#14वीं
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thebharatexpress · 2 years ago
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PM Kisan Yojna: इंतजार हुआ खत्म…! PM किसान योजना को लेकर आया नया अपडेट, इस दिन आएगी 14वीं किस्त
PM Kisan Yojna : नई दिल्ली। देश के करोड़ो किसानों के लिए अच्छी खबर सामने आई है। केंद्र सरकार की तरफ से पीएम क‍िसान सम्‍मान न‍िध‍ि योजना को क‍िसानों को आर्थ‍िक रूप से सशक्‍त बनाने के ल‍िए शुरू क‍िया गया था। इससे क‍िसानों को काफी फायदा म‍िल रहा है। अब तक सरकार की तरफ से 13 क‍िस्‍त क‍िसानों के खाते में ट्रांसफर की जा चुकी हैं। अब क‍िसान 14वीं क‍िस्‍त का इंतजार कर रहे हैं। PM Kisan Yojna :  PM Kisan…
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dailysarkariupdate · 2 years ago
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PM Kisan 14th Installment 2023 : 13वीं व 14वीं किस्त के कुल ₹ 4,000 रुपया पाये एक साथ, बस करना होगा ये काम
PM Kisan 14th Installment 2023 : क्या आपको पी.एम किसान योजना के तहत  27 फरवरी, 2023  को जारी 13वीं किस्त  का  ₹ 2,000 रुपया  नहीं मिला है तो हमारा यह आर्टिकल केवल आपके लिए है जिसमे हम आपको  13वीं व 14वीं किस्त  का  एक साथ ₹ 4,000 रुपयो  पाने का  तरीका बतायेगे और इसीलिए हम आपको इस आर्टिकल में PM Kisan 14th Installment  के बारे में बतायेगे। आपको बता दें कि, PM Kisan 14th Installment  का बैनिफिशरी…
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freejobalert1 · 1 year ago
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PM Kisan 14th Installment Date 2023
PM Kisan 14th Installment Date 2023 : पीएम किसान सम्मान निधि योजना का इंतजार ख़तम हो चूका है l पीएम किसान सम्मान निधि योजना की 14वीं क़िस्त 28 जुलाई 2023 को जारी हो सकती है l 14वीं क़िस्त सीधे किशानो के खाते में ट्रान्सफर की जाएगी l प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना में पात्र किसानो को हर साल 6 हजार रुपये जो की 2-2 हजार रूपए की 3 किस्तों में दिए जाते है l   PM Kisan 14th Installment Release…
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vocaltv · 2 years ago
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किसानो के लिए ख़ुशख़बरी, जल्द ही खातें में आएंगे 14वीं किस्त
  नई दिल्ली। देश के करोड़ो किसानों के लिए अच्छी खबर सामने आई है। केंद्र सरकार की तरफ से पीएम क‍िसान सम्‍मान न‍िध‍ि योजना को क‍िसानों को आर्थ‍िक रूप से सशक्‍त बनाने के ल‍िए शुरू क‍िया गया था। इससे क‍िसानों को काफी फायदा म‍िल रहा है। अब तक सरकार की तरफ से 13 क‍िस्‍त क‍िसानों के खाते में ट्रांसफर की जा चुकी हैं। अब क‍िसान 14वीं क‍िस्‍त का इंतजार कर रहे हैं।   जानकारी के लिए बता दें कि पहली किस्त 1…
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livetimesnewschannel · 3 days ago
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Hindu Temples Where Men Are Strictly Prohibited
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Introduction
Unique Temples List : भारतीय समाज में वर्षों से पुरुषों का वर्चस्व रहा है और समय के साथ ऐसी परंपराएं भी विकसित हुई हैं जहां महिलाओं के मुकाबले पुरुषों को सामाजिक-पारंपरिक रूप से ज्यादा ताकत मिली. यही वजह रही कि महिलाओं को कई सामाजिक बंधनों में बांधने की कोशिश की गई जहां पर उनको पुरुषों के मुकाबले थोड़ी कम हैसियत मिली. ऐसे ही कई मंदिर रहे जहां महिलाओं की एंट्री पर रोक लगा दी गई जिसमें सबरीमला मंदिर शामिल है. लेकिन आपको जानकर यह हैरानी होगी कि हम उन मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं जहां पर पुरुषों का जाना सख्त मना है.
यहां पर केवल महिलाएं ही कुछ खास नियमों का पालन करते हुए एंट्री कर सकती हैं. इन मंदिरों के साथ ऐतिहासिक रूप से कई कहानियां जुड़ी हैं जिसकी वजह से पुरुष इन मंदिरों में प्रवेश नहीं कर सकते हैं. लोक मान्यताओं के अनुसार इन मंदिरों में जाने से पुरुषों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, साथ ही सुख-समृ्द्धि वाले जीवन पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है ऐसे में इन मंदिरों में पुरुषों का प्रवेश बंद किया है और ऐसे मंदिर उत्तर से लेकर दक्षिण और पूर्वोत्तर भारत में स्थापित हैं.
