#विदेशी प्रजाति
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केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि स्वदेशी जीएम सरसों का उद्देश्य खाद्य तेल को सस्ता बनाना
भारत सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि सरसों (Mustard ) जैसी आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें आम जन के लिये गुणवत्तापूर्ण खाद्य तेल को सस्ता कर देंगी तथा विदेशी आयात पर निर्भरता को कम करके राष्ट्रीय हित में योगदान देंगी।जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति ने सरसों के आनुवंशिक रूप से संशोधित संस्करण, धारा मस्टर्ड हाइब्रिड -11 को जारी किये जाने हेतु पर्यावरणीय मंज़ूरी दे दी है।यदि इसे व्यावसायिक खेती के लिये मंज़ूरी मिल जाती है तो यह भारतीय किसानों के लिये उपलब्ध पहली आनुवंशिक रूप से संशोधित खाद्य फसल होगी। भारत की खाद्य तेल मांग - भारत की कुल खाद्य तेल मांग 24.6 मिलियन टन (2020-21) थी और घरेलू उपलब्धता 11.1 मिलियन टन (2020-21) थी। - वर्ष 2020-21 में कुल खाद्य तेल मांग का 13.45 मिलियन टन (54%) लगभग ₹1,15,000 करोड़ के आयात के माध्यम से पूरा किया गया, जिसमें पाम ऑयल (57%), सोयाबीन तेल (22%), सूरजमुखी तेल (15%) और कुछ मात्रा में कैनोला गुणवत्ता वाला सरसों का तेल शामिल थे। - वर्ष 2022-23 में कुल खाद्य तेल मांग का 155.33 लाख टन (55.76%) आयात के माध्यम से पूरा किया गया। - भारत पाम ऑयल का सबसे बड़ा आयातक है, ध्यातव्य है की भारत की वनस्पति तेल की खपत में 40% हिस्सेदारी पाम ऑयल की है। - भारत अपनी वार्षिक 8.3 मीट्रिक टन पाम ऑयल ज़रूरत का आधा हिस्सा इंडोनेशिया से पूरा करता है। - वर्ष 2021 में भारत ने घरेलू पाम तेल उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन-ऑयल पाम (National Mission on Edible Oil-Oil Palm) का अनावरण किया। आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM ) फसलें - GM फसलों के जीन कृत्रिम रूप से संशोधित किये जाते हैं, आमतौर इसमें किसी अन्य फसल से आनुवंशिक गुणों जैसे- उपज में वृद्धि, खरपतवार के प्रति सहिष्णुता, रोग या सूखे से प्रतिरोध, या बेहतर पोषण मूल्य का समामेलन किया जा सके। - इससे पहले, भारत ने केवल एक GM फसल, BT कपास की व्यावसायिक खेती को मंज़ूरी दी थी, लेकिन GEAC ने व्यावसायिक उपयोग के लिये GM सरसों की सिफारिश की है। GM सरसों - धारा मस्टर्ड हाइब्रिड-11 (DMH-11) एक स्वदेशी रूप से विकसित ट्रांसजेनिक सरसों है। यह हर्बिसाइड टॉलरेंट (HT) सरसों का आनुवंशिक रूप से संशोधित संस्करण है। - DMH-11 भारतीय सरसों की किस्म 'वरुणा' और पूर्वी यूरोपीय 'अर्ली हीरा-2' सरसों के बीच संकरण का परिणाम है। - इसमें दो एलियन जीन ('बार्नेज' और 'बारस्टार') शामिल होते हैं जो बैसिलस एमाइलोलिफेशियन्स (Bacillus amyloliquefaciens) नामक मृदा जीवाणु से पृथक किये जाते हैं जो उच्च उपज वाली वाणिज्यिक सरसों की संकर प्रजाति विकसित करने में सहायक है। - DMH-11 ने राष्ट्रीय सीमा की तुलना में लगभग 28% अधिक और क्षेत्रीय सीमा की तुलना में 37% अधिक उपज प्रदर्शित है और इसके उपयोग का दावा तथा अनुमोदन GEAC द्वारा अनुमोदित किया गया है। - "बार जीन" संकर बीज की आनुवंशिक शुद्धता को बनाए रखता है। जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति - जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) के तहत कार्य करती है। - यह पर्यावरणीय दृष्टिकोण से अनुसंधान एवं औद्योगिक उत्पादन में ��तरनाक सूक्ष्मजीवों तथा पुनः संयोजकों के बड़े पैमाने पर उपयोग से जुड़ी गतिविधियों के मूल्यांकन हेतु उत्तरदायी है। - समिति प्रायोगिक क्षेत्र परीक्षणों सहित पर्यावरण में आनुवंशिक रूप से संशोधित (GE) जीवों और उत्पादों को जारी करने से संबंधित प्रस्तावों के मूल्यांकन के लिये भी उत्तरदायी है। - GEAC की अध्यक्षता MoEF&CC के विशेष सचिव/अपर सचिव द्वारा की जाती है और सह-अध्यक्षता जैवप्रौद्योगिकी विभाग (DBT) के एक प्रतिनिधि द्वारा की जाती है। - वर्तमान में, इसके 24 सदस्य हैं और ऊपर बताए गए क्षेत्रों में अनुप्रयोगों की समीक्षा के लिये प्रत्येक माह बैठक होती है। Read the full article
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कभी वहां गंदा नाला था, अब खूबसूरत आईलैंड...
