#विष्णु विशाल
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हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के पूर्व संरक्षक और हमारे देश के महान साहित्यकार पद्म भूषण डॉ. गोपाल दास नीरज जी की जन्मशती वर्ष के उपलक्ष्य में हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट तथा उत्तर प्रदेश साहित्य सभा के संयुक्त तत्वाव��ान में कार्यक्रम "यह नीरज की प्रेम सभा है" का आयोजन दिनांक: 04 जनवरी 2025 (शनिवार), समय: सायं 05:00 बजे से, स्थान: संत गाडगे प्रेक्षागृह, संगीत नाटक अकादमी, लखनऊ मे किया जा रहा है |
इस सांस्कृतिक संध्या में बांसुरी वादन, नृत्य प्रस्तुति, अखिल भारतीय कवि सम्मेलन और सम्मान समारोह का आयोजन होगा । कार्यक्रम की परिकल्पना श्री सर्वेश अस्थाना ने की है |
अध्यक्षता: आदरणीय श्री अशोक कुमार जी, माननीय न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त)
अध्यक्ष, राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग उत्तर प्रदेश |
मुख्य अतिथि: श्री दिनेश शर्मा जी, माननीय सांसद एवं पूर्व उप मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश |
विशिष्ट अतिथि: श्री पवन सिंह चौहान जी, माननीय सभापति, वित्तीय एवं प्रशासनिक विलंब समिति, विधान परिषद, उत्तर प्रदेश, श्री मुकेश शर्मा जी, माननीय सदस्य, विधान परिषद, उत्तर प्रदेश एवं श्री राजेश पाण्डेय जी, रिटायर्ड आई.पी.एस., नोडल अफसर, यूपीडा |
कार्यक्रम को गौरव प्रदान करेंगे श्री मिलन प्रभात 'गुंजन' (नीरज जी के पुत्र) एवं श्री पल्लव नीरज (नीरज जी के पौत्र) |
नीरज जन्मशती सम्मान से सम्मानित प्रबुद्धजन:
श्री उदय प्रताप सिंह, पूर्व सांसद एवं पूर्व अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान |
श्री हरिओम, IAS |
श्री आलोक राज, IPS |
श्री सूर्य पाल गंगवार, IAS |
श्री अखिलेश मिश्रा, IAS |
श्री पवन कुमार, IAS |
कवि सम्मेलन में भाग लेने वाले प्रतिष्ठित कवि:
डॉ. विष्णु सक्सेना, हाथरस |
डॉ. प्रवीण शुक्ल, दिल्ली |
श्री दिनेश रघुवंशी, फ़रीदाबाद |
डॉ. सोनरूपा विशाल, बदायु |
श्री बलराम श्रीवास्तव, मैनपुरी |
श्री यशपाल यश, फ़िरोज़ाबाद |
डॉ. राजीव राज, इटावा |
श्री सर्वेश अस्थाना, लखनऊ |
विशेष प्रस्तुतियां:
बांसुरी वादन: श्री राजीव वत्सल |
नृत्य प्रस्तुति: श्रीमती स्नेहा |
हम आपका सपरिवार सादर स्वागत करते हैं । आपके समय और सहयोग के लिए हम हार्दिक आभारी रहेंगे ।
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Bhaktamar Stotra Hindi
श्री प. हेमराज जी
आदिपुरुष आदीश जिन, आदि सुविधि करतार। धरम-धुरंधर परमगुरु, नमों आदि अवतार॥
सुर-नत-मुकुट रतन-छवि करैं, अंतर पाप-तिमिर सब हरैं। जिनपद बंदों मन वच काय, भव-जल-पतित उधरन-सहाय॥1॥
श्रुत-पारग इंद्रादिक देव, जाकी थुति कीनी कर सेव। शब्द मनोहर अरथ विशाल, तिस प्रभु की वरनों गुन-माल॥2॥
विबुध-वंद्य-पद मैं मति-हीन, हो निलज्ज थुति-मनसा कीन। जल-प्रतिबिंब बुद्ध को गहै, शशि-मंडल बालक ही चहै॥3॥
गुन-समुद्र तुम गुन अविकार, कहत न सुर-गुरु पावै पार। प्रलय-पवन-उद्धत जल-जन्तु, जलधि तिरै को भुज बलवन्तु॥4॥
सो मैं शक्ति-हीन थुति करूँ, भक्ति-भाव-वश कछु नहिं डरूँ। ज्यों मृगि निज-सुत पालन हेतु, मृगपति सन्मुख जाय अचेत॥5॥
मैं शठ सुधी हँसन को धाम, मुझ तव भक्ति बुलावै राम। ज्यों पिक अंब-कली परभाव, मधु-ऋतु मधुर करै आराव॥6॥
तुम जस जंपत जन छिनमाहिं, जनम-जनम के पाप नशाहिं। ज्यों रवि उगै फटै तत्काल, अलिवत नील निशा-तम-जाल॥7॥
तव प्रभावतैं कहूँ विचार, होसी यह थुति जन-मन-हार। ज्यों जल-कमल पत्रपै परै, मुक्ताफल की द्युति विस्तरै॥8॥
तुम गुन-महिमा हत-दुख-दोष, सो तो दूर रहो सुख-पोष। पाप-विनाशक है तुम नाम, कमल-विकाशी ज्यों रवि-धाम॥9॥
नहिं अचंभ जो होहिं तुरंत, तुमसे तुम गुण वरणत संत। जो अधीन को आप समान, करै न सो निंदित धनवान॥10॥
इकटक जन तुमको अविलोय, अवर-विषैं रति करै न सोय। को करि क्षीर-जलधि जल पान, क्षार नीर पीवै मतिमान॥11॥
प्रभु तुम वीतराग गुण-लीन, जिन परमाणु देह तुम कीन। हैं तितने ही ते परमाणु, यातैं तुम सम रूप न आनु॥12॥
कहँ तुम मुख अनुपम अविकार, सुर-नर-नाग-नयन-मनहार। कहाँ चंद्र-मंडल-सकलंक, दिन में ढाक-पत्र सम रंक॥13॥
पूरन चंद्र-ज्योति छबिवंत, तुम गुन तीन जगत लंघंत। एक नाथ त्रिभुवन आधार, तिन विचरत को करै निवार॥14॥
जो सुर-तिय विभ्रम आरंभ, मन न डिग्यो तुम तौ न अचंभ। अचल चलावै प्रलय समीर, मेरु-शिखर डगमगै न धीर॥15॥
धूमरहित बाती गत नेह, परकाशै त्रिभुवन-घर एह। बात-गम्य नाहीं परचण्ड, अपर दीप तुम बलो अखंड॥16॥
छिपहु न लुपहु राहु की छांहि, जग परकाशक हो छिनमांहि। घन अनवर्त दाह विनिवार, रवितैं अधिक धरो गुणसार॥17॥
सदा उदित विदलित मनमोह, विघटित मेघ राहु अविरोह। तुम मुख-कमल अपूरव चंद, जगत-विकाशी जोति अमंद॥18॥
निश-दिन शशि रवि को नहिं काम, तुम मुख-चंद हरै तम-धाम। जो स्वभावतैं उपजै नाज, सजल मेघ तैं कौनहु काज॥19॥
जो सुबोध सोहै तुम माहिं, हरि हर आदिक में सो नाहिं। जो द्युति महा-रतन में होय, काच-खंड पावै नहिं सोय॥20॥
(हिन्दी में) नाराच छन्द : सराग देव देख मैं भला विशेष मानिया। स्वरूप जाहि देख वीतराग तू पिछानिया॥ कछू न तोहि देखके जहाँ तुही विशेखिया। मनोग चित-चोर और भूल हू न पेखिया॥21॥
अनेक पुत्रवंतिनी नितंबिनी सपूत हैं। न तो समान पुत्र और माततैं प्रसूत हैं॥ दिशा धरंत तारिका अनेक कोटि को गिनै। दिनेश तेजवंत एक पूर्व ही दिशा जनै॥22॥
पुरान हो पुमान हो पुनीत पुण्यवान हो। कहें मुनीश अंधकार-नाश को सुभान हो॥ महंत तोहि जानके न होय वश्य कालके। न और मोहि मोखपंथ देय तोहि टालके॥23॥
