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[10/10, 6:36 pm] +91 83078 98929: दुर्गा अर्धकुँवारी है तो माता क्यों कहते हैं?
श्रीमद्देवीभागवत के तीसरे स्कन्ध के अध्याय 1-3 में लिखा है कि कितने ही आचार्य भवानी को सम्पूर्ण मनोरथ पूर्ण करने वाली बताते हैं। वह प्रकृति कहलाती है तथा ब्रह्म के साथ उनका अभेद सम्बन्ध है। जैसे पत्नी को अर्धांगनी भी कहते हैं अर्थात् दुर्गा जी, ब्रह्म (काल) की पत्नी है। यानि दुर्गा जी अर्धकुँवारी नहीं हैं।
#दुर्गाजीअर्धकुँवारी_है_तो_माता_क्योंकहतेहैं
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[10/10, 6:36 pm] +91 83078 98929: दुर्गा अर्धकुँवारी है तो माता क्यों कहते हैं?
दुर्गा जी अर्धकुँवारी नहीं हैं बल्कि उनका पति काल ब्रह्म है जो गीता अध्याय 14 श्लोक 3, 4 में स्वयं कहता है कि मूल प्रकृति (दुर्गा) तो उन सबकी गर्भ धारण करने वाली माता है और मैं बीज को स्थापन करने वाला पिता हूँ।
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[10/10, 6:36 pm] +91 83078 98929: दुर्गा अर्धकुँवारी है तो माता क्यों कहते हैं?
जरा विचार करिए, खेमराज श्री कृष्णदास प्रकाशन, बंबई से प्रकाशित श्रीमद्देवीभागवत के तीसरे स्कन्ध के अध्याय 4 श्लोक 42, अध्याय 5 श्लोक 8 व 12 से स्पष्ट है कि दुर्गा जी का पति काल ब्रह्म है और उनके तीन पुत्र ब्रह्मा, विष्णु व शिव जी हैं। तो फिर दुर्गा जी अर्धकुँवारी कैसे हुईं।
#दुर्गाजीअर्धकुँवारी_है_तो_माता_क्योंकहतेहैं
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[10/10, 6:36 pm] +91 83078 98929: दुर्गा अर्धकुँवारी है तो माता क्यों कहते हैं?
सूक्ष्मवेद में बताया गया है:
ॐ आदि मूल महतारी, जाका पिता संख भुजधारी।
कृतम किया पुरुष आरंभा, नीचे नीम शक्ति कूरंभा।
ॐ माया आदि कुमारी, तीनों देव जन्में त्रिपुरारी।
अर्थात ॐ जिसका मंत्र है यानि ब्रह्म काल जिसकी हजार भुजायें हैं वह तो तीनों देवताओं (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) का पिता और आदिकुमारी (दुर्गा) इनकी माता है। अर्थात दुर्गा का पति ब्रह्म काल है। इसी का समर्थन गीता ज्ञान दाता ��्रह्म, गीता अध्याय 14 श्लोक 3-5 में स्वयं करता है।
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[10/10, 6:36 pm] +91 83078 98929: दुर्गा अर्धकुँवारी है तो माता क्यों कहते हैं?
दुर्गा जी अर्धकुँवारी नहीं हैं क्योंकि शिवपुराण के रुद्रसंहिता खंड अध्याय 6-7 में लिखा है कि काल रूपी ब्रह्म और दुर्गा (शिवा/प्रकृति) के पति-पत्नी व्यवहार से ब्रह्मा और विष्णु की उत्पत्ति हुई।
#दुर्गाजीअर्धकुँवारी_है_तो_माता_क्योंकहतेहैं
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[10/10, 6:36 pm] +91 83078 98929: दुर्गा अर्धकुँवारी है तो माता क्यों कहते हैं?
अमर ग्रन्थ के अध्याय "हंस परमहंस की कथा" की वाणी नं. 37 में संत गरीबदास जी ने कहा है:
माया आदि निरंजन भाई, अपने जाये आपै खाई।
ब्रह्मा विष्णु महेश्वर चेला, ओम् सोहं का है खेला।।
अर्थात दुर्गा (माया) का पति ज्योति निरंजन (काल ब्रह्म) है। जिससे सिद्ध होता है कि दुर्गा जी अर्धकुँवारी नहीं हैं।
#दुर्गाजीअर्धकुँवारी_है_तो_माता_क्योंकहतेहैं
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[10/10, 6:36 pm] +91 83078 98929: दुर्गा जी अर्धकुँवारी नहीं हैं बल्कि उनका पति भी है। जानने के लिए देखिए Sant Rampal Ji Maharaj YouTube Channel
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[10/10, 6:36 pm] +91 83078 98929: दुर्गा अर्धकुँवारी है तो माता क्यों कहते हैं?
दुर्गा (अष्टंगी) जी अर्धकुँवारी नहीं हैं बल्कि उनका पति ज्योति निरंजन (काल ब्रह्म) है। इस बारे में कबीर परमेश्वर ने कबीर सागर के अध्याय ज्ञानबोध के पृष्ठ 21-22 में बताया है कि
माँ अष्टंगी पिता निरंजन। वे जम दारुण वंशन अंजन।।
धर्मराय किन्हाँ भोग विलासा। माया को रही तब आसा।।
तीन पुत्र अष्टंगी जाये। ब्रह्मा विष्णु शिव नाम धराये।।
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[10/10, 6:36 pm] +91 83078 98929: विचारणीय विषय है कि यदि दुर्गा जी अर्धकुँवारी है तो उन्हें माता क्यों कहते हैं? सच्चाई तो यही है कि देवी दुर्गा का पति काल ब्रह्म है। जिसका प्रमाण गीता अध्याय 14 श्लोक 3-5 में है।
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[10/10, 6:36 pm] +91 83078 98929: दुर्गा अर्धकुँवारी है तो माता क्यों कहते हैं?
दुर्गा जी अर्धकुँवारी नहीं हैं बल्कि उनका पति है क्योंकि श्रीमद्देवीभागवत के तीसरे स्कन्ध के अध्याय 5 श्लोक 12 में शंकर जी ने कहा, हे मात! अपने पति पुरुष अर्थात् काल भगवान के साथ सदा भोग-विलास करती रहती हो। आपकी गति कोई नहीं जानता।
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[10/10, 6:37 pm] +91 83078 98929: दुर्गा अर्धकुँवारी है तो माता क्यों कहते हैं?
जरा सोचिए यदि कोई स्त्री अर्धकुँवारी है तो उसे माता कैसे कहा जा सकता है? सत्य तो यही है कि माता दुर्गा का पति ज्योति निरंजन काल ब्रह्म है। जिसका प्रमाण शिवपुराण के रुद्रसंहिता खंड अध्याय 6-7 में है।
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[10/11, 7:07 AM] +91 88177 68927: दुर्गा अर्धकुँवारी है तो माता क्यों कहते हैं?
जरा विचार करिए, खेमराज श्री कृष्णदास प्रकाशन, बंबई से प्रकाशित श्रीमद्देवीभागवत के तीसरे स्कन्ध के अध्याय 4 श्लोक 42, अध्याय 5 श्लोक 8 व 12 से स्पष्ट है कि दुर्गा जी का पति काल ब्रह्म है और उनके तीन पुत्र ब्रह्मा, विष्णु व शिव जी हैं। तो फिर दुर्गा जी अर्धकुँवारी कैसे हुईं।
➡️🏮अधिक जानकारी के लिए Sant Rampal Ji Maharaj Youtube Channel पर Visit करें |
➡️ 🏮सुनिए बाख़बर परम संत रामपाल जी महाराज के मंगल प्रवचन :-
➜ साधना TV 📺 पर शाम 7:30 से 8:30
➜ श्रद्धा Tv 📺 दोपहर - 2:00 से 3:00
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[10/11, 7:07 AM] +91 88177 68927: दुर्गा अर्धकुँवारी है तो माता क्यों कहते हैं?
अमर ग्रन्थ के अध्याय "हंस परमहंस की कथा" की वाणी नं. 37 में संत गरीबदास जी ने कहा है:
माया आदि निरंजन भाई, अपने जाये आपै खाई।
ब्रह्मा विष्णु महेश्वर चेला, ओम् सोहं का है खेला।।
अर्थात दुर्गा (माया) का पति ज्योति निरंजन (काल ब्रह्म) है। जिससे सिद्ध होता है कि दुर्गा जी अर्धकुँवारी नहीं हैं।
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[10/11, 7:07 AM] +91 88177 68927: दुर्गा अर्धकुँवारी है तो माता क्यों कहते हैं?