कभी वहां गंदा नाला था, अब खूबसूरत आईलैंड…
लोकतन्त्र उद्घोष : पं.भारत जोशी इन्दौर। बापट से बीसीसी के बीच सौंदर्यीकरण के दौरान निगम को सडक़ किनारे वर्षों पुराना ���ाला दिखा, जिसको लेकर अधिकारी तनाव में थे कि इसका क्या किया जाए। बाद में इंजीनियरों ने दिमाग लगाया और नाले के आसपास रिटर्निंग वॉल बनाई गई। अब वहां रिटर्निंग वॉल के आसपास एक खूबसूरत आईलैंड नजर आने लगा है, जिसके अलग-अलग हिस्सों में देशी-विदेशी प्रजाति के पौधे लगे हैं। प्रवासी सम्मेलन…
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विदेशी भूरा ट्राउट देशी हिमालयी मछली प्रजातियों के लिए खतरा: अध्ययन
विदेशी भूरा ट्राउट देशी हिमालयी मछली प्रजातियों के लिए खतरा: अध्ययन
एक अध्ययन के अनुसार, विदेशी ब्राउन ट्राउट आक्रमण उच्च ऊंचाई वाले नदी घाटियों में उनके वितरण और आंदोलन को प्रतिबंधित करके देशी हिमालयी स्नो ट्राउट के लिए खतरा है। जर्नल ऑफ एप्लाइड इकोलॉजी में प्रकाशित शोध से पता चलता है कि स्नो ट्राउट जीवित रहने के लिए नदी की मुख्य धारा या डाउनस्ट्रीम खंड को पसंद करते हैं। हालांकि, आक्रामक ब्राउन ट्राउट देशी प्रजातियों को हेडवाटर या नदी के स्रोत की ओर ऊपर की ओर…
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#आशना शर्मा#इंडियन एक्सप्रेस न्यूज&039;#के. शिवकुमारी#भारतीय वन्यजीव संस्थान#विज्ञान समाचार#विदेशी प्रजाति#विदेशी ब्राउन ट्राउट#हिमालयी मछली की प्रजातियां
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देसी और जर्सी गाय में अंतर (Difference between desi cow and jersey cow in Hindi)
2021-22 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार विश्व के कुल दुग्ध उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी 23% है और वर्तमान में भारत में 209 मिलियन टन दूध का उत्पादन किया जाता है, जो कि प्रतिवर्ष 6% की वृद्धि दर से बढ़ रहा है। भारतीय किसानों के लिए खेती के साथ ही दुग्ध उत्पादन से प्राप्त आय जीवन यापन का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
भारत को विश्व दुग्ध उत्पादन में पहले स्थान तक पहुंचाने में गायों की अलग-अलग प्रजातियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। हालांकि, उत्तरी भारतीय राज्यों में भैंस से प्राप्त होने वाली दूध की उत्पादकता गाय की तुलना में अधिक है, परंतु मध्य भारत वाले राज्यों में ��ैंस की तुलना में गाय का पालन अधिक किया जाता है।
भारत में पाई जाने वाली गायों की सभी नस्लों को दो मुख्य भागों में बांटा जा सकता है, जिन्हें देसी गाय (देशी गाय – Desi or deshi cow – Indegenous or Native cow variety of India) और जर्सी गाय (Jersey Cow / jarsee gaay) की कैटेगरी में वर्गीकृत किया जा सकता है।ये भी पढ़���ं: भेड़, बकरी, सुअ�� और मुर्गी पालन के लिए मिलेगी 50% सब्सिडी, जानिए पूरी जानकारी
क्या है देसी और जर्सी गाय में अंतर ?
