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Badmashi Shayari in Hindi | 101+ खतरनाक बदमाशी स्टेटस
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Badmashi Shayari In Hindi
अब ज़रा संभल के बात करना मुझसे, क्योंकि जो में था मै रहा नहीं, और जो मैं हूँ वो तुम्हे पता नहीं! किसी से जलना हमारी आदत नहीं हम खुद की काबिलियत से लोगो को जलाते है! सिर्फ जंगल छोड़ा है, याद रखना शेर तो आज भी हम ही है! कोई गैंग नहीं है मेरी पहचान, ऐसा है की हर गैंग का आदमी इस चहरे को देख के सलाम ठोकता है! मेरी औकात से ज्यादा बेटा मेरे नाम के चर्चे है और तेरी उकात से ज्यादा तो मेरे सिगरेट के खर्चे है!
उनकी तो क्या इज्जत करना जिनकी हरकत ही कुत्तो जैसी हो! एक बात ना भूलना भाई, किस्मत बदलेगी औकात नहीं! जिन्हें आज तुम बदमाश मानते हो, वो कभी चेले थे हमारे! समझा दो उन समझदारो को की बदमाश ��ी गली मै आज भी दहशत हमारे नाम की ही है! हाथ में खंजर ही नहीं आँखों में पानी भी चाहिए, हमें दुश्मन भी थोड़ा बदमाश चाहिए!
यहाँ राज उसका चलता है जिसकी हिम्मत उसकी ताकत से बड़ी है! अगर भौकने से दम दिखाया ज़ाता, तो आज कुत्ते भी शेर होते! सुनो! अब भाड़ में जाओ तुम, जिसका होना है हो जाओ तुम! एक बात कहनी है दोगले दम है तो रोक ले! जिनकी नजरो में हम बुरे है, वो अपनी आँखे डोनेट कर सकता है!
Badmashi Shayari 2 Line
पीठ पीछे कोई क्या भोंका है घंटा फर्क नहीं पड़ता, सामने सालो का मुंह तक नहीं खुलता बस इतना ही काफी है! जिगर वाले का डर से कोई वास्ता नहीं होता, हम वहां भी कदम रखते है, जहां रास्ता नहीं होता! खुदा सलामत रखे उन आँखों को, इनमे आजकल हम चुभते बहुत है! गुलाम हूँ अपने घर के संस्कारों का वरना, तेरी औकात दिखाने का हुनर मै भी रखता हूँ! आपसे कुछ कहना था पर बोला नहीं, मेरी औकात तो यही है बस यही सच है!
उड़ने दो मिट्टी को आखिर कहाँ तक उड़ेगी, हवाओं ने जब साथ छोड़ा तो जमीं पर ही गिरेगी! दुनिया की भीड़ हो तुम्हे मुबारक, हम अपना रास्ता खुद बनाते है! खैरात में मिली हुई ख़ुशी हमें पसंद नहीं है, क्योंकि हम गम में भी नवाब की तरह जीते है! परख ना पाओगे ऐसी शख्सियत मेरी, उन्ही के लिए बना हूँ जिनको है कदर मेरी! शराफत की दुनिया का किस्सा ही ख़त्म, अब जैसी दुनिया वैसे हम!
बन्दा खुद की नजर में सही होना चाहिए, दुनिया तो भगवान से भी दुखी है! लोग दिखावे के दीवाने है और हम है की सच्चाई मुहँ पर बोल देते है! हमारे जीने का तरिका थोड़ा अलग है, हम उम्मीद पर नहीं अपनी जिद पर जीते है! जित लो हर हम्हा बीत जाने से पहले, लौट कर यादे आती है वक्त नहीं! अब न ख़ुशी है, न ही कोई दर्द रुलाने वाला, हम ने अपना लिया है हर रंग ज़माने वाला!
हर बात का साबुत माँगते हो, प्यार करते हो तो फिर वकील क्यों बनते हो! प्यार से बात की तो प्यार ही पाओगे, अगर दुश्मनी मोल ली तो मारे जाओगे! जहां से तुम्हारी बदमाशी ख़त्म हो जाती है, वहा से हमारी बदमाशी शुरू होती है! जितना मासूम चेहरा है जनाब, उतनी ही खाराब खोपड़ी भी है! हम जैसे सिरफिरे ही इतिहास रचते है, समझदार तो केवल इतिहास पढ़ते है!
चाहने वाले हजार है मेरे ये दो चार दुश्मनों से फर्क नहीं पड़ता मुझे! औकात क्या होती है हम बताएंगे, ज़रा वक्त आने दो सब को नचाएंगे! न ही गाडी है न ही बुलेट और न ही कोई हथियार है, सीने में मेरा जिगरा और दुसरे मेरे जिगरी यार है! मेरी बदमाशी मेरी निशानी है, आओ कभी हवेली पे अगर कोई परेशानी है! हमारा शौक तो तलवार रखने का है, बन्दुक के लिए तो बच्चे भी जिद करते है!
क्या कहाँ मेरा खौफ नहीं, नशे में हो या जीने का शौक नहीं! बड़े मतलबी निकले सभी, जिनको यार बना के रखा था कभी! राज तो हमारा हर जगह पे है, पसंद करने वालो के दिल में और नापसंद करने वालों के दिमाग में! हथियार तो बस शौक के लिए रखे है, वरना खौफ फैलाने के लिए हमारा नाम ही काफी है! डूब जाए आसानी से मै वो कश्ती नहीं, मिटा सको तुम मुझे ये बात तुम्हारे बस की नहीं!
Badmashi Shayari Hindi
मौत से कह दो जब भी आए शराफत से आए, हमारी अदालत में गुरुर दिखाने वालो को इंसाफ नहीं मिलता! हमारी खामोशी की वजह मेरे माँ बाप है लाडले, वरना जिगरा तो हम तुझे तेरे घर से उठाने का रखते है! वो जिगर जिगर नहीं जिसमे दम नही, अगर बेटा बदमाश तू है तो शरीफ हम नहीं! कुछ सही तो कुछ खराब कहते है, लोग हमें बिगड़ा हुआ नवाब कहते है! अगर लड़ना हो तो मैदान में आना, तलवार भी तेरी और गर्दन भी!
मौत आ जाए साली, पर जो नसीब में ना हो उस पर दिल कभी ना आए! मै अपने घर वालो की नहीं सुनता, और तुम्हे लगता है मै तुम्हारी सुनूंगा! जहां से तेरी बदमाशी ख़त्म होती है, वहा से मेरी नवाबी शुरू होती है! मै आदत नहीं शौक रखता हूँ, अच्छे अच्छे को ब्लोक रखता हूँ! पापा की परछाई, माँ का हीरो, दोस्तों की शान, गर्लफ्रेंड की जान यही तो है हमारी पहचान!
बदमाशी तो बच्चे दिखाते है, हम तो लोगो को उनकी औकात दिखाते है! उखाड़ लो जो उखाड़ सकते हो, घंटा फर्क नहीं पड़ता! दो कौड़ी के लोग एक कौड़ी की औकात, अब ये लेंगे पंगा अपने बाप के साथ! खेलना और खिलाना दोनों आता है इसलिए खेल ज़रा सोच समझ के खेलना मेरे साथ! अपुन की हर दुश्मन से जंग है, ऐसे ही थोड़ी अपनी बदमाशी दबंग है!
Attitude Badmashi Shayari
जो चाहिए वो मेहनत से कमाऊँगा, मेरी माँ ने किसी की तरक्की पर जलना नहीं सिखाया! सिरफिरा लड़का हूँ मै जरुरत पड़ने पर ��र किसी से भीड़ सकता हूँ! सब लोग ��हते है छोरा बड़ी अकड़ मे रहता है, मेरे भाई बहुत मेहनत की है इस अकड़ को लाने में! हाथ में खंजर ही नहीं आँखों में पानी भी चाहिए हमें दुश्मन भी थोड़ा बदमाश चाहिए! छिप कर वार करने वाले कायर होते है, हम बदमाश है कायर नहीं!
तेरी यादो की बदमाशी नींद को आँखों तक नहीं आने देती! हमारी शराफत का फायदा उठाना बंद कर दो, जिस दिन हम बदमाश हो गए क़यामत आ जायेगी! बेटा माहौल का क्या है, साला जब चाहे तब बदल देंगे! हम बस वहा तक शरीफ है, जहां तक सामने वाला अपनी औकात ना भूले! कोई फर्क नहीं पड़ता हमें अब, आप बदल जाओ या भाड़ में जाओ!
Badmashi Shayari Dosti
सुन बे लौंडे हम से पंगा और भरी महफ़िल में दंगा दोनों खतरनाक है! शेर खुद अपनी ताकत से राजा कहलाता है, जंगल मै कभी चुनाव नहीं होते! अभी तो हम बदले है साहब, बदले तो अभी बाकी है! हम अपना Attitude तो वक्त आने पर दिखाएंगे, शहर तू खरीद, उस पर राज करके हम दिखाएँगे! अभी उड़ने दो उन कबुतरो को जब हम आएँगे, तो आसमान खुद ब खुद खाली हो जाएगा!
तुम्हारा Attitude तुम्हारे बाप को दिखाना इस बादशाह को शिकार करना पसंद है शिकारी बनना नहीं! अंदाज थोड़ा लग रखता हूँ शायद इसलिए मै लोगो को गलत लगता हूँ! लोग मेरी पीठ पीछे क्या कहते है इससे मुझे फर्क नहीं पड़ता क्योंकि मै चुनोतियों से लड़ता हूँ सोच से नहीं! अखबार वाला भी हजार बार सोच कर ये खबर छापता है क्योंकि तेरे भाई से तो सारा शहर कापता है! जितना शरीफ बनोगे दुनिया उतना सताएगी, हरामी बनके जिओ दुनिया सलाम ठोक के जाएगी!
इनकार है जिन्हें आज मुझसे मेरा वक्त देखकर, मै खुद को इतना काबिल बनाउंगा मिलेंगे मुझसे वक्त लेकर! मेरी शराफत को तुम बुझदिली का नाम मत दो, क्योंकि दबे ने जब तक घोड़ा तब तक बन्दुक भी खिलौना ही होता है! नाम और पहचान चाहे छोटी हो पर अपने दम पर होनी चाहिए! लौट कर आया हूँ हिसाब कर के जाउंगा, हर एक को उसकी औकात दिखा कर जाउंगा! जब सामने वाला अपनी औकात भूल जाता है, फिर में भी सराफत छोड़ देता हूँ!
Badmashi Status Shayari
बतमीजी दिखाने वाले को मै झेलता नहीं सीधे पेलता हूँ! हमसे दुश्मनी करोगे तो बेटा अकाल मृत्यु मरोगे! मौज मस्ती अपना काम है, जो इसे आवारगी समझे उसे दूर से ही राम-राम है! मत करो छेड़छाड़ मेरी ख़ामोशी से, तुम पर बहुत भारी पडेगा! जब दुश्मन पत्थर मारे तो उसका जवाब फुल से दो, बस याद रखना की फुल उसकी कबर पर होना चाहिए!
