#श्राद्ध कर्म करने से कोई लाभ नहीं होता
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govindnager · 2 months ago
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mangesh1982 · 2 months ago
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#श्राद्ध_करने_की_श्रेष्ठ_विधि
#JagatGuruSantRampalJi
#SantRampalJiMaharaj
#श्राद्ध #पितृपक्ष #ancestors #ancestorworship #pinddaan
#pitrupaksha #pitrapaksh #shradh #amavasya #astrology #karma #vastu #reels #trending
🌀पवित्र गीता अध्याय 9 मंत्र 25 व 23 से 24 तथा अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 तथा 20 से 23 में भगवान ने स्पष्ट मना किया है श्राद्ध करने (पितर पूजा करने), पिण्ड दान करने(भूत पूजा करने) से तथा अन्य देवताओं ��ी पूजा करने से मना किया है। कहा है कि जो पित्तर पूजा करते हैं अर्थात श्राद्ध निकालते हैं वे पित्तरों के पास जायेंगे अर्थात पित्तर बन जायेंगे,
मुक्त नहीं हो सकते। पिण्ड दान अर्थात भूत पूजने वाले भी भूत बनेंगे तथा देवताओं को पूजने वाले
देवताओं के पास जायेंगे, उनके नौकर लगेंगे। फिर सर्व देवताओं (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा
श्री शिव जी) सहित तथा इनके उपासक क्षणिक सुख भोगकर मृत्यु को प्राप्त होंगे, मुक्ति नहीं होगी।
यह मूर्खों की पूजा है।
🌀कबीर परमेश्वर जी ने कहा है कि -
एकै साधे सब सधै, सब साधै सब जाय।
माली सीचें मूल को, फलै फूलै अघाय।।
संत रामपाल जी महाराज, सर्वसुख व पूर्णमोक्ष दायक शास्त्रानुकूल भक्ति साधना (धार्मिक अनुष्ठान) करवाते हैं, जिसके करने से साधक पितर, भूत नहीं बनता अपितु पूर्ण मोक्ष प्राप्त करता है तथा जो पूर्वज गलत साधना करके पित्तर भूत बने हैं, उनका भी छुटकारा हो जाता है।
🌀परमात्मा कबीर जी समझाते हैं कि हे भोले प्राणी! गरूड़ पुराण का पाठ जीव को मृत्यु से पहले सुनाना चाहिए था ताकि वह परमात्मा के विधान को समझकर पाप कर्मों से बचता। पूर्ण गुरू से दीक्षा लेकर अपना मोक्ष करता। जिस कारण से वह न प्रेत बनता, न पितर बनता, न पशु-पक्षी आदि-आदि के शरीरों में कष्ट उठाता। मृत्यु के पश्चात् गरूड़ पुराण के पाठ का कोई लाभ नहीं मिलता।
🌀सूक्ष्मवेद (तत्वज्ञान) में तथा चारों वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथवर्वेद) तथा इन चारों वेदों के सारांश गीता में स्पष्ट किया है कि आन-उपासना नहीं करनी चाहिए क्योंकि ये शास्त्रों में वर्णित न होने से मनमाना आचरण है जो गीता अध्याय 16 श्लोक 23, 24 में व्यर्थ बताया है। शास्त्रोक्त साधना करने का आदेश दिया है।
🌀मार्कण्डेय पुराण (गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित पृष्ठ 237) में श्राद्ध के विषय मे एक कथा का वर्णन मिलता है जिसमें रूची नामक एक ऋषि को अपने चार पूर्वज जो शास्त्र विरुद्ध साधना करके पितर बने हुए थे तथा कष्ट भोग रहे थे, दिखाई दिए। पितरों ने कहा कि बेटा रूची हमारे श्राद्ध निकाल, हम दुःखी हो रहे हैं। रूची ऋषि ने जवाब दिया की पित्रामहों वेद में कर्म काण्ड मार्ग (श्राद्ध, पिण्ड भरवाना आदि) को मूर्खों की साधना कहा है, अर्थात यह क्रिया व्यर्थ व शास्त्र विरुद्ध है।
🌀श्राद्ध आदि शास्त्रविर��द्ध क्रियाऐं करने से अनमोल जीवन नष्ट हो जाता है। यदि सतगुरू (तत्वदर्शी संत) का सत्संग सुनते, उसकी संगति करते तो सर्व पापकर्म नष्ट हो जाते। सत्य साधना करके अमर लोक यानि गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में कहे (शाश्वतं स्थानं) सनातन परम धाम में आप जी का आसन यानि स्थाई ठिकाना होता जहाँ कोई कष्ट नहीं। वहाँ पर परम शांति है क्योंकि वहाँ पर कभी जन्म-मृत्यु नहीं होता।
🌀भूत पूजा तथा पितर पूजा क्या है?
इन पूजाओं के निषेध का प्रमाण पवित्र गीता शास्त्र के अध्याय 9 श्लोक 25 में लिखा है कि भूत पूजा करने वाले भूत बनकर भूतों के समूह में मृत्यु उपरांत चले जाऐंगे। पितर पूजा करने वाले पितर लोक में पितर योनि प्राप्त करके पितरों के पास चले जाऐंगे। मोक्ष प्राप्त प्राणी सदा के लिए जन्म-मरण से मुक्त हो जाता है।
🌀श्री विष्णु पुराण के तीसरे अंश में अध्याय 15 श्लोक 55-56 पृष्ठ 153 पर लिखा है कि श्राद्ध के भोज में यदि एक योगी यानी शास्त्रोक्त साधक को भोजन करवाया जाए तो श्राद्ध में आए हजार ब्राह्मणों तथा यजमान के पूरे परिवार सहित सर्व पितरों का उद्धार कर देता है।
🌀कबीर, भक्ति बीज जो होये हंसा, तारूं तास के एकोत्तर वंशा।
श्राद्ध आदि निकालना शास्त्र विरुद्ध है, सत्य शास्त्रोक्त साधना करन��� वाले साधक की 101 पीढ़ी पार होती हैं। सत्य शास्त्रानुसार साधना केवल तत्वदर्शी संत दे सकता है जिसकी शरण में जाने के लिए गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में कहा गया है। वर्तमान में वह पूर्ण तत्वदर्शी संत केवल संत रामपाल जी महाराज जी हैं।
🌀गीता भी हमें श्राद्ध के विषय में निर्णायक ज्ञान देती है। गीता के अध्याय 9 के श्लोक 25 में कहा है कि देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं, भूतों को पूजने (पिण्ड दान करने) वाले भूतों को प्राप्त होते हैं अर्थात भूत बन जाते हैं, शास्त्रानुकूल (पवित्र वेदों व गीता अनुसार) पूजा करने वाले मुझको ही प्राप्त होते हैं अर्थात ब्रह्मलोक के स्वर्ग व महास्वर्ग आदि में कुछ ज्यादा समय मौज कर लेते हैं और पुण्यरूपी कमाई खत्म होने पर फिर से 84 लाख योनियों में प्रवेश कर जाते हैं।
🌀जीवित बाप के लठ्ठम लठ्ठा, मूवे गंग पहुचैया।
जब आवे आसोज का महीना, कौवा बाप बनईयां।
कबीर परमेश्वर जी ने बताया है कि जीवित पिता को तो समय पर टूक (रोटी) भी नहीं दिया जाता। मृत्यु के पश्चात् उसको पवित्र दरिया में बहाकर आता है। कितना खर्च करता है। अपने माता-पिता की जीवित रहते प्यार से सेवा करो। उनकी आत्मा को प्रसन्न करो। उनकी वास्तविक श्रद्धा सेवा तो यह है।
🌀"श्राद्ध और पितृ पूजा से जीव की गति नहीं होती"
प्रेत शिला पर जाय विराजे, फिर पितरों पिण्ड भराहीं।
बहुर श्राद्ध खान कूं ��या, काग भये कलि माहीं।।
🌀जीवित बाप के लठ्ठम लठ्ठा, मूवे गंग पहुचैया।
जब आवे आसोज का महीना, कौवा बाप बनईयां।
जीवित बाप के साथ तो लड़ाई रखते हैं और उनके मरने के उपरांत उनके श्राद्ध निकालते हैं।
परमात्मा कहते हैं रे भोली सी दुनिया सतगुरु बिन कैसे सरिया।
बंदीछोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी से नाम उपदेश लेकर सतभक्ति करने से मनुष्य 84 लाख योनियों का कष्ट नहीं भोगता।
🌀श्राद्ध करने वाले पुरोहित कहते हैं कि श्राद्ध करने से वह जीव एक वर्ष तक तृप्त हो जाता है। फिर एक वर्ष में श्राद्ध फिर करना है। विचार करें:- जीवित व्यक्ति दिन में तीन बार भोजन करता था। अब एक दिन भोजन करने से एक वर्ष तक कैसे तृप्त हो सकता है? यदि प्रतिदिन छत पर भोजन रखा जाए तो वह कौवा प्रतिदिन ही भोजन खाएगा।
🌀भक्ति नहीं करने वाले व शास्त्रविरुद्ध भक्ति करने वाले, नकली गुरु बनाने वाले एवं पाप अपराध करने वालों को मृत्यु पश्चात्‌ यमदूत घसीटकर ले जाते हैं और नरक में भयंकर यातनाएं देते हैं। तत्पश्चात् 84 लाख कष्टदायक योनियों में जन्म मिलता है।
🌀तत्वदर्शी संत (गीता अ-4 श्लोक-34) से दीक्षा लेकर शास्त्रविधि अनुसार सतभक्ति करने वाले परमधाम सतलोक को प्राप्त होते हैं जहाँ जन्म-मरण, दुख, कष्ट व रोग नहीं होता है।
🌀नर सेती तू पशुवा कीजै, गधा, बैल बनाई।
छप्पन भोग कहाँ मन बौरे, कहीं कुरड़ी चरने जाई।।
मनुष्य जीवन में हम कितने अच्छे अर्थात् 56 प्रकार के भोजन खाते हैं। भक्ति न करने से या शास्त्रविरूद्ध साधना करने से गधा बनेगा, फिर ये छप्पन प्रकार के भोजन कहाँ प्राप्त होंगे, कहीं कुरड़ियों (रूड़ी) पर पेट भरने के लिए घास खाने जाएगा। इसी प्रकार बैल आदि-आदि पशुओं की योनियों में कष्ट पर कष्ट उठाएगा।
🌀श्राद्ध क्रिया कर्म मनमाना आचरण है यह शास्त्रों में अविद्या कहा गया है बल्कि गीता अध्याय 16 श्लोज 23 और 24 में कहा है कि जो शास्त्र विधि को त्याग कर मनमाना आचरण करते हैं उनकी ना तो गति होती है न ही उन्हें किसी प्रकार का आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है इसलिए शास्त्र ही प्रमाण है।
🌀जै सतगुरू की संगत करते, सकल कर्म कटि जाईं।
अमर पुरि पर आसन होते, जहाँ धूप न छाँइ।।
संत गरीबदास जी ने परमेश्वर कबीर जी से प्राप्त सूक्ष्मवेद में कहा है कि यदि सतगुरू (तत्वदर्शी सन्त) की शरण में जाकर दीक्षा लेते तो सर्व कर्मों के कष्ट कट जाते अर्थात् न प्रेत बनते, न गधा, न बैल बनते।
🌀जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी से उपदेश लेकर कबीर साहेब जी की भक्ति करने से सतलोक की प्राप्ति होती है।
सतलोक अविनाशी लोक है। वहां जाने के बाद साधक जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है और पूर्ण मोक्ष प्राप्त करता है।
🌀सत्य भक्ति वर्तमान में केवल संत रामपाल जी महाराज जी के पास है। जिससे इस दुःखों के घर संसार से पार होकर वह परम शान्ति तथा शाश्वत स्थान (सनातन परम धाम) प्राप्त हो जाता है जिसके विषय में गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा है तथा गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि तत्वदर्शी सन्त से तत्वज्ञान प्राप्त करके, उस तत्वज्ञान से अज्ञान का नाश करके, उसके पश्चात् परमेश्वर के उस परमपद की खोज करनी चाहिए। जहाँ जाने के पश्चात् साधक फिर लौटकर संसार में कभी नहीं आता।
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almostseverepaper · 2 months ago
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*🎄बन्दीछोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की जय🎄*
24/09/24
*⚡Facebook Sewa⚡*
🧩 *मालिक की दया से श्राद्ध की श्रेष्ठ विधि बताते हुए Facebook पर सेवा करेंगे जी।*
*टैग हैं⤵️*
#श्राद्ध_करने_की_श्रेष्ठ_विधि
#JagatGuruSantRampalJi
#SantRampalJi Maharaj
#श्राद्ध #पितृपक्ष #ancestors #ancestorworship #pinddaan
#pitrupaksha #pitrapaksh #shradh #amavasya #astrology #karma #vastu #reels #trending
★★★★★
📷 *सेवा से सम्बंधित फ़ोटो लिंक।*
https://www.satsaheb.org/shradh-hindi/
https://www.satsaheb.org/shradh-english/
*⛳सेवा Points* ⤵️
🌀 श्राद्ध किसके लिए निकालते हैं। श्राद्ध उनके लिए करते हैं जो मृत्यु को प्राप्त हो गए यानी प्रेत पित्तर बन गए। गीता अध्याय 9 श्लोक 25 में इसके लिए मना किया गया है।
विष्णु पुराण के अंदर लिखा हुआ है, व्यास जी कह रहे हैं कि हे राजन! श्राद्ध के समय यदि एक हजार ब्राह्मण बैठे हों। भोजन करने आये हों।
और एक तरफ योगी बैठ जा। तो वो ब्राह्मणों समेत, पित्तरों समेत, यजमानों समेत सबका उद्धार कर देता है। वह योगी कौन है?
गीता अध्याय 2 श्लोक 53 में बताया है कि अर्जुन जब भिन्न भिन्न प्रकार से भर्मित करने वाले वचनों से तेरी बुद्धि हटकर एक तत्वज्ञान में स्थिर हो जाएगी। तब तो तू योगी बनेगा। तब तू योग को प्राप्त होगा। संत रामपाल जी महाराज जी के शिष्य सारे योगी हैं। और जैसे संत रामपाल जी महाराज जी के आश्रमों में समागम होते हैं उनमें लाखों योगी भोजन करते हैं। वहां दिए गए दान से पितरों का भी उद्धार, भूतों का भी उद्धार और दान करने वालों का भी उद्धार होता है।
🌀श्राद्ध की शास्त्र अनुकूल विधि संत रामपाल जी महाराज के सभी सतलोक आश्रमों में हर दूसरे तीसरे महीने समागम में की जाती ही। वहां तो श्राद्ध हर दूसरे तीसरे महीने निकालते हैं। आप जी तो साल में एक ही बार निकालते हो।
🌀विष्णु पुराण, तृतीय अंश के अध्याय 15 में श्लोक 55-56, पृष्ठ 213 पर लिखा है कि एक योगी (शास्त्रानुकूल सत्य साधक) अकेला ही पित्तरों तथा एक हजार ब्राह्मणों तथा यजमान सहित सर्व का उद्धार कर देगा। शास्त्रानुकूल सत्य साधना केवल संत रामपाल जी महाराज करवाते हैं इसलिए उनके शिष्य ही वह योगी हैं जिसका उपरोक्त शास्त्र में जिक्र किया है।
🌀पवित्र गीता अध्याय 9 मंत्र 25 व 23 से 24 तथा अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 तथा 20 से 23 में भगवान ने स्पष्ट मना किया है श्राद्ध करने (पितर पूजा करने), पिण्ड दान करने(भूत पूजा करने) से तथा अन्य देवताओं की पूजा करने से मना किया है। कहा है कि जो पित्तर पूजा करते हैं अर्थात श्राद्ध निकालते हैं वे पित्तरों के पास जायेंगे अर्थात पित्तर बन जायेंगे,
मुक्त नहीं हो सकते। पिण्ड दान अर्थात भूत पूजने वाले भी भूत बनेंगे तथा देवताओं को पूजने वाले
देवताओं के पास जायेंगे, उनके नौकर लगेंगे। फिर सर्व देवताओं (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा
श्री शिव जी) सहित तथा इनके उपासक क्षणिक सुख भोगकर मृत्यु को प्राप्त होंगे, मुक्ति नहीं होगी।
यह मूर्खों की पूजा है।
🌀कबीर परमेश्वर जी ने कहा है कि -
एकै साधे सब सधै, सब साधै सब जाय।
माली सीचें मूल को, फलै फूलै अघाय।।
संत रामपाल जी महाराज, सर्वसुख व पूर्णमोक्ष दायक शास्त्रानुकूल भक्ति साधना (धार्मिक अनुष्ठान) करवाते हैं, जिसके करने से साधक पितर, भूत नहीं बनता अपितु पूर्ण मोक्ष प्राप्त करता है तथा जो पूर्वज गलत साधना करके पित्तर भूत बने हैं, उनका भी छुटकारा हो जाता है।
🌀परमात्मा कबीर जी समझाते हैं कि हे भोले प्राणी! गरूड़ पुराण का पाठ जीव को मृत्यु से पहले सुनाना चाहिए था ताकि वह परमात्मा के विधान को समझकर पाप कर्मों से बचता। पूर्ण गुरू से दीक्षा लेकर अपना मोक्ष करता। जिस कारण से वह न प्रेत बनता, न पितर बनता, न पशु-पक्षी आदि-आदि के शरीरों में कष्ट उठाता। मृत्यु के पश्चात् गरूड़ पुराण के पाठ का कोई लाभ नहीं मिलता।
🌀सूक्ष्मवेद (तत्वज्ञान) में तथा चारों वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथवर्वेद) तथा इन चारों वेदों के सारांश गीता में स्पष्ट किया है कि आन-उपासना नहीं करनी चाहिए क्योंकि ये शास्त्रों में वर्णित न होने से मनमाना आचरण है जो गीता अध्याय 16 श्लोक 23, 24 में व्यर्थ बताया है। शास्त्रोक्त साधना करने का आदेश दिया है।
🌀मार्कण्डेय पुराण (गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित पृष्ठ 237) में श्राद्ध के विषय मे एक कथा का वर्णन मिलता है जिसमें रूची नामक एक ऋषि को अपने चार पूर्वज जो शास्त्र विरुद्ध साधना करके पितर बने हुए थे तथा कष्ट भोग रहे थे, दिखाई दिए। पितरों ने कहा कि बेटा रूची हमारे श्राद्ध निकाल, हम दुःखी हो रहे हैं। रूची ऋषि ने जवाब दिया की पित्रामहों वेद में कर्म काण्ड मार्ग (श्राद्ध, पिण्ड भरवाना आदि) को मूर्खों की साधना कहा है, अर्थात यह क्रिया व्यर्थ व शास्त्र विरुद्ध है।
🌀श्राद्ध आदि शास्त्रविरूद्ध क्रियाऐं करने से अनमोल जीवन नष्ट हो जाता है। यदि सतगुरू (तत्वदर्शी संत) का सत्संग सुनते, उसकी संगति करते तो सर्व पापकर्म नष्ट हो जाते। सत्य साधना करके अमर लोक यानि गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में कहे (शाश्वतं स्थानं) सनातन परम धाम में आप जी का आसन यानि स्थाई ठिकाना होता जहाँ कोई कष्ट नहीं। वहाँ पर परम शांति है क्योंकि वहाँ पर कभी जन्म-मृत्यु नहीं होता।
🌀भूत पूजा तथा पितर पूजा क्या है?