(Difference between desi cow and jersey cow)
वैसे तो सभी गायों की श्रेणी को अलग-अलग नस्लों में बांटे, तो इन में अंतर करना बहुत ही आसान होता है।
देसी गाय की विशेषताएं एवं पहचान के लक्षण :
भारत में पाई जाने वाली देसी गायें मुख्यतः बीटा केसीन (Beta Casein) वाले दूध का उत्पादन करती है, इस दूध में A2-बीटा प्रोटीन पाया जाता है।
देसी गायों में एक बड़ा कूबड़ होता है, साथ ही इनकी गर्दन लंबी होती है और इनके सींग मुड़े हुए रहते है।
एक देसी गाय से एक दिन में, दस से बीस लीटर दूध प्राप्त किया जा सकता है।
प्राचीन काल से ग्रामीण किसानों के द्वारा देसी गायों का इस्तेमाल कई स्वास्थ्यवर्धक फायदों को मद्देनजर रखते हुए किया जा रहा है, क्योंकि देसी गाय के दूध में बेहतरीन गुणवत्ता वाले विटामिन के साथ ही शारीरिक लाभ प्रदान करने वाला गुड कोलेस्ट्रोल (Good cholesterol) और दूसरे कई सूक्ष्म पोषक तत्व पाए जाते हैं।
देसी गायों की एक और खास बात यह है कि इन की रोग प्रतिरोधक क्षमता जर्सी गायों की तुलना में अधिक होती है और नई पशुजन्य बीमारियों का संक्रमण देसी गायों में बहुत ही कम देखने को मिलता है।
देसी गायें किसी भी गंदगी वाली जगह पर बैठने से परहेज करती हैं और खुद को पूरी तरीके से स्वच्छ रखने की कोशिश करती हैं।
इसके अलावा इनके दूध में हल्का पीलापन पाया जाता है और इनका दूध बहुत ही गाढ़ा होता है, जिससे इस दूध से अधिक घी और अधिक दही प्राप्त किया जा सकता है।
देसी गाय से प्राप्त होने वाले घी से हमारे शरीर में ऊर्जा स्तर बढ़ने के अलावा आंखों की देखने की क्षमता बेहतर होती है, साथ ही शरीर में आई विटामिन A, D, E और K की कमी की पूर्ति की जा सकती है। पशु विज्ञान के अनुसार देसी गाय के घी से मानसिक सेहत पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
हालांकि पिछले कुछ समय से किसान भाई, देसी गायों के पालन में होने वाले अधिक खर्चे से बचने के लिए दूसरी प्र��ाति की गायों की तरह फोकस कर रहे है।
यदि बात करें देसी गाय की अलग-अलग नस्लों की, तो इनमें मुख्यतया गिर, राठी, रेड सिंधी और साहिवाल नस्ल को शामिल किया जाता है।ये भी पढ़ें: गो-पालकों के लिए अच्छी खबर, देसी गाय खरीदने पर इस राज्य में मिलेंगे 25000 रुपए
जर्सी या हाइब्रिड गायों की विशेषता और पहचान के लक्षण :
कई साधारण विदेशी नस्लों और सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक विधि की मदद से की गई ब्रीडिंग से तैयार, हाइब्रिड या विदेशी गायों को भारत में जर्सी श्रेणी की गाय से ज्यादा पहचान मिली है।
जर्सी गाय से प्राप्त होने वाले दूध में A1 और A2 दोनों प्रकार के बीटा केसीन प्राप्त होते है, जो कि हमारे शरीर में विटामिन और एंजाइम की कमी को दूर करने में मददगार साबित होते है।
हाइब्रिड गायों को आसानी से पहचानने के कुछ लक्षण होते है, जैसे कि इनमें किसी प्रकार का कोई कूबड़ नहीं होता है और इनकी गर्दन देसी गायों की तुलना में छोटी होती है, साथ ही इनके सिर पर उगने वाले सींग या तो होते ही नहीं या फिर उनका आकर बहुत छोटा होती है।
किसान भाइयों की नजर में जर्सी गायों का महत्व इस बात से है कि एक जर्सी गाय एक दिन में 30 से 35 लीटर तक दूध दे सकती है, हालांकि इस नस्ल की गायों से प्राप्त होने वाला दूध, पोषक तत्वों की मात्रा में देसी गायों की तुलना में कम गुणवत्ता वाला होता है और इसके स्वास्थ्य लाभ भी कम होते हैं।
