कानपुर वाले घर में मेरी मां, पापा और छोटी बहन रहती थी. मेरी बहन का नाम सुषमा है. उम्र में वो मुझसे तीन साल छोटी है. वो घर में सबकी लाडली है. ये कहानी जो मैं आप लोगों को आज बताने जा रहा हूं, यह करीबन दो साल पुरानी है.
उस वक्त मेरी बहन ने अपनी एमबीए की पढ़ाई पूरी की थी. पढ़ाई में हम दोनों भाई-बहन ही अच्छे थे. एमबीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद मेरी बहन अब जॉब की तलाश में थी.
चूंकि मैं हैदराबाद जैसे बड़े शहर में रह रहा था तो मैंने उससे कहा कि तुम मेरे ही शहर में जॉब ढूंढ लो. मेरी यह बात मेरे माता-पिता को भी ठीक लगी. मेरे शहर में रहने से उनको भी अपनी बेटी की सेफ्टी की चिंता करने की आवश्यकता नहीं थी.
हैदराबाद में पी.जी. रूम लेकर मैं रह रहा था. मगर अब सुषमा भी साथ में रहने वाली थी तो मैंने एक बीएचके वाला फ्लैट ले लिया. कुछ दिन के बाद बहन भी मेरे साथ मेरे फ्लैट में शिफ्ट हो गई.
सुषमा के बारे में आपको बता दूं कि वो काफी खुलकर बात करने वालों में से है. उसकी हाइट 5.6 फीट है और मेरी हाइट 6 फीट के लगभग है. मेरी बहन के बदन की बात करूं तो उसकी गांड काफी उठी हुई है. जब वो अपनी कमर को लचकाते हुए चलती है तो किसी भी मर्द को घायल कर सकती है.
मेरी बहन का फीगर 36-30-38 का है. आप अंदाजा लगा सकते हैं कि उसकी चूचियां भी कितनी बड़ी होंगी. उसकी चूचियां हमेशा उसके कपड़ों से बाहर झांकती रहती थीं. मैंने सुना था कि जवान लड़की की चूत चुदाई होने के बाद उसकी चूचियों का साइज भी बढ़ जाता है.
अपनी बहन की चूचियों को देख कर कई बार मेरे मन में ख्याल आता था कि कहीं यह भी अपनी चूत चुदवा रही होगी. मगर मैं इस बारे में विश्वास के साथ कुछ नहीं कह सकता था. मेरी बहन खुले विचारों वाली थी तो दोनों तरह की बात हो सकती थी.
जब वो मेरे साथ फ्लैट में रहने लगी तो अभी उसके पास जॉब वगैरह तो थी नहीं. वो अपना ज्यादातर समय फ्लैट पर ही बिताती थी. मैं सुबह ही अपने काम पर निकल जाता था. पूरा दिन फ्लैट पर रह कर वो बोर हो जाती थी.
एक रोज वो कहने लगी कि वो सारा दिन फ्लैट पर रह कर बोर हो चुकी है. उसका मन कहीं बाहर घूमने के लिए कर रहा था. उसने मुझसे कहीं बाहर घूमने चलने के लिए कहा.मैंने कह दिया कि हम लोग मेरी छुट्टी वाले दिन चलेंगे.
फिर वीकेंड पर मैंने अपनी बहन के साथ बाहर घूमने का प्लान किया. अभी तक मेरे मन में मेरी बहन के लिए कोई गलत ख्याल नहीं था. हम लोग पास के ही एक मॉल में घूमने के लिए गये. मेरी बहन उस दिन पूरी तैयार होकर बाहर निकली थी.
उसके कुर्ते में उसकी चूचियां पूरे आकार में दिखाई दे रही थीं. हम लोगों ने साथ में घूमते हुए काफी मस्ती की और फिर घर वापस लौटने लगे. मगर रास्ते में बारिश होने लगी. इससे पहले कि हम लोग बारिश से बचने के लिए कहीं रुकते, हम दोनों ऊपर से लेकर नीचे तक पूरे भीग चुके थे.
बारिश काफी तेज थी इसलिए मैंने सोचा कि बारिश रुकने का इंतजार करना ही ठीक रहेगा. हम दोनों बाइक रोक कर एक मकान के छज्जे के नीचे खड़े हो गये. सुषमा के बदन पर मेरी नजर गई तो मैं चाह कर भी खुद को उसे ताड़ने से नहीं रोक पाया.
उसकी मोटी चूचियों की वक्षरेखा, जिस पर पानी की बूंदें बहती हुई अंदर जा रही थी, मेरी नजरों से कुछ ही इंच की दूरी पर थी. उसको देख कर मेरे लौड़े में अजीब सी सनसनी होने लगी. मैंने उसकी सलवार की तरफ देखा तो उसकी भीगी हुई गांड और जांघें देख कर मेरे लंड में और ज्यादा हलचल होने लगी.
मैं बहाने से उसको घूरने लग गया था. ऐसा मेरे साथ पहली बार हो रहा था. फिर कुछ देर के बाद बारिश रुक गयी और हम अपने फ्लैट के लिए निकल गये. उस दिन के बाद से मेरी बहन के लिए मेरा नजरिया बदल गया था.
अपनी बहन की चूचियों को मैं घूरने लगा था. बहन की गांड को ताड़ना अब मेरी आदत बन चुकी थी. मेरी हाइट उससे ज्यादा थी तो जब भी वो मेरे सामने आती थी उसकी चूचियां ऊपर से मुझे दिखाई दे जाती थीं. कई बार हंसी-मजाक में मैं उसको गुदगुदी कर दिया करता था.
इस बहाने से मैं उसकी चूचियों को छेड़ दिया करता था. कभी उसकी गांड को सहला देता था. यह सब हम दोनों के बीच में अब नॉर्मल सी बात हो गई थी. जब भी वो नहा कर बाहर आती थी तो वह तौलिया में होती थी. ऐसे मौके पर मैं जानबूझकर उसके आस-पास मंडराने लगता था.
जब मैं उसके साथ छेड़खानी करता था तो वो मेरी हर हरकत को नोटिस किया करती थी. उसको मेरी हरकतें पसंद आती थीं. इस बात का पता मुझे भी था. जब भी मैं उसको छेड़ता था तो वो मेरी हरकतों को हंसी में टाल दिया करती थी.
वो भी कभी-कभी मुझे यहां-वहां से छूती रहती थी. कई बार तो उसका हाथ मेरे लंड पर भी लग जाता था या फिर यूं समझें कि वो मेरे लंड बहाने से छूने की कोशिश करने लगी थी. अब आग दोनों तरफ शायद बराबर की ही लगी हुई थी.
ऐसे ही मस्ती में दिन कट रहे थे. एक दिन की बात है कि मैं उस दिन ऑफिस से जल्दी आ गया. हम दोनों के पास ही फ्लैट की एक-एक चाबी रहती थी. मैंने बाहर से ही लॉक खोल लिया था.
जब मैं अंदर गया तो उस वक्त सुषमा बाथरूम के अंदर से नहा कर बाहर आ रही थी. मैंने उसे देख लिया था मगर उसकी नजर मुझ पर नहीं पड़ी थी. उसने अपने बदन पर केवल एक टॉवल लपेटा हुआ था.
Nangi Behan
वो सीधी कबॉर्ड की तरफ जा रही थी. मैं भी उसको जाते हुए देख रहा था. अंदर जाकर उसने अलमारी से एक ब्रा और पैंटी को निकाला. उसने अपना टॉवल उतार कर एक तरफ डाल दिया. बहन के नंगे चूतड़ मेरे सामने थे.
मेरे सामने ही वो ब्रा और पैंटी पहनने लगी. उसका मुंह दूसरी तरफ था इसलिए उसकी नंगी चूत और चूचियां मैं नहीं देख पाया. मगर जल्दी ही उसको किसी के होने का आभास हो गया और वो पीछे मुड़ गई.
जैसे ही उसने मुझे देखा वो जोर से चिल्लाई और मैं भी घबरा कर बाहर हॉल में आ गया. कुछ देर के बाद वो कपड़े पहन कर बाहर आई और मुझ पर गुस्सा होते हुए कहने लगी कि भैया आपको नॉक करके आना चाहिए था.
मैंने उसकी बात का जवाब देते हुए कहा- अगर मैं नॉक करके आता तो क्या तुम मुझे वैसे ही अंदर आने देती?उसने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया. मैं समझ गया कि उसकी इस खामोशी में उसकी हां छुपी हुई है.
अब मैंने थोड़ी हिम्मत की और उसके करीब आकर उसको अपनी बांहों में भर लिया. वो मेरी तरफ हैरानी से देख रही थी. मैंने उसकी आंखों में देखा और देखते ही देखते हम दोनों के होंठ आपस में मिल गये. मैंने उसके होंठों को चूमना शुरू कर दिया.
पहले तो मेरी बहन दिखावटी विरोध करती रही. फिर कुछ पल के बाद ही उसने विरोध करना बंद कर दिया. शायद उसको भी इस बात का अंदाजा था कि आज नहीं तो कल ये सब होने ही वाला है. इसलिए अब वो मेरा पूरा साथ दे रही थी.
दस मिनट तक हम दोनों एक दूसरे के होंठों को पीते रहे. उसके बाद मैंने उसके कपड़ों उतारना शुरू कर दिया. उसका टॉप उतारा और उसको ब्रा में कर दिया. फिर मैंने उसकी जीन्स को खोला और उसकी जांघों को भी नंगी कर दिया.
अब मैंने उसकी ब्रा को खोलते हुए उसकी चूचियों को नंगी कर दिया. उसकी मोटी चूचियां मेरे सामने नंगी हो चुकी थीं. उसकी चूचियों को मैंने अपने हाथों में भर लिया.
उसके नर्म-नर्म गोले अपने हाथ में भर कर मैंने उनको दबा दिया. अब एक हाथ से उसकी एक चूची को दबाते हुए मैं दूसरे हाथ को नीचे ले गया. उसकी पैंटी के अंदर एक उंगली डाल कर मैंने उसकी चूत को कुरेद दिया.
बहन की चूत पानी छोड़ कर गीली हो रही थी. मैंने उसकी चूत को कुरेदना जारी रखा. उसका हाथ अब मेरे लंड पर आ गया था. मेरा लंड भी पूरा तना हुआ था. वो अब मेरे लंड को पैन्ट के ऊपर से ही पकड़ कर सहला रही थी.
मैं भी उत्तेजित हो चुका था और मैंने अपनी पैंट को खोल दिया. पैंट नीचे गिर गयी. सुषमा ने मेरी पैन्ट को मेरी टांगों में से निकलवा दिया. वो अब खुद ही आगे बढ़ रही थी. उसने मेरे अंडरवियर को भी निकाल दिया.
मेरे लंड को पकड़ कर वो उसकी मुठ मारने लगी. मैं तो पागल ही हो उठा. मैं उसकी चूचियों को जोर से भींचने लगा. फिर मैंने झुक कर उसकी चूचियों को मुंह में भर लिया और उसके निप्पलों को काटने लगा.
