Delhi हिंसा पर जारी है राजनीति, CM Kejriwal ने BJP पर साधा निशाना
Delhi हिंसा पर जारी है राजनीति, CM Kejriwal ने BJP पर साधा निशाना
दिल्ली हिंसा को एक टिपेने से ज्यादा बीत चुका है लेकिन इसको लेकर राजनीति खत्म होने का नाम नहीं ले रही, दि्लली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने अब इस हिंसा के लिए बीजेपी को ही जिम्मेदार ठहरा दिया है।
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अरुणा आसफ अली : 1942 की रानी झाँसी
आजाद भारत के असली सितारे-37
9 अगस्त 1942 को बम्बई के गोवालिया टैंक मैदान में तिरंगा फहराकर ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आन्दोलन की बिगुल बजाने वाली और देश के युवाओं में एक नया जोश भरने वाली अरुणा आसफ अली (16.7.1909- 29.7.1996) का जन्म बंगाली परिवार में हरियाणा (तत्कालीन पंजाब) के कालका नामक स्थान में हुआ था। अरुणा आसफ अली के बचपन का नाम 'अरुणा गांगुली' था। इनके पिता बंगाल के एक प्रतिष्ठित परिवार से थे। उनका नाम था डॉ. उपेन्द्रनाथ गांगुली। वे बंगाल से आकर तत्कालीन संयुक्त प्रांत में बस गये थे। अरुणा के सिर से पिता का साया बचपन में ही उठ गया था किन्तु उनकी माँ अम्बालिका देवी ने उनकी पढ़ाई-लिखाई की व्यवस्था में किसी तरह की कमी नहीं आने दी। अरुणा ने पहले लाहौर के सैक्रेड हार्ट स्कूल और उसके बाद नैनीताल के ऑल सेन्ट्स कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की।
नैनीताल में उनके पिता का होटल का व्यवसाय था। वहीं पर जवाहरलाल नेहरू से भी उनका परिचय हुआ था, क्योंकि गर्मियों में पं. नेहरू का परिवार आमतौर पर नैनीताल चला जाता था। आरम्भ से ही अरुणा बहुत ही कुशाग्र बुद्धि की थीं और बाल्यकाल से ही कक्षा में सर्वोच्च स्थान पाती थीं। बचपन में ही उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता और चतुरता की धाक जमा दी थी। लाहौर और नैनीताल से पढ़ाई पूरी करने के बाद वे बंगाल आ गयीं और कोलकाता के 'गोखले मेमोरियल कॉलेज' में अध्यापन करने लगीं।
इसी बीच इलाहाबाद में उनकी बहन पूर्णिमा बनर्जी के घर पर अरुणा की मुलाकात भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के वरिष्ठ नेता आसफ अली से हुई। ये वही आसफ अली हैं जिन्होंने आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाले भगत सिंह का हमेशा समर्थन किया था। असेंबली में बम फोड़ने के बाद गिरफ्तार हुए भगत सिंह का केस भी आसफ अली ने ही लड़ा था।
आसफ अली से उनकी यह मुलाकात धीरे-धीरे घनिष्ठता में बदल गयी। स्वतन्त्र और साहसी विचारों वाली अरुणा ने परिजनों के विरोध के बावजूद आसफ अली से 1928 में विवाह कर लिया। उस समय अरुणा की उम्र 19 वर्ष थी और आसफ अली उनसे लगभग 20 साल बड़े थे। विवाह के बाद अरुणा का नाम बदलकर कुलसुम जमानी हो गया था लेकिन समाज में उनकी पहचान अरुणा आसफ अली के रूप में ही रही। आसफ अली से विवाह करने के पश्चात अरुणा स्वाधीनता संग्राम से जुड़ गयीं। वे अपने पति के साथ दिल्ली आ गयीं और दोनों पति-पत्नी स्वतन्त्रता आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाने लगे।
नमक सत्याग्रह के दौरान होने वाली सार्वजनिक सभाओं में भाग लेने के कारण अरुणा आसफ अली को 1930 में गिरफ्तार कर लिया गया। वे लगभग एक वर्ष तक जेल में रहीं। वर्ष 1931 में गाँधी-इर्विन समझौते के अंतर्गत लगभग सभी राजनैतिक बंदियों को रिहा कर दिया गया था, किन्तु, अरुणा आसफ अली को मुक्त नहीं किया गया। अरुणा आसफ अली के साथ होने वाले इस भेद-भाव से आहत होकर उनकी अन्य महिला साथियों ने भी जेल से बाहर निकलने से मना कर दिया। इसके बाद महात्मा गाँधी के दखल देने के बाद ही अरुणा आसफ अली को जेल से रिहा किया गया। वर्ष 1932 में तिहाड़ जेल में बंद होने के दौरान उन्होंने जेल प्रशासन द्वारा राजनैतिक कैदियों के साथ बुरा बर्ताव करने के विरोध में भूख हड़ताल कर दी। उनके प्रयास से तिहाड़ जेल के कैदियों की दशा में तो सुधार हुआ लेकिन अरुणा आसफ अली को अंबाला की जेल में एकांत कारावास की सजा दे दी गयी।
वर्ष 1932 में महात्मा गाँधी के आह्वान पर उन्होंने सत्याग्रह में सक्रिय भाग लिया, जिस कारण इन्हें फिर से छह माह के लिए जेल जाना पड़ा। वर्ष 1941 में अंग्रेजों ने भारत को द्वितीय विश्वयुद्ध में ढकेल दिया, जिसके विरोध में महात्मा गाँधी ने व्यक्तिगत सत्याग्रह शुरू कर दिया। अरुणा आसफ अली ने भी इसमें भाग लिया, जिसके फलस्वरूप उन्हें एक वर्ष कारावास की सजा मिली।
ऊपर उल्लेख किया जा चुका है कि 9 अगस्त, 1942 को अखिल भारतीय काँग्रेस समिति के बम्बई अधिवेशन में ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आन्दोलन शुरू करने का प्रस्ताव पारित हुआ। इस अधिवेशन में अरुणा आसफ अली भी अपने पति के साथ मौजूद थीं। अंग्रेज सरकार ने अपने विरुद्ध हुए इस फैसले को असफल करने के लिए काँग्रेस के सभी बड़े नेताओं और कार्यसमिति के सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया। ऐसी परिस्थिति में अन्तिम सत्र की अध्यक्षता अरुणा आसफ अली ने किया और उन्होंने 9 अगस्त को बम्बई के गोवालिया टैंक मैदान में भारत का तिरंगा फहराकर भारत छोड़ो आन्दोलन की घोषणा कर दी।
झंडा फहराए जाने के बाद पुलिस ने भीड़ पर आँसू गैस के गोले छोड़े, लाठी चार्ज किया और गोलियाँ भी चलाईं। इस दमन ने अरुणा आसफ अली के मन में आजादी की लौ को और अधिक तेज कर दिया। वे आम जनमानस में क्रान्ति का संदेश देकर भूमिगत हो गयीं और वेश एवं स्थान बदल-बदलकर आन्दोलन में हिस्सा लेने लगीं।
अरुणा आसफ अली द्वारा गोवालिया टैंक मैदान में तिरंगा फहराने का व्यापक असर सारे देश पर पड़ा और आजादी के आन्दोलन में हिस्सा लेने वाले युवाओं में ऊर्जा का संचार हो गया। निश्चित रूप से अरुणा आसफ अली भारत छोड़ो आन्दोलन की नायिका थीं। उस समय कोई स्थिर नेतृत्व न होने के बावजूद देशभर में अंग्रेजों के खिलाफ कड़े विरोध प्रदर्शन हुए जो यह स्पष्ट कर रहे थे कि अब भारतवासियों को गुलाम बना कर नहीं रखा जा सकता। गोवालिय़ा टैंक मैदान को अब अगस्त क्रान्ति मैदान कहा जाता है।
इसी दौरान अरुणा आसफ अली को भी गिरफ्तार करने का आदेश जारी कर दिया गया था। गिरफ्तारी से बचने के लिए अरुणा भूमिगत हो गयीं थीं। दरअसल उनके ऊपर जयप्रकाश नारायण, डॉ॰ राम मनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन जैसे समाजवादियों के विचारों का ज्यादा प्रभाव था। इसी कारण ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ में अरुणा जी ने अंग्रेज़ों की जेल में बन्द होने के बदले भूमिगत रहकर अपने अन्य साथियों के साथ आन्दोलन का नेतृत्व करना उचित समझा। गाँधी जी सहित अन्य नेताओं की गिरफ्तारी के तुरन्त बाद बम्बई में विरोध सभा आयोजित करके विदेशी सरकार को खुली चुनौती देने वाली वे असाधारण महिला थीं।
बाद में उन्होंने गुप्त रूप से उन काँग्रेस जनों का पथ-प्रदर्शन किया, जो जेल से बाहर थे। बम्बई, कलकत्ता, दिल्ली आदि में घूम-घूमकर, मगर पुलिस ��ी पकड़ से बचते हुए उन्होंने आजादी के आन्दोलन में शामिल लोगों में नव जागृति लाने का प्रयत्न किया। 1942 से 1946 तक वे देश भर में लगातार सक्रिय रहीं किन्तु ब्रिटिश सरकार का गुप्तचर विभाग लाख कोशिश करने के बावजूद उन्हें गिरफ्तार नहीं कर पाया। अंत में अंग्रेजों ने उनकी सारी सम्पत्ति जब्त करके उसे नीलाम कर दिया। इस बीच वे राम मनोहर लोहिया के साथ मिलकर ‘इंकलाब’ नामक मासिक समाचार पत्र का सम्पादन भी करती रहीं। अंग्रेज सरकार ने अरुणा आसफ अली की सूचना देने पर पाँच हजार रुपये का इनाम रखा था। इसी दौरान उनका स्वास्थ्य भी बहुत खराब हो गया था।
9 अगस्त 1942 से 26 जनवरी 1946 तक अरुणा आसफ अली को गिरफ्तार करने का वारन्ट उनका पीछा करता रहा किन्तु वे पकड़ में नहीं आईं। महात्मा गाँधी ने उन्हें पत्र लिखकर आत्म-समर्पण करने और आत्म-समर्पण के एवज में मिलने वाली धनराशि को हरिजन अभियान के लिए उपयोग करने को कहा, किन्तु अरुणा आसफ अली ने आत्म-समर्पण नहीं किया। वर्ष 1946 में जब उन्हें गिरफ्तार करने का वारंट रद्द किया गया तब जाकर अरुणा आसफ अली ने आत्म-समर्पण किया।
आत्म-समर्पण करने के बाद पूरे देश में उनका भव्य स्वागत हुआ। कलकत्ता और दिल्ली में अरुणा आसफ अली ने अपने स्वागत में आयोजित सभाओं में ऐतिहासिक भाषण दिये। दिल्ली की सभाओं में उन्होंने कहा, “भारत की स्वतन्त्रता के सम्बन्ध में ब्रिटेन से कोई समझौता नहीं को सकता। भारत अपनी स्वतन्त्रता ब्रिटेन से छीनकर ग्रहण करेगा। समझौते के दिन बीत गये। हम तो स्वतन्त्रता के लिए युद्ध क्षेत्र में ब्रिटेन से मोर्चा लेंगे। शत्रु के पराजित हो जाने के बाद ही समझौता हो सकता है। हिन्दुओं और मुस्लिमों की संयुक्त माँग के समक्ष ब्रिटिश साम्राज्यवाद को झुकना होगा। हम भारतीय स्वतन्त्रता की भीख माँगने नहीं जाएंगे।”
