#सौभाग्य का पुत्र
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helpukiranagarwal · 1 year ago
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वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥
सभी देवताओं में श्रेष्ठ, ज्ञान, समृद्धि और सौभाग्य के देवता तथा माता पार्वती के प्रिय पुत्र श्री गणेश जी के जन्मोत्सव के पावन पर्व गणेश चतुर्थी की समस्त देश एवं प्रदेश वासियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ।
शुभकर्ता, रिद्धि-सिद्धि के दाता, भगवान श्री गणेश आप सभी को सुख, शांति, समृद्धि व आरोग्य का आशीष प्रदान करें ।
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helputrust · 1 year ago
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वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥
सभी देवताओं में श्रेष्ठ, ज्ञान, समृद्धि और सौभाग्य के देवता तथा माता पार्वती के प्रिय पुत्र श्री गणेश जी के जन्मोत्सव के पावन पर्व गणेश चतुर्थी की समस्त देश एवं प्रदेश वासियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ।
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drrupal-helputrust · 1 year ago
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वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥
सभी देवताओं में श्रेष्ठ, ज्ञान, समृद्धि और सौभाग्य के देवता तथा माता पार्वती के प्रिय पुत्र श्री गणेश जी के जन्मोत्सव के पावन पर्व गणेश चतुर्थी की समस्त देश एवं प्रदेश वासियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ।
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helputrust-drrupal · 1 year ago
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वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥
सभी देवताओं में श्रेष्ठ, ज्ञान, समृद्धि और सौभाग्य के देवता तथा माता पार्वती के प्रिय पुत्र श्री गणेश जी के जन्मोत्सव के पावन पर्व गणेश चतुर्थी की समस्त देश एवं प्रदेश वासियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ।
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helputrust-harsh · 1 year ago
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वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥
सभी देवताओं में श्रेष्ठ, ज्ञान, समृद्धि और सौभाग्य के देवता तथा माता पार्वती के प्रिय पुत्र श्री गणेश जी के जन्मोत्सव के पावन पर्व गणेश चतुर्थी की समस्त देश एवं प्रदेश वासियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ।
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dushyantpratapsingh · 2 months ago
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*सात्यकि*
द्वापर युग के ऐसे अजेय योद्धा थे जिनके सामने शत्रु सेना घुटने टेक देती थी, उस कालखंड के बड़े बड़े महारथी वसुदेव कृष्ण और बलभद्र के इस शिष्य के सामने झुक जाते थे, कदाचित प्रभु श्री कृष्ण और शेषावतार बलराम के अलावा सात्यकि ही द्वापर के ऐसे योद्धा थे जो अविजित रहे, सतयुग, त्रेतायुग व द्वापर में ईश्वरीय अवतारों के अलावा ये परम सौभाग्य सात्यकि को ही प्राप्त है, हमारी युग गाथाओं में सात्यकि का वर्णन उतना नहीं मिलता जिसके वे अधिकारी है अनुसंधान व आत्मसाक्षात्कार के वक्त इस महान महारथी की वीरता आपके रोंगटे खड़े कर देती है, शाल्व, शल्य, विरुपाक्ष, गंगापुत्र भीष्म, सूर्यपुत्र कर्ण, द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा, कृपाचार्य, दुर्योधन, अलम्बुश जैसे योद्धाओं को परास्त करने वाले इस वीर की निष्ठा सिर्फ अपने प्रभु केशव और दाऊ के लिए थी। प्रभु श्री कृष्ण उनकी सारी दुनिया थे और उतना ही प्रेम और भरोसा कृष्ण को सात्यकि पर था। हां एक और शख्स था जो सात्यकि के दिल में रहता था वो था सुभद्रा पुत्र अभिमन्यु। इस सत्य को कोई नहीं झुठला स��ता कि अगर महाभारत में सात्यकि और अभिमन्यु ना लडे होते तो शायद इतिहास कुछ और ही होता। जानिए द्वापर के इस महान योद्धा को और करीब से, जल्द आ रही एक शानदार गाथा " सात्यकि द्वापर का अजेय योद्धा ".
लेखक : दुष्यंत प्रताप सिंह
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astrovastukosh · 11 months ago
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*🌞~ आज दिनांक - 22 फरवरी 2024* का वैदिक हिन्दू पंचांग ~🌞*
*⛅दिन - गुरूवार*
*⛅विक्रम संवत् - 2080*
*⛅अयन - उत्तरायण*
*⛅ऋतु - वसंत*
*⛅मास - माघ*
*⛅पक्ष - शुक्ल*
*⛅तिथि - त्रयोदशी दोपहर 01:21 तक तत्पश्चात चतुर्दशी*
*⛅नक्षत्र - पुष्य शाम 04:43 तक तत्पश्चात अश्लेषा*
*⛅योग - सौभाग्य दोपहर 12:13 तक तत्पश्चात शोभन*
*⛅राहु काल - दोपहर 02:20 से 03:46 तक*
*⛅सूर्योदय - 07:07*
*⛅सूर्यास्त - 06:39*
*⛅दिशा शूल - दक्षिण*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:28 से 06:18 तक*
*⛅निशिता मुहूर्त - रात्रि 12:28 से 01:18 तक*
*⛅अभिजीत मुहूर्त - दोपहर 12:30 से 01:16 तक*
*⛅व्रत पर्व विवरण - दिनत्रय व्रत, गुरुपुष्यामृत योग*
*⛅विशेष - त्रयोदशी को बैंगन खाने से पुत्र का नाश होता है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
*चतुर्दशी के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)*
*🌹22 फरवरी 2024 : गुरुपुष्यामृत योग*
*🔸पूण्य काल - 22 फरवरी सूर्योदय से शाम 04:43 तक*
*🌹गुरुपुष्यामृत योग में किया गया जप, ध्यान, दान, पुण्य महाफलदायी होता है ।*
*🌹 दिनत्रय व्रत 🌹*
*🔸माघ शुक्ल त्रयोदशी से माघी पूर्णिमा तक*
*22 फरवरी से 24 फरवरी तक*
*🌹 माघ मास में सभी दिन अगर कोई स्नान ना कर पाए तो त्रयोदशी, चौदस और पूनम ये तीन दिन सुबह सूर्योदय से पूर्व स्नान कर लेने से पूरे माघ मास के स्नान के पुण्यो की प्राप्ति होती है ।*
*🌹 सकाम भावना से माघ महीने का स्नान करने वाले को मनोवांछित फल प्राप्त होता है लेकिन निष्काम भाव से कुछ नही चाहिए खाली भागवत प्रसन्नता, भागवत प्राप्ति के लिए माघ का स्नान करता है, तो उसको भगवत प्राप्ति में भी बहुत-बहुत आसानी होती है ।*
*🌹 ‘पद्म पुराण’ के उत्तर खण्ड में माघ मास के माहात्म्य का वर्णन करते हुए कहा गया है कि व्रत, दान व तपस्या से भी भगवान श्रीहरि को उतनी प्रसन्नता नहीं होती, जितनी माघ मास में ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नानमात्र से होती है ।*
*🌹 इन तीन दिन विष्णु सहस्रनाम पाठ और गीता का पाठ भी अत्यंत प्रभावशाली और पुण्यदायी है ।*
*🌹 माघ मास का इतना प्रभाव है की सभी जल गंगा जल के तीर्थ पर्व के समान हैं । पुष्कर, कुरुक्षेत्र, काशी, प्रयाग में 10 वर्ष पवित्र शौच, संतोष आदि नियम पालने से जो फल मिलता है माघ मास में 3 दिन स्नान करने से वो मिल जाता है, खाली ३ दिन । माघ मास प्रात:स्नान सब कुछ देता है । आयु, आरोग्य, रूप, बल, सौभाग्य, सदाचरण देता है ।*
*🌹 अतः माघ मास की त्रयोदशी से (22 फरवरी से 24 फरवरी 2024) पूर्णिमा तक सूर्योदय से पूर्व स्नान ,विष्णु सहस्रनाम और श्रीमद भागवत गीता का पाठ विशेषतः करें और लाभ लें ।"*
*🔸स्नान कैसे करना चाहिये ??🔸*
*🔹 जहाँ से प्रवाह आता हो वहाँ पहले सिर की डुबकी मारें । घर में भी स्नान करे तो पहले जल सिर पर डालें.... पैरों पर पहले नहीं डालना चाहिए । शीतल जल सिर को लगने से सिर की गर्मी पैरों के तरफ जाती है ।*
*🔹और जहाँ जलाशय है, स्थिर जल है वहाँ सूर्य पूर्वमुखी होकर स्नान करें ।*
*🔹घर में स्नान करें तो उस बाल्टी के पानी में जौ और तिल अथवा थोड़ा गोमूत्र अथवा तिर्थोद्क पहले (गंगाजल आदि) डाल कर फिर बाल्टी भरें तो घर में भी तीर्थ स्नान माना ��ायेगा*
*🔸माघ मास के विशेष लाभकारी अंतिम ३ दिन🔸*
*🔹त्रिवेणी त्रिदोष से मुक्त कर देती है । तीन अवस्थाओं – जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति में जो बंधन और आकर्षण है उससे भी मुक्त कर देती है, त्रिवेणी का स्नान ऐसा है । एक मास इन्द्रिय – संयमपूर्वक प्रयाग-स्नान सभी पापों से मुक्ति देता है और फिर वह माघ में हो तो और विशेष फलदायी है ।*
*🔹किसी कारण से एक मास नहीं भी कर सके, वार्धक्य है, ठंडी नहीं सह सकते तो त्रयोदशी से माघी पूर्णिमा तक ३ दिन स्नान कर लें तब भी चित्त शुद्ध, पवित्र हो जाता है और पवित्र, शुद्ध चित्त की पहचान है कि ह्रदय में निर्विकारी नारायण का आनंद आने लगे ।*
*
जय सनातन धर्म की
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jharexpress · 1 year ago
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Karva Chauth 2023: तिथि, शुभ मुहूर्त, चंद्रोदय का समय, विधि
Karva Chauth 2023 : करवा चौथ 2023: तिथि (puja time), शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व, कथा, सरगी, जानिए आपके शहर में चंद्रोदय का समय (moon time) ??
