#साभार
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रात को घी लगी रोटी का एक टुकड़ा चूहेदानी में रखकर हम लोग सो जाते थे।
रात को लगभग 11-12 बजे ख़ट की आवाज़ आती तो हम समझ जाते थे कि कोई चूहा फंसा है। पर चूँकि उस ज़माने में बिजली उतनी आती नहीं थी तो हमलोग सुबह तक प्रतीक्षा करते थे। सुबह उठ कर जब हम चूहेदानी को देखते थे तो उसके कोने में हमें एक चूहा फंसा हुआ मिलता था।
हम हिन्दू चूँकि जीव हत्या से परहेज करते हैं, इसलिए हमारे बुजुर्ग उस चूहेदानी को उठाकर घर से दूर किसी नाले के पास ले जाते थे और वहां जाकर उसका गेट खोल देते थे ताकि वो चूहा वहां से निकल कर भाग जाए। मगर हमें ये देखकर बड़ा ताज्जुब होता था कि गेट खोले जाने के बाबजूद भी वो चूहा वहां से भागता नहीं था बल्कि वहीं कोने में दुबका रहता था।
तब हमारे बुजुर्ग एक लकड़ी लेकर उससे उस चूहे को धीरे से मारते थे और भाग भाग की आवाज़ लगाते थे पर तब भी वो चूहा अपनी जगह से टस से मस नहीं होता था। बार बार उसे लकड़ी से मारने और शोर करने के बाद वो चूहा निकल कर भागता था।
जब तक अक्ल कम थी हमेशा सोचता था कि गेट खुला होने के बाद भी ये चूहा भागता क्यों नहीं?
पर बाद में जब अक्ल हुई तो समझ आया कि रात के 11-12 बजे चूहेदानी में कैद हुए चूहे ने सारी रात उस कैद से बाहर निकलने की कोशिश की होगी, हर दिशा में जाकर प्रयास किया होगा पर जब उसे ये एहसास हो गया कि अब इस कैद से मुक्ति का कोई रास्ता नहीं है तो थक हार कर उसने अपने दिलो दिमाग को ये समझा दिया कि अब मेरा भविष्य इस पिंजरे के अंदर ही है, इसी कैद में मुझे जीना और मरना है। इसलिए सुबह जब चूहेदानी का गेट खोल भी दिया गया तो भी उस चूहे का माइंडसेट यही बना हुआ था कि मैं तो कैद में हूँ, मैं तो गुलाम हूँ, मैं बाहर निकल ही नहीं सकता।
इस माइंडसेट ने उसे ऐसा बना दिया था कि सामने खुला गेट और मुक्ति का रास्ता दिखते हुए भी उसे नहीं दिख रहा था।
अपना हिन्दू समाज भी ऐसा ही था। हजारों सालों की गुलामी में हमने आजादी के लिए बहुत बार प्रयास किये पर आजादी नहीं मिली तो हमारा माइंडसेट ऐसा बन गया कि हम तो गुलामी करने के लिए ही पैदा हुए हैं, हम आजाद हो ही नहीं सकते।
इसलिए मुग़ल गये तो हमने अंग्रेजों की गुलामी शुरू कर दी और जब अंग्रेज गये। यानि गेट खुला, तो भी हमें आजादी का रास्ता नज़र नहीं आया, हम एक वंश की गुलामी में लग गये।
वंश की गुलामी करते करते इतने गिर गये कि हममें गुलामी करने को लेकर भी प्रतिस्पर्धा होने लगी कि कौन सबसे बेहतर गुलामी कर सकता है।
एक खानदान की गुलामी करने में हम इतने गिरे, कि हमारे अपने नेताओं ने ही हिन्दू जाति को आतंकवाद से जोड़ दिया। यानि जिस बात को कहने की हिम्मत आज तक पाकिस्तान ने भी नहीं की, वो बात गुलाम मानसिकता से ग्रस्त, हमारे अपने लोगों ने कही।
हम चूहे वाली माइंडसेट में थे, इसलिए समुचित प्रतिकार नहीं कर सके तो उनका हौसला और बढ़ा।
फिर श्रीराम और श्रीकृष्ण को 'मिथक चरित्र' घोषित कर, वो राम सेतु जैसे हमारे आस्था केन्द्रों को तोड़ने की ओर बढ़े।
फिर हमारे भाई बांधवों का हक छीनकर मजहबी आधार पर आरक्षण की घोषणाएँ करने लगे।
फिर एक दिन ये घोषणा कर दी कि जिस देश को तुम्हारे पूर्वजों ने अपने खून से सींचा है, उसके संसाधनों पर पहला हक तुम्हारा नहीं है।
