#4 युग
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4 युगों की कहानी: युगों का चक्र
हमारे धर्मग्रंथों में समय को चार युग में विभाजित किया गया है, जिनमें से प्रत्येक विशिष्ट विशेषताओं और गुणों से युक्त है। ये चार चार युग सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग और कलयुग हैं। ये युग न केवल समय की गणना करते हैं, बल्कि मानव जाति के आध्यात्मिक और नैतिक विकास के चरणों को भी दर्शाते हैं। आज हम इन 4 युगों की यात्रा पर निकलते हैं और उनकी खासियतों को समझने की कोशिश करते हैं।
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हम सभी जानते हैं कि #परमात्माका_चारोंयुगों_मेंआना एक निश्चित कृत्य है।
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सतयुग में सत् सुकृत कह टेरा,
त्रेता नाम मुनींद्र मेरा।
द्वापर में करुणामय कहाया,
कलयुग नाम कबीर धराया।।
परमात्मा चारों युगों में अलग अलग नामों से प्रकट होते हैं...
1. सतयुग में सत् सुकृत
2. त्रेतायुग में मुनींद्र
3. द्वापरयुग में करुणामय
4. कलयुग में कबीर
प्रत्येक युग में आकर स्वयं परमात्मा विभिन्न लीलाएं करते हैं, जैसा कि हमारे धार्मिक सदग्रंथों में प्रमाणित किया गया है।
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*अक्षय तृतीया* / *चंदन यात्रा* _10th May 2024, Friday_ महत्व और इस दिन की कुछ महत्वपूर्ण जानकारियाँ : *चंदन यात्रा* : अक्षय तृतीया से शुरू होकर 21 दिनों तक, गर्मी के कारण, भगवान पर चंदन का लेप किया जाता है। श्री माधवेंद्र पूरी को स्वयं भगवान से आदेश प्राप्त हुए और यह सेवा तब से *चंदन यात्रा* के नाम से जानी जाती है। 1) *भगवान परशुराम* का आविर्भाव हुआ था इसीलिए आज परशुराम जयंती भी है। 2) *माँ गंगा* का धरती अवतरण हुआ था। 3) *त्रेता युग* का प्रारंभ। 4) *सुदामा* का द्वारका में कृष्ण से मिलन। 5) सूर्य भगवान ने पांडवों को *अक्षय पात्र* दिया। 6) वेदव्यास जी ने *महाकाव्य महाभारत की रचना* गणेश जी के माध्यम से *��्रारम्भ की थी।* 7) प्रथम तीर्थंकर *आदिनाथ ऋषभदेवजी भगवान* के 13 महीने का कठिन उपवास का *पारणा इक्षु (गन्ने) के रस से किया* था। 8) प्रसिद्ध धाम *श्री बद्री नारायण धाम* के कपाट खोले जाते है। 9) *जगन्नाथ भगवान* के सभी *रथों को बनाना प्रारम्भ* किया जाता है। आदि शंकराचार्य ने *कनकधारा स्तोत्र* की रचना की थी। 10) *कुबेर* को खजाना मिला और देव खजांची बनें। 11) *माँ अन्नपूर्णा* का प्राकट्य। 🕉 *अक्षय* का मतलब है जिसका कभी क्षय (नाश) न हो!! अक्षय तृतीया अपने आप में स्वयं सिद्ध मुहूर्त है कोई भी शुभ कार्य किया जा सकता है...! May this day of "AKSHAYA TRITIYA" bring you spiritual Success and Prosperity which never diminishes !! 🙏🏻 हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। #krishna #iskcon #motivation #success #love #innovation #education #future #india #creativity #inspiration #life #quotes #Chandigarh #Devotion
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शकुन शास्त्र के 12 सूत्र
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घर में हर छोटी वस्तु का अपना महत्व होता है। कभी-कभी बेकार समझी जाने वाली वस्तु भी घर में अपनी उपयोगिता सिद्ध कर देती है। गृहस्थी में रोजाना काम में आने वाली चीजों से भी शकुन-अपशकुन जुड़े होते हैं, जो जीवन में कई महत्वपूर्ण मोड़ लाते हैं। शकुन शुभ फल देते हैं, वहीं अपशकुन इंसान को आने वाले संकटों से सावधान करते हैं। हम आपको घर से जुड़ी वस्तुओं के शकुनों के बारे में बता रहे हैं।
https://www.jyotishgher.in
1-दूध का शकुन
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सुबह-सुबह दूध को देखना शुभ कहा जाता है। दूध का उबलकर गिरना शुभ माना जाता है। इससे घर में सुख-शांति, संपत्ति, मान व वैभव की उन्नति होती है। दूध का बिखर जाना अपशकुन मानते हैं, जो किसी दुर्घटना का संकेत है। दूध को जान-बूझकर छलकाना अपशकुन माना जाता है , जो घर में कलह का कारण है।
2-दर्पण का शकुन
हर घर में दर्पण का बहुत महत्व है। दर्पण से जुड़े कई शकुन-अपशकुन मनुष्य जीवन को कहीं न कहीं प्रभावित अवश्य करते हैं। दर्पण का हाथ से छूटकर टूट जाना अशुभ माना जाता है। एक वर्ष तक के बच्चे को दर्पण दिखाना अशुभ होता है। यदि कोई नव विवाहिता अपनी शादी का जोड़ा पहन कर श्रृंगार सहित खुद को टूटे दर्पण में देखती है तो भी अपशकुन होता है। तात्पर्य यह है कि दर्पण का टूटना हर दृष्टिकोण से अशुभ ही होता है। इसके लिए यदि दर्पण टूट जाए तो इसके टूटे हुए टुकड़ों को इकटठा कर��े बहते जल में डाल देने से संकट टल जाते हैं।
3-पैसे का शकुन
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आज के इस युग में पैसे को भगवान माना जाता है। जेब को खाली रखना अपशकुन मानते हैं। कहा जाता है कि पैसे को अपने कपड़ों की हर जेब में रखना चाहिए। कभी भी पर्स खाली नहीं रखना चाहिए।
4-चाकू का शकुन
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चाकू एक ऐसी वस्तु है, जिसके बिना किसी भी घर में काम नहीं चल सकता। इसकी जरूरत हर छोटे-छोटे कार्य में पड़ती है। इससे जुड़े भी अनेक शकुन-अपशकुन होते हैं। डाइनिंग टेबल पर छुरी-कांटे का क्रास करके रखना अशुभ मानते हैं, इसके कारण घर के सदस्यों में झगड़ा हो जाता है। मेज से चाकू का नीचे गिरना भी अशुभ होता है। नवजात शिशु के तकिए के नीचे चाकू रखना शुभ होता है तथा छोटे बच्चे के गले में छोटा सा चाकू डालना भी अच्छा होता है। इससे बच्चों की बुरी आत्माओं से रक्षा होती है व नींद में बच्चे रोते भी नहीं हैं। यदि कोई व्यक्ति आपको चाकू भेंट करे तो इसके बुरे प्रभाव से बचने के लिए एक सिक्का अवश्य दें।
5-झाडू का शकुन
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घर के एक कोने में पड़े हुए झाडू को घर की लक्ष्मी मानते हैं, क्योंकि यह दरिद्रता को घर से बाहर निकालता है। इससे भी कई शकुन व अपशकुन जुड़े हैं। दीपावली के त्यौहार पर नया झाडू घर में लाना लक्ष्मी जी के आगमन का शुभ शकुन है। नए घर में गृह प्रवेश से पूर्व नए झाडू का घर में लाना शुभ होता है। झाडू के ऊपर पांव रखना गलत समझा जाता है। यह माना जाता है कि व्यक्ति घर आई लक्ष्मी को ठुकरा रहा है। कोई छोटा बच्चा अचानक घर में झाडू लगाने लगे तो समझ लीजिए कि घर में कोई अवांछित मेहमान के आने का संकेत है। सूर्यास्त के बाद घर में झाडू लगाना अपशकुन होता है, क्योंकि यह व्यक्ति के दुर्भाग्य को निमंत्रण देता है।
6-बाल्टी का शकुन
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सुबह के समय यदि पानी या दूध से भरी बाल्टी दिखाई दे तो शुभ होता है। इससे मन में सोचे कार्य पूरे होते हैं। खाली बाल्टी देखना अपशकुन समझा जाता है, जो बने-बनाए कार्यों को बिगाड़ देता है। रात को खाली बाल्टी को प्रायः उल्टा करके रखना चाहिए एवं घर में एक बाल्टी को अवश्य भरकर रखें, ताकि सुबह उठकर घर के सदस्य उसे देख सकें।
7-लोहे का शकुन
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घर में लोहे का होना शुभ कहा जाता है। लोहे में एक शक्ति होती है, जो बुरी आत्माओं को घर से भगा देती है। पुराने व जंग लगे लोहे को घर में रखना अशुभ है। घर में लोहे का सामान साफ करके रखें।