15 अगस्त 1947 को आजादी मिली। अरुणा आसफ अली दिल्ली प्रदेश काँग्रेस कमेटी की अध्यक्ष बनीं। वर्ष 1947-48 में उन्होंने दिल्ली में शरणार्थियों की समस्या को हल करने के लिए अपना जी-जान लगा दिया था। आर्थिक नीतियों के प्रश्न पर भारत के पहले प्रधानमन्त्री पं. जवाहरलाल नेहरू से सैद्धांतिक मतभेद होने के कारण वे काँग्रेस से अलग हो गयीं और वर्ष 1948 में आचार्य नरेन्द्र देव की सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हो गयीं।
दो साल बाद सन् 1950 ई. में उन्होंने अलग से ‘लेफ्ट स्पेशलिस्ट पार्टी’ बनाई और वे 'मज़दूर-आन्दोलन' में जी-जान से जुट गयीं। फिर वे भारतीय कम्युनि��्ट पार्टी में शामिल हो गयीं। 1953 में पति आसिफ अली के निधन से अरुणा जी को निजी जीवन में गहरा धक्का लगा। वे मानसिक और भावनात्मक रूप से बहुत कमजोर हो गयी थीं।
1954 में उन्होंने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की महिला इकाई, “नेशनल फेडरेशन ऑफ वीमेन” का गठन किया। 1956 में उन्होंने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को भी छोड़ दिया मगर वे पार्टी की हमदर्द बनी रहीं। इस दौरान वर्ष 1958 में अरुणा आसफ अली दिल्ली की पहली मेयर चुनी गयीं। मेयर बनकर उन्होंने दिल्ली के विकास, सफाई और स्वास्थ्य आदि के लिए बहुत अच्छा कार्य किया और नगर निगम की कार्य प्रणाली में भी उन्होंने यथेष्ट सुधार किए।
जयप्रकाश नारायण के साथ मिलकर उन्होंने दैनिक समाचार पत्र ‘पैट्रियाट’ और साप्ताहिक समाचार पत्र ‘लिंक’ का प्रकाशन किया। जवाहरलाल नेहरू तथा बीजू पटनायक आदि से सम्बन्धित होने के कारण जल्दी ही दोनों समाचार पत्रों को देश में अच्छी पहचान मिल गयी। लेकिन अंदरूनी राजनीति से आहत होकर उन्होंने कुछ ही समय में प्रकाशन का काम भी छोड़ दिया। पं. जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद मई 1964 में अरुणा आसफ अली फिर से भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस में शामिल हो गयीं और प्रगतिशील विचारों को बढ़ावा देने के लिए काम करने लगीँ, किन्तु सक्रिय राजनीति से वे दूर रहीं। अरुणा आसफ अली, इन्दिरा गाँधी और राजीव गाँधी के करीबियों में भी गिनी जाती थीं। यद्यपि उन्होंने 1975 में इन्दिरा गाँधी द्वारा आपातकाल लगाने का विरोध किया था।
अरुणा आसफ अली की एक महत्वपूर्ण पुस्तक है जिसमें उन्होने अपने संघर्ष तथा राजनीतिक विचारों को वाणी दी है। पुस्तक का नाम है, ‘वर्ड्स ऑफ फ्रीडम : आइडियाज ऑफ ए नेशन’। मार्च 1944 में उन्होंने अपनी पत्रिका ‘इंकलाब’ में लिखा, “आजादी की लड़ाई के लिए हिंसा-अहिंसा की बहस में नहीं पड़ना चाहिए। क्रान्ति का यह समय बहस में खोने का नहीं है। मैं चाहती हूँ, इस समय देश का हर नागरिक अपने ढंग से क्रान्ति का सिपाही बने।”
दैनिक ‘ट्रिब्यून’ ने अरुणा आसफ अली की साहसिक भूमिगत मोर्चाबंदी के लिए उन्हें ‘1942 की रानी झाँसी’ की संज्ञा दी थी। साथ ही उन्हें ‘ग्रैंड ओल्ड लेडी’ भी कहा जाता है। उनके नाम पर दिल्ली में अरुणा आसफ अली मार्ग है जो वसंत कुंज, किशनगढ़, जवाहरलाल नेहरू युनिवर्सिटी, आईआईटी दिल्ली को जोड़ता है।
सामाजिक कार्यों में अरुणा आसफ अली की गहरी रुचि थी। वे समाज के दबे पिछड़े लोगों के लिए हमेशा संघर्ष करती रहीं। वे भारत-रूस संस्कृति संस्था की सदस्य थीँ और उन्होंने दोनो देशों की मित्रता बढ़ाने में बहुत सहयोग किया। दिल्ली में उन्होंने सरस्वती भवन की स्थापान भी की, जो संस्था गरीब और असहाय महिलाओं की शिक्षा से जुड़ी थी। अरुणा आसफ़ अली ‘इंडो-सोवियत कल्चरल सोसाइटी’, ‘ऑल इंडिया पीस काउंसिल’, तथा ‘नेशनल फैडरेशन ऑफ इंडियन वीमेन’ आदि संस्थाओं के लिए उन्होंने बड़ी लगन, निष्ठा, ईमानदारी से कार्य किया। दिल्ली से प्रकाशित वामपन्थी अंग्रेज़ी दैनिक समाचार पत्र ‘पेट्रियट’ से वे जीवनपर्यंत पूरी निष्ठा से जुड़ी रहीं।
भारत के बँटवारे को वे कभी स्वीकार नहीं कर पाईं। पंजाब में 1983 में जब सिख दंगे हुए तो विभिन्न धर्मावलम्बी एक सौ स्वयं-सेवकों के साथ वे वहाँ अपने शान्ति-मिशन में डटी रहीं। दिल्ली की प्रतिष्ठित लेडी इर्विन कॉलेज की स्थापना भी अरुणा के प्रयासों से हुई। वे आल इंडिया ट्रेड यूनियन काँग्रेस की उपाध्यक्ष भी रहीं। लम्बी बीमारी के बाद 29 जुलाई 1996 को अरुणा आसफ अली का नयी दिल्ली में 87 वर्ष की आयु मे निधन हो गया।
अरुणा आसफ अली की अपनी विशिष्ट जीवन शैली थी। वे आजीवन अपने पति के साथ एक कमरे के फ्लैट में रहीं। उम्र के आठवें दशक में भी वह सार्वजनिक परिवहन से सफर करती थीं। वर्ष 1975 में अरुणा आसफ अली को शान्ति और सौहार्द के क्षेत्र में लेनिन शान्ति पुरस्कार, 1992 में पद्म विभूषण और 1997 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत-रत्न’ से सम्मानित किया गया।
जन्मदिन के अवसर पर देश और समाज के लिए अरुणा आसफ अली के महान योगदान का हम स्मरण करते हैं और उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं।
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दीप सिद्धू पर क्यों मेहरबान है पुलिस? दिग्विजय सिंह ने पूछा, लोग पूछने लगे 84 के दंगे पर सवाल
दीप सिद्धू पर क्यों मेहरबान है पुलिस? दिग्विजय सिंह ने पूछा, लोग पूछने लगे 84 के दंगे पर सवाल
26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड के दौरान लाल किले पर हुई हिंसा ���े पीछे कई किसान नेता सीधे सीधे दीप सिद्धू का नाम ले रहे हैं। किसान नेताओं का आरोप है कि दीप सिद्धू ने जानबूझ कर ऐसी हरकत की ताकि किसान आंदोलन को बदनाम किया जा सके। इसी क्रम में कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने दिल्ली पुलिस पर आरोप लगाते हुए ट्विटर पर पूछा है कि आखिर दीप सिद्धू पर क्यों मेहरबान है पुलिस। हालाँकि दिग्विजय सिंह के इस ट्वीट पर…
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दिल्ली हिंसाः लोकसभा में अमित शाह के भाषण की 10 बड़ी बातें
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दिल्ली हिंसाः लोकसभा में अमित शाह के भाषण की 10 बड़ी बातें
कांग्रेस के सांसदों ने सदन से किया वॉकआउट
अमित शाह ने दिल्ली पुलिस की थपथपाई पीठ
लोकसभा में बुधवार को दिल्ली दंगे पर चर्चा हुई. इस दौरान विपक्ष के सवालों के जवाब देते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि दिल्ली दंगे में जिन लोगों की जान गई, उनके प्रति हम दुख प्रकट करते हैं. साथ ही उनके परिवारों के प्रति भी संवेदना व्यक्त करते हैं. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि 25 फरवरी की रात 11:00 बजे के बाद एक भी दंगे की घटना नहीं हुई है.
अमित शाह ने कहा कि संसद का सत्र 2 मार्च को शुरू हुआ है. हमने दूसरे दिन ही कहा कि दिल्ली हिंसा पर चर्चा के लिए हम होली के बाद तैयार हैं, क्योंकि होली एक ऐसा त्योहार है, जिसमें भावनाएं भड़कने की संभावना रहती है. कई बार होली के समय अलग-अलग प्रांतों में दंगों का एक बहुत बड़ा इतिहास रहा है.
अपनी बात जारी रखते हुए गृह मंत्री ने आगे कहा कि पुलिस को इसके तह में जाने के लिए कुछ समय चाहिए था. इसलिए होली के बाद डिबेट की बात कही गई थी. होली में किसी तरीके की अशांति न हो, इसलिए हमने कहा था कि होली के बाद 11 फरवरी को इस पर डिबेट कराया जाए. अमित शाह के भाषण के दौरान जमकर हंगामा हुआ और कांग्रेस सदन से वॉकआउट तक कर गई.
अमित शाह के भाषण की 10 बड़ी बातें……
1. अमित शाह ने कहा कि मैं दिल्ली पुलिस की प्रशंसा करना चाहता हूं और शाबाशी देना चाहता हूं. दिल्ली में जहां दंगा हुआ, उस इलाके की आबादी 20 लाख है. पुलिस ने इस दंगे को पूरी दिल्ली में फैलने नहीं दिया. दिल्ली पुलिस को 24 फरवरी को पहली सूचना मिली, जबकि अंतिम सूचना 25 फरवरी की रात 11:00 बजे मिली. 36 घंटे तक दिल्ली में दंगे हुए हैं. दिल्ली के दंगों को 36 घंटे में समेटने का काम दिल्ली पुलिस ने किया.
2. गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि मैं अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यक्रम में बैठा था. मेरा वहां जाना भी पहले से ही तय था. मैं जिस दिन गया, उस दिन कोई घटना नहीं हुई. मैं उसी शाम को 6:30 बजे दिल्ली वापस आ गया था. जो सवाल उठाए जा रहे हैं कि मैं ताजमहल गया था, वो गलत हैं. मैं ताजमहल देखने नहीं गया था. मैं सीधे दिल्ली आया था. उसके बाद दूसरे दिन राष्ट्रपति भवन में डोनाल्ड ट्रंप की अगवानी हुई, मैं वहां भी नहीं गया. दोपहर को लंच हुआ, मैं वहां भी नहीं गया. रात को डिनर हुआ, मैं डिनर में भी नहीं गया. मैं पूरे समय दिल्ली पुलिस के साथ बैठकर मामले की समीक्षा करता रहा.
