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#हाथी बस्ती
sharpbharat · 11 months
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jamshedpur rural- चाकुलिया में दो मादा हाथी की मौत के मामले की एसडीओ ने की जांच, मिल मालिक व बिजली विभाग को नोटिस देकर मांगा जबाव, देखिए video
चाकुलिया: चाकुलिया नगर पंचायत के मुस्लिम बस्ती के सेखपाड़ा के पीछे विगत दिनों राइस मिल के लिए बने तालाब के मेढ़ पर हाथियों के चढ़ने से और हाई वोल्टेज बिजली तार के स्पर्श होने से दो मादा हाथियों की मौत हो गयी थी. इस मामले में विगत दिनों रेंजर सह जांच टीम के सचिव दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में टीम ने घटना स्थल का निरीक्षण कर जांच रिपोर्ट विभाग के वरीय पदाधिकारी को सौंप दी है. जांच में शामिल…
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‘ए रूनी, उठ’, कहते हुए चादर खींचकर चित्रा ने सोती हुई अरुणा को झकझोर कर उठा दिया.
‘अरे! क्या है?’ आंखें मलते हुए तनिक खिझलाहट भरे स्वर में अरुणा ने पूछा. चित्रा उसका हाथ पकड़कर खींचती हुई ले गई और अपने नए बनाए हुए चित्र के सामने ले जाकर खड़ा करके बोली,’देख, मेरा चित्र पूरा हो गया.’
‘ओह, तो इसे दिखाने के लिए तूने मेरी नींद ख़राब कर दी.’
‘अरे, ज़रा इस चित्र को तो देख. न पा गई पहला इनाम तो नाम बदल देना.’
चित्र को चारों ओर घुमाते हुए अरुणा बोली,‘किधर से देखूं, यह तो बता दे? हज़ार बार तुझसे कहा कि जिसका चित्र बनाए, उसका नाम लिख दिया कर, जिससे ग़लतफ़हमी न हुआ करे, वरना तू बनाए हाथी और हम समझें उल्लू!’’ तसवीर पर आंखें गड़ाते हुए बोली,‘किसी तरह नहीं समझ पा रही हूं कि चौरासी लाख योनियों में से आख़िर यह किस जीव की तसवीर है?’
‘तो आपको यह कोई जीव नज़र आ रहा है? ज़रा अच्छी तरह देख और समझने की कोशिश कर.’
‘अरे, यह क्या? इसमें तो सड़क, आदमी, ट्राम, बस, मोटर, मकान सब एक-दूसरे पर चढ़ रहे हैं. मानो सबकी खिचड़ी पकाकर रख दी हो. क्या घनचक्कर बनाया है?’
यह कहकर अरुणा ने चित्र रख दिया.
‘ज़रा सोचकर बता कि यह किसका प्रतीक है?’
‘तेरी बेवकूफ़ी का. आई है बड़ी प्रतीक वाली.’
‘अरे जनाब, यह चित्र आज की दुनिया में ‘कन्फ़्यूज़न’ का प्रतीक है, समझी.’
‘मुझे तो तेरे दिमाग़ के कन्फ़्यूज़न का प्रतीक नज़र आ रहा है, बिना मतलब ज़िंदगी ख़राब कर रही है.’ और अरुणा मुंह धोने के लिए बाहर चली गई. लौटी तो देखा तीन-चार बच्चे उसके कमरे के दरवाज़े पर खड़े उसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं. आते ही बोली,‘आ गए, बच्चों. चलो, मैं अभी आई.’
‘क्या ये बंदर पाल रखे हैं तूने?’ फिर ज़रा हंसकर चित्रा बोली,‘एक दिन तेरी पाठशाला का चित्र बनाना होगा. लोगों को दिखाया करेंगे कि हमारी एक मित्र साहिबा थीं जो बस्ती के चौकीदारों, नौकरों और चपरासियों के बच्चों को पढ़ा-पढ़ाकर ही अपने को भारी पंडिताइन और समाज सेविका समझती थीं.’
चार बजते ही कॉलेज से सारी लड़कियां लौट आईं, पर अरुणा नहीं लौटी. चित्रा चाय के लिए उसकी प्रतीक्षा कर रही थी.
‘पता नहीं, कहां-कहां भटक जाती है, बस इसके पीछे बैठे रहो.’ 
‘अरे, क्यों बड़-बड़ कर रही है? ले, मैं आ गई. चल, बना चाय. मिलकर ही पिएंगे.’
‘तेरे मनोज की चिट्ठी आई है.’
अरुणा लिफ़ाफ़ा फाड़कर पत्र पढ़ने लगी. जब उसका पत्र समाप्त हो गया तो चाय पीते-पीते चित्रा बोली,‘आज पिताजी का भी पत्र आया है, लिखा है जैसे ही यहां कोर्स समाप्त हो जाए, मैं विदेश जा सकती हूं. मैं तो जानती थी, पिताजी कभी मना नहीं करेंगे.’
‘हां भाई! धनी पिता की इकलौती बिटिया ठहरी. तेरी इच्छा कभी टाली जा सकती है? पर सच कहती हूं मुझे तो सारी कला इतनी निरर्थक लगती है, इतनी बेमतलब लगती है कि बता नहीं सकती. क��स काम की ऐसी कला, जो आदमी को आदमी न रहने दे.’ अरुणा आवेश में बोली.
‘तो तू मुझे आदमी नहीं समझती, क्यों?’
‘तुझे दुनिया से कोई मतलब नहीं, दूसरों से कोई मतलब नहीं, बस चौबीस घंटे अपने रंग और तूलिकाओं में डूबी रहती है. दुनिया में कितनी बड़ी घटना घट जाए, पर यदि उसमें तेरे चित्र के लिए आइडिया नहीं तो तेरे लिए वह घटना कोई महत्त्व नहीं रखती. हर घड़ी, हर जगह और हर चीज़ में तू अपने चित्रों के लिए मॉडल खोजा करती है. काग़ज़ पर इन निर्जीव चित्रों को बनाने के बजाय दो-चार की ज़िंदगी क्यों नहीं बना देती! तेरे पास सामर्थ्य है, साधन हैं.’
‘वह काम तो तेरे लिए छोड़ दिया. मैं चली जाऊंगी तो जल्दी से सारी दुनिया का कल्याण करने के लिए झंडा लेकर निकल पड़ना!’ और चित्रा हंस पड़ी.तीन दिन से मूसलधार’ वर्षा हो रही थी. रोज़ अख़बारों में बाढ़ की ख़बरें आती थीं. बाढ़ पीड़ितों की दशा बिगड़ती जा रही थी और वर्षा थी कि थमने का नाम नहीं लेती थी. अरुणा सारा दिन चंदा इकट्ठा करने में व्यस्त रहती. एक दिन आख़िर चित्रा ने कह दिया,‘तेरे इम्तिहान सिर पर आ रहे हैं, कुछ पढ़ती-लिखती है नहीं, सारा दिन बस भटकती रहती है. माता-पिता क्या सोचेंगे कि इतना पैसा बेकार ही पानी में बहाया.’
‘आज शाम को स्वयंसेवकों का एक दल जा रहा है, प्रिंसिपल से अनुमति ले ली है. मैं भी उनके साथ ही जा रही हूं.’ चित्रा की बात को बिना सुने उसने कहा.शाम को अरुणा चली गई. पंद्रह दिन बाद वह लौटी तो उसकी हालत काफ़ी खस्ता हो रही थी. सूरत ऐसी निकल आई थी मानो छह महीने से बीमार हो. चित्रा उस समय ‘गुरुदेव’ के पास गई हुई थी. अरुणा नहा-धोकर, खा-पीकर लेटने लगी तभी उसकी नज़र चित्रा के नए चित्रों की ओर गई. तीन चित्र बना रखे थे. तीनों बाढ़ के चित्र थे. जो दृश्य वह अपनी आंखों से देखकर आ रही थी, वैसे ही दृश्य यहां भी अंकित थे. उसका मन जाने कैसा-कैसा हो गया.
शाम को चित्रा लौटी तो अरुणा को देखकर बड़ी प्रसन्न हुई.
‘क्यों चित्रा! तेरा जाने का तय गया?’
‘हां, अगले बुध को मैं घर जाऊंगी और बस एक सप्ताह बाद हिंदुस्तान की सीमा के बाहर पहुंच जाऊंगी.’ उल्लास उसके स्वर में छलका पड़ रहा था.
‘सच कह रही है, तू चली जाएगी चित्रा! छह साल से साथ रहते-रहते यह बात मैं तो भूल गई कि कभी अलग भी होना पड़ेगा. तू चली जाएगी तो मैं कैसे रहूंगी?’ उदासी भरे स्वर में अरुणा ने पूछा. लगा जैसे स्वयं से ही पूछ रही हो.
कितना स्नेह था दोनों में! सारा होस्टल उनकी मित्रता को ईर्ष्या की दृष्टि से देखता था. 
आज चित्रा को जाना था. अरुणा सवेरे से ही उसका सारा सामान ठीक कर रही थी. एक-एक करके चित्रा सबसे मिल आई. बस, गुरु जी से मिलना रह गया था सो उनका आशीर्वाद लेने चल पड़ी. तीन बज गए थे पर वह लौटी नहीं. पांच बजे की गाड़ी से वह जाने वाली थी. अरुणा ने सोचा वह ख़ुद जाकर देख आए कि आख़िर बात क्या हो गई. तभी बड़बड़ाती-सी चित्रा ने प्रवेश किया,‘बड़ी देर हो गई ना. अरे क्या करूं, बस कुछ ऐसा हो गया कि रुकना ही पड़ा.’
‘आख़िर क्या हो गया ऐसा, जो रुकना ही पड़ा, सुनें तो!’ दो-तीन कंठ एक साथ बोले. 
‘गर्ग स्टोर के सामने पेड़ के नीचे अकसर एक भिखारिन बैठी रहा करती थी ना, लौटी तो देखा कि वह वहीं मरी पड़ी है और उसके दोनों बच्चे उसके सूखे शरीर से चिपककर बुरी तरह से रो रहे हैं. जाने क्या था उस सारे दृश्य में कि मैं अपने को रोक नहीं सकी. एक रफ़-सा स्केच बना ही डाला. बस, इसी में देर हो गई.’