अनन्त नित्य चित्त की अगम्य रम्य आदि हो। असंख्य सर्वव्यापि विष्णु ब्रह्म हो अनादि हो॥ महेश कामकेतु योग ईश योग ज्ञान हो। अनेक एक ज्ञानरूप शुद्ध संतमान हो॥24॥
तुही जिनेश बुद्ध है सुबुद्धि के प्रमानतैं। तुही जिनेश शंकरो जगत्त्रये विधानतैं॥ तुही विधात है सही सुमोखपंथ धारतैं। नरोत्तमो तुही प्रसिद्ध अर्थ के विचारतैं॥25॥
नमो करूँ जिनेश तोहि आपदा निवार हो। नमो करूँ सुभूरि-भूमि लोकके सिंगार हो॥ नमो करूँ भवाब्धि-नीर-राशि-शोष-हेतु हो। नमो करूँ महेश तोहि मोखपंथ देतु हो॥26॥
चौपाई तुम जिन पूरन गुन-गन भरे, दोष गर्वकरि तुम परिहरे। और देव-गण आश्रय पाय, स्वप्न न देखे तुम फिर आय॥27॥
तरु अशोक-तर किरन उदार, तुम तन शोभित है अविकार। मेघ निकट ज्यों तेज फुरंत, दिनकर दिपै तिमिर निहनंत॥28॥
सिंहासन मणि-किरण-विचित्र, तापर कंचन-वरन पवित्र। तुम तन शोभित किरन विथार, ज्यों उदयाचल रवि तम-हार॥29॥
कुंद-पुहुप-सित-चमर ढुरंत, कनक-वरन तुम तन शोभंत। ज्यों सुमेरु-तट निर्मल कांति, झरना झरै नीर उमगांति ॥30॥
ऊँचे रहैं सूर दुति लोप, तीन छत्र तुम दिपैं अगोप। तीन लोक की प्रभुता कहैं, मोती-झालरसों छवि लहैं॥31॥
दुंदुभि-शब्द गहर गंभीर, चहुँ दिशि होय तुम्हारे धीर। त्रिभुवन-जन शिव-संगम करै, मानूँ जय जय रव उच्चरै॥32॥
मंद पवन गंधोदक इष्ट, विविध कल्पतरु पुहुप-सुवृष्ट। देव करैं विकसित दल सार, मानों द्विज-पंकति अवतार॥33॥
तुम तन-भामंडल जिनचन्द, सब दुतिवंत करत है मन्द। कोटि शंख रवि तेज छिपाय, शशि निर्मल निशि करे अछाय॥34॥
स्वर्ग-मोख-मारग-संकेत, परम-धरम उपदेशन हेत। दिव्य वचन तुम खिरें अगाध, सब भाषा-गर्भित हित साध॥35॥
दोहा : विकसित-सुवरन-कमल-दुति, नख-दुति मिलि चमकाहिं। तुम पद पदवी जहं धरो, तहं सुर कमल रचाहिं॥36॥
ऐसी महिमा तुम विषै, और धरै नहिं कोय। सूरज में जो जोत है, नहिं तारा-गण होय॥37॥
(हिन्दी में) षट्पद : मद-अवलिप्त-कपोल-मूल अलि-कुल झंकारें। तिन सुन शब्द प्रचंड क्रोध उद्धत अति धारैं॥ काल-वरन विकराल, कालवत सनमुख आवै। ऐरावत सो प्रबल सकल जन भय उपजावै॥ देखि गयंद न भय करै तुम पद-महिमा लीन। विपति-रहित संपति-सहित वरतैं भक्त अदीन॥38॥
अति मद-मत्त-गयंद कुंभ-थल नखन विदारै। मोती रक्त समेत डारि भूतल सिंगारै॥ बांकी दाढ़ विशाल वदन में रसना लोलै। भीम भयानक रूप देख जन थरहर डोलै॥ ऐसे मृग-पति पग-तलैं जो नर आयो होय। शरण गये तुम चरण की बाधा करै न सोय॥39॥
प्रलय-पवनकर उठी आग जो तास पटंतर। बमैं फुलिंग शिखा उतंग परजलैं निरंतर॥ जगत समस्त निगल्ल भस्म करह���गी मानों। तडतडाट दव-अनल जोर चहुँ-दिशा उठानों॥ सो इक छिन में उपशमैं नाम-नीर तुम लेत। होय सरोवर परिन मैं विकसित कमल समेत॥40॥
कोकिल-कंठ-समान श्याम-तन क्रोध जलन्ता। रक्त-नयन फुंकार मार विष-कण उगलंता॥ फण को ऊँचा करे वेग ही सन्मुख धाया। तब जन होय निशंक देख फणपतिको आया॥ जो चांपै निज पगतलैं व्यापै विष न लगार। नाग-दमनि तुम नामकी है जिनके आधार॥41॥
जिस रन-माहिं भयानक रव कर रहे तुरंगम। घन से गज गरजाहिं मत्त मानों गिरि जंगम॥ अति कोलाहल माहिं बात जहँ नाहिं सुनीजै। राजन को परचंड, देख बल धीरज छीजै॥ नाथ तिहारे नामतैं सो छिनमांहि पलाय। ज्यों दिनकर परकाशतैं अन्धकार विनशाय॥42॥
मारै जहाँ गयंद कुंभ हथियार विदारै। उमगै रुधिर प्रवाह वेग जलसम विस्तारै॥ होयतिरन असमर्थ महाजोधा बलपूरे। तिस रनमें जिन तोर भक्त जे हैं नर सूरे॥ दुर्जय अरिकुल जीतके जय पावैं निकलंक। तुम पद पंकज मन बसैं ते नर सदा निशंक॥43॥
नक्र चक्र मगरादि मच्छकरि भय उपजावै। जामैं बड़वा अग्नि दाहतैं नीर जलावै॥ पार न पावैं जास थाह नहिं लहिये जाकी। गरजै अतिगंभीर, लहर की गिनति न ताकी॥ सुखसों तिरैं समुद्र को, जे तुम गुन सुमराहिं। लोल कलोलन के शिखर, पार यान ले जाहिं॥44॥
महा जलोदर रोग, भार पीड़ित नर जे हैं। वात पित्त कफ कुष्ट, आदि जो रोग गहै हैं॥ सोचत रहें उदास, नाहिं जीवन की आशा। अति घिनावनी देह, धरैं दुर्गंध निवासा॥ तुम पद-पंकज-धूल को, जो लावैं निज अंग। ते नीरोग शरीर लहि, छिनमें होय अनंग॥45॥
पांव कंठतें जकर बांध, सांकल अति भारी। गाढी बेडी पैर मांहि, जिन जांघ बिदारी॥ भूख प्यास चिंता शरीर दुख जे विललाने। सरन नाहिं जिन कोय भूपके बंदीखाने॥ तुम सुमरत स��वयमेव ही बंधन सब खुल जाहिं। छिनमें ते संपति लहैं, चिंता भय विनसाहिं॥46॥
महामत गजराज और मृगराज दवानल। फणपति रण परचंड नीरनिधि रोग महाबल॥ बंधन ये भय आठ डरपकर मानों नाशै। तुम सुमरत छिनमाहिं अभय थानक परकाशै॥ इस अपार संसार में शरन नाहिं प्रभु कोय। यातैं तुम पदभक्त को भक्ति सहाई होय॥47॥
यह गुनमाल विशाल नाथ तुम गुनन सँवारी। विविधवर्णमय पुहुपगूंथ मैं भक्ति विथारी॥ जे नर पहिरें कंठ भावना मन में भावैं। मानतुंग ते निजाधीन शिवलक्ष्मी पावैं॥ भाषा भक्तामर कियो, हेमराज हित हेत। जे नर पढ़ैं, सुभावसों, ते पावैं शिवखेत॥48॥
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हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के पूर्व संरक्षक और हमारे देश के महान साहित्यकार पद्म भूषण डॉ. गोपाल दास नीरज जी की जन्मशती वर्ष के उपलक्ष्य में हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट तथा उत्तर प्रदेश साहित्य सभा के संयुक्त तत्वावधान में कार्यक्रम "यह नीरज की प्रेम सभा है" का आयोजन दिनांक: 04 जनवरी 2025 (शनिवार), समय: सायं 05:00 बजे से, स्थान: संत गाडगे प्रेक्षागृह, संगीत नाटक अकादमी, लखनऊ मे किया जा रहा है |
इस सांस्कृतिक संध्या में बांसुरी वादन, नृत्य प्रस्तुति, अखिल भारतीय कवि सम्मेलन और सम्मान समारोह का आयोजन होगा । कार्यक्रम की परिकल्पना श्री सर्वेश अस्थाना ने की है |