हम अब भी उस चूहे वाली माइंडसेट में थे, इसलिए फिर एक दिन उन्होंने कहा कि हम "लक्षित हिंसा बिल" लायेंगे और साबित करेंगे कि तुम बहुसंख्यक हिन्दू जुल्मी हो, दंगाई हो, देश के मासूम अल्पसंख्यकों पर अत्याचार करने वाले हो, इसलिए तुम्हारे लिए एक सख्त सजा का प्रावधान रखा जाएगा।
इस अंतहीन काली रात के बाद अब सुबह हो गई थी, लकड़ी लेकर हमें जगाने वाला एक आदमी आ चुका था। जो हमें बता रहा था कि अब बहुत हो चुका कैद से निकलो, गेट खुला हुआ है।
उस आदमी ने पूरे देश में घूम घूम कर हमें गुलामी वाले लंबी निद्रा से जगाया, हमारे सामने खुला दरवाज़ा दिखाया। हम जागने लगे और 16 मई, 2014 को गुलामी वाले कैद से निकल गये।
जो नहीं निकल रहे है उनसे भी निवेदन हैं कि अब तो निकल जाइये। वैसे भी हम वो दरवाजा हमेशा के लिए तोड़ चुके हैं, आपको समझने की जरूरत हैं।
जय श्री राम
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*गुरुजी ने कहा कि मां के पल्लू पर निबन्ध लिखो..* *तो लिखने वाले छात्र ने क्या खूब लिखा.....* *"पूरा पढ़ियेगा आपके दिल को छू जाएगा"* 🥰 आदरणीय गुरुजी जी... माँ के पल्लू का सिद्धाँत माँ को गरिमामयी छवि प्रदान करने के लिए था. इसक��� साथ ही ... यह गरम बर्तन को चूल्हा से हटाते समय गरम बर्तन को पकड़ने के काम भी आता था. पल्लू की बात ही निराली थी. पल्लू पर तो बहुत कुछ लिखा जा सकता है. पल्लू ... बच्चों का पसीना, आँसू पोंछने, गंदे कान, मुँह की सफाई के लिए भी इस्तेमाल किया जाता था. माँ इसको अपना हाथ पोंछने के लिए तौलिया के रूप में भी इस्तेमाल कर लेती थी. खाना खाने के बाद पल्लू से मुँह साफ करने का अपना ही आनंद होता था. कभी आँख में दर्द होने पर ... माँ अपने पल्लू को गोल बनाकर, फूँक मारकर, गरम करके आँख में लगा देतीं थी, दर्द उसी समय गायब हो जाता था. माँ की गोद में सोने वाले बच्चों के लिए उसकी गोद गद्दा और उसका पल्लू चादर का काम करता था. जब भी कोई अंजान घर पर आता, तो बच्चा उसको माँ के पल्लू की ओट ले कर देखता था. जब भी बच्चे को किसी बात पर शर्म आती, वो पल्लू से अपना मुँह ढक कर छुप जाता था. जब बच्चों को बाहर जाना होता, तब 'माँ का पल्लू' एक मार्गदर्शक का काम करता था. जब तक बच्चे ने हाथ में पल्लू थाम रखा होता, तो सारी कायनात उसकी मुट्ठी में होती थी. जब मौसम ठंडा होता था ... माँ उसको अपने चारों ओर लपेट कर ठंड से बचाने की कोशिश करती. और, जब बारिश होती तो, माँ अपने पल्लू में ढाँक लेती. पल्लू --> एप्रन का काम भी करता था. माँ इसको हाथ तौलिया के रूप में भी इस्तेमाल कर लेती थी. पल्लू का उपयोग पेड़ों से गिरने वाले मीठे जामुन और सुगंधित फूलों को लाने के लिए किया जाता था. पल्लू में धान, दान, प्रसाद भी संकलित किया जाता था. पल्लू घर में रखे समान से धूल हटाने में भी बहुत सहायक होता था. कभी कोई वस्तु खो जाए, तो एकदम से पल्लू में गांठ लगाकर निश्चिंत हो जाना , कि जल्द मिल जाएगी. पल्लू में गाँठ लगा कर माँ एक चलता फिरता बैंक या तिजोरी रखती थी, और अगर सब कुछ ठीक रहा, तो कभी-कभी उस बैंक से कुछ पैसे भी मिल जाते थे. *मुझे नहीं लगता, कि विज्ञान पल्लू का विकल्प ढूँढ पाया है !* *मां का पल्लू कुछ और नहीं, बल्कि एक जादुई एहसास है !* स्नेह और संबंध रखने वाले अपनी माँ के इस प्यार और स्नेह को हमेशा महसूस करते हैं, जो कि आज की पीढ़ियों की समझ में आता है कि नहीं........ *अब जीन्स पहनने वाली माएं, पल्लू कहाँ से लाएंगी* *पता नहीं......!! सादर साभार 🙏
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. 📖 *ज्ञान गंगा* 📖
.