दुर्गा (अष्टंगी) जी अर्धकुँवारी नहीं हैं बल्कि उनका पति ज्योति निरंजन (काल ब्रह्म) है। इस बारे में कबीर परमेश्वर ने कबीर सागर के अध्याय ज्ञानबोध के पृष्ठ 21-22 में बताया है कि
माँ अष्टंगी पिता निरंजन। वे जम दारुण वंशन अंजन।।
धर्मराय किन्हाँ भोग विलासा। माया को रही तब आसा।।
तीन पुत्र अष्टंगी जाये। ब्रह्मा विष्णु शिव नाम धराये।।
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👸 यदि आप माता दुर्गा की शक्तियों की संपूर्ण जानकारी चाहते हैं, तो आज ही अनमोल पुस्तक "ज्ञान गंगा" बिल्कुल मुफ्त मंगवाएं।
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अवश्य पढ़ें पवित्र पुस्तक ज्ञान गंगा।
👸दुर्गा अर्धकुँवारी है तो माता क्यों कहते हैं?
दुर्गा जी अर्धकुँवारी नहीं हैं बल्कि उनका पति काल ब्रह्म है जो गीता अध्याय 14 श्लोक 3, 4 में स्वयं कहता है कि मूल प्रकृति (दुर्गा) तो उन सबकी गर्भ धारण करने वाली माता है और मैं बीज को स्थापन करने वाला पिता हूँ।
👸 दुर्गा अर्धकुँवारी है तो माता क्यों कहते हैं?
श्रीमद्देवीभागवत के तीसरे स्कन्ध के अध्याय 1-3 में लिखा है कि कितने ही आचार्य भवानी को सम्पूर्ण मनोरथ पूर्ण करने वाली बताते हैं। वह प्रकृति कहलाती है तथा ब्रह्म के साथ उनका अभेद सम्बन्ध है। जैसे पत्नी को अर्धांगनी भी कहते हैं अर्थात् दुर्गा जी, ब्रह्म (काल) की पत्नी है। यानि दुर्गा जी अर्धकुँवारी नहीं हैं।
👸 दुर्गा अर्धकुँवारी है तो माता क्यों कहते हैं?
दुर्गा जी अर्धकुँवारी नहीं हैं क्योंकि खेमराज श्रीकृष्णदास प्रकाशन, बंबई से प्रकाशित, श्रीमद्देवीभागवत के तीसरे स्कन्ध के अध्याय 5 श्लोक 12 में शंकर जी ने कहा है कि:
रमयसे स्वपतिं पुरुषं सदा तव गतिं न हि विह विद्म शिवे (12)
अनुवाद: हे मात! अपने पति पुरुष अर्थात् काल भगवान के साथ सदा भोग-विलास करती रहती हो। आपकी गति कोई नहीं जानता।
👸 दुर्गा अर्धकुँवारी है तो माता क्यों कहते हैं?
दुर्गा जी अर्धकुँवारी नहीं हैं क्योंकि शिवपुराण के रुद्रसंहिता खंड अध्याय 6-7 में लिखा है कि काल रूपी ब्रह्म और दुर्गा (शिवा/प्रकृति) के पति-पत्नी व्यवहार से ब्रह्मा और विष्णु की उत्पत्ति हुई।
👸दुर्गा अर्धकुँवारी है तो माता क्यों कहते हैं?
सूक्ष्मवेद में बताया गया है:
ॐ आदि मूल महतारी, जाका पिता संख भुजधारी।
कृतम किया पुरुष आरंभा, नीचे नीम शक्ति कूरंभा।
ॐ माया आदि कुमारी, तीनों देव जन्में त्रिपुरारी।
अर्थात ॐ जिसका मंत्र है यानि ब्रह्म काल जिसकी हजार भुजायें हैं वह तो तीनों देवताओं (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) का पिता और आदिकुमारी (दुर्गा) इनकी माता है। अर्थात दुर्गा का पति ब्रह्म काल है। इसी का समर्थन गीता ज्ञान दाता ब्रह्म, गीता अध्याय 14 श्लोक 3-5 में स्वयं करता है।
👸 दुर्गा अर्धकुँवारी है तो माता क्यों कहते हैं?
जरा विचार करिए, खेमराज श्री कृष्णदास प्रकाशन, बंबई से प्रकाशित श्रीमद्देवीभागवत के तीसरे स्कन्ध के अध्याय 4 श्लोक 42, अध्याय 5 श्लोक 8 व 12 से स्पष्ट है कि दुर्गा जी का पति काल ब्रह्म है और उनके तीन पुत्र ब्रह्मा, विष्णु व शिव जी हैं। तो फिर दुर्गा जी अर्धकुँवारी कैसे हुईं।
👸दुर्गा अर्धकुँवारी है तो माता क्यों कहते हैं?
दुर्गा (अष्टंगी) जी अर्धकुँवारी नहीं हैं बल्कि उनका पति ज्योति निरंजन (काल ब्रह्म) है। इस बारे में कबीर परमेश्वर ने कबीर सागर के अध्याय ज्ञानबोध के पृष्ठ 21-22 में बताया है कि
माँ अष्टंगी पिता निरंजन। वे जम दारुण वंशन अंजन।।
धर्मराय किन्हाँ भोग विलासा। माया को रही तब आसा।।
तीन पुत्र अष्टंगी जाये। ब्रह्मा विष्णु शिव नाम धराये।।
👸 दुर्गा अर्धकुँवारी है तो माता क्यों कहते हैं?
अमर ग्रन्थ के अध्याय "हंस परमहंस की कथा" की वाणी नं. 37 में संत गरीबदास जी ने कहा है:
माया आदि निरंजन भाई, अपने जाये आपै खाई।
ब्रह्मा विष्णु महेश्वर चेला, ओम् सोहं का है खेला।।
अर्थात दुर्गा (माया) का पति ज्योति निरंजन (काल ब्रह्म) है। जिससे सिद्ध होता है कि दुर्गा जी अर्धकुँवारी नहीं हैं।
👸 दुर्गा जी अर्धकुँवारी नहीं हैं बल्कि उनका पति भी है। जानने के लिए देखिए Sant Rampal Ji Maharaj YouTube Channel
👸दुर्गा अर्धकुँवारी है तो माता क्यों कहते हैं?
जरा सोचिए यदि कोई स्त्री अर्धकुँवारी है तो उसे माता कैसे कहा जा सकता है? सत्य तो यही है कि माता दुर्गा का पति ज्योति निरंजन काल ब्रह्म है। जिसका प्रमाण शिवपुराण के रुद्रसंहिता खंड अध्याय 6-7 में है।
👸दुर्गा अर्धकुँवारी है तो माता क्यों कहते हैं?
दुर्गा जी अर्धकुँवारी नहीं हैं बल्कि उनका पति है क्योंकि श्रीमद्देवीभागवत के तीसरे स्कन्ध के अध्याय 5 श्लोक 12 में शंकर जी ने कहा, हे मात! अपने पति पुरुष अर्थात् काल भगवान के साथ सदा भोग-विलास करती रहती हो। आपकी गति कोई नहीं जानता।
👸विचारणीय विषय है कि यदि दुर्गा जी अर्धकुँवारी है तो उन्हें माता क्यों कहते हैं? सच्चाई तो यही है कि देवी दुर्गा का पति काल ब्रह्म है। जिसका प्रमाण गीता अध्याय 14 श्लोक 3-5 में है।
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समीक्षा: लता सुर-गाथा
समीक्षा: लता सुर-गाथा लेखक: यतीन्द्र मिश्र मूल्य: रु. 615 (पेपर बैक) वाणी प्रकाशन
लता मंगेशकर हमारे देश की ऐसी शख़्सियत हैं, जिनसे यहां का हर बाशिंदा जुड़ा हुआ है. उनके गाए अनगिनत गानों में एक-दो गाने ऐसे ज़रूर होते हैं, जिससे आपके अस्तित्व की पहचान बन जाती है. यूं तो पचास के बाद की पीढ़ी को लता जी के बारे में बहुत कुछ पता है, पर जब आप लता सुर-गाथा पढ़ते हैं, तो महसूस करते हैं कि कितना कुछ…
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#फ़िल्मी संगीत#बुक रिव्यू#यतीन्द्र मिश्र#लता दीदी#लता मंगेशकर#लता सुर-गाथा#वाणी प्रकाशन#संगीत#स्वर कोकिला#हिंदी किताबें#हिंदी पुस्तक समीक्षा#हिंदी फ़िल्में
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अरुणा आसफ अली : 1942 की रानी झाँसी