इन पूजाओं के निषेध का प्रमाण पवित्र गीता शास्त्र के अध्याय 9 श्लोक 25 में लिखा है कि भूत पूजा करने वाले भूत बनकर भूतों के समूह में मृत्यु उपरांत चले जाऐंगे। पितर पूजा करने वाले पितर लोक में पितर योनि प्राप्त करके पितरों के पास चले जाऐंगे। मोक्ष प्राप्त प्राणी सदा के लिए जन्म-मरण से मुक्त हो जाता है।
🌀श्री विष्णु पुराण के तीसरे अंश में अध्याय 15 श्लोक 55-56 पृष्ठ 153 पर लिखा है कि श्राद्ध के भोज में यदि एक योगी यानी शास्त्रोक्त साधक को भोजन करवाया जाए तो श्राद्ध में आए हजार ब्राह्मणों तथा यजमान के पूरे परिवार सहित सर्व पितरों का उद्धार कर देता है।
🌀कबीर, भक्ति बीज जो होये हंसा, तारूं तास के एकोत्तर वंशा।
श्राद्ध आदि निकालना शास्त्र विरुद्ध है, सत्य शास्त्रोक्त साधना करने वाले साधक की 101 पीढ़ी पार होती हैं। सत्य शास्त्रानुसार साधना केवल तत्वदर्शी संत दे सकता है जिसकी शरण में जाने के लिए गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में कहा गया है। वर्तमान में वह पूर्ण तत्वदर्शी संत केवल संत रामपाल जी महाराज जी हैं।
🌀गीता भी हमें श्राद्ध के विषय में निर्णायक ज्ञान देती है। गीता के अध्याय 9 के श्लोक 25 में कहा है कि देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं, भूतों को पूजने (पिण्ड दान करने) वाले भूतों को प्राप्त होते हैं अर्थात भूत बन जाते हैं, शास्त्रानुकूल (पवित्र वेदों व गीता अनुसार) पूजा करने वाले मुझको ही प्राप्त होते हैं अर्थात ब्रह्मलोक के स्वर्ग व महास्वर्ग आदि में कुछ ज्यादा समय मौज कर लेते हैं और पुण्यरूपी कमाई खत्म होने पर फिर से 84 लाख योनियों में प्रवेश कर जाते हैं।
🌀जीवित बाप के लठ्ठम लठ्ठा, मूवे गंग पहुचैया।
जब आवे आसोज का महीना, कौवा बाप बनईयां।
कबीर परमेश्वर जी ने बताया है कि जीवित पिता को तो समय पर टूक (रोटी) भी नहीं दिया जाता। मृत्यु के पश्चात् उसको पवित्र दरिया में बहाकर आता है। कितना खर्च करता है। अपने माता-पिता की जीवित रहते प्यार से सेवा करो। उनकी आत्मा को प्रसन्न करो। उनकी वास्तविक श्रद्धा सेवा तो यह है।
🌀"श्राद्ध और पितृ पूजा से जीव की गति नहीं होती"
प्रेत शिला पर जाय विराजे, फिर पितरों पिण्ड भराहीं।
बहुर श्राद्ध खान कूं आया, काग भये कलि माहीं।।
🌀जीवित बाप के लठ्ठम लठ्ठा, मूवे गंग पहुचैया।
जब आवे आसोज का महीना, कौवा बाप बनईयां।
जीवित बाप के साथ तो लड़ाई रखते हैं और उनके मरने के उपरांत उनके श्राद्ध निकालते हैं।
परमात्मा कहते हैं रे भोली सी दुनिया सतगुरु बिन कैसे सरिया।
बंदीछोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी से नाम उपदेश लेकर सतभक्ति करने से मनुष्य 84 लाख योनियों का कष्ट नहीं भोगता।
🌀श्राद्ध करने वाले पुरोहित कहते हैं कि श्राद्ध करने से वह जीव एक वर्ष तक तृप्त हो जाता है। फिर एक वर्ष में श्राद्ध फिर करना है। विचार करें:- जीवित व्यक्ति दिन में तीन बार भोजन करता था। अब एक दिन भोजन करने से एक वर्ष तक कैसे तृप्त हो सकता है? यदि प्रतिदिन छत पर भोजन रखा जाए तो वह कौवा प्रतिदिन ही भोजन खाएगा।
🌀भक्ति नहीं करने वाले व शास्त्रविरुद्ध भक्ति करने वाले, नकली गुरु बनाने वाले एवं पाप अपराध करने वालों को मृत्यु पश्चात्‌ यमदूत घसीटकर ले जाते हैं और नरक में भयंकर यातनाएं देते हैं। तत्पश्चात् 84 लाख कष्टदायक योनियों में जन्म मिलता है।
🌀तत्वदर्शी संत (गीता अ-4 श्लोक-34) से दीक्षा लेकर शास्त्रविधि अनुसार सतभक्ति करने वाले परमधाम सतलोक को प्राप्त होते हैं जहाँ जन्म-मरण, दुख, कष्ट व रोग नहीं होता है।
🌀नर सेती तू पशुवा कीजै, गधा, बैल बनाई।
छप्पन भोग कहाँ मन बौरे, कहीं कुरड़ी चरने जाई।।
मनुष्य जीवन में हम कितने अच्छे अर्थात् 56 प्रकार के भोजन खाते हैं। भक्ति न करने से या शास्त्रविरूद्ध साधना करने से गधा बनेगा, फिर ये छप्पन प्रकार के भोजन कहाँ प्राप्त होंगे, कहीं कुरड़ियों (रूड़ी) पर पेट भरने के लिए घास खाने जाएगा। इसी प्रकार बैल आदि-आदि पशुओं की योनियों में कष्ट पर कष्ट उठाएगा।
🌀श्राद्ध क्रिया कर्म मनमाना आचरण है यह शास्त्रों में अविद्या कहा गया है बल्कि गीता अध्याय 16 श्लोज 23 और 24 में कहा है कि जो शास्त्र विधि को त्याग कर मनमाना आचरण करते हैं उनकी ना तो गति होती है न ही उन्हें किसी प्रकार का आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है इसलिए शास्त्र ही प्रमाण है।
🌀जै सतगुरू की संगत करते, सकल कर्म कटि जाईं।
अमर पुरि पर आसन होते, जहाँ धूप न छाँइ।।
संत गरीबदास जी ने परमेश्वर कबीर जी से प्राप्त सूक्ष्मवेद में कहा है कि यदि सतगुरू (तत्वदर्शी सन्त) की शरण में जाकर दीक्षा लेते तो सर्व कर्मों के कष्ट कट जाते अर्थात् न प्रेत बनते, न गधा, न बैल बनते।
🌀जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी से उपदेश लेकर कबीर साहेब जी की भक्ति करने से सतलोक की प्राप्ति होती है।
सतलोक अविनाशी लोक है। वहां जाने के बाद साधक जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है और पूर्ण मोक्ष प्राप्त करता है।
🌀सत्य भक्ति वर्तमान में केवल संत रामपाल जी महाराज जी के पास है। जिससे इस दुःखों के घर संसार से पार होकर वह परम शान्ति तथा शाश्वत स्थान (सनातन परम धाम) प्राप्त हो जाता है जिसके विषय में गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा है तथा गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि तत्वदर्शी सन्त से तत्वज्ञान प्राप्त करके, उस तत्वज्ञान से अज्ञान का नाश करके, उसके पश्चात् परमेश्वर के उस परमपद की खोज करनी चाहिए। जहाँ जाने के पश्चात् साधक फिर लौटकर संसार में कभी नहीं आता।
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9523868441 · 2 months ago
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*🎄बन्दीछोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की जय🎄*
23/09/24
*🔹 X Trending Sewa सूचना🔹*
🧩 *मालिक की दया से आज शाम *X* पर श्राद्ध की श्रेष्ठ विधि बताते हुए Trending सेवा करेंगे जी ।
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🌀 श्राद्ध किसके लिए निकालते हैं। श्राद्ध उनके लिए करते हैं जो मृत्यु को प्राप्त हो गए यानी प्रेत पित्तर बन गए। गीता अध्याय 9 श्लोक 25 में इसके लिए मना किया गया है।
विष्णु पुराण के अंदर लिखा हुआ है, व्यास जी कह रहे हैं कि हे राजन! श्राद्ध के समय यदि एक हजार ब्राह्मण बैठे हों। भोजन करने आये हों।
और एक तरफ योगी बैठ जा। तो वो ब्राह्मणों समेत, पित्तरों समेत, यजमानों समेत सबका उद्धार कर देता है। वह योगी कौन है?
गीता अध्याय 2 श्लोक 53 में बताया है कि अर्जुन जब भिन्न भिन्न प्रकार से भर्मित करने वाले वचनों से तेरी बुद्धि हटकर एक तत्वज्ञान में स्थिर हो जाएगी। तब तो तू योगी बनेगा। तब तू योग को प्राप्त होगा। संत रामपाल जी महाराज जी के शिष्य सारे योगी हैं। और जैसे संत रामपाल जी महाराज जी के आश्रमों में समागम होते हैं उनमें लाखों योगी भोजन करते हैं। वहां दिए गए दान से पितरों का भी उद्धार, भूतों का भी उद्धार और दान करने वालों का भी उद्धार होता है।
🌀श्राद्ध की शास्त्र अनुकूल विधि संत रामपाल जी महाराज के सभी सतलोक आश्रमों में हर दूसरे तीसरे महीने समागम में की जाती ही। वहां तो श्राद्ध हर दूसरे तीसरे महीने निकालते हैं। आप जी तो साल में एक ही बार निकालते हो।
🌀विष्णु पुराण, तृतीय अंश के अध्याय 15 में श्लोक 55-56, पृष्ठ 213 पर लिखा है कि एक योगी (शास्त्रानुकूल सत्य साधक) अकेला ही पित्तरों तथा एक हजार ब्राह्मणों तथा यजमान सहित सर्व का उद्धार कर देगा। शास्त्रानुकूल सत्य साधना केवल संत रामपाल जी महाराज करवाते हैं इसलिए उनके शिष्य ही वह योगी हैं जिसका उपरोक्त शास्त्र में जिक्र किया है।
🌀पवित्र गीता अध्याय 9 मंत्र 25 व 23 से 24 तथा अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 तथा 20 से 23 में भगवान ने स्पष्ट मना किया है श्राद्ध करने (पितर पूजा करने), पिण्ड दान करने(भूत पूजा करने) से तथा अन्य देवताओं की पूजा करने से मना किया है। कहा है कि जो पित्तर पूजा करते हैं अर्थात श्राद्ध निकालते हैं वे पित्तरों के पास जायेंगे अर्थात पित्तर बन जायेंगे,
मुक्त नहीं हो सकते। पिण्ड दान अर्थात भूत पूजने वाले भी भूत बनेंगे तथा देवताओं को पूजने वाले
देवताओं के पास जायेंगे, उनके नौकर लगेंगे। फिर सर्व देवताओं (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा
श्री शिव जी) सहित तथा इनके उपासक क्षणिक सुख भोगकर मृत्यु को प्राप्त होंगे, मुक्ति नहीं होगी।
यह मूर्खों की पूजा है।
🌀कबीर परमेश्वर जी ने कहा है कि -
एकै साधे सब सधै, सब साधै सब जाय।
माली सीचें मूल को, फलै फूलै अघाय।।
संत रामपाल जी महाराज, सर्वसुख व पूर्णमोक्ष दायक शास्त्रानुकूल भक्ति साधना (धार्मिक अनुष्ठान) करवाते हैं, जिसके करने से साधक पितर, भूत नहीं बनता अपितु पूर्ण मोक्ष प्राप्त करता है तथा जो पूर्वज गलत साधना करके पित्तर भूत बने हैं, उनका भी छुटकारा हो जाता है।
🌀परमात्मा कबीर जी समझाते हैं कि हे भोले प्राणी! गरूड़ पुराण का पाठ जीव को मृत्यु से पहले सुनाना चाहिए था ताकि वह परमात्मा के विधान को समझकर पाप कर्मों से बचता। पूर्ण गुरू से दीक्षा लेकर अपना मोक्ष करता। जिस कारण से वह न प्रेत बनता, न पितर बनता, न पशु-पक्षी आदि-आदि के शरीरों में कष्ट उठाता। मृत्यु के पश्चात् गरूड़ पुराण के पाठ का कोई लाभ नहीं मिलता।
🌀सूक्ष्मवेद (तत्वज्ञान) में तथा चारों वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथवर्वेद) तथा इन चारों वेदों के सारांश गीता में स्पष्ट किया है कि आन-उपासना नहीं करनी चाहिए क्योंकि ये शास्त्रों में वर्णित न होने से मनमाना आचरण है जो गीता अध्याय 16 श्लोक 23, 24 में व्यर्थ बताया है। शास्त्रोक्त साधना करने का आदेश दिया है।
🌀मार्कण्डेय पुराण (गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित पृष्ठ 237) में श्राद्ध के विषय मे एक कथा का वर्णन मिलता है जिसमें रूची नामक एक ऋषि को अपने चार पूर्वज जो शास्त्र विरुद्ध साधना करके पितर बने हुए थे तथा कष्ट भोग रहे थे, दिखाई दिए। पितरों ने कहा कि बेटा रूची हमारे श्राद्ध निकाल, हम दुःखी हो रहे हैं। रूची ऋषि ने जवाब दिया की पित्रामहों वेद में कर्म काण्ड मार्ग (श्राद्ध, पिण्ड भरवाना आदि) को मूर्खों की साधना कहा है, अर्थात यह क्रिया व्यर्थ व शास्त्र विरुद्ध है।
🌀श्राद्ध आदि शास्त्रविरूद्ध क्रियाऐं करने से अनमोल जीवन नष्ट हो जाता है। यदि सतगुरू (तत्वदर्शी संत) का सत्संग सुनते, उसकी संगति करते तो सर्व पापकर्म नष्ट हो जाते। सत्य साधना करके अमर लोक यानि गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में कहे (शाश्वतं स्थानं) सनातन परम धाम में आप जी का आसन यानि स्थाई ठिकाना होता जहाँ कोई कष्ट नहीं। वहाँ पर परम शांति है क्योंकि वहाँ पर कभी जन्म-मृत्यु नहीं होता।
🌀भूत पूजा तथा पितर पूजा क्या है?
इन पूजाओं के निषेध का प्रमाण पवित्र गीता शास्त्र के अध्याय 9 श्लोक 25 में लिखा है कि भूत पूजा करने वाले भूत बनकर भूतों के समूह में मृत्यु उपरांत चले जाऐंगे। पितर पूजा करने वाले पितर लोक में पितर योनि प्राप्त करके पितरों के पास चले जाऐंगे। मोक्ष प्राप्त प्राणी सदा के लिए जन्म-मरण से मुक्त हो जाता है।
🌀श्री विष्णु पुराण के तीसरे अंश में अध्याय 15 श्लोक 55-56 पृष्ठ 153 पर लिखा है कि श्राद्ध के भोज में यदि एक योगी यानी शास्त्रोक्त साधक को भोजन करवाया जाए तो श्राद्ध में आए हजार ब्राह्मणों तथा यजमान के पूरे परिवार सहित सर्व पितरों का उद्धार कर देता है।
🌀कबीर, भक्ति बीज जो होये हंसा, तारूं तास के एकोत्तर वंशा।
श्राद्ध आदि निकालना शास्त्र विरुद्ध है, सत्य शास्त्रोक्त साधना करने वाले साधक की 101 पीढ़ी पार होती हैं। सत्य शास्त्रानुसार साधना केवल तत्वदर्शी संत दे सकता है जिसकी शरण में जाने के लिए गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में कहा गया है। वर्तमान में वह पूर्ण तत्वदर्शी संत केवल संत रामपाल जी महाराज जी हैं।
🌀गीता भी हमें श्राद्ध के विषय में निर्णायक ज्ञान देती है। गीता के अध्याय 9 के श्लोक 25 में कहा है कि देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं, भूतों को पूजने (पिण्ड दान करने) वाले भूतों को प्राप्त होते हैं अर्थात भूत बन जाते हैं, शास्त्रानुकूल (पवित्र वेदों व गीता अनुसार) पूजा करने वाले मुझको ही प्राप्त होते हैं अर्थात ब्रह्मलोक के स्वर्ग व महास्वर्ग आदि में कुछ ज्यादा समय मौज कर लेते हैं और पुण्यरूपी कमाई खत्म होने पर फिर से 84 लाख योनियों में प्रवेश कर जाते हैं।
🌀जीवित बाप के लठ्ठम लठ्ठा, मूवे गंग पहुचैया।
जब आवे आसोज का महीना, कौवा बाप बनईयां।
कबीर परमेश्वर जी ने बताया है कि जीवित पिता को तो समय पर टूक (रोटी) भी नहीं दिया जाता। मृत्यु के पश्चात् उसको पवित्र दरिया में बहाकर आता है। कितना खर्च करता है। अपने माता-पिता की जीवित रहते प्यार से सेवा करो। उनकी आत्मा को प्रसन्न करो। उनकी वास्तविक श्रद्धा सेवा तो यह है।
🌀"श्राद्ध और पितृ पूजा से जीव की गति नहीं होती"
प्रेत शिला पर जाय विराजे, फिर पितरों पिण्ड भराहीं।
बहुर श्राद्ध खान कूं आया, काग भये कलि माहीं।।
🌀जीवित बाप के लठ्ठम लठ्ठा, मूवे गंग पहुचैया।
जब आवे आसोज का महीना, कौवा बाप बनईयां।
जीवित बाप के साथ तो लड़ाई रखते हैं और उनके मरने के उपरांत उनके श्राद्ध निकालते हैं।
परमात्मा कहते हैं रे भोली सी दुनिया सतगुरु बिन कैसे सरिया।
बंदीछोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी से नाम उपदेश लेकर सतभक्ति करने से मनुष्य 84 लाख योनियों का कष्ट नहीं भोगता।
🌀श्राद्ध करने वाले पुरोहित कहते हैं कि श्राद्ध करने से वह जीव एक वर्ष तक तृप्त हो जाता है। फिर एक वर्ष में श्राद्ध फिर करना है। विचार करें:- जीवित व्यक्ति दिन में तीन बार भोजन करता था। अब एक दिन भोजन करने से एक वर्ष तक कैसे तृप्त हो सकता है? यदि प्रतिदिन छत पर भोजन रखा जाए तो वह कौवा प्रतिदिन ही भोजन खाएगा।
🌀भक्ति नहीं करने वाले व शास्त्रविरुद्ध भक्ति करने वाले, नकली गुरु बनाने वाले एवं पाप अपराध करने वालों को मृत्यु पश्चात्‌ यमदूत घसीटकर ले जाते हैं और नरक में भयंकर यातनाएं देते हैं। तत्पश्चात् 84 लाख कष्टदायक योनियों में जन्म मिलता है।
🌀तत्वदर्शी संत (गीता अ-4 श्लोक-34) से दीक्षा लेकर शास्त्रविधि अनुसार सतभक्ति करने वाले परमधाम सतलोक को प्राप्त होते हैं जहाँ जन्म-मरण, दुख, कष्ट व रोग नहीं होता है।
🌀नर सेती तू पशुवा कीजै, गधा, बैल बनाई।
छप्पन भोग कहाँ मन बौरे, कहीं कुरड़ी चरने जाई।।
मनुष्य जीवन में हम कितने अच्छे अर्थात् 56 प्रकार के भोजन खाते हैं। भक्ति न करने से या शास्त्रविरूद्ध साधना करने से गधा बनेगा, फिर ये छप्पन प्रकार के भोजन कहाँ प्राप्त होंगे, कहीं कुरड़ियों (रूड़ी) पर पेट भरने के लिए घास खाने जाएगा। इसी प्रकार बैल आदि-आदि पशुओं की योनियों में कष्ट पर कष्ट उठाएगा।
🌀श्राद्ध क्रिया कर्म मनमाना आचरण है यह शास्त्रों में अविद्या कहा गया है बल्कि गीता अध्याय 16 श्लोज 23 और 24 में कहा है कि जो शास्त्र विधि को त्याग कर मनमाना आचरण करते हैं उनकी ना तो गति होती है न ही उन्हें किसी प्रकार का आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है इसलिए शास्त्र ही प्रमाण है।
🌀जै सतगुरू की संगत करते, सकल कर्म कटि जाईं।
अमर पुरि पर आसन होते, जहाँ धूप न छाँइ।।
संत गरीबदास जी ने परमेश्वर कबीर जी से प्राप्त सूक्ष्मवेद में कहा है कि यदि सतगुरू (तत्वदर्शी सन्त) की शरण में जाकर दीक्षा लेते तो सर्व कर्मों के कष्ट कट जाते अर्थात् न प्रेत बनते, न गधा, न बैल बनते।
🌀जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी से उपदेश लेकर कबीर साहेब जी की भक्ति करने से सतलोक की प्राप्ति होती है।
सतलोक अविनाशी लोक है। वहां जाने के बाद साधक जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है और पूर्ण मोक्ष प्राप्त करता है।
🌀सत्य भक्ति वर्तमान में केवल संत रामपाल जी महाराज जी के पास है। जिससे इस दुःखों के घर संसार से पार होकर वह परम शान्ति तथा शाश्वत स्थान (सनातन परम धाम) प्राप्त हो जाता है जिसके विषय में गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा है तथा गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि तत्वदर्शी सन्त से तत्वज्ञान प्राप्त करके, उस तत्वज्ञान से अज्ञान का नाश करके, उसके पश्चात् परमेश्वर के उस परमपद की खोज करनी चाहिए। जहाँ जाने के पश्चात् साधक फिर लौटकर संसार में कभी नहीं आता।.
