#शिव अमृतवाणी
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart122
आदरणीय नानक साहेब जी की वाणी में सृष्टी रचना का संकेत
नानक देव जी की वाणी में सृष्टी रचना का संकेत
श्री नानक साहेब जी की अमृतवाणी, महला 1, राग बिलावलु, अंश 1 (गु.ग्र पृ.839)
आपे सचु कीआ कर जोडि़। अंडज फोडि़ जोडि विछोड़।।
धरती आकाश कीए बैसण कउ थाउ। राति दिनंतु कीए भउ-भाउ।।
जिन कीए करि वेखणहारा।(3)
त्रितीआ ब्रह्मा-बिसनु-महेसा। देवी देव उपाए वेसा।।(4)
पउण पाणी अगनी बिसराउ। ताही निरंजन साचो नाउ।।
तिसु महि मनुआ रहिआ लिव लाई। प्रणवति नानकु कालु न खाई।।(10)
उपरोक्त अमृतवाणी का भावार्थ है कि सच्चे परमात्मा (सतपुरुष) ने स्वयं ही अपने हाथों से सर्व सृष्टी की रचना की है। उसी ने अण्डा बनाया फिर फोड़ा तथा उसमें से ज्योति निरंजन निकला। उसी पूर्ण परमात्मा ने सर्व प्राणियों के रहने के लिए धरती, आकाश, पवन, पानी आदि पाँच तत्व रचे। अपने द्वारा रची सृष्टी का स्वयं ही साक्षी है। दूसरा कोई सही जानकारी नहीं दे सकता। फिर अण्डे के फूटने से निकले निरंजन के बाद तीनों श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी की उत्पत्ति हुई तथा अन्य देवी-देवता उत्पन्न हुए तथा अनगिनत जीवों की उत्पत्ति हुई। उस���े बाद अन्य देवों के जीवन चरित्र तथा अन्य ऋषियों के अनुभव के छः शास्त्र तथा अठारह पुराण बन गए। पूर्ण परमात्मा के सच्चे नाम (सत्यनाम) की साधना अनन्य मन से करने से तथा गुरु मर्यादा में रहने वाले (प्रणवति) को श्री नानक जी कह रहे हैं कि काल नहीं खाता।
राग मारु(अंश) अमृतवाणी महला 1(गु.ग्र.पृ. 1037)
सुनहु ब्रह्मा, बिसनु, महेसु उपाए। सुने वरते जुग सबाए।।
इसु पद बिचारे सो जनु पुरा। तिस मिलिए भरमु चुकाइदा।।(3)
साम वेदु, रुगु जुजरु अथरबणु। ब्रहमें मुख माइआ है त्रौगुण।।
ता की कीमत कहि न सकै। को तिउ बोले जिउ बुलाईदा।।(9)
उपरोक्त अमृतवाणी का सारांश है कि जो संत पूर्ण सृष्टी रचना सुना देगा तथा बताएगा कि अण्डे के दो भाग होकर कौन निकला, जिसने फिर ब्रह्मलोक की सुन्न में अर्थात् गुप्त स्थान पर ब्रह्मा-विष्णु-शिव जी की उत्पत्ति की तथा वह परमात्मा कौन है जिसने ब्रह्म (काल) के मुख से चारों वेदों (पवित्र ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद) को उच्चारण करवाया, वह पूर्ण परमात्मा जैसा चाहे वैसे ही प्रत्येक प्राणी को बुलवाता है। इस सर्व ज्ञान को पूर्ण बताने वाला सन्त मिल जाए तो उसके पास जाइए तथा जो सभी शंकाओं का पूर्ण निवारण करता है, वही पूर्ण सन्त अर्थात् तत्वदर्शी है।
श्री गुरु ग्रन्थ साहेब पृष्ठ 929 अमृत वाणी श्री नानक साहेब जी की राग रामकली महला 1 दखणी ओअंकार
ओअंकारि ब्रह्मा उतपति। ओअंकारू कीआ जिनि चित। ओअंकारि सैल जुग भए। ओअंकारि बेद निरमए। ओअंकारि सबदि उधरे। ओअंकारि गुरुमुखि तरे। ओनम अखर सुणहू बीचारु। ओनम अखरु त्रिभवण सारु।
उपरोक्त अमृतवाणी में श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि ओंकार अर्थात् ज्योति निरंजन (काल) से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई। कई युगों मस्ती मार कर ओंकार (ब्रह्म) ने वेदों की उत्पत्ति की जो ब्रह्मा जी को प्राप्त हुए। तीन लोक की भक्ति का केवल एक ओ3म् मंत्र ही वास्तव में जाप करने का है। इस ओ3म् शब्द को पूरे संत से उपदेश लेकर अर्थात् गुरू धारण करके जाप करने से उद्धार होता है।
विशेष:- श्री नानक साहेब जी ने तीनों मंत्रों (ओ3म् तत् सत्) का स्थान - स्थान पर रहस्यात्मक विवरण दिया है। उसको केवल पूर्ण संत (तत्वदर्शी संत) ही समझ सकता है तथा तीनों मंत्रों के जाप को उपदेशी को समझाया जाता है।
(पृ. 1038) उत्तम सतिगुरु पुरुष निराले, सबदि रते हरि रस मतवाले।
रिधि, बुधि, सिधि, गिआन गुरु ते पाइए, पूरे भाग मिलाईदा।।(15)
सतिगुरु ते पाए बीचारा, सुन समाधि सचे घरबारा।
नानक निरमल नादु सबद धुनि, सचु ��ामैं नामि समाइदा (17)।।5।।17।।
उपरोक्त अमृतवाणी का भावार्थ है कि वास्तविक ज्ञान देने वाले सतगुरु तो निराले ही हैं, वे केवल नाम जाप को जपते हैं, अन्य हठयोग साधना नहीं बताते। यदि आप को धन दौलत, पद, बुद्धि या भक्ति शक्ति भी चाहिए तो वह भक्ति मार्ग का ज्ञान पूर्ण संत ही पूरा प्रदान करेगा, ऐसा पूर्ण संत बडे़ भाग्य से ही मिलता है। वही पूर्ण संत विवरण बताएगा कि ऊपर सुन्न (आकाश) में अपना वास्तविक घर (सत्यलोक) परमेश्वर ने रच रखा है।
उसमें एक वास्तविक सार नाम की धुन (आवाज) हो रही है। उस आनन्द में अविनाशी परमेश्वर के सार शब्द से समाया जाता है अर्थात् उस वास्तविक सुखदाई स्थान में वास हो सकता है, अन्य नामों तथा अधूरे गुरुओं से नहीं हो सकता।
आंशिक अमृतवाणी महला पहला (श्री गु. ग्र. पृ. 359-360)
सिव नगरी महि आसणि बैसउ कलप त्यागी वादं।(1)
सिंडी सबद सदा धुनि सोहै अहिनिसि पूरै नादं।(2)
हरि कीरति रह रासि हमारी गुरु मुख पंथ अतीत (3)
सगली जोति हमारी संमिआ नाना वरण अनेकं।
कह नानक सुणि भरथरी जोगी पारब्रह्म लिव एकं।(4)
उपरोक्त अमृतवाणी का भावार्थ है कि श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि हे भरथरी योगी जी आप की साधना भगवान शिव तक है, उससे आप को शिव नगरी (लोक) में स्थान मिला है और शरीर में जो सिंगी शब्द आदि हो रहा है वह इन्हीं कमलों का है तथा टेलीविजन की तरह प्रत्येक देव के लोक से शरीर में सुनाई दे रहा है।
हम तो एक परमात्मा पारब्रह्म अर्थात् सर्वसे पार जो पूर्ण परमात्मा है अन्य किसी और एक परमात्मा में लौ (अनन्य मन से लग्न) लगाते हैं।
हम ऊपरी दिखावा (भस्म लगाना, हाथ में दंडा रखना) नहीं करते। मैं तो सर्व प्राणियों को एक पूर्ण परमात्मा (सतपुरुष) की सन्तान समझता हूँ। सर्व उसी शक्ति से चलायमान हैं। हमारी मुद्रा तो सच्चा नाम जाप गुरु से प्राप्त करके करना है तथा क्षमा करना हमारा बाणा (वेशभूषा) है। मैं तो पूर्ण परमात्मा का उपासक हूँ तथा पूर्ण सतगुरु का भक्ति मार्ग इससे भिन्न है।
अमृत वाणी राग आसा महला 1 (श्री गु. ग्र. पृ. 420)
।।आसा महला 1।। जिनी नामु विसारिआ दूजै भरमि भुलाई। मूलु छोडि़ डाली लगे किआ पावहि छाई।।1।। साहिबु मेरा एकु है अवरु नहीं भाई। किरपा ते सुखु पाइआ साचे परथाई।।3।। गुर की सेवा सो करे जिसु आपि कराए। नानक सिरु दे छूटीऐ दरगह पति पाए।।8।।18।।
उपरोक्त वाणी का भावार्थ है कि श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि जो पूर्ण परमात्मा का वास्तविक नाम भूल कर अन्य भगवानों के नामों के जाप में भ्रम रहे हैं वे तो ऐसा कर रहे हैं कि मूल (पूर्ण परमात्मा) को छोड़ कर डालियों (तीनों गुण रूप रजगुण-ब्रह्मा, सतगुण-विष्णु, तमगुण-��िवजी) की सिंचाई (पूजा) कर रहे हैं। उस साधना से कोई सुख नहीं हो सकता अर्थात् पौधा सूख जाएगा तो छाया में नहीं बैठ पाओगे। भावार्थ है कि शास्त्र विधि रहित साधना करने से व्यर्थ प्रयत्न है। कोई लाभ नहीं। इसी का प्रमाण पवित्र गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में भी है। उस पूर्ण परमात्मा को प्राप्त करने के लिए मनमुखी (मनमानी) साधना त्याग कर पूर्ण गुरुदेव को समर्पण करने से तथा सच्चे नाम के जाप से ही मोक्ष संभव है, नहीं तो मृत्यु के उपरांत नरक जाएगा।
(श्री गुरु ग्रन्थ साहेब पृष्ठ नं. 843.844)
।।बिलावलु महला 1।। मैं मन चाहु घणा साचि विगासी राम। मोही प्रेम पिरे प्रभु अबिनासी राम।। अविगतो हरि नाथु नाथह तिसै भावै सो थीऐ। किरपालु सदा दइआलु दाता जीआ अंदरि तूं जीऐ। मैं आधारु तेरा तू खसमु मेरा मै ताणु तकीआ तेरओ। साचि सूचा सदा नानक गुरसबदि झगरु निबेरओ।।4।।2।।
उपरोक्त अमृतवाणी में श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि अविनाशी पूर्ण परमात्मा नाथों का भी नाथ है अर्थात् देवों का भी देव है (सर्व प्रभुओं श्री ब्रह्मा जी,
श्री विष्णु जी, श्री शिव जी तथा ब्रह्म व परब्रह्म पर भी नाथ है अर्थात् स्वामी है) मैं तो सच्चे नाम को हृदय में समा चुका हूँ। हे परमात्मा ! सर्व प्राणी का जीवन आधार भी आप ही हो। मैं आपके आश्रित हूँ आप मेरे मालिक हो। आपने ही गुरु रूप में आकर सत्यभक्ति का निर्णायक ज्ञान देकर सर्व झगड़ा निपटा दिया अर्थात् सर्व शंका का समाधान कर दिया।
(श्री गुरु ग्रन्थ साहेब पृष्ठ नं. 721, राग तिलंग महला 1)
यक अर्ज गुफतम् पेश तो दर कून करतार।
हक्का कबीर करीम तू बेअब परवरदिगार।
नानक बुगोयद जन तुरा तेरे चाकरां पाखाक।
उपरोक्त अमृतवाणी में स्पष्ट कर दिया कि हे (हक्का कबीर) आप सत्कबीर (कून करतार) शब्द शक्ति से रचना करने वाले शब्द स्वरूपी प्रभु अर्थात् सर्व सृष्टी के रचन हार हो, आप ही बेएब निर्विकार (परवरदिगार) सर्व के पालन कर्ता दयालु प्रभु हो, मैं आपके दासों का भी दास हूँ।
(श्री गुरु ग्रन्थ साहेब पृष्ठ नं. 24, राग सीरी महला 1)
तेरा एक नाम तारे संसार, मैं ऐहा आस ऐहो आधार।
नानक नीच कहै बिचार, धाणक रूप रहा करतार।।
उपरोक्त अमृतवाणी में प्रमाण किया है कि जो काशी में धाणक (जुलाहा) है यही (करतार) कुल का सृजनहार है। अति आधीन होकर श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि मैं सत कह रहा हूँ कि यह धाणक अर्थात् कबीर जुलाहा ही पूर्ण ब्रह्म (सतपुरुष) है।
विशेष:- उपरोक्त प्रमाणों के सांकेतिक ज्ञान से प्रमाणित हुआ सृष्टी रचना कैसे हुई? अब पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति करनी चाहिए। यह पूर्ण संत से नाम लेकर ही संभव है।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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नानक देव जी की वाणी में सृष्टी रचना का संकेत
