चैत्र नवरात्रि : आज करें मां महागौरी की पूजा, दूर हो जाएगी नौकरी व धन संबंधी सभी समस्याएं
चैतन्य भारत न्यूज
आज चैत्र नवरात्रि का आठवां दिन है और इस दिन मां दुर्गा के आठवें रूप यानी महागौरी की पूजा-अर्चना की जाती है। आइए जानते हैं देवी महागौरी की पूजा का महत्व और पूजन-विधि।
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देवी महागौरी की पूजा का महत्व
महागौरी को पार्वती अर्थात भगवान शिव की अर्धांगिनी के रूप में भी जाना जाता है। कहा जाता है कि मां महागौरी की पूजा-अर्चना करने से भक्तों के सभी पाप धुल जाते है और उनके धन संबधित कष्ट भी दूर हो जाते हैं। महागौरी की चार भुजाएं हैं। इनके दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। मां के ऊपरवाले बाएं हाथ में डमरू और नीचे के बाएं हाथ में वर-मुद्रा है। इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है। मां महागौरी का वर्ण सफेद और बेहद खूबसूरत है, यही कारण है कि इनका नाम महागौरी है। मां गौरी की उपासना करने से नौकरी से संबंधित बाधाएं दूर होती हैं।
मां महागौरी की पूजा-विधि
सर्वप्रथम चौकी पर मां महागौरी की तस्वीर या मूर्ति की स्थापना करें और फिर गंगा जल या गौमूत्र से शुद्धिकरण करें।
इसके बाद कलश पूजन करें और फिर मां का विधि-विधान से पूजा करें।
मां महागौरी को सफेद पुष्प अर्पित करें।
पूजा के दौरान मां के वंदना मंत्र का 108 बार जाप करें।
तत्पश्चात मां का स्त्रोत पाठ करें।
आप पीले वस्त्र धारण कर मां महागौरी की पूजा करें, इससे विशेष फल प्राप्त होता है।
इस दिन माता को सफेद रंग का भोग अर्पित करना बिलकुल भी न भूलें।
महागौरी वंदना मंत्र
श्वेते वृषे समरूढा श्वेताम्बराधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।
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चैत्र नवरात्रि : आज करें काल का नाश करने वाली मां कालरात्रि की पूजा, जानिए व्रत का महत्व और पूजन-विधि
चैतन्य भारत न्यूज
आज चैत्र नवरात्रि का सातवां दिन है और इस दिन मां कालरात्रि की उपासना की जाती है। आइए जानते हैं मां कालरात्रि की पूजा का महत्व और पूजन-विधि।
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मां कालरात्रि की पूजा का महत्व
मां दुर्गा के सातवें स्वरूप का नाम कालरात्रि है। मां कालरात्रि का रंग घने अंधकार के समान काला है और इस वजह से उन्हें कालरात्रि कहा गया। मां दुर्गा ने असुरों के राजा रक्तबीज का वध करने के लिए अपने तेज से मां कालरात्रि को उत्पन्न किया था। मां कालरात्रि को 'शुभंकारी' भी कहा जाता हैं। मां कालरात्रि सभी कालों का नाश कर देती हैं। मां के स्मरण मात्र से ही भूत-पिशाच, भय और अन्य सभी तरह की परेशानी दूर हो जाती हैं। कहा जाता है कि मां कालरात्रि की पूजा करने से भक्त समस्त सिद्धियों को प्राप्त कर लेते हैं। कालरात्रि देवी की पूजा काला जादू की साधना करने वाले जातकों के बीच बेहद प्रसिद्ध है।
मां कालरात्रि की पूजा-विधि
सबसे पहले चौकी पर मां कालरात्रि की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें और फिर गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें।
मां कालरात्रि की पूजा के दौरान लाल रंग के वस्त्र पहनने चाहिए।
मकर और कुंभ राशि के जातकों को कालरात्रि की पूजा जरूर करनी चाहिए।
मां को सात या सौ नींबू की माला चढाने से परेशानियां दूर होती हैं।
सप्तमी की रात्रि तिल या सरसों के तेल की अखंड ज्योत जलाएं।
पूजा करते समय सिद्धकुंजिका स्तोत्र, अर्गला स्तोत्रम, काली चालीसा, काली पुराण का पाठ करना चाहिए।