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234ravindar · 2 months ago
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*🎄बन्दीछोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की जय🎄*
18/09/24
*⌛Facebook Sewa ⌛*
🧩 *मालिक की दया से Facebook पर श्राद्ध की श्रेष्ठ विधि बताते हुए सेवा करेंगे जी।*
*टैग और कीवर्ड⤵️*
*#श्राद्धकी_शास्त्रानुकूल_विधि*
#SantRampalJi Maharaj
#श्राद्ध #पितृपक्ष #ancestors #ancestorworship #pinddaan
#pitrupaksha #pitrapaksh #shradh #amavasya #astrology #karma #vastu #reels #trending
★★★★★
📷 *सेवा से सम्बंधित फ़ोटो लिंक⤵️*
https://www.satsaheb.org/shradh-hindi/
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🌀 श्राद्ध किसके लिए निकालते हैं। श्राद्ध उनके लिए करते हैं जो मृत्यु को प्राप्त हो गए यानी प्रेत पित्तर बन गए। गीता अध्याय 9 श्लोक 25 में इसके लिए मना किया गया है।
विष्णु पुराण के अंदर लिखा हुआ है, व्यास जी कह रहे हैं कि हे राजन! श्राद्ध के समय यदि एक हजार ब्राह्मण बैठे हों। भोजन करने आये हों।
और एक तरफ योगी बैठ जा। तो वो ब्राह्मणों समेत, पित्तरों समेत, यजमानों समेत सबका उद्धार कर देता है। वह योगी कौन है?
गीता अध्याय 2 श्लोक 53 में बताया है कि अर्जुन जब भिन्न भिन्न प्रकार से भर्मित करने वाले वचनों से तेरी बुद्धि हटकर एक तत्वज्ञान में स्थिर हो जाएगी। तब तो तू योगी बनेगा। तब तू योग को प्राप्त होगा। संत रामपाल जी महाराज जी के शिष्य सारे योगी हैं। और जैसे संत रामपाल जी महाराज जी के आश्रमों में समागम होते हैं उनमें लाखों योगी भोजन करते हैं। वहां दिए गए दान से पितरों का भी उद्धार, भूतों का भी उद्धार और दान करने वालों का भी उद्धार होता है।
🌀श्राद्ध की शास्त्र अनुकूल विधि संत रामपाल जी महाराज के सभी सतलोक आश्रमों में हर दूसरे तीसरे महीने समागम में की जाती ही। वहां तो श्राद्ध हर दूसरे तीसरे महीने निकालते हैं। आप जी तो साल में एक ही बार निकालते हो।
🌀विष्णु पुराण, तृतीय अंश के अध्याय 15 में श्लोक 55-56, पर लिखा है कि एक योगी (शास्त्रानुकूल सत्य साधक) अकेला ही पित्तरों तथा एक हजार ब्राह्मणों तथा यजमान सहित सर्व का उद्धार कर देगा। शास्त्रानुकूल सत्य साधना केवल संत रामपाल जी महाराज करवाते हैं इसलिए उनके शिष्य ही वह योगी हैं जिसका उपरोक्त शास्त्र में जिक्र किया है।
🌀पवित्र गीता अध्याय 9 मंत्र 25 व 23 से 24 तथा अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 तथा 20 से 23 में भगवान ने स्पष्ट मना किया है श्राद्ध करने (पितर पूजा करने), पिण्ड दान करने(भूत पूजा करने) से तथा अन्य देवताओं की पूजा करने से मना किया है। कहा है कि जो पित्तर पूजा करते हैं अर्थात श्राद्ध निकालते हैं वे पित्तरों के पास जायेंगे अर्थात पित्तर बन जायेंगे,
मुक्त नहीं हो सकते। पिण्ड दान अर्थात भूत पूजने वाले भी भूत बनेंगे तथा देवताओं को पूजने वाले
देवताओं के पास जायेंगे, उनके नौकर लगेंगे। फिर सर्व देवताओं (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा
श्री शिव जी) सहित तथा इनके उपासक क्षणिक सुख भोगकर मृत्यु को प्राप्त होंगे, मुक्ति नहीं होगी।
यह मूर्खों की पूजा है।
🌀कबीर परमेश्वर जी ने कहा है कि -
एकै साधे सब सधै, सब साधै सब जाय।
माली सीचें मूल को, फलै फूलै अघाय।।
संत रामपाल जी महाराज, सर्वसुख व पूर्णमोक्ष दायक शास्त्रानुकूल भक्ति साधना (धार्मिक अनुष्ठान) करवाते हैं, जिसके करने से साधक पितर, भूत नहीं बनता अपितु पूर्ण मोक्ष प्राप्त करता है तथा जो पूर्वज गलत साधना करके पित्तर भूत बने हैं, उनका भी छुटकारा हो जाता है।
🌀परमात्मा कबीर जी समझाते हैं कि हे भोले प्राणी! गरूड़ पुराण का पाठ जीव को मृत्यु से पहले सुनाना चाहिए था ताकि वह परमात्मा के विधान को समझकर पाप कर्मों से बचता। पूर्ण गुरू से दीक्षा लेकर अपना मोक्ष करता। जिस कारण से वह न प्रेत बनता, न पितर बनता, न पशु-पक्षी आदि-आदि के शरीरों में कष्ट उठाता। मृत्यु के पश्चात् गरूड़ पुराण के पाठ का कोई लाभ नहीं मिलता।
🌀सूक्ष्मवेद (तत्वज्ञान) में तथा चारों वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथवर्वेद) तथा इन चारों वेदों के सारांश गीता में स्पष्ट किया है कि आन-उपासना नहीं करनी चाहिए क्योंकि ये शास्त्रों में वर्णित न होने से मनमाना आचरण है जो गीता अध्याय 16 श्लोक 23, 24 में व्यर्थ बताया है। शास्त्रोक्त साधना करने का आदेश दिया है।
🌀मार्कण्डेय पुराण (गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित) में श्राद्ध के विषय मे एक कथा का वर्णन मिलता है जिसमें रूची नामक एक ऋषि को अपने चार पूर्वज जो शास्त्र विरुद्ध साधना करके पितर बने हुए थे तथा कष्ट भोग रहे थे, दिखाई दिए। पितरों ने कहा कि बेटा रूची हमारे श्राद्ध निकाल, हम दुःखी हो रहे हैं। रूची ऋषि ने जवाब दिया की पित्रामहों वेद में कर्म काण्ड मार्ग (श्राद्ध, पिण्ड भरवाना आदि) को मूर्खों की साधना कहा है, अर्थात यह क्रिया व्यर्थ व शास्त्र विरुद्ध है।
🌀श्राद्ध आदि शास्त्रविरूद्ध क्रियाऐं करने से अनमोल जीवन नष्ट हो जाता है। यदि सतगुरू (तत्वदर्शी संत) का सत्संग सुनते, उसकी संगति करते तो सर्व पापकर्म नष्ट हो जाते। सत्य साधना करके अमर लोक यानि गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में कहे (शाश्वतं स्थानं) सनातन परम धाम में आप जी का आसन यानि स्थाई ठिकाना होता जहाँ कोई कष्ट नहीं। वहाँ पर परम शांति है क्योंकि वहाँ पर कभी जन्म-मृत्यु नहीं होता।
🌀भूत पूजा तथा पितर पूजा क्या है?
इन पूजाओं के निषेध का प्रमाण पवित्र गीता शास्त्र के अध्याय 9 श्लोक 25 में लिखा है कि भूत पूजा करने वाले भूत बनकर भूतों के समूह में मृत्यु उपरांत चले जाऐंगे। पितर पूजा करने वाले पितर लोक में पितर योनि प्राप्त करके पितरों के पास चले जाऐंगे। मोक्ष प्राप्त प्राणी सदा के लिए जन्म-मरण से मुक्त हो जाता है।
🌀श्री विष्णु पुराण के तीसरे अंश में अध्याय 15 श्लोक 55-56 पर लिखा है कि श्राद्ध के भोज में यदि एक योगी यानी शास्त्रोक्त साधक को भोजन करवाया जाए तो श्राद्ध में आए हजार ब्राह्मणों तथा यजमान के पूरे परिवार सहित सर्व पितरों का उद्धार कर देता है।
🌀कबीर, भक्ति बीज जो होये हंसा, तारूं तास के एकोत्तर वंशा।
श्राद्ध आदि निकालना शास्त्र विरुद्ध है, सत्य शास्त्रोक्त साधना करने वाले साधक की 101 पीढ़ी पार होती हैं। सत्य शास्त्रानुसार साधना केवल तत्वदर्शी संत दे सकता है जिसकी शरण में जाने के लिए गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में कहा गया है। वर्तमान में वह पूर्ण तत्वदर्शी संत केवल संत रामपाल जी महाराज जी हैं।
🌀गीता भी हमें श्राद्ध के विषय में निर्णायक ज्ञान देती है। गीता के अध्याय 9 के श्लोक 25 में कहा है कि देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं, भूतों को पूजने (पिण्ड दान करने) वाले भूतों को प्राप्त होते हैं अर्थात भूत बन जाते हैं, शास्त्रानुकूल (पवित्र वेदों व गीता अनुसार) पूजा करने वाले मुझको ही प्राप्त होते हैं अर्थात ब्रह्मलोक के स्वर्ग व महास्वर्ग आदि में कुछ ज्यादा समय मौज कर लेते हैं और पुण्यरूपी कमाई खत्म होने पर फिर से 84 लाख योनियों में प्रवेश कर जाते हैं।
🌀जीवित बाप के लठ्ठम लठ्ठा, मूवे गंग पहुचैया।
जब आवे आसोज का महीना, कौवा बाप बनईयां।
कबीर परमेश्वर जी ने बताया है कि जीवित पिता को तो समय पर टूक (रोटी) भी नहीं दिया जाता। मृत्यु के पश्चात् उसको पवित्र दरिया में बहाकर आता है। कितना खर्च करता है। अपने माता-पिता की जीवित रहते प्यार से सेवा करो। उनकी आत्मा को प्रसन्न करो। उनकी वास्तविक श्रद्धा सेवा तो यह है।
🌀"श्राद्ध और पितृ पूजा से जीव की गति नहीं होती"
प्रेत शिला पर जाय विराजे, फिर पितरों पिण्ड भराहीं।
बहुर श्राद्ध खान कूं आया, काग भये कलि माहीं।।
🌀जीवित बाप के लठ्ठम लठ्ठा, मूवे गंग पहुचैया।
जब आवे आसोज का महीना, कौवा बाप बनईयां।
जीवित बाप के साथ तो लड़ाई रखते हैं और उनके मरने के उपरांत उनके श्राद्ध निकालते हैं।
परमात्मा कहते हैं रे भोली सी दुनिया सतगुरु बिन कैसे सरिया।
बंदीछोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी से नाम उपदेश लेकर सतभक्ति करने से मनुष्य 84 लाख योनियों का कष्ट नहीं भोगता।
🌀श्राद्ध करने वाले पुरोहित कहते हैं कि श्राद्ध करने से वह जीव एक वर्ष तक तृप्त हो जाता है। फिर एक वर्ष में श्राद्ध फिर करना है। विचार करें:- जीवित व्यक्ति दिन में तीन बार भोजन करता था। अब एक दिन भोजन करने से एक वर्ष तक कैसे तृप्त हो सकता है? यदि प्रतिदिन छत पर भोजन रखा जाए तो वह कौवा प्रतिदिन ही भोजन खाएगा।
🌀भक्ति नहीं करने वाले व शास्त्रविरुद्ध भक्ति करने वाले, नकली गुरु बनाने वाले एवं पाप अपराध करने वालों को मृत्यु पश्चात्‌ यमदूत घसीटकर ले जाते हैं और नरक में भयंकर यातनाएं देते हैं। तत्पश्चात् 84 लाख कष्टदायक योनियों में जन्म मिलता है।
🌀तत्वदर्शी संत (गीता अ-4 श्लोक-34) से दीक्षा लेकर शास्त्रविधि अनुसार सतभक्ति करने वाले परमधाम सतलोक को प्राप्त होते हैं जहाँ जन्म-मरण, दुख, कष्ट व रोग नहीं होता है।
🌀नर सेती तू पशुवा कीजै, गधा, बैल बनाई।
छप्पन भोग कहाँ मन बौरे, कहीं कुरड़ी चरने जाई।।
मनुष्य जीवन में हम कितने अच्छे अर्थात् 56 प्रकार के भोजन खाते हैं। भक्ति न करने से या शास्त्रविरूद्ध साधना करने से गधा बनेगा, फिर ये छप्पन प्रकार के भोजन कहाँ प्राप्त होंगे, कहीं कुरड़ियों (रूड़ी) पर पेट भरने के लिए घास खाने जाएगा। इसी प्रकार बैल आदि-आदि पशुओं की योनियों में कष्ट पर कष्ट उठाएगा।
🌀श्राद्ध क्रिया कर्म मनमाना आचरण है यह शास्त्रों में अविद्या कहा गया है बल्कि गीता अध्याय 16 श्लोज 23 और 24 में कहा है कि जो शास्त्र विधि को त्याग कर मनमाना आचरण करते हैं उनकी ना तो गति होती है न ही उन्हें किसी प्रकार का आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है इसलिए शास्त्र ही प्रमाण है।
🌀जै सतगुरू की संगत करते, सकल कर्म कटि जाईं।
अमर पुरि पर आसन होते, जहाँ धूप न छाँइ।।
संत गरीबदास जी ने परमेश्वर कबीर जी से प्राप्त सूक्ष्मवेद में कहा है कि यदि सतगुरू (तत्वदर्शी सन्त) की शरण में जाकर दीक्षा लेते तो सर्व कर्मों के कष्ट कट जाते अर्थात् न प्रेत बनते, न गधा, न बैल बनते।
🌀जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी से उपदेश लेकर कबीर साहेब जी की भक्ति करने से सतलोक की प्राप्ति होती है।
सतलोक अविनाशी लोक है। वहां जाने के बाद साधक जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है और पूर्ण मोक्ष प्राप्त करता है।
🌀सत्य भक्ति वर्तमान में केवल संत रामपाल जी महाराज जी के पास है। ���िससे इस दुःखों के घर संसार से पार होकर वह परम शान्ति तथा शाश्वत स्थान (सनातन परम धाम) प्राप्त हो जाता है जिसके विषय में गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा है तथा गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि तत्वदर्शी सन्त से तत्वज्ञान प्राप्त करके, उस तत्वज्ञान से अज्ञान का नाश करके, उसके पश्चात् परमेश्वर के उस परमपद की खोज करनी चाहिए। जहाँ जाने के पश्चात् साधक फिर लौटकर संसार में कभी नहीं आता।
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indrabalakhanna · 3 months ago
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Satsang Ishwar TV | 25-08-2024 | Episode: 2491 | Sant Rampal Ji Maharaj ...
*📣🙏बन्दीछोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की जय🙏📣*
*25/08/24 Sunday/रविवार*
*🦚🦚🌼🥀🌼*
#GodMorningSunday
#SundayMotivation
#SundayThoughts
1🌐जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज ने सचेत किया है कि ज्ञान के बिना मनुष्य पशु-पक्षी की तरह संतानोत्पत्ति और उनके पालन पोषण के लिए आजीवन संघर्षरत रहते हैं! अंत में प्राण त्याग कर कर्मानुसार पुनर्जन्म को प्राप्त होते हैं! यदि सतगुरु के सत्संग मिल जाए तो मनुष्य तत्वज्ञान व सतभक्ति द्वारा पूर्ण मोक्ष को प्राप्त होता है। इसलिए हमें संत रामपाल जी के सत्संग अवश्य सुनने चाहिए!
2🌐क्यों सुनें संत रामपाल जी महाराज के सत्संग?
