#साक्षात
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bharatlivenewsmedia · 2 years ago
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Hema Malini: लताजी म्हणजे साक्षात माँ सरस्वती!, ‘नाम गुम जाएगा’ ऐकताच भावूक झाल्या हेमा मालिनी
Hema Malini: लताजी म्हणजे साक्षात माँ सरस्वती!, ‘नाम गुम जाएगा’ ऐकताच भावूक झाल्या हेमा मालिनी
Hema Malini: लताजी म्हणजे साक्षात माँ सरस्वती!, ‘नाम गुम जाएगा’ ऐकताच भावूक झाल्या हेमा मालिनी Hema Malini: ‘इंडियन आयडॉल १३’च्या मंचावर लता मंगेशकर यांचं गाणं ऐकून हेमा मालिनी भावूक झालेल्या पाहायला मिळाल्या. Hema Malini: ‘इंडियन आयडॉल १३’च्या मंचावर लता मंगेशकर यांचं गाणं ऐकून हेमा मालिनी भावूक झालेल्या पाहायला मिळाल्या. Go to Source
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subhashdagar123 · 22 days ago
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neelamdasi21 · 6 months ago
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brijpal · 7 months ago
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#GodNightSunday
पूज्य कबीर परमे���्वर ने समझाया कि जो व्यक्ति माँस खाते हैं, शराब पीते हैं, सत्संग सुनकर भी बुराई नहीं त्यागते, उपदेश प्राप्त नहीं करते, उन्हें तो साक्षात राक्षस जानों। अनजाने में गलती न जाने किससे हो जाए। यदि वह बुराई करने वाला व्यक्ति सत्संग विचार सुनकर बुराई त्याग कर भगवान की भक्ति करने लग जाता है वह तो नेक आत्मा है, वह चाहे किसी जाति व धर्म का हो।
📲अधिक जानकारी के लिए "Sant Rampal Ji Maharaj" Youtube Channel पर विजिट करें।
Watch sadhna TV 7:30pm !
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taapsee · 5 months ago
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#GodMorningSunday
#परमात्मा_का_पृथ्वी_पर_आगमन
पूर्ण परमात्मा कबीर जी को बालक के रूप को पूरी का काशी देखने को उमड़े पड़ी ,बच्चे को देखकर कोई कह रहा था यह बालक ब्रह्मा अवतार है कोई कह रहा था साक्षात विष्णु भगवान आए हैं कोई इंद्र कुबेर कह रहा था।
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rishabh4832 · 5 months ago
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#परमात्मा_का_प्रकट_दिवस
जब कबीर परमेश्वर को नीरू नीमा घर लेकर आये तो उन्हें देखकर कोई कह रहा था कि यह बालक तो कोई देवता का अवतार है। कोई कह रहा था यह तो साक्षात विष्णु जी ही आए लगते हैं। कोई कह रहा था यह भगवान शिव ही अपनी काशी को कृतार्थ करने को उत्पन्न हुए हैं।
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vyankarak · 1 year ago
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चयन।
मै हर पहर यूं उपद्र सा, दर्पण समक्ष खड़ा होता हु
जो परछाई मुझसे मुंह फेर लेती है
भरी सभा में
उसे मै अपने पूरे बाल से जकड़े अपने भीत छिपाने की
इच्छा को ज्वलित रखता हूं
मै सबका, पर मै ना किसका
ओह प्रिय, मै बस स्वयं का,
ना तो मैं संत, नही पवित्र गंगा मैया सा,
मै हु सुपूत तिमिर वह तिरस्कार का
मैं पापी हूं, मानो साक्षात कली सा
निहारूं उस दरपण पर अपनी प्रीतिबिंब को
क्या हु मै जो मै हूं उसमे दिखता?
मै कौन हूं? मै स्वयं के सागर में हर क्षण अस्त होता
मै तामसी, मै, एक व्यर्थ सा धरा का अंश,
मै स्वार्थी, स्वयमासती मै कहलाता।
क्षोभ है मिलने आती मुझसे हर सप्ताह,
मै लिपटा उसमे, अपने पाप त्यागता
मैला हूं, और कीचड़ में हर दिवस स्नान हु करता,
मोह से मोक्ष, या मोक्ष से मोह है मुझे,
मै हूं खुद में एक विडंबना सा,
स्वामी जग का, किंतु जग का ना प्रिया
स्वामी लोभ का, दास किंतु अणु सी बाधक का।
(पर its okay dawg, we ball.)
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ravisingh8889 · 5 months ago
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जब कबीर परमेश्वर को नीरू नीमा घर लेकर आये तो उन्हें देखकर कोई कह रहा था कि यह बालक तो कोई देवता का अवतार है। कोई कह रहा था यह तो साक्षात विष्णु जी ही आए लगते हैं। कोई कह रहा था यह भगवान शिव ही अपनी काशी को कृतार्थ करने को उत्पन्न हुए हैं
#KabirParmatma_Prakat Diwas #mantra
#KabirPrakatDiwas #KabirisGod
#trendingnow
#reelsvideo #reelitfeelit
#SaintRampalJi #SantRampalJiMaharaj
#SaintRampalJiQuotes #trending #viral
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radhadasi26363 · 5 months ago
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जब कबीर परमेश्वर को नीरू नीमा घरलेकर आये तो उन्हें देखकर कोई कह रहा थाकि यह बालक तो कोई देवता का अवतार है।कोई कह रहा था यह तो साक्षात विष्णु जी हीआए लगते हैं। कोई कह रहा था यह भगवानशिव ही अपनी काशी को कृतार्थ करने कोउत्पन्न हुए हैं।
#परमात्मा_का_पृथ्वी_पर_आगमन
3Days Left Kabir Prakat Diwas
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subhashdagar123 · 6 months ago
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rani-dasi · 7 months ago
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SA True Story | संत रामपाल जी महाराज धरती पर आए साक्षात भगवान हैं | Leelavati Dasi , Bhagalpur (BR)
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saanjhghafa · 10 months ago
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वे मनुष्य जो संगीत, साहित्य और कला से विहीन हैं, साक्षात पशुओं के सम्मान हैं। यद्यपि उनके सिंह और पुच नहीं हैं फिर भी वे पशु मनुष्य रूप में इस धरती पे विचरण करते हैं और इस भूमि पर केवल बोझ सम्मान हैं।
Those people who have no appreciation of music, literature or fine arts are actually like animals. Even though they do not have horns or tails. Those animals wander about on this earth in human forms and they are just like burdens upon this earth.
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perfecttheoristbluebird · 10 months ago
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( #Muktibodh_part177 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part178
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 341-342
◆ ‘‘कबीर परमेश्वर वचन’’
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 958-975 का सरलार्थ :- जिंदा रूप में परमेश्वर कबीर जी ने तर्क-वितर्क करके यथार्थ अध्यात्म ज्ञान समझाया। प्रश्न किया कि जो शालिगराम (मूर्तियाँ) लिए हुए हो, ये किस लोक से आए हैं? अड़सठ तीर्थ के स्नान व भ्रमण से किस लोक में साधक जाएगा? यह तत्काल बता। राम तथा कृष्ण कौन-से लोक में रहते हैं?
जिनको आप शालिगराम कहते हो, ये तो जड़ (निर्जीव) हैं। इनके सामने घंटा बजाने का कोई लाभ नहीं। ये न सुन सकते हैं, न बोल सकते हैं। ये तो पत्थर या अन्य धातु से बने हैं। हे धर्मदास! कहाँ भटक रहे हो? (निजपद निहकामी) सतलोक को (चीन्ह) पहचान। जिस परमेश्वर की शक्ति से प्रत्येक जीव बोलता है, हे धर्मदास! उसको नहीं जाना। चिदानंद परमेश्वर को पहचान। इन पत्थर व धातु को पटक दे। परमेश्वर कबीर जी जिंदा बाबा ने कहा कि हे धर्मदास! राम-कृष्ण तो करोड़ों जन्म लेकर मर लिए। (धनी) मालिक सदा से एक ही है। वह कभी नहीं मरता। आप विवेक से काम लो। ये आपके पत्थर व पीतल धातु के भगवानों को दरिया में छोड़कर देखो, डूब जाएँगे तो ये आपकी क्या मदद करेंगे? इनको मूर्तिकार ने काट-पीट, कूटकर इनकी छाती पर पैर रखकर (तरासा) काटकर रूप दिया।
इनका रचनहार तो कारीगर है। ये जगत के उत्पत्तिकर्ता व दुःख हरता कैसे हैं? ऐसी पूजा कौन करे? जिस परमेश्वर ने माता के गर्भ में रक्षा की, खान-पान दिया, सुरक्षित जन्म दिया,
उसकी भक्ति कर। यह पत्थर-पीतल तथा तीर्थ के जल की पूजा की (बोदी) कमजोर आशा त्याग दे। जिंदा बाबा ने कहा कि जो पूर्ण परमात्मा सब सृष्टि की रचना करके इससे भिन्न रहता है। अपनी शक्ति से सब ब्रह्माण्डों को चला व संभाल रहा है, उसका विचार कर।
उसका शरीर श्वांस से नहीं चलता। वह सबसे ऊपर के लोक में रहता है। आपकी समझ में नहीं आता है। उसकी शक्ति सर्वव्यापक है। उसका आश्रम (स्थाई स्थान) अधर-अधार यानि सबसे ऊपर है। वह अजर-अमर अविनाशी है।
धर्मदास जी ने कहा :-
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 976-981 :-
बोलत है धर्मदास, सुनौं जिंदे मम बाणी।
कौन तुम्हारी जाति, कहांसैं आये प्राणी।।976।।
ये अचरज की बात, कही तैं मोसैं लीला।
नामा के पीया दूध, पत्थरसैं करी करीला।।977।।
नरसीला नित नाच, पत्थर के आगै रहते।
जाकी हूंडी झालि, सांवल जो शाह कहंते।।978।।
पत्थर सेयै रैंदास, दूध जिन बेगि पिलाया।
सुनौ जिंद जगदीश, कहां तुम ज्ञान सुनाया।।979।।
परमेश्वर प्रवानि, पत्थर नहीं कहिये जिंदा।
नामा की छांनि छिवाई, दइ देखो सर संधा।।980।।
दोहा-सिरगुण सेवा सार है, निरगुण सें नहीं नेह।
सुन जिंदे जगदीश तूं, हम शिक्षा क्या देह।।981।।
‘‘धर्मदास वचन’’
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 976-981 का सरलार्थ :- धर्मदास जी कुछ नाराज होकर परमेश्वर से बोले कि हे (प्राणी) जीव! तेरी जाति क्या है? कहाँ से आया है? आपने मेरे से
बड़ी (अचरज) हैरान कर देने वाली बातें कही हैं, सुनो! नामदेव ने पत्थर के देव को दूध पिलाया। नरसी भक्त नित्य पत्थर के सामने नृत्य किया करता यानि पत्थर की मूर्ति की पूजा करता था। उसकी (हूंडी झाली) ड्रॉफ्ट कैश किया। वहाँ पर सांवल शाह कहलाया।
रविदास ने पत्थर की मूर्ति को दूध पिलाया। हे जिन्दा! तू यह क्या शिक्षा दे रहा है कि पत्थर की पूजा त्याग दो। ये मूर्ति परमेश्वर समान हैं। इनको पत्थर न कहो। नामदेव की छान
(झोंपड़ी की छत) छवाई (डाली)। देख ले परमेश्वर की लीला। हम तो सर्गुण (पत्थर की मूर्ति जो साक्षात आकार है) की पूजा सही मानते हैं। निर्गुण से हमारा लगाव नहीं है। हे जिन्दा! मुझे क्या शिक्षा दे रहा है?
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 982-988 :-
बौलै जिंद कबीर, सुनौ बाणी धर्मदासा।
हम खालिक हम खलक, सकल हमरा प्रकाशा।।982।।
हमहीं से चंद्र अ��ू सूर, हमही से पानी और पवना।
हमही से धरणि आकाश, रहैं हम चौदह भवना।।983।।
हम रचे सब पाषान नदी यह सब खेल हमारा।
अचराचर चहुं खानि, बनी बिधि अठारा भारा।।984।।
हमही सृष्टि संजोग, बिजोग किया बोह भांती।
हमही आदि अनादि, हमैं अबिगत कै नाती।।985।।
हमही माया मूल, हमही हैं ब्रह्म उजागर।
हमही अधरि बसंत, हमहि हैं सुखकै सागर।।986।।
हमही से ब्रह्मा बिष्णु, ईश है कला हमारी।
हमही पद प्रवानि, कलप कोटि जुग तारी।।987।।
दोहा-हम साहिब सत्यपुरूष हैं, यह सब रूप हमार।
जिंद कहै धर्मदाससैं, शब्द सत्य घनसार।।988।।
‘‘परमेश्वर कबीर वचन’’
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 982-988 का सरलार्थ :- हे धर्मदास! आपने जो भक्त बताए हैं, वे पूर्व जन्म के परमेश्वर के परम भक्त थे। सत्य साधना किया करते थे जिससे उनमें भक्ति-शक्ति जमा थी। किसी कारण से वे पार नहीं हो सके। उनको तुरंत मानव जन्म मिला। जहाँ उनका जन्म हुआ, उस क्षेत्रा में जो लोकवेद प्रचलित था, वे उसी के आधार से
साधना करने लगे। जब उनके ऊपर कोई आपत्ति आई तो उनकी इज्जत रखने व भक्ति तथा भगवान में आस्था मानव की बनाए रखने के लिए मैंने वह लीला की थी। मैं समर्थ परमेश्वर हूँ। यह सब सृष्टि मेरी रचना है। हम (खालिक) संसार के मालिक हैं। (खलक) संसार हमसे ही उत्पन्न है। हमने यानि मैंने अपनी शक्ति से चाँद, सूर्य, तारे, सब ग्रह तथा ब्रह्माण्ड उत्पन्न किए हैं। ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश की आत्मा की उत्पत्ति मैंने की है। हे धर्मदास! मैं सतपुरूष हूँ। यह सब मेरी आत्माएँ हैं जो जीव रूप में रह रहे हैं। यह सत्य वचन है।
धर्मदास जी ने अपनी शंका बताई। कहा कि :-
◆ पारख के अंग की वाण�� नं. 989-994 :-
बोलत हैं धर्मदास, सुनौं सरबंगी देवा। देखत पिण्ड अरू प्राण, कहौ तुम अलख अभेवा।।989।।
नाद बिंद की देह, शरीर है प्राण तुम्हारै। तुम बोलत बड़ बात, नहीं आवत दिल म्हारै।।990।।
खान पान अस्थान, देह में बोलत दीशं। कैसे अलख स्वरूप, भेद कहियो जगदीशं।।991।।
कैसैं रचे चंद अरू सूर, नदी गिरिबर पाषानां।
कैसैं पानी पवन, धरनि पृथ्वी असमानां।।992।।
कैसैं सष्टि संजोग, बिजोग करैं किस भांती।
कौन कला करतार, कौन बिधि अबिगत नांती।। 993।।
दोहा-कैसैं घटि घटि रम रहे, किस बिधि रहौ नियार।
कैसैं धरती पर चलौ, कैसैं अधर अधार।।994।।
क्रमशः_______________
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर ��्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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munaram-kunwar-tangla · 1 year ago
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bhavsrujanarpita · 1 year ago
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गप्पा विथ बप्पा :एक नई शुरुआत 
हर साल, जैसे-जैसे मानसून की बारिश हमारे दैनिक जीवन की धूल धोती है, हवा में पूर्वानुमान की भावना भर जाती है। सड़कें सजी हुई सी कुछ जीवंत हो उठती हैं और ढोल की थाप कहीं-कहीं सड़कों पर गूंजती सुनाई देती है। यह फिर से वह समय है, जब भगवान गणेश, जिन्हें प्यार से बप्पा कहा जाता है, अपनी दिव्य उपस्थिति से हमारे घरों और दिलों को सुशोभित करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी रुककर सोचा है कि बप्पा साल-दर-साल क्यों लौटते हैं?
उत्तर सरल लेकिन गहन है। बप्पा ��ौट आते हैं क्योंकि वह समझते हैं, वह जानते हैं कि जीवन थका देने वाला हो सकता है, हम अक्सर अपने आप को अपने दैनिक अस्तित्व के बोझ से दबा हुआ पाते हैं। वह हमें यह याद दिलाने आते हैं कि विपरीत परिस्थितियों में भी हम अकेले नहीं हैं।
जब बप्पा अपने मूर्ति स्वरूप में हमारे साथ आते हैं, तो हम उनके लिए अपना दिल खोल देते हैं। हम उनकी देखभाल करते हैं, उनकी पूजा करते हैं, और उन्हें प्रेम और भक्ति के साथ साथ स्वादिष्ट प्रसाद का आस्वाद भी देते हैं। उन्हीं क्षणों में, हम एक पवित्र संबंध बनाते हैं, सांसारिक और दिव्यता के बीच एक पुल जैसा। जो कई अनुष्ठानों और समारोहों से कहीं अधिक संतुष्टिदायक हैं; इसका अर्थ बहुत ही गहरा हैं क्यूंकि साक्षात ईश्वर आपके समक्ष हैं, और वो भी आपके अनुसार आपके दिये गए स्थान पर विराजित हैं।
उन संक्षिप्त लेकिन अनमोल दिनों के दौरान जब बप्पा हमारे साथ रहते हैं, वह हमारे जीवन के मूक पर्यवेक्षक बन जाते हैं। वह हमें अपनी दैनिक दिनचर्या करते हुए देखते है, वह हमारे विचारों को सुनते है, और समस्याओं को देखते हैं ,हमारे द्वारा चुने गए हर प्रयत्न व विकल्पों के साक्षी बनते है। बप्पा भी हमारी दुनियां में डूब जाते हैं, हमारी खुशियों का अनुभव करते हैं और हमारी चुनौतियों में हिस्सा लेते हैं और यहीं से बप्पा हम पर अपना आशीर्वाद देना शुरू करते हैं। वह हमारे संघर्षों, हमारी सीमाओं और हमारी आकांक्षाओं को फिर से समझ जो चुके होते हैं, फिर से अपने दिव्य ज्ञान से, वह हमें संयमित और पूर्णता के मार्ग पर ले जाते हैं। बप्पा का आशीर्वाद विशेषाधिकार प्राप्त कुछ लोगों के लिए आरक्षित नहीं है; वे हर उस व्यक्ति के लिए हैं जो अपना हृदय उसके सामने खोलता है।
बप्पा हमारा विश्वास हैं, वह हमें सिखाते हैं कि विश्वास मानवीय सीमाओं से परे है। ये दिखाता है कि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी आशा है। वह हमें याद दिलाते हैं कि हमारी समस्याएं अजेय नहीं हैं, और विश्वास और दृढ़ संकल्प के साथ, हम अपने रास्ते में आने वाली किसी भी बाधा को दूर कर सकते हैं।
आइएं हम उनके आगमन के वास्तविक सार को याद रखें। बप्पा हमारी भलाई के लिए, हम पर अपने दिव्य आशीर्वाद बरसाने के लिए और हमारा मार्गदर्शन करने के लिए यहां हैं। वह हमारी जीवन यात्रा को आसान बनाने, जीवन की जटिलताओं से निपटने में हमारी मदद करने के लिए आते है।
तो इस साल, जब बप्पा एक बार फिर आ रहे हैं, आइए हम उनके लिए अपना दिल पहले की तरह खोलें। आइए हम बप्पा से संवाद करें, अपने विचार, अपनी आशाएँ और अपने सपने साझा करें। 
आइए हम बप्पा ��े साथ "गप्पा" करें, शायद यहीं से हमारे आने वाले कल की एक सुदृढ शुरूआत होती हैं। ये संपूर्ण गणेशोत्सव ही बप्पा हमसे रूबरूं होते  हैं और जब वह प्रस्थान करते हैं,  अपने पीछे सकारात्मकता, प्रगत सोच और विश्वास का भंडार छोड़ जाते हैं जो हमें आने वाले वर्ष की चुनौतियों तक का सामना करने में हमारी  मदद करती हैं। उनकी दिव्य उपस्थिति को खुली बांहों से स्वीकार करें, और उनकी कृपा से आपके जीवन को प्यार, खुशी और प्रचुरता से भरने दें।
बप्पा आ रहे हैं, सिर्फ एक मूर्ति के रूप में नहीं, बल्कि आशा के प्रतीक के रूप में, हमारे जीवन में प्रकाश की किरण के रूप में। उनका स्वागत करें और उनकी उपस्थिति को संजोएं।
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rupesh619 · 1 year ago
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#626वां_कबीरसाहेब_प्रकटदिवस
पूरी काशी परमेश्वर कबीर जी के बालक रूप को देखने को उमड़ पड़ी। बच्चे को देखकर कोई कह रहा है था कि ये बालक ब्रह्मा का अवतार है। कोई कह रहा था साक्षात विष्णु भगवान आये हैं। कोई इन्द्र कुबेर कह रहा था।
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