*आदरणीय गरीबदास*
*साहेबजींच्या अमृतवाणीमध्ये*
*सृष्टि रचनेचे प्रमाणा*
वरिल अमृतवाणीचा भावार्थ आहे कि आदरणीय गरीब दास साहेब जी म्हणत आहेत की सर्व प्रथम येथे केवळ अंधकार होता तसेच पूर्ण परमात्मा कबीर साहेबजी सत्यलोकामध्ये तख्तावर (सिंहासन) विराजमान होते. आम्ही तेथिल सेवक होतो. परमात्म्याने ज्योति निरंजनास उत्पन्न केले. नंतर त्याच्या तपाचे प्रतिफळ म्हणून 21 ब्रह्मांडे त्याला प्रदान केली. त्यानंतर मायेची (प्रकृति) उत्पत्ती केली. तरुण दुर्गाच्या रूपावर मोहित होऊन ज्योति निरंजनने (ब्रह्म) दुर्गाशी (प्रकृति) बलात्कार करण्याची चेष्ठा केली. ब्रह्माला त्याची शिक्षा मिळाली. त्यास सत्यलोकातून काढुन टाकले तसेच शाप लागला कि एक लाख मानव शरीरधारी प्राण्यांचा प्रतिदिन आहार करेल, सव्वा लाख उत्पन्न करेल. येथील सर्व प्राणी जन्म-मृत्यूचे कष्ट सहन करत आहेत. जर कोणी पूर्ण परमात्म्याचे वास्तविक शब्द (खरा नाम जाप मंत्र) आमच्याकडून प्राप्त करेल, त्यास काल च्या बंधनातून सोडवले जाईल. आमच�� बंदी छोड नाव आहे. आदरणीय गरीब दास साहेब जी आपले गुरू व प्रभु कबीर परमात्मा यांच्या आधारावर म्हणत आहेत की खरा मंत्र म्हणजेच सत्यनाम आणि सारशब्दाची प्राप्ती करा, पूर्ण मोक्ष मिळेल. नाही तर खोटा नामोपदेश देणार्या संत आणि महंतांच्या मधाळ बोलण्याला (वक्तव्याला) फसून शास्त्रविधिरहित साधना करून काल च्या जाळ्यामध्येच अडकून पडाल आणि कष्टावर कष्ट सहन करत बसाल.
॥ गरीबदासजी महाराजांची वाणी ॥
( *सत्ग्रंथ साहिब पान नं.690 वरून साभार)*
माया आदि निरंजन भाई, अपने जाऐ आपै खाई।
ब्रह्मा विष्णु महेश्वर चेला, ऊँ सोहं का है खेला॥
सिखर सुन्न में धर्म अन्यायी, जिन शक्ति डायन महल पठाई।
लाख ग्रास नित उठ दूती,माया आदि तख्त की कुती॥
सवा लाख घड़िये नित भांडे, हंसा उतपति परलय डांडे।
ये तीनों चेला बटपारी, सिरजे पुरुषा सिरजी नारी॥
खोखापुर में जीव भुलाये, स्वपना बहिस्त वैकुंठ बनाये।
यो हरहट का कुआ लोई, या गल बंध्या है सब कोई ॥
कीड़ी कुजंर और अवतारा, हरहट डोरी बंधे कई बारा॥
अरब अलील इन्द्र हैं भाई, हरहट डोरी बंधे सब आई ॥
शेष महेश गणेश्वर ताहिं, हरहट डोरी बंधे सब आहिं ।
शुक्रादिक ब्रह्मादिक देवा, हरहट डोरी बंधे सब खेवा॥
कोटिक कर्ता फिरता देख्या, हरहट डोरी कहूँ सुन लेखा।
*चतुर्भुजी भगवान कहावैं, हरहट डोरी बंधे सब आवैं॥*
*यो हैं खोखापुर का कुआ, या में पड़ा सो निश्चय मुवा।*
जशी नागीण आपली कुंडली बनविते आणि त्या कुंडलीमध्ये अंडी घालते (प्रसव करते). त्यानंतर ती त्या अंड्यांवर आपला फणा मारते. त्यामुळे अंडी फुटतात आणि त्यातून पिल्ली बाहेर पडतात. त्यांना नागीण भक्षण करते. अंडी भरपूर असल्यामुळे फणा मारताना कित्येक अंडी फुटतात. जी अंडी फुटतात, त्यातून नागिणीची पिल्ली बाहेर निघतात. जे पिल्लू कुंडलीच्या (नागिणीच्या शेपटीचा घेरा) बाहेर पडते ते वाचते, अन्यथा