इतने में ही मेरी बहन ने अपनी पैन्टी को खुद ही नीचे कर लिया. उसकी चूत अब नंगी हो गई थी. मैं उसकी चूचियों को चूस रहा था. उसके निप्पलों को काट रहा था. बीच-बीच में चूचियों के निप्पलों को दो उंगलियों के बीच में लेकर दबा रहा था.
सुषमा अब काफी उत्तेजित हो गई थी. अचानक ही वो मेरे घुटनों के बीच में बैठ गई और अपने घुटनों के बल होकर उसने मेरे लंड को अपने मुंह में भर लिया. मेरी बहन मस्ती से मेरे 8 इंची लंड को चूसने लगी. ऐसा लग रहा था जैसे उसको मेरा लंड बहुत पसंद है.
वो जोर से मेरे लंड को चूसती रही और मेरे मुंह से अब उत्तेजना के मारे जोर की आवाजें सिसकारियों के रूप में बाहर आने लगीं. आह्ह … सुषमा, मेरी बहन, मेरे लंड को इतना क्यों तड़पा रही हो!मैंने उसके सिर को पकड़ कर अपने लंड पर अंदर दबाना और घुसाना शुरू कर दिया.
दो-तीन मिनट तक लंड को चुसवाने के बाद मैं स्खलन के करीब पहुंच गया. मैंने बहन के मुंह में लंड को पूरा घुसेड़ दिया और मेरे लंड से वीर्य की पिचकारी बहन के मुंह में जाकर गिरने लगी.
मेरी बहन मेरा सारा माल पी गयी. मैंने उसको बेड पर लिटा लिया और उसकी चूत में उंगली करने लगा. वो तड़पने लगी. उसकी चूत पानी छोड़ रही थी. मगर उसकी चूत की चुदाई शायद पहले भी हो चुकी थी. चूत भले ही टाइट थी लेकिन कुंवारी चूत की बात ही अलग होती है. मुझे इस बात का अन्दाजा हो गया था.
मैं उसकी चूत को चाटने लगा. उसकी चूत का सारा रस मैंने चाट लिया.जब उससे बर्दाश्त न हुआ तो वो कहने लगी- भैया, अब चोद दो मुझे… आह्ह … अब और नहीं रुका जा रहा मुझसे.मैंने उसकी चूत में अन्दर तक जीभ घुसेड़ दी और वो मेरे मुंह को अपनी चूत पर जोर से दबाने लगी.
फिर मैंने मुंह हटा लिया. अब उसकी टांगों को मैंने बेड पर एक दूसरे की विपरीत दिशा में फैला दिया. बहन की चूत पर अपने लंड को रख दिया और रगड़ने लगा. मेरा लंड फिर से तनाव में आ गया. देखते ही देखते मेरा पूरा लंड तन गया.
मैंने अपने तने हुए लंड के सुपाड़े को चूत पर रखा और एक झटका दिया. पहले ही झटके में लंड को आधे से ज्यादा उसकी चूत में घुसा दिया. वो दर्द से चिल्ला उठी- उम्म्ह… अहह… हय… याह…मगर मैं अब रुकने वाला नहीं था. मैंने लगातार उसकी चूत में झटके देना शुरू कर दिया. बहन की चूत की चुदाई शुरू हो गई.
सुषमा की चूत में अब मेरा पूरा लंड जा रहा था. वो भी अब मजे से मेरे लंड को अंदर तक लेने लगी थी. मैं पूरे लंड को बाहर निकाल कर फिर से पूरा लंड अंदर तक डाल रहा था. दोनों को ही चुदाई का पूरा आनंद मिल रहा था.
अब मैंने उसको बेड पर घोड़ी बना दिया और पीछे से उसकी चूत में लंड को पेलने लगा. उसकी चूत में लंड घुसने की गच-गच आवाज होने लगी. मेरे लंड से भी कामरस निकल रहा था और उसकी चूत भी पानी छोड़ रही थी इसलिए चूत से पच-पच की आवाज हो रही थी.
फिर मैंने उसको सीधी किया और उसके मुंह में लंड दे दिया. मेरे लंड पर उसकी चूत का रस लगा हुआ था. वो फूल चुके लंड को चूसने-चाटने लगी. उसकी लार मेरे लंड पर ऊपर से नीचे तक लग गई.
अब दोबारा से मैंने उसकी टांगों को फैलाया और उसकी चूत में जोर से अपने लंड के धक्के लगाने लगा. पांच मिनट तक इसी पोजीशन में मैंने उसकी चूत को चोदा और वो झड़ गई. अब मेरा वीर्य भी दोबारा से निकलने के कगार पर पहुंच गया था.
मैंने उसकी चूत में तेजी के साथ धक्के लगाना शुरू कर दिया. उसकी चूत मेरे लंड को पूरा का पूरा अंदर ले रही थी. फिर मैंने दो-तीन धक्के पूरी ताकत के साथ लगाये और मैं अपनी बहन की चूत में ही झड़ने लगा. उसकी चूत को मैंने अपने वीर्य से भर दिया.
हम दोनों थक कर शांत हो गये. उस दिन हम दोनों नंगे ही पड़े रहे. शाम को उठे और फिर खाना खाया. उसके बाद रात में एक बार फिर से मैंने अपनी बहन की चूत को जम कर चोदा. उसने भी मेरे लंड को चूत में लेकर पूरा मजा लिया और फिर हम सो गये.
उस दिन के बाद से हम भाई-बहन में अक्सर ही चुदाई होने लगी. अब उसको मेरे साथ रहते हुए काफी समय हो गया है लेकिन हम दोनों अभी भी चुदाई करते हैं. मुझे तो आज भी ये सोच कर विश्वास नहीं होता है कि मैं इतने दिनों से अपनी बहन की चूत की चुदाई कर रहा हूं.
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MERI KAHANI, MERI ZUBANI : EP 1
मेरा जन्म इलाहबाद में हुआ । मेरे पिताजी नैनी T.S.L में कार्य करते थे । नैनी Glass Factory में मेरे बाबा स्वर्गीय श्री कृष्ण बिहारी माथुर काम करते थे । वहीं पर स्टाफ़ क्वॉर्टर में हमारा घर था, वहाँ एक एक बगिया हुआ करती थी बड़ी धुंधली यादे हैं वहाँ के आम के बाग की । ज़मीन तक लटकते हुए आम ऐसे की लेट कर मुँह में आ जाएँ । मेरी उम्र शायद २.५ या ३ साल की रही होगी, सबसे पहली यादें हैं यह मेरी पेड़ में लगे हुई आम की । बाबा जी मुझे cycle पर बैठा कर स्कूल ले जाते थे इस वक़्त एक ही convent school था नैनि में Bethany convent school. सुबह सुबह रोज़ वहाँ के church में जाना और Father Francis की मज़ेदार बातें सुन ना हमारा रोज़ का नियम था ।
समय बीतता गया कुछ सालों में नैनी के गुरु नानक नगर कॉलोनी में हमारा अपना घर बन गया । एक छोटी सी बगिया भी लगाई गई…और बहुत सारे फलों के पेड़ भी लगाए गए …
मुझे याद नही सेब के अलावा हमने कभी कोई फल ख़रीद कर खाया हो ।
मेरी माँ बहुत ही स्वादिष्ट खाना बनातीं हैं । मेंने हमेशा उन्हें हम लोगों के लिए तरह तरह के स्वादिष्ट व्यंजन बनाते देखा ।
मेरे पापा ख़ानदान में सबसे बड़े थे तो रिश्तेदारों का आना जाना हमेशा से बहुत अधिक था । माँ के हाथ के बने अचार विशेष रूप से सभी को बहुत पसंद आते थे ।
खाते तो थे ही बांध कर भी ले जाते थे । धीरे धीरे उन्ही के हाथों का स्वाद मेरे बनाए खाने में भी आने लगा । घर के कामों में मदद करने के साथ साथ अनाज, मसालों को सहेजना, अचार बनाना कब सीख लिया पता ही नही चला … पता नहीं माँ के हाथों में क्या जादू था कि कुछ भी दे दो स्वाद hiबने गा ।
गर्मी की छुट्टियों में नानी जी के घर जाते तो सभी मामा मौसी के बच्चे होते थे और हम सब भाई बहनों का प्रिय नाश्ता आम का अचार और पराठा था । दुपहर में जब मेरी नानी सो जाती तब बरनी में से चुरा कर आम की फाँक खाने में जो स्वाद आता था आहाऽऽऽ !!! जैसे सब कुछ मिल गया हो । आज कल के पिज़्ज़ा बर्गर में भी वह स्वाद कहाँ…
अब तो वो खेल मस्ती और ननिहाल का आँगन, आँगन में ढेर सारी गौरयों का स्थायी घर , रोज़ उनका चहकना बस यादों में ही रह गया है ।
हाँ ! साथ बचा है तो उन हाथों का स्वाद जो कब धीरे से सरक के मेरे पास आ गया पता ही नही चला ।
सच है खाना बनाना सीखना कोई kuch दिन ka crash course नहीं। खाना बनाना आपसे बहुत सारा dedication माँगता है । अपनों के लिए प्यार और समर्पण का भाव माँगता है । किसी recipe से नही बनता । प्यार से फिर भी बन जाए ।
आज के लिए बस इतना ही ।
शेष फिर ।
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Ruchi Mathur
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जब छोटी-छोटी नदियाँ बड़ी होती हैं,
वो खो देती हैं अपना अस्तित्व।
वो बिसरा देती हैं अपना भूत,
जानी जाती हैं एक नई पहचान से।
ये देती हैं मछलियों, कछुओं और घड़ियालों को खुद में आसरा,
कराती हैं उन्हें विश्व की सैर अपनी पीठ पर बैठा कर।
लेकिन उन नदियों के कंधो पर लाद दिया जाता है
उनकी उम्र से ज्यादा भार।
पर जब इन नदियों की रेती पर बच्चे बनाते हैं घरौंदें,
तब ये नदियां खेलती हैं बच्चों के संग कई खेल,
हो जाती हैं बड़े होते - होते एक बार फिर से छोटी।
पर जब ये उदास होती हैं तो पी जाती हैं अपने सारे आंसू,
सुखा देती हैं अपना सारा जल,
रह जाता है सिर्फ खारापन नदियों की तलहटी में।
और क्रोध में ये खींच लाती हैं आदमी को अपनी तरफ।
जब ये नदियां बड़े होते- होते थक जाती हैं,
तो मिल जा बैठती है समुन्दर में।
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कौन थे जय गुरुदेव पंथ के प्रवर्तक बाबा तुलसी दास | SA News Chhattisgarh
जय गुरुदेव पंथ के प्रवर्तक बाबा तुलसीदास का जन्म वर्ष 1896 में ग्राम किटौरा, जिला इटावा, उत्तर प्रदेश में हुआ था। तुलसीदास जी के माता-पिता का देहांत उनके बचपन में ही हो गया था। तुलसीदास जी का बचपन से ही आध्यात्म की ओर झुकाव था। माता-पिता की मृत्यु के बाद तुलसीदास जी मंदिर के पुजारी के पास रहने लगे। वहाँ रहते हुए उन्होंने कुछ आध्यात्मिक पुस्तकों का अध्ययन किया। उन्हें पढ़ने के बाद उन्हें विश्वास हो गया कि ईश्वर तो है, लेकिन वह कहाँ है? और ईश्वर को पाने का तरीका क्या है? इसका उन पुस्तकों में कहीं उल्लेख नहीं था। जय गुरुदेव एक पुण्यात्मा थे। संभवतः वे अपने पिछले मानव जन्मों में कोई ऋषि/महर्षि रहे होंगे। उनके पहले के शुभ कर्म प्रबल थे। उन्हें ईश्वर को पाने की प्रबल इच्छा थी। वे भक्ति के लिए भटकते रहे।