साढ़े चार बजे चित्रा होस्टल के फाटक पर आ गई पर तब तक अरुणा का कहीं पता नहीं था. बहुत सारी लड़कियां उसे छोड़ने स्टेश��� तक भी गईं, पर चित्रा की आंखें बराबर अरुणा को ढूंढ़ रही थीं. पांच भी बज गए, रेल चल पड़ी पर अरुणा न आई, सो न आई.विदेश जाकर चित्रा तन-मन से अपने काम में जुट गई. उसकी लगन ने उसकी कला को निखार दिया. विदेश में उसके चित्रों की धूम मच गई. भिखारिन और दो अनाथ बच्चों के उस चित्र की प्रशंसा में तो अख़बारों के कॉलम-के-कॉलम भर गए. शोहरत के ऊंचे कगार पर बैठे, चित्रा जैसे अपना पिछला सब कुछ भूल गई. पहले वर्ष तो अरुणा से पत्र व्यवहार बड़े नियमित रूप से चला, फिर कम होते-होते एकदम बंद हो गया. पिछले एक साल से तो उसे यह भी मालूम नहीं कि वह कहां है? अनेक प्रतियोगिताओं में उसका ‘अनाथ’ शीर्षकवाला चित्र प्रथम पुरस्कार पा चुका था. जाने क्या था उस चित्र में, जो देखता चकित रह जाता. तीन साल बाद जब वह भारत लौटी तो बड़ा स्वागत हुआ उसका. अख़बारों में उसकी कला पर, उसके जीवन पर अनेक लेख छपे. पिता अपनी इकलौती बिटिया की इस सफलता पर बहुत प्रसन्न थे. दिल्ली में उसके चित्रों की प्रदर्शनी का विराट आयोजन किया गया. उद्घाटन करने के लिए चित्रा को ही बुलाया गया.
उस भीड़-भाड़ में अचानक उसकी भेंट अरुणा से हो गई. ‘रूनी’ कहकर चित्रा भीड़ की उपस्थिति को भूलकर अरुणा के गले से लिपट गई.
‘तुझे कब से चित्र देखने का शौक़ हो गया, रूनी?’
‘चित्रों को नहीं, चित्रा को देखने आई थी. तू तो एकदम भूल ही गई.’
‘अरे, ये बच्चे किसके हैं?’ दो प्यारे-से बच्चे अरुणा से सटे खड़े थे. लड़के की उम्र दस साल की होगी तो लड़की की कोई आठ.
‘मेरे बच्चे हैं, और किसके! ये तुम्हारी चित्रा मौसी हैं, नमस्ते करो, अपनी मौसी को.’ अरुणा ने आदेश दिया.
बच्चों ने बड़े आदर से नमस्ते किया. पर चित्रा आवाक होकर कभी बच्चों को और कभी अरुणा का मुंह देख रही थी. तभी अरुणा ने टोका,‘कैसी मौसी है, प्यार तो कर!’ और चित्रा ने दोनों के सिर पर हाथ फेरा प्यार का. अरुणा ने कहा,‘तुम्हारी ये मौसी बहुत अच्छी तसवीरें बनाती हैं, ये सारी तसवीरें इन्हीं की बनाई हुई हैं.’ 
‘आप हमें सब तसवीरें दिखाएं मौसी,’ बच्चे ने फ़रमाइश की. चित्रा उन्हें तसवीरें दिखाने लगी. घूमते-घूमते वे उसी भिखारिनवाली तसवीर के सामने आ पहुंचे. चित्रा ने कहा,‘यही वह तसवीर है रूनी! जिसने मुझे इतनी प्रसिद्धि दी.’
‘ये बच्चे रो क्यों रहे हैं मौसी?’ तसवीर को ध्यान से देखकर बालिका ने पूछा.
‘इनकी मां मर गई है. देखती नहीं, मरी पड़ी है. इतना भी नहीं समझती!’ बालक ने मौक़ा पाते ही अपने बड़प्पन और ज्ञान की छाप लगाई.
‘ये सचमुच के बच्चे थे, मौसी?’ बालिका का स्वर करुण-से-करुणतर होता जा रहा था.
‘और क्या, सचमुच के बच्चों को देखकर ही तो बनाई थी यह तसवीर.’
‘मौसी, हमें ऐसी तसवीर नहीं, अच्छी-अच्छी तसवीरें दिखाओ, राजा-रानी की, परियों की.’
उस तसवीर को और अधिक देर तक देखना बच्चों के लिए असह्य हो उठा था. तभी अरुणा के पति आ पहुंचे. साधारण बातचीत के पश्चात् अरुणा ने दोनों बच्चों को उनके हवाले करते हुए कहा,‘आप ज़रा बच्चों को प्रदर्शनी दिखाइए, मैं चित्रा को लेकर घर चलती हूं.’
बच्चे इच्छा न रहते हुए भी पिता के साथ विदा हुए. चित्रा को दोनों बच्चे बड़े ही प्यारे लगे. वह उन्हें देखती रही. जैसे ही वे आंखों से ओझल हुए उसने पूछा,‘सच-सच बता रूनी, ये प्यारे-प्यारे बच्चे किसके हैं?’
‘कहा तो, मेरे,’ अरुणा ने हंसते हुए कहा.
‘अरे बता ना, मुझे ही बेवकूफ़ बनाने चली है.’
एक क्षण रुककर अरुणा ने कहा,‘बता दूं?’ और फिर उस भिखारिनवाले चित्र के दोनों बच्चों पर उंगुली रखकर बोली,‘ये ही वे दोनों बच्चे हैं.’
‘क्या....!’ चित्रा की आंखें विस्मय से फैली रह गईं.
‘क्या सोच रही है चित्रा?’
‘मैं... सोच रही थी कि...’ पर शब्द शायद उसके विचारों में खो गए.
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lok-shakti · 3 years
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छत्तीसगढ़ के गांव में मौत ने 43 हाथियों के साथ जीवन को नया रूप दिया और फसल को नुकसान हुआ
छत्तीसगढ़ के गांव में मौत ने 43 हाथियों के साथ जीवन को नया रूप दिया और फसल को नुकसान हुआ
मनकी बाई कांवरिया (69) उस समय सदमे में थीं, जब छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में बीट गार्ड्स ने 18 दिसंबर की आधी रात को उन्हें पोडिकाला गांव में उनकी झोंपड़ी से उठा लिया। वह परिवार के खेतों पर नजर रखने के लिए झोपड़ी में रात बिता रही थी। भाग्यशाली थे कांवरिया; जैसे ही बीट गार्ड्स ने उसे भगा दिया, टस्कर्स पहुंचे और पास में एक झोपड़ी को नष्ट कर दिया। एक दिन बाद कांवड़िया के गांव से मुश्किल से 20 किमी दूर…
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abhay121996-blog · 3 years
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लखनऊ में तस्करों के पास मिला 'कैलिफोर्नियम', असली निकला तो कीमत अरबों में Divya Sandesh
#Divyasandesh
लखनऊ में तस्करों के पास मिला 'कैलिफोर्नियम', असली निकला तो कीमत अरबों में
लखनऊ ठगी के मामले में गाजीपुर थाने की पुलिस ने एक गिरोह के आठ सदस्यों को गिरफ्तार किया है। पुलिस के मुताबिक, एंटीक चीजों की करने वाले इस गिरोह के पास 340 ग्राम संदिग्ध पदार्थ मिला है। गिरोह के सदस्य इसे कैलिफोर्नियम बता रहे हैं, लेकिन अभी इसकी पुष्टि नहीं हो सकी है। दरअसल, कैलिफोर्नियम रेडियोऐक्टिव पदार्थ है। एक ग्राम कैलिफोर्नियम की कीमत करीब 19 करोड़ रुपये है। फिलहाल जांच के लिए इसे आईआईटी कानपुर भेजा जाएगा। जांच में यह कैलिफोर्नियम निकला तो इसकी कीमत अरबों में हो सकती है।
डीसीपी नॉर्थ रईस अख्तर ने बताया कि गिरोह का सरगना कृष्णानगर की एलडीए कॉलोनी निवासी अभिषेक चक्रवर्ती और पटना निवासी रामशंकर हैं। अभिषेक मूलत: पश्चिम बंगाल का रहने वाला है। पुलिस ने उसके साथ कृष्णानगर के मानस नगर निवासी अमित सिंह, बिहार के नेवादा निवासी महेश कुमार, बाजारखाला के गुलजार नगर निवासी शीतल गुप्ता, बस्ती निवासी हरीश चौधरी, रमेश तिवारी और श्याम सुंदर को भी पकड़ा है। फिलहाल पुलिस ने आरोपितों के खिलाफ जालसाजी और ठगी का केस दर्ज किया है। कैलिफोर्नियम की पुष्टि हुई तो धाराएं बढ़ाई जाएंगी।
प्रॉपर्टी डीलर से ठगे थे 1.20 लाख रुपये इंस्पेक्टर गाजीपुर प्रशांत मिश्रा ने बताया कि अभिषेक ने दो महीने पहले कैलिफोर्नियम की बिक्री का झांसा देकर गोमतीनगर निवासी प्रॉपर्टी डीलर शशिलेश राय को जाल में फंसाया। अभिषेक ने वॉट्सऐप पर फोटो भेजे, जिसके बाद 10 लाख रुपये में सौदा तय हुआ। इस बीच अभिषेक ने शशिलेश से 1.20 लाख ऐंठ लिए थे। काफी दिन बाद भी शशिलेश को सामान नहीं मिल तो उनको ठगी का शक हुआ। ऐसे में उसने गुरुवार सुबह गाजीपुर पुलिस से संपर्क किया।
पुलिस ने आरोपियों के लिए बिछाया जाल इंस्पेक्टर ने बताया कि पुलिस के कहने पर शशिलेश से अभिषेक को फोन कर बकाया रकम देने का झांसा दिया और धातु लेकर आने को कहा। पूछताछ में अभिषेक ने बताया कि महेश, रविशंकर, हरीश, रमेश और श्याम सुंदर धातु लेकर बिहार से लखनऊ के लिए निकले, जबकि वह अमित और शीतल गुप्ता के साथ कृष्णानगर से पॉलिटेक्निक चौराहे के पास पहुंचा। इस बीच सूचना मिलते ही मौके पर पहुंचे इंस्पेक्टर प्रशांत मिश्रा, एसआई कमलेश राय, शिवमंगल सिंह, हेड कॉन्स्टेबल नागेंद्र सिंह, ऋषि ने आठों को दबोच लिया।
ऑनलाइन चेक की धातु की कीमत इंस्पेक्टर ने बताया कि गिरोह के सदस्यों ने उने पास बरामद धातु को कैलिफोर्नियम बताया। किसी भी पुलिसकर्मी को इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी। इस पर पुलिस ने इंटरनेट पर सर्च किया तो पता चला कि एक ग्राम कैलिफोर्नियम की कीमत करीब 19 करोड़ रुपये है। इसके बाद इंस्पेक्टर ने आलाधिकारियों को इसकी जानकारी दी।
फोन में मिले एंटीक सामान के फोटो अभिषेक और महेश के मोबाइल में पुलिस को गोल्ड क्वॉइन, हाथी के दांत, धातु की मूर्तियों सहित कई एंटीक वस्तुओं की फोटो मिली हैं। शुरुआती जांच में सामने आया है कि गिरोह में पश्चिम बंगाल के कई और लोग शामिल है। उनकी गिरफ्तारी के लिए एक टीम पश्चिम बंगाल रवाना की गई है।
टेस्टिंग के लिए बल्ब जलाकर दिखाते थे इंस्पेक्टर ने बताया कि आरोपित की पुष्टि के लिए साथ में तार लगा एक बल्ब भी रखते थे। तार को धातु पर रखते ही बल्ब जलने लगता था।
कोयले की खदान में मिली थी धातु अभिषेक ने पुलिस को बताया कि बिहार में कोयले के खदान में काम करने वाले एक मजदूर को संदिग्ध कैलिफोर्नियम धातु मिली थी। अभिषेक ने मजदूर को 50 हजार रुपये देकर इसे खरीदा। छानबीन में पता चला कि कैलिफोर्नियम कोयले की खादान में नहीं पाई जाती। इंस्पेक्टर का कहना है कि अभिषेक को रिमांड पर लेकर पूछताछ की जाएगी।
सिल्वर पेपर रोल में लपेटकर लाए धातु पुलिस के मुताबिक, आरोपी धातु को सिल्वर पेपर रोल में लपेटकर झोले में रखकर लाए थे। आरोपियों के पकड़े जाने के बाद पुलिस ने उसे एक प्लास्टिक की शीशी में रखा था।
कैंसर के इलाज में भी होता है इस्तेमाल ��ैलिफोर्नियम धातु एक रेडियोएक्टिव धातु है। सन 1950 में इसका आविष्कार कैलिफोर्निया में किया गया था। विस्फोटक और लैंड माइंस का पता लगाने में इसका इस्तेमाल होता है। कैंसर पीड़ित के ट्रीटमेंट में भी उसे उपयोग में लाया जाता है।
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khsnews · 3 years
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पंजाब के लुदका में फैक्ट्री का ताला तोड़ने के बाद 125 रोल के कपड़े चोरी करते हुए 4 लड़के cctv में कैद | 4 युवकों ने फैक्ट्री का ताला तोड़ने के बाद 125 रोल कपड़े चोरी करते पकड़े, सी.सी.टी.वी.
