#सुधा
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लखनऊ, 10.05.2024 | “भगवान परशुराम जी" की जयंती के पावन उपलक्ष्य में हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा प्राथमिक विद्यालय, तकरोही, लखनऊ में "श्रद्धापूर्ण पुष्प अर्पण” कार्यक्रम का आयोजन किया गया | कार्यक्रम में ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल, न्यासी डॉ० रूपल अग्रवाल एवं प्राथमिक विद्यालय की प्रधानाध्यापिका श्रीमती सुधा मौर्या द्वारा दीप प्रज्वलित कर भगवान परशुराम जी के चित्र पर पुष्प अर्पित किए गए तथा उन्हें सादर नमन किया गया | सभी छात्र-छात्राओं ने भी भगवान परशुराम जी के चित्र पर पुष्प अर्पित किए |
इस अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट की न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल ने कहा कि, “भगवान परशुराम को भगवान विष्णु और भगवान शिव का संयुक्त अवतार माना जाता है | हिन्दू पंचांग के अनुसार, हर वर्ष वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को परशुराम जयंती मनाई जाती है । इसी दिन अक्षय तृतीया का भी त्योहार मनाया जाता है । भगवान परशुराम अत्यंत क्रोधी स्वभाव के थे | जब सीता स्वयंवर में मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने शंकर जी का धनुष तोड़ दिया तब भगवान परशुराम को अत्यधिक क्रोध आ गया और वह गुस्से में महाराज जनक के महल पहुंच गए लेकिन भगवान राम से वार्तालाप करने के बाद उनका क्रोध शांत हो गया | भगवान परशुराम जब शंकर जी से मिलने कैलाश पर्वत पहुंचे थे तब भगवान गणेश ने उनका रास्ता रोक दिया था तथा भगवान परशुराम ने गणेश जी का ��क दांत तोड़ दिया था जिसके कारण गणेश जी एकदंत कहलाए | भगवान परशुराम क्रोधी स्वभाव के होने के साथ-साथ धर्म के रक्षक भी थे तथा उनके जीवन का संदेश था कि धर्म की रक्षा के लिए हमें हमेशा तैयार रहना चाहिए । भगवान परशुराम जयंती के इस महान अवसर पर हम सभी को अपने जीवन में उनके उत्कृष्ट गुणों को अपनाने का संकल्प लेना चाहिए, ताकि हम समृद्धि और सफलता की ओर अग्रसर हो सके ।"
प्राथमिक विद्यालय की प्रधानाध्यापिका श्रीमती सुधा मौर्य ने कहा कि, "भगवान परशुराम बहुत आज्ञाकारी स्वभाव के थे | हमें उनकी तरह बड़ों की आज्ञा माननी चाहिए और अपने जीवन में हमेशा आगे बढ़ने का संकल्प लेना चाहिए |"
अंत में श्री हर्षवर्धन अग्रवाल ने सभी का धन्यवाद करते हुए कहा कि "इस तरह के कार्यक्रम प्रत्येक स्कूल में आयोजित होने चाहिए जिससे विद्यार्थी अपने देश के इतिहास के बारे में और अधिक जान सके |"
कार्यक्रम में हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल, न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल, प्रधानाध्यापिका श्रीमती सुधा मौर्या, छात्र-छात्राओं तथा ट्रस्ट के स्वयंसेवकों की गरिमामयी उपस्थिति रही |
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राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर
तुलसीदासजी कहते हैं, यदि तू भीतर और बाहर दोनों ओर उजाला चाहता है, तो मुख रूपी द्वार की जीभ रूपी देहली पर रामनाम रूपी मणि-दीपक को रख
सकल कामना हीन जे राम भगति रस लीन
नाम सुप्रेम पियूष ह्रद तिन्हहुँ किए मन मीन
जो सब प्रकार की (भोग और मोक्ष की भी) कामनाओं से रहित और श्री रामभक्ति के रस में लीन हैं, उन्होंने भी नाम के सुंदर प्रेम रूपी अमृत के सरोवर में अपने मन को मछली बना रखा है (अर्थात् वे नाम रूपी सुधा का निरंतर आस्वादन करते रहते हैं, क्षणभर भी उससे अलग होना नहीं चाहते) 🙏राम राम🙏जय श्री राम🙏
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Satsang Ishwar TV | 08-07-2024 | Episode: 2453 | Sant Rampal Ji Maharaj ...