आजाद भारत के असली सितारे-37 9 अगस्त 1942 को बम्बई के गोवालिया टैंक मैदान में तिरंगा फहराकर ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आन्दोलन की बिगुल बजाने वाली और देश के युवाओं में एक नया जोश भरने वाली अरुणा आसफ अली (16.7.1909- 29.7.1996) का जन्म बंगाली परिवार में हरियाणा (तत्कालीन पंजाब) के कालका नामक स्थान में हुआ था। अरुणा आसफ अली के बचपन का नाम 'अरुणा गांगुली' था। इनके पिता बंगाल के एक प्रतिष्ठित परिवार से थे। उनका नाम था डॉ. उपेन्द्रनाथ गांगुली। वे बंगाल से आकर तत्कालीन संयुक्त प्रांत में बस गये थे। अरुणा के सिर से पिता का साया बचपन में ही उठ गया था किन्तु उनकी माँ अम्बालिका देवी ने उनकी पढ़ाई-लिखाई की व्यवस्था में किसी तरह की कमी नहीं आने दी। अरुणा ने पहले लाहौर के सैक्रेड हार्ट स्कूल और उसके बाद नैनीताल के ऑल सेन्ट्स कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की। नैनीताल में उनके पिता का होटल का व्यवसाय था। वहीं पर जवाहरलाल नेहरू से भी उनका परिचय हुआ था, क्योंकि गर्मियों में पं. नेहरू का परिवार आमतौर पर नैनीताल चला जाता था। आरम्भ से ही अरुणा बहुत ही कुशाग्र बुद्धि की थीं और बाल्यकाल से ही कक्षा में सर्वोच्च स्थान पाती थीं। बचपन में ही उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता और चतुरता की धाक जमा दी थी। लाहौर और नैनीताल से पढ़ाई पूरी करने के बाद वे बंगाल आ गयीं और कोलकाता के 'गोखले मेमोरियल कॉलेज' में अध्यापन करने लगीं। इसी बीच इलाहाबाद में उनकी बहन पूर्णिमा बनर्जी के घर पर अरुणा की मुलाकात भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के वरिष्ठ नेता आसफ अली से हुई। ये वही आसफ अली हैं जिन्होंने आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाले भगत सिंह का हमेशा समर्थन किया था। असेंबली में बम फोड़ने के बाद गिरफ्तार हुए भगत सिंह का केस भी आसफ अली ने ही लड़ा था। आसफ अली से उनकी यह मुलाकात धीरे-धीरे घनिष्ठता में बदल गयी। स्वतन्त्र और साहसी विचारों वाली अरुणा ने परिजनों के विरोध के बावजूद आसफ अली से 1928 में विवाह कर लिया। उस समय अरुणा की उम्र 19 वर्ष थी और आसफ अली उनसे लगभग 20 साल बड़े थे। विवाह के बाद अरुणा का नाम बदलकर कुलसुम जमानी हो गया था लेकिन समाज में उनकी पहचान अरुणा आसफ अली के रूप में ही रही। आसफ अली से विवाह करने के पश्चात अरुणा स्वाधीनता संग्राम से जुड़ गयीं। वे अपने पति के साथ दिल्ली आ गयीं और दोनों पति-पत्नी स्वतन्त्रता आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाने लगे।
नमक सत्याग्रह के दौरान होने वाली सार्वजनिक सभाओं में भाग लेने के कारण अरुणा आसफ अली को 1930 में गिरफ्तार कर लिया गया। वे लगभग एक वर्ष तक जेल में रहीं। वर्ष 1931 में गाँधी-इर्विन समझौते के अंतर्गत लगभग सभी राजनैतिक बंदि��ों को रिहा कर दिया गया था, किन्तु, अरुणा आसफ अली को मुक्त नहीं किया गया। अरुणा आसफ अली के साथ होने वाले इस भेद-भाव से आहत होकर उनकी अन्य महिला साथियों ने भी जेल से बाहर निकलने से मना कर दिया। इसके बाद महात्मा गाँधी के दखल देने के बाद ही अरुणा आसफ अली को जेल से रिहा किया गया। वर्ष 1932 में तिहाड़ जेल में बंद होने के दौरान उन्होंने जेल प्रशासन द्वारा राजनैतिक कैदियों के साथ बुरा बर्ताव करने के विरोध में भूख हड़ताल कर दी। उनके प्रयास से तिहाड़ जेल के कैदियों की दशा में तो सुधार हुआ लेकिन अरुणा आसफ अली को अंबाला की जेल में एकांत कारावास की सजा दे दी गयी। वर्ष 1932 में महात्मा गाँधी के आह्वान पर उन्होंने सत्याग्रह में सक्रिय भाग लिया, जिस कारण इन्हें फिर से छह माह के लिए जेल जाना पड़ा। वर्ष 1941 में अंग्रेजों ने भारत को द्वितीय विश्वयुद्ध में ढकेल दिया, जिसके विरोध में महात्मा गाँधी ने व्यक्तिगत सत्याग्रह शुरू कर दिया। अरुणा आसफ अली ने भी इसमें भाग लिया, जिसके फलस्वरूप उन्हें एक वर्ष कारावास की सजा मिली। ऊपर उल्लेख किया जा चुका है कि 9 अगस्त, 1942 को अखिल भारतीय काँग्रेस समिति के बम्बई अधिवेशन में ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आन्दोलन शुरू करने का प्रस्ताव पारित हुआ। इस अधिवेशन में अरुणा आसफ अली भी अपने पति के साथ मौजूद थीं। अंग्रेज सरकार ने अपने विरुद्ध हुए इस फैसले को असफल करने के लिए काँग्रेस के सभी बड़े नेताओं और कार्यसमिति के सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया। ऐसी परिस्थिति में अन्तिम सत्र की अध्यक्षता अरुणा आसफ अली ने किया और उन्होंने 9 अगस्त को बम्बई के गोवालिया टैंक मैदान में भारत का तिरंगा फहराकर भारत छोड़ो आन्दोलन की घोषणा कर दी। झंडा फहराए जाने के बाद पुलिस ने भीड़ पर आँसू गैस के गोले छोड़े, लाठी चार्ज किया और गोलियाँ भी चलाईं। इस दमन ने अरुणा आसफ अली के मन में आजादी की लौ को और अधिक तेज कर दिया। वे आम जनमानस में क्रान्ति का संदेश देकर भूमिगत हो गयीं और वेश एवं स्थान बदल-बदलकर आन्दोलन में हिस्सा लेने लगीं। अरुणा आसफ अली द्वारा गोवालिया टैंक मैदान में तिरंगा फहराने का व्यापक असर सारे देश पर पड़ा और आजादी के आन्दोलन में हिस्सा लेने वाले युवाओं में ऊर्जा का संचार हो गया। निश्चित रूप से अरुणा आसफ अली भारत छोड़ो आन्दोलन की नायिका थीं। उस समय कोई स्थिर नेतृत्व न होने के बावजूद देशभर में अंग्रेजों के खिलाफ कड़े विरोध प्रदर्शन हुए जो यह स्पष्ट कर रहे थे कि अब भारतवासियों को गुलाम बना कर नहीं रखा जा सकता। गोवालिय़ा टैंक मैदान को अब अगस्त क्रान्ति मैदान कहा जाता है।
इसी दौरान अरुणा आसफ अली को भी गिरफ्तार करने का आदेश जारी कर दिया गया था। गिरफ्तारी से बचने के लिए अरुणा भूमिगत हो गयीं थीं। दरअसल उनके ऊपर जयप्रकाश नारायण, डॉ॰ राम मनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन जैसे समाजवादियों के विचारों का ज्यादा प्रभाव था। इसी कारण ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ में अरुणा जी ने अंग्रेज़ों की जेल में बन्द होने के बदले भूमिगत रहकर अपने अन्य साथियों के साथ आन्दोलन का नेतृत्व करना उचित समझा। गाँधी जी सहित अन्य नेताओं की गिरफ्तारी के तुरन्त बाद बम्बई में विरोध सभा आयोजित करके विदेशी सरकार को खुली चुनौती देने वाली वे असाधारण महिला थीं। बाद में उन्होंने गुप्त रूप से उन काँग्रेस जनों का पथ-प्रदर्शन किया, जो जेल से बाहर थे। बम्बई, कलकत्ता, दिल्ली आदि में घूम-घूमकर, मगर पुलिस की पकड़ से बचते हुए उन्होंने आजादी के आन्दोलन में शामिल लोगों में नव जागृति लाने का प्रयत्न किया। 1942 से 1946 तक वे देश भर में लगातार सक्रिय रहीं किन्तु ब्रिटिश सरकार का गुप्तचर विभाग लाख कोशिश करने के बावजूद उन्हें गिरफ्तार नहीं कर पाया। अंत में अंग्रेजों ने उनकी सारी सम्पत्ति जब्त करके उसे नीलाम कर दिया। इस बीच वे राम मनोहर लोहिया के साथ मिलकर ‘इंकलाब’ नामक मासिक समाचार पत्र का सम्पादन भी करती रहीं। अंग्रेज सरकार ने अरुणा आसफ अली की सूचना देने पर पाँच हजार रुपये का इनाम रखा था। इसी दौरान उनका स्वास्थ्य भी बहुत खराब हो गया था। 