशि को देखना। : जैमिनि दृष्टि सूत्र।
2-शनि का लग्न भाव से त्रिपाद दृष्टि से अष्टम भाव को देखना।
3-राशि और ग्रह दोनों का दोनों का अष्टम भाव को देखना। अब उपरोक्त स्थिति में ऋषि वराह-पाराशर के अनुसार:
अ- यदि कोई भी अष्टमेश अष्टम को देखे तो दीर्घायु।
ब- यदि शनि अष्टम भाव में अपनी राशि को देखे तो अवश्य ही दीर्घायु।
अब इसी उदाहरण से बिलकुल विपरीत फल के रुप में देखते हैं:स्व० श्री राज कपूर (अभिनेता) 14.12 1924, 22-00 पेशावर:पाकिस्तान, कर्कलग्न।
1- जातक का लग्नेश चंद्र स्वराशि है।
2- जातक का अष्टमेष शनि उच्चराशि है।
3-जातक का लग्नेश-अष्टमेष बलवान से दीर्घायु।जातक का लग्नेश-अष्टमेष, चंद्र-शनि दोनों चरराशि पर होने से दीर्घायु का संकेत है।
: जैमिनि दृष्टि सूत्र।फिर वह कौन सा दुर्योग है जो जातक मध्य आयु भी नही भोग पाया।वह दुर्योग योग है: राहु का लग्न भाव में बैठना।
1-कर्क (चर) राशि का अष्टम भाव की कुंभ(स्थिर) राशि को देखना।
2-राहु का लग्न भाव से त्रिपाद दृष्टि से अष्टम भाव को देखना।
3-राहु का लग्न, लग्नेश और अष्टम भाव को कुप्रभिवत करना। अब उपरोक्त स्थिति में ऋषि वराह-पाराशर के अनुसार यदि कोई खल ग्रह लग्न, लग्नेश, अष्टम अष्टमेश! इन चार में से तीन को कुप्रभिवत कर दे तो आयु का संकट हो जाता है।। ......क्रमस:.....
ग्रहों की दृष्टि का एक और आयाम:- भाग-3.
भाग-2 में हमने ग्रहों की त्रिपाद दृष्टि के संदर्भ में "दो दोहे" का प्रसंग रखा था।
(1) मित्र क्षेत्र में आकर सब ग्रह,    जब राशि सहित त्रिपाद से देखें। ज्यों गुरु मेष रहे बृश्चिक को        पूर्णदष्टि दे निज फल सींचे।।
उपरोक्त दोहे पर उदाहरण सहित चर्चा कर चुके हैं। अब:- (2)
निज या उच का कोई भी ग्रह,    जब राशि सहित त्रिपाद से देखें। ज्यों रवि मेष भवन शुभ आकर,      राजयोग सी सृष्टि कर दे।।
भावार्थ: यदि कोई ग्रह किसी शुभ भाव में और अपनी या अपनी उच्चराशि में स्थित होते हैं तो जिस भाव को वे अपनी त्रिपाद दृष्टि से देखते हैं उस भाव से राजयोग जैसे शुभफल प्राप्त होतेे हैं। जैसे शुभभाव में मेषराशि के रवि।
अन्ततः ग्रहदृष्टि क्या है?  1-ग्रहों का अपना प्रकाश तो है नही। वे सूर्य के जितना सम्मुख होंगे वह उतना ही अधिक प्रदीप्त होंगे।
2- नक्षत्र स्वयं में देदिप्यमान रहते हैं । नक्षत्रपुंजो पर हमारी 12-राशियाँ की कल्पना है। अतः राशि स्वयं में ऊर्जावान और आकृषणवान रहती है।
3-यह भी आवश्यक नही कि प्रत्येक राशि पर कोई ग्रह हो ही। किसी राशि पर किसी ग्रह का होना उस राशि की अतिरिक्त विशेषता है किन्तु स्वयं में भी वह ऊर्जावान और आकृषणवान रहती है। बस इसी प्रकार राशि और ग्रह का संयुक्त प्रभाव ही दृष्टि की कल्पना है।
उदाहरण -1
Shree Shree Ravi Shankar jee, 13.05.1956,00.00, Papanasam (TN).