तेरी अकड़ मै कुछ इस तरह से तोदुंगा, यकीन मान कही का नहीं छोडूंगा! ना पेशी होगी, न गवाह होगा, अब जो भी हमसे उलझेगा बस सीधा तबाह होगा! कुंडली में शनि, मन में मनी और हम से दुश्मनी तीनो हानिकारक है! बड़ी से बड़ी हस्ती मिट गई मुझे झुकाने में बेटा, तू तो कोशिश भी मत करना तेरी उम्रे गुजर जायेगी मुझे गिराने में! किसी बात का घमंड नहीं है बस दोगलो में बैठना पसंद नहीं है!
डार्लिंग हम डर से नहीं, सबकुछ कर के बैठे है! तारीफ़ करो या बदनामी करो लेकिन सालो मुहँ पर करो! मुकाम वो चाहिए की जिस दिन हारू उस दिन जितने वाले से ज्यादा ��र्चे मेरी हार के हो! हम उस मैदान के खिलाड़ी है जिसमे तुम सिर्फ ताली बजा सकते हो! खून में उबाल आज भी खानदानी है, दुनिया हमारे शौक की नहीं Attitude की दीवानी है!
Badmashi Shayari In English
Wo Jigar Jigar Nahi Jis Mai Dum Nahi, Or Sun Ladke Agar Tu Badmash Hai To Shareef Hum Bhi Nahi! Sahi Waqt Par Karwa Denge Hadon Ka Ehsas, Kuch Talaab Khud Ko Samundar Samajh Baithe Hai! Jinke Maa Baap Hamein Bura Kehte Hai, Unhone Shayad Farishte Ko Paida Kiya Hai! Aaram Se Baith Kar Dekh Raha Hun, Kal Ke Bachche Baap Ban Rahe Hai! Bahot Khudgarz Banda Hoon Khushi Ho Ya Gum, Kisi Ko Mehsoos Hone Nahi Deta!
Khud Se Kabhi Nahi Hara, To Ye Duniya Kya Harayegi Mujhe! Kaash Ki Hame Bhi Ye Kahtaa, Daro Nahi Main Hun Na Tumhre Saath! Jo Zahir Ho Jaye Wo Dard Kaisa, Or Jo Samaj Na Sake Wo Hamdard Kaisa? Raasto Ki Parwah Karooge Toh, Manzil Bur Maan Jaayegi! Ye Rabb Kabhi Girne Naa Dena Na Kisi Ke Kadmo Me Na Kisi Ki Nazaro Me!
Chal Tu Apna Hunar Azma Kar Dekh, Nikal Diya Dil Se Ab Jagah Bana Kar Dekh! Waqt Aane Do Beta Jawaab Bhi Denge, Hisaab Bhi Lenge Or Keh Ke Lenge! Zindagi Apani Hai To Jine Kaa Andaj Bhi Apna Hi Gona Chahie! Chamache Kabhi Vafadar Nahi Hote Our, Vafadar Kisi Ke Chamche Nahi Hote! Tabaahi Ka Dour Hai Sahib, Shanti Ki Ummid Hamse Naa Rakhiye! Read Also: Read the full article
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Talent recognition : Mira Devi ki Kahani : हुनर से मिली पहचान
Talent recognition : Mira Devi ki Kahani : हुनर से मिली पहचान
Talent recognition, Mira Devi ki Kahani, हुनर से मिली पहचान, Recognize your inner talent, Meera Devi’s life began to change. नमस्कार दोस्तों आपका स्वागत है हमारी इस साईट पर दोस्तों आज हम आपको मीरा देवी हुनर की कहानी इस आर्टिकल के माध्यम से बताएंगे जीनोन्हे अपनी मेहनत के बल पर अपने सपने सच कर दिखाए ये कैसे संभव हुआ आइए जानते है Talent recognition. Talent Recognition : हुनर हम सब में छिपा होता है…
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Success Story: बचपन में चली गई आंखों की रोशनी आज Food Business से कर रही हैं लाखों की कमाई जानें गीता सलिश के जीवन की प्रेरक कहानी
हौसला रखने वालों का साथ किस्मत भी देती है। जो विप��ीत परिस्थितियों को भी अपने अनुकूल बना लेता है वही जीवन में असली हीरो होता है। इस बात को सच साबित किया है केरल की रहने वाली गीता सलिश जी ने। जो बचपन से ही देखने में असक्षम है। वो देख नहीं सकती लेकिन उन्होंने अपनी इस कमजोरी को खुद पर हावी नहीं होने दिया। उन्होंने अपनी कमजोरी को ही अपनी ताकत बनाया आज वो बुलंद हौसलो की बदौलत अपने काम से लाखों रूपये कमा रही हैं। गीता सलिश एक फूड बिज़नेस चलाती हैं। यह बिज़नेस उन्होंने लॉकडाउन के दौरान ही शुरू किया था। इस बिज़नेस (Business) में वो घर पर ही अचार, पापड़ जैसे फूड प्रोडक्ट बनाती हैं। वो भले ही आंखो से देख नहीं सकती लेकिन उनका हुनर उन्हें हर ओर प्रसिद्धि दिला रहा है। गीता की आंखो की रोशनी बहुत कम उम्र में ही चली गई थी। जिसके बाद उन्होंने अपने हुनर को अपना रोज़गार बनाया और आज इसी के जरिए वो अपनी खास पहचान बनाने में कामयाब हो पाई हैं । आइए जानते हैं कैसे गीता सलिश ने कठिनाइयों से लड़कर सफलता की कहानी लिखी है।
बचपन में ही चली गई थी आंखों की रोशनी
केरल के एक सामान्य परिवार में जन्मीं गीता सलिश शुरू से ही पढ़ाई में तेज थी। क्लास में वो हमेशा फर्स्ट आती थी। वो खूब पढ़ाई करके कुछ बनना चाहती थी। लेकिन जब वो 8वीं कक्षा में थी तो एक दिन अचानक से उन्हें देखने में परेशानी होने लगी। जब इस बारे में जो डॉक्टर से बात की तो पता चला कि उनकी ऑप्टिकल नर्व डैमेज हो गई है। इसके कुछ दिनों के बाद ही उन्हें दिखाई देना बंद हो गया और उनकी आँखों की रोशनी पूरी तरह से चली गई। गीता के परिवार के लोगों ने उनका इलाज करवाने और आँखों की रोशनी को वापस लाने की बहुत कोशिश की लेकिन वे इसे ठीक नहीं करवा पाए। गीता अपने जीवन से निराश होने लगी।
परिस्थितियों के आगे नहीं मानी हार
आँखो की रोशनी गंवाने के बाद गीता निराश तो ज़रूर हो गईं। लेकिन उन्होंने अपनी कमज़ोरी को अपनी ताकत बनाने की ठानी। गीता सलिश ने इस सच को स्वीकार कर आगे बढ़ने का फैसला कर लिया। उन्होंने ब्लाइंड बच्चों के साथ पढ़ाई करना शुरू कर दिया और कक्षा 12वीं के बाद अपना ग्रेजुएशन कम्पलीट किया। ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद गीता सलिश की शादी कर दी गई। शादी के बाद इनके पति ने बहुत मदद की। गीता सलिश के पति ने एक रेस्टोरेंट का काम भी शुरू किया। यह काम कुछ दिनों तक तो काफी अच्छा चला लेकिन ��ुछ समय बाद ग्राहकों की संख्या कम हो गई और उन्हें इसे बंद करना पड़ा।
ऐसे शुरू किया अपना बिज़नेस
गीता सलिश ने जीवन के अलग-अलग पड़ावों से गुज़रने के बाद भी निराशा को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। उन्होंने बिज़नेस के बंद हो जाने के बाद नौकरी करने के बारे में विचार किया। लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी उन्हें नौकरी नहीं मिली। गीता सलिश ने एक बार फिर से बिज़नेस करने का मन बनाया। ये वो समय था जब कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन के बीच सब कुछ बंद था। इसी का फायदा उठाकर गीता ने अपने कुछ प्रोडक्ट्स जैसे अचार और चटनी के साथ इस बिज़नेस को शुरू किया। सबसे पहले गीता सलिश ने सोशल मीडिया पर अपने प्रोडक्ट्स के फोटोज डालने शुरू किए और लोगों के ऑर्डर का वेट करने लगी���। उनका यह आइडिया सफल हुआ और कुछ ही समय में लोगों से आर्डर भी मिलने लगे। जिसके बाद में गीता सलिश ने घी, खजूर का काढ़ा आदि भी बेचना शुरू कर दिया। देखते ही देखते गीता सलिश का यह बिज़नेस रफ़्तार पकड़ने लगा और उनके पास कई ऑर्डर भी आने लगे। बिज़नेस को बढ़ता देख गीता सलिश ने अपने इस बिज़नेस के लिए एक वेबसाइट भी बना ली। शुरुआती दिनों में गीता सलिश खुद ही अपने इस बिज़नेस को स्मार्टफोन की मदद से संभालती हैं। इस बिज़नेस में उनके साथ 4 महिलाऐं भी काम करती हैं। उनके पति मार्केटिंग का काम देखते हैं। गीता सलिश अचार, चटनी, घी जैसे प्रोडक्ट्स बना कर कई राज्यों में भेजती हैं और आज वो हर महीने लाखों की कमाई कर रही हैं। गीता सलिश की तरह आप भी अगर अपने बिज़नेस को बढ़ाना चाहते हैं तो आपको कॉर्पोरेट ट्रेनर (Corporate Trainer) से संपर्क करना चाहिए ।
कभी आँखों की रोशनी चले जाने से परेशान होने वाली गीता सलिश आज लाखों लोगों का बिज़नेस कर लोगों को प्रेरित कर रही हैं। अपनी खास पहचान बनाकर उन्होंने लोगों को बता दिया है कि अगर हिम्मत और लगन से कुछ काम किया जाए तो किसी भी परिस्थिती में आप सफलता हासिल कर सकते हैं।
लेख के बारे में आप अपनी टिप्पणी को कमेंट सेक्शन में कमेंट करके दर्ज करा सकते हैं। इसके अलावा आप अगर एक व्यापारी हैं और अपने व्यापार में कठिन और मुश्किल परेशानियों का सामना कर रहे हैं और चाहते हैं कि स्टार्टअप बिज़नेस को आगे बढ़ाने में आपको एक पर्सनल बिज़नेस कोच का अच्छा मार्गदर्शन मिले तो आपको PSC (Problem Solving Course) का चुनाव जरूर करना चाहिए जिससे आप अपने बिज़नेस में एक अच्छी हैंडहोल्डिंग पा सकते हैं और अपने बिज़नेस को चार गुना बढ़ा सकते हैं।
Source: https://hindi.badabusiness.com/motivational/success-story-of-geeta-salish-10855.html
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प्यारेलाल जी मुझे अपने हाथो से बनाई हुई सिरोही कि तलवार भेंट में देते हुए। सिरोही की तलवार को पहचान दिलाने वाले परिवार में सबसे बुजुर्ग प्यारेलाल के हाथों में आज भी वह हुनर मौजूद है जो पीढ़ी दर पीढ़ी उन्हें मिलता रहा और जिसकी बदौलत सिरोहीं की तलवार को देश दुनिया में पहचान मिली |72 वर्षीय प्यारेलाल कई सालों से तलवारें बना रहे है , लेकिन फिर भी जब भी मौका मिलता है वे तलवार को ढालने लगते है |आज भी लोहे पर ऐसी सटीक चोट करते है की तलवार की धार वैसी ही जैसी कई सालों पहले रहा करती थी |लोग आज भी उन्हें ढूंढते हुए उस गली तक आ पहुचते हैं जहाँ प्यारेलाल तलवार बनाने का काम करते हैं | गौरतलब है की प्यारेलाल इतिहास की स्वर्णिम पन्नों में दर्ज सिरोही की प्रसिद्ध तलवारे में माहिर परिवार के आखिरी शिल्पकार है |जो रियासत काल से ही तलवार बनाते आ रहे हैं | इस खासियत की वजह से मिली प्रसिधी सिरोही तलवार की यह खासियत है की आज के मशीनी युग में भी लोहे को गर्म करके सिर्फ हथौड़े की सहायता से तैयार की जाती है तलवार बनाने का मेटेरियल मालवा से आने लगा |मालवा का लोहा गोल बाँट की तरह होता था , जिसे भट्टी में तपाकर हथौड़े से कूट कर पट्टीनुमा बनाया जाता था |इस पट्टी को बार बार भट्टी में तपाकर तलवार का रूप दिया जाता था |सिरोही की तलवार बनाने में एक किलोग्राम लोहे को काम में लिया जाता है |लोहे को भट्टी में तपाकर तलवार को अंतिम रूप देने तक यह वजन घटकर 900 ग्राम रह जाता है |यह तलवार वजन में काफी हल्की होती है , लेकिन काम में लेने पर न तो मुडती है और न टूटती है |जितनी अधिक काम में लेंगे उतनी ही धारदार होगी | दिल्ली के म्यूजियम में बढ़ा रही है शोभा सिरोही की प्रसिद्ध तलवार दिल्ली के म्यूजियम में हमारी शोभा बढ़ा रही है |देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु जब 18 अक्टूबर 1958 को सिरोही आए , तब शिल्पकार प्यारेलाल के पिता टेकाजी ने उन्हें सिरोही की तलवार के साथ उनके हाथों से बनाए धनुष ,बाण ,खड़क व पेशकस भेट किए थे |पंडित नेहरु लोह धातु शिल्पकला को देखकर बेहद कुश हुए |आज भी यह पाँचों चीजें दिल्ली के म्यूजियम में टेकाजी पुत्र केसाजी सिरोही के नाम से हमारी शोभा बढ़ा रही है |शिल्पकार प्यारेलाल बताते है की उनके पूर्वजों को इस कला की बदौलत राजा महाराजाओ ने खूब सम्मान दिया |प्यारेलाल को भी वर्ष 2009 में जोधपुर में आयोजित इंटेक सिल्वर जुबली अवार्ड सेरेमनी में जोधपुर के नरेश गजसिंह व तत्कालीन महापौर रामेश्वरलाल दाधीच ने सम्मानित किया था | #girdharipurohit #talvar #sirohi https://www.instagram.com/p/CIAPl_ls3eL/?igshid=d2glrjhk86e6
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लॉकडाउन में गवाई 10 हजार रुपये महीने की नौकरी, अब अपने हुनर से कमा रहा महीने के 80 हजार!