संत रामपाल जी महाराज के सत्संगों से आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर आज लाखों लोग सामाजिक कुप्रथाओं व बुराइयों जैसे छुआ छूत, तेरहवीं, मृत्यु भोज, नशा, दहेज, कन्या भ्रूण हत्या आदि को बिल्कुल छोड़ चुके हैं व सुखी एवं शान्तिमय जीवन जी रहें हैं! यह शांति आप भी संत रामपाल जी के सत्संग सुनकर प्राप्त कर सकते हैं!
3🌐संत रामपाल जी महाराज के सत्संग क्यों सुनें?
संत रामपाल जी महाराज, संत शास्त्रों से प्रमाणित सत्संग करते हैं वे अपने सत्संगो में कही एक-एक बात का प्रमाण शास्त्रों में दिखाते हैं। संत रामपाल जी महाराज मनमानी शास्त्रविरुद्ध पूजा जैसे कि श्राद्ध, पिण्ड दान, माता मसानी और प्रेतों की पूजा करना निषेध करते हैं, क्योंकि गीता अध्याय 9 श्लोक 25 में इन क्रियाओं को मना किया गया है और वे एक पूर्ण परमात्मा की शास्त्र अनुसार साधना कराते हैं जिससे साधक को सभी सुख व मोक्ष की प्राप्ति होती है!
4🌐संत रामपाल जी महाराज के सत्संग क्यों सुनें?
गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में वर्णित मोक्ष प्राप्ति के सांकेतिक मंत्र ओम्-तत्-सत् का रहस्य संत रामपाल जी महाराज उजागर करते हैं! इसलिए हमें प्रतिदिन संत रामपाल जी महाराज के सत्संग सुनने चाहिए!
5🌐संत रामपाल जी महाराज के सत्संग क्यों सुनें?
गीता अध्याय 16 श्लोक 23 में कहा गया है कि शास्त्र विरुद्ध मनमानी क्रियाओं से कोई लाभ नहीं होता! जबकि संत रामपाल जी महाराज शास्त्र अनुकूल भक्ति बताते हैं इसलिए हमें प्रतिदिन संत रामपाल जी महाराज के सत्संग सुनने चाहिए!
6🌐क्यों सुनें संत रामपाल जी का सत्संग?
संत रामपाल जी महाराज का सत्संग हमें इसलिए सुनना चाहिए क्योंकि आज तक जो तत्वज्ञान हमारे तथाकथित धर्मगुरु नहीं बता सके वह तत्वज्ञान संत रामपाल जी ने गीता, वेदों, पुराणों व सभी धर्म शास्त्रों से प्रमाण सहित बताया है! जिससे भक्त समाज अंधविश्वास, पाखंड और धार्मिक भ्रांतियों से बच सकता है!
7🌐संत रामपाल जी महाराज, सत्संग में जीवन के वास्तविक उद्देश्य की प्राप्ति के बारे में बताते हैं कि मनुष्य जीवन का मुख्य उद्देश्य मोक्ष प्राप्ति है और इसके लिए सही गुरु की पहचान और सही मार्गदर्शन आवश्यक है! इस बारे में कबीर साहेब ने कहा है:
*कबीर मानुष जन्म दुर्लभ है, मिले न बारम्बार!
तरूवर से पत्ता टूट गिरे, बहुर न लगता डारि!!*
8🌐संत रामपाल जी महाराज के सत्संग में समाज की विभिन्न बुराइयों जैसे दहेज प्रथा, भ्रष्टाचार, व्यभिचार, चोरी, जारी, शराब सेवन और अन्य कुरीतियों के खिलाफ जागरूकता फैलाई जाती है! यह समाज में स��ारात्मक परिवर्तन लाने का महत्वपूर्ण साधन है!
9🌐हजार वर्ष तप करने का जो फल प्राप्त होता है उससे अधिक फल तत्वदर्शी संत का एक पल का सत्संग मिल जाए उससे होता है!
कबीर साहेब जी कहते हैं -
*सत्संग की आधी घड़ी, तप के वर्ष हजार !
तो भी बराबर है नहीं, कहै कबीर विचार!!*
10🌐संत रामपाल जी महाराज के आध्यात्मिक सत्संग सुनने से मनुष्य को ज्ञात होता है कि उसके जीवन का मूल उद्देश्य क्या है, सत भक्ति की विधि क्या है, किस परमात्मा की भक्ति करने से उसका जीवन सफल होगा तथा उसे क्या कर्म करना चाहिए और क्या नहीं!
11🌐तत्वज्ञान युक्त सत्संग सुनने से सतभक्ति मार्ग का ज्ञान होता है! यदि एक आत्मा को भी सतभक्ति मार्ग पर लगाकर उसका आत्म कल्याण करवा दिया जाए तो करोड़ अवश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है!
*आत्म प्राण उद्धार ही, ऐसा धर्म नहीं और!
कोटि अश्वमेघ यज्ञ, सकल समाना भौर!!*
जीवात्मा के उद्धार के लिए किए गए कार्य अर्थात् सेवा से श्रेष्ठ कोई भी कार्य नहीं है, जो वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज कर रहे हैं!
12🌐संत रामपाल जी महाराज बताते हैं सत्संग से आत्मा को गुरु वचनों की खुराक मिलती है और सकारात्मक भावनाएं जागती हैं!
*संत समागम, हरि कथा, तुलसी दुर्लभ दोय!
सुत दारा और लक्ष्मी यह तो घर पापी के भी होए!!*
13🌐मानव समाज के लिए दहेज एक अभिशाप है बेटियों को गर्भ में ही मार दिया जाता है! उन्हें जन्म लेने ही नहीं दिया जाता! इसका कारण केवल और केवल दहेज है!¡संत रामपाल जी महाराज जी ने बीड़ा उठाया है दहेज मुक्त समाज का निर्माण करना। संत रामपाल जी महाराज जी सत्संग के माध्यम से बताते हैं दहेज लेना अपराध है। इससे न तो बेटी सुखी हो सकती है और न ही दहेज लेने वाला सुखी हो सकता है।
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ratre1 · 3 months ago
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart57 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart58
"प्रभु कबीर जी द्वारा श्राद्ध भ्रम खण्डन"
एक समय काशी नगर (बनारस) में गंगा दरिया के घाट पर कुछ पंडित जी श्राद्धों के दिनों में अपने पित्तरों को जल दान करने के उद्देश्य से गंगा के जल का लोटा भरकर पटरी पर खड़े होकर सुबह के समय सूर्य की ओर मुख करके पृथ्वी पर लोटे वाला जल गिरा रहे थे। परमात्मा कबीर जी ने यह सब देखा तो जानना चाहा कि आप यह किस उद्देश्य से कर रहे हैं? पंडितों ने बताया कि हम अपने पूर्वजों को जो पित्तर बनकर स्वर्ग में निवास कर रहे हैं, जल दान कर रहे हैं। यह जल हमारे पित्तरों को प्राप्त हो जाएगा। यह सुनकर परमेश्वर कबीर जी उन अंध श्रद्धा भक्ति करने वालों का अंधविश्वास समाप्त करने के लिए उसी गंगा दरिया में घुटनों पानी में खड़ा होकर दोनों हाथों से गंगा दरिया का जल सूर्य की ओर पटरी पर शीघ्र शीघ्र फेंकने लगे। उनको ऐसा करते देखकर सैंकड़ों पंडित तथा ��ैंकड़ों नागरिक इक‌ट्ठे हो गए। पंडितों ने पूछा कि हे कबीर जी! आप यह कौन-सी कर्मकाण्ड की क्रिया कर रहे हो? इससे क्या लाभ होगा? यह तो कर्मकाण्ड में लिखी ही नहीं है। कबीर जी ने उत्तर दिया कि यहाँ से एक मील (1½ कि.मी.) दूर मेरी कुटी के आगे मैंने एक बगीची लगा रखी है। उसकी सिंचाई के लिए क्रिया कर रहा हूँ। यह जल मेरी बगीची की सिंचाई कर रहा है। यह सुनकर सर्व पंडित हँसने लगे और बोले कि यह कभी संभव नहीं हो सकता। एक मील दूर यह जल कैसे जाएगा? यह तो यहीं रेत में समा गया है। कबीर जी ने कहा कि यदि आपके द्वारा गिराया जल करोड़ों मील दूर स्वर्ग में जा सकता है तो मेरे द्वारा गिराए जल को एक मील जाने पर कौन-सी आश्चर्य की बात है? यह बात सुनकर पंडित जी समझ गए कि हमारी क्रियाएँ व्यर्थ हैं। कबीर जी ने एक घण्टा बाहर पटरी पर खड़े होकर कर्मकाण्ड यानि श्राद्ध व अन्य क्रियाओं पर सटीक तर्क किया। कहा कि आप एक ओर तो कह रहे हो कि आपके पित्तर स्वर्ग में हैं। दूसरी ओर कह रहे हो, उनको पीने का पानी नहीं मिल रहा। वे वहाँ प्यासे हैं। उनको सूर्य को अर्ध देकर जल पार्सल करते हो। यदि स्वर्ग में पीने के पानी का ही अभाव है तो उसे स्वर्ग नहीं कह सकते। वह तो रेगिस्तान होगा।
वास्तव में वे पित्तरगण यमराज के आधीन यमलोक रूपी कारागार में अपराधी बनाकर डाले जाते हैं। वहाँ पर जो निर्धारित आहार है, वह सबको दिया जाता है। जब पृथ्वी पर बनी कारागार में कोई भी कैदी खाने बिना नहीं रहता। सबको खाना-पानी मिलता है तो यमलोक वाली कारागार जो निरंजन काल राजा ने बनाई है, उसमें भी भोजन-पानी का अभाव नहीं है। कुछ पित्तरगण पृथ्वी पर विचरण करने के लिए यमराज से आज्ञा लेकर पृथ्वी पर पैरोल पर आते हैं। वे जीभ के चटोरे होते हैं। उनको कारागार वाला सामान्य भोजन अच्छा नहीं लगता। वे भी मानव जीवन में इसी भ्रम में अंध भक्ति करते थे कि श्राद्धों में एक दिन के श्राद्ध कर्म से पित्तरगण एक वर्ष के लिए तृप्त हो जाते हैं। उसी आधार से रूची ऋषि के चारों पूर्वज पित्तरों ने पैरोल पर आकर काल प्रेरणा से रूची ऋषि को भ्रमित करके वेदों अनुसार शास्त्रोक्त साधना छुड़वाकर विवाह कराकर श्रद्ध आदि शास्त्रविरूद्ध कर्मकाण्ड के लिए प्रेरित किया। उस भले ब्राह्मण को भी पित्तर बनाकर छोडा। पृथ्वी पर आकर पित्तर रूपी भूत किसी व्यक्ति (स्त्री-पुरूष) में प्रवेश करके भोजन का आनंद लेते हैं। अन्य के शरीर में प्रवेश करके भोजन खाते हैं। भोजन की सूक्ष्म वासना से उनका सूक्ष्म शरीर तृप्त होता है। लेकिन एक वर्ष के लिए नहीं। यदि कोई पिता-दादा, दादी, माता आदि-आदि किसी पशु के शरीर को प्राप्त हैं तो उसको कैसे तृप्ति होग��? उसको दस-पंद्रह किलोग्राम चारा खाने को चाहिए। कोई श्राद्ध करने वाला गुरु-पुरोहित भूसा खाता देखा है। आवश्यक नहीं है कि सबके माता-पिता, दादा-दादी आदि-आदि पित्तर बने हों। कुछ के पशु-पक्षी आदि अन्य योनियों को भी प्राप्त होते हैं। परंतु श्राद्ध सबके करवाए जाते हैं। इसे कहते हैं शास्त्रविधि त्यागकर मनमाना आचरण यानि शास्त्र विरूद्ध भक्ति।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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pradeepdasblog · 4 months ago
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart54 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart55
सूक्ष्मवेद में इस शास्त्र विरूद्ध धार्मिक क्रियाओं यानि साधनाओं पर तर्क इस प्रकार किया है कि घर के सदस्य क#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणpart54 क्या करते-कराते हैं:-
कुल परिवार तेरा कुटम्ब-कबीला, मसलित एक ठहराई।
बांध पींजरी (अर्थी) ऊपर धर लिया, मरघट में ले जाई।
अग्नि लगा दिया जब लम्बा, फूंक दिया उस ठांही।
पुराण उठा फिर पंडित आए, पीछे गरूड़ पढ़ाई।
प्रेत शिला पर जा विराजे, पित्तरों पिण्ड भराई।
बहुर श्राद्ध खाने कूं आए, काग भए कलि माहीं।
जै सतगुरू की संगति करते, सकल कर्म कटि जाई।
अमरपुरी पर आसन होता, जहाँ धूप न छांई।
शब्दार्थ: कुछ व्यक्ति मृत्यु के पश्चात् उपरोक्त क्रियाएँ तो करते ही हैं, साथ में गरूड़ पुराण का पाठ भी करते हैं। परमेश्वर कबीर जी ने सूक्ष्मवेद (तत्वज्ञान) की वाणी में स्पष्ट किया है कि लोकवेद (दंत कथा) के आधार से ज्ञानहीन गुरूजन मृतक की आत्मा की शांति के लिए गरुड़ पुराण का पाठ करते हैं। गरुड़ पुराण में एक विशेष प्रकरण है कि जो व्यक्ति धर्म-कर्म ठीक से नहीं करता तथा पाप करके धन उपार्जन करता है, मृत्यु के उपरांत उसको यम के दूत घसीटकर ले जाते हैं। ताम्बे की धरती गर्म होती है, नंगे पैरों उसे ले जाते हैं। उसे बहुत पीड़ा देते हैं। जो शुभ कर्म करके गए होते हैं, वे स्वर्ग में हलवा-खीर आदि भोजन खाते दिखाई देते हैं। उस धर्म-कर्महीन व्यक्ति को भूख-प्यास सताती है। वह कहता है कि भूख लगी है, भोजन खाऊँगा। यमदूत उसको पीटते हैं। कहते हैं कि यह भोजन खाने के कर्म तो नहीं कर रखे। चल तुझे धर्मराज के पास ले चलते हैं। जैसा तेरे लिए आदेश होगा, वैसा ही करेंगे। धर्मराज उसके कर्मों का लेखा देखकर कहता है कि इसे नरक में डालो या प्रेत व पित्तर, वृक्ष या पशु-पक्षियों की योनि दी जाती हैं। पित्तर योनि भूत प्रजाति की श्रेष्ठ योनि है। यमलोक में भूखे-प्यासे रहते हैं। उनकी तृप्ति के लिए श्राद्ध निकालने की प्रथा शास्त्रविरूद्ध मनमाने आचरण के तहत शुरू की गई है। कहा जाता है कि एक वर्ष में जब आसौज (अश्विन) का महीना आता है तो भादवे (भाद्र) महीने की पूर्णमासी से आसौज महीने की अमावस्या तक सोलह श्राद्ध किए जाएँ। जिस तिथि को जिसके परिवार के सदस्य की मृत्यु होती है, उस दिन वर्ष में एक दिन श्राद्ध किया जाए। ब्राह्मणों को भोजन करवाया जाए। जिस कारण से यमलोक में पित्तरों के पास भोजन पहुँच जाता है। वे एक वर्ष तक तृप्त रहते हैं। कुछ भ्रमित करने वाले गुरूजन यह भी कहते हैं कि श्राद्ध के सोलह दिनों में यमराज उन पित्तरों को नीचे पृथ्वी पर आने की अनुमति देता है। पित्तर यमलोक (नरक) से आकर श्रद्ध के दिन भोजन करते हैं। हमें दिखाई नहीं देते या हम पहचान नहीं सकते। * भ्रमित करने वाले गुरूजन अपने द्वारा बताई शास्त्रविरुद्ध साधना की सत्यता के लिए इस प्रकार के उदाहरण देते हैं कि रामायण में एक प्रकरण लिखा है कि वनवास के दिनों में श्राद्ध का समय आया तो सीता जी ने भी श्रद्ध किया। भोजन खाते समय सीता जी को श्री रामचन्द्र जी पिता दशस्थ सहित रघुकुल के कई दादा-परदादा दिखाई दिए। उन्हें देखकर सीता जी को शर्म आई। इसलिए मुख पर पर्दा (घूंघट) कर लिया।
* विचार करो पाठकजनो श्री रामचन्द्र के सर्व वंशज प्रेत-पित्तर बने हैं तो अन्य सामान्य नागरिक भी वही क्रियाएँ कर रहे हैं। वे भी नरक में पित्तर बनकर पित्तरों के पास जाऐंगे। इस कारण यह शास्त्रविधि विरूद्ध साधना है जो पूरा हिन्दू समाज कर रहा है। श्रीम‌द्भगवत गीता के अध्याय 9 का श्लोक 25 भी यही कहता है कि जो पित्तर पूजा (श्राद्ध आदि) करते हैं, वे मोक्ष प्राप्त नहीं कर पाते, वे यमलोक में पित्तरों को प्राप्त होते हैं।
* जो भूत पूजा (अस्थियाँ उठाकर पुरोहित द्वारा पूजा कराकर गंगा में बहाना, तेरहवीं, सतरहवीं, महीना, छः माही, वर्षी आदि-आदि) करते हैं, वे प्रेत बनकर गये स्थान पर प्रेत शिला पर बैठे होते हैं।
* कुछ व्यक्तियों को धर्मराज जी कर्मानुसार पशु, पक्षी, वृक्ष आदि-आदि के शरीरों में भेज देता है।
* परमात्मा कबीर जी समझाना चाहते हैं कि हे भोले प्राणी! गरुड़ पुराण का पाठ उसे मृत्यु से पहले सुनाना चाहिए था ताकि वह परमात्मा के विधान को समझकर पाप कर्मों से बचता। पूर्ण गुरू से दीक्षा लेकर अपना मोक्ष करता। जिस कारण से वह न प्रेत बनता, न पित्तर बनता, न पशु-पक्षी आदि-आदि के शरीरों में कष्ट उठाता। मृत्यु के पश्चात् गरूड़ पुराण के पाठ का कोई लाभ नहीं मिलता।
सूक्ष्मवेद (तत्वज्ञान) में तथा चारों वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद) तथा इन चारों वेदों के सारांश गीता में स्पष्ट किया है कि उपरोक्त ��न-उपासना नहीं करनी चाहिए क्योंकि ये शास्त्रों में वर्णित न होने से मनमाना आचरण है जो गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में व्यर्थ बताया है। शास्त्रोक्त साधना करने का आदेश दिया है। सर्व हिन्दू समाज उपरोक्त आन-उपासना करते हैं जिससे भक्ति की सफलता नहीं होती। जिस कारण से नरकगामी होते हैं तथा प्रेत-पित्तर, पशु-पक्षी आदि के शरीरों में महाकष्ट उठाते हैं। > दास (लेखक) का उद्देश्य किसी की साधना की आलोचना करना नहीं है, अपितु आप जी को सत्य साधना का ज्ञान करवाकर इन कष्टों से बचाना है। प्रसंग चल रहा है कि जो शास्त्रविरूद्ध साधना करते हैं, उनके साथ महाधोखा हो रहा है। बताया है कि-
1. मृतक की गति (मोक्ष) के लिए पहले तो अस्थियाँ उठाकर गुरूजी के द्वारा पूजा करवाकर गंगा दरिया में प्रवाहित की और बताया गया कि इसकी गति हो गई।
2. उसके पश्चात् तेरहवीं, सतरहीं, महीना, छः माही, वर्षी आदि-आदि क्रियाएँ उसकी गति करवाने के लिए कराई।
3. पिण्डदान किया गति करवाने के लिए।
4 . श्राद्ध करने लगे, उसे यमलोक में तृप्त करवाने के लिए।
* श्रद्धों ��ें गुरू जी भोजन बनाकर सर्वप्रथम कुछ भोजन छत पर रखता है। कौआ उस भोजन को खाता है। पुरोहित जी कहता है कि देख! तेरा पिता कौआ बनकर भोजन खा रहा है। कौए के भोग लगाने से श्राद्ध की सफलता बताते हैं।
* परमेश्वर कबीर जी ने यही भ्रम तोड़ा है। कहा है कि आपके तत्वज्ञान नेत्रहीन (अंधे) धर्मगुरूओं ने अपने धर्म के शास्त्रों को ठीक से नहीं समझ रखा। आप जी को लोकवेद (दन्तकथा) के आधार से मनमानी साधना कराकर आप जी का जीवन नष्ट कर रहे हैं।
कबीर जी ने कहा है कि विचार करो। उपरोक्त अनेकों पूजाऐं कराई मृतक पित्ता की गति कराने के लिए, अंत में कौआ बनवाकर दम लिया। अब श्राद्धों का आनंद गुरू जी ले रहे हैं। वे गुरू जी भी नरक तथा पशु-पक्षियों की योनियों को प्राप्त होंगे। यह दास (रामपाल दास) परमात्मा कबीर जी द्वारा बताए तत्वज्ञान द्वारा समझाकर सत्य साधना शास्त्रविधि अनुसार बताकर आप तथा आपके अज्ञानी धर्मगुरूओं का कल्याण करवाने के लिए यह परमार्थ कर रहा है। मेरे अनुयाई भी इसी दलदल में फॅसे थे। इसी तत्वज्ञान को समझकर शास्त्रों में वर्णित सत्य साधना को अपनी आँखों देखकर अकर्तव्य साधना त्यागकर कर्तव्य शास्त्रोक्त साधना करके अपना तथा परिवार के जीवन को धन्य बना रहे हैं। ये दान देते हैं। फिर इन पुस्तकों को छपवाकर आप तक पहुँचाने के लिए पुस्तक बाँटने की सेवा निस्वार्थ निःशुल्क करते हैं। ये आपके हितैषी है। परंतु आप पुस्तक को ठीक से न पढ़कर इनका विरोध करते हैं, प्रचार में बाधा डालकर महापाप के भागी बनते हैं।
आप पुस्तक को पढ़ें तथा शांत मन से विचार करें तथा पुस्तकों में दिए शास्त्रों के अध्याय तथा श्लोकों का मेल करें। फिर गलत मिले तो हमें सूचित करें, आपकी शंका का समाधान किया जाएगा।
* श्राद्ध आदि-आदि शास्त्रविरूद्ध क्रियाएँ झूठे गुरूओं के कहने से करके अपना जीवन नष्ट करते हैं। यदि सतगुरू (तत्वदर्शी संत) का सत्संग सुनते, उसकी संगति करते तो सर्व पापकर्म नष्ट हो जाते। सत्य साधना करके अमर लोक यानि गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में कहे (शाश्वतं स्थानं) सनातन परम धाम में आप जी का आसन यानि स्थाई ठिकाना होता जहाँ कोई कष्ट नहीं। वहाँ पर परम शांति है क्योंकि वहाँ पर कभी जन्म-मृत्यु नहीं होता। गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में भी इस सनातन परम धाम को प्राप्त करने को कहा है। उसके लिए गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में ��त्वदर्शी संतों से शास्त्रोक्त ज्ञान व साधना प्राप्त करने को कहा है। वह तत्वदर्शी संत वर्तमान (इक्कीसवीं सदी) में यह दास (रामपाल दास) है। आओ और अपना कल्याण करवाओ।
भूत पूजा तथा पित्तर पूजा क्या है? यह आप जी ने ऊपर (पहले) पढ़ा। इन पूजाओं के निषेध का प्रमाण पवित्र गीता शास्त्र के अध्याय 9 श्लोक 25 में लिखा है जो आप जी को पहले वर्णन कर दिया है कि भूत पूजा करने वाले भूत बनकर भूतों के समूह में मृत्यु उपरांत चले जाऐंगे। पित्तर पूजा करने वाले पित्तर लोक में पित्तर योनि प्राप्त करके पित्तरों के पास चले जाऐंगे। मोक्ष प्राप्त प्राणी सदा के लिए जन्म-मरण से मुक्त हो जाता है। > प्रेत (भूत) पूजा तथा पित्तर पूजा उस परमेश्वर की पूजा नहीं है। इसलिए गीता शास्त्र अनुसार व्यर्थ है।
> वेदों में भूत-पूजा व पित्तर पूजा यानि श्राद्ध आदि कर्मकाण्ड को मूखों का कार्य बताया है।
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jyotis-things · 5 months ago
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart22 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart23
हिन्दू साहेबान आप शिक्षित हैं, कृपया अब ध्यान दें! : गीता अध्याय 9 श्लोक 25 में क्या कहा है? अध्याय 7 श्लोक 12-15 तथा 20-23 में क्या कहा है? सुनो! पढो!
