#संग्रह सम्राट
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एक हीरो के रूप में 29 साल: कलेक्शन के बादशाह विजय
एक हीरो के रूप में 29 साल: कलेक्शन के बादशाह विजय
एसए चंद्रशेखर द्वारा निर्देशित और विजयकांत अभिनीत फिल्मों ‘वेत्री’, ‘कुडुंबम’, ‘वसंतरागम’ और ‘सट्टम ओरु विलायत’ में विजय बच्चे ने अभिनय किया। उनकी पहली फिल्म ‘जजमेंट डे’ 4 दिसंबर 1992 को रिलीज हुई थी। इसलिए विजय आज ही कास्ट में आएं 29 साल पूरे हो गए हैं। रजनी के बाद अगर आप किसी ऐसे अभिनेता का हाथ दिखाएंगे जो तमिल सिनेमा में कलेक्शंस का बादशाह बनेगा तो सभी के हाथ विजय की ओर इशारा करेंगे। इतनी…
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#29 साल#कमांडर#जूनियर कमांडर#थलपति विजय#पुरुष#मुलाक़ात#वासु राजा#विजय#विजय के 29 साल#संग्रह के राजा#संग्रह सम्राट
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सम्राट पृथ्वीराज बॉक्स ऑफिस दिन 7: 'सम्राट पृथ्वीराज' का तेज तेज, सूक्ष्म शोफ कैंसिल
सम्राट पृथ्वीराज बॉक्स ऑफिस दिन 7: ‘सम्राट पृथ्वीराज’ का तेज तेज, सूक्ष्म शोफ कैंसिल
छवि स्रोत: INSTAGRAM / MANUSHI_CHHILLAR सम्राट पृथ्वीराज हाइलाइट अक्षय कुमार की फिल्म की पहली तलवार 7वें दिन ‘सम्राट पृथ्वीराज’ में डालें की वृद्धि अक्षय कुमार की बॉलिंग मॉनिशिंग कैंसिल सम्राट पृथ्वीराज बॉक्स ऑफिस दिन 7: : : :. :. .. . . . . .नाशक कुमार और मानुषी ऑक्सीडाइज़र की तरह ही ध्वनिक ध्वनिक कीटाणुओं वाले कीटाणुओं के साथ ‘स्वास्थ्य कीटराज’ ऑफिस पर कीटाणुओं की जाँच की जाती है। बिजली में…
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#अक्षय कुमार#अक्षय फिल्म संग्रह#अभय कुमार#बॉक्स ऑफिस#बॉलीवुड हिंदी समाचार#मनोरंजन#मानुषी छिल्लारो#सम्राट पृथ्वीराज#सम्राट पृथ्वीराज बॉक्स ऑफिस कलेक्शन
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प्रमुख बॉक्स ऑफिस संग्रह दिन 2 धीरे-धीरे अर्जित किया संग्रह जानें
प्रमुख बॉक्स ऑफिस संग्रह दिन 2 धीरे-धीरे अर्जित किया संग्रह जानें
सम्राट पृथ्वीराज और विक्रम के आगे नहीं टिक पा रही ‘मेजर’ नई दिल्ली: 3 जून तो 3 बड़ी फिल्में रिलीज हुई हैं. अक्षय कुमार की सम्राट पृथ्वीराज, कमल हासन की विक्रम के बाद और अदिवी ��ेष की मेजर. तीनों फिल्मों को लेकर फैन्स में एक अलग ही लेवल का क्रेज देखा जा सकता है. मेजर फिल्म साल 2008 के मुंबई धमाके के ऊपर आधारित है जिसने पूरे देश को हिला दिया था. अदिवी शेष की इस फिल्म में मुंबई हमले में शहीद हुए…
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आदिनाथ भगवान की आरती : आरती उतारूँ आदिनाथ भगवान की
आदिनाथ भगवान की आरती : आरती उतारूँ आदिनाथ भगवान की
आदिनाथ जी की आरती हिंदी में Adinath Ji Ki Aarti In Hindi आदिनाथ भगवान की आरती : माता मरुदेवी ने चैत्र कृष्ण नवमी के दिन सूर्योदय के समय भगवान श्री आदिनाथ जी को जन्म दिया था ! जिनको श्री ऋषभदेव के नाम से भी जाना जाता हैं ! भगवान श्री आदिनाथ जी का सुनन्दा के साथ विवाह हुआ था ! राजा नाभि के पुत्र ऋषभदेव जो कि महान प्रतापी सम्राट हुये थे ! -: अन्य आरती संग्रह :- श्री झूलेलाल आरती गायत्री माता…
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फैशन और स्टाइल के लिए मशहूर रहा काबुल, आजादी से घूमती थीं महिलाएं, जानिए तालिबान के आने से पहले कैसा था अफगानिस्तान?
दशकों तक अफगानिस्तान दुनिया के सबसे ताकतवर देशों के लिए अपनी ताकत दिखाने की प्रयोगशाला बना हुआ था। 9/11 के बाद जिस तरह से अमेरिका की सेना ने दोबारा यहां कदम रखा उसके बाद माना जा रहा था कि यहां हालात बेहतर हो सकते हैं, लेकिन ऐसा हो नहीं सका। फिलहाल अफगानिस्तान में अभी के हालात यह हैं कि तालिबान ने कंधार, काबुल समेत पूरे अफगानिस्तान पर नियंत्रण कर लिया है। अमेरिका द्वारा प्रशिक्षित सैनिक यहां से जान बचाकर भाग रहे हैं और ये लोग तजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान में जान बचाने के लिए छिप रहे हैं। यहां तक कि अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी भी देश छोड़कर चले गए हैं।
आज पूरी दुनिया अफगानिस्तान को तरस भरी निगाहों से देख रही है. दुनिया की लगभग हर महिला उन अफगान महिलाओं को लेकर चिंता जता रही है, जिन्होंने उड़ने के लिए अपने पंख फैलाने शुरू ही किए थे. सोशल मीडिया पर अफगानिस्तान के प्रति एकजुटता दिखाई जा रही है . और यहां की पुरानी तस्वीरें भी खूब शेयर हो रही हैं. जिनसे साफ देखा जा सकता है कि तब का काबुल, अब के काबुल से पूरी तरह अलग था.
अमेरिका के नेतृत्व में नाटो सेनाओं ने ��िस तालिबान को 2001 में सत्ता से बेदखल कर दिया था, अब 20 साल बाद एक बार फिर देश का बड़ा हिस्सा उसके कब्जे में आ गया है. रिपोर्ट्स के अनुसार, तालिबान ने अपने कब्जे वाले इलाकों में क्रूर कानूनों को लागू करना शुरू कर दिया है. जिनमें महिलाओं के ऊपर बंदिशों का गहरा बोझ लाद दिया गया है. इन्होंने 15 साल से ऊपर की लड़कियों और 45 साल से कम उम्र की विधवा महिलाओं की लिस्ट सौंपने को कहा है.
कब्जे वाले इलाकों में ही जबरन लड़ाकों की शादी महिलाओं से कराई जा रही है. महिलाओं के घर से निकलने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है और वह केवल पुरुष साथी के साथ ही घर से बाहर निकल सकती हैं. उनके लिए बुर्का पहनना अनिवार्य कर दिया गया है और पढ़ाई-लिखाई पर रोक लग गई है . आपको ये जानकर हैरानी होगी कि अफगानिस्तान हमेशा से ऐसा नहीं था. एक समय था, जब ये देश भी फैशन, रोजगार और करियर के मामले में काफी आगे था.
सोशल मीडिया पर वायरल पुरानी तस्वीरों में अफगान महिलाएं और पुरुष यूरोपीय लोगों की तरह ही फैशनेबल दिखाई दे रहे हैं. लेकिन आज के अफगानिस्तान के लिए ये सब किसी सपने जैसा है . क्योंकि कट्टरपंथी तालिबानी संगठन ने ��बकुछ बदलकर रख दिया है. पुरानी तस्वीरों में अफगानिस्तान एक फैशन हब जैसा लग रहा है. 70 के दशक की एक तस्वीर में महिलाओं ने फैशनेबल कपड़े पहने हुए हैं और उनके बालों का स्टाइल बेहद खास है. लेकिन आज के समय में वो बिना बुर्के के नहीं रह सकतीं.
लोग उस वक्त को याद कर रहे हैं, जब महिलाएं भी अपना करियर बनाती थीं. सब कानून व्यवस्था के मुताबिक चलता था. सरकार विकास कार्यों को करने में सक्षम थी और हर किसी को आजादी थी. लेकिन करीब चार दशक तक चले युद्ध ने सबकुछ खत्म कर दिया है. आज की महिलाओं में अपनी सुरक्षा को लेकर डर है . तलाकशुदा महिलाओं के लिए स्थिति और भी भयंकर है. क्योंकि इनके लिए एक रुढिवादी समाज में कोई स्थान ही नहीं है.