मां कालरात्रि को गुड़ का नैवेद्य बहुत पसंद है अर्थात उन्हें प्रसाद में गुड़ अर्पित करके ब्राह्मण को दे देना चाहिए। ऐसा करने से पुरुष शोकमुक्त हो सकता है।
मां कालरात्रि का मंत्र
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
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नवरात्रि में करें मां दुर्गा के इन खास मंत्रों का जाप, जरूर प्रसन्न होंगी देवी और करेंगी हर मुराद पूरी
चैतन्य भारत न्यूज
चैत्र नवरात्रि में दुर्गा मां के 9 रूपों की आराधना की जाती है। मां दुर्गा के नौ स्वरूपों शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और माता सिद्धिदात्री के लिए पूजा का विशेष मंत्र होता है। मान्यता है कि जो कोई भक्त इन मंत्रों का जाप करता है उसकी सारी मनोकामना पूरी होती है। आइए जानते हैं दुर्गा के प्रत्येक स्वरूप के लिए पूजा के कौन-कौन से मंत्र हैं।
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देवी शैलपुत्री का पूजा मंत्र
वंदे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
देवी ब्रह्मचारिणी का पूजा मंत्र
दधाना कर पद्माभ्यामक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
देवी चंद्रघण्टा का पूजा मंत्र
पिण्डज प्रवरा��ूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यम् चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥
देवी कूष्माण्डा का पूजा मंत्र
सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
देवी स्कन्दमाता का पूजा मंत्र
सिंहासनगता नित्यं पद्माञ्चित करद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
देवी कात्यायनी का पूजा मंत्र
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥
देवी कालरात्रि का पूजा मंत्र
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा।
वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
देवी महागौरी का पूजा मंत्र
श्वेते वृषेसमारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा॥
देवी सिद्धिदात्री का पूजा मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
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देवी शैलपुत्री का पूजा मंत्र
वंदे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
देवी ब्रह्मचारिणी का पूजा मंत्र
दधाना कर पद्माभ्यामक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
देवी चंद्रघण्टा का पूजा मंत्र
पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यम् चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥
देवी कूष्माण्डा का पूजा मंत्र
सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
देवी स्कन्दमाता का पूजा मंत्र
सिंहासनगता नित्यं पद्माञ्चित करद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
देवी कात्यायनी का पूजा मंत्र
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥
देवी कालरात्रि का पूजा मंत्र
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा।
वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
देवी महागौरी का पूजा मंत्र
श्वेते वृषेसमारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा॥
देवी सिद्धिदात्री का पूजा मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
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चैत्र नवरात्रि : भय से मुक्ति पाने के लिए इस विधि से करें 'मां चंद्रघंटा' की पूजा
चैतन्य भारत न्यूज
आज चैत्र नवरात्रि का तीसरा दिन है और इस दिन मां चंद्रघंटा की उपासना की जाती है। आइए जानते हैं मां चंद्रघंटा की पूजा का महत्व और पूजन-विधि।
