भक्तों के सभी रोग हर लेती हैं 'कूष्मांडा देवी', आदिशक्ति के इस मंत्र के जाप से होगी समृद्धि की प्राप्ति
चैतन्य भारत न्यूज
17 अक्टूबर से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है। नवरात्रि के चौथे दिन 'मां कूष्मांडा' की पूजा-अर्चना की जाती है। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था तब देवी कूष्मांडा ने इसकी रचना करने में सहायता की थी। इसलिए उन्हें आदि-स्वरूपा व आदिशक्ति भी कहा जाता है। मां कूष्मांडा की आठ भुजायें हैं अतः उन्हें अष्टभुजा देवी के नाम से भी जाना जाता है। मां के सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है तथा उनके आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। कूष्मांडा देवी सिंह की सवारी करती हैं। मां कूष्मांडा की पूजा विधि-विधान से करने से भक्तों के जीवन से सभी रोगों और शोकों का नाश हो जाता है साथ ही समृद्धि की प्राप्ति होती है।
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मां कूष्मांडा की पूजा विधि-
मां कूष्मांडा की पूजा करने से पहले कलश की पूजा कर नमन करें।
मां कूष्मांडा की पूजा करते समय हरे रंग के वस्त्र धारण करें।
मां कूष्मांडा की पूजा करते हुए देवी को जल और पुष्प अर्पित करें और कहे कि उनके आशीर्वाद से आपका और आपके परिजनों का स्वास्थ्य सदैव अच्छा रहे।
पूजा के दौरान मां कूष्मांडा को हरी इलाइची, सौंफ आदि अर्पित करें।
मां कूष्मांडा की पूजा करते समय ''ॐ कुष्मांडा देव्यै नमः'' का जाप करें।
मां कूष्मांडा को भोग में मालपुए चढ़ाए।
मां कूष्मांडा की उपासना का मंत्र-
कुष्मांडा: ऐं ह्री देव्यै नम:
वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्विनीम्॥
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चैत्र नवरात्रि : अंतिम दिन करें सिद्धिदात्री देवी की पूजा-अर्चना, इस मंत्र के जाप से मां हो जाएंगी प्रसन्न
चैतन्य भारत न्यूज
चैत्र नवरात्रि के नौवें दिन मां के नौवें स्वरूप सिद्धिदात्री देवी की उपासना की जाती है। मान्यता है कि केवल इस दिन मां की उपासना करने से सम्पूर्ण नवरात्रि की उपासना का फल मिलता है। मां सिद्धिदात्री को सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है। मां के पास अणिमा, महिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, गरिमा, लघिमा, ईशित्व और वशित्व यह आठ सिद्धियां हैं। माना जाता है कि नवमी के दिन महासरस्वती की भी उपासना करने से विद्या और बुद्धि की प्राप्ति होती है।
मां सिद्धिदात्री की पूजा विधि-
प्रातः काल स्नान करने के बाद मां के समक्ष दीपक जलाएं।
देवी को 9 कमल के फूल चढ़ाएं।
फिर मां को 9 तरह के खाद्य पदार्थ भी अर्पित करें।
पूजा के दौरान मां के मंत्र "ॐ ह्रीं दुर्गाय नमः" का जाप करें।
पूजा करने के पश्चात् अर्पित किए हुए कमल के फूल को लाल वस्त्र में लपेटकर रखें।
इसके अलावा पहले निर्धनों को भोजन कराएं और फिर स्वयं भोजन करें।
मां सिद्धिदात्री को इस मंत्र के जाप से करें प्रसन्न-
सिद्धगन्धिर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि,
सेव्यमाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।
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सभी सिद्धियों का वरदान देती हैं मां सिद्धिदात्री, इस मंत्र के जाप से देवी हो जाएंगी प्रसन्न
चैतन्य भारत न्यूज
आज गुप्त नवरात्रि का नौंवा दिन है और इस दिन मां दुर्गा के नौवें रूप यानी सिद्धिदात्री देवी की उपासना की जाती है। मान्यता है कि केवल इस दिन मां की उपासना करने से सम्पूर्ण नवरात्रि की उपासना का फल मिलता है। मां सिद्धिदात्री को सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है। मां के पास अणिमा, महिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, गरिमा, लघिमा, ईशित्व और वशित्व यह आठ सिद्धियां हैं। माना जाता है कि नवमी के दिन महासरस्वती की भी उपासना करने से विद्या और बुद्धि की प्राप्ति होती है।