करवा चौथ(Karva Chauth 2023) हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है, जो कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। यह एक प्रमुख पर्व है जो विवाहित महिलाएं अपने पति की लम्बी आयु और सुरक्षा की कामना करती हैं। इस व्रत में महिलाएं करवा चौथ की पूजा और उपवास करती हैं तथा चंद्रमा के दर्शन के बाद ही उपवास को खोलती हैं। यह पर्व हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, गुजरात, राजस्थान आदि राज्यों में धूमधाम से मनाया जाता है।
Karva Chauth 2023: करवा चौथ की पूजा के शुभ मुहूर्त
Karva Chauth 2023: करवा चौथ के उपवास के लाभ
करवा चौथ का व्रत रखने से महिलाओं को निम्नलिखित लाभ मिलते हैं:
Karva Chauth 2023: करवा चौथ की तिथि
हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि (puja time) को करवा चौथ का व्रत रखा जाता है। इस बार करवा चौथ का व्रत 1 नवंबर 2023, बुधवार को रखा जाएगा।
Karva Chauth 2023: करवा चौथ पर चंद्रोदय का समय
करवा चौथ पर चंद्रोदय का समय स्थान के अनुसार अलग-अलग होता है। कुछ प्रमुख शहरों में चंद्रोदय का समय (moon time) निम्नलिखित है:
करवा चौथ की पूजा विधि
करवा चौथ की पूजा विधि निम्नलिखित है:
करवा चौथ का महत्व
करवा चौथ एक हिंदू त्योहार है जो विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी आयु और सुख समृद्धि के लिए मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं सुबह से लेकर चंद्रोदय तक निर्जला व्रत रखती हैं। चंद्रोदय के बाद महिलाएं चंद्रमा को अर्घ्य देकर अपना व्रत खोलती हैं।
करवा चौथ के महत्व के बारे में कुछ विशेष बातें
करवा चौथ (Karva Chauth 2023) व्रत का हिन्दू संस्कृति में विशेष महत्त्व है। इस दिन पति की लम्बी उम्र के पत्नियां पूर्ण श्रद्धा से निर्जला व्रत रखती है। कार्तिक मास की चतुर्थी को करवा चौथ का त्योहार मनाया जाता है । इस साल एक नवंबर को करवा चौथ का ��्रत रखा जा रहा है । दरअसल, इस साल कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 31 अक्टूबर मंगलवार रात 9 बजकर 30 मिनट से शुरू होकर एक नवंबर रात 9 बजकर 19 मिनट तक है । ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, करवा चौथ का व्रत बुधवार यानि  1 नवंबर को रखा जायेगा।
1 नवंबर को चन्द्रमाम(MOON) अपनी उच्च राशि वृषभ में होंगे। इसी के साथ मंगल, बुध और सूर्य तुला राशि में हैं। सूर्य और बुध बुधादित्य योग बना रहे हैं तो मंगल और सूर्य मिलकर मंगलादित्य योग बना रहे हैं। शनि भी 30 साल बाद अपनी मूलत्रिकोण राशि कुंभ में योग बना रहे हैं। इस दिन शिवयोग मृगशिरा नक्षत्र और बुधादित्य योग का संगम रहेगा। शिव योग शिव को समर्पित, मृगशिरा नक्षत्र मंगल को समर्पित, बुधादित्य योग यश और ज्ञान का प्रतीक माना गया है। इन योगों से पर्व का महत्व हजारों गुना बढ़ गया है।
Karva Chauth 2023: करवा चौथ का महात्म्य
छांदोग्य उपनिषद् के अनुसार चंद्रमा में पुरुष रूपी ब्रह्मा की उपासना करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। इससे जीवन में किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होता है। साथ ही साथ इससे लंबी और पूर्ण आयु की प्राप्ति होती है। करवा चौथ के व्रत में शिव, पार्वती, कार्तिकेय, गणेश तथा चंद्रमा का पूजन करना चाहिए। चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर पूजा होती है। पूजा के बाद मिट्टी के करवे में चावल,उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री रखकर सास अथवा सास के समकक्ष किसी सुहागिन के पांव छूकर सुहाग सामग्री भेंट करनी चाहिए।
महाभारत से संबंधित पौराणिक कथा के अनुसार पांडव पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी पर्वत पर चले जाते हैं। दूसरी ओर बाकी पांडवों पर कई प्रकार के संकट आन पड़ते हैं। द्रौपदी भगवान श्रीकृष्ण से उपाय पूछती हैं। वह कहते हैं कि यदि वह कार्तिक कृष्ण चतुर्थी के दिन करवाचौथ का व्रत करें तो इन सभी संकटों से मुक्ति मिल सकती है। द्रौपदी विधि विधान सहित करवाचौथ (Karva Chauth) का व्रत रखती है जिससे उनके समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं। इस प्रकार की कथाओं से करवा चौथ का महत्त्व हम सबके सामने आ जाता है।
सरगी का महत्त्व
करवा चौथ (Karva Chauth 2023) में सरगी का काफी महत्व है। सरगी सास की तरफ से अपनी बहू को दी जाती है। इसका सेवन महिलाएं करवाचौथ के दिन सूर्य निकलने से पहले तारों की छांव में करती हैं। सरगी के रूप में सास अपनी बहू को विभिन्न खाद्य पदार्थ एवं वस्त्र इत्यादि देती हैं। सरगी, सौभाग्य और समृद्धि का रूप होती है। सरगी के रूप में खाने की वस्तुओं को जैसे फल, मीठाई आदि को व्रती महिलाएं व्रत वाले दिन सूर्योदय से पूर्व प्रात: काल में तारों की छांव में ग्रहण करती हैं। तत्पश्चात व्रत आरंभ होता है। अपने व्रत को पूर्ण करती हैं।
महत्त्व के बाद बात आती है कि कर��ा चौथ की पूजा विधि क्या है? किसी भी व्रत में पूजन विधि का बहुत महत्त्व होता है। अगर सही विधि पूर्वक पूजा नहीं की जाती है तो इससे पूरा फल प्राप्त नहीं हो पाता है। वैसे अलग अलग क्षेत्र में ये पूजा अलग अलग विधि विधान से की जाती है । कहीं कहीं इसे गणेश चौथ के नाम से भी मनाया जाता है ।
करवा चौथ (Karva Chauth 2023) को लेकर कई तरह की कथाएं प्रचलित हैं । आइए जानते कुछ प्रमुख कथाओं के बारे में –
प्रथम कथा
बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहाँ तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी। शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ (Karva Chauth) का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्‍य देकर ही खा सकती है। चूँकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है।
सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चाँद उदित हो रहा हो।
इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चाँद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चाँद को देखती है, उसे अर्घ्‍य देकर खाना खाने बैठ जाती है।
वह पहला टुकड़ा मुँह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुँह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बौखला जाती है।
उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ ? करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है।
सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है।
एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियाँ करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियाँ उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी ��े 'यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो' ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है।
इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूँकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह के वह चली जाती है। सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है।
अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अँगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुँह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है। हे श्री गणेश माँ गौरी जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का वरदान आपसे मिला है, वैसा ही सब सुहागिनों को मिले।
Karva Chauth 2023: करवाचौथ की द्वितीय कथा
इस कथा का सार यह है कि शाकप्रस्थपुर वेदधर्मा ब्राह्मण की विवाहिता पुत्री वीरवती ने करवा चौथ का व्रत किया था। नियमानुसार उसे चंद्रोदय के बाद भोजन करना था, परंतु उससे भूख नहीं सही गई और वह व्याकुल हो उठी। उसके भाइयों से अपनी बहन की व्याकुलता देखी नहीं गई और उन्होंने पीपल की आड़ में आतिशबाजी का सुंदर प्रकाश फैलाकर चंद्रोदय दिखा दिया और वीरवती को भोजन करा दिया।
परिणाम यह हुआ कि उसका पति तत्काल अदृश्य हो गया। अधीर वीरवती ने बारह महीने तक प्रत्येक चतुर्थी को व्रत रखा और करवा चौथ के दिन उसकी तपस्या से उसका पति पुनः प्राप्त हो गया।
Karva Chauth 2023: करवा चौथ की तृतीय कथा
एक समय की बात है कि एक करवा नाम की पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ नदी के किनारे के गाँव में रहती थी। एक दिन उसका पति नदी में स्नान करने गया। स्नान करते समय वहाँ एक मगर ने उसका पैर पकड़ लिया। वह मनुष्य करवा-करवा कह के अपनी पत्नी को पुकारने लगा।
उसकी आवाज सुनकर उसकी पत्नी करवा भागी चली आई और आकर मगर को कच्चे धागे से बाँध दिया। मगर को बाँधकर यमराज के यहाँ पहुँची और यमराज से कहने लगी- हे भगवन! मगर ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया है। उस मगर को पैर पकड़ने के अपराध में आप अपने बल से नरक में ले जाओ।
यमराज बोले- अभी मगर की आयु शेष है, अतः मैं उसे नहीं मार सकता। इस पर करवा बोली, अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो मैं आप को श्राप देकर नष्ट कर दूँगी। सुनकर यमराज डर गए और उस पतिव्रता करवा के साथ आकर मगर को यमपुरी भेज दिया और करवा के पति को दीर्घायु दी। हे करवा माता! जैसे तुमने अपने पति की रक्षा की, वैसे सबके पतियों की रक्षा करना।
Karva Chauth 2023: करवाचौथ की चौथी कथा
एक बार पांडु पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी नामक पर्वत पर गए। इधर द्रौपदी बहुत परेशान थीं। उनकी कोई खबर न मिलने पर उन्होंने कृष्ण भगवान का ध्यान किया और अपनी चिंता व्यक्त की। कृष्ण भगवान ने कहा- बहना, इसी तरह का प्रश्न एक बार माता पार्वती ने शंकरजी से किया था।
पूजन कर चंद्रमा को अर्घ्‍य देकर फिर भोजन ग्रहण किया जाता है। सोने, चाँदी या मिट्टी के करवे का आपस में आदान-प्रदान किया जाता है, जो आपसी प्रेम-भाव को बढ़ाता है। पूजन करने के बाद महिलाएँ अपने सास-ससुर एवं बड़ों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लेती हैं।
तब शंकरजी ने माता पार्वती को करवा चौथ का व्रत बतलाया। इस व्रत को करने से स्त्रियाँ अपने सुहाग की रक्षा हर आने वाले संकट से वैसे ही कर सकती हैं जैसे एक ब्राह्मण ने की थी। प्राचीनकाल में एक ब्राह्मण था। उसके चार लड़के एवं एक गुणवती लड़की थी।
एक बार लड़की मायके में थी, तब करवा चौथ का व्रत पड़ा। उसने व्रत को विधिपूर्वक किया। पूरे दिन निर्जला रही। कुछ खाया-पीया नहीं, पर उसके चारों भाई परेशान थे कि बहन को प्यास लगी होगी, भूख लगी होगी, पर बहन चंद्रोदय के बाद ही जल ग्रहण करेगी।
भाइयों से न रहा गया, उन्होंने शाम होते ही बहन को बनावटी चंद्रोदय दिखा दिया। एक भाई पीपल की पेड़ पर छलनी लेकर चढ़ गया और दीपक जलाकर छलनी से रोशनी उत्पन्न कर दी। तभी दूसरे भाई ने नीचे से बहन को आवाज दी- देखो बहन, चंद्रमा निकल आया है, पूजन कर भोजन ग्रहण करो। बहन ने भोजन ग्रहण किया।
भोजन ग्रहण करते ही उसके पति की मृत्यु हो गई। अब वह दुःखी हो विलाप करने लगी, तभी वहाँ से रानी इंद्राणी निकल रही थीं। उनसे उसका दुःख न देखा गया। ब्राह्मण कन्या ने उनके पैर पकड़ लिए और अपने दुःख का कारण पूछा, तब इंद्राणी ने बताया- तूने बिना चंद्र दर्शन किए करवा चौथ का व्रत तोड़ दिया इसलिए यह कष्ट मिला। अब तू वर्ष भर की चौथ का व्रत नियमपूर्वक करना तो तेरा पति जीवित हो जाएगा। उसने इंद्राणी के कहे अनुसार चौथ व्रत किया तो पुनः सौभाग्यवती हो गई। इसलिए प्रत्येक स्त्री को अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत करना चाहिए। द्रोपदी ने यह व्रत किया और अर्जुन सकुशल मनोवांछित फल प्राप्त कर वापस लौट आए। तभी से हिन्दू महिलाएँ अपने अखंड सुहाग के लिए करवा चौथ व्रत करती हैं। सायं काल में चंद्रमा के दर्शन करने के बाद ही पति द्वारा अन्न एवं जल ग्रहण करें। पति, सास-ससुर सब का आशीर्वाद लेकर व्रत को समाप्त करें।
पूजा एवं चन्द्र को अर्घ्य देने का मुहूर्त
कार्ति�� कृष्ण चतुर्थी (Karva Chauth) 1 नवम्बर को करवा चौथ पूजा मुहूर्त- सायं 05:35 से 06:55 बजे तक।
चंद्रोदय- 20:06 मिनट पर।
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ - 31 अक्टूबर को रात���रि 09:30 बजे से।
चतुर्थी तिथि समाप्त - 01 नवम्बर को रात्रि 09:19 बजे।
इस साल 13 घंटे 26 मिनट का समय व्रत के लिए है। ऐसे में महिलाओं को सुबह 6 बजकर 40 मिनट से शाम 08 बजकर 06 मिनट तक करवा चौथ का व्रत रखना होगा।
करवा चौथ के दिन चन्द्र को अर्घ्य देने का समय रात्रि 8:07 बजे से 8:55 तक है।
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार करवा चौथ के दिन शाम के समय चन्द्रमा को अर्घ्य देकर ही व्रत खोला जाता है।
चंद्रदेव को अर्घ्य देते समय इस मंत्र का जप अवश्य करना चाहिए। अर्घ्य देते समय इस मंत्र के जप करने से घर में सुख व शांति आती है।
"गगनार्णवमाणिक्य चन्द्र दाक्षायणीपते।
गृहाणार्घ्यं मया दत्तं गणेशप्रतिरूपक॥"
इसका अर्थ है कि सागर समान आकाश के माणिक्य, दक्षकन्या रोहिणी के प्रिय व श्री गणेश के प्रतिरूप चंद्रदेव मेरा अर्घ्य स्वीकार करें।
सुख सौभाग्य के लिये राशि अनुसार उपाय
मेष राशि- मेष राशि की महिलाएं करवा चौथ की पूजा अगर लाल और गोल्डन रंग के कपड़े पहनकर करती हैं तो आने वाला समय बेहद शुभ रहेगा।
वृषभ राशि - वृषभ राशि की महिलाओं को इस करवा चौथ सिल्वर और लाल रंग के कपड़े पहनकर पूजा करनी चाहिए। इस रंग के कपड़े पहनकर पूजा करने से आने वाले समय में पति-पत्नी के बीच प्यार में कभी कमी नहीं आएगी।
मिथुन राशि - इस राशि की महिलाओं के लिए हरा रंग इस करवा चौथ बेहद शुभ रहने वाला है। इस राशि की महिलाओं को करवा चौथ के दिन हरे रंग की साड़ी के साथ हरी और लाल रंग की चूड़ियां पहनकर चांद की पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से आपके पति की आयु निश्चित लंबी होगी।
कर्क राशि - कर्क राशि की महिलाओं को करवा चौथ की पूजा विशेषकर लाल-सफेद रंग के कॉम्बिनेशन वाली साड़ी के साथ रंग-बिरंगी चूडि़यां पहनकर पूजा करनी चाहिए। याद रखें इस राशि की महिलाओं को व्रत खोलते समय चांद को सफेद बर्फी का भोग लगाना चाहिए। ऐसा करने से आपके पति का प्यार आपके लिए कभी कम नहीं होगा।