अध्यक्षता: आदरणीय श्री अशोक कुमार जी, माननीय न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त)
अध्यक्ष, राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग उत्तर प्रदेश |
मुख्य अतिथि: श्री दिनेश शर्मा जी, माननीय सांसद एवं पूर्व उप मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश |
विशिष्ट अतिथि: श्री पवन सिंह चौहान जी, माननीय सभापति, वित्तीय एवं प्रशासनिक विलंब समिति, विधान परिषद, उत्तर प्रदेश, श्री मुकेश शर्मा जी, माननीय सदस्य, विधान परिषद, उत्तर प्रदेश एवं श्री राजेश पाण्डेय जी, रिटायर्ड आई.पी.एस., नोडल अफसर, यूपीडा |
कार्यक्रम को गौरव प्रदान करेंगे श्री मिलन प्रभात 'गुंजन' (नीरज जी के पुत्र) एवं श्री पल्लव नीरज (नीरज जी के पौत्र) |
नीरज जन्मशती सम्मान से सम्मानित प्रबुद्धजन:
श्री उदय प्रताप सिंह, पूर्व सांसद एवं पूर्व अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान |
श्री हरिओम, IAS |
श्री आलोक राज, IPS |
श्री सूर्य पाल गंगवार, IAS |
श्री अखिलेश मिश्रा, IAS |
श्री पवन कुमार, IAS |
कवि सम्मेलन में भाग लेने वाले प्रतिष्ठित कवि:
डॉ. विष्णु सक्सेना, हाथरस |
डॉ. प्रवीण शुक्ल, दिल्ली |
श्री दिनेश रघुवंशी, फ़रीदाबाद |
डॉ. सोनरूपा विशाल, बदायु |
श्री बलराम श्रीवास्तव, मैनपुरी |
श्री यशपाल यश, फ़िरोज़ाबाद |
डॉ. राजीव राज, इटावा |
श्री सर्वेश अस्थाना, लखनऊ |
विशेष प्रस्तुतियां:
बांसुरी वादन: श्री राजीव वत्सल |
नृत्य प्रस्तुति: श्रीमती स्नेहा |
हम आपका सपरिवार सादर स्वागत करते हैं । आपके समय और सहयोग के लिए हम हार्दिक आभारी रहेंगे ।
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श्री यशपाल यश, फ़िरोज़ाबाद |
डॉ. राजीव राज, इटावा |
श्री सर्वेश अस्थाना, लखनऊ |
विशेष प्रस्तुतियां:
बांसुरी वादन: श्री राजीव वत्सल |
नृत्य प्रस्तुति: श्रीमती स्नेहा |
हम आपका सपरिवार सादर स्वागत करते हैं । आपके समय और सहयोग के लिए हम हार्दिक आभारी रहेंगे ।
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हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के ���ूर्व संरक्षक और हमारे देश के महान साहित्यकार पद्म भूषण डॉ. गोपाल दास नीरज जी की जन्मशती वर्ष के उपलक्ष्य में हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट तथा उत्तर प्रदेश साहित्य सभा के संयुक्त तत्वावधान में कार्यक्रम "यह नीरज की प्रेम सभा है" का आयोजन दिनांक: 04 जनवरी 2025 (शनिवार), समय: सायं 05:00 बजे से, स्थान: संत गाडगे प्रेक्षागृह, संगीत नाटक अकादमी, लखनऊ मे किया जा रहा है |
इस सांस्कृतिक संध्या में बांसुरी वादन, नृत्य प्रस्तुति, अखिल भारतीय कवि सम्मेलन और सम्मान समारोह का आयोजन होगा । कार्यक्रम की परिकल्पना श्री सर्वेश अस्थाना ने की है |
अध्यक्षता: आदरणीय श्री अशोक कुमार जी, माननीय न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त)
अध्यक्ष, राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग उत्तर प्रदेश |
मुख्य अतिथि: श्री दिनेश शर्मा जी, माननीय सांसद एवं पूर्व उप मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश |
विशिष्ट अतिथि: श्री पवन सिंह चौहान जी, माननीय सभापति, वित्तीय एवं प्रशासनिक विलंब समिति, विधान परिषद, उत्तर प्रदेश, श्री मुकेश शर्मा जी, माननीय सदस्य, विधान परिषद, उत्तर प्रदेश एवं श्री राजेश पाण्डेय जी, रिटायर्ड आई.पी.एस., नोडल अफसर, यूपीडा |
कार्यक्रम को गौरव प्रदान करेंगे श्री मिलन प्रभात 'गुंजन' (नीरज जी के पुत्र) एवं श्री पल्लव नीरज (नीरज जी के पौत्र) |
नीरज जन्मशती सम्मान से सम्मानित प्रबुद्धजन:
श्री उदय प्रताप सिंह, पूर्व सांसद एवं पूर्व अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान |
श्री हरिओम, IAS |
श्री आलोक राज, IPS |
श्री सूर्य पाल गंगवार, IAS |
श्री अखिलेश मिश्रा, IAS |
श्री पवन कुमार, IAS |
कवि सम्मेलन में भाग लेने वाले प्रतिष्ठित कवि:
डॉ. विष्णु सक्सेना, हाथरस |
डॉ. प्रवीण शुक्ल, दिल्ली |
श्री दिनेश रघुवंशी, फ़रीदाबाद |
डॉ. सोनरूपा विशाल, बदायु |
श्री बलराम श्रीवास्तव, मैनपुरी |
श्री यशपाल यश, फ़िरोज़ाबाद |
डॉ. राजीव राज, इटावा |
श्री सर्वेश अस्थाना, लखनऊ |
विशेष प्रस्तुतियां:
बांसुरी वादन: श्री राजीव वत्सल |
नृत्य प्रस्तुति: श्रीमती स्नेहा |
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संत रामपाल जी महाराज
तीनों देवा कमल दल बसे, ब्रह्मा-विष्णु-महेश। प्रथम इनकी वंदना, फिर सुन सद्गुरू उपदेश ।।
संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में विशाल सत्संग एवं निःशुल्क नामदीक्षा का आयोजन होने जा रहा है। दिनांक - 15.12.2024 (रविवार) जिसमें आप सपरिवार एवं मित्रगण के साथ अवश्य पधारें। सत्संग की आधी धड़ी, तप के वर्ष हजार। तो भी बराबर है नहीं कहैं कबीर विचार ।।
पता - विजय हाता, राजूभगत जी के मकान में, नियर कलावती मैरेज हॉल, सिवान
#राधास्वामीपंथ_का_महाखुलासा
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संत रामपाल जी महाराज
तीनों देवा कमल दल बसे, ब्रह्मा-विष्णु-महेश।
प्रथम इनकी वंदना, फिर सुन सद्गुरू उपदेश ।। संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में विशाल सत्संग एवं निःशुल्क नामदीक्षा
का आयोजन होने जा रहा है। दिनांक - 15.12.2024 (रविवार) जिसमें आप सपरिवार एवं मित्रगण के साथ अवश्य पधारें। सत्संग की आधी धड़ी, तप के वर्ष हजार। तो भी बराबर है नहीं कहैं कबीर विचार ।।
पता - विजय हाता, राजू भगत जी के मकान में, नियर कलावती मैरेज हॉल, सिवान
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. 🍁 *ज्ञान गंगा* 🍁 .