8-हेयरपिन का शकुन
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हेयरपिन एक बहुत ही मामूली सी चीज है, परंतु इसका प्रभाव बड़ा आश्चर्यजनक होता है। यदि किसी व्यक्ति को राह में कोई हेयरपिन पड़ा मिल जाये तो समझो कि उसे कोई नया मि��्र मिलने वाला ह���। वहीं यदि हेयर पिन ��ो जाये तो व्यक्ति के नए दुश्मन पैदा होने वाले हैं। हेयरपिन को घर में कहीं लटका दिया जाए तो यह अच्छे भाग्य का प्रतीक है।
9-काले वस्त्र का शकुन
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काले वस्त्र बहुत अशुभ माने जाते हैं। किसी व्यक्ति के घर से बाहर जाते समय यदि कोई आदमी काले वस्त्र पहने हुए दिखाई दे तो अपशकुन माना जाता है, जिसके बुरे प्रभाव से जाने वाले व्यक्ति की दुर्घटना हो सकती है। अतः ऐसे व्यक्ति को अपना जाना कुछ मिनट के लिए स्थगित कर देना चाहिए।
10-रुई का शकुन
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रूई का कोई टुकड़ा किसी व्यक्ति के कपड़ों पर चिपका मिले तो यह शुभ शकुन है। यह किसी शुभ समाचार आने का संकेत है या किसी प्रिय व्यक्ति के आने का संकेत है। कहा जाता है कि रूई का यह टुकड़ा व्यक्ति को किसी एक अक्षर के रूप में नजर आता है व यह अक्षर उस व्यक्ति के नाम का प्रथम अक्षर होता है, जहां से उस व्यक्ति के लिए शुभ संदेश या पत्र आ रहा है।
11-चाबियों का शकुन
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चाबियों का गुच्छा गृहिणी की संपूर्णता का प्रतीक है। यदि गृहिणी के पास चाबियों का कोई ऐसा गुच्छा है, जिस पर बार-बार साफ करने के बाद भी जंग चढ़ जाए तो यह एक अच्छा शकुन है। इसके फलस्वरूप घर का कोई रिश्तेदार अपनी जायदाद में से आपको कुछ देना चाहता है या आपके नाम से कुछ धन छोड़कर जाना चाहता है। चाबियों को बच्चे के तकिए के नीचे रखना भी अच्छा होता है, इससे बुरे स्वप्नों एवंबुंरी आत्माओं से बच्चे का बचाव होता है।
12-बटन का शकुन
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कभी-कभी कमीज़, कोट या अन्य कोई कपड़े का बटन गलत लग जाए तो अपशकुन होता है, जिसके अनुसार सीधे काम भी उल्टे पड़ जाएंगे। इसके दुष्प्रभाव से बचने के लिए कपड़े को उतारकर सही बटन लगाने के बाद पहनें। यदि रास्ते चलते आपको कोई बटन पड़ा मिल जाए तो यह आपको किसी नए मित्र से मिलवाएगा।
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SATLOKASHRAMSOJAT . कबीर .इतनी लंम्बी उमर .मरेगा अंत रे
सतगुरू मिले . तो पहुँचेगा सतलोक रे……
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।।सर्व प्रभुओं की आयु मानव वर्ष अनुसार।।
इंद्र - 31 करोड़ लगभग
शची
(14 इन्द्रौं
की पत्नी) - 4 अरब लगभग
ब्राह्मा जी - 31 लाख करोड़ लगभग
विष्णु जी - 2 अरब लाख लगभग
शिवजी - 15 लाख अरब लगभग
ब्रह्म-काल- 25 खरब करोड़ लगभग
परब्रह्म - 2 पदम अरब लगभग
पूर्णब्रह्म कबिर्देव- अजर-अमर
एक ब्रह्मा की आयु 100 (सौ) वर्ष है,किस तरह के 100 वर्ष की है। गौर से नीचे देखिये
@@@@@@@@@@@@@@@@@@
ब्रह्मा का एक दिन = 1008 (एक हजार) चतुर्युग तथा इतनी ही 1008 (एक हज़ार)चतुर्युग की रात्री।
दिन+रात = 2016 (दो हजार सोलह) चतुर्युग।
चार युगो ( (चतुर्युग) की आयु
@@@@@@@@@@@@@@@
सतयुग की आयु = 17,28,000 वर्ष
(17 लाख 28 हजार)
द्वापर युग की आयु = 12,96,000 वर्ष
(12 लाख 96 हज़ार)
त्रेता युग की आयु = 8,64,000 वर्ष
(8 लाख 64 हज़ार)
कलयुग की आयु = 4,32,000 वर्ष
(4 लाख 32 हज़ार)
चार युगौं (चतुर्युग)
की आयु = 43,20,000 वर्ष
43 लाख 20 हज़ार
{नोट - ब्रह्मा जी के एक दिन में 14 इन्द्रों का शासन काल समाप्त हो जाता है। एक इन्द्र का शासन काल बहतर चतुर्युग का होता है।
इंद्र की बीबी शची 14 ईन्द्रौं की बीबी बनती है, फ़िर ये सभी 14 ईन्द्र मर कर गधे बनते है और शची भी मर कर गधी का जीवन प्राप्त होता है.)
इस प्रकार इंद्र का जीवनकाल
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72 चतुर्युग × 43,20,000 = 31,10,40,000
मानव बर्ष
(31 करोड़ 10 लाख 40 हजार मानव वर्ष अनुसार )
शची (14 इंद्रौ की पत्नी) का जीवन काल
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1008 चतुर्युग× 43,20,000 = 4,35,45,60,000 मानव वर्ष
(4 अरब 33 करोड़ 45 लाख 60 हजार मानव वर्ष अनुसार)
इस प्रकार ब्रह्मा जी का एक दिन और रात 2016 चतुर्युग.
1 महीना = 30 गुणा 2016 = 60480 चतुर्युग।
वर्ष = 12 गुणा 60480 = 725760चतुर्युग ।
ब्रह्मा जी की आयु -
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1 महीना = 30 × 2016 = 60480 चतुर्युग।
वर्ष = 12 × 60480 = 725760चतुर्युग ।
7,25,760 × 100 =7,25,76,000 चतुर्युग × 43,20,000(1चतुर्युग)=31,35,28,32,00,00,000 मानव वर्ष
ब्राह्मा जी की आयु है.
(31 नील 33 खरब 28 अरब 32 लाख मानव वर्ष अनुसार )
ब्रह्मा जी से सात गुणा विष्णु जी की आयु -
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7,25,76,000 × 7 = 50,80,32,000 चतुर्युग × 43,20,000(1चतुर्युग) = 2,19,46,98,24,00,00,000 मानव वर्ष
विष्णुजी की आयु है।
(2 पदम 19 मील 46 खरब 98 अरब 24 करोड़ मानव वर्ष अनुसार)
विष्णु से सात गुणा शिव जी की आयु -
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50,80,32,000 × 7 = 3,55,62,24,000 चतु���्युग 15,36,28,87,68,00,00,000 मानव वर्ष .
शिवजी की आयु है
(15 पदम 36 मील 48 खरब 87 अरब 68 करोड़ मानव वर्ष अनुसार )
ऐसे 3,55,62,24,000 चतुर्युग वाले जब सत्तर हजार (70,000) शिवजी मरते है तब ब्राह्मा-विश्नू -शंकर के पिता ज्योति निरंजन (काल ब्रह्म) और इनकी माता दुर्गा -शेरावाली भी मर जाते है.
ब्राह्मा-विश्नू -शंकर के पिता ज्योति निरंजन और दुर्गा -शेरावाली की आयु-
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3,55,62,24,000×70000= 24,89,35,68,00,00,000 चतुर्युग × (1चतुर्युग) = 2,24,04,21,12,00,00,00,00,000 मानव वर्ष
( 25 खरब करोड़ लगभग मानव वर्ष अनुसार)
पूर्ण परमात्मा के द्वारा पूर्व निर्धारित किए 24,89,35,68,00,00,000 चतुर्युग अर्थात 2,24,04,21,12,00,00,00,00,000 मानव वर्ष
समय में काल- ब्राह्म और दुर्गा शेरावाली के 21 ब्रह्मांडो मे से जिस 1 ब्रह्मांड में स्रषटि चल रही होती है उस ब्रह्मांड में महाप्रलय होती है।
यह (सत्तर हजार शिव की मृत्यु अर्थात् एक सदाशिव/ज्योति निरंजन की मृत्यु होती है) एक युग होता है परब्रह्म का।
परब्रह्म का 1 दिन एक हजार युग का होता है इतनी ही 1 हज़ार युग की रात्री होती है 30 दिन-रात का 1 महिना तथा 12 महिनों का परब्रह्म का 1 वर्ष हुआ तथा इस प्रकार का 100 वर्ष की परब्रह्म की आयु है। परब्रह्म की भी मृत्यु होती है। ब्रह्म अर्थात् ज्योति निरंजन की मृत्यु परब्रह्म के एक दिन के पश्चात् ही हो जाती है
परब्रह्म की आयु
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इस प्रकार परब्रह्म जी का एक दिन और रात 1,000 +1,000 = 2,000 युग
1 महीना = 30 × 2,000= 6,000 युग
1 वर्ष = 12 × 6,000= 72,000 युग ।
100 वर्ष = 100 × 72,000 = 72,00,000 युग.