Table Of Content
असम का कामरूप कामाख्या मंदिर
ब्रह्मा देव मंदिर में पुरुषों की एंट्री पर रोक
भगवती देवी का मंदिर
अट्टुकल भगवती मंदिर
जोधपुर का संतोषी माता का मंदिर
असम का कामरूप कामाख्या मंदिर
असम के गुवाहाटी में स्थित कामाख्या मंदिर काफी पुराना है और यह अपनी मान्यताओं के लिए काफी प्रसिद्ध है. माना जाता है कि सभी शक्तिपीठों में कामाख्या शक्तिपीठ का स्थान सर्वोपरि है. माता के महावरी में यहां पर भारी संख्या श्रद्धालु आकर उत्सव मनाते हैं और इन दिनों पुरुषों का मंदिर में प्रवेश करने पर प्रतिबंध रहता है. साथ ही महावरी के समय यहां का पुजारी भी पुरुष की जगह एक महिला होती है और वी पूजा-पाठ करवाती है. कामरूप कामाख्या मंदिर की एक खास मान्यता यह भी है कि यहां पर आने वाले सभी भक्तों की मनोकामना पूरी होती है.
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ब्रह्मा देव मंदिर में पुरुषों की एंट्री पर रोक
राजस्थान के पुष्कर में स्थित ब्रह्मा देव मंदिर की लोगों के बीच में काफी मान्यताएं हैं और यहां पर हर दिन हजारों की संख्या में लोग दर्शन करने के लिए जाते हैं. माना जाता है कि इस मंदिर को 14वीं शताब्दी में बनाया गया था जहां पर पुरुषों की एंट्री पर प्रतिबंध है. ऐसा कहा जाता है कि देवी सरस्वती के श्राप की वजह से यहां पर कोई भी शादीशुदा पुरुष प्रवेश नहीं कर सकता है. साथ ही हर पुरुष को सरस्वती के दर्शन आंगन में से ही करने पड़ते हैं, लेकिन शादीशुदा महिलाएं गर्भगृह में जाकर प्रवेश कर सकती हैं.
यह भी पढें- 10 Temples in India: देश के 10 ऐसे मंदिर, जहां महिलाओं की एंट्री पर लगा हुआ है बैन
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भगवती देवी का मंदिर
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अट्टुकल भगवती मंदिर
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जोधपुर का संतोषी माता मंदिर
राजस्थान के जोधपुर के संतोषी माता मंदिर में संतोषी माता प्रकट हुई थी. यहां पर हर शुक्रवार को हजारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं. यहां तक कि विदेशों से भी लोग दर्शन करने के लिए लोग आते हैं. मंडोर रोड की पहाड़ियों के बीच में संतोषी माता का मंदिर पूरे देश में शक्ति पीठ के रूप में जाना जाता है. शुक्रवार के दिन इसलिए भी काफी खास हो जाती है क्योंकि इस दिन पुरुष की मंदिर में एंट्री नहीं होती है. हालांकि बाकी दिनों में पुरुष अगर मंदिर जा रहे हैं तो वह सिर्फ संतोषी माता के दर्शन कर सकते हैं लेकिन उन्हें वहां पर पूजा करने का अधिकार नहीं है.
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Conclusion
भारत में मंदिरों का एक लंबा इतिहास रहा है. हर एक मंदिर की अपनी एक मान्यता है और उनके साथ लोक कथा भी जुड़ी हुई है, जिसकी वजह से वह मंदिर काफी प्रसिद्ध हैं. इसी कड़ी में हम उन मान्यताओं के बात की गई है जहां पर कुछ मंदिरों में महिलाओं की एंट्री पर बैन है तो कई ऐसे मंदिर भी है जहां पुरुष का जाना सख्त मना है. इसका एक मात्र यह कारण है कि उनके साथ कुछ लोक कथाएं जुड़ी है. जैसे कि राजस्थान के जोधपुर में ब्रह्मा देव मंदिर में देवी सरस्वती ने श्राप दिया था और यहां पर कोई भी शादीशुदा पुरुष अंदर नहीं जा सकता है अगर किसी को एंट्री करनी होती है तो वह बाहर से ही दर्शन कर सकता है. इसके अलावा कन्याकुमारी में स्थित भगवती देवी मंदिर में पुरुष इसलिए नहीं जा सकता है क्योंकि यहां पर जिस देवी की पूजा होती वह संन्यासियों की देवी कही जाती है. अगर किसी पुरुष को अंदर जाना होता है तो वह महिलाओं की तरह कपड़े पहनकर और श्रृंगार करके एंट्री कर सकता है. देश में कई मंदिर ऐसे भी हैं जहां महिलाओं की एंट्री निषेध है. ऐसे में कहा जाता है कि मंदिरों के साथ कई लोक कथाएं जुड़ी हैं जिसकी वजह से वहां पर वर्षों से परंपरा चलती आ रही है और इसकी आज भी काफी मान्यता है.
