#सर्व रोग निवारण मंत्र
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pradeepdasblog · 3 months ago
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart83 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart84
"ग्यारहवां अध्याय"
"कबीर परमेश्वर जी (कविर्देव जी) चारों युगों में धरती पर सतलोक से चलकर आते हैं"
पवित्र ऋग्वेद के निम्न मंत्रों में भी पहचान बताई है कि जब वह पूर्ण परमात्मा कुछ समय संसार में लीला करने आता है तो शिशु रूप धारण करता है। उस पूर्ण परमात्मा की परवरिश (अध्न्य धेनवः) कंवारी गाय द्वारा होती है। फिर लीलावत् बड़ा होता है तो अपने पाने व सतलोक जाने अर्थात् पूर्ण मोक्ष मार्ग का तत्त्वज्ञान (कविर्गिभिः) कबीर बाणी द्वारा कविताओं द्वारा बोलता है, जिस कारण से प्रसिद्ध कवि कहलाता है, परन्तु वह स्वयं कविर्देव पूर्ण परमात्मा ही होता है जो तीसरे मुक्ति धाम सतलोक में रहता है।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9 तथा सूक्त 96 मंत्र 17 से 20 :-
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त। मंत्र 9
अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे ।।७।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे ।
अनुवाद :- (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुख सुविधाओं द्वारा अर्थात् खाने-पीने द्वारा जो शरीर वृद्धि को प्राप्त होता है उसे (पातवे) वृद्धि के लिए (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हो अर्थात् कंवारी गाय द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। भावार्थ :- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआ बालक रूप
धारण करके स्वयं प्रकट होता है उस समय कंवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है।
"त्रेतायुग में कबीर परमेश्वर जी का प्रकट होना"
प्रश्न 52 :- धर्मदास जी ने पूछा हे बन्दी छोड़ आप त्रेता युग में मुनिन्द्र ऋषि के नाम से अवतरित हुए थे। ��ृप्या उस युग में किन-2 पुण्यात्माओं ने आप की शरण ग्रहण की?
उत्तर :- हे धर्मदास! त्रेता युग में मैं मुनिन्द्र ऋषि के नाम से प्रकट हुआ। त्रेता युग में भी मैं एक शिशु रूप धारण करके कमल के फूल पर प्रकट हुआ था। एक वेदविज्ञ नामक ऋषि तथा सूर्या नामक उसकी साधवी पत्नी थी। वे प्रतिदिन सरोवर पर स्नान करने जाते थे। उनकी आयु आधी से अधिक हो चुकी थी। वह निःसन्तान दम्पति मुझे अपने साथ ले गए तथा सन्तान रूप में पालन किया। प्रत्येक युग में जिस समय मैं एक पूरे जीवन रहने की लीला करने आता हूँ। मेरी परवरिश कंवारी गायों से होती है। बाल्यकाल से ही मैं तत्त्वज्ञान की वाणी उच्चारण करता हूँ। जिस कारण से मुझे प्रसिद्ध कवि की उपाधि प्राप्त होती है। परन्तु ज्ञानहीन ऋषियों द्वारा भ्रमित जनता मुझे न पहचान कर एक कवि की उपाधि प्रदान कर देती है। केवल मुझ से परिचित श्रद्धालु ही मुझे समझ पाते हैं तथा वे अपना कल्याण करवा लेते हैं। त्रेता युग में कविर्देव का "ऋषि मुनिन्द्र नाम से प्राकाट्य" लेखक के शब्दों में निम्न पढ़ें :-
"त्रेतायुग में कविर्देव (कबीर परमेश्वर) का मुनिन्द्र नाम से प्राकाट्य"
"नल तथा नील को शरण में लेना"
त्रेतायुग में स्वयंभु कविर्देव (कबीर परमेश्वर) रूपान्तर करके मुनिन्द्र ऋषि के नाम से आए हुए थे। एक दिन अनल अर्थात् नल तथा अनील अर्थात् नील ने मुनिन्द्र साहेब का सत्संग सुना। दोनों भक्त आपस में मौसी के पुत्र थे। माता-पिता का देहान्त हो चुका था। नल तथा नील दोनों शारीरिक व मानसिक रोग से अत्यधिक पीड़ित थे। सर्व ऋषियों व सन्तों से कष्ट निवारण की प्रार्थना कर चुके थे। सर्व ऋषियों व सन्तों ने बताया था कि यह आप का प्रारब्ध का पाप कर्म का दण्ड है, यह आपको भोगना ही पड़ेगा। इसका कोई समाधान नहीं है। दोनों दोस्त जीवन से निराश होकर मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहे थे।