मकर लग्न में मंगल,सुखभाव पर मेष के सूर्य, पंचम भाव पर बृषभ के बुध+चंद्र+केतु,  छठेभाव पर मिथुन के शुक्र, सप्तमभाव पर कर्क के बृहस्पति, एकादसभाव में बृश्चिक के शनि राहू।
व्याख्या:  1- सुखभाव से मेष के सूर्य दसमभाव पर 7th और एकादसभाव पर 8th से शनि राहु पर मित्रदृष्टि से राजसी वैभव।  2-सप्तमभाव से कर्क के बृहस्पति vth से एकादसभाव पर के शनि+राहु पर, 7th से मकर लग्न पर, 8th से धनभाव पर में कुंभराशि पर दृष्टि। 3-लगनस्थ मकर के मंगल की उच्चस्थ सूर्य पर 4th और 8th दृष्टि से अष्टम भाव की सिंह राशि पर पूर्ण अतिईन्द्रीय शक्ति। सूर्य और बृहस्पति अपनी त्रिपाद दृष्टि से शनि पर एवं मंगल अष्टमभाव पर अधिकार किए हैं।
नोट: यदि हम सूर्य,बृहस्पति और मंगल की 8th दृष्टि पर ध्यान नही देते तो यह तो कह सकते थे कि जातक प्रतिष्ठित तो है किन्तु किस क्षेत्र में प्रतिष्ठित हैं यह कह पाना सरल नही था।
मात्र शुक्र के अतिरिक्त सभी ग्रह शनि से संबंधित है। अष्टम पर मंगल की विशेष दृष्टि है अत: परम सन्यास राजयोग।
उदाहरण -2
Madhuri Dixit(actresses)    15.05.1967. 18.15 मुम्बई। तुलालग्न।
दसम में कर्क में बृ+चं। 1-पंचमेश शनि छठेभाव पर। (-) 2-द्वादस भाव से शत्रु मंगल की दृष्टि।(-) 3-शनि पर कोई शुभ प्रभाव नही। 4-महिलाओं के नवमभाव से भी सन्तान की कल्पना करें तो -भाग्येश अस्त । सूर्य संक्रांति। भाग्येश अष्टमभाव में। पुत्र सन्तान के लिए शुभ नही। लेकिन कर्क के बृहस्पति ( सन्तान के कारक )और चंद्र की अष्टम दृष्टि पंचम पर एवं नवम बृहस्पति की  नवम दृष्टि पंचमेष पर। जातिका पुत्रवती हैं।
उदाहरण -3 अशुभ त्रिपाद दृष्टि:- श्री अजय देवगुण अभिनेता 02.04.1969 , 13:32 दिल्ली, कर्क लग्न। 1-लग्नेश चंद्र और भाग्येश बृहस्पति पराक्रम में। 2-भाग्यभाव में मीनराशि पर सूर्य+शुक्र +बुध। 3-कलाकार योग: बुध,शुक्र और सूर्य या गुरु बलवान होकर परस्पर संबंध बनाए तो।
दोष:- 1-दसम में नीचराशि पर शनि। नि:सन्तान योग: यदि लग्न, द्वादस,चतुर्थ,पंचम और सप्तम क्रूर/पाप प्रभाव में हो तो वंश बेल रुक जाती है।
व्याख्या:-  1-मंगल और शनि का द्वादस पर। 2-लग्नरिक्त। 3-चतुर्थ और सप्तम पर शनि। और अन्त में शनि की भंयकर त्रिपाद दृष्टि पंचम-पंचमेश पर। जबकि सामान्य अध्ययन से इस कुंडली का फलित कहता है:- 1-पंचमेश स्वराशिस्थ। 2-पंचम से पंचम में उच्चस्थ शुक्र के साथ बुध नीचभंगराजयोगी। 3-पंचमेश से पंचम में उच्चस्थ शुक्र के साथ बुध नीचभंगराजयोगी। 4-पंचम से पंचम और पंचमेश से पंचम के उच्चस्थ शुक्र के साथ बुध नीचभंगराजयोगी पर पुत्र के कारकग्रह ग्रह भाग्येश बृहस्पति की दृष्टि।
तार्किक विद्वान कह सकते हैं कि,  1-राशि की राशि पर दृष्टि का सिध्दांत केवल ऋषि जैमिनि (1।1।2।। -से- 1।1।4।। ) ने ही दिया है।