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indlivebulletin · 9 days ago
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शिक्षाविद से लेकर राजनीति तक Vijay Malhotra ने तय किया है लंबा सफर, दिल्ली में बीजेपी को मजबूत करने में रहा है अहम योगदान
दिल्ली विधानसभा क्षेत्र की ग्रेटर कैलाश सीट से पूर्व विधायक विजय कुमार मल्होत्रा भारतीय जनता पार्टी के एक सुप्रसिद्ध नेता और शिक्षाविद हैं। वे लोकसभा सांसद, खेलकूद प्रशासक व शिक्षा जगत से सम्बद्ध प्रोफेसर हैं। लोग उन्हें प्रोफेसर विजय कुमार मल्होत्रा के नाम से भी जानते हैं। उन्होंने दिल्ली सदर व दक्षिणी दिल्ली से क्रमशः 9वीं व 14वीं लोकसभा का प्रतिनिधित्व किया। कई संसदीय समितियों के सदस्य से लेकर…
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rightnewshindi · 19 days ago
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तपोवन में होने वाले चार दिन के विधानसभा सत्र के लिए आए 200 सवाल, सुरक्षा में तैनात रहेंगे 250 जवान
Himachal News: हिमाचल प्रदेश विधानसभा के धर्मशाला स्थित तपोवन में चार दिन के विधानसभा सत्र में 200 सवाल गूंजेंगे। 18 से 21 दिसंबर के बीच होने जा रहे शीत सत्र के लिए प्रश्न भेजने की समयसीमा गुरुवार शाम पांच बजे खत्म हो गई। विधायकों को सत्र के अंतिम दिन से 15 दिन पहले प्रश्न भेजने होते हैं। दोनों ही दलों के विधायकों ने अपने-अपने क्षेत्रों से जुड़े ज्यादा प्रश्न लगाए हैं। 14वीं विधानसभा का यह…
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amirhashmilive · 1 month ago
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रिहला: इब्न बतूता की ऐतिहासिक यात्राओं का अद्भुत दस्तावेज
अमीर हाशमी की कलम से #ahkks इब्न बतूता का नाम इतिहास में एक ऐसे यात्री के रूप में दर्ज है, जिन्होंने 14वीं सदी के अज्ञात और खतरों से भरे विश्व को अपने साहस और ज्ञान से देखा, समझा, और दर्ज किया। 1304 में मोरक्को के टंगियर में जन्मे इब्न बतूता विद्वानों और न्यायाधीशों के परिवार से थे। एक शिक्षित वातावरण में पले-बढ़े इब्न बतूता का झुकाव प्रारंभ से ही धार्मिक और बौद्धिक ज्ञान की ओर था। उनकी…
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sanjogitakiduniya · 1 month ago
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Lal Ded: The Mystic Poet of Kashmir
English Version:
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Lal Ded, also known as Lalleshwari, is one of the most revered mystic poets of Kashmir. Born in the 14th century, Lal Ded's life and work have had an enduring impact on Kashmiri culture, spirituality, and literature. She is regarded as a saint, a spiritual guide, and an iconic figure whose poetry transcends time and place. Known for her deep spirituality and profound insights into life, Lal Ded’s verses reflect a fusion of mysticism, devotion, and social consciousness.
Life and Legacy
Lal Ded was born into a Kashmiri Pandit family in the village of Pandrethan, near Srinagar, in Kashmir. Her early life was marked by personal suffering, which often inspired the themes in her poetry. She was married at a young age, but her marriage was not a happy one. After facing emotional and spiritual turmoil, Lal Ded left her family and began wandering, seeking solace in the natural world and in spiritual practices.
It is said that Lal Ded was greatly influenced by the teachings of the Sufi mystics who came to Kashmir during the 14th century. The Sufi tradition of Kashmir blended Islamic mysticism with the region’s Hindu philosophy, and this fusion is clearly reflected in Lal Ded's poetry. She began writing verses known as "Lal Vakhs", which were written in the Kashmiri language and conveyed the deepest truths about human existence, the nature of the divine, and the pursuit of spiritual enlightenment.
Themes of Lal Ded's Poetry
Lal Ded's poetry primarily focuses on themes such as:
Self-realization and Spiritual Liberation: Lal Ded's verses emphasize the importance of seeking truth within oneself. She encourages individuals to transcend outward rituals and material attachments and to look inward for spiritual enlightenment.
The Unity of God: Her poems reflect a deep understanding of the oneness of God. In her view, the divine is present in everything, and true spirituality involves experiencing this unity through love, devotion, and self-awareness.
Rejection of Superficial Rituals: Lal Ded was critical of ritualistic practices and dogma that often overshadow true spiritual growth. Her poems encourage people to break free from the constraints of formal religion and connect with the divine on a personal level.
Love and Compassion: Love, both for the divine and for fellow human beings, is central to Lal Ded’s teachings. Her poetry often speaks of divine love as a force that transcends religious differences and brings all souls together.
Lal Ded’s Influence
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Lal Ded’s impact on Kashmiri culture and spiritual life is immeasurable. Her poetry, which was passed down orally for generations, forms an integral part of Kashmiri folk culture. The mystic poet's works were an essential part of the Bhakti movement in India, which sought to unite people through love and devotion to God, beyond the confines of caste, religion, and ritual.
Even today, her verses are recited by Kashmiri Pandits and Muslims alike, demonstrating the universality of her teachings. Her philosophy also resonates with contemporary movements that promote tolerance, love, and spiritual awakening.