गीता अध्याय 9 श्लोक 25 में कहा है: पित्तरों को पूजने वाले पित्तरों को प्राप्त होते हैं यानि पित्तर बनते हैं। भूत पूजने वाले भूत बनते हैं। देवताओं को पूजने वाले देव लोक में जाते हैं। मेरे भक्त मुझे प्राप्त होते हैं। प्राप्त तो करना है परमात्मा को, आप शिव लोक तथा विष्णु लोक को प्राप्त करके अपने को धन्य मान बैठे हो। गीता के अमृत ज्ञान को फिर से पढ़ो। गीता अध्याय 7 श्लोक 12-15 में तीनों गुणों यानि रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी तथा तमगुण शिव जी की पूजा करते हैं। जिनका ज्ञान इस त्रिगुणमयी माया द्वारा हरा जा चुका है यानि जो इन देवताओं से ऊपर किसी को नहीं मानते। वे राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए, मनुष्यों में नीच, दूषित कर्म करने वाले मूर्ख मुझे नहीं भजते। फिर इसी अध्याय 7 श्लोक 20-23 में इन तीन प्रधान देवताओं से अन्य देवताओं की पूजा करने वालों को कहा है कि इन देवताओं को मैंने ही कुछ शक्ति दे रखी है। जो देवताओं को पूजते हैं, उन अल्पबुद्धि (अज्ञानियों) का वह फल नाशवान है। देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं। मेरा भक्त मुझे प्राप्त होता है।
विचारणीय विषय है कि इस पुस्तक हिमालय तीर्थ के इस प्रकरण के अनुसार श्री शिव जी ने ब्रह्मा जी का सिर काट दिया था जो पांचवा था। वह शिव जी के हाथ से चिपक गया। उससे छुटकारा पाने के लिए शिव जी सब जगह गया, परंतु ब्रह्म हत्या का पाप नहीं छूटा। चौदह भुवन घूमे, पाप नहीं कटा। जैसे ही बदरिकाश्रम पहुँचे तो ब्रह्मा का सिर (कपाल) सहसा हाथ से छूट गया। वह ब्रह्मा का सिर बदरिकाश्रम में ब्रह्म शिला के नाम से विख्यात है। इसे ब्रह्म कपाल तीर्थ भी कहते हैं। ��ह भी तीर्थ बन गया। वहाँ पिंडदान करने का बहुत लाभ बताया है।
सूक्ष्मवेद में कहा है कि :-
गरीब, भूत जूनी तहाँ छूटत हैं, पिंड दान करंत। गरीबदास जिंदा कहै, नहीं मिले भगवंत ।।
अर्थात् संत गरीबदास जी ने कहा है कि पिण्ड दान करने से भूत योनि छूट जाती है। फिर वह जीव गधे की योनि में चला जाता है। क्या मुक्ति हुई? वेदों में इस कर्मकाण्ड को अविद्या यानि मूर्ख साधना कहा है।
4G
इस प्रकरण से यह सिद्ध किया है कि मूर्ति पूजा, देव पूजा आदि शंकराचार्य जी ने दृढ़ता के साथ प्रारंभ करवा दी। उसी को पूरा हिन्दू समाज घसीट रहा है। सब श्राद्ध करते हैं। सब मूर्ति पूजा, भूत पूजा करते हैं। भूत बने हैं, तभी श्राद्ध करने पड़े। यह सब प्रपंच काल ब्रह्म द्वारा किया गया है। इति सिद्धम् कि :- "हिन्दू साहेबान नहीं समझे गीता व वेदों का ज्ञान।"
"अद्भुत प्रसंग"
पृष्ठ 41 पर पुस्तक हिमालय तीर्थ में लिखा है कि भगवान शंकर व पार्वती कपाल मोचन में सुंदर महल बनवाकर निवास करते थे। उस स्थान की विशेषताओं से मुग्ध होकर उस मकान पर कब्जा करने के उद्देश्य से भगवान विष्णु एक बालक रूप धारण करके ऋषि गंगा के पास बुरी तरह हाथ-पैर मारकर रोने लगे। शिव भगवान व माता पार्वती जी स्नान करने जा रहे थे। पार्वती को दया आई। कहा कि कोई पत्थर हृदय स्त्री बालक को छोड गई। उसे उठाकर अपने मकान में छोड आई। शिव जी ने मना भी किया था कि यह कोई मायावई देव लगता है। पार्वती नहीं मानी। जब स्नान करके शिव जी व पार्वती जी लौटे तो तब तक उस बालक ने चतुर्भुज नारायण रूप धारण करके सारे क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था। उसकी नारायण रूप में पूजा होती है। शिव जी विवाद से बचकर उसे छोड़कर केदार नाथ चले गए। वहाँ स्थित हो गए। वहाँ शिव का ज्योतिर्लिंग स्थापित कर दिया। विचार करो : इन देवताओं की कहानियों से क्या शिक्षा मिलेगी? क्या
दूसरे के घर पर कब्जा करना नेक व्यक्ति का कार्य है? महादुष्ट व्यक्ति ऐसी हरकत करता है। क्या ऐसे व्यक्ति देवता माने जा सकते हैं? क्या इनकी पूजा करने को मन करेगा? क्या श्री विष्णु जी ऐसी बेहूदी हरकत कर सकते हैं? क्या वे बैकुंठ (Heaven) को छोड़कर इस कपाल मोचन पर रहना चाहेंगे? यह सब पुराणों का बोया बीज है। पाठकजन प्रमाण के लिए लगी फोटोकॉपी भी पढ़ें ताकि आपको भ्रम न रह जाए कि रामपाल ने कुछ मिलाकर लिखा है। सन् 2013 में केदार नाथ पर लाखों श्रद्धालु पूजा के लिए गए थे। तेज बारिश हुई, बाढ आ गई। पर्वत गिर गए। लगभग एक ��ाख भक्त व भक्तमति बहनें, बच्चे मारे गए, अनर्थ हो गया। यदि भक्ति शास्त्रोक्त है तो भक्त की रक्षा परमात्मा करते हैं। यह सब लोक वेद यानि दंत कथा है जो इस हिमालय तीर्थ पुस्तक में बताई हैं। इस साधना से अनमोल मानव जीवन नष्ट हो जाता है। ये सब प्रपंच यानि षड्यंत्र काल ब्रह्म ने किए हैं जीवों से शास्त्रविधि के विपरीत फिजूल की पूजा करवाने के लिए। उनका मानव जीवन नष्ट करवाने के लिए।नर तथा नारायण ऋषियों ने कठिन तप (घोर तप) किया। घोर तप करने के विषय में गीता क्या कहती है, कृपया पढ़ें निम्न प्रसंग :-
86%
* विश्व में जितने धर्म (पंथ) प्रचलित हैं, उनमें सनातन धर्म (सनातन पंथ जिसे आदि शंकराचार्य के बाद उनके द्वारा बताई साधना करने वालों के जन-समूह को हिन्दू कहा जाने लगा तथा सनातन पंथ को हिन्दू धर्म के नाम से जाना जाने लगा, यह हिन्दू धर्म) सबसे पुरातन है।
हिन्दू धर्म की रीढ़ पवित्र चारों वेद (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद) तथा पवित्र श्रीमद्भगवत गीता है। सत्ययुग के प्रारंभ में केवल चार वेदों के आधार से विश्व का मानव धर्म-कर्म किया करता था। शास्त्रोक्त साधना लगभग एक लाख वर्ष तक ठीक से चली। ये चारों वेद प्रभुदत्त (God Given) हैं। इन्हीं का सार श्रीमद्भगवत गीता है। इसलिए यह गीता शास्त्र भी प्रभुदत्त (God Given) हुआ ।
ध्यान देने योग्य है कि जो ज्ञान स्वयं परमात्मा ने बताया है, वह ज्ञान पूर्ण सत्य होता है। इसलिए ये दोनों शास्त्र निःसंदेह विश्वसनीय हैं। प्रत्येक मानव को इनके अंदर बताई साधना करनी चाहिए। वह साधना शास्त्रविधि अनुसार कही जाती है। इन शास्त्रों में जो साधना नहीं करने को कहा है, उसे जो करता है तो वह शास्त्रविधि त्यागकर मनमाना आचरण कर रहा है जिसके विषय में गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में इस प्रकार कहा है :- ➤ श्लोक नं. 23 जो पुरूष यानि साधक शास्त्रविधि को त्यागकर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है, वह न सिद्धि को प्राप्त होता है, न परम
गति यानि पूर्ण मोक्ष को और न सुख को ही। (गीता अध्याय 16 श्लोक 23) ➤ श्लोक नं. 24: इससे तेरे लिए इस कर्तव्य यानि जो भक्ति कर्म करने योग्य हैं और अकर्तव्य यानि जो भक्ति कर्म न करने योग्य हैं, इस व्यवस्था में शास्त्र ही प्रमाण हैं। ऐसा जानकर तू शास्त्रविधि से नियत कर्म यानि जो शास्त्रों में करने को कहा है, वो भक्ति कर्म ही करने योग्य हैं। (गीता अध्याय 16 श्लोक 24)
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pawankumar1976 · 10 months ago
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#श्राद्ध_करने_की_श्रेष्ठ_विधि
#SantRampalJi Maharaj
#श्राद्ध #पितृपक्ष #ancestors #ancestorworship #pinddaan
#pitrupaksha #pitrapaksh #shradh #amavasya #astrology #karma #vastu #reels #trending🌀
जै सतगुरू की संगत करते, सकल कर्म कटि जाईं।
अमर पुरि पर आसन होते, जहाँ धूप न छाँइ।।
संत गरीबदास जी ने परमेश्वर कबीर जी से प्राप्त सूक्ष्मवेद में कहा है कि यदि सतगुरू (तत्वदर्शी सन्त) की शरण में जाकर दीक्षा लेते तो सर्व कर्मों के कष्ट कट जाते अर्थात् न प्रेत बनते, न गधा, न बैल बनते।
🌀श्राद्ध आदि शास्त्रविरूद्ध क्रियाऐं झूठे गुरूओं के कहने से करके अपना जीवन नष्ट करते हैं। यदि सतगुरू (तत्वदर्शी संत) का सत्संग सुनते, उसकी संगति करते तो सर्ब पापकर्म नष्ट हो जाते। सत्य साधना करके अमर लोक यानि गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में कहे (शाश्वतं स्थानं) सनातन परम धाम में आप जी का आसन यानि स्थाई ठिकाना होता जहाँ कोई कष्ट नहीं। वहाँ पर परम शांति है क्योंकि वहाँ पर कभी जन्म-मृत्यु नहीं होता।
🌀श्राद्ध क्रिया कर्म मनमाना आचरण है यह शास्त्रों में अविद्या कहा गया है बल्कि गीता अध्याय 16 श्लोज 23 और 24 में कहा है कि जो शास्त्र विधि को त्याग कर मनमाना आचरण करते हैं उनकी ना तो गति होती है न ही उन्हें किसी प्रकार का आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है इसलिए शास्त्र ही प्रमाण है।
🌀गीता भी हमें श्राद्ध के विषय में निर्णायक ज्ञान देती है। गीता के अध्याय 9 के श्लोक 25 में कहा है कि देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं, भूतों को पूजने (पिण्ड दान करने) वाले भूतों को प्राप्त होते हैं अर्थात भूत बन जाते हैं, शास्त्रानुकूल (पवित्र वेदों व गीता अनुसार) पूजा करने वाले मुझको ही प्राप्त होते हैं अर्थात ब्रह्मलोक के स्वर्ग व महास्वर्ग आदि में कुछ ज्यादा समय मौज कर लेते हैं और पुण्यरूपी कमाई खत्म होने पर फिर से 84 लाख योनियों में प्रवेश कर जाते हैं।
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gourishankarsblog · 10 months ago
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart24 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart25
पुराण शास्त्र हैं या नहीं ?
इस गीता अध्याय 7 श्लोक 15 में स्पष्ट किया है कि जिन साधकों की आस्था रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी तथा तमगुण शिव जी में अति दृढ है तथा जिनका ज्ञान लोक वेद (दंत कथा) के आधार से इस त्रिगुणमयी माया के द्वारा हरा जा चुका है। वे इन्हीं तीनों प्रधान देवताओं व अन्य देवताओं की भक्ति पर दृढ़ हैं। इनसे ऊपर मुझे (गीता ज्ञान दाता को) नहीं भजते। ऐसे व्यक्ति राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए मनुष्यों में नीच (नराधमाः) दूषित कर्म करने वाले मूर्ख हैं। ये मुझको (गीता ज्ञान देने वाले काल ब्रह्म को) नहीं भजते।
प्रश्न 13 अब हिन्दू साहेबान कहेंगे कि पुराणों में श्राद्ध करना, कर्मकाण्ड करना बताया है। तीर्थों पर जाना पुण्य बताया है। ऋषियों ने तप किए। क्या उनको भी हम गलत मानें? श्री ब्रह्मा जी ने, श्री भक्तोंका पुनर्जन्म नहीं होता।*) विष्णु जी तथा शिव जी ने भी तप किए। क्या वे भी गलत करते रहे हैं?
उत्तर : ऊपर श्रीमद्भगवत गीता से स्पष्ट कर दिया है कि जो घोर तप करते हैं, वे मूर्ख हैं, पापाचारी क्रूरकर्मी हैं, चाहे कोई ऋषि हो या अन्य। उनको वेदों का क-ख का भी ज्ञान ��हीं था, सामान्य हिन्दू को तो होगा कहाँ से? गीता में ��ीर्थों पर जाना कहीं नहीं लिखा है। इसलिए तीर्थ भ्रमण गलत है। शास्त्रविधि त्यागकर मनमाना आचरण है जो गीता में व्यर्थ कहा है।
प्रश्न 14 : क्या पुराण शास्त्र नहीं है?