एक दिन किसी ने उसे बताया कि भगवान मस्जिद में आएंगे और नमाज पढ़ेंगे। इसके बाद वह रोज मस्जिद जाने लगा। उसने बताया कि एक दिन उसने लोगों को बकरा काटते देखा, जिससे उसे बहुत दुख हुआ और फिर उसने नमाज पढ़ना बंद कर दिया। उसके बाद किसी ने उसे बताया कि शरीर में 'संख चक्र गदा' का टैटू बनवाने से भगवान की प्राप्ति होती है। उसने अपने शरीर पर टैटू बनवा लिए। उसे ईश्वर की प्राप्ति तो नहीं हुई, लेकिन उसे बहुत शारीरिक पीड़ा सहनी पड़ी।
फिर तुलसीदास जी अपने घर वापस आए जहाँ उनकी मुलाक़ात एक पंडित से हुई जिनका नाम घूरेलाल जी था। तुलसीदास जी ने उनसे दीक्षा ली। घूरेलाल जी ने उन्हें हठ योग (जबरन पूजा) करने को कहा और फिर तुलसीदास जी दिन में 18 घंटे हठ योग करने लगे। बाद में उन्होंने 10 जुलाई 1952 से 1971 तक दीक्षा देना शुरू किया। उनके एक करोड़ अनुयायी थे।
जय गुरुदेव उर्फ़ तुलसीदास जी ने कई भविष्यवाणी की है जो उनके समर्थकों के लिए राज़ बनकर रह गई। उन्होंने एक महान संत के बारे में भविष्यवाणी की है।
संदर्भ: 'शाकाहारी पत्रिका (न्यूज़लैटर) बालसंघ' में 'जय गुरुदेव की अमर वाणी', प्रकाशक दिव्या शर्मा, 88, साकेत कॉलोनी, मथुरा-यूपी, मुद्रक अर्जेंट प्रिंटर्स, पुराना बस स्टैंड, मथुरा-यूपी, पृष्ठ 50, दिनांक: 7 सितम्बर 1971
जय गुरुदेव पंथ के संत तुलसीदास जी ने 1971 में एक और महान संत के बारे में भविष्यवाणी की थी और उन्हें पूर्ण संत कहकर संबोधित किया था। उन्होंने उस संत की उम्र और अन्य विशेषताओं का बहुत अच्छा वर्णन किया था। संत तुलसी दास जी ने 7 सितंबर 1971 को अपने समाचार पत्र जय गुरुदेव की अमरवाणी में इस बारे में विस्तार से लिखा था कि जिस अवतार का पूरी दुनिया बेसब्री से इंतजार कर रही है, वह भारत के एक छोटे से गांव में जन्म ले चुका है। आज उसकी उम्र 20 साल हो गई है। अगर मैं उसका पता बताऊं तो सब उसके पीछे पड़ जाएंगे। आज की तारीख में मुझे इस बात का खुलासा करने की कोई ईश्वरीय अनुमति नहीं है। मैं सही समय का इंतजार कर रहा हूं, जैसा कि सभी महापुरुषों ने किया है। जब समय आएगा, तो सबको सब पता चल जाएगा।'
इसी पुस्तक में गुरुदेव पंथ के संस्थापक ने अपनी पुस्तक 'जय गुरुदेव की भविष्यवाणी' - भाग 2 के पृष्ठ 22 पर कोरोन बीमारी की भी भविष्यवाणी की थी।
जय गुरुदेव ने अपने भविष्यवाणी में अवतारी पुरुष का संकेत दिया था तथा बताया था कि वह मानवता के गिरते स्तर को फिर से ऊपर उठाएगा। वह अवतार नास्तिकता को पूरी तरह से नष्ट कर देगा। इतना ही नहीं वह अवतार स्वर्ण युग लाएगा और विश्व में शांति और भाईचारा स्थापित करेगा। फिर सारा विश्व एक होकर कबीर परमेश्वर जी की सच्ची भक्ति करेगा। वह अवतार इस समय भारत में जन्म ले चुका है और वह अवतार कोई और नहीं संत रामपाल जी महाराज जी ही हैं। अब वह दिन दूर नहीं जब पूरा विश्व संत रामपाल जी को पहचानेगा और सभी संत रामपाल जी महाराज जी की बताई सतभक्ति करेंगे।
वह अवतार और कोई नहीं संत रामपाल जी महाराज जी है। 7 सितंबर 1971 को संत रामपाल जी महाराज पूरे 20 वर्ष के हो चुके थे। संत रामपाल जी महाराज ही कलयुग में पुनः सतयुग की स्थापना करने जा रहे। 2011 में संत रामपाल जी महाराज जी ने जय गुरुदेव उर्फ़ तुलसीदास जी को अपनी की हुई भविष्यवाणी अर्थात् वह तारणहार कौन है उजागर करने को कहा था, परंतु तब तक उनकी दिव्यदृष्टि काम नहीं कर रही थी। 2012 में 116 वर्ष की आयु में तुलसीदास जी बीमारी के कारण मृत्यु को प्राप्त हुए। अधिक जानकारी के लिए visit करें, SA News YouTube Channel
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अब सुबह की थकान और आलस से छुटकारा पाएं, जानिए इस पक्के इलाज से कैसे!
नींद आपके संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है। दिनभर के काम से आपका तन और मन दोनों थके हुए हैं और इस थकान के बाद, आपके शरीर को आराम की जरूरत होती है ताकि वह अगले दिन के लिए तैयार हो सके। इसलिए जब आप आराम करने और सोने की कोशिश करते हैं, तो आपका दिमाग फिर से काम करना शुरू कर देता है और आपको सोने से रोकता है।
आपके दिमाग में तरह-तरह के विचार आने लगते हैं और आप करवटें बदलते रहते हैं । कई बार आप विचारों को थामने के लिए टीवी, मोबाइल या टैब पर अपने पसंदीदा प्रोग्राम देखने लगते हैं। हालांकि कई बार रात में 7-8 घंटे सोने के बाद भी आपको थकान महसूस हो सकती है। यह सामान्य है, लेकिन अगर ऐसा हर दिन होता है, तो आपको अपना अतिरिक्त ध्यान रखने की जरूरत है। अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो आप जल्द ही बीमार पड़ सकते हैं। यहां हम आपको कुछ आसान उपाय बताएँगे, जो आपको सुबह की थकान और आलस से मुक्ति दिलाने में मदद कर सकते हैं।
समय पर सोने और उठने का महत्व
एक अनुसंधान के अनुसार, समय पर सोने और उठने से सेहत को बेहतरीन लाभ मिलते हैं। आपको समय पर सोना चाहिए और एक नियमित रूटीन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। नियमित नींद लेने से आपके शरीर में एक संतुलित व्यवस्था होती है और आपको अधिक ऊर्जा का भंडार मिलता है। इससे आपके मन में शांति मिलती है और आप अधिक फोकस रख पाते हैं। इसलिए, समय पर सोने और उठने से आपकी सेहत बेहतर होती है।
नियमित योग और प्राणायाम है जरूरी
एक अच्छा व्यायाम रूटीन आपकी सेहत के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। योग और प्राणायाम आपके शरीर को स्वस्थ रखने में मदद कर सकते हैं। योग और प्राणायाम करने से आपके शरीर के मुख्य अंगों तक सही मात्रा में रक्त पहुंचाने में मदद मिलती है, जिससे आपके शरीर को बेहतर तरीके से काम करने में मदद मिलती है।
खूब सारा पानी पिंए
हाइड्रेटेड रहने और पर्याप्त ऊर्जा पाने के लिए खूब पानी पिएं। यदि आप पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं पीते हैं, तो आप थकान महसूस करेंगे और ऊर्जा की कमी महसूस करेंगे। इसलिए पानी खूब पिए ।
हर दिन करें मालिश
यदि आप रात को अच्छी तरह सोने के बाद सुबह उठकर थकान महसूस करते हैं, तो आप हर दिन तेल से मालिश करके अपने शरीर को बेहतर आराम देने में मदद कर सकते हैं। ऐसा करने से आपके पूरे तंत्रिका तंत्र को बेहतर तरीके से काम करने में मदद मिलेगी और आप पूरे दिन अधिक सक्रिय महसूस करेंगे।
ध्यान करने से बनी रहेगी ताजगी
ध्यान आपके विचारों को शांत करने और पूरे दिन सतर्क और केंद्रित रहने का एक तरीका है। यह एक बेस्ट प्रेक्टिस है जो आपके नर्वस सिस्टम और दिमाग को पूरे दिन के लिए तैयार करने का काम करता है। कुछ लोगों का मानना है कि ध्यान करने से आपका दिमाग मजबूत और उम्र से अप्रभावित रहेगा।
एक अच्छा नियंत्रित आहार
आपको अपनी डाइट में पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थ शामिल करने की जरूरत होती है, जैसे कि फल, सब्जियां, अनाज, दूध आदि। सही मात्रा में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, फैट्स, विटामिन्स और मिनरल्स का सेवन करना आपके शरीर को स्वस्थ बनाए रखने में मदद करता है। स्वस्थ आहार के लिए, आप खाने की विभिन्न पदार्थों का संतुलित समूह बनाने का प्रयास कर सकते हैं और अधिक तरल पदार्थों के सेवन से बचना चाहिए।
जब हमारा शरीर पूर्ण रुप से पोषण तत्वों को प्राप्त नही कर पाता है, तो हम कमजोर और सुस्त महसूस करते है। कई बार हमारे शरीर को पर्याप्त विटामिन नहीं मिलते इस वजह से भी शरीर हल्के काम में भी अधिक उर्जा को खर्च करने लगता है जिसकी वजह से थकान व अन्य स्वस्थ समस्याएँ होने लगती है । दिनचर्या में उपरोक्त दिए गए आसान उपायों को अपनी जीवनशैली में सम्मिलित करने के साथ ही Fytika Vita 365 टेबलेट को लेने से आप आप अधिक ऊर्जावान और फिट रह सकते हैं। | यह सप्लीमेंट हमारे शरीर के लिए वो पोषक तत्व है जो हमारे शरीर को स्वस्थ और सही से काम करने में मदद करते है ।हमारे शरीर में त्वचा के बनने और ठीक होने, हड्डियों के बनने और ठीक होने, कोशिकाओं के बनने और ठीक होने में मदद करते है। साथ ही ये हमारे इम्यून सिस्टम को भी बेहतर बनाते है जिससे हमारा शरीर बीमारियों से लड़ पाता है।
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"Celebrate by their side, and witness joy beyond words."