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लॉकडाउन में गवाई 10 हजार रुपये महीने की नौकरी, अब अपने हुनर से कमा रहा महीने के 80 हजार!
दोस्तों कोरोना महामारी के चलते लगे लॉकडाउन में नौकरी जाने के बाद बड़ी संख्या में लोगों को संकट और समस्याओं का सामना करना पड़ा, लेकिन इन्हीं दिक्कतों में ऐसे शख्स ऐसा भी है जो लॉकडाउन से पहले 10 हजार रुपये महीने कमाता था, लेकिन लॉकडाउन में नौकरी खोने के बाद अब वो 80 हजार रुपये महीने की कमाई कर रहा है।
बता दे की जिस व्यक्ति की बात हो रही है उनका नाम महेश कापसे है। महेश कापसे को मार्च-अप्रैल से पहले ज्यादा लोग नहीं जानते थे। ये महाराष्ट्र के औरंगाबाद में एक स्कूल में ड्रॉइंग टीचर थे। कोरोना की वजह से लॉकडाउन लगा और थोड़े दिन बाद स्कूल की नौकरी चली गई। महेश भी अपने गांव बुलढाणा के वेणी में लौट आए। महेश ने खाली समय का उपयोग किया और अपनी पेंटिंग्स को टिकटॉक पर डालने की योजना बनाई। उनके दिमाग में आइडिया आया कि क्यों ना अपनी पेंटिंग को वो टिकटॉक पर डालें और इसके बाद महेश की जिंदगी बदल गई।
Incredible art -Mahesh Kapse thank you 🙏🏽 Loved it https://t.co/3XtkUcBnae
— Riteish Deshmukh (@Riteishd) June 8, 2020
धीरे-धीरे महेश कापसे ना सिर्फ आम लोगों में पॉपुलर होने लगे। सेलेब्रिटीज भी इनकी कला के फैन हो गए। महेश को इंटरनेशनल फेम मिलने लगा। क्रिकेटर डेविड वॉर्नर, केविन पीटरसन तक ने उनका वीडियो शेयर किया।बड़े-बड़े मराठी कलाकार भी उनके कायल हो गए। महेश ने बताया कि मैंने सोचा उन्हीं की पेंटिग बनाऊं ��ो मेरे साथ ड्यूटी करते हैं तो काफी सारे ऑर्डर आने लगे। एक दिन में 2-2, 3-3 ऑर्डर आने लगे। अब महेश को महीने में 40 तक ऑर्डर मिल जाते हैं और एक पेंटिंग का वो 2 हजार रुपये लेते हैं जबकि एक पेंटिंग बनाने में उन्हें सिर्फ 10 मिनट का समय लगता है।
महेश यशवंतराव कला महाविद्यालय की आर्ट क्लास में हमेशा पहले नंबर पर आए लेकिन उनके हुनर को पहचान अब जाकर मिली और वह भी लॉकडाउन के दौरान। हालांकि टिक टॉक के बंद होने से महेश के काम पर असर पड़ा है। बाकी सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर उन्हें टिकटॉक वाली कामयाबी नहीं मिल पा रही। हालांकि वह अपनी कोशिशों में लगे हुए हैं।
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शाम के पांच-साढ़े पांच बज रहे हैं। सड़क के दोनों तरफ छोटे-छोटे मकान बने हैं। कुछ मकानों के बाहर बोर्ड लगा है और उस पर लिखा है, ‘फैमली डेरा है। बिना परमिशन अंदर आना मना है।’ वहीं कुछ घरों के बाहर टंगे बोर्ड पर लिखा है, ‘सपना कुमारी और माही कुमारी, नर्तकी एवं गायिका। प्रदर्शन रात्रि 9 बजे तक।’ सड़क उखड़ी हुई है। शायद इसी बारिश में उखड़ गई है। इस उखड़ी हुई सड़क से आने-जाने वाले लोग सामने देखने की जगह दाएं-बाएं देखते हुए आगे बढ़ रहे हैं।
इनकी नजरें घरों की खिड़की, छतों और गेट के बाहर बैठी लड़कियों और महिलाओं को देखने की जुगत कर रही हैं। लड़कियों ने अपने चेहरे पर डार्क मेकअप लगाया हुआ है। होठों पर गहरे लाल रंग की लिपस्टिक, आंखों में गहरा काजल और चेहरे पर फाउंडेशन लगाए हुए महिलाएं लगभग हर एक घर के बाहर बैठी हैं।
बिहार के सबसे बड़े और सबसे पुराने रेड लाइट एरिया चतुर्भुज स्थान की हर शाम ऐसी ही होती है। शायद यही वजह है कि फुल मेकअप में बैठी महिलाओं को इन घूरती आंखों से कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। वो या तो आपस में बतिया रही हैं या अपने-अपने स्मार्ट फोन पर कुछ देख रही हैं।
जिस सड़क पर ये दृश्�� है, उसे शुक्ला रोड कहते हैं। इसके पश्चिमी छोर पर चार भुजाओं वाले भगवान का मंदिर है, जिसकी वजह से इस जगह को चतुर्भुज स्थान कहते हैं। सड़क के पूर्वी छोर पर पर गरीब स्थान मंदिर है। ये भगवान शिव का मंदिर है और सावन में यहां बहुत बड़ा मेला लगता है। इन दो मंदिरों के बीच आबाद हैं वो ढाई हजार परिवार, जिनके पुरखे कभी कला के उपासक माने जाते थे, जो कभी बड़े-बड़े दरबारों में अपना हुनर दिखाते थे और जहां बड़े से बड़े राजा-महाराज अपने बच्चों को तहजीब सिखाने के लिए भेजा करते थे।
कुछ मकानों के बाहर ऐसे बोर्ड लगे हैं, जिन पर लिखा है, फैमली डेरा बिना पूछे अंदर आना मना है।
वक्त बदला, पीढ़ियां बदलीं और इस इलाके की पहचान भी बदल गई। बड़े-बड़े कोठों की दीवारें दरकने लगीं। नाच-गाना बंद होता चला गया और देह व्यापार ने अपना अड्डा जमा लिया और चतुर्भुज स्थान को ‘रेड लाइट’ एरिया कहा जाने लगा। सड़क के पूर्वी छोर की पान की दुकान पर मिले 30 साल के रफीक कहते हैं, ‘इस समाज को मुख्य धारा में जोड़ने का कभी प्रयास ही नहीं हुआ। सबने बस लूटा-खसोटा। हमारा भी ताल्लुक इसी गली से है। मैट्रिक के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी, क्योंकि क्लास में सबको मालूम चल गया था कि हम शुक्ला रोड में रहते हैं। कभी आते होंगे यहां राजा, महाराजा और होता होगा नृत्य-संगीत। हमने जब से होश संभाला है, तब से तो यहां केवल अत्याचार ही देखा है। इस गली में रहने वाले हर मर्द को दलाल और हर औरत को देह बेचने वाली समझा जाता है।”
रफीक जब ये बातें कह रहे हैं तो उनके चेहरे पर उभरे गुस्से और उनकी बातों से झलक रहे निराशा के भाव को साफ-साफ महसूस किया जा सकता है। वैसे तो देश से रजवाड़ों, बड़े घरानों और जमींदारों के खत्म होने ��े साथ ही चतुर्भुज स्थान की पहचान भी बदलने लगी लेकिन असल मार तब पड़ी जब टीवी, फिल्म और इंटरनेट आया। लेकिन कोरोना की वजह से लगे तीन महीने लंबे लॉकडाउन ने तो इन्हें पूरी तरह से तबाह कर दिया। अपने घर के बाहर मोबाइल पर गाना सुन रही शबनम लाख मिन्नतों के बाद बात करने के लिए तैयार होती हैं। वो कहती हैं, “तबाही तो अभी भी जारी है। हमें कार्यक्रम करने की इजाजत नहीं मिली है। घर में नाच-गाना कर सकती हैं, बस। आप लोगों के गए होंगे केवल तीन महीने। हमारा तो पूरा साल ही चला गया।” इतना कहकर शबनम अपने घर के अंदर चली जाती हैं और पर्दा खिंच लेती हैं। ये इस बात का संकेत है कि हमारे वहां होने से उन्हें दिक्कत हो रही है।
यहां से निकलते-निकलते रफीक कहते हैं, “जिन तीन महीनों की आप बात कर रहे हैं वो तो इनके लिए कयामत के दिन थे। अगर जिला प्रशासन ने राशन का इंतजाम नहीं किया होता तो भूख से मर जाते ये परिवार।”
इन दो-ढाई हजार परिवारों को शासन-प्रशासन शहर में अपराध की मुख्य वजह मानता रहा है। खुद को संभ्रांत मानने वाले परिवार इधर से गुजरना भी ठीक नहीं समझते। इनकी नजर में ये ऐसी मछलियां हैं, जिनसे पूरा तालाब गंदा हो रहा है। शायद यही वजह है कि मुगलों के वक्त से आबाद इस बस्ती में पहली बार 1994 में सुधार का काम शुरू होता है। शुरुआत एड्स जागरूकता अभियान के तहत कंडोम बांटने से हुई थी।
साल 1997 तक यहां दस आंगनबाड़ी केंद्र खुल गए। महिलाओं और बच्चियों को अनौपचारिक शिक्षा देने के लिए दस सेंटर भी खुल गए। किशोरी चेतना केंद्र का गठन हुआ और इसके तहत इलाके की सौ लड़कियों को पढ़ाया-लिखाया जाने लगा, लेकिन साल 2000 आते-आते ये सारे काम बंद भी हो गए। जयप्रकाश नारायण के सिपाही और सर्वोदयी नेता परमहंस प्रसाद सिंह इन सारे प्रयासों को जमीन पर उतारने में लगे थे। इनके मुताबिक मजबूत इच्छा शक्ति ना होने की वजह से और तत्कालीन जिलाधिकारी के बदल जाने की वजह से सब बंद हो गया।
वक्त के साथ यहां नाच-गाना बंद होता चला गया और देह व्यापार ने अपना अड्डा जमा लिया।
वो बताते हैं, “तब राजबाला वर्मा यहां की जिलाधिकारी थीं। वो इस इलाके को खाली करवाना चाहती थीं। मैंने उनसे कहा कि ये लोग कहीं तो रहेंगे ही। जहां रहेंगे, वहां स्थिति खराब हो जाएगी। इनको और इनके बच्चों को मेन स्ट्रीम से जोड़ने की जरूरत है। डंडे से नहीं, योजना से काम लेना होगा। ये बात उन्हें जम गई। इसी के बाद सारे काम शुरू हुए। उन्होंने कई सरकारी योजनाओं को इस मोहल्ले की तरफ मोड़ दिया। इससे पहले इन्हें किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिलता था। कुछ साल बाद उनका तबादला हो गया। बाद में जो जिलाधिकारी आए, उन्होंने कई दूसरे एनजीओ को काम दे दिया और फिर एक बार इनके नाम पर लूट-खसोट शुरू हो गई।”