अफगानिस्तान में पर्यटन
1970 के दशक की शुरुआत में सरकारी सहायता के साथ विकसित अफगानिस्तान का पर्यटन उद्योग आंतरिक राजनीतिक अस्थिरता के कारण 1979 से नगण्य रहा है। अफगानिस्तान में प्रवेश के लिए पासपोर्ट और वीज़ा की आवश्यकता है। 1 999 में, संयुक्त राष्ट्र ने काबुल में $ 70 अमरीकी डालर पर रहने की दैनिक लागत का अनुमान लगाया। इन लागतों में से लगभग 61% गेस्टहाउस में एक कमरे की कीमत होने का अनुमान लगाया गया था। होटल के लिए इसकी उच्च दर भी है। तालिबान और अल-कायदा के खिलाफ अमेरिका के नेतृत्व वाले अभियान के चलते यात्रा देश में अत्यधिक प्रतिबंधित थी।अफगान दूतावास सालाना 15,000 से 20,000 पर्यटक वीजा के बीच जारी करते हैं। 2014 में, अफगानिस्तान में साहसिक यात्राओं के लिए बुकिंग दोगुनी हो गई थी।
सिंधु घाटी सभ्यता शहरों
सिंधु घाटी सभ्यता कांस्य युग सभ्यता (3300-1300 ईसा पूर्व, परिपक्व अवधि 2600-19 00 ईसा पूर्व) थी जो आज उत्तर-पश्चिम पाकिस्तान और उत्तरपूर्वी अफगानिस्तान के उत्तर-पश्चिम पाकिस्तान से फैली हुई है। उत्तरी अफगानिस्तान में शॉर्टुगाई में ओक्सस नदी पर एक सिंधु घाटी स्थल पाई गई है। शॉर्टुघई पर्यटकों के अलावा दक्षिणी अफगानिस्तान में मुंडीगाक जा सकते हैं जो एक और उल्लेखनीय साइट है।
अफगानिस्तान का राष्ट्रीय संग्रहालय
संग्रहालय संग्रह पहले मध्य एशिया में सबसे महत्वपूर्ण था, जिसमें कई सहस्राब्दी से 100,000 से अधिक वस्तुओं की डेटिंग हुई थी। 1 99 2 में गृहयुद्ध की शुरुआत के साथ, संग्रहालय को कई बार लूट लिया गया जिसके परिणाम स्वरूप 100,000 वस्तुओं का प्रदर्शन 70% था। 2007 से, कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने 8,000 से अधिक कला���ृतियों को पुनर्प्राप्त करने में मदद की है, हाल ही में जर्मनी से चूना पत्थर की मूर्ति है। 2012 में यूनाइटेड किंगडम द्वारा लगभग 843 कलाकृतियों को वापस कर दिया गया, जिसमें प्रसिद्ध 1 शताब्दी बाग्राम आइवरी शामिल हैं।
बाबर ��ार्डन
बाबर के गार्डन अफगानिस्तान के काबुल में एक ऐतिहासिक पार्क है, और पहले मुगल सम्राट बाबर के अंतिम विश्राम स्थान भी हैं। माना जाता है कि उद्यान 1528 ईस्वी (9 35 एएच) के आसपास विकसित किए गए थे, जब बाबुर ने काबुल में ‘एवेन्यू गार्डन’ के निर्माण के आदेश दिए थे, जो उनके संस्मरण, बाबर्णमा में कुछ विस्तार से वर्णित थे। अकेला ग्रह पार्क को “काबुल में सबसे प्यारा स्थान” के रूप में वर्णित करता है।
काबुल चिड़ियाघर
ब्याज की एक और जगह काबुल चिड़ियाघर है। यह काबुल नदी के किनारे अफगानिस्तान के काबुल में स्थित है। 2010 तक, चिड़ियाघर में लगभग 280 जानवर हैं, जिनमें पक्षियों और स्तनधारियों की 45 प्रजातियां और मछली की 36 प्रजातियां शामिल हैं। जानवरों में से दो शेर और अफगानिस्तान के एकमात्र सुअर हैं। सप्ताहांत के दौरान 10,000 लोग यात्रा करते हैं। Read the full article
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एक बार मगध सम्राट् बिंन्दुसार ने अपने राज दरबार में पूछा :- देश की खाद्य समस्या को सुलझाने के लिए सबसे सस्ती वस्तु क्या है...?मंत्री परिषद् तथा अन्य सदस्य सोच में पड़ गये। चावल, गेहूं, ज्वार, बाजरा आदि तो बहुत परिश्रम के बाद मिलते हैं और वह भी तब, जब प्रकृति का प्रकोप न हो। ऐसी हालत में अन्न तो सस्ता हो नहीं सकता.. शिकार का शौक पालने वाले एक अधिकारी ने सोचा कि मांस ही ऐसी चीज है, जिसे बिना क��छ खर्च किये प्राप्त किया जा सकता है.....उसने मुस्कुराते हुऐ कहा :- राजन्... सबसे सस्ता खाद्य पदार्थ मांस है। इसे पाने में पैसा नहीं लगता और एक पौष्टिक वस्तु खाने को भी मिल जाती है।सभी ने इस बात का समर्थन किया, लेकिन मगध का प्रधान मंत्री आचार्य चाणक्य चुप रहे।सम्राट ने उससे पुछा : आप चुप क्यों हो? आपका इस बारे में क्या मत है? चाणक्य ने कहा : यह कथन कि मांस सबसे सस्ता है...., एकदम गलत है, मैं अपने विचार आपके समक्ष कल रखूँगा....रात होने पर प्रधानमंत्री सीधे उस सामन्त के घर पहुंचे, जिसने सबसे पहले अपना प्रस्ताव रखा था।चाणक्य ने द्वार खटखटाया....सामन्त ने द्वार खोला, इतनी रात गये प्रधानमंत्री को देखकर वह घबरा गया। उनका स्वागत करते हुए उसने आने का कारण पूछा? प्रधानमंत्री ने कहा :-संध्या को महाराज एकाएक बीमार हो गए है उनकी हालत बेहद नाज़ुक है। राजवैद्य ने उपाय बताया है कि यदि किसी बड़े आदमी के हृदय का एक तोला मांस मिल जाए तो राजा के प्राण बच सकते है....आप महाराज के विश्वास पात्र सामन्त है। इसलिए मैं आपके पास आपके शरीर का एक तोला मांस लेने आया हूँ। इसके लिए आप जो भी मूल्य लेना चाहे, ले सकते है। कहे तो लाख स्वर्ण मुद्राऐं दे सकता हूँ.....। यह सुनते ही सामान्त के चेहरे का रंग फिका पड़ गया। वह सोचने लगा कि जब जीवन ही नहीं रहेगा, तब लाख स्वर्ण मुद्राऐं किस काम की?उसने प्रधानमंत्री के पैर पकड़कर माफी चाही और अपनी तिजोरी से एक हज़ार स्वर्ण मुद्राऐं देकर कहा कि इस धन से वह किसी और व्यक्ति के हृदय का मांस खरीद लें।मुद्राऐं लेकर प्रधानमंत्री बारी-बारी सभी सामन्तों, सेनाधिकारियों के द्वार पर पहुँचे और सभी से राजा के लिऐ हृदय का एक तोला मांस मांगा, लेकिन कोई भी राजी न हुआ....सभी ने अपने बचाव के लिऐ प्रधानमंत्री को हजार, दो हज़ार , पांच हजार और किसी ने दस हजार तक स्वर्ण मुद्राऐं दे दी। इस प्रकार लाख स्वर्ण मुद्राओं का संग्रह कर प्रधानमंत्री सवेरा होने से पहले महल पहुँच गऐ और समय पर राजदरबार में प्रधानमंत्री ने राजा के समक्ष लाख स्वर्ण मुद्राऐं रख दी....!सम्राट ने पूछा : यह सब क्या है....? यह मुद्राऐं किसलिए है? प्रधानमंत्री चाणक्य ने सारा हाल सुनाया और बोले: एक तोला मांस ख़रीदने के लिए इतनी धनराशी इक्कट्ठी हो गई ,फिर भी एक तोला मांस नही मिला। अपनी जान बचाने के लिऐ सामन्तों ने ये मुद्राऐं दी है। राजन अब आप स्व��ं सोच सकते हैं कि मांस कितना सस्ता है....??जीवन अमूल्य है।इस धरती पर हर किसी को स्वेच्छा से जीने का अधिकार है.........