सत्संग के उपरांत ज्यों ही दोनों ने परमेश्वर कविर्देव (कबीर परमेश्वर) उर्फ मुनिन्द्र ऋषि जी के चरण छुए तथा परमेश्वर मुनिन्द्र जी ने सिर पर हाथ रखा तो दोनों का असाध्य रोग छू मन्त्र हो गया अर्थात् दोनों नल तथा नील स्वस्थ हो गए। इस अद्धभुत चमत्कार को देख कर प्रभु के चरणों में गिर कर घण्टों रोते रहे तथा कहा आज हमें प्रभु मिल गया। जिसकी हमें वर्षों से खोज थी उससे प्रभावित होकर ऋषि मुनिन्द्र जी से नाम (दीक्षा) ले लिया मुनिन्द्र साहेब जी के साथ ही सेवा में रहने लगे। पहले ऋषियों व संतों का समागम पानी की व्यवस्था देख कर नदी के किनारे होता था। नल और नील दोनों बहुत प्रभु प्रेमी तथा भोली आत्माएँ थी। परमात्मा में श्रद्धा बहुत हो गई थी। सेवा बहुत किया करते थे। समागमों में रोगी व वृद्ध व विकलांग भक्तजन आते त��� उनके कपड़े धोते तथा बर्तन साफ करते। उनके लोटे और गिलास साफ कर देते थे। परंतु थे भोले से दिमाग के। कपड़े धोने लग जाते तो सत्संग में जो प्रभु की कथा सुनी होती उसकी चर्चा करने लग जाते। दोनों भक्त प्रभु चर्चा में बहुत मस्त हो जाते और वस्तुएँ दरिया के जल में कब डूब जाती उनको पता भी नहीं चलता। किसी की चार वस्तु ले कर जाते तो दो वस्तु वापिस ला कर देते थे। भक्तजन कहते कि भाई आप सेवा तो बहुत करते हो, परंतु हमारा तो बहुत काम बिगाड़ देते हो। अब ये खोई हुई वस्तुएँ हम कहाँ से ले कर आयें? आप हमारी सेवा ही करनी छोड़ दो। हम अपनी सेवा आप ही कर लेंगे। नल तथा नील रोने लग जाते थे कि हमारी सेवा न छीनों। अब की बार नहीं खोएँगे। परन्तु फिर वही काम करते। प्रभु की चर्चा में लग जाते और वस्तुएँ डूब जाती। भक्तजनों ने मुनिन्द्र जी से प्रार्थना की कि कृप्या आप नल तथा नील को समझाओ। ये न तो मानते हैं और कहते हैं तो रोने लग जाते हैं। हमारी तो आधी भी वस्तुएँ वापिस नहीं लाते। बर्तन व वस्त्र धोते समय वे दोनों भगवान की चर्चा में मस्त हो जाते हैं और वस्तुएँ डूब जाती हैं। मुनिन्द्र साहेब ने एक दो बार नल-नील को समझाया। वे रोने लग जाते थे कि साहेब हमारी ये सेवा न छीनों। सतगुरु मुनिन्द्र साहेब ने आशीर्वाद देते हुए कहा बेटा नल तथा नील खूब सेवा करो, आज के बाद आपके हाथ से कोई भी वस्तु चाहे पत्थर या लोहा भी क्यों न हो जल में नहीं डूबेगी।
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krishnalodhi · 5 months ago
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महर्षि सर्वानन्द की माँ शारदा का रोग ठीक करना
काशी में एक सर्वानन्द नाम के महर्षि थे। उसकी माता श्रीमती शारदा देवी पाप कर्म फल से पीड़ित थी। उसने अपने कष्ट निवारण के लिए अनेकों जतन किये लेकिन ठीक नहीं हो सकी। जब उसने कबीर परमात्मा से उपदेश प्राप्त किया तब उसी दिन कष्ट मुक्त हो ��ई।
क्योंकि पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32, अध्याय 8 मंत्र 13 में लिखा है कि कबीर परमात्मा पापों के भी पाप अर्थात घोर पाप को भी समाप्त कर देता है।
गोरख नाथ ने कबीर साहेब जी से कहा कि मेरी एक शक्ति देखो। यह कह कर गंगा की ओर चल पड़ा। सर्व दर्शकों की भीड़ भी साथ ही चली। लगभग 500 फुट पर गंगा नदी थी। उसमें जा कर छलांग लगाते हुए कहा कि मुझे ढूंढ दो। फिर मैं (गोरखनाथ) आप का शिष्य बन जाऊँगा। गोरखनाथ मछली बन गए। साहेब कबीर ने उसी मछली को पानी से बाहर निकाल कर सबके सामने गोरखनाथ बना दिया। तब गोरखनाथ जी ने साहेब कबीर को पूर्ण परमात्मा स्वीकार किया और शिष्य बने।
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➡️⛲अवश्य सुनिए जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के मंगल प्रवचन निम्न टीवी चैनलों पर :-
➜ साधना चैनल 📺 शाम 7:30 से 8:30
➜ श्रद्धा चैनल 📺 दोपहर 2:00 से 3:00
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ranbir-sing · 2 years ago
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#tuesdaymotivations
महर्षि सर्वानन्द की माँ शारदा का रोग ठीक करना
एक सर्वानन्द नाम के महर्षि थे।उसकी आदरणीय माता श्रीमती शारदा देवी पाप कर्म फल से पीड़ित थी।उसने सर्व पूजाऐं व जन्त्र-मन्त्र कष्ट निवारण के लिए वर्षों किए। शारीरिक,पीड़ा निवारण के लिए वैद्यों की दवाईयाँ भी खाई,परन्तु कोई राहत नहीं मिली।उसने कबीर परमात्मा से उपदेश प्राप्त किया तथा उसी दिन कष्ट मुक्त हो गई।क्योंकि पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में लिखा है कि "कविरंघारिरसि अर्थात् (कविर् )कबीर (अंघारि) पाप का शत्रु (असि) है। फिर इसी पवित्र यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 में लिखा है कि परमात्मा (एनस: एनसः) अधर्म के अधर्म अर्थात् पापों के भी पाप घोर पाप को भी समाप्त कर देता है।