कुंडलीमधील पिलांना नागीण सोडत नाही. जेवढी पिल्ली कुंडलीत असतील, त्या सर्वांना ती खाते. अगदी असेच ज्योति निरंजनाला (काल) वश होऊन हे तीन देवता (रजोगुण-ब्रह्मा, सत्गुण-विष्णू, तमोगुण-शिव) आपली महिमा दाखवून जीवांना स्वर्ग-नरक म्हणजेच भवसागरामध्ये (84 लक्ष योनींमध्ये) भ��कवत ठेवतात. ज्योति निरंजन आपल्या मायेद्वारे (प्रकृति) नागिणीसारखी जीवांची उत्पत्ती करतो आणि नंतर मारून टाकतो.
*माया काली नागिनी, आपने जाये खात।*
*कुण्डली में छोड़ै नहीं, सौ बातों की बात॥*
अशाप्रकारे हे काल बळीचे (ब्रह्म) महाभयंकर जाळे आहे. ज्योति निरंजन पर्यंतची भक्ती पूर्ण संतांकडून नामोपदेश घेऊन केली, तरीही ज्योति निरंजनाच्या कुंडलीतून (21 ब्रह्मांडे) बाहेर जाता येत नाही. स्वतः ब्रह्मा, विष्णू, महेश, आदिमाया शेरावाली (दुर्गा) हेसुद्धा निरंजनाच्या कुंडलीतच आहेत. ते बिचारे अवतार धारण करून येतात आणि जन्म-मृत्यूचे फेरे घेत राहतात. म्हणूनच धु्रव, प्रल्हाद व शुकदेव ऋषींनी *‘सोहं’* मंत्राचा जप करूनही ते मुक्त होऊ शकले नाहीत. ते काल लोकीच राहिले. ‘ *ॐ नम: भगवते* *वासुदेवाय’* या मंत्राचा जप करणारे भक्तसुद्धा कृष्णापर्यंत पोहोचण्याची भक्ती करत आहेत. तेसुद्धा 84 लक्ष योनींच्या फेर्यामधून सुटू शकणार नाहीत, याचा विचार करा. हे सर्व परमपूज्य कबीर साहेब जी व आदरणीय गरीब दास साहेब जी महाराज यांच्या वाणीमध्ये प्रत्यक्ष प्रमाणित आहे.
*अनन्त कोटि अवतार हैं, माया के गोविन्द।*
*कर्ता हो हो अवतरे, बहुर पड़ेे जग फंध॥*
सत्पुरुष कबीर साहेबजींच्या भक्तिनेच जीव मुक्त होऊ शकतो. जोपर्यंत जीव सत्लोकी परत जाणार नाही, तोपर्यंत काल लोकी असेच कर्म करत राहील आणि नामस्मरण व दानधर्माच्या पूण्याची कमाई स्वर्गरूपी हॉटेलमध्ये उधळून पुन्हा कर्माधारावर 84 लक्ष प्राण्यांच्या शरीरामध्ये जन्म-मृत्यू रूपी कष्ट सहन कराव्या लागणार्या काल लोकी फेर्या मारत बसेल. भगवान विष्णूजींना देवर्षी नारदांनी शाप दिला होता. त्यामुळे भगवान विष्णूंना श्री रामचंद्र रूपामध्ये अयोध्येत अवतार घ्यावा लागला. या अवतारात त्यांनी वालीचा वध केला. या कर्माचा दंड भोगण्यासाठी त्यांचा परत श्री कृष्णजींच्या रूपात जन्म झाला. या अवतारावेळी वालीचा आत्मा शिकारी बनला आणि आपला पूर्वजन्मीचा प्रतिशोध त्याने श्री कृष्णजींच्या पायामध्ये विषयुक्त बाण मारून वध करून घेतला, त्याप्रमाणे मायेपासून (दुर्गा) उत्पत्ती होऊन करोडो गोविंदांना (ब्रह्मा, विष्णू, शिव) मृत्यूला सामोरे जावे लागले आहे. भगवानांच्या अवतार रूपात त्यांनी येथे जन्म घेतला. नंतर ते कर्म बंधनामध्ये अडकले आणि 84 लक्ष योनींमध्ये कर्माचे भोग भोगू लागले. महाराज गरीब दासजी आपल्या वाणीमध्ये ��्हणत आहेत, की
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डेनियल पेनी ने हत्या के मुकदमे में गवाही न देने का विकल्प चुना: 'कितनी जूरी...'