ऐसी जानकारी है कि बाद के वर्षों में मुजफ्फरपुर शेल्टर होम मामले में आजीवन सजा काट रहे ब्रजेश ठाकुर का एक एनजीओ ही इस मोहल्ले में काम कर रहा था। इन कामों को जमीन पर आजतक किसी ने नहीं देखा और ना ही महसूस किया। सुधार के तमाम काम कागजों पर ही होते रहे।
इलाके में ‘बाबा' के नाम से पहचाने जाने वाले अमरेन्द्र तिवारी कहते हैं, ‘आज की राजनीति बहुत आगे निकल गई है। उसे पता है कि वोट कैसे और कहां से मिलना है? कई समुदाय हाशिए पर पड़े हैं। उसमें इनकी क्या औकात! पटना और दिल्ली में सत्ता बदलने पर इनके जीवन में बहुत फर्क नहीं पड़ता। इन्हें फर्क पड़ता है कि जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक की कुर्सी पर बैठा इंसान कैसा है?
अंधेरा हो चुका है। ज्यादातर घरों के आगे पीली रोशनी फेंकते बल्ब जल रहे हैं। मेरे सामने, सड़क की दूसरी तरफ बने हवेलीनुमा घर के बाहर चार-पांच महिलाएं बैठी हैं। कांच की रंग-बिरंगी चूड़ियां लिए एक चूड़ीहार उनके पास बैठा है और औरतों की कलाई में चूड़ी पहना रहा है। तभी सड़क से गुजर रहे एक 20-22 साल के लड़के ने मोबाइल से फोटो खींची। एक औरत ने देख लिया तो बोलीं, “क्या बाबू, काहे ले रहे हो फोटो? हम इस समाज में शांति से नहीं जी सकतीं क्या?”
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They have no meaning with election-ruling-opposition, every man living in this street is considered as a broker, every woman is a body vendor
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90 के दशक की बात है. इंडीपॉप का जमाना जोरों पर था. इंडीपॉप एक अच्छी खासी इंडस्ट्री बन चुकी थी. ऐसे समय में 1998 में एक एल्बम आई. उस एल्बम में गाने से पहले उसके वीडियो ने लोगों को आकर्षित किया. नीले साफ चमकते आसमान में नीले-नीले पानी के बीच एक पीले रंग की आधी डूबी-आधी तैरती कार और उस कार की छत पर गिटार थामे एक सिंगर. वो सिंगर थे- मोहित चौहान. एल्बम थी- बूंदे और वो गाना था- 'डूबा डूबा रहता हूं आंखों में तेरी.' इस बैंड का नाम था- सिल्क रूट. सिल्क रूट में मोहित चौहान के अलावा अतुल मित्तल, किम त्रिवेदी और केनी पुरी थे. किम और केनी मोहित चौहान के साथ पढ़े भी थे. जाहिर है दोस्तों में अच्छी ‘केमिस्ट्री’ थी. इस एल्बम ने धमाल मचा दिया. मोहित चौहान की आवाज में एक नयापन था. 1998 के तमाम म्यूजिक चार्ट्स में ‘बूंदे’ का जलवा कायम हो गया. ‘डूबा डूबा रहता हूं आंखों में तेरी’ नंबर एक पायदान पर बजने वाला गाना बना. इसके दो साल बाद इस बैंड ने एक और एल्बम तैयार की. जिसके बाद बैंड और मोहित चौहान के रास्ते अलग-अलग हो गए. इस एल्बम से पहले भी मोहित चौहान कई जिंगल्स बना चुके थे. डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का संगीत तैयार कर चुके थे. ये सारे छोटे-छोटे एसाइनमेंट करने के करीब पांच साल बाद ‘बूंदे’ एल्बम तैयार हुआ था. जो लंबे समय तक नहीं चल पाया. इसके बाद मोहित चौहान की अगली मंजिल थी मुंबई. उन्होंने वहां कुछ रिएलिटी शो में भी हिस्सा लिया. ऐसे ही एक रिएलिटी शो में जज थे एआर रहमान. एआर रहमान को मोहित चौहान की आवाज पसंद आई. दिलचस्प बात ये है कि रिएलिटी शो में हिस्सा लेने से पहले भी मोहित चौहान फिल्मों के लिए गा चुके थे. लेकिन उन गान���ं को वो सफलता नहीं मिली जिससे बॉलीवुड मोहित चौहान के हुनर की असली पहचान कर पाता. इस दौरान एक अवॉर्ड्स फंक्शन में मोहित चौहान की मुलाकात एआर रहमान से हुई. एआर रहमान ने उनसे सिल्क रूट बैंड के बारे में थोड़ी बहुत बात भी की. एआर रहमान का कद उस वक्त तक इतना बड़ा हो चुका था कि हर कोई जानता था कि उनके काम का स्तर अलग ही होता है. संयोग देखिए कि वही एआर रहमान मोहित चौहान की किस्मत को चमकाने वाले बने. साल 2006 में राकेश ओमप्रकाश मेहरा ‘रंग दे बसंती’ बना रहे थे. फिल्म में एआर रहमान का म्यूजिक था. एआर रहमान ने मोहित चौहान को ब्रेक दिया. गाना था- 'खून चला.' इस फिल्म में ��ोहित चौहान ने इकलौता यही गाना गाया था लेकिन उनके इसी गाने ने उनकी किस्मत बदल दी. इस गाने की रिकॉर्डिंग का किस्सा भी बहुत दिलचस्प है. मोहित चौहान रिकॉर्डिंग से पहले काफी ‘नर्वस’ थे. उन्हें इस बात का डर था कि वो ये गाना गा पाएंगे भी या नहीं. कहीं ऐसा ना हो कि एआर रहमान से डांट खानी पड़ जाए. इस डर से निजात तब मिली जब उन्हें पता चला कि इस गाने को प्रसून जोशी ने लिखा है. प्रसून जोशी और मोहित चौहान की जान पहचान पहले से थी. प्रसून ने सिल्क रूट बैंड के लिए भी कुछ काम किया था. इस तरह उस अनचाही ‘नर्वसनेस’ से बाहर निकलकर मोहित चौहान ने गाना गाया. अगले ही साल मोहित चौहान ने ‘जब वी मेट’ का सुपरहिट गाना ‘तुम से ही दिन होता है’ गाया. इस गाने का संगीत प्रीतम ने तैयार किया था. इस गाने ने मोहित चौहान के लिए फिल्म इंडस्ट्री के दरवाजे पूरी तरह खोल दिए. सच्चाई ये भी है कि जिस म्यूजिक डायरेक्टर ने एक बार मोहित चौहान के साथ काम कर लिया वो उनकी पसंद में शुमार हो गए. इस गाने की रिकॉर्डिंग के लिए इम्तियाज अली और प्रीतम ने मोहित चौहान का एक महीने से ज्यादा इंतजार किया था. इम्तियाज अली ने जब कुछ साल बाद रॉकस्टार बनाई तो उन्होंने मोहित चौहान से फिल्म के लगभग सभी गाने गवाए. आज के दौर में इस तरह के उदाहरण कम ही मिलेंगे जब एक ही गायक ने फिल्म के लगभग सभी गाने गाए हों. रॉकस्टार के लिए मोहित चौहान को फिल्मफेयर अवॉर्ड से लेकर सारे बड़े अवॉर्ड्स से नवाजा गया. प्लेबैक गायकी के अलावा मोहित चौहान ने एक और खूबसूरत काम किया है. उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की कविताओं को कंपोज किया है. इस शानदार आइडिया के पीछे काफी योगदान उनकी पत्नी का भी है. हुआ यूं था कि एक बार एक चैनल में उन्हें राष्ट्रभक्ति के गाने सुनाने थे. मोहित सोच ही रहे थे कि वो कोई नया गाना तैयार करें या पुराना गाना गाएं जब उनकी पत्नी ने उन्हें कलाम साहब की वो कविता लाकर दी. मोहित चौहान ने उस कविता को कंपोज किया. बाद में उन्हें राष्ट्रपति से मुलाकात कर उन्हें वो गीत सुनाने का मौका भी मिला. कलाम साहब भी इस प्रयोग ��े बहुत खुश हुए. आखिर में उन्होंने अपनी पांच और कविताएं दी जिसे कंपोज करके एल्बम तैयार किया गया. आज की तारीख में मोहित चौहान प्लेबैक गायकी का बड़ा नाम हैं. आपको जानकर ताज्जुब होगा कि संगीत की उन्होंने कोई परंपरागत तालीम नहीं ली है. बस दिल से गाते हैं. बनना तो वो एक्टर चाहते थे. एफटीआईआई में आवेदन की कोशिश भी की थी लेकिन वहां से जवाब आ गया कि उनके पास एक्टिंग का कोई कोर्स नहीं है. लिहाजा पेंटर, एक्टर मोहित चौहान सिंगर बन गए. जिओलॉजी का छात्र आज संगीत के भूविज्ञान से करोड़ों फैंस का प्यार हासिल कर चुका है. from Latest News अभी अभी Firstpost Hindi https://ift.tt/2u1nJWc
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विजय पीएम मोदी की बात से सौ फीसद सहमति जताते हुए कहते हैं कि पकौड़ा बेचकर मैं काबिल बना हूं।
नई दिल्ली (शुजाउद्दीन)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पकौड़े वाले बयान पर इन दिनों सियासी बयानबाजी का दौर चल रहा है। दिल्ली में तीस साल से रेहड़ी लगा पकौड़े बेचने वाले विजय कुमार इससे खासे आहत हैं। उनका कहना है कि जिस पकौड़ा व्यवसाय को कुछ राजनीतिक दलों ने मजाक बनाकर रख दिया है, उसी व्यवसाय ने उन्हें जीवन की हर खुशी दी है।
बकौल विजय, पकौड़े बेच कर ही मैं हर उस सपने को पूरा कर सका, जो कभी मेरे लिए नामुमकिन था। बता दें कि हालही दिए एक टीवी इंटरव्यू में पीएम मोदी ने पकौड़े बेचने वाले को भी रोजगार में रत बताया था। देश में नए रोजगारों के सृजन को लेकर पीएम से एक सवाल पूछा गया था।
मोदी की बातों से सहमत हैं विजय
45 वर्षीय विजय पीएम मोदी की बात से सौ फीसद सहमति जताते हुए कहते हैं कि मैं कभी खुद रोजगार की तलाश में दर-दर भटक रहा था, लेकिन पकौड़े बेच कर आज दूसरों को रोजगार देने के काबिल बना हूं।
पकौड़े से मिली पहचान
विजय उन नेताओं के प्रति नाराजगी व्यक्त करने से भी नहीं चूकते, जो पकौड़े बेचने वालों को कमतर करार दे रहे हैं और उनके व्यवसाय को रोजगार नहीं मानते हैं। अतीत को याद करते हुए विजय की आंखें भर आईं। गीता कॉलोनी छह व 11 ब्लॉक चौक पर पंजाब दे मशहूर पकौड़े के नाम से रेहड़ी चलाने वाले विजय कहते हैं कि पकौड़े से मिली पहचान को वह ताउम्र भुला नहीं सकते।