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मां सिद्धिदात्री की पूजा विधि-
प्रातः काल स्नान करने के बाद मां के समक्ष दीपक जलाएं।
देवी को 9 कमल के फूल चढ़ाएं।
फिर मां को 9 तरह के खाद्य पदार्थ भी अर्पित करें।
पूजा के दौरान मां के मंत्र "ॐ ह्रीं दुर्गाय नमः" का जाप करें।
पूजा करने के पश्चात् अर्पित किए हुए कमल के फूल को लाल वस्त्र में लपेटकर रखें।
इसके अलावा पहले निर्धनों को भोजन कराएं और फिर स्वयं भोजन करें।
मां सिद्धि��ात्री को इस मंत्र के जाप से करें प्रसन्न-
सिद्धगन्धिर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि,
सेव्यमाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।
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दुर्गा विसर्जन के दौरान इन बातों का रखें विशेष ध्यान, जानिए शुभ मुहूर्त
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शारदीय नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा के बाद देवी की प्रतिमा को विसर्जित कर दिया जाता है। इसी के साथ नवरात्रि की समाप्ति भी होती है। नवरात्रि में नवमी के दिन मां दुर्गा की मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है। इस साल नवमी 7 अक्टूबर को पड़ रही है। तो आइए जानते हैं देवी की प्रतिमा को विसर्जित करने का शुभ मुहूर्त और नियम।
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समापन का शुभ मुहूर्त
7 अक्टूबर सोमवार को नवमी तिथि 03:05 बजे तक है। नवमी तिथि के बाद से ही दशमी लग जाएगी। ऐसे में दुर्गा विसर्जन के लिए विशेष शुभ मुहूर्त सोमवार को सुबह 06:17:33 से 08:37:59 तक रहेगा।
विसर्जन के दौरान इन बातों का रखें ध्यान
मां देवी का विसर्जन नदी या सरोवर में करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
मां की प्रतिमा, घट या जवारे को पूरी आस्था और पंचोपचार के साथ विसर्जित करें।
विसर्जन से पहले मां की भक्तिभाव से आरती उतारें।
विसर्जन के दौरान देवी मां से अपने द्वारा हुई भूल-चूक की माफी मांगे।
विसर्जन के बाद एक नारियल, दक्षिणा और चौकी के कपड़ें को किसी ब्राह्मण को दान करना शुभ माना जाता है।
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मां सिद्धिदात्री की पूजा विधि-
प्रातः काल स्नान करने के बाद मां के समक्ष दीपक जलाएं।
देवी को 9 कमल के फूल चढ़ाएं।
फिर मां को 9 तरह के खाद्य पदार्थ भी अर्पित करें।
पूजा के दौरान मां के मंत्र "ॐ ह्रीं दुर्गाय नमः" का जाप करें।
पूजा करने के पश्चात् अर्पित किए हुए कमल के फूल को लाल वस्त्र में लपेटकर रखें।
इसके अलावा पहले निर्धनों को भोजन कराएं और फिर स्वयं भोजन करें।
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आज करें महागौरी की पूजा, इन मंत्रों का करें जाप, नौकरी व धन संबंधी सभी समस्याएं हो जाएंगी दूर
चैतन्य भारत न्यूज
नवरात्रि के आठवें दिन मां दुर्गा के आठवें रूप यानी महागौरी की पूजा-अर्चना की जाती है। महागौरी को पार्वती अर्थात भगवान शिव की अर्धांगिनी के रूप में भी जाना जाता है। कहा जाता है कि मां महागौरी की पूजा-अर्चना करने से भक्तों के सभी पाप धुल जाते है और उनके धन संबधित कष्ट भी दूर हो जाते हैं।