श्री नानक साहेब जी की अमृतवाणी, महला 1, राग बिलावलु, अंश 1 (गु.ग्र पृ.839)
आपे सचु कीआ कर जोडि़। अंडज फोडि़ जोडि विछोड़।।
धरती आकाश कीए बैसण कउ थाउ। राति दिनंतु कीए भउ-भाउ।।
जिन कीए करि वेखणहारा।(3)
त्रितीआ ब्रह्मा-बिसनु-महेसा। देवी देव उपाए वेसा।।(4)
पउण पाणी अगनी बिसराउ। ताही निरंजन साचो नाउ।।
तिसु महि मनुआ रहिआ लिव लाई। प्रणवति नानकु कालु न खाई।।(10)
उपरोक्त अमृतवाणी का भावार्थ है कि सच्चे परमात्मा (सतपुरुष) ने स्वयं ही अपने हाथों से सर्व सृष्टी की रचना की है। उसी ने अण्डा बनाया फिर फोड़ा तथा उसमें से ज्योति निरंजन निकला। उसी पूर्ण परमात्मा ने सर्व प्राणियों के रहने के लिए धरती, आकाश, पवन, पानी आदि पाँच तत्व रचे। अपने द्वारा रची सृष्टी का स्���यं ही साक्षी है। दूसरा कोई सही जानकारी नहीं दे सकता। फिर अण्डे के फूटने से निकले निरंजन के बाद तीनों श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी की उत्पत्ति हुई तथा अन्य देवी-देवता उत्पन्न हुए तथा अनगिनत जीवों की उत्पत्ति हुई। उसके बाद अन्य देवों के जीवन चरित्र तथा अन्य ऋषियों के अनुभव के छः शास्त्र तथा अठारह पुराण बन गए। पूर्ण परमात्मा के सच्चे नाम (सत्यनाम) की साधना अनन्य मन से करने से तथा गुरु मर्यादा में रहने वाले (प्रणवति) को श्री नानक जी कह रहे हैं कि काल नहीं खाता।
राग मारु(अंश) अमृतवाणी महला 1(गु.ग्र.पृ. 1037)
सुनहु ब्रह्मा, बिसनु, महेसु उपाए। सुने वरते जुग सबाए।।
इसु पद बिचारे सो जनु पुरा। तिस मिलिए भरमु चुकाइदा।।(3)
साम वेदु, रुगु जुजरु अथरबणु। ब्रहमें मुख माइआ है त्रौगुण।।
ता की कीमत कहि न सकै। को तिउ बोले जिउ बुलाईदा।।(9)
उपरोक्त अमृतवाणी का सारांश है कि जो संत पूर्ण सृष्टी रचना सुना देगा तथा बताएगा कि अण्डे के दो भाग होकर कौन निकला, जिसने फिर ब्रह्मलोक की सुन्न में अर्थात् गुप्त स्थान पर ब्रह्मा-विष्णु-शिव जी की उत्पत्ति की तथा वह परमात्मा कौन है जिसने ब्रह्म (काल) के मुख से चारों वेदों (पवित्र ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद) को उच्चारण करवाया, वह पूर्ण परमात्मा जैसा चाहे वैसे ही प्रत्येक प्राणी को बुलवाता है। इस सर्व ज्ञान को पूर्ण बताने वाला सन्त मिल जाए तो उसके पास जाइए तथा जो सभी शंकाओं का पूर्ण निवारण करता है, वही पूर्ण सन्त अर्थात् तत्वदर्शी है।
श्री गुरु ग्रन्थ साहेब पृष्ठ 929 अमृत वाणी श्री नानक साहेब जी की राग रामकली महला 1 दखणी ओअंकार
ओअंकारि ब्रह्मा उतपति। ओअंकारू कीआ जिनि चित। ओअंकारि सैल जुग भए। ओअंकारि बेद निरमए। ओअंकारि सबदि उधरे। ओअंकारि गुरुमुखि तरे। ओनम अखर सुणहू बीचारु। ओनम अखरु त्रिभवण सारु।
उपरोक्त अमृतवाणी में श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि ओंकार अर्थात् ज्योति निरंजन (काल) से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई। कई युगों मस्ती मार कर ओंकार (ब्रह्म) ने वेदों की उत्पत्ति की जो ब्रह्मा जी को प्राप्त हुए। तीन लोक की भक्ति का केवल एक ओ3म् मंत्र ही वास्तव में जाप करने का है। इस ओ3म् शब्द को पूरे संत से उपदेश लेकर अर्थात् गुरू धारण करके जाप करने से उद्धार होता है।
विशेष:- श्री नानक साहेब जी ने तीनों मंत्रों (ओ3म् तत् सत्) का स्थान - स्थान पर रहस्यात्मक विवरण दिया है। उसको केवल पूर्ण संत (तत्वदर्शी संत) ही समझ सकता है तथा तीनों मंत्रों के जाप को उपदेशी को समझाया जाता है।
(पृ. 1038) उत्तम सतिगुरु पुरुष निराले, सबदि रते हरि रस मतवाले।
रिधि, बुधि, सिधि, गिआन गुरु ते पाइए, पूरे भाग मिलाईदा।।(15)
सतिगुरु ते पाए बीचारा, सुन समाधि सचे घरबारा।
नानक निरमल नादु सबद धुनि, सचु रामैं नामि समाइदा (17)।।5।।17।।
उपरोक्त अमृतवाणी का भावार्थ है कि वास्तविक ज्ञान देने वाले सतगुरु तो निराले ही हैं, वे केवल नाम जाप को जपते हैं, अन्य हठयोग साधना नहीं बताते। यदि आप को धन दौलत, पद, बुद्धि या भक्ति शक्ति भी चाहिए तो वह भक्ति मार्ग का ज्ञान पूर्ण संत ही पूरा प्रदान करेगा, ऐसा पूर्ण संत बडे़ भाग्य से ही मिलता है। वही पूर्ण संत विवरण बताएगा कि ऊपर सुन्न (आकाश) में अपना वास्तविक घर (सत्यलोक) परमेश्वर ने रच रखा है।
उसमें एक वास्तविक सार नाम की धुन (आवाज) हो रही है। उस आनन्द में अविनाशी परमेश्वर के सार शब्द से समाया जाता है अर्थात् उस वास्तविक सुखदाई स्थान में वास हो सकता है, अन्य नामों तथा अधूरे गुरुओं से नहीं हो सकता।
आंशिक अमृतवाणी महला पहला (श्री गु. ग्र. पृ. 359-360)
सिव नगरी महि आसणि बैसउ कलप त्यागी वादं।(1)
सिंडी सबद सदा धुनि सोहै अहिनिसि पूरै नादं।(2)
हरि कीरति रह रासि हमारी गुरु मुख पंथ अतीत (3)
सगली जोति हमारी संमिआ नाना वरण अनेकं।
कह नानक सुणि भरथरी जोगी पारब्रह्म लिव एकं।(4)
उपरोक्त अमृतवाणी का भावार्थ है कि श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि हे भरथरी योगी जी आप की साधना भगवान शिव तक है, उससे आप को शिव नगरी (लोक) में स्थान मिला है और शरीर में जो सिंगी शब्द आदि हो रहा है वह इन्हीं कमलों का है तथा टेलीविजन की तरह प्रत्येक देव के लोक से शरीर में सुनाई दे रहा है।
हम तो एक परमात्मा पारब्रह्म अर्थात् सर्वसे पार जो पूर्ण परमात्मा है अन्य किसी और एक परमात्मा में लौ (अनन्य मन से लग्न) लगाते हैं।
हम ऊपरी दिखावा (भस्म लगाना, हाथ में दंडा रखना) नहीं करते। मैं तो सर्व प्राणियों को एक पूर्ण परमात्मा (सतपुरुष) की सन्तान समझता हूँ। सर्व उसी शक्ति से चलायमान हैं। हमारी मुद्रा तो सच्चा नाम जाप गुरु से प्राप्त करके करना है तथा क्षमा करना हमारा बाणा (वेशभूषा) है। मैं तो पूर्ण परमात्मा का उपासक हूँ तथा पूर्ण सतगुरु का भक्ति मार्ग इससे भिन्न है।
अमृत वाणी राग आसा महला 1 (श्री गु. ग्र. पृ. 420)
।।आसा महला 1।। जिनी नामु विसारिआ दूजै भरमि भुलाई। मूलु छोडि़ डाली लगे किआ पावहि छाई।।1।। साहिबु मेरा एकु है अवरु नहीं भाई। किरपा ते सुखु पाइआ साचे परथाई।।3।। गुर की सेवा सो करे जिसु आपि कराए। नानक सिरु दे छूटीऐ दरगह पति पाए।।8।।18।।
उपरोक्त वाणी का भावार्थ है कि श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि जो पूर्ण परमात्मा का वास्तविक नाम भूल कर अन्य भगवानों के नामों के जाप में भ्रम रहे हैं वे तो ऐसा कर रहे हैं कि मूल (पूर्ण परमात्मा) को छोड़ कर डालियों (तीनों गुण रूप रजगुण-ब्रह्मा, सतगुण-विष्णु, तमगुण-शिवजी) की सिंचाई (पूजा) कर रहे हैं। उस साधना से कोई सुख नहीं हो सकता अर्थात् पौधा सूख जाएगा तो छाया में नहीं बैठ पाओगे। भावार्थ है कि शास्त्र विधि रहित साधना करने से व्यर्थ प्रयत्न है। कोई लाभ नहीं। इसी का प्रमाण पवित्र गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में भी है। उस पूर्ण परमात्मा को प्राप्त करने के लिए मनमुखी (मनमानी) साधना त्याग कर पूर्ण गुरुदेव को समर्पण करने से तथा सच्चे नाम के जाप से ही मोक्ष संभव है, नहीं तो मृत्यु के उपरांत नरक जाएगा।
(श्री गुरु ग्रन्थ साहेब पृष्ठ नं. 843.844)
।।बिलावलु महला 1।। मैं मन चाहु घणा साचि विगासी राम। मोही प्रेम पिरे प्रभु अबिनासी राम।। अविगतो हरि नाथु नाथह तिसै भावै सो थीऐ। किरपालु सदा दइआलु दाता जीआ अंदरि तूं जीऐ। मैं आधारु तेरा तू खसमु मेरा मै ताणु तकीआ तेरओ। साचि सूचा सदा नानक गुरसबदि झगरु निबेरओ।।4।।2।।
उपरोक्त अमृतवाणी में श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि अविनाशी पूर्ण परमात्मा नाथों का भी नाथ है अर्थात् देवों का भी देव है (सर्व प्रभुओं श्री ब्रह्मा जी,
श्री विष्णु जी, श्री शिव जी तथा ब्रह्म व परब्रह्म पर भी नाथ है अर्थात् स्वामी है) मैं तो सच्चे नाम को हृदय में समा चुका हूँ। हे परमात्मा ! सर्व प्राणी का जीवन आधार भी आप ही हो। मैं आपके आश्रित हूँ आप मेरे मालिक हो। आपने ही गुरु रूप में आकर सत्यभक्ति का निर्णायक ज्ञान देकर सर्व झगड़ा निपटा दिया अर्थात् सर्व शंका का समाधान कर दिय��।
(श्री गुरु ग्रन्थ साहेब पृष्ठ नं. 721, राग तिलंग महला 1)
यक अर्ज गुफतम् पेश तो दर कून करतार।
हक्का कबीर करीम तू बेअब परवरदिगार।
नानक बुगोयद जन तुरा तेरे चाकरां पाखाक।
उपरोक्त अमृतवाणी में स्पष्ट कर दिया कि हे (हक्का कबीर) आप सत्कबीर (कून करतार) शब्द शक्ति से रचना करने वाले शब्द स्वरूपी प्रभु अर्थात् सर्व सृष्टी के रचन हार हो, आप ही बेएब निर्विकार (परवरदिगार) सर्व के पालन कर्ता दयालु प्रभु हो, मैं आपके दासों का भी दास हूँ।
(श्री गुरु ग्रन्थ साहेब पृष्ठ नं. 24, राग सीरी महला 1)
तेरा एक नाम तारे संसार, मैं ऐहा आस ऐहो आधार।
नानक नीच कहै बिचार, धाणक रूप रहा करतार।।
उपरोक्त अमृतवाणी में प्रमाण किया है कि जो काशी में धाणक (जुलाहा) है यही (करतार) कुल का सृजनहार है। अति आधीन होकर श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि मैं सत कह रहा हूँ कि यह धाणक अर्थात् कबीर जुलाहा ही पूर्ण ब्रह्म (सतपुरुष) है।
विशेष:- उपरोक्त प्रमाणों के सांकेतिक ज्ञान से प्रमाणित हुआ सृष्टी रचना कैसे हुई? अब पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति करनी चाहिए। यह पूर्ण संत से नाम लेकर ही संभव है।
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Agam - शिव पुराण का पूरा सार शिव अमृतवाणी के रूप में Shiv Amritwani | Mo...