डेनियल पेनी (चित्र साभार: रॉयटर्स) बचाव पक्ष ने शुक्रवार को अपना मामला शांत कर दिया हत्या का मुकदमा का डैनियल पेनीए समुद्री अनुभवी की मृत्यु का आरोप लगाया गया जॉर्डन नीलीएक बेघर न्यूयॉर्क सबवे कलाकार। एक उल्लेखनीय निर्णय में, पैसे अपने बचाव में गवाही न देने का निर्णय लिया।बचाव पक्ष के अंतिम गवाह अदालत के क्लर्क ब्रायन केम्फ थे, जिन्होंने फरवरी 2023 में अदालत में पेश होने से चूकने के बाद नीली के…
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#5_प्रकार_के_मुक्ति_स्थान...
(पांचवे वेद अर्थात् #सुक्ष्मवेद से साभार...)
(1) देवी-देवताओं,पितरों,भूतों की साधना से इन्हीं को प्राप्त होता हैं परंतु यह सबसे घटिया साधना पद (मुक्ति स्थान) प्राप्ति हैं।
(2) दूसरी गति या पद (मुक्ति स्थान) प्राप्ति तीनों गुणों (रजगुण-ब्रह्मा, सतगुण-विष्णु, तमगुण-शिव) तथा अन्य देवी-देवताओं की पूजा हैं। यह पद (मुक्ति स्थान) प्राप्ति पूर्ण नहीं हैं अर्थात् घटिया है।
(3) तीसरी गति अर्थात् पद (मुक्ति स्थान) प्राप्ति #ब्रह्म साधना हैं जो वेदों व गीता जी के अनुसार करनी चाहिए। सर्व देवी-देवताओं तथा ब्रह्मा, विष्णु, महेश की अर्थात् तीनों गुणों की साधना त्याग कर एक ॐ (ओंकार) नाम का जाप गुरु धारण करके करते हुए ब्रह्म लोक (महास्वर्ग) में साधक चला जाता हैं जो हजारों युगों तक वहाँ ब्रह्म लोक में आनन्द मनाता हैं फिर पुण्यों के समाप्त होने पर मृतलोक में चौरासी लाख जूनियों में चक्र लगाता रहता हैं। यह भी गति-पद (मुक्ति) अच्छी नहीं हैं।
(4) चौथी गति यानि मुक्ति स्थान :- (गति-पद) है #परब्रह्म (अक्षर पुरुष) की भक्ति से चौथी गति (पद यानि मुक्ति स्थान) को प्राप्त होता हैं लेकिन परब्रह्म की साधना का ज्ञान वेदों व गीता जी में नहीं हैं। इनमें केवल ब्रह्म (क्षर पुरुष) तक की भक्ति तथा इसी की प्राप्ति का ज्ञान हैं।
(5) पाँचवीं गति यानि मुक्ति स्थान :- #पूर्ण_परमात्मा का ज्ञान होने पर उसी परमात्मा प्राप्ति की साधना करते हैं।
इसी प्रकार यह आत्मा #तत्वदर्शी_संत से उपदेश मंत्र प्राप्त करके सत्य भक्ति की कमाई करके उसके आधार से #सतलोक चली जाती है।
सतलोक वह स्थान है जहाँ प्राणी मानव रूप में आकार में रहता हैं। तेज पुंज का शरीर हो जाता हैं। इतना नूरी शरीर बन जाता हैं मानो 16 सूर्यों जितनी रोशनी हो। यहाँ पर गए प्राणी (आत्मा) कभी ��हीं मरते। सतलोक में पुरूष को हंस तथा स्त्री को हंसनी कहते हैं।
जो बूझे सोई बावरा, क्या है उम्र हमारी।
असंख युग प्रलय गई, तब का ब्रह्मचारी।।टेक।।
कोटि निरंजन हो गए, परलोक सिधारी।
हम तो सदा महबूब हैं, स्वयं ब्रह्मचारी।।
अरबों तो ब्रह्मा गए, उन्चास कोटि कन्हैया।
सात कोटि शम्भू गए, मोर एक नहीं पलैया।।
कोटिन नारद हो गए, मुहम्मद से चारी।
देवतन की गिनती नहीं है,क्या सृष्टि विचारी।।
नहीं बुढ़ा नहीं बालक, नाहीं कोई भाट भिखारी।
कहैं #कबीर सुन हो गोरख, यह है उम्र हमारी।।
और अधिक जानकारी हेतु सपरिवार देखिए
"Sant Rampal Ji Maharaj" YouTube channel पर "संपूर्ण सृष्टि रचना" का स्पेशल सत्संग कार्यक्रम