न्यूजीलैंड में काम कर रही पशु विज्ञान से जुड़ी एक संस्थान के अनुसार, हाइब्रिड नस्ल की गाय से प्राप्त होने वाले उत्पादों के इस्तेमाल से उच्च रक्तचाप और डायबिटीज ऐसी समस्या होने के अलावा, बुढ़ापे में मानसिक अशांति जैसी बीमारियां होने का खतरा भी रहता है।
भारत में पाई जाने वाली ऐसे ही कई हाइब्रिड गायें अनेक प्रकार की पशुजन्य बीमारियों की आसानी से शिकार हो जाती हैं, क्योंकि इन गायों का शरीर भारतीय जलवायु के अनुसार पूरी तरीके से ढला हुआ नहीं है, इसीलिए इन्हें भारतीय उपमहाद्वीप में होने वाली बीमारियां बहुत ही तेजी से ग्रसित कर सकती है।
जर्सी या हाइब्रिड गाय कैटेगरी की लगभग सभी गायें कम चारा खाती है, इसी वजह से इनको पालने में आने वाली लागत भी कम होती है।ये भी पढ़ें: थनैला रोग को रोकने का एक मात्र उपाय टीटासूल लिक्विड स्प्रे किट
उत्तरी भारत के राज्यों में मुख्यतः हाइब्रिड किस्म की गाय की जर्सी नस्ल का पालन किया जाता है, परन्तु उत्तर��� पूर्वी राज्यों जैसे कि आसाम, मणिपुर, सिक्किम में तथा एवं दक्षिण के कुछ राज्यों में शंकर किस्म की कुछ अन्य गाय की नस्लों का पालन भी किया जा रहा है, जिनमें होल्सटीन (Holstein) तथा आयरशिर (Ayrshire) प्रमुख है।
भारतीय पशु कल्याण बोर्ड के द्वारा गठित की गई एक कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार, देसी गायों को पालने वाले किसान भाइयों को समय समय पर टीकाकरण की आवश्यकता होती है, जबकि हाइब्रिड नस्ल की गायें कम टीकाकरण के बावजूद भी अच्छी उत्पादकता प्रदान कर सकती है।
पशु विज्ञान से जुड़े वैज्ञानिकों के अनुसार गिर जैसी देसी नस्ल की गाय में पाए जाने वाले कूबड़ की वजह से उनके दूध में पाए जाने वाले पोषक तत्व अधिक होते हैं, क्योंकि, यह कूबड़ सूरज से प्राप्त होने वाली ऊर्जा को अपने अंदर संचित कर लेता है, साथ ही विटामिन-डी (Vitamin-D) को भी अवशोषित कर लेता है। इस नस्ल की गायों में पाई जाने वाली कुछ विशेष प्रकार की शिराएं, इस संचित विटामिन डी को गाय के दूध में पहुंचा देती है और अब प्राप्त हुआ यह दूध हमारे शरीर के लिए एक प्रतिरोधक क्षमता बूस्टर के रूप में काम करता है। वहीं, विदेशी या हाइब्रिड नस्ल की गायों में कूबड़ ना होने की वजह से उनके दूध में पोषक तत्वों की कमी पाई जाती है।ये भी पढ़ें: अपने दुधारू पशुओं को पिलाएं सरसों का तेल, रहेंगे स्वस्थ व बढ़ेगी दूध देने की मात्रा
पिछले कुछ समय से दूध उत्पादन मार्केट में आई नई कंपनियां द��सी गायों की तुलना में जर्सी गाय के पालन के लिए किसानों को ज्यादा प्रोत्साहित कर रही है, क्योंकि इससे उन्हें कम लागत पर दूध की अधिक उत्पादकता प्राप्त होती है। लेकिन किसान भाइयों को ध्यान रखना चाहिए कि यदि उन्हें अपने लिए या अपने परिवार के सदस्यों के लिए गायों से दूध और घी प्राप्त करना है, तो उन्हें देसी नस्ल की गायों का पालन करना चाहिए और यदि आपको दूध को बेचकर केवल मुनाफा कमाना है, तो आप भी हाइब्रिड नस्ल की गाय पाल सकते है।
Source देसी और जर्सी गाय में अंतर (Difference between desi cow and jersey cow in Hindi)
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स्टार फ्रूट को अपनी डाइट में क्यों शामिल करना चाहिए? - Why Should Include Star Fruit In Your Diet