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महागौरी की चार भुजाएं हैं। इनके दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। मां के ऊपरवाले बाएं हाथ में डमरू और नीचे के बाएं हाथ में वर-मुद्रा है। इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है। मां महागौरी का वर्ण सफेद और बेहद खूबसूरत है, यही कारण है कि इनका नाम महागौरी है। मां महागौरी की सवारी सफेद बैल है। मां के वस्त्रों का रंग भी सफेद है और इसलिए मां को शांति का प्रतीक भी माना गया है। मां गौरी की उपासना करने से नौकरी से संबंधित बाधाएं दूर होती हैं। जो भी महिलाएं महागौरी की पूजा करती हैं उनके सुहाग की रक्षा देवी स्वयं करती हैं।
मां महागौरी की पूजा विधि-
सर्वप्रथम चौकी पर मां महागौरी की तस्वीर या मूर्ति की स्थापना करें और फिर गंगा जल या गौमूत्र से शुद्धिकरण करें।
इसके बाद कलश पूजन करें और फिर मां का विधि-विधान से पूजा करें।
मां महागौरी को सफेद पुष्प अर्पित करें।
पूजा के दौरान मां के वंदना मंत्र का 108 बार जाप करें।
तत्पश्चात मां का स्त्रोत पाठ करें।
आप पीले वस्त्र धारण कर मां महागौरी की पूजा करें, इससे विशेष फल प्राप्त होता है।
इस दिन माता को सफेद रंग का भोग अर्पित करना बिलकुल भी न भूलें।
महागौरी वंदना मंत्र
श्वेते वृषे समरूढा श्वेताम्बराधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।
महागौरी का स्त्रोत पाठ
सर्वसंकट हंत्री त्वंहि धन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।
ज्ञानदा चतुर्वेदमयी महागौरी प्रणमाभ्यहम्॥
सुख शान्तिदात्री धन धान्य प्रदीयनीम्।
डमरूवाद्य प्रिया अद्या महागौरी प्रणमाभ्यहम्॥
त्रैलोक्यमंगल त्वंहि तापत्रय हारिणीम्।
वददं चैतन्यमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्॥
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आज करें काल का नाश करने वाली मां कालरात्रि की पूजा, परेशानियों से मुक्त होने के लिए करें इन मंत्रों का जाप
टीम चैतन्य भारत
मां दुर्गा के सातवें स्वरूप का नाम कालरात्रि है। मां कालरात्रि का रंग घने अंधकार के समान काला है और इस वजह से उन्हें कालरात्रि कहा गया। मां दुर्गा ने असुरों के राजा रक्तबीज का वध करने के लिए अपने तेज से मां कालरात्रि को उत्पन्न किया था। इन्हें 'शुभंकारी' भी कहा जाता हैं। मां कालरात्रि की तीव्र छवि देख भूत-प्रेत भाग जाते है। मां कालरात्रि के तीन नेत्र हैं और तीनों ही गोल हैं। मां ने गले में विधुत की माला पहनी है। मां कालरात्रि के चार हाथ हैं जिसमें एक हाथ में कटार और एक हाथ में लोहे का कांटा धारण किया हुआ है। वहीं देवी मां के अन्य दो हाथ वरमुद्रा और अभय मुद्रा में है।
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मां कालरात्रि सभी कालों का नाश कर देती हैं। मां के स्मरण मात्र से ही भूत-पिशाच, भय और अन्य सभी तरह की परेशानी दूर हो जाती है। कहा जाता है कि मां कालरात्रि की पूजा करने से भक्त समस्त सिद्धियों को प्राप्त कर लेते हैं। कालरात्रि देवी की पूजा काला जादू की साधना करने वाले जातकों के बीच बेहद प्रसिद्ध है।
मां कालरात्रि की पूजा विधि
सबसे पहले चौकी पर मां कालरात्रि की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें और फिर गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें।
मां कालरात्रि की पूजा के दौरान लाल रंग के वस्त्र पहनने चाहिए।
मकर और कुंभ राशि के जातकों को कालरात्रि की पूजा जरूर करनी चाहिए।
मां को सात या सौ नींबू की माला चढाने से परेशानियां दूर होती हैं।
सप्तमी की रात्रि तिल या सरसों के तेल की अखंड ज्योत जलाएं।
पूजा करते समय सिद्धकुंजिका स्तोत्र, अर्गला स्तोत्रम, काली चालीसा, काली पुराण का पाठ करना चाहिए।
मां कालरात्रि को गुड़ का नैवेद्य बहुत पसंद है अर्थात उन्हें प्रसाद में गुड़ अर्पित करके ब्राह्मण को दे देना चाहिए। ऐसा करने से पुरुष शोकमुक्त हो सकता है।
मां कालरात्रि का मंत्र
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
