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आज है सावन का आखिरी शनि प्रदोष व्रत, जानें इसका महत्व और पूजा विधि
चैतन्य भारत न्यूज सावन मास की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के दिन सावन का अंतिम शनि प्रदोष व्रत हैं। इस बार यह शुभ तिथि 1 अगस्त दिन शनिवार को है। इस दिन भगवान शिव की पूजा का विधान है। शास्त्रों में बताया गया है कि सभी प्रदोष व्रत अत्यंत कल्याणप्रद होते हैं लेकिन रविवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को अर्क प्रदोष व्रत, सोमवार के दिन पड़ने वाले को सोम प्रदोष व्रत, मंगलवार के दिन पड़ने वाले को भौम प्रदोष व्रत और शनिवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को शनि प्रदोष व्रत का अपना अलग महत्व है। इस पावन व्रत का फल हर दिन के हिसाब से अलग-अलग पड़ता है। शनि प्रदोष व्रत का महत्व भगवान शिव की उपासना करने के लिए प्रदोष व्रत रखा जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव की उपासना करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिल जाती है। शनिवार के दिन आने से इसे शनि प्रदोष कहा गया है। ये भी माना जाता है कि इस दिन जो भी भक्त ये व्रत करता है उसे किसी ब्राह्मण को गोदान (गाय का दान) करने के समान पुण्य लाभ होता है। संतान प्राप्ति की कामना के लिए भी शनि प्रदोष व्रत विशेष रूप से सौभाग्यशाली माना जाता है। साथ ही दांपत्य जीवन की सुख-शा��ति के लिए किया जाता है।
शनि प्रदोष व्रत पूजा-विधि शनिवार के दिन व्रत करने वाले को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नहाना चाहिए। इसके बाद श्रद्धा और विश्वास के साथ भगवान शिव की पूजा और ध्यान करते हुए व्रत शुरू किया जाता है। प्रदोष व्रत में शिवजी और माता पार्वती की पूजा की जाती है। इस व्रत में व्रती को निर्जल रहकर व्रत रखना होता है। इस दिन प्रात: काल स्नान करके भगवान शिव की बेलपत्र, गंगाजल, अक्षत, धूप, दीप सहित पूजा करें। इसके बाद संध्या काल में फिर से स्नान करके सफेद कपड़े पहनकर इसी प्रकार से शिवजी की पूजा करनी चाहिए। Read the full article
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आज है शनि प्रदोष व्रत, इस विधि से करें भगवान शिव की पूजा, दूर होगी दिक्कतें
चैतन्य भारत न्यूज हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का काफी महत्व है। इस दिन भगवान शिव की पूजा की जाती है। माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से भक्तों को आरोग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है, साथ ही भगवान शिव अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। इस बार शनि प्रदोष व्रत 21 मार्च को पड़ रहा है। आइए जानते हैं शनि प्रदोष व्रत का महत्व और पूजन-विधि। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({});
शनि प्रदोष व्रत का महत्व भगवान शिव की उपासना करने के लिए प्रदोष व्रत रखा जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव की उपासना करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिल जाती है। शनिवार के दिन आने से इसे शनि प्रदोष कहा गया है। ये भी माना जाता है कि इस दिन जो भी भक्त ये व्रत करता है उसे किसी ब्राह्मण को गोदान (गाय का दान) करने के समान पुण्य लाभ होता है। संतान प्राप्ति की कामना के लिए भी शनि प्रदोष व्रत विशेष रूप से सौभाग्यशाली माना जाता है। साथ ही दांपत्य जीवन की सुख-शांति के लिए किया जाता है।
शनि प्रदोष व्रत पूजा-विधि शनिवार के दिन व्रत करने वाले को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नहाना चाहिए। इसके बाद श्रद्धा और विश्वास के साथ भगवान शिव की पूजा और ध्यान करते हुए व्रत शुरू किया जाता है। प्रदोष व्रत में शिवजी और माता पार्वती की पूजा की जाती है। इस व्रत में व्रती को निर्जल रहकर व्रत रखना होता है। इस दिन प्रात: काल स्नान करके भगवान शिव की बेलपत्र, गंगाजल, अक्षत, धूप, दीप सहित पूजा करें। इसके बाद संध्या काल में फिर से स्नान करके सफेद कपड़े पहनकर इसी प्रकार से शिवजी की पूजा करनी चाहिए। ये भी पढ़े... पचमढ़ी में भगवान शिव का अनोखा मंदिर, यहां श्रद्धालु चढ़ाते हैं दो क्विंटल तक के त्रिशूल भगवान शिव ने माता पार्वती को बताए थे ये 4 रहस्य, खुशहाल जीवन जीने के लिए आप भी जानें सोमवार व्रत करने से बरसती है भगवान शिव की कृपा, जानिए महत्व और पूजन-विधि Read the full article