3. अमित शाह ने कहा कि मैंने ही राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल से कहा था कि आप दिल्ली के हिंसा प्रभावित इलाकों में जाइए और पुलिस का मनोबल बढ़ाइए. मैं इसलिए नहीं गया, क्योंकि अगर मैं जाता, तो मेरे जाने से पुलिस मेरे पीछे लगती और पुलिस दंगे रोकने में अपने बल को नहीं लगा पाती. लिहाजा मैंने अजीत डोभाल को भेजा था.
4. केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि दिल्ली में जहां दंगे हुए, वो भारत की घनी आबादी वाला एरिया है. वहां संकरी गलियां हैं और दोनों समुदायों की सबसे ज्यादा मिली-जुली आबादी है. यहां पर दंगों का पुराना इतिहास रहा है. अपराधिक तत्वों का भी काफी समय से यहां पर पुराना इतिहास रहा है. यह इलाका उत्तर प्रदेश के बॉर्डर से लगा हुआ है.
5. लोकसभा में अमित शाह ने कहा कि दंगा वाले इलाके में 22 और 23 फरवरी को सीआरपीएफ की 30 कंपनियां और 24 फरवरी को 40 कंपनियां भेजी थीं. 25 फरवरी को सीआर��ीएफ की और 50 कंपनियां भेजीं. इसके बाद दंगा वाले इलाकों में 26, 27, 28 और 29 फरवरी को सीआरपीएफ की 80 से ज्यादा कंपनियां तैनात की गईं. सीआरपीएफ की ये कंपनियां अब भी वहां पर तैनात हैं.
6. केंद्रीय गृहमंत्री ने कहा कि दिल्ली दंगों के गुनहगारों को पकड़ने के लिए पूरी व्यवस्था की गई है. 27 फरवरी से अब तक 700 से ज्यादा एफआईआर दर्ज की जा चुकी हैं. उन्होंने यह भी दावा किया कि दिल्ली दंगा साजिश के तहत किया गया. दंगा करने के लिए 300 से ज्यादा लोग यूपी से दिल्ली आए थे.
7. उन्होंने कहा कि मैं दिल्ली और देश की जनता को आश्वस्त करना चाहता हूं कि दंगों में जो लोग शामिल थे, उनको किसी भी कीमत में बख्शा नहीं जाएगा. साइंटिफिक सबूतों के आधार पर दोषियों के खिलाफ पूरी कार्रवाई की जा रही है. इस मामले में बयान दर्ज किए जा रहे हैं. किसी भी निर्दोष को कोई तकलीफ नहीं होने दी जाएगी. हमने एसआईटी की टीमें बनाई हैं, जिसने आर्म्स एक्ट के तहत करीब 49 केस दर्ज किए हैं. दिल्ली पुलिस ने 152 हथियारों को भी बरामद किया है.
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8. गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि दिल्ली के अंदर जनवरी के बाद कितनी धनराशि हवाला से आई है और इसमें कितनी संस्थाएं इसमें शामिल रहीं, इसकी जानकारी भी सरकारी एजेंसियों ने खंगाला है. दिल्ली दंगों को फाइनेंस करने वाले तीन लोगों की पहचान हुई है. उनको दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार भी किया है. इसकी जांच आगे तक जाएगी.
9. गृहमंत्री अमित शाह ने आरोप लगाया कि दिल्ली हिंसा के लिए कांग्रेस पार्टी ने लोगों को भड़काया था. सोनिया गांधी का नाम लिए बिना अमित शाह ने कहा कि एक पार्टी की अध्यक्ष ने रैली में लोगों से कहा कि ‘घर से निकलो, बाहर निकलो और आर-पार की लड़ाई लड़ो’. उनकी पार्टी के एक बड़े नेता ने यह भी कहा कि अभी नहीं निकलोगे तो कायर कहलाओगे. 14 दिसंबर को यह भड़काऊ भाषण हुए और फिर 16 दिसंबर को शाहिनबाग का धरना शुरू हुआ. इस तरीके से हेट स्पीच के जरिए दिल्ली में दंगे कराए गए. अमित शाह ने आगे कहा कि 19 फरवरी असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के नेता वारिस पठान ने भी भड़काऊ भाषण दिए. उन्होंने कहा कि हम 15 करोड़ है, मगर 100 करोड़ पर भारी पड़ेंगे. इसके बाद 24 फरवरी को दंगे शुरू हो गए.
10. अमित शाह ने कहा कि हमने नागरिकता संशोधन कानून को दरवाजा बंद करके पास नहीं किया था. हमने चर्चा करके इस कानून को संसद से पास कराया था. नागरिकता संशोधन कानून को लेकर संसद में पूरी स्पष्टता थी, लेकिन पूरे देशभर में मुस्लिमों को गुमराह किया गया और कहा गया कि सीएए से मुसलमानों की नागरिकता चली जाएगी. मैं आज भी पूछना चाहता हूं कि सीएए में कौन सा क्लॉज है, जो किसी भी व्यक्ति की नागरिकता छीनता है. इसमें नागरिकता लेने का कोई प्रावधान नहीं है. पीड़ित लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान है. परंतु अलग-अलग प्रकार से काफी चीजें विपक्षी पार्टियों के द्वारा फैलाई गई है.
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#DelhiRiots में मोहम्मद इरफान और मोहम्मद नासिर गैंग पुलिस के निशाने पर हैं, उनका यमुनापार में खूनखराबे का इतिहास रहा है। दंगे में 500 से अधिक गोलियां दागी गयीं।
2 महीने से हिंसा की तैयारी हो रही थी,जनवरी में वसीम,साजिद सहित 6 शांतिदूत दिल्ली में हथियार सप्लाई करते अरेस्ट हुए थे।
— प्रशान्त पटेल उमरा�� (@ippatel) February 26, 2020
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Red Fort Violence : Lakkha Sidhana को आखिर कौन बचा रहा है? पंजाब पुलिस पर उठे सवाल
Red Fort Violence : Lakkha Sidhana को आखिर कौन बचा रहा है? पंजाब पुलिस पर उठे सवाल
विरोध अंदरुनी हो सकता है … लेकिन पार्टी लाइन एक होनी चाहिए … इसी तरह जब बात देश की हो तो सियासत देश से ऊपर नहीं हो सकती … लेकिन ऐसा लगता है कि गणतंत्र दिवस के गुनहगार को लेकर सियासत भी पार्टियों में हैं। बंट गया है …।
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नॉर्थ ईस्ट दिल्ली दंगे: दिल्ली पुलिस ने ताहिर हुसैन को बताया मास्टरमाइंड, बताया कैसे रची साजिश
ताहिर हुसैन (फाइल फोटो)
हाइलाइट्स
दंगों से पहले थाने में जमा पिस्टल निकलवाई थी पार्षद ताहिर हुसैन ने
पार्षद को लेकर एसआईटी का कोर्ट में खुलासा, उमर खालिद के संपर्क में होने का दावा
आईबी कर्मचारी अंकित शर्मा के मर्डर में भी आरोपी है ताहिर
ई दिल्ली
दिल्ली के नॉर्थ ईस्ट जिले में फरवरी में हुए दंगे का मास्टरमाइंड पुलिस ने पार्षद ताहिर हुसैन को बताया है। पुलिस का कहना है कि दंगा कराने के लिए ताहिर ने करोड़ों रुपये खर्च किए थे। इसके लिए वह पूर्व जेएनयू स्टूडेंट उमर खालिद और शाहदरा के खुरेजी खास दंगे में आरोपी खालिद सैफी के संपर्क में थे। क्राइम ब्रांच की एसआईटी ने मंगलवार को कड़कड़डूमा कोर्ट में दाखिल चार्जशीट में यह खुलासा किया। पुलिस ने ताहिर समेत 15 लोगों को आरोपी बनाया है। इनमें ताहिर का छोटा भाई शाह आलम भी है। जांच में सामने आया कि ताहिर ने दंगे के दौरान अपनी लाइसेंसी पिस्टल का इस्तेमाल किया था। जिसे उसने दंगे शुरू होने के ठीक एक दिन पहले ही रिलीज करवाया था।
ट्रांसफर करवाए थे 1.1 करोड़ रुपये
पुलिस चार्जशीट में ताहिर पर आरोप है कि जनवरी के दूसरे हफ्ते में 1.1 करोड़ रुपये शेल कंपनियों में ट्रांसफर करवाए फिर बाद में उन पैसों को कैश में ले लिया। इसमें मीनू फैब्रिकेशन, एसपी फाइनैंशल सर्विस, यूद्धवी इंपेक्स, शो इफेक्ट एडवर्जाइजिंग और इसेंस सेलकॉम नाम की कंपनी को पैसे ट्रांसफर हुए थे। ताहिर के घर पर कई सीसीटीवी हैं लेकिन वहां 23 से 28 के बीच की कोई रेकॉर्डिंग नहीं है।
एक दिन पहले निकलवाई थी जमा पिस्टल
ताहिर से दंगे से सिर्फ एक दिन पहले खजूरी खास थाने में जमा अपनी पिस्टल निकलवाई थी। ऐसा क्यों किया इसका ताहिर के पास जवाब नहीं। उनके नाम पर 100 कार्टेज इशू हुए थे। इसमें से 64 बचे हैं। 20 इस्तेमाल करे उनके घर पर मिले, वहीं 16 का हिसाब नहीं। नॉर्थ ईस्ट के दंगों को लेकर नेहरू विहार से पार्षद ताहिर हुसैन 10 केसों में आरोपी हैं। चार्जशीट कहती है कि दंगे से पहले खालिद सैफी और उमर खालिद से ताहिर की मुलाकात हुई थी। इसका सबूत उनकी मोबाइल लोकेशन है।
ताहिर हुसैन पर क्या आरोप
वायरल हुआ था ताहिर का वीडियो
दिल्ली दंगों के दौरान छत में हाथ में डंडा लिए हुए घूम रहे पार्षद ताहिर हुसैन का विडियो वायरल हुआ था। अगले दिन उनकी छत पर पेट्रोल बम, गुलेल, ईंट-पत्थर मिलने की खबरें खूब चली थीं। जांच के दौरान अब साजिश की गहरी जड़े भी सामने आई हैं। क्राइम ब्रांच की एसआईटी ने मंगलवार को कड़कड़डूमा कोर्ट में दाखिल चार्जशीट में यह खुलासा किया है। यह दंगों में तीसरी चार्जशीट है। पुलिस का दावा है कि खजूरी खास इलाके में रहने वाले ताहिर नॉर्थ ईस्ट दंगों के मास्टरमाइंड में से एक है। वह जेएनयू के पूर्व स्टूडेंट उमर खालिद और शाहदरा के खुरेजी खास दंगे में आरोपी खालिद सैफी के टच में थे।
दिल्ली दंगे: क्या आपने भी इन 5 अफवाहों पर यकीन कर लिया?दिल्ली में दंगों के बाद कुछ शरारती लोग फर्जी खबरों को लगातार शेयर कर रहे है, जिनके बहकावे में लोग आ भी रहे हैं। नवभारत टाइम्स आपको बता रहा है ऐसे 5 मामले जिनका सच न�� सिर्फ आपको जानना चाहिए, बल्कि इनपर यकीन कर रहे लोगों को भी समझाना चाहिए।
चार्जशीट के मुताबिक, खजूरी खास के चांदबाग पुलिया पर हुए 24 जून के दंगे वाले केस में ताहिर समेत 15 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। इनमें ताहिर का छोटा भाई शाह आलम भी है। ताहिर ने दंगे के दौरान अपनी लाइसेंसी पिस्टल का इस्तेमाल किया था, जिसे जब्त कर लिया गया। जांच के दौरान सामने आया कि दिल्ली विधानसभा चुनाव के मद्देनजर ताहिर की पिस्टल को खजूरी खास थाने में जमा थी। वह इस पिस्टल को नॉर्थ ईस्ट जिले में दंगे शुरू होने के ठीक एक दिन पहले 22 फरवरी को रिलीज कराकर लाए थे। दावा किया गया है कि दिल्ली में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन और दंगे कराने वाले बड़े ग्रुप उमर खालिद और खालिद सैफी के संपर्क में थे। उन्होंने इलाके में दंगों को कराने की साजिश रची हुई थी। चार्जशीट 1020 पेज की है, जिसमें 15 को आरोपी और 50 से ज्यादा को गवाह बनाया गया है। ताहिर हुसैन 10 केसों में आरोपी हैं। आईबी स्टाफर अंकित शर्मा मर्डर केस भी इसमें शामिल है। स्पेशल सेल ने ताहिर को भी UAPA के तहत बुक किया है।