मां कालरात्रि का स्तोत्र पाठ
हृीं कालरात्रि श्री कराली च क्लीं कल्याणी कलावती।
कालमाता कलिदर्पध्नी कमदीश कुपान्विता॥
कामबीजजपान्दा कमबीजस्वरूपिणी।
कुमतिघ्नी कुलीनर्तिनाशिनी कुल कामिनी॥
क्लीं हीं श्रीं मन्त्र्वर्णेन कालकण्टकघातिनी।
कृपामयी कृपाधारा कृपापारा कृपागमा॥
मां कालरात्रि का ध्यान मंत्र
करालवंदना धोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्।
कालरात्रिं करालिंका दिव्यां विद्युतमाला विभूषिताम॥
दिव्यं लौहवज्र खड्ग वामोघोर्ध्व कराम्बुजाम्।
अभयं वरदां चैव दक्षिणोध्वाघः पार्णिकाम् मम॥
महामेघ प्रभां श्यामां तक्षा चैव गर्दभारूढ़ा।
घोरदंश कारालास्यां पीनोन्नत पयोधराम्॥
सुख पप्रसन्न वदना स्मेरान्न सरोरूहाम्।
एवं सचियन्तयेत् कालरात्रिं सर्वकाम् समृध्दिदाम्॥
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आज करें काल का नाश करने वाली मां कालरात्रि की पूजा, परेशानियों से मुक्त होने के लिए करें इन मंत्रों का जाप
टीम चैतन्य भारत
मां दुर्गा के सातवें स्वरूप का नाम कालरात्रि है। मां कालरात्रि का रंग घने अंधकार के समान काला है और इस वजह से उन्हें कालरात्रि कहा गया। मां दुर्गा ने असुरों के राजा रक्तबीज का वध करने के लिए अपने तेज से मां कालरात्रि को उत्पन्न किया था। इन्हें 'शुभंकारी' भी कहा जाता हैं। मां कालरात्रि की तीव्र छवि देख भूत-प्रेत भाग जाते है। मां कालरात्रि के तीन नेत्र हैं और तीनों ही गोल हैं। मां ने गले में विधुत की माला पहनी है। मां कालरात्रि के चार हाथ हैं जिसमें एक हाथ में कटार और एक हाथ में लोहे का कांटा धारण किया हुआ है। वहीं देवी मां के अन्य दो हाथ वरमुद्रा और अभय मुद्रा में है।
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मां कालरात्रि सभी कालों का नाश कर देती हैं। मां के स्मरण मात्र से ही भूत-पिशाच, भय और अन्य सभी तरह की परेशानी दूर हो जाती है। कहा जाता है कि मां कालरात्रि की पूजा करने से भक्त समस्त सिद्धियों को प्राप्त कर लेते हैं। कालरात्रि देवी की पूजा काला जादू की साधना करने वाले जातकों के बीच बेहद प्रसिद्ध है।
मां कालरात्रि की पूजा विधि
सबसे पहले चौकी पर मां कालरात्रि की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें और फिर गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें।
मां कालरात्रि की पूजा के दौरान लाल रंग के वस्त्र पहनने चाहिए।
मकर और कुंभ राशि के जातकों को कालरात्रि की पूजा जरूर करनी चाहिए।
मां को सात या सौ नींबू की माला चढाने से परेशानियां दूर होती हैं।
सप्तमी की रात्रि तिल या सरसों के तेल की अखंड ज्योत जलाएं।
पूजा करते समय सिद्धकुंजिका स्तोत्र, अर्गला स्तोत्रम, काली चालीसा, काली पुराण का पाठ करना चाहिए।
मां कालरात्रि को गुड़ का नैवेद्य बहुत पसंद है अर्थात उन्हें प्रसाद में गुड़ अर्पित करके ब्राह्मण को दे देना चाहिए। ऐसा करने से पुरुष शोकमुक्त हो सकता है।
मां कालरात्रि का मंत्र
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
मां कालरात्रि का स्तोत्र पाठ
हृीं कालरात्रि श्री कराली च क्लीं कल्याणी कलावती।
कालमाता कलिदर्पध्नी कमदीश कुपान्विता॥
कामबीजजपान्दा कमबीजस्वरूपिणी।
कुमतिघ्नी कुलीनर्तिनाशिनी कुल कामिनी॥
क्लीं हीं श्रीं मन्त्र्वर्णेन कालकण्टकघातिनी।
कृपामयी कृपाधारा कृपापारा कृपागमा॥
मां कालरात्रि का ध्यान मंत्र
करालवंदना धोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्।
कालरात्रिं करालिंका दिव्यां विद्युतमाला विभूषिताम॥
दिव्यं लौहवज्र खड्ग वामोघोर्ध्व कराम्बुजाम्।
अभयं वरदां चैव दक्षिणोध्वाघः पार्णिकाम् मम॥
महामेघ प्रभां श्यामां तक्षा चैव गर्दभारूढ़ा।