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#हक्काकबीर_करीम_तू
कबीर सागर (स्वसमबेदबोध) पृष्ठ नं 158 से 159 से साभार:-
जबते हमते बिछुरे भाई। साठि हजार जन्म भक्त भक्त तुम पाई।।
धरि धरि जन्म भक्ति भलकीना। फिर काल चक्र निरंजन दीना।।
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हममें से सबके
कुछ न कुछ ख्वाब हैं
ख्वाब जो कुछ पूरे हैं,
कुछ अधूरे हैं,
दिखता सपना एक आशा है
आशा से ही उम्मीद है,
उम्मीद की एक झलक है कि ;
बोझ कम हो जाएगा
रोग छूट जाएगा
कर्ज चुक जाएगा
मैं ठीक हो जाऊँगा
परिस्��िति बदल जाएगा
दुःख के बादल छंट ही जाएंगे
फिर से रोशनी का नया सूरज निकलेगा।
आज नहीं तो कल!
इसी कल की आशा में
उम्मीद की एक सुबह छिपी है
जो सब ठीक कर देगी,
दिन गुजरता जाता है
कभी आशाओं के इंद्रधनुष निकलते हैं
कभी काले मेघ की भांति आँखों के आगे अंधेरा छा जाता है,
फिर भी प्रकृति का नियम है,
फिर से एक नई सुबह होती है
नभ में लालिमा खिलती है
सूरज उगता है
सूरजमुखी खिलती है l
©डॉ.मधुबाला मौर्या
चित्र साभार गूगल व अन्य l
#poetry
#education
#writer
#poet
#imagination
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कारगिल विजय दिवस: वीरता, बलिदान और गौरव की अमर गाथा
चित्र साभार गूगल भारत के इतिहास में 26 जुलाई 1999 का दिन स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। यह दिन कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है, जो भारतीय सेना की वीरता, बलिदान और मातृभूमि पर सर्वस्व न्योछावर करने की अमर गाथा का प्रतीक है। कारगिल विजय दिवस 26 जुलाई को मनाया जाता है, क्योंकि इसी दिन भारतीय सेना ने पाकिस्तान के घुसपैठियों को कारगिल से खदेड़कर अपनी भूमि को मुक्त कराया था। यह युद्ध भारतीय…
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गाजा की सामूहिक क़ब्रों में पीड़ितों के हाथ बंधे हुए मिले: यूएन मानवाधिकार कार्यालय Victims found in Gaza mass graves with hands tied: UN human rights office
गाजा की सामूहिक क़ब्रों में पीड़ितों के हाथ बंधे हुए मिले: यूएन मानवाधिकार कार्यालयबीते सप्ताह के आखिर में मध्य गाजा के ख़ान यूनिस के नासेर अस्��ताल और उत्तरी इलाक़े में स्थित ग़ाज़ा सिटी के अल-शिफ़ा अस्पताल के मैदानों में सैकड़ों शव बरामद किए गए, जिन्हें ज़मीन में दबाए जाने के बाद उन स्थानों को कूड़े-कचरे से ढक दिया गया था. अल-शिफा अस्पताल के बाहर इकट्ठा हुए लोग. फोटो साभार: WHO नई दिल्ली:…
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IPL Photos: एडने मार्कराम की पत्नी हैंबोल्ड और ब्यटू ीफ ु ल, जानिए कैसा था प्रेम प्रसंग