मर्डर की पहली चार्जशीट में 10 नाम, पिंजरा तोड़ ग्रुप पर साजिश का आरोप
जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के नीचे से 25 फरवरी की रात भीड़ के हिंसक होने पर पुलिस ने बल प्रयोग किया था। इस हिंसा में 9 पुलिसकर्मी, 10 सीआरपीएफ के जवान और 10 प्रदर्शनकारी जख्मी हुए थे। 18 साल के युवक अमान की इलाज के दौरान मौत हो गई थी, जिसे भीड़ की गोली लगी थी। क्राइम ब्रांच ने मंगलवार को कड़कड़डूमा कोर्ट में चार्जशीट दाखिल कर दी। फिलहाल 10 आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया गया, जिनमें से एक जमानत पर है। दो नाबालिग भी इस हिंसा में शामिल थे। पिंजरा तोड़ ग्रुप की देवांगना कलिता और नताशा नरवाल समेत कई आरोपियों के खिलाफ बाद में सप्लिमेंट्री चार्जशीट पेश करने की बात कही गई है।
एसआईटी की तरफ से इंस्पेक्टर कुलदीप सिंह ने 458 पेज की चार्जशीट में 53 गवाह बनाए हैं। इस दौरान जख्मी में हुए 10 लोगों में से 5 को अरेस्ट किया गया, जबकि पांच लोगों ने अपना पता गलत या अधूरा लिखवाया था। इसलिए पुलिस उन तक नहीं पहुंच सकी। इसी तरफ चार्जशीट में बताया गया कि विडियो फुटेज में कई लोग दिखाई दिए हैं, जिनकी पहचान की जा रही है। पुलिस का दावा है कि भीड़ को भड़काने में पिंजरा तोड़ ग्रुप, जामिया को-ऑर्डिनेशन कमिटी के मेंबर, जेएनयू के स्टूडेंट शामिल थे। इनकी वजह से ही दंगे भड़के।
दंगे से पहले भेजा गया मेसेज
आरोपी रिफाकत अली के मोबाइल से एक हेट मेसेज मिला। इसमें कहा गया कि दंगा होने पर घर की औरतें करें- 1. घर में गर्म और खौलते हुए तेल और पानी का इंतजाम करें। 2. अपनी बिल्डिंग की सीढ़ियों पर तेल, सर्फ और शैंपू डालें। 3. लाल मिर्च गर्म पानी में या मिर्च पाउडर का इस्तेमाल करें। 4. दरवाजों को मजबूत करें, जल्द से जल्द लोहे की ग्रिल वाला लगवाएं। 5. तेजाब की बोतलें घर में रखें। 6. बालकनी और छत पर ईंट-पत्थर जमा करें। 7. कार और बाइक से पेट्रोल निकालकर रख लें। 8. लोहे के दरवाजों में स्विच से करंट का इस्तेमाल करें। 9. एक बिल्डिंग से दूसरी बिल्डिंग की छत पर जाने का रास्ता बनाएं। 10. घर के सारे मर्द बिल्डिंग को ना छोड़ें और कुछ लोग महिलाओं की सुरक्षा के लिए रहें।
भीड़ को लड़कियों ने उकसाया
पुलिस को इस मेसेज का सोर्स नहीं मिला है, इसलिए मोबाइल को जांच के लिए भेजा गया है, जिसकी रिपोर्ट अभी आनी बाकी है। चार्जशीट में दावा किया गया है कि रिफाकत ने अपने बयान में कहा कि जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के नीचे बैठीं तीन-चार औरतें कह रही थीं कि रोड से हटना नहीं है। ऐसे में रिफाकत ने भी भीड़ को पुलिस पर पथराव करने, रॉड-डंडे से हमला करने और फायरिंग करने के लिए उकसाया। आरोपी शाहरूख खान ने बयान दिया कि देवांगना, नताशा, गुलफिशा, रुमशा समेत अन्य लड़कियों ने भीड़ को पुलिस पर हमला करने के लिए उकसाया था।
पिंजरा तोड़ ग्रुप का कबूलनामा
चार्जशीट के मुताबिक, देवांगाना और नताशा ने बताया कि वे साजिश के तहत धरने पर बैठी थीं। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के 22 फरवरी को भारत आने से पहले वह जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के नीचे रोड जाम करके बैठ गई थीं। मकसद दूसरे समुदाय के लोगों को भड़काना था, ताकि हिंदू-मुस्लिम दंगा कराया जा सके। दोनों की कॉल डिटेल खंगालने पर पाया कि वे इंडिया अगेंस्ट हेट ग्रुप और जेएनयू के पूर्व स्टूडेंट उमर खालिद के संपर्क में थीं। इन दोनों समेत अन्य लड़कियों के खिलाफ और सबूत जुटाए जा रहे हैं, जिनके खिलाफ सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल की जाएगी। नॉर्थ ईस्ट में फरवरी में हुए दंगों को दिसंबर में हुए 10 दंगों से जोड़ा गया है।
ये हैं जाफराबाद के 10 आरोपी
विजय मोहल्ला मौजपुर के रिफाकत अली (39), जनता कॉलोनी वेलकम के मोहम्मद फैजान (19), अकील उर्फ बोना (26), मोहम्मद शरीफ (23), सलमान (26), महफूज राजा उर्फ काना (30), मोहम्मद शाहिद (37), अब्दुल गफ्फार (23), जाफराबाद के मोहम्मद आजाद (35) और शाहरूख खान (24) के खिलाफ धारा दंगा, सरकारी कर्मचारी पर हमला, हत्या, जानलेवा हमला, आपराधिक षड़यंत्र, आर्म्स एक्ट समेत कई धाराओं में चार्जशीट पेश की गई है। इसमें शाहरूख को जमानत मिली थी, क्योंकि वह इस हिंसा में अपनी एक आंख पूरी तरह गंवा चुके हैं और दूसरी आंख भी 90 फीसदी खराब हो गई है।
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RLD की कमान मिली पर आसान नहीं जयंत चौधरी की राह, यूपी चुनाव समेत जानें क्या हैं चुनौतियां Divya Sandesh
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RLD की कमान मिली पर आसान नहीं जयंत चौधरी की राह, यूपी चुनाव समेत जानें क्या हैं चुनौतियां
लखनऊराष्ट्रीय लोकदल की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने मंगलवार को जयंत चौधरी को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया। पार्टी के 34 सदस्यों ने वर्चुअल बैठक में सर्वसम्मति से आरएलडी के नए मुखिया के तौर पर जयंत के नाम पर मोहर लगा दी। दादा पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह और पिता चौधरी अजित सिंह की तरह ही किसानों की राजनीति समझने वाले जयंत चौधरी ने राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने जाने के बाद 26 को प्रस्तावित किसानों के आंदोलन को अपनी पार्टी के समर्थन का ऐलान किया।
नई दिल्ली में हुई बैठक में छह मई को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह के आकस्मिक निधन पर गहरा दुःख व्यक्त किया गया। पार्टी महासचिव त्रिलोक त्यागी ने उपाध्यक्ष जयंत चौधरी नाम अध्यक्ष पद के लिए प्रस्तावित किया। दूसरे राष्ट्रीय महासचिव मुंशीराम पाल ने प्रस्ताव का अनुमोदन किया, जिसका राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सभी सदस्यों ने सर्वसम्मति से समर्थन किया।
चुनौतियों से भरी है जयंत की राह
जयंत चौधरी पिता चौधरी अजित सिंह के निधन के बाद राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया तो चुन लिए गए। लेकिन, उनकी यह राह चुनौतियों से भरी है। उनके आगे सबसे बड़ी चुनौती रालोद को पश्चिमी यूपी की राजनीति में धुरी बनाए रखने की है। आगामी 2022 का यूपी विधानसभा चुनाव उनके लिए बड़ी परीक्षा है। उनके लिए चुनाव में पार्टी के अच्छे प्रदर्शन की बड़ी चुनौती होगी। इस बदले दौर में दादा और पिता की विरासत को संभालते हुए संगठन को मजबूती देना आसान न होगा।
संगठन को मजबूती देने की चुनौती
जयंत चौधरी के सामने सबसे बड़ी चुनौती कमजोर होती पार्टी को फिर से मजबूती से खड़ा करना है। 2014 के बाद या यूं कहें कि मोदी की सक्रियता के बाद रालोद का प्रतिनिधित्व न लोकसभा में है और न उत्तर प्रदेश की विधानसभा में। हालांकि, 2019 के विधान सभा चुनाव में रालोद छपरौली से एक विधानसभा सीट जीता था। लेकिन, वह विधायक भी दल बदल कर भाजपा के साथ चला गया। और तो और मोदी लहर में अजित सिंह और जयंत चौधरी खुद लगातार दो चुनावों में विजयश्री के दर्शन नहीं कर सके। संभावना है कि संगठन की कमान संभालने के बाद जयंत अपनी राष्ट्रीय टीम का जल्द विस्तार करेंगे। साथ ही प्रदेश और क्षेत्रीय कमिटी व प्रकोष्ठों को कसा जा सकता है।
जाटों की राजनीति और आरएलडी
पश्चिमी यूपी की राजनीति जाट, मुस्लिम और किसानों के आस-पास ही घुमती है। यह तीनों चौधरी चरण सिंह को अपना मसीहा मानते थे। चौधरी चरण सिंह के बाद यह गठबंधन लंबे समय तक चौधरी अजित सिंह के साथ रहा। लेकिन मुजफ्फरनगर दंगे के बाद यह समीकरण टूट गया। इस बीच भाजपा भी सतपाल सिंह और संजीव बालियान जैसे जाट नेताओं को स्थापित करने में सफल रही। इसका असर यह रहा कि मुजफ्फरनगर क्षेत्र में संजीव बालियान ने संयुक्त विपक्ष के प्रत्याशी बने अजित सिंह को हरा दिया था। जयंत को अब जहां अपने बाबा के इस ��ोट बैंक को फिर से एकजुट करना होगा। वहीं जाटों में पैठ बनाकर यह संदेश देना होगा कि उनके सर्वमान्य नेता दादा चौधरी चरण सिंह की तरह वह ही हैं।
किसान आंदोलन ने आसान की राह
कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमा पर चल रहा किसान आंदोलन रालोद के लिए किसी राजनैतिक संजीवनी से कम नहीं साबित हो रहा। किसान आंदोलन का समर्थन जयंत चौधरी की राह काफी हद तक आसान भी करेगा। 29 जनवरी को किसान नेता नरेश टिकैत द्वारा जयंत को मंच देना और मंच से यह कहना कि चौधरी अजित सिंह को हराना हमारी गलती थी। इसी घटनाक्रम से पश्चिमी यूपी में रालोद के लिए सियासी समीकरण बनते दिख रहे हैं। महापंचायतों में भाकियू और रालोद की दोस्ती का परिणाम हालिया पंचायत चुनावों में रालोद को मिली उत्साहजनक जीत के रूप में सामने है।
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श्रीलंका में पनपते आतंकवाद को समझना है तो सभी को पढ़ना चाहिए....!