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आज मैनेजमेंट, वाणिज्य और बैंकिंग से जुड़े लोग जरूर करें स्कंदमाता की उपासना, इस मंत्र के जाप से सफल होगी पूजा
चैतन्य भारत न्यूज
शारदीय नवरात्रि के पांचवे दिन देवी स्कंदमाता की पूजा-अर्चना की जाती है। स्कंदमाता को मोक्ष का द्वार खोलने वाली देवी के नाम से भी जाना जाता है। स्कंदमाता भगवान कार्तिकेय यानी स्कंद जी की मां हैं और इसलिए उनका नाम स्कंदमाता रखा गया है। स्कंदमाता की उपासना करने से अज्ञानी भी ज्ञानी हो जाता है। स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं। इनमें से दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से वह अपने पुत्र स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं तथा नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। इसके अलावा देवी की बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। मैनेजमेंट, वाणिज्य, बैंकिंग अथवा व्यापार से जुड़े लोगों के लिए स्कंदमाता की पूजा करना अच्छा रहता है।
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स्कंदमाता की पूजा विधि-
सबसे पहले चौकी पर स्कंदमाता की तस्वीर लगाए और फिर गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें।
देवी के साथ ही उसी चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका (16 देवी) की स्थापना भी करें।
स्कंदमाता की पूजा का श्रेष्ठ समय दिन का दूसरा प्रहर है।
देवी को चंपा के फूल, कांच की हरी चूड़ियां व मूंग से बने मिष्ठान प्रिय है।
देवी की उपसाना करते समय सफेद रंग के वस्त्र धारण करें।
स्कंदमाता को भोग में केला चढ़ाए और फिर यह प्रसाद ब्राह्मण को दे दीजिए।
पूजा के दौरान करें इस मंत्र का जाप
सिंहासनगता नित्यं पद्माञ्चितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
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चैतन्य भारत न्यूज
इन दिनों नवरात्रि का पावन पर्व चल रहा है। हिंदू धर्म में शारदीय नवरात्रि का काफी महत्व है। इस अवसर पर मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की आराधना की जाती है। मान्यता है कि मां दुर्गा के सभी स्वरूपों की पूजा करने से मनचाहा वरदान प्राप्त होता है। नवरात्रि के मौके पर आज हम आपको मां दुर्गा के प्रसिद्ध शक्ति पीठों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनके दर्शन मात्र से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।
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कहा जाता है कि जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, उनके वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ का उदय हुआ है। ऐसे में दुनियाभर में कुल 51 स्थानों में माता के शक्तिपीठों का निर्माण हुआ है। देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है तो देवी भागवत में 108 और देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का वर्णन मिलता है। जबकि तंत्र चूड़ामणि में 52 शक्तिपीठ बताए गए हैं। देवी पुराण के मुताबिक, 51 शक्तिपीठ में से कुछ विदेश में भी स्थापित हैं। भारत में 42 शक्तिपीठ है और 5 देशों में 9 शक्तिपीठ है।
विदेश में स्थापित शक्तिपीठ
पाकिस्तान-हिंगलाज शक्तिपीठ
श्रीलंका-लंका शक्तिपीठ
नेपाल-गण्डकी शक्तिपीठ, गुह्येश्वरी शक्तिपीठ
तिब्बत- मानस शक्तिपीठ
बांग्लादेश-सुगंध शक्तिपीठ, करतोयाघाट शक्तिपीठ, चट्टल शक्तिपीठ, यशोर शक्तिपीठ
तिब्बत- मानस शक्तिपीठ
यह तिब्बत के मानसरोवर तट पर स्थित है। यहां माता की दाहिना हाथ की हथेली गिरी थी।
पाकिस्तान- हिंगलाज शक्तिपीठ
पुराणों के मुताबिक, यहां सती का सिर गिरा था। यही वजह है कि इस मंदिर में माता अपने पूरे रूप में नहीं दिखतीं, बल्कि उनका सिर्फ सिर नजर आता है।