35 साल पहले पंजाब से आए थे दिल्ली
अतीत में झांकते हुए वह बताते हैं कि करीब 35 वर्ष पहले जब वह अपने माता-पिता, भाई-बहन के साथ पंजाब रोडवेज की बस में लुधियाना से दिल्ली आने के लिए बैठे तो उनके पास टिकट खरीदने के अलावा चंद पैसे ही बचे थे। पेट की आग बुझाने को भी पर्याप्त पैसे नहीं थे। दिल्ली के कश्मीरी गेट बस अड्डे पर जब वह उतरे तो आंखों में ढेर सारे सपने थे, लेकिन अंजान शहर में सब कुछ पा लेना आसान नहीं था।
काम न मिला तो बनाने लगे पकौड़ा
वह बताते हैं, न सिर पर छत थी और न ही खाने को दाने। जैसे-तैसे पूर्वी दिल्ली के कृष्णा नगर पहुंचे तो उन लोगों ने ही रहने का ठिकाना दिया, जिनका हाल भी अपने जैसा था। छत तो मिल गई, लेकिन रोजी-रोटी कैसे मिलेगी, इस सवाल ने नींद छीन ली। विजय बताते हैं कि उम्र कम थी, इसलिए जल्दी काम मिलना और हर काम कर पाना भी आसान नहीं था।
पकौड़ा बनाकर पूरा किया सपना
सरकारी स्कूल में पढ़ाई शुरू की और बाकी समय में जगह-जगह घूमकर स्ट्रीट फूड बेचने लगे। रेहड़ी खरीदने के पैसे नहीं थे। धीरे-धीरे पड़ोसियों की मदद से एक रेहड़ी खरीदी और उस रेहड़ी पर पकौड़े का व्यवसाय शुरू किया। यह हुनर का ही कमाल है कि आज विजय परिवार के हर सपने पूरे करने का माद्दा रखते हैं। उनके हाथों में शाकाहारी खाद्य पदार्थ बनाने की ऐसी कला है कि चटकारे लगाकर खाने वाले भी उनके मुरीद हो गए। आज भी उनके पास रेहड़ी ही है, लेकिन करीब 30 किस्म के पकौड़े उनकी शान बढ़ाते हैं।
बेटी के हाथ पीले किए, बेटे को दिलाई अच्छी ताली��
विजय बताते हैं कि इसी पकौड़े के व्यवसाय से बेटी के हाथ पीले किए और बेटे को दिल्ली विश्वविद्यालय से अच्छी शिक्षा दिला रहे हैं। वह कहते हैं, पकौड़े नहीं बेचता तो यह मेरे लिए नामुमकिन था। इसलिए प्रधानमंत्री ने जब पकौड़े के व्यवसाय को स्वरोजगार से जोड़कर उनके जैसे लोगों का जिक्र किया तो अतीत की याद ताजा हो उठी और आंखें छलक पड़ीं।
L'articolo पकौड़ाः मोदी के बयान का उड़ा मजाक तो रो पड़े दिल्ली के रहने वाले विजय, जानें पूरा मामला proviene da World Trending News.
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*एक- एक पॉईंट ध्यान से पढिये* --------------------------------------------- *Quote 1 .* जब लोग आपको *Copy* करने लगें तो समझ लेना जिंदगी में *Succes s* हो रहे हों. *Quoted 2 .* कमाओ…कमाते रहो और तब तक कमाओ, जब तक महंगी चीज सस्ती न लगने लगे. *Quote 3 .* जिस व्यक्ति के सपने खत्म, उसकी तरक्की भी खत्म. *Quote 4 .* यदि *“Plan A”* काम नही कर रहा, तो कोई बात नही *25* और *Letters* बचे हैं उन पर *Try* करों. *Quote 5 .* जिस व्यक्ति ने कभी गलती नहीं कि उसने कभी कुछ नया करने की कोशिश नहीं की. *Quote 6 .* भीड़ हौंसला तो देती हैं लेकिन पहचान छिन लेती हैं. *Quote 7 .* अगर किसी चीज़ को दिल से चाहो तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने में लग जाती हैं. *Quote 8 .* कोई भी महान व्यक्ति अवसरों की कमी के बारे में शिकायत नहीं करता. *Quote 9 .* महानता कभी ना गिरने में नहीं है, बल्कि हर बार गिरकर उठ जाने में है. *Quote 10 .* जिस चीज में आपका *Interest* हैं उसे करने का कोई टाईम फिक्स नही होता. चाहे रात के *1* ही क्यों न बजे हो. *Quote 11 .* अगर ��प चाहते हैं कि, कोई चीज अच्छे से हो तो उसे खुद कीजिये. *Quote 12 .* सिर्फ खड़े होकर पानी देखने से आप नदी नहीं पार कर सकते. *Quote 13 .* जीतने वाले अलग चीजें नहीं करते, वो चीजों को अलग तरह से करते हैं. *Quote 14 .* जितना कठिन संघर्ष होगा जीत उतनी ही शानदार होगी. *Quote 15 .* यदि लोग आपके लक्ष्य पर *हंस* नहीं रहे हैं तो समझो *आपका लक्ष्य बहुत छोटा हैं.* *Quote 16 .* विफलता के बारे में चिंता मत करो, आपको बस एक बार ही सही होना हैं. *Quote 17 .* सबकुछ कुछ नहीं से शुरू हुआ था. *Quote 18 .* हुनर तो सब में होता हैं फर्क बस इतना होता हैं किसी का *छिप* जाता हैं तो ��िसी का *छप* जाता हैं. *Quote 19 .* दूसरों को सुनाने के लिऐ अपनी आवाज ऊँची मत करिऐ, बल्कि अपना व्यक्तित्व इतना ऊँचा बनाऐं कि आपको सुनने की लोग मिन्नत करें. *Quote 20 .* अच्छे काम करते रहिये चाहे लोग तारीफ करें या न करें आधी से ज्यादा दुनिया सोती रहती है ‘सूरज’ फिर भी उगता हैं. *Quote 21 .* पहचान से मिला काम थोडे बहुत समय के लिए रहता हैं लेकिन काम से मिली पहचान उम्रभर रहती हैं. *Quote 22 .* जिंदगी अगर अपने हिसाब से जीनी हैं तो कभी किसी के *फैन* मत बनो. *Quote 23 .* जब गलती अपनी हो तो हमसे बडा कोई वकील नही जब गलती दूसरो की हो तो हमसे बडा कोई जज नही. *Quote 24 .* आपका खुश रहना ही आपका बुरा चाहने वालो के लिए सबसे बडी सजा हैं. *Quote 25 .* कोशिश करना न छोड़े, गुच्छे की आखिरी चाबी भ (at Saharsa)
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Kapil Story : ’ऐसे रखेगी जैसे पिंजरे मे तोता’ Will take Care like ’Parrot in a Cage’
Kapil Story : ’ऐसे रखेगी जैसे पिंजरे मे तोता’ Will take Care like ’Parrot in a Cage’
मैं सुबह फैक्टरी जाने की जल्दी मे हबड़ तबड़ में डाईनिंग टेबल पर नाश्ते कर रहा था , तभी सीढ़ियों की घंटी बजी , माँ ने सीढ़ियों में झाँकते हुऐ पूछा , कौन साहब ? आवाज़ आयी , भाभीजी भाई साहब घर पे हैं ? माँ ने जवाब दिया , शैलेंद्र जी , आप ऊपर आइये ना , आपके भाई साहब घर पर ही है , शैलेंद्र जी ने सीढ़ियां चढ़ते हुऐ बोले , भाभीजी आज मंदिर जी के देव दर्शन के दौरान ही विचार आया कि अपनी बड़ी बिटिया साधना के लिये आपका पुत्र कपिल बहुत ही उत्तम वर रहेगा । इसी सिलसिले मे भाई साहब से मिलने की बहुत इच्छा हुई । जैसे ही मैने यह आवाज़ सुनी , दिलोदिमाग मे एक तरंग सी उठी और पूरे ज़िस्म को पुल्कित कर गयी । मेरे लिए शादी का रिश्ता आया है , वो भी शैलेंद्र जी की लड़की साधना का , लगा लॉटरी लग गयी , शैलेंद्र जी का चाय का कारोबार था और उनका और हमारा परिवार करोल बाग के पुराने जैन ख़ानदानों में थे , उनकी दो लड़कियां बड़ी साधना और छोटी प्रज्ञा , तीसरे नंबर पर लड़का सम���यक , सारा परिवार गोरा चिटा खूबसूरत तेजस्वी और पढ़ा लिखा था ।
साधना की तो बात ही निराली थी , खूबसूरत शब्द भी उसकी शख्सियत की लिये संपुर्ण नही था , जब भी मैं उसे मंदिर जी मे देखता था , उसके बाद मुझें उसके सिवा कुछ नही दिखता था , फैक्टरी जाने की सारी हबड़ तबड़ काफूर को चुकी थी , दिल की बढी धड़कन से अगले कमरे मे पहुँचे शैलेंद्र जी और डैडी के बीच होती बातचीत ��ुनने की कोशिश बहुत थी, कि डैडी की आवाज़ सुनी , आओ शैलेंद्र भाई , आज कैसे रास्ता भूल गये हमारा ? दूसरी आवाज़ माँ के लिऐ थी चाय के लिये , शैलेंद्र जी ने डैडी से कहा , भाई साहब , साधना के लिऐ कपिल बाबू का रिश्ता चाह रहा हूँ , डैडी की अत्यंत खिलखिलाते हुऐ हँसने की आवाज़ आयी, बोले पहले आप बैठो तो , कुछ नाश्ता तो लो , कपिल तो अभी सिर्फ बाइस साल का है अभी से शादी की बात ? इतना सुनना था कि मेरा दिल तो धक से बैठ गया , पीछे से मेरे लिये माँ की आवाज़ आयी , जूस पूरा खत्म करना ? और कुछ चाहिये , फैक्टरी पहुँच के फ़ोन करना , मतलब साफ था कि अब रुको मत और फैक्टरी पहुँचो ।
करोल बाग से ओखला फैक्टरी का सफ़र करीब बीस किलोमीटर का था जिसमे करीब पैंतालिस मिनट लगते थे , बात सन उन्नीस सौ नब्बे की है , मोबाइल फ़ोन भी नही होते थे , पूरा सफ़र बहुत बैचैनी भरा था , डैडी ने यह क्या कहा कि सिर्फ बाइस साल का है , इतना अच्छा रिश्ता भी कोई जाने देता है क्या ? इस दुनिया मे अपने माता पिता ही काम बिगाड़ने वाले हो तो ? ना कहने से पहले पूछते तो ? हज़ारों लाखों सवाल , माँ पिताजी के लिऐ गिले शिक़वे , और ना जाने क्या क्या ? भगवान करे डैडी यह रिश्ता मान लें
फैक्टरी पहुँच कर भी पाया दिल तो घर पर ही था , अभी पौने दस बजे थे , किसी काम मे कोई मन नही लग रहा था , बार बार फ़ोन का रिसीवर उठता माँ से बात करने को , पर नही , जाने इस बैचैनी को क्या कहिये ?