IPL Photos: एडने मार्कराम की पत्नी हैंबोल्ड और ब्यटू ीफ ु ल, जानिए कैसा था प्रेम प्रसंग दक्षिण अफ्रीका के बल्लेबाज एडन मार्कराम आईपीएल मेंसनराइजर्स हैदराबाद के सदस्य हैं एडने मार्कराम: सनराइजर्स हैदराबाद के बल्लेबाज एडने मार्कराम की पत्नी का नाम निकोल डनिे एला ओ'कॉनर है। दोनों कपल की प्रेम कहानी किसी बॉलीवडु फिल्म सेकम नहीं है. दक्षिण अफ्रीका के बल्लेबाज एडन मार्कराम आईपीएल में सनराइजर्स हैदराबाद के सदस्य हैं। एडने मार्कराम की पत्नी निकोल डनिे एला ओ'कॉनर को अक्सर आईपीएल मचै ों के दौरान चीयर करतेहुए देखा जाता है। (फोटो साभार- सोशल मीडिया) एडन मार्कराम और निकोल डनिे एला ओ'कॉनर की प्रेम कहानी साल 2012 मेंशरूु हुई थी। उस समय दोनों हाई स्कूल मेंथे। दोनों कपल नेकरीब 11 साल तक एक-दसर ू ेको डटे किया। इसके बाद 22 जलाई ु 2023 को शादी हुई। (फोटो साभार- सोशल मीडिया) निकोल डनिे एला ओ'कॉनर की शिक्षा दक्षिण अफ्रीका और इंग्लडैं मेंहुई थी। हालाँकि, उन्होंनेअपनी कॉलेज की पढ़ाई दक्षिण अफ्रीका मेंकी। साथ ही निकोल डनिे एला ओ'कॉनर सोशल मीडिया पर भी काफी एक्टिव रहती हैं. (फोटो साभार- सोशल मीडिया) आईपीएल मचै ों के अलावा निकोल डनिे एला ओ'कॉनर को अक्सर दक्षिण अफ्रीका के मचै ों मेंदेखा जा सकता है। निकोल डनिे एल ओ'कॉनर अपनेपति एडन मार्कराम को लाड़-प्यार देती नजर आ रही हैं। इसके अलावा निकोल डनिे एला ओ'कॉनर को जानवरों सेबहुत प्यार है. (फोटो साभार- सोशल मीडिया) साथ ही इस आईपीएल सीजन मेंएडने मार्कराम का प्रदर्शनर्श भी शानदार रहा है. एडन मार्कराम की टीम सनराइजर्स हैदराबाद 6 मचै ों में8 अकं ों के साथ अकं तालिका मेंचौथेस्थान पर है। (फोटो साभार- सोशल मीडिया) राजस्थान की नयी समाचार अपडटेके लि ए राजस्थान ख़बर पर जाए ।
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गायक योगेश वैद्यको निधन
गायक तथा सङ्गीतकार योगेश वैद्यको ७७ वर्षको उमेरमा निधन भएको छ । मधुमेह रोगबाट पीडित वैद्यको बिहीबार राति १२ः३० बजे काठमाडौँको न्युरो जनरल अस्पताल, गणवहाल सुनधारामा निधन भएको परिवार स्रोत जनाएको छ । उहाँ ‘सपना भुलाइ सारा’, ‘मेरो आँसुमा नहाँसे’, ‘नेपाल मेरो उपहार भो’ आदि गीतहरू गाउनु भएको थियो । आज (शुक्रवार) पशुपति आर्यघाटमा अन्त्येष्टि गर्ने पारिवारिक स्रोतले जनाएको छ । गोरखापत्र अनलाइनबाट साभार
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बोंग जून-हो की 'मिक्की 17' को वार्नर ब्रदर्स के रिलीज़ शेड्यूल से हटा दिया गया, क्योंकि 'गॉडज़िला एक्स कॉन्ग: द न्यू एम्पायर' पहले से तय हो गई है।
'मिक्की7' में रॉबर्ट पैटिनसन | फोटो साभार: विशेष व्यवस्था प्रोडक्शन स्टूडियो वार्नर ब्रदर्स ने बोंग जून-हो को खींच लिया है मिकी 17, रॉबर्ट पैटिंसन अभिनीत, अपने रिलीज़ शेड्यूल से और पहले रिलीज़ की तारीख की घोषणा की है गॉडज़िला x कोंग: द न्यू एम्पायर.के अनुसार विविधताकोरियाई फिल्म निर्माता की आगामी परियोजना को पिछले साल की हड़तालों और अन्य विभिन्न उत्पादन बदलावों के कारण अधिक समय की आवश्यकता थी और इसलिए, वार्नर ब्रदर्स और लेजेंडरी एंटरटेनमेंट की गॉडज़िला ��र कोंग फ्रेंचाइजी फिल्म अब दो सप्ताह पहले शुरू होगी। गॉडज़िला x कोंग: द न्यू एम्पायर12 अप्रैल को रिलीज होने वाली थी, अब 29 मार्च को रिलीज होगी। इस बीच, मिकी 17 इसके बाद से यह बोंग की पहली विशेषता है परजीवी जो ऑस्कर में सर्वश्रेष्ठ पिक्चर का पुरस्कार जीतने वाली पहली गैर-अंग्रेजी भाषा की फिल्म बन गई। नई फिल्म एडवर्ड एश्टन के 2022 उपन्यास पर आधारित है और इसमें नाओमी एकी, स्टीवन येउन, टोनी कोलेट और मार्क रफ़ालो भी हैं। Read the full article