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[02/08, 6:28 pm] +91 83078 98929: #प्रभु_प्राप्त_संतों_से_रूबरू
#SupremeGodKabir #sant #guru #guruji #satsang #moksha #god #spiritual #meditation #mantra #krishna #mahadev
#SantRampalJiMahharaj
[02/08, 6:28 pm] +91 83078 98929: परमात्मा प्राप्त संतों से रूबरू
संत गरीबदास जी को परमात्मा कबीर साहेब जी जिंदा महात्मा रूप में मिले और अपना सतलोक लोक दिखाया व वापिस पृथ्वी पर छोड़ा। तब संत गरीबदास जी ने बताया:
अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड का, एक रति नहीं भार।
सतगुरु पुरुष कबीर हैं, कुल के सृजनहार।।
गरीब, हम सुल्तानी नानक तारे, दादू कूं उपदेश दिया।
जाति जुलाहा भेद न पाया, काशी माहें कबीर हुआ ।।
#प्रभु_प्राप्त_संतों_से_रूबरू
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[02/08, 6:28 pm] +91 83078 98929: परमात्मा प्राप्त संतों से रूबरू
आदरणीय गरीबदास साहेब जी को पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी 10 वर्ष की आयु में सशरीर जिंदा बाबा रूप में मिले। उनको ब्रह्मा, विष्णु, शिव आदि के लोक तथा सतलोक दिखाया। तत्पश्चात् संत गरीबदास जी ने आंखों देखा हाल वर्णन किया:
गरीब, सब पदवी के मूल हैं, सकल सिद्धि हैं तीर ।
दास गरीब सतपुरुष भजो, अविगत कला कबीर।।
#प्रभु_प्राप्त_संतों_से_रूबरू
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[02/08, 6:28 pm] +91 83078 98929: परमात्मा प्राप्त संतों से रूबरू
स्वामी रामानन्द जी अपने समय के सुप्रसिद्ध विद्वान कहे जाते थे। स्वामी रामानंद जी को पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी मिले तथा उन्हें अपनी शरण में लिया सतलोक दिखाया। तब रामानन्द जी ने जो कहा उसका वर्णन आदरणीय संत गरीबदास जी ने अपनी वाणी में इस प्रकार किया है:
तहां वहां चित चक्रित भया, देखि फजल दरबार।
गरीबदास सिजदा किया, हम पाये दीदार।।
बोलत रामानन्द जी सुन, कबीर करतार।
गरीब दास सब रूप में, तुम हीं बोलन हार।।
#प्रभु_प्राप्त_संतों_से_रूबरू
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#SantRampalJiMahharaj
[02/08, 6:28 pm] +91 83078 98929: परमात्मा प्राप्त संतों से रूबरू
आदरणीय दादू जी, जब सात वर्ष के बालक थे तब पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी जिंदा महात्मा के रूप में मिले तथा सत्यलोक लेकर गए। सर्व लोकों व अपनी ��्थिति से परिचित करवाया एवं पुनः पृथ्वी पर वापस छोड़ा। तब दादू जी ने अपनी अमृतवाण�� में कहा:
जिन मोकूं निज नाम दिया, सोई सतगुरु हमार।
दादू दूसरा कोई नहीं, कबीर सिरजनहार।।
#प्रभु_प्राप्त_संतों_से_रूबरू
#SupremeGodKabir #sant #guru #guruji #satsang #moksha #god #spiritual #meditation #mantra #krishna #mahadev
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धनी धर्मदास जी को कबीर परमेश्वर जिंदा महात्मा के रूप में मिले, उनको सतलोक दिखाया और अपना गवाह बनाया। तब धर्मदास जी ने परमेश्वर कबीर जी के विषय में कहा था:
सत्यलोक से चल कर आए, काटन जम की जंजीर।।
आज मोहे दर्शन दियो जी कबीर।।
#प्रभु_प्राप्त_संतों_से_रूबरू
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[02/08, 6:28 pm] +91 83078 98929: परमात्मा प्राप्त संतों से रूबरू
श्री नानक जी प्रतिदिन बेई नदी पर स्नान करने जाते थे। वहाँ उन्हें पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी के दर्शन जिंदा महात्मा के रूप में हुए, उन्हें परमात्मा सच्चखंड (सतलोक) लेकर गए और अपनी वास्तविक स्थिति से परिचित करवाकर वापिस छोड़ा। गुरु ग्रन्थ साहिब के राग "सिरी" महला 1 पृष्ठ नं. 24 पर शब्द नं. 29 पर श्री नानक जी ने कहा है:
एक सुआन दुई सुआनी नाल,भलके भौंकही सदा बिआल।
कुड़ छुरा मुठा मुरदार, धाणक रूप रहा करतार ।।
#प्रभु_प्राप्त_संतों_से_रूबरू
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[02/08, 6:28 pm] +91 83078 98929: परमात्मा प्राप्त संतों से रूबरू
श्री गुरुग्रन्थ साहेब पृष्ठ 721, महला 1 में श्री नानक देव जी ने परमात्मा का आँखों देखा वर्णन किया है:
हक्का कबीर करीम तू, बेएब परवरदीगार।
नानक बुगोयद जनु तुरा, तेरे चाकरां पाखाक।।
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[02/08, 6:28 pm] +91 83078 98929: परमात्मा प्राप्त संतों से रूबरू
आदरणीय गरीबदास जी को परमेश्वर कबीर साहेब जी ने अपना अमर लोक दिखाया, फिर वापिस पृथ्वी पर छोड़ दिया। तब उन्होंने अपनी अमृत वाणी के माध्यम से बताया :
गैबी ख्याल विशाल सतगुरु, अचल दिगम्बर थीर है।
भक्ति हेत काया धर आये, अविगत सत कबीर हैं।।
हरदम खोज हनोज हाजर, त्रिवैणी के तीर हैं।
दास गरीब तबीब सतगुरु, बन्दी छोड़ कबीर हैं।।
#प्रभु_प्राप्त_संतों_से_रूबरू
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[02/08, 6:28 pm] +91 83078 98929: परमात्मा प्राप्त संतों से रूबरू
संत गरीबदास जी को कबीर परमात्मा मिले, उनको सतलोक लेकर गए। इसका प्रमाण उन्होंने अपनी अमृतवाणी में दिया :
अजब नगर में ले गया, हमकूं सतगुरु आन।
झिलके बिम्ब अगाध गति, सूते चादर तान।।
अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड का एक रति नहीं भार।
सतगुरु पुरुष कबीर हैं कुल के सृजनहार।।
#प्रभु_प्राप्त_संतों_से_रूबरू
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[02/08, 6:28 pm] +91 83078 98929: परमात्मा प्राप्त संतों से रूबरू
परमेश्वर कबीर जी को अविनाशी लोक "सतलोक" में सिंहासन पर विराजमान देखने के बाद स्वामी रामानंद जी ने कहा:
सुन्न-बेसुन्न सैं तुम परै, उरैं स हमरै तीर।
गरीबदास सरबंग में, अबिगत पुरूष कबीर।।
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Sadhna TV Satsang || 02-08-2024 || Episode: 2988|| Sant Rampal Ji Mahara...
*📯🙏बन्दीछोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की जय🙏📯*
02/ August /2024 /Friday / शुक्रवार
#FridayMotivation
#FridayThoughts
#प्रभु_प्राप्त_संतों_से_रूबरू
#SupremeGodKabir #sant #guru #guruji #satsang #moksha #god #spiritual #meditation #mantra
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1🌀परमात्मा प्राप्त संतों से रूबरू
स्वामी रामानन्द जी अपने समय के सुप्रसिद्ध विद्वान कहे जाते थे। स्वामी रामानंद जी को पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी मिले तथा उन्हें अपनी शरण में लिया सतलोक दिखाया! तब रामानन्द जी ने जो कहा उसका वर्णन आदरणीय संत गरीबदास जी ने अपनी वाणी में इस प्रकार किया है :-
*तहां वहां चित चक्रित भया, देखि फजल दरबार!
गरीबदास सिजदा किया, हम पाये दीदार!!*
*बोलत रामानन्द जी सुन, कबीर करतार!
गरीब दास सब रूप में, तुम हीं बोलन हार!!*
2🌀परमात्मा प्राप्त संतों से रूबरू
संत गरीबदास जी को परमात्मा कबीर साहेब जी जिंदा महात्मा रूप में मिले और अपना सतलोक लोक दिखाया व वापिस पृथ्वी पर छोड़ा! तब संत गरीबदास जी ने बताया :-
*अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड का, एक रति नहीं भार!
सतगुरु पुरुष कबीर हैं, कुल के सृजनहार!!*
*गरीब, हम सुल्तानी नानक तारे, दादू कूं उपदेश दिया!
जाति जुलाहा भेद न पाया, काशी माहें कबीर हुआ!!*
3🌀परमात्मा प्राप्त संतों से रूबरू
आदरणीय गरीबदास साहेब जी को पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी 10 वर्ष की आयु में सशरीर जिंदा बाबा रूप में मिले!उनको ब्रह्मा, विष्णु, शिव आदि के लोक तथा सतलोक दिखाया! तत्पश्चात् संत गरीबदास जी ने आंखों देखा हाल वर्णन किया :-
*गरीब, सब पदवी के मूल हैं, सकल सिद्धि हैं तीर!
दास गरीब सतपुरुष भजो, अविगत कला कबीर!!*
4🌀परमात्मा प्राप्त संतों से रूबरू
श्री नानक जी प्रतिदिन बेई नदी पर स्नान करने जाते थे। वहाँ उन्हें पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी के दर्शन जिंदा महात्मा के रूप में हु���, उन्हें परमात्मा सच्चखंड (सतलोक) लेकर गए और अपनी वास्तविक स्थिति से परिचित करवाकर वापिस छोड़ा!
गुरु ग्रन्थ साहिब के राग "सिरी" महला 1 पृष्ठ नं. 24 पर शब्द नं. 29 पर श्री नानक जी ने कहा है :-
*एक सुआन दुई सुआनी नाल,भलके भौंकही सदा बिआल!
कुड़ छुरा मुठा मुरदार, धाणक रूप रहा करतार!!*
5🌀परमात्मा प्राप्त संतों से रूबरू
धनी धर्मदास जी को कबीर परमेश्वर जिंदा महात्मा के रूप में मिले, उनको सतलोक दिखाया और अपना गवाह बनाया! तब धर्मदास जी ने परमेश्वर कबीर जी के विषय में कहा था:
*सत्यलोक से चल कर आए, काटन जम की जंजीर!
आज मोहे दर्शन दियो जी कबीर!!*
6🌀परमात्मा प्राप्त संतों से रूबरू
आदरणीय दादू जी, जब सात वर्ष के बालक थे तब पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी जिंदा महात्मा के रूप में मिले तथा सत्यलोक लेकर गए! सर्व लोकों व अपनी स्थिति से परिचित करवाया एवं पुनः पृथ्वी पर वापस छोड़ा! तब दादू जी ने अपनी अमृतवाणी में कहा:
*जिन मोकूं निज नाम दिया, सोई सतगुरु हमार!
दादू दूसरा कोई नहीं, कबीर सिरजनहार!!*
7🌀परमात्मा प्राप्त संतों से रूबरू
संत गरीबदास जी को कबीर परमात्मा मिले, उनको सतलोक लेकर गए। इसका प्रमाण उन्होंने अपनी अमृतवाणी में दिया :
*अजब नगर में ले गया, हमकूं सतगुरु आन!
झिलके बिम्ब अगाध गति, सूते चादर तान!!*
*अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड का एक रति नहीं भार!
सतगुरु पुरुष कबीर हैं कुल के सृजनहार!!*
8🌀परमात्मा प्राप्त संतों से रूबरू
आदरणीय गरीबदास जी को परमेश्वर कबीर साहेब जी ने अपना अमर लोक दिखाया, फिर वापिस पृथ्वी पर छोड़ दिया। तब उन्होंने अपनी अमृत वाणी के माध्यम से बताया :
*गैबी ख्याल विशाल सतगुरु, अचल दिगम्बर थीर है!
भक्ति हेत काया धर आये, अविगत सत कबीर हैं!!*
*हरदम खोज हनोज हाजर, त्रिवैणी के तीर हैं!
दास गरीब तबीब सतगुरु, बन्दी छोड़ कबीर हैं!!*
9🌀परमात्मा प्राप्त संतों से रूबरू
श्री गुरुग्रन्थ साहेब पृष्ठ 721, महला 1 में श्री नानक देव जी ने परमात्मा का आँखों देखा वर्णन किया है:
*हक्का कबीर करीम तू, बेएब परवरदीगार!
नानक बुगोयद जनु तुरा, तेरे चाकरां पाखाक!!*
10🌀परमात्मा प्राप्त संतों से रूबरू
परमेश्वर कबीर जी को अविनाशी लोक "सतलोक" में सिंहासन पर विराजमान देखने के बाद स्वामी रामानंद जी ने कहा:
*सुन्न-बेसुन्न सैं तुम परै, उरैं स हमरै तीर!
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ईश्वर 📺 चैनल 6:00 a.m.
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आज के एपिसोड में जाने श्रीमद् भगवत गीता का पवित्र ज्ञान गीता ज्ञान दाता ने अध्याय 4 श्लोक 25 से 30 में_ कौन सी साधना पाप नाशक बताई है ?
क्योंकि पाप नाश होने के बाद ही जीवात्मा का मोक्ष होगा!
गीता अध्याय 15 श्लोक 16,17 में तीन पुरुषों का उल्लेख किया गया है !
🙏तो आओ जानें! यह तीन पुरुष कौन हैं ?
🙏सत साहेब जी🙏 जय बंदी छोड़ जी की🙏
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सावन शिवरात्रि 2024 - Sawan Shivaratri Specials
शुक्रवार, 2 अगस्त 2024 सावन शिवरात्रि रात्रि प्रहर पूजा समय: [दिल्ली] प्रथम प्रहर - 7:11pm से 09:49pm | 2 अगस्त 2024 द्वितीय प्रहर - 9:49pm से 12:27am | 3 अगस्त 2024 तृतीय प्रहर - 12:27am से 3:06am | 3 अगस्त 2024 चतुर्थ प्रहर - 3:06am से 5:44am | 3 अगस्त 2024
सावन शिवरात्रि क्यों, कब, कहाँ और कैसे? ❀ शिवरात्रि 2024 ❀ काँवड़ यात्रा 2024
शिवरात्रि मंत्र: ❀ श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र ❀ लिङ्गाष्टकम् ❀ शिव तांडव स्तोत्रम् ❀ दारिद्र्य दहन शिवस्तोत्रं ❀ द्वादश ज्योतिर्लिंग मंत्र - सौराष्ट्रे सोमनाथं ❀ द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग स्तोत्रम् ❀ महामृत्युंजय मंत्र, संजीवनी मंत्र ❀ शिवाष्ट्कम् ❀ शिव स्वर्णमाला स्तुति ❀ कर्पूरगौरं करुणावतारं ❀ बेलपत्र / बिल्वपत्र चढ़ाने का मंत्र
शिव आरती: ❀ शिव आरती: जय शिव ओंकारा ❀ शिव आरती: ॐ जय गंगाधर ❀ हर महादेव आरती: सत्य, सनातन, सुंदर ❀ शिव स्तुति: आशुतोष शशाँक शेखर ❀ आरती माँ पार्वती ❀ ॐ जय जगदीश हरे आरती
शिवरात्रि चालीसा: ❀ श्री शिव चालीसा ❀ पार्वती चालीसा ❀ शिव अमृतवाणी
शिव कथा: ❀ श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग प्रादुर्भाव पौराणिक कथा ❀ श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति पौराणिक कथा ❀ श्री त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति पौराणिक कथा ❀ श्री भीमशंकर ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति पौराणिक कथा ❀ हिरण्यगर्भ दूधेश्वर ज्योतिर्लिंग प्रादुर्भाव पौराणिक कथा ❀ गोपेश्वर महादेव की लीला
शिव नामावली: ❀ श्रीरुद्राष्टकम् ❀ श्री शिवसहस्रनामावली ❀ शिव शतनाम-नामावली स्तोत्रम्!