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मां चंद्रघंटा की पूजा का महत्व
मां दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है और इस दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन-आराधन किया जाता है। मान्यता है कि अगर मन में किसी तरह का कोई ���य बना रहता है तो आप मां के तीसरे स्वरूप चंद्रघंटा का पूजन करें। नवरात्रि का तीसरा दिन भय से मुक्ति और अपार साहस प्राप्त करने का होता है। मां के चंद्रघंटा स्वरुप की मुद्रा युद्ध मुद्रा है। वहीं ज्योतिष शास्त्र में मां चंद्रघंटा का संबंध मंगल ग्रह से माना जाता है।
मां चंद्रघंटा की पूजा-विधि
सबसे पहले सुबह नहा-धोकर साफ-सुथरे कपड़े पहन लें।
अब चंद्रघंटा देवी की पूजा के लिए उनका चित्र या मूर्ति पूजा के स्थान पर स्थापित करें।
माता के चित्र या मूर्ति पर फूल चढ़ाकर दीपक जलाएं और नैवेद्य अर्पण करें।
मां चंद्रघंटा के भोग में गाय के दूध से बने व्यंजनों का प्रयोग किया जाना चाहिए। मां को लाल सेब और गुड़ का भोग लगाएं।
इसके बाद मां चंद्रघंटा की कहानी पढ़ें और नीचे लिखे इस मंत्र का 108 बार जाप करें।
उपासना का मंत्र
पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥
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चैत्र नवरात्रि : भय से मुक्ति पाने के लिए इस विधि से करें 'मां चंद्रघंटा' की पूजा
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आज चैत्र नवरात्रि का तीसरा दिन है और इस दिन मां चंद्रघंटा की उपासना की जाती है। आइए जानते हैं मां चंद्रघंटा की पूजा का महत्व और पूजन-विधि।
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मां चंद्रघंटा की पूजा का महत्व
मां दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है और इस दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन-आराधन किया जाता है। मान्यता है कि अगर मन में किसी तरह का कोई भय बना रहता है तो आप मां के तीसरे स्वरूप चंद्रघंटा का पूजन करें। नवरात्रि का तीसरा दिन भय से मुक्ति और अपार साहस प्राप्त करने का होता है। मां के चंद्रघंटा स्वरुप की मुद्रा युद्ध मुद्रा है। वहीं ज्योतिष शास्त्र में मां चंद्रघंटा का संबंध मंगल ग्रह से माना जाता है।
मां चंद्रघंटा की पूजा-विधि
सबसे पहले सुबह नहा-धोकर साफ-सुथरे कपड़े पहन लें।
अब चंद्रघंटा देवी की पूजा के लिए उनका चित्र या मूर्ति पूजा के स्थान पर स्थापित करें।
माता के चित्र या मूर्ति पर फूल चढ़ाकर दीपक जलाएं और नैवेद्य अर्पण करें।
मां चंद्रघंटा के भोग में गाय के दूध से बने व्यंजनों का प्रयोग किया जाना चाहिए। मां को लाल सेब और गुड़ का भोग लगाएं।
इसके बाद मां चंद्रघंटा की कहानी पढ़ें और नीचे लिखे इस मंत्र का 108 बार जाप करें।
उपासना का मंत्र
पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥
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बेहद खास है शारदीय नवरात्रि का अंतिम दिन, जानिए महानवमी का महत्व और पूजा का शुभ मुहूर्त
चैतन्य भारत न्यूज
शारदीय नवरात्रि के नौवें दिन यानी नवमी को मां सिद्धिदात्री की पूजा का विधान है। देवी के इस स्वरूप की उपासना से सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं। नवदुर्गाओं में मां सिद्धिदात्री अंतिम है। आइए जानते हैं महानवमी का महत्व और पूजा-विधि।
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महानवमी का महत्व