9 अगस्त 1942 से 26 जनवरी 1946 तक अरुणा आसफ अली को गिरफ्तार करने का वारन्ट उनका पीछा करता रहा किन्तु वे पकड़ में नहीं आईं। महात्मा गाँधी ने उन्हें पत्र लिखकर आत्म-समर्पण करने और आत्म-समर्पण के एवज में मिलने वाली धनराशि को हरिजन अभियान के लिए उपयोग करने को कहा, किन्तु अरुणा आसफ अली ने आत्म-समर्पण नहीं किया। वर्ष 1946 में जब उन्हें गिरफ्तार करने का वारंट रद्द किया गया तब जाकर अरुणा आसफ अली ने आत्म-समर्पण किया। आत्म-समर्पण करने के बाद पूरे देश में उनका भव्य स्वागत हुआ। कलकत्ता और दिल्ली में अरुणा आसफ अली ने अपने स्वागत में आयोजित सभाओं में ऐतिहासिक भाषण दिये। दिल्ली की सभाओं में उन्होंने कहा, “भारत की स्वतन्त्रता के सम्बन्ध में ब्रिटेन से कोई समझौता नहीं को सकता। भारत अपनी स्वतन्त्रता ब्रिटेन से छी��कर ग्रहण करेगा। समझौते के दिन बीत गये। हम तो स्वतन्त्रता के लिए युद्ध क्षेत्र में ब्रिटेन से मोर्चा लेंगे। शत्रु के पराजित हो जाने के बाद ही समझौता हो सकता है। हिन्दुओं और मुस्लिमों की संयुक्त माँग के समक्ष ब्रिटिश साम्राज्यवाद को झुकना होगा। हम भारतीय स्वतन्त्रता की भीख माँगने नहीं जाएंगे।” 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली। अरुणा आसफ अली दिल्ली प्रदेश काँग्रेस कमेटी की अध्यक्ष बनीं। वर्ष 1947-48 में उन्होंने दिल्ली में शरणार्थियों की समस्या को हल करने के लिए अपना जी-जान लगा दिया था। आर्थिक नीतियों के प्रश्न पर भारत के पहले प्रधानमन्त्री पं. जवाहरलाल नेहरू से सैद्धांतिक मतभेद होने के कारण वे काँग्रेस से अलग हो गयीं और वर्ष 1948 में आचार्य नरेन्द्र देव की सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हो गयीं। दो साल बाद सन् 1950 ई. में उन्होंने अलग से ‘लेफ्ट स्पेशलिस्ट पार्टी’ बनाई और वे 'मज़दूर-आन्दोलन' में जी-जान से जुट गयीं। फिर वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गयीं। 1953 में पति आसिफ अली के निधन से अरुणा जी को निजी जीवन में गहरा धक्का लगा। वे मानसिक और भावनात्मक रूप से बहुत कमजोर हो गयी थीं। 1954 में उन्होंने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की महिला इकाई, “नेशनल फेडरेशन ऑफ वीमेन” का गठन किया। 1956 में उन्होंने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को भी छोड़ दिया मगर वे पार्टी की हमदर्द बनी रहीं। इस दौरान वर्ष 1958 में अरुणा आसफ अली दिल्ली की पहली मेयर चुनी गयीं। मेयर बनकर उन्होंने दिल्ली के विकास, सफाई और स्वास्थ्य आदि के लिए बहुत अच्छा कार्य किया और नगर निगम की कार्य प्रणाली में भी उन्होंने यथेष्ट सुधार किए।
जयप्रकाश नारायण के साथ मिलकर उन्होंने दैनिक समाचार पत्र ‘पैट्रियाट’ और साप्ताहिक समाचार पत्र ‘लिंक’ का प्रकाशन किया। जवाहरलाल नेहरू तथा बीजू पटनायक आदि से सम्बन्धित होने के कारण जल्दी ही दोनों समाचार पत्रों को देश में अच्छी पहचान मिल गयी। लेकिन अंदरूनी राजनीति से आहत होकर उन्होंने ��ुछ ही समय में प्रकाशन का काम भी छोड़ दिया। पं. जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद मई 1964 में अरुणा आसफ अली फिर से भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस में शामिल हो गयीं और प्रगतिशील विचारों को बढ़ावा देने के लिए काम करने लगीँ, किन्तु सक्रिय राजनीति से वे दूर रहीं। अरुणा आसफ अली, इन्दिरा गाँधी और राजीव गाँधी के करीबियों में भी गिनी जाती थीं। यद्यपि उन्होंने 1975 में इन्दिरा गाँधी द्वारा आपातकाल लगाने का विरोध किया था। अरुणा आसफ अली की एक महत्वपूर्ण पुस्तक है जिसमें उन्होने अपने संघर्ष तथा राजनीतिक विचारों को वाणी दी है। पुस्तक का नाम है, ‘वर्ड्स ऑफ फ्रीडम : आइडियाज ऑफ ए नेशन’। मार्च 1944 में उन्होंने अपनी पत्रिका ‘इंकलाब’ में लिखा, “आजादी की लड़ाई के लिए हिंसा-अहिंसा की बहस में नहीं पड़ना चाहिए। क्रान्ति का यह समय बहस में खोने का नहीं है। मैं चाहती हूँ, इस समय देश का हर नागरिक अपने ढंग से क्रान्ति का सिपाही बने।” दैनिक ‘ट्रिब्यून’ ने अरुणा आसफ अली की साहसिक भूमिगत मोर्चाबंदी के लिए उन्हें ‘1942 की रानी झाँसी’ की संज्ञा दी थी। साथ ही उन्हें ‘ग्रैंड ओल्ड लेडी’ भी कहा जाता है। उनके नाम पर दिल्ली में अरुणा आसफ अली मार्ग है जो वसंत कुंज, किशनगढ़, जवाहरलाल नेहरू युनिवर्सिटी, आईआईटी दिल्ली को जोड़ता है। सामाजिक कार्यों में अरुणा आसफ अली की गहरी रुचि थी। वे समाज के दबे पिछड़े लोगों के लिए हमेशा संघर्ष करती रहीं। वे भारत-रूस संस्कृति संस्था की सदस्य थीँ और उन्होंने दोनो देशों की मित्रता बढ़ाने में बहुत सहयोग किया। दिल्ली में उन्होंने सरस्वती भवन की स्थापान भी की, जो संस्था गरीब और असहाय महिलाओं की शिक्षा से जुड़ी थी। अरुणा आसफ़ अली ‘इंडो-सोवियत कल्चरल सोसाइटी’, ‘ऑल इंडिया पीस काउंसिल’, तथा ‘नेशनल फैडरेशन ऑफ इंडियन वीमेन’ आदि संस्थाओं के लिए उन्होंने बड़ी लगन, निष्ठा, ईमानदारी से कार्य किया। दिल्ली से प्रकाशित वामपन्थी अंग्रेज़ी दैनिक समाचार पत्र ‘पेट्रियट’ से वे जीवनपर्यंत पूरी निष्ठा से जुड़ी रहीं। भारत के बँटवारे को वे कभी स्वीकार नहीं कर पाईं। पंजाब में 1983 में जब सिख दंगे हुए तो विभिन्न धर्मावलम्बी एक सौ स्वयं-सेवकों के साथ वे वहाँ अपने शान्ति-मिशन में डटी रहीं। दिल्ली की प्रतिष्ठित लेडी इर्विन कॉलेज की स्थापना भी अरुणा के प्रयासों से हुई। वे आल इंडिया ट्रेड यूनियन काँग्रेस की उपाध्यक्ष भी रहीं। लम्बी बीमारी के बाद 29 जुलाई 1996 को अरुणा आसफ अली का नयी दिल्ली में 87 वर्ष की आयु मे निधन हो गया। अरुणा आसफ अली की अपनी विशिष्ट जीवन शैली थी। वे आजीवन अपने पति के साथ एक कमरे के फ्लैट में रहीं। उम्र के आठवें दशक में भी वह सार्वजनिक परिवहन से सफर करती थीं। वर्ष 1975 में अरुणा आसफ अली को शान्ति और सौहार्द के क्षेत्र में लेनिन शान्ति पुरस्कार, 1992 में पद्म विभूषण और 1997 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत-रत्न’ से सम्मानित किया गया। जन्मदिन के अवसर पर देश और समाज के लिए अरुणा आसफ अली के महान योगदान का हम स्मरण करते हैं और उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। . Read the full article
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Regional Marathi Text Bulletin, Aurangabad Date – 11 March 2021 Time 1.00pm to 1.05pm Language Marathi आकाशवाणी औरंगाबाद प्रादेशिक बातम्या दिनांक – ११ मार्च २०२१ दुपारी ०१.०० वा. ****
‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ मानवतेच्या कल्याणासाठी असून, हे अभियान संपूर्ण जगासाठी उपयुक्त ठरणार असल्याचं पंतप्रधान नरेंद्र मोदी यांनी म्हटलं आहे. स्वामी चिद्भवानंदजी यांच्या भगवद्गीतेच्या किंडल आवृत्तीचं प्रकाशन आज पंतप्रधानांच्या हस्ते झालं, त्यावेळी ते बोलत होते. आपल्या वैज्ञानिकांनी अत्यंत कमी वेळेत कोविड लस बनवली आणि भारतीय बनावटीची लस आज संपूर्ण जगात पाठवली जात आहे, ही गर्वाची बाब असल्याचं पंतप्रधान म्हणाले. भगवद्गीता हे ज्ञानाचं सर्वात मोठं माध्यम असून, विचारांचा खजिना असल्याचं त्यांनी नमूद केलं. ई पुस्तकं युवकांमध्ये प्रचलित असून, गीते मधले महान विचार युवकांपर्यंत पोहोचवण्यासाठी हा एक प्रयत्न असल्याचं पंतप्रधान म्हणाले.