श्रीलंका- लंका शक्तिपीठ
यहां सती की पायल गिरी थी। हालांकि उस स्थान का पता नहीं पायल श्रीलंका के किस स्थान पर गिरी थी।
नेपाल- गण्डकी शक्तिपीठ
यहां माता सती के "दक्षिणगण्ड" (कपोल) गिरा था। यहां शक्ति 'गण्डकी' तथा भैरव चक्रपाणि हैं।
नेपाल- गुह्येश्वरी शक्तिपीठ
यहां सती के शरीर के दोनो घुटने गिरे थे।
बांग्लादेश
सुगंध शक्तिपीठ- यहां सती की नासिका गिरी थी। ये मां के सुगंध का शक्तिपीठ है।
करतोयाघाट शक्तिपीठ- यहां सती का त्रिनेत्र गिरा था।
चट्टल शक्तिपीठ- यहां सती की 'दाहिनी भुजा' गिरी थी।
यशोर शक्तिपीठ- यहां सती की 'बाई हथेली' गिरी थी।
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नवरात्रि में करें मां दुर्गा के इन खास मंत्रों का जाप, जरुर प्रसन्न होंगी देवी और करेंगी हर मुराद पूरी
चैतन्य भारत न्यूज
शारदीय नवरात्रि में दुर्गा मां के 9 रूपों की आराधना की जाती है। मां दुर्गा के नौ स्वरूपों शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और माता सिद्धिदात्री के लिए पूजा का विशेष मंत्र होता है। मान्यता है कि जो कोई भक्त इन मंत्रों का जाप करता है उसकी सारी मनोकामना पूरी होती है। आइए जानते हैं दुर्गा के प्रत्येक स्वरूप के लिए पूजा के कौन-कौन से मंत्र हैं।
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देवी शैलपुत्री का पूजा मंत्र
वंदे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
देवी ब्रह्मचारिणी का पूजा मंत्र
दधाना कर पद्माभ्यामक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
देवी चंद्रघण्टा का पूजा मंत्र
पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यम् चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥
देवी कूष्माण्डा का पूजा मंत्र
सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
देवी स्कन्दमाता का पूजा मंत्र
सिंहासनगता नित्यं पद्माञ्चित करद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
देवी कात्यायनी का पूजा मंत्र
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥
देवी कालरात्रि का पूजा मंत्र
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा।
वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
देवी महागौरी का पूजा मंत्र
श्वेते वृषेसमारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा॥
देवी सिद्धिदात्री का पूजा मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
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भक्तों के सभी रोग हर लेती हैं 'कूष्मांडा देवी', आदिशक्ति के इस मंत्र के जाप से होगी समृद्धि की प्राप्ति
चैतन्य भारत न्यूज
29 सितंबर से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है। नवरात्रि के चौथे दिन 'मां कूष्मांडा' की पूजा-अर्चना की जाती है। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था तब देवी कूष्मांडा ने इसकी रचना करने में सहायता की थी। इसलिए उन्हें आदि-स्वरूपा व आदिशक्ति भी कहा जाता है। मां कूष्मांडा की आठ भुजायें हैं अतः उन्हें अष्टभुजा देवी के नाम से भी जाना जाता है। मां के सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है तथा उनके आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। कूष्मांडा देवी सिंह की सवारी करती हैं। मां कूष्मांडा की पूजा विधि-विधान से करने से भक्तों के जीवन से सभी रोगों और शोकों का नाश हो जाता है साथ ही समृद्धि की प्राप्ति होती है।
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मां कूष्मांडा की पूजा विधि-
मां कूष्मांडा की पूजा करने से पहले कलश की पूजा कर नमन करें।