पंजाब के लुदका में फैक्ट्री का ताला तोड़ने के बाद 125 रोल के कपड़े चोरी करते हुए 4 लड़के cctv में कैद | 4 युवकों ने फैक्ट्री का ताला तोड़ने के बाद 125 रोल कपड़े चोरी करते पकड़े, सी.सी.टी.वी.
हिंदी समाचार स्थानीय पंजाब पंजाब के लुधियाना में फैक्ट्री का ताला तोड़ने के बाद कपड़े के 125 रोल्स चोरी करते हुए 4 लड़के सीसीटीवी में कैद हुए विज्ञापनों से परेशान? विज्ञापनों के बिना समाचार के लिए दैनिक भास्कर एप्लिकेशन इंस्टॉल करें लुधियानाग्यारह घंटे पहले प्रतिरूप जोड़ना सीसीटीवी में कैद एक युवक एक छोटे हाथी से भरे कपड़ों का रोल कर रहा था। पंजाब के लुधियाना जिले के बस्ती जोधेवाल में चोरी का…
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everynewsnow · 4 years
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'अरन्या' / 'कादन' फिल्म समीक्षा: जंगल के दिग्गज बेहतर पात्र थे
‘अरन्या’ / ‘कादन’ फिल्म समीक्षा: जंगल के दिग्गज बेहतर पात्र थे
शक्तिशाली पुरुषों से भरे एक बोर्डरूम की कल्पना करें, एक विशाल, आलीशान बस्ती को सघन साग से घेरने की योजना तैयार करना। विडंबना यह है कि उनका लक्ष्य एक आरक्षित वन क्षेत्र का अतिक्रमण करके ऐसा करना है। निर्देशक प्रभु सोलोमन की त्रिभाषी फिल्म (अरण्य तेलुगु में, कादन तमिल में और हाथी मेरे साथी हिंदी में) एक प्रासंगिक कहानी है जो देश के विभिन्न हिस्सों में पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों के लिए…
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shaileshg · 4 years
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गांव के बाहर बड़ा सा पूजा पंडाल बना है। मेला लगा है। चाट-पकौड़ी से लेकर हर सामान बिक रहा है। इस मेले से थोड़ा आगे बढ़ने पर एक रास्ता दाईं तरफ मुड़ता है। मोड़ पर ही एक बड़ा सा गेट बना है। गेट पर कुछ लिखा नहीं हुआ है, लेकिन इसके बगल में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत बनी सड़क पर लगे बोर्ड पर गांव का नाम लिखा है, लाखोचक।
लखीसराय शहर से करीब 8 किलोमीटर दूरी पर बसे इस गांव का एक इतिहास है। एक ऐसा इतिहास, जिसे बिहार के इतिहासकार पहली जातीय हिंसा की लड़ाई मानते हैं, लेकिन इलाके के लोग ‘युद्ध’ कहते हैं। बिहार का एक ऐसा इकलौता ‘युद्ध’ जो यहीं रहने वाले दो समुदायों के बीच हुआ। दो दिन तक चला। गोलियां चलीं। आठ से दस लोग मारे गए।
एक ऐसा ‘युद्ध’ जो अपनी जाति को सुरक्षित रखने के लिए किया गया। एक ऐसा ‘युद्ध’ जिसने राज्य में जातीय गोलबंदी को मजबूत कर दिया। एक ऐसा ‘युद्ध’ जिसने भूमिहार और यादव जैसी दो प्रमुख जातियों के बीच एक दूरी पैदा कर दी, जो आज भी चुनावों के वक्त साफ-साफ दिखती है।
इस संघर्ष के बारे में जो इतिहास की किताबों में दर्ज है, वो आपको आगे बताएंगे। अभी तो आप लाखोचक गांव में हुए विकास की कहानी सुनिए। यादव बहुल इस गांव तक आते ही सड़क उखड़ जाती है। प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत गांव में जो सड़क गई है और जिसका बोर्ड गांव के बाहर लगा है, वो दस दिन पहले ही बनी है। मुख्यमंत्री की सात निश्चय योजना के तहत हर घर तक पानी पहुंचाने के लिए नल लग गए हैं, लेकिन पानी नहीं आ रहा है।
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अभी गांव में मेला लगा हुआ है। यह गांव लखीसराय से 8 किमी की दूरी पर है।
27 साल के सतीश कुमार यादव कहते हैं, “कैसा विकास? अपने गांव तक बिजली लाने के लिए हमने चंदा जमाकर के घूस दी। सड़क आप देख ही ���हे हैं। लखीसराय से एकदम झकाझक सड़क आई है, लेकिन गांव से पांच सौ मीटर पहले ही खत्म हो गई। गांव के अंदर जाने वाली सड़क भी पूरी नहीं बनी है।”
पास ही खड़े 70 साल के सत्यनारायण प्रसाद यादव ने एक साथ कई सवाल उछाल दिए हैं, 'कुछ नहीं है गांव में। आप क्यों आए हैं? चुनाव खराब करने आए हैं क्या? किसने भेजा है?' ये सवाल केवल सत्यनारायण प्रसाद के नहीं हैं। कई लोग जानना चाह रहे हैं कि हमारे यहां आने की वजह क्या है। असल में ये यादव बहुल गांव है। इस गांव के आसपास स्थित दूसरे दस गांव भी यादव बहुल हैं।
गांव तक बहुत कम ही लोग आते हैं। सत्यनारायण यादव को हमने पूरी तसल्ली से अपने आने की वजह बताई, फिर भी वो संतुष्ट नहीं हुए। ये कहते हुए आगे बढ़ गए कि जिसने आपको भेजा है, उसे कह दीजिएगा कि हम लोग अबरी लालू यादव के लड़के को वोट देंगे। किसी के भेजने-वेजने से कुछ नहीं होगा।
लाखोचक गांव, लखीसराय जिले के सूर्यगढ़ा विधानसभा में आता है। 28 अक्टूबर को यहां वोट डाले जाएंगे। फिलहाल इस विधानसभा सीट पर राजद का कब्जा है। इस चुनाव में NDA की तरफ से यहां जदयू मैदान में है और सामने राजद है। जदयू के बागी उम्मीदवार जो अब लोजपा के चुनाव चिन्ह पर मैदान में हैं, जदयू उम्मीदवार के लिए मुश्किलें बढ़ा रहे हैं।
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प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना का बोर्ड तो लगा है, लेकिन गांव में जाने के लिए पक्की सड़क नहीं है।
राजद विधायक और उम्मीदवार प्रह्लाद यादव अपने सहयोगी दलों कांग्रेस एवं वाम दल का समर्थन प्राप्त कर रहे हैं। जदयू उम्मीदवार रामानंद मंडल वीआईपी के सहारे चुनावी बैतरणी पार करने की जुगत में हैं। ऐसी खबर है कि यहां भाजपा के ज्यादातर कार्यकर्ता चुनावी कार्यक्रम से खुद को अलग रखे हुए हैं। वे यहां जदयू से बागी हुए लोजपा प्रत्याशी रविशंकर प्रसाद सिंह उर्फ अशोक सिंह का समर्थन कर रहे हैं।
आज इतने साल बाद लाखोचक में ऐसा कोई नहीं है, जो उस जातीय भिड़ंत की कहानी सुना सके। कोई नहीं है, जो बता सके कि तब क्या हुआ? क्यों हुआ था और क्या-क्या हुआ था? गांव में कुछ युवा और बुजुर्ग घटना के बारे में ये जरूर कहते हैं, हां…दादा बताते थे। युद्ध हुआ था। भूमिहार और यादवों में। कई दिनों तक चला था। इससे ज्यादा कुछ पता नहीं है।'
जिस कहानी को गांव वाले भूल गए हैं। जो किस्सा अब इन्हें ही याद नहीं, उसे इतिहास की किताबों ने सहेज कर रखा है। स्वतंत्र लेखक प्रसन्न चौधरी और पत्रकार श्रीकांत की किताब ‘बिहार सामाजिक परिवर्तन के कुछ आयाम’ में इस घटना का विस्तार से जिक्र है। साल था 1925। बिहार में निचली समझी जाने वाली जातियां एक जगह जुटती थीं और सभी एक साथ जनेऊ धारण करते थे। इसे बिहार में ऊंची समझी जाने वाली जातियों ने खुद के लिए एक चुनौती समझा। कई जगह पर छिटपुट घटनाएं हुईं, लेकिन सबसे बड़ी घटना 26 मई 1925 को लखीसराय के लाखोचक गांव में घटी।
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गांव के लोगों का कहना है कि यहां कुछ काम नहीं हुआ है। न सड़क है न पानी। बिजली के लिए भी इन्हें खुद पैसा खर्च करना पड़ा था।
इस दिन जनेऊ धारण करने के लिए आसपास के कई गांवों से यादव बड़ी संख्या में यहां जुटे हुए थे। प्रसिद्ध नारायण सिंह इलाके के बड़े जमींदार थे और जाति से भूमिहार थे। वो इसके खिलाफ थे। उनके नेतृत्व ने करीब हजारों भूमिहारों ने यादवों पर हमला कर दिया। इस किताब में उस दिन की घटना कुछ यूं दर्ज है, 'उत्तर-पश्चिम दिशा से करीब 3000 बाभनों की भीड़ गोहारा बांधे बस्ती की तरफ बढ़ रही थी। हाथी पर अपने कुछ लोगों के साथ बैठे विश्वेश्वर सिंह भीड़ का नेतृत्व कर रहे थे। आजू-बाजू में घुड़सवार थे, जिसमें एक खुद जमींदार प्रसिद्ध नारायण सिंह थे। भीड़ लाठी, फरसा, गंडासा, तलवार और भाले से लैस थी।'
इस दिन पुलिस ने 118 राउंड फायरिंग की। पुलिस के सब इंस्पेक्टर और एसपी बुरी तरह घायल हुए। इस घटना में 8 से लेकर 80 लोगों के मारे जाने की बात कही जाती है। ऐसा माना जाता है कि लाखोचक की ये घटना बिहार के इतिहास में पहली जातीय हिंसा या जातीय आधार पर बड़े हमले जैसी घटना है। इस घटना ने राज्य की जातीय संरचना को, यहां की व्यवस्था को और आगे चलकर राजनीति को बहुत हद तक प्रभावित किया है। शायद यही वजह है कि आज सालों बाद भी बिहार की दो जातियां यादव और भूमिहार दो अलग-अलग छोर पर खड़ी दिखती हैं।
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करीब 100 साल पहले जातीय हिंसा के बारे में गांव के लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं है। बस इतना जानते हैं कि हिंसा हुई थी।
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sharpbharat · 2 years
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Jamshedpur three thieves arrested - बिरसानगर से लोहा चोरी के मामले में चालक समेत तीन गिरफ्तार, पुलिस ने चोरी का माल लदा छोटा हाथी भी किया बरामद, गिरफ्तार लोगों में एक किशोर भी शामिल
Jamshedpur three thieves arrested – बिरसानगर से लोहा चोरी के मामले में चालक समेत तीन गिरफ्तार, पुलिस ने चोरी का माल लदा छोटा हाथी भी किया बरामद, गिरफ्तार लोगों में एक किशोर भी शामिल
जमशेदपुर : नगर की बिरसानगर थाना पुलिस ने लोहा चोरी में शामिल तीन आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है. गिरफ्तार अपराधियों में टेल्को थानांतर्गत जेम्को की महानंद बस्ती निवासी छोटा हाथी का चालक सुरेश भारती एवं दो अन्य शामिल हैं. पुलिस ने करीब 250 किलो चोरी के सरिया लदे छोटा हाथी को भी बरामद कर लिया है. (नीचे भी पढ़ें) बिरसानगर थाना प्रभारी प्रभात कुमार ने बताया कि इस संबंध में बिरसानगर स्थित जेआरए…
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cg24xnews · 4 years
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दोनों हाथी इतने आक्रोशित थे कि हाइवे होते हुए बस्ती में जा घुसे. जहां अफरा-तफरी का माहौल हो गया..