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Places To Visit In Gwalior - Gwalior City
Gwalior Places to visit in Gwalior
Places To Visit In Gwalior - Gwalior City राजा सूरज सेन ने ग्वालियर शहर का निर्माण करवाया था। इस ऐतिहासिक ग्वालियर शहर की सुंदरता, आकर्षक स्मारक, महल और मंदिर इसके अपवाद हैं। यहां मस्जिदों, शिला मंदिरों और मूर्तियों की भव्यता देखी जा सकती है। खूबसूरत पहाड़ियों से घिरा ग्वालियर एक खूबसूरत पर्यटन स्थल है। प्रसिद्ध संगीतकार तानसेन का जन्म ग्वालियर में हुआ था। ग्वालियर किला ग्वालियर का किला घूमने के लिए सबसे खूबसूरत जगहों में से एक है। यह किला भारत की सबसे पुरानी संरचनाओं में से एक है। ग्वालियर का किला, जिसे "ग्वालियर का किला" भी कहा जाता है, मध्य प्रदेश राज्य के ग्वालियर में पहाड़ियों पर स्थित है। इस किले की ऊंचाई 35 मीटर है। इस किले पर कई तरह के शासकों का शासन रहा है।
किले के दो मुख्य महल गुजरी महल और मान मंदिर हैं। दोनों का निर्माण मान सिंह तोमर (1486-1516 सीई) के शासनकाल के दौरान किया गया था। गुजरी महल का निर्माण रानी मृगनयनी के लिए करवाया गया था। जय विलास पैलेस 1874 में जीवाजी राव सिंधिया द्वारा बनवाया गया जय विलास पैलेस देश के सबसे खूबसूरत महलों में से एक है। यह एक विशाल महल है जो 1,240,771 वर्ग फुट के क्षेत्र में फैला है। महल का निर्माण इंग्लैंड के स्वागत समारोह के राजकुमार एडवर्ड-VII के सम्मान में किया गया था। इस महल में एक विशाल झूमर है, और इसके आठ लगभग 3500 किलो के हैं।
Credit - Common Wikimedia इस महल में कुल 400 कमरे हैं, जिनमें से 40 को संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया है। संग्रहालय को जीवाजी राव सिंधिया संग्रहालय कहा जाता है। यह रोजाना सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक खुला रहता है। बुधवार को, संग्रहालय बंद रहता है। तेली का मंदिर ग्वालियर में तेली मंदिर ग्वालियर किले में स्थित है। 9वीं शताब्दी में बना यह मंदिर 100 फीट की ऊंचाई के साथ ग्वालियर की सबसे बड़ी संरचना है।
Credit - Common Wikimedia तेली का मंदिर मूल रूप से भगवान शिव का मंदिर बनने से पहले विष्णु मंदिर था। मंदिर के अंदर देवी-देवताओं, सांपों, प्रेमी जोड़ों और गरुड़ की मूर्तियां हैं। इस मंदिर की वास्तुकला प्रसिद्ध है। तानसेन का मकबरा तानसेन का मकबरा ग्वालियर के दर्शनीय स्थलों में से एक है। तानसेन अकबर के नौ रत्नों में से एक है और वह एक प्रसिद्ध भारतीय संगीतकार और सम्राट अकबर के दरबार के प्रमुख गायक हैं। वह अकबर से पहले मान सिंह तोमर के दरबार में संगीतकार थे और मान सिंह की मृत्यु के बाद यहां से भागने के बाद रीवा के राजा रामचंद्र के दरबार में संगीतकार थे।
Tansen's Tomb तानसेन का मूल नाम रामतनु पांडे था। उनका जन्म 1493 में ग्वालियर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम मकरंद पांडे था, और उन्होंने बनारस मंदिर में पुजारी के रूप में काम किया। मान मंदिर ��ैलेस मान मंदिर पैलेस का निर्माण 1486 और 1516 के बीच तोमर शासक मान सिंह तोमर के निर्देशन में किया गया था। महल में दो खुले कोर्ट और दो स्तर के अपार्टमेंट हैं। आप एक स्थानीय गाइड के साथ शुल्क के साथ महल में जा सकते हैं।
Man Mandir Palace गुजरी महल ग्वालियर के पर्यटन आकर्षणों में से एक गुजरी महल, 15 वीं शताब्दी में मान सिंह द्वारा अपनी सबसे प्यारी पत्नी मृगनयनी के लिए बनाया गया था। यह महल अब खराब स्थिति में है।
Gujari Mahal, ग्वालियर सिंधिया संग्रहालय
Gwalior Scindia Museum यह ग्वालियर सिंधिया संग्रहालय , जीवाजी राव सिंधिया को समर्पित है। यह संग्रहालय मध्य प्रदेश में सबसे प्रसिद्ध संग्रहालय में से एक है। इसका निर्माण 1964 में किया गया था। संग्रहालय अन्य चीजों के अलावा पांडुलिपियों, सिक्कों, चित्रों, हथियारों और मूर्तियों के संग्रह के लिए प्रसिद्ध है। ग्वालियर चिड़ियाघर
Gwalior Zoo ग्वालियर चिड़ियाघर 1922 में शाही परिवार के माधो राव सिंधिया द्वारा स्थापित एक सुंदर चिड़ियाघर है। इस स्थान को फूल बाग के नाम से भी जाना जाता है। यह उद्यान सांभर, चित्तीदार हिरण, काला हिरन, बाइसन, लकड़ी की बग्गी और सफेद बाघ की कई प्रजातियों का घर है। सूर्य मंदिर
Sun Temple इस स्थान पर सूर्य मंदिर भगवान सूर्य देव को समर्पित है। सूर्य मंदिर 1988 में एक प्रसिद्ध उद्योगपति जीडी बिड़ला द्वारा बनाया गया था। Tighra Dam तिघरा बांध ग्वालियर में स्थित है, यह बांध स्थानीय लोगों और आगंतुकों दोनों के लिए एक लोकप्रिय पिकनिक स्थल है।
Tighara dam रानी लक्ष्मी बाई की समाधि रानी लक्ष्मी बाई का मकबरा ग्वालियर में स्थित है और आगंतुकों के लिए एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। रानी लक्ष्मी बाई की सबसे ऊंची मूर्ति अभी भी यहां एक पर्यटक आकर्षण है।
Rani Laxmi Bai's tomb स्पलैश द सन सिटी ग्वालियर स्पलैश द सन सिटी ग्वालियर के सबसे लोकप्रिय वाटर पार्कों में से एक है। दोस्तों, परिवार और बच्चों को लाने के लिए पर्यटकों का स्वागत है।
Sun City Amusement Park Gwalior कैसे पहुंचें ग्वालियर उड़ान से Gwalior Airport -ग्वालियर हवाई अड्डा शहर से लगभग 8 से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और देश के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। आप हवाई अड्डे से सार्वजनिक परिवहन प्राप्त कर सकते हैं। ट्रेन से ग्वालियर शहर रेल द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। आप ग्वालियर रेलवे स्टेशन से स्थानीय परिवहन ले सकते हैं। बस से ग्वालियर राज्य के अन्य हिस्सों से राज्य बस द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। FAQ :- ग्वालियर मै घूमने लायक कितनी जगह है ? मन मंदिर पैलेस ,सहस्त्र बहु टेम्पल,तेली का मंदिर,गुजारी महल,सूरज कुंड,चतर्भुज मंदिर ,ग्वालीओ फोर्ट ऐसी बहुत सी जगह है जहाँ पे टूरिस्ट घूम सकते है ग्वालियर का फेमस फ़ूड क्या है ? What is the famous food of Gwalior? कचोरी , पोहा ,पेठा गिलोरी ,जलेबी ये सभी ग्वालियर के स्ट्रीट फूड्स जो लोग सुबह सुबह कहते हुए देखे जा सकते है। Also Read Movie Reviews Read the full article
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उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयंती आज
यूँ तो काशी दुनिया के सबसे प्राचीन शहरों में से एक गंगा मैया की गोद में खेलने वाला,अपने साथ कई ऐतिहासिक यादें जोड़े हुए और प्र��िद्ध कलाकारों की जन्मभूमि होने के कारण अपने आप में ही एक प्रख्यात शहर है।आज ही के दिन 31 जुलाई को काशी के एक छोटे से गांव लमही में जन्म लिया एक ऐसे लेखक ने जिसकी कहानियों और उपन्यासों ने एक समय में अंग्रेज़ो की नाक में दम कर दिया था। धनपत राय श्रीवास्तव,नहीं समझे ? “मुंशी प्रेमचंद” जी हाँ उनका असल नाम धनपत राय श्रीवास्तव ही था ,मुंशी प्रेमचंद उनका उपनाम था इससे पहले भी उन्होंने नवाब राय,प्रेमचंद जैसे उपनामो के तहत अपने कुछ लेख लिखे फिर एक दिन उन्होंने मुंशी प्रेमचंद को ही अपना उपनाम कुछ यूँ बना लिया की अब उनके असल नाम से उन्हें कोई भी ना जानता था।