महानवमी नवरात्रि का अंतिम दिन होता है। इस दिन लोग नौ कन्याओं का पूजन कर उन्हें भोग लगाते हैं। मान्यता है कि इस दिन देवी दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षक का वध किया था। कहा जाता है कि मां भगवती ने 9वें दिन देवताओं और भक्तों के सभी वांछित मनोरथों को सिद्ध किया था। इनकी पूजा से भक्तों के सभी कार्य सिद्ध होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन मां की विशेष पूजा करके उन्हें दोबारा से पधारने का आवाहन कर उनकी विदाई की जाती है।
महानवमी पूजा मंत्र
सिद्धगन्धर्वयक्षाघैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥
या देवी सर्वभूतेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
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नवरात्रि में करें मां दुर्गा के इन खास मंत्रों का जाप, जरुर प्रसन्न होंगी देवी और करेंगी हर मुराद पूरी
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भक्तों के सभी रोग हर लेती हैं 'कूष्मांडा देवी', आदिशक्ति के इस मंत्र के जाप से होगी समृद्धि की प्राप्ति
चैतन्य भारत न्यूज
17 अक्टूबर से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है। नवरात्रि के चौथे दिन 'मां कूष्मांडा' की पूजा-अर्चना की जाती है। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था तब देवी कूष्मांडा ने इसकी रचना करने में सहायता की थी। इसलिए उन्हें आदि-स्वरूपा व आदिशक्ति भी कहा जाता है। मां कूष्मांडा की आठ भुजायें हैं अतः उन्हें अष्टभुजा देवी के नाम से भी जाना जाता है। मां के सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है तथा उनके आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। कूष्मांडा देवी सिंह की सवारी करती हैं। मां कूष्मांडा की पूजा विधि-विधान से करने से भक्तों के जीवन से सभी रोगों और शोकों का नाश हो जाता है साथ ही समृद्धि की प्राप्ति होती है।
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मां कूष्मांडा की पूजा विधि-
मां कूष्मांडा की पूजा करने से पहले कलश की पूजा कर नमन करें।
मां कूष्मांडा की पूजा करते समय हरे रंग के वस्त्र धारण करें।
मां कूष्मांडा की पूजा करते हुए देवी को जल और पुष्प अर्पित करें और कहे कि उनके आशीर्वाद से आपका और आपके परिजनों का स्वास्थ्य सदैव अच्छा रहे।
पूजा के दौरान मां कूष्मांडा को हरी इलाइची, सौंफ आदि अर्पित करें।
मां कूष्मांडा की पूजा करते समय ''ॐ कुष्मांडा देव्यै नमः'' का जाप करें।
मां कूष्मांडा को भोग में मालपुए चढ़ाए।
मां कूष्मांडा की उपासना का मंत्र-
कुष्मांडा: ऐं ह्री देव्यै नम:
वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्विनीम्॥
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शारदीय नवरात्रि : आज होगी मां ब्रह्मचारिणी की आराधना, इस विधि से करें पूजा
चैतन्य भारत न्यूज
आज शारदीय नवरात्रि का दूसरा दिन है और इस दिन मां ब्रह्मचारिणी की उपासना की जाती है। आइए जानते हैं मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का महत्व और पूजन-विधि।
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का महत्व
ब्रह्मचारिणी देवी के हाथों मे अक्षमाला और कमंडल होता है। मां ब्रह्मचारिणी को ज्ञान, तपस्या और वैराग्य की देवी माना जाता है। मां ब्रह्मचारिणी ने भगवान शंकर को पति रूप से प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी और इसलिए वह तपश्चारिणी और ब्रह्मचारिणी के नाम से प्रसिद्ध हैं। ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा करना विद्यार्थियों और तपस्वियों के लिए बेहद शुभ और फलदायी होती है। कहा जाता है कि, जिस भी व्यक्ति का चंद्रमा कमजोर हो, उन्हें मां ब्रह्मचारिणी की उपासना करना चाहिए।