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एक सच्ची घटना
1950 के दशक में हावर्ड यूनिवर्सिटी के विख्यात साइंटिस्ट कर्ट रिचट्टर ने चूहों पर एक अजीबोगरीब शोध किया था।
कर्ड ने एक जार को पानी से भर दिया और उसमें एक जीवित चूहे को डाल दिया।
पानी से भरे जार में गिरते ही चूहा हड़बड़ाने लगा औऱ
जार से बाहर निकलने के लिए लगातार ज़ोर लगाने लगा।
चंद मिनट फड़फड़ाने के पश्चात चूहे ने जार से बाहर निकलने का अपना प्रयास छोड़ दिया और वह उस जार में डूबकर मर गया।
कर्ट ने फ़िर अपने शोध में थोड़ा सा बदलाव किया।
उन्होंने एक दूसरे चूहे को पानी से भरे जार में पुनः डाला। चूहा जार से बाहर आने के लिये ज़ोर लगाने लगा।
जिस समय चूहे ने ज़ोर लगाना बन्द कर दिया और वह डूबने को था......ठीक उसी समय कर्ड ने उस चूहे को मौत के मुंह से बाहर निकाल लिया।
कर्ड ने चूहे को उसी क्षण जार से बाहर निकाल लिया जब वह डूबने की कगार पर था।
चूहे को बाहर निकाल कर कर्ट ने उसे सहलाया ......कुछ समय तक उसे जार से दूर रखा और फिर एकदम से उसे पुनः जार में फेंक दिया।
पानी से भरे जार में दोबारा फेंके गये चूहे ने फिर जार से बाहर निकलने की अपनी जद्दोजेहद शुरू कर दी।
लेकिन पानी में पुनः फेंके जाने के पश्चात उस चूहे में कुछ ऐसे बदलाव देखने को मिले जिन्हें देख कर स्वयं कर्ट भी बहुत हैरान रह गये।
कर्ट सोच रहे थे कि चूहा बमुश्किल 15 - 20 मिनट तक संघर्ष करेगा और फिर उसकी शारीरिक क्षमता जवाब दे देगी और वह जार में डूब जायेगा।
लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
चूहा जार में तैरता रहा। अपनी जीवन बचाने के लिये लगातार सँघर्ष करता रहा।
60 घँटे .......
जी हाँ .....60 घँटे तक चूहा पानी के जार में अपने जीवन को बचाने के लिये सँघर्ष करता रहा।
कर्ट यह देखकर आश्चर्यचकित रह गये।
जो चूहा महज़ 15 मिनट में परिस्थितियों के समक्ष हथियार डाल चुका था ........वही चूहा 60 घंटों तक कठिन परिस्थितियों से जूझ रहा था और हार मानने को तैयार नहीं था।
कर्ट ने अपने इस शोध को एक नाम दिया और वह नाम था......." The HOPE Experiment".....!
Hope........यानि आशा।
कर्ट ने शोध का निष्कर्ष बताते हुये कहा कि जब चूहे को पहली बार जार में फेंका गया .....तो वह डूबने की कगार पर पहुंच गया .....उसी समय उसे मौत के मुंह से बाहर निकाल लिया गया। उसे नवजीवन प्रदान किया गया।
उस समय चूहे के मन मस्तिष्क में "आशा" का संचार हो गया। उसे महसूस हुआ कि एक हाथ है जो विकटतम परिस्थिति से उसे निकाल सकता है।
जब पुनः उसे जार में फेंका गया तो चूहा 60 घँटे तक सँघर्ष करता रहा.......
वजह था वह हाथ...वजह थी वह आशा ...वजह थी वह उम्मीद!!!
इसलिए हमेशा........
उम्मीद बनाये रखिये, सँघर्षरत रहिये,
सांसे टूटने मत दीजिये, मन को हारने मत दीजिय
हर परिस्थिति में डटे रहो बड़े चलो ..आशा अमर धन
साभार
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