श्रीलंका में पनपते आतंकवाद को समझना है तो सभी को पढ़ना चाहिए....!
श्रीलंका में ताबड़तोड़ हुए आतंकी हमले में 200 से ज़्यादा लोग मारे जा चुके हैं और ये संख्या बढ़ती जा रही है, इस आतंकी हमले के गुनहगारों के बारे में श्रीलंका सरकार की किसी भी तरह आधिकारिक घोषण से पहले ही भारत की सांप्रदायिक मीडिया ने श्रीलंका आतंकी हमले में ISIS या नेशनल तौहीद जमात क हाथ होने की घोषणा कर डाली, विदेशी मीडिया को खंगालेंगे तो कहीं भी इस बाबत कोई खबर नहीं है कि इस आतंकी हमले में किस व्यक्ति का हाथ है या फिर किस आतंकी संगठन का हाथ है।
यहाँ विदेशी मीडिया का ज़िक्र इसलिए किया है कि न्यू इंडिया के मीडिया का हाल किसे पता नहीं है, सबसे ताज़ा मामला बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक का है जिसके इस गोदी मीडिया ने 300 – 400 आतंकी मार डालने की ख़बरें तीन चार दिन तक चलाईं थीं, और अपने उस झूठ को छुपाने के लिए रोज़ नए झूठ गढ़ती थी, यदि विदेशी मीडिया सच नहीं बताता तो देश की जनता इस भांड मिडिया के 300 – 400 आतंकी मार डालने के आंकड़ों पर झक मार कर विश्वास कर डालती, परसों सुषमा स्वराज के उस बयान ने भी इस टुकड़खोर मीडिया के मुंह पर जूता मारा है जिसमें उन्होंने कहा था कि बालाकोट हवाई हमले में कोई भी हताहत नहीं हुआ था।
खैर आगे श्रीलंका चलते हैं, श्रीलंका में दंगों और धमाकों या आतंकी हमले का संक्षिप्त इतिहास देखें तो कहीं भी ISIS या फिर कथित नेशनल तौहीद जमात का नाम नहीं मिलेगा, बल्कि इसके बदले हर बार ‘बोदु बाला सेना’ (BBS) का नाम ही सामने आएगा, जिसे गालगोदा एथे गनानसारा अस्तित्व में लाये थे, श्रीलंका में जितने भी बौद्ध मुस्लिम दंगे या चर्चों और ईसाईयों पर हमले हुए हैं उसमें इस BBS का नाम सबसे ऊपर रहा है।
‘बोदु बाला सेना’ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तर्ज़ पर ही काम करती है और संघ उसका आदर्श है, 20 जनवरी 2015 को Indian Express में एक खबर प्रकाशित हुई थी जिसमें ‘बोदु बाला सेना’ चीफ गालगोदा एथे गनानसारा का बयान है जिसमें उन्होंने कहा है कि ‘बोदु बाला सेना’ संघ और भाजपा से प्रेरित है, हम चाहते हैं कि श्रीलंका ���ें भी मोदी जैसा नेता हो।
4 दिसंबर 2003 को ब्रिटेन की संसद में एक रिपोर्ट पेश की गयी थी, जिसमें श्रीलंका के ईसाईयों पर बौद्ध और हिन्दू अतिवादियों द्वारा किये गए हमलों की जानकारी सामने रखी गयी थी।
28 जनवरी 2016 की एक खबर प्रकाशित हुई थी जिसका शीर्षक था ‘Sri Lanka Rocked By Attacks Against Christians, Churches’, इसमें कहा गया था कि संदिग्ध बौद्ध और हिंदू आतंकवादियों द्वारा ईसाईयों और चर्चों पर हमले, हिंसा और धमकी की एक नई लहर चल पड़ी है, अधिकांश हमलों को ‘बोडू बाला सेना’ या ‘बौद्ध शक्ति सेना’ ने अंजाम दिए हैं।
श्रीलंका की एक संस्था NCEASL ( National Christian Evangelical Alliance of Sri Lanka) की एक REPORT के अनुसार केवल 2018 में ही ईसाई लोगों के खिलाफ नफरत, धमकी और हिंसा के कुल 86 मामले दर्ज किए गए, और इसके लिए श्रीलंका के उग्रवादी बौद्ध भिक्षु संगठनों को ज़िम्मेदार ठहराया गया था।
ऐसे में यदि कुछ देर के लिए मान भी लें कि ISIS या फिर कथित नेशनल तौहीद जमात ने ये आतंकी हमले किये हैं तो इसके पीछे लॉजिक क्या है ? यदि ये मुस्लिम संगठन बौद्धों या फिर ‘बोदु बाला सेना’ (BBS) से पीड़ित हैं, तो फिर ईस्टर के दिन ईसाईयों की जाने क्यों लेंगे, चर्चों पर हमले क्यों करेंगे ?
मुस्लिम संगठनों की ईसाईयों से क्या दुश्मनी हुई ? एक पीड़ित अल्पसंख्यक समुदाय दूसरे पीड़ित अल्पसंख्यक समुदाय पर हमला क्यों करेगा ? सोचिए ज़रा !
श्रीलंका की कुल आबादी लगभग 2.2 करोड़ है, इसमें 70 फीसदी बौद्ध धर्म के लोग हैं, 12.5 फीसदी हिंदू , करीब 9.5 फीसदी मुस्लिम हैं और 7.6 फीसदी ईसाई धर्म के लोग हैं। ‘बोदु बाला सेना’ भी श्रीलंका में संघ की तर्ज़ पर इन 9 फीसदी मुसलमानों और 7 फीसदी ईसाइयों का भय दिखाकर राष्ट्रवादी होने का दम भरती आयी है। मुसलमानों की बढ़ती जनसँख्या का भय, मुस्लिम धर्म के विस्तार का भय, हलाल चीज़ों पर प्रतिबन्ध की मांग, मुसलमानों के ख़िलाफ़ सीधी कार्रवाई और उनके व्यापारिक प्रतिष्ठानों के बहिष्कार के खुले आम आह्वान किये जाते रहे हैं।
‘बोदु बाला सेना’ 2012 में बना कट्टर राष्ट्रवादी बौद्ध भिक्षुओं का ग्रुप था, जिन्होंने हिंदुओं, मुसलमानों और ईसाइयों के खिलाफ भावनाएं भड़काईं, इस ग्रुप को राजपक्षे के भाई और ताकतवर रक्षा सचिव गोतबाया का मौन समर्थन हासिल था।
‘बोदु बाला सेना’ ने मुसलमानों और गिरजाघरों पर हमले शुरू कर दिए, उनकी मुख्य शिकायत यह थी कि कोलंबो में मुस्लिम आबादी बौद्धों के मुकाबले तेजी से बढ़ रही थी, कट्टर बौद्ध संगठन बोदु बाला सेना का हर बौद्ध मुस्लिम-ईसाई दंगे में नाम रहा है, साल 2013 में कोलंबो में बौद्ध गुरुओं के नेतृत्व में एक भीड़ ने कपड़े के एक स्टोर पर हमला कर दिया था, कपड़े की ये दुकान एक मुस्लिम की थी और हमले में कम से कम सात लोग घायल हो गए थे, साल 2014 में कट्टरपंथी बौद्ध गुटों ने तीन मुसलमानों की हत्या कर दी थी जिसके बाद गॉल में दंगे भड़क गए थे।
26 -27 फरवरी 2017 को श्रीलंका के पूर्वी प्रांत के अंपारा कस्बे में बौद्ध और मुस्लिम समुदाय के बीच सांप्रदायिक हिंसा हुई थी। पिछले साल ही मार्च में श्रीलंका में बौद्ध और मुस्लिम समुदाय के बीच सांप्रदायिक हिंसा के बाद 10 दिनों के लिए आपातकाल घोषित किया गया था, और सोशल मीडिया बैन कर दिया गया था, इसकी वजह थी बौद्धों का मुसलमानों के खिलाफ सोशल मीडिया पर ज़बरदस्त हेट स्पीच करना।
उग्रवादी बौद्ध संगठन ‘बोदु बाला सेना’ का सांप्रदायिक इतिहास BBC के इस लेख में पढ़ सकते हैं।
श्रीलंका में सिंहली बौद्धों का एक बड़ा वर्ग है, जो गैर-सिंहली मूल के लोगों और मुस्लिमों को अपने लिए खतरे के तौर पर देखता है। 2014 में भी श्रीलंका में बड़े पैमाने पर दंगे हुए थे। एक अनुमान के मुताबिक उस हिंसा में 8,000 मुस्लिम और 2,000 सिंहलियों को विस्थापित होना पड़ा था। कट्टर बौद्ध संगठन बोदु बाला सेना को भी ऐसी हिंसा के लिए जिम्मेदार माना जाता रहा है। इस संगठन के जनरल सेक्रटरी गालागोदा ऐथे गनानसारा अकसर कहते रहे हैं कि मुस्लिमों की बढ़ती आबादी देश के मूल सिंहली बौद्धों के लिए खतरा है।
इसी के साथ ‘बोदु बाला सेना’ मयंमार के कुख्यात वौद्ध भिक्षु अशीन विराथु के ‘969 संगठन’ या ‘969 मुहिम’ का भी श्रीलंका में लगातार प्रचार प्रसार कर रहा है, और इसी कड़ी में असिन विराथु श्रीलंका के दौरे भी कर चुका है, इसका एजेंडा बौद्ध समुदाय के लोगों से अपने ही समुदाय के लोगों से खरीदारी करने, उन्हें ही संपत्ति बेचने और अपने ही धर्म में शादी करने की बात करता है, कह सकते हैं कि ये खालिस मुस्लिम विरोधी मुहिम है, इसे दूसरे रूप में रक्त शुद्धि आंदोलन (Ethnic Cleansing) भी कह सकते हैं, ये ठीक हिटलर के बदनाम न्यूरेम्बर्ग क़ानून की तरह है।
‘बोदु बाला सेना’ के चीफ गनानसारा को साल 2018 में यौन उत्पीड़न के एक मामले के सिलसिले में गिरफ्तार करने आए एक पुलिसकर्मी की कथित तौर पर हत्या करने के आरोप में 10 माह की सजा भी हुई थी। इसके विरोध में श्रीलंका में बवाल खड़ा हो गया था।
कुल मिलकर श्रीलंका के बौद्ध मुस्लिम और ईसाई सांप्रदायिक दंगों का संक्षिप्त इतिहास देखें तो उक्त कथित इस्लामी आतंकी संगठओं की लिप्तता कहीं नज़र नहीं आती, ऐसे में साम्प्रदायिकता के ज़हर से लबालब गोदी मीडिया को कहाँ से आकाशवाणी हुई है ये समझ से बाहर है, फिलहाल इस दुखद घटना की सत्यता जांचना और समझना है तो विदेशी मीडिया पर नज़र रखिये, आज नहीं तो कल दोषी सामने होंगे चाहे ‘बोदु बाला सेना’ हो या फिर ISIS और नेशनल तौहीद जमात। मगर जिस तरह से देश के कुछ सांप्रदायिक लम्पट पोर्टल्स ने श्रीलंका सरकार के आधिकारिक बयान से पहले ही इसे इस्लामी आतंक से जोड़ा है वो शर्मनाक है।।
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कासगंज घटना में मृतक चंदन के परिजनों को 20 लाख रुपए मुआवजा देने का ऐलान…
लखनऊ: कासगंज के सांप्रदायिक दंगे में मारे गए युवक चंदन गुप्ता के परिजनों को उत्तर प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी सरकार ने मुआवजा देने का ऐलान किया है। मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने कासगंज की घटना में मृत युवक चंदन गुप्��ा के परिजनों को 20 लाख रुपये का आर्थिक सहायता देने के निर्देश दिए हैं। गौरतलब है कि कासगंज जिले में 26 जनवरी को दो गुटों में हिंसक झड़प के बाद कर्फ्यू लगा दिया गया है। हिंसा 26 जनवरी की…
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DNA ANALYSIS: अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए अब धर्म बदलना होगा?