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मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-विधि
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करते समय हमेशा पीले या सफेद वस्त्र धारण करें।
मां ब्रह्मचारिणी को सफेद रंग के फूल अथवा वस्तुएं जैसे- मिश्री, शक्कर या पंचामृत अर्पित करें।
मां ब्रह्मचारिणी की उपासना करते समय ज्ञान और वैराग्य के मंत्र का जाप करें।
मां ब्रह्मचारिणी के लिए सबसे उत्तम जाप "ॐ ऐं नमः" माना जाता है।
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करते वक्त हाथों में एक सफेद रंग का फूल लेकर देवी का ध्यान करें और फिर इस मंत्र का उच्चारण करें-
ध्यान मंत्र
वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
जपमालाकमण्डलु धराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम।
धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम्॥
परम वंदना पल्लवराधरां कांत कपोला पीन।
पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
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शारदीय नवरात्रि: आज महिलाएं करें सिद्धियों की देवी मां शैलपुत्री की पूजा, इस मंत्र के जाप से पूरी होगी मनोकामना
चैतन्य भारत न्यूज
शारदीय नवरात्रि 17 अक्टूबर यानी आज से शुरू चुकी है। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मान्यता है कि, पहले दिन पूजे जाने वाली देवी के इस रूप का नाम शैलपुत्री इसलिए पड़ा क्योंकि उनका जन्म राजा हिमालय के यहां हुआ था। 'शैल' का अर्थ होता है चट्टान और 'पुत्री' का मतलब है बेटी। बता दें मां शैलपुत्री बैल की सवारी करती हैं और इनके दाएं हाथ में में त्रिशूल और बाएं में कमल होता है। मां शैलपुत्री अपने माथे पर चांद भी पहनती हैं। मां शैलपुत्री को अखंड सौभाग्य का प्रतीक भी माना जाता है। जिस भी व्यक्ति के जीवन में स्थिरता और शक्ति की कमी है उन्हें मां शैलपुत्री की पूजा अवश्य करनी चाहिए। खासतौर से महिलाओं के लिए तो मां शैलपुत्री की पूजा शुभ मानी जाती है। मान्यता है कि मां शैलपुत्री की पूजा करते समय यदि उनके मंत्र का 11 बार जाप करते हैं तो व्यक्ति का मूलाधार चक्र जाग्रत होता है।
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मां शैलपुत्री की पूजा विधि
सबसे पहले आप जिस भी स्थान पर पूजा करने वाले हैं, वहां अच्छी तरह से सफाई करें।
फिर वहां पर लकड़ी के एक पाटे पर मां शैलपुत्री की तस्वीर रखें। उस तस्वीर को शुद्ध जल से साफ करें।
कलश स्थापना करने के लिए लकड़ी के पाटे पर पहले एक लाल कपड़ा बिछाएं।
फिर अपने हाथ में कुछ चावल के दाने लेकर भगवान गणेश का ध्यान करते हुए उन्हें पाटे पर रख दें।
जिस भी कलश को स्थापित करना है उसमें शुद्ध जल भरें और फिर उसके ऊपर आम के पत्ते लगाएं।
इसके बाद पान��� वाला नारियल उस कलश पर रखें। ध्यान रहे नारियल पर कलावा और चुनरी भी जरूर बांधें।
नारियल रखने के बाद कलश पर रोली से स्वास्तिक बनाएं और फिर कलश को स्थापित कर दें।
कलश स्थापना के बाद पाटे के एक तरफ के हिस्से में मिट्टी फैलाएं और उस मिट्टी में जौं डाल दें।
मां शैलपुत्री को कुमकुम लगाएं। फिर उन्हें चुनरी उढ़ाएं और उनके सामने घी का दीपक जलाएं।
अज्ञारी देते समय उसमे सुपारी, लोंग, घी, प्रसाद इत्यादि का भोग लगाएं।
अंत में नौ दिनों के व्रत का संकल्प लें और मां शैलपुत्री की कथा पढ़ें। (व्रत संकल्प इच्छानुसार)
ये हैं मां शैलपुत्री के मंत्र
ऊँ शं शैलपुत्री देव्यै: नम:
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्राद्र्वकृतशेखराम्। वृषारूढ़ा शूलधरां यशस्विनीम्॥
