#सात समुन्दर पार
Explore tagged Tumblr posts
agarwaay · 7 years ago
Text
हो रहा है प्यार
देखा था पहली बार सात समुन्दर पार  पहने काले रंग का चोला  होठो पे मुस्कान और चेहरा भोला। 
अटक गयी थी साँसे उस पल मानो रुका हो हर पल  पूछा मन से मैंने एक ही हल  क्या होगी ये मेरा आने वाला कल। 
गए थे खेलने हम चौपाटे का खेल  नही हुआ हमारी किस्मत का मेल  मुरझा गए थे चेहरे हमारे  तेरी आखिरी करतब ने हमारे चहरे सवारें। 
दिल था टूटा सा मेरी ही चाहत ने था तोड़ा सा  मिला सहारा इसे तेरे पास  हुआ इश्क़ का पहला एहसास। 
हो रहा था हल्का हल्का प्यार  पर समझ नहीं पा रहा था यार  देखा तुमको किसी और से बात करते यार  एहसास हुआ..... हो रहा है प्यार। 
सखी से कही सारी बातें  जवाब आया भुल जा..... आगे हैं सिर्फ सन्नाटें  कहा मैंने ... हो रहा है प्यार  होने दे न मेरे यार।
- आयुष
0 notes
superrealnews · 1 year ago
Video
youtube
सात समुन्दर पार से 18 दिन बाद आया जवान बेटे का पार्थिक शरीर | देखने के ल...
0 notes
sanjyasblog · 1 year ago
Text
सात समुन्दर पार परमात्मा के अनमोल ज्ञान को सुनती हुई पुन्य आत्मा। वो दिन अब दूर नहीं है जब पूरे विश्व में एक झंडा होगा, एक भाषा होगी ना कोई सीमा होगी और एक ही संत रहेगा “जगत गुरू तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज”
Tumblr media
0 notes
lyricsbest · 4 years ago
Text
Saat Samundar Paar Lyrics
Saat Samundar Paar Lyrics
Presenting Saat Samundar Paar lyrics in Hindi from the superhit bollywood movie Vishwatma (1992). This song is sung by Sadhana Sargam. Lyrics of the song is written by Anand Bakshi and music composed by Viju Shah. Starring Divya Bharati, Sunny Deol, Naseeruddin Shah, Chunky Pandey, Sonam, & others in lead role. सात समुन्दर पार – Song Details SongSaat Samundar PaarSingerSadhana SargamLyricsAnand…
Tumblr media
View On WordPress
1 note · View note
cynicalities · 5 years ago
Note
OKAY I KNOW THIS IS ONE OF THE MOST SENT ASK ON TUMBLR BUT YOU ARE SO AWESOME AND COOL PERSON. I AM SO HAPPY YOU FOUND ME ON TUMBLR. IT FELT LIKE COMING HOME AFTER BEING AWAY FOR SUCH A LONG TIME. I LOVE YOUR GROUNDED PRESENCE AND CALM EFFECTS ON MY ANXIOUS SELF. I CAN'T TELL YOU HOW MUCH YOUR PAITINGS CALM ME DOWN AND I LOVE YOUR CHAOTIC NEUTRAL ENERGY. YOU ARE LIKE THALIA TO MY ANNABETH!
Anuja, come on, you can't just do this to me without any warning! But damn I love you so much!
Cool? Did you call me cool? OMG seriously thank you for doing that, for the first time in my life, someone has called this awkwardly emotional mess "cool", and it feels great!
As Goki already said, you're our ताई who's सात समुन्दर पार and we absolutely look up to you for just about everything.
"GROUNDED PRESENCE AND CALM EFFECTS ON MY ANXIOUS SELF" What even is Tumblr if not a group of anxious people trying to keep each other safe from anxiety. And if my paintings are helping someone other than me too, then I'm going to post more of those just for you!
If you love my chaotic neutral energy then it's all the more reason for me to be as chaotic neutral as physically possible. I love you so much I wanna do more of everything that you appreciate! 💕
Love,
Your Thalia
10 notes · View notes
ankitkothari9 · 3 years ago
Text
हे भारत के राम जगो मै तुम्हे जगाने आया हूँ,
और सौ धर्मो का धर्म एक बलिदान बताने आया हूँ !
सुनो हिमालय कैद हुआ है दुश्मन की जंजीरों में,
आज बतादो कितना पानी है भारत के वीरों में |
खड़ी शत्रु की फौज द्वार पर आज तुम्हे ललकार रही
सोए सिंह जगो भारत के, माता तुम्हें पुकार रही |
रण की भेरी बज रही, उठो मोह निंद्रा त्यागो!
पहला शीष चढाने वाले माँ के वीर पुत्र जागो!
बलिदानों के वज्रदंड पर देशभक्त की ध्वजा जगे
रण के कंकर पैने हैं, वे राष्ट्रहित की ध्वजा जगे
अग्निपथ के पंथी जागो शीष हथेली पर रखकर,
और जागो रक्त के भक्त लाडलों, जागो सिर के सौदागर |
खप्पर वाली काली जागे, जागे दुर्गा बर्बंडा!
रक्त बीज का रक्त चाटने वाली जागे चामुंडा
नर मुण्डो की माला वाला जगे कपाली कैलाशी
रण की चंडी घर घर नाचे मौत कहे प्यासी प्यासी…
‘रावण का वध स्वयं करूंगा!’ कहने वाला राम जगे
और कौरव शेष न बचेगा कहने वाला श्याम जगे!
परशुराम का परशा जागे, रघुनन्दन का बाण जगे,
यजुनंदन का चक्र जगे, अर्जुन का धनुष महान जगे|
चोटी वाला चाणक जागे, पौरुष परुष महान जगे,
सेल्युकस को कसने वाला चन्द्रगुप्त बलवान जगे|
हठी हमीर जगे जिसने, झुकना कभी न जाना,
जगे पद्मिनी का जौहर, जागे केसरिया बाना|
देशभक्त का जीवित झंडा, आज़ादी का दीवाना
रण प्रताप का सिंह जग��� और हल्दी घटी का राणा|
दक्षिण वाला जगे शिवाजी, खून शाह जी का ताजा,
मरने की हठ ठाना करते विकट मराठों के राजा|
छत्रसाल बुंदेला जागे, पंजाबी कृपाण जगे
दो दिन जिया शेर की माफिक, वो टीपू सुलतान जगे|
कलवोहे का जगे मोर्चा जागे झाँसी की रानी,
अहमदशाह जगे लखनऊ का जगे कुंवर सिंह बलिदानी|
कलवोहे का जगे मोर्चा और पानीपत का मैदान जगे,
भगत सिंह की फांसी जागे, राजगुरु के प्राण जगे|
जिसकी छोटी सी लकुटी से संगीने भी हार गयी…बापू !
हिटलर को जीता, वो फौजे सात समुन्दर पार गयी|
मानवता का प्राण जगे और भारत का अभिमान जगे,
उस लकुटी और लंगोटी वाले बापू का बलिदान जगे|
आज़ादी की दुल्हन को जो सबसे पहले चूम गया,
स्वयं कफ़न की गाँठ बाँध कर सातों भांवर घूम गया!
उस सुभाष की आन जगे और उस सुभाष की शान जगे,
ये भारत देश महान जगे, ये भारत की संतान जगे |
झोली ले कर मांग रहा हूँ कोई शीष दान दे दो!
भारत का भैरव भूखा है, कोई प्राण दान दे दो!
खड़ी मृत्यु की दुल्हन कुंवारी कोई ब्याह रचा लो,
अरे कोई मर्द अपने नाम की चूड़ी पहना दो!
कौन वीर निज-ह्रदय रक्त से इसकी मांग भरेगा?
कौन कफ़न का पलंग बनाकर उस पर शयन करेगा?
ओ कश्मीर हड़पने वालों, कान खोल सुनते जाना,
भारत के केसर की कीमत तो केवल सिर है,
और कोहिनूर की कीमत जूते पांच अजर अमर है !
रण के खेतों में छाएगा जब अमर मृत्यु का सन्नाटा,
लाशों की जब रोटी होगी और बारूदों का आटा,
सन-सन करते वीर चलेंगे ज्यों बामी से फ़न वाला|
जो हमसे टकराएगा वो चूर चूर हो जायेगा,
इस मिट्टी को छूने वाला मिट्टी में मिल जायेगा|
मैं घर घर इंकलाब की आग जलाने आया हूँ !
हे भारत के राम जगो मै तुम्हे जगाने आया हूँ |
Tumblr media
0 notes
dadhichajeet · 4 years ago
Text
जलियांवाला बाग के हत्यारे जनरल डायर को लंदन जा के असेम्बली के अंदर वध करने वाले वीर शहीद उधम सिंह की जयंती पर शत शत #मानव नमन ।
घर मे घुसकर मारेंगे, ये इतिहास है हमारा।
"मेरा नाम राम मोहम्मद आज़ाद सिंह है
मेरा सबसे पहला धर्म मेरा हिन्दुस्तानी होना है"
शत शत नमन तुम्हे सात समुन्दर पार जाकर जनरल डायर की छाती में गोली उतरने वाले.
Tumblr media Tumblr media
0 notes
devbhumimedia · 6 years ago
Photo
Tumblr media
जरा ठन्डू चलदी, जरा मठ्ठु चलदी, मेरी चदरी छुट्टी ग्ये पिछनै…. चन्द्र सिंह राही की पुण्य तिथि 10 जनवरी पर विशेष..... -डॉ. नंद किशोर हटवाल उत्तराखण्ड के लोगों के लिए चन्द्र सिंह राही का अर्थ है एक ऐसी आवाज जिसमें पहाड़ तैरते थे। उनके गले से लहरें उठती थी और उत्तराखण्ड का पहाड़ उसमें समा जाता था। राही के सुरों के समन्दर में पूरे डूब जाते थे यहां के ऊंचे-ऊंचे...आसमान को छूने वाले डांडे-कांठे। राही के सुरों के समन्दर में जब लहरें उठती थी तो उनमें उछलते, तैरते, अठखेलियां खेलते थे पहाड़। यहां की घाटियों की तरह गहरी आवाज। नदियों की तरह बलखाती लहराती। राही की आवाज में यहां की हरियाली लहलहाती थी। इस हिमालयी प्रदेश की वादियों और फिजाओं की सी खूबसूरत आवाज।  उत्तराखण्डियों के लिए कुछ-कुछ दादा साहेब फाल्के और के0 एल0 सहगल का सा दर्जा लिए चन्द्र सिंह राही जी का जन्म 28 मार्च सन् 1942 को जनपद पौड़ी गढ़वाल के गिंवाली गांव, पट्टी मौंदाड़स्यूं, उत्तराखण्ड में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री दिलबर सिंह नेगी तथा मां का नाम सुंदरा देवी था। चन्द्र सिंह की आठवीं तक की स्कूली शिक्षा गांव में ही हुई थी। बाद में उन्होंने हाईस्कूल किया। आगे दिल्ली में संघर्ष करते हुए उन्होंने विशारद एवं साहित्यरत्न की उपाधियां प्राप्त की। राही जी 15 वर्ष की आयु में सन् 1957 में रोजगार की तलाश में दिल्ली चले गये थे। कई दिनो तक रोजगार की तलाश में भटकते रहे। कहीं रोजगार न मिलने के कारण राही जी ने दिल्ली कनॉट प्लेस के क्षेत्र में बांसुरी बजा-बजाकर गुब्बारे एवं बांसुरियां बेची। एक वर्ष तक जैसे-तैसे जीवन निर्वाह किया। बाद में सदर बाजार में मेहता ऑफसेट प्रेस में छपाई का कार्य सीखना प्रारंभ किया। दुर्भाग्यवश नौ महीने के अंतराल में ही छपाई-मशीन में हाथ कट गया। साल भर तक अस्पताल में पडे़ रहे। किसी तरह हाथ तो बच गया लेकिन दायें हाथ का अगूंठा गंवाना पडा़।  राही का जीवन विकट हो गया था। यह उनका कठिन दौर था। दिल्ली जैसे महानगर में रोजगार का न होना और ऊपर से विकलांग हो जाना किसी त्रासदी से कम नहीं था। लेकिन राही खांटी पहाड़ी थे। बहुत जल्दी हार मानने वालों में नहीं थे। उन्होंने रोजगार की तलाश जारी रखी। रोजगार कार्यालय के माध्यम से एक दिन दिल्ली टेलीफोन विभाग में सेवक के पद पर नियुक्ति मिल गई। यहां से उनके जीवन में नया मोड़ आया। रोजी-रोटी की समस्या काफी हद तक सुलझ गई। संगीत बीज रूप में उनके अंदर था ही, उसके लिए स्पेस मिलने लगा। उनका ध्यान अब संगीत की ओर जाने लगा। पिता की विरासत, संगीत की शिक्षा और आगे का सफर लोक-कला की शिक्षा और संस्कार राही जी ने अपने पिता से प्राप्त किए। चन्द्र सिंह राही जी का बचपन जिस दौर में बीता उस दौर में गढ़वाल में लोकगीत संगीत अपनी मौलिकता के साथ पर्याप्त मात्रा में मौजूद था और स्वयं चन्द्र सिंह राही इस गीत संगीत के नयी पीढ़ी के वाहक थे। श्रुति और वाचिक माध्यम से उन्होंने अपने बाल्यकाल से ही लोकगीतों को ग्रहण करना शुरू कर दिया था। यही उनकी संगीत की प्रारम्भिक शिक्षा थी। चूंकि यह शिक्षा उन्होंने सीधे लोक के माध्यम से ग्रहण की इसीलिए उनके अंदर ताजिंदगी लोक की ताजगी बनी रही। चन्द्र सिंह राही के पिता दिलवर सिंह एक अच्छे लोक कलाकार थे। वे जागरी थे। इस कारण उनका स्थानीय गीत-संगीत से गहरा नाता होना स्वाभाविक था। अपने समय में पूरे क्षेत्र में दिलबर सिंह जी का बड़ा नाम था। राही ��ी ने संगीत की प्रथम शिक्षा अपने पिता से प्राप्त की। उन्होंने अपने पिता से जागर सीखे और लोकगीतों और लोक की गायन शैलियों से परिचित हुए। वे अपने एक साक्षात्कार में कहते हैं, ‘‘मेरा सौभाग्य है कि मेरे पिताजी अच्छे कलाकार थे। जागरी थे, वादक थे। डौंर थाली हुड़का बजाते। मैंने जागर के क्षेत्र में उनसे ही प्रेरणा ग्रहण की।’’  जैविक रूप से कला राही जी के अंदर जन्मजात तो थी ही और फिर समय, समाज और पिता से राही ने बचपन से ही अनौपचारिक रूप से सीखना आरम्भ कर लिया था। लेकिन दिल्ली में नौकरी मिलने के बाद उनके अंदर संगीत सीखने की ललक पैदा होने लगी। दिल्ली महानगर में जीवन की चुनौतियां भी उनके उत्साह को कम नहीं कर पायी। उन दिनो दिल्ली के अंधविद्यालय में ग्राम-ढुंगा, बुरगांव, जनपद पौड़ी के बचनसिंह जी संगीत के आचार्य थे। चन्द्र सिंह राही ने गुरू-शिष्य परम्परा के तहत विधिवत उनसे शिक्षा ग्रहण की।  चन्द्र सिंह राही ने आकाशवाणी से अपने लोकगीतों को गाने की शुरूवात 1963 से की। इस वर्ष दिल्ली आकाशवाणी से लोकगीतों पर ऑडिशन पास किया। उस समय उनकी उम्र 21 वर्ष थी। इसके बाद आकाशवाणी दिल्ली से फौजी भाइयों के लिए प्रसारित कार्यक्रम में गाना शुरू किया। अपनी प्रतिभा के बल पर उन्होंने ’ए’ श्रेणी ;।.ळतंकमद्ध के प्रथम उत्तराखण्डी कलाकार होने का दर्जा प्राप्त किया। यद्यपि 12 साल की उम्र से उन्होने मंचीय गायन शुरू कर दिया था। उनके पिता मेलों-उत्सवों में बचपन से ही चन्द्र सिंह को ले जाया करते थे। परन्तु एक लोकगायक के रूप में उन्हें ख्याति आकाशवाणी ने ही दिलायी। दिल्ली में आकाशवाणी से गाने के बाद 1972 से आकाशवाणी लखनऊ से भी लगातार गाते रहे। उस दौर में आकाशवाणी से प्रायः लोकगीत ही प्र��ारित होते थे। राही जी को लोकगीत गाने के लिए ही आमंत्रित किया जाता था। उस दौर में उन्होंने लोकगीतों के साथ अपने दो गीत ‘रूपा की खज्यानी भग्यानी कनि छै...’ और ‘म्यरा मन की तिसळी चोळी न बोल तू पाणि-पाणि...’ भी गाये। जिनको खूब सराहना मिली। आकाशवाणी लखनऊ से ‘गिरि गुंजन’, ‘उत्तरायण’ और नजीबाबाद से प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों में वे लगातार गाते रहे।  जब कभी उनके गीत आकाशवाणी में बजते तो लोग झूम उठते। उनके कुछ गीत जैसे ‘हिल मां चांदी को बटना...’, ‘मेरी चदरी छुटी पिछनै...’, ऐजा सुवा ग्वालदम की गाड़ी मा...’, ‘सरग तारा जुनाल़ी राता...’, ‘गाड़ो गुलोबंद, गुलबंद को नगीना...’, ‘पार भीड़े की बंसती छोरी रूमा-झुमा...’ आदि बहुत लोकप्रिय हुए। इन गीतों ने अपने समय में धूम मचा दी थी।  चंद्र सिंह राही के पास लोकगीतों- जागर, पंवाड़े, लोक गा���ाएं, थड़िया, चौंफला, पंडौ, चांचरी, बद्यी लोकगीतों का विशाल भण्डार था। वे उत्तराखण्ड के लोकवाद्यों के अच्छे जानकार भी थे। ढोल-दमाऊ, हुड़का, डोंर, थाली, मोछंग, सिणैं (पहाड़ी शहनाई), बांसुरी, ढोलक, रणसिंघा, मशकबाजु आदि वाद्ययंत्रों को बजा लेते थे। जब कैसेट का जमाना आया तो उनके गीतों के कैसेट बाजार में आने लगे। उनके कैसेट काफी लोकप्रिय हुए। चन्द्रसिंह ‘राही’ ने लगभग डेढ़ सौ कैसेट-सीडी में किसी न किसी रूप में अपनी उपस्थिति दी। उन्होंने लगभग पांच सौ गीत गाये।  दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल में समय-समय पर उनके साक्षात्कार, लोक गीत एंव लोक वाद्यों की प्रस्तुतियां प्रसारित होती रही। उन्होंने दूरदर्शन में चलने वाले कार्यक्रम फेस इन द क्राउड के लिए भोटिया जनजाति के ऊपर एक डोकोमेन्ट्री फिल्म बनाई, गंगा के प्रदूषण पर भी फिल्म बनाई। उन्होंने गढ़वाली, कुमाउनी, जौनसारी लोकगीतों का संग्रह भी किया। लोकसंस्कृति पर उन्होंने मानव संसाधन विकास मंत्रालय, संस्कृति विभाग भारत सरकार की अनेक परियोजनाओं पर कार्य किया जिसमें कि उत्तराखण्ड गढ़वाल के लोक गीत, लोक नृत्य एवं विलुप्त होते लोक वाद्यों पर तीन खण्डों में किया गया महत्वपूर्ण कार्य है। इसी प्रकार मध्य हिमालय गढ़वाल की जागर भक्ति संगीत शैली एवं तंत्र मंत्र पर शोध संकलन का कार्य भी किया।  स्वभाव से विनम्र राही जी ने आडम्बर और बनावटीपन से कोशों दूर रहते अपने मूल स्वभाव को जीवित रखा। गढ़वाली में बातचीत करना उन्हें पसंद था। स्पष्ट वादिता के कारण सही बात बोलने से नहीं चूकते। ‘राही’ जी ने अपनी विरासत अपने परिवार को भी सौंपी है। परिवार का एक-एक सदस्य कलाकार है। सभी ने संगीत शिक्षा अपने पिता से ही ग्रहण की।  दिल्ली की एक संस्था साहित्य मंच राही जी की पचास वर्षो की रचना-यात्रा पर ‘लोक का चितेरा’ नाम से चारू तिवारी के सम्पादकत्व में एक पुस्तक के प्रकाशन की तैयारी कर रहा था। उस बीच राही जी अस्वस्थ हो गये। साहित्य मंच चाहता था कि वे इस पुस्तक का लोकार्पण करें, पर किन्हीं कारणो से ये प्रकाशित नहीं हो सकी। आशा करते हैं कि साहित्य मंच इस पुस्तक को शीघ्र प्रकाशित कर सके ताकि राही जी का सम्पूर्ण व्यक्तित्व और कृतित्व पाठकों के सामने आ पाये।  चन्द्र सिंह राही का गायन निसन्देह उनकी गायकी को उत्तराखण्ड की लोकगायकी के आधार स्तम्भ के रूप में देखा जा सकता है। उनके सुरों में यहां का लोक बोलता था। अगर कहा जाय कि उनकी गायकी यहां के लोक की प्र��िनिधि गायकी थी तो गलत न होगा। उनके गायन में यहां का लोक पूर्ण रूप से समाहित रहता। यद्यपि उन्होने संगीत की शिक्षा ली थी लेकिन शास्त्रीयता उनके गायन में कभी हावी नहीं रही। शायद इसीलिए लोक में उनकी ग्राह्यता बहुत अधिक थी।  उत्तराखण्ड के लोकगीतों के मौलिक कण्ठ थे राही और उस मौलिकता को ताजिंदगी बचाए रखने में सफल रहे। लोक की मौलिकता से छेड़-छाड़ नहीं की, ब्यावसायिक दबाओं के बावजूद दांए-बांए नहीं भटके। वे लोकगीतों को जीते थे। वे आवाज की ताकत पर अपने श्रोताओं के दिलों में राज करते रहे। उनके गायन की अपनी शैली थी। चौबीस कैरेट का फोक गाने वाले अपनी शैली के अप्रतिम कलाकार। जरा ठन्डू चलदी, जरा मठ्ठु चलदी, मेरी चदरी छुट्टी ग्ये पिछनै, जरा मठ्ठू चलदी के उलट कुछ जल्दी चले गए, चदरिया पीछे छोड़ दी। उनका कुछ जल्दी चले जाना पहाड़ के लोकसंगीत के लिए कभी न भर पाने वाला खालीपन है। लेकिन राही ने लोक में जो लहरें पैदा की हैं वो उठती रहेंगी। उन्हें कोई नहीं मिटा सकता। लहराता रहेगा पूरा पहाड़ उन लहरों में।  वे याद किये जाते रहेंगे.... भाना हे रंगीली भाना दुरु ऐजै बांज कटण, पार बांणा कु छई घसेरी, रूपैकी खजानी भग्यानी कनि छए, धार मा सी जून दिखेंदी जनि छई, तिलै धारु बोला मधुलि हिराहिर मधुलि, सौली घुराघुर्र दगड़िया, हिल्मा चांदी कु बटीणा...रैंद दिलमा तुमारी रटीणा, सात समुन्दर पार च जाणा ब्वे, जाज म जौलू कि ना, पार बौणा कु छई घसेरी, मालू रे तू मालू नि काटी, हिट बलदा सरासरी रे, तिन हाळमा जाणा रे, जरा ठन्डू चलदी जरा मठ्ठु चलदी, मेरी चदरी छुट्टी ग्ये पिछनै आदि अपने कालजयी गीतों के लिए।
0 notes
crimeflashlucknow · 7 years ago
Text
मेल्बर्न में दिखा ऐश का जादू, सात समुन्दर पार फहराएंगी तिरंगा
मेल्बर्न में दिखा ऐश का जादू, सात समुन्दर पार फहराएंगी तिरंगा
15 अगस्त आने वाला है और ऐसे में ये जानना रोचक होगा कि इस दिन के लिए बॉलीवुड सितारे क्या ख़ास कर रहे होंगे. हाल ही में खबर थी कि अमिताभ बच्चन ने विकलांग बच्चों के साथ राष्ट्रगान गाया है. अब खबर है कि बच्चन बहू ऐश्वर्या 15 अगस्त के मौके पर फ्लैग होस्टिंग करने वाली हैं. मेल्बर्न फिल्म फेस्टिवल में ब्लैक सूट में शिरकत करने पहुंची ऐश्वर्या राय ने हमेशा की तरह अपने लुक्स को लेकर बहुत सुर्खियाँ बटोरीं.
View On WordPress
0 notes
ahlawatwrites · 8 years ago
Text
आज़ादी
मेरी आज़ादी पर यु न कर गरूर मेरे यार , यह बस एक मिथ्या है , आज़ादी तो मिली मुझे बस एक रंग से , अभी मेरे अपने रंग की गुलामी करना मेरे नसीब में लिखा है ,
तब तोह फिर भी मेरे भाई मेरे साथ थे , इतिहास में पढ़ा है , जिन्हीने बांटा हमें वह गोरे सात समुन्दर पार से थे , पर अब में किसके पे ये इलज़ाम लगाऊं ,
तेरे वक़्त में तो अनपढ़ भी समझदार थे , व्हाट्सप्प के दौर में किस पढ़े लिखे अनपढ़ को अपनी व्यथा सुनाऊ , तू तो…
View On WordPress
0 notes
theviralpagesindia-blog · 8 years ago
Text
New Post has been published on The Viral Pages : Hindi News, Breaking News Hindi, Latest Hindi Khabar, Samachar
New Post has been published on http://hindi.theviralpages.com/2017/02/%e0%a4%ab%e0%a5%87%e0%a4%b8%e0%a4%ac%e0%a5%81%e0%a4%95-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%9c%e0%a4%b0%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a5%87-%e0%a4%ac%e0%a5%81%e0%a4%a2%e0%a4%be%e0%a4%aa%e0%a5%87-%e0%a4%ae%e0%a5%87/
फेसबुक के जरिये बुढापे में मिला सात समुन्दर पार का जीवनसाथी
जमुई| कहा जाता है कि प्यार में न सीमाओं का बंधन होता है और न ही उम्र आड़े आती है। ऐसा ही एक मामला बिहार के जमुई जिले के गिद्धौर प्रखंड में सामने आया है, जहां एक 77 साल के एक प्रवासी भारतीय को 75 वर्षीय एक जर्मन महिला से प्यार हो गया और दोनों हिंदू रीति-रिवाज के साथ परिणय सूत्र में बंध गए। मजेदार बात यह कि इन दोनों की जान-पहचान फेसबुक के जरिए हुआ था। जमुई जिले के गिद्धौर प्रखंड के धोवनघट निवासी 77 साल के प्रवासी भारतीय शत्रुघ्न प्रसाद सिंह कोलकाता से इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद जर्मनी में नौकरी की और वहीं हैम्बर्ग क्रोनेनबर्ग में बस गए।
कई वर्षो तक नौकरी करने के बाद वह कुछ साल पहले सेवानिवृत्त हो गए। इसी बीच सितंबर, 2014 में उनकी पत्नी का देहांत हो गया। शत्रुघ्न कहते हैं कि इस सदमे और अकेलेपन से निकलना चाहते थे, मगर यह इतना आसान नहीं था। इसी क्रम में फेसबुक के माध्यम उनकी दोस्ती जर्मनी की 75 वर्षीया इडलटड्र हबीब से हुई। इडलटड्र हैम्बर्ग की रहने वाली हैं। पांच वर्ष पूर्व उनके भी पति का निधन हो चुका था।
शत्रुघ्न कहते हैं कि फेसबुक पर हुई दोस्ती धीरे-धीरे प्यार में बदल गई और फिर हम दोनों साथ में आगे की जिंदगी गुजारने का निश्चय किया। वह कहते हैं कि इसके बाद भारत में रह रहे परिवारों को इसकी जानकरी दी। परिजनों ने भी इस विवाह पर सहमति दे दी।
var VUUKLE_EMOTE_SIZE = "90px"; VUUKLE_EMOTE_IFRAME = "180px" var EMOTE_TEXT = ["HAPPY","INDIFFERENT","AMUSED","EXCITED","ANGRY"]
0 notes
hindisahitya · 8 years ago
Text
बिटिया : मेरी संजीवनी
मैं सात समुन्दर पार हु रहता हर पल जल थल छू के कहता नेत्र बांध करुणा के बल से क्षतिग्रस्त हु उस धरातल पे झरोखे मैं आकर बिटिया पुकारे कैसे जियु बिन तेरे सहारे पापा हम तेरी तस्बीर निहारे लौट के आ फिर कभी न जा रे न कुछ खेल खिलोने चाहु न सूंदर वस्तुओ की कामना हर पल डरावना लगता तुम बिन कैसे करु मैं इसक...
http://www.hindisahitya.org/90602
0 notes