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देशात कोविड-19 चे रुग्ण बरे होण्याचा दर ९६ पूर्णांक ९२ शतांश टक्के झाला आहे. काल १८ हजार रुग्ण बरे झाले, देशात आतापर्यंत एक कोटी नऊ लाख ३८ हजार रुग्ण कोरोना विषाणू मुक्त झाले आहेत. काल नव्या २२ हजार ८५४ रुग्णांची नोंद झाली, तर १२६ जणांचा उपचारादरम्यान मृत्यू झाला. देशात आतापर्यंत या विषाणू संसर्गानं एक लाख ५८ हजार रुग्णांचा मृत्यू झाला असून, सध्या एक लाख ८९ हजारांहून अधिक सक्रीय रुग्णसंख्या आहे.
दरम्यान, देशात आत्तापर्यंत दोन कोटी ५६ लाख ८५ हजार ६४४ जणांचं कोविड लसीकरण झालं असल्याची माहिती केंद्रीय आरोग्य मंत्रालयानं दिली आहे.
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देशभरातल्या सुमारे सहा हजार रेल्वे स्थानकांवर आतापर्यंत वाय-फाय आधारित इंटरनेट सुविधा देण्यात आली आहे. ग्रामीण भागातील जाळं भक्कम करणं आणि पीएम वाणी समर्थित कम्युनिटी वाय-फाय सेवा पुरवण्यासाठी सहयोगातून ब्रॉडबँड सेवांकरता रेलटेलनं दूरसंचार विभागाकडे एक प्रस्ताव सादर केला आहे. रेल्वे मंत्री पियुष गोयल यांनी काल ���ोकसभेत ही माहिती दिली. दूरसंचार विभागानं हा प्रस्ताव सुरु करण्याच्या अवधीनुसार पुढील वायफाय सुविधांची व्याप्ती वाढवण्यात येईल, असं त्यांनी सांगितलं.
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बोगस अँटिजेन चाचणी करणाऱ्या अमरावती जिल्ह्यातल्या ११ प्रयोगशाळांची मान्यता रद्द करण्यात आली आहे. आरोग्य मंत्री राजेश टोपे यांनी काल ही माहिती दिली. जिल्ह्यात रॅपिड अॅन्टीजेन चाचणी करणाऱ्या काही खासगी प्रयोगशाळांच्या चाचणी अहवालात तफावत आढळून आली आहे, तर काही प्रयोगशाळा आयसीएमआरच्या पोर्टलवर वेळीच माहिती नोंदवत नसल्याचं आणि त्यांनी दिलेले काही अहवाल हे बनावट असल्याचं लक्षात आल्यानं ही कारवाई करण्यात आली.
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राज्यात मागच्या भारतीय जनता पक्ष सरकारच्या काळात राबवलेल्या ३३ कोटी वृक्ष लागवडीच्या विशेष मोहिमेची चौकशी करण्यासाठी विधानसभेच्या १६ सदस्यांच्या विधिमंडळ समितीची घोषणा वन राज्यमंत्री दत्तात्रय भरणे यांनी केली. समिती चार महिन्यात सभागृहाला अहवाल सादर करेल, असंही त्यांनी सांगितलं. भरणे यांच्या अध्यक्षतेखालील या समितीत विधानसभा सदस्य नाना पटोले, सुनील प्रभू, उदयसिंग राजपूत, बालाजी कल्याणकर, संग्राम थोपटे, आशिष शेलार, नितेश राणे, अतुल भातखळकर, समीर कुणावर आणि नरेंद्र भोंडेकर यांचा समावेश आहे.
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औरंगाबाद जिल्ह्यात आजपासून चार एप्रिलपर्यंत अंशत: टाळेबंदी लागू करण्यात आली आहे. सर्व नागरिक तसंच आस्थापनांनी या टाळेबंदीचं काटेकोरपणे पालन करण्याच्या सूचना जिल्हाधिकारी सुनील चव्हाण यांनी दिल्या आहेत. या कालावधीत उपाहारगृहं ५० टक्के क्षमतेने सुरू राहतील. नियमभंग करणाऱ्या आस्थापनांचे परवाने रद्द करण्याच्या सूचना जिल्हाधिकाऱ्यांनी दिल्या.
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नाशिक जिल्ह्यातल्या लासलगाव बाजार समितीत उन्हाळ कांद्याची आवक वाढत आहे. सध्या दररोज सुमारे तीन हजार क्विंटल आवक होत असून, ती पुढे वाढतच जाणार आहे. त्यामुळे कांद्याचे भाव गेल्या काही दिवसांपासून घसरत आहेत. गेल्या आठ दिवसांत कांद्याचे दर सरासरी एक हजार रूपयांनी कमी झाले आहेत. कांद्याची निर्यात कमी होत असून, देशांतर्गत मागणी कमी झाल्यानेही भाव कमी होत असल्याचं बाजार समितीच्या सूत्रांनी सांगितलं.
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अहमदनगर जिल्हाधिकारी कार्यालयातल्या तलाठी पदासाठीच्या भरती प्रक्रियेत ११ उमेदवारांनी बनावट कागदपत्रे देऊन शासनाची फसवणूक केली असल्याचं उघडकीस आलं आहे. त्यांच्याविरुद्ध अहमदनगर पोलिस ठाण्यात गुन्हा दाखल करण्यात आला आहे. उमेदवारांनी ऑनलाईन पध्दतीने सादर केलेल्या आवेदन प��्रासोबत अपलोड केलेला फोटो आणि स्वाक्षरी, कागदपत्र पडताळणीवेळी सादर केलेला फोटो, स्वाक्षरी आणि परीक्षा केंद्रावर उमेदवाराचा घेण्यात आलेला फोटो आणि स्वाक्षरी यामध्ये तफावत असल्याची बाब समोर आली आहे. काही उमेदवारांनी बनावट कागदपत्रे सादर केल्याचंही निवड समितीच्या निदर्शनास आलं आहे.
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बीड इथं पेट्रोल डिझेल दरवाढीविरोधात राष्ट्रवादी काँग्रेस पक्षाच्या महिला आघाडीच्या अॅड.हेमा पिंपळे यांनी काल आंदोलन केलं. दरवाढीच्या निषेधात त्यांनी घोड्यावर न्यायालयात येत हे आंदोलन केलं. या वाढत्या भाववाढीमुळे सर्वसामान्य त्रस्त झाला असून, वाहनधारकांना वाहने परवडत नसल्याचं त्या म्हणाल्या.