➖ *विवाहातील प्रचलित वर्तमान परंपरांचा त्याग :-* ➖
विवाहात व्यर्थ खर्च बंद करावा लागेल. उदाहरणार्थ मुलीच्या विवाहात मोठी वरात घेऊन येणे, हुंडा देणे, ह्या व्यर्थ परंपरा आहेत. ज्यामुळे मुलगी ही कुटुंबावरील भार समजली जाते आणि तिला गर्भातच खुडण्याचे उद्योग सुरु आहेत. माता-पित्यांसाठी तर हे महापाप आहे. मुलगी देवीचे स्वरूप आहे. आमच्या वि��ृत परम्परानी मुलीला शत्रू बनविले आहे. श्री देवीपुराणाच्या तीसर्याे स्कंदात याचे प्रमाण आहे कीह्या ब्रह्माण्डाच्या प्रारम्भी तिन्ही देवतांचा (म्हणजेच श्री ब्रह्मदेवजी, श्री विष्णुजी आणि श्री शिवजी) यांचा त्यांची श्री दुर्गादेवीजींनी विवाह केला त्यावेळी कोणी वरात काढली नव्हती किंवा भोजनावळ सुद्धा घातल्या नव्हत्या. ना नाचगाणी होती किंवा बँडबाजा होता. श्री दुर्गादेवीने आपल्या ज्येष्ठ पुत्रास श्री ब्रह्मदेवाला म्हटले की हे ब्रह्मा! ही सावित्री नामक मुलगी तुला पत्नीच्या रूपात देत आहोत. हिला घेऊन जा आणि आपले घर प्रपंच थाट. त्याचप्रमाणे आपल्या मधल्या पुत्राला म्हणजेच श्री विष्णु यांना लक्ष्मीजी आणि कनिष्ठ पुत्र श्री शंकरजींना पार्वतीजी देऊन सांगितले, ह्या तुमच्या पत्नी आहेत. ह्यांना घेऊन जा आणि आपले घर प्रपंच थाटा. तिघेही आपल्या पत्नी बरोबर घेऊन आपल्या लोकात गेले आणि मग जगाचा विस्तार झाला.
*शंका समाधान* :- काही व्यक्ति असे म्हणतात की पार्वतीजीचा मृत्यु झाला. त्या देवीचा पुनर्जन्म राजा दक्षाच्या घरात झाला होता. यौवनात पदार्पण केल्यावर देवी सतीजींनी (पार्वती) नारदाने सांगितल्यानंतर श्री शंकरांना पति म्हणून स्वीकारण्याचा दृढ़ संकल्प करून आपल्या मातेकरवी आपली इच्छा पिता दक्ष याला सांगितली. तेव्हा राजा दक्ष यांनी म्हटले की हे शंकरजी माझे जावई बनण्यायोग्य नाहीत कारण ते नागडे राहतात. एकाच मृगजीन बांधून राहतात आणि शरीरावर राख फासून भांगेच्या नशेत असतात. सर्पांना सोबत ठेवतात. अशा व्यक्तिशी माझ्या मुलीचा विवाह करून जगात मी आपले हसू नाही करून घेणार. परंतु देवी पार्वती सुद्धा जिद्दीला पक्कया होत्या. त्यांनी स्वतःची इच्छा श्रीशंकरजींना कळवली आणि त्यांना सांगितले मी आपल्याशी विवाह करू इच्छीत आहे. राजा दक्षाने पार्वतीजीचा विवाह अन्य कोणासोबत ठरविला होता. त्याच दिवशी श्री शंकरजी आपल्या हजारोंच्या सँख्येतील भूत-प्रेत, भैरव आणि आपल्या गणां सह विवाह मंडपात पोहोचले. राजा दक्षाच्या सैनिकांनी विरोध केला. शंकारांची सेना आणि दक्षाच्या सेनेत युद्ध झाले. पार्वतीजींनी शंकरजींना वरमाला घातली. श्री शंकरजी पार्वतीजींना बलपूर्वक कैलाश पर्वतावर आपल्या घरी घेऊन गेले. काही व्यक्ति असे म्हणतात की बघा! श्री शंकरजी सुद्धा भव्य अशी वरात घेऊन पार्वतीशी विवाह करण्यास आले होते. त्यामुळे वरातीची परंपर�� पुरातन आहे. त्यामुळे वरातीशिवाय विवाहात शोभा येत नाही. त्याचे उत्तर असे आहे की हा विवाह नव्हता तर प्रेम प्रसंग होता. पार्वतीजींना बलपूर्वक इचलून घेऊन जाण्यासाठी श्री शंकरजी वरात नाही तर सेना घेऊन आले होते. विवाहाची पुरातन परम्परा श्री देवी महापुराणाच्या तीसर्यार स्कंदात आहे व ती वर सांगितली आहे. मुले आणि मुलींनी आपल्या माता-पित्याच्या इच्छेनुसार विवाह केला पाहिजे. प्रेम विवाह हे महाक्लेशाचे कारण होऊ शकते. पुढे भगवान शंकरजी आणि पार्वतीजी यांच्यामध्ये काही गोष्टींवरून तंटा झाला. शंकरजींनी पार्वतीजीशी पत्नीचे नाते समाप्त केले व बोलाचाली सुद्धा बंद केली. पार्वतीजींनी विचार केला आता हे घर माझ्यासाठी एक नरकच बनले आहे.त्यामुळे काही दिवस मी आईकडे जाऊन राहते. पार्वतीजी आपल्या पिता दक्षाच्या घरी माहेरी गेल्या. त्या दिवशी राजा दक्ष यांनी एका हवन यज्ञाचे आयोजन केले होते. राजा दक्षाने आपल्या मुलीला सन्मानाने न वागवता म्हटले की आज काय घ्यायला आली आहेस? बघितलेस त्याचे प्रेम, निघून जा माझ्या घरातून. पार्वतीजींनी आपल्या आईस श्री शंकरजी नाराज झाल्याची गोष्ट सांगितली. मातेने आपल्या पतिला सगळे सांगितले होते. पार्वतीजींना ना माहेरी काही स्थान होते ना सासरी. प्रेमविवाहाने अशी गंभीर परिस्थिति उत्पन्न निर्माण केली की दक्ष पुत्रीला आत्महत्या करण्याशिवाय अन्य कोणताही पर्याय उरला नाही आणि राजा दक्षाच्या विशाल हवनकुण्डात जाळून मृत्यू पावल्या. धार्मिक अनुष्ठानाचा नाश केला. आपले अमोल मानवी जीवन गमावून बसल्या. पित्याचाही नाश करवला कारण जेव्हा श्री शंकरजींना हे सर्व माहिती झाल्यावर ते आपली सेना घेऊन तिथे गेले आणि आपले सासरे दक्षजीचे मुंडके छाटून टाकली. नंतर बकर्याऊचे मुंडके लावून जीवित केले. त्या प्रेम विवाहाने कसे घमासान केले. श्री शंकरांच्या सैन्याला वरात असल्याची बतावणी सांगून ह्या कुप्रथेला जन्म दिला आहे. आणि हा प्रसंग प्रेमविवाह रूपी कुप्रथेचा जनक आहे आणि हे समाजाच्या विनाशाचे कारण बनले आहे.