संत रामपाल जी महाराज जी के ज्ञान से संबंधित जानकारी के लिए Whatsapp पर हमें मैसेज करें + 91749680
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vaidyanamah · 5 years ago
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Jwar Nashak Mantra ( ज्वर नाशक मंत्र )
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मंत्र प्रभाव से कार्य करते है और उनका प्रभाव शब्दों में कहने योग्य नहीं है, आर्ष संहिताओं में विभिन्न जगाओ पर मंत्रो के उपयोग व रोग निवारण का वर्णन मिलता है उसी प्रकार से आज हम ज्वर नाशक मंत्रो को आपको बताते है, मंत्रो को बताने से पहले आपको ज्वर की उत्पति के बारे में बताते है।
ज्वर की उत्पति :-
ज्वर की सर्व प्रथम उत्पति शिव के कोप के कारण सर्व प्रथम ज्वर की उत्पति हुई इसके लिए एक पुराणिक…
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jodhpurnews24 · 6 years ago
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एक दो नहीं सैकड़ों मनोकामनाएं पूरी करता है ये महामंत्र, इसे जपने वाला कभी नहीं होता असफल
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ब्रह्मा, विष्णु, शिवजी से लेकर आधुनिक काल तक ऋषि-मुनियों, साधु-महात्माओं और अपना कल्याण चाहने वाले मनुष्यों ने गायत्री मन्त्र का आश्रय लिया है । यजुर्वेद व सामवेद का यह महामन्त्र प्रमुख मंत्र माना गया हैं, लेकिन अन्य सभी वेदों भी में किसी-न-किसी संदर्भ में गायत्री का बार-बार उल्लेख है । त्रेता युग में गायत्री के सिद्ध ऋषि एवं भगवान श्रीराम के गुरु ब्रह्मऋषि विश्वामित्र के बाद इस युग के ऋषि वेदमूर्ति आचार्य श्रीराम शर्मा ने गायत्री मंत्र व गायत्री साधना, गायत्री यज्ञ को जन जन के लिए सर्व सुलभ कर जाती पाती के भेद भाव को खत्म करने का अद्वतिय कार्य किया जो भूतो न भविष्य हैं ।
  गायत्री का शाब्दिक अर्थ है–’गायत् त्रायते’ अर्थात् गाने वाले का त्राण करने वाली । गायत्री मन्त्र गायत्री छन्द में रचा गया अत्यन्त प्रसिद्ध मन्त्र है । इसके देवता सविता हैं और ऋषि विश्वामित्र हैं । मन्त्र है– ।। ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात् ।।
  ॐ व भू: भुव: स्व: का अर्थ है- गायत्री मन्त्र से पहले ॐ लगाने का विधान है । ॐ अर्थात प्रणव, और प्रणव परब्रह्म परमात्मा का नाम है । ‘ओम’ के अ+उ+म् इन तीन अक्षरों को ब्रह्मा, विष्णु और शिव का रूप माना गया है । गायत्री मन्त्र से पहले ॐ के बाद भू: भुव: स्व: लगाकर ही मन्त्र का जप करने का विधान हैं, क्योंकि ये गायत्री मन्त्र के बीज हैं । बीजमन्त्र का जप करने से ही साधना सफल होती है । अत: ॐ और बीजमन्त्रों सहित गायत्री मन्त्र इस प्रकार है– ।। ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो न: प्रचोदयात् ।।
भावार्थ:- उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्त���करण में धारण करें । वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे ।
अथर्ववेद में वेदमाता गायत्री की स्तुति की गयी है, जिसमें उसे आयु, प्राण, शक्ति, पशु, कीर्ति, धन और ब्रह्मतेज प्रदान करने वाली कहा गया है ।
सुबह 4 से 6 बजे तक नियमित रूप से गायत्री मन्त्र का जप करने से अद्भूत बुद्धि का विकास होता हैं, विवेक का जागरण होता हैं, सैकड़ों मनोकामनाएं स्वतः ही धीरे धीरे पूरी होने के साथ जपकर्ता को अंत में ब्रह्मलोक में स्थान प्राप्त हो जाता हैं । जब सूर्योदय होने वाला हो उससे ठीक आधे घंटे पहले से उदय होने के 10 मिनट बाद तक खड़े होकर गायत्री महामंत्र का जप करने से अद्वतीय अनंत पुण्यफल की प्राप्ति होने के अनेक सिद्धिया भी प्राप्त हो जाती हैं । संध्याकाल में गायत्री का जप बैठकर तब तक करें जब तक तारे न दीख जाएं । नियमित गायत्री महामन्त्र का जप एक हजार बार से मन में उठने वाली हर सकारात्मक इच्छाएं पूरी हो जाती हैं ।