#MustListenSatsang
श्री ज्ञानानंद जी महाराज का मानना है कि:-
श्री विष्णु जी अविनाशी हैं तथा पूर्ण परमात्मा हैं। प्रमाण श्री सुधा सागर पृष्ठ 660-661 में।
जगतगुरु तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज :
गीता अध्याय 4 श्लोक 5 में गीता बोलने वाले ने कहा है कि अर्जुन! तेरे और मेरे बहुत जन्म हो चुके हैं।
सिद्ध हुआ कि गीता ज्ञान कहने वाला अविनाशी नहीं है। यदि अविनाशी नहीं है तो पूर्ण परमात्मा भी नहीं है।
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➜साधना TV 📺 पर शाम 7:30 से 8:30
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#गीता_प्रभुदत्त_ज्ञान_है
💥श्री ज्ञानानंद जी महाराज का मानना है कि:-
श्री विष्णु जी अविनाशी हैं तथा पूर्ण परमात्मा हैं। प्रमाण श्री सुधा सागर पृष्ठ 660-661 में।
जगतगुरु तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज :
गीता अध्याय 4 श्लोक 5 में गीता बोलने वाले ने कहा है कि अर्जुन! तेरे और मेरे बहुत जन्म हो चुके हैं।
सिद्ध हुआ कि गीता ज्ञान कहने वाला अविनाशी नहीं है। यदि अविनाशी नहीं है तो पूर्ण परमात्मा भी नहीं है।
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श्री ज्ञानानंद जी महाराज का मानना है कि:-
श्री विष्णु जी अविनाशी हैं तथा पूर्ण परमात्मा हैं। प्रमाण श्री सुधा सागर पृष्ठ 660-661 में।
जगतगुरु तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज :
गीता अध्याय 4 श्लोक 5 में गीता बोलने वाले ने कहा है कि अर्जुन! तेरे और मेरे बहुत जन्म हो चुके हैं।
सिद्ध हुआ कि गीता ज्ञान कहने वाला अविनाशी नहीं है। यदि अविनाशी नहीं है तो पूर्ण परमात्मा भी नहीं है।
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#GodMorningWednesday
जब गुरु के प्रति-लगन लग जाती है, तो विषय-वासना रूपी विष दूर भाग जाता है। हृदय में बुराइयों की जितनी भी कालिख जमी हुई होती है, वह सब उस प्रीत सुधा से धुल जाती है। कबीर साहेब जी कहते हैं कि गुरु-ज्ञान के साबुन से कोई गुरु भक्त ही निर्मल होता है।
#KabirisGod
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जब गुरु के प्रति-लगन लग जाती है, तो विषय-वासना रूपी विष दूर भाग जाता है। हृदय में बुराइयों की जितनी भी कालिख जमी हुई होती है, वह सब उस प्रीत सुधा से धुल जाती है। कबीर साहेब जी कहते हैं कि गुरु-ज्ञान के साबुन से कोई गुरु भक्त ही निर्मल होता है।
#SatlokAshramMundka
#KabirisGod
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यदि तुम मुझसे प्रेम करते हो, चन्दर, तो मुझे मेरा आनंद माफ़ करना |
[ if you love me, beloved, forgive me my joy ]
जब अगर मैं अपने सिंघासन पर बैठ कर तुम्हे अपने प्रेम के अत्याचार से बाध्य करूँ,
[when I sit on my throne and rule you with my tyranny of love]
जब अगर एक देवी की तरह मैं तुम्हे अपना अनुग्रह दान करूँ,
[when like a goddess I grant you my favour]
[written by Rabindranath Tagore, जिसे translate करने की छोटी सी कोशिश की है, सुधा के लिए]
🥀
मेरा घमंड तुम झेल लेना चन्दर, और मुझे मेरा आनंद माफ़ करना |
[bear with my pride, beloved, and forgive me my joy.]