जे विवाह सुप्रथेनुसार झाले, ते आजपर्यंत सुखी जीवन जगत आहेत. जसे श्री ब्रह्मदेवजी आणि श्री विष्णुजी.
*विवाह करण्याचा उद्देश* :- संततीची उत्पाती हाच विवाहाचा उद्देश आहे. मग पति-पत्नी मिळून परिश्रम करून मुलांचे पालन करतात. त्यांचा विवाह करून देतात. मग ते आपले घर थाटतात. त्याशिवाय प्रेमविवाह हे समाजात अशांतिचे बीज पेरत आहेत. समाज बिघडवणारे हे अस्तनीतले निखारे आहेत.
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समुद्र मंथन
हिंदू पौराणिक कथाओं में सबसे प्रसिद्ध कहानियों में से एक है, जो अच्छाई और बुराई के बीच शाश्वत संघर्ष और अमरता की खोज को दर्शाती है। इसमें देवों (देवताओं) और असुरों (राक्षसों) द्वारा अमृत, अमरता का अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन करने के लिए मिलकर काम करना शामिल है।
सारांश
1. मंथन का कारण: ऋषि दुर्वासा के श्राप के कारण, देवताओं ने अपनी शक्ति और राज्य असुरों के हाथों खो दिया। शक्ति वापस पाने के लिए, उन्होंने भगवान विष्णु की मदद मांगी, जिन्होंने उन्हें अमरता का अमृत प्राप्त करने के लिए दूध के सागर (क्षीर सागर) का मंथन करने की सलाह दी।
2. तैयारी: मंदरा पर्वत को मंथन की छड़ी के रूप में चुना गया था, और नाग वासुकी को मंथन की रस्सी के रूप में इस्तेमाल किया गया था। देवताओं ने पूंछ पकड़ी, जबकि असुरों ने वासुकी का सिर पकड़ रखा था। पर्वत को डूबने से बचाने के लिए, भगवान विष्णु ने एक विशाल कछुए, कूर्म का रूप धारण किया और उसे अपनी पीठ पर टिका दिया।
3. मंथन और उसका परिणाम: जैसे ही समुद्र मंथन हुआ, कई खजाने और प्राणी निकले, जो परोपकारी और खतरनाक दोनों थे: हलाहल: सबसे पहले एक घातक विष निकला, जो ब्रह्मांड को नष्ट करने की धमकी दे रहा था। भगवान शिव ने दुनिया को बचाने के लिए इसे पी लिया, इसे अपने गले में धारण कर लिया, जो नीला हो गया (जिससे उन्हें नीलकंठ नाम मिला)। कामधेनु: इच्छा-पूर्ति करने वाली गाय, जो प्रचुरता का प्रतीक है। ऐरावत: एक दिव्य सफेद हाथी, जो भगवान इंद्र की सवारी बन गया। देवी लक्ष्मी: धन और समृद्धि की देवी, जिन्होंने भगवान विष्णु को अपना जीवनसाथी चुना। कौस्तुभ मणि: एक दुर्लभ और कीमती रत्न, जिसे भगवान विष्णु ने पहना था। पारिजात वृक्ष: सुगंधित फूलों वाला एक दिव्य वृक्ष। अप्सराए��: अपनी सुंदरता के लिए जानी जाने वाली दिव्य युवतियाँ। धन्वंतरि: दिव्य चिकित्सक और आयुर्वेद के देवता, अमृत (अमरता का अमृत) का कलश धारण किए हुए निकले।
4. अमृत के लिए युद्ध: एक बार जब अमृत निकला, तो देवों और असुरों ने इसे पाने के लिए लड़ाई लड़ी। भगवान विष्णु ने सुंदर मोहिनी का वेश धारण कर अमृत को निष्पक्ष रूप से वितरित किया, लेकिन यह सुनिश्चित किया कि यह देवताओं तक पहुंचे, जिससे उनकी शक्ति और ताकत वापस आ गई।
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हमें यह बताते हुए अपार हर्ष हो रहा है कि हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के पूर्व संरक्षक और हमारे देश के महान साहित्यकार पद्म भूषण डॉ. गोपाल दास नीरज जी की जन्मशती वर्ष के उपलक्ष्य में, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट तथा उत्तर प्रदेश साहित्य सभा के संयुक्त तत्वावधान में कार्यक्रम "यह नीरज की प्रेम सभा है" का आयोजन किया जा रहा है ।
कार्यक्रम का विवरण इस प्रकार है:
तारीख: 04 जनवरी 2025 (शनिवार)
समय: सायं 05:00 बजे
स्थान: संत गाडगे प्रेक्षागृह, संगीत नाटक अकादमी, लखनऊ
इस सांस्कृतिक संध्या में बांसुरी वादन, नृत्य प्रस्तुति, अखिल भारतीय कवि सम्मेलन और सम्मान समारोह का आयोजन होगा । कार्यक्रम की परिकल्पना श्री सर्वेश अस्थाना ने की है ।
कार्यक्रम को गौरव प्रदान करेंगे:
विशेष अतिथि:
श्री मिलन प्रभात 'गुंजन' (नीरज जी के पुत्र)
श्री पल्लव नीरज (नीरज जी के पौत्र)
कवि सम्मेलन में भाग लेने वाले प्रतिष्ठित कवि:
डॉ. विष्णु सक्सेना, हाथरस |
डॉ. प्रवीण शुक्ल, दिल्ली |
श्री दिनेश रघुवंशी, फ़रीदाबाद |
डॉ. सोनरूपा विशाल, बदायु |
श्री बलराम श्रीवास्तव, मैनपुरी |
श्री यशपाल यश, फ़िरोज़ाबाद |
डॉ. राजीव राज, इटावा |
श्री सर्वेश अस्थाना, लखनऊ |
नीरज जन्मशती सम्मान से सम्मानित प्रबुद्धजन:
श्री उदय प्रताप सिंह, पूर्व सांसद एवं पूर्व अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान |
श्री हरिओम, IAS
श्री आलोक राज, IPS
श्री सूर्य पाल गंगवार, IAS
श्री अखिलेश मिश्रा, IAS
श्री पवन कुमार, IAS
विशेष प्रस्तुतियां:
बांसुरी वादन: श्री राजीव वत्सल
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Sadhna TV Satsang || 02-08-2024 || Episode: 2988|| Sant Rampal Ji Mahara...
*📯🙏बन्दीछोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की जय🙏📯*
02/ August /2024 /Friday / शुक्रवार
#FridayMotivation
#FridayThoughts
#प्रभु_प्राप्त_संतों_से_रूबरू
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#SantRampalJiMahharaj
⏬⏬⏬
🔰🔰🔰🔰
1🌀परमात्मा प्राप्त संतों से रूबरू
स्वामी रामानन्द जी अपने समय के सुप्रसिद्ध विद्वान कहे जाते थे। स्वामी रामानंद जी को पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी मिले तथा उन्हें अपनी शरण में लिया सतलोक दिखाया! तब रामानन्द जी ने जो कहा उसका वर्णन आदरणीय संत गरीबदास जी ने अपनी वाणी में इस प्रकार किया है :-
*तहां वहां चित चक्रित भया, देखि फजल दरबार!
गरीबदास सिजदा किया, हम पाये दीदार!!*
*बोलत रामानन्द जी सुन, कबीर करतार!
गरीब दास सब रूप में, तुम हीं बोलन हार!!*
2🌀परमात्मा प्राप्त संतों से रूबरू
संत गरीबदास जी को परमात्मा कबीर साहेब जी जिंदा महात्मा रूप में मिले और अपना सतलोक लोक दिखाया व वापिस पृथ्वी पर छोड़ा! तब संत गरीबदास जी ने बताया :-
*अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड का, एक रति नहीं भार!
सतगुरु पुरुष कबीर हैं, कुल ��े सृजनहार!!*
*गरीब, हम सुल्तानी नानक तारे, दादू कूं उपदेश दिया!