सिंह राशि - करवा चौथ की साड़ी चुनने के लिए इस राशि की महिलाओं के पास कई विकल्प मौजूद हैं। इस राशि की महिलाएं लाल, संतरी, गुलाबी और गोल्डन रंग चुन सकती है। इस रंग के कपड़े पहनकर पूजा करने से शादीशुदा जोड़े के वैवाहिक जीवन में हमेशा प्यार बना रहता है।
कन्या राशि - कन्या राशि वाली महिलाओं को इस करवा चौथ लाल-हरी या फिर गोल्डन कलर की साड़ी पहनकर पूजा करने से लाभ मिलेगा। ऐसा करने से दोनों के वैवाहिक जीवन में मधुरता बढ़ जाएगी।
तुला राशि - इस राशि की महिलाओं को पूजा करते समय लाल- सिल्वर रंग के कपड़े पहनने चाहिए। इस रंग के कपड़े पहनने पर पति का साथ और प्यार दोनों हमेशा बना रहेगा।
वृश्चिक राशि - इस राशि की महिलाएं लाल, मैरून या गोल्डन रंग की साड़ी पहनकर पूजा करें तो पति-पत्नी के बीच प्यार बढ़ जाएगा।
धनु राशि - इस राशि की महिलाएं पीले या आसमानी रंग के कपड़े पहनकर पति की लंबी उम्र की कामना करें।
मकर राशि - मकर राशि की महिलाएं इलेक्ट्रिक ब्लू रंग करवा चौथ पर पहनने के ��िए चुनें। ऐसा करने से आपके मन की हर इच्छा जल्द पूरी होगी।
कुंभ राशि - ऐसी महिलाओं को नेवी ब्लू या सिल्वर कलर के कपड़े पहनकर पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से गृहस्थ जीवन में सुख शांति बनी रहेगी।
मीन राशि - इस राशि की महिलाओं को करवा चौथ पर लाल या गोल्डन रंग के कपड़े पहनना शुभ होगा।
समापन
करवा चौथ का यह पर्व सामाजिक एकता और परंपरा का प्रतीक है। इस विशेष दिन पर, हम सभी महिलाएं अपने पति की खुशियों की कामना करती हैं और उनके साथ विशेष रूप से समय बिताती हैं। इसके अलावा, यह एक विशेष अवसर है जब हम समाज में एक साथ आकर्षित होते हैं और परंपरा का महत्व समझते हैं। इस करवा चौथ पर, हम सभी को खुशियों और समृद्धि की कामना है, और हम साथ हैं इस खास पर्व को और भी खास बनाने के लिए।
करवा चौथ (Karva Chauth 2023) की सभी महिलाओं को हार्दिक शुभकामनाएं। आप सभी के पति की लंबी आयु और सुख समृद्धि की कामना करता हूं।
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monusinghbestu · 1 year ago
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वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥
सभी देवताओं में श्रेष्ठ, ज्ञान, समृद्धि और सौभाग्य के देवता तथा माता पार्वती के प्रिय पुत्र श्री गणेश जी के जन्मोत्सव के पावन पर्व गणेश चतुर्थी की समस्त देश एवं प्रदेश वासियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
शुभकर्ता, रिद्धि-सिद्धि के दाता, भगवान श्री गणेश आप सभी को सुख, शांति, समृद्धि व आरोग्य का आशीष प्रदान करें।
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प्रेम का स्वभाव विचित्र है, इसमें तो देना ही देना है। संत हरिदास जी के जीवन की एक घटना है। एक बार की बात है कुछ दुष्टों ने हरिदास जी को बीच रास्ते पकड़ लिया और लगे उन्हें मारने। वे हरिदास जी को मारते जाते और बोलते जाते- "अब लेगा हरि नाम? अब ले हरि नाम। खबरदार जो आज के बाद हरि नाम लिया तो। बड़ा हरि भक्त बनता है। ले हरि नाम। अब हरि नाम लेकर दिखा।" संत हरिदास जी ने विचार किया- "ये मुझे मारते हैं तो इनके मुख से हरि नाम निकलता है। मेरे भगवान का नाम निकलता है।" वे बोले- "भैया! और मारो! हरि हरि हरि हरि। और मारो! हरि हरि हरि हरि।" देखें, अपने प्रेम के पात्र के सुख के लिए यदि हमें दुख सहना पड़े तो उस दुख में ही हमें सुख है। उसके सुख के लिए तो दुख सहने में भी आनन्द है। प्रेम में सहनशीलता स्वाभाविक ही आ जाती है। माँ कितनी ही बीमार क्यों न हो, पुत्र के परदेस से आने पर, वह उठ खड़ी हो, प्रसन्नता पूर्वक भोजन बनाती ही है। दिन भर के श्रम के बाद थकान से चूर माँ, अपने गोद के बालक के बिस्तर गीला कर देने पर, उसे सूखी चादर पर सुला कर, स्वयं गीले में लेटती ही है। अब जिसका जिससे प्रेम है, वह उसके सुख के लिए, अपने कौन से भोग का त्याग मुस्कुराते हुए नहीं करता? विचार करें! प्रेम का केन्द्र भिन्न होने पर भी विषयी और भगवद्प्रेमी दोनों ही भोग का त्याग करते हैं। विषयी अपने कुल की परम्परा, मान मर्यादा, पिता की सम्पत्ति, दिन का चैन, रात की नींद, भूख प्यास का ध्यान, सब कुछ छोड़ कर विषय पूर्ति में लगा रहता है। तो भगवद्प्रेमी स्वयमेव भोग त्याग कर, अभावग्रस्त जीवन जीने में ही अपना सौभाग्य मानता है। पर त्याग एक समान होने पर भी दोनों को फल एक समान नहीं मिलता। विषयी को जो कुछ बचा खुचा भोग प्राप्त होता है, उसका त्याग मृत्यु उससे बलात् करवा लेती है। जबकी भगवद्प्रेमी मोक्ष पा जाता है। फिर न मालूम क्यों मनुष्य भगवद्प्रेम की बात से ही डरता है, कि कहीं सब कुछ चला न जाए। भगवद्प्रेम के मार्ग को धधकती आग समझकर, इसकी तपन का विचार करने मात्र से ही सब भाग खड़े होते हैं। परन्तु सत्य यह है कि जो इस प्रेमाग्नि में कूद पड़ते हैं, वे तो परमानन्द पाते हैं। मेरे भाई बहन! भगवद्प्रेम के अभाव में, इस परिवर्तनशील असत् दृश्य जगत से चिपक कर सुख चाहने वाला तो, बर्फ से ढके पर्वत पर नग्न रहता हुआ गर्मी चाहता है। लोकेशानन्द कहता है कि भगवान से विमुख होकर सुख चाहना ही मनुष्य की सब से बड़ी भूल है। जैसे विषयी दिन रात विषय का ही चिंतन करता है, विषय की ही बात करता और सुनता है, वैसे ही भगवद्प्रेमी भी भगवान का ही नाम जपे, भगवान का ही। https://www.instagram.com/p/CpeDeaUyIWJ/?igshid=NGJjMDIxMWI=
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drnikkihembrom · 2 years ago
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#मंगलवार अंजनी पुत्र वीर बजरंग बली हनुमान जी का दिन है। संकटमोचक कृपानिधान हनुमान जी आसुरी शक्तियों से मुक्त कर संपूर्ण मानव जाति की रक्षा और कल्याण करें। सबको सौभाग्य, सुख-शान्ति प्रदान करें, यही कामना है।
#भक्ति_ही_शक्ति
#सेवा_ही_धर्म
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omgarunk · 3 years ago
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रिज अहमद, लुलु वांग कॉमेडी सीरीज 'सन ऑफ गुड फॉर्च्यून' का निर्माण करेंगे
रिज अहमद, लुलु वांग कॉमेडी सीरीज ‘सन ऑफ गुड फॉर्च्यून’ का निर्माण करेंगे
द्वारा आईएएनएस लॉस एंजेलिस: ब्रिटिश-पाकिस्तानी अभिनेता रिज अहमद और फिल्म निर्माता लुलु वांग एक कॉमेडी सीरीज ‘द सन ऑफ गुड फॉर्च्यून’ के निर्माण के लिए हाथ मिला रहे हैं। लिस्ली टेनोरियो के इसी नाम के उपन्यास पर आधारित, श्रृंखला खाड़ी क्षेत्र में एक अनिर्दिष्ट फिलिपिनो किशोरी के बारे में है जो अपनी पूर्व बी-फिल्म एक्शन स्टार मां के साथ एक अशांत रिश्ते को नेविगेट कर रही है, पहली बार प्यार में पड़ रही…
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hellodkdblog · 5 years ago
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स्त्री जातक:-
स्त्रीजातक : भाग-1.