स्टार फ्रूट को अपनी डाइट में क्यों शामिल करना चाहिए? – Why Should Include Star Fruit In Your Diet
स्टार फ्रूट जिसे Carambola भी कहते है, अपने nutrients के लिए लोकप्रिय विदेशी फलों exotic fruit में से एक है। यह एक मीठा और तीखा स्वाद वाला एक कुरकुरा, रसदार फल है l यह दो किस्मों में आता है एक छोटा जो खट्टा होता है और एक बड़ा मीठा होता है। इसे वैज्ञानिक रूप से Averrhoa carambola कहा जाता है और यह प्रजाति दक्षिण पूर्व tropical countries – Indonesia, Malaysia और Philippines का एक देशी पेड़ है और…
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चेन्नई एयरपोर्ट पर एयर कस्टम विजिलेंस टीम ने एंथ्रोपोड प्रजाति की जिंदा मकड़ी बरामद की, पौलेंड से विदेशी डाकघर के जरिये 10 छोटी प्लास्टिक की शीशियों में बंद कर भेजी गई
चेन्नई एयरपोर्ट पर एयर कस्टम विजिलेंस टीम ने एंथ्रोपोड प्रजाति की जिंदा मकड़ी बरामद की, पौलेंड से विदेशी डाकघर के जरिये 10 छोटी प्लास्टिक की शीशियों में बंद कर भेजी गई
इंटरनेट डेस्क। तमिलनाडु के चेन्नई इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर आज गुरुवार को स्कैनिंग के दौरान एक विशेष प्रकार की प्रजाति एंथ्रोपोड मकड़ी को थर्माकोल के डिब्बो में बंद कर तस्करी के लिए ले जाया जा रहा था लेकिन एयर कस्टम विजिलेंस की टीम ने संदेह होने पर जांच के दौरान पार्सल की तलाशी ली जिसमें बड़ी मात्रा में इस प्रजाति की जिंदा मकड़ियां बंद थी। Tamil Nadu: Chennai Air Customs intercepted a postal…
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राजधानी में अब किसी प्रोजेक्ट में काटे जाने वाले पेड़ों में से 80 फीसदी का ट्रांसप्लांट अनिवार्य [Source: Dainik Bhaskar]
राजधानी में अब किसी प्रोजेक्ट में काटे जाने वाले पेड़ों में से 80 फीसदी का ट्रांसप्लांट अनिवार्य [Source: Dainik Bhaskar]
दिल्ली सरकार ने ट्री-ट्रांसप्लांट पॉलिसी-2020 की अधिसूचना जारी कर दी है। अब किसी भी प्रोजेक्ट मे विकास के नाम पर पेड़ों को हटाना आसान नहीं होगा। प्रोजेक्ट साइट के 80 प्रतिशत पेड़ों का ट्रांसप्लांट अनिवार्य होगा। हालांकि इसमें लिप्टस और विदेशी कीकर जैसी पेड़ों की प्रजाति को ट्रांसप्लांट पॉलिसी से बाहर रखा गया है। दिल्ली सरकार ने ट्री-ट्रांसप्लांट पॉलिसी 2020 की अधिसूचना जारी कर दी है। इसके अनुसार…
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Centre alerts states, industry to be vigilant about mystery seed parcels Image Source : DAILYMAIL
नई दिल्ली। केंद्र ने राज्य सरकारों के साथ-साथ बीज उद्योग और अनुसंधान निकायों को अज्ञात स्रोत से भारत में आने वाले संदिग्ध या अवांछित सीड पार्सल के बारे में सतर्क किया है, जो देश की जैव विविधता के लिए खतरा हो सकते हैं। कृषि मंत्रालय ने कहा है कि इस संबंध में एक निर्देश जारी किया गया है। पिछले कुछ महीनों में दुनिया भर में हजारों संदिग्ध सीड खेप को भेजे जाने की सूचना प्राप्त हुई है।