72,00,000 युग × 2,24,04,21,12,00,00,00,00,000 काल के जीवन के मानव वर्ष = 2,01,63,79,00,80,00,00,00,00,00,00,000
(2 पदम अरब लगभग मानव वर्ष अनुसार)
नोट-
अर्थात परब्रह्म के जीवन काल में 72,00,000 बार काल- ब्राह्म और दुर्गा शेरावाली का जन्म-मरण हो जाता है!!!.
परब्रह्म के सौ वर्ष पूरे होने के पश्चात परब्रह्म की भी म्रत्यु हो जाती है.ईस तीसरी दिव्य महाप्रलय में एक धुधुंकार शंख बजता है .और परब्रह्म सहित इसके 7 संख ब्रह्मांडो के सभी जीव ,काल-ब्रह्म और दुर्गा सहित सर्व 21 ब्रह्मण्ड,उसके जीव ,ब्रह्मा- विश्नू -शिवजी , देव,ऋषि व अन्य ब्रह्मांड सब कुछ नष्ट हो जाते हैं।
कबीर .इतनी लंम्बी उमर .मरेगा अंत रे
सतगुरू मिले . तो पहुँचेगा सतलोक रे.……………………
केवल सतलोक व ऊपर के तीनों लोक अगम लोक,अलख लोक,अनामी लोक ही शेष रहते हैं।
सतपूरुष के बनाये विधान द्वारा सतपूरुष के पुत्र अचिन्त द्वारा ये तीसरी दिव्य महाप्रलय और फ़िर स्रषटि रची जाती है. किंतु सतलोक गये जीव फ़िर जन्म -मरण में नही आते है.
इस प्रकार कबिर्देव परमात्मा ने कहा है कि करोड़ों ज्योति निरंजन मर लिए मेरी एक पल भी आयु कम नहीं हुई है अर्थात् मैं वास्तव में अमर पुरुष कबिर्देव हुँ|
www.jagatgururampalji.org पर जाकर ज्ञान गंगा पुस्तक डाउन्लोड कर अवश्य पढीये. या घर पर मुफ़्त पुस्तक प्राप्त करने के लिए अपना पता मेसेज किजिये.
सर्वजन हित में जारी.
शेयर अवश्य किजिये.. कबीर .इतनी लंम्बी उमर .मरेगा अंत रे
सतगुरू मिले . तो पहुँचेगा सतलोक रे……
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।।सर्व प्रभुओं की आयु मानव वर्ष अनुसार।।
इंद्र - 31 करोड़ लगभग
शची
(14 इन्द्रौं
की पत्नी) - 4 अरब लगभग
ब्राह्मा जी - 31 लाख करोड़ लगभग
विष्णु जी - 2 अरब लाख लगभग
शिवजी - 15 लाख अरब लगभग
ब्रह्म-काल- 25 खरब करोड़ लगभग
परब्रह्म - 2 पदम अरब लगभग
पूर्णब्रह्म कबिर्देव- अजर-अमर
एक ब्रह्मा की आयु 100 (सौ) वर्ष है,किस तरह के 100 वर्ष की है। गौर से नीचे देखिये
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ब्रह्मा का एक दिन = 1008 (एक हजार) चतुर्युग तथा इतनी ही 1008 (एक हज़ार)चतुर्युग की रात्री।
दिन+रात = 2016 (दो हजार सोलह) चतुर्युग।
चार युगो ( (चतुर्युग) की आयु
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सतयुग की आयु = 17,28,000 वर्ष
(17 लाख 28 हजार)
द्वापर युग की आयु = 12,96,000 वर्ष
(12 लाख 96 हज़ार)
त्रेता युग की आयु = 8,64,000 वर्ष
(8 लाख 64 हज़ार)
कलयुग की आयु = 4,32,000 वर्ष
(4 लाख 32 हज़ार)
चार युगौं (चतुर्युग)
की आयु = 43,20,000 वर्ष
43 लाख 20 हज़ार
{नोट - ब्रह्मा जी के एक दिन में 14 इन्द्रों का शासन काल समाप्त हो जाता है। एक इन्द्र का शासन काल बहतर चतुर्युग का होता है।
इंद्र की बीबी शची 14 ईन्द्रौं की बीबी बनती है, फ़िर ये सभी 14 ईन्द्र मर कर गधे बनते है और शची भी मर कर गधी का जीवन प्राप्त होता है.)
इस प्रकार इंद्र का जीवनकाल
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72 चतुर्युग × 43,20,000 = 31,10,40,000
मानव बर्ष
(31 करोड़ 10 लाख 40 हजार मानव वर्ष अनुसार )
शची (14 इंद्रौ की पत्नी) का जीवन काल
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1008 चतुर्युग× 43,20,000 = 4,35,45,60,000 मानव वर्ष
(4 अरब 33 करोड़ 45 लाख 60 हजार मानव वर्ष अनुसार)
इस प्रकार ब्रह्मा जी का एक दिन और रात 2016 चतुर्युग.
1 महीना = 30 गुणा 2016 = 60480 चतुर्युग।
वर्ष = 12 गुणा 60480 = 725760चतुर्युग ।
ब्रह्मा जी की आयु -
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1 महीना = 30 × 2016 = 60480 चतुर्युग।
वर्ष = 12 × 60480 = 725760चतुर्युग ।
7,25,760 × 100 =7,25,76,000 चतुर्युग × 43,20,000(1चतुर्युग)=31,35,28,32,00,00,000 मानव वर्ष
ब्राह्मा जी की आयु है.
(31 नील 33 खरब 28 अरब 32 लाख मानव वर्ष अनुसार )
ब्रह्मा जी से सात गुणा विष्णु जी की आयु -
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7,25,76,000 × 7 = 50,80,32,000 चतुर्युग × 43,20,000(1चतुर्युग) = 2,19,46,98,24,00,00,000 मानव वर्ष
विष्णुजी की आयु है।
(2 पदम 19 मील 46 खरब 98 अरब 24 करोड़ मानव वर्ष अनुसार)
विष्णु से सात गुणा शिव जी की आयु -
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50,80,32,000 × 7 = 3,55,62,24,000 चतुर्युग 15,36,28,87,68,00,00,000 मानव वर्ष .
शिवजी की आयु है
(15 पदम 36 मील 48 खरब 87 अरब 68 करोड़ मानव वर्ष अनुसार )
ऐसे 3,55,62,24,000 चतुर्युग वाले जब सत्तर हजार (70,000) शिवजी मरते है तब ब्राह्मा-विश्नू -शंकर के पिता ज्योति निरंजन (काल ब्रह्म) और इनकी माता दुर्गा -शेरावाली भी मर जाते है.
ब्राह्मा-विश्नू -शंकर के पिता ज्योति निरंजन और दुर्गा -शेरावाली की आयु-
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3,55,62,24,000×70000= 24,89,35,68,00,00,000 चतुर्युग × (1चतुर्युग) = 2,24,04,21,12,00,00,00,00,000 मानव वर्ष
( 25 खरब करोड़ लगभग मानव वर्ष अनुसार)
पूर्ण परमात्मा के द्वारा पूर्व निर्धारित किए 24,89,35,68,00,00,000 चतुर्युग अर्थात 2,24,04,21,12,00,00,00,00,000 मानव वर्ष
समय में काल- ब्राह्म और दुर्गा शेरावाली के 21 ब्रह्मांडो मे से जिस 1 ब्रह्मांड में स्रषटि चल रही होती है उस ब्रह्मांड में महाप्रलय होती है।
यह (सत्तर हजार शिव की मृत्यु अर्थात् एक सदाशिव/ज्योति निरंजन की मृत्यु होती है) एक युग होता है परब्रह्म का।
परब्रह्म का 1 दिन एक हजार युग का होता है इतनी ही 1 हज़ार युग की रात्री होती है 30 दिन-रात का 1 महिना तथा 12 महिनों का परब्रह्म का 1 वर्ष हुआ तथा इस प्रकार का 100 वर्ष की परब्रह्म की आयु है। परब्रह्म की भी मृत्यु होती है। ब्रह्म अर्थात् ज्योति निरंजन की मृत्यु परब्रह्म के एक दिन के पश्चात् ही हो जाती है
परब्रह्म की आयु
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इस प्रकार परब्रह्म जी का एक दिन और रात 1,000 +1,000 = 2,000 युग
1 महीना = 30 × 2,000= 6,000 युग
1 वर्ष = 12 × 6,000= 72,000 युग ।
100 वर्ष = 100 × 72,000 = 72,00,000 युग.
72,00,000 युग × 2,24,04,21,12,00,00,00,00,000 काल के जीवन के मानव वर्ष = 2,01,63,79,00,80,00,00,00,00,00,00,000
(2 पदम अरब लगभग मानव वर्ष अनुसार)
नोट-
अर्थात परब्रह्म के जीवन काल में 72,00,000 बार काल- ब्राह्म और दुर्गा शेरावाली का जन्म-मरण हो जाता है!!!.