प्रतिदिन माँ का दोपहर दो बजे के करीब फ़ोन आता था कि लंच खा लिया या नही ? खाना ठीक लगा या नही ? आज क्या हुआ , सवा दो बज चुके थे माँ का कोई फ़ोन नही , अब तो मुझसे रहा है नही गया , माँ से बात करने के लिऐ आज तक कभी कुछ सोचा ही नही था जितना आज , मैने फ़ोन मिलाया माँ ने उठाया , माँ टिन्डे की सब्ज़ी टिफन में मत दिया करो , मैने आपको पहले भी मना किया है आप मानते नही हो , आज लंच बिल्कुल मजेदार नही था , जवाब आया ठीक है , कल से ख़याल करूँगी पर बेटे भिंडी थी , दाल थी , वो तो तुझे पसंद है , कोई बात नही कल से टिन्डे नही दूंगी , फिर भी बेटे , सभी सब्जियां खानी चाहिये , आदत डालो , और कोई बात , बोली ठीक है फ़ोन रखती हूं और फ़ोन बंद , और दिल की उधेड़बुन वही की वही.
दो मिनट भी नही बीते होंगे , घंटी बजी , माँ थी लाईन पर बोली , पता है आज सुबह तेरे लिए शैलेंद्र भाई साहिब जी अपनी बेटी साधना का रिश्ता लाये थे , तेरी तो बहुत ही तारीफ कर रहे थे , तेरे डैडी को बोले कि आपके परिवार को बहुत ही पसंद करते है , तेरे डैडी ने उनका धन्यवाद करते हुए कहा की आपने हमा��े बारे मे इतनी अच्छी राय रखी है कि आप रिश्ता ले कर आये , परन्तु मेरी मज़बूरी यह है कि अभी कपिल सिर्फ बाइस साल का है अभी अभी छः महीने से ही फैक्टरी जाना शुरू किया है क्योंकि अभी जनवरी मे ही मुझे हार्ट अटैक आया था डॉक्टर साहब ने अभी एक महीना और आराम के लिए कहा है इसलिये कपिल ही फैक्टरी संभाल रहा है, और काफी अच्छी तरह संभाल रहा है , एक दो साल जरा आपने पैरों पर ढंग से खड़े हो जाये फिर ही शादी की विषय मे विचार करेंगे ।
माँ ने अपनी बात खत्म की और तुरंत मेरी चुप्पि से मेरे मन की सारी उधेड़बुन को समझते हुए कहा , मुझे पता है तुझे बुरा लगा , फिर भी अभी तेरे डैडी की तबियत और संभालते ही बात आगे बढ़ाऊंगी ।
समय को मेरे लिये कुछ बेहतर ही मंजूर था , अनमने ढंग से बढ़ते बढ़ते , मैंने काम मे अपने आप को ढाल ही लिया , डैडी की तबियत कोई दिन सही , कोई दिन खराब , जुलाई मे डैडी का देहांत हो गया , उसके बाद का समय काफी तकलीफ देय रहा , बड़े भाई साहिब ने सारे परिवार को संभाला , कारोबार को संभाला , मैने फैक्टरी पूरे तन मन से संभाली , एक डेढ साल मे बाकी सब चीजे तो काबू आ गयी सिर्फ डैडी की अविश्वसनीय कमी जो आज तक है ।
एक दिन शाम घर वापस आया तो टेबल पर साधना की शादी का कार्ड देखा , मुझे तो कोई बुरा नही लगा क्योंकि एक सरसरी सी आग को लगातार हवा देकर जिंदा रखना कोई आसान काम नही , बल्कि नामुमकिंन है , और बड़ी लकीरों का खिंच जाना भी एक वज़ह होता है ,यहाँ तो डैडी का ही बीच से चला जाना था इससे बड़ा क्या हादसा होता । उस दिन माँ ने मुझसे सीधे आँख बात नही की , सारी बात भाँपते हुऐ मैं भी वहाँ से हट गया , माँ को भी कोई अपराधबोध भावना मे देख सकता हैं कोई ?
मैं शुरू से ही स्कूल इत्यादि में मेधावी छात्रों में रहा तो एक गुरुर या मग़रूर मुझमे आ गया था , जो मर्ज़ी कहिये मैं अपने आपको ज़मीन से सात इंच ऊपर तैरता सा चलता महसूस करता था जबकि सालों बाद हकीकत से रूबरू हुआ , की शक़्ल सूरत से बेकार , गेहुआँ स्याह रंग , पतला दुबला , सादा से चेहरे पर बड़ी बड़ी आँखे , कुल मिला कर ज़िन्दगी में कभी किसी को अपनी सूरत से आकर्षित नही किया ।
करीब उम्र चौबीस की रही होगी , उन दिनों जैसे ऊपर लिखा वो मग़रूर वाला , ज़मीन से सात इंच ऊपर तैरने वाला दिल दिमाग़ था , जिसके अनुसार रिश्ते में हमे पसंद आएगी लडक़ी तो हम हाँ करेंगे वरना रिजेक्ट , लडक़ी के पास हमे रिजेक्ट करनी की कोई ��ॉवर नही है , हम तो थे ही सुर्खाब के परौ से सजे हुऐ , संयुक्त राष्ट्र संघ हो या अमेरिका या सोवियत रूस , इंडिया तो अपना था ही , कोई बड़े से बड़ा नेता अपने एक हाथ की दूरी से बाहर नही था , और फिल्मों के अभिनेता इत्यादि तो निम्न स्तर का विषय था , इसलिए लडक़ी को विश्व स्तरीय विषयों की जानकारी होगी तो अपनी पटरी बैठेगी अन्यथा रिजेक्ट , वैसे साधना का तो सौंदर्य ही राजसी था अतः उसको इन विश्व स्तरीय विषयों की जानकारी नही भी होती तो भी कोई बात नही थी ।
शादी के रिश्ते आने शुरू हुए , बड़े भाई साहब और माँ ने बहुत संजीदगी से विचार करने शुरू किए , कोई रिश्ता साधना जैसा ना आया , या हमे नही दिखा जैसे आँखों पे साधना की ही पट्टी बँधी थी , आधे से ज़्यादा रिश्ते तो मिलने से पहले स्तर पर ही खत्म , कुछ लड़कियों को हमने रिजेक्ट किया अपने विश्व स्तरीय प्रश्नों की जानकारी के अभाव मे , साथ ही करीब दस लड़कियों ने मुझे रिजेक्ट किया इन फ़िज़ूल सवालों के वजह से , एक बार तो लड़की के घर देखने उनको देखने गए तो मुझसे मिलकर वो गयी और दूसरे कमरे में अपनी बहन से बोली , इसकी शक्ल देखो और इसके प्रश्न ।
इन दस एक लड़कियों के रिजेक्शन का असर यह हुआ कि जो मे ज़मीन से सात इंच ऊपर तैरता था अब दिमाग़ से ग़ुरूर मग़रूर सब काफूर हो चुका था , अब पैर जमीन पर थे , आईने मे अपनी असली बेरंग शक्ल साफ दिखाई दे रही थी । इस ही दौरान डैडी के बाद रुपया जो पहले पेड़ पर उगता दिखता था सड़क की धूल में एक एक पैसे की बटोर की मेहनत और सौ पैसे का एक रुपया पता चला ।
अब कभी भी रिश्ते की कोई नई बात चलती तो दिल की धड़कन में कोई घटत बढत नही होती थी , सब रूटीन जैसा लगता था , कोई ख़ुशी कोई ग़म कुछ नही । फिर मेरठ मे एक रिश्ता हुआ , न जाने क्यों टूट गया , यह भी उनकी तरफ से , शायद मेरी नियति को कुछ शानदार ही मंजूर था।
हमारे एक व्यापारी डीलर श्री नानक रोहिरा साहिब , मुझे बहुत प्यार सम्मान देते थे , बोले कपिल मैने तेरे लिए एक लड़की देख रखी है तेरी शादी तो मैं कराऊंगा , तब तक मैं भी रिश्तों की बातों का आदी हो चुका था , उन्होंने बड़े भाई साहब से बात की , बड़े भाई साहब के पास कामिनी नाम की लड़की की जन्मपत्री भेजी , उन दिनों हमारे एक दूसरे सप्लायर नाथ साहब ने कंप्यूटर पर जन्मपत्री मिलाने का काम शुरू किया था , भाई साहब ने उनके पास कामिनी और मेरी जन्मपत्री मिलने के लिये भेजी , शाम हुई तो देखा की नाथ साहब पंद्रह बीस पेज का एक प्रिंटआउट लेकर आये और बड़े भाई साहब को बोले कमाल का रिश्ता है यह छत्तीस गुण मिले हैं , यह रिश्ता छोड़ना ��त । उनकी आवाज़ और बात में ना जाने क्या जादू था और नानक रोहिरा साहब की बात पर उन्हें बेहद यकीन , तुरंत इधर फ़ोन और उधर फ़ोन , पता चला मेरी सगी बड़ी बहन रीता दीदी की पहचान लडक़ी की माँ से है , एक डेट तय हुई लड़की देखने के लिये ।
हमारे घर मे एक पंड़ित जी आते थे जो हमारी सारी रिश्तेदारी मे आते जाते थे , लगभग उस समय के फेसबुक थे , उनको सब ’मौसी वाले पंड़ित जी ’ कहते थे , जन्मपत्री मिलाना , रिश्ते बताना , अच्छा बुरा वक्त बताना , काम बनाना , काम बिगाड़ना , सब उनका हुनर था । उस दिन पंड़ित जी आये मेरे लिये एक रिश्ता लेकर , मेरी माँ को बोले बहनजी बहुत ही अच्छा रिश्ता लाया हूं तय हुआ तो मोटी दक्षिणा लूँगा , माँ बोली बहुत अच्छा पर अभी एक बहुत ही अच्छा रिश्ता नानक साहब ने बताया है और अगले इतवार लड़की देखने जाना है , कंप्यूटर की जन्मपत्री की मिलाई की बात माँ ने गोल कर दी , पंड़ित जी का मूड़ कुछ ख़राब सा हो गया , उनका लाया रिश्ता होता तो दक्षिणा भी बढ़िया होती , बारहाल उन्होंने माँ की दी हुई कामिनी और मेरी जन्मपत्री मिलाई , बोले बहनजी पत्री तो ठीक ही मिली है छत्तीस गुण मिले है , माँ ने मन सोचा वाह कंप्यूटर ने भी छत्तीस गुण ही मिलाये थे , फिर बोली पंड़ित जी यह ’ठीक ही’ मिली है का क्या अर्थ , यह जो ठीक शब्द के साथ ही क्यों बोला आपने ? क्या कोई बात है , कामिनी कपिल को ज़िंदगी भर ठीक को रखेंगी या नही ?