रक्षा बंधन की आप सबको हार्दिक शुभकामनाएं🌺🌺🌺🌺🌺
I am sharing a heart-touching story that goes for every festival and applies to all of us.
You may not realize it, but when you're celebrating a festival, there might be someone you know who has weathered the storms of life. When you stand by their side, the happiness reflected in their eyes is beyond words.
I don't know who wrote this post, but it brought tears to my eyes. One line from the entire post: "A brother said to his sisters, 'The time has come for the pilgrimage to the four holy sites
"मेरी छोटी बुआ...!"
रक्षाबंधन का त्यौहार पास आते ही मुझे सबसे ज्यादा मुंबई वाली बुआ जी की राखी के कूरियर का इन्तेज़ार रहता था.
कितना बड़ा पार्सल भेजती थी बुआ जी.
तरह-तरह के विदेशी ब्रांड वाले चॉकलेट,गेम्स, मेरे लिए कलर फूल ड्रेस , मम्मी के लिए साड़ी, पापाजी के लिए कोई ब्रांडेड शर्ट.
इस बार भी बहुत सारा सामान भेजा था उन्होंने.
पटना और रामगढ़ वाली दोनों बुआ जी ने भी रंग बिरंगी राखीयों के साथ बहुत सारे गिफ्टस भेजे थे.
बस रोहतास वाली जया बुआ की राखी हर साल की तरह एक साधारण से लिफाफे में आयी थी
पांच राखियाँ, कागज के टुकड़े में लपेटे हुए रोली चावल और पचास का एक नोट.
मम्मी ने चारों बुआ जी के पैकेट डायनिंग टेबल पर रख दिए थे ताकि पापा ऑफिस से लौटकर एक नजर अपनी बहनों की भेजी राखियां और तोहफे देख लें...
पापा रोज की तरह आते ही टी टेबल पर लंच बॉक्स का थैला और लैपटॉप की बैग रखकर सोफ़े पर पसर गए थे.
"चारो दीदी की राखियाँ आ गयी है...
मम्मी ने पापा के लिए किचन में चाय चढ़ाते हुए आवाज लगायी थी...
"जया का लिफाफा दिखाना जरा...
पापा जया बुआ की राखी का सबसे ज्यादा इन्तेज़ार करते थे और सबसे पहले उन्हीं की भेजी राखी कलाई में बांधते थे....
जया बुआ सारे भाई बहनो में सबसे छोटी थी पर एक वही थी जिसने विवाह के बाद से शायद कभी सुख नहीं देखा था.
विवाह के तुरंत बाद देवर ने सारा व्यापार हड़प कर घर से बेदखल कर दिया था.
तबसे फ़ूफा जी की मानसिक हालत बहुत अच्छी नहीं थी. मामूली सी नौकरी कर थोड़ा बहुत कमाते थे .
बेहद मुश्किल से बुआ घर चलाती थी.
इकलौते बेटे श्याम को भी मोहल्ले के साधारण से स्कूल में डाल रखा था. बस एक उम्मीद सी लेकर बुआ जी किसी तरह जिये जा रहीं थीं...
जया बुआ के भेजे लिफ़ाफ़े को देखकर पापा कुछ सोचने लगे थे...
'गायत्री इस बार रक्षाबंधन के दिन हम सब सुबह वाली पैसेंजर ट्रेन से जया के घर रोहतास (बिहार )उसे बगैर बताए जाएंगे...
"जया दीदी के घर..!!
मम्मी तो पापा की बात पर एकदम से चौंक गयी थी...
आप को पता है न कि उनके घर मे कितनी तंगी है...
हम तीन लोगों का नास्ता-खाना भी जया दीदी के लिए कितना भारी हो जाएगा....वो कैसे सबकुछ मैनेज कर पाएगी.
पर पापा की खामोशी बता रहीं थीं उन्होंने जया बुआ के घर जाने का मन बना लिया है और घर मे ये सब को पता था कि पापा के निश्चय को बदलना बेहद मुश्किल होता है...
रक्षाबंधन के दिन सुबह वाली धनबाद टू डेहरी ऑन सोन पैसेंजर से हम सब रोहतास पहुँच गए थे.
बुआ घर के बाहर बने बरामदे में लगी नल के नीचे कपड़े धो रहीं थीं....
बुआ उम्र में सबसे छोटी थी पर तंग हाली और रोज की चिंता फिक्र ने उसे सबसे उम्रदराज बना दिया था....
एकदम पतली दुबली कमजोर सी काया. इतनी कम उम्र में चेहरे की त्वचा पर सिलवटें साफ़ दिख रहीं थीं...
बुआ की शादी का फोटो एल्बम मैंने कई बार देखा था. शादी में बुआ की खूबसूरती का कोई ज़वाब नहीं था. शादी के बाद के ग्यारह वर्षो की परेशानियों ने बुआ जी को कितना बदल दिया था.
बेहद पुरानी घिसी सी साड़ी में बुआ को दूर से ही पापा मम्मी कुछ क्षण देखे जा रहे थे...
पापा की आंखे डब डबा सी गयी थी.
हम सब पर नजर पड़ते ही बुआ जी एकदम चौंक गयी थी.
उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वो कैसे और क्या प्रतिक्रिया दे.
अपने बिखरे बालों को सम्भाले या अस्त व्यस्त पड़े घर को दुरुस्त करे.उसके घर तो बर्षों से कोई मेहमान नहीं आया था...
वो तो जैसे जमाने पहले भूल चुकी थी कि मेहमानों को घर के अंदर आने को कैसे कहा जाता है...
बुआ जी के बारे मे सब बताते है कि बचपन से उन्हें साफ सफ़ाई और सजने सँवरने का बेहद शौक रहा था....
पर आज दिख रहा था कि अभाव और चिंता कैसे इंसान को अंदर से दीमक की तरह खा जाती है...
अक्सर बुआ जी को छोटी मोटी जरुरतों के लिए कभी किसी के सामने तो कभी किसी के सामने हाथ फैलाना होता था...
हालात ये हो गए थे कि ज्यादातर रिश्तेदार उनका फोन उठाना बंद कर चुके थे.....
एक बस पापा ही थे जो अपनी सीमित तनख्वाह के बावजूद कुछ न कुछ बुआ को दिया करते थे...
पापा ने आगे बढ़कर सहम सी गयी अपनी बहन को गले से लगा लिया था.....
"भैया भाभी मन्नू तुम सब अचानक आज ?
सब ठीक है न...?
बुआ ने कांपती सी आवाज में पूछा था...
'आज वर्षों बाद मन हुआ राखी में तुम्हारे घर आने का..
तो बस आ गए हम सब...
पापा ने बुआ को सहज करते हुए कहा था.....
"भाभी आओ न अंदर....
मैं चाय नास्ता लेकर आती हूं...
जया बुआ ने मम्मी के हाथों को अपनी ठण्डी हथेलियों में लेते हुए कहा था
"जया तुम बस बैठो मेरे पास. चाय नास्ता गायत्री देख लेगी."
हमलोग बुआ जी के घर जाते समय रास्ते मे रूककर बहुत सारी मिठाइयाँ और नमकीन ले गए थे......
मम्मी किचन में जाकर सबके लिए प्लेट लगाने लगी थी...
उधर बुआ कमरे में पुरानी फटी चादर बिछे खटिया पर अपने भैया के पास बैठी थीं....
बुआ जी का बेटा श्याम दोड़ कर फ़ूफा जी को बुला लाया था.
राखी बांधने का मुहूर्त शाम सात बजे तक का था.मम्मी अपनी ननद को लेकर मॉल चली गयी थी सबके लिए नए ड्रेसेस खरीदने और बुआ जी के घर के लिए किराने का सामान लेने के लिए....
शाम होते होते पूरे घर का हुलिया बदल गया था
नए पर्दे, बिस्तर पर नई चादर, रंग बिरंगे डोर मेट, और सारा परिवार नए ड्रेसेस पहनकर जंच रहा था.
न जाने कितने सालों बाद आज जया बुआ की रसोई का भंडार घर लबालब भरा हुआ था....
धीरे धीरे एक आत्म विश्वास सा लौटता दिख रहा था बुआ के चेहरे पर....
पर सच तो ये था कि उसे अभी भी सब कुछ स्वप्न सा लग रहा था....
बुआ जी ने थाली में राखियाँ सज़ा ली थी
मिठाई का डब्बा रख लिया था
जैसे ही पापा को तिलक करने लगी पापा ने बुआ को रुकने को कहा
सभी आश्चर्यचकित थे...
" दस मिनट रुक जाओ तुम्हारी दूसरी बहनें भी बस पहुँचने वाली है. "
पापा ने मुस्कुराते हुए कहा तो सभी पापा को देखते रह गए....
तभी बाहर दरवाजे पर गाड़ियां के हॉर्न की आवाज सुनकर बुआ ,मम्मी और फ़ूफ़ा जी दोड़ कर बाहर आए तो तीनों बुआ का पूरा परिवार सामने था....
जया बुआ का घर मेहमानों से खचाखच भर गया था.
महराजगंज वाली नीलम बुआ बताने लगी कि कुछ समय पहले उन्होंने पापा को कहा था कि क्यों न सब मिलकर चारो धाम की यात्रा पर निकलते है...
बस पापा ने उस दिन तीनों बहनो को फोन किया कि अब चार धाम की यात्रा का समय आ गया है..
पापा की बात पर त��नों बुआ सहमत थी और सबने तय किया था कि इस बार जया के घर सब जमा होंगे और थोड़े थोड़े पैसे मिलाकर उसकी सहायता करेंगे.
जया बुआ तो बस एकटक अपनी बहनों और भाई के परिवार को देखे जा रहीं थीं....
कितना बड़ा सरप्राइस दिया था आज सबने उसे...
सारी बहनो से वो गले मिलती जा रहीं थीं...
सबने पापा को राखी बांधी....
ऐसा रक्षाबन्धन शायद पहली बार था सबके लिए...
रात एक बड़े रेस्त्रां में हम सभी ने डिनर किया....
फिर गप्पे करते जाने कब काफी रात हो चुकी थी....
अभी भी जया बुआ ज्यादा बोल नहीं रहीं थीं.
वो तो बस बीच बीच में छलक आते अपने आंसू पोंछ लेती थी.
बीच आंगन में ही सब चादर बिछा कर लेट गए थे...
जया बुआ पापा से किसी छोटी बच्ची की तरह चिपकी हुई थी..
मानो इस प्यार और दुलार का उसे वर्षों से इन्तेज़ार था
बातें करते करते अचानक पापा को बुआ का शरीर एकदम ठंडा सा लगा तो पापा घबरा गए थे...
सारे लोग जाग गए पर जया बुआ हमेशा के लिए सो गयी थी....
पापा की गोद में एक बच्ची की तरह लेटे लेटे वो विदा हो चुकी ..