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स्त्री जातक फलित पर हम अब जिन योगों की चर्चा करेंगे वे बहुत सटीक हैं।लेकिन इससे पहले हम यह स्मरण रखें कि नारी स्वभाव से सहजशील है, वह परवश आचरण कर सकती है अत: मात्र एक अशुभयोग के आधार पर किसी महिला के चरित्र पर अन्तिम राय बना लेना ज्योतिष के प्रति अपराध ही होगा। यह एक अति संवेदनशील विषय है। अन्तत: वह हमारी जननी है।
मनुस्मृति ( मूलत: देवीभागवत) अध्याय 3, श्लोक 56 में कहा गया हैं :
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्रा फलाः क्रियाः ।।
जहां स्त्रीजाति का आदर होता है वहां देवतागण प्रसन्न रहते हैं । जहां ऐसा नहीं होता वहां संपन्न किये गये सभी कार्य असफल होते हैं।
योग संख्या-01.
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सोमात्मिका: स्त्रिय: सर्वा पुरुषा भाष करात्मका:।
तासां चंद्रबलात् स्त्रीणां नृणां सर्व हि सूर्यत:।।   ( वशिष्ठ संहिता )
अर्थात : स्त्रियां चन्द्र के अंशबल से और पुरुष सूर्य के अंशबल से उत्पन्न होते हैं। अतः:स्त्री का शुभाशुभ चंद्र के और पुरुष का शुभाशुभ सूर्य के बल से होना चाहिए।
उपरोक्त कथन का "सुगमज्योतिष" भी समर्थन करता है:-
-पुयोषितां ��न्मफलं तु तुल्य किवात्र राशिश्वर लग्नतश्च।।
: स्त्रीजातक विशेष विचार श्लोक-2.                                                                 ************
भावार्थ: स्त्री तथा पुरुष जातक का फलित समान ही होता है। किन्तु स्त्रियों के जन्मफल के विचार उनके चंद्र को लग्न मानकर करने चाहिए।आधुनिक ज्योति��� में इसे महिला के संबंध में 1-लग्नभाव-लग्नेश और 2-चंद्रभाव और चंद्र से जो बलवान हो उसका चयन करें। 
इसी प्रकार पुरुष जातक फलित के लिए 1-लग्नभाव-लग्नेश और 2-सूर्यभाव और सूर्य से जो बलवान हो उसका चयन करें।
ऋषि पराशर के शिष्य लग्नभाव ही को प्रधान मानते हैं। वे स्त्रीजातक और पुरुषजातक की फलित विधि में भेद नही करते।
स्त्रीजातक : भाग-2
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स्त्रीजातक की कुंडली की विशेषता:
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योग संख्या -2:                                                                                               **********
फलदीपिका एवं सुगमज्योतिष : स्त्रीजातक विशेष विचार श्लोक-3 के अनुसार:-
वैधव्यं निधनगृहे पतिसौभाग्यं सुखं च यामित्रे।
सौन्दर्यं लग्नगृहे विचिन्तयेत् पुत्र सम्पदं नवमे।।
भावार्थ: लग्न या चंद्र जो भी भाव बलवान हो उससे आठवे भाव से महिला के पति की आयु, सातवे भाव से पति की प्राप्ति और कामसुख, लग्नभाव से रुप और सौन्दर्य और नवमभाव से सन्तान और सम्पत्ति का सुख के संबंध में जानना चाहिए।
योग संख्या -3:                                                                                             ************  
सुगमज्योतिष : स्त्रीजातक विशेष विचार:
श्लोक-3 के अनुसार:
एषु स्थानेषु युवत्या: क्रूरास्तु नेष्ट फलदा।
भुवनेश विवर्जिता: सदा चिन्त्या:।।
अर्थात् : उपरोक्त भावों में( 1, 8, 7 और 9) में नैसर्गिक क्रूरग्रह अनिष्ट फल देते हैं। लेकिन ये क्रूरग्रह यदि अपने इन भावों में ही बैठे हो अर्थात् स्वराशिस्थ हों तो शुभफल ही देंगे, इस तथ्य को स्मरण रखें।
योग संख्या -4:                                                                                             ************
सुगमज्योतिष : स्त्रीजातक विशेष विचार श्लोक-4 के अनुसार:
नारिणां जन्मकाले कुज-शनि तमस: कोणकेन्द्रेषु शस्ता-
श्चन्द्रोsस्ते च प्रशस्तो बुध-सित-गुरुव: सर्व भावेषु शस्ता:।।
अर्थात् : स्त्रीजातक की जन्मलग्न कुंडली में मंगल,शनि और राहु कोण और केन्द्रभावौं में शुभ फलदायक सिद्ध होते हैं।
-चंद्रमा सातवें भाव में शुभ फलदायक होता है।
-बुध, शुक्र और बृहस्पति सभी भावों में शुभ फलदायक माने जाते हैं।
-लग्नेश सातवें भाव में और सप्तमेश लाभ भाव में और लाभेश पांचवें भाव में श्रेष्ठ फल देते हैं।
स्त्री जातक:- भाग-3.
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योग संख्या-5:                                                                                            **************
सारावली के अध्याय 3 श्लोक संख्या 9 के अनुसार:
द्वादसमण्डल भगणं तस्यार्धे सिंहतो रविर्नाथ:।
कर्कटक अत्प्रतिलोमं शशी तथान्ये अपि तत्स्थानात्।
भावार्थ:- अनन्त आकाश को कुल बारह भगों में बांटा गया है।शनि, बृहस्पति, सूर्य, बुध, शुक्र और चंद्र (पृथ्व���) आदि सात ग्रह इन बारह स्थानों ( भगण ) पर क्रमस: भ्रमण करते रहते हैं।इन बारह स्थानों (राशियों) का नाम क्रमस: मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, बृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन है।
सिंहराशि से क्रमवार छ राशियों ( सिंह, कन्या, तुला, बृश्चिक, धनु, मकर) का एक अर्धमण्डल (अर्धवृत्त) है। इस मण्डल का स्वामित्व "सूर्य" को दिया गया है।
इसी प्रकार कुंभराशि से क्रमवार छ राशियों जैसे: कुंभ, मीन, मेष, वृष, मिथुन और कर्क तक की राशियों का एक अन्य अर्धमण्डल (अर्धवृत्त)। इस अर्धवृत का स्वामित्व "चंद्र" को दिया गया है।
योग संख्या-6:                                                                                          ************** 
सारावली-3/10.
भानोर्धे विहगै: शूरास्तेजस्विनश्च साहसिका:।
शशिनो मृदव: सौम्या: सौभाग्य युता प्रजायन्ते।।
भावार्थ:- यदि किसी व्यक्ति की जन्मपत्रिका में सूर्यादि सभी सात ग्रह सूर्य के आधीन छ राशियों के क्षेत्र (सिंह, कन्या, तुला, बृश्चिक, धनु, मकर) में हो तो वह जातक शौर्यवान, तेजस्वी और अदम्य साहसी होता है।इसी प्रकार यदि किसी व्यक्ति की जन्मपत्रिका में सूर्यादि सभी सात ग्रह चंद्र के आधीन छ राशियों के क्षेत्र (कुंभ, मीन, मेष, वृष, मिथुन और कर्क ) में हो तो वह जातक सरल और शान्त स्वभाव का शत्रुहीन और सुखभोगी होता है।
उपरोक्त योग को यदि हम श्री रघुकुल गुरु श्री वशिष्ठ कृत " वशिष्ठ संहिता " के अनुसार देखते है कि, " स्त्रियां चन्द्र के अंशबल से और पुरुष सूर्य के अंशबल से उत्पन्न होते हैं।"गुरु वशिष्ठ के उपरोक्त आदेश पर हम कह सकते हैं कि, " यदि किसी महिला की जन्मपत्रिका में सूर्यादि सभी सात ग्रह चंद्र के आधीन छ राशियों के क्षेत्र (कुंभ, मीन, मेष, वृष, मिथुन और कर्क ) में हो तो वह जातिका एक सर्वगुण सम्मपन्न राजयोगी होगी होगी।
स्त्री जातक:- भाग-4
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योग संख्या 07.                                                                                           *************
पति कि प्यारी और धन-ऐश्वर्य से पूर्ण:-
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बृध्द यवन जातक: अध्याय 63 श्लोक-11 के अनुसार:
वक्रस्तृतीये रिपुसंस्थितो
षडवर्गशुध्दो रवि जश्च लाभे।
स्थिरे विलग्ने गुरू मा च युक्ते
राज्ञी भवेत् स्त्री पतिवल्लभा।।
भावार्थ:- जिस महिला की जन्मपत्रिका मैं :
(क)- तीसरे या छठे भाव में मंगल हो या शनि हो या
(ख)- एकादस भाव में मंगल हो या शनि हो
और और ये दोनों ग्रह षड(सप्त) वर्ग मैं शुध्द हो। या
(ग)- स्थिरराशियों ( 2,5,8,11) के लग्नभाव मैं बृहस्पति हो;
तो उपरोक्त योगों में वह महिला अपने पति कि प्यारी और धन-संपत्ति से पूर्ण होती है।
ग्रह कब शुध्द होता है ?                                                                                 *************
-कोई भी ग्रह जब सप्तवर्गकुंडलियों मैं तीन से अधिक वर्गकुंडलियों में अपनी राशि में, अपनी उच्चराशि में या अपने अधिमित्रग्रह की राशियों में आते है तो ग्रह शुध्द (शुभ फलदायक ) माना जाता है।षट्वर्ग : लग्न, होरा, द्रेष्काण, नवमांश, द्वादशांश, त्रिशांश ये छः वर्ग होते है।सप्तवर्ग : उपरोक्त षट्वर्ग मे सप्तांश जोड़ देने पर सप्तवर्ग हो जाते है।विशेष: 1-सूर्य और चंद्र का त्रिशांश वर्ग नहीं होता।
2-होरा वर्ग केवल सूर्य और चंद्र का होता है शेष 05 ग्रहों मंगल से शनि तक का नहीं।
इस प���रकार से हम सभी 07 ग्रहों का अध्ययन केवल 06 वर्गों में ही कर पाते हैं।
योग संख्या 08.