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आज क्या है आपका भाग्य- ग्रहों की वाणी,Friday शुक्रवार 25 दिसम्बर 2020-(धनु, मकर, कुंभ, मीन राशि)
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आज क्या है आपका भाग्य- ग्रहों की वाणी,Friday शुक्रवार 25 दिसम्बर 2020-(धनु, मकर, कुंभ, मीन राशि)
धनु राशि
संतान से संतुष्टि मिलेगी। भाइयों की प्रगति के समाचार सुनने को मिल सकते हैं। बौद्धिक गतिविधियों में रुचि बढ़ेगी, लेखन, प्रकाशन और ज्ञान के क्षेत्र में सक्रियता बढ़ेगी। तकनीकी और रचनात्मक सफलता मिलेगी। बौद्धिक और तार्किक मुद्दों पर मित्रों के साथ विचार-विमर्श होगा। व्यावसायिक क्षेत्र से अच्छा लाभ होगा।
मकान राशि
आपको घर के कामों के लिए काम करना होगा। संतान का प्यार कम होगा। मनोरंजन और खेल के प्रति मन आकर्षित होने पर भी यह इच्छा पूरी नहीं हो सकती। रोमांस और प्रेम संबंधों में भी नाखुशी रहेगी। आप बढ़ा हुआ दबाव और तनाव महसूस करेंगे। यदि योजना के अनुसार काम नहीं हुआ तो दुख होगा। ऐसी आशंका है कि जिद के कारण काम बर्बाद हो जाएगा।
कुंभ राशि
नया काम शुरू करने का समय आ गया है। व्यापार में पर्याप्त धन लाभ होगा। दोस्तों से भी काफी मदद मिलेगी। यह उसे डंप करने और आगे बढ़ने का समय है। मेहनत के अनुसार उपलब्धि अच्छी होगी। रुके हुए काम फिर से शुरू हो सकते हैं। कृषि क्षेत्र में, आपको कड़ी मेहनत करनी होगी और थोड़ा और निवेश करना होगा। यह उसे डंप करने और आगे बढ़ने का समय है।
मीन राशि
आगे बढ़ने का समय है। किए गए कार्यों से अच्छे लाभ होंगे। श्रम का उचित मूल्य होगा। पढ़ाई में प्रगति होगी। मीठा खाने का मौका है। स्थानांतरित करने,या व्यवसायों को बदलने का विचार उत्पन्न हो सकता है। यह उसे डंप करने और आगे बढ़ने का समय है।यात्रा मे कष्ट।अचानक खर्चा हो सकता है।वाणी पर सयम रखें।
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"किन्नर समाज - संदर्भ - तीसरी ताली" (साहित्यिक समालोचना) - वाणी प्रकाशन की किताब में मेरी कहानी "किन्नर माँ" को शामिल कर उसपर अपनी राय देने के लिए लेखिका पार्वती कुमारी जी का आभार। हर बार की तरह बस एक शिकायत कि मेरा काम या नाम कहीं आता है, तो उस समय लेखक, प्रकाशक आदि के बजाय कई महीनों या सालों बाद कोई मित्र, प्रशंसक जानकारी देता है। खैर, कोई बात नहीं पार्वती जी का लिटरेरी क्रिटिसिज़्म में ये प्रयास मुझे अच्छा लगा। उन्हें और टीम को बधाई! #ज़हन
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अलगाव के दौर में साहित्य पर आभासी संवाद
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राष्ट्रीय
अलगाव के दौर में साहित्य पर आभासी संवाद
कोरोना से अलगाव के दौर में अब लेखक और प्रकाशक आनलाइन गोष्ठी का रुख कर रहे हैं। अब तक किताब के मेलों में पाठकों और रचनाकारों से घिरी रहने वालीं वाणी प्रकाशन समूह की निदेशक अदिति माहेश्वरी गोयल ने कहा कि जब 20 मार्च तक लगने लगा कि राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन हो जाएगा, तभी हमने अपने दिमाग में बैठा लिया था कि अब हमें रणनीति बदलनी पड़ेगी।
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Arun Maheshwari said on Author-publisher-reader triangle, writer to join the folk – लेखक-प्रकाशक-पाठक के त्रिकोण पर बोले अरुण माहेश्वरी, लोक से जुड़ें लेखक विश्व पुस्तक मेला 2020 का आज अंतिम दिन है। कड़ाके की ठंड और बारिश के बीच भी जिस तरह से हर उम्र के पाठक मेले में पहुंचे वह लेखकों और प्रकाशकों के लिए उत्साहवर्धक रहा। प्रकाशकों के चेहरों पर इस बात की खुशी है कि आम लोगों के बजट में किताबें अहम स्थान रखती हैं। प्रकाशन के क्षेत्र के सशक्त हस्ताक्षर वाणी प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक अरुण माहेश्वरी ने कहा कि इस बार का मेला हमारे लिए अप्रत्याशित रहा। हमने पचास लाख रुपए का लक्ष्य रखा था और मुझे इस बात की खुशी है कि आज हम इस लक्ष्य को पार भी कर सकते हैं। ऐसा हमारे साथ पहली बार हुआ है यह हमारे लिए गर्व करने का क्षण है।
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II. परमेश्वर के आगमन के मार्ग पर प्रश्न और उत्तर (गुप्त और स्पष्ट)
प्रश्न 2: मैंने अपनी आधी से अधिक जिंदगी में मसीह पर विश्वास किया है। मैंने प्रभु के लिए अथक रूप से काम किया है और मुझे निरंतर उनके दूसरे आगमन की प्रतीक्षा रही है। अगर प्रभु आए हैं, तो मुझे उनका प्रकाशन क्यों नहीं मिला? क्या उन्होंने मुझे किनारे कर दिया है? इस बात ने मुझे बहुत दुविधा में डाल दिया है। आप इसे कैसे समझाएंगे? उत्तर: मनुष्य सोचता है कि अगर वह अपनी आधी जिंदगी प्रभु में विश्वास करता है, प्रभु के लिए कठिन परिश्रम करता है, और सतर्कता से उनके दूसरे आगमन की प्रतीक्षा करता है, तो जब प्रभु दूसरी बार आएंगे, वे उन्हें प्रकाशन देंगें। यह मनुष्य की अवधारणा और परिकल्पना है, इसका परमेश्वर के कार्य की सच्चाई से कोई संबंध नहीं है। यहूदी फ़रीसियों ने परमेश्वर के रास्ते में फैली जमीन और समुद्र को घेर लिया था। क्या प्रभु यीशु ने कभी भी अपने आगमन पर उनको कोई प्रकाशन दिया? जहां तक प्रभु यीशु का अनुसरण करने वाले शिष्यों का प्रश्न है, उनमें से किसने प्रभु यीशु का अनुसरण इसलिए किया क्योंकि उन्हें प्रकाशन दिया गया था? एक ने भी नहीं! आप यह तर्क दे सकते हैं कि पतरस को परमेश्वर का प्रकाशन मिला था और उन्होंने पहचान लिया था कि प्रभु यीशु ही मसीह, परमेश्वर के पुत्र हैं, मगर ऐसा तब हुआ था जब पतरस कुछ समय से प्रभु यीशु का अनुसरण कर रहे थे और कुछ समय तक उनके उपदेश को सुना था और उनके बारे में कुछ जानकारी हासिल की थी। केवल तभी उनको पवित्र आत्मा से प्रकाशन मिला था और वे प्रभु यीशु की सही पहचान को समझने में सक्षम हुए। यकीनन पतरस को प्रभु यीशु का अनुसरण करने से पहले कोई प्रकाशन नहीं मिला था, यह सच्चाई है। जिन लोगों ने प्रभु यीशु का अनुसरण किया था, केवल वे ही यह समझने में सक्षम थे कि प्रभु यीशु आने वाले मसीहा हैं, ऐसा कुछ समय तक उनके उपदेश सुनने के बाद हुआ था। उन्होंने उनका अनुसरण इसलिए नहीं किया क्योंकि उन्हें पहले से ऐसा प्रकाशन मिला था जिससे उनको यह समझने में मदद मिली कि प्रभु यीशु कौन थे। अंत के दिनों में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर न्याय का कार्य करने के लिए गुप्त रूप से लोगों के बीच देहधारी हुए थे। लाखों लोगों ने ��र्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार किया और उनका अनुसरण किया है, मगर उनमें से किसी ने भी ऐसा इसलिए नहीं किया क्योंकि उनको पवित्र आत्मा से प्रकाशन मिला था। हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करते हैं क्योंकि हमने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन और सच्चाई के संदेश पढ़ते समय परमेश्वर की आवाज को पहचाना है। इन तथ्यों से यह साबित होता है कि जब परमेश्वर अपना काम करने के लिए देहधारण करते हैं, तो वे निश्चित रूप से किसी भी मनुष्य को अपने में विश्वास करने और अनुसरण करने के लिए कोई प्रकाशन नहीं देते हैं। कहना न होगा कि अंत के दिनों में परमेश्वर न्याय का कार्य करने के लिए सच्चाई बयान करते हैं। पूरे ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर ने जो वचन कहे हैं, वे ही उनके अंत के दिनों का कार्य है। हर कोई परमेश्वर की आवाज को सुन सकता है। अंत के दिनों में परमेश्वर का प्रवचन परमेश्वर द्वारा सृष्टि की रचना के बाद से उस पहले अवसर को दर्शाता है जब परमेश्वर ने पूरी मानवता के लिए और संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए अपने वचनों की घोषणा की थी। प्रकाशन में, परमेश्वर ने कई बार कहा "जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है।" अंत के दिनों में, परमेश्वर अपने वचन की उक्ति और अपनी भेड़ को ढूंढने के लिए सच्चाई के सहारे काम करते हैं। परमेश्वर की भेड़ परमेश्वर की आवाज को सुन सकती है। वे सभी लोग जो परमेश्वर की आवाज को सुनते और समझते हैं, परमेश्वर की भेड़ हैं, और बुद्धिमान कुंवारियां हैं। जो लोग परमेश्वर की आवाज को नहीं समझते हैं, वे मूर्ख कुंवारियां होंगे। इस तरह हर इंसान को उसकी अपनी श्रेणी में अलग-अलग बांटा जाता है। इससे पता चलता है कि परमेश्वर कितने बुद्धिमान और धर्मी हैं!