पता नही कितने दिनों से बीमार थीं....
और आज तक किसी से कही भी नही थीं...
आज सबसे मिलने का ही आशा लिये जिन्दा थीं शायद...!!
अपनों का ध्यान रखें।
जो "समर्थ" है वो अपने असमर्थ रिश्तेदारों एवं मित्रों की समय पर "सहायता" अवश्य करें।
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एटीट्यूड ने बिगाड़ा सारा खेल, एक्टर रणवीर के हाथ से गया काम, 51 की उम्र में बेरोजगार! http://dlvr.it/TBFlYb
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Best 55+ Pyar Bhari Shayari in Hindi | प्रेम शायरी हिंदी में
अपने जीवन को सरल बनाने के लिए हमें प्यार की ज़रूरत होती है और इसे हमारी Pyar Bhari Shayari in Hindi से बेहतर तरीके से व्यक्त नहीं किया जा सकता। ये दिल को छू लेने वाली Shayari बहुत सावधानी से लिखी गई हैं और अपने दोस्तों के साथ शेयर करने के लिए एकदम सही हैं। सच्चे प्यार का मतलब है एक-दूसरे की परवाह करना और उस प्यार को बनाए रखना बहादुरी का काम है। जो लोग प्यार में विश्वास करते हैं वे लगातार अपने प्रिय के बारे में सोचते हैं और चाहे कितनी भी दूरी क्यों न हो, वे हमेशा एक-दूसरे से गहराई से जुड़े रहते हैं।
बेहतरीन और सबसे अनोखी प्रेम शायरी के हमारे संग्रह में गोता लगाएँ। अपने खास व्यक्ति को संजोएँ, क्योंकि वे अपूरणीय हैं। एक बार जब कोई प्रिय व्यक्ति खो जाता है, तो उसे फिर से पाना अविश्वसनीय रूप से चुनौतीपूर्ण होता है। हमारी Pyar Bhari Shayari के साथ अपने प्यार की लौ को जलाए रखें।
Best Pyar Bhari Shayari in Hindi
कहावत है के आदमी गलती करके ही सीखता है,
ध्यान दीजिए सिर्फ ,आदमी, औरत नही..!!!
कहा था ना अपनी पर आ जाऊं,
तो ऐसे भूल जाऊंगा जैसे कभी मिले ही नही थे..!!!
प्रेम एक अटूट शक्ति है,
ये धर्म है, कर्म है, ईस्ट की भक्ति है…!
मुझे आराम चाहिए दर्द से मेरे,
यानी कोई दफना दे मुझे..!!!
नया नया तो सब कुछ अच्छा ही लगता है,
सच्चाई तो पुराने होने के बाद ही पता चलती है, फिर चाहे वो कोई चीज हो या ��ंसान..!!!
मैं ऐसा लग रहा हु, क्या बताऊं कैसा लग रहा हु,
मेरा दिल कहीं नहीं लग रहा, हस्ते हुए भी बुरा लग रहा हु..!!!
रोज रात को यही सोच कर सो जाता हूं,
शायद उसे कल मेरे प्यार का एहसास होगा..!!!
सिर्फ एक बार परख कर नही छोड़ा तुमको,
तुम मेरी जान कई बार बेवफा निकली..!!!
बहुत कुछ बिखरा हुआ है मेरे अंदर ही अंदर,
वरना यूं ही बेवजह आसू नही टपकते मेरी आंखो से..!!!
कमियाबी हमेशा पसंदीदा चीजों की,
कुर्बानी मांगती है..!!!
हमे भी शोक था मुस्कुराने का,
जिंदगी ने ऐसा रुलाया की अब खुद पर हँसी आती है..!!
मैं ना टूटा, ना बिखरा, बस हार गया,
मेरे अपनो को मैं करके दुश्वार गया..!!!
तुमने देखा ही नहीं कभी मुड़कर,
तुम्हारे पीछे पीछे कई ख्वाब दम तोड़ते रहे..!!!
कौन कहता के हमदर्द देती हैं,
ये उम्मीदें तो हमेशा दर्द देती है..!!!
रानी बनने के लिए मर्यादा की जरूरत होती है,
मैने खूबसूरत चेहरे, महफिल में नाचते देखे..!!!
लगाव कैसा भी दो,
अंत में दुख का कारण बनता है..!!!
Pyar Bhari Shayari For Lover in Hindi
ये जिंदगी तभी तक आसान है,
जबतक सारा बोझ बाप उठा रहा है..!!!
तस्वीरे ले लिया करो दोस्त,
क्योंकि आईने गुजरे हुए लम्हे नही दिखाते..!!!
अपनी लाइफ को इतना प्राइवेट कर दूंगा,
की लोग सोचेंगे जिंदा भी है या मर गया..!!!
कहां कहां नही छुपाया हमने खुद को,
एक तेरे इश्क में शर्मिंदा होने के बाद..!!!
हम भी डूबती कश्ती पर सवार हैं,
आपसे इश्क बहुत है इसलिए अभी तक सवार है..!!!
बीते हुए कुछ लम्हे है,
जो हमेशा सताते है,
कुछ अपने छोड़कर गए थे,
जो अब रात दिन याद आते है..!!!
मैं आज भी इंतजार में हु,
वो कहकर गया था के जल्दी लौट आएगा..!!!
जान ही तो जानी है,
अब और इससे बुरा क्या होगा..!!!
उसे पाने का भी सपना ही रहा,
सब पराए हो गए दर्द अपना ही रहा..!!!
जिंदगी अपनी ही ना संभाली गई हमसे,
यूं तो ना जाने कितनो के काम आए हम..!!!
उम्र भर भटकना ही बेहतर है,
किसी गलत जगह बंध जाने से..!!!
सिर्फ तुझे खोने के बाद,
कुछ भी पाने की इच्छा नहीं रही..!!!
सिर्फ तुझे खोने के बाद,
कुछ भी पाने की इच्छा नहीं रही..!!!
इससे अच्छा तो हम सफर ही ना करते,
किसी ने साथ दिया भी तो छोड़ के जाने के लिया..!!!
वक़्त जब करवट लेता है ना,
तो सिर्फ बाजियाँ ही नहीं, जिंदगियां भी बदल जाती हैं.!!!
भुला देंगे तुझे थोड़ा सब्र कर, तेरी तरह बनने में
थोड़ा वक्त लगेगा हमको…!!!
झूठ भी कितना अजीब है ना
खुद बोलो तो अच्छा लगता है,
दूसरे बोले तो गुस्सा आता है !
Romantic Pyar Bhari Shayari Hindi Mein
वक्त जब खिलाफ हो तो,
बहुत कुछ सहना और सुनना पड़ता है…!
अधूरी ख्वाहिशों का कारवां है,
“जिंदगी “
मुकम्मल जहां तों “कहानियों” में होते हैं !
इतने बुरे तो सपने भी नहीं आते,
जितनी बुरी ये जिंदगी चल रही है…!
लोग दीवाने हैं बनावट के,
हम कहां जाए अपनी सादगी लेकर.!
हम खुद को संभालना सीख गए हैं,
अब दुनियां से रिश्ता कम और खुद से ज्यादा रखेंगे.!
ढूंढ लेते तुम्हें हम,
शहर में भीड़ इतनी भी न थी …… मगर रोक दी तलाश हमने क्योंकि
तुम खोऐ नहीं,,,,,,, बदल गए थे।।
तुम जमाने की बात करते हो,
मेरा तो मुझसे ही फासला है बहुत.!
जिंदगी अपनी ही ना संभाली गई हमसे,
यूं तो ना जाने कितनो के काम आए हम..!!!
आप कैसे भूलाए जा सकते हैं।
आपने तो बहुत दिल दुखाया है..!
तुम जमाने की बात करते हो,
मेरा तो मुझसे ही फासला है बहुत.!
शुरुवात तुमने की है,
माहोल हम बनायेंगे,
और मारे वो भी जायेंगे,
जो तुम्हे बचाने आयेंगे..!!!
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#SantRampalJiMaharaj
परमेश्वर ने नास्त्रोदमस को संत रामपाल जी महाराज के अधेड़ उम्र वाले शरीर का साक्षात्कार करवा कर चलचित्र की भांति सारी घटनाओं को दिखाया और समझाया। श्री नास्त्रोदमस जी ने 16 वीं सदी को प्रथम शतक कहा है इस प्रकार पांचवां शतक 20 वीं सदी हुआ।
नास्त्रोदमस कहता है कि निःसंदेह विश्व में श्रेष्ठ तत्वज्ञाता (ग्रेट शायरन) के विषय में मेरी भविष्यवाणी के शब्दा शब्द को किसी नेताओं पर जोड़ कर तर्क-वितर्क करके देखेगें तो कोई भी खरा नहीं उतरेगा। मैं (नास्त्रोदमस) छाती ठोक कर शब्दा शब्द कह रहा हूँ मेरा शायरन का कर्तृत्व और उसका गूढ़-गहरा ज्ञान (तत्वज्ञान) ही सर्व की खाल उतारेगा, बस 2006 साल आने दो। इस विधान का एक-एक शब्द खरा-खरा समर्थन शायरन ही देगा।
नास्त्रोदमस ने अपनी भविष्यवाणी में कहा है कि 21 वीं सदी के प्रारम्भ में दुनिया के क्षितिज पर ‘शायरन‘ का उदय होगा। जो भी बदलाव होगा वह मेरी (नास्त्रोदमस की) इच्छा से नहीं बल्कि शायरन की आज्ञा से नियती की इच्छा से सारा बदलाव होगा ही होगा। उस में से नया बदलाव मतलब हिन्दुस्तान सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र होगा। कई सदियों से ना देखा ऐसा हिन्दुओं का सुख साम्राज्य दृष्टिगोचर होगा। उस देश में पैदा हुआ धार्मिक संत ही तत्वदृष्टा तथा जग का तारणहार, जगज्जेता होगा। एशिया खण्डों में रामायण, महाभारत आदि का ज्ञान
जो हिन्दुओं में प्रचलित है उससे भी भिन्न आगे का ज्ञान उस तत्वदर्शी संत का
होगा। वह सतपुरुष का अनुयाई होगा। वह एक अद्वितीय संत होगा।
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खबर
तेरे हुस्न की जादूगरी से कहा बच पाऊंगा
तेरा परवाना हूं जल कर प्यार दिखाऊंगा
उम्र ही है एक शब का शमा भी जानती है
फिर भी मैं अपना सारा प्यार लूटा जाऊंगा
याद रखेगी वह भी मेरे आदाब ए मुहब्बत को
इस तरह में उसको इश्क का दीवाना बना जाऊंगा
है वह किस हाल में अभी तक कुछ खबर नही
वह अपना खबर दे यही लिख कर चला जाऊंगा
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"दोस्तो! मैं अजय अहिरवार!