*************
प्रकृतिस्थ लग्नेन्द्वो: समभे सच्छोल रुपाढ्या।
भूषण गुणैरुपेता शुभवीक्षित योश्च युवति: स्याता।।
सारावली-45/13.
भावार्थ: यदि महिला जातक के दोनों लग्न ( जन्म और चंद्र) समराशि (12,2,4 में विशेषकर) हों तो वह पतिव्रता और सुन्दर चरित्र की होती है।
ऐसे दोनों लग्न यदि किसी नैसर्गिक सौम्यग्रह से देखे जाए तो निश्चित ही वह अलंकारों से युक्त नित्य रमणी बनी रहती है।
स्त्री जातक:- भाग-5
******************  
योग संख्या 09.
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पिता एवं ससुराल पक्ष के लिए धनदात्री महिला :-
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होरारत्न: अध्याय-10 श्लोक-18के अनुसार:-
सौम्य क्षेत्रे उदये चंद्रे सार्धं शुक्रेण सा वधु:।
सुखी पिता पर्तिद्वेषा नित्यम स्थिरचारिणी।।
भावार्थ:- किसी स्त्री जातक का जन्मलग्न बुध की राशियों वाला (3 या 6) हो तथा
इस लग्नभाव में शुक्र और चंद्र की युति हो तो ऐसी महिला अपने पिता के घर ��ें अपने लिए सभी प्रकार के सुख के साधन उत्पन्न कराती है और सुखी जीवन जीती है।अपने विवाह के पश्चात ऐसी महिलाए अपने ससुराल में भी अपना ऐश्वर्य और पूर्ण नियंत्रण बनाए रखती हैं।
संक्षेप में यह कन्या साक्षात लक्ष्मी और दुर्गा का स्वरुप होती है।
योग संख्या 10.
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होरारत्न: अध्याय-10 श्लोक-19 के अनुसार:-
चन्द्रज्ञौ यदि लग्नस्थौ कुलाढ्या ब्रह्मवादिनी।
न शुक्रो यदि लग्नस्थौ सौम्य स्थाने कुलाढ्या।।
भावार्थ:- किसी स्त्री जातक का जन्मलग्न बुध की राशियों वाला (3 या 6) हो, तथा इस लग्नभाव में शुक्र आसीन हो या न भी आसीन हो तो भी ऐसी महिला सभी प्रकार से सुखी जीवन जीती है।[ उपरोक्त योगों के संबंध में कुछ विद्वानों का मत है कि यदि मिथुन लग्न हो तो कर्क और मीन के नवांश में न हो।यदि कन्या लग्न हो तो धनु और मीन के नवांश में न हो।]
योग संख्या-11.
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जातक पारिजात के अध्याय -16 श्लोक-10 के अनुसार :-
युगल में विलग्ने कुज-सौम्य-जीव,
शुक्रैर्बलिष्ठे: खलु जातकन्या।
विख्यात-नाम्नी सकलार्थ तत्त्व,
बुध्दिप्रसिध्दा भवतीह साध्वी।।
भावार्थ:- यदि किसी महिला जातक की जन्मकुंडली का लग्नभाव समराशि का हो,मंगल, बृहस्पति,शुक्र और बुध बलवान हों तो वह जातिका सर्वगुणसंपन्न, विख्यात और दूसरों की पथप्रदर्शक (साध्वी ) होती है।विशेष: इस योग में केवल लग्न का ही समराशि में होना अनिवार्य है। ग्रहों का नहीं।
योग संख्या-12.
***************
जातक पारिजात के अध्याय -16 श्लोक-21 के अनुसार :-
पतिवल्लभा सद् ग्रहांशे।।
भावार्थ:- यदि किसी महिला जातक की जन्मकुंडली के लग्नभाव में या सातवे भाव में कोई भी राशि हो लेकिन नवमांशकुंडली के सातवे भाव में शुभग्रहों (बुध, बृहस्पति, सूर्य या शुक्र ) की राशियां आती हो और
2-वह नवांश राशीश लग्नकुंडली में शुभ प्रभाव रखता हो तो वह महिला अपने पति की प्राणवल्लभा होती है।3-साथ ही उस महिला का पति ��र्वगुणसंपन्न होता है।
यह महिला के लिए सुखदायक स्थिति होती है।
स्त्री जातक:- भाग-6
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मन-वाणी-कर्म से सत्यनिष्ठ महिला:-
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योग संख्या 13.
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जातक पारिजात के अध्याय -16 श्लोक-25 के अनुसार :-
कलत्रराश्य अंशगते महीने मन्देक्षिते दुर्भ गमेति कन्या।
शुक्रांशके सौम्यदृशा समेते कलत्रराशौ पतिवल्लभा स्यात्।।
भावार्थ: - किसी स्त्री जातक के लग्नभाव में बलवान चंद्र और बुध की युति हो तो ऐसी महिला ईश्वर के प्रति अपने मन-वाणी-कर्म से सत्यनिष्ठ होती हैं।
[उपरोक्त योग के संबंध में कुछ विद्वानों का मत भी है कि लग्नभाव मंगल की राशि 1 या 8 का न हो।]
योग संख्या 14.
************
सुगमज्योतिष स्त्रीजातक/श्लोक-10 के अनुसार :-
सौम्याभ्याम् प्रवरा शुभत्रय युते जाता भवेद् भूपते:।
सौम्यर्केन पतिप्रिया मदनभे दृष्टे युते जन्मनि।।
भावार्थ:- किसी स्त्री जातक के सातवेभाव में तीन सौम्यग्रह (चंद्र-बुध- बृहस्पति-शुक्र में से) हों तो वह स्त्री रानी के समान जीवन जीती है।
2- यदि सातवें भाव में केवल एक सौम्यवह ग्रह ही हो लेकिन वह सौम्यग्रह द्वारा देखा जा रहा हो तो वह स्त्री अपने पति (जो बड़ा अधिकारी, मंत्री आदि हो) की प्राण-प्यारी होती है।
उपरोक्त कथन की पुष्टि जातक पारिजात अध्याय-16 श्लोक-34 भी करता है:-
राज अमात्य वरांगना यदि शुभे कामं गते कन्यका।
मारस्थे तु शुभत्रये गुणवती राज्ञी भवेद् भूपते।।
योग संख्या 15.
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सामान्यतः लग्नभाव में स्थित चंद्रमा को (स्वराशिस्थ या अपनी उच्चराशि में स्थित के अतिरिक्त ) शुभ नहीं माना जाता किन्तु जातक पारिजात, अध्याय-16 श्लोक-36 का मत है कि:
स्त्रीजन्मलग्ने.....सर्वत्र चंद्रे सति तत्र जाता,
सुखान्विता वीतरतिप्रिया स्यात् ।।
भावार्थ- यदि किसी स्त्रीजातक की जन्मकुंडली के लग्नभाव में बलवान चन्द्र हो तो वह महिला सुन्दर,पति की प्यारी और सुखी रहती है। वह अपने वैवाहिक सुख और जीवन का संयत और संतुलित विधि से एक वीतरागी संन्यासी की तरह से निर्वहन करती है।।
बलवान चन्द्र से सामान्य आशय :-
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जन्मकुंडली में स्थित सूर्य से आगे तीसरे भाव और सूर्य से पीछे के तीसरे भाव में चंद्र को (सभी राशियों में) बलवान माना जाता है केवल अपने नीच नवांश में न हो।
स्त्री जातक:- भाग-7.