Lal Ded's poetry remains a source of inspiration for people across the world. Her verses have not only enriched the spiritual landscape of Kashmir but have also offered profound insights into the universal human quest for meaning, truth, and inner peace. She is remembered not only for her literary brilliance but for her deep devotion and her unwavering commitment to the search for spiritual truth.
Hindi Version:
लाल देद: कश्मीर की रहस्यमयी कवि
लाल देद, जिन्हें Lalleshwari के नाम से भी जाना जाता है, कश्मीर की सबसे प्रतिष्ठित रहस्यमयी कवियों में से एक हैं। 14वीं सदी में जन्मी, लाल देद का जीवन और उनके काव्य ने कश्मीरी संस्कृति, आध्यात्मिकता और साहित्य पर गहरा प्रभाव डाला है। उन्हें एक संत, एक आध्यात्मिक मार्गदर्शक और एक प्रतीकात्मक व्यक्तित्व के रूप में पूजा जाता है, जिनकी कविताएँ समय और स्थान की सीमाओं को पार करती हैं। अपनी गहरी आध्यात्मिकता और जीवन के प्रति गहरे दृष्टिकोण के लिए प्रसिद्ध, लाल देद की कविताएँ रहस्यवाद, भक्ति और सामाजिक चेतना का अद्भुत मिश्रण प्रस्तुत करती हैं।
जीवन और धरोहर
लाल देद का जन्म कश्मीर के श्रीनगर के पास पंद्रेथन गाँव में एक कश्मीरी पंडित परिवार में हुआ था। उनके जीवन की शुरुआत व्यक्तिगत कष्टों से भरी थी, जो अक्सर उनकी कविताओं के विषय बने। उनका विवाह बचपन में हुआ था, लेकिन उनका वैवाहिक जीवन सुखद नहीं था। व्यक्तिगत और आध्यात्मिक संकटों का सामना करने के बाद, लाल देद ने अपने परिवार को छोड़ दिया और आत्म-साक्षात्कार के लिए भटकने लगीं।
कहा जाता है कि लाल देद पर 14वीं सदी में कश्मीर में आए सूफी रहस्यमियों का गहरा प्रभाव था। कश्मीर के सूफी परंपरा ने इस्लामी रहस्यवाद और हिंदू दर्शन का अद्भुत मिलाजुला रूप प्रस्तुत किया, जो स्पष्ट रूप से लाल देद की कविताओं में दिखता है। उन्होंने अपनी कविताओं को कश्मीरी भाषा में लिखा, जिन्हें "लाल वाख" कहा जाता है, और इन कविताओं में मानव जीवन, ईश्वर के स्वभाव और आध्यात्मिक मुक्ति के प्रति गहरी सच्चाईयाँ व्यक्त की गईं।
लाल देद की कविताओं के प्रमुख विषय
लाल देद की कविताओं में मुख्य रूप से निम्नलिखित विषय होते हैं:
आत्म-साक्षात्कार और आध्यात्मिक मुक्ति: लाल देद की कविताएँ आत्मा के भीतर सत्य की खोज पर जोर देती हैं। वे लोगों को बाहरी अनुष्ठानों और भौतिक बंधनों से ऊपर उठकर आत्म-ज्ञान और आध्यात्मिक जागृति की दिशा में बढ़ने का मार्गदर्शन करती हैं।
ईश्वर की एकता: उनकी कविताओं में ईश्वर की एकता का गहरा दर्शन है। उनके अनुसार, ईश्वर हर वस्तु में विद्यमान है, और सच्ची आध्यात्मिकता का अर्थ है इस एकता का अनुभव करना।
सांस्कृतिक और धार्मिक कर्मकांडों का परित्याग: लाल देद ने धार्मिक कर्मकांडों और रूढ़िवादिता की आलोचना की, जो अक्सर सच्ची आध्यात्मिक प्रगति में अवरोध उत्पन्न करते हैं। उनकी कविताएँ लोगों को पारंपरिक धार्मिक सीमाओं से ऊपर उठकर ईश्वर से व्यक्तिगत जुड़ाव की आवश्यकता की बात करती हैं।
प्रेम और करुणा: लाल देद की कविताओं में प्रेम, खासकर ईश्वर के प्रति और मानवता के प्रति प्रेम, का प्रमुख स्थान है। वे प्रेम को एक ऐसी शक्ति मानती हैं जो धार्मिक भेदभावों को पार करती है और सभी आत्माओं को एकजुट करती है।
लाल देद का प्रभाव
लाल देद का कश्मीरी संस्कृति और आध्यात्मिक जीवन पर अनमोल प्रभाव पड़ा है। उनकी कविताएँ, जो पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक रूप से传 की गईं, कश्मीरी लोकसंस्कृति का अभिन्न हिस्सा बन चुकी हैं। उनकी रचनाएँ भारतीय भक्ति आंदोलन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थीं, जो प्रेम और भक्ति के माध्यम से लोगों को एकजुट करने का प्रयास कर रहा था।