जाति जुलाहा भेद न पाया, काशी माहें कबीर हुआ!!*
3🌀परमात्मा प्राप्त संतों से रूबरू
आदरणीय गरीबदास साहेब जी को पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी 10 वर्ष की आयु में सशरीर जिंदा बाबा रूप में मिले!उनको ब्रह्मा, विष्णु, शिव आदि के लोक तथा सतलोक दिखाया! तत्पश्चात् संत गरीबदास जी ने आंखों देखा हाल वर्णन किया :-
*गरीब, सब पदवी के मूल हैं, सकल सिद्धि हैं तीर!
दास गरीब सतपुरुष भजो, अविगत कला कबीर!!*
4🌀परमात्मा प्राप्त संतों से रूबरू
श्री नानक जी प्रतिदिन बेई नदी पर स्नान करने जाते थे। वहाँ उन्हें पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी के दर्शन जिंदा महात्मा के रूप में हुए, उन्हें परमात्मा सच्चखंड (सतलोक) लेकर गए और अपनी वास्तविक स्थिति से परिचित करवाकर वापिस छोड़ा!
गुरु ग्रन्थ साहिब के राग "सिरी" महला 1 पृष्ठ नं. 24 पर शब्द नं. 29 पर श्री नानक जी ने कहा है :-
*एक सुआन दुई सुआनी नाल,भलके भौंकही सदा बिआल!
कुड़ छुरा मुठा मुरदार, धाणक रूप रहा करतार!!*
5🌀परमात्मा प्राप्त संतों से रूबरू
धनी धर्मदास जी को कबीर परमेश्वर जिंदा महात्मा के रूप में मिले, उनको सतलोक दिखाया और अपना गवाह बनाया! तब धर्मदास जी ने परमेश्वर कबीर जी के विषय में कहा था:
*सत्यलोक से चल कर आए, काटन जम की जंजीर!
आज मोहे दर्शन दियो जी कबीर!!*
6🌀परमात्मा प्राप्त संतों से रूबरू
आदरणीय दादू जी, जब सात वर्ष के बालक थे तब पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी जिंदा महात्मा के रूप में मिले तथा सत्यलोक लेकर गए! सर्व लोकों व अपनी स्थिति से परिचित करवाया एवं पुनः पृथ्वी पर वापस छोड़ा! तब दादू जी ने अपनी अमृतवाणी में कहा:
*जिन मोकूं निज नाम दिया, सोई सतगुरु हमार!
दादू दूसरा कोई नहीं, कबीर सिरजनहार!!*
7🌀परमात्मा प्राप्त संतों से रूबरू
संत गरीबदास जी को कबीर परमात्मा मिले, उनको सतलोक लेकर गए। इसका प्रमाण उन्होंने अपनी अमृतवाणी में दिया :
*अजब नगर में ले गया, हमकूं सतगुरु आन!
झिलके बिम्ब अगाध गति, सूते चादर तान!!*
*अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड का एक रति नहीं भार!
सतगुरु पुरुष कबीर हैं कुल के सृजनहार!!*
8🌀परमात्मा प्राप्त संतों से रूबरू
आदरणीय गरीबदास जी को परमेश्वर कबीर साहेब जी ने अपना अमर लोक दिखाया, फिर वापिस पृथ्वी पर छोड़ दिया। तब उन्होंने अपनी अमृत वाणी के माध्यम से बताया :
*गैबी ख्याल विशाल सतगुरु, अचल दिगम्बर थीर है!
भक्ति हेत काया धर आये, अविगत सत कबीर हैं!!*
*हरदम खोज हनोज हाजर, त्रिवैणी के तीर हैं!
दास गरीब तबीब सतगुरु, बन्दी छोड़ कबीर हैं!!*
9🌀परमात्मा प्राप्त संतों से रूबरू
श्री गुरुग्रन्थ साहेब पृष्ठ 721, महला 1 में श्री नानक देव जी ने परमात्मा का आँखों देखा वर्णन किया है:
*हक्का कबीर करीम तू, बेएब परवरदीगार!
नानक बुगोयद जनु तुरा, तेरे चाकरां पाखाक!!*
10🌀परमात्मा प्राप्त संतों से रूबरू
परमेश्वर कबीर जी को अवि��ाशी लोक "सतलोक" में सिंहासन पर विराजमान देखने के बाद स्वामी रामानंद जी ने कहा:
*सुन्न-बेसुन्न सैं तुम परै, उरैं स हमरै तीर!
गरीबदास सरबंग में, अबिगत पुरूष कबीर!!*
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आज के एपिसोड में जाने श्रीमद् भगवत गीता का पवित्र ज्ञान गीता ज्ञान दाता ने अध्याय 4 श्लोक 25 से 30 में_ कौन सी साधना पाप नाशक बताई है ?
क्योंकि पाप नाश होने के बाद ही जीवात्मा का मोक्ष होगा!
गीता अध्याय 15 श्लोक 16,17 में तीन पुरुषों का उल्लेख किया गया है !
🙏तो आओ जानें! यह तीन पुरुष कौन हैं ?
🙏सत साहेब जी🙏 जय बंदी छोड़ जी की🙏
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#पवित्र_सावन_मास_में_जानिये...
✓✓✓ पूजा के योग्य सर्वश्रेष्ठ भगवान कौन हैं ?
(पवित्र शास्त्र "सामवेद" के अनुसार)
बंदीछोड़ सद्गुरू देव जी ने शास्त्रों का ज्ञान देते हुए हमें बताया हैं कि
पवित्र सामवेद संख्या 1400 में
संख्या न. 359 सामवेद अध्याय न. 4 के खण्ड न. 25 का श्लोक न. 8 -
पुरां भिन्दुर्युवा #कविरमितौजा अजायत। इन्द्रो विश्वस्य कर्मणो धर्ता वज्री पुरुष्टुतः ।।4।।
पुराम्-भिन्दुः #युवा_कविर्-अमित-औजा-अजायत-इन्द्रः-विश्वस्य-कर्मणः-धर्ता-वज्री- पुरूष्टुतः।
शब्दार्थ:- (युवा) पूर्ण समर्थ (कविर्) #कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर (अमितऔजा) विशाल शक्ति युक्त अर्थात् सर्व शक्तिमान है (अजायत) तेजपुंज का शरीर मायावयी बनाकर (धर्ता) प्रकट होकर अर्थात् अवतार धारकर (वज्री) अपने #सत्यशब्द व #सत्यनाम रूपी शस्त्र से (पुराम्) काल-ब्रह्म के पाप रूपी बन्धन रूपी कीले को (भिन्दुः) तोड़ने वाला, टुकड़े-टुकड़े करने वाला (इन्द्रः) सर्व सुखदायक परमेश्वर (विश्वस्य) सर्व जगत के सर्व प्राणियों को (कर्मणः) मनसा वाचा कर्मणा अर्थात् पूर्ण निष्ठा के साथ अनन्य मन से धार्मिक कर्मो द्वारा सत्य भक्ति से (पुरूष्टुतः) स्तुति उपासना करने योग्य हैं।
{जैसे बच्चा तथा वृद्ध सर्व कार्य करने में समर्थ नहीं होते जवान व्यक्ति सर्व कार्य करने की क्षमता रखता हैं। ऐसे ही #परब्रह्म #ब्रह्म व त्रिलोकिय ब्रह्मा-विष्णु-शिव तथा अन्य देवी-देवताओं को बच्चे तथा वृद्ध समझो इसलिए कबीर परमेश्वर को युवा की उपमा वेद में दी हैं}
भावार्थ:- जो कविर्देव (#कबीर_परमेश्वर) तत्वज्ञान लेकर संसार में आता हैं।
✓ वह सर्वशक्तिमान हैं तथा
✓ काल (ब्रह्म) के कर्म रूपी किले को तोड़ने वाला हैं
✓ वह सर्व सुखदाता हैं तथा
✓ सर्व के पुजा करने योग्य हैं।
और अधिक जानकारी सपरिवार ��ेखिए श्रद्धा टीवी चैनल दोपहर दो बजे से तीन बजे तक
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart30 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart31
"चौथा अध्याय"
प्रश्न 22 (लेखक का) : क्या आप या आपके हिन्दू धर्मगुरू जानते हैं कि श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान किसने कहा?