पंड़ित जी का जवाब आया , जी बिल्कुल ऐसे रखेगी जैसे ' पिंजरे मे तोता '
आज हमारी शादी को लगभग पच्चीस साल होने को आये , आज अगर वो मौसी वाले पंड़ित जी कही मिल जाये तो चरणों को हाथ लगाकर पता करूँगा , इतनी एक्यूरेसी का राज ।
कपिल जैन with Kamini
________________________________ Kapil Jain [email protected] Noida , U.P. , India April 30 , 2017
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प्रत्यूषा बनर्जी के अलावा इन एक्ट्रेस ने भी थामा मौत का दामन
'बालिका वधू' से रियलिटी शो 'पॉवर कपल' तक अपने हुनर की छाप छोड़ने वालीं प्रत्यूषा बनर्जी आज हमारे बीच नहीं हैं। उनके अलावा कई और अभिनेत्रियों ने भी थामा था मौत का दामन। नई दिल्ली। 'बालिका वधू' से रियलिटी शो 'पॉवर कपल' तक अपने हुनर की छाप छोड़ने वालीं प्रत्यूषा बनर्जी आज हमारे बीच नहीं हैं। उनके आनंदी के किरदार ने दर्शकों के दिल में एक खास जगह बना ली थी। महज 24 साल की उम्र में इस एक्ट्रेस को आखिर किस गम ने मौत को गले लगाने के लिए मजबूर कर दिया? इस सवाल का जवाब फिलहाल आना बाकी है। प्रत्यूषा की तरह और भी कई अभिनेत्रियों ने आखिर क्यों और कैसे मौत का दामन थामा चलिए उस पर नजर डालते हैं। देखिए, 'सुल्तान' के लिए लंगोट पहन अखाड़े में उतरे सलमान खान 'बीए पास' फिल्म में छोटी-सी भूमिका निभाने वालीं शिखा जोशी ने मई 2015 में मुंबई के वरसोवा इलाके में अपने फ्लैट में आत्महत्या कर ली थी। तो वहीं फिल्म 'निशब्द' में अमिताभ बच्चन के साथ अहम भूमिका निभाने वालीं अभिनेत्री जिया खान ने 3 जून 2013 को खुदकुशी कर ली। इस घटना ने पूरे बॉलीवुड को हिला कर रख दिया था। जिया डिप्रेशन की शिकार हो गई थीं। जिया के ब्वॉयफ्रेंड सूरज पंचोली को उन्हें आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था। महज 19 साल की उम्र में बॉलीवुड में नाम और शोहरत कमाने वाली अभिनेत्री दिव्या भारती को भला कौन भूल सकता है। उनकी भोली-सी सूरत आज भी उनके फैंस के दिलों में मौजूद है। दिव्या की मौत 5 अप्रैल 1993 में हुई थी। उनकी मौत ने पूरे बॉलीवुड को हिला कर रख दिया था। वहीं दक्षिण भारत की मशहूर बोल्ड अभिनेत्री सिल्क स्मिता 23 सितंबर 1996 को अपने चेन्नई वाले अपार्टमेंट में मृत पाई गई थीं। उन्होंने पंखे से लटककर खुद को फांसी लगा ली थी। 'द डर्टी पिक्चर' उनकी जिंदगी पर आधारित फिल्म है, जिसमें विद्या बालन ने उनकी भूमिका अदा की थी। अपने जमाने की मशहूर ग्लैमरस अभिनेत्री परवीन बॉबी का शव उनके अपार्टमेंट में पाया गया था। फिल्मों में कई बड़े अभिनेताओं के साथ उनकी जोड़ी देखने को मिली। परवीन ने शादी नहीं की थी, लेकिन कई लोगों के साथ उनके अफेयर के किस्से काफी सूर्खियों में रहे। ये आत्महत्या थी या नेचुरल डेथ इस सवाल का जवाब आज तक नहीं मिल पाया है। WATCH: इमरान हाशमी की फिल्म 'अजहर' का ट्रेलर हुआ जारी 1997 में मिस इंडिया यूनिवर्स का ताज जीतने वालीं नफीसा जोसफ ने महज 26 साल की उम्र में साल 2004 में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी, जिस वक्त उन्होंने मौत को गले लगाया, उस वक्त उन्हें एक टीवी चैनल को होस्ट करने के लिए जाना था। उनकी मौत के रहस्य से आज तक पर्दा नहीं उठ पाया है। टीवी एक्ट्रेस और मॉडल रहीं कुलजीत रंधावा ने साल 2006 में आत्महत्या कर ली थी। उन्होंने अपने सुसाइड नोट में जिंदगी के दबाव को नहीं झेल पाने की बात लिखी थी, जिसे पुलिस ने जांच में लिया था। रंधावा ने 'स्पेशल स्क्वाड', 'कैट्स' से अपनी पहचान बनाई थी। OMG! प्रत्यूषा करने जा रही थीं पहले से शादीशुदा राहुल से शादी ग्लैमर की इस चमचमाती दुनिया का एक खौफनाक चेहरा ये भी है। किसी को अकेलापन खा जाता है, तो किसी को अपनी शोहरत में आती कमी डिप्रेशन की ओर ले जाती है। ब्वॉयफ्रेंड की बेवफाई भी आत्महत्या करने की वजह बन जाती है। Click to Post
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*ek ek point dyan s peso*
*Quote 1 .* जब लोग आपको *Copy* करने लगें तो समझ लेना जिंदगी में *Succes s* हो रहे हों.
*Quoted 2 .* कमाओ…कमाते रहो और तब तक कमाओ, जब तक महंगी चीज सस्ती न लगने लगे.
*Quote 3 .* जिस व्यक्ति के सपने खत्म, उसकी तरक्की भी खत्म.
*Quote 4 .* यदि *“Plan A”* काम नही कर रहा, तो कोई बात नही *25* और *Letters* बचे हैं उन पर *Try* करों.
*Quote 5 .* जिस व्यक्ति ने कभी गलती नहीं कि उसने कभी कुछ नया करने की कोशिश नहीं की.
*Quote 6 .* भीड़ हौंसला तो देती हैं लेकिन पहचान छिन लेती हैं.
*Quote 7 .* अगर किसी चीज़ को दिल से चाहो तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने में लग जाती हैं.
*Quote 8 .* कोई भी महान व्यक्ति अवसरों की कमी के बारे में शिकायत नहीं करता.
*Quote 9 .* महानता कभी ना गिरने में नहीं है, बल्कि हर बार गिरकर उठ जाने में है.
*Quote 10 .* जिस चीज में आपका *Interest* हैं उसे करने का कोई टाईम फिक्स नही होता. चाहे रात के *1* ही क्यों न बजे हो.
*Quote 11 .* अगर आप चाहते हैं कि, कोई चीज अच्छे से हो तो उसे खुद कीजिये.
*Quote 12 .* सिर्फ खड़े होकर पानी देखने से आप नदी नहीं पार कर सकते.
*Quote 13 .* जीतने वाले अलग चीजें नहीं करते, वो चीजों को अलग तरह से करते हैं.
*Quote 14 .* जितना कठिन संघर्ष होगा जीत उतनी ही शानदार होगी.
*Quote 15 .* यदि लोग आपके लक्ष्य पर *हंस* नहीं रहे हैं तो समझो *आपका लक्ष्य बहुत छोटा हैं.*
*Quote 16 .* विफलता के बारे में चिंता मत करो, आपको बस एक बार ही सही होना हैं.
*Quote 17 .* सबकुछ कुछ नहीं से शुरू हुआ था.
*Quote 18 .* हुनर तो सब में होता हैं फर्क बस इतना होता हैं किसी का *छिप* जाता हैं तो किसी का *छप* जाता हैं.
*Quote 19 .* दूसरों को सुनाने के लिऐ अपनी आवाज ऊँची मत करिऐ, बल्कि अपना व्यक्तित्व इतना ऊँचा बनाऐं कि आपको सुनने की लोग मिन्नत करें.
*Quote 20 .* अच्छे काम करते रहिये चाहे लोग तारीफ करें या न करें आधी से ज्यादा दुनिया सोती रहती है ‘सूरज’ फिर भी उगता हैं.
*Quote 21 .* पहचान से मिला काम थोडे बहुत समय के लिए रहता हैं लेकिन काम से मिली पहचान उम्रभर रहती हैं.
*Quote 22 .* जिंदगी अगर अपने हिसाब से जीनी हैं तो कभी किसी के *फैन* मत बनो.
*Quote 23 .* जब गलती अपनी हो तो हमसे बडा कोई वकील नही जब गलती दूसरो की हो तो हमसे बडा कोई जज नही.
*Quote 24 .* आपका खुश रहना ही आपका बुरा चाहने वालो के लिए सबसे बडी सजा हैं.
*Quote 25 .* कोशिश करना न छोड़े, गुच्छे की आखिरी चाबी भी ताला खोल सकती हैं.
*Quote 26 .* इंतजार करना बंद करो, क्योकिं सही समय कभी नही आता.
*Quote 27 .* जिस दिन आपके *Sign #Autograph* में बदल जाएंगे, उस दिन आप *बड़े आदमी बन जाओगें.*
*Quote 28 .* काम इतनी शांति से करो कि सफलता शोर मचा दे.
*Quote 29 .* तब तक पैसे कमाओ जब तक तुम्हारा बैंक बैलेंस तुम्हारे फोन नंबर की तरह न दिखने लगें.