परमेश्वर ने अपने वचन को, अपनी वाणी को बहुत अधिक स्पष्ट किया है। अगर हम अभी भी उनको सुन और समझ नहीं सकते हैं, तो क्या हम सिर्फ मूर्ख कुंवारियां नहीं हैं? हर वर्ग में, कुछ ऐसे विश्वासी हैं जिन्होंने परमेश्वर की वाणी को सुना है और उनके पास लौट आए हैं। क्या ये सिर्फ "चुराया हुआ" खजाना नहीं है? प्रभु इन खजानों को वापस लेने के लिए गुप्त रूप से देहधारी हुए हैं, ताकि आपदाओं से पूर्व उन लोगों में से विजेताओं का एक समूह बनाया जा सके जिनका सबसे पहले परमेश्वर के सिंहासन के सामने आरोहण किया गया है। उन लोगों के संबंध में जो परमेश्वर के प्रकाशन के लिए धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करते हैं मगर परमेश्वर के कहे गए वचनों में उनकी वाणी को पहचान नहीं पाते हैं, केवल यही कहा जा सकता है कि वे सच्चाई को पसंद नहीं करते हैं, परमेश्वर को नहीं जानते हैं और निश्चित रूप से परमेश्वर की भेड़ नहीं हैं। स्वाभाविक रूप से, ऐसे ही लोग हैं जिन्हें परमेश्वर के द्वारा अलग और दूर कर दिया जाता है। जैसे कि प्रभु यीशु ने ��ोमा से कहा था: "तू ने मुझे देखा है, क्या इसलिये विश्वास किया है? धन्य वे हैं जिन्होंने बिना देखे विश्वास किया" (यूहन्ना 20:29)। प्रभु यीशु ने पहले कहा था: "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं; मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं" (यूहन्ना 10:27)। "देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ" (प्रकाशितवाक्य 3:20)। परमेश्वर की बुद्धिमत्ता यहाँ स्पष्ट है। अगर परमेश्वर ने मनुष्य को इसलिए प्रकाशन दिया ताकि वे उनमें विश्वास कर सकें, तो परमेश्वर अभी भी ऐसा क्यों कहते हैं कि परमेश्वर की भेड़ उनकी आवाज सुनती है? क्या दोनों बातें अलग नहीं हैं? परमेश्वर इस आधार पर कि क्या मनुष्य परमेश्वर की आवाज को पहचान सकता है, यह तय करते हैं कि मनुष्य परमेश्वर के प्रति निष्ठावान है या नहीं। यह परमेश्वर की निष्पक्षता और धार्मिकता है। जैसा कि आप देखते हैं, जिन लोगों को परमेश्वर का प्रकाशन नहीं मिला और फिर भी परमेश्वर की आवाज को पहचान लिया और सीधे तौर पर सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार कर लिया, वे ही सही मायनों में धन्य हैं। इसलिए, सही मार्ग को परखने में, परमेश्वर का प्रकाशन पाना महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण यह है कि क्या आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों में परमेश्वर की आवाज को पहचान पाते हैं या नहीं। केवल वे लोग जो यह समझते हैं कि परमेश्वर का वचन पूर्ण सत्य है और परमेश्वर को स्वीकार करते हैं, वही सच्चे विश्वासी, सत्य के प्रेमी हैं और जो परमेश्वर के प्रकट होने की बेसब्री से प्रतीक्षा करते हैं। अगर मनुष्य सिर्फ परमेश्वर का प्रकाशन पाने की प्रतीक्षा करता है, तो यह कहना मुश्किल है कि क्या वह व्यक्ति वास्तव में सत्य का प्रेमी है और परमेश्वर की आवाज को जानता है। इसलिए जिन लोगों ने प्रभु के आगमन को स्वीकार कर लिया है, उन्होंने ऐसा प्रभु की आवाज को सुनकर और यह समझकर किया है कि उनका वचन सत्य है। और यही कारण है कि वे प्रभु के फिर से प्रकट होने और उनके कार्य को स्वीकार करते हैं और उनका पालन करते हैं। केवल ऐसे लोगों का ही सही मायनों में परमेश्वर के सामने स्वर्गारोहण किया जाता है। अगर कोई सिर्फ परमेश्वर के प्रकाशन की प्रतीक्षा करता है, मगर उन वचनों के अध्ययन को अनदेखा कर देता है जो पवित्र आत्मा सभी कलीसियाओं से कहता है, तो ऐसे व्यक्ति को परमेश्वर के कार्य के द्वारा दूर और अलग कर दिया गया है, और वे ऐसे लोगों में शामिल होंगे जो प्रलय के दिनों में पकड़े जाने पर विलाप करेंगे और अपने दांत पीसेंगे।
"प्रभुत्व का रहस्य" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश
अब अंत के दिन है, यीशु मसीह का दूसरा आगमन की भविष्यवाणियां मूल रूप से पूरी हो चुकी हैं। तो हम किस प्रकार बुद्धिमान कुंवारी बने जो प्रभु का स्वागत करते हैं? जवाब जानने के लिए अभी पढ़ें और देखें।
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स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है IV
अब जबकि हमने शैतान के बारे में बात करना समाप्त कर दिया है, तो आओ हम फिर से अपने परमेश्वर के बारे में बात करें। परमेश्वर की छः हज़ार वर्��ीय प्रबंधकीय योजना के दौरान, बाइबल में परमेश्वर की प्रत्यक्ष वाणी को बहुत थोड़ा-सा ही दर्ज किया गया है, और जो कुछ दर्ज किया गया है वह बहुत ही सरल है। अतः आओ हम आदि से प्रारम्भ करें। परमेश्वर ने मनुष्य की सृष्टि की और तब से उसने हमेशा ही मानवजाति के जीवन की अगुवाई की है। चाहे मानवजाति को आशीष देना हो, उन्हें व्यवस्था एवं अपनी आज्ञाएँ देना हो, या जीवन के लिए विभिन्न नियम नियत करना हो, क्या तुम लोग जानते हो कि इन चीज़ों को करने में परमेश्वर का इच्छित लक्ष्य क्या है? पहला, क्या तुम लोग निश्चित तौर पर कह सकते हो कि वह सब कुछ जो परमेश्वर करता है वह मानवजाति की भलाई के लिए है? तुम लोग सोच सकते हो कि यह वाक्य अपेक्षाकृत व्यापक एवं खोखला है, किन्तु विशेष रूप से कहें, तो क्या सब कुछ जो परमेश्वर करता है वह एक सामान्य जीवन जीने के प्रति मनुष्य की अगुवाई एवं मार्गदर्शन के लिए नहीं है? चाहे यह ऐसा है जिससे मनुष्य उसके नियमों को माने या उसकी व्यवस्था का पालन करे, तो मनुष्य के लिए परमेश्वर का लक्ष्य है कि वह शैतान की आराधना न करे, और शैतान के द्वारा आहत न हो; यही मूलभूत बात है, और यही वह काम है जिसे बिलकुल शुरुआत में किया गया था। बिलकुल शुरुआत में, जब मनुष्य परमेश्वर की इच्छा को नहीं जानता था, तब उसने कुछ सरल व्यवस्थाओं एवं नियमों को लिया था और ऐसे प्रावधान किए थे जो हर ऐसे पहलू का समावेश करते थे जिनकी कल्पना की जा सकती हो। ये प्रावधान सरल हैं, फिर भी उनमें परमेश्वर की इच्छा शामिल है। परमेश्वर मानवजाति को संजोता, पोषण करता और बहुत प्रेम करता है। क्या स्थिति ऐसी ही नहीं है? (हाँ।) तो क्या हम कह सकते हैं कि उसका हृदय पवित्र है? क्या हम कह सकते हैं कि उसका हृदय साफ है? (हाँ।) क्या परमेश्वर के किसी प्रकार के कोई गुप्त इरादे हैं? (नहीं।) तो क्या उसका यह लक्ष्य सही एवं सकारात्मक है? (हाँ।) इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि परमेश्वर ने कौन-कौन से प्रावधान किए हैं, उसके कार्य के दौरान उन सब का प्रभाव मनुष्य के लिए सकारात्मक है, और वे उसके मार्ग की अगुवाई करते हैं। अतः क्या परमेश्वर के मन में कोई स्वार्थपूर्ण विचार चल रहे हैं? जहाँ मनुष्य की बात आती है तो क्या परमेश्वर के किसी प्रकार के अतिरिक्त उद्देश्य हैं, या क्या वह किसी तरह से मनुष्य का उपयोग करना चाहता है? (नहीं।) बिलकुल भी नहीं। परमेश्वर जैसा कहता है वैसा करता है, और वह अपने हृदय में भी इसी तरह से सोचता है। इसमें कोई मिलावटी उद्देश्य नहीं है, कोई स्वार्थपूर्ण विचार नहीं हैं। वह अपने लिए कुछ नहीं करता है, बल्कि निश्चित तौर पर बिना किसी व्यक्तिगत उद्देश्य के पूरी तरह से सब कुछ मनुष्य के लिए करता है। यद्यपि उसके पास मनुष्य के लिए