उत्तर :- पुराणों का ज्ञान ऋषियों का अपना अनुभव है। वेद व गीता प्रभुदत्त (God Given) ज्ञान है जो सत्य है। ऋषियों ने वेदों को पढ़ा। लेकिन ठीक से नहीं समझा। जिस कारण से लोकवेद (एक-दूसरे से सुने ज्ञान के) के आधार से साधना की। कुछ ज्ञान वेदों से लिया यानि ओम् (ॐ) नाम का जाप यजुर्वेद अध्याय 40 श्लोक 15 से लिया। तप करने का ज्ञान ब्रह्मा जी से लिया। खिचड़ी ज्ञान के अनुसार साधना करके सिद्धियाँ प्राप्त करके किसी को श्राप, किसी को आशीर्वाद देकर जीवन नष्ट कर गए। गीता में कहा है कि जो मनमाना आचरण यानि शास्त्रविधि त्यागकर साधना करते हैं। उनको कोई लाभ नहीं होता। जो घोर तप को तपते हैं, वे राक्षस स्वभाव के हैं। प्रमाण के लिए : एक बार पांडव वनवास में थे। दुर्योधन के कहने से दुर्वासा ऋषि अठासी हजार ऋषियों को लेकर पाण्डवों के यहाँ गया। मन में दोष लेकर गया था कि पांडव मेरी मन इच्छा अनुसार भोजन करवा नहीं पाएँगे। मैं उनको श्राप दे दूँगा। वे नष्ट हो जाएँगे। क्या यह नेक व्यक्ति का कर्म है? दुष्टात्मा ऐसा करता है। > विचार करो : दुर्वासा महान तपस्वी था। उस घोर तप करने वाले पापाचारी नराधम ने क्या जुल्म करने की ठानी। दुःखियों को और दुःखी करने के उद्देश्य से गया। क्या ये राक्षसी कर्म नहीं था? क्या यह क्रूरकर्मी नराधम नहीं था?
इसी दुर्वासा ऋषि ने बच्चों के मजाक करने से क्रोधवश यादवों को श्राप दे दिया। गलती तीन-चार बच्चों ने (प्रद्यूमन पुत्र श्री कृष्ण आदि ने) की, श्राप पूरे यादव कुल का नाश होने का दे दिया। दुर्वासा के श्राप से 56 करोड़ (छप्पन करोड़) यादव आपस में लड़कर मर गए। श्री कृष्ण जी भी मारे गए। क्या ये राक्षसी कर्म दुर्वासा का नहीं था?
* अन्य कर���म पुराण की रचना करने वाले ऋषियों के सुनो :- वशिष्ठ ऋषि ने एक राजा को राक्षस बनने का श्राप दे दिया। वह राक्षस बनकर दुःखी हुआ। वशिष्ठ ऋषि ने एक अन्य राजा को इसलिए मरने का श्राप दे दिया जिसने ऋषि वशिष्ठ से यज्ञ अनुष्ठान न करवाकर अन्य से करवा लिया। उस राजा ने वशिष्ठ ऋषि को मरने का श्राप दे दिया। दोनों की मृत्यु हो गई।
हिन्दू साहेबान! नहीं समझे गीता, वेद, पुराण
वशिष्ठ जी का पुनः जन्म इस प्रकार हुआ जो पुराण कथा है :- दो ऋषि जंगल में तप कर रहे थे। एक अप्सरा स्वर्ग से आई। बहुत सुंदर थी। उसे देखने मात्र से दोनों ऋषियों का वीर्य संखलन (वीर्यपात) हो गया। दोनों ने बारी-बारी जाकर कुटिया में रखे खाली घड़े में वीर्य छोड़ दिया। उससे एक तो वशिष्ठ ऋषि वाली आत्मा का पुनर्जन्म हुआ। नाम वशिष्ठ ही रखा गया। दूसरे का कुंभज ऋषि नाम रखा जो अगस्त ऋषि कहलाया।
विश्वामित्र ऋषि के कर्म : राज त्या���कर जंगल में गया। घोर तप किया। सिद्धियाँ प्राप्त की। वशिष्ठ ऋषि ने उसे राज ऋषि कहा। उससे क्षुब्ध (क्रोधित) होकर वशिष्ठ जी के सौ पुत्रों को मार दिया। जब वशिष्ठ ऋषि ने उसे ब्रह्म-ऋषि कहा तो खुश हुआ क्योंकि विश्वामित्र राज ऋषि कहने से अपना अपमान मानता था। ब्रह्म ऋषि कहलाना चाहता था।
विचार करो! क्या ये राक्षसी कर्म नहीं हैं? ऐसे-ऐसे ऋषियों की रचनाएँ हैं अठारह पुराण।
एक समय ऋषि विश्वामित्र जंगल में कुटिया में बैठा था। एक मैनका नामक उर्वशी स्वर्ग से आकर कुटी के पास घूम रही थी। विश्वामित्र उस पर आसक्त हो गया। पति-पत्नी व्यवहार किया। एक कन्या का जन्म हुआ। नाम शकुन्तला रखा। कन्या छः महीने की हुई तो उर्वशी स्वर्ग में चली गई। बोली मेरा काम हो गया। तेरी औकात का पता करने इन्द्र ने भेजी थी, वह देख ली। कहते हैं विश्वामित्र उस कन्या को कन्व ऋषि की कुटिया के सामने रखकर फिर से गहरे जंगल में तप करने गया। कन्व ऋषि ने उस कन्या को पाल-पोषकर राजा दुष्यंत से विवाह किया।
> विचार करो : विश्वामित्र पहले उसी गहरे जंगल में घोर तप करके आया ही था। आते ही वशिष्ठ जी के पुत्र मार डाले। उर्वशी से उलझ गया। नाश करवाकर फिर डले ढोने गया। फिर क्या वह गीता पढ़कर गया था। उसी लोक वेद के अनुसार शास्त्रविधि रहित मनमाना आचरण किया। फिर विश्वामित्र ऋषि ने राजा हरिशचन्द्र से छल करके राज्य लिया। राजा हरिशचन्द्र, उनकी पत्नी तारावती तथा पुत्र रोहतास के साथ अत्याचार किए।
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mangesh1982 · 2 months ago
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🌀 श्राद्ध किसके लिए निकालते हैं। श्राद्ध उनके लिए करते हैं जो मृत्यु को प्राप्त हो गए यानी प्रेत पित्तर बन गए। गीता अध्याय 9 श्लोक 25 में इसके लिए मना किया गया है।
विष्णु पुराण के अंदर लिखा हुआ है, व्यास जी कह रहे हैं कि हे राजन! श्राद्ध के समय यदि एक हजार ब्राह्मण बैठे हों। भोजन करने आये हों।
और एक तरफ योगी बैठ जा। तो वो ब्राह्मणों समेत, पित्तरों समेत, यजमानों समेत सबका उद्धार कर देता है। वह योगी कौन है?
गीता अध्याय 2 श्लोक 53 में बताया है कि अर्जुन जब भिन्न भिन्न प्रकार से भर्मित करने वाले वचनों से तेरी बुद्धि हटकर एक तत्वज्ञान में स्थिर हो जाएगी। तब तो तू योगी बनेगा। तब तू योग को प्राप्त होगा। संत रामपाल जी महाराज जी के शिष्य सारे योगी हैं। और जैसे संत रामपाल जी महाराज जी के आश्रमों में समागम होते हैं उनमें लाखों योगी भोजन करते हैं। वहां दिए गए दान से पितरों का भी उद्धार, भूतों का भी उद्धार और दान करने वालों का भी उद्धार होता है।
🌀श्राद्ध की शास्त्र अनुकूल विधि संत रामपाल जी महाराज के सभी सतलोक आश्रमों में हर दूसरे तीसरे महीने समागम में की जाती ही। वहां तो श्राद्ध हर दूसरे तीसरे महीने निकालते हैं। आप जी तो साल में एक ही बार निकालते हो।
🌀विष्णु पुराण, तृतीय अंश के अध्याय 15 में श्लोक 55-56, पृष्ठ 213 पर लिखा है कि एक योगी (शास्त्रानुकूल सत्य साधक) अकेला ही पित्तरों तथा एक हजार ब्राह्मणों तथा यजमान सहित सर्व का उद्धार कर देगा। शास्त्रानुकूल सत्य साधना केवल संत रामपाल जी महाराज करवाते हैं इसलिए उनके शिष्य ही वह योगी हैं जिसका उपरोक्त शास्त्र में जिक्र किया है।
🌀पवित्र गीता अध्याय 9 मंत्र 25 व 23 से 24 तथा अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 तथा 20 से 23 में भगवान ने स्पष्ट मना किया है श्राद्ध करने (पितर पूजा करने), पिण्ड दान करने(भूत पूजा करने) से तथा अन्य देवताओं की पूजा करने से मना किया है। कहा है कि जो पित्तर पूजा करते हैं अर्थात श्राद्ध निकालते हैं वे पित्तरों के पास जायेंगे अर्थात पित्तर बन जायेंगे,
मुक्त नहीं हो सकते। पिण्ड दान अर्थात भूत पूजने वाले भी भूत बनेंगे तथा देवताओं को पूजने वाले
देवताओं के पास जायेंगे, उनके नौकर लगेंगे। फिर सर्व देवताओं (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा
श्री शिव जी) सहित तथा इनके उपासक क्षणिक सुख भोगकर मृत्यु को प्राप्त होंगे, मुक्ति नहीं होगी।
यह मूर्खों की पूजा है।
🌀कबीर परमेश्वर जी ने कहा है कि -
एकै साधे सब सधै, सब साधै सब जाय।
माली सीचें मूल को, फलै फूलै अघाय।।
संत रामपाल जी महाराज, सर्वसुख व पूर्णमोक्ष दायक शास्त्रानुकूल भक्ति साधना (धार्मिक अनुष्ठान) करवाते हैं, जिसके करने से साधक पितर, भूत नहीं बनता अपितु पूर्ण मोक्ष प्राप्त करता है तथा जो पूर्वज गलत साधना करके पित्तर भूत बने हैं, उनका भी छुटकारा हो जाता है।
🌀परमात्मा कबीर जी समझाते हैं कि हे भोले प्राणी! गरूड़ पुराण का पाठ जीव को मृत्यु से पहले सुनाना चाहिए था ताकि वह परमात्मा के विधान को समझकर पाप कर्मों से बचता। पूर्ण गुरू से दीक्षा लेकर अपना मोक्ष करता। जिस कारण से वह न प्रेत बनता, न पितर बनता, न पशु-पक्षी आदि-आदि के शरीरों में कष्ट उठाता। मृत्यु के पश्चात् गरूड़ पुराण के पाठ का कोई लाभ नहीं मिलता।
🌀सूक्ष्मवेद (तत्वज्ञान) में तथा चारों वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथवर्वेद) तथा इन चारों वेदों के सारांश गीता में स्पष्ट किया है कि आन-उपासना नहीं करनी चाहिए क्योंकि ये शास्त्रों में वर्णित न होने से मनमाना आचरण है जो गीता अध्याय 16 श्लोक 23, 24 में व्यर्थ बताया है। शास्त्रोक्त साधना करने का आदेश दिया है।
🌀मार्कण्डेय पुराण (गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित पृष्ठ 237) में श्राद्ध के विषय मे एक कथा का वर्णन मिलता है जिसमें रूची नामक एक ऋषि को अपने चार पूर्वज जो शास्त्र विरुद्ध साधना करके पितर बने हुए थे तथा कष्ट भोग रहे थे, दिखाई दिए। पितरों ने कहा कि बेटा रूची हमारे श्राद्ध निकाल, हम दुःखी हो रहे हैं। रूची ऋषि ने जवाब दिया की पित्रामहों वेद में कर्म काण्ड मार्ग (श्राद्ध, पिण्ड भरवाना आदि) को मूर्खों की साधना कहा है, अर्थात यह क्रिया व्यर्थ व शास्त्र विरुद्ध है।
🌀श्राद्ध आदि शास्त्रविरूद्ध क्रियाऐं करने से अनमोल जीवन नष्ट हो जाता है। यदि सतगुरू (तत्वदर्शी संत) का सत्संग सुनते, उसकी संगति करते तो सर्व पापकर्म नष्ट हो जाते। सत्य साधना करके अमर लोक यानि गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में कहे (शाश्वतं स्थानं) सनातन परम धाम में आप जी का आसन यानि स्थाई ठिकाना होता जहाँ कोई कष्ट नहीं। वहाँ पर परम शांति है क्योंकि वहाँ पर कभी जन्म-मृत्यु नहीं होता।
🌀भूत पूजा तथा पितर पूजा क्या है?
इन पूजाओं के निषेध का प्रमाण पवित्र गीता शास्त्र के अध्याय 9 श्लोक 25 में लिखा है कि भूत पूजा करने वाले भूत बनकर भूतों के समूह में मृत्यु उपरांत चले जाऐंगे। पितर पूजा करने वाले पितर लोक में पितर योनि प्राप्त करके पितरों के पास चले जाऐंगे। मोक्ष प्राप्त प्राणी सदा के लिए जन्म-मरण से मुक्त हो जाता है।
🌀श्री विष्णु पुराण के तीसरे अंश में अध्याय 15 श्लोक 55-56 पृष्ठ 153 पर लिखा है कि श्राद्ध के भोज में यदि एक योगी यानी शास्त्रोक्त साधक को भोजन करवाया जाए तो श्राद्ध में आए हजार ब्राह्मणों तथा यजमान के पूरे परिवार सहित सर्व पितरों का उद्धार कर देता है।
🌀कबीर, भक्ति बीज जो होये हंसा, तारूं तास के एकोत्तर वंशा।
श्राद्ध आदि निकालना शास्त्र विरुद्ध है, सत्य शास्त्रोक्त साधना करने वाले साधक की 101 पीढ़ी पार होती हैं। सत्य शास्त्रानुसार साधना केवल तत्वदर्शी संत दे सकता है जिसकी शरण में जाने के लिए गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में कहा गया है। वर्तमान में वह पूर्ण तत्वदर्शी संत केवल संत रामपाल जी महाराज जी हैं।
🌀गीता भी हमें श्राद्ध के विषय में निर्णायक ज्ञान देती है। गीता के अध्याय 9 के श्लोक 25 में कहा है कि देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं, भूतों को पूजने (पिण्ड दान करने) वाले भूतों को प्राप्त होते हैं अर्थात भूत बन जाते हैं, शास्त्रानुकूल (पवित्र वेदों व गीता अनुसार) पूजा करने वाले मुझको ही प्राप्त होते हैं अर्थात ब्रह्मलोक के स्वर्ग व महास्वर्ग आदि में कुछ ज्यादा समय मौज कर लेते हैं और पुण्यरूपी कमाई खत्म होने पर फिर से 84 लाख योनियों में प्रवेश कर जाते हैं।
🌀जीवित बाप के लठ्ठम लठ्ठा, मूवे गंग पहुचैया।
जब आवे आसोज का महीना, कौवा बाप बनईयां।
कबीर परमेश्वर जी ने बताया है कि जीवित पिता को तो समय पर टूक (रोटी) भी नहीं दिया जाता। मृत्यु के पश्चात् उसको पवित्र दरिया में बहाकर आता है। कितना खर्च करता है। अपने माता-पिता की जीवित रहते प्यार से सेवा करो। उनकी आत्मा को प्रसन्न करो। उनकी वास्तविक श्रद्धा सेवा तो यह है।
🌀"श्राद्ध और पितृ पूजा से जीव की गति नहीं होती"
प्रेत शिला पर जाय विराजे, फिर पितरों पिण्ड भराहीं।
बहुर श्राद्ध खान कूं आया, काग भये कलि माहीं।।
🌀जीवित बाप के लठ्ठम लठ्ठा, मूवे गंग पहुचैया।
जब आवे आसोज का महीना, कौवा बाप बनईयां।
जीवित बाप के साथ तो लड़ाई रखते हैं और उनके मरने के उपरांत उनके श्राद्ध निकालते हैं।
परमात्मा कहते हैं रे भोली सी दुनिया सतगुरु बिन कैसे सरिया।
बंदीछोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी से नाम उपदेश लेकर सतभक्ति करने से मनुष्य 84 लाख योनियों का कष्ट नहीं भोगता।
🌀श्राद्ध करने वाले पुरोहित कहते हैं कि श्राद्ध करने से वह जीव एक वर्ष तक तृप्त हो जाता है। फिर एक वर्ष में श्राद्ध फिर करना है। विचार करें:- जीवित व्यक्ति दिन में तीन बार भोजन करता था। अब एक दिन भोजन करने से एक वर्ष तक कैसे तृप्त हो सकता है? यदि प्रतिदिन छत पर भोजन रखा जाए तो वह कौवा प्रतिदिन ही भोजन खाएगा।
🌀भक्ति नहीं करने वाले व शास्त्रविरुद्ध भक्ति करने वाले, नकली गुरु बनाने वाले एवं पाप अपराध करने वालों को मृत्यु पश्चात्‌ यमदूत घसीटकर ले जाते हैं और नरक में भयंकर यातनाएं देते हैं। तत्पश्चात् 84 लाख कष्टदायक योनियों में जन्म मिलता है।
🌀तत्वदर्शी संत (गीता अ-4 श्लोक-34) से दीक्षा लेकर शास्त्रविधि अनुसार सतभक्ति करने वाले परमधाम सतलोक को प्राप्त होते हैं जहाँ जन्म-मरण, दुख, कष्ट व रोग नहीं होता है।
🌀नर सेती तू पशुवा कीजै, गधा, बैल बनाई।
छप्पन भोग कहाँ मन बौरे, कहीं कुरड़ी चरने जाई।।
मनुष्य जीवन में हम कितने अच्छे अर्थात् 56 प्रकार के भोजन खाते हैं। भक्ति न करने से या शास्त्रविरूद्ध साधना करने से गधा बनेगा, फिर ये छप्पन प्रकार के भोजन कहाँ प��राप्त होंगे, कहीं कुरड़ियों (रूड़ी) पर पेट भरने के लिए घास खाने जाएगा। इसी प्रकार बैल आदि-आदि पशुओं की योनियों में कष्ट पर कष्ट उठाएगा।
🌀श्राद्ध क्रिया कर्म मनमाना आचरण है यह शास्त्रों में अविद्या कहा गया है बल्कि गीता अध्याय 16 श्लोज 23 और 24 में कहा है कि जो शास्त्र विधि को त्याग कर मनमाना आचरण करते हैं उनकी ना तो गति होती है न ही उन्हें किसी प्रकार का आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है इसलिए शास्त्र ही प्रमाण है।
🌀जै सतगुरू की संगत करते, सकल कर्म कटि जाईं।
अमर पुरि पर आसन होते, जहाँ धूप न छाँइ।।
संत गरीबदास जी ने परमेश्वर कबीर जी से प्राप्त सूक्ष्मवेद में कहा है कि यदि सतगुरू (तत्वदर्शी सन्त) की शरण में जाकर दीक्षा लेते तो सर्व कर्मों के कष्ट कट जाते अर्थात् न प्रेत बनते, न गधा, न बैल बनते।
🌀जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी से उपदेश लेकर कबीर साहेब जी की भक्ति करने से सतलोक की प्राप्ति होती है।
सतलोक अविनाशी लोक है। वहां जाने के बाद साधक जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है और पूर्ण मोक्ष प्राप्त करता है।
🌀सत्य भक्ति वर्तमान में केवल संत रामपाल जी महाराज जी के पास है। जिससे इस दुःखों के घर संसार से पार होकर वह परम शान्ति तथा शाश्वत स्थान (सनातन परम धाम) प्राप्त हो जाता है जिसके विषय में गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा है तथा गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि तत्वदर्शी सन्त से तत्वज्ञान प्राप्त करके, उस तत्वज्ञान से अज्ञान का नाश करके, उसके पश्चात् परमेश्वर के उस परमपद की खोज करनी चाहिए। जहाँ जाने के पश्चात् साधक फिर लौटकर संसार में कभी नहीं आता।
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santoshdasi · 1 year ago
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परमेश्वर कबीर जी की मगहर लीला | 2D Animation | Satlok Ashram
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परमात्मा कबीर जी समझाते हैं कि हे भोले प्राणी! गरूड़ पुराण का पाठ उसे मृत्यु से पहले सुनाना चाहिए था ताकि वह परमात्मा के विधान को समझकर पाप कर्मों से बचता। पूर्ण गुरू से दीक्षा लेकर अपना मोक्ष करता। जिस कारण से वह न प्रेत बनता, न पितर बनता, न पशु-पक्षी आदि-आदि के शरीरों में
कष्ट उठाता। मृत्यु के पश्चात् गरूड़ पुराण के पाठ का कोई लाभ नहीं मिलता।
♦️सूक्ष्मवेद (तत्वज्ञान) में तथा चारों वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथवर्वेद) तथा इन चारों वेदों के सारांश गीता में स्पष्ट किया है कि आन-उपासना नहीं करनी चाहिए क्योंकि ये शास्त्रों में वर्णित न होने से मनमाना आचरण है जो गीता अध्याय 16 श्लोक 23,24 में व्यर्थ बताया है। शास्त्रोक्त साधना करने का आदेश दिया है।
मार्कण्डेय पुराण (गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित पृष्ठ 237) में श्राद्ध के विषय मे एक कथा का वर्णन मिलता है जिसमें रूची नामक एक ऋषि को अपने चार पूर्वज जो शास्त्र विरुद्ध साधना करके पितर बने हुए थे तथा कष्ट भोग रहे थे, दिखाई दिए। “पितरों ने कहा कि बेटा रूची हमारे श्राद्ध निकाल, हम दुःखी हो रहे हैं।" रूची ऋषि ने जवाब दिया की पित्रामहों वेद में कर्म काण्ड मार्ग (श्राद्ध, पिण्ड भरवाना आदि) को मूर्खों की साधना कहा है, अर्थात यह क्रिया व्यर्थ व शास्त्र विरुद्ध है।
♦️श्राद्ध आदि शास्त्रविरूद्ध क्रियाऐं झूठे गुरूओं के कहने से करके अपना जीवन नष्ट करते हैं। यदि सतगुरू (तत्वदर्शी संत) का सत्संग सुनते, उसकी संगति करते तो सर्ब पापकर्म नष्ट हो जाते। सत्य साधना करके अमर लोक यानि गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में कहे (शाश्वतं स्थानं) सनातन परम धाम में आप जी
का आसन यानि स्थाई ठिकाना होता जहाँ कोई कष्ट नहीं। वहाँ पर परम शांति है क्योंकि वहाँ पर कभी जन्म-मृत्यु नहीं होता।
♦️ भूत पूजा तथा पितर पूजा क्या है?