  शंखस्मृति में कहा गया हैं- गायत्री वेदजननी गायत्री पापनाशिनी । गायत्र्या: परमं नास्ति दिवि चेह च पावनम् ।। अर्थात्–‘गायत्री वेदों की जननी है । गायत्री पापों का नाश करने वाली है । गायत्री से अन्य कोई पवित्र करने वाला मन्त्र स्वर्ग और पृथिवी पर नहीं है ।
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  कुल चौबीस अक्षरों से मिलकर बना हैं गायत्री मंत्रत् गायत्री मन्त्र में कुल चौबीस अक्षर हैं । ऋषियों ने इन अक्षरों में बीजरूप में विद्यमान उन शक्तियों को पहचाना जिन्हें चौबीस अवतार, चौबीस ऋषि, चौबीस शक्तियां तथा चौबीस सिद्धियां कहा जाता है । गायन्त्री मन्त्र के चौबीस अक्षरों के चौबीस देवता हैं । उनकी चौबीस चैतन्य शक्तियां हैं । गायत्री मन्त्र के चौबीस अक्षर 24 शक्ति बीज हैं । गायत्री मन्त्र की उपासना करने से उन 24 शक्तियों का लाभ और सिद्धियां मिलती हैं । जाने गायत्री की शक्तियों के द्वारा क्या-क्या लाभ मिलते हैं-
  1- सफलता शक्ति- कठिन कामों में सफलता, विघ्नों का नाश, बुद्धि की वृद्धि ।
2- पराक्रम शक्ति- पराक्रम, वीरता, शत्रुनाश, आतंक-आक्रमण से रक्षा ।
3- पालन शक्ति- प्राणियों का पालन, आश्रितों की रक्षा, योग्यताओं की वृद्धि ।
4- कल्याण शक्ति- अनिष्ट का विनाश, कल्याण की वृद्धि, निश्चयता, आत्मपरायणता ।
5- योग शक्ति- कर्मयोग, सौन्दर्य, सरसता, अनासक्ति, आत्मनिष्ठा ।
6- प्रेम शक्ति- प्रेम-दृष्टि, द्वेषभाव की समाप्ति ।
7- धन शक्ति- धन, पद, यश और भोग्य पदार्थों की प्राप्ति ।
8- तेज शक्ति- उष्णता, प्रकाश, शक्ति और सामर्थ्य की वृद्धि, प्रतिभाशाली और तेजस्वी होना ।
9- रक्षा शक्ति- रोग, हिंसक चोर, शत्रु, भूत-प्रेतादि के आक्रमणों से रक्षा ।
10- बुद्धि शक्ति- मेधा की वृद्धि, बुद्धि में पवित्रता, दूरदर्शिता, चतुराई, विवेकशीलता ।
11- दमन शक्ति- विघ्नों पर विजय, दुष्टों का दमन, शत्रुओं का संहार ।
12- निष्ठा शक्ति- कर्तव्यपरायणता, निष्ठावान, विश्वासी, निर्भयता एवं ब्रह्मचर्य-निष्ठा ।
13- धारण शक्ति- गम्भीरता, क्षमाशीलता, भार वहन करने की क्षमता, सहिष्णुता, दृढ़ता, धैर्य ।
14- प्राण शक्ति- आरोग्य-वृद्धि, दीर्घ जीवन, विकास, वृद्धि, उष्णता, विचारों का शोधन ।
15- मर्यादा शक्ति- तितिक्षा, कष्ट में विचलित न होना, मर्यादापालन, मैत्री, सौम्यता, संयम ।
16- तप शक्ति- निर्विकारता, पवित्रता, शील, मधुरता, नम्रता, सात्विकता ।
17- शान्ति शक्ति- उद्विग्नता का नाश, काम, क्रोध, लोभ, मोह, चिन्ता का निवारण, निराशा के स्थान पर आशा का संचार ।
18- काल शक्तिृ- मृत्यु से निर्भयता, समय का सदुपयोग, स्फूर्ति, जागरुकता ।
19- उत्पादक शक्ति- संतानवृद्धि, उत्पादन शक्ति की वृद्धि ।
20- रस शक्ति- भावुकता, सरलता, कला से प्रेम, दूसरों के लिए दयाभावना, कोमलता, प्रसन्नता, आर्द्रता, माधुर्य, सौन्दर्य ।
21- आदर्श शक्ति- महत्वकांक्षा-वृद्धि, दिव्य गुण-स्वभाव, उज्जवल चरित्र, पथ-प्रदर्शक कार्यशैली ।
22- साहस शक्ति- उत्साह, वीरता, निर्भयता, शूरता, विपदाओं से जूझने की शक्ति, पुरुषार्थ ।
23- विवेक शक्ति- उज्जवल कीर्ति, आत्म-सन्तोष, दूरदर्शिता, सत्संगति, सत्-असत् का निर्णय लेने की क्षमता, उत्तम आहार-विहार ।
24- सेवा शक्ति- लोकसेवा में रुचि, सत्यनिष्ठा, पातिव्रत्यनिष्ठा, आत्म-शान्ति, परदु:ख-निवारण ।
  गायत्री मन्त्र के साधक को उपरोक्त शक्तियां स्वतः मिल जाती हैं । गायत्री मंत्र दूसरा नाम ‘तारक मन्त्र’ भी है । तारक अर्थात् तैराकर पार निकाल देने वाली शक्ति ।
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source http://hindi-news.krantibhaskar.com/latest-news/hindi-news/religious-news/38818/
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yogianand · 7 years ago
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मन्त्रों में अनंत शक्ति होती है. हरेक मंत्र का कोई न कोई द्रष्टा होता है, जिन्होंने उस मंत्र को गहन ध्यान की अवस्था में साक्षात्कार किया, या यूँ कहें कि उस मंत्र की जो शक्ति होती है उसका साक्षात्कार कर उस शक्ति का आगान व आवाहन करने के लिए उन्होंने किसी छंद में शब्दों को संरचित कर एक मंत्र का निर्माण किया.