आज भी, उनकी कविताओं का पाठ कश्मीरी पंडितों और मुसलमानों द्वारा समान रूप से किया जाता है, जो उनके शिक्षाओं की सार्वभौमिकता को दर्शाता है। उनकी आध्यात्मिकता और प्रेम की दृष्टि आज भी समकालीन आंदोलनों में प्रासंगिक है जो सहिष्णुता, प्रेम और आध्यात्मिक जागरण को बढ़ावा देते हैं।
लाल देद की कविताएँ आज भी लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं। उनकी कविताएँ न केवल कश्मीर के आध्यात्मिक परिदृश्य को समृद्ध करती हैं, बल्कि जीवन, सत्य और आंतरिक शांति की ओर मानवता की सार्वभौमिक खोज को भी उजागर करती हैं। वे न केवल अपनी साहित्यिक प्रतिभा के लिए याद की जाती हैं, बल्कि उनके अडिग विश्वास और आध्यात्मिक सत्य की खोज के प्रति प्रतिबद्धता के लिए भी सम्मानित की जाती हैं।
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umakant171991-blog · 3 months ago
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माइसूर महल: दक्षिण भारत का गौरव
माइसूर महल, कर्नाटक राज्य के माइसूर शहर में स्थित है, यह भारत के सबसे खूबसूरत और ऐतिहासिक महलों में से एक है। यह महल वादीयार राजवंश का निवास स्थान था, जो 14वीं शताब्दी से 1947 तक माइसूर की शासन करता था। महल की भव्य वास्तुकला, समृद्ध इतिहास और आकर्षक प्रदर्शनियों ने इसे देश भर और दुनिया भर के पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण बना दिया है। महल का इतिहास महल का निर्माण 1868 में शुरू हुआ और 1897 में…
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sharpbharat · 3 months ago
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Jamshedpur blood donation : समाजसेवी चंचल भाटिया ने 14वीं बार किया प्लेटलेट दान, ब्लड बैंक के आग्रह पर निभाया सामाजिक दायित्व
जमशेदपुर : समाजसेवी चंचल भाटिया ने ब्लड बैंक के आग्रह पर शुक्रवार को 14वीं बार प्लेटलेट दान किया. बता दें कि ब्लड बैंक की ओर से चंचल भाटिया से इस संबंध में संपर्क किया गया था, जिसके बाद अपने सामाजिक दायित्व का निर्वहन करते हुए चंचल ने प्लेटलेट दान किया.यह उनका 14वीं बार प्लेटलेट दान था. ब्लड बैंक के डॉ संजय चौधरी ने चंचल भाटिया का आभार जताया कि वे लगातार जरूरतमंद मरीजों के लिए प्लेटलेट एवं…
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koshalaram5 · 4 months ago
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राजा पीपा की अद्भुत भक्ति कथा | Sant Rampal Ji Maharaj | Story of Pipa Ji
#SantRampalJiMaharaj #SatlokAshram
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राजा Pipa की भक्ति कथा Rajasthan के गीगनौर (वर्तमान नागौर) से शुरू होती है, जहां उन्होंने 14वीं-15वीं शताब्दी के बीच राज किया। वीर योद्धा राजा Pipa के जीवन में सच्चे मोक्ष की तलाश ने उन्हें Swami Ramanand Ji के पास ले गया। स्वामी रामानंद जी से उन्होंने Kabir परमेश्वर के तत्वज्ञान को समझा और माता दुर्गा से भी इस संबंध में सत्य की खोज की। Maa Durga के मार्गदर्शन के बाद, राजा पीपा ने अपना शाही जीवन त्याग कर भक्ति का मार्ग अपनाया।
राजा Pipa की भक्ति का समर्पण और दृढ़ता, जैसे रानी सीता का भी संन्यास लेने का निर्णय, हमें सिखाता है कि जब हम अपना सबकुछ Kabir Parmeshwar को समर्पित कर देते हैं, तो वह हमारे हर कदम पर रक्षा करते हैं। इस कथा में राजा Pipa और रानी सीता की यात्राओं के दौरान हुए चमत्कारी घटनाओं का वर्णन है, जैसे सेठ के घर में शेरनी का प्रकट होना और गंगा नदी में कूदने पर द्वारका नगरी का दर्शन।