- तुम्हारी सुधि
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#शास्त्रविरुद्ध_Vs_शास्त्रानुकूल
श्री विष्णु जी अविनाशी हैं तथा पूर्ण परमात्मा हैं। प्रमाण श्री सुधा सागर पृष्ठ 660-661 में।
जगतगुरु तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज :
गीता अध्याय 4 श्लोक 5 में गीता बोलने वाले ने कहा है कि अर्जुन! तेरे और मेरे बहुत जन्म हो चुके हैं।
सिद्ध हुआ कि गीता ज्ञान कहने वाला अविनाशी नहीं है। यदि अविनाशी नहीं है तो पूर्ण परमात्मा भी नहीं है।
Sant Rampal Ji Maharaj
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Iscon & Gyananand VS Sant Rampal Ji Maharaj || Episode 03 || Spiritual L...
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#आध्यात्मिक_ज्ञान_चर्चा
ज्ञानानंद जी महाराज का मानना है कि:-
श्री ��िष्णु जी अविनाशी हैं तथा पूर्ण परमात्मा हैं। प्रमाण श्री सुधा सागर पृष्ठ 660-661 में।
जगतगुरु तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज :
गीता अध्याय 4 श्लोक 5 में गीता बोलने वाले ने कहा है कि अर्जुन! तेरे और मेरे बहुत जन्म हो चुके हैं।
सिद्ध हुआ कि गीता ज्ञान कहने वाला अविनाशी नहीं है। यदि अविनाशी नहीं है तो पूर्ण परमात्मा भी नहीं है।
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Sant Rampal Ji Maharaj
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29.04.2024, लखनऊ | सिखों के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर की जन्म जयंती के अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा प्राथमिक विद्यालय, तकरोही, इंदिरा नगर, लखनऊ में "पुष्प अर्पण एवं प्रसाद वितरण" कार्यक्रम का आयोजन किया गया | कार्यक्रम में ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल, न्यासी डॉ० रूपल अग्रवाल प्राथमिक विद्यालय की प्रधानाध्यापिका श्रीमती सुधा मौर्या, शिक्षिकाओं श्रीमती विंदा देवी तथा सुश्री श्वेता द्वारा दीप प्रज्वलित कर गुरु तेग बहादुर जी के चित्र पर पुष्प अर्पित किए गए तथा उन्हें सादर नमन किया गया | सभी छात्र-छात्राओं ने भी गुरु तेग बहादुर जी के चित्र पर पुष्प अर्पित किए तथा उन्हें प्रसाद के रूप में ट्रस्ट द्वारा केले का वितरण किया गया ।
इस अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट की न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल ने कहा कि, “गुरु तेग बहादुर जी का जन्म वैशाख महीने की कृष्ण पक्ष पंचमी को हुआ था तथा वह सिखों के नौवें गुरु के रूप में जाने जाते हैं । अपना समस्त जीवन मानवीय सांस्कृतिक की विरासत की खातिर बलिदान करने वाले गुरु तेग बहादुर जी का जीवन बहुत ही शौर्य से भरा हुआ था । बचपन में वे त्यागमल नाम से पहचाने जाते थे, जो कि एक बहादुर, निर्भीक, विचारवान और उदार चित्त वाले थे । मात्र 14 वर्ष की उम्र में ही अपने पिता के साथ उन्होंने कंधे से कंधा मिलाकर मुगलों के हमले के खिलाफ हुए युद्ध में अपना साहस दिखाकर वीरता का परिचय दिया और उनके इसी वीरता से प्रभावित होकर गुरु हर गोविंद सिंह जी ने उनका नाम तेग बहादुर यानी तलवार के धनी रख दिया । माना जाता है कि जब मुगल बादशाह ने गुरु तेग बहादुर सिंह जी से इस्लाम धर्म या मौत दोनों में से एक चुनने के लिए कहा । तब मुगल बादशाह औरंगजेब चाहता था कि गुरु तेग बहादुर जी सिख धर्म को छोड़कर इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लें, लेकिन जब गुरु तेग बहादुर जी ने इस्लाम अपनाने से इनकार कर दिया तब औरंगजेब ने उनका सिर कटवा दिया था । विश्व इतिहास में आज भी उनका नाम एक वीरपुरुष के रूप में बड़े ही सम���मान के साथ लिया जाता है ।“