मेरी उम्र 21 साल है।
मैं पुणे में रहता हूँ।
मेरे घर में मेरे मम्मी, पापा, मैं और मेरी छोटी बहन रहते हैं।
मैं आप सब के साथ अपनी कहानी शेयर कर रहा हूँ। यह कहानी मेरी और मेरी बहन के बीच की है।
मेरी बहन का नाम रिया है।
उसकी उम्र 19 साल है।
रिया का फिगर स्लिम है।
उसके त्वचा का रंग गोरा है।
वह बहुत खूबसूरत है।
उसके कॉलेज में भी उसके बहुत सारे दीवाने है।
मेरा Xxx ब्रदर हॉट सेक्स विद वर्जिन सिस्टर कहानी तब शुरू हुई जब मैं अपने होमटाउन में रहता था।
उस समय मैं अन्तर्वासना पर कहानियां पढ़ना शुरू किया था।
धीरे–धीरे मैंने अपनी छोटी बहन की खूबसूरती नोटिस करनी शुरू कर दिया था।
छुप–छुप कर रिया के ब्रा और पैंटी देखा, सूंघा और चाटा करता था।
रिया को देखकर मेरा लंड सख़्त हो जाता था।
मैं और मेरी बहन दोनों एक ही कमरे में रहा करते थे।
एक रात जब रिया सो रही थी।
तब मेरी नींद खुली।
मैंने रिया के चेहरे को देखा।
वाह … कितनी क्यूट है!
इस बीच मेरा लंड भी खड़ा हो गया था।
मैंने धीरे से रिया के कमर पर हाथ रखकर चेक किया कि वह सो रही है या जाग रही है?
कोई हरकत ना होने पर मैं आगे बढ़ा और रिया के चूचे को हल्के से प्रेस किया।
रिया ने टीशर्ट और शॉर्ट स्कर्ट पहन रखा था।
फ़िर रिया के गोरे–गोरे पैरों को छुआ।
कसम से इतने मुलायम थे कि मैंने आज तक नहीं देखा था।
उसके बाद धीरे से मैंने रिया के स्कर्ट को ऊपर उठाया।
रिया ने लाल रंग की पैंटी पहनी थी।
मैंने धीरे से उसकी पैंटी को ऊपर से छुआ।
रिया की चूत बहुत गर्म थी।
इस सब के बीच मेरा 7 इंच का लंड मेरे पजामे से बाहर आ गया था।
रिया को पहली बार ऐसा देख कर मुझसे कंट्रोल नहीं हो रहा था।
पर डर भी लग रहा था इसलिए मैंने रिया को देख कर अपने लंड को हिला कर शांत कर लिया और सो गया।
अगले दिन सब नॉर्मल था घर में!
मेरी हिम्मत भी बढ़ गई थी।
मैं अब बस रात होने का इंतजार कर रहा था।
रात में सब जब सो गए।
तब मैंने फ़िर से अपनी खूबसूरत बहन को छूना शुरू कर दिया।
उस रात मैंने अपना अंडरवियर नहीं पहना था।
मैंने धीरे से अपना लंड निकालकर अपनी बहन के हाथ में रख दिया।
रिया के मुलायम–मुलायम हाथ मेरे लंड को छू रहे थे।
फ़िर हिम्मत कर के रिया के टॉप में हाथ डालकर उसके बोबे प्रेस करना शुरु कर दिया।
वह बिल्कुल गहरी नींद में सो रही थी।
फ़िर रिया की टॉप को उसकी चूचियों तक उठा दिया।
अब रिया की चूचियों और मेरे बीच सिर्फ उसका ब्रा था।
मैंने धीरे से रिया की ब्रा को भी ऊपर कर दिया।
रिया की निप्पल एकदम फूल की पंखुड़ियों जैसे गुलाबी थे।
थोड़ी हिम्मत करके मैंने अपने मुंह में निप्पल को लेकर चूसने लगा।
ऐसा लग रहा था कि मैं जन्नत में हूँ।
फ़िर रिया की स्कर्ट को ऊपर उठाया।
रिया की पैंटी में हाथ डालकर उसकी गर्म चूत पर अपना हाथ रख दिया।
मेरी बहन की चूत गीली हो गई थी।
रिया की शरीर में अब हलचल हो रही थी। वह नींद में भी मजा ले रही थी।
उसके बाद मैं उसके हाथ से ही अपना लंड को हिलाना शुरू कर दिया।
मैं एक मिनट में ही अपना सारा माल उसकी जांघ पर निकाल दिया।
यह सब होने के बाद अगले दिन मुझे उसके व्यवहार में कुछ बदलाव दिख रहा था।
वह मेरे साथ ज्यादा बात नहीं कर रही थी।
मैं तो बस रात होने का इंतजार कर रहा था। मैं जब भी रिया को देखता, तब रात की घटना याद आती और मेरा लंड खड़ा हो जाता था।
मुझसे अब एकदम कंट्रोल नहीं हो रहा था।
रात होते ही मैं पलंग पर पहले ही चला गया और रिया का इंतजार करने लगा।
वह कमरे में आई और बिस्तर पर आ कर सो गई।
रात के 1 बजे मैंने अपना काम शुरू किया।
आज मेरा मूड थोड़ा ज्यादा ही गर्म हो रहा था इसलिए मैंने अपने कपड़े उतार दिए और बस अपने शॉर्ट्स में था।
फ़िर मैंने रिया को पीछे से हग किया।
मैं रिया की चूचियों को दबाने लगा।
पिछली रात की तरह ही उसकी चूचियों को चूसा।
फ़िर रिया की स्कर्ट उठाकर उसकी पैंटी में हाथ डाल दिया।
आज रिया की चूत कल रात से भी ज्यादा गीली लग रही थी।
मुझे शक हुआ कि वह जागी हुई है।
मैंने जब उसकी चूत पर अपनी उंगली करनी शुरू कर दी तो उसकी मुंह से सिसकारियां आनी शुरू हो गई।
मुझे शक हुआ कि वह जागी हुई है।
मैं उसकी चूचियों को चूस रहा था और एक हाथ से उसकी चूत मसल रहा था।
तब उसकी आँख खुली और वह सिसकारियां लेते हुए बोली– क्या कर रहे हो भैया? मैं आपकी छोटी बहन हूँ।
मैंने उसकी आँखों में देखकर बोला– आई लव यू रिया!
फ़िर उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए और पागलों की तरह रिया को चूमने लगा।
वह भी धीरे–धीरे रिस्पॉंस देने लगी।
उसके बाद मैं रिया के ऊपर आ कर उसकी दोनों चूचियों को अपने मुंह में लेकर चूसने लगा।
रिया– आह … औऊ … दर्द हो रहा है भैया!
मैंने कहा– आई लव योर बूब्स रिया!
फ़िर मैंने उसकी पैंटी निकाल कर उसकी चूत को चूमने लगा।
वह झटके से उछल पड़ी।
उसकी चूत को मैंने अपनी जीभ से चाटना शुरू किया।
वह जोर–जोर से सिसकारियां लेने लगी और औउ … अहह … अऊ … ईई … अह्झ … यू … ययय … आऊओ … ओह्ह … औउ … अम्म्म … ओम्म्म आवाज निकालने लगी।
थोड़ी देर में वह पूरी झड़ गयी।
मैंने उसकी चूत का एक बूंद रस भी जाया नहीं जाने दिया।
मैंने सारा का सारा उसकी चूत का रस पी लिया।
उसके रस का रंग हल्का सफेद था और स्वाद में थोड़ा नमकीन था।
मैंने कहा– अब तुम्हारी बारी है।
फ़िर मैंने अपना 7 का लंड रिया के सामने निकाल कर रखा।
उसने कहा– यह तो बहुत बड़ा है।
मैंने उसे अपना लंड चूसने के लिए बोला।
पहले तो उसने मना कर दिया।
पर फ़िर थोड़ा मानने के बाद वह मान गई।
उसने पहले मेरे लंड पर हल्के से चूमा।
फ़िर धीरे से अपने मुंह में लंड को लेना शुरू किया।
अपना लंड अपनी बहन के मुंह में देख कर मुझसे कंट्रोल नहीं हो पा रहा था।
मैंने रिया का सिर पकड़ कर अपना लंड उसकी मुंह में अंदर–बाहर करना शुरु कर दिया।
वह भी अब मेरे लंड को बहुत मजे से चूस रही थी।
मैंने लंड को उसके मुंह बाहर निकाला और कहा– रिया, थोड़ी देर में यह लंड तुम्हारे अंदर जाने वाला है।
रिया ने कहा– नहीं भैया, आपका बहुत बड़ा है और मैं वर्जिन हूँ।
मैंने कहा– कोई नहीं, मैं प्यार से करूंगा।
मैं फ़िर से उसके मुंह को पकड़ कर उसमें लंड डालकर चोदने लगा। मैं अपने लंड को उसके गले तक उतार दे रहा था।
वह अभी एक नन्ही जान थी पर मैं बेरहम की तरह उस पर कोई दया नहीं दिखा रहा था।
कभी–कभी तो उसे सांस लेने में भी दिक्कत हो रही थी।
पर मैं उसके मुंह को चोदे जा रहा था।
लगभग 10 मिनट बाद मैं उसकी मुंह में ही झड़ गया।
मैंने अपना लंड निकाला नहीं और उसे सारा का सारा वीर्य पीने पर मजबूर कर दिया।
कुछ देर हम दोनों आराम से लेटे रहे.
जल्दी ही मेरा लंड खडा होने लगा तो मैं उसके दोनों पैरों के बीच में आ गया।
फ़िर अपने हाथ पर अपना थूक लगाकर उसकी चूत को गीला किया।
उसके बाद अपना लंड अपनी बहन की चूत पर रब करना शुरू किया।
उसकी गीली चूत पर से मेरा लंड फिसल रहा था।
रिया ने कहा– भैया प्लीज, मुझे डर लग रहा है।
मैंने कहा– बस एक मिनट, उसके बाद सिर्फ मजा आएगा तुम्हें!
फ़िर धीरे–धीरे अपने लंड को वर्जिन सिस्टर की चूत में डालना शुरू किया।
क्योंकि वह वर्जिन थी इसलिए उसकी चूत बहुत कसी हुई थी।
मैंने एक जोर का धक्का दिया और मेरा लंड उसकी चूत में आधा चला गया।
वह जोर से चिल्लाने लगी और रोते हुए बोली– भैया प्लीज, बाहर निकालो बहुत दर्द हो रहा है।
वह दर्द के कारण अपने हाथ पैर भी चलाने लगी थी।
पर अब मैं रुकने वाला नहीं था।
मैंने उसके होंठ पर अपना होंठ रखा और जोर से एक धक्का लगा दिया।
इस बार मेरा पूरा लंड मेरी बहन की चूत में था।
उसकी चूत में से खून निकलने लगा था।
वह यह देख कर रोने लगी।
मैंने उसे समझाया– यह नॉर्मल है। मैंने तुम्हारी ��र्जिनिटी ली है इसलिए खून निकला है।
उसके बाद मैंने उसे धीरे–धीरे चोदना शुरू किया।
5 मिनट बाद उसे भी मजा आने लगा।
वह भी ‘भैया प्लीज, और जोर से चोदो अपनी बहन को … आई लव यू’ कहने लगी।
मैंने कहा– हाँ यह ले … और जोर से … मेरी जान!