योजनाएं एवं इरादे हैं, फिर भी वह खुद के लिए कुछ नहीं करता है। वह जो कुछ भी करता है उसे विशुद्ध रूप से मानवजाति के लिए, मानवजाति को बचाने के लिए, और मानवजाति को गुमराह होने से बचाने के लिए करता है। ��तः क्या यह हृदय बहुमूल्य नहीं है? क्या तुम इस बहुमूल्य हृदय का लेशमात्र संकेत भी शैतान में देख सकते हो? (नहीं।) तुम शैतान में इसका एक भी संकेत नहीं देख सकते। हर एक चीज़ जिसे परमेश्वर करता है वह सहज रूप से प्रगट हो जाती है। जिस तरह से परमेश्वर कार्य करता है, उसे देखकर क्या लगता है, वह किस प्रकार कार्य करता है? क्या परमेश्वर इन व्यवस्थाओं एवं अपने वचनों को लेता है और सोने के अभिमंत्रित छल्लों[क] के समान प्रत्येक व्यक्ति के सिर पर कसके बांध कर इन्हें प्रत्येक मनुष्य पर थोपता है? क्या वह इस तरह से कार्य करता है? (नहीं।) तो परमेश्वर किस तरह से अपना कार्य करता है? (वह हमारा मार्गदर्शन करता है। वह समझाता है और प्रोत्साहन देता है।) क्या वह धमकाता है? क्या वह तुमसे गोल-मोल बात करता है? (नहीं।) जब तुम सत्य को नहीं समझते, तो परमेश्वर तुम्हारा मार्गदर्शन कैसे करे? (वह ज्योति चमकाता है।) वह तुम पर एक ज्योति चमकाता है, तुम्हें स्पष्ट रूप से बताता है कि यह सत्य के अनुरूप नहीं है और तुम्हें क्या करना चाहिए। इन तरीकों से जिसके अंतर्गत परमेश्वर कार्य करता है, तुम्हें क्या लगता है परमेश्वर के साथ तुम्हारा रिश्ता कैसा है? क्या इनसे तुम्हें ऐसा महसूस होता है कि परमेश्वर तुम्हारी समझ से परे है? (नहीं।) तो इनसे तुम्हें कैसा महसूस होता है? परमेश्वर विशेष रूप से तुम्हारे बहुत करीब है, तुम्हारे बीच में कोई दूरी नहीं है। जब परमेश्वर तुम्हारी अगुवाई करता है, जब वह तुम्हारी ज़रूरतें पूरी करता है, तुम्हारी सहायता करता है और तुम्हें सहारा देता है, तो तुम परमेश्वर के मिलनसार स्वभाव, एवं तुम्हारे प्रति उसके सम्मान को महसूस करते हो, और तुम महसूस करते हो कि वह कितना प्यारा है, और कितना स्नेही है। किन्तु जब परमेश्वर तुम्हारी भ्रष्टता के लिए तुम्हारी भर्त्सना करता है, या जब वह अपने विरुद्ध विद्रोह करने के लिए तुम्हारा न्याय करता है एवं तुम्हें अनुशासित करता है, तो परमेश्वर किन तरीकों का उपयोग करता है? क्या वह शब्दों से तुम्हारी भर्त्सना करता है? क्या वह वातावरण एवं लोगों, मामलों, एवं चीज़ों के माध्यम से तुम्हें अनुशासित करता है? (हाँ।) यह अनुशासन किस स्तर तक पंहुचता है? क्या यह उस स्तर तक पहुंचता है जहाँ शैतान मनुष्य को नुकसान पहुंचाता है? (नहीं, यह उस स्तर तक पहुंचता है जिसे मनुष्य सह सकता है।) परमेश्वर सौम्यता, प्रेम, कोमलता एवं परवाह करते हुए ऐसे तरीके से कार्य करता है जो विशेष रूप से नपा-तुला और उचित है। उसका तरीका तुम में तीव्र भावनाओं को उत्पन्न नहीं करता है, यह कहते हुए कि, "इसे करने के लिए परमेश्वर को मुझे अनुमति देनी चाहिए" या "उसे करने के लिए परमेश्वर को मुझे अनुमति देनी चाहिए" परमेश्वर तुम्हें कभी भी उस किस्म की तीव्र मानसिकता या तीव्र भावनाएं नहीं देता है जो चीज़ों को असहनीय बना देती हैं। यह बात सही है न? यहाँ तक कि जब तुम न्याय एवं ताड़ना के विषय में परमेश्वर के वचनों को ग्रहण करते हो, तब तुम कैसा महसूस करते हो? जब तुम परमेश्वर के अधिकार एवं सामर्थ्य को महसूस करते हो, तब तुम कैसा महसूस करते हो? क्या तुम महसूस करते हो कि परमेश्वर दिव्य और अल��घनीय है? (हाँ।) क्या ऐसे समय में तुम परमेश्वर से दूरी महसूस करते हो? क्या तुम्हें परमेश्वर से भय महसूस होता है? नहीं, बल्कि तुम परमेश्वर के लिए भययुक्त सम्मान महसूस करते हो। क्या लोग परमेश्वर के कार्य के कारण इन सब चीज़ों को महसूस नहीं करते हो? यदि शैतान मनुष्य पर काम करता तो क्या तब भी उनमें ये भावनाएं होतीं? (नहीं।) परमेश्वर मनुष्य की निरन्तर आपूर्ति के लिए, एवं मनुष्य को सहारा देने के लिए अपने वचनों, अपने सत्य एवं अपने जीवन का उपयोग करता है। जब मनुष्य कमज़ोर होता है, जब मनुष्य निराश होता है, तब निश्चित तौर पर परमेश्वर कठोरता से यह कहते हुए बात नहीं करता है कि, "निराश मत हो। तुम निराश क्यों हो? तुम किस कारण कमज़ोर हो? ऐसा क्या है जिसके विषय में तुम कमज़ोर हो? तुम कितने कमज़ोर हो और हमेशा इतने निराश रहते हो। जीने से क्या मतलब है? मर जाओ!" क्या परमेश्वर इस तरह से कार्य करता है? (नहीं।) क्या परमेश्वर के पास इस तरह से कार्य करने का अधिकार है? (हाँ।) पर परमेश्वर इस तरह से कार्य नहीं करता है। परमेश्वर के इस रीति से कार्य नहीं करने की वजह है उसका सार-तत्व, परमेश्वर की पवित्रता का सार-तत्व। मनुष्य के लिए उसके प्रेम को, और उसके द्वारा मनुष्य को संजोकर रखने और उसका पोषण करने को, एक या दो वाक्य में अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता है। यह कोई ऐसी चीज़ नहीं है जो मनुष्य के डींग हांकने के द्वारा घटित होती है बल्कि यह ऐसी चीज़ है जिसे परमेश्वर वास्तविक तौर पर अमल में लाता है; यह परमेश्वर के सार-तत्व का प्रकाशन है। क्या ये सभी तरीके जिसके अंतर्गत परमेश्वर कार्य करता है वे मनुष्य को परमेश्वर की पवित्रता को देखने की अनुमति दे सकते हैं? इन सभी तरीकों में जिसके अंतर्गत परमेश्वर कार्य करता है, जिनमें परमेश्वर के अच्छे इरादे शामिल हैं, जिनमें वे प्रभाव शामिल हैं जिन्हें परमेश्वर मनुष्य पर सम्पादित करना चाहता है, जिनमें विभिन्न तरीके शामिल हैं जिन्हें परमेश्वर मनुष्य पर कार्य करने के लिए अपनाता है, जिनमें उस प्रकार का कार्य शामिल है जिसे वह करता है, जिसे वह मनुष्य को समझाना चाहता है—क्या तुमने परमेश्वर के अच्छे इरादों में कोई दुष्टता या धूर्तता देखी है? (नहीं।) अतः जो कुछ परमेश्वर करता है, जो कुछ परमेश्वर कहता है, जो कुछ वह अपने हृदय में सोचता है, साथ-ही-साथ परमेश्वर का सारा सार-तत्व जिसे वह प्रकट करता है—क्या हम परमेश्वर को पवित्र कह सकते हैं? (हाँ।) क्या किसी मनुष्य ने संसार में, या अपने अंदर कभी ऐसी पवित्रता देखी है? परमेश्वर को छोड़कर, क्या तुमने इसे कभी किसी मनुष्य या शैतान में देखा है? (नहीं।) अब तक जिसके विषय में हमने बात की है, क्या हम परमेश्वर को अद्वितीय, स्वयं पवित्र परमेश्वर कह सकते है? (हाँ।) वह सब कुछ जो परमेश्वर मनुष्य को देता है, जिसमें परमेश्वर के वचन शामिल हैं, वे विभिन्न तरीके जिनके अंतर्गत परमेश्वर मनुष्य पर कार्य करता है, वह जिसे परमेश्वर मनुष्य को बताता है, वह जिसे परमेश्वर मनुष्य को स्मरण कराता है, वह जिसकी वह सलाह देता है एवं उत्साहित करता है, यह सब एक सार-तत्व से उत्पन्न होता है: यह सब परमेश्वर की पवित्रता से उत्पन्न होता है। यदि कोई ऐसा पवित्र परमेश्वर नहीं होता, तो कोई मनुष्य उस कार्य को, जिसे वह करता है, करने के लिए उसका स्थान नहीं ले सकता। यदि परमेश्वर इन लोगों को लेता और पूरी तरह से इन्हें शैतान को सौंप देता, तो क्या तुम सब ने कभी सोचा है कि तुम लोग किस प्रकार की परिस्थिति में होते? क्या तुम सब यहाँ सही सलामत और सुरक्षित बैठे होते? क्या तुम लोग भी कहते: "इधर-उधर घूमते-फिरते और डोलते-डालते आया ��ूँ।" क्या तुम लोग ऐसे ही