धनपत राय श्रीवास्तव से मुंशी प्रेमचंद बनने का सफर :
करीब 1909 के आस पास मुंशी प्रेमचंद की पहली लघु कहानी संग्रह ‘सोज़-ए-वतन’,अंग्रेजी सरकार की नज़र में आ गई ,जिसने इसे एक देशद्रोही काम के रूप में प्रतिबंधित कर दिया।हमीरपुर जिले के ब्रिटिश कलेक्टर ने प्रेमचंद के घर पर छापा मारने का आदेश दिया, जहाँ सोज़-ए-वतन की लगभग पाँच सौ प्रतियां जला दी गईं।इसके बाद, उर्दू पत्रिका ज़माना के संपादक, मुंशी दया नारायण निगम, जिन्होंने धनपत राय की पहली कहानी “दुनिया का अनमोल रतन” प्रकाशित की थी, ने ही “प्रेमचंद” नाम रखने की सलाह दी थी। धनपत राय ने “नवाब राय” नाम का इस्तेमाल बंद कर दिया और प्रेमचंद बन गए।
लेखन शैली और उसका प्रभाव:
प्रेमचंद को पहला हिंदी लेखक माना जाता है जिनके लेखन में यथार्थवाद प्रमुखता से था।उनके उपन्यासों में गरीबों और शहरी मध्यवर्ग की समस्याओं का वर्णन है। उनके लेख एक तर्कसंगत दृष्टिकोण को दर्शाते हैं, जो धार्मिक मूल्यों को कुछ ऐसा मानते हैं जो शक्तिशाली पाखंडी लोगों को कमजोर लोगों का शोषण करने की अनुमति देता है।उन्होंने राष्ट्रीय और सामाजिक मुद्दों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से साहित्य का इस्तेमाल किया और अक्सर भ्रष्टाचार, बाल विधवा, वेश्यावृत्ति, सामंती व्यवस्था, गरीबी, उपनिवेशवाद और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर आधारित विषयों के बारे में लिखा। प्रेमचंद ��े 1900 के दशक के उत्तरार्ध में कानपुर में रहते हुए राजनीतिक मामलों में रुचि लेना शुरू किया, और यह उनके शुरुआती कार्यों में परिलक्षित होता है,जिनमें देशभक्ति के ओवरटोन हैं।उनके राजनीतिक विचार शुरू में उदारवादी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता गोपाल कृष्ण गोखले से प्रभावित थे, लेकिन बाद में, वे अधिक उग्रवादी बाल गंगाधर तिलक की ओर चले गए।उन्होंने मिंटो-मॉर्ले रिफॉर्म्स और मोंटागु-चेम्सफोर्ड सुधारों को अपर्याप्त माना, और अधिक से अधिक राजनीतिक स्वतंत्रता का समर्थन किया।उनके कई शुरुआती कार्यों, जैसे कि ए लिटिल ट्रिक और ए मोरल विक्टरी, ने उन भारतीयों पर व्यंग्य किया जिन्होंने ब्रिटिश सरकार का साथ दिया।उन्होंने अपनी कुछ कहानियों में विशेष रूप से सरकारी सेंसरशिप के कारण,ब्रिटिशों का उल्लेख नहीं किया, लेकिन मध्ययुगीन युग और विदेशी इतिहा�� की सेटिंग्स में उनके विरोध को खारिज कर दिया।वे स्वामी विवेकानंद की काफी शिक्षाओं से भी प्रभावित थे।
1920 के दशक में, वह महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन और सामाजिक सुधार के साथ संघर्ष से प्रभावित थे।इस अवधि के दौरान, उनके कार्यों ने गरीबी, ज़मींदारी शोषण (प्रेमश्रम, 1922), दहेज प्रथा (निर्मला, 1925), शैक्षिक सुधार और राजनीतिक उत्पीड़न (कर्मभूमि, 1931) जैसे सामाजिक मुद्दों से निपटा।प्रेमचंद किसान और श्रमिक वर्ग के आर्थिक उदारीकरण पर केंद्रित थे और तेजी से औद्योगिकीकरण का विरोध कर रहे थे, जिससे उन्हें लगा कि किसानों के हितों को चोट पहुंचेगी और श्रमिकों का उत्पीड़न होगा।इसे रंगभूमि (1924) जैसे कामों में देखा जा सकता है।
अपने अंतिम दिनों में, उन्होंने जटिल नाटक के लिए एक मंच के रूप में ग्राम जीवन पर ध्यान केंद्रित किया, जैसा कि गोदान (1936) के उपन्यास और लघु कहानी संग्रह कफन (1936) में देखा गया था।प्रेमचंद का मानना था कि सामाजिक यथार्थवाद हिंदी साहित्य के लिए रास्ता था, जैसा कि “स्त्री गुणवत्ता”, समकालीन बंगाली साहित्य की कोमलता और भावना के विपरीत था।
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‼🍁‼🍁‼🍁‼🍁‼🍁‼ ‼ॐ आनंदमय🙏🙏🙏ॐ शान्तिमय‼ *‼भीतरी और बाहरी संपत्ति ‼* ‼भीतरी संपत्ति अर्थात सद्गुण सदाचार सद्विचार ही असली धन है। लौकिक धन (बाहरी संपदा) तो मरने के बाद यही रह जाता है किंतु भीतरी संपदा यह धन ऐसा है जिसका शरीर के नाश होने पर भी नाश नहीं होताहै इसी को मानव धर्म भी कहते हैं इसी से सच्चे सुख की प्राप्ति होती है इस सुख की प्राप्ति होने पर सारे संसार का ऐश्वर्य सुख धूल के समान हो जाता है एक ऋषि की कथा आती है *‼ एक महर्षि थे उनका नाम था कणाद किसान जब अपना खेत काट लेते थे तो उसके बाद जो अन्न कण पड़े रह जाते थे उन्हें बिन करके अपना जीवन चलाते थे इनसे उनका हां नाम कणाद पड़ गया था।‼* उन जैसा दरिद्र कौन होगा। देश के राजा को उनके कष्ट का पता चला। उसने बहुत सी धन सामग्री लेकर अपने मंत्री को उन्हें भेंट करने भेजा। मंत्री पहुंचा तो महर्षि ने कहा मैं सकुशल हूं ।इस धन को तुम उन लोगों में बांट दो जिन्हें इसकी जरूरत है । इसी प्रकार राजा ने तीन बार अपने मंत्री को भेजा और तीनों बार महर्षि ने कुछ भी लेने से इंकार कर दिया । ‼ अंत में राजा स्वयं उसके पास गया ।वह अपने साथ बहुत सा धन ले गया उसने महर्षि से प्रार्थना की कि उसे स्वीकार कर ले किंतु वे बोले यह सामग्री उन्हें दे दो जिन्हें उनकी जरूरत है या जिनके पास कुछ नहीं है मेरे पास तो सब कुछ है ।राजा को बहुत आश्चर्य हीं हुआ जिसके तन पर एक लंगोटी मात्र है वह कह रहा है कि हमारे पास सब कुछ है ।वह लौटकर सारी कथा अपनी रानी को कहीं ।वह बोली -आपने भूल की ऐसे साधु के पास कुछ देने के लिए नहीं लेने के लिए जाना चाहिए। राजा उसी रात महर्षि के पास गए और क्षमा मांगी। कणाद ने कहा गरीब कौन है ?मुझे देखो और अपने आप को देखो बाहर नहीं भीतर। मैं कुछ भी नहीं मांगता कुछ भी नहीं चाहता इसलिए अनायास ही सम्राट हो गया हूं। एक संपदा बाहर हैं और एक ��ीतर है जो बाहर है वह आज है कल छिन जाती है इसलिए जो जानते हैं उसे स���पदा नहीं विपदा मानते हैं ।जो भीतर हैं वह मिलती है तो खोती नहीं ।उसे पाने पर फिर कुछ भी पाना बाकी नहीं रह जाता। वह हर समय आनंद और शांति में मग्न रहता है। इन्हीं का जीवन सार्थक है। भीतरी संपत्ति संग्रह करने का पूर्ण विधि-विधान श्री विश्वशांति ग्रंथ प्रकाशित है समाधान हेतु संपर्क कर सकते हैं 7607645197🙏🙏7678453586 ‼♾‼♾‼♾‼♾‼♾‼ भगवद गीता अध्याय: 16 श्लोक 1 श्लोक: (फलसहित दैवी और आसुरी संपदा का कथन) श्रीभगवानुवाच अभयं सत्त्वसंशुद्धिर्ज्ञानयोगव्यवस्थितिः। दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम्॥ https://www.instagram.com/p/B8hm7FeAOe5/?igshid=179ofs64bev2m
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लुम्बिनीमा तीनदिने त्रिपिटक वाचन सुरु
२८ कार्तिक, बुटवल । बुद्ध जन्मस्थल लुम्बिनीको आध्यात्मिक एवम् पर्यटकीय विकासमा टेवा पुर्याउने उद्देश्यले लुम्बिनीमा दोस्रो अन्तर्राष्ट्रिय त्रिपिटक वाचन सुरु भएको छ ।
त्रिपिटक वाचनका लागि नेपाल, भारत, श्रीलङ्का, म्यान्मार, थाइल्याण्ड, कोरिया, जापानलगायत २० बढी देशका १ हजार जना भन्दा बढी भिक्षु–भिक्षुणी, उपासक–उपासिका भेला भएका छन् । त्रिपिटक बुद्ध धर्मको मूल ग्रन्थ हो । त्रिपिटक च्यान्टिङ (वाचन) समितिको मुख्य आयोजना तथा प्रदेश ५ को उद्योग, पर्यटन, वन तथा वातावरण मन्त्रालय, लुम्बिनी विकास कोष र थाई विहारको सहयोगमा दोस्रोपटक कार्यक्रम सुरु भएको हो ।