मंत्रालय ने कहा है कि अज्ञात स्रोतों से भ्रामक पैकेज के साथ अनचाहे/संदिग्ध सीड पार्सल का खतरा अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, न्यूजीलैंड, जापान और कुछ यूरोपीय देशों में पाया गया है। मंत्रालय ने यह भी उल्लेख किया कि अमेरिकी कृषि विभाग (यूएसडीए) ने इसे बीज बिक्री के फर्जी आंकड़े दिखाने का घोटाला (ब्रशिंग स्कैम) और कृषि तस्करी करार दिया है। यूएसडीए ने यह भी बताया है कि अनचाहे बीज पार्सल में विदेशी आक्रामक प्रजाति के बीज या रोगजनकों या रोग को पेश करने का प्रयास हो सकता है, जो पर्यावरण, कृषि पारिस्थितिकी तंत्र और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकते हैं।
कृषि मंत्रालय ने कहा कि अनचाही या रहस्यमय सीड पार्सल भारत की जैव विविधता के लिए खतरा हो सकता है। इसने कहा कि इसलिए, सभी राज्यों के कृषि विभाग, राज्य कृषि विश्वविद्यालयों, बीज संघों, राज्य बीज प्रमाणन एजेंसियों, बीज निगमों, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के साथ-साथ उनके अपने फसल आधारित शोध संस्थानों को संदिग्ध बीज पार्सल के बारे में सतर्क रहने का निर्देश दिया गया है।
निर्देश पर टिप्पणी करते हुए फेडरेशन ऑफ सीड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया के महानिदेशक राम कौंडिन्य ने एक बयान में कहा कि अभी यह केवल बिना ऑर्डर के अनाधिकृत स्रोतों से आने वाले बीजों के माध्यम से पौधों के रोगों के संभावित प्रसार के लिए एक चेतावनी है। इसे बीज आतंकवाद बताना अभी जायज नहीं होगा। बीज कौन सी बीमारियां ला सकती हैं, इसकी एक सीमा है। लेकिन फिर भी, यह एक खतरा है। उन्होंने कहा कि ये बीज एक आक्रामक प्रजाति या खरपतवार हो सकते हैं, जो भारतीय वातावरण में स्थापित होने पर देशी प्रजातियों का मुकाबला या उनका विस्थापन कर सकते हैं।
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दुलर्भ प्रजाति का विदेशी प्रवासी पक्षी पहुंचा पेंच टाइगर रिजर्व, देखने के लिए उमड़ी भीड़
दुर्लभ प्रजाति का विदेशी पक्षी है जो पेंच टाइगर रिजर्व में पिछले 4 से 5 दिनों में नजर आ रहा है
सिवनी:
पेंच टाइगर रिजर्व पार्क में इन दिनों विदेशी प्रवासी पक्षी सबको आकर्षित कर रहा है, ये सफेद खूबसूरत पक्षी अपनी पंखों की वजह से खास पहचान रखता है, जिसे 1953 में संरक्षण के दायरे में रखा गया था. पेंच टाइगर रिजर्व के प्रबंधन ने बताया कि यह दुर्लभ प्रजाति का विदेशी पक्षी है जो पेंच टाइगर रिजर्व में पिछले 4 से 5 दिनों में नजर आ रहा है इन पक्षियों का एक छोटा सा समूह पेंच टाइगर रिजर्व की शोभा बढ़ा रहा है इन पक्षियों को देखने के लिए आसपास के लोगों की भी उमड़ रही है.
यह भी पढ़ें
सन 1953 में अमेरिका में ग्रेट इग्रेट को नेशनल ऑडुबोन सोसाइटी के प्रतीक के रूप में चुना गया था, जिसका गठन उनके पंखों के लिए पक्षियों की हत्या को रोकने के लिए किया गया था. पेंच टाइगर रिजर्व का बफर खवासा एक ऐसा गांव है, जहां कई सालों से माइग्रेट करके आये ये पक्षी यहां प्रजनन करते हैं.
इन खूबसूरत पक्षियों ने यहां के वातावरण और प्रकृति की अनुकूलता के चलते इसे प्रजनन के लिए चुना है और प्रकृति के सुंदर नजारे के बीच Great Egret पक्षियों के प्रजनन के बाद खूबसूरत नजारे को देखने हर साल वन्यजीव प्रेमी और सैलानी यहां आते हैं.
Video: सांभर झील क्षेत्र में सैकड़ों प्रवासी पक्षी मृत पाए गए
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वन विभाग को बिना सूचना दिए अब नहीं पाल सकेंगे विदेशी प्रजाति के पशु-पक्षी, ये हैं नए नियम...