मन्त्र शब्द दिवादि और तनादिगणीय तथा सम्मानार्थक ’मन् ’ धातु से ’ष्ट्रन’ (त्र) प्रत्यय लगकर बनता है जिनके व्यत्पत्ति लभ्य अर्थ भिन्न प्रकार से किये जा सकते हैं। मंत्र शब्द के गर्भ में मनन की परिव्याप्ति है। शब्द, शब्द के मूल अक्षर और बीजाक्षर से मन्त्रात्मक विद्या का विकास हुआ जो अक्षरों में अन्तर्निहित अपरिसीम शक्ति का द्योतक है। इसके अलावा मंत्र की यह भी परिभाषा है – ‘मननात त्रायते य इति मन्त्रः’ जिसके मनन से रक्षा होती है, उसे मंत्र कहते हैं .
मंत्र के प्रकार 
मंत्र कई प्रकार के होते हैं – वैदिक, तांत्रिक, पौराणिक, साबर, इत्यादि . वैदिक मंत्र सबसे शुद्ध, सुरक्षित एवं सात्विक होते हैं . तांत्रिक मंत्र बहुत प्रभावी होते हैं, परन्तु यदि सही ढंग से प्रयोग नहीं किया गया तो उसके दुष्परिणाम भी हो सकते हैं . पौराणिक मंत्र माध्यम गुण, प्रभाव व स्वभाव के होते हैं . साबर मंत्रो का अविष्कार नाथ संप्रदाय में हुआ, जो बहुत प्रभावी होते हैं, यदि श्रद्धा के साथ प्रयुक्त किया जाय तो .
मंत्र जप करने के तीन ढंग होते हैं – १. वाचिक, २. उपांशु, और ३. मानसिक.
जिस मंत्र का जप करते समय ओष्ठ और जिह्वा को क्रियान्वित ���र मुख से ध्वनि उत्पन्न होती है और जिसे दूसरा सुन पाए, उसको वाचिक जप कहते हैं। जो मंत्र ओष्ठ और जिह्वा के द्वारा जपा जाता है, परन्तु उसे कोई सुन ना सके, उसे उपांशु जप कहते हैं। और जिस मंत्र का जप मौन रहकर, ह्रदय से किया जाए, उसे मानसिक जप कहते हैं।
उद्देश्य के अनुसार मंत्र जप हेतु माला
शंख या मणि की माला धर्म कार्य हेतु उपयुक्त है, कमल गट्टा की माला सर्व कामना व अर्थ सिद्धि हेतु उपयोग की जाती है, रुद्राक्ष की माला से किए हुए मंत्र का जाप संपूर्ण फल देने वाला होता है। मोती मूँगा की माला से सरस्वती के अर्थ जाप करें।   
इसके अलावा वशीकरण में मूँगा, बेज, हीरा, प्रबल, मणिरत्न; आकर्षण में हाथी दाँत की माला; मारण में मनुष्य की या गधे के दाँत की माला, और कुछ तांत्रिक कर्मों में सर्प की हड्डियों की माला का भी प्रयोग होता है।
माला के अभाव में हाथ की उंगलियों के मणिबंधो पर भी गिन कर जप किया जा सकता है .
विधि 
मंत्र जप करने हेतु दिन में पूर्वाभिमुख होकर, और सायंकाल अथवा रात्रिकाल में उत्तर दिशा की और मुख कर, पद्मासन (उत्तम), वज्रासन या सिद्धासन (मध्यम), या सुखासन (सामान्य) में रीढ़ सीधी कर बैठें, और पहले कुछ प्राणायाम जैसे – कपालभाती, अनुलोम-विलोम, उज्जायी, शीतली, भ्रामरी, करें जिससे चित्त शांत और एकाग्र होगा. फिर जिस मंत्र का जप करेंगे उसका उपस्थान करें अर्थात उस मन्त्र का ऋषि, छंद, देवता और उद्देश्य, का उच्चारण करते हुए स्मरण करें, तत्पश्चात उस मन्त्र का १०८ बार जप करें.