यस पटक लुम्बिनीमा ३ वटै पिटकसँगै गौतम बुद्धले आफ्ना पिता राजा शुद्धोधनलाई धर्मदेशना (ज्ञान दिंदा ) गर्दा सुनाएका बसन्त जातक सुत्र र शाक्य र कोलिय राज्यबीच युद्ध हुन लाग्दा कपिलवस्तुमै युद्ध समाप्तिका लागि देशना गरेका महासमय सुत्र पनि पाठ (वाचन) गरिने छ ।
कार्यक्रमको उद्घाटन गर्दै प्रदेश नं. ५ का मुख्यमन्त्री शंकर पोखरेलले त्रिपिटक वाचनले लुम्बिनीको गरिमा र महत्वलाई बढाएको बताए । सम्राट अशोकले लुम्बिनीसँगै कपिलवस्तुको २ स्थानमा अशोक स्तम्भ राखेको ठाँउ पहिचान भएको र कनकमुनि बुद्धको जन्म स्थल निगालिकोटमा प्रदेश सरकारले कनकमुनी बुद्धको प्रतिमा राख्ने योजना बनाएको मुख्यमन्त्री पोखरेलले बताए । नवलपरासीको रामग्राममा बुद्धकालिन सम्पदाहरुको संग्रहालय बनाउने योजना रहेको पनि उनले बताए ।
कार्यक्रममा बुद्ध वचनको संग्रह त्रिपिटक अन्तर्गतका विनय पिटक, सूत्र पिटक र अभिधम्म पिटकको वाचन हुनेछ । पहिलो दिन नेपाली भिक्षुले सुत्रपिटक अन्तर्गतको दीर्घ निकायको बह्रमजाल सूत्र वाचन गरेर त्रिपिटक वाचनको सुरुआत गरेका छन् ।
दोस्रो दिन म्यान्मारका भिक्षुले अभिधम्म पिटक वाचनको नेतृत्व गनेछन् भने तेस्रो दिन थाई भिक्षुुले विनयपिटक वाचनको नेतृत्व गर्ने छन् । त्रिपिटक ग्रन्थ पालि भाषामा लेखिएको छ । जसलाई विभिन्न भाषामा अनुवाद गरिएको छ । यस ग्रन्थमा भगवान् बुद्ध��्वारा बुद्धत्व प्राप्त गर्दाको समयदेखि महापरीनिर्वाण हुुनुअघिसम्म दिएका प्रवचन संग्रह गरिएको छ ।
बोधगयामा बुद्धत्व प्राप्त गरेपछि ४५ वर्षसम्म भगवान् बुद्धले नेपाल, भारत, श्रीलङ्कासहित विश्वका विभिन्न मुलुकमा धर्मोपदेश गरेका थिए । गौतमबुद्धको महापरीनिर्वाणपछि विभिन्न संघमार्फत बुद्ध वचनलाई एक सूत्रमा सङ्ग्रह गरिएको थियो । यसलाई नै त्रिपिटक भनिन्छ । अभिधम्म पिटक, सुत्त पिटक तथा विनय पिटकको सङ्ग्रह नै ‘त्रिपिटक’ हो ।
त्रिपिटकअन्तर्गतका विनयपिटकलाई सुत्तपिटक र अभिधम्म पिटकलाई विभिन्न चरणमा विभाजन गरिएको छ । विनयपिटक अन्तर्गत सुत्तविभङ्ग, खन्धक, परिवार, पातिमोक्ख छन् । सुत्तपिटकअन्तर्गत दीघनिकाय, मज्झिम निकाय, संयुक्तनिकाय, अङ्गुत्तर निकाय, खुद्दक निकाय र अभिधम्मपिटकअन्तर्गत धम्मसङ्गणी, विभङ्ग, धातुकथा, पुग्गलपञ्ञती कथावत्थु, यमक र पट्ठान छन् । मायादेवी मन्दिर परिसरमा सञ्चालित त्रिपिटक वाचन तीन दिनसम्म चल्ने आयोजक समितिका सचिव हेमबहादुर विष्टले जानकारी दिए ।
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"Jeevan Tarangini" by Dr. Shivvaran Singh Raghuwanshi
‘‘जीवन तरंगिणी‘‘ एक काव्य रचना है जिसमें प्रकृति के विभिन्न पहलुओं पर बहुत कवितायें लिखी गई हैं और जिनका मानव एवं समाज के जीवन से विशेष संबंध बताया गया है। भागीरथ से पूर्व और बाद का विवरण, गंगा का उद्गम, शिव, ब्रह्माजी आदि पर कुछ कवितायें हैं। गौतम बुद्ध, अशोक सम्राट पर बहुत सी कवितायें हैं। फिर जीवन में लौकिक विचारधारा और व्यवहार, भाषा कैसी हो, इस पर काफी कवितायें इस संग्रह में समाहित की गयी हैं। यदि देखा जाये तो इन्सान को प्रकृति और समाज से हर पल, हर वक्त कुछ न कुछ सीखने को मिलता है, इस विषय पर भी इस पुस्तक में बहुत कवितायें रखी गयी हैं। डॉ शिववरण सिंह रघुवंशी
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रूबाई सम्राट राज्यकवि उदयभानु 'हंस' पंचतत्व में विलीन
रूबाई सम्राट राज्यकवि उदयभानु 'हंस' पंचतत्व में विलीन :हरियाणा के राज्य कवि, मुक्तकक��र, गीतकार, दोहाकार, समीक्षक, गजल-प्रणेता एवं रूबाई-सम्राट उदयभानु 'हंस' आज पंचतत्व में विलीन हो गए। 'हंस' का कल शाम निवास स्थान पर निधन हो गया था। सेक्टर 16-17 के श्मशानघाट में उनके पुत्र शशिभानु ने उन्हें मुखाग्नि दी। अंतिम संस्कार में बड़ी संख्या में साहित्यिक जगत की हस्तियां व जिला प्रशासन की ओर से एसडीएम परमजीत सिंह व डीएसपी सहित अन्य अधिकारी भी शामिल हुए। दो अगस्त, 1926 ई. को दायरा दीन पनाह, तहसील कोट अद्दू जिला मुज़ फरगढ़(वर्तमान पाकिस्तान) में जन्मे 'हंस' के साहित्य-सृजन की परिधि अत्यन्त व्यापक और गहन है। गीतकार के रूप में वह हरिवंश राय बच्चन, शिवमंगल सिंह सुमन, भवानी प्रसाद मिश्र, नीरज तथा राम अवतार त्यागी की श्रेणी में आते थे। मुक्तककार के रूप में वे अपने मुक्तकों की उत्तमता, गुणवत्ता तथा परिमाण की दृष्टि के लिए जाने जाते थे। इन्हे भी पढ़े :- जलभराव से पीड़ित किसानो को मुआवजा दिया जैसे कबीर, रहीम और गिरधर कविराय के दोहे व कुंडलियां सदियों से जनता की जुबान पर सवारी करते आ रहे हैं, वैसे कविवर 'हंस' के सरस मुक्तक और रूबाइयां जनसामान्य व शिष्टजनों के हृदय और वाणी पर राज करती रही हैं। 'हंस' ने स्वतंत्रता-संग्राम के दौरान सन् 1943 से 1946 ई. तक हिंदी और उर्दू में देशभक्ति की कविताएं लिखकर महत्त्वपूर्ण कार्य किया। 'धड़कन' नामक गीत-संग्रह में उन ओजस्वी कविताओं का संग्रह किया गया है। रूबाई सम्राट राज्यकवि उदयभानु 'हंस' पंचतत्व में विलीन स्त्रोत :- uttamhindu छायाचित्र भिन्न हो सकता है Read the full article
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सम्राट और बूढ़ा आदमी की कहानी - New Best Powerful Story In Hindi
सम्राट और बूढ़ा आदमी की कहानी - New Best Powerful Story In Hindi #story #addyquots #kahaniya #motivationalstory #shortstories #achchikahaniya #beststory #emotionalstory #hindikahaniya interestingstory #moralstory #successstory #powerfulstory #lifechanging #hindikahaniya #प्रेरक_कहानियां
“सम्राट और बूढ़ा आदमी”
Best Powerful Story In Hindi
Best Powerful Story In Hindi : जापान के एक सम्राट के पास बीस सुंदर फूलदानियों का एक दुर्लभ संग्रह था। सम्राट को अपने इस निराले संग्रह पर बड़ा अभिमान था। एक बार सम्राट के एक सरदार से अकस्मात एक फूलदानी टूट गई इससे सम्राट को बहुत गुस्सा आया उसने सरदार को फाँसी का आदेश दे दिया।
पर एक बूढ़े ब्यक्ति को इस बात का पता चला वह सम्राट के दरबार में…
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JANTAR MANTAR, JAIPUR, RAJASTHAN
जयपुर के रीगल शहर में सिटी पैलेस के पास स्थित जंतर मंतर दुनिया में सबसे बड़ी पत्थर से बनी खगोलीय वेधशाला है। जिसका निर्माण राजा सवाई जय सिंह ने 1727-33 में करवाया था। अपने समृद्ध सांस्कृतिक, विरासत और वैज्ञानिक मूल्य के कारण यह यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की सूचि में भी शामिल है। इस वैधशाला का निर्माण अच्छी किस्म के संगमरमर और पत्थरों से किया गया है। इस विशाल वेधशाला बनाने का मुख्य उद्देश्य अंतरिक्ष और समय के बारे में जानकारी इकट्ठा करना और उसका अध्यन करना था। इस जगह पर एक राम यंत्र भी रखा हुआ है जिसका इस्तेमाल उस समय उंचाई मापने के लिए किया जाता था। जंतर मंतर एक पूर्व युग के ज्ञान और गणितीय कौशल के गवाह के रूप में गर्व से खड़ा है, जो यहां आने वाले पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