परब्रह्म के सौ वर्ष पूरे होने के पश्चात परब्रह्म की भी म्रत्यु हो जाती है.ईस तीसरी दिव्य महाप्रलय में एक धुधुंकार शंख बजता है .और परब्रह्म सहित इसके 7 संख ब्रह्मांडो के सभी जीव ,काल-ब्रह्म और दुर्गा सहित सर्व 21 ब्रह्मण्ड,उसके जीव ,ब्रह्मा- विश्नू -शिवजी , देव,ऋषि व अन्य ब्रह्मांड सब कुछ नष्ट हो जाते हैं।
कबीर .इतनी लंम्बी उमर .मरेगा अंत रे
सतगुरू मिले . तो पहुँचेगा सतलोक रे.……………………
केवल सतलोक व ऊपर के तीनों लोक अगम लोक,अलख लोक,अनामी लोक ही शेष रहते हैं।
सतपूरुष के बनाये विधान द्वारा सतपूरुष के पुत्र अचिन्त द्वारा ये तीसरी दिव्य महाप्रलय और फ़िर स्रषटि रची जाती है. किंतु सतलोक गये जीव फ़िर जन्म -मरण में नही आते है.
इस प्रकार कबिर्देव परमात्मा ने कहा है कि करोड़ों ज्योति निरंजन मर लिए मेरी एक पल भी आयु कम नहीं हुई है अर्थात् मैं वास्तव में अमर पुरुष कबिर्देव हुँ|
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सर्वजन हित में जारी.
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❤️ Bhagavad Gita 🙏
Hare Krishna, to Everyone! ♥️
यह श्लोक हिन्दू ग्रंथ गीता का प्रमुख और प्रसिद्ध श्लोकों में से एक है। यह श्लोक गीता के अध्याय 4 का श्लोक 7 और 8 है।
"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्"
"परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे"
अर्थ: मै प्रकट होता हूं, मैं आता हूं, जब जब धर्म की हानि होती है, तब तब मैं आता हूं, जब जब अधर्म बढता है तब तब मैं आता हूं, सज्जन लोगों की रक्षा के लिए मै आता हूं, दुष्टों के विनाश करने के लिए मैं आता हूं, धर्म की स्थापना के लिए में आता हूं और युग युग में जन्म लेता हूं।
"I am the Beginning, Middle, and End of all." — feeling blessed.
🌼𑜞᭄with ℒℴѵℯ 🌹💞
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#TrueStoryOfJesus
भक्ति युक्त आत्माएं नबी बनकर आती हैं
बाईबल में यूहन्ना ग्रन्थ (अध्याय 16 श्लोक 4 से 15) में प्रमाण है काल भक्ति युक्त भक्तों को नबी बनाकर भेजता है और उन्हीं भक्तों की कमाई से चमत्कार करवाता रहता है। जब उनकी कमाई खत्म हो जाती है उनको मरने के लिए छोड़ देता है जैसे ईसा जी की मृत्यु हुई।
लेकिन परमेश्वर भक्ति दृढ़ रखने के लिए 3 दिन बाद ईसा जी के रूप में प्रकट हुए। ताकि जब भक्ति युग आए तो सब सतभक्ति करें और साधक पूर्ण मोक्ष को प्राप्त करें।
#KabirIsGod
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( #Muktibodh_part146 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part147
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 283-284
‘‘ऋषि विवेकानन्द जी से ज्ञान चर्चा’’
स्वामी रामानन्द जी का एक शिष्य ऋषि विवेकानन्द जी बहुत ही अच्छे प्रवचन कर्त्ता रूप में प्रसिद्ध था। ऋषि विवेकानन्द जी को काशी शहर के एक क्षेत्र का उपदेशक नियुक्त किया हुआ था। उस क्षेत्र के व्यक्ति ऋषि विवेकानन्द जी के धारा प्रवाह प्रवचनों को सुनकर उनकी प्रशंसा किये बिना नहीं रहते थे। उसकी कालोनी में बहुत प्रतिष्ठा बनी थी। प्रतिदिन की तरह
ऋषि विवेकानन्द जी विष्णु पुराण से कथा सुना रहे थे। कह रहे थे, भ��वान विष्णु सर्वेश्वर हैं, अविनाशी, अजन्मा हैं। सर्व सृष्टि रचनहार तथा पालन हार हैं। इनके कोई जन्मदाता माता-पिता नहीं है। ये स्वयंभू हैं। ये ही त्रेतायुग में अयोध्या के राजा दशरथ जी के घर माता कौशल्या देवी की पवित्र कोख से उत्पन्न हुए थे तथा श्री रामचन्द्र नाम से प्रसिद्ध हुए। समुद्र पर सेतु बनाया, जल पर पत्थर तैराए। लंकापति रावण का वध किया। श्री विष्णु भगवान ही ने
द्वापर युग में श्री कृष्णचन्द्र भगवान का अवतार धार कर वासुदेव जी के रूप में माता देवकी के गर्भ से जन्म लिया तथा कंस, केशि,शिशुपाल, जरासंध आदि दुष्टों का संहार किया। पाँच वर्षीय बालक कबीर देव जी भी उस ऋषि विवेकानन्द जी का प्रवचन सुन रहे थे तथा सैंकड़ों की संख्या में अन्य श्रोता गण भी उपस्थित थे। ऋषि विवेकानन्द जी ने अपने प्रवचनों को विराम दिया तथा उपस्थित श्रोताओं से कहा यदि किसी को कोई प्रश्न करना है तो वह निःसंकोच अपनी शंका का
समाधान करा सकता है।
बालक कबीर परमेश्वर खड़े हुए तथा ऋषि विवेकानन्द जी से करबद्ध होकर प्रार्थना कि हे ऋषि जी! आपने भगवान विष्णु जी के विषय में बताया कि ये अजन्मा हैं, अविनाशी है। इनके
कोई माता-पिता नहीं हैं। एक दिन एक ब्राह्मण श्री शिव पुराण के रूद्र संहिता अध्याय 6,7 को पढ़ कर श्रोताओं को सुना रहे थे, यह दास भी उस सत्संग में उपस्थित था। शिव पुराण में लिखा
है कि निराकार परमात्मा आकार में आया वह सदाशिव, काल रूपी ब्रह्म कहलाया। उसने अपने अन्दर से एक स्त्री प्रकट की जो प्रकृति देवी, अष्टांगी, त्रिदेव जननी, शिवा आदि नामों से जानी जाती है। काल रूपी ब्रह्म ने एक काशी नामक सुन्दर स्थान बनाया वहाँ दोनों शिव तथा शिवा अर्थात् काल रूपी ब्रह्म तथा दुर्गा पति-पत्नी रूप में निवास करने लगे। कुछ समय पश्चात् दोनों के सम्भोग से एक लड़का उत्पन्न हुआ। उसका नाम विष्णु रखा। इसी प्रकार दोनों के रमण करने से एक पुत्र उत्पन्न हुआ उसका नाम ब्रह्मा रखा तथा कमल के फूल पर डाल कर अचेत
कर दिया। फिर अध्याय 9 के अन्त में लिखा है कि ‘‘ब्रह्मा रजगुण है, विष्णु सतगुण है तथा शंकर तमगुण है परन्तु सदा शिव इनसे भिन्न है वह गुणातीत है। यहाँ पर सदाशिव के अतिरिक्त
तीन देव श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु तथा श्री शिवजी भी है। इससे सिद्ध हुआ कि इन त्रिदेवों की जननी दुर्गा अर्थात् प्रकृति देवी है तथा पिता काल ब्रह्म है। इन तीनों प्रभुओं विष्णु आदि का जन्म हुआ है इनके माता-पिता भी है।
एक दिन मैं��े एक ब्राह्मण द्वारा श्री देवी पुराण के तीसरे स्कंद में अध्याय 4-5 में सुना था कि जिसमें भगवान विष्णु ने कहा है ‘‘इन प्रकृति देवी अर्थात् दुर्गा को मैंने पहले भी देखा था मुझे अपने बचपन की याद आई है। मैं एक वट वृक्ष के नीचे पालने में लेटा हुआ था। यह मुझे पालने में झूला रही थी। उस समय में बालक रूप में था। प्रकृति देवी के निकट जाकर तीनों देव
(त्रिदेव) श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु तथा श्री शिवजी करबद्ध होकर खड़े हो गए। भगवान विष्णु ने देवी की स्तूति की ‘‘तुम शुद्ध स्वरूपा हो, यह संसार तुम ही से उद्भाषित हो रहा है। हमारा अविर्भाव अर्थात् जन्म तथा तिरोभाव अर्थात् मृत्यु होती है। हम अविनाशी नहीं है। तुम अविनाशी हो। प्रकृति देवी हो। भगवान शंकर बोले, हे माता! यदि आप ही के गर्भ से भगवान विष्णु तथा
भगवान ब्रह्मा का जन्म हुआ है तो क्या मैं तमोगुणी लीला करने वाला शंकर आपका पुत्र नहीं हुआ? अर्थात् मुझे भी जन्म देने वाली तुम ही हो। हे ऋषि विवेकानन्द जी! आप कह रहे हो कि पुराणों में लिखा है कि भगवान विष्णु के तो कोई माता-पिता नहीं। ये अविनाशी हैं। इन पुराणों का ज्ञान दाता एक श्री ब्रह्मा जी हैं तथा लेखक भी एक ही श्री व्यास जी हैं। जबकि पुराणों में तो भगवान विष्णु नाशवान लिखे हैं। इनके माता-पिता का नाम भी लिखा है। क्यों जनता को भ्रमित कर रहे हो।
कबीर, बेद पढे पर भेद ना जाने, बाचें पुराण अठारा।
जड़ को अंधा पान खिलावें, भूले सिर्जन हारा।।
कबीर परमेश्वर जी के मुख कमल से उपरोक्त पुराणों में लिखा उल्लेख सुनकर ऋषि विवेकानन्द अति क्रोधित हो गया तथा उपस्थित श्रोताओं से बोले यह बालक झूठ बोल रहा है।
पुराणों में ऐसा नहीं लिखा है। उपस्थित श्रोताओं ने भी सहमति व्यक्त की कि हे ऋषि जी आप सत्य कह रहे हो यह बालक क्या जाने पुराणों के गूढ़ रहस्य को? आप विद्वान पुरूष परम विवेकशील हो। आप इस बच्चे की बातों पर ध्यान न दो। ऋषि विवेकानन्द जी ने पुराणों को उसी समय देखा जिसमें सर्व विवरण विद्यमान था। परन्तु मान हानि के भय से अपने झूठे
व्यक्तव्य पर ही दृढ़ रहते हुए कहा हे बालक तेरा क्या नाम है? तू किस जाति में जन्मा है। तूने तिलक लगाया है। क्या तूने कोई गुरु धारण किया है? शीघ्र बताइए।
कबीर परमेश्वर जी ने बोलने से पहले ही श्रोता बोले हे ऋषि जी! इसका नाम कबीर है, यह नीरू जुलाहे का पुत्र है। कबीर जी बोले ऋषि जी मेरा यही परिचय है जो श्रोताओं ने आपको
बताया। मैंने गुरु धारण कर रखा है। ऋषि विवेकानन्द जी ने पूछा क्या नाम है तेरे गुरुदेव का?