कुछ वैदिक मंत्र जो अत्यंत उपयोगी हैं 
१. तीक्ष्ण, कुशाग्र, तेज बुद्धि, एवं ब्रह्मज्ञान के लिए निम्नलिखित गायत्री मंत्र का जप अत्यंत फलप्रद है –
मंत्र – ॐ भूर्भुव स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं, भर्गो देवस्य धीमहि, धियो यो नः प्रचोदयात् ॥
हिन्दी में भावार्थ : उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।
ऋषि – विश्वामित्र, छंद – गायत्री, देवता – सविता, उद्देश्य – उपर्युक्त
२. रोग निवारण, अच्छे स्वास्थ्य के लिए, महामृत्युंज मंत्र-
मंत्र – ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ।
हिन्दी में भावार्थ : तिन दृष्टियों से युक्त रुद्रदेव की हम उपासना करते हैं, जो जीवन में सुगंधि और पुष्टि वर्द्धक हैं । जिस प्रकार पका हुआ फल डंठल से स्वयं अलग हो जाता है, उसी प्रकार हम रोग जो  मृत्युकारक हो सकता है, उस भय से मुक्त हों |
ऋषि – वशिष्ठ, छंद – विराट ब्राह्मी त्रिष्टुप, देवता – रूद्र, उद्देश्य – रोग निवारण एवं सुस्वास्थ्य प्राप्त्यर्थं
३. घर से निकलते समय रास्ते में दुर्घटना से सुरक्षित रहने के लिए – 
मंत्र – ॐ ये पथां पथिरक्षय ऽ ऐलबृदा ऽ आयुर्युधः । तेषा गुं सहस्र योजने ऽव धन्वानि तन्मसि ॥
हिन्दी में भावार्थ : जो विविध मार्गों के पथिकों के रक्षक हैं और अन्न से प्राणियों को पुष्ट करनेवाले तथा जीवन पर्यंत संग्राम में जूझनेवाले हैं, उन सब रुद्रगणों के धनुष प्रत्यांचाहीन करके हमसे सहस्र योजन दूर स्थापित करें |
ऋषि – कुत्स, छंद – निचृत आर्षी   अनुष्टुप, देवता – बहुरूद्रगण, उद्देश्य – पथ रक्षणार्थम|
४. हर तरह के कल्याण  के लिए 
मंत्र – ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः। स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः। स्वस्ति न��्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः। स्वस्ति नो ब्रिहस्पतिर्दधातु ॥
हिन्दी में भावार्थ : महान ऐश्वर्यशाली इन्द्रदेव हमारा कल्याण करें, सम्पूर्ण जगत के ज्ञाता पूषादेव हमारा कल्याण करें, अनिष्टनाश करनेवाले पंखों से युक्त गरुड़देव हमारा कल्याण करें, तथा देवगुरु बृहस्पति हम सबका कल्याण करते हुए हमें सुखी बनाएं |
ऋषि – विश्वेदेवा, छंद – स्वराट बृहती, देवता – विश्वेदेवा, उद्देश्य – सर्व कल्याणार्थम|
५. धनप्राप्ति के लिए
जो लोग कमाने के बावजूद पैसे को बचा नहीं पाते हैं, जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है, उनके लिए निम्न्लिक्षित ऋग्वेद का लक्ष्‍मी मंत्र अत्यंत उपयोगी है. इस मंत्र का प्रतिदिन १०८ बार जाप करने से आपकी बचत में वृद्धि होगी और आर्थिक स्थिति सुधरेगी.
मन्त्र – ॐ महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात. 
    वैदिक मन्त्रों द्वारा उद्देश्य प्राप्ति मन्त्रों में अनंत शक्ति होती है. हरेक मंत्र का कोई न कोई द्रष्टा होता है, जिन्होंने उस मंत्र को गहन ध्यान की अवस्था में साक्षात्कार किया, या यूँ कहें कि उस मंत्र की जो शक्ति होती है उसका साक्षात्कार कर उस शक्ति का आगान व आवाहन करने के लिए उन्होंने किसी छंद में शब्दों को संरचित कर एक मंत्र का निर्माण किया.
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dayaramalok · 7 years ago
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असाध्य रोग निवारण के असरदार टोटके उपाय | Rog Nivaran Ke Upay कई बार देखा गया है कि कोई अत्यंत बीमार हो गया है लेकिन सभी चिकित्सीय परिक्षण किसी बीमारी का कोई लक्षण नहीं बताते तो हो सकता हो कि जातक प्रेत बाधा से पीड़ित हो। *किसी भी प्रेत बाधा से मुक्त होने लिए लगातार 21 दिन तक प्रतिदिन सूर्यास्त के समय गाय का आधा किलो दूध लें तथा उसमें नौ बूंद शुद्ध शहद और 10 बूंद गंगाजल डालें। शहद और गंगाजल मिश्रित दूध को शुद्ध बर्तन में रखकर शुद्ध वस्त्र पहनकर हर-हर गंगे बोलते हुए घर में छिड़काव करें। छिड़काव करने के बाद मुख्य दरवाजे पर आकर शेष बचे हुए दूध को धार बांधकर वहीं पर गिरा दें और बोलें- संकट कटे मिटे सब पीरा। जो सुमिरे हनुमत बलवीरा।। यह क्रिया 21 दिन तक करते रहें। इसी तरह हनुमान चालीसा व बजरंग बाण का प्रतिदिन घर में पाठ करने से भूत प्रेत बाधा नष्ट हो जाती है। अत्यंत बीमार होने पर मृत्यु की आशंका से बचने हेतु - 600 ग्राम जौ का आटा 100 ग्राम काले तिल, सरसों के तेल में गूंथकर एक मोटा रोट बना लें तथा एक ही तरफ उसकी सिकाई करें। ध्यान रहे रोट को उलट-पलट न क���ें।