इन पूजाओं के निषेध का प्रमाण पवित्र गीता शास्त्र के अध्याय 9 श्लोक 25 में लिखा है जो आप जी को पहले वर्णन कर दिया है कि भूत पूजा करने वाले भूत बनकर भूतों के समूह में मृत्यु उपरांत चले जाऐंगे। पितर पूजा करने वाले पितर लोक में पितर योनि प्राप्त करके पितरों के पास चले जाऐंगे। मोक्ष प्राप्त प्राणी सदा के लिए जन्म-मरण से मुक्त हो जाता है।
♦️श्री विष्णु पुराण के तीसरे अंश में अध्याय 15 श्लोक 55-56 पृष्ठ 153 पर लिखा है कि श्राद्ध के भोज में यदि एक योगी यानी शास्त्रोक्त साधक को भोजन करवाया जाए तो श्र���द्ध में आए हजार ब्राह्मणों तथा यजमान के पूरे परिवार सहित सर्व पितरों का उद्धार कर देता है।
♦️कबीर, भक्ति बीज जो होये हंसा, तारूं तास के एकोत्तर वंशा।
श्राद्ध आदि निकालना शास्त्र विरुद्ध है, सत्य शास्त्रोक्त साधना करने वाले साधक की 101 पीढ़ी पार होती हैं। सत्य शास्त्रानुसार साधना केवल तत्वदर्शी संत दे सकता है जिसकी शरण में जाने के लिए गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में कहा गया है। वर्तमान में वह पूर्ण तत्वदर्शी संत केवल संत रामपाल जी महाराज जी हैं।
♦️गीता भी हमें श्राद्ध के विषय में निर्णायक ज्ञान देती है। गीता के अध्याय 9 के श्लोक 25 में कहा है कि देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं, भूतों को पूजने (पिण्ड दान करने) वाले भूतों को प्राप्त होते हैं अर्थात भूत बन जाते हैं, शास्त्रानुकूल (पवित्र वेदों व गीता अनुसार) पूजा करने वाले मुझको ही प्राप्त होते हैं अर्थात ब्रह्मलोक के स्वर्ग व महास्वर्ग आदि में कुछ ज्यादा समय मौज कर लेते हैं और पुण्यरूपी कमाई खत्म होने पर फिर से 84 लाख योनियों में प्रवेश कर जाते हैं।
♦️जीवित बाप के लठ्ठम लठ्ठा, मूवे गंग पहुचैया।
जब आवे आसोज का महीना, कौवा बाप बनईयां।
कबीर परमेश्वर जी ने बताया है कि जीवित पिता को तो समय पर टूक (रोटी) भी नहीं दिया जाता। मृत्यु के पश्चात् उसको पवित्र दरिया में बहाकर आता है। कितना खर्च करता है। अपने माता-पिता की जीवित रहते प्यार से सेवा करो। उनकी आत्मा को प्रसन्न करो। उनकी वास्तविक श्रद्धा सेवा तो यह है।
♦️"श्राद्ध और पितृ पूजा से जीव की गति नहीं होती"
प्रेत शिला पर जाय विराजे, फिर पितरों पिण्ड भराहीं।
बहुर श्राद्ध खान कूं आया, काग भये कलि माहीं।।
अज्ञानी गुरु और पंडित जी के अनुसार मृत्यु के पश्चात सर्व कर्मकांड, आत्मा की गति (मोक्ष) के लिए किए जाते हैं। लेकिन फिर पितृ पक्ष में कहते हैं की आपके पूर्वज कौवा बन गए हैं, भोजन करवाकर उनको तृप्त करो। इस तरह ये मूर्ख बनाकर समाज की दुर्गति किये हुए थे।
♦️जीवित बाप के लठ्ठम लठ्ठा, मूवे गंग पहुचैया।
जब आवे आसोज का महीना, कौवा बाप बनईयां।
जीवित बाप के साथ तो लड़ाई रखते हैं और उनके मरने के उपरांत उनके श्राद्ध निकालते हैं।
परमात्मा कहते हैं रे भोली सी दुनिया सतगुरु बिन कैसे सरिया।
♦️ श्राद्ध करने वाले पुरोहित कहते हैं कि श्राद्ध करने से वह जीव एक वर्ष तक तृप्त हो जाता है। फिर एक वर्ष में श्राद्ध फिर करना है। विचार करें:- जीवित व्यक्ति दिन में तीन बार भोजन करता था। अब एक दिन भोजन करने से एक वर्ष तक कैसे तृप्त हो सकता है? यदि प्रतिदिन छत पर भोजन रखा जाए तो वह कौवा प्रतिदिन ही भोजन खाएगा।
♦️ मृत्यु के पश्चात् की गई सर्व क्रियाऐं गति (मोक्ष) कराने के उद्देश्य से की गई थी। उन ज्ञानहीन गुरूओं ने अन्त में कौवा बनवाकर छोड़ा। वह प्रेत शिला पर प्रेत योनि भोग रहा है। पीछे से गुरू और कौवा मौज से भोजन कर रहा है।
♦️ भक्ति नहीं करने वाले व शास्त्रविरुद्ध भक्ति करने वाले, नकली गुरु बनाने वाले एवं पाप अपराध करने वालों को मृत्यु पश्चात्‌ यमदूत घसीटकर ले जाते हैं और नरक में भयंकर यातनाएं देते हैं। तत्पश्चात् 84 लाख कष्टदायक योनियों में जन्म मिलता है।
♦️तत्वदर्शी संत (गीता अ-4 श्लोक-34) से दीक्षा लेकर शास्त्रविधि अनुसार सतभक्ति करने वाले परमधाम सतलोक को प्राप्त होते हैं जहाँ जन्म-मरण, दुख, कष्ट व रोग नहीं होता है।
♦️नर सेती तू पशुवा कीजै, गधा, बैल बनाई।
छप्पन भोग कहाँ मन बौरे, कहीं कुरड़ी चरने जाई।।
मनुष्य जीवन में हम कितने अच्छे अर्थात् 56 प्रकार के भोजन खाते हैं। भक्ति न करने से या शास्त्रविरूद्ध साधना करने से गधा बनेगा, फिर ये छप्पन प्रकार के भोजन कहाँ प्राप्त होंगे, कहीं कुरड़ियों (रूड़ी) पर पेट भरने के लिए घास खाने जाएगा। इसी प्रकार बैल आदि-आदि पशुओं की योनियों में कष्ट पर कष्ट उठाएगा।
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newswave-kota · 1 year ago
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जीवन में कोई दुख आये तो समझ लेना महादेव आपको जिताना चाहते हैं- पं.प्रदीप मिश्रा
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कोटा में शिव महापुराण कथा सुनने पहुंचे 2 लाख से अधिक श्रद्धालु, बच्चों व बुजुर्गो के साथ महिलाओं ने पूर्वजों के चित्र लेकर कथा श्रवण किया। न्यूजवेव@ कोटा  श्राद्व पक्ष में आयोजित पंचदिवसीय शिव महापुराण कथा में अलौकिक कथावाचक आचार्य प्रदीप मिश्रा ने भक्ति ज्ञान का अमृत मंथन कर लाखों श्रद्धालुओं को महादेव भोलेबाबा की दिव्य भक्ति और शक्ति से जोड़ दिया। चारों ओर शिवभक्तों से खचाखच भरे दशहरा मैदान में बाबा के जयकारों से आस्था का महासागर हिलौरें ले रहा था। अलौकिक कथावाचक आचार्य पंडित प्रदीप मिश्रा ने गुरूवार को अ��तिम सोपान में कहा कि भगवान शंकर देव नहीं महादेव हैं। उन्होंने विषपान करके सबको अमृत दिया है। धतूरे, आंकडे, कनेर के फूल जिसे कोई नही छूता है, दुनिया जिसे ठोकर मार देती है, महादेव उसे भी अपना लेते हैं। वो लेने वाला नहीं, देने वाला महादेव है। पं. मिश्रा ने कहा कि कोटा में हजारों बच्चे पढाई के लिये बाहर से आते हैं। किसी टेस्ट, परीक्षा या इंटरव्यू में फेल हो जायें तो रोने लगते हैं, जीवन से हार जाते हैं। लेकिन घोडे़ की दौड़ से सीख लेना। घोडे को नहीं मालूम होता है कि मैं यहां जीत के लिये आया हूं। रेस में जब वह धीरे-धीरे दौडता है तो मालिक उसे चाबुक मारकर तेज दौडाता है। कष्ट पाकर भी वह दौड़ के अंत में सबसे आगे निकल जाता है। विद्यार्थियों, तुम्हे भी जीवन में कोई दुख आये, असफलता आये तो समझ लेना महादेव तुम्हें जिताना चाहते हैं। यदि राम वन में तपस्या नहीं करते तो राम नहीं बन पाते। कृष्ण पर भी बाधाओं के पहाड टूटे हैं। बचपन में मां से बिछोह हुआ, कारागृह में रहे, माखनचोर कहलाये, मामा से भी तकलीफें उठाई लेकिन कृष्ण ने गीता उपदेश देकर भक्तों को अच्छे कर्म करके जीना सिखाया है।
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एक प्रसंग सुनाते हुये आचार्य पं. मिश्रा ने कहा कि एक बार शिव ने गणेश व कार्तिकेय से कहा, बहुत प्यास लगी है, जल लेकर आओ। गणेश बोले, आपके सिर पर तो गंगा है। फिर भी गणेश चूहे को लेकर आगे बढे़। जगह-जगह कुआ खोदा लेकिन जल नहीं निकला। उधर, कार्तिकेय एक ही जगह कुए को गहरा करते गये। मोर ने कहा, प्रभू अभी कुछ ओर गहरा करो, जल अवश्य निकलेगा। अंत में कार्तिकेय जल लेकर शिव के पास पहुंच ही गये। भक्तों, जीवन में हम बहुत जल्द हार मान लेते हैं। आपकी निरंतर मेहनत, कर्म और मनोबल के साथ एक लौटा जल आपको अंत में जीत अवश्य दिलायेगा। इसलिये हमें जगह-जगह भटकने से कुड नही मिलेगा। ‘मुझे तेरा ही सहारा है...भोले बाबा’ यह भरोसा लेकर रोज शिव की पूजा करोगे तो आपको खाली हाथ नहीं जाने देगा। वे आगे भी ऐसा कर्म करते रहें
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पं.प्रदीप मिश्रा ने कहा कि आज सनातन धर्म को चारों ओर से घेरा जा रहा है। भारत की पवित्र देव भूमि पर देवालय और शिवालय तोडे़ जा रहे हैं। यह अधर्म पल में प्रलय कर सकता है। हमारे कर्मों के फल से ही भाग्य प्रबल होगा। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला एवं कोटा के विधायक संदीप शर्मा ने इस धरती पर श्राद्ध प़क्ष में शिव महापुराण कथा का लाभ देकर आम जनता को जो धर्मलाभ पहुंचाया है, उसका पुण्य अवश्य मिलेगा। विधायक संदीप शर्मा को भोलेनाथ ने सनातन धर्म की रक्षा करने का अवसर दिया है, वे आगे भी ऐसा कर्म करते रहें। कोटा में अगले वर्ष लगेगी शिव की महाप्रतिमा
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लोकसभा अध्यक्ष व कोटा-बूंदी के सांसद ओम बिरला ने कहा कि इस विराट शिवमहापुराण कथा ने लाखों भक्तों को जोडकर कोटा में हमारा विशाल शिव परिवार बना दिया है। कोटा नीलकंठ महादेव और चार चौमा महादेव की धरती है। हमारा संकल्प है कि शिव आराधना के लिये कोटा शहर में अगले वर्ष महादेव की महाप्रतिमा स्थापित की जायेगी। जिसका अभिषेक करने के लिये पं. प्रदीप मिश्रा को फिर से कोटा आने का आमंत्रण दिया। ऐसे वातावरण से शहर के घर-घर में हर-हर महादेव की गूंज सुनाई देने लगी है। यही आस्था, संस्कृति, आध्यात्म की प्रवृत्ति देश में सनातम धर्म को नई उंचाइयों तक ले जायेगी। एक लाख से अधिक ने ली महाप्रसादी लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की पहल पर कथा समाप्ति के बाद दशहरा मैदान में उपस्थित हजारों शिव भक्तो ने शांतिपूर्वक महाप्रसादी ग्रहण की। कथा आयोजक विधायक संदीप शर्मा एवं उनकी पत्नी गीता शर्मा ने लाखों भक्तो के साथ शिव महाआरती कर कथा को सफल बनाने के लिये सभी भक्तों का आभार जताया। Read the full article
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234ravindar · 2 months ago
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*🎄बन्दीछोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की जय🎄*
18/09/24
*⌛Facebook Sewa ⌛*
🧩 *मालिक की दया से Facebook पर श्राद्ध की श्रेष्ठ विधि बताते हुए सेवा करेंगे जी।*
*टैग और कीवर्ड⤵️*
*#श्राद्धकी_शास्त्रानुकूल_विधि*
#SantRampalJi Maharaj
#श्राद्ध #पितृपक्ष #ancestors #ancestorworship #pinddaan
#pitrupaksha #pitrapaksh #shradh #amavasya #astrology #karma #vastu #reels #trending
★★★★★
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🌀 श्राद्ध किसके लिए निकालते हैं। श्राद्ध उनके लिए करते हैं जो मृत्यु को प्राप्त हो गए यानी प्रेत पित्तर बन गए। गीता अध्याय 9 श्लोक 25 में इसके लिए मना किया गया है।
विष्णु पुराण के अंदर लिखा हुआ है, व्यास जी कह रहे हैं कि हे राजन! श्राद्ध के समय यदि एक हजार ब्राह्मण बैठे हों। भोजन करने आये हों।
और एक तरफ योगी बैठ जा। तो वो ब्राह्मणों समेत, पित्तरों समेत, यजमानों समेत सबका उद्धार कर देता है। वह योगी कौन है?