उत्तर (हिन्दू श्रद्धालु का) : श्री कृष्ण जी ने गीता का ज्ञान अर्जुन को बताया। श्री कृष्ण जी स्वयं श्री विष्णु जी के अवतार थे। वासुदेव जी के घर माता देवकी के गर्भ से जन्में थे।
लेखक (रामपाल दास) श्रीमान जी ! आप गलत कह रहे हो कि श्रीमदभगवत गीता का ज्ञान श्री कृष्ण जी ने कहा।
आपने बड़ा हास्यस्पद वक्तव्य दिया है
प्रश्न 23 (हिन्दू साहेबान का) कि गीता का ज्ञान श्री कृष्ण जी ने नहीं कहा।
आप बताओ अपनी झूठ कि गीता का ज्ञान किसने कहा?
उत्तर :- आपको यानि हिन्दू समाज को तथा अपने धर्म प्रचारक गुरूजनों को न तो अपनी पवित्र गीता का गूढ़ ज्ञान, न वेदों का गूढ़ ज्ञान, न पुराणों का गूढ़ ज्ञान है। इसी कारण से मेरा विरोध हो रहा है।
श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 4 श्लोक 32 में कहा है कि :-
मूल पाठ :- एवम्, बहुविद्याः, यज्ञाः, वितताः, ब्रह्मणः, मुखे।
कर्मजान्, विद्धि, तान्, सर्वान्, एवम्, ज्ञात्वा, विमोक्ष्यसे ।।
मेरा अनुवाद :- (एवम्) इस प्रकार और भी, (बहुविद्याः) बहुत प्रकार के (यज्ञाः) यज्ञों यानि धार्मिक अनुष्ठानों व पूजाओं का ज्ञान (ब्रह्मणः मुखेः) सच्चिदानंद घन ब्रह्म के द्वारा बोली वाणी में यानि सूक्ष्मवेद में (वितताः) विस्तार से कहे हैं। (तान्) उन (सर्वान्) सबको तू (कर्मजान्) कर्म करते-करते यानि सन्यास की आवश्यकता नहीं है, कर्म करते-करते होने वाले (विद्धि) जान। (एवम्) इस प्रकार (ज्ञात्वा) जानकर यानि उस परमात्मा-दत्त तत्त्वज्ञान को जानकर,
उसके अनुसार अनुष्ठान करने से तू कर्म बंधन से सर्वथा मुक्त हो जाएगा। यह तत्त्वज्ञान है।
गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में कहा है कि उस तत्त्वज्ञान को तू तत्त्वदर्शी ज्ञानियों के पास जाकर समझ। उनको भली-भांति दण्डवत् प्रणाम करने से, उनकी सेवा करने से और कपट छोड़कर सरलतापूर्वक प्रश्न करने से वे तत्त्वदर्शी यानि परमात्मा के सम्पूर्ण अध्यात्म को जानने वाले ज्ञानी महात्मा तुझे उस तत्त्वज्ञान का उपदेश करेंगे।
आओ विचार करें :- गीता में यह ज्ञान नहीं है जो परमात्मा अपने मुख से बोलकर सुनाता है जो तत्त्वज्ञान कहा जाता है। उसको जानने के लिए तत्त्वदर्शी संत के पास जाने को कहा है यानि तत्त्वज्ञान जिसके अनुसार साधना करने से सब पाप नष्�� हो जाते हैं तथा पूर्ण मोक्ष मिलता है। यदि गीता में बताया होता तो गीता ज्ञान देने वाला कह देता है कि हे अर्जुन! उस अध्याय में पढ़ लेना।
इसलिए हिन्दू धर्म प्रचारकों को तत्त्वदर्शी संत न मिलने से सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान नहीं हुआ। वह तत्त्वज्ञान मेरे (लेखक रामपाल दास के) पास है। उस तत्त्वज्ञान के द्वारा सर्व शास्त्रों के गूढ रहस्यों को समझा हूँ। अब बताता हूँ कि श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान किसने कहा?
"पवित्र गीता का ज्ञान श्री कृष्ण में प्रवेश करके काल ब्रह्म ने कहा।'' श्री शिव महापुराण में विद्येश्वर संहिता खण्ड के अध्याय 5-10 में प्रकरण आता है कि एक समय श्री ब्रह्मा जी तथा श्री विष्णु जी अपने-अपने को जगत का कर्ता यानि ईश (प्रभु) बताने लगे। उन दोनों का इसी बात पर युद्ध होने लगा। उस समय सदाशिव यानि काल ब्रह्म ने उनके मध्य में एक विशाल स्तंभ खड़ा कर दिया। उनका युद्ध बंद हो गया। फिर उस काल रूप ब्रह्म ने अपने पुत्र शिव शंकर का वेश बनाकर अपनी पत्नी प्रकृति देवी (दुर्गा) को पार्वती रूप में साथ लेकर उन दोनों (ब्रह्मा जी व विष्णु जी) के पास जाकर कहा कि तुमने जो अपने को ईश (जगत का प्रभु) माना, यह बड़ा अद्भुत हुआ। यह गलतफहमी (भ्रम) दूर करने को मैं आया हूँ। तुम ईश (परमात्मा) नहीं हो। पुत्रो! मैंने तुमको तुम्हारे तप के प्रतिफल में दो कृत दिए हैं। ब्रह्मा को उत्पत्ति तथा विष्णु को स्थिति-पालन का। इसी प्रकार मेरे जैसी शक्ल वाले शंकर तथा रूद्र को भी एक-एक कृत तिरोभाव और संहार के दिए हैं। इस प्रसंग से सिद्ध हो जाता है कि सदाशिव यानि काल ब्रह्म जो पाँचवां है। यह श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शंकर जी का पिता है। उसी काल ब्रह्म (ज्योति निरंजन) ने श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रेतवत् प्रवेश करके गीता का ज्ञान कहा है।
पढिये ढेर सारे प्रमाण :-
दास प्रमाणों सहित पेश करता है, सग्रंथों की सच्चाई जो इस प्रकार है :- श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान श्री कृष्ण जी ने नहीं कहा। उनके शरीर के अंदर प्रेतवत् प्रवेश करके काल ब्रह्म (ज्योति निरंजन) ने बोला था।
प्रमाण :- महाभारत ग्रंथ में लिखा है कि महाभारत के युद्ध के पश्चात् युद्धिष्ठिर जी को राजगद्दी पर बैठाकर श्री कृष्ण जी ने द्वारका जाने की तैयारी की तो अर्जुन ने कहा कि "आप एक सत्संग करके जाना। मेरे को गीता वाला ज्ञान फिर से बताना जो आप जी ने युद्ध के समय बताया था। मैं भूल गया हूँ। श्री कृष्ण जी ने कहा कि अर्जुन! तू बडा बुद्धिहीन है, श्रद्धाहीन है। तूने उस निर्मल गीता ज्ञान को क्यों भुला दिया है। अब मुझे भी याद नहीं।" फिर श्री कृष्ण जी ने अपने स्तर की गीता का ज्ञान बताया जिसमें श्रीमद्भगवत गीता वाला एक भी शब्द नहीं है।
पेश है संक्षिप्त महाभारत (द्वितीय खण्ड) के अध्याय "आश्वमेधिकपर्व" के पृष्ठ 800-802 की फोटोकॉपी :