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DNA ANALYSIS: अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए अब धर्म बदलना होगा?
मैं पिछले 26 साल से पत्रकारिता कर रहा हूं. इस दौरान मैंने आपको अच्छी खबरें भी बताई और बुरी खबरें भी बताई. कुछ खबरें देखकर आप उदास हो गए होंगे तो कुछ खबरों से आपको उम्मीद बंधी होगी. इस दौरान मैं ऐसी बहुत सारी जगहों पर गया जहां मेरी खुद की जान खतरे में आ गई.
इन 26 वर्षों में मैंने सियाचिन में माइनस 50 डिग्री तापमान में रिपोर्टिंग की. जब भारत की संसद पर आतंकवादियों ने हमला किया तब मैंने संसद के ठीक सामने से आपके लिए रिपोर्टिंग की. मैंने कारगिल युद्ध की भी रिपोर्टिंग की. आतंकवादी संगठन ISIS को करीब से देखने के लिए मैं सीरिया तक पहुंच गया. उस समय जब दुनिया के बहुत सारे पत्रकार वहां जाने के ख्याल से भी डरते थे. ये सारे ऐसे असाइन्मेंट्स थे जिनमें जान भी जा सकती थी.
मेरा परिवार मुझसे पूछता था कि ऐसी खतरनाक जगहों पर जाने की आखिर क्या जरूरत थी? लेकिन मैं आपको अनदेखी और अनसुनी कहानियां बताना चाहता था और सच कहूं तो ऐसा करके मुझे एक अजीब तरह की संतुष्टि मिलती थी. संतुष्टि इस बात की कि मैंने आपको वो दिखाया जो शायद आप घर बैठे ना देख पाते.
पिछले 2 महीनों से भारत समेत पूरी दुनिया कोरोना वायरस से जूझ रही है. लोग अपने घरों से बाहर नहीं निकल रहे हैं. इस दौरान भी मैं हर रोज दफ्तर आया और ज़ी न्यूज़ की पूरी टीम भी अपनी जान जोखिम में डालकर हर रोज दफ्तर आई. उनके परिवार वाले भी यही पूछ रहे हैं कि क्या वो वर्क फ्रॉम होम नहीं कर सकते?
लेकिन हमने ये सब किसी पुरस्कार की उम्मीद में नहीं किया. किसी पद या पैसे के लालच में नहीं किया. हमने ये सब सिर्फ आपके प्यार के लिए किया और इस देश के लिए किया.
लेकिन इतना सब करने के बाद भी जब देश के कोने-कोने से हमें इनाम के तौर पर सिर्फ FIR और लीगल नोटिस मिलते हैं तो कई बार हम अपने आपसे ये सवाल पूछते हैं कि ये हो क्या रहा है?
आज मैं आपके सामने विक्टिम कार्ड नहीं खेल रहा हूं. बल्कि आपको ये बता रहा हूं कि आप सबकी जो शक्ति है वो ऐसे मुट्ठी भर लोगों की शक्ति से कहीं ज्यादा है. हो सकता है कि आज भी हमें बहुत सारे पत्रकारों और बुद्धिजीवियों का साथ ना मिल रहा हो, बहुत सारे नेता भी चुप हैं. हमारी ये खबर विदेशी मीडिया में भी नहीं छपेगी. लेकिन हमारे साथ आप खड़े हैं, इस देश की जनता खड़ी है. हम भी आपको आश्वासन देना चाहते हैं कि हम आपके साथ हमेशा ऐसे ही खड़े रहेंगे और आपके भरोसे को कभी टूटने नहीं देंगे.
11 मार्च को हमने सिर्फ जमीन जेहाद का ही सच नहीं दिखाया, बल्कि हमने लगातार उन लोगों को एक्सपोज किया जो देश को बांटने की साजिश रच रहे हैं. ये सच दिखाना ही हमारा सबसे बड़ा गुनाह है और आज हमने खुद अपने गुनाहों की एक लिस्ट तैयार की है. क्योंकि अगर सच दिखाना अपराध है तो हम बार-बार ये अपराध करते रहेंगे. फिर चाहे इसकी हमें जो सजा दी जाए.
इसकी शुरुआत इस साल जनवरी के महीने से हुई थी. तब हमने आपको PFI यानी पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया का सच दिखाया था. हमने आपको बताया था कि कैसे ये संगठन देश में इस्लामिक राज की स्थापना का सपना देख रहा है. हमने आपको ये भी बताया था कि कैसे इस संगठन के तार केरल में लव जेहाद से जुड़ते रहे हैं और ये संगठन नागरिकता कानून का विरोध करने वालों की फंडिंग करने का भी आरोपी है.
हमने आपको केरल की उन लड़कियों की गवाही भी सुनवाई थी जिनका जबरन धर्म परिवर्तन कर दिया गया था. हमने उस हादिया केस का भी जिक्र किया था, जिसमें अखिला को हादिया बना दिया गया था और अखिला के पिता पूर्व सैनिक होते हुए भी इसे रोक नहीं पाए. कहा जाता है कि हादिया का पति PFI का एक्टिविस्ट था और इसीलिए सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की पैरवी करने के लिए PFI ने एक करोड़ रुपये खर्च कर दिए थे. लेकिन ये सच भी जेहादी गैंग को पसंद नहीं आया.
अपनी एक रिपोर्टिंग में हमने आपको ये भी बताया था कि कैसे PFI के तार आतंकवादी संगठनों से भी जुड़े हुए हैं.
PFI पर किए गए इस DNA से ठीक दो दिन पहले मैं खुद शाहीन बाग गया था. शाहीन बाग में उन दिनों नए नागरिकता कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन चल रहा था. लेकिन प्रदर्शनकारियों ने मुझे वहां भी घुसने नहीं दिया.
मेरे ठीक सामने PFI के कई दफ्तर थे मैं वहां जाना चाहता था और इन विरोध प्रदर्शनों के लिए की गई फंडिंग का सच जानना चाहता था. लेकिन बीच में शाहीन बाग के प्रदर्शनकारी थे जो ज़ी न्यूज़ को वहां देखकर परेशान हो गए थे और हमें आगे बढ़ने से रोक रहे थे. मुझे ऐसा लग रहा था कि मुझे अपने ही देश के एक इलाके में जाने के लिए शायद वीजा लेना होगा.
इसके बाद इसी वर्ष फरवरी में मैंने ग्राउंड जीरो पर जाकर दिल्ली दंगों का सच आपको दिखाया था. मैंने आपके दिखाया था कि कैसे ये दंगे एक सोची समझी साजिश का हिस्सा थे.
हमने दंगों के आरोपी ताहिर हुसैन का भी सच आपको दिखाया था. ताहिर हुसैन का नाम लेना ही इन लोगों को बुरा लग गया.
पिछले कुछ दिनों से हम आपको लगातार तबलीगी जमात का सच भी दिखा रहे थे. इस दौरान हमने देश के मान सम्मान पर थूकने वालों को भी एक्सपोज किया और इसी बात पर ये लोग हमारे दुश्मन बन गए.
इससे पहले देश के शहरों में छिपकर बैठे अर्बन नक्सल्स के बारे में हमने आपको बताया था और JNU में देश विरोधी नारेबाजी का सच भी आपको दिखाया था. लेकिन ये सारे सच ना तो टुकड़े-टुकड़े गैंग को पसंद आए, ना ही अफजल प्रेमी गैंग को, ना ही बुद्धिजीवियों को, और ना ही कुछ राजनीतिक पार्टियों को.
ऐसी ही रिपोर्टिंग की वजह से ज़ी न्यूज़ इन सब लोगों का दुश्मन नंबर 1 बन गया. केरल में मेरे खिलाफ दर्ज की गई FIR भी इसी दुश्मनी का नतीजा है. लेकिन हम इस FIR को असली पुलित्जर पुरस्कार मानते हैं क्योंकि कम से कम ये FIR सच दिखाने का नतीजा तो है.
ये FIR IPC की धारा 295A के तहत दर्ज की गई है. जिसके तहत ज़ी न्यूज़ पर मुसलमानों की धार्मिक भावनाएं आहत करने के आरोप लगाए गए हैं. ये धारा सच बोलने वाले पत्रकारों के खिलाफ बदले की कार्रवाई का हथियार बन गई है. आप वर्ष 2020 को पत्रकारिता का आपातकाल भी कह सकते हैं क्योंकि इस वर्ष कई राज्यों की सरकारों ने पत्रकारों के खिलाफ ऐसे ही बदले की कार्रवाई की है.
लेकिन सवाल ये है कि जेहाद का सच दिखाना गुनाह कैसे हो सकता है? जिस विचारधारा के दम पर पूरी दुनिया में हजारों लोगों का खून बहाया जाता है. बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन किया जाता है. आतंकवादी हमले किए जाते हैं उस विचारधारा पर बात करना अपराध कैसे हो सकता है?
DNA में जमीन जेहाद पर बात करने से किसी मुसलमान की भावना कैसे आहत हो सकती है? लव जिहाद का सच कैसे किसी को चोट पहुंचा सकता है? अपने ही देश के एक इलाके में जाना गुनाह कैसे हो सकता है? कोई भी समझदार व्यक्ति कहेगा कि इन सारी बातों में कुछ गलत नहीं है.
लेकिन हमारे देश में एक ऐसा धार्मिक ईको सिस्टम तैयार किया जा रहा है जिसके तहत ये सारी बातें गुनाह हैं.