यह कहानी न केवल राजा Pipa की भक्ति को उजागर करती है, बल्कि यह भी बताती है कि सच्ची भक्ति में कितनी शक्ति होती है। आज भी, Sant Rampal Ji Maharaj के रूप में साक्षात् Kabir Parmeshwar हमारे बीच हैं, जो अपने भक्तों की रक्षा उसी प्रकार कर रहे हैं जैसे उन्होंने राजा Pipa और रानी सीता की की थी।
इस अद्भुत कथा और परमात्मा के चमत्कारों को जानने के लिए, देखिए Satlok Ashram YouTube चैनल पर हमारे विशेष वीडियो। राजा Pipa की भक्ति कथा आपको प्रेरित करेगी कि सच्चे समर्पण और भक्ति के मार्ग पर चलने से क्या-क्या संभव हो सकता है।
संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा प्राप्त करने के लिए या अपने नजदीकी नामदीक्षा केंद्र का पता करने के लिए हमे +91 82228 80541 नंबर पर कॉल करें।
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kapildev123 · 5 months ago
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart39 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart40
प्रश्न 34:- ओम् (ॐ) यह मन्त्र तो ब्रह्म का जाप हुआ, फिर यह क्यों कह रहे हो कि ब्रह्म की भक्ति से पूर्ण मोक्ष नहीं होता। आपने बताया कि गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में "ऊँ तत् सत्" इस मन्त्र के जाप से पूर्ण मोक्ष होता है। इस मन्त्र में भी तो ओम् (ॐ) मन्त्र है।
उत्तर :- जैसे इन्जीनियर या डॉक्टर बनने के लिए शिक्षा की आवश्यकता होती है। पहले प्रथम कक्षा पढ़नी पड़ती है, फिर धीरे-धीरे पाँचवीं-आठवीं, इस प्रकार दसवीं कक्षा पास करनी पड़ती है। उसके पश्चात् आगे पढ़ाई करनी होती है। फिर ट्रेनिंग करके इन्जीनियर या डॉक्टर बना जाता है। ठीक इसी प्रकार श्री ब्रह्मा, विष्णु, शिव, गणेश तथा देवी की साधना करनी पड़ती है, मैं स्वयं करता हूँ तथा अपने अनुयाइयों से कराता हूँ। यह तो पाँचवी कक्षा तक की पढ़ाई अर्थात् साधना जानें, दूसरे शब्दों में पाँचों कमलों को खोलने की साधना है और ब्रह्म की साधना दसवीं कक्षा तक की पढ़ाई जानें अर्थात ब्रह्मलोक तक की साधना है जो "ऊँ" (ओम्) का जाप करना है और अक्ष�� पुरुष की साधना को 14वीं कक्षा की पढ़ाई अर्थात् साधना जानो जो "तत्" मन्त्र का जाप है। "तत्" मन्त्र तो सांकेतिक है, वास्तविक मन्त्र तो इससे भिन्न है जो उपदेशी को ही बताया जाता है।
परम अक्षर पुरुष की साधना इन्जीनियर या डॉक्टर की पढ़ाई अर्थात् साधना जानो जो "सत्" शब्द से करनी होती है। यह "सत्" मन्त्र भी सांकेतिक है। वास्तविक मन्त्र भिन्न है जो उपदेशी को बताया जाता है। इसको सारनाम भी कहते हैं।
इसलिए अकेले "ब्रह्म" के नाम ओम् (ॐ) से पूर्ण मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकता। "ऊँ" नाम का जाप ब्रह्म का है। इसकी साधना से ब्रह्म लोक प्राप्त होता है जिसके विषय में गीता अध्याय 8 श्लोक 16 में कहा है कि ब्रह्म लोक में गए साधक भी पुनर्जन्म को प्राप्त होते हैं। पुनर्जन्म है तो पूर्ण मोक्ष नहीं हुआ जो गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि परमात्मा के उस परमपद की खोज करनी चाहिए जहाँ जाने के पश्चात् साधक कभी लौटकर पुनर्जन्म में नहीं आता। वह पूर्ण मोक्ष पूर्ण गुरु से शास्त्रानुकूल भक्ति प्राप्त करके ही संभव है। जो विश्व में वर्तमान में मेरे (संत रामपाल दास) अतिरिक्त किसी के पास नहीं है। जो ॐ, तत्, सत् का स्मरण करते हैं, वे ब्रह्मलोक में ॐ नाम का प्रतिफल प्राप्त नहीं करते। इसके स्मरण की कमाई ब्रह्म को दे देते हैं जिसके बदले में यह यानि काल ब्रह्म साधक को पाप मुक्त कर देता है।
प्रश्न 35 :- क्या रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शंकर (शिव) की पूजा (भक्ति) करनी चाहिए?
उत्तर :- नहीं।
प्रश्न 36 :- कहाँ प्रमाण है कि रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शंकर (शिव) की पूजा (भक्ति) नहीं करनी चाहिए?