इस फोटोकॉपी में श्री कृष्ण जी ने ब्रह्मलोक से उतरकर उनके पास आए ब्राह्मण दुर्द्धष से मोक्ष धर्म यानि मुक्ति कैसे हो सकती है, यह जानना चाहा। उस ब्राह्मण की विधिवत् पूजा की। उस ब्राह्मण ने एक कथा सुनाई कि एक सिद्ध पुरुष था। जो अदृश हो जाने की (गुप्त छिप जाने यानि अंतर्ध्यान होने की) सिद्धि प्राप्त थे। महर्षिकश्यप उसके पास गए, गुरू बनाया। सिद्ध ने उसे भी सिद्धि प्राप्त करने की विधि बताई। इस प्रकरण से भी स्वसिद्ध हो जाता है कि श्री कृष्ण जी को अध्यात्म ज्ञान नहीं था, न गीता का ज्ञान था। यदि गीता का ज्ञान होता तो उस ब्राह्मण से जानने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती क्योंकि गीता में मुक्ति का ज्ञान बता रखा है। इस ऊपर लगी फोटोकॉपी के प्रकरण में गीता वाला एक भी शब्द नहीं है।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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भगवान शंकर के पूर्ण रूप काल भैरव
एक बार सुमेरु पर्वत पर बैठे हुए ब्रम्हाजी के पास जाकर देवताओं ने उनसे अविनाशी तत्व बताने का अनुरोध किया | शिवजी की माया से मोहित ब्रह्माजी उस तत्व को न जानते हुए भी इस प्रकार कहने लगे - मैं ही इस संसार को उत्पन्न करने वाला स्वयंभू, अजन्मा, एक मात्र ईश्वर , अनादी भक्ति, ब्रह्म घोर निरंजन आत्मा हूँ| 🌞मैं ही प्रवृति उर निवृति का मूलाधार , सर्वलीन पूर्ण ब्रह्म हूँ | ब्रह्मा जी ऐसा की पर मुनि मंडली में विद्यमान विष्णु जी ने उन्हें समझाते हुए कहा की मेरी आज्ञा से तो तुम सृष्टी के रचियता बने हो, मेरा अनादर करके तुम अपने प्रभुत्व की बात कैसे कर रहे हो ? 🌞इस प्रकार ब्रह्मा और विष्णु अपना-अपना प्रभुत्व स्थापित करने लगे और अपने पक्ष के समर्थन में शास्त्र वाक्य उद्घृत करने लगे| अ��ततः वेदों से पूछने का निर्णय हुआ तो स्वरुप धारण करके आये चारों वेदों ने क्रमशः अपना मत६ इस प्रकार प्रकट किया - 🌞ऋग्वेद- जिसके भीतर समस्त भूत निहित हैं तथा जिससे सब कुछ प्रवत्त होता है और जिसे परमात्व कहा जाता है, वह एक रूद्र रूप ही है | 🌞यजुर्वेद- जिसके द्वारा हम वेद भी प्रमाणित होते हैं तथा जो ईश्वर के संपूर्ण यज्ञों तथा योगों से भजन किया जाता है, सबका दृष्टा वह एक शिव ही हैं| 🌞सामवेद- जो समस्त संसारी जनों को भरमाता है, जिसे योगी जन ढूँढ़ते हैं और जिसकी भांति से सारा संसार प्रकाशित होता है, वे एक त्र्यम्बक शिवजी ही हैं | 🌞अथर्ववेद- जिसकी भक्ति से साक्षात्कार होता है और जो सब या सुख - दुःख अतीत अनादी ब्रम्ह हैं, वे केवल एक शंकर जी ही हैं| 🌞विष्णु ने वेदों के इस कथन को प्रताप बताते हुए नित्य शिवा से रमण करने वाले, दिगंबर पीतवर्ण धूलि धूसरित प्रेम नाथ, कुवेटा धारी, सर्वा वेष्टित, वृपन वाही, निःसंग,शिवजी को पर ब्रम्ह मानने से इनकार कर दिया| ब्रम्हा-विष्णु विवाद को सुनकर ओंकार ने शिवजी की ज्योति, नित्य और सनातन परब्रम्ह बताया परन्तु फिर भी शिव माया से मोहित ब्रम्हा विष्णु की बुद्धि नहीं बदली | 🌞उस समय उन दोनों के मध्य आदि अंत रहित एक ऐसी विशाल ज्योति प्रकट हुई की उससे ब्रम्हा का पंचम सिर जलने लगा| इतने में त्रिशूलधारी नील-लोहित शिव वहां प्रकट हुए तो अज्ञानतावश ब्रम्हा उन्हें अपना पुत्र समझकर अपनी शरण में आने को कहने लगे| 🌞ब्रम्हा की संपूर्ण बातें सुनकर शिवजी अत्यंत क्रुद्ध हुए और उन्होंने तत्काल भैरव को प्रकट कर उससे ब्रम्हा पर शासन करने का आदेश दिया| आज्ञा का पालन करते हुए भैरव ने अपनी बायीं ऊँगली के नखाग्र से ब्रम्हाजी का पंचम सिर काट डाला| भयभीत ब्रम्हा शत रुद्री का पाठ करते हुए शिवजी के शरण हुए|ब्रम्हा और विष्णु दोनों को सत्य की प्रतीति हो गयी और वे दोनों शिवजी की महिमा का गान करने लगे| यह देखकर शिवजी शांत हुए और उन दोनों को अभयदान दिया| 🌞इसके उपरान्त शिवजी ने उसके भीषण होने के कारण भैरव और काल को भी भयभीत करने वाला होने के कारण काल भैरव तथा भक्तों के पापों को तत्काल नष्ट करने वाला होने के कारण पाप भक्षक नाम देकर उसे काशीपुरी का अधिपति बना दिया | फिर कहा की भैरव तुम इन ब्रम्हा विष्णु को मानते हुए ब्रम्हा के कपाल को धारण करके इसी के आश्रय से भिक्षा वृति करते हुए वाराणसी में चले जाओ | वहां उस नगरी के प्रभाव से तुम ब्रम्ह हत्या क��� पाप से मुक्त हो जाओगे | 🌞शिवजी की आज्ञा से भैरव जी हाथ में कपाल लेकर ज्योंही काशी की ओर चले, ब्रम्ह हत्या उनके पीछे पीछे हो चली| विष्णु जी ने उनकी स्तुति करते हुए उनसे अपने को उनकी माया से मोहित न होने का वरदान माँगा | विष्णु जी ने ब्रम्ह हत्या के भैरव जी के पीछा करने की माया पूछना चाही तो ब्रम्ह हत्या ने बताया की वह तो अपने आप को पवित्र और मुक्त होने के लिए भैरव का अनुसरण कर रही है | 🌞भैरव जी ज्यों ही काशी पहुंचे त्यों ही उनके हाथ से चिमटा और कपाल छूटकर पृथ्वी पर गिर गया और तब से उस स्थान का नाम कपालमोचन तीर्थ पड़ गया | इस तीर्थ मैं जाकर सविधि पिंडदान और देव-पितृ-तर्पण करने से मनुष्य ब्रम्ह हत्या के पाप से निवृत हो जाता है.
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#परमात्मा_का_पृथ्वी_पर_आगमन
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जब कबीर परमेश्वर को नीरू नीमा घर लेकर आये तो उन्हें देखकर कोई कह रहा था कि यह बालक तो कोई देवता का अवतार है। कोई कह रहा था यह तो साक्षात विष्णु जी ही आए लगते हैं। कोई कह रहा था यह भगवान शिव ही अपनी काशी को कृतार्थ करने को उत्पन्न हुए हैं।
इसी उपलक्ष्य में संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में 20-22 जून 2024 को कबीर साहेब का प्राकट्य दिवस देश भर में सभी सतलोक आश्रमों में मनाया जा रहा है। जिसमें तीन दिवसीय अखंड पाठ, विशाल भंडारा, दहेज मुक्त विवाह, रक्तदान शिविर, विशाल सत्संग समारोह तथा निःशुल्क नामदीक्षा का आयोजन किया जा रहा है। आप सभी सपरिवार सादर आमंत्रित हैं।
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