अंत में श्री हर्षवर्धन अग्रवाल ने सभी का धन्यवाद करते हुए कहा कि "इस तरह के कार्यक्रम प्रत्येक स्कूल में आयोजित होने चाहिए जिससे विद्यार्थी अपने देश के इतिहास के बारे में और अधिक जान सके |"
कार्यक्रम में हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल, न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल, प्रधानाध्यापिका श्रीमती सुधा मौर्या, शिक्षिकाओं श्रीमती विंदा देवी, सुश्री श्वेता, छात्र-छात्राओं तथा ट्रस्ट के स्वयंसेवकों की गरिमामयी उपस्थिति रही |
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साकी बन मुरली आई साथ लिए कर में प्याला,
जिनमें वह छलकाती लाई अधर-सुधा-रस की हाला,
योगिराज कर संगत उसकी नटवर नागर कहलाए,
देखो कैसों-कैसों को है नाच नचाती मधुशाला।।४०।
Charan sparsh Guruji🌹🙏
Love
Ef Bharat Gupta
Kutch,Gujarat❤
@srbachchan
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सकल कामना हीन जे राम भगति रस लीन
नाम सुप्रेम पियूष ह्रद तिन्हहुँ किए मन मीन
भावार्थ-
जो सब प्रकार की कामनाओं से रहित और रामभक्ति के रस में लीन हैं उन्होंने भी नाम के सुंदर प्रेमरूपी अमृत के सरोवर में अपने मन को मछली बना रखा है (अर्थात वे नामरूपी सुधा का निरंतर आस्वादन करते रहते हैं क्षण भर भी उससे अलग होना नहीं चाहते)
जय श्री सीताराम🏹ᕫ🚩🙏
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Free tree speak काव्यस्यात्मा 1383.
अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति से विचलित थे भारतेंदु हरिश्चंद्र
- कामिनी मोहन पाण्डेय।
मुंशी प्रेमचंद ने लिखा है कि जिन्होंने राष्ट्र का निर्माण किया है उनकी कृति अमर हो गई है। त्याग तपस्या और बलिदान 1857 की क्रांति के रणबांकुरों ने ही नहीं किया बल्कि उससे प्रभावित होकर कई लेखकों, साहित्यकारों, पत्रकारों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। उसी त्याग की भावना व संघर्ष की प्रेरणा को जगाने में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने महती भूमिका निभाई।
भारतेंदु ने भारत की स्वाधीनता, राष्ट्र उन्नति और सर्वोदय भावना का विकास किया। आज के संदर्भ में बात करें तो भारतेंदु ने हीं देश के सभी पत्रकारों, संपादकों व लेखकों को देश की दुर्दशा यानी देश की दशा और दिशा को समझने का मंत्र दिया। अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति की हुंकार की गूंज के बाद इस संबंध पर बेतहाशा लेखन और पठन-पाठन हुआ। उस समय क्रांति के असफल होने के बाद जब निराशा का बीज व्याप्त हो गया था, तब समाज की दुर्दशा देखकर भारतेंदु का हृदय काफी व्यथित हुआ। देश की सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, राजनीतिक गिरावट देखकर वह तिलमिला उठे थे। देश की दशा पर उनकी अभिव्यक्ति थी- "हां हां भारत दुर्दशा न देखी जाई।" उनके इस प्रलाप पर भारत आरत, भारत सौभाग्य, वर्तमान-दशा, देश-दशा, भारत दुर्दिन जैसे नवजागरण की पोषक रचनाएँ प्रकाशित हुई।