वन विभाग को बिना सूचना दिए अब नहीं पाल सकेंगे विदेशी प्रजाति के पशु-पक्षी, ये हैं नए नियम…
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प्रतीकात्मक तस्वीर Exotic Animals भारतीय नहीं होने की वजह से अभी तक वन्य-जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के दायरे से बाहर हैं, लेकिन अब ��न विदेशी प्रजातियों के जीवों का लेखा-जोखा भी वन-विभाग (Forest Department)…
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Crysis: Crysis श्रृंखला स्टीम - टाइम्स ऑफ इंडिया पर 60% से अधिक की छूट पर बेच रही है
Crysis: Crysis श्रृंखला स्टीम – टाइम्स ऑफ इंडिया पर 60% से अधिक की छूट पर बेच रही है
सीफ़्स नामक विदेशी प्रजाति पृथ्वी पर जाग गई है और आप केवल एक ही हैं जो उन्हें रोक सकते हैं। आपके पास नैनोसूट का लाभ है जो आपको कवच और छलावरण का लाभ देता है। इसके अलावा, यह आपको उच्चतर और किक ऑब्जेक्ट्स को कूदने की अनुमति देता है जो उन्हें एक क्रूर गति से दुश्मन पर चोट पहुंचाते हैं। नैनोएसूट की ऊर्जा कम हो जाती है क्योंकि आप इसे युद्ध में विवेकपूर्ण तरीके से इस्तेमाल करते हैं लेकिन यह तेजी से…
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गाय के खुरों में सर्प का वास है। जिस मिट्टी में गाय के कदम पड़ जाएं उस मिट्टी में कभी रोग लग ही नहीं सकते। इसके पीछे तथ्य ये दिया जाता है कि गाय में शरीर में सूरज कि किरणों को खींचने की शक्ति होती है और ये किरणें गाय के शरीर से होते हुए उसके खूरों के माध्यम से जब ज़मीन में जाती हैं तो वो मिट्टी रोगाणु मुक्त हो जाती है। ऐसी मिट्टी में खेती करने पर ना तो, फसल के पत्ते मुरझाते हैं, ना उस फसल में कोई रोग लगता है। भले ही तापमान कम या ज़्यादा हो जाए। लेकिन ऐसा केवल देसी गाय से ही संभव होता है, विदेशी नस्ल या संकर नस्ल की गायों में ऐसा कोई गुण नहीं होता।आपको बता दें कि भारत की मूल प्रजाति की केवल 150 ही गाय हैं
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ये है दुनिया की सबसे रंगीन जगह, लेकिन यहां कोई नहीं रह सकता जिंदा
चैतन्य भारत न्यूज लंदन. शोधकर्ताओं ने पृथ्वी पर एक ऐसी जगह खोज निकाली है जहां जीवन की संभावना शून्य है। यहां पानी भी बहुत है, लेकिन जीवन के नाम पर कुछ भी नहीं। यहां धरती पर मौजूद 87 लाख प्रजातियों में से किसी भी प्रजाति के जीव नहीं रहते। इस जगह का नाम डलोल जियोथर्मल फील्ड है जो इथियोपिया में है। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({});
शोधकर्ताओं मुताबिक, यहां के पानी, हवा और वातावरण में एसिड, नमक और जहरीली गैसें ज्यादा हैं। साथ ही इस जगह की पीएच वैल्यू निगेटिव है। इसलिए यहां पर जीवन की संभावना न के बराबर है। इन तालाबों में किसी भी प्रकार के सूक्ष्म जीव भी उपस्थित नहीं है।
‘स्पेनिश फाउंडेशन फॉर साइंस एंड टेक्नोलॉजी'(एफईसीवाईटी) के शोधकर्ताओं ने बताया कि, डॉलोल (Dallol) क्षेत्र नमक से भरे ज्��ालामुखी के मुख यानी क्रेटर पर स्थित है। जलतापीय गतिविधियों के कारण इस क्रेटर (गोल आकार के गड्ढे) से लगातार उबलता पानी और जहरीली गैसें निकलती रहती हैं।
शोधकर्ताओं के मुताबिक, यहां धरती का सबसे खतरनाक और खराब वातावरण है। यहां प्रचुर मात्रा में मैग्नीशियम पाया जाता है, क्योंकि यहां मौजूद झील के अंदर छोटे-छोटे ज्वालामुखी हैं, जो सालभर जहरीली गैसें और रसायन उगलते रहते हैं। इसी वजह से यहां की जमीन सतरंगी है। यहां सर्दियों में भी अधिकतम तापमान 45 डिग्र��� सेल्सियस तक चला जाता है।
शोधकर्ताओं ने बताया कि, इस स्थान को मंगल ग्रह जैसा माना गया था, जहां की स्थिति मंगल जैसी ही है। इस अध्ययन की सह-लेखिका लोपेज गार्सिया के मुताबिक, 'पिछले अनुसंधानों की तुलना में हमने इस बार अधिक नमूनों की जांच की और और इस नतीजे पर पहुंचे कि इन खारे, गर्म और अल्ट्रा ऐसिडिक तालाबों में सूक्ष्म जीवों के पनपने की भी संभावना शून्य है।' ये भी पढ़े... ये हैं राजस्थान की बड़ी अनोखी जगहें, जिन्हें विदेशी भी देख ह�� जाते हैं हैरान ये गांव है भारत का छोटा तिब्बत यहां की खूबसूरती के अलग ही हैं नजारें देश में यहां स्थित है माधुरी दीक्षित झील सिर्फ भारतीय लोग कर सकते हैं इसका दीदार Read the full article