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्राद्र्वकृतशेखराम्। वृषारूढ़ा शूलधरां यशस्विनीम्॥
या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
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नवरात्रि पर इस बार बन रहा यह दुर्लभ योग, शनि-गुरु 58 साल बाद अपनी राशियों में रहेंगे
चैतन्य भारत न्यूज
17 अक्टूबर से देवी पूजा का नौ दिवसीय पर्व नवरात्रि शुरू हो रहा है। नवरात्रि का समापन 25 अक्टूबर को होगा। इस बार नवरात्रि की शुरुआत में 17 तारीख को ही सूर्य का राशि परिवर्तन भी होगा। सुर्य तुला में प्रवेश करेगा। तुला राशि में पहले से वक्री बुध भी रहेगा। इस कारण बुध-आदित्य योग बनेगा। इसके साथ ही 58 साल बाद शनि-गुरु का भी दुर्लभ योग बन रहा है।
इस बार पूरे नौ दिनों की रहेगी नवरात्रि
ज्योतिषाचार्य के मुताबिक, इस नवरात्रि में शनि मकर में और गुरु धनु राशि में रहेगा। ये दोनों ग्रह 58 साल बाद नवरात्रि में एक साथ अपनी-अपनी राशि में स्थित रहेंगे। 2020 से पहले 1962 में ये योग बना था। उस समय 29 सितंबर से नवरात्रि शुरू हुई थी। इस साल नवरात्रि पूरे नौ दिनों की रहेगी। इसी दिन सूर्य तुला राशि में प्रवेश करके नीच का हो जाएगा। 17 तारीख को बुध और चंद्र भी तुला राशि में रहेंगे। चंद्र 18 तारीख को वृश्चिक में प्रवेश करेगा। लेकिन सूर्य-बुध का बुधादित्य योग पूरी नवरात्रि में रहेगा।
नवरात्रि में घोड़े पर सवार होकर आएंगी देवी
शनिवार से नवरात्रि शुरू होने से इस बार देवी का वाहन घोड़ा रहेगा। नवरात्रि जिस वार से शुरू होती है, उसके अनुसार देवी का वाहन बताया गया है। अगर नवरात्रि सोमवार या रविवार से शुरू होती है तो देवी का वाहन हाथी रहता है। शनिवार और मंगलवार से नवरात्रि शुरू होती है तो वाहन घोड़ा रहता है। गुरुवार और शुक्रवार से नवरात्रि शुरू होने पर देवी डोली में सवार होकर आती हैं। बुधवार से नवरात्रि शुरू होती है तो देवी का वाहन नाव रहता है।
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चैत्र नवरात्रि : अंतिम दिन करें सिद्धिदात्री देवी की पूजा-अर्चना, इस मंत्र के जाप से मां हो जाएंगी प्रसन्न
चैतन्य भारत न्यूज
चैत्र नवरात्रि के नौवें दिन मां के नौवें स्वरूप सिद्धिदात्री देवी की उपासना की जाती है। मान्यता है कि केवल इस दिन मां की उपासना करने से सम्पूर्ण नवरात्रि की उपासना का फल मिलता है। मां सिद्धिदात्री को सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है। मां के पास अणिमा, महिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, गरिमा, लघिमा, ईशित्व और वशित्व यह आठ सिद्धियां हैं। माना जाता है कि नवमी के दिन महासरस्वती की भी उपासना करने से विद्या और बुद्धि की प्राप्ति होती है।
मां सिद्धिदात्री की पूजा विधि-
प्रातः काल स्नान करने के बाद मां के समक्ष दीपक जलाएं।
देवी को 9 कमल के फूल चढ़ाएं।
फिर मां को 9 तरह के खाद्य पदार्थ भी अर्पित करें।
पूजा के दौरान मां के मंत्र "ॐ ह्रीं दुर्गाय नमः" का जाप करें।
पूजा करने के पश्चात् अर्पित किए हुए कमल के फूल को लाल वस्त्र में लपेटकर रखें।
इसके अलावा पहले निर्धनों को भोजन कराएं और फिर स्वयं भोजन करें।
मां सिद्धिदात्री को इस मंत्र के जाप से करें प्रसन्न-
सिद्धगन्धिर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि,
सेव्यमाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।
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चैत्र नवरात्रि : ��ज करें मां महागौरी की पूजा, दूर हो जाएगी नौकरी व धन संबंधी सभी समस्याएं
चैतन्य भारत न्यूज