उत्तर :- श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15, 20 से 23 तथा गीता अध्याय 9 श्लोक 23-24 में प्रमाण है कि जो व्यक्ति रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव की भक्ति करते हैं, वे राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए मनुष्यों में नीच, दूषित कर्म करने वाले मूर्ख मुझे भी नहीं भजते । (यह प्रमाण गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 में है। फिर गीता अध्याय 7 के ही श्लोक 20 से 23 तथा गीता अध्याय 9 श्लोक 23-24 में यही कहा है और क्षर पुरुष, अक्षर पुरुष तथा परम अक्षर पुरुष गीता अध्याय 15 श्लोक 16-17 में जिनका वर्णन है), को छोड़कर श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु तथा श्री शिव जी अन्य देवताओं में गिने जाते हैं। इन दोनों अध्यायों (गीता अध्याय 7 तथा अध्याय 9) में ऊपर लिखे श्लोकों में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि जो साधक जिस भी उद्देश्य को लेकर अन्य देवताओं को भजते हैं, वे भगवान समझकर भजते हैं। उन देवताओं को मैंने कुछ शक्ति प्रदान कर रखी है। देवताओं के भजने वालों को मेरे द्वारा किए विधान के अनुसार कुछ लाभ मिलता है। परन्तु उन देवताओं की पूजा करने वाले अल्प बुद्धि वालों का वह फल नाशवान होता है। देवताओं को पूजने वाले देवताओं के लोक में जाते हैं। मेरे पुजारी मुझे प्राप्त होते हैं।
•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनि��। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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deshbandhu · 9 months ago
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हॉकी : पंजाब को हराकर मिजोरम क्वार्टर फाइनल में पहुंची
हॉकी मिजोरम ने सोमवार को मेजर ध्यानचंद हॉकी स्टेडियम, नेहरूनगर, पिंपरी में 14वीं सीनियर महिला राष्ट्रीय चैंपियनशिप 2024 के क्वार्टर फाइनल में हॉकी पंजाब को 4-2 से हराकर 7वां स्थान हासिल किया।
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livetimesnewschannel · 5 days ago
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Baba Saheb Ambedkar: Know 15 Interesting Things About the Creator of the Constitution
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Introduction
Bhimrao Ramji Ambedkar: संविधान का प्रारूप तैयार करने में कई प्रबुद्ध लोगों का योगदान था, लेकिन डॉ. भीमराव अंबेडकर को संविधान निर्माता माना जाता है. वह संविधान की ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष थे. यह बात बहुत कम लोगों को पता होगी कि संविधान का प्रारूप तैयार करने की जिम्मेदारी अकेले अंबेडकर पर आ गई थी. यह बात प्रारूप समिति के एक सदस्य टीटी कृष्णामाचारी ने संविधान सभा के सामने स्वीकार भी की थी. टीटी कृष्णामाचारी ने नवंबर, 1948 में संविधान सभा में कबूला था कि मृत्यु, बीमारी और कुछ अन्य वजहों से कमेटी के अधिकतर सदस्यों ने प्रारूप तैयार करने में पर्याप्त योगदान नहीं दिया था. इसके चलते संविधान तैयार करने का बोझ डॉ. अंबेडकर पर आ गया. आखिरकार लंबी जद्दोजहद के बाद 26 जनवरी, 1950 को देश में संविधान लागू हुआ. इससे पहले 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा ने भारतीय संविधान को अपनाया था. इसके बाद 26 नवंबर वह तारीख बन गई, जिसे संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है. प्रत्येक वर्ष 26 नवंबर को संविधान दिवस दरअसल संविधान के मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है. डॉ. भीमराव अंबेडकर को संविधान निर्माता क्यों कहा जाता है? अंबेडकर पर अक्सर राजनीति क्यों शुरू हो जाती है? इस स्टोरी में जानेंगे हर सवाल का जवाब?
Table of Content
सिर्फ 2.3 साल में पूरी की 8 साल की पढ़ाई
कौन-कौन सी डिग्रियां की हासिल
अंबेडकर ने अकेले ही तैयार किया था संविधान का प्रारूप
यूं बदली अंबेडकर की जिंदगी
जानिये बाबा साहेब के बारे में रोचक और सच्ची बातें
सिर्फ 2.3 साल में पूरी की 8 साल की पढ़ाई
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कौन-कौन सी डिग्रियां की हासिल
उन्होंने शुरुआती पढ़ाई यानी प्राथमिक शिक्षा एल्फिंस्टन स्कूल से की. उच्च शिक्षा की कड़ी में उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीतिज्ञ विज्ञान में डिग्री हासिल की. पढ़ाई की लगन ही उन्हें विदेश यानी अमेरिका और ब्रिटेन तक ले गई. विदेश जाकर उन्होंने कोलंबिया यूनिवर्सिटी से एमए और पीएचडी की. इसके बाद डॉ. अंबेडकर ने ���ंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से मात्र दो साल तीन महीने में 8 साल की पढ़ाई पूरी कर ‘डॉक्टर ऑफ साइंस’ की डिग्री ली. हैरत की बात है कि यह डिग्री हासिल करने वाले वह दुनिया के प्रथम व्यक्ति थे.
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अंबेडकर ने अकेले ही तैयार किया था संविधान का प्रारूप
यह किसी को सुनने में अजीब लगे लेकिन यह काफी हद तक सच है कि संविधान का प्रारूप तैयार करने की जिम्मेदारी अकेले अंबेडकर पर आ गई थी, लेकिन उन्होंने बिना सकुचाए इस जिम्मेदारी को उठाया. मिली जानकारी के अनुसार, संविधान सभा की प्रारूप समिति में कुल 7 लोगों को रखा गया था. इनमें से एक सदस्य बीमार हो गए. इसी दौरान 2 सदस्य दिल्ली के बाहर थे, जबकि एक विदेश में थे. वहीं, एक सदस्य ने क���न्हीं वजहों से बीच में ही इस्तीफा दे दिया. सातवें सदस्य ने तो ज्वाइन ही नहीं किया. ऐसे में नई मुश्किल खड़ी हो गई. जाहिर है ऐसे में 7 सदस्यों वाली कमेटी में केवल अंबेडकर बचे और उनके कंधों पर संविधान का ड्राफ्ट बनाने की पूरी जिम्मेदारी आ गई.