मां कूष्मांडा की पूजा करते समय हरे रंग के वस्त्र धारण करें।
मां कूष्मांडा की पूजा करते हुए देवी को जल और पुष्प अर्पित करें और कहे कि उनके आशीर्वाद से आपका और आपके परिजनों का स्वास्थ्य सदैव अच्छा रहे।
पूजा के दौरान मां कूष्मांडा को हरी इलाइची, सौंफ आदि अर्पित करें।
मां कूष्मांडा की पूजा करते समय ''ॐ कुष्मांडा देव्यै नमः'' का जाप करें।
मां कूष्मांडा को भोग में मालपुए चढ़ाए।
मां कूष्मांडा की उपासना का मंत्र-
कुष्मांडा: ऐं ह्री देव्यै नम:
वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्विनीम्॥
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नवरात्र के तीसरे दिन पूजी जाती है मां चंद्रघंटा, भय से मुक्ति पाने के लिए इस विधि से करें पूजा
चैतन्य भारत न्यूज
शारदीय नवरात्रि शुरू हो चुकी है। नवरात्रि को लेकर पूरे देश के भक्तों में उत्साह है। इन नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ अलग-अलग शक्ति स्वरूपों की पूजा की जाएगी। नवरात्रि के प्रथम दिन दुर्गा मां के शैलपुत्री अवतार, दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी माता तो तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा-अर्चना की जाती है। आइए जानते हैं मां चंद्रघंटा का महत्व और पूजा-विधि।
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मां चंद्रघंटा का महत्व
मां दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है और इस दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन-आराधन किया जाता है। मान्यता है कि अगर मन में किसी तरह का कोई भय बना रहता है तो आप मां के तीसरे स्वरूप चंद्रघंटा का पूजन करें। नवरात्रि का तीसरा दिन भय से मुक्ति और अपार साहस प्राप्त करने का होता है। मां के चंद्रघंटा स्वरुप की मुद्रा युद्ध मुद्रा है। वहीं ज्योतिष शास्त्र में मां चंद्रघंटा का संबंध मंगल ग्रह से माना जाता है।
मां चंद्रघंटा की पूजा-विधि
सबसे पहले सुबह नहा-धोकर साफ-सुथरे कपड़े पहन लें।
अब चंद्रघंटा देवी की पूजा के लिए उनका चित्र या मूर्ति पूजा के स्थान पर स्थापित करें।
माता के चित्र या मूर्ति पर फूल चढ़ाकर दीपक जलाएं और नैवेद्य अर्पण करें।
मां चंद्रघंटा के भोग में गाय के दूध से बने व्यंजनों का प्रयोग किया जाना चाहिए। मां को लाल सेब और गुड़ का भोग लगाएं।
इसके बाद मां चंद्रघंटा की कहानी पढ़ें और नीचे लिखे इस मंत्र का 108 बार जाप करें।
उपासना का मंत्र-
पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥
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नवरात्रि में मां के 9 स्वरूपों को चढ़ाएं ये 9 भोग, पूरी होंगी सारी मनोकामनाएं
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नवरात्रि में मां के 9 स्वरूपों को चढ़ाएं ये 9 भोग, पूरी होंगी सारी मनोकामनाएं
चैतन्य भारत न्यूज
29 सितंबर यानी आज से नवरात्रि का पावन पर्व शुरू हो चुका हैं। इस दौरान देवी पूजन का बहुत महत्व माना जाता है। हिंदू धर्म के मुताबिक, इन नौ दिनों में व्रत रखने वाले व्यक्ति को विशेष फल की प्राप्ति होती है। अलग-अलग दिन में देवी के अलग-अलग रूपों की पूजा होती है। साथ ही 9 दिन का व्रत रखने वाले भक्त इन नौ दिनों में मां का पसंदीदा भोग चढ़ाते हैं।
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मान्यता है कि हर दिन माता की पसंद के मुताबिक भोग लगाया जाए तो वे प्रसन्न होती हैं और भक्तों पर कृपा बरसाती हैं। आइए जानते हैं नौ दिनों में देवी को कौन-कौन सा भोग चढ़ाया जाता है।
नौ दिन देवी के लिए नौ प्रकार भोग निम्न अनुसार हैं।
पहले दिन- केले
दूसरे दिन- देसी घी (गाय के दूध से बने)
तीसरे दिन- नमकीन मक्खन
चौथे दिन- मिश्री
पांचवें दिन- खीर या दूध
छठवें दिन- माल पोआ