यह बोलते हुए मैं उसे जोर–जोर से चोदना शुरू किया।
उसे मैं मिशनरी पोजीशन में एक बला की खूबसूरत समझ के उसकी चूत को फाड़ के रख देना चाहता था।
मैं उसे हचक के पेल रहा था।
वह मेरे नीचे दबे हुए किसी मेमने की भांति बस सिसकारियां ले रही थी।
एक हाथ से उसकी चूची को दबा रहा था और उसे चूम रहा था।
10 मिनट की जोरदार चुदाई के बाद रिया ने कहा– भैया, मैं आ रही हूँ।
मैंने कहा– मैं भी आ रहा हूँ।
वह अब छूटने वाली थी।
तो रिया ने मेरी कूल्हों पर हाथ रख कर मुझे और जोर से अपनी ओर चूत में धकेलने लगी।
मैं भी उसी चूची को कस के पकड़ कर मरोड़ने लगा और जोर–जोर से धक्के लगाने लगा।
मैंने उसकी नींबू जैसे चूची को सुर्ख लाल कर दिया था मरोड़–मरोड़ के!
थोड़ी देर में मैंने अपना सारा माल उसकी चूत में डाल दिया।
वह भी मेरे साथ ही छूट गई थी।
उसकी चूत में से मेरा माल और उसके रस का मिश्रण निकल रहा था।
मैं उसे वीर्य निकलने के बाद भी चोदे जा रहा था।
वीर्य निकलने के कारण अब अंदर–बाहर करना बहुत आसान हो गया था।
दो मिनट में मैं रुक गया और उसके ऊपर ही लेट गया।
उसके बाद हम दोनों ने उस रात दो बार और चुदाई की।
फ़िर एक–दूसरे की बांहों में सो गए।
मैं अपनी बहन को रोज रात को चोदता रहा जब तक कि मुझे पढ़ाई के लिए घर से बाहर नहीं जाना पड़ा।
अब मैं जब भी घर आता हूँ तो हम सेक्स करते हैं।
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*🛎कलयुग में मुक्तिदाता महापुरुष संत रामपाल जी महाराज जी का अवतरण🛎*
दोस्तों, क्या आप जानते हैं कि, वर्तमान में धरती पर बहुत से धर्मगुरु, सिद्ध, महात्मा है, जिनके बारे में हम अक्सर टीवी, अखबार आदि में सुनते हैं। लेकिन आज़ हम आपको एक ऐसे महापुरुष के बारे में बताएंगे, जो टीवी चैनलों, अखबारों में तो छाये ही रहते हैं, साथ ही आज़ बच्चे बच्चे की जुबान पर उस महापुरुष का नाम है। जो कोई आम इंसान नहीं है, बल्कि धरती पर साक्षात परमेश्वर का अवतार है। जिनके बारे में सैंकड़ों वर्ष पहले ही विश्व के प्रसिद्ध भविष्यवक्ताओं ने अपनी भविष्यवाणियों में जिक्र किया है।
भविष्यवक्ता चाहे फ्रांस के नास्त्रेदमस हो या अमेरिका की महिला भविष्यवक्ता फ्लोरेंस, इंग्लैंड के कीरो, श्री वेजीलेटिन, अमेरीका की जीन डिक्सन, श्री एण्डरसन, हॉलैंड के श्री गेरार्ड क्राइसे, अमेरीका के चार्ल्स क्लार्क, हंगरी की बोरिस्का, इजरायल के प्रो. हरार, नोर्वे के आनंदाचार्य, भारत मथुरा के जयगुरुदेव ���ुलसी दास हो या फिर राजस्थान के रुणीचा वाले बाबा रामदेव जी हो इन सभी ने अनेकों भविष्यवाणीयां की है।
और वो सभी भविष्यवाणियां उस मुक्तिदाता महापुरुष पर खरी उतरी है।
आइए देखते हैं कुछ महान भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणी जो उस मुक्तिदाता महापुरुष की और इशारा कर रही है।
नास्त्रेदमस ने अपनी भविष्यवाणी में कहा था,
स्वतंत्रता के चार वर्ष बाद भारत में एक महान संत का जन्म होगा जो विश्व को नये ज्ञान से परिचित कराएगा।
उस संत की माताएं तीन बहनें होंगी। उस संत की चार संतानें होगी।
जिस समय उस तत्वदृष्टा शायरन (संत) का आध्यात्मिक जन्म होगा उस दिन अंधेरी अमावस्या होगी। उस समय उस विश्व विजेता संत की आयु 16, 20, 25 वर्ष नहीं होगी, वह तरुण नहीं होगा। बल्कि वह प्रौढ़ होगा और वह 50 और 60 वर्ष के बीच की उम्र में विश्व में प्रसिद्ध होगा वह सन् 2006 होगा। तथा उस महापुरुष पर झूठा देशद्रोह का आरोप भी लगाया जाएगा।
उपरोक्त सभी भविष्यवाणियां संत रामपाल जी महाराज जी पर खरी उतरी है।
जी हां दोस्तों, संत रामपाल जी महाराज जी ही वह महापुरुष हैं जिनका जन्म स्वतंत्रता के चार वर्ष बाद 8 सितंबर 1951 को गांव धनाना, जिला सोनीपत, हरियाणा में एक जाट किसान के घर हुआ। संत रामपाल जी महाराज जी की माताएं तीन बहनें थीं, इंद्रोदेवी (माता), तथा दो मौसी रामप्यारी वह लक्ष्मी देवी। और संत रामपाल जी महाराज जी की चार संतान है दो पुत्र तथा दो पुत्री।
संत रामपाल जी महाराज जी पढ़ाई पूरी करके हरियाणा में सिंचाई विभाग में जूनियर इंजीनियर की पोस्ट पर 18 वर्ष तक कार्यरत रहे। 37 वर्ष की आयु में 17 फरवरी सन् 1988, फाल्गुन महिने की अमावस्या को रात्रि में परम संत रामदेवानंद जी से दीक्षा ली। जिसे संत भाषा में उपदेशी भक्त का आध्यात्मिक जन्मदिन माना जाता है।
और सक्रिय होकर भक्ति मार्ग पर चलकर परमात्मा का साक्षात्कार किया।
सन् 1993 में स्वामी रामदेवानंद जी महाराज ने संत रामपाल जी महाराज जी को सत्संग करने की आज्ञा दी और 1994 में नामदीक्षा देने की आज्ञा प्रदान की। भक्ति मार्ग में लीन होने के कारण संत रामपाल जी महाराज ने जे.ई की सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। और अपने परिवार को भगवान भरोसे छोड़कर मानव कल्याण के मिशन पर चल पड़े। जिसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। सन् 1994 से 1998 तक संत रामपाल जी महाराज ने घर घर, शहर शहर जाकर सत्संग किए। शास्त्र प्रमाणित ज्ञान देखकर बहु संख्या में अनुयाई हो गए। और साथ ही साथ ज्ञानहीन नक़ली संतों का विरोध भी बढ़ता गया। इसके बाद सन् 1999 में गांव करौंथा, जिला रोहतक (हरियाणा) में सतलोक आश्रम करौंथा की स्थापना की। और प्रत्येक पूर्णिमा को तीन दिवसीय सत्संग प्रारंभ किया। जिससे चंद ही दिनों में संत रामपाल जी महाराज के अनुयायियों की संख्या लाखों में पहुंच गई। जब ज्ञानहीन नक़ली संत - धर्मगुरुओं के अनुयाई संत रामपाल जी महाराज के शास्त्र प्रमाणित ज्ञान को आंखों देखकर संत रामपाल जी महाराज की शरण में आकर दीक्षा लेकर उनके अनुयाई बनने लगे। और उन नकली धर्मगुरुओं से प्रश्न करने लगे की आप सारा ज्ञान सदग्रंथों के विपरित बता रहे हो। तब उन नकली धर्मगुरुओं ने अपने अज्ञान का पर्दाफाश होने के डर से संत रामपाल जी महाराज को बदनाम करने के लिए साजिश रची और करौंथा के आस पास के गांवों में संत रामपाल जी महाराज के बारे में दुष्प्रचार करना शुरू कर दिया और फिर 12-7-2006 को संत रामपाल जी महाराज को जान से मारने के उद्देश्य से सतलोक आश्रम करौंथा पर आक्रमण कर दिया। संत रामपाल जी महाराज और उनके कुछ अनुयायियों पर झूठे मुकदमे बनाकर जेल में डाल दिया। नास्त्रेदमस के अनुसार संत रामपाल जी महाराज सन् 2006 में विख्यात हुए, भले ही आरोप थे, लेकिन संत रामपाल जी महाराज जी निर्दोष थे।
इसी कड़ी में सन् 2014 में नकली धर्मगुरुओं ने सरकार के साथ मिलकर बरवाला कांड़ कराया और संत रामपाल जी महाराज जी पर झूठा देशद्रोह का केस बनाकर जेल में डाल दिया।
अनेकों अत्याचार सहते हुए, झूठे मुकदमे झेलते हुए, अपना किमती समय जेल में बिताते हुए अनेकों पुस्तकें लिखकर फ्री में जनता तक पहुंचा कर उन्होंने अपने तत्वज्ञान के बलबूते एक सतयुग जैसे स्वच्छ समाज का निर्माण कर रहे हैं। जिससे विश्व में अमन चैन फिर से कायम हो रहा है।
संत रामपाल जी महाराज ही वह पूर्ण संत है जिनका ज्ञान आज पूरे विश्व के हर कोने में अपनी ही एक आध्यात्मिक लहर से मानव जीवन को नई दिशा निर्देश दिखा रहे है। जिनका आध्यात्मिक ज्ञान शास्त्रों में प्रमाणित हैं। जिन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा में सभी धर्म गुरुओं को आमंत्रित भी किया और शास्त्रार्थ में सभी को पराजित भी किया। जिनके आध्यात्मिक ज्ञान से समाज में व्याप्त उन तमाम बुराइयों का अंत हो रहा है जैसे कि दहेज प्रथा, भ्रूण हत्या, भ्रष्टाचार, चोरी, बेईमानी, ठगी आदि आदि।
संत रामपाल जी महाराज जी ही एकमात्र वह तत्वदर्शी संत है जिनके आध्यात्मिक तत्वज्ञान का लोहा सारी दुनिया मानती है। बड़े से बड़ा आचार्य, शंकराचार्य, धर्मगुरु भी दांतों तले उंगलियां दबा लेते हैं संत रामपाल जी महाराज जी के सत्य आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा में।
आज़ आप सभी शिक्षित है, जरा विवेक से विचार करें और निर्णय लें। पूर्ण तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी आपके सामने है,धरती पर अवतरित हैं। जिन्हें समय रहते पहचान कर शरण ग्रहण करके अपना कल्याण कराओ। कहीं ऐसा ना हो कि अनमोल जीवन का समय हाथ से निकल जाएं। फिर तो कुछ भी हाथ नहीं लगेगा।