आज चैत्र नवरात्रि का आठवां दिन है और इस दिन मां दुर्गा के आठवें रूप यानी महागौरी की पूजा-अर्चना की जाती है। आइए जानते हैं देवी महागौरी की पूजा का महत्व और पूजन-विधि।
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देवी महागौरी की पूजा का महत्व
महागौरी को पार्वती अर्थात भगवान शिव की अर्धांगिनी के रूप में भी जाना जाता है। कहा जाता है कि मां महागौरी की पूजा-अर्चना करने से भक्तों के सभी पाप धुल जाते है और उनके धन संबधित कष्ट भी दूर हो जाते हैं। महागौरी की चार भुजाएं हैं। इनके दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। मां के ऊपरवाले बाएं हाथ में डमरू और नीचे के बाएं हाथ में वर-मुद्रा है। इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है। मां महागौरी का वर्ण सफेद और बेहद खूबसूरत है, यही कारण है कि इनका नाम महागौरी है। मां गौरी की उपासना करने से नौकरी से संबंधित बाधाएं दूर होती हैं।
मां महागौरी की पूजा-विधि
सर्वप्रथम चौकी पर मां महागौरी की तस्वीर या मूर्ति की स्थापना करें और फिर गंगा जल या गौमूत्र से शुद्धिकरण करें।
इसके बाद कलश पूजन करें और फिर मां का विधि-विधान से पूजा करें।
मां महागौरी को सफेद पुष्प अर्पित करें।
पूजा के दौरान मां के वंदना मंत्र का 108 बार जाप करें।
तत्पश्चात मां का स्त्रोत पाठ करें।
आप पीले वस्त्र धारण कर मां महागौरी की पूजा करें, इससे विशेष फल प्राप्त होता है।
इस दिन माता को सफेद रंग का भोग अर्पित करना बिलकुल भी न भूलें।
महागौरी वंदना मंत्र
श्वेते वृषे समरूढा श्वेताम्बराधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।
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चैत्र नवरात्रि : आज करें काल का नाश करने वाली मां कालरात्रि की पूजा, जानिए व्रत का महत्व और पूजन-विधि
चैतन्य भारत न्यूज
आज चैत्र नवरात्रि का सातवां दिन है और इस दिन मां कालरात्रि की उपासना की जाती है। आइए जानते हैं मां कालरात्रि की पूजा का महत्व और पूजन-विधि।
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मां कालरात्रि की पूजा का महत्व
मां दुर्गा के सातवें स्वरूप का नाम कालरात्रि है। मां कालरात्रि का रंग घने अंधकार के समान काला है और इस वजह से उन्हें कालरात्रि कहा गया। मां दुर्गा ने असुरों के राजा रक्तबीज का वध करने के लिए अपने तेज से मां कालरात्रि को उत्पन्न किया था। मां कालरात्रि को 'शुभंकारी' भी कहा जाता हैं। मां कालरात्रि सभी कालों का नाश कर देती हैं। मां के स्मरण मात्र से ही भूत-पिशाच, भय और अन्य सभी तरह की परेशानी दूर हो जाती हैं। कहा जाता है कि मां कालरात्रि की पूजा करने से भक्त समस्त सिद्धियों को प्राप्त कर लेते हैं। कालरात्रि देवी की पूजा काला जादू की साधना करने वाले जातकों के बीच बेहद प्रसिद्ध है।
मां कालरात्रि की पूजा-विधि
सबसे पहले चौकी पर मां कालरात्रि की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें और फिर गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें।
मां कालरात्रि की पूजा के दौरान लाल रंग के वस्त्र पहनने चाहिए।
मकर और कुंभ राशि के जातकों को कालरात्रि की पूजा जरूर करनी चाहिए।
मां को सात या सौ नींबू की माला चढाने से परेशानियां दूर होती हैं।
सप्तमी की रात्रि तिल या सरसों के तेल की अखंड ज्योत जलाएं।
पूजा करते समय सिद्धकुंजिका स्तोत्र, अर्गला स्तोत्रम, काली चालीसा, काली पुराण का पाठ करना चाहिए।
मां कालरात्रि को गुड़ का नैवेद्य बहुत पसंद है अर्थात उन्हें प्रसाद में गुड़ अर्पित करके ब्राह्मण को दे देना चाहिए। ऐसा क��ने से पुरुष शोकमुक्त हो सकता है।
मां कालरात्रि का मंत्र