सातवें दिन- शहद
आठवें दिन- गुड़ या नारियल
नोवें दिन- धान का हलवा
बता दें नवरात्रि का अंतिम दिन मां सिद्धदात्री को समर्पित है। नवमी तिथि पर देवी मां को धान के हलवे के साथ तिल का भोग लगाना शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन तिल का भोग लगाकर ब्राह्मण को दान देने से मृत्यु भय से राहत मिलती है, साथ ही अनहोनी बुरी घटनाओं के होने में कमी आती है। इस बार मां का आगमन हाथी और गमन घोड़े पर हो रहा है। देवी का आगमन आश्विन शुक्ल प्रतिपदा तिथि 29 सितंबर यानी आज होगा और विदाई दशमी तिथि में 8 अक्टूबर को होगी।
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29 सितंबर यानी आज से नवरात्रि का पावन पर्व शुरू हो चुका हैं। इस दौरान देवी पूजन का बहुत महत्व माना जाता है। हिंदू धर्म के मुताबिक, इन नौ दिनों में व्रत रखने वाले व्यक्ति को विशेष फल की प्राप्ति होती है। अलग-अलग दिन में देवी के अलग-अलग रूपों की पूजा होती है। साथ ही 9 दिन का व्रत रखने वाले भक्त इन नौ दिनों में मां का पसंदीदा भोग चढ़ाते हैं।
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मान्यता है कि हर दिन माता की पसंद के मुताबिक भोग लगाया जाए तो वे प्रसन्न होती हैं और भक्तों पर कृपा बरसाती हैं। आइए जानते हैं नौ दिनों में देवी को कौन-कौन सा भोग चढ़ाया जाता है।
नौ दिन देवी के लिए नौ प्रकार भोग निम्न अनुसार हैं।
पहले दिन- केले
दूसरे दिन- देसी घी (गाय के दूध से बने)
तीसरे दिन- नमकीन मक्खन
चौथे दिन- मिश्री
पांचवें दिन- खीर या दूध
छठवें दिन- माल पोआ
सातवें दिन- शहद
आठवें दिन- गुड़ या नारियल
नोवें दिन- धान का हलवा
बता दें नवरात्रि का अंतिम दिन मां सिद्धदात्री को समर्पित है। नवमी तिथि पर देवी मां को धान के हलवे के साथ तिल का भोग लगाना शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन तिल का भोग लगाकर ब्राह्मण को दान देने से मृत्यु भय से राहत मिलती है, साथ ही अनहोनी बुरी घटनाओं के होने में कमी आती है। इस बार मां का आगमन हाथी और गमन घोड़े पर हो रहा है। देवी का आगमन आश्विन शुक्ल प्रतिपदा तिथि 29 सितंबर यानी आज होगा और विदाई दशमी तिथि में 8 अक्टूबर को होगी।
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चैतन्य भारत न्यूज
29 सितंबर से नवरात्रि शुरू होने वाली है। ऐसे में लोगों ने तैयारियां शुरू कर दी है। नवरात्रि के शुभ दिनों में माता रानी की उपासना की जाती है। इन दिनों में मां को प्रसन्न करने के लिए भक्तजन व्रत और पूजा पाठ करते हैं। मान्यता है कि इस दौरान जो भी भक्त मां की सच्चे दिल से आराधना करते हैं उनकी हर मनोकामना पूरी होती है। आइए जानते हैं इस दौरान किन-किन बातों का विशेष ध्यान रखना होता है।
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महिलाओं का करें सम्मान
जिस घर परिवार में सदैव ही महिलाओं का सम्मान होता है, वहां मां की कृपा हमेशा बनी रहती हैं। कहा जाता है कि जो व्यक्ति महिलाओं का सम्मान करता है, उस पर मां लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती हैं।
कलश स्थापना
घर में कलश स्थापना करने के बाद घर को खाली ना छोड़े। किसी ना किसी व्यक्ति को घर में हमेशा रहना चाहिए। मान्यता है कि नवरात्रि के दिनों दिन के समय में सोना भी नहीं चाहिए।
सात्विक आहार
नवरात्रि के दौरान मांस मदिरा का सेवन ना करें। नवरात्रि के नौ दिनों तक पूर्ण सात्विक आहार लेना चाहिए।
किसी का भी अनादर ना करें
इन दिनों में आपके घर में कोई अतिथि या भिखारी आता है तो उसका आदर सत्कार करें। कहा जाता है कि मां इन दिनों में किसी भी रूप में आपके घर में प्रवेश कर सकती हैं।
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