शिवरात्रि भजन: ❀ शीश गंग अर्धंग पार्वती ❀ ॐ शंकर शिव भोले उमापति महादेव ❀ इक दिन वो भोले भंडारी बन करके ब्रज की नारी ❀ हे शम्भू बाबा मेरे भोले नाथ ❀ चलो शिव शंकर के मंदिर में ��क्तो ❀ बाहुबली से शिव तांडव स्तोत्रम, कौन-है वो ❀ शिव शंकर को जिसने पूजा उसका ही उद्धार हुआ ❀ सुबह सुबह ले शिव का नाम ❀ सावन भजन: आई बागों में बहार, झूला झूले राधा प्यारी ❀ शिव भजन
काँवड़ भजन: ❀ चल काँवरिया, चल काँवरिया ❀ भोले के कांवड़िया मस्त बड़े मत वाले हैं ❀ जिस काँधे कावड़ लाऊँ, मैं आपके लिए ❀ बाबा बैद्यनाथ हम आयल छी भिखरिया
शिव मंदिर: ❀ द्वादश(12) शिव ज्योतिर्लिंग ❀ ���िल्ली के प्रसिद्ध शिव मंदिर ❀ सोमनाथ के प्रमुख सिद्ध मंदिर ❀ भुवनेश्वर के विश्व प्रसिद्ध मंदिर
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#कबीर_बड़ा_या_कृष्ण
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पूज्य कबीर परमेश्वर (कविर् देव) जी की अमृतवाणी में सृष्टि रचना
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अमृतवाणी में परमेश्वर कबीर साहेब जी अपने निजी सेवक श्री धर्मदास साहेब जी को कह रहे हैं कि धर्मदास यह सर्व संसार तत्वज्ञान के अभाव से विचलित है। किसी को पूर्ण मोक्ष मार्ग तथा पूर्ण सृष्टि रचना का ज्ञान नहीं है। इसलिए मैं आपको मेरे द्वारा रची सृष्टि की कथा सुनाता हूँ। बुद्धिमान व्यक्ति तो तुरंत समझ जायेंगे। परन्तु जो सर्व प्रमाणों को देखकर भी नहीं मानेंगे तो वे नादान प्राणी काल प्रभाव से प्रभावित हैं, वे भक्ति योग्य नहीं। अब मैं बताता हूँ तीनों भगवानों (ब्रह्मा जी, विष्णु जी तथा शिव जी) की उत्पत्ति कैसे हुई? इनकी माता जी तो अष्टंगी (दुर्गा) है तथा पिता ज्योति निरंजन (ब्रह्म, काल) है। पहले ब्रह्म की उत्पत्ति अण्डे से हुई। फिर दुर्गा की उत्पत्ति हुई। दुर्गा के रूप पर आसक्त होकर काल (ब्रह्म) ने गलती (छेड़-छाड़) की, तब दुर्गा (प्रकृति) ने इसके पेट में शरण ली। मैं वहाँ गया जहाँ ज्योति निरंजन काल था। तब भवानी को ब्रह्म के उदर से निकाल कर इक्कीस ब्रह्माण्ड समेत 16 संख कोस की दूरी पर भेज दिया। ज्योति निरंजन (धर्मराय) ने प्रकृति देवी (दुर्गा) के साथ भोग-विलास किया। इन दोनों के संयोग से तीनों गुणों (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी) की उत्पत्ति हुई। इन्हीं तीनों गुणों (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी) की ही पूजा करके सर्व प्राणी काल जाल में फंसे हैं। जब तक वास्तविक मंत्र नहीं मिलेगा, पूर्ण मोक्ष कैसे होगा? भक्तजन विचार करें कि श्री ब्रह्मा जी श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी की स्थिति अविनाशी बताई गई थी। सर्व हिन्दु समाज अभी तक तीनों परमात्माओं को अजर, अमर व जन्म-मृत्यु रहित मानते रहे जबकि ये तीनों नाश्वान हैं। इन के पिता ��ाल रूपी ब्रह्म तथा माता दुर्गा (प्रकृति/अष्टांगी) हैं जैसा आप ने पूर्व प्रमाणों में पढ़ा यह ज्ञान अपने शास्त्रों में भी विद्यमान है परन्तु हिन्दु समाज के कलयुगी गुरूओं, ऋषियों, सन्तों को ज्ञान नहीं। जो अध्यापक पाठ्यक्रम (सलेबस) से ही अपरिचित है वह अध्यापक ठीक नहीं (विद्वान नहीं) है, विद्यार्थियों के भविष्य का शत्रु है। इसी प्रकार जिन गुरूओं को अभी तक यह नहीं पता कि श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु तथा श्री शिव जी के माता-पिता कौन हैं? तो वे गुरू, ऋषि,सन्त ज्ञान हीन हैं। जिस कारण से सर्व भक्त समाज को शास्त्र विरूद्ध ज्ञान (लोक वेद अर्थात् दन्त कथा) सुना कर अज्ञान से परिपूर्ण कर दिया। शास्त्रविधि विरूद्ध भक्तिसाधना करा के परमात्मा के वास्तविक लाभ (पूर्ण मोक्ष) से वंचित रखा सबका मानव जन्म नष्ट करा दिया क्योंकि श्री मद्भगवत गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में यही प्रमाण है कि जो शास्त्रविधि त्यागकर मनमाना आचरण पूजा करता है। उसे कोई लाभ नहीं होता पूर्ण परमात्मा कबीर जी ने पाँच वर्ष की लीलामय आयु में सन् 1403 से ही सर्व शास्त्रों युक्त ज्ञान अपनी अमृतवाणी (कविरवाणी) में बताना प्रारम्भ किया था। परन्तु उन अज्ञानी गुरूओं ने यह ज्ञान भक्त समाज तक नहीं जाने दिया। जो वर्तमान में सर्व सद्ग्रन्थों से स्पष्ट हो रहा है इससे सिद्ध है कि कर्विदेव (कबीर प्रभु) तत्वदर्शी सन्त रूप में स्वयं पूर्ण परमात्मा ही आए थे।
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart121 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart122
आदरणीय नानक साहेब जी की वाणी में सृष्टी रचना का संकेत
नानक देव जी की वाणी में सृष्टी रचना का संकेत
श्री नानक साहेब जी की अमृतवाणी, महला 1, राग बिलावलु, अंश 1 (गु.ग्र पृ.839)
आपे सचु कीआ कर जोडि़। अंडज फोडि़ जोडि विछोड़।।
धरती आकाश कीए बैसण कउ थाउ। राति दिनंतु कीए भउ-भाउ।।
जिन कीए करि वेखणहारा।(3)
त्रितीआ ब्रह्मा-बिसनु-महेसा। देवी देव उपाए वेसा।।(4)
पउण पाणी अगनी बिसराउ। ताही निरंजन साचो नाउ।।
तिसु महि मनुआ रहिआ लिव लाई। प्रणवति नानकु कालु न खाई।।(10)
उपरोक्त अमृतवाणी का भावार्थ है कि सच्चे परमात्मा (सतपुरुष) ने स्वयं ही अपने हाथों से सर्व सृष्टी की रचना की है। उसी ने अण्डा बनाया फिर फोड़ा तथा उसमें से ज्योति निरंजन निकला। उसी पूर्ण परमात्मा ने सर्व प्राणियों के रहने के लिए धरती, आकाश, पवन, पानी आदि पाँच तत्व रचे। अपने द्वारा रची सृष्टी का स्वयं ही साक्षी है। दूसरा कोई सही जानकारी नहीं दे सकता। फिर अण्डे के फूटने से निकले निरंजन के बाद तीनों श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी की उत्पत्ति हुई तथा अन्य देवी-देवता उत्पन्न हुए तथा अनगिनत जीवों की उत्पत्ति हुई। उसके बाद अन्य देवों के जीवन चरित्र तथा अन्य ऋषियों के अनुभव के छः शास्त्र तथा अठारह पुराण बन गए। पूर्ण परमात्मा के सच्चे नाम (सत्यनाम) की साधना अनन्य मन से करने से तथा गुरु मर्यादा में रहने वाले (प्रणवति) को श्री नानक जी कह रहे हैं कि काल नहीं खाता।
राग मारु(अंश) अमृतवाणी महला 1(गु.ग्र.पृ. 1037)
सुनहु ब्रह्मा, बिसनु, महेसु उपाए। सुने वरते जुग सबाए।।
इसु पद बिचारे सो जनु पुरा। तिस मिलिए भरमु चुकाइदा।।(3)
साम वेदु, रुगु जुजरु अथरबणु। ब्रहमें मुख माइआ है त्रौगुण।।
ता की कीमत कहि न सकै। को तिउ बोले जिउ बुलाईदा।।(9)
उपरोक्त अमृतवाणी का सारांश है कि जो संत पूर्ण सृष्टी रचना सुना देगा तथा बताएगा कि अण्डे के दो भाग होकर कौन निकला, जिसने फिर ब्रह्मलोक की सुन्न में अर्थात् गुप्त स्थान पर ब्रह्मा-विष्णु-शिव जी की उत्पत्ति की तथा वह परमात्मा कौन है जिसने ब्रह्म (काल) के मुख से चारों वेदों (पवित्र ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद) को उच्चारण करवाया, वह पूर्ण परमात्मा जैसा चाहे वैसे ही प्रत्येक प्राणी को बुलवाता है। इस सर्व ज्ञान को पूर्ण बताने वाला सन्त मिल जाए तो उसके पास जाइए तथा जो सभी शंकाओं का पूर्ण निवारण करता है, वही पूर्ण सन्त अर्थात् तत्वदर्शी है।
श्री गुरु ग्रन्थ साहेब पृष्ठ 929 अमृत वाणी श्री नानक साहेब जी की राग रामकली महला 1 दखणी ओअंकार
ओअंकारि ब्रह्मा उतपति। ओअंकारू कीआ जिनि चित। ओअंकारि सैल जुग भए। ओअंकारि बेद निरमए। ओअंकारि सबदि उधरे। ओअंकारि गुरुमुखि तरे। ओनम अखर सुणहू बीचारु। ओनम अखरु त्रिभवण सारु।
उपरोक्त अमृतवाणी में श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि ओंकार अर्थात् ज्योति निरंजन (काल) से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई। कई युगों मस्ती मार कर ओंकार (ब्रह्म) ने वेदों की उत्पत्ति की जो ब्रह्मा जी को प्राप्त हुए। तीन लोक की भक्ति का केवल एक ओ3म् मंत्र ही वास्तव में जाप करने का है। इस ओ3म् शब्द को पूरे संत से उपदेश लेकर अर्थात् गुरू धारण करके जाप करने से उद्धार होता है।
विशेष:- श्री नानक साहेब जी ने तीनों मंत्रों (ओ3म् तत् सत्) का स्थान - स्थान पर रहस्यात्मक विवरण दिया है। उसको केवल पूर्ण संत (तत्वदर्शी संत) ही समझ सकता है तथा तीनों मंत्रों के जाप को उपदेशी को समझाया जाता है।
(पृ. 1038) उत्तम सतिगुरु पुरुष निराले, सबदि रते हरि रस मतवाले।
रिधि, बुधि, सिधि, गिआन गुरु ते पाइए, पूरे भाग मिलाईदा।।(15)
सतिगुरु ते पाए बीचारा, सुन समाधि सचे घरबारा।
नानक निरमल नादु सबद धुनि, सचु रामैं नामि समाइदा (17)।।5।।17।।
उपरोक्त अमृतवाणी का भावार्थ है कि वास्तविक ज्ञान देने वाले सतगुरु तो निराले ही हैं, वे केवल नाम जाप को जपते हैं, अन्य हठयोग साधना नहीं बताते। यदि आप को धन दौलत, पद, बुद्धि या भक्ति शक्ति भी चाहिए तो वह भक्ति मार्ग का ज्ञान पूर्ण संत ही पूरा प्रदान करेगा, ऐसा पूर्ण संत बडे़ भाग्य से ही मिलता है। वही पूर्ण संत विवरण बताएगा कि ऊपर सुन्न (आकाश) में अपना वास्तविक घर (सत्यलोक) परमेश्वर ने रच रखा है।
उसमें एक वास्तविक सार नाम की धुन (आवाज) हो रही है। उस आनन्द में अविनाशी परमेश्वर के सार शब्द से समाया जाता है अर्थात् उस वास्तविक सुखदाई स्थान में वास हो सकता है, अन्य नामों तथा अधूरे गुरुओं से नहीं हो सकता।
आंशिक अमृतवाणी महला पहला (श्री गु. ग्र. पृ. 359-360)
सिव नगरी महि आसणि बैसउ कलप त्यागी वादं।(1)
सिंडी सबद सदा धुनि सोहै अहिनिसि पूरै नादं।(2)
हरि कीरति रह रासि हमारी गुरु मुख पंथ अतीत (3)
सगली जोति हमारी संमिआ नाना वरण अनेकं।
कह नानक सुणि भरथरी जोगी पारब्रह्म लिव एकं।(4)
उपरोक्त अमृतवाणी का भावार्थ है कि श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि हे भरथरी योगी जी आप की साधना भगवान शिव तक है, उससे आप को शिव नगरी (लोक) में स्थान मिला है और शरीर में जो सिंगी शब्द आदि हो रहा है वह इन्हीं कमलों का है तथा टेलीविजन की तरह प्रत्येक देव के लोक से शरीर में सुनाई दे रहा है।
हम तो एक परमात्मा पारब्रह्म अर्थात् सर्वसे पार जो पूर्ण परमात्मा है अन्य किसी और एक परमात्मा में लौ (अनन्य मन से लग्न) लगाते हैं।