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सीसीटीवी कैमरे में कैद हुए कासगंज दंगे के आरोपी: देखें वीडियो और शेयर करें
राजनितिक विश्लेषक अमरेश मिश्रा लिखते हैं कि हिंसा में चन्दन गुप्ता की जो मौत हुई वो हिंदुत्व संगठनों से जुड़े लोगों द्वारा आपसी फायर का नतीजा था. उसी फायरिंग में नौशाद नामक एक मुस्लिम शख्स को भी गंभीर चोट आयी और वो इस समय अलीगढ के अस्पताल में भर्ती है.
उत्तर प्रदेश के कासगंज में 26 जनवरी को हिंसा हो गई थी, इस हिंसा में चंदन गुप्ता नाम के युवक की मौत हो गई थी वहीं नौशाद नाम के एक युवक को गोली लगने…
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बाबरी मस्जिद विध्वंस की 25वीं वर्षगांठ से ठीक एक दिन पहले आज सुप्रीम कोर्ट में रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद स्वामित्व विवाद पर सुनवाई शुरू होगी. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले और पक्षकारों की दलीलों के मद्देनजर ये तय करेगी कि आखिर इस मुकदमे का निपटारा करने के लिए सुनवाई को कैसे पूरा किया जाए यानी हाईकोर्ट के फैसले के अलावा और कितने तकनीकी और कानूनी बिंदू हैं जिन पर कोर्ट को सुनवाई करनी है. सुनवाई करने वाली बेंच में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के अलावा जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस.अब्दुल नजीर भी होंगे. इस मुकदमे की सुनवाई के लिए सभी पक्षकार पूरी तैयारी से अदालत में सुनवाई का इंतजार कर रहे हैं. अयोध्या से दिल्ली पहुंचे रामलला विराजमान की ओर से पक्षकार महंत धर्मदास ने दावा किया कि सभी सबूत, रिपोर्ट और भावनाएं मंदिर के पक्ष में हैं. हाईकोर्ट के फैसले में जमीन का बंटवारा किया गया है जो हमारे साथ उचित न्याय नहीं है. उन्होंने कहा कि हमारी कोर्ट में दलील होगी कि यहां ढांचे से पहले भी मंदिर था और जबरन यहां मस्जिद बनाई गई, लेकिन बाद में फिर मंदिर की तरह वहां राम लला की सेवा पूजा होती रही अब वहीं रामजन्मभूमि मंदिर है. लिहाजा हमारा दावा ही बनता है. कोर्ट सबूत और कानून से न्याय करता है और सबूत और कानून हमारे साथ है. यानी रामलला के जन्मस्थान पर सुप्रीम कोर्ट भी सबूतों और कानूनी प्रावधान पर ही न्याय करेगा. शिया वक्फ बोर्ड का क्या है पक्ष दूसरी ओर शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी का कहना है कि कोर्ट में भी वो अपने बोर्ड का रुख ही दोहराएंगे. शिया वक्फ बोर्ड का तो मानना साफ है कि विवादित जगह पर राम मंदिर बने, रही बात मस्जिद की तो लखनऊ या फैजाबाद में मस्जिद अमन बने. वहां मुस्लिम भाई नमाज अदा करें. किसी को इसमें कोई परेशानी नहीं है, लेकिन चंद मुट्ठी भर धर्म के ठेकेदार हैं जिन पर विदेशी ताकतों का दबाव भी है वो नहीं चाहते कि अमन व भाईचारे से ये मामला हल हो. जबकि हमें हिंदू भावनाओं का सम्मान करते हुए भारत की शान बढ़ानी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट में भी उनका यही रुख रहेगा. यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से जब हमने कमाल फारुकी से संपर्क किया तो उनका कहना था कि अभी वो इस बारे में कुछ नहीं बोलेंगे, क्योंकि देश में वैसे ही माहौल खराब है. ऐसे में कोर्ट में सुनवाई आगे बढ़े तभी उनका बोलना उचित होगा. देश में अमन और भाईचारा रहे इस लिहाज से अभी कुछ भी बोलना उचित नहीं है. फिलहाल पूरे देश और दुनिया की निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हैं कि सुनवाई की दिशा और रूपरेखा किस तरह आगे बढ़ती है. बता दें कि इस मामले से जुड़े 9,000 पन्नों के दस्तावेज और 90,000 पन्नों में दर्ज गवाहियां पाली, फारसी, संस्कृत, अरबी सहित विभिन्न भाषाओं में दर्ज हैं, जिस पर सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कोर्ट से इन दस्तावेज़ों को अनुवाद कराने की मांग की थी. तारीख दर तारीख जानें कब-कब क्या-क्या हुआ.... 1528 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद का निर्माण किया गया. 1949 में बाबरी मस्जिद में गुप्त रूप से भागवान राम की मूर्ति रख दी गई. 1984 में मंदिर निर्माण के लिए एक कमेटी का गठन किया गया. 1959 में निर्मोही अखाड़ा की ओर से विवादित स्थल के स्थानांतरण के लिए अर्जी दी थी, जिसके बाद 1961 में यूपी सुन्नी सेंट्रल बोर्ड ने भी बाबरी मस्जिद स्थल पर कब्जा के लिए अपील दायर की थी. 1986 में विवादित स्थल को श्रद्धालुओं क��� लिए खोला गया. 1986 में ही बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया गया. 1990 में लालकृष्ण आडवाणी ने देशव्यापी रथयात्रा की शुरुआत की. 1991 में रथयात्रा की लहर से बीजेपी यूपी की सत्ता में आई. इसी साल मंदिर निर्माण के लिए देशभर के लिए इंटें भेजी गई. 6 दिसंबर, 1992: अयोध्या पहुंचकर हजारों की संख्या में कार सेवकों ने बाबरी मस्जिद का विध्वंस कर दिया था. इसके बाद हर तरफ सांप्रदायिक दंगे हुए. पुलिस द्वारा लाठी चार्ज और फायरिंग में कई लोगों की मौत हो गई. जल्दबाजी में एक अस्थाई राम मंदिर बनाया गया. प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने मस्जिद के पुनर्निर्माण का वादा किया. 16 दिसंबर, 1992: बाबरी मस्जिद विध्वंस के लिए जिम्मेदार परिस्थितियों की जांच के लिए एमएस लिब्रहान आयोग का गठन किया गया. 1994: इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ में बाबरी मस्जिद विध्वंस से संबंधित केस चलना शुरू हुआ. 4 मई, 2001: स्पेशल जज एसके शुक्ला ने बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी सहित 13 नेताओं से साजिश का आरोप हटा दिया. 1 जनवरी, 2002: तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक अयोध्या विभाग शुरू किया. इसका काम विवाद को सुलझाने के लिए हिंदुओं और मुसलमानों से बातचीत करना था. 1 अप्रैल 2002: अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर इलाहबाद हाई कोर्ट के तीन जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू कर दी. 5 मार्च 2003: इलाहबाद हाई कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को अयोध्या में खुदाई का निर्देश दिया, ताकि मंदिर या मस्जिद का प्रमाण मिल सके. 22 अगस्त, 2003: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अयोध्या में खुदाई के बाद इलाहबाद हाई कोर्ट में रिपोर्ट पेश किया. इसमें कहा गया कि मस्जिद के नीचे 10वीं सदी के मंदिर के अवशेष प्रमाण मिले हैं. मुस्लिमों में इसे लेकर अलग-अलग मत थे. इस रिपोर्ट को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने चैलेंज किया. सितंबर 2003: एक अदालत ने फैसला दिया कि मस्जिद के विध्वंस को उकसाने वाले सात हिंदू नेताओं को सुनवाई के लिए बुलाया जाए. जुलाई 2009: लिब्रहान आयोग ने गठन के 17 साल बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपनी रिपोर्ट सौंपी. 26 जुलाई, 2010: इस मामले की सुनवाई कर रही इलाहबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने फैसला सुरक्षित किया और सभी पक्षों को आपस में इसका हल निकाले की सलाह दी. लेकिन कोई आगे नहीं आया. 28 सितंबर 2010: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहबाद हाई कोर्ट को विवादित मामले में फैसला देने से रोकने वाली याचिका खारिज करते हुए फैसले का मार्ग प्रशस्त किया. 30 सितंबर 2010: इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया. इसके तहत विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटा दिया गया. इसमें एक हिस्सा राम मंदिर, दूसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े को मिला. 9 मई 2011: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी. 21 मार्च 2017: सुप्रीम कोर्ट ने आपसी सहमति से विवाद सुलझाने की बात कही. 19 अप्रैल 2017: सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद गिराए जाने के मामले में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती सहित बीजेपी और आरएसएस के कई नेताओं के खिलाफ आपराधिक केस चलाने का आदेश दिया. 9 नवंबर 2017: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात के बाद शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी ने बड़ा बयान दिया था. रिजवी ने कहा कि अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर बनना चाहिए, वहां से दूर हटके मस्जिद का निर्माण किया जाए. 16 नवंबर 2017: आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर ने मामले को सुलझाने के लिए मध्यस्थता करने की कोशिश की, उन्होंने कई पक्षों से मुलाकात की.