फिर तो वहीं होगा कि
अब पछताए होत क्या,
जब चिड़िया चुग गई खेत।।
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पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी की जयंती मनाई गयी
सिद्धार्थनगर। आधुनिक भारत के निर्माता, राष्ट्र की प्रगति के सूत्रधार, संचार क्रांति के जनक, महिलाओं को आरक्षण, युवाओं को 18 वर्ष की उम्र में वोट देने का अधिकार व पंचायती राज के रास्ते गांधी जी के ग्राम स्वराज की परिकल्पना को पूर्ण करने वाले युवा पीढ़ी के आदर्श पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न स्व. राजीव गांधी जी की रविवार कांग्रेस कार्यालय इटवा में जयंती मनाई गई।
- सारा लहू बदन का जमीं को पिला दिया। मुझ पर वतन का कर्ज था मैंने चुका दिया
कांग्रेस नेता डा. नादिर सलाम सहित अन्य लोगों ने पूर्व प्रधानमंत्री के व्यक्तिव और कृतित्व पर प्रकाश डाला।
उन्होंने आगे कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी ने देश के लिए ऐसे काम किया है। जो कभी भुलाया नहीं जा सकता है। उन्होंने युवाओं को वोट का अधिकार दिया। मतदाताओं की उम्र सीमा को कम करके उन्हें वोट देने का अधिकार दिया। पंचायती राज के लिए संघर्ष किया। अर्थव्यवस्था के सेक्टर्स को खोलने और ईवीएम मशीनों की शुरुआत करने के लिए पहल किया।
भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी का जन्म 20 अगस्त 1944 ई. में हुआ था। 21 मई 1991 में वो एक चुनावी रैली में शामिल थे। उसी समय बम धमाके में उनकी हत्या हो गयी थी। उनकी हत्या श्रीलंका के एक सशस्त्र तमिल अलगाववादी संगठन लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलएलटीई) ने किया था। स्व. राजीव गांधी मई 1991 में लोकसभा चुनाव प्रचार में व्यस्त थे।
इस अवसर पर अनवर, मुख्तार अहमद, नफीस अहमद चौधरी, मो. शरीफ, अबदुल रहमान, सफील अहमद, रामनिवास, रमेश कुमार, लक्ष्मण यादव, शकील अहमद, उस्मान अहमद, बदरे आलम, शफीक अहमद, अब्दुल अव्वल आदि उपस्थित रहे।
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परिचय: स्पिरिट माउंटेन कैसीनो की खोज
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*पर्यावरण : एक विराट सहजीवन*
#पश्चिम में एक नया आंदोलन चलता है, इकॉलॉजी- कि प्रकृति को नष्ट मत करो, अब और नष्ट मत करो।
हालांकि हमने कोशिश की थी हल करने की। हमने डीडीटी छिड़का, मच्छर मर जाएँ। मच्छर ही नहीं मरत��, मच्छरों के हटते ही वह जो जीवन की श्रृंखला है उसमें कुछ टूट जाता है। मच्छर किसी श्रृंखला के हिस्से थे। वे कुछ काम कर रहे थे।
हमने जंगल काट डाले। सोचा कि जमीन चाहिए, मकान बनाने हैं। लेकिन जंगल काटने से जंगल ही नहीं कटते, वर्षा होनी बंद हो गई। क्योंकि वे वृक्ष बादलों को भी निमंत्रण देते थे, बुलाते थे। अब बादल नहीं आते, क्योंकि वृक्ष ही न रहे जो पुकारें। उन वृक्षों की मौजूदगी के कारण ही बादल बरसते थे; अब बरसते भी नहीं अब ऐसे ही गुजर जाते हैं।
हमने जंगल काट डाले, कभी हमने सोचा भी नहीं कि जंगल के वृक्षों से बादल का कुछ लेना-देना होगा। यह तो बाद में पता चला जब हमने जंगल साफ कर लिए। अब वृक्षारोपण करो। जिन्होंने वृक्ष कटवा दिए वही कहते हैं, अब वृक्षारोपण करो। अब वृक्ष लगाओ, अन्यथा बादल न आएँगे। हमने तो सोचा था अच्छा ही कर रहे हैं; जंगल कट जाएँ, बस्ती बस जाए।
हमने आदमी के जीवन की अवधि को बढ़ा लिया, मृत्यु-दर कम हो गई। अब हम कहते हैं, बर्थ-कंट्रोल करो। पहले हमने मृत्यु-दर कम कर ली, अब हम मुश्किल में पड़े हैं, क्योंकि संख्या बढ़ गई है। अब आदमी बढ़ते जाते हैं, पृथ्वी छोटी पड़ती जाती है। अब ऐसा लगता है अगर यह संख्या बढ़ती रही तो इस सदी के पूरे होते-होते आदमी अपने हाथ से खत्म हो जाएगा।
तो जिन्होंने दवाएँ ईजाद की हैं और जिन्होंने आदमी की उम्र बढ़ा दी है, पच्चीस-तीस साल की औसत उम्र को खींचकर अस्सी साल तक पहुंचा दिया- इन्होंने हित किया? अहित किया? बहुत कठिन है तय करना। क्योंकि अब बच्चे पैदा न हों, इसकी फिकर करनी पड़ रही है। लाख उपाय करोगे तो भी झंझट मिटने वाली नहीं है। अब अगर बच्चों को तुम रोक दोगे तो तुम्हें पता नहीं है कि इसका परिणाम क्या होगा।
मेरे देखे, अगर एक स्त्री को बच्चे पैदा न हों तो उस स्त्री में कुछ मर जाएगा। उसकी 'माँ' कभी पैदा न हो पाएगी। वह कठोर और क्रूर हो जाएगी। उसमें हिंसा भर जाएगी। बच्चे जुड़े हैं। जैसे वृक्ष बादल से जुडे हैं, ऐसे बच्चे माँँ से जुड़े हैं- और भी गहराई से जुड़े हैं। फिर क्या परिणाम होंगे, माँ को किस तरह की बीमारियाँ होंगी, कहना मुश्किल है।
इंग्लैंड में एकदवा ईजाद हुई, जिससे कि स्त्रियों को बच्चे बिना दर्द के पैदा हो सकते हैं। उसका खूब प्रयोग हुआ। लेकिन जितने बच्चे उस दवा को लेने से पैदा हुए- सब अपंग, कुरूप, टेढ़े-म़ेढे...। मुकदमा चला अदालत में। लेकिन तब तक तो भूल हो गई थी; अनेक स्त्रियाँ ले चुकी थीं। बिना दर्द के बच्चे पैदा हो गए, लेकिन बिना दर्द के बच्चे बिल्कुल बेकार पैदा हो गए, किसी काम के पैदा न हुए। तब कुछ खयाल में आया कि शायद स्त्री को जो प्रसव-पीड़ा होती है, वह भी बच्चे के जीवन के लिए जरूरी है। अगर एकदम आसानी से बच्चा पैदा हो जाए तो कुछ गड़बड़ हो जाती है। शायद वह संघर्षण, वह स्त्री के शरीर से बाहर आने की चेष्टा और पीडा, स्त्री को और बच्चे को- शुभ प्रारंभ है।
पीड़ा भी शुभ प्रारंभ हो सकती है। अगर फूल ही फूल रह जाएँ जगत में और काँटे बिल्कुल न बचें, तो लोग बिल्कुल दुर्बल हो जाएँगे; उनकी रीढ़ टूट जाएगी; बिना रीढ़ के हो जाएँगे। जीवन ऐसा जुड़ा है कि कहना मुश्किल है कि किस बात का क्या परिणाम होगा! कौन सी बात कहाँ ले जाएगी! मकड़ी का जाला, एक तरफ से हिलाओ, सारा जाला हिलने लगता है।
आदमी बुद्धि से कहीं पहुँचा नहीं। बुद्धि के नाम से जिसको हम प्रगति कहते हैं, वह हुई नहीं। वहम है। भ्रांति है। आदमी पहले से ज्यादा सुखी नहीं हुआ है, ज्यादा दुखी हो गया है। आज भी जंगल में बसा आदिवासी तुमसे ज्यादा सुखी है।
हालाँकि तुम उसे देखकर कहोगे- 'बेचारा! झोपड़े में रहता है या वृक्ष के नीचे रहता है। यह कोई रहने का ढंग है? भोजन भी दोनों जून ठीक से नहीं मिल पाता, यह भी कोई बात है? कपड़े-लत्ते भी नहीं हैं, नंगा बैठा है! दरिद्र, दीन, दया के योग्य। सेवा करो, इसको शिक्षित करो। मकान बनवाओ। कपड़े दो। इसकी नग्नता हटाओ। इसकी भूख मिटाओ।'
तुम्हारी नग्नता और भूख मिट गई, तुम्हारे पास कपड़े हैं, तुम्हारे पास मकान हैं- लेकिन सुख बढ़ा? आनंद बढ़ा? तुम ज्यादा शांत हुए? तुम ज्यादा प्रफुल्लित हुए? तुम्हारे जीवन में नृत्य आया? तुम गा सकते हो, नाच सकते हो? या कि कुम्हला गए और सड़ गए? तो कौन सी चीज गति दे रही है और कौन सी चीज सिर्फ गति का धोखा दे रही है, कहना मुश्किल है। लेकिन पूरब के मनीषियों का यह सारभूत निश्चय है, यह अत्यंत निश्चय किया हुआ दृष्टिकोण है, दर्शन है कि जब तक बुद्धि से तुम चलोगे तब तक तुम कहीं न कहीं उलझाव खड़ा करते रहोगे।
छोड़ो बुद्धि को! जो इस विराट को चलाता है, तुम उसके साथ सम्मिलित हो जाओ। तुम अलग-थलग न चलो। यह अलग-थलग चलने की तुम्हारी चेष्टा तुम्हें दुख में ले जा रही है। आदमी कुछ अलग नहीं है। जैसे पशु हैं, पक्षी हैं, पौधे हैं, चाँद-तारे हैं, ऐसा ही आदमी है- इस विराट का अंग। लेकिन आदमी अपने को अंग नहीं मानता।
आदमी कहता है- 'मेरे पास बुद्धि है। पशु-पक्षियों के पास तो बुद्धि नहीं। ये तो बेचारे विवश हैं। मेरे पास बुद्धि है। मैं बुद्धि का उपयोग करूँगा और मैं जीवन को ज्यादा आनंद की दिशा में ले चलूँगा।' लेकिन कहां आदमी ले जा पाया! जितना आदमी सभ्य होता है, उतना ही दुखी होता चला जाता है। जितनी शिक्षा बढ़ती, उतनी पीड़ा बढ़ती चली जाती है। जितनी जानकारी और बुद्धि का संग्रह होता है, उतना ही हम पाते हैं किभीतर कुछ खाली और रिक्त होता चला जाता है!
इस धारणा को ही छोड़ दो किहम अलग-थलग हैं। हम इकट्ठे हैं। सब जुड़ा है। हम संयुक्त हैं। इस संयुक्तता में लीन हो जाओ।
~PPG~
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