सिक जाने पर उसको उतार कर तेल से रोट को चुपड़ कर उस पर गुड़ की डली रखकर पूरे शरीर पर उतारा करें। इस मंत्र ‘ॐ सर्व रोगहराय नमः’ का 11 शनिवार या मंगल के दिन उतारा करके काले भैंसे को खिला दें। 3, 5 या 7 मंगल से शनिवार तक करें, रोगी को लाभ हो जाएगा। लंबी बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को स्वास्थ्य लाभ के लिए गुड़ के गुलगुले सवा किलो सरसों के तेल में पकाकर शनिवार व रविवार को रोगी के शरीर के ऊपर से उतारा करके उक्त मंत्र ‘ॐ रक्षो विध्वंशकारकाय नमः’ को 7 बार बोलें। फिर चील, कौए, कबूतर, चिड़ियों को गुलगुले के टुकड़े डालें तथा बंदरों को चना, गुड़ खिलाएं। ऐसा 3, 5 या 7 बार करें निश्चित लाभ होता है। हम सभी के जीवन में कुछ न कुछ परेशानियां आती ही रहती है। इन परेशानियों का इलाज़ हमेशा सहज नहीं होता है इसके लिए कुछ टोटके अपनाने पड़ते है। अगर आप भी इसी तरह की समस्याओं से झूझ रहे है तो हमारे द्वारा दिए जा रहे ये तांत्रिक टोटके अपनाकर आप कुछ हद तक अपनी समस्या से छुटकारा पा सकते है। * अगर घर किसी छोटे बच्चे को नज़र लग जाने की वजह से तेज बुखार आया है या लगातार रो रहा है तो हाथ में चुटकी भर रक्षा लेकर बृहस्पतिवार को “ओम चैतन्य गोरखनाथ नमः” मंत्र का जाप १०८ बार करे तथा उसे पुडिया में बंद कर काले रेशमी धागे से बच्चे के गले में बांध दे। इससे बच्चों को बुरी नज़र का खतरा कम हो जाता है। * अगर आपके परिवार में कोई रोग ग्रस्त है तो एक देशी अखंडित पान, गुलाब का फूल और बताशे रोगी के ऊपर से वार कर ३१ बार उतारें और उसे लेजर चौराहे पर रख दे। ऐसा करने से रोगी की दशा शीघ्रता से सुधरेगी। *यदि घर में कोई व्यक्ति या बच्चा रोगग्रस्त है और काफी दवाईयां लेने के बाद भी सही नहीं हो रहा है तो शनिवार को एक नींबू लेकर रोगी के सिर से 7 बार उल्टा घुमाएं। फिर एक चाकू सिर से पैर तक धीरे-धीरे स्पर्श.करते हुए नींबू को बीच से काट दें। दोनों टुकड़े दो दिशा में संध्या समय फैंक दें। यह टोटका किसी जानकार से पूछकर करेंगे तो अच्छा होगा। क्योंकि इसमें समय का विशेष महत्व होता है| * अगर बीमारी से शीघ्र छुटकारा पाना हो तो जौ के आटे में काले तिल एवं सरसों का तेल मिला कर मोटी रोटी बनाएं और उसे रोगी के ऊपर से सात बार उतारकर भैंस को खिला दें। इस प्रक्रिया में रोगी के ठीक होने की कामना भी साथ में करते रहिये। * बीमारी को दूर करने के लिए नीम्बू को सुई लगाकर बीमार के सर से ७ बार वार कर चौराहे पर रख देने से अगर कोई उसे पार कर जाता है तो उस बीमार व्यक्ति की सा��ी बीमारी उस व्यक्ति को लग जाती है। * अगर बीमारी पुरानी हो तो आक के पौधे की जड़ उत्तर दिशा में मुख करके बीमार व्यक्ति के आगे लेकर रखे। * तीन पके हुए नीबू लेकर एक को नीला एक को काला तथा तीसरे को लाल रंग कि स्याही से रंग दे । तीनो नीबुओं पर एक एक साबुत लौंग गांड कर तीन मोटी चूर के लड्डू लेकर तथा तीन लाल पीले फूल लेकर एक रुमाल में बांध दे अब प्रभावित ब्यक्ति के ऊपर से सात बार उबार कर बहते जल में प्रवाहित कर दे प्रवाहित करते समय आस पास कोई खड़ा ना हो। *अगर बीमारी पीछा नहीं छोड़ रही है तो तीन पके हुए नींबू लेकर एक को नीला एक को काला तथा तीसरे को लाल रंग कि स्याही से रंग दे। अब तीनों नीबुओं पर एक एक साबुत लौंग गाड़़ दें। इसके बाद तीन मोतीचूर के लड्डू लेकर तथा तीन लाल पीले फूल लेकर एक रुमाल में बांध दें। अब प्रभावित व्यक्ति के ऊपर से सात बार उबार कर बहते जल में प्रवाहित कर दें। ध्यान रहे प्रवाहित करते समय आसपास कोई खड़ा न हो| किसी भी बीमारी से ग्रसित होने पर अक्‍सर लोग डॉक्‍टर के पास जाते हैं और उनकी सलाह के अनुसार दवाएं आदि लेते हैं. परंतु कई बार इलाज के बावजूद रोग दूर नहीं होते. बीमारी की मूल वजह दूर किए बिना केवल बाहरी इलाज कराने से ही ऐसे प्रयास बेकार जाते हैं. ऐसे में कुछ मंत्र बेहद कारगर सिद्ध हो सकते है. अगर