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लाल किला हिंसा के मास्टरमांइड लक्खा ने जारी किया वीडियो, 23 फरवरी को प्रदर्शन का आह्वान किया
लाल किला हिंसा के मास्टरमांइड लक्खा ने जारी किया वीडियो, 23 फरवरी को प्रदर्शन का आह्वान किया
लाल किला हिंसा का मास्टरमाइंड पूर्व गैंगस्टर लक्खा सिंह सिधाना दिल्ली पुलिस के लिए सिरदर्द बना हुआ है। लक्खा ने एक के बाद एक फेसबुक वीडियो बनाकर पुलिस को खुली चुनौती दी है। लक्खा ने 23 फरवरी को बठिंडा में प्रदर्शन का आह्वान किया …. किसान आंदोलन के समर्थन में नौजवानों ने।
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नॉर्थ ईस्ट दिल्ली दंगे: दिल्ली पुलिस ने ताहिर हुसैन को बताया मास्टरमाइंड, बताया कैसे रची साजिश
ताहिर हुसैन (फाइल फोटो)
हाइलाइट्स
दंगों से पहले थाने में जमा पिस्टल निकलवाई थी पार्षद ताहिर हुसैन ने
पार्षद को लेकर एसआईटी का कोर्ट में खुलासा, उमर खालिद के संपर्क में होने का दावा
आईबी कर्मचारी अंकित शर्मा के मर्डर में भी आरोपी है ताहिर
ई दिल्ली
दिल्ली के नॉर्थ ईस्ट जिले में फरवरी में हुए दंगे का मास्टरमाइंड पुलिस ने पार्षद ताहिर हुसैन को बताया है। पुलिस का कहना है कि दंगा कराने के लिए ताहिर ने करोड़ों रुपये खर्च किए थे। इसके लिए वह पूर्व जेएनयू स्टूडेंट उमर खालिद और शाहदरा के खुरेजी खास दंगे में आरोपी खालिद सैफी के संपर्क में थे। क्राइम ब्रांच की एसआईटी ने मंगलवार को कड़कड़डूमा कोर्ट में दाखिल चार्जशीट में यह खुलासा किया। पुलिस ने ताहिर समेत 15 लोगों को आरोपी बनाया है। इनमें ताहिर का छोटा भाई शाह आलम भी है। जांच में सामने आया कि ताहिर ने दंगे के दौरान अपनी लाइसेंसी पिस्टल का इस्तेमाल किया था। जिसे उसने दंगे शुरू होने के ठीक एक दिन पहले ही रिलीज करवाया था���
ट्रांसफर करवाए थे 1.1 करोड़ रुपये
पुलिस चार्जशीट में ताहिर पर आरोप है कि जनवरी के दूसरे हफ्ते में 1.1 करोड़ रुपये शेल कंपनियों में ट्रांसफर करवाए फिर बाद में उन पैसों को कैश में ले लिया। इसमें मीनू फैब्रिकेशन, एसपी फाइनैंशल सर्विस, यूद्धवी इंपेक्स, शो इफेक्ट एडवर्जाइजिंग और इसेंस सेलकॉम नाम की कंपनी को पैसे ट्रांसफर हुए थे। ताहिर के घर पर कई सीसीटीवी हैं लेकिन वहां 23 से 28 के बीच की कोई रेकॉर्डिंग नहीं है।
एक दिन पहले निकलवाई थी जमा पिस्टल
ताहिर से दंगे से सिर्फ एक दिन पहले खजूरी खास थाने में जमा अपनी पिस्टल निकलवाई थी। ऐसा क्यों किया इसका ताहिर के पास जवाब नहीं। उनके नाम पर 100 कार्टेज इशू हुए थे। इसमें से 64 बचे हैं। 20 इस्तेमाल करे उनके घर पर मिले, वहीं 16 का हिसाब नहीं। नॉर्थ ईस्ट के दंगों को लेकर नेहरू विहार से पार्षद ताहिर हुसैन 10 केसों में आरोपी हैं। चार्जशीट कहती है कि दंगे से पहले खालिद सैफी और उमर खालिद से ताहिर की मुलाकात हुई थी। इसका सबूत उनकी मोबाइल लोकेशन है।
ताहिर हुसैन पर क्या आरोप
वायरल हुआ था ताहिर का वीडियो
दिल्ली दंगों के दौरान छत में हाथ में डंडा लिए हुए घूम रहे पार्षद ताहिर हुसैन का विडियो वायरल हुआ था। अगले दिन उनकी छत पर पेट्रोल बम, गुलेल, ईंट-पत्थर मिलने की खबरें खूब चली थीं। जांच के दौरान अब साजिश की गहरी जड़े भी सामने आई हैं। क्राइम ब्रांच की एसआईटी ने मंगलवार को कड़कड़डूमा कोर्ट में दाखिल चार्जशीट में यह खुलासा किया है। यह दंगों में तीसरी चार्जशीट है। पुलिस का दावा है कि खजूरी खास इलाके में रहने वाले ताहिर नॉर्थ ईस्ट दंगों के मास्टरमाइंड में से एक है। वह जेएनयू के पूर्व स्टूडेंट उमर खालिद और शाहदरा के खुरेजी खास दंगे में आरोपी खालिद सैफी के टच में थे।
दिल्ली दंगे: क्या आपने भी इन 5 अफवाहों पर यकीन कर लिया?दिल्ली में दंगों के बाद कुछ शरारती लोग फर्जी खबरों को लगातार शेयर कर रहे है, जिनके बहकावे में लोग आ भी रहे हैं। नवभारत टाइम्स आपको बता रहा है ऐसे 5 मामले जिनका सच ना सिर्फ आपको जानना चाहिए, बल्कि इनपर यकीन कर रहे लोगों को भी समझाना चाहिए।
चार्जशीट के मुताबिक, खजूरी खास के चांदबाग पुलिया पर हुए 24 जून के दंगे वाले केस में ताहिर समेत 15 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। इनमें ताहिर का छोटा भाई शाह आलम भी है। ताहिर ने दंगे के दौरान अपनी लाइसेंसी पिस्टल का इस्तेमाल किया था, जिसे जब्त कर लिया गया। जांच के दौरान सामने आया कि दिल्ली विधानसभा चुनाव के मद्देनजर ताहिर की पिस्टल को खजूरी खास थाने में जमा थी। वह इस पिस्टल को नॉर्थ ईस्ट जिले में दंगे शुरू होने के ठीक एक दिन पहले 22 फरवरी को रिलीज कराकर लाए थे। दावा किया गया है कि दिल्ली में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन और दंगे कराने वाले बड़े ग्रुप उमर खालिद और खालिद सैफी के संपर्क में थे। उन्होंने इलाके में दंगों को कराने की साजिश रची हुई थी। चार्जशीट 1020 पेज की है, जिसमें 15 को आरोपी और 50 से ज्यादा को गवाह बनाया गया है। ताहिर हुसैन 10 केसों में आरोपी हैं। आईबी स्टाफर अंकित शर्मा मर्डर केस भी इसमें शामिल है। स्पेशल सेल ने ताहिर को भी UAPA के तहत बुक किया है।
मर्डर की पहली चार्जशीट में 10 नाम, पिंजरा तोड़ ग्रुप पर साजिश का आरोप
जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के नीचे से 25 फरवरी की रात भीड़ के हिंसक होने पर पुलिस ने बल प्रयोग किया था। इस हिंसा में 9 पुलिसकर्मी, 10 सीआरपीएफ के जवान और 10 प्रदर्शनकारी जख्मी हुए थे। 18 साल के युवक अमान की इलाज के दौरान मौत हो गई थी, जिसे भीड़ की गोली लगी थी। क्राइम ब्रांच ने मंगलवार को कड़कड़डूमा कोर्ट में चार्जशीट दाखिल कर दी। फिलहाल 10 आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया गया, जिनमें से एक जमानत पर है। दो नाबालिग भी इस हिंसा में शामिल थे। पिंजरा तोड़ ग्रुप की देवांगना कलिता और नताशा नरवाल समेत कई आरोपियों के खिलाफ बाद में सप्लिमेंट्री चार्जशीट पेश करने की बात कही गई है।
एसआईटी की तरफ से इंस्पेक्टर कुलदीप सिंह ने 458 पेज की चार्जशीट में 53 गवाह बनाए हैं। इस दौरान जख्मी में हुए 10 लोगों में से 5 को अरेस्ट किया गया, जबकि पांच लोगों ने अपना पता गलत या अधूरा लिखवाया था। इसलिए पुलिस उन तक नहीं पहुंच सकी। इसी तरफ चार्जशीट में बताया गया कि विडियो फुटेज में कई लोग दिखाई दिए हैं, जिनकी पहचान की जा रही है। पुलिस का दावा है कि भीड़ को भड़काने में पिंजरा तोड़ ग्रुप, जामिया को-ऑर्डिनेशन कमिटी के मेंबर, जेएनयू के स्टूडेंट शामिल थे। इनकी वजह से ही दंगे भड़के।
दंगे से पहले भेजा गया मेसेज
आरोपी रिफाकत अली के मोबाइल से एक हेट मेसेज मिला। इसमें कहा गया कि दंगा होने पर घर की औरतें करें- 1. घर में गर्म और खौलते हुए तेल और पानी का इंतजाम करें। 2. अपनी बिल्डिंग की सीढ़ियों पर तेल, सर्फ और शैंपू डालें। 3. लाल मिर्च गर्म पानी में या मिर्च पाउडर का इस्तेमाल करें। 4. दरवाजों को मजबूत करें, जल्द से जल्द लोहे की ग्रिल वाला लगवाएं। 5. तेजाब की बोतलें घर में रखें। 6. बालकनी और छत पर ईंट-पत्थर जमा करें। 7. कार और बाइक से पेट्रोल निकालकर रख लें। 8. लोहे के दरवाजों में स्विच से करंट का इस्तेमाल करें। 9. एक बिल्डिंग से दूसरी बिल्डिंग की छत पर जाने का रास्ता बनाएं। 10. घर के सारे मर्द बिल्डिंग को ना छोड़ें और कुछ लोग महिलाओं की सुरक्षा के लिए रहें।
भीड़ को लड़कियों ने उकसाया
पुलिस को इस मेसेज का सोर्स नहीं मिला है, इसलिए मोबाइल को जांच के लिए भेजा गया है, जिसकी रिपोर्ट अभी आनी बाकी है। चार्जशीट में दावा किया गया है कि रिफाकत ने अपने बयान में कहा कि जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के नीचे बैठीं तीन-चार औरतें कह रही थीं कि रोड से हटना नहीं है। ऐसे में रिफाकत ने भी भीड़ को पुलिस पर पथराव करने, रॉड-डंडे से हमला करने और फायरिंग करने के लिए उकसाया। आरोपी शाहरूख खान ने बयान दिया कि देवांगना, नताशा, गुलफिशा, रुमशा समेत अन्य लड़कियों ने भीड़ को पुलिस पर हमला करने के लिए उकसाया था।
पिंजरा तोड़ ग्रुप का कबूलनामा
चार्जशीट के मुताबिक, देवांगाना और नताशा ने बताया कि वे साजिश के तहत धरने पर बैठी थीं। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के 22 फरवरी को भारत आने से पहले वह जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के नीचे रोड जाम करके बैठ गई थीं। मकसद दूसरे समुदाय के लोगों को भड़काना था, ताकि हिंदू-मुस्लिम दंगा कराया जा सके। दोनों की कॉल डिटेल खंगालने पर पाया कि वे इंडिया अगेंस्ट हेट ग्रुप और जेएनयू के पूर्व स्टूडेंट उमर खालिद के संपर्क में थीं। इन दोनों समेत अन्य लड़कियों के खिलाफ और सबूत जुटाए जा रहे हैं, जिनके खिलाफ सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल की जाएगी। नॉर्थ ईस्ट में फरवरी में हुए दंगों को दिसंबर में हुए 10 दंगों से जोड़ा गया है।
ये हैं जाफराबाद के 10 आरोपी
विजय मोहल्ला मौजपुर के रिफाकत अली (39), जनता कॉलोनी वेलकम के मोहम्मद फैजान (19), अकील उर्फ बोना (26), मोहम्मद शरीफ (23), सलमान (26), महफूज राजा उर्फ काना (30), मोहम्मद शाहिद (37), अब्दुल गफ्फार (23), जाफराबाद के मोहम्मद आजाद (35) और शाहरूख खान (24) के खिलाफ धारा दंगा, सरकारी कर्मचारी पर हमला, हत्या, जानलेवा हमला, आपराधिक षड़यंत्र, आर्म्स एक्ट समेत कई धाराओं में चार्जशीट पेश की गई है। इसमें शाहरूख को जमानत मिली थी, क्योंकि वह इस हिंसा में अपनी एक आंख पूरी तरह गंवा चुके हैं और दूसरी आंख भी 90 फीसदी खराब हो गई है।
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26 जनवरी में दिल्ली हिंसा के आरोपियों दीप सिद्धू और इकबाल सिंह को लेकर क्राइम ब्रांच की टीम रेडपोर्ट पर पहुंच गई है। ये दोनों को वहां ले जाने के लिए पूरी घटना को रीक्रिएट किया जाएगा … 26 जनवरी को ट्रॉड मार्च के दौरान भारी भीड़ रेडलाइट्स तक पहुंच जाएगी।
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