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विवाह अवश्य होगा:-
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सुगमज्योतिष स्त्रीजातक/श्लोक-4 के अनुसार :-
योग संख्या:-16.
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सप्तमेशे त्रिकोणस्थे केन्द्रे वा शुभवीक्षिते।
गुरुयुक्तं यदा मित्रे पतिसौख्यं ध्रुवम भवेत्।।
भावार्थ:-
1-यदि किसी स्त्री जातक की जन्मकुंडली केे सातवेभाव का स्वामि किसी केन्द्र अथवा त्रिकोण भाव में हो, या
2-किसी सौम्यग्रह के साथ युति में हो, या
3-बृहस्पति या किसी सौम्यग्रह से दृष्ट हो तो उसे पति का सुख अवश्य मिलता है।
बहुसंबंध या द्विविवाह:-
******************
जातकतत्तवम्-सप्तमविवेक-78-88. के अनुसार:-
सपापा: लग्नार्थारीशा: सप्तमें बहुदारा।।
भावार्थ:- लग्न (1),अर्थ (2) और अरि (6) भावों के स्वामि यदि लग्न से सातवें भाव में हों तो एक से अधिक विवाह और,
यदि यह युति पापदृष्ट भी हो तो अत्यधिक शारीरिक संबंध हो सकते हैं।
योगसंख्या-17.
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-मदायेशौ बलिनौ कोणगौ बहुदारा:।।
भावार्थ:- यदि मद (7) और आय (11) भावों के स्वामिग्रह किसी त्रिकोण भाव में हों तो एक से अधिक विवाह और,
यदि यह युति पापदृष्ट भी हो तो अत्यधिक शारीरिक संबंध हो सकते हैं।
योगसंख्या-18.
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-दारायपौ युतौ व अन्योन्येक्षितो बहुदारा।।
भावार्थ:- यदि दार (7) और आय (11) भावों के स्वामिग्रह किसी भी प्रकार से *संबंध बनाए हों।
तो एक से अधिक विवाह और,
यदि यह युति पापदृष्ट भी हो तो अत्यधिक शारीरिक संबंध हो सकते हैं।
*संबंध से आशय: ग्रह आपस में चार प्रकार से संबंध बनाते हैं।
1-युति, 2-एक-दूसरे को देखना, 3- एक-दूसरे की राशि में आना।
चौथे संबंध पर पराशरीय/वरा: मतानुसार कोई ग्रह यदि जिस राशि पर आसीन हो उस राशि के स्वामिग्रह को भी देखता भी हो तो यह भी द्विग्रही संबंध है, किन्तु आधुनिक विद्वानों की मानना है कि यह ग्रह का एकल संबंध है, द्विग्रही नहीं।
"फलदीपिका" एक पांचवां संबंध भी कहती हैं।
"फलदीपिका" किन्हीं दो ग्रहों के परस्पर 1, 4, 7 और 10 वे भाव में होने पर भी द्विग्रही संबंध मानती है।
उपरोक्त तीन प्रकार के द्विग्रही संबंध निर्विवादित है।
स्त्री जातक:- भाग-8.
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योग संख्या-19.
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राजा के समान पति मिले:-
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बृध्दयवन स्त्रीजातक-05.
बुधो विलग्ने यदि तुंगसंस्थौ लाभाश्रितो देवपुरोहितश्च।
नरेन्द्रपत्नी वनितात्रयोगे भवेत् प्रसिध्दा धरणीतलेsस्मिन।।
भावार्थ:-
यदि किसी स्त्रीजातक के लग्न में अपनी उच्चराशि (6) में स्थित बुध हो और आयभाव में बृहस्पति हों तो वह स्त्री अति धनवान और शक्तिशाली पुरुष को पतिरुप में पाती है।
योग संख्या-20
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पति का प्रकृति:-
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सारावली अध्याय-45 के श्लोक संख्या 21 के अनुसार :-
द्यूने वृध्दो मूर्ख: सौरगृहे स्वान्नवाशके वाsय।
स्त्रीलोल: क्रोधपर: कुजभेsथ नवांशके भर्ता।।
भावार्थ: यदि किसी महिला जातक की जन्मकुंडली के सातवे भाव में कोई भी राशि हो लेकिन,
नवमांशकुंडली के सातवे भाव में शनि की राशि मकर या कुंभ आयी है तो उस महिला का पति उससे आयु में बड़ा और कम बुध्दि वाला हो सकता है।
इसी प्रकार से यदि यदि किसी महिला जातक की जन्मकुंडली के सातवे भाव में कोई भी राशि हो लेकिन,
नवमांशकुंडली के सातवे भाव में मंगल की राशि मेष या बृश्चिक आयी है तो उस महिला का पति स्वभाव से अधिक क्रोध करने वाला हो सकता है।
योग संख्या-21
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जातक पारिजात के अध्याय -16 श्लोक-25 के अनुसार :-
शून्य अस्ते का पुरुषो बलहीन सौम्य दर्शनविहीने।
चरभे प्रवासशीलो भर्त्ता क्लीबो ज्ञ-मन्दयोश्च भवेत।।
भावार्थ:- यदि महिला जातक की कुंडली में जन्मलग्न या चंद्रलग्न से ( दोनों में जो बलवान हो) सातवे भाव में:
1- कोई ग्रह न हो तो : उसका पति प्रशंसा के योग्य नही होता। अर्थात्त साधारण व्यक्तित्व का होता है।
2-किसी सौम्यग्रह की दृष्टि भी न हो तो: उसका पति शौर्य और पराक्रम से हीन हो सकता है।
3-सातवे भाव में चरराशि और चर ही नवमांश आया हो तो: पति भ्रमणशील रहता है।
4-सातवे भाव में ��ुध और शनि की युति हो: तो पति नपुंसक हो सकता है।।
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sunilsrivastava1 · 2 years ago
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व्यक्तिगत रूप से अपने बचपन (सैनिक स्कूल तिलैया मे पढ़ाई के दौरान) से ही जिस राजनेता को मै सबसे ज्यादा पसंद करता हूँ वो थे स्वर्गीय श्री रामविलास पासवान जी, आज हमारे मित्र श्री नवीन नंदन जी के निवास पर स्वर्गीय श्री रामविलास पासवान जी के पुत्र श्री चिराग पासवान जी से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। ना जाने क्यूँ मुझे चिराग़ जी का व्यक्तित्व उनके पिता जैसा ही लगता है और मुझे आने वाले समय मे बिहार के भावी मुख्यमंत्री पद का सशक्त दावेदार भी लगता है। https://www.instagram.com/p/ClL4v4Jycrh/?igshid=NGJjMDIxMWI=
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chandramurty · 2 years ago
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संभाव्य भविष्यत् काल
हिन्दी में भविष्यत् काल के उपर्युक्त प्रकार के अनेक महत्वपूर्ण व्युत्पन्न, हमें दैनिक जीवन में मिलते रहते हैं।
एक पिता ने शीशे का एक बर्तन पुत्र को सावधानीपूर्वक रखने को दिया और बोला कि इसे तोड़ना मत, साथ ही साथ बालक को एक तमाचा भी लगा दिया।जब लोगों ने पूछा कि बर्तन तो अभी टूटा भी नहीं तो फिर बालक को क्यूँ मार रहे हैं ? तब पिता ने कहा कि जब बर्तन टूट ही जाता तो मारने से क्या लाभ होता?
सोच सही थी..संभाव्य भविष्यत् का निपटारा वर्तमान में ही कर देना समीचीन था !
इसी प्रकार, हमारे एक प्रदेश के निवासियों में इस प्रकार के परिकल्पित, संभाव्य घटनाओं को ले कर वर्तमान में चाय की प्याली में तूफ़ान लाने कि प्रति सहज अनुराग पाया जाता है।
जैसे कि संभाव्य सड़क दुर्घटनायें, जो कि चालक की कुशलता या सौभाग्य वश अपनी तार्किक परिणाम तक नहीं पहुँच पाती, पर भी उतना ही गंभीर और आलोचनात्मक वादविवाद होता है जितना कि वास्तविक दुर्घटना में !