परमेश्वर कबीर जी ने कहा मेरे पूज्य गुरुदेव वही हैं जो आपके गुरुदेव हैं। उनका नाम है पंडित रामानन्द स्वामी। जुलाहे के बालक कबीर परमेश्वर जी के मुख कमल से स्वामी रामानन्द जी को अपना गुरु जी बताने से ऋषि विवेकानन्द जी ने ज्ञान चर्चा का ��िषय बदल कर परमेश्वर कबीर जी को बहुत बुरा-भला कहा तथा श्रोताओं को भड़काने व वास्तविक विषय भूलाने के
उद्देश्य से कहा देखो रे भाईयो! यह कितना झूठा बालक है। यह मेरे पूज्य गुरुदेव श्री 1008 स्वामी रामानन्द जी को अपना गुरु जी कह रहा है। मेरे गुरु जी तो इन अछूतों के दर्शन भी नहीं
करते। शुद्रों का अंग भी नहीं छूते। अभी जाता हूँ गुरु जी को बताता हूँ। भाई श्रोताओ! आप सर्व कल स्वामी जी के आश्रम पर आना सुबह-2। इस झूठे की कितनी पिटाई स्वामी रामानन्द जी करेग��ं? इसने हमारे गुरुदेव का नाम मिट्टी में मिलाया है। सर्व श्रोता बोले यह बालक मूर्ख, झूठा, गंवार है आप विद्वान हो।
कबीर जी ने कहाः-
निरंजन धन तेरा दरबार-निरंजन धन तेरा दरबार।
जहां पर तनिक ना न्याय विचार। (टेक)
वैश्या ओढे मल-मल खासा गल मोतियों का हार।
पतिव्रता को मिले न खादी सूखा निरस आहार।।
पाखण्डी की पूजा जग में सन्त को कहे लबार।
अज्ञानी को परम विवेकी, ज्ञानी को मूढ गंवार।।
कह कबीर सुनो भाई साधो सब उल्टा व्यवहार।
सच्चों को तो झूठ बतावें, इन झूठों का एतबार।।
बन्दी छोड़ कबीर परमेश्वर जी अपने घर चले गए। वह ऋषि विवेकानन्द अपने गुरु रामानन्द स्वामी जी के आश्रम में गया तथा सर्व घटना की जानकारी बताई। हे स्वामी जी! एक छोटी जाति का जुलाहे का लड़का कबीर अपने आप को बड़ा विद्वान् सिद्ध करने के लिए भगवान् विष्णु जी को नाशवान बताता है। हे ऋषि जी! उसने तो हम ब्रह्मणों का घर से निकलना भी दूभर कर दिया है। हमारी नाक काट डाली अर्थात् हमें महा शर्मिन्दा (लज्जित) होना पड़ रहा
है। उसने कल भरी सभा में कहा है कि पंडि़त रामानन्द स्वामी मेरे गुरु जी हैं। मैंने उनसे दिक्षा ले रखी है। उस कबीर ने तिलक भी लगा रखा था जैसा हम वैष्णव सन्त लगाते है। अपने शिष्य
विवेकानन्द की बात सुनकर स्वामी रामानन्द जी बहुत क्रोधित होकर बोले हे विवेकानन्द कल सुबह उसे मेरे सामने उपस्थित करो। देखना सर्व के समक्ष उसकी झूठ का पर्दाफाश करूँगा।
क्रमशः__________
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
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Live : Nepal 1 TV 4-7-2023 || Episode: 1258 || Sant Rampal Ji Maharaj Sa...
#MustListenSatsang
कबीर साहिब ने बताया है कि परमेश्वर स्वयं अपने निज लोक सतलोक से आकर पृथ्वी पर प्रकट होते हैं और अपने मुख कमल से अपनी अमृतमय वाणी बोलकर सुनाते हैं। जो पांचवा वेद, सूक्ष्म वेद है।
चारों युग में मेरे संत पुकारे, कुक कहा हम हेल रे।
हीरे मोती, माणिक बरसे, ये जग ��ुकता ढेल रे।।
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YouTube पर "हर्षोउल्लास के साथ मनाया गया कबीर जी का प्रकट दिवस | Satlok Ashram Bhiwani | Sant Rampal Ji Maharaj" देखें
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♦️कबीर परमेश्वर चारों युगों में आते हैं।♦️
कलियुग में परमात्मा अपने वास्तविक कबीर नाम से आये तथा नि:संतान दंपती नीरु नीमा को कमल के फूल पर शिशु रुप में मिले।
पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी चारों युगों में धरती पर प्रकट होते हैं। सतयुग में "सतसुकृत" नाम से, त्रेतायुग में "मुनिन्द्र" नाम से, द्वापरयुग में "करुणामय" नाम से तथा कलयुग में "कबीर" नाम से आते हैं।
सतयुग में सतसुकृत नाम से कबीर परमेश्वर प्रकट हुए थे। उस समय गरुड़ जी, ब्रह्मा जी, विष्णु जी तथा शिव जी को सत्य ज्ञान समझाया। श्री मनु महर्षि को ��ी ज्ञान समझाना चाहा लेकिन मनु जी ने परमात्मा के ज्ञान को सत्य न जानकर ब्रह्मा जी से सुने सुनाए वेद ज्ञान पर आधारित होकर तथा अपने द्वारा निकाले गए वेदों के निष्कर्ष पर ही आरुढ रहे। इसके विपरित परमात्मा का उपहास करने लगे कि आप तो सब ज्ञान विपरीत कह रहे हो। इसलिए परमात्मा का नाम "वामदेव" (उल्टा ज्ञान देने वाला) निकाल दिया। यजुर्वेद अध्याय 12 मंत्र 4 में विवरण है कि यजुर्वेद के वास्तविक ज्ञान को वामदेव ऋषि ने सही जाना तथा अन्य को भी समझाया।
त्रेतायुग में कबीर परमेश्वर "मुनिन्दर ऋषि" के रूप में आएं थे। उस समय नल-नील तथा हनुमानजी को अपना सत्य ज्ञान बताकर अपनी शरण में लिया और अपने आशीर्वाद मात्र से नल-नील के शारीरिक तथा मानसिक रोग को ठीक किया था। नल नील को कबीर परमेश्वर ने आशीर्वाद दिया था कि आपके हाथ से कोई भी वस्तु जल में नहीं डुबेगी। उसी आशीर्वाद के कारण समुद्र पर पुल (रामसेतु) बना था। इसका प्रमाण धर्मदास जी की वाणी है
रहे नल नील जतन कर हार, तब सतगुरु से करी पुकार।
जा सत रेखा लिखी अपार, सिंधु पर शिला तिराने वाले।
धन धन सतगुरु सत कबीर, भक्त की पीर मिटाने वाले।।
द्वापर युग में कबीर परमेश्वर "करुणामय" नाम से प्रकट हुए थे। उस समय वाल्मीकि जाति में उत्पन्न भक्त "सुपच सुदर्शन" को अपनी शरण में लिया था। कबीर परमेश्वर के आशीर्वाद से इसी सुपच सुदर्शन जी ने पांडवों की यज्ञ सफल की थी। जो न तो श्री कृष्ण जी के भोजन करने से सफल हुई थी, न तैंतीस करोड़ देवताओं, न अठासी हजार ऋषियों, न बारह करोड़ ब्राह्मणों ,न नौ नाथ- चौरासी सिद्धों के भोजन खाने से सफल हुई थी। इसी युग में रानी इन्द्रमती को भी सत्य ज्ञान देकर शरण में लिया।
कलयुग में कबीर परमेश्वर आदरणीय गरीब दास जी, धर्मदास जी, नानक देव जी, दादू जी, मलूक दास जी, घीसा दास जी आदि को मिले और अपना तत्वज्ञान बताया।
हम सुल्तानी, नानक तारे, दादू को उपदेश दिया।
जाति जुलाहा भेद ना पाया, काशी माहे कबीर हुआ।।
इसी कलयुग में सिकंदर लोधी, रविदास जी, अब्राहम सुल्तान आदि को भी मिले।
कबीर परमात्मा हर युग में आते हैं ऋग्वेद मण्डल नं 9 सूक्त 96 मंत्र 18 कविर्देव शिशु रुप धारण कर लेता है लीला करता हुआ बड़ा होता है कविताओं द्वारा तत्वज्ञान वर्णन करने के कारण कवि की पदवी प्राप्त करता है अर्थात् उसे कवि कहने लग जाते हैं वास्तव में वह पूर्ण परमात्मा कविर (कबीर प्रभु ) ही है
शिशु रुप में कबीर परमेश्वर के परवरिश की लीला कुंवारी गाय के दूध से होती है। ऋग्वेद मंडल 9 सुक्त 1 मंत्र 9, ऋग्वेद मंडल 9 सुक्त 96 मंत्र 17-18.