अगर आप जयपुर के जंतर मंतर को देखने के लिए जाना चाहते हैं या फिर इसके बारे में और खास बाते जानना चाहते हैं तो इस video को जरुर dekhe, इसमें हमने जंतर मंतर का इतिहास, जंतर मंतर घूमने के बारे मैं और जंतर मंतर कैसे पहुंचे के बारे में पूरी जानकारी दी है।
जंतर मंतर का इतिहास
आपको बता दें कि राजा सवाई जय सिंह खुद एक कुशल विद्वान थे जिन्हें सम्राट मुहम्मद शाह द्वारा आकाशीय पिंडों की गति पर उपलब्ध वर्तमान आंकड़ों की पुष्टि और सुधार करने का काम दिया गया था। राजा जय सिंह प्राचीन इस्लामिक ज़िज तालिकाओं को परिष्कृत करना चाहते थे ताकि दिन का सही समय निर्धारित किया जा सके। जय सिंह एक सटीक कैलेंडर बनाना चाहता थे जो व्यक्तिगत और सामाजिक लाभ दोनों के लिए सटीक ज्योतिषीय भविष्यवाणियां करने में मदद कर सकता था। अपने इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उन्होंने वर्ष 1718 में जंतर मंतर बनाने का फैसला लिया, जिसके लिए उन्होंने हिंदू, यूरोपीय, इस्लामी और फारसी सभ्यताओं के खगोलीय सिद्धांतों पर व्यापक अध्ययन किया और पूरे उत्तर भारत में पांच अलग-अलग वेधशालाओं का निर्माण किया। जय सिंह ने 1727 और 1733 के बीच की जयपुर के जंतर मंतर का निर्माण किया और इसको बार-बार पुनर्निर्मित भी करवाया। यहाँ के उपकरण का निर्माण इस तरह से किया गया था जिसमें बहुत सारे ब्रह्मांडीय अनुप्रयोगों को कवर किया। Click here to read the history of Jantar Mantar
जंतर मंतर की संरचना
आपको बता दें कि जयपुर में स्थित जंतर मंतर विभिन्न वास्तु और खगोलीय उपकरणों का एक संग्रह है जहाँ पर समय को मापने, ग्रहों के विक्षेपण का पता लगाने, ग्रहणों की भविष्यवाणी करने, आकाशीय ऊंचाई का पता लगाने और कक्षाओं में तारों को ट्रैक करने के उपकरणों सहित 19 प्रमुख ज्यामितीय उपकरण हैं। जयपुर का यह आकर्षण करीब 18,700 मीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है और यहां पर कई बहुत बड़े उपकरण भी हैं। सवाई जय सिंह द्वितीय ने जंतर मंतर का निर्माण अच्छी क्वालिटी के पत्थर और संगमरमर से करवाया था क्योंकि पत्थर धातु की तुलना में अधिक मौसम की स्थिति का सामना कर सकते हैं। इन उपकरणों में से कुछ को राजा जय सिंह ने खुद की अवधारणा के अनुसार डिजाइन किया था। दूसरी तरह यहां कई तांबे से निर्मित उपकरण भी मौजूद हैं जो आज भी सटीक तरीके से काम करते हैं। जयपुर का जंतर मंतर उत्तर भारत के अपने अन्य वैधशाला की अपेक्षा सबसे बड़ा।
जंतर मंतर में विश्व की सबसे बड़ी पत्थर की सूर्य घड़ी – Jantar Mantar Sun Watch
महाराजा सवाई जयसिंह द्धारा निर्मित भारत की पांच सबसे विशाल वेधशालाओं में से एक जयपुर की जंतर-मंतर वेधशाला में विश्व में सबसे बड़ी पत्थर की सूर्य घड़ी रखी गई है, जो कि बृहत सम्राट यंत्र के नाम से भी जानी जाती है।
इस उपकरण की सबसे खास बात यह है कि यह ऐतिहासिक खगोलीय उपकरण समय की सटीकता को दर्शाता है, यह उपकरण 2 सेकेंड की सटीकता पर स्थानीय समय को प्रदर्शित करता है। इस खगोलीय उपकरण को इस तरह बनाया गया है कि इसकी रचना करीब 27 मीटर ऊंची है।
जंतर मंतर से जुड़े रोचक तथ्य
जयपुर का जंतर-मंतर भारत की सबसे विशाल खगोलीय वेधशाला है, जिसके लिए एक सामूहिक टिकट है, जिसे लेकर पर्यटक नाहरगढ़ किला, अम्बेर किला, हवा महल और अल्बर्ट हॉल म्यूजियम भी घूम सकते हैं।
जंतर-मंतर का अर्थ गणना करने वाले उपकरण से लिया गया है।
वैश्विक धरोहरों की सूचि में शामिल जयपुर का जंतर-मंतर, महाराजा सवाई जय सिंह द्धारा बनवाएं गए पांच प्रमुख खगोलीय वेधशालाओं में से एक है। उन्होंने दिल्ली, मथुरा, जयपुर, उज्जैन और वाराणसी में वेधशालाओं का निर्माण करवाया था। जिनमें से अब जयपुर और दिल्ली के जंतर-मंतर ही बचे हैं, बाकी समय के साथ विलुप्त हो गए हैं।
जंतर मंतर कैसे पहुँचे
जंतर मंतर जयपुर से सिर्फ 5 किमी की दूरी पर स्थित है। जयपुर से अजमेर की ओर चलने वाली बसों की मदद से आप जंतर मंतर आसानी से पहुँच सकते हैं। इसके अलावा आप कैब या टैक्सी की मदद से भी अपनी मंजिल तक पंहुच सकते हैं। जयपुर शहर रेलवे, वायुमार्ग और रोडवेज से भारत के कई बड़े शहरों से अच्छी तरह कनेक्टेड है। Click here to watch the video of Jantar Mantar
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मांस का मूल्य
मांस का मूल्य मगध सम्राट चन्द्रगुप्त ने एक बार अपनी सभा मे पूछा : देश की खाद्य समस्या को सुलझाने के लिए सबसे सस्ती वस्तु क्या है ? मंत्री परिषद् तथा अन्य सदस्य सोच में पड़ गये ! चावल, गेहूं, ज्वार, बाजरा आदि तो बहुत श्रम के बाद मिलते हैं और वह भी तब, जब प्रकृति का प्रकोप न हो, ऎसी हालत में अन्न तो सस्ता हो ही नहीं सकता ! तब शिकार का शौक पालने वाले एक सामंत ने कहा : राजन, सबसे सस्ता खाद्य पदार्थ मांस है, इसे पाने मे मेहनत कम लगती है और सभी ने इस बात का समर्थन किया, लेकिन प्रधान मंत्री चाणक्य चुप थे । तब सम्राट ने उनसे पूछा : आपका इस बारे में क्या मत है ? चाणक्य ने कहा : मैं अपने विचार कल आपके समक्ष रखूंगा ! रात होने पर प्रधानमंत्री उस सामंत के महल पहुंचे, सामन्त ने द्वार खोला, इतनी रात गये प्रधानमंत्री को देखकर घबरा गया । प्रधानमंत्री ने कहा : शाम को महाराज एकाएक बीमार हो गये हैं, राजवैद्य ने कहा है कि किसी बड़े आदमी के हृदय का दो तोला मांस मिल जाए तो राजा के प्राण बच सकते हैं, इसलिए मैं आपके पास आपके हृदय 💓 का सिर्फ दो तोला मांस लेने आया हूं । इसके लिए आप एक लाख स्वर्ण मुद्रायें ले लें । यह सुनते ही सामंत के चेहरे का रंग उड़ गया, उसने प्रधानमंत्री के पैर पकड़ कर माफी मांगी और उल्टे एक लाख स्वर्ण मुद्रायें देकर कहा कि इस धन से वह किसी और सामन्त के हृदय का मांस खरीद लें । प्रधानमंत्री बारी-बारी सभी सामंतों, से��ाधिकारियों के यहां पहुंचे और सभी से उनके हृदय का दो तोला मांस मांगा, लेकिन कोई भी राजी न हुआ, उल्टे सभी ने अपने बचाव के लिये प्रधानमंत्री को एक लाख, दो लाख, पांच लाख तक स��वर्ण मुद्रायें दीं । इस प्रकार करीब दो करोड़ स्वर्ण मुद्राओं का संग्रह कर प्रधानमंत्री सवेरा होने से पहले वापस अपने महल पहुंचे और समय पर राजसभा में प्रधानमंत्री ने राजा के समक्ष दो करोड़ स्वर्ण मुद्रायें रख दीं । सम्राट ने पूछा : यह सब क्या है ? तब प्रधानमंत्री ने बताया कि दो तोला मांस खरिदने के लिए इतनी धनराशि इकट्ठी हो गई फिर भी दो तोला मांस नही मिला । राजन ! अब आप स्वयं विचार करें कि मांस कितना सस्ता है ? जीवन अमूल्य है, हम यह न भूलें कि जिस तरह हमें अपनी जान प्यारी है, उसी तरह सभी जीवों को भी अपनी जान उतनी ही प्यारी है। लेकिन वो अपना जान बचाने मे असमर्थ है। और मनुष्य अपने प्राण बचाने हेतु हर सम्भव प्रयास कर सकता है । बोलकर, रिझाकर, डराकर, रिश्वत देकर आदि आदि । पशु न तो बोल सकते हैं, न ही अपनी व्यथा बता सकते हैं । तो क्या बस इसी कारण उनसे जीने का अधिकार छीन लिया जाय । शुद्ध आहार, शाकाहार ! मानव आहार, शाकाहार !