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लक्ष्य रजक,महासमुंद। राजधानी रायपुर के समीप आरंग क्षेत्र में एक बार फिर दो हाथियों ने घुसकर तांडव मचा रखा है. इस बार दोनों हाथी इतने आक्रोशित थे कि हाइवे होते हुए बस्ती में जा घुसे. जहां अफरा-तफरी का माहौल हो गया. ग्रामीण चीखते हुए इधर से उधर भागने लगे. इसी दौरान एक दिव्यांग युवती को हल्की चोटें आई है.आज सुबह दोनों हाथी महानदी के किनारे से होते हुए राष्ट्रीय राजमार्ग 53 से लगे ग्राम पारागांव में…
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vsplusonline · 4 years
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गरीब-दलित-पिछड़ों की बस्ती को BSP कार्यकर्ता इस तरह कर रहे सैनिटाइज
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गरीब-दलित-पिछड़ों की बस्ती को BSP कार्यकर्ता इस तरह कर रहे सैनिटाइज
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कोरोना संक्रमण से जंग में उतरे बसपा कार्यकर्ता
दक्षिण भारत में बसपा कार्यकर्ता घर-घर कर रहे सैनिटाइज
कोरोना संक्रमण के खिलाफ जारी देशव्यापी जंग में बहुजन समाज पार्टी के कार्यकर्ता अपनी जिम्मेदारी समझकर लोगों की मदद और सरकार के सहयोग में जुटे हुए हैं. बसपा प्रमुख मायावती के दिशा-निर्देश पर बसपा कार्यकर्ता अपने इलाकों में गरीब-दलित-पिछड़े समुदाय की बस्तियों और मुहल्लों में गली-गली घूमकर लोगों के घरों को सैनिटाइज करने में जुटे हैं. बसपा का यह मॉडल कोरोना संकट के बीच दूसरे राजनीतिक दलों के लिए एक नजीर पेश कर रहा है.
दक्षिण भारत के तमिलनाडु सहित कई जगहों पर बसपा कार्यकर्ताओं की टीम अपनी-अपनी पीठ पर 20 लीटर वाले सैनिटाइजर टैंक लेकर गरीब-दलित और पिछड़ी बस्तियों में जा रहे हैं. वे घर घर जाकर सैनिटाइजर का छिड़काव कर रहे हैं. उनके इस अभियान में बसपा की ब्रैंडिंग का भी पूरा ख्याल रखा जा रहा है, जिससे आसानी से पता चल रहा है कि किस पार्टी के कार्यकर्ताओं के द्वारा सैनिटाइजन का काम किया जा रहा है.
सैनिटाइजर के टैंक पर बसपा प्रमुख मायावती को फोटो छपी हुई है. इसके अलावा टैंक की साइड पर हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में बीएसपी का नाम मोटे अक्षरों से लिखा हुआ है. साथ में टैंक पर बसपा का चुनाव चिन्ह हाथी भी बना हुआ है. इस टैंक के साथ बसपा कार्यकर्ता गले में अपना आईकार्ड लटकाए हुए हैं, जिनमें बसपा की पहचान साफ देखी जा सकती है.
कोरोना पर फुल कवरेज के लि‍ए यहां क्ल‍िक करें
कोरोना संक्रमण की वजह से लॉकडाउन, जिसके चलते राजनीतिक गतिविधियां पूरी तरह से बंद हैं. ऐसे में बसपा कार्यकर्ता एक साथ दो काम को अंजाम दे रहे हैं. एक तरफ कोरोना के खिलाफ जंग में लोगों के घरों में सैनिटाइजर का छिड़काव करके उनकी हिफाजत कर रहे हैं तो दूसरी तरफ अपनी पार्टी का प्रचार-प्रसार भी कर रहे हैं. कोरोना संकट के बीच बसपा का यह मॉडल दूसरे दलों के सामने एक मॉडल बन सकता है.
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बसपा कार्यकर्ता सैनिटाइज करती हुई
बसपा के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष मुनकाद अली ने बताया है कि कोरोना वायरस के खिलाफ हर लड़ाई में हमारी पार्टी पूरी मुस्तैदी के साथ लगी हुई है. बसपा अध्यक्ष मायावती का आदेश है कि कोरोना संक्रमण के जंग में पार्टी कार्यकर्ताओं से जितना भी हो सके हर संभव लोगों की मदद करें. पार्टी अध्यक्ष पर बसपा विधायक और सांसदों ने अपनी-अपनी निधि का पैसा सरकार के राहत कोष में दिया है तो कुछ लोग अपने स्तर पर भी लोगों की मदद करने में जुटे हैं.
कोरोना कमांडोज़ का हौसला बढ़ाएं और उन्हें शुक्रिया कहें…
बसपा का सबसे ज्यादा जनाधार और मजबूत संगठन उत्तर प्रदेश में है. मायावती चार बार यूपी की सीएम रही हैं और मौजूदा समय में 10 सांसद सूबे से हैं. इसके बावजूद दक्षिण भारत की तर्ज पर उत्तर प्रदेश में बसपा कार्यकर्ता दलित-गरीब-पिछड़े मुहल्ले में घर-घर जाकर सैनिटाइज करने की मुहिम अभी तक शुरू नहीं कर सके हैं. वहीं, दक्षिण भारत के तमिलनाडु में बसपा का एक भी विधायक नहीं है, लेकिन कोरोना संकट के बीच पार्टी के कार्यकर्ता घर-घर जाकर दस्तक दे रहे हैं.
बता दें कि बसपा सुप्रीमो मायावती ने पिछले दिनों ट्वीट कर कहा था, ‘देशभर में कोरोना वायरस महामारी के प्रकोप के मद्देनजर खासकर बसपा विधायकों से अपील है कि वे भी पार्टी के सभी सांसदों की तरह अपनी विधायक निधि से कम से कम एक-एक करोड़ रुपये अति जरूरतमंदों की मदद हेतु जरूर दें.’ बसपा के अन्य सदस्य भी अपने पड़ोसियों का मानवीय आधार पर ध्यान रखें.’ इसके अलावा मायावती ने कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में सरकार के हर कदम का समर्थन किया है. इसके चलते उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बसपा प्रमुख मायावती का धन्यवाद अदा किया था.