कबीर परमेश्वर हम सभी जीव आत्माओं के जनक हैं। इन्हीं की सतभक्ति करने से जीव को सर्व सुख, शांति तथा पूर्ण मोक्ष प्राप्त होता है। वर्तमान में कबीर परमेश्वर के अवतार संत रामपाल जी महाराज जी ही "यथार्थ कबीर पंथ" चला रहे हैं । जिनके सत्संगों का आधार सभी धर्मों के पवित्र सदग्रन्थ हैं। कबीर वाणियों में छुपे हुए गुढ़ रहस्यों को संत रामपाल जी महाराज जी ने सरल भाषा में समझाया है।
#SantRampalJiMaharaj
#GodKabir_Appears_In_4_Yugas
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♦️कबीर परमेश्वर चारों युगों में आते हैं।♦️
कलियुग में परमात्मा अपने वास्तविक कबीर नाम से आये तथा नि:संतान दंपती नीरु नीमा को कमल के फूल पर शिशु रुप में मिले।
पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी चारों युगों में धरती पर प्रकट होते हैं। सतयुग में "सतसुकृत" नाम से, त्रेतायुग में "मुनिन्द्र" नाम से, द्वापरयुग में "करुणामय" नाम से तथा कलयुग में "कबीर" नाम से आते हैं।
सतयुग में सतसुकृत नाम से कबीर परमेश्वर प्रकट हुए थे। उस समय गरुड़ जी, ब्रह्मा जी, विष्णु जी तथा शिव जी को सत्य ज्ञान समझाया। श्री मनु महर्षि को भी ज्ञान समझाना चाहा लेकिन मनु जी ने परमात्मा के ज्ञान को सत्य न जानकर ब्रह्मा जी से सुने सुनाए वेद ज्ञान पर आधारित होकर तथा अपने द्वारा निकाले गए वेदों के निष्कर्ष पर ही आरुढ रहे। इसके विपरित परमात्मा का उपहास करने लगे कि आप तो सब ज्ञान विपरीत कह रहे हो। इसलिए परमात्मा का नाम "वामदेव" (उल्टा ज्ञान देने वाला) निकाल दिया। यजुर्वेद अध्याय 12 मंत्र 4 में विवरण है कि यजुर्वेद के वास्तविक ज्ञान को वामदेव ऋषि ने सही जाना तथा अन्य को भी समझाया।
त्रेतायुग में कबीर परमेश्वर "मुनिन्दर ऋषि" के रूप में आएं थे। उस समय नल-नील तथा हनुमानजी को अपना सत्य ज्ञान बताकर अपनी शरण में लिया और अपने आशीर्वाद मात्र से नल-नील के शारीरिक तथा मानसिक रोग को ठीक किया था। नल नील को कबीर परमेश्वर ने आशीर्वाद दिया था कि आपके हाथ से कोई भी वस्तु जल में नहीं डुबेगी। उसी आशीर्वाद के कारण समुद्र पर पुल (रामसेतु) बना था। इसका प्रमाण धर्मदास जी की वाणी है
रहे नल नील जतन कर हार, तब सतगुरु से करी पुकार।
जा सत रेखा लिखी अपार, सिंधु पर शिला तिराने वाले।
धन धन सतगुरु सत कबीर, भक्त की पीर मिटाने वाले।।
द्वापर युग में कबीर परमेश्वर "करुणामय" नाम से प्रकट हुए थे। उस समय वाल्मीकि जाति में उत्पन्न भक्त "सुपच सुदर्शन" को अपनी शरण में लिया था। कबीर परमेश्वर के आशीर्वाद से इसी सुपच सुदर्शन जी ने पांडवों की यज्ञ सफल की थी। जो न तो श्री कृष्ण जी के भोजन करने से सफल हुई थी, न तैंतीस करोड़ देवताओं, न अठासी हजार ऋषियों, न बारह करोड़ ब्राह्मणों ,न नौ नाथ- चौरासी सिद्धों के भोजन खाने से सफल हुई थी। इसी युग में रानी इन्द्रमती को भी सत्य ज्ञान देकर शरण में लिया।
कलयुग में कबीर परमेश्वर आदरणीय गरीब दास जी, धर्मदास जी, नानक देव जी, दादू जी, मलूक दास जी, घीसा दास जी आदि को मिले और अपना तत्वज्ञान बताया।
हम सुल्तानी, नानक तारे, दादू को उपदेश दिया।
जाति जुलाहा भेद ना पाया, काशी माहे कबीर हुआ।।
इसी कलयुग में सिकंदर लोधी, रविदास जी, अब्राहम सुल्तान आदि को भी मिले।
कबीर परमात्मा हर युग में आते हैं ऋग्वेद मण्डल नं 9 सूक्त 96 मंत्र 18 कविर्देव शिशु रुप धारण कर लेता है लीला करता हुआ बड़ा होता है कविताओं द्वारा तत्वज्ञान वर्णन करने के कारण कवि की पदवी प्राप्त करता है अर्थात् उसे कवि कहने लग जाते हैं वास्तव में वह पूर्ण परमात्मा कविर (कबीर प्रभु ) ही है
शिशु रुप में कबीर परमेश्वर के परवरिश की लीला कुंवारी गाय के दूध से होती है। ऋग्वेद मंडल 9 सुक्त 1 मंत्र 9, ऋग्वेद मंडल 9 सुक्त 96 मंत्र 17-18.
कबीर परमेश्वर हम सभी जीव आत्माओं के जनक हैं। इन्हीं की सतभक्ति करने से जीव को सर्व सुख, शांति तथा पूर्ण मोक्ष प्राप्त होता है। वर्तमान में कबीर परमेश्वर के अवतार संत रामपाल जी महाराज जी ही "यथार्थ कबीर पंथ" चला रहे हैं । जिनके सत्संगों का आधार सभी धर्मों के पवित्र सदग्रन्थ हैं। कबीर वाणियों में छुपे हुए गुढ़ रहस्यों को संत रामपाल जी महाराज जी ने सरल भाषा में समझाया है।
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Free tree speak काव्यस्यात्मा 1382.
लफ़्ज़ ने लफ़्ज़ों पर खुलेआम लिखा था -कामिनी मोहन।
1.
युग बदले दुनिया बदले नई सुबह का भान होता है,
नए विचार नए व्यवहार सब नया तान होता है।
आवाज़ है कविता की कुछ और नहीं समझ लेना
अँधेरे को कविता सुनाऊँ नया निर्माण होता है।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय।
2.
जवाब मिले न मिले सवाल पूछ लेते हैं,
हाल-ए-दिल अर्ज़ कर हाल पूछ लेते हैं।
शहर-ए-दिल के महबस में हूँ क्या कहूँ,
सब चुप हो तो मौसम का हाल पूछ लेते हैं।
-© कामिनी मोहन पाण्डेय
शहर-ए-दिल : दिल की दुनिया
महबस : क़ैद
3.
ज़िस्म के रिश्ते ख़ुश-रंग होते हैं,
आख़िरी साँस तक ही संग होते हैं
बेवफ़ा ज़िंदगी का ऐतबार न कीजे
रूह के रिश्ते ही शफ़क़-रंग होते हैं।
-© कामिनी मोहन पाण्डेय
4.
हर आती-जाती साँस संग चलने वाला,
हर दिल को अलविदा कह चलने वाला।
रिश्तों की निगाह क़र्ज़ बन पीछा न करें
मैं अपना कफ़न ओढ़ कर चलने वाला।
-© कामिनी मोहन पाण्डेय
5.