इनमें देश के प्राचीन गौरव के स्मरण, समाज में व्याप्त आलस्य तथा देश की दीनता का वर्णन होता था। क्रांति के समय एवं उसके बाद स्वदेशाभिमानी पत्रकारों ने अपनी विवेचना शक्ति के बल पर जनमानस को सशक्त अभिव्यक्ति दी। उस समय हिंदी अपने विकास के नए आयाम गढ़ रही थी। सारे प्रतिरोधों के बीच पत्रकारिता की पैनी नज़र खुल चुकी थी। ऐसे में स्वाभिमान के संचार व स्वदेश प्रेम के उदय तथा आंग्ल शासन के प्रबल प्रतिरोध पत्रों में प्रकाशित तत्वों में दिखता था। पत्र और पत्रकार ख़ुद स्वतंत्रता आंदोलन के सक्षम सेनानी बन गए थे। अन्याय, अज्ञान, प्रपीड़न व प्रव॔चना के संहारक समाचार पत्रों ने ही हिंदी पत्रकारिता की आधारशि��ा रखी थी।
राष्ट्र उत्थान की दृष्टि से इतिहास एवं पत्रकारिता दोनों संश्लिष्ट हैं। राष्ट्रीय अस्मिता को समर्पित भारतेंदु की रचनाओं का मूलाधार गौरव की वृद्धि रहा है। नौ सितंबर 1850 को काशी में जन्मे भारतेंदु को हिंदी पत्रकारिता का आधार स्तंभ कहा जाता है। भारतेंदु द्वारा पत्रकारिता में देश प्रेम के लिए जलाई गई अलख काशी में अब भी दिखती है। इसका कारण यह है कि यहाँ जो पैदा हुआ वह भी गुरु जो मर गया वह भी गुरु होता है। यहाँ किसी बात के लिए कोई हाय-हाय नहीं है।
काशी की हिंदी पत्रकारिता की नींव 1845 में बनारस अखबार के रूप में पड़ी। इसके बारह साल बाद देश का पहला स्वतंत्रता संग्राम आम लोगों को गहरे तक प्रभावित कर गया था। क्रांति का बिगुल काशी में भी सुनाई दिया। क्रांति के दौर मे��� देश की आज़ादी के लिए यहाँ कई अख़बार प्रकाशित होते रहे। स्वाभिमान के साथ उठ खड़े होने को आमजन और क्रांतिकारियों को जो उसे से भरते रहे।
प्रमुख प्रकाशनों में कवि वचन सुधा (1867) हरिश्चंद्र मैगजीन (1875), हरिश्चंद्र चंद्रिका (1879) में भारतेंदु का मूल मंत्र सामाजिक और राष्ट्रीय उन्नति जगाना तथा सभी जातियों के अंदर स्वाभिमान का भाव भरना था। वे मानते थे कि "जिस देश में और जिस समाज में उसी समाज और उसी देश की भाषा में समाचार पत्रों का जब तक प्रचार नहीं होता, तब तक उसे देश और समाज की उन्नति नहीं हो सकती। समाचार पत्र राजा और प्रजा के वकील है। समाचार पत्र दोनों की ख़बर दोनों को पहुँचा सकता है जहाँ सभ्यता है, वहीं स्वाधीन समाचार पत्र है"।
देश में लकड़ी बीनने वाले से लेकर लकड़ी का तमाशा दिखाने वाले तक सभी ने क्रांति के जयकारे में लकड़ी बजाते हुए आहुति दी थी। यह वह दौर था, जिस पर क्रांति ने अपना असर गहरे तक छोड़ा था। इसी का परिणाम रहा कि देश के हर नौजवान ने अपनी छाती अंग्रेजों की गोलियाँ खाने के लिए चौड़ी कर ली थी। अल्पायु में ही भारतेंदु अपने युग का प्रतिनिधित्व करने लगे थे रचनात्मक लेखन, पत्रकारिता के माध्यम से भारतेंदु ने देश की राजनीतिक आर्थिक और सामाजिक विसंगतियों पर अपने आक्रामक तेवर के साथ संवेदन पूर्ण विचारों से सार्थक हस्तक्षेप किया था। साहित्य को उन्होंने जनसामान्य के बीच लाकर खड़ा कर दिया था।
घोर उथल-पुथल के बावजूद उनके काल में साहित्यिक विचारों के कारण आत्ममंथन शुरू हो गया था। वे ब्रिटिश राज की कार्यप्रणाली पर जमकर बरसते थे। हर समस्या के प्रति भारतेंदु का दृष्टिकोण दूरगामी होता था। वे वैचारिक क्रांति लाने के लिए हर घड़ी प्रतिबद्ध दिखते थे। भारतेंदु चाहते थे कि भारतवासी स्वयं आत्मोत्थान और देशोत्थान में सक्रिय हो। यह बात आज भी प्रासंगिक है कि आर्थिक उत्थान से ही देश का भला हो सकता है।