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वर्तमान परिदृश्य
अगस्त, 2019 में छत्तीसगढ़ सरकार ने मंत्रिमंडल की बैठक में पूर्व घोषित लेमरू हाथी संरक्षित क्षेत्र (रिजर्व) की स्थापना के प्रस्ताव को पास कर दिया। सरकार के इस कदम से एक लंबे समय से प्रतीक्षित परियोजना पूर्ण हो सकेगी और हाथियों के आतंक से ग्रसित क्षेत्रों की आबादी को बड़ी राहत मिलेगी। लेमरू हाथी संरक्षित क्षेत्र में हाथियों को स्थानांतरित किया जाएगा, जिससे छत्तीसगढ़ में हाथियों का आतंक कम होगा। यह हाथियों की सुरक्षा और संवर्धन हेतु उसका एक प्राकृतिक निवास भी होगा।
पृष्ठभूमि
छत्तीसगढ़ में हाथियों के बहुलता वाले क्षेत्र में पिछले पांच वर्षों से हाथियों और मानव के संघर्षों में दर्जनों मानव और लगभग एक दर्जन हाथियों की भी मृत्यु हुई है। इस दौरान जन-हानि, कृषि में नुकसान, क्षतिग्रस्त मकानों आदि की क्षतिपूर्ति के रूप में राज्य सरकार ने 75 करोड़ रुपये का अनुदान दिया। इन्हीं संवेदनशील आंकड़ों के दृष्टिगत ‘लेमरू हाथी रिजर्व’ की स्थापना हेतु एक ‘स्पेशल हाई पॉवर टेक्निकल कमेटी’ का भी गठन किया गया है, जिसके द्वारा प्रदत्त सूचनाएं और सुझाव इस परियोजना के लिए निर्माण का आधार साबित होंगी। इस समिति की रिपोर्ट के आधार पर ही 5 अक्टूबर, 2007 को वंफ्रेद्र सरकार ने 1995.48 वर्ग किमी. वन्य क्षेत्र में लेमरू हाथी रिजर्व के निर्माण की अनुमति दी थी।
कार्ययोजना
छत्तीसगढ़ के हाथी प्रभावित क्षेत्रों (9 जिलों) को चिह्नित कर लिया गया है और यहां से 226 उत्पाती हाथियों को लेमरू एलीफैंट रिजर्व में भेजा जाएगा। इसके लिए इन हाथियों को 14 समूहों में बांटा जाएगा, जिन्हें अस्थायी फेंसिंग के जरिए एलीफैंट रिजर्व (हाथी संरक्षित क्षेत्र) तक पहुंचाया जाएगा। ध्यातव्य है कि इस क्षेत्र से वर्ष पर्यंत प्रवाहित होने वाली छः नदियां गुजरती हैं, जिससे हाथियों के समूह को पानी की तलाश में मानव बस्ती की ओर नहीं जाना होगा। साथ ही घने वन उनके भोजन की आवश्यकता को भी पूर्ण करेंगे। हाथी संरक्षित क्षेत्र (लेमरू) में बहुत कम आबादी वाले 80 गांव हैं और इन 80 गांवों की जनसंख्या 20 हजार के लगभग है। इस क्षेत्र का जो निवासी एलीफैंट रिजर्व को छोड़कर जाना चाहेगा, उन्हें नियमानुसार व्यवस्थापन की सुविधा दी जाएगी और जो लोग इस क्षेत्र में ही रहना चाहेंगे, उन्हें वन विभाग की ओर से ऐसे मकान बनाकर दिए जाएंगे, जो हाथियों के खतरे से बचा सकें।
कोयला क्षेत्र पर प्रभाव
प्रस्तावित हाथी संरक्षित क्षेत्र से कोयला खनन पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है। प्रस्तावित संरक्षित क्षेत्र यदि पुरानी योजना के ही अनुरूप रहता है, तो इससे वार्षिक 4 करोड़ टन कोयला उत्पादन प्रभावित होगा। ये कोयला खदानें राज्य के रायगढ़ से लेकर कोरबा और सरगुजा जिलों तक फैली हैं।
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viralnewsofindia · 6 years
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फाइलेरिया बीमारी के उन्मूलन हेतु प्रदेश के 29 जनपदों में संचालित होगा एमडीए अभियान लखनऊ: 01 फरवरी, 2019 सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य श्रीमती वी.हेकाली झिमोमी ने कहा कि फाइलेरिया बीमारी को समाप्त करने हेतु प्रदेश के 29 जनपदों में 10 से 14 फरवरी, 2019 तक एमडीए (मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन) अभियान का संचालन किया जायेगा। उन्होंने बताया कि एमडीए के द्वितीय चरण में 29 जनपद चित्रकूट, बांदा, गोरखपुर, महाराजगंज, बरेली, शाहजहांपुर, बाराबंकी सोनभद्र, भदोही (संत रविदास नगर), मऊ, आजमगढ़, बलिया, बस्ती, सिद्धार्थनगर, संत कबीर नगर, देवरिया, कुशीनगर, जालौन, पीलीभीत, जौनपुर, हमीरपुर, महोबा, अम्बेडकर नगर, अमेठी, गोण्डा, बहराइच, श्रावस्ती, अयोध्या (फैजाबाद) एवं बलरामपुर में अभियान चलाया जायेगा। इस अभियान के अंतर्गत लोगों को एल्बेंडाजोल की गोली खिलाई जायेगी। श्रीमती झिमोमी आज अपने कार्यालय के सभाकक्ष में फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम की स्टेट टास्क फोर्स बैठक की अध्यक्षता कर रही थीं। उन्होंने कहा कि एमडीए अभियान में दो दवाओं डीईसी एवं एल्बेण्डाजोल का निःशुल्क वितरण किया जायेगा। ये दवायें मानव में इन परजीवियों को मारने में सक्षम हैं और रोग की रोकथाम में मदद करते हैं तथा भविष्य में हाथी पांव होने की संभावना को भी खत्म करते हैं। उन्होंने कहा कि हाथी पांव की बीमारी होने के उपरान्त इसका इलाज संभव नहीं है। स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में बिना किसी लक्षण के इस बीमारी के परजीवी शरीर में कई वर्ष तक रह सकते हैं एवं 5 से 10 वर्ष बाद हाथी पांव की बीमारी से ग्रसित हो सकते हैं। सचिव स्वास्थ्य ने कहा कि इन दवाओं का सेवन दो वर्ष से अधिक उम्र के सभी व्यक्तियों को करना है (गर्भवती महिलाओं एवं गंभीर रूप से बीमार व्यक्तियों को छोड़कर)। इस दवा का सेवन खाली पेट नहीं करना है एवं स्वास्थ्य कार्यकर्ता के समक्ष ही दवा का सेवन करना है। उन्होंने कहा कि इस बीमारी से लोगों को बचाने के लिए कैम्प लगाकर दवाएं खिलायी जायं। साथ ही उन्होंने फाइलेरिया बीमारी के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए विभिन्न माध्यमों से प्रचार-प्रसार कराने पर भी बल दिया। बैठक में निदेशक, संचारी डा0 मिथलेश चतुर्वेदी, डा0 विकास सहित विभागीय अधिकारी उपस्थित थे।
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sharpbharat · 3 years
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jamshedpur-road-accident- साकची में हाथी घोड़ा मंदिर के पास सड़क पार कर रहे बाइक सवार को तेज रफ्तार बाइक ने मारी टक्कर, एमजीएम में भर्ती
jamshedpur-road-accident- साकची में हाथी घोड़ा मंदिर के पास सड़क पार कर रहे बाइक सवार को तेज रफ्तार बाइक ने मारी टक्कर, एमजीएम में भर्ती
जमशेदपुरः जमशेदपुर साकची थाना अंतर्गत हाथी घोड़ा मंदिर के पास शुक्रवार को सड़क दुर्घटना में बर्मामाइंस थाना क्षेत्र के ईस्ट प्लांट बस्ती का रहने वाला अजय कालिंदी घायल हो गया है. अजय कालिंदी जब मानगो से अपने घर ईस्ट प्लांट बस्ती जा रहा था तभी हाथी घोड़ा मंदिर के पास एक तेज रफ्तार बाइक ने उसे टक्कर मार दी टक्कर मारने के बाद बाइक सवार फरार हो गया.(नीचे भी पढ़े) अजय कालिंदी को हाथ और पैर में चोट आई…
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margdarsanme · 4 years
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NCERT Class 12 Hindi Chapter 3 Ateet me Dabe Pav
NCERT Class 12 Hindi ::  :: Chapter 3 Ateet me Dabe Pav  (अतीत में दबे पाँव)
वितान, भाग 2 (पूरक पाठ्यपुस्तक)
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न 1.सिंधु सभ्यता साधन-संपन्न थी, पर उसमें भव्यता का आडंबर नहीं था, कैसे? (CBSE-2010, 2012, 2016)उत्तर:सिंधु-सभ्यता के शहर मुअनजो-दड़ो की व्यवस्था, साधन और नियोजन के विषय में खूब चर्चा हुई है। इस बात से सभी प्रभावित हैं कि वहाँ की अन्न-भंडारण व्यवस्था, जल-निकासी की व्यवस्था अत्यंत विकसित और परिपक्व थी। हर निर्माण बड़ी बुद्धमानी के साथ किया गया था; यह सोचकर कि यदि सिंधु का जल बस्ती तक फैल भी जाए तो कम-से-कम नुकसान हो। इन सारी व्यवस्थाओं के बीच इस सभ्यता की संपन्नता की बात बहुत ही कम हुई है। वस्तुत: इनमें भव्यता का आडंबर है ही नहीं। व्यापारिक व्यवस्थाओं की जानकारी मिलती है, मगर सब कुछ आवश्यकताओं से ही जुड़ा हुआ है, भव्यता का प्रदर्शन कहीं नहीं मिलता। संभवत: वहाँ की लिपि पढ़ ली जाने के बाद इस विषय में अधिक जानकारी मिले।
प्रश्न 2.‘सिंधु-सभ्यता की खूबी उसका सौंदर्य-बोध है जो राज-पोषित या धर्म-पोषित न होकर समाज-पोषित था।’ ऐसा क्यों कहा गया? (CBSE-2012, 2013)उत्तर:सिंधु घाटी के लोगों में कला या सुरुचि का महत्त्व ज्यादा था। वास्तुकला या नगर-नियोजन ही नहीं, धातु और पत्थर की। मूर्तियाँ, मृद्-भांडे, उन पर चित्रित मनुष्य, वनस्पति और पशु-पक्षियों की छवियाँ, सुनिर्मित मुहरें, उन पर बारीकी से उत्कीर्ण आकृतियाँ, खिलौने, केश-विन्यास, आभूषण और सबसे ऊपर सुघड़ अक्षरों का लिपिरूप सिंधु सभ्यता को तकनीक-सिद्ध से ज्यादा कला-सिद्ध जाहिर करता है। खुदाई के दौरान जो भी वस्तुएँ मिलीं या फिर जो भी निर्माण शैली के तत्व मिले, उन सभी से यही बात निकलकर आती है कि सिंधु सभ्यता समाज प्रधान थी। यह व्यक्तिगत न होकर सामूहिक थी। इसमें न तो किसी राजा का प्रभाव था और न ही किसी धर्म विशेष का। इतना अवश्य है कि कोई-न-कोई राजा होता होगा लेकिन राजा पर आश्रित यह सभ्यता नहीं थी। इन सभी बातों के आधार पर यह बात कही जा सकती है कि सिंधु सभ्यता का सौंदर्य समाज पोषित था।