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शनि प्रदोष व्रत आज, इस विधि से करें शिव की आराधना, मिलेगा विशेष फल
चैतन्य भारत न्यूज हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का काफी महत्व है। इस दिन भगवान शिव की आराधना की जाती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से भक्तों को आरोग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है। भगवान शिव अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। इस बार शनि प्रदोष व्रत 7 मार्च को पड़ रहा है। आइए जानते हैं शनि प्रदोष व्रत का महत्व और पूजन-विधि। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({});
शनि प्रदोष व्रत का महत्व भगवान शिव की उपासना करने के लिए प्रदोष व्रत रखा जाता है। शनिवार के दिन आने से इसे शनि प्रदोष कहा गया है। माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव की उपासना करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिल जाती है। ये भी मान्यता है कि इस दिन जो भी भक्त ये व्रत करता है उसे किसी ब्राह्मण को गोदान (गाय का दान) करने के समान पुण्य लाभ होता है।
शनि प्रदोष व्रत पूजा-विधि इस दिन व्रत करने वाले को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नहाना चाहिए। इसके बाद श्रद्धा और विश्वास के साथ भगवान शिव की पूजा और ध्यान करते हुए व्रत शुरू किया जाता है। प्रात: काल स्नान करके भगवान शिव की बेलपत्र, गंगाजल, अक्षत, धूप, दीप सहित पूजा करें। प्रदोष व्रत में शिवजी और माता पार्वती की पूजा की जाती है। इस व्रत में व्रती को निर्जल रहकर व्रत रखना होता है। संध्या काल में फिर से स्नान करके सफेद कपड़े पहनकर इसी प्रकार से शिवजी की पूजा करनी चाहिए। शाम को शिव पूजा के बाद पानी पी सकते हैं। ये भी पढ़े... पचमढ़ी में भगवान शिव का अनोखा मंदिर, यहां श्रद्धालु चढ़ाते हैं दो क्विंटल तक के त्रिशूल भगवान शिव ने माता पार्वती को बताए थे ये 4 रहस्य, खुशहाल जीवन जीने के लिए आप भी जानें इसलिए भगवान शिव पर चढ़ाए जाते हैं बेल-पत्र, जानिए क्या है शिवरात्रि और महाशिवरात्रि में अंतर Read the full article
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शनि प्रदोष व्रत आज, शिव और शनि की पूजा का खास संयोग, इस व्रत को करने से दूर हो जाएंगी दिक्कतें
चैतन्य भारत न्यूज हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक मास में कोई न कोई व्रत, त्योहार जरूर पड़ता है। जिस तरह प्रत्येक मास की एकादशी पुण्य फलदायी बताई जाती है, ठीक उसी प्रकार हर मास के कृष्ण व शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि भी व्रत उपवास के लिए काफी शु��� होती है। त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत भी कहा जाता है। इस दिन भगवान शंकर की पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यता है कि, प्रदोष व्रत करने वाले लोगों के सभी प्रकार के दोषों का निवारण हो सकता है। इस बार प्रदोष व्रत शनिवार को पड़ रहा है। ये साल का तीसरा और आखिरी शनि प्रदोष है। आइए जानते हैं शनिवार के दिन रखे जाने वाले प्रदोष व्रत यानी शनि त्रयोदशी के महत्व व पूजा विधि के बारे में। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({}); शनि प्रदोष का महत्व वैसे तो प्रत्येक मास की दोनों त्रयोदशी के व्रत पुण्य फलदायी माने जाते हैं। लेकिन भगवान शिव के भक्त शनिदेव के दिन त्रयोदशी का व्रत समस्त दोषों से मुक्ति देने वाला माना जाता है। संतान प्राप्ति की कामना के लिए शनि त्रयोदशी का व्रत विशेष रूप से सौभाग्यशाली माना जाता है। शनि प्रदोष व्रत पूजा विधि व्रत करने वाले को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नहाना चाहिए। इसके बाद श्रद्धा और विश्वास के साथ भगवान शिव की पूजा और ध्यान करते हुए व्रत शुरू किया जाता है। प्रदोष व्रत में शिवजी और माता पार्वती की पूजा की जाती है। इस व्रत में व्रती को निर्जल रहकर व्रत रखना होता है। प्रात: काल स्नान करके भगवान शिव की बेलपत्र, गंगाजल, अक्षत, धूप, दीप सहित पूजा करें। संध्या काल में फिर से स्नान करके सफ़ेद कपड़े पहनकर इसी प्रकार से शिवजी की पूजा करनी चाहिए। शाम को शिव पूजा के बाद पानी पी सकते हैं। ये भी पढ़े... शनिवार को भूलकर भी ना खरीदें ये 8 चीजें, वरना हो सकता है बड़ा नुकसान प्रदोष व्रत और शिव पूजा से मिलता है विशेष लाभ, जानिए इसका महत्व और पूजा-विधि Read the full article
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