आर्थिक लूट पर वे लिखते हैं-
भीतर-भीतर सब रस चूसै, बाहर से तन-मन-धन मूसै।
जाहिर बातन में अति तेज, क्यों सखि सज्जन नहिं अंग्रेज अंग्रेजों।।
अंग्रेजों को अपना भाग्य विधाता मानने वालों को भारतेंदु ने झकझोरा था। कविवचन सुधा में वे लिखते हैं- "देशवासियों तुम इस निद्रा से चौको, इन अंग्रेजों के न्याय के भरोसे मत फूले रहो।... अंग्रेजों ने हम लोगों को विद्यामृत पिलाया और उससे हमारे देश बांधवों को बहुत लाभ हुए, इसे हम लोग अमान्य नहीं करते, परंतु उन्हीं के कहने के अनुसार हिंदुस्तान की वृद्धि का समय आने वाला हो, सो तो, एक तरफ रहा, पर प्रतिदिन मूर्खता दुर्भिक्षता और दैन्य प्राप्त होता जाता है।... अख़बार इतना भूंकते हैं, कोई नहीं सुनता। अंधेर नगरी है। व्यर्थ न्याय और आज़ादी देने का दावा है।"
गांधीजी की कई नीतियों व योजनाओं के बीज भारतेंदु साहित्य में पहले ही आ चुके थे। भारतीय धर्मनिरपेक्षता, जाति निरपेक्षता, जो भारतीय संविधान के मूलाधार है, उन पर भारतेंदु के चिंतन में तात्कालिकता ही नहीं, भविष्योन्मुखता भी थी। वे हिंदू व मुसलमानों के प्रति भाईचारे का भाव रखने को प्रेरित करते थे। कहना ही पड़ता है कि देश के विकास उसकी उन्नति के लिए भारतेंदु स्वदेशी और राष्ट्रीयता के संदर्भ में दूरगामी अंतर्दृष्टि रखते थे।
समय बदल गया, हम आज़ाद हैं। भारत वही है। संविधान वही है। भारत में रहने वाले जीव-जंतु, पशु-पक्षी और मनुष्य भी वही है। विभिन्न धर्मों, मज़हबों,पंथों को मानने वाले मुसलमानों के सभी फ़िरक़ों, बौद्ध, सिख, जैन, ईसाईयों तथा सनातन धर्म की गहराई में उतरने वाले हिन्दू क्रांति के बीज को आज भी वृक्ष बनते देखते हैं। उन विचारों की जो भारतेंदु के समय लोगों तक पत्रकारिता के माध्यम से पहुंचे थे, वे विचार आज भी प्रासंगिक हैं। देश के लोगों को इसकी परम आवश्��कता है।
- © Image art by Chandramalika
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पटना /जयंती पर साहित्य सम्मेलन ने तीनों विभूतियों को दी भावपूर्ण श्रद्धांजलि, आयोजित हुआ कवि-सम्मेलन
पटना, २७ नवम्बर। अपने समय की महान विदुषी और गोवा की पूर्व राज्यपाल डा मृदुला सिन्हा एक ऐसी साहित्यिक विभूति थीं, जिन्हें मरुथल हो रहे समाज में, ‘प्रेम-सुधा की अविरल धारा’ कहा जा सकता है। वो सरस्वती की साक्षात प्रतिमा थीं। भारतीय संस्कृति का जितना व्यापक ज्ञान था उन्हें, उतनी ही दृढ़ पकड़ लोक-जीवन पर भी थी उनकी। उनके सामाजिक-साहित्यिक सरोकारों की परिधि भी बहुत बड़ी थी। अपने दिव्य गुणों से उन्होंने…
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श्री ज्ञानानंद जी महाराज का मानना है कि:-
श्री विष्णु जी अविनाशी हैं तथा पूर्ण परमात्मा हैं। प्रमाण श्री सुधा सागर पृष्ठ 660-661 में।
जगतगुरु तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज :
गीता अध्याय 4 श्लोक 5 में गीता बोलने वाले ने कहा है कि अर्जुन! तेरे और मेरे बहुत जन्म हो चुके हैं।
सिद्ध हुआ कि गीता ज्ञान कहने वाला अविनाशी नहीं है। यदि अविनाशी नहीं है तो पूर्ण परमात्मा भी नहीं है।
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