प्रश्न 3.पुरातत्व के किन चिह्नों के आधार पर आप यह कह सकते हैं कि-“सिंधु सभ्यता ताकत से शासित होने की अपेक्षा समझ से अनुशासित सभ्यता थी।” (CBSE-2008, 2009)उत्तर:सिंधु-सभ्यता से जो अवशेष प्राप्त हुए हैं उनमें औजार तो हैं, पर हथियार नहीं हैं। मुअनजो-दड़ो, हड़प्पा से लेकर हरियाणा तक समूची सिंधु-सभ्यता में हथियार उस तरह नहीं मिले हैं जैसे किसी राजतंत्र में होते हैं। दूसरी जगहों पर राजतंत्र या धर्मतंत्र की ताकत का प्रदर्शन करने वाले महल, उपासना-स्थल, मूर्तियाँ और पिरामिड आदि मिलते हैं। हड़प्पा संस्कृति में न भव्य राजप्रासाद मिले हैं, न मंदिर, न राजाओं व महतों की समाधियाँ। मुअनजो-दड़ो से मिला नरेश के सिर का मुकुट भी बहुत छोटा है। इन सबके बावजूद यहाँ ऐसा अनुशासन जरूर था जो नगर-योजना, वास्तु-शिल्प, मुहर-ठप्पों, पानी या साफ़-सफ़ाई जैसी सामाजिक व्यवस्थाओं में एकरूपता रखे हुए था। इन आधारों पर विद्वान यह मानते हैं कि यह सभ्यता समझ से अनुशासित सभ्यता थी, न कि ताकत से।
प्रश्न 4.‘यह सच है कि यहाँ किसी आँगन की टूटी-फूटी सीढ़ियाँ अब आप को कहीं नहीं ले जातीं; वे आकाश की तरफ़ अधूरी रह जाती हैं, लेकिन उन अधूरे पायदानों पर खड़े होकर अनुभव किया जा सकता है कि आप दुनिया की छत पर हैं, वहाँ से आप इतिहास को नहीं उस के पार झाँक रहे हैं।’ इस कथन के पीछे लेखक का क्या आशय है? (CBSE-2015)उत्तर:इस कथन के पीछे लेखक का आशय यही है कि खंडहर होने के बाद भी पायदान बीते इतिहास का पूरा परिचय देते हैं। इतनी ऊँची छत पर स्वयं चढ़कर इतिहास का अनुभव करना एक बढ़िया रोमांच है। सिंधु घाटी की सभ्यता केवल इतिहास नहीं है बल्कि इतिहास के पार की वस्तु है। इतिहास के पार की वस्तु को इन अधूरे पायदानों पर खड़े होकर ही देखा जा सकता है। ये अधूरे पायदान यही दर्शाते हैं. कि विश्व की दो सबसे प्राचीन सभ्यताओं का इतिहास कैसा रहा।
प्रश्न 5.टूटे-फूटे खंडहर, सभ्यता और संस्कृति के इतिहास के साथ-साथ धड़कती जिंदगियों के अनछुए समयों को भी दस्तावेज़ होते हैं-इस कथन का भाव स्पष्ट कीजिए। (CBSE-2010, 2012)उत्तर:यह सच है कि टूटे-फूटे खंडहर, सभ्यता और संस्कृति के इतिहास के साथ-साथ धड़कती जिंदगियों के अनछुए समयों का भी दस्तावेज होते हैं। मुअनजो-दड़ो में प्राप्त खंडहर यह अहसास कराते हैं कि आज से पाँच हजार साल पहले कभी यहाँ बस्ती थी। ये खंडहर उस समय की संस्कृति का परिचय कराते हैं। लेखक कहता है कि इस आदिम शहर के किसी भी मकान की दीवार पर पीठ टिकाकर सुस्ता सकते हैं चाहे वह एक खंडहर ही क्यों न हो, किसी घर की देहरी पर पाँव रखकर आप सहसा सहम सकते हैं, रसोई की खिड़की पर खड़े होकर उसकी गंध महसूस कर सकते हैं या शहर के किसी सुनसान मार्ग पर कान देकर बैलगाड़ी की रुन-झुन सुन सकते हैं। इस तरह जीवन के प्रति सजग दृष्टि होने पर पुरातात्विक खंडहर भी जीवन की धड़कन सुना देते हैं। ये एक प्रकार के दस्तावेज होते हैं जो इतिहास के साथ-साथ उस अनछुए समय को भी हमारे सामने उपस्थित कर देते हैं।
प्रश्न 6.इस पाठ में एक ऐसे स्थान का वर्णन है, जिसे बहुत कम लोगों ने देखा होगा, परंतु इससे आपके मन में उस नगर की एक तसवीर बनती है। किसी ऐसे ऐतिहासिक स्थल, जिसको आपने नज़दीक से देखा हो, का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।उत्तर:मैंने हर्षवर्धन के किले को नजदीक से देखा है। यह एक ऐतिहासिक स्थल है। यह बहुत बड़ा किला है। जिसे हर्षवर्धन ने अपनी राजधानी बना रखा था। अपने भाई राज्यवर्धन की मृत्यु के बाद वह थानेसर का राजा बना। इस किले के चारों ओर प्रत्येक कोने पर ऊँचे-ऊँचे स्तंभ हैं। इसके परकोटों पर खूबसूरत मीनाकारी की गई है। अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के रहने के लिए महल के साथ ही कमरे बनवाए हुए थे। किले का मुख्य गुंबद बहुत ऊँचा था। इसके साथ ही एक मीना बाज़ार था जहाँ पर हर प्रकार का साजो-सामान बिकता था। यह किला आज भी शांतभाव से खड़ा अपना इतिहास बताता प्रतीत । होता है। किले का प्रवेश द्वार बहुत मजबूत है जहाँ तक कई सीढ़िया पार करके पहुँचा जा सकता है।
प्रश्न 7.नदी, कुएँ, स्नानागार और बेजोड़ निकासी व्यवस्था को देखते हुए लेखक पाठकों से प्रश्न पूछता है कि क्या हम सिंधु घाटी सभ्यता को जल-संस्कृति कह सकते हैं? आपका जवाब लेखक के पक्ष में है या विपक्ष में? तर्क दें। (CBSE-2009)उत्तर:सिंधु घाटी सभ्यता में नदी, कुएँ, स्नानागार व बेजोड़ निकासी व्यवस्था के अनुसार लेखक इसे ‘जल-संस्कृति’ की संज्ञा देता है। मैं लेखक की बात से पूर्णत: सहमत हूँ। सिंधु-सभ्यता को जल-संस्कृति कहने के समर्थन में निम्नलिखित कारण हैं –
यह सभ्यता नदी के किनारे बसी है। मुअनजो-दड़ो के निकट सिंधु नदी बहती है।
यहाँ पीने के पानी के लिए लगभग सात सौ कुएँ मिले हैं। ये ���ुएँ पानी की बहुतायत सिद्ध करते हैं।
मुअनजो-दड़ो में स्नानागार हैं। एक पंक्ति में आठ स्नानागार हैं जिनमें किसी के भी द्वार एक-दूसरे  के सामने नहीं खुलते। कुंड में पानी के रिसाव को रोकने के लिए चूने और चिराड़ी के गारे का इस्तेमाल हुआ है।
जल-निकासी के लिए नालियाँ व नाले बने हुए हैं जो पकी ईटों से बने हैं। ये ईटों से ढँके हुए हैं। आज भी शहरों में जल-निकासी के लिए ऐसी व्यवस्था की जाती है।
मकानों में अलग-अलग स्नानागार बने हुए हैं।
मुहरों पर उत्कीर्ण पशु शेर, हाथी या गैडा जल-प्रदेशों में ही पाए जाते हैं।
प्रश्न 8.सिंधु घाटी सभ्यता का कोई लिखिए साक्ष्य नहीं मिला है। सिर्फ़ अवशेषों के आधार पर ही धारणा बनाई है। इस लेख में मुअन-जोदड़ो के बारे में जो धारणा व्यक्त की गई है। क्या आपके मन में इससे कोई भिन्न धारणा या भाव भी पैदा होता है? इन संभावनाओं पर कक्षा में समूह-चर्चा करें।उत्तर:यदि मोहनजोदड़ो अर्थात् सिंधु घाटी की सभ्यता के बारे में धारणा बिना साक्ष्यों के बनाई गई है तो यह गलत नहीं है। क्योंकि जो कुछ हमें खुदाई से मिला है वह किसी साक्ष्य से कम नहीं। खुदाई के दौरान मिले बर्तनों, सिक्कों, नगरों, सड़कों, गलियों को साक्ष्य ही कहा जा सकता। साक्ष्य लिखित हों यह जरूरी नहीं है। जो कुछ हमें सामने दिखाई दे रहा है वह भी तो प्रमाण है। फिर हम इस तथ्य को कैसे भुला दें कि ये दोनों नगर विश्व की प्राचीनतम संस्कृति और सभ्यता के प्रमाण हैं। इन्हीं के कारण अन्य सभी संस्कृतियाँ विकसित हुईं। मुअन-जोदड़ो के बारे में जो धारणा व्यक्त की गई है। वह हर दृष्टि से प्रामाणिक है। उसके बारे में अन्य कोई धारणा मेरे मन में नहीं बनती।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.मुअनजोदड़ो की बड़ी बस्ती के बारे में विस्तार से बताइए।उत्तर:लेखक बताता है कि बड़ी बस्ती के घर बहुत बड़े होते थे। इसी प्रकार इन घरों के आँगन भी बहुत खुले होते थे। इन घरों की दीवारें ऊँची और मोटी होती थीं। जिस आधार पर कहा जा सकता है कि मोटी दीवारों वाले घर दो मंजिले होते होंगे। कुछ दीवारों में छेद भी मिले हैं जो यही संकेत देते हैं कि दूसरी मंजिल को उठाने के लिए शायद शहतीरों के लिए यह जगह छोड़ दी गई होगी। सभी घर पक्की ईंटों के हैं। एक ही आकार की ईंटे इन घरों में लगाई गई हैं। यहाँ पत्थर का प्रयोग ज्यादा नहीं हुआ। कहीं-कहीं नालियों को अनगढ़ पत्थरों से ढक दिया है ताकि गंदगी न फैले। इस प्रकार मुअनजोदड़ो की बड़ी बस्ती निर्माण कला की दृष्टि से संपन्न एवं कुशल थी।
प्रश्न 2.क्या प्राचीनकाल में रंगाई का काम होता था।उत्तर:प्राचीनकाल में भी रंगाई का काम होता था। लोग बड़े चाव से यह काम किया करते थे। आज भी मुअनजोदड़ो में एक रंगरेज का कारखाना मौजूद है। यहाँ ज़मीन में गोल गड्ढे उभरे हुए हैं। इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि इसमें रंगाई के लिए बर्तन रखे जाते होंगे। पश्चिम में ठीक गढ़ी के पीछे यह कारखाना मिला है। अतः इस बात को बिना किसी शंका के कहा जा सकता है कि प्राचीन लोग रंगाई का काम किया करते थे।
प्रश्न 3.खुदाई के दौरान मुअनजोदड़ो से क्या-क्या मिला?उत्तर:मुअनजोदड़ो से निकली वस्तुओं की पंजीकृत संख्या पचास हजार है। अहम चीजें तो आज कराची, लाहौर, दिल्ली और लंदन में रखी हुई हैं। मुठ्ठीभर चीजें यहाँ के अजायबघर में रखी हुई हैं जिनमें गेहूँ, ताँबे और काँसे के बर्तन, मुहरें, वाद्य यंत्र, चाक पर बने बड़े-बड़े मिट्टी के मटके, चौपड़ की गोटियाँ, दीये, माप तौल के पत्थर, ताँबे का शीशा, मिट्टी की बैलगाड़ी, दो पाटों वाली चक्की, मिट्टी के कंगन, मनकों वाले पत्थर के हार प्रमुख हैं। इस प्रकार खुदाई के दौरान बहुत-सी वस्तुएँ मिलीं जिनमें कुछ तो संग्रहालयों में चली गई और बाकी बची चोरी हो गईं।