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
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चैत्र नवरात्रि : भक्तों के सभी रोग हर लेती हैं 'कूष्मांडा देवी', समृद्धि प्राप्ति के लिए आज करें इस मंत्र का जाप
चैतन्य भारत न्यूज
आज चैत्र नवरात्रि का चौथा दिन है और इस दिन मां कूष्मांडा की उपासना की जाती है। आइए जानते हैं मां कूष्मांडा की पूजा का महत्व और पूजन-विधि।
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मां कूष्मांडा की पूजा का महत्व
कहा जाता है कि, जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था तब देवी कूष्मांडा ने इसकी रचना करने में सहायता की थी। इसलिए उन्हें आदि-स्वरूपा व आदिशक्ति भी कहा जाता है। कूष्मांडा माता की आठ भुजायें हैं और इस वजह से उन्हें अष्टभुजा देवी के नाम से भी पुकारा जाता है। देवी के सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है तथा उनके आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। देवी कूष्मांडा सिंह की सवारी करती हैं। इनकी पूजा-अर्चना करने से भक्तों के जीवन से सभी रोगों और शोकों का नाश हो जाता है साथ ही समृद्धि की प्राप्ति होती है।
मां कूष्मांडा की पूजा-विधि
मां कूष्मांडा की पूजा करने से पहले कलश की पूजा कर नमन करें।
मां कूष्मांडा की पूजा करते समय हरे रंग के वस्त्र धारण करें।
मां कूष्मांडा की पूजा करते हुए देवी को जल और पुष्प अर्पित करें और साथ ही ये कहे कि उनके आशीर्वाद से आपका और आपके परिवार का स्वास्थ्य सदैव अच्छा रहे।
पूजा के दौरान मां कूष्मांडा को हरी इलाइची, सौंफ आदि अर्पित करें।
मां कूष्मांडा की पूजा करते समय ''ॐ कुष्मांडा देव्यै नमः'' का जाप करें।
मां कूष्मांडा को भोग में मालपुए चढ़ाएं।
मां कूष्मांडा का उपासना का मंत्र-
कुष्मांडा: ऐं ह्री देव्यै नम:
वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्विनीम्॥
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चैत्र नवरात्रि : भय से मुक्ति पाने के लिए इस विधि से करें 'मां चंद्रघंटा' की पूजा
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आज चैत्र नवरात्रि का तीसरा दिन है और इस दिन मां चंद्रघंटा की उपासना की जाती है। आइए जानते हैं मां चंद्रघंटा की पूजा का महत्व और पूजन-विधि।
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मां चंद्रघंटा की पूजा का महत्व
मां दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है और इस दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन-आराधन किया जाता है। मान्यता है कि अगर मन में किसी तरह का कोई भय बना रहता है तो आप मां के तीसरे स्वरूप चंद्रघंटा का पूजन करें। नवरात्रि का तीसरा दिन भय से मुक्ति और अपार साहस प्राप्त करने का होता है। मां के चंद्रघंटा स्वरुप की मुद्रा युद्ध मुद्रा है। वहीं ज्योतिष शास्त्र में मां चंद्रघंटा का संबंध मंगल ग्रह से माना जाता है।
मां चंद्रघंटा की पूजा-विधि
सबसे पहले सुबह नहा-धोकर साफ-सुथरे कपड़े पहन लें।
अब चंद्रघंटा देवी की पूजा के लिए उनका चित्र या मूर्ति पूजा के स्थान पर स्थापित करें।
माता के चित्र या मूर्ति पर फूल चढ़ाकर दीपक जलाएं और नैवेद्य अर्पण करें।
मां चंद्रघंटा के भोग में गाय के दूध से बने व्यंजनों का प्रयोग किया जाना चाहिए। मां को लाल सेब और गुड़ का भोग लगाएं।
इसके बाद मां चंद्रघंटा की कहानी पढ़ें और नीचे लिखे इस मंत्र का 108 बार जाप करें।
उपासना का मंत्र
पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥
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