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हमर चिरई-हमर चिन्हारी पक्षी महोत्सव शुरू
हमर चिरई-हमर चिन्हारी पक्षी महोत्सव शुरू
गिधवा-परसदा जलाशय में 150 प्रजाति के देशी एवं विदेशी पक्षियों का होता है प्रवास रायपुर. देश-विदेश से आने वाले पक्षियों के लिए गिधवा-परसदा जलाशय एक बेहतरीन आश्रय स्थल के रूप में उभर रहा है। शीत ऋतु में यहां आने वाले इन प्रवासी पक्षियों के मदद्देनजर बेमेतरा जिले के इस जलाशय में पक्षी महोत्सव की शुरूआत की गई है। प्रकृति से और नजदीक जुड़ने का प्रयास है। महोत्सव में चित्रकला, फोटो प्रदर्शनी, रंगोली,…
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कोटा। शहर के मध्य स्थित किशोरसागर तालाब की पाल शनिवार को विभिन्न प्रजातियों के खुबसूरत फूलों एवं गमलों में लगे सुगंधित फूलों से महक उठी। मौका था तीन दिवसीय चम्बल बायोडायवर्सिटी फेस्टिवल के शुभारंभ का। फेस्टिवल के तहत किशोर सागर तालाब की पाल पर एक तरफ सैंकडों प्रजाति के खुबसूरत एवं सुगंधित फूल बरबस ही राहगीरों को अपनी और आकर्षित कर रही थी।
यही नहीं यहां पर बोनसाई, दुर्लभ पौधे, आयुर्वेदिक एवं औषधीय महत्व के पौधों की प्रदर्शनी के अदभुत नजारों को दर्शकों ने खूब सराहा। शहर वासियों को इस चम्बल बायोडायवर्सिटी फेस्टिल के तहत यह नजारा शनिवार से 10 फरवरी तक विभिन्न आयोजनों के साथ देखने को मिलेगा।
पुष्प प्रदर्शनी का शुभारंभ संभागीय आयुक्त एलएल सोनी ने विधिवत फीता काटकर किया। इस अवसर पर जिला कलक्टर ओम कसेरा, उपायुक्त नगर निगम कीर्ति राठौड़ ने भी उपस्थित रहे। पुष्प प्रदर्शनी में 200 से अधिक प्रजातियों के पुष्पों का प्रदर्शन किया गया है। जिला मुख्यालय के सरकारी, गैर सरकारी संस्थाओं एवं शैक्षणिक संस्थानों, औद्योगिक इकाईयों द्वारा संयुक्त रूप से किशोर सागर तालाब की पाल को रंग-बिरंगे फूलों से सजाया है।
प्रदर्शनी में बोनसाई पौधों की श्रृंखला में वर्षों पुराने दुर्लभ पौधों का संग्रहण भी प्रदर्शित किया गया है। इस प्रदर्शनी में आयुर्वेदिक एवं औषधीय महत्व के पौधों भी प्रदर्शित किए गए हैं। वन विभाग द्वारा वन औषधीय बीज एवं पादप का प्रदर्शन किया गया है। प्रदर्शनी मेंं औषधियों का उपयोग एवं उनकी पहचान के बारे में भी जानकारी दी जा रही है।
फोटो प्रदर्शनी का किया अवलोकन तीन दिवसीय चम्बल बायोडायवर्सिटी फेस्टिवल के तहत आर्ट गैलेरी में वाइल्ड लाइफ के फोटोग्राफ की प्रदर्शनी का संभागीय आयुक्त एलएन सोनी एवं उपायुक्त कीर्ति राठौड़ ने शुभारंभ कर अवलोकन किया। फोटो प्रदर्शनी के बारे में सारांश एवं हर्षित ने अतिथियों को हाड़ौती संभाग में पाए जाने वाले जलीय जीव-जंतु, देशी-विदेशी पक्षियों के साथ-साथ विभिन्न प्रजातियों के पक्षियों के बारे में जानकारी दी।
उन्होंने बताया कि इस प्रदर्शनी में करीब 160 जीव जन्तु, पक्षियों के आर्ट गैलेरी में फोटोग्राफ एवं टाइगर की विभिन्न क्रीड़ाओं के मनमोहक चित्रों का चित्रण भी किया गया। यह प्रदर्शनी भी आमजन के अवलोकन के लिए 10 फरवरी तक खुली रहेगी और प्रवेश निशुल्क रहेगा।
रैम्प वॉक से समझाया पौधों का महत्व प्रदर्शनी के पहले दिन कुतुर इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी की ओर से आकर्षक रैम्प वॉक किया गया। संस्था के विद्यार्थियों ने आकर्षक परिधानों में हरियाली के संरक्षण का संदेश दिया। पौधों की पत्तियों के रूप में लगाकर रैम्प वॉक कर प्रदर्शनी देखने के लिए आने वालों को पौधों के महत्व के बारे में समझाया। इस शो को अतिथियों ने भी खूब सराहा।
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