प्रश्न 4.सिंधु घाटी की सभ्यता कैसी थी? तर्क सहित उत्तर दें।उत्तर:लेखक के मतानुसार सिंधु घाटी की सभ्यता ‘लो-प्रोफाइल’ सभ्यता थी। दूसरे स्थानों पर खुदाई करने से राजतंत्र को प्रदर्शित करने वाले महल धर्म की ताकत दिखाने वाले पूजा स्थल, मूर्तियाँ और पिरामिड मिले हैं जबकि मुअनजोदड़ो की खुदाई के दौरान न तो राजप्रसाद ही मिले और न ही मंदिर। यहाँ किसी राजा अथवा महंत की समाधि भी नहीं मिली। यहाँ जो नरेश की मूर्ति मिली है उनके मुकुट का आकार बहुत छोटा है। इतना छोटा कि इससे छोटे सिरपंच की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इन लोगों की नावों का आकार भी ज्यादा बड़ा नहीं था। इन आधारों पर कहा जा सकता है कि सिंधु घाटी की । सभ्यता आडंबर हीन सभ्यता थी। ऐसी सभ्यता जो छोटी होते हुए भी महान थी। जो विश्व की प्राचीनतम संस्कृति थी।
प्रश्न 5.किन आधारों पर कहा जा सकता है कि सिंधु सभ्यता में राजतंत्र नहीं था?उत्तर:मुअनजोदड़ो के अजायबघर में प्रदर्शित चीज़ों में औज़ार तो हैं, पर हथियार कोई नहीं है। मुअनजोदड़ो क्या, हड़प्पा से लेकर हरियाणा तक समूची सिंधु सभ्यता में हथियार उस तरह कहीं नहीं मिले हैं जैसे किसी राजतंत्र में होते हैं। इस बात को लेकर विद्वान सिंधु सभ्यता में शासन या सामाजिक प्रबंध के तौर-तरीके को समझने की कोशिश कर रहे हैं। वहाँ अनुशासन ज़रूर था, पर ताकत के बल पर नहीं। वे मानते हैं कोई सैन्य सत्ता शायद यहाँ न रही हो। मगर कोई अनुशासन ज़रूर था जो नगर योजना, वास्तुशिल्प, मुहर-ठप्पों, पानी या साफ़-सफ़ाई जैसी सामाजिक व्यवस्थाओं आदि में एकरूपता तक को कायम रखे हुए था।
दूसरी बात, जो सांस्कृतिक धरातल पर सिंधु घाटी सभ्यता को दूसरी सभ्यताओं से अलग ला खड़ा करती है, वह है प्रभुत्व या दिखावे के तेवर का नदारद होना। दूसरी जगहों पर राजतंत्र या धर्मतंत्र की ताकत का प्रदर्शन करने वाले महल, उपासना-स्थल, मूर्तियाँ और पिरामिड आदि मिलते हैं। हड़प्पा संस्कृति में न भव्य राजप्रसाद मिले हैं, न मंदिर। न राजाओं, महंतों की समाधियाँ। यहाँ के मूर्तिशिल्प छोटे हैं और औज़ार भी। मुअनजोदड़ो के नरेश’ के सिर पर जो ‘मुकुट’ है, शायद उससे छोटे सिरपंच की कल्पना भी नहीं की जा सकती। और तो और, उन लोगों की नावें बनावट में मिस्र की नावों जैसी होते हुए भी आकार में छोटी रहीं। आज के मुहावरे में कह सकते हैं वह ‘लो-प्रोफाइल’ सभ्यता थी।
प्रश्न 6.मुअनजोदड़ो और हड़प्पा के बारे में लेखक क्या बताता है?उत्तर:मुअनजोदड़ो और हड़प्पा प्राचीन भारत के ही नहीं, दुनिया के दो सबसे पुराने नियोजित शहर माने जाते हैं। ये सिंधु घाटी सभ्यता के परवर्ती यानी परिपक्व दौर के शहर हैं। खुदाई में और शहर भी मिले हैं। लेकिन मुअनजोदड़ो ताम्र काल के शहरों में सबसे बड़ा है। वह सबसे उत्कृष्ट भी है। व्यापक खुदाई यहीं पर संभव हुई। बड़ी तादाद में इमारतें, सड़कें, धातु-पत्थर की मूर्तियाँ, चाक पर बने चित्रित भांडे, मुहरें, साजोसामान और खिलौने आदि मिले। सभ्यता का अध्ययन संभव हुआ। उधर सैकड़ों मील दूर हड़प्पा के ज्यादातर साक्ष्य रेललाइन बिछने के दौरान विकास की भेंट चढ़ गए।’ मुअनजोदड़ो के बारे में धारणा है कि अपने दौर में वह घाटी की सभ्यता का केंद्र रहा होगा। यानी एक तरह की राजधानी। माना जाता है यह शहर दो सौ हेक्टर क्षेत्र में फैला था। आबादी कोई पचासी हजार थी। जाहिर है, पाँच हजार साल पहले यह आज के ‘महानगर’ की परिभाषा को भी लांघता होगा।
प्रश्न 7.लेखक के मुअनजोदड़ो की नगर योजना की तुलना आज के नगरों से किस प्रकार की है?उत्तर:नगर नियोजन की मोहनजोदड़ो अनूठी मिसाल है; इस कथन का मतलब आप बड़े चबूतरे से नीचे की तरफ देखते हुए सहज ही भाँप सकते हैं। इमारतें भले खंडहरों में बदल चुकी हों, मगर शहर की सड़कों और गलियों के विस्तार को स्पष्ट करने के लिए ये खंडहर काफ़ी हैं। यहाँ की कमोबेश सारी सड़कें सीधी हैं या फिर आड़ी। आज वास्तुकार इसे ‘ग्रिड प्लान’ कहते हैं। आज की सेक्टर-मार्का कॉलोनियों में हमें आड़ा-सीधा ‘नियोजन’ बहुत मिलता है। लेकिन वह रहन-सहन को नीरस बनाता है। शहरों में नियोजन के नाम पर भी हमें अराजकता ज़्यादा हाथ लगती है। ब्रासीलिया या चंडीगढ़ और इस्लामाबाद ‘ग्रिड’ शैली के शहर हैं जो आधुनिक नगर नियोजन के प्रतिमान ठहराए जाते हैं, लेकिन उनकी बसावट शहर के खुद विकास करने का कितना अवकाश छोड़ती है इस पर बहुत शंका प्रकट की जाती है।
प्रश्न 8.महाकुंड के विषय में बताइए। यहाँ की जल निकासी व्यवस्था कैसी थी?उत्तर:महाकुंड स्तूप के टीले से नीचे उतरने पर मिलता है। धरोहर के प्रबंधकों ने गली का नाम दैव मार्ग रखा है। माना जाता है कि उस सभ्यता में सामूहिक स्नान किसी अनुष्ठान का अंग होता था। कुंड करीब चालीस फुट लंबा और पच्चीस फुट चौड़ा है। गहराई सात फुट। कुंड में उत्तर और दक्षिण से सीढ़ियाँ उतरती हैं। इसके तीन तरफ साधुओं के कक्ष बने हुए हैं। उत्तर में दो पांत में आठ स्नानघर हैं। इनमें किसी का द्वार दूसरे के सामने नहीं खुलता। सिद्ध वास्तुकला का यह भी एक नमूना है। इस कुंड में खास बात पक्की ईंटों का जमाव है।
कुंड का पानी रिस न सके और बाहर का ‘अशुद्ध पानी कुंड में न आए, इसके लिए कुंड के तल में और दीवारों पर ईंटों के बीच चूने और चिरोड़ी के गारे का इस्तेमाल हुआ है। पाश्र्व की दीवारों के साथ दूसरी दीवार खड़ी की गई है जिसमें सफ़ेद डामर का प्रयोग है। कुंड के पानी के बंदोबस्त के लिए एक तरफ कुआँ है। दोहरे घेरे वाला यह अकेला कुआँ है। इसे भी कुंड के पवित्र या आनुष्ठानिक होने का प्रमाण माना गया है। कुंड से पानी को बाहर बहाने के लिए नालियाँ हैं। इनकी खासियत यह है कि ये भी पक्की ईंटों से बनी हैं और ईंटों से ढकी भी हैं।
प्रश्न 9.मुअनजोदड़ो के कृषि उत्पादों तथा उद्योग के विषय में बताइए।उत्तर:विद्वानों का मानना है कि यहाँ ज्वार, बाजरा और रागी की उपज भी होती थी। लोग खजूर, खरबूजे और अंगूर उगाते थे। झाड़ियों से बेर जमा करते थे। कपास की खेती भी होती थी। कपास को छोड़कर बाकी सबके बीज मिले हैं और उन्हें परखा गया है। कपास के बीज तो नहीं, पर सूती कपड़ा मिला है। ये दुनिया में सूत के दो सबसे पुराने नमूनों में एक है। दूसरा सूती कपड़ा तीन हज़ार ईसा पूर्व का है जो जॉर्डन में मिला। मुअनजोदड़ो में सूत की कताई-बुनाई के साथ रंगाई भी होती थी। रंगाई का एक छोटा कारखाना खुदाई में माधोस्वरूप वत्स को मिला था। छालटी (लिनन) और ऊपन कहते हैं। यहाँ सुमेर से आयात होते थे। शायद सूत उनको निर्यात होता हो। बाद में सिंध से मध्य एशिया और यूरोप को सदियों तक हुआ। प्रसंगवश, मेसोपोटामिया के शिलालेखों में मोहनजोदड़ो के लिए ‘मेलुहा’ शब्द का संभावित प्रयोग मिलता है।
प्रश्न 10.‘मुअनजोदड़ो’ के उत्खनन से प्राप्त जानकारियों के आधार पर सिंधु सभ्यता की विशेषताओं पर एक लेख लिखिए। (CBSE-2009, 2016)उत्तर:‘मुअनजोदड़ो’ के उत्खनन से प्राप्त जानकारियों के आधार पर सिंधु सभ्यता की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
सिंधु सभ्यता के नगरों की सड़कें समकोण पर काटती थीं। वे खुली व साफ़ थी।
यहाँ सामूहिक स्नानागार मिले हैं।
‘यहाँ पानी की निकासी की उत्तम व्यवस्था थी, नालियाँ पक्की व ढकी हुई थी।
यहाँ खेती व व्यापार के प्रमाण मिले हैं।
हर नगर में अनाज भंडार घर की व्यवस्था थी।
मुहरों पर उत्कीर्ण कलाकृतियाँ, आभूषण, सुघड़ अक्षरों की लिपि आदि से कलात्मक उत्कृष्टता का पता चलता है।
हर नगर में अनाज भंडार घर की व्यवस्था थी।
नगर सुनियोजित थे।
प्रश्न 11.पर्यटक मुअनजोदड़ो में क्या-क्या देख सकते हैं? ‘अतीत में दबे पाँव’ पाठ के आधार पर वर्णन कीजिए।उत्तर:पर्यटक मुअनजोदड़ो में निम्नलिखित चीजें देख सकते हैं
बौद्ध स्तूप – मुअनजोदड़ो में सबसे ऊँचे चबूतरे पर बड़ा बौद्ध स्तूप है। यह स्तूप मुअनजोदड़ो के बिखरने के बाद बना था। 25 फुट ऊँचे चबूतरे पर बना है। इसमें भिक्षुओं के रहने के कमरे भी बने हैं।
स्नानागार – यहाँ पर 40 फुट लंबा तथा 25 फुट चौड़ा कुंड बना हुआ है। यह सात फुट गहरा है। कुंड के उत्तर और दक्षिण से सीढ़ियाँ उतरती हैं। उत्तर में आठ स्नानागार एक पंक्ति में हैं। इसमें एक तरफ तीन कक्ष हैं।
अजायबघर – यहाँ का अजायबघर छोटा ही है। यहाँ काला पड़ गया गेहूँ, ताँबे और काँसे के बर्तन, मुहरें, वाद्य, चाक पर बने विशाल मृद्भांड, दीये, ताँबे का आईना, दो पाटन वाली चक्की आदि रखे हैं।