कभी कोई किसी को पार उतार न सका
औरों के रस्ते के कांटों को बुहार न सका
फिर क्यों उठती हैं उँगलियाँ हमारी तरफ़
माँझी क्या करें डूबी नय्या उभार न सका।
-© कामिनी मोहन पाण्डेय
6.
जिसने मेरे सिर पर पहला हाथ फेरा था,
मेरी हर मुस्कान पर आँचल का घेरा था।
दुआ मिलीं, गगन पर सूरज के आने से पहले
वो माँ थीं मैं जिसकी आँख का सवेरा था।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय
7.
चार किताबें पढ सब बदलते जाते हैं,
न जाने कैसी तरक़्क़ी के पीछे जाते हैं।
नीति बदली, नियम बदला लेकिन,
हम सिर्फ़ ज़िंदगी की ओर देखे जाते हैं।
-© कामिनी मोहन पाण्डेय
8.
रंगों ने हम पर भरपूर भरम ढाया,
बेरंग करने को कुदरत ने करम ढाया।
बिन कहे ही बदल जाते हैं जीवन के सब रंग
ज़ेहन पर गुज़रते लम्हों ने सि��म ढाया।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय
9.
सत्य-प्रेम की शक्ति क्षणिक न थी हम दोनों की
बेबसी लाचारगी एक-सी थी हम दोनों की
इधर से उधर गए एक ठौर हम पकड़ न सके
देखते ही देखते राह बदल गई हम दोनों की
-© कामिनी मोहन पाण्डेय
10.
गरम हवाए बताएँ, कब तक यूँ चलेगी,
धुएँ की धूल आँखों पर कब तक यूँ चढ़ेगी।
मेरे सामने, क्या कुछ न, आजकल हो रहा है,
मुँह फेर कर उजाला अंधेरे में सो रहा है।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय।
11.
कॉपी के कवर पर तेरा नाम लिखा था,
आख़िरी पन्ने पर पैगाम लिखा था।
ज़िंदगी के पन्नों को पलटकर पढ़ा तो जाना
लफ़्ज़ ने लफ़्ज़ों पर खुलेआम लिखा था।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय।
12.
ज़िंदगी रचनात्मकता के प्रवाह की कहानी है
हमने जो लिखा-मिटाया स्मृति की कहानी है।
फिर भी भावना का संपादन यहाँ है अधूरा यारो
ज़िंदगी कविता के संस्मृति की कहानी है।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय।
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#5_प्रकार_के_मुक्ति_स्थान...
(पांचवे वेद अर्थात् #सुक्ष्मवेद से साभार...)
(1) देवी-देवताओं,पितरों,भूतों की साधना से इन्हीं को प्राप्त होता हैं परंतु यह सबसे घटिया साधना पद (मुक्ति स्थान) प्राप्ति हैं।
(2) दूसरी गति या पद (मुक्ति स्थान) प्राप्ति तीनों गुणों (रजगुण-ब्रह्मा, सतगुण-विष्णु, तमगुण-शिव) तथा अन्य देवी-देवताओं की पूजा हैं। यह पद (मुक्ति स्थान) प्राप्ति पूर्ण नहीं हैं अर्थात् घटिया है।
(3) तीसरी गति अर्थात् पद (मुक्ति स्थान) प्राप्ति #ब्रह्म साधना हैं जो वेदों व गीता जी के अनुसार करनी चाहिए। सर्व देवी-देवताओं तथा ब्रह्मा, विष्णु, महेश की अर्थात् तीनों गुणों की साधना त्याग कर एक ॐ (ओंकार) नाम का जाप गुरु धारण करके करते हुए ब्रह्म लोक (महास्वर्ग) में साधक चला जाता हैं जो हजारों युगों तक वहाँ ब्रह्म लोक में आनन्द मनाता हैं फिर पुण्यों के समाप्त होने पर मृतलोक में चौरासी लाख जूनियों में चक्र लगाता रहता हैं। यह भी गति-पद (मुक्ति) अच्छी नहीं हैं।
(4) चौथी गति यानि मुक्ति स्थान :- (गति-पद) है #परब्रह्म (अक्षर पुरुष) की भक्ति से चौथी गति (पद यानि मुक्ति स्थान) को प्राप्त होता हैं लेकिन परब्रह्म की साधना का ज्ञान वेदों व गीता जी में नहीं हैं। इनमें केवल ब्रह्म (क्षर पुरुष) तक की भक्ति तथा इसी की प्राप्ति का ज्ञान हैं।
(5) पाँचवीं गति यानि मुक्ति स्थान :- #पूर्ण_परमात्मा का ज्ञान होने पर उसी परमात्मा प्राप्ति की साधना करते हैं।
इसी प्रकार यह आत्मा #तत्वदर्शी_संत से उपदेश मंत्र प्राप्त करके सत्य भक्ति की कमाई करके उसके आधार से #सतलोक चली जाती है।
सतलोक वह स्थान है जहाँ प्राणी मानव रूप में आकार में रहता हैं। तेज पुंज का शरीर हो जाता हैं। इतना नूरी शरीर बन जाता हैं मानो 16 सूर्यों जितनी रोशनी हो। यहाँ पर गए प्राणी (आत्मा) कभी नहीं मरते। सतलोक में पुरूष को हंस तथा स्त्री को हंसनी कहते हैं।
जो बूझे सोई बावरा, क्या है उम्र हमारी।
असंख युग प्रलय गई, तब का ब्रह्मचारी।।टेक।।
कोटि निरंजन हो गए, परलोक सिधारी।
हम तो सदा मह��ूब हैं, स्वयं ब्रह्मचारी।।
अरबों तो ब्रह्मा गए, उन्चास कोटि कन्हैया।
सात कोटि शम्भू गए, मोर एक नहीं पलैया।।
कोटिन नारद हो गए, मुहम्मद से चारी।
देवतन की गिनती नहीं है,क्या सृष्टि विचारी।।
नहीं बुढ़ा नहीं बालक, नाहीं कोई भाट भिखारी।
कहैं #कबीर सुन हो गोरख, यह है उम्र हमारी।।
और अधिक जानकारी हेतु सपरिवार देखिए
"Sant Rampal Ji Maharaj" YouTube channel पर "संपूर्ण सृष्टि रचना" का स्पेशल सत्संग कार्यक्रम
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Website Design Company in Lucknow: Best Affordable Solutions Near You!
आज के डिजिटल युग में, एक अच्छी वेबसाइट होना किसी भी व्यवसाय की नींव के समान है। अगर आप Lucknow में एक ऐसी कंपनी की तलाश कर रहे हैं जो आपके व्यवसाय के लिए प्रोफेशनल और बजट-फ्रेंडली वेबसाइट डिजाइन कर सके, तो WebVoom एक बेहतरीन विकल्प हो सकता है। आइए जानते हैं कि क्यों WebVoom को Lucknow की सबसे बेहतरीन Website Design Company in lucknow माना जाता है और यह कैसे आपके व्यवसाय को नई ऊंचाइयों पर ले जा सकता है।
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WebVoom को Lucknow की Best Website Design Company in lucknow के रूप में जाना जाता है क्योंकि यहाँ पर नवीनतम ट्रेंड्स और टूल्स का उपयोग किया जाता है। आपके व्यवसाय की आवश्यकताओं को समझकर एक कस्टम वेबसाइट डिज़ाइन की जाती है, जो पूरी तरह से आपके ब्रांड की छवि को प्रतिबिंबित करती है।
Customized Design: आपकी वेबसाइट का हर पेज ऐसा डिज़ाइन किया जाता है कि वह आपके बिज़नेस की यूनीकनेस को दर्शाए।
SEO Optimization: वेबसाइट डिज़ाइन के साथ SEO-friendly स्ट्रक्चर दिया जाता है, ताकि आपकी साइट गूगल जैसे सर्च इंजन्स पर आसानी से रैंक कर सके।
Affordable Pricing: बिना क्वालिटी से समझौता किए, WebVoom आपको सस्ते दामों में उच्च गुणवत्ता वाली सेवाएं प्रदान करता है।
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WebVoom आपके क्षेत्र की आवश्यकताओं को समझते हुए, आपके व्यवसाय के लिए एक लोकल टच के साथ वेबसाइट तैयार करता है।
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4. Cheap Website Design Company in Lucknow
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WebVoom Services Overview
WebVoom केवल वेबसाइट डिज़ाइन में ही नहीं, बल्कि अन्य डिजिटल सेवाओं में भी विशे��ज्ञता रखता है। यहाँ एक नज़र डालते हैं WebVoom की कुछ प्रमुख सेवाओं पर:
1. SEO Services
WebVoom आपको वेबसाइट डिज़ाइन के साथ-साथ SEO Services भी प्रदान करता है ताकि आपकी वेबसाइट सर्च इंजन में बेहतर प्रदर्शन कर सके। SEO के ज़रिए आपकी वेबसाइट पर ट्रैफिक बढ़ाया जाता है और आपके बिज़नेस को सही ऑडियंस के सामने प्रस्तुत किया जाता है। SEO से मिलने वाले फायदे:
आपकी वेबसाइट की Google रैंकिंग में सुधार।
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बैकलिंकिंग और Keyword Research जैसी सेवाएं।
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2. Digital Marketing Services
वेबसाइट डिज़ाइन के साथ-साथ WebVoom आपको Digital Marketing की सेवाएं भी देता है। ये सेवाएं आपके व्यवसाय को ऑनलाइन ग्रोथ देने के लिए पूरी तरह से डिज़ाइन की गई हैं। Digital Marketing में शामिल हैं:
Social Media Marketing
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[10/24, 6:07 PM] +91 88177 68927: #खुदा_का_नाम_कबीर
कबीर परमात्मा के दर्शन गरुड़ जी को हुए थे, कबीर सागर में 11वां अध्याय ‘‘गरूड़ बोध‘‘ पृष्ठ 65 (625) पर प्रमाण है कि परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को बताया कि मैंने विष्णु जी के वाहन पक्षीराज गरूड़ जी को उपदेश दिया, उनको सृष्टि रचना सुनाई।
परमेश्वर कबीर जी ने गरुड़ जी को भी सत्य ज्ञान का उपदेश देकर शरण में लिया था।
Baakhabar Sant Rampal Ji
[10/24, 6:07 PM] +91 88177 68927: #खुदा_का_नाम_कबीर
सर्व सृष्टि रचनहार कविर्देव (कबीर साहेब) पूर्ण ईश्वरीय शक्तियुक्त पूर्णब्रह्म के समान मनोहर जो सब ओर से न मारा जाने वाला अर्थात् अविनाशी अपने उपासक भक्त के पाप कर्मों को नष्ट करके पवित्र करने वाला स्वयं कबीर ही है। – संख्या न. 920 सामवेद के उतार्चिक अध्याय न. 5 के खण्ड न. 4 का श्लोक न. 2
Baakhabar Sant Rampal Ji
[10/24, 6:07 PM] +91 88177 68927: #खुदा_का_नाम_कबीर
त्रेता युग में कबीर साहेब जी ने रावण की पत्नी मंदोदरी और भाई विभीषण का कल्याण किया
त्रेता युग में मुनीन्द्र ऋषि नाम से आए परमात्मा कबीर जी ने रावण की पत्नी मंदोदरी और उनके भाई विभीषण को मोक्ष दायक ज्ञान देकर मुक्ति का मार्ग दिखाया।
Baakhabar Sant Rampal Ji
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart105 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart106
संक्षिप्त सृष्टि रचना
सबसे पहले सतपुरुष अकेले थे, कोई रचना नहीं थी। सर्वप्रथम परमेश्वर जी ने चार अविनाशी लोक की रचना वचन (शब्द) से की।
1. अनामी लोक जिसको अकह लोक भी कहते हैं।
2. अगम लोक
3. अलख लोक
4. सतलोक ।
फिर परमात्मा ने चारों लोकों में चार रुप धारण किए। चार उपमात्मक नामों से प्रत्येक लोक में प्रसिद्ध हुए।
1. अनामी लोक में अनामी पुरुष या अकह पुरुष।
2. अगम लोक में अगम पुरुष।
3. अलख लोक में अलख पुरुष।
4. सतलोक में सतपुरुष उपमात्मक नाम रखे।
फिर चारों लोकों में परमात्मा ने वचन से ही एक-एक सिंहासन (तख्त) बनाया। प्रत्येक सिंहासन पर सम्राट के समान मुकुट आदि धारण करके विराजमान हो गए। फिर सतलोक में परमेश्वर ने अन्य रचना की। एक शब्द (वचन) से 16 द्वीपों तथा एक मानसरोवर की रचना की। पुनः 16 वचन से 16 पुत्रों की उत्पत्ति की। उनमें मुख्य भूमिका अचिन्त, तेज, सहजदास, जोगजीत, कूर्म, इच्छा, धैर्य और ज्ञानी की रही है।
अपने पुत्रों को सबक सिखाने के लिए कि समर्थ के बिना कोई कार्य सफल नहीं हो सकता। जिसका काम उसी को साजे और करे तो मूर्ख बाजे। सतपुरुष ने अपने पुत्र अचिन्त से कहा कि आप अन्य रचना सतलोक में करें। मैंने कुछ शक्ति तेरे को प्रदान कर दी है। अचिन्त ने अपने वचन से अक्षर पुरुष की उत्पत्ति की। अक्षर पुरुष युवा उत्पन्न हुआ। मानसरोवर में स्नान करने गया, उसी जल पर तैरने लगा। कुछ देर में निंद्रा आ गई। सरोवर में गहरा नीचे चला गया। (सतलोक में अमर शरीर है, वहाँ पर शरीर श्वांसों पर निर्भर नहीं है।) बहुत समय तक अक्षर पुरूष जल से बाहर नहीं आया। अचिन्त आगे सृष्टि नहीं कर सका, तब सतपुरुष (परम अक्षर पुरुष) ने मानसरोवर पर जाकर कुछ जल अपनी चुल्लु (हाथ) में लिया। उसका एक विशाल अण्डा वचन से बनाया तथा एक आत्मा वचन से उत्पन्न करके अण्डे में प्रवेश की और अण्डे को जल में छोड़ दिया। जल में अण्डा नीचे जाने लगा तो उसकी गड़गड़ाहट के शोर से अक्षर पुरूष की निंद्रा भंग हो गई। अक्षर पुरुष ने क्रोध से देखा कि किसने मुझे जगा दिया। क्रोध उस अण्डे पर गिरा तो अण्डा फूट गया। उसमें से एक युवा तेजोमय व्यक्ति निकला। उसका नाम क्षर पुरुष रखा। (आगे चलकर यही काल कहलाया) सतपुरुष ने दोनों से कहा कि आप जल से बाहर आओ। अक्षर पुरुष तुम निंद्रा में थे, तेरे को नींद से उठाने के लिए यह सब किया है। अक्षर पुरुष और क्षर पुरुष से सतपुरुष ने कहा कि आप दोनों अचिंत के लोक में रहो।
कुछ समय के पश्चात् (क्षर पुरुष जिसे ज्योति निरंजन काल भी कहते हैं) ने मन में विचार किया कि हम तीन तो एक लोक में रह रहे हैं। मेरे अन्य भाई एक-एक द्वीप में रह रहे हैं। यह विचार कर उसने अलग द्वीप प्राप्त करने के लिए तप प्रारम्भ किया। इससे पहले सतपुरुष जी ने अपने पुत्र अचिन्त से कहा कि आप सृष्टि रचना नहीं कर सकते। मैंने तुम्हें यह शिक्षा देने के लिए ही आप से कहा कि अन्य रचना कर। परन्तु अचिन्त आप तो अक्षर पुरुष को भी नहीं उठा सके। अब आगे कोई भी यह कोशिश न करना। सर्व रचना मैं अपनी शब्द शक्ति से रखूँगा।
सतपुरुष जी ने सतलोक में असँख्यों लोक रचे तथा प्रत्येक में अपने वचन (शब्द) से अन्य आत्माओं की उत्पत्ति की। ये सब लोक सतपुरुष के सिंहासन के इर्द-गिर्द थे। इनमें केवल नर हंस (सतलोक में मनुष्यों को हंस कहते हैं) ही रहते हैं और उनको परमेश्वर ने शक्ति दे रखी है कि वे अपना परिवार (नर हंस) वचन से उत्पन्न कर सकते है। वे केवल दो पुत्र ही उत्पन्न कर सकते हैं।
क्षर पुरुष (ज्योति निरंजन) ने तप करना शुरु किया। उसने 70 युग तक तप किया। सत्पुरुष जी ने क्षर पुरुष से पूछा कि आप तप किसलिए कर रहे हो? क्षर पुरुष ने कहा कि यह स्थान मेरे लिए कम है। मुझे अलग स्थान चाहिए। परमेश्वर (सतपुरुष) जी ने उसे 70 युग के तप के प्रतिफल में 21 ब्रह्माण्ड दे दिए जो सतलोक के बाहरी क्षेत्र में थे जैसे 21 प्लॉट मिल गए हों। ज्योति निरंजन (क्षर पुरुष) ने विचार किया कि इन ब्रह्माण्डों में कुछ रचना भी होनी चहिए। उसके लिए, फिर 70 युग तक तप किया। फिर सतपुरुष जी ने पूछा कि अब क्या चाहता है? क्षर पुरुष ने कहा कि सृष्टि रचना की सामग्री देने की कृपा करें। सतपुरुष जी ने उसको पाँच तत्व (जल, पृथ्वी, अग्नि, वायु तथा आकाश) तथा तीन गुण (रजगुण, सतगुण तथा तमगुण) दे दिये तथा कहा कि इनसे अपनी रचना कर।
क्षर पुरूष ने तीसरी बार फिर तप प्रारम्भ किया। जब 64 (चौंसठ) युग तप करते हो गए तो सत्य पुरुष जी ने पूछा कि आप और क्या चाहते हैं? क्षर पुरूष (ज्योति निरंजन) ने कहा कि मुझे कुछ आत्मा दे दो। मेरा अकेले का दिल नहीं लग रहा।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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