अगर कभी आपने अपने वाहन को दो मिनट के लिये भी किसी के घर के आगे रोक दिया तो मालिक मकान, शर्तिया, अनेक भीषण परिकल्पनाएँ प्रस्तुत कर, आपको शर्मिंदा एवं वाहन हटाने पर बाध्य कर देंगे।
संभाव्य भविष्यत् काल के असीमित परिकल्पनाओं को निर्देशित करता एक बहुत ही सटीक बंग भाषीय वाक्य है “ जोदि होये जाये, ताले ??” अब विद्वान जन इसका सहज अनुवाद अपने-अपने भाषा में कर के समझ सकते हैं।
मेरे मामा जी के एक सहकर्मी डाक्टर महाशय की शादी, उत्तर बिहार के नेपाल सीमावर्ती एक गाँव के ज़मींदार परिवार में हुई थी।शादी के उपहारों में उन्हें एक विदेशी फोल्डिंग छाता भी मिला था।ये छाता उस काल के “हिन्दुस्त���नीयों” के लिए एक अनूठी चीज़ थी।
अब ये छाता उन्हें भी अनेक भा गया था।उसे वो बारहों माह साथ लेकर घूमा करते थे।सभी मिलने वालों को उसके संचालन की विधि भी बताया करते थे !
उनकी छाता प्रसिद्ध हो गया। धीरे-धीरे कुछ लोग उनका मज़ाक़ बनाने लगे।
एक बार मामा जी ने उन्हें समझाने का प्रयास किया और कहा कि “दादा, अभी तो जाड़ों का मौसम है, धूप खिली हुई है और दूर दूर तक बारिश के बादलों का नामोनिशान नहीं है।अभी तो आप अपने छाते को घर पर छोड़ सकते हैं ?”
तब उन्होंने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया “ कीss जाने? जोदि बृष्टि होये जाये..ताले??”
अब संभाव्य भविष्यत् के आगे बेचारे मामा जी भी निरुत्तर हो गये !
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jyotishgher · 2 years ago
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Karwa Chauth Vrat Katha: व्रत के दिन जरूर सुनें करवा माता की ये कथा, मिलेगा पतिव्रता का वरदान
Karwa Chauth Vrat Katha: व्रत के दिन जरूर सुनें करवा माता की ये कथा, मिलेगा पतिव्रता का वरदान
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की तिथि में यह व्रत मनाया जाता है. पूरे दिन अपने पति के लिए निर्जला रहकर पत्नियां ये व्रत रखती हैं और उनकी लंबी उम्र की कामना भी करती हैं. मिट्टी के करवे पर मौली बांधकर रोली से एक स्वास्तिक बनाकर उसपर रोली से तेरह बिन्दियां लगाकर चन्द्रमा को अर्घ्य देती हैं. इससे पहले इस व्रत की कथा सुनी जाती है, यह कथा सुनने से ही यह व्रत पूरा होता है, आईए जानते हैं यह व्रत की कहानी क्या है
कैसे सुनें कथा महिलाएं व्रत के दिन हाथ में गेहूं के तेरह दानें लेकर कहानी कहती हैं और कुछ सुनती हैं. कहानी सुनने के बाद कुछ गेहूं के दानें लोटे में डालते हैं और कुछ दानें साड़ी के पल्ले में बांध लेती हैं.रात को चांद को देखकर लोटे का जल सूरज को देती हैं. एक थाली में फल, मिठाई, चावल भरा हुआ खांड का करवा और रुपए रखकर बायना निकालकर अपनी सासू मां या फिर घर की बड़ी बहू यानी जेठानी या भाभी को देती हैं.
क्या है पूरी कहानी?-1
हिन्दू धर्म के अनुसार कार्तिक महीने में पूर्णिमा के चौथ दिन करवा चौथ वाला त्योहार मनाया जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी लंबी उम्र की कामना के साथ निर्जला व्रत रखती हैं। इस दिन श्याम को करवा चौथ कथा की कहानी पढ़ते कर शाम के समय चंद्रमा निकलने के बाद वे चंद्रमा को अर्घ्य देती हैं और पति का तिलक आदि करने के बाद पति के हाथों से पानी पीकर अपना व्रत खोलती हैं।
इस दिन भगवान शिव, गणेश जी और स्कन्द यानि कार्तिकेय के साथ बनी गौरी के चित्र की सभी उपचारों के साथ पूजा की जाती है। कहते हैं कि Karva Chauth Vrat Katha करने से जीवन में पति का साथ हमेशा बना रहता है। साथ ही, सौभाग्य की प्राप्ति और जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।
Chauth Mata ki Kahani in Hindi PDF | करवाचौथ व्रत की कथा (कहानी)
एक साहूकार के एक पुत्री और सात पुत्र थे। ��रवा चौथ के दिन साहूकार की पत्नी, बेटी और बहुओं ने व्रत रखा। रात्रि को साहूकार के पुत्र भोजन करने लगे तो उन्होंने अपनी वहन से भोजन करने के लिए कहा। बहन वोली- “भाई! अभी चन्द्रमा नहीं निकला है, उसके निकलने पर मैं अर्घ्य देकर भोजन करूँगी।” इस पर भाइयों ने नगर से बाहर जाकर अग्नि जला दी और छलनी ले जाकर उसमें से प्रकाश दिखाते हुए बहन से कहा- “वहन! चन्द्रमा निकल आया है, अर्घ्य देकर भोजन कर लो।”
बहन अपनी भाभियों को भी बुला लाई कि तुम भी चन्द्रमा को अर्घ्य दे लो, किन्तु वे अपने पतियों की करतूत जानती थीं। उन्होंने कहा- “वाईजी! अभी चन्द्रमा नहीं निकला है। तुम्हारे भाई चालाकी करते हुए अग्नि का प्रकाश छलनी से दिखा रहे हैं।” किन्तु बहन ने भाभियों की बात पर ध्यान नहीं दिया और भाइयों द्वारा दिखाए प्रकाश को ही अर्घ्य देकर भोजन कर लिया। इस प्रकार व्रत भंग होने से गणेश जी उससे रुष्ट हो गए। इसके बाद उसका पति सख्त बीमार हो गया और जो कुछ घर में था, उसकी बीमारी में लग गया। साहूकार की पुत्री को जब अपने दोष का पता लगा तो वह पश्चातप से भर उठी।
गणेश जी से क्षमा-प्रार्थना करने के बाद उसने पुनः विधि-विधान से चतुर्थी का व्रत करना आरम्भ कर दिया। श्रद्धानुसार सवका आदर सत्कार करते हुए, सबसे आशीर्वाद लेने में ही उसने मन को लगा दिया। इस प्रकार उसके श्रद्धाभक्ति सहित कर्म को देख गणेश जी उस पर प्रसन्न हो गए। उन्होंने उसके पति को जीवनदान दे उसे बीमारी से मुक्त करने के पश्चात् धन-सम्पत्ति से युक्त कर दिया। इस प्रकार जो कोई छल-कपट से रहित श्रद्धाभक्तिपूर्वक चतुर्थी का व्रत करेगा, वह सव प्रकार से सुखी होते हुए कष्ट-कंटकों से मुक्त हो जाएगा।
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कहानी?-2
धार्मिक कथा के अनुसार एक गांव में करवा देवी अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के पास रहती थी. एक दिन करवा के पति स्नान के लिए नदी में गए तो मगरमच्छ ने उनका पैर पकड़ लिया और अंदर की ओर खींचने लगा. रक्षा के लिए उसने अपन��� पत्नी को पुकारा. पति को मृत्यु के मुंह में जाता देख करवा ने एक कच्चे धागे से मगरमच्छ को पेड़ से बांध दिया.
पतिव्रत पत्नी करवा के जाल में मगरमच्छ ऐसा बंधा की हिलना भी मुश्किल हो गया. पति की हालात बहुत नाजुक थी. इसके बाद करवा देवी ने यमराज को पुकारा और पति की रक्षा कर जीवनदान और मगरमच्छ को मृत्यु देने का आग्रह किया. यमराज ने कहा अभी मगरमच्छ की आयु शेष है लेकिन तुम्हारे पति के यमलोक जाने का समय आ चुका है. करवा क्रोधित हो गई और ऐसा न करने पर यमराज को श्राप देने की ��ेतावनी दे दी.
करवा देवी ने दिया जीवनदान (Karwa Chauth Vrat Katha in Hindi)
यमराज ने करवा देवी के सतीत्व से प्रभावित होकर उसके पति की आयु में वृद्धि कर दी और उसे जीवनदान दे दिया. वहीं मगरमच्छ को यमलोक भेज दिया. कहते हैं इस घटना के दिन कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि थी. मान्यता है इस दिन जो सुहागिनें पत्नी धर्म निभाते हुए निर्जला व्रत कर सच्चे मन से करवा माता की पूजा करती हैं उन्हें अखंड सौभाग्यवती का वरदान मिलता है. उसके बाद से ही करवा चौथ व्रत की परंपरा शुरू हो गई. इसके बाद गणेश जी की भी कथा और कहानी सुनी जाती है
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