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Munshi Premchand Biography, Poems, Khaniya (Stories) in Hindi
मचंद
प्रेमचंद (३१ जुलाई १८८० – ८ अक्टूबर १९३६) हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक हैं। मूल नाम धनपत राय श्रीवास्तव, प्रेमचंद को नवाब राय और मुंशी प्रेमचंद के नाम से भी जाना जाता है। उपन्यास के क्षेत्र में उनके योगदान को देखकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट कहकर संबोधित किया था। प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया। आगामी एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक प्रभावित कर प्रेमचंद ने साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य की एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी के विकास का अध्ययन अधूरा होगा। वे एक संवेदनशील लेखक, सचेत नागरिक, कुशल वक्ता तथा सुधी (विद्वान) संपादक थे। बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध में, जब हिन्दी में तकनीकी सुविधाओं का अभाव था,उनका योगदान अतुलनीय है। प्रेमचंद के बाद जिन लोगों ने साहित्य को सामाजिक सरोकारों और प्रगतिशील मूल्यों के साथ आगे बढ़ाने का काम किया, उनमें यशपाल से लेकर मुक्तिबोध तक शामिल हैं। उनके पुत्र हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार अमृतराय हैं जिन्होंने इन्हें कलम का सिपाही नाम दिया।
जीवन परिचय
प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी के निकट लमही गाँव में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी था तथा पिता मुंशी अजायबराय लमही में डाकमुंशी थे। उनकी शिक्षा का आरंभ उर्दू, फारसी से हुआ और जीवनयापन का अध्यापन से पढ़ने का शौक उन्हें बचपन से ही लग गया। 13 साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ ‘शरसार’, मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया। १८९८ में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे एक स्थानीय विद्यालय में शिक्षक नियुक्त हो गए। नौकरी के साथ ही उन्होंने पढ़ाई जारी रखी।१९१० में उन्होंने अंग्रेजी, द���्शन, फारसी और इतिहास लेकर इंटर पास किया और १९१९ में बी.ए. पास करने के बाद शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त हुए। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में पिता का देहान्त हो जाने के कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनका पहला विवाह उन दिनों की परंपरा के अनुसार पंद्रह साल की उम्र में हुआ जो सफल नहीं रहा। वे आर्य समाज से प्रभावित रहे, जो उस समय का बहुत बड़ा धार्मिक और सामाजिक आंदोलन था। उन्होंने विधवा-विवाह का समर्थन किया और १९०६ में दूसरा विवाह अपनी प्रगतिशील परंपरा के अनुरूप बाल-विधवा शिवरानी देवी से किया। उनकी तीन संताने हुईं- श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी श्रीवास्तव। १९१० में उनकी रचना सोजे-वतन (राष्ट्र का विलाप) के लिए हमीरपुर के जिला कलेक्टर ने तलब किया और उन पर जनता को भड़काने का आरोप लगाया। सोजे-वतन की सभी प्रतियाँ जब्त कर नष्ट कर दी गईं। कलेक्टर ने नवाबराय को हिदायत दी कि अब वे कुछ भी नहीं लिखेंगे, यदि लिखा तो जेल भेज दिया जाएगा। इस समय तक प्रेमचंद, धनपत राय नाम से लिखते थे। उर्दू में प्रकाशित होने वाली ज़माना पत्रिका के सम्पादक और उनके अजीज दोस्त मुंशी दयानारायण निगम ने उन्हें प्रेमचंद नाम से लिखने की सलाह दी। इसके बाद वे प्रेमचन्द के नाम से लिखने लगे। उन्होंने आरंभिक लेखन ज़माना पत्रिका में ही किया। जीवन के अंतिम दिनों में वे गंभीर रूप से बीमार पड़े। उनका उपन्यास मंगलसूत्र पूरा नहीं हो सका और लम्बी बीमारी के बाद ८ अक्टूबर १९३६ को उनका निधन हो गया। उनका अंतिम उपन्यास मंगल सूत्र उनके पुत्र अमृत ने पूरा किया।
कार्यक्षेत्र
प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट माने जाते हैं। यों तो उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ १९०१ से हो चुका था पर उनकी पहली हिन्दी कहानी सरस्वती पत्रिका के दिसम्बर अंक में १९१५ में सौत नाम से प्रकाशित हुई और १९३६ में अंतिम कहानी कफन नाम से। बीस वर्षों की इस अवधि में उनकी कहानियों के अनेक रंग देखने को मिलते हैं। उनसे पहले हिंदी में काल्पनिक, एय्यारी और पौराणिक धार्मिक रचनाएं ही की जाती थी। प्रेमचंद ने हिंदी में यथार्थवाद की शुरूआत की। ” भारतीय साहित्य का बहुत सा विमर्श जो बाद में प्रमुखता से उभरा चाहे वह दलित साहित्य हो या नारी साहित्य उसकी जड़ें कहीं गहरे प्रेमचंद के साहित्य में दिखाई देती हैं।” प्रेमचंद के लेख ‘पहली रचना’ के अनुसार उनकी पहली रचना अपने मामा पर लिखा व्यंग्य थी, जो अब अनुपलब्ध है। उनका पहला उपलब्ध लेखन उनका ��र्दू उपन्यास ‘असरारे मआबिद’ है। प्रेमचंद का दूसरा उपन्यास ‘हमखुर्मा व हमसवाब’ जिसका हिंदी रूपांतरण ‘प्रेमा’ नाम से 1907 में प्रकाशित हुआ। इसके बाद प्रेमचंद का पहला कहानी संग्रह सोज़े-वतन नाम से आया जो १९०८ में प्रकाशित हुआ। सोजे-वतन यानी देश का दर्द। देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत होने के कारण इस पर अंग्रेज़ी सरकार ने रोक लगा दी और इसके लेखक को भविष्य में इस तरह का लेखन न करने की चेतावनी दी। इसके कारण उन्हें नाम बदलकर लिखना पड़ा। ‘प्रेमचंद’ नाम से उनकी पहली कहानी बड़े घर की बेटी ज़माना पत्रिका के दिसम्बर १९१० के अंक में प्रकाशित हुई। मरणोपरांत उनकी कहानियाँ मानसरोवर नाम से 8 खंडों में प्रकाशित हुई। कथा सम्राट प्रेमचन्द का कहना था कि साहित्यकार देशभक्ति और राजनीति के पीछे चलने वाली सच्चाई नहीं बल्कि उसके आगे मशाल दिखाती हुई चलने वाली सच्चाई है। यह बात उनके साहित्य में उजागर हुई है। १९२१ में उन्होंने महात्मा गांधी के आह्वान पर अपनी नौकरी छोड़ दी। कुछ महीने मर्यादा पत्रिका का संपादन भार संभाला, छह साल तक माधुरी नामक पत्रिका का संपादन किया, १९३० में बनारस से अपना मासिक पत्र हंस शुरू किया और १९३२ के आरंभ में जागरण नामक एक साप्ताहिक और निकाला। उन्होंने लखनऊ में १९३६ में अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के सम्मेलन की अध्यक्षता की। उन्होंने मोहन दयाराम भवनानी की अजंता सिनेटोन कंपनी में कहानी-लेखक की नौकरी भी की। १९३४ में प्रदर्शित मजदूर नामक फिल्म की कथा लिखी और कंट्रेक्ट की साल भर की अवधि पूरी किये बिना ही दो महीने का वेतन छोड़कर बनारस भाग आये क्योंकि बंबई (आधुनिक मुंबई) का और उससे भी ज़्यादा वहाँ की फिल्मी दुनिया का हवा-पानी उन्हें रास नहीं आया। उन्होंने मूल रूप से हिंदी में 1915 से कहानियां लिखना और 1918 (सेवासदन) से उपन्यास लिखना शुरू किया। प्रेमचंद ने कुल करीब तीन सौ कहानियाँ, लगभग एक दर्जन उपन्यास और कई लेख लिखे। उन्होंने कुछ नाटक भी लिखे और कुछ अनुवाद कार्य भी किया। प्रेमचंद के कई साहित्यिक कृतियों का अंग्रेज़ी, रूसी, जर्मन सहित अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ। गोदान उनकी कालजयी रचना है। कफन उनकी अंतिम कहानी मानी जाती है। उन्होंने हिंदी और उर्दू में पूरे अधिकार से लिखा। उनकी अधिकांश रचनाएं मूल रूप से उर्दू में लिखी गई हैं लेकिन उनका प्रकाशन हिंदी में पहले हुआ। तैंतीस वर्षों के रचनात्मक जीवन में वे साहित्य की ऐसी विरासत सौंप गए जो गुणों की दृष्टि से अमूल्य है और आकार की दृष्टि से असीमीत।