2-जैमिनि और वराह-पाराशर के विधान पृथक हैं। अत: वराह-पाराशर के विधान में ग्रहों की त्रिपाद दृष्टि को ऋषि जैमिनि की राशि दृष्टि से जोड़ कर अतिरिक्त बल 25% बल लेने का विचार हवा-हवाई है। अत: मान्य नही।
किन्तु ऐसा नही है। बृहद्जातकम् अध्याय-2 श्लोक-13 में भट्टोत्पल ने भी कहा है कि, "दृष्टि के संबंध में राशि से राशिपर दृष्टि की गणना भी करनी चाहिए।" भट्टोत्पल लिखते हैं "यस्मिन् राशौ स्थित स्तस्माद्यस्त तृतीयो.......गतावर्धदृष्टया "।
श्रीदैवज्ञवैद्यनाथविरचित " जातक पारिजात:" : जो कि विशुध्दरुप से बृहद्जातकम् का ही विस्तार है, के श्लोक सं०23 में ही 06 योग ग्रह-राशिदृष्टि के आधार पर ही दिए हैं।। उदाहरण:- सूर्य विषमराशि में हो और चंद्रमा समराशि में हो तथा दोनों में परस्पर दृष्टि हो तो नपुन्सक का जन्म हो सकता है। यह तब ही संभव है जब सूर्य मेष या तुला पर हो और सूर्य से अष्टम चंद्र बृश्चिक या वृष पर।
अब आपकी जेब में चरराशिस्थ स्व-उच्च-नीच ग्रह की आठवी और द्विस्वभाव राशिस्थ स्व-उच्च-नीच ग्रह की चौथी "त्रिपाद दृष्टि" नाम का एक नया कारतूस है। अपनी बन्दूक में प्रयोग कीजिए।।
एक और आयाम:  केन्द्रीय भाव में चरराशियों में उच्चस्थ ग्रह महापुरुष योग देते ह�� यह तो सर्वविदित है। ये ग्रह अपने शत्रु लग्नों में उत्तम फल देंगे यह भी सर्व विवादित रहा है। किन्तु चरराशियों के केन्द्रीय भाव में उच्चस्थ ग्रह शत्रुलग्नों में क्यों और किस भाव का शुभ फल देते हैं यह रहस्य उस ग्रह की अष्टम दृष्टि से ही हम समझ पाते हैं।
ग्रह-फलित जानने की जिज्ञाषा तो नित नए-नए आयाम तलाशती रहती है। 
मैं ! स्व०पं ईश्वरी दत्त द्विवेदी, "निर्णय भाष्कर" का! जिन्होने मुझे यह सूत्र समझाया था, उनकी पुण्यतिथि पर उनका स्मरण करते हुए इसे जनहिताय समर्पित करता हूं।
इतिशुभम्।। 
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अभिनेता ऋषि कपूर का 67 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। उनके भाई रणधीर कपूर ने पुष्टि की है।
मुंबई: दिग्गज अभिनेता ऋषि कपूर को मुंबई के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था, उनके बड़े भाई रणधीर कपूर ने दी थी ये खबर।
बॉलीवुड इंडस्ट्री के दिग्गज अभिनेता ऋषि कपूर का हुआ निधन। 67 वर्षीय अभिनेता को बुधवार सुबह उनके परिवार द्वारा एच एन रिलायंस अस्पताल ले जाया गया था। रणधीर ने पीटीआई से कहा, "वह अस्पताल में थे। वह कैंसर से पीड़ित थे और उसे सांस लेने में तकलीफ हो रही थी, इसलिए उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया बुधवार से भरती कराया गया था।" लगभग एक साल तक अमेरिका में कैंसर का इलाज कराने के बाद अभिनेता पिछले साल सितंबर में भारत लौटे थे।
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