गीता अध्याय 2 श्लोक 53 में बताया है कि अर्जुन जब भिन्न भिन्न प्रकार से भर्मित करने वाले वचनों से तेरी बुद्धि हटकर एक तत्वज्ञान में स्थिर हो जाएगी। तब तो तू योगी बनेगा। तब तू योग को प्राप्त होगा। संत रामपाल जी महाराज जी के शिष्य सारे योगी हैं। और जैसे संत रामपाल जी महाराज जी के आश्रमों में समागम होते हैं उनमें लाखों योगी भोजन करते हैं। वहां दिए गए दान से पितरों का भी उद्धार, भूतों का भी उद्धार और दान करने वालों का भी उद्धार होता है।
🌀श्राद्ध की शास्त्र अनुकूल विधि संत रामपाल जी महाराज के सभी सतलोक आश्रमों में हर दूसरे तीसरे महीने समागम में की जाती ही। वहां तो श्राद्ध हर दूसरे तीसरे महीने निकालते हैं। आप जी तो साल में एक ही बार निकालते हो।
🌀विष्णु पुराण, तृतीय अंश के अध्याय 15 में श्लोक 55-56, पर लिखा है कि एक योगी (शास्त्रानुकूल सत्य साधक) अकेला ही पित्तरों तथा एक हजार ब्राह्मणों तथा यजमान सहित सर्व का उद्धार कर देगा। शास्त्रानुकूल सत्य साधना केवल संत रामपाल जी महाराज करवाते हैं इसलिए उनके शिष्य ही वह योगी हैं जिसका उपरोक्त शास्त्र में जिक्र किया है।
🌀पवित्र गीता अध्याय 9 मंत्र 25 व 23 से 24 तथा अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 तथा 20 से 23 में भगवान ने स्पष्ट मना किया है श्राद्ध करने (पितर पूजा करने), पिण्ड दान करने(भूत पूजा करने) से तथा अन्य देवताओं की पूजा करने से मना किया है। कहा है कि जो पित्तर पूजा करते हैं अर्थात श्राद्ध निकालते हैं वे पित्तरों के पास जायेंगे अर्थात पित्तर बन जायेंगे,
मुक्त नहीं हो सकते। पिण्ड दान अर्थात भूत पूजने वाले भी भूत बनेंगे तथा देवताओं को पूजने वाले
देवताओं के पास जायेंगे, उनके नौकर लगेंगे। फिर सर्व देवताओं (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा
श्री शिव जी) सहित तथा इनके उपासक क्षणिक सुख भोगकर मृत्यु को प्राप्त होंगे, मुक्ति नहीं होगी।
यह मूर्खों की पूजा है।
🌀कबीर परमेश्वर जी ने कहा है कि -
एकै साधे सब सधै, सब साधै सब जाय।
माली सीचें मूल को, फलै फूलै अघाय।।
संत रामपाल जी महाराज, सर्वसुख व पूर्णमोक्ष दायक शास्त्रानुकूल भक्ति साधना (धार्मिक अनुष्ठान) करवाते हैं, जिसके करने से साधक पितर, भूत नहीं बनता अपितु पूर्ण मोक्ष प्राप्त करता है तथा जो पूर्वज गलत साधना करके पित्तर भूत बने हैं, उनका भी छुटकारा हो जाता है।
🌀परमात्मा कबीर जी समझाते हैं कि हे भोले प्राणी! गरूड़ पुराण का पाठ जीव को मृत्यु से पहले सुनाना चाहिए था ताकि वह परमात्मा के विधान को समझकर पाप कर्मों से बचता। पूर्ण गुरू से दीक्षा लेकर अपना मोक्ष करता। जिस कारण से वह न प्रेत बनता, न पितर बनता, न पशु-पक्षी आदि-आदि के शरीरों में कष्ट उठाता। मृत्यु के पश्चात् गरूड़ पुराण के पाठ का कोई लाभ नहीं मिलता।
🌀सूक्ष्मवेद (तत्वज्ञान) में तथा चारों वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथवर्वेद) तथा इन चारों वेदों के सारांश गीता में स्पष्ट किया है कि आन-उपासना नहीं करनी चाहिए क्योंकि ये शास्त्रों में वर्णित न होने से मनमाना आचरण है जो गीता अध्याय 16 श्लोक 23, 24 में व्यर्थ बताया है। शास्त्रोक्त साधना करने का आदेश दिया है।
🌀मार्कण्डेय पुराण (गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित) में श्राद्ध के विषय मे एक कथा का वर्णन मिलता है जिसमें रूची नामक एक ऋषि को अपने चार पूर्वज जो शास्त्र विरुद्ध साधना करके पितर बने हुए थे तथा कष्ट भोग रहे थे, दिखाई दिए। पितरों ने कहा कि बेटा रूची हमारे श्राद्ध निकाल, हम दुःखी हो रहे हैं। रूची ऋषि ने जवाब दिया की पित्रामहों वेद में कर्म काण्ड मार्ग (श्राद्ध, पिण्ड भरवाना आदि) को मूर्खों की साधना कहा है, अर्थात यह क्रिया व्यर्थ व शास्त्र विरुद्ध है।
🌀श्राद्ध आदि शास्त्रविरूद्ध क्रियाऐं करने से अनमोल जीवन नष्ट हो जाता है। यदि सतगुरू (तत्वदर्शी संत) का सत्संग सुनते, उसकी संगति करते तो सर्व पापकर्म नष्ट हो जाते। सत्य साधना करके अमर लोक यानि गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में कहे (शाश्वतं स्थानं) सनातन परम धाम में आप जी का आसन यानि स्थाई ठिकाना होता जहाँ कोई कष्ट नहीं। वहाँ पर परम शांति है क्योंकि वहाँ पर कभी जन्म-मृत्यु नहीं होता।
🌀भूत पूजा तथा पितर पूजा क्या है?
इन पूजाओं के निषेध का प्रमाण पवित्र गीता शास्त्र के अध्याय 9 श्लोक 25 में लिखा है कि भूत पूजा करने वाले भूत बनकर भूतों के समूह में मृत्यु उपरांत चले जाऐंगे। पितर पूजा करने वाले पितर लोक में पितर योनि प्राप्त करके पितरों के पास चले जाऐंगे। मोक्ष प्राप्त प्राणी सदा के लिए जन्म-मरण से मुक्त हो जाता है।
🌀श्री विष्णु पुराण के तीसरे अंश में अध्याय 15 श्लोक 55-56 पर लिखा है कि श्राद्ध के भोज में यदि एक योगी यानी शास्त्रोक्त साधक को भोजन करवाया जाए तो श्राद्ध में आए हजार ब्राह्मणों तथा यजमान के पूरे परिवार सहित सर्व पितरों का उद्धार कर देता है।
🌀कबीर, भक्ति बीज जो होये हंसा, तारूं तास के एकोत्तर वंशा।
श्राद्ध आदि निकालना शास्त्र विरुद्ध है, सत्य शास्त्रोक्त साधना करने वाले साधक की 101 पीढ़ी पार होती हैं। सत्य शास्त्रानुसार साधना केवल तत्वदर्शी संत दे सकता है जिसकी शरण में जाने के लिए गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में कहा गया है। वर्तमान में वह पूर्ण तत्वदर्शी संत केवल संत रामपाल जी महाराज जी हैं।
🌀गीता भी हमें श्राद्ध के विषय में निर्णायक ज्ञान देती है। गीता के अध्याय 9 के श्लोक 25 में कहा है कि देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं, भूतों को पूजने (पिण्ड दान करने) वाले भूतों को प्राप्त होते हैं अर्थात भूत बन जाते हैं, शास्त्रानुकूल (पवित्र वेदों व गीता अनुसार) पूजा करने वाले मुझको ही प्राप्त होते हैं अर्थात ब्रह्मलोक के स्वर्ग व महास्वर्ग आदि में कुछ ज्यादा समय मौज कर लेते हैं और पुण्यरूपी कमाई खत्म होने पर फिर से 84 लाख योनियों में प्रवेश कर जाते हैं।
🌀जीवित बाप के लठ्ठम लठ्ठा, मूवे गंग पहुचैया।
जब आवे आसोज का महीना, कौवा बाप बनईयां।
कबीर परमेश्वर जी ने बताया है कि जीवित पिता को तो समय पर टूक (रोटी) भी नहीं दिया जाता। मृत्यु के पश्चात् उसको पवित्र दरिया में बहाकर आता है। कितना खर्च करता है। अपने माता-पिता की जीवित रहते प्यार से सेवा करो। उनकी आत्मा को प्रसन्न करो। उनकी वास्तविक श्रद्धा सेवा तो यह है।
🌀"श्राद्ध और पितृ पूजा से जीव की गति नहीं होती"
प्रेत शिला पर जाय विराजे, फिर पितरों पिण्ड भराहीं।
बहुर श्राद्ध खान कूं आया, काग भये कलि माहीं।।
🌀जीवित बाप के लठ्ठम लठ्ठा, मूवे गंग पहुचैया।
जब आवे आसोज का महीना, कौवा बाप बनईयां।
जीवित बाप के साथ तो लड़ाई रखते हैं और उनके मरने के उपरांत उनके श्राद्ध निकालते हैं।
परमात्मा कहते हैं रे भोली सी दुनिया सतगुरु बिन कैसे सरिया।
बंदीछोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी से नाम उपदेश लेकर सतभक्ति करने से मनुष्य 84 लाख योनियों का कष्ट नहीं भोगता।
🌀श्राद्ध करने वाले पुरोहित कहते हैं कि श्राद्ध करने से वह जीव एक वर्ष तक तृप्त हो जाता है। फिर एक वर्ष में श्राद्ध फिर करना है। विचार करें:- जीवित व्यक्ति दिन में तीन बार भोजन करता था। अब एक दिन भोजन करने से एक वर्ष तक कैसे तृप्त हो सकता है? यदि प्रतिदिन छत पर भोजन रखा जाए तो वह कौवा प्रतिदिन ही भोजन खाएगा।
🌀भक्ति नहीं करने वाले व शास्त्रविरुद्ध भक्ति करने वाले, नकली गुरु बनाने वाले एवं पाप अपराध करने वालों को मृत्यु पश्चात्‌ यमदूत घसीटकर ले जाते हैं और नरक में भयंकर यातनाएं देते हैं। तत्पश्चात् 84 लाख कष्टदायक योनियों में जन्म मिलता है।
🌀तत्वदर्शी संत (गीता अ-4 श्लोक-34) से दीक्षा लेकर शास्त्रविधि अनुसार सतभक्ति करने वाले परमधाम सतलोक को प्राप्त होते हैं जहाँ जन्म-मरण, दुख, कष्ट व रोग नहीं होता है।
🌀नर सेती तू पशुवा कीजै, गधा, बैल बनाई।
छप्पन भोग कहाँ मन बौरे, कहीं कुरड़ी चरने जाई।।
मनुष्य जीवन में हम कितने अच्छे अर्थात् 56 प्रकार के भोजन खाते हैं। भक्ति न करने से या शास्त्रविरूद्ध साधना करने से गधा बनेगा, फिर ये छप्पन प्रकार के भोजन कहाँ प्राप्त होंगे, कहीं कुरड़ियों (रूड़ी) पर पेट भरने के लिए घास खाने जाएगा। इसी प्रकार बैल आदि-आदि पशुओं की योनियों में कष्ट पर कष्ट उठाएगा।
🌀श्राद्ध क्रिया कर्म मनमाना आचरण है यह शास्त्रों में अविद्या कहा गया है बल्कि गीता अध्याय 16 श्लोज 23 और 24 में कहा है कि जो शास्त्र विधि को त्याग कर मनमाना आचरण करते हैं उनकी ना तो गति होती है न ही उन्हें किसी प्रकार का आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है इसलिए शास्त्र ही प्रमाण है।
🌀जै सतगुरू की संगत करते, सकल कर्म कटि जाईं।
अमर पुरि पर आसन होते, जहाँ धूप न छाँइ।।
संत गरीबदास जी ने परमेश्वर कबीर जी से प्राप्त सूक्ष्मवेद में कहा है कि यदि सतगुरू (तत्वदर्शी सन्त) की शरण में जाकर दीक्षा लेते तो सर्व कर्मों के कष्ट कट जाते अर्थात् न प्रेत बनते, न गधा, न बैल बनते।
🌀जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी से उपदेश लेकर कबीर साहेब जी की भक्ति करने से सतलोक की प्राप्ति होती है।
सतलोक अविनाशी लोक है। वहां जाने के बाद साधक जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है और पूर्ण मोक्ष प्राप्त करता है।
🌀सत्य भक्ति वर्तमान में केवल संत रामपाल जी महाराज जी के पास है। जिससे इस दुःखों के घर संसार से पार होकर वह परम शान्ति तथा शाश्वत स्थान (सनातन परम धाम) प्राप्त हो जाता है जिसके विषय में गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा है तथा गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि तत्वदर्शी सन्त से तत्वज्ञान प्राप्त करके, उस तत्वज्ञान से अज्ञान का नाश करके, उसके पश्चात् परमेश्वर के उस परमपद की खोज करनी चाहिए। जहाँ जाने के पश्चात् साधक फिर लौटकर संसार में कभी नहीं आता।
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indrabalakhanna · 3 months ago
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Satsang Ishwar TV | 25-08-2024 | Episode: 2491 | Sant Rampal Ji Maharaj ...
*📣🙏बन्दीछोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की जय🙏📣*
*25/08/24 Sunday/रविवार*
*🦚🦚🌼🥀🌼*
#SundayMotivation
#SundayThoughts
1🌐जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज ने सचेत किया है कि ज्ञान के बिना मनुष्य पशु-पक्षी की तरह संतानोत्पत्ति और उनके पालन पोषण के लिए आजीवन संघर्षरत रहते हैं! अंत में प्राण त्याग कर कर्मानुसार पुनर्जन्म को प्राप्त होते हैं! यदि सतगुरु के सत्संग मिल जाए तो मनुष्य तत्वज्ञान व सतभक्ति द्वारा पूर्ण मोक्ष को प्राप्त होता है। इसलिए हमें संत रामपाल जी के सत्संग अवश्य सुनने चाहिए!
2🌐क्यों सुनें संत रामपाल जी महाराज के सत्संग?
संत रामपाल जी महाराज के सत्संगों से आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर आज लाखों लोग सामाजिक कुप्रथाओं व बुराइयों जैसे छुआ छूत, तेरहवीं, मृत्यु भोज, नशा, दहेज, कन्या भ्रूण हत्या आदि को बिल्कुल छोड़ चुके हैं व सुखी एवं शान्तिमय जीवन जी रहें हैं! यह शांति आप भी संत रामपाल जी के सत्संग सुनकर प्राप्त कर सकते हैं!
3🌐संत रामपाल जी महाराज के सत्संग क्यों सुनें?
संत रामपाल जी महाराज, संत शास्त्रों से प्रमाणित सत्संग करते हैं वे अपने सत्संगो में कही एक-एक बात का प्रमाण शास्त्रों में दिखाते हैं। संत रामपाल जी महाराज मनमानी शास्त्रविरुद्ध पूजा जैसे कि श्राद्ध, पिण्ड दान, माता मसानी और प्रेतों की पूजा करना निषेध करते हैं, क्योंकि गीता अध्याय 9 श्लोक 25 में इन क्रियाओं को मना किया गया है और वे एक पूर्ण परमात्मा की शास्त्र अनुसार साधना कराते हैं जिससे साधक को सभी सुख व मोक्ष की प्राप्ति होती है!
4🌐संत रामपाल जी महाराज के सत्संग क्यों सुनें?
गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में वर्णित मोक्ष प्राप्ति के सांकेतिक मंत्र ओम्-तत्-सत् का रहस्य संत रामपाल जी महाराज उजागर करते हैं! इसलिए हमें प्रतिदिन संत रामपाल जी महाराज के सत्संग सुनने चाहिए!
5🌐संत रामपाल जी महाराज के सत्संग क्यों सुनें?
गीता अध्याय 16 श्लोक 23 में कहा गया है कि शास्त्र विरुद्ध मनमानी क्रियाओं से कोई लाभ नहीं होता! जबकि संत रामपाल जी महाराज शास्त्र अनुकूल भक्ति बताते हैं इसलिए हमें प्रतिदिन संत रामपाल जी महाराज के सत्संग सुनने चाहिए!
6🌐क्यों सुनें संत रामपाल जी का सत्संग?
संत रामपाल जी महाराज का सत्संग हमें इसलिए सुनना चाहिए क्योंकि आज तक जो तत्वज्ञान हमारे तथाकथित धर्मगुरु नहीं बता सके वह तत्वज्ञान संत रामपाल जी ने गीता, वेदों, पुराणों व सभी धर्म शास्त्रों से प्रमाण सहित बताया है! जिससे भक्त समाज अंधविश्वास, पाखंड और धार्मिक भ्रांतियों से बच सकता है!
7🌐संत रामपाल जी महाराज, सत्संग में जीवन के वास्तविक उद्देश्य की प्राप्ति के बारे में बताते हैं कि मनुष्य जीवन का मुख्य उद्देश्य मोक्ष प्राप्ति है और इसके लिए सही गुरु की पहचान और सही मार्गदर्शन आवश्यक है! इस बारे में कबीर साहेब ने कहा है:
*कबीर मानुष जन्म दुर्लभ है, मिले न बारम्बार!
तरूवर से पत्ता टूट गिरे, बहुर न लगता डारि!!*
8🌐संत रामपाल जी महाराज के सत्संग में समाज की विभिन्न बुराइयों जैसे दहेज प्रथा, भ्रष्टाचार, व्यभिचार, चोरी, जारी, शराब सेवन और अन्य कुरीतियों के खिलाफ जागरूकता फैलाई जाती है! यह समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने का महत्वपूर्ण साधन है!
9🌐हजार वर्ष तप करने का जो फल प्राप्त होता है उससे अधिक फल तत्वदर्शी संत का एक पल का सत्संग मिल जाए उससे होता है!
कबीर साहेब जी कहते हैं -
*सत्संग की आधी घड़ी, तप के वर्ष हजार !
तो भी बराबर है नहीं, कहै कबीर विचार!!*
10🌐संत रामपाल जी महाराज के आध्यात्मिक सत्संग सुनने से मनुष्य को ज्ञात होता है कि उसके जीवन का मूल उद्देश्य क्या है, सत भक्ति की विधि क्या है, किस परमात्मा की भक्ति करने से उसका जीवन सफल होगा तथा उसे क्या कर्म करना चाहिए और क्या नहीं!
11🌐तत्वज्ञान युक्त सत्संग सुनने से सतभक्ति मार्ग का ज्ञान होता है! यदि एक आत्मा को भी सतभक्ति मार्ग पर लगाकर उसका आत्म कल्याण करवा दिया जाए तो करोड़ अवश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है!
*आत्म प्राण उद्धार ही, ऐसा धर्म नहीं और!
कोटि अश्वमेघ यज्ञ, सकल समाना भौर!!*
जीवात्मा के उद्धार के लिए किए गए कार्य अर्थात् सेवा से श्रेष्ठ कोई भी कार्य नहीं है, जो वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज कर रहे हैं!
12🌐संत रामपाल जी महाराज बताते हैं सत्संग से आत्मा को गुरु वचनों की खुराक मिलती है और सकारात्मक भावनाएं जागती हैं!
*संत समागम, हरि कथा, तुलसी दुर्लभ दोय!
सुत दारा और लक्ष्मी यह तो घर पापी के भी होए!!*
13🌐मानव समाज के लिए दहेज एक अभिशाप है बेटियों को गर्भ में ही मार दिया जाता है! उन्हें जन्म लेने ही नहीं दिया जाता! इसका कारण केवल और केवल दहेज है!¡संत रामपाल जी महाराज जी ने बीड़ा उठाया है दहेज मुक्त समाज का निर्माण करना। संत रामपाल जी महाराज जी सत्संग के माध्यम से बताते हैं दहेज लेना अपराध है। इससे न तो बेटी सुखी हो सकती है और न ही दहेज लेने वाला सुखी हो सकता है।
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