कृतियाँ
प्रेमचन्द की रचना-दृष्टि विभिन्न साहित्य रूपों में प्रवृत्त हुई। बहुमुखी प्रति��ा संपन्न प्रेमचंद ने उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख, सम्पादकीय, संस्मरण आदि अनेक विधाओं में साहित्य की सृष्टि की। प्रमुखतया उनकी ख्याति कथाकार के तौर पर हुई और अपने जीवन काल में ही वे ‘उपन्यास सम्राट’ की उपाधि से सम्मानित हुए। उन्होंने कुल १५ उपन्यास, ३०० से कुछ अधिक कहानियाँ, ३ नाटक, १० अनुवाद, ७ बाल-पुस्तकें तथा हजारों पृष्ठों के लेख, सम्पादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र आदि की रचना की लेकिन जो यश और प्रतिष्ठा उन्हें उपन्यास और कहानियों से प्राप्त हुई, वह अन्य विधाओं से प्राप्त न हो सकी। यह स्थिति हिन्दी और उर्दू भाषा दोनों में समान रूप से दिखायी देती है।
उपन्यास
प्रेमचंद के उपन्यास न केवल हिन्दी उपन्यास साहित्य में बल्कि संपूर्ण भारतीय साहित्य में मील के पत्थर हैं। प्रेमचन्द कथा-साहित्य में उनके उपन्यासकार का आरम्भ पहले होता है। उनका पहला उर्दू उपन्यास (अपूर्ण) ‘असरारे मआबिद उर्फ़ देवस्थान रहस्य’ उर्दू साप्ताहिक ‘’आवाज-ए-खल्क़’’ में ८ अक्टूबर, १९०३ से १ फरवरी, १९०५ तक धारावाहिक रूप में प्रकाशित हुआ। उनका दूसरा उपन्यास ‘हमखुर्मा व हमसवाब’ जिसका हिंदी रूपांतरण ‘प्रेमा’ नाम से 1907 में प्रकाशित हुआ। चूंकि प्रेमचंद मूल रूप से उर्दू के लेखक थे और उर्दू से हिंदी में आए थे, इसलिए उनके सभी आरंभिक उपन्यास मूल रूप से उर्दू में लिखे गए और बाद में उनका हिन्दी तर्जुमा किया गया। उन्होंने ‘सेवासदन’ (1918) उपन्यास से हिंदी उपन्यास की दुनिया में प्रवेश किया। यह मूल रूप से उन्होंने ‘बाजारे-हुस्न’ नाम से पहले उर्दू में लिखा लेकिन इसका हिंदी रूप ‘सेवासदन’ पहले प्रकाशित कराया। ‘सेवासदन’ एक नारी के वेश्या बनने की कहानी है। डॉ रामविलास शर्मा के अनुसार ‘सेवासदन’ में व्यक्त मुख्य समस्या भारतीय नारी की पराधीनता है। इसके बाद किसान जीवन पर उनका पहला उपन्यास ‘प्रेमाश्रम’ (1921) आया। इसका मसौदा भी पहले उर्दू में ‘गोशाए-आफियत’ नाम से तैयार हुआ था लेकिन ‘सेवासदन’ की भांति इसे पहले हिंदी में प्रकाशित कराया। ‘प्रेमाश्रम’ किसान जीवन पर लिखा हिंदी का संभवतः पहला उपन्यास है। यह अवध के किसान आंदोलनों के दौर में लिखा गया। इसके बाद ‘रंगभूमि’ (1925), ‘कायाकल्प’ (1926), ‘निर्मला’ (1927), ‘गबन’ (1931), ‘कर्मभूमि’ (1932) से होता हुआ यह सफर ‘गोदान’ (1936) तक पूर्णता को प्राप्त हुआ। रंगभूमि में प्रेमचंद एक अंधे भिखारी सूरदास को कथा का नायक बनाकर हिंदी कथा साहित्य में क्रांतिकारी बदलाव का सूत्रपात कर चुके थे। गोदान का हिंदी साहित्य ही नहीं, विश्व साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान है। इसमें प्रेमचंद की साहित्य संबंधी विचारधारा ‘आदर्शोन्मुख यथार्थवाद’ से ‘आलोचनात्मक यथार्थवाद’ तक की पूर्णता प्राप्त करती है। एक सामान्य किसान को पूरे उपन्यास का नायक बनाना भारतीय उपन्यास परंपरा की दिशा बदल देने जैसा था। सामंतवाद और पूंजीवाद के चक्र में फंसकर हुई कथानायक होरी की मृत्यु पाठकों के जहन को झकझोर कर रख जाती है। किसान जीवन पर अपने पिछले उपन्यासों ‘प्रेमाश्रम’ और ‘कर्मभूमि’ में प्रेमंचद यथार्थ की प्रस्तुति करते-करते उपन्यास के अंत तक आदर्श का दामन थाम लेते हैं। लेकिन गोदान का कारुणिक अंत इस बात का गवाह है कि तब तक प्रेमचंद का आदर्शवाद से मोहभंग हो चुका था। यह उनकी आखिरी दौर की कहानियों में भी देखा जा सकता है। ‘मंगलसूत्र’ प्रेमचंद का अधूरा उपन्यास है। प्रेमचंद के उपन्यासों का मूल कथ्य भारतीय ग्रामीण जीवन था। प्रेमचंद ने हिंदी उपन्यास को जो ऊँचाई प्रदान की, वह परवर्ती उपन्यासकारों के लिए एक चुनौती बनी रही। प्रेमचंद के उपन्यास भारत और दुनिया की कई भाषाओं में अनुदित हुए, खासकर उनका सर्वाधिक चर्चित उपन्यास गोदान।
असरारे मआबिद उर्फ़ देवस्थान रहस्य’ उर्दू साप्ताहिक ‘’आवाज-ए-खल्क़’’ में ८ अक्टूबर, १९०३ से १ फरवरी, १९०५ तक प्रकाशित। सेवासदन १९१८ प्रेमाश्रम१९२२ रंगभूमि १९२५ निर्मला१९२५ कायाकल्प१९२७ गबन १९२८ कर्मभूमि १९३२ गोदान १९३६ मंगलसूत्र (अपूर्ण)
कहानी
इनकी अधिकतर कहानियोँ में निम्न व मध्यम वर्ग का चित्रण है। डॉ॰ कमलकिशोर गोयनका ने प्रेमचंद की संपूर्ण हिंदी-उर्दू कहानी को प्रेमचंद कहानी रचनावली नाम से प्रकाशित कराया है। उनके अनुसार प्रेमचंद ने कुल ३०१ कहानियाँ लिखी हैं जिनमें ३ अभी अप्राप्य हैं। प्रेमचंद का पहला कहानी संग्रह सोज़े वतन नाम से जून १९०८ में प्रकाशित हुआ। इसी संग्रह की पहली कहानी दुनिया का सबसे अनमोल रतन को आम तौर पर उनकी पहली प्रकाशित कहानी माना जाता रहा है। डॉ॰ गोयनका के अनुसार कानपुर से निकलने वाली उर्दू मासिक पत्रिका ज़माना के अप्रैल अंक में प्रकाशित सांसारिक प्रेम और देश-प्रेम (इश्के दुनिया और हुब्बे वतन) वास्तव में उनकी पहली प्रकाशित कहानी है। उनके जीवन काल में कुल नौ कहानी संग्रह प्रकाशित हुए- ‘सप्त सरोज’, ‘नवनिधि’, ‘प्रेमपूर्णिमा’, ‘प्रेम-पचीसी’, ‘प्रेम-प्रतिमा’, ‘प्रेम-द्वादशी’, ‘समरयात्रा’, ‘मानसरोवर’ : भाग एक व दो और ‘कफन’। उनकी मृत्यु के बाद उनकी कहानियाँ ‘मानसरोवर’ शीर्षक से 8 भागों में ���्रकाशित हुई। प्रेमचंद साहित्य के मु्दराधिकार से मुक्त होते ही विभिन्न संपादकों और प्रकाशकों ने प्रेमचंद की कहानियों के संकलन तैयार कर प्रकाशित कराए। उनकी कहानियों में विषय और शिल्प की विविधता है। उन्होंने मनुष्य के सभी वर्गों से लेकर पशु-पक्षियों तक को अपनी कहानियों में मुख्य पात्र बनाया है। उनकी कहानियों में किसानों, मजदूरों, स्त्रियों, दलितों, आदि की समस्याएं गंभीरता से चित्रित हुई हैं। उन्होंने समाजसुधार, देशप्रेम, स्वाधीनता संग्राम आदि से संबंधित कहानियाँ लिखी हैं। उनकी ऐतिहासिक कहानियाँ तथा प्रेम संबंधी कहानियाँ भी काफी लोकप्रिय साबित हुईं। प्रेमचंद की प्रमुख कहानियों में ये नाम लिये जा सकते हैं- ‘पंच परमेश्वर’, ‘गुल्ली डंडा’, ‘दो बैलों की कथा’, ‘ईदगाह’, ‘बड़े भाई साहब’, ‘पूस की रात’, ‘कफन’, ‘ठाकुर का कुआँ’, ‘सद्गति’, ‘बूढ़ी काकी’, ‘तावान’, ‘विध्वंस’, ‘दूध का दाम’, ‘मंत्र’ आदि।
नाटक
प्रेमचंद ने ‘संग्राम’ (1923), ‘कर्बला’ (1924) और ‘प्रेम की वेदी’ (1933) नाटकों की रचना की। ये नाटक शिल्प और संवेदना के स्तर पर अच्छे हैं लेकिन उनकी कहानियों और उपन्यासों ने इतनी ऊँचाई प्राप्त कर ली थी कि नाटक के क्षेत्र में प्रेमचंद को कोई खास सफलता नहीं मिली। ये नाटक वस्तुतः संवादात्मक उपन्यास ही बन गए हैं।
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