प्रश्न 12.‘अतीत में दबे पाँव’ पाठ के आधार पर शीर्षक की सार्थकता सिद्ध कीजिए। (सैंपल पेपर-2012)उत्तर:इस पाठ में लेखक ने मुअनजोदड़ो की यात्रा के समय के अपने अनुभवों के विषय में बताया है। लेखक यहाँ पर पहुँचकर पुराने सुनियोजित शहर की एक-एक चीज का सिलसिलेवार परिचय करवाता है। वह उस सभ्यता के अतीत में झाँककर वहाँ के निवासियों और क्रियाकलापों को अनुभव करता है। यहाँ की सड़कें, नालियाँ, स्तूप, स्नानागार, सभागार, अन्न भंडार, कुएँ, आदि के अलावा मकानों की सुव्यवस्था को देखकर लेखक महसूस करता है कि लोग अब भी वहाँ मौजूद हैं। उसे बैलगाड़ियों की ध्वनि सुनाई देती हैं। रसोई घर की खिड़की से झाँकने पर वहाँ पक रहे भोजन की गंध आती है। लेखक कल्पना करता है कि यदि यह सभ्यता नष्ट न हुई होती तो आज भारत महाशक्ति बन चुका होता। यह शीर्षक सर्वथा उपयुक्त है।
निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 13.‘अतीत में दबे पाँव’ पाठ में सिंधु सभ्यता के सबसे बड़े नगर ‘मुअनजोदड़ो’ की नगर योजना आज की नगर योजनाओं से किस प्रकार बेहतर थी? उदाहरण देते हुए लिखिए। (सैंपल पेपर-2015)उत्तर:इस पाठ में लेखक के वर्णन से पता चलता है कि सिंधु सभ्यता के सबसे बड़ नगर मुअनजोदड़ो की नगरयोजना अपने आप में अनूठी थी। यह आधुनिक नगरों से भिन्न थी। आजकल के नगरों की योजना में फैलाव की गुंजाइश बहुत कम होती है। एक विस्तार के बाद नगर योजना असफल साबित होती है। ‘मुअनजोदड़ो’ की नगर योजना की निम्नलिखित विशेषताएँ थीं
यहाँ सड़कें चौड़ी व समकोण पर काटती थी।
जल निकासी की व्यवस्था उत्तम थी।
मकानों के दरवाजे मुख्य सड़क पर नहीं खुलते थे।
सड़क के दोनों ओर ढकी हुई नालियाँ मिलती थीं।
हर जगह एक ही प्रकार की ईंटों का प्रयोग किया जाता था।
हर घर में एक स्नानघर होता था।
कुएँ पकी हुई एक ही आकार की ईंटों से बने हैं। यह पहली संस्कृति है जो कुएँ खोदकर भूजल तक पहुँची थी।
प्रश्न 14.सिंधु घाटी की सभ्यता को जलसभ्यता कहने का प्रमाण प्रस्तुत करते हुए बताइए कि वर्तमान में जल संरक्षण क्यों आवश्यक हो गया है?उत्तर:सिंधु घाटी में जल की व्यवस्था अति उत्तम थी। यहाँ पर कुएँ पकी हुई एक ही आकार की ईंटों से बने हैं। इतिहासकारों का मानना है कि यह सभ्यता संसार में पहली ज्ञात संस्कृति है जो कुएँ खोदकर भूजल तक पहुँची। यहाँ लगभग सात सौ कुएँ थे। इसके अतिरिक्त स्नानागार की व्यवस्था हर घर में है। पानी के रिसाव को रोकने का उत्तम प्रबंध था। जल निकासी के लिए नालियाँ व नाले बने हुए थे जो ढके हुए थे। इस तरह सिंधु सभ्यता में जल संरक्षण पर उचित ध्यान दिया गया था। वर्तमान समय में पूरी दुनिया में जल संकट का हाहाकार मचा हुआ है। लातूर, राजस्थान आदि क्षेत्रों के संकट से हर कोई परिचित है। जल संकट के प्रमुख कारण जनसंख्या वृधि व अनियोजित जल संरक्षण प्रणाली है। जल की कमी नहीं है, परंतु उसका वितरण सही नहीं है। जल संरक्षण के लिए निम्नलिखित उपाय हैं –
पानी को दूषित होने से बचाने के उपाय करने चाहिए।
पानी का दुरुपयोग विशेषकर उसका समुचित वितरण करना चाहिए।
वर्षा के जल के उचित भंडारण की व्यवस्था हो।
अधिकाधिक वृक्षारोपण करना चाहिए।
नदी-नालों, तालाबों को प्रदूषण मुक्त रखना चाहिए।
प्रश्न 15.आधुनिक विकास ने प्राचीन शहरी निर्माण व्यवस्था को हाशिए पर ला दिया है। इससे अनेक सामाजिक मूल्यों का ह्रास हुआ है। पाठ के आधार पर चर्चा कीजिए।उत्तर:आधुनिक शहर ब्रासीलिया, चंडीगढ़, इस्लामाबाद आदि शहर ग्रीड शैली में विकसित किए गए हैं। ये आधुनिक प्रतिमान माने गए हैं, परंतु इन शहरों में स्वयं को विकसित करने की क्षमता नहीं है। ये एकाकीपन को बढ़ावा देते हैं। कंक्रीट के जंगल बन गए हैं, हर तरफ भव्यता दिखाई देती है, तकनीक का कमाल देखकर आम व्यक्ति भ्रमित हो जाता है, परंतु वह सहज जीवन नहीं जी पाता। चमक-चमक में पुराने मूल्यों को भूल जाता है। नियोजन के नाम पर सामाजिकता को नष्ट कर दिया जाता है।
विकसित देश तकनीक, आदि के नाम पर पुराने शहरों की निर्माण पद्धति को पिछड़ापन करार देते हैं। पुराने शहर जल की निकासी, जल प्रबंधन, पर्यावरण व मानवीय संबंधों को देखते हुए विकसित हुए हैं। आज नए तरीके के शहर प्रकृति के साथ छेड़छाड़ के साथ करते हैं। परिणामतः बाढ़, सूखा, तापमान में बढ़ोतरी, प्रदूषण आदि से जूझना पड़ रहा है।
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bestonlinegk · 4 years
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भारत में सरकारी योजनाएँ
Contents
•         अटल पेंशन योजना
•         अन्त्योदय अन्न योजना
•         आधार कार्ड
•         आयुष्मान भारत योजना
•         इंदिरा गांधी मातृत्व सहयोग योजना
•         उजाला योजना
•         उदय (योजना)
•         ऐंकर
•         किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना
•         जननी सुरक्षा योजना
•         जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण योजना
•         जूनियर साइंस टैलेंट सर्च परीक्षा
•         डिजिटल लॉकर
•         दिल्ली मुंबई औद्योगिक गलियारा परियोजना
•         दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना
•         दोपहर भोजन योजना
•         निर्मल भारत अभियान
•         प्रधान मंत्री उज्ज्वला योजना
•         प्रधानमंत्री आवास योजना
•         प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि
•         प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना
•         प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना
•         प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना
•         प्रधानमंत्री ग्रामीण विकास अध्येतावृत्ति योजना
•         प्रधानमंत्री जन धन योजना
•         प्रधानमंत्री जन-औषधि योजना
•         प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना
•         प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना
•         प्रधानमंत्री मुद्रा योजना
•         प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान
•         प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना
•         बालबंधु योजना
•         भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण
•         महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम
•         मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता
•         मिशन इंद्रधनुष अभियान
•         मेक इन इंडिया
•         मौलाना आजाद राष्ट्रीय छात्रवृति योजना
•         राजीव गाँधी किशोरी सशक्तिकरण योजना
•         राष्ट्रीय ई-शासन योजना
•         राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान
•         राष्ट्रीय कुष्ठ रोग उन्मूलन कार्यक्रम
•         राष्ट्रीय कैडेट कोर
•         राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल योजना
•         राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, 2005
•         राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन
•         राष्ट्रीय पेंशन प्र��ाली
•         राष्ट्रीय प्रशिक्षुता संवर्धन योजना
•         राष्ट्रीय साक्षरता मिशन
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•         वाल्मीकि अम्बेडकर मलिन बस्ती आवास योजना (वाम्बे)
•         समन्वित बाल विकास योजना
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•         सांसद आदर्श ग्राम योजना
•         साखमय अनुदान योजना
•         सुकन्या समृद्धि
•         स्मार्ट इंडिया हैकथॉन 2017
•         स्वच्छ भारत अभियान
•         स्वयंसिद्धा
•         स्वस्थ भारत यात्रा
•         स्वाधार
•         हाथी परियोजना
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narps2 · 4 years
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नीच इंसान
एक 15 साल की हथिनी थी जो कि गर्भवती भी थी। भूख से बहुत व्याकुल थी और जंगल मे उसकी भूख मिट नही पा रही थी इसीलिए वो भूखी हथिनी इंसानो की बस्ती के पास पेट की भूख मिटाने के लिए आयी। इस उम्मीद से कि शायद इंसानो द्वारा उसे खाने को कुछ मिल सके। वैसे तो हाथी और इंसान का रिश्ता सदियों पुराना है। अधिकतर इंसान हाथी को ईश्वर का प्रतीक भी मानते है।
पर इंसान भी इंसान ही होते है जो कि दोस्ती ,एहसानों के नाम…
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