*Quote 30 .* *अगर एक हारा हुआ इंसान हारने के बाद भी मुस्करा दे तो जीतने वाला भी जीत की खुशी खो देता हैं. ये हैं मुस्कान की ताकत.*
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जन्मदिन विशेष : ऐसा रहा 'सुपरमॉम' मैरी कॉम का सफर, जानिए उनसे जुड़ी खास बातें और उपलब्धियां
चैतन्य भारत न्यूज वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप में 8 बार की गोल्ड विजेता मैरी कॉम का आज 37वां जन्मदिन है। साल 2014 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतकर वह ऐसा करने वाली पहली भारतीय महिला मुक्केबाज बनीं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं मैरी कॉम के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें... (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({});
1 मार्च, 1983 मैरी कॉम का जन्म मणिपुर के चुराचांदपुर में एक गरीब परिवार में हुआ था। मैरी कॉम का पूरा नाम मैंगटे चंग्नेइजैंग मैरी कॉम है। जब मैरी कॉम का रुझान बॉक्सिंग की तरफ बढ़ने लगा तो सबसे पहले इसका विरोध उनके घरवालों ने ही किया। उन्हें कहा गया कि यह खेल 'महिलाओं के लिए' नहीं है। जब मैरी की एक जीत से जुड़ी खबर अखबार में छपी, तो उनके पिता ने उनकी खूब डांट लगाई थी।
मैरी कॉम को बचपन से ही खेल कूद का बहुत शौक था, लेकिन बॉक्सिंग के प्रति उनका रुझान तब बढ़ा, जब उन्होंने स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में कुछ लड़कियों को बॉक्सिंग रिंग में दांव-पेंच करते देखा। मैरी कॉम ने अपनी बॉक्सिंग ट्रेनिंग के लिए अपना घर 15 साल की उम्र में ही छोड़ दिया और फिर वह ट्रेनिंग के लिए मणिपुर की राजधानी इम्फाल आ गईं। यहां स्पोर्ट्स एकेडमी में रहकर उन्होंने अपनी पढ़ाई के साथ-साथ बॉक्सिंग के हुनर को धार दी। राष्ट्रिय बॉक्सिंग चैंपियनशिप के अलावा मैरी कॉम अकेली ऐसी महिला मुक्केबाज हैं, जिन्होंने अपनी सभी 8 विश्व प्रतियोगिताओं में पदक जीता है।
खास बात यह है कि मैरी कॉम न केवल एक एथलीट है बल्कि सुपर मॉम भी है जिन्होंने बच्चों को जन्म देने के बाद न केवल उनकी मां को रोल अदा किया बल्कि एक सच्चे एथलीट का पहचान दिखाते हुए एक साल के अंदर ही खुद को रिंग के लिए भी तैयार किया। मैरी कॉम को 'सुपरमॉम' के नाम से भी जाना जाता हैं। विश्व स्तर पर 8 मेडल जीतने के साथ मैरीकॉम ने कई अन्य पुरस्कार भी हासिल किए। साल 2003 में अर्जुन पुरस्कार, 2006 में पद्मश्री पुरस्कार, 2009 में राजीव गांधी खेल रत्न, 2013 में तीसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्मभूषण पुरस्कार से नवाजा गया।
इसके अलावा मैरी कॉम ने 2018 कॉमनवेल्थ गेम्स और पोलैंड में हुए ओपन बॉक्सिंग टूर्नामेंट में भी गोल्ड मेडल जीता था। साथ ही उन्होंने ओलंपिक गेम्स 2012 में ब्रॉन्ज, बुल्गारिया में हुए स्ट्रैंडजॉ मेमोरियल में सिल्वर मेडल, 2001 में हुए महिला वर्ल्ड चैंपियनशिप के पहले संस्करण में सिल्वर मेडल हासिल किया था।
साल 2005 में उनकी शादी ओनलर कॉम से हुई, उसके बाद 2007 में उनके जुड़वां बच्चे हुए। बच्चे होने के बाद भी उनका खेल के प्रति प्रेम कम नही हुआ था, इसके एक साल बाद ही 2008 में उन्होंने मैग्नीफिशेंट मैरीकॉम की उपाधि से नवाजा गया। कहा जाता है कि मैरीकॉम के घरवाले उनकी शादी के खिलाफ थे क्योंकि उन्हें लगता था कि शादी के बाद वह घर पर बैठ ज���एगी, साथ ही समाज क्या कहेगा लेकिन शादी के बाद एकदम इसका उल्टा हुआ। शादी के बाद मैरीकॉम ने बॉक्सिंग छोड़ी नहीं, बल्कि उनके ससुराल ने उनका पूरा साथ दिया।
शादी के बाद साल 2005 में उन्होंने रूस में आयोजित हुए विश्व बॉक्सिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतकर सबको गलत साबित कर दिया। गौरतलब है कि, मैरीकॉम पर फिल्म भी बन चुकीं है जो साल 2014 में सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई थी। फिल्म में अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा ने मैरी कॉम का किरदार निभाया था। ये भी पढ़े... मैरीकॉम ने रचा इतिहास, बनीं वर्ल्ड चैंपियनशिप में सबसे ज्यादा मेडल जीतने वाली पहली बॉक्सर विश्व महिला मुक्केबाजी : मैरीकॉम को सेमीफाइनल में मिली हार, फिर भी बनाया ये बड़ा रिकॉर्ड Read the full article
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दोस्तों बॉलीवुड के जाने माने सिंगर सोनू निगम ने अपनी सिंगिंग से बॉलीवुड में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। सोनू निगम 30 जुलाई को यानी आज अपना बर्थडे सेलिब्रेट कर रहे हैं। आज सिंगर पूरे 47 साल के हो गए हैं। सोनू 25 सालो से ज्यादा समय से गाने गाते आ रहे है। अपनी आवाज से लोगों को दीवाना बनाने वाले सोनू निगम आज बॉलीवुड के सबसे महंगे सिंगर्स में से एक है। आइए जानते है उनके बारे में कुछ खास बाते!
बता दे की सोनू निगम का रुझान बचपन से ही संगीत की ओर था। उनको यह हुनर पिता से मिला।चार साल की उम्र से सोनू निगम अपने पिता अगम निगम के साथ स्टेज शोज, पार्टियों और शादियों में गाना गाने लगे थे। सोनू के पिता भी अच्छे गायको में शुमार थे। सोनू निगम दिग्गज गायक मोहम्मद रफी से बहुत प्रभावित है। शुरुआती दिनों में वो रफी के गाने ही स्टेज पर गाया करते थे।
18 साल की उम्र में सोनू निगम के पिता अपने बेटे को लेकर मुंबई पहुंचे। जहां वो बॉलीवुड सिंगिंग करियर को आगे बढ़ाने में जुट गए। सोनू निगम ने उस्ताद गुलाम मुस्तफा खान से संगीत सीखा। हालांकि मुंबई पहुंचने के बाद सोनू निगम का सफर इतना भी आसान नहीं था। पैसे कमाने के लिए वो लगातार स्टेज शोज करते रहे।
सिंगिंग रियलिटी शो ‘सारेगामा’ को होस्ट करके सोनू निगम को बड़ी पहचान मिली। 1995 में यह शो प्रसारित हुआ। इसी बीच वो टी सीरीज के मालिक गुलशन कुमार से मिले। गुलशन कुमार ने सोनू को फिल्म ‘बेवफा सनम’ में गाने का मौका दिया। फिल्म में उनका गाया गाना ‘अच्छा सिला दिया तूने मेरे प्यार का’ सुपरहिट रहा। इसके बाद सोनू निगम ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। इसके बाद फिल्म ‘मुकाबला’, ‘शबनम’, ‘आग’, ‘हलचल’ से सोनू निगम को बॉलीवुड में पहचान मिली। 1997 में आई फिल्म ‘बॉर्डर’ में उनका गाया गाना ‘संदेसे आते हैं’ सुपरहिट हुआ था। यह वो गाना था जिसने उन्हें पूरे देश का चहेता बना दिया।
आपको बता दे की हिंदी के अलावा सोनू निगम ने अंग्रेजी, कन्नड़, बंगाली, उड़िया, पंजाबी, तमिल, मैथिली, भोजपुरी, नेपाली और मराठी भाषा में भी गाने गाए है। अपनी गायकी के लिए सोनू निगम को कई अवॉर्ड्स मिल चुके है। फिल्म ‘कल हो ना हो’ के टाइटल ट्रैक के लिए सोनू को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिल चुका है। आईफा, फिल्मफेयर से लेकर एमटीवी, जीमा अवॉर्ड्स उनके नाम है।
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फिल्म की शूटिंग के दौरान इस अभिनेत्री ने स्कूल को लिया था गोद, आज स्कूल माना रह है अभिनेत्री का जन्मदिन!
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फिल्म की शूटिंग के दौरान इस अभिनेत्री ने स्कूल को लिया था गोद, आज स्कूल माना रह है अभिनेत्री का जन्मदिन!
फिल्म ‘दम लगा के हईशा’ से अपनी जबरदस्त पहचान बनाने वाली भूमि पेडनेकर ने 18 जुलाई को अपना जन्मद���न मनाया है। इस खास मौके पर भूमि पेडनेकर को काफी लोगों ने बधाई दी है। बता दे की अभिनेत्री भूमि पेडनेकर ने अपना जन्मदिन अपनी मां और बहन के साथ लखनऊ में फिल्म ‘पति पत्नी और वो’ की शूटिंग करते हुए मनाया, लेकिन लखनऊ से कोसों दूर मुरैना के एक स्कूल में भी भूमि का जन्मदिन बहुत संजीदगी के साथ मनाया गया।
बता दे की चंबल घाटी में वेश्यावृति की रोकथाम योजना के तहत मुरैना में स्थापित इस स्कूल को उन्होंने अपनी फिल्म ‘सोनचिड़िया’ की शूटिंग के दौरान गोद लिया था। अभ्युदय आश्रम नाम का यह आवासीय स्कूल मध्य प्रदेश के उन गिने चुने स्कूलों में हैं जिन्हें पिछड़े, आदिवासी और गरीब इलाकों में खास मकसद से स्थापित किया गया है।
दो साल पहले जब भूमि इस क्षेत्र में अपनी फिल्म ‘सोनचिड़िया’ की शूटिंग करने पहुंची तो उन्हें इस स्कूल के बच्चों की हालत देखकर अच्छा नहीं लगा। उसी दिन भूमि ने इस स्कूल का खर्चा उठाने की जिम्मेदारी ली और पिछले दो साल से वह इस स्कूल की अघोषित संरक्षक हैं। इस स्कूल में बच्चों को पढ़ाई के साथ साथ ऐसे हुनर भी सिखाए जाते हैं, जिनसे वे रोजगार ढूंढने लायक बन सकें और वेश्यावृति के दलदल से बच सकें।
बता दे की अभिनेत्री भूमि ने कभी अपनी इस सामाजिक जिम्मेदारी को लेकर कोई प्रचार नहीं किया।सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस स्कूल के बच्चों ने इस बार भूमि पेडनेकर का जन्मदिन मनाने का फैसला किया और स्कूल में ही बैनर और गुब्बारे लगाकर उनका जन्मदिन मनाया। बच्चों ने इस दिन एक केक भी काटा। आसपास की बस्तियों के लोग भी इस समारोह में शामिल हुए और सबने मिलकर भूमि की लंबी उम्र की प्रार्थना भी की।
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