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यूं बदली अंबेडकर की जिंदगी
भीम राव अंबेडकर का जन्म दलित परिवार में हुआ था. ऐसे में उन्हें बचपन से ही बहुत से सामाजिक भेदभाव झेलने पड़े. पढ़ाई में बहुत अच्छा होने के बावजूद दलित वर्ग से होने के कारण उनके साथ बहुत ही बुरा बर्ताव किया जाता था. उन्हें प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक दलित होने के चलते बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ा. जब वह छोटे थे तो छुआछूत जैसी शर्मनाक हरकत उनके साथ हुई थी.
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जानिये बाबा साहेब के बारे में रोचक और सच्ची बातें
भीमराव अंबेडकर अपने माता-पिता की 14वीं और अंतिम संतान थे.
पिता सूबेदार रामजी मालोजी सकपाल ब्रिटिश सेना में सूबेदार थे.
बाबासाहेब के पिता संत कबीर दास के अनुयायी थे और एक शिक्षित व्यक्ति थे. इसीलिए उन्होंने भीम राव को शिक्षा ग्रहण करने के लिए प्रेरित भी किया.
भीमराव रामजी अंबेडकर लगभग दो वर्ष के थे तब उनके पिता नौकरी से रिटायर्ड हो गए. वहीं, 6 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपनी मां को भी खो दिया.
स्कूली शिक्षा के दौरान भीम राव अस्पृश्यता के शिकार हुए.
वर्ष 1907 में मैट्रिक की परीक्षा पास होने के बाद उनकी शादी एक बाजार के खुले छप्पर के नीचे हुई.
वर्ष 1913 में डॉ. भीम राव अंबेडकर को हायर एजुकेशन के लिए अमेरिका जाने वाले एक विद्वान के रूप में चुना गया. यह उनके शैक्षिक जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ.
विदेश से पढ़ाई करके डॉ अंबेडकर मुंबई लौटे तो राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोफेसर के रूप में सिडेनहैम कॉलेज में अध्यापन करने लगे.
उन्होंने लंदन में अपनी कानून और अर्थशास्त्र की पढ़ाई फिर से शुरू करने के लिए अपने पद से इस्तीफा दे दिया. इसके लिए कोल्हापुर के महाराजा ने उन्हें आर्थिक मदद दी.
1923 में, उन्होंने डीएससी डिग्री के लिए अपनी थीसिस पूरी की, जिसका नाम था- ‘रुपये की समस्या : इसका उद्भव और समाधान’.
वर्ष 1923 में वकीलों के बार में बुलाया गया.
03 अप्रैल, 1927 को उन्होंने दलित वर्गों की समस्याओं को संबो���ित करने के लिए ‘बहिस्कृत भारत’ समाचारपत्र की शुरुआत की. वर्ष 1928 में वह गवर्नमेंट लॉ कॉलेज (बॉम्बे) में प्रोफेसर बने.
01 जून, 1935 को वह उसी कॉलेज के प्रिंसिपल बने. वर्ष 1938 में अपना इस्तीफा देने तक उसी पद पर बने रहे.
वर्ष 1936 में उन्होंने बॉम्बे प्रेसीडेंसी महार सम्मेलन को संबोधित किया और हिंदू धर्म का त्याग करने की वकालत की.
15 अगस्त, 1936 को दलित वर्गों के हितों की रक्षा करने के लिए ‘स्वतंत्र लेबर पार्टी’ का गठन किया.
वर्ष 1938 में कांग्रेस ने अछूतों के नाम में बदलाव करने वाला एक विधेयक प्रस्तुत किया. अंबेडकर ने इसका विरोध किया, क्योंकि उन्हें ��ह रास्ता ठीक नहीं लगा.
06 दिसंबर, 1956 को उनकी मृत्यु हो गई. डॉ. भीमराव अंबेडकर की पुण्यतिथि को पूरे देश में प्रत्येक वर्ष ‘महापरिनिर्वाण दिवस’ के रूप में मनाया जाता है.
Conclusion
संविधान तैयार करने में भले ही कई प्रबुद्धजनों का योगदान हो, लेकिन इसका श्रेय बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर को ही जाता है. यही वजह है कि उन्हें संविधान निर्माता कहा जाता है. वर्ष 1990 में उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से मरणोपरांत सम्मानित किया गया था.
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indlivebulletin · 9 days ago
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शिक्षाविद से लेकर राजनीति तक Vijay Malhotra ने तय किया है लंबा सफर, दिल्ली में बीजेपी को मजबूत करने में रहा है अहम योगदान
दिल्ली विधानसभा क्षेत्र की ग्रेटर कैलाश सीट से पूर्व विधायक विजय कुमार मल्होत्रा भारतीय जनता पार्टी के एक सुप्रसिद्ध नेता और शिक्षाविद हैं। वे लोकसभा सांसद, खेलकूद प्रशासक व शिक्षा जगत से सम्बद्ध प्रोफेसर हैं। लोग उन्हें प्रोफेसर विजय कुमार मल्होत्रा के नाम से भी जानते हैं। उन्होंने दिल्ली सदर व दक्षिणी दिल्ली से क्रमशः 9वीं व 14वीं लोकसभा का प्रतिनिधित्व किया। कई संसदीय समितियों के सदस्य से लेकर…
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