हम ऊपरी दिखावा (भस्म लगाना, हाथ में दंडा रखना) नहीं करते। मैं तो सर्व प्राणियों को एक पूर्ण परमात्मा (सतपुरुष) की सन्तान समझता हूँ। सर्व उसी शक्ति से चलायमान हैं। हमारी मुद्रा तो सच्चा नाम जाप गुरु से प्राप्त करके करना है तथा क्षमा करना हमारा बाणा (वेशभूषा) है। मैं तो पूर्ण परमात्मा का उपासक हूँ तथा पूर्ण सतगुरु का भक्ति मार्ग इससे भिन्न है।
अमृत वाणी राग आसा महला 1 (श्री गु. ग्र. पृ. 420)
।।आसा महला 1।। जिनी नामु विसारिआ दूजै भरमि भुलाई। मूलु छोडि़ डाली लगे किआ पावहि छाई।।1।। साहिबु मेरा एकु है अवरु नहीं भाई। किरपा ते सुखु पाइआ साचे परथाई।।3।। गुर की सेवा सो करे जिसु आपि कराए। नानक सिरु दे छूटीऐ दरगह पति पाए।।8।।18।।
उपरोक्त वाणी का भावार्थ है कि श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि जो पूर्ण परमात्मा का वास्तविक नाम भूल कर अन्य भगवानों के नामों के जाप में भ्रम रहे हैं वे तो ऐसा कर रहे हैं कि मूल (पूर्ण परमात्मा) को छोड़ कर डालियों (तीनों गुण रूप रजगुण-ब्रह्मा, सतगुण-विष्णु, तमगुण-शिवजी) की सिंचाई (पूजा) कर रहे हैं। उस साधना से कोई सुख नहीं हो सकता अर्थात् पौधा सूख जाएगा तो छाया में नहीं बैठ पाओगे। भावार्थ है कि शास्त्र विधि रहित साधना करने से व्यर्थ प्रयत्न है। कोई लाभ नहीं। इसी का प्रमाण पवित्र गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में भी है। उस पूर्ण परमात्मा को प्राप्त करने के लिए मनमुखी (मनमानी) साधना त्याग कर पूर्ण गुरुदेव को समर्पण करने से तथा सच्चे नाम के जाप से ही मोक्ष संभव है, नहीं तो मृत्यु के उपरांत नरक जाएगा।
(श्री गुरु ग्रन्थ साहेब पृष्ठ नं. 843.844)
।।बिलावलु महला 1।। मैं मन चाहु घणा साचि विगासी राम। मोही प्रेम पिरे प्रभु अबिनासी राम।। अविगतो हरि नाथु नाथह तिसै भावै सो थीऐ। किरपालु सदा दइआलु दाता जीआ अंदरि तूं जीऐ। मैं आधारु तेरा तू खसमु मेरा मै ताणु तकीआ तेरओ। साचि सूचा सदा नानक गुरसबदि झगरु निबेरओ।।4।।2।।
उपरोक्त अमृतवाणी में श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि अविनाशी पूर्ण परमात्मा नाथों का भी नाथ है अर्थात् देवों का भी देव है (सर्व प्रभुओं श्री ब्रह्मा जी,
श्री विष्णु जी, श्री शिव जी तथा ब्रह्म व परब्रह्म पर भी नाथ है अर्थात् स्वामी है) मैं तो सच्चे नाम को हृदय में समा चुका हूँ। हे परमात्मा ! सर्व प्राणी का जीवन आधार भी आप ही हो। मैं आपके आश्रित हूँ आप मेरे मालिक हो। आपने ही गुरु रूप में आकर सत्यभक्ति का निर्णायक ज्ञान देकर सर्व झगड़ा निपटा दिया अर्थात् सर्व शंका का समाधान कर दिया।
(श्री गुरु ग्रन्थ साहेब पृष्ठ नं. 721, राग तिलंग महला 1)
यक अर्ज गुफतम् पेश तो दर कून करतार।
हक्का कबीर करीम तू बेअब परवरदिगार।
नानक बुगोयद जन तुरा तेरे चाकरां पाखाक।
उपरोक्त अमृतवाणी में स्पष्ट कर दिया कि हे (हक्का कबीर) आप सत्कबीर (कून करतार) शब्द शक्ति से रचना करने वाले शब्द स्वरूपी प्रभु अर्थात् सर्व सृष्टी के रचन हार हो, आप ही बेएब निर्विकार (परवरदिगार) सर्व के पालन कर्ता दयालु प्रभु हो, मैं आपके दासों का भी दास हूँ।
(श्री गुरु ग्रन्थ साहेब पृष्ठ नं. 24, राग सीरी महला 1)
तेरा एक नाम तारे संसार, मैं ऐहा आस ऐहो आधार।
नानक नीच कहै बिचार, धाणक रूप रहा करतार।।
उपरोक्त अमृतवाणी में प्रमाण किया है कि जो काशी में धाणक (जुलाहा) है यही (करतार) कुल का सृजनहार है। अति आधीन होकर श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि मैं सत कह रहा हूँ कि यह धाणक अर्थात् कबीर जुलाहा ही पूर्ण ब्रह्म (सतपुरुष) है।
विशेष:- उपरोक्त प्रमाणों के सांकेतिक ज्ञान से प्रमाणित हुआ सृष्टी रचना कैसे हुई? अब पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति करनी चाहिए। यह पूर्ण संत से नाम लेकर ही संभव है।
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#ग्रंथोंमेंप्रमाण_कबीरजीभगवान
भाई वाले वाली साखी में प्रमाण है, कबीर साहेब भगवान है
अमृतवाणी कबीर सागर, अगम निगम बोध, पृष्ठ 44 पर-
वाह वाह कबीर गुरु पूरा है।
पूरे गुरु की मैं बलि जावाँ जाका सकल जहूरा है।।
अधर दुलिच परे है गुरुनके शिव ब्रह्मा जह शूरा है।।
श्वेत ध्वजा फहरात गुरुनकी बाजत अनहद तूरा है।।
पूर्ण कबीर सकल घट दरशै हरदम हाल हजूरा है।।
नाम कबीर जपे बड़भागी नानक चरण को धूरा है।।
विशेष विवेचनः बाबा नानक जी ने उस कबीर जुलाहे (धाणक) काशी वाले को सत्यलोक (सच्चखण्ड) में आँखों देखा तथा फिर काशी में धाणक (जुलाहे) का कार्य करते हुए तथा बताया कि वही धाणक रूप (जुलाहा) सत्यलोक में सत्यपुरुष रूप में भी रहता है तथा यहाँ भी वही है।
#KabirParmatma_Prakat Diwas
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( #Muktibodh_Part291 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part292
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 556-557
“पूज्य कबीर परमेश्वर (कविर् देव) जी की अमृतवाणी में सृष्टि रचना”
विशेष :- निम्न अमृतवाणी सन् 1403 से {जब पूज्य कविर्देव (कबीर परमेश्वर) लीलामय शरीर में पाँच वर्ष के हुए} सन् 1518 {जब कविर्देव (कबीर परमेश्वर) मगहर स्थान से सशरीर सतलोक गए} के बीच में लगभग 600 वर्ष पूर्व परम पूज्य कबीर परमेश्वर (कविर्देव) जी द्वारा अपने निजी सेवक (दास भक्त) आदरणीय धर्मदास साहेब जी को सुनाई थी तथा धनी धर्मदास साहेब जी ने लिपिबद्ध की थी। परन्तु उस समय के पवित्र हिन्दुओं तथा पवित्र मुसलमानों के नादान गुरुओं (नीम-हकीमों) ने कहा कि यह धाणक (जुलाहा) कबीर झूठा है। किसी भी सद् ग्रन्थ में श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी के माता-पिता का नाम नहीं है। ये तीनों प्रभु अविनाशी हैं इनका जन्म मृत्यु नहीं होता। न ही
पवित्र वेदों व पवित्र कुरान शरीफ आदि में कबीर परमेश्वर का प्रमाण है तथा परमात्मा को निराकार लिखा है। हम प्रतिदिन पढ़ते हैं। भोली आत्माओं ने उन विचक्षणों (चतुर गुरुओं) पर विश्वास कर लिया कि सचमुच यह कबीर धाणक तो अशिक्षित है तथा गुरु जी शिक्षित हैं, सत्य कह रहे होंगे। आज वही सच्चाई प्रकाश में आ रही है तथा अपने सर्व पवित्र धर्मों के पवित्र सद्ग्रन्थ साक्षी हैं। इससे सिद्ध है कि पूर्ण परमेश्वर, सर्व सृष्टि रचनहार, कुल
करतार तथा सर्वज्ञ कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ही है जो काशी (बनारस) में कमल के फूल पर प्रकट हुए तथा 120 वर्ष तक वास्तविक तेजोमय शरीर के ऊपर मानव सदृश शरीर हल्के तेज का बना कर रहे तथा अपने द्वारा रची सृष्टि का ठीक-ठीक (वास्तविक तत्त्व) ज्ञान देकर सशरीर सतलोक चले गए। कृपया प्रेमी पाठक पढ़े निम्न अमृतवाणी परमेश्वर कबीर साहेब
जी द्वारा उच्चारित :-
धर्मदास यह जग बौराना। कोइ न जाने पद निरवाना।।
यहि कारन मैं कथा पसारा। जगसे कहियो राम नियारा।।
यही ज्ञान जग जीव सुनाओ। सब जीवोंका भरम नशाओ।।
अब मैं तुमसे कहों चिताई। त्रीयदेवनकी उत्पत्ति भाई।।
कुछ संक्षेप कहों गुहराई। सब संशय तुम्हरे मिट जाई।।
भरम गये जग वेद पुराना। आदि रामका का भेद न जाना।।
राम राम सब जगत बखाने। आदि राम कोइ बिरला जाने।।
ज्ञानी सुने सो हिरदै लगाई। मूर्ख सुने सो गम्य ना पाई।।
माँ अष्टंगी पिता निरंजन। वे जम दारुण वंशन अंजन।।
पहिले कीन्ह निरंजन राई। पीछेसे माया उपजाई।।
माया रूप देख अति शोभा। देव निरंजन तन मन लोभा।।
कामदेव धर्मराय सत्ताये। देवी को तुरतही धर खाये।।
पेट से देवी करी पुकारा। साहब मेरा करो उबारा।।
टेर सुनी तब हम तहाँ आये। अष्टंगी को बंद छुड़ाये।।
सतलोक में कीन्हा दुराचारि, काल निरंजन दिन्हा निकारि।।
माया समेत दिया भगाई, सोलह शंख कोस दूरी पर आई।।
अष्टंगी और काल अब दोई, मंद कर्म से गए बिगोई।।
धर्मराय को हिकमत कीन्हा। नख रेखा से भगकर लीन्हा।।
धर्मराय किन्हाँ भोग विलासा। मायाको रही तब आसा।।
तीन पुत्र अष्टंगी जाये। ब्रह्मा विष्णु शिव नाम धराये।।
तीन देव विस्त्तार चलाये। इनमें यह जग धोखा खाये।।
पुरुष गम्य कैसे को पावै। काल निरंजन जग भरमावै।।
तीन लोक अपने सुत दीन्हा। सुन्न निरंजन बासा लीन्हा।।
अलख निरंजन सुन्न ठिकाना। ब्रह्मा विष्णु शिव भेद न जाना।।
तीन देव सो उनको धावें। निरंजन का वे पार ना पावें।।
अलख निरंजन बड़ा बटपारा। तीन लोक जिव कीन्ह अहारा।।
ब्रह्मा विष्णु शिव नहीं बचाये। सकल खाय पुन धूर उड़ाये।।
ति��के सुत हैं तीनों देव���। आंधर जीव करत हैं सेवा।।
अकाल पुरुष काहू नहिं चीन्हां। काल पाय सबही गह लीन्हां।।
ब्रह्म काल सकल जग जाने। आदि ब्रह्मको ना पहिचाने।।
तीनों देव और औतारा। ताको भजे सकल संसारा।।
तीनों गुणका यह विस्त्तारा। धर्मदास मैं कहों पुकारा।।
गुण तीनों की भक्ति में, भूल परो संसार।
कहै कबीर निज नाम बिन, कैसे उतरैं पार।।
उपरोक्त अमृतवाणी में परमेश्वर कबीर साहेब जी अपने निजी सेवक श्री धर्मदास साहेब जी को कह रहे हैं कि धर्मदास यह सर्व संसार तत्त्वज्ञान के अभाव से विचलित है।
किसी को पूर्ण मोक्ष मार्ग तथा पूर्ण सृष्टि रचना का ज्ञान नहीं है। इसलिए मैं आपको मेरे द्वारा रची सृष्टि की कथा सुनाता हूँ। बुद्धिमान व्यक्ति तो तुरंत समझ जायेंगे। परन्तु जो सर्व प्रमाणों को देखकर भी नहीं मानेंगे तो वे नादान प्राणी काल प्रभाव से प्रभावित हैं, वे
भक्ति योग्य नहीं। अब मैं बताता हूँ तीनों भगवानों (ब्रह्मा जी, विष्णु जी तथा शिव जी) की उत्पत्ति कैसे हुई? इनकी माता जी तो अष्टंगी (दुर्गा) है तथा पिता ज्योति निरंजन (ब्रह्म,
काल) है। पहले ब्रह्म की उत्पत्ति अण्डे से हुई। फिर दुर्गा की उत्पत्ति हुई। दुर्गा के रूप पर आसक्त होकर काल (ब्रह्म) ने गलती (छेड़-छाड़) की, तब दुर्गा (प्रकृति) ने इसके पेट में शरण ली। मैं वहाँ गया जहाँ ज्योति निरंजन काल था। तब भवानी को ब्रह्म के उदर से
निकाल कर इक्कीस ब्रह्माण्ड समेत 16 शंख कोस की दूरी पर भेज दिया। ज्योति निरंजन (धर्मराय) ने प्रकृति देवी (दुर्गा) के साथ भोग-विलास किया। इन दोनों के संयोग से तीनों
गुणों (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी) की उत्पत्ति हुई। इन्हीं तीनों गुणो (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी) की ही साधना करके सर्व प्राणी काल जाल में फंसे हैं। जब तक वास्तविक मंत्र नहीं मिलेगा, पूर्ण मोक्ष कैसे होगा?
क्रमशः_____
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शिव अमृतवाणी लिरिक्स | Shiv Amritvani Lyrics
शिव अमृतवाणी लिरिक्स
॥ भाग १ ॥ कल्पतरु पुन्यातामा, प्रेम सुधा शिव नाम हितकारक संजीवनी, शिव चिंतन अविराम पतिक पावन जैसे मधुर, शिव रसन के घोलक भक्ति के हंसा ही चुगे, मोती ये अनमोल जैसे तनिक सुहागा, सोने को चमकाए शिव सुमिरन से आत्मा, अद्भुत निखरी जाये जैसे चन्दन वृक्ष को, डसते नहीं है नाग शिव भक्तो के चोले को, कभी लगे न दागॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय ! दयानिधि भूतेश्वर, शिव है चतुर सुजान कण कण भीतर है बसे, नील कंठ भगवान चंद्रचूड के त्रिनेत्र, उमा पति विश्वास शरणागत के ये सदा, काटे सकल क्लेश शिव द्वारे प्रपंच का, चल नहीं सकता खेल आग और पानी का, जैसे होता नहीं है मेल भय भंजन नटराज है, डमरू वाले नाथ शिव का वंधन जो करे, शिव है उनके साथ ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय ! लाखो अश्वमेध हो, सौ गंगा स्नान इनसे उत्तम है कही, शिव चरणों का ध्यान अलख निरंजन नाद से, उपजे आत्मज्ञान भटके को रास्ता मिले, मुश्किल हो आसान अमर गुणों की खान है, चित शुद्धि शिव जाप सत्संगति में बैठ कर, करलो पश्चाताप लिंगेश्वर के मनन से, सिद्ध हो जाते काज नमः शिवाय रटता जा, शिव रखेंगे लाज ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय ! शिव चरणों को छूने से, तन मन पावन होये शिव के रूप अनूप की, समता करे न कोई महाबलि महादेव है, महाप्रभु महाकाल असुराणखण्डन भक्त की, पीड़ा हरे तत्काल सर्व व्यापी शिव भोला, धर्म रूप सुख काज अमर अनंता भगवंता, जग के पालन हार शिव करता संसार के, शिव सृष्टि के मूल रोम रोम शिव रमने दो, शिव न जईओ भूल ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय ! ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय ! ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय ! ॥ भाग २ - ३ ॥ शिव अमृत की पावन धारा, धो देती हर कष्ट हमारा शिव का काज सदा सुखदायी, शिव के बिन है कौन सहायी शिव की निसदिन कीजो भक्ति, देंगे शिव हर भय से मुक्ति माथे धरो शिव नाम की धुली, टूट जायेगी यम कि सूली शिव का साधक दुःख ना माने, शिव को हरपल सम्मुख जाने सौंप दी जिसने शिव को डोर, लूटे ना उसको पांचो चोर शिव सागर में जो जन डूबे, संकट से वो हंस के जूझे शिव है जिनके संगी साथी, उन्हें ना विपदा कभी सताती शिव भक्तन का पकडे हाथ, शिव संतन के सदा ही साथ शिव ने है बृह्माण्ड रचाया, तीनो लोक है शिव कि माया जिन पे शिव की करुणा होती, वो कंकड़ बन जाते मोती शिव संग तान प्रेम की जोड़ो, शिव के चरण कभी ना छोडो शिव में मनवा मन को रंग ले, शिव मस्तक की रेखा बदले शिव हर जन की नस-नस जाने, बुरा भला वो सब पहचाने अजर अमर है शिव अविनाशी, शिव पूजन से कटे चौरासी यहाँ-वहाँ शिव सर्व व्यापक, शिव की दया के बनिये याचक शिव को दीजो सच्ची निष्ठा, होने न देना शिव को रुष्टा शिव है श्रद्धा के ही भूखे, भोग लगे चाहे रूखे-सूखे भावना शिव को बस में करती, प्रीत से ही तो प्रीत है बढ़ती शिव कहते है मन से जागो, प्रेम करो अभिमान त्यागो ॥ दोहा ॥ दुनिया का मोह त्याग के शिव में रहिये लीन । सुख-दुःख हानि-लाभ तो शिव के ही है अधीन ॥ भस्म रमैया पार्वती वल्ल्भ, शिव फलदायक शिव है दुर्लभ महा कौतुकी है शिव शंकर, त्रिशूलधारी शिव अभयंकर शिव की रचना धरती अम्बर, देवो के स्वामी शिव है दिगंबर काल दहन शिव रूण्डन पोषित, होने न देते धर्म को दूषित दुर्गापति शिव गिरिजानाथ, देते है सुखों की प्रभात सृष्टिकर्ता त्रिपुरधारी, शिव की महिमा कही ना जाती दिव्य तेज के रवि है शंकर, पूजे हम सब तभी है शंकर शिव सम और कोई और न दानी, शिव की भक्ति है कल्याणी कहते मुनिवर गुणी स्थानी, शिव की बातें शिव ही जाने भक्तों का है शिव प्रिय हलाहल, नेकी का रस बाटँते हर पल सबके मनोरथ सिद्ध कर देते, सबकी चिंता शिव हर लेते बम भोला अवधूत सवरूपा, शिव दर्शन है अति अनुपा अनुकम्पा का शिव है झरना, हरने वाले सबकी तृष्णा भूतो के अधिपति है शंकर, निर्मल मन शुभ मति है शंकर काम के शत्रु विष के नाशक, शिव महायोगी भय विनाशक रूद्र रूप शिव महा तेजस्वी, शिव के जैसा कौन तपस्वी हिमगिरी पर्वत शिव का डेरा, शिव सम्मुख न टिके अंधेरा लाखों सूरज की शिव ज्योति, शस्त्रों में शिव उपमान होती शिव है जग के सृजन हारे, बंधु सखा शिव इष्ट हमारे गौ ब्राह्मण के वे हितकारी, कोई न शिव सा पर उपकारी ॥ दोहा ॥ शिव करुणा के स्रोत है शिव से करियो प्रीत । शिव ही परम पुनीत है शिव साचे मन मीत ॥ शिव सर्पो के भूषणधारी, पाप के भक्षण शिव त्रिपुरारी जटाजूट शिव चंद्रशेखर, विश्व के रक्षक कला कलेश्वर शिव की वंदना करने वाला, धन वैभव पा जाये निराला कष्ट निवारक शिव की पूजा, शिव सा दयालु और ना दूजा पंचमुखी जब रूप दिखावे, दानव दल में भय छा जावे डम-डम डमरू जब भी बोले, चोर निशाचर का मन डोले घोट घाट जब भंग चढ़ावे, क्या है लीला समझ ना आवे शिव है योगी शिव सन्यासी, शिव ही है कैलास के वासी शिव का दास सदा निर्भीक, शिव के धाम बड़े रमणीक शिव भृकुटि से भैरव जन्मे, शिव की मूरत राखो मन में शिव का अर्चन मंगलकारी, मुक्ति साधन भव भयहारी भक्त वत्सल दीन दयाला, ज्ञान सुधा है ��िव कृपाला शिव नाम की नौका है न्य��री, जिसने सबकी चिंता टारी जीवन सिंधु सहज जो तरना, शिव का हरपल नाम सुमिरना तारकासुर को मारने वाले, शिव है भक्तो के रखवाले शिव की लीला के गुण गाना, शिव को भूल के ना बिसराना अन्धकासुर से देव बचाये, शिव ने अद्भुत खेल दिखाये शिव चरणो से लिपटे रहिये, मुख से शिव शिव जय शिव कहिये भाष्मासुर को वर दे डाला, शिव है कैसा भोला भाला शिव तीर्थो का दर्शन कीजो, मन चाहे वर शिव से लीजो ॥ दोहा ॥ शिव शंकर के जाप से मिट जाते सब रोग । शिव का अनुग्रह होते ही पीड़ा ना देते शोक ॥ ब्र्हमा विष्णु शिव अनुगामी, शिव है दीन हीन के स्वामी निर्बल के बलरूप है शम्भु, प्यासे को जलरूप है शम्भु रावण शिव का भक्त निराला, शिव को दी दस शीश कि माला गर्व से जब कैलाश उठाया, शिव ने अंगूठे से था दबाया दुःख निवारण नाम है शिव का, रत्न है वो बिन दाम शिव का शिव है सबके भाग्यविधाता, शिव का सुमिरन है फलदाता शिव दधीचि के भगवंता, शिव की तरी अमर अनंता शिव का सेवादार सुदर्शन, सांसे कर दी शिव को अर्पण महादेव शिव औघड़दानी, बायें अंग में सजे भवानी शिव शक्ति का मेल निराला, शिव का हर एक खेल निराला शम्भर नामी भक्त को तारा, चन्द्रसेन का शोक निवारा पिंगला ने जब शिव को ध्याया, देह छूटी और मोक्ष पाया गोकर्ण की चन चूका अनारी, भव सागर से पार उतारी अनसुइया ने किया आराधन, टूटे चिन्ता के सब बंधन बेल पत्तो से पूजा करे चण्डाली, शिव की अनुकम्पा हुई निराली मार्कण्डेय की भक्ति है शिव, दुर्वासा की शक्ति है शिव राम प्रभु ने शिव आराधा, सेतु की हर टल गई बाधा धनुषबाण था पाया शिव से, बल का सागर तब आया शिव से श्री कृष्ण ने जब था ध्याया, दस पुत्रों का वर था पाया हम सेवक तो स्वामी शिव है, अनहद अन्तर्यामी शिव है ॥ दोहा ॥ दीन दयालु शिव मेरे, शिव के रहियो दास । घट घट की शिव जानते, शिव पर रख विश्वास ॥ परशुराम ने शिव गुण गाया, कीन्हा तप और फरसा पाया निर्गुण भी शिव शिव निराकार, शिव है सृष्टि के आधार शिव ही होते मूर्तिमान, शिव ही करते जग कल्याण शिव में व्यापक दुनिया सारी, शिव की सिद्धि है भयहारी शिव है बाहर शिव ही अन्दर, शिव ही रचना सात समुन्द्र शिव है हर इक मन के भीतर, शिव है हर एक कण कण के भीतर तन में बैठा शिव ही बोले, दिल की धड़कन में शिव डोले हम कठपुतली शिव ही नचाता, नयनों को पर नजर ना आता मा��ी के रंगदार खिलौने, साँवल सुन्दर और सलोने शिव ही जोड़े शिव ही तोड़े, शिव तो किसी को खुला ना छोड़े आत्मा शिव परमात्मा शिव है, दयाभाव धर्मात्मा शिव है शिव ही दीपक शिव ही बाती, शिव जो नहीं तो सब कुछ माटी सब देवो में ज्येष्ठ शिव है, सकल गुणो में श्रेष्ठ शिव है जब ये ताण्डव करने लगता, बृह्माण्ड सारा डरने लगता तीसरा चक्षु जब जब खोले, त्राहि-त्राहि यह जग बोले शिव को तुम प्रसन्न ही रखना, आस्था लग्न बनाये रखना विष्णु ने की शिव की पूजा, कमल चढाऊँ मन में सूझा एक कमल जो कम था पाया, अपना सुंदर नयन चढ़ाया साक्षात तब शिव थे आये, कमल नयन विष्णु कहलाये इन्द्रधनुष के रंगो में शिव, संतो के सत्संगों में शिव ॥ दोहा ॥ महाकाल के भक्त को, मार ना सकता काल । द्वार खड़े यमराज को, शिव है देते टाल ॥ यज्ञ सूदन महा रौद्र शिव है, आनन्द मूरत नटवर शिव है शिव ही है श्मशान के वासी, शिव काटें मृत्युलोक की फांसी व्याघ्र चरम कमर में सोहे, शिव भक्तों के मन को मोहे नन्दी गण पर करे सवारी, आदिनाथ शिव गंगाधारी काल के भी तो काल है शंकर, विषधारी जगपाल है शंकर महासती के पति है शंकर, दीन सखा शुभ मति है शंकर लाखो शशि के सम मुख वाले, भंग धतूरे के मतवाले काल भैरव भूतो के स्वामी, शिव से कांपे सब फलगामी शिव है कपाली शिव भष्मांगी, शिव की दया हर जीव ने मांगी मंगलकर्ता मंगलहारी, देव शिरोमणि महासुखकारी जल तथा विल्व करे जो अर्पण, श्रद्धा भाव से करे समर्पण शिव सदा उनकी करते रक्षा, सत्यकर्म की देते शिक्षा लिंग पर चंदन लेप जो करते, उनके शिव भंडार हैं भरते ६४ योगनी शिव के बस में, शिव है नहाते भक्ति रस में वासुकि नाग कण्ठ की शोभा, आशुतोष है शिव महादेवा विश्वमूर्ति करुणानिधान, महा मृत्युंजय शिव भगवान शिव धारे रुद्राक्ष की माला, नीलेश्वर शिव डमरू वाला पाप का शोधक मुक्ति साधन, शिव करते निर्दयी का मर्दन ॥ दोहा ॥ शिव सुमरिन के नीर से, धूल जाते है पाप । पवन चले शिव नाम की, उड़ते दुख संताप ॥ पंचाक्षर का मंत्र शिव है, साक्षात सर्वेश्वर शिव है शिव को नमन करे जग सारा, शिव का है ये सकल पसारा क्षीर सागर को मथने वाले, ऋद्धि-सिद्धि सुख देने वाले अहंकार के शिव है विनाशक, धर्म-दीप ज्योति प्रकाशक शिव बिछुवन के कुण्डलधारी, शिव की माया सृष्टि सारी महानन्दा ने किया शिव चिन्तन, रुद्राक्ष माला किन्ही धारण भवसिन्धु से शिव ने तारा, शिव अनुकम्पा अपरम्पारा त्रि-जगत के यश है शिवजी, दिव्य तेज गौरीश है शिवजी महाभार को सहने वाले, वैर रहित दया करने वाले गुण स्व��ूप है शिव अनूपा, अम्बानाथ है शिव तपरूपा शिव चण्डीश परम सुख ज्योति, शिव करुणा के उज्ज्वल मोती पुण्यात्मा शिव योगेश्वर, महादयालु शिव शरणेश्वर शिव चरणन पे मस्तक धरिये, श्रद्धा भाव से अर्चन करिये मन को शिवाला रूप बना लो, रोम-रोम में शिव को रमा लो माथे जो भक्त धूल धरेंगे, धन और धन से कोष भरेंगे शिव का बाक भी बनना जावे, शिव का दास परम पद पावे दशों दिशाओं मे शिव दृष्टि, सब पर शिव की कृपा दृष्टि शिव को सदा ही सम्मुख जानो, कण-कण बीच बसे ही मानो शिव को सौंपो जीवन नैया, शिव है संकट टाल खिवैया अंजलि बाँध करे जो वंदन, भय जंजाल के टूटे बन्धन ॥ दोहा ॥ जिनकी रक्षा शिव करे, मारे न उसको कोय । आग की नदिया से बचे, बाल ना बांका होय ॥ शिव दाता भोला भण्डारी, शिव कैलाशी कला बिहारी सगुण ब्रह्म कल्याण कर्ता, विघ्न विनाशक बाधा हर्ता शिव स्वरूपिणी सृष्टि सारी, शिव से पृथ्वी है उजियारी गगन दीप भी माया शिव की, कामधेनु है छाया शिव की गंगा में शिव, शिव मे गंगा, शिव के तारे तुरत कुसंगा शिव के कर में सजे त्रिशूला, शिव के बिना ये जग निर्मूला स्वर्णमयी शिव जटा निराळी, शिव शम्भू की छटा निराली जो जन शिव की महिमा गाये, शिव से फल मनवांछित पाये शिव पग पँकज सवर्ग समाना, शिव पाये जो तजे अभिमाना शिव का भक्त ना दुःख मे डोलें, शिव का जादू सिर चढ बोले परमानन्द अनन्त स्वरूपा, शिव की शरण पड़े सब कूपा शिव की जपियो हर पल माळा, शिव की नजर मे तीनो क़ाला अन्तर घट मे इसे बसा लो, दिव्य जोत से जोत मिला लो नम: शिवाय जपे जो स्वासा, पूरीं हो हर मन की आसा ॥ दोहा ॥ परमपिता परमात्मा, पूरण सच्चिदानन्द । शिव के दर्शन से मिले, सुखदायक आनन्द ॥ शिव से बेमुख कभी ना होना, शिव सुमिरन के मोती पिरोना जिसने भजन है शिव के सीखे, उसको शिव हर जगह ही दिखे प्रीत में शिव है शिव में प्रीती, शिव सम्मुख न चले अनीति शिव नाम की मधुर सुगन्धी, जिसने मस्त कियो रे नन्दी शिव निर्मल निर्दोष निराले, शिव ही अपना विरद संभाले परम पुरुष शिव ज्ञान पुनीता, भक्तो ने शिव प्रेम से जीता ॥ दोहा ॥ आंठो पहर आराधिए, ज्योतिर्लिंग शिव रूप । नयनं बीच बसाइये, शिव का रूप अनूप ॥ लिंग मय सारा जगत हैं, लिंग धरती आकाश लिंग चिंतन से होत है, सब पापो का नाश लिंग पवन का वेग है, लिंग अग्नि की ज्योत लिंग से पाताल है, लिंग वरुण का स्त्रोत लिंग से हैं वनस्पति, लिंग ही हैं फल फूल लिंग ही रत्न स्वरूप हैं, लिंग माटी न��र्धूप ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय ! लिंग ही जीवन रूप हैं, लिंग मृत्युलिंगकार लि���ग मेघा घनघोर हैं, लिंग ही हैं उपचार ज्योतिर्लिंग की साधना, करते हैं तीनो लोग लिंग ही मंत्र जाप हैं, लिंग का रूम श्लोक लिंग से बने पुराण हैं, लिंग वेदो का सार रिधिया सिद्धिया लिंग हैं, लिंग करता करतार प्रातकाल लिंग पूजिये, पूर्ण हो सब काज लिंग पे करो विश्वास तो, लिंग रखेंगे लाज ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय ! सकल मनोरथ से होत हैं, दुखो का अंत ज्योतिर्लिंग के नाम से, सुमिरत जो भगवंत मानव दानव ऋषिमुनि, ज्योतिर्लिंग के दास सर्व व्यापक लिंग हैं, पूरी करे हर आस शिव रुपी इस लिंग को, पूजे सब अवतार ज्योतिर्लिंगों की दया, सपने करे साकार लिंग पे चढ़ने वैद्य का, जो जन ले परसाद उनके ह्रदय में बजे, शिव करूणा का नाद ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय ! महिमा ज्योतिर्लिंग की, जाएंगे जो लोग भय से मुक्ति पाएंगे, रोग रहे न शोब शिव के चरण सरोज तू, ज्योतिर्लिंग में देख सर्व व्यापी शिव बदले, भाग्य तीरे डारीं ज्योतिर्लिंग पे, गंगा जल की धार करेंगे गंगाधर तुझे, भव सिंधु से पार चित सिद्धि हो जाए रे, लिंगो का कर ध्यान लिंग ही अमृत कलश हैं, लिंग ही दया निधान ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय ! 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#मुसलमाननहींसमझेज्ञानक़ुरआन
#मुसलमाननहींसमझेज्ञानक़ुरआन
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुसलमान नहीं समझे ज्ञान क़ुरआन"
पेज नंबर - 309-311
“पूज्य कबीर परमेश्वर (कविर् देव) जी की अमृतवाणी में सृष्टि रचना”
विशेष:- निम्न अमृतवाणी सन् 1403 से {जब पूज्य कविर्देव (कबीर परमेश्वर) लीलामय शरीर में पाँच वर्ष के हुए} सन् 1518 {जब कविर्देव (कबीर परमेश्वर) मगहर स्थान से सशरीर सतलोक गए} के बीच में लगभग 600 वर्ष पूर्व परम पूज्य कबीर परमेश्वर
(कविर्देव) जी द्वारा अपने निजी सेवक (दास भक्त) आदरणीय धर्मदास साहेब जी को सुनाई थी तथा धनी धर्मदास साहेब जी ने लिपिबद्ध की थी। परन्तु उस समय के पवित्र हिन्दुओं तथा मुसलमानों के नादान गुरुओं (नीम-हकीमों) ने कहा कि यह धाणक (जुलाहा) कबीर झूठा है। किसी भी सद्ग्रन्थ में श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी के माता-पिता
का नाम नहीं है। ये तीनों प्रभु अविनाशी हैं इनका जन्म मृत्यु नहीं होता। न ही पवित्र वेदों व पवित्र कुरान शरीफ आदि में कबीर परमेश्वर का प्रमाण है तथा परमात्मा को निराकार लिखा है। हम प्रतिदिन पढ़ते हैं। भोली आत्माओं ने उन विचक्षणों (चतुर गुरुओं) पर विश्वास कर लिया कि सचमुच यह कबीर धाणक तो अशिक्षित है तथा गुरु जी शिक्षित हैं, सत्य कह रहे होंगे। आज वही सच्चाई प्रकाश में आ रही है तथा अपने सर्व पवित्र धर्मों के पवित्र सद्ग्रन्थ साक्षी हैं। इससे सिद्ध है कि पूर्ण परमेश्वर, सर्व सृष्टि रचनहार, कुल करतार तथा सर्वज्ञ कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ही है जो काशी (बनारस) में कमल के फूल पर प्रकट हुए तथा 120 वर्ष तक वास्तविक तेजोमय शरीर के ऊपर मानव सदृश शरीर हल्के तेज का बना कर रहे तथा अपने द्वारा रची सृष्टि का ठीक-ठीक (वास्तविक तत्त्व) ज्ञान देकर सशरीर सतलोक चले गए।
कृपा पाठक पढ़े निम्न अमृतवाणी परमेश्वर कबीर साहेब जी द्वारा उच्चारित:-
धर्मदास यह जग बौराना। कोई न जाने पद निरवाना।।1।।
यहि कारन मैं कथा पसारा। जगसे कहियो राम नियारा।।
यही ज्ञान जग जीव सुनाओ। सब जीवों का भरम नशाओ।।2।।
भरम गये जग वेद पुराना। आदि राम का का भेद न जाना।।3।।
राम राम सब जगत बखाने। आदि राम कोई बिरला जाने।।4।।
ज्ञानी सुने सो हिरदै लगाई। मूर्ख सुने सो गम्य ना पाई।।5।।
अब मैं तुमसे कहूँ चिताई। त्रिदेवन की उत्पत्ति भाई।।6।।
कुछ संक्षेप कहूँ गौहराई। सब संशय तुम्हरे मिट जाई।।7।।
माँ अष्टंगी पिता निरंजन। वे जम दारुण वंशन अंजन।।8।।
पहिले कीन्ह निरंजन राई। पीछे से माया उपजाई।।9।।
माया रूप देख अति शोभा। देव निरंजन तन मन लोभा।।10।।
कामदेव धर्मराय सत्ताये। देवी को तुरतही धर खाये।।11।।
पेट से देवी करी पुकारा। साहब मेरा करो उबारा।।12।।
टेर सुनी तब हम तहाँ आये। अष्टंगी को बंद छुड़ाये।।13।।
सतलोक में कीन्हा ��ुराचारि, काल निरंजन दिन्हा निकारि।।14।।
माया समेत दिया भगाई, सोलह संख कोस दूरी पर आई।।15।।
अष्टंगी और काल अब दोई, मंद कर्म से गए बिगोई।।16।।
धर्मराय को हिकमत कीन्हा। नख रेखा से भगकर लीन्हा।।17।।
धर्मराय किन्हाँ भोग विलासा। माया को रही तब आसा।।18।।
तीन पुत्र अष्टंगी जाये। ब्रह्मा विष्णु शिव नाम धराये।।19।।
तीन देव विस्त्तार चलाये। इनमें यह जग धोखा खाये।।20।।
पुरुष गम्य कैसे को पावै। काल निरंजन जग भरमावै।।21।।
तीन लोक अपने सुत दीन्हा। सुन्न निरंजन बासा लीन्हा।।22।।
अलख निरंजन सुन्न ठिकाना। ब्रह्मा विष्णु शिव भेद न जाना।।23।।
तीन देव सो उनको धावें। निरंजन का वे पार ना पावें।।24।।
अलख निरंजन बड़ा बटपारा। तीन लोक जिव कीन्ह अहारा।।25।।
ब्रह्मा विष्णु शिव नहीं बचाये। सकल खाय पुन धूर उड़ाये।।26।।
तिनके सुत हैं तीनों देवा। आंधर जीव करत हैं सेवा।।27।।
अकाल पुरुष काहू नहीं चीन्हां। काल पाय सबही गह लीन्हां।।28।।
ब्रह्म काल सकल जग जाने। आदि ब्रह्म को ना पहिचाने।।29।।
तीनों देव और औतारा। ताको भजे सकल संसारा।।30।।
तीनों गुण का यह विस्त्तारा। धर्मदास मैं कहों पुकारा।।31।।
गुण तीनों की भक्ति में, भूल परो संसार।।32।।
कहै कबीर निज नाम बिन, कैसे उतरैं पार।।33।।
उपरोक्त अमृतवाणी में परमेश्वर कबीर साहेब जी अपने निजी सेवक श्री धर्मदास जी से कहा था कि धर्मदास यह सर्व संसार तत्त्वज्ञान के अभाव से विचलित है। किसी को पूर्ण मोक्ष मार्ग तथा पूर्ण सृष्टि रचना का ज्ञान नहीं है। इसलिए मैं आपको मेरे द्वारा रची सृष्टि की
कथा सुनाता हूँ। बुद्धिमान व्यक्ति तो तुरंत समझ जायेंगे। परन्तु जो सर्व प्रमाणों को देखकर भी नहीं मानंेगे तो वे नादान प्राणी काल प्रभाव से प्रभावित हैं, वे भक्ति योग्य नहीं। अब मैं बताता हूँ तीनों (देवों) देवताओं (ब्रह्मा जी, विष्णु जी तथा शिव जी) की उत्पत्ति कैसे हुई? इनकी माता जी तो अष्टंगी (दुर्गा) है तथा पिता ज्योति निरंजन (ब्रह्म, काल) है। पहले ब्रह्म की उत्पत्ति अण्डे से हुई। फिर दुर्गा की उत्पत्ति हुई। दुर्गा के रूप पर आसक्त होकर काल (ब्रह्म) ने गलती (छेड़-छाड़) की, तब दुर्गा (प्रकृति) ने इसके पेट में शरण ली। मैं वहाँ गया जहाँ ज्योति निरंजन काल था। तब भवानी को ब्रह्म के उदर से निकाल कर इक्कीस ब्रह्मण्ड समेत सोलह (16) संख कोस की दूरी पर भेज दिया। ज्योति निरंजन (धर्मराय) ने प्रकृति देवी (दुर्गा) के साथ भोग-विलास किया। इन दोनों के संयोग से तीनों गुणों (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी) की उत्पत्ति हुई। इन्हीं तीनों गुणों (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी) की ही साधना करके सर्व प्राणी काल जाल में फंसे हैं। जब तक वास्तविक मंत्र नहीं मिलेगा, पूर्ण मोक्ष कैसे होगा?
विशेष:- पाठकजन विचार करें कि श्री ब्रह्मा जी श्री विष्णु जी तथ श्री शिव जी की स्थिति अविनाशी बताई गई थी। सर्व हिन्दू समाज अभी तक तीनों परमात्माओं को अजर, अमर व जन्म-मृत्यु रहित मानते रहे जबकि ये तीनों नाश्वान हैं। इन के पिता काल रूपी ब्रह्म तथा माता दुर्गा (प्रकृति/अष्टांगी) हैं जैसा आप ने पूर्व प्रमाणों में पढ़ा यह ज्ञान अपने शास्त्रों में भी विद्यमान है परन्तु हिन्दू समाज के कलयुगी गुरूओं, ऋषियों, सन्तों को ज्ञान नहीं। जो अध्यापक पाठ्यक्रम (सलेबस) से ही अपरिचित है वह अध्यापक ठीक नहीं (वह विद्वान नही) है, विद्यार्थियों के भविष्य का शत्रु है। इसी प्रकार जिन गुरूओं को अभी तक यह नहीं पता कि श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु तथा श्री शिव जी के माता-पिता कौन हैं? तो वे गुरू, ऋषि,सन्त ज्ञान हीन हैं। जिस कारण से सर्व भक्त समाज को शास्त्र विरूद्ध ज्ञान (लोक वेद अर्थात् दन्त कथा) सुना कर अज्ञान से परिपूर्ण कर दिया। शास्त्रविधि विरूद्ध भक्तिसाधना करा के परमात्मा के वास्तविक लाभ (पूर्ण मोक्ष) से वंचित रखा सबका मानव जन्म नष्ट करा दिया क्योंकि श्री मद्भगवत गीता अध्याय 16 श्लोक 23.24 में यही प्रमाण है कि जो शास्त्रविधि त्यागकर मनमाना आचरण (पूजा) करता है। उसे कोई लाभ नहीं होता पूर्ण परमात्मा कबीर
जी ने पाँच वर्ष की लीलामय आयु में सन् 1403 से ही सर्व शास्त्रों युक्त ज्ञान अपनी अमृतवाणी (कविरवाणी) में बताना प्रारम्भ किया था। परन्तु उन अज्ञानी गुरूओं ने यह ज्ञान भक्त समाज तक नहीं जाने दिया। जो वर्तमान में सर्व सद्ग्रन्थों से स्पष्ट हो रहा है इससे सिद्ध है कि कर्विदेव (कबीर प्रभु) तत्त्वदर्शी सन्त रूप में स्वयं पूर्ण परमात्मा ही आए थे।
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सूचना:- मुसलमान धर्म से संबंधित अधिक जानकारी एवं नाम दीक्षा के लिए इन नंबरों पर संपर्क करें ! Phone no. +919812238507,+919992600852,+918950781981,+919555000803
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उपरोक्त अमृतवाणी में परमेश्वर कबीर साहेब जी अपने निजी सेवक श्री धर्मदास साहेब जी को कह रहे हैं कि धर्मदास यह सर्व संसार तत्वज्ञान के अभाव से विचलित है। किसी को पूर्ण मोक्ष मार्ग तथा पूर्ण सृष्टी रचना का ज्ञान नहीं है। इसलिए मैं आपको मेरे द्वारा रची सृष्टी की कथा सुनाता हूँ। बुद्धिमान व्यक्ति तो तुरंत समझ जायेंगे। परन्तु जो सर्व प्रमाणों को देखकर भी नहीं मानेंगे तो वे नादान प्राणी काल प्रभाव से प्रभावित हैं, वे भक्ति योग्य नहीं। अब मैं बताता हूँ तीनों भगवानों (ब्रह्मा जी, विष्णु जी तथा शिव जी) की उत्पत्ति कैसे हुई? इनकी माता जी तो अष्टंगी (दुर्गा) है तथा पिता ज्योति निरंजन (ब्रह्म, काल) है। पहले ब्रह्म की उत्पत्ति अण्डे से हुई। फिर दुर्गा की उत्पत्ति हुई। दुर्गा के रूप पर आसक्त होकर काल (ब्रह्म) ने गलती (छेड़-छाड़) की, तब दुर्गा (प्रकृति) ने इसके पेट में शरण ली। मैं वहाँ गया जहाँ ज्योति निरंजन काल था। तब भवानी को ब्रह्म के उदर से निकाल कर इक्कीस ब्रह्मण्ड समेत 16 संख कोस की दूरी पर भेज दिया। ज्योति निरंजन (धर्मराय) ने प्रकृति देवी (दुर्गा) के साथ भोग-विलास किया। इन दोनों के संयोग से तीनों गुणों (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी) की उत्पत्ति हुई। इन्हीं तीनों गुणों (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी) की ही साधना करके सर्व प्राणी काल जाल में फंसे हैं। जब तक वास्तविक मंत्र नहीं मिलेगा, पूर्ण मोक्ष
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Sadhna TV Satsang 09-04-2024 || Episode: 2901 || Sant Rampal Ji Maharaj ...
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#सच्चिदानंद_की_परिभाषा...
सच्चिदानन्द शब्द जो हैं "सत् + चित् + आनंद" से मिलकर बना हैं ।
🌼🌼🌼 हमारी आत्मा को जिस भगवान के रूप सौंदर्य को देखने से सच्चा आनंद की प्राप्ति होती हैं,दर्शन करने के पश्चात् भी दृष्टि तृप्त नहीं होती हैं,बस निहारते रहने को ही मन करता हैं,वही हमारे लिए सच्चिदानन्द हैं ।
लेकिन तत्वज्ञान के अभाव में अर्थात् सच्चा सतगुरू न मिलने के वजह से हमने सच्चिदानन्द अपने अथवा लोकवेद के हिसाब से अलग अलग भगवान को मान लिये हैं।
🌼🌼🌼 जैसे कीट पतंग के लिए दीपक अथवा ट्यूबलाइट ही सच्चिदानन्द भगवान हैं ।
जैसे चातक पक्षी के लिए चंद्रमा ही सच्चिदानन्द भगवान हैं ।
जैसे त्रिगुण उपासकों के लिए श्री ब्रम्हा जी,श्री विष्णु जी, श्री शिव जी सच्चिदानन्द भगवान हैं।
जैसे शक्ति की आराधना करने वाले भगतों के लिए मां अष्टांगी (दुर्गा जी) सच्चिदानन्द भगवान हैं
और इसी तरह
#ब्रम्ह के उपासकों के लिए #ब्रम्ह / कालपुरूष / क्षरपुरूष/ ज्योति निरंजन ही सच्चिदानन्द भगवान हैं लेकिन......
✓✓✓ वास्तव में #सच्चिदानंद_भगवान अर्थात् मनभावन #पूर्ण_परमात्मा कौन हैं ?
इस विषय में हमारे पवित्र श्री मद् भागवत गीता के अध्याय 8 के श्लोक नम्बर 9 और 10 में बिलकुल क्लीयर कर दिया गया हैं कि
✓ सुर्य के समान चैतन्य स्वरूप अर्थात् सदैव जागृत अवस्था में रहने वाले और सुर्य के समान तेजोमय( किन्तु शीतल) प्रकाश युक्त शरीर वाले परमात्मा,
✓अचिन्त्या स्वरूप अर्थात् जिनका स्वरूप पल पल चिंतन (ध्यान) करने के योग्य हैं,
✓अणु के समान प्रचंड शक्ति युक्त अर्थात् शक्तिशाली (सर्व शक्तिमान) परमात्मा,
✓ जो अनादि हैं अर्थात जो #सनातन_परमात्मा हैं,
✓ जो सबके नियंता हैं,
✓ जो सबका धारण पोषण करने वाले हैं,
✓ जिनके बनाये विधान के अनुसार सभी जीवों को उनके शुभ,अशुभ कर्मों का यथोचित फल मिलता हैं,
✓ जो अविद्या से अत्यंत परे हैं अर्थात् जिसे तत्वज्ञान के जाने बिना (तत्वदर्शी सन्त को गुरू धारण किये बिना) प्राप्त नहीं किया जा सकता हैं,
✓ जो शुद्ध स्वरूप हैं अर्थात् जिनकी पवित्रता के समान और कोई पवित्र नही हैं और
✓ जो अंतरयामी हैं (सबके मन के बांतों को जान लेने वाले हैं),
🌼🌼🌼 उस सच्चिदानन्द घनब्रम्ह अर्थात् #पूर्ण_परमात्मा का जो भगत निश्चल मन में (कपटरहित होकर के) सुमिरन अर्थात् भक्ति करता हैं,
वह भगत भक्ति के शक्ति से भृकुटी के मध्य अपने प्राणों को अच्छी तरह से स्थापित करके अर्थात् इस नश्वर संसार से पुरी तरह से अपने चित्त को हटा लेता हैं,वह भगत अन्त समय में उसी #परम_दिब्य_पुरूष अर्थात् #सच्चिदानन्द_भगवान #कबीर_साहेब को ही प्राप्त होता हैं ।
#पांचवे_वेद अर्थात् #सुक्ष्मवेद के अमृतवाणी के आधार पर गुरूदेव जी महाराज ने हमें बताया हैं कि.......
अविगत राम कबीर हैं, ��कवे अविनाशी *
ब्रम्हा विष्णु वजीर हैं, शिव करत हैं ख्वासी **
जीव शीव सब उतरे,वै ठाकुर हम दास *
कबीरा, और जाने नहीं, एक राम नाम की आश **
कबीर,अक्षर पुरूष एक पेड़ हैं, निरंजन वाकी डार *
तीनों देवा शाखा भये, पात रूपी संसार **
*★अपने संपूर्ण आध्यात्मिक शंका के समाधान हेतु सपरिवार आज ही अवश्य देखें "संत रामपाल जी महाराज" के मंगल प्रवचन★*
*#सत्संग*
⏰ _"रोज शाम 07:30 बजे"_⏰
📺 _साधना TV पर_ 📺
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( #MuktiBodh_Part12 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part13
गरीब, ऋषभ देव के आईया, कबि नामें अवतार। नौ योगेश्वर में रमा, जनक विदेही उधार।।
◆◆ भावार्थ :- ◆◆
परमेश्वर कबीर जी अपने विधान अनुसार {कि परमात्मा ऊपर के लोक में
निवास करता है। वहाँ से गति करके आता है, अच्छी आत्माओं को मिलता है। उनको अपनी वाक (वाणी) द्वारा भक्ति करने की प्रेरणा करता है आदि-आदि जो पूर्व में विस्तार से लिख दिया है।} राजा ऋषभ देव (जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर) को मिले थे। अपना नाम कविर्देव बताया था। ऋषभ देव जी ने अपने धर्मगुरूओं-ऋषियों से सुन रखा था कि परमात्मा का वास्तविक नाम वेदों में कविः देव (कविर्देव) है। परमात्मा कवि ऋषि नाम से ऋषभ देव को भक्ति की प्रेरणा देकर अंतर्ध्यान हो गए थे। नौ नाथों (गोरखनाथ, मच्छन्द्रनाथ, जलन्दरनाथ, चरपटनाथ आदि-आदि) को समझाने के लिए उनको मिले तथा राजा जनक विदेही (विलक्षण शरीर वाले को विदेही कहते हैं) को सत्यज्ञान बताकर उनको सही दिशा दी। राजा जनक से दीक्षा लेकर शुकदेव ऋषि को स्वर्ग प्राप्त हुआ। परंतु वह पूर्ण मोक्ष नहीं मिला जो गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है :-
(तत्वदर्शी संत से तत्वज्ञान समझने के पश्चात्) आध्यात्म अज्ञान को तत्वज्ञान रूपी
शस्त्र से काटकर उसके पश्चात् परमेश्वर के उस परम पद की खोज करनी चाहिए जहाँ
जाने के पश्चात् साधक लौटकर संसार में कभी नहीं आते। जिस परमेश्वर से संसार रूपी
वृक्ष की प्रवृति विस्तार को प्राप्त हुई है यानि जिस परमेश्वर ने संसार की रचना क��� है, केवल उसी की भक्ति करो।
वाणी नं. 24 में यही स्पष्ट किया है कि यदि स्वर्ग जाने की भी तमन्ना है तो वे भी
विशेष (निज) मंत्रों के जाप से ही पूर्ण होगी। परंतु यह इच्छा तत्वज्ञान के अभाव से है। जैसे
गीता अध्याय 2 श्लोक 46 में बहुत सटीक उदाहरण दिया है कि :- सब ओर से परिपूर्ण
जलाशय (बड़ी झील=Lake) प्राप्त हो जाने पर छोटे जलाशय में मनुष्य का जितना प्रयोजन
रह जाता है। उसी प्रकार तत्वज्ञान की प्राप्ति के पश्चात् विद्वान पुरूष का वेदों (ऋग्वेद,
यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद) में प्रयोजन रह जाता है।
◆◆ भावार्थ :- ◆◆
तत्वज्ञान की प्राप्ति के पश्चात् अन्य देवताओं से होने वाले क्षणिक लाभ
(स्वर्ग व राज्य प्राप्ति) से अधिक सुख समय तथा पूर्ण मोक्ष (गीता अध्याय 15 श्लोक 4 वाला मोक्ष) जो परमेश्वर (परम अक्षर ब्रह्म=गीता अध्याय 8 श्लोक 3, 8, 9, 10, 20 से 22 वाले परमेश्वर) के जाप से होता है, की जानकारी के पश्चात् साधक की जितनी श्रद्धा अन्य
देवताओं में रह जाती है यानिः-
कबीर, एकै साधै सब सधै, सब साधें सब जाय। माली सींचे मूल कूँ, फलै फूलै अघाय।।
◆ भावार्थ :- गीता अध्याय 15 श्लोक 1.4 को इस अमृतवाणी में संक्षिप्त कर बताया है किः-
जो ऊपर को मूल (जड़) वाला तथा नीचे को तीनों गुण (रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु,
तमगुण शिव) रूपी शाखा वाला संसार रूपी वृक्ष है :-
कबीर, अक्षर पुरूष एक पेड़ है, निरंजन वाकी डार। तीनों देवा शाखा हैं, पात रूप संसार।।
जैसे पौधे को मूल की ओर से पृथ्वी में रोपण करके मूल की सिंचाई की जाती है तो
उस मूल परमात्मा (परम अक्षर ब्रह्म) की पूजा से पौधे की परवरिश होती है। तब तना, डार, शाखाओं तथा पत्तों का विकास होकर पेड़ बन जाता है। छाया, फल तथा लकड़ी सर्व प्राप्त होती है जिसके लिए पौधा लगाया जाता है। यदि पौधे की शाखाओं को मिट्टी में रोपकर जड़ों को ऊपर करके सिंचाई करेंगे तो भक्ति रूपी पौधा नष्ट हो जाएगा। इसी प्रकार एक मूल (परम अक्षर ब्रह्म) रूप परमेश्वर की पूजा करने से सर्व देव विकसित होकर साधक को बिना माँगे फल देते रहेंगे।(जिसका वर्णन गीता अध्याय 3 श्लोक 10 से 15 में भी है) इस प्रकार ज्ञान होने पर साधक का प्रयोजन उसी प्रकार अन्य देवताओं से रह जाता है जैसे झील की प्राप्ति के पश्चात् छोटे जलाश्य में रह जाता है। छोटे जलाश्य पर आश्रित को ज्ञान होता है कि यदि एक वर्ष बारिश नहीं हुई तो छोटे तालाब का जल समाप्त हो जाएगा। उस पर आश्रित भी संकट में पड़ जाऐंगे। झील के विषय में ज्ञान है कि यदि दस वर्ष भी बारिश न हो तो भी जल समाप्त नहीं होता��� वह व्यक्ति छोटे जलाश्य को छोड़कर तुरंत बड़े जलाश्य पर आश्रित हो जाता है। भले ही छोटे जलाशय जल पीने में झील के जल जैसा ही स्वादिष्ट है, परंतु पर्याप्त व चिर स्थाई नहीं ह��। इसी प्रकार अन्य देवताओं (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी तथा तमगुण शिव जी) की भक्ति से मिलने वाले स्वर्ग का सुख बुरा नहीं है, परंतु क्षणिक है, पर्याप्त नहीं है। इन देवताओं तथा इनके अतिरिक्त किसी भी देवी-देवता, पित्तर व भूत पूजा करना गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15, 20 से 23 में मना किया है। इसलिए भी इनकी भक्ति करना शास्त्र विरूद्ध होने से व्यर्थ है जिसका गीता अध्याय 16 श्लोक 23,24 में प्रमाण है। कहा है कि शास्त्र विधि को त्यागकर मनमाना आचरण करने वालों को न तो सुख प्राप्त होता है, न सिद्धि प्राप्त होती है और न ही परम गति यानि पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति होती है अर्थात् व्यर्थ प्रयत्न है।(गीता अध्याय 16 श्लोक 23) इससे तेरे लिए अर्जुन! कर्तव्य यानि जो भक्ति कर्म करने चाहिऐ और अकर्तव्य यानि जो भक्ति कर्म न करने चाहिऐ, उसके लिए शास्त्र ही प्रमाण हैं यानि शास्त्रों को आधार मानकर निर्णय लेकर शास्त्रों में वर्णित साधना करना योग्य है।(गीता अध्याय 16 श्लोक 24)
◆◆ वाणी नं. 25 :- ◆◆
गरीब, अगम अनाहद भूमि है, जहां नाम का दीप। एक पलक बिछुरै नहीं, रहता नयनां बीच।।25।।
◆ सरलार्थ :- उस परमेश्वर का द्वीप यानि सत्यलोक अगम अनाहद (काल के तथा
अक्षर पुरूष के लोकों से आगे वाली) विशाल धरती है। अनहद माने जिसकी हद (सीमा)
न हो।
सतलोक विसीमित है। वह परमात्मा तत्वज्ञान प्राप्त साधक की आँखों का तारा
बनकर रहता है। एक पल (क्षण) भी दूर नहीं होता। भक्त को आँखों के सामने कुछ रेखाऐं
दिखाई देती हैं। वे परमात्मा की भक्ति का सांकेतिक तोल-माप हैं।
◆◆ वाणी नं. 26 से 37 :- ◆◆
गरीब, साहिब साहिब क्या करै, साहिब है परतीत। भैंस सींग साहिब भया, पांडे गावैं गीत।।26।।
गरीब, राम सरीखे राम हैं, संत सरीखे संत। नाम सरीखा नाम है, नहीं आदि नहिं अंत।।27।।
गरीब, महिमा सुनि निज नाम की, गहे द्रौपदी चीर। दुःशासन से पचि रहे, अंत न आया बीर।।28।।
गरीब, सेतु बंध्या पाहन तिरे, गज पकड़े थे ग्राह। गनिका चढी बिमान में, निरगुन नाम मल्लाह।।29।।
गरीब, बारद ढारी कबीर जी, भगत हेत कै काज। सेऊ कूं तो सिर दिया, बेचि बंदगी नाज।।30।।
गरीब, कहां गोरख कहां दत्त थे, कहां सुकदेव कहां ब्यास। भगति हेत सें जानियैं, तीन लोक प्रकास।।31।। गरीब, कहां पीपा कहां नामदेव, कहां धना बाजीद। कहां रैदास कमाल थे, कहां थे फकर फरीद।।32।।
गरीब, कहां नानक दादू हुते, कहां ज्ञानी हरिदास। कहां गोपीचंद भरथरी, ये सब सतगुरु पास।।33।।
गरीब, कहां जंगी चरपट हुते, कहां अधम सुलतान। भगति हेत प्रगट भये, सतगुरु के प्रवान।।34।।
गरीब, कहां ना��द प्रह्लाद थे, कहां अंगद कहां सेस। कहां विभीषण ध्रुव हुते, भक्त हिरंबर पेस।।35।।
गरीब, कहां जयदेव थे कपिल मुनि, कहां रामानंद साध। कहां दुर्बासा कष्ण थे, भगति आदि अनाद।। 36।।
गरीब, कहां ब्रह्मा कहां बेद थे, कहां सनकादि चार। कहां शंभु कहां बिष्णु थे, भगति हेत दीदार।।37।।
◆ सरलार्थ :- संत गरीबदास जी ने बताया है कि :-
साहिब-साहिब यानि राम-राम क्या करता फिरता है। साहेब तो परतीत (विश्वास) में
है। जैसे भैंस का टूटा हुआ सींग जो व्यर्थ कूड़े में पड़ा था, वह भक्त के विश्वास से साहिब
(परमात्मा) बन गया। पंडित गुरू को विश्वास नहीं था। वह केवल परमात्मा की महिमा के
गुणगान निज स्वार्थ के लिए कर रहा था।
क्रमशः..........
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