आध्‍यात्‍म‍िक नजरिए से देखें, तो हर तरह के रोगों के मूल कारण इंसान के पूर्व जन्‍म या इस जन्‍म के पाप ही होते हैं. इसलिए आयुर्वेद में बताया गया है कि देवताओं का ध्‍यान-स्‍मरण करते हुए दवाओं के सेवन से ही शारीरिक और मानसिक रोग दूर होते हैं: जन्‍मान्‍तर पापं व्‍याधिरूपेण बाधते। तच्‍छान्तिरौषधप्राशैर्जपहोमसुरार्चनै:।। आयुर्वेद की मान्‍यता है कि जप, हवन, देवताओं का पूजन, ये भी रोगों की दवाएं हैं. ऐसे में रोगों के नाश के लिए पूजा और देवताओं के मंत्र की उपयोगिता स्‍पष्‍ट है. जो जटिल रोग से पीड़ि‍त हों, उन्‍हें हनुमानजी की आराधना करनी चाहिए. वैसे तो श्रद्धालु पूरी हनुमानचालीसा का पाठ किया करते हैं. परंतु रोगनाश के लिए हनुमानचालीसा की इन चौपाइयों और दोहों को मंत्र की तरह जपने का विधान है: 1. बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवनकुमार। बल बुधि बिद्या देहु मोहि हरहु कलेस बिकार। 2. नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा। इस दोहे के जप से हर तरह के रोग, शारीरिक दुर्बलता, मानसिक क्‍लेश आदि दूर होते हैं. खास बात यह है कि हनुमानजी के उपासक को सदाचारी होना चाहिए. सदाचार से वे प्रसन्‍न होते हैं और मनोकामनाओं को पूरा करते हैं. इन मंत्रों का जप अनुष्‍ठान के साथ करने के भी तरीके हैं, पर वे थोड़े जटिल हैं. इनके जप का आसान तरीका भी है. किसी भी व्‍यक्ति को दिन या रात में, जब कभी भी मौका मिले, हनुमानजी को याद करते हुए ��न मंत्रों का मानसिक जप (मन ही मन) करना चा‍हिए. चलते-फिरते, यात्रा करते हुए, कोई शारीरिक काम करते हुए भी इसे जपा जा सकता है. यह क्रम रोग दूर होने तक उत्‍साह के साथ जारी रखना चाहिए. * अमावस्या को प्रात: मेंहदी का दीपक पानी मिला कर बनाएं। तेल का चौमुंहा दीपक बना कर 7 उड़द के दाने, कुछ सिन्दूर, 2 बूंद दही डाल कर 1 नींबू की दो फांकें शिवजी या भैरों जी के चित्र का पूजन कर, जला दें। महामृत्युजंय मंत्र की एक माला या बटुक भैरव स्तोत्र का पाठ कर रोग-शोक दूर करने की भगवान से प्रार्थना कर, घर के दक्षिण की ओर दूर सूखे कुएं में नींबू सहित डाल दें। पीछे मुड़कर नहीं देखें। उस दिन एक ब्राह्मण -ब्राह्मणी को भोजन करा कर वस्त्रादि का दान भी कर दें। कुछ दिन तक पक्षियों, पशुओं और रोगियों की सेवा तथा दान-पुण्य भी करते रहें। इससे घर की बीमारी, भूत बाधा, मानसिक अशांति निश्चय ही दूर होती है। *अगर बीमार व्यक्ति ज्यादा गम्भीर हो, तो जौ का 125 पाव (सवा पाव) आटा लें। उसमें साबुत काले तिल मिला कर रोटी बनाएं। अच्छी तरह सेंके, जिससे वे कच्ची न रहें। फिर उस पर थोड़ा सा तिल्ली का तेल और गुड़ डाल कर पेड़ा बनाएं और एक तरफ लगा दें। फिर उस रोटी को बीमार व्यक्ति के ऊपर से 7 बार वार कर किसी भैंसे को खिला दें। पीछे मुड़ कर न देखें और न कोई आवाज लगाए। भैंसा कहाँ मिलेगा, इसका पता पहले ही मालूम कर के रखें। भैंस को रोटी नहीं खिलानी है, केवल भैंसे को ही श्रेष्ठ रहती है। शनि और मंगलवार को ही यह कार्य करें।
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ranbir-sing · 2 years ago
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#AlmightyGodKabir
महर्षि सर्वानन्द की माँ शारदा का रोग ठीक करना
एक सर्वानन्द नाम के महर्षि थे।उसकी आदरणीय माता श्रीमती शारदा देवी पाप कर्म फल से पीड़ित थी।उसने सर्व पूजाऐं व जन्त्र-मन्त्र कष्ट निवारण के लिए वर्षों किए। शारीरिक,पीड़ा निवारण के लिए वैद्यों की दवाईयाँ भी खाई,परन्तु कोई राहत नहीं मिली।उसने कबीर परमात्मा से उपदेश प्राप्त किया तथा उसी दिन कष्ट मुक्त हो गई।क्योंकि पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में लिखा है कि "कविरंघारिरसि अर्थात् (कविर् )कबीर (अंघारि) पाप का शत्रु (असि) है। फिर इसी पवित्र यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 में लिखा है कि परमात्मा (एनस: एनसः) अधर्म के अधर्म अर्थात् पापों के भी पाप घोर पाप को भी समाप्त कर देता है।
संत रामपाल जी महाराज जी के ज्ञान से संबंधित जानकारी के लिए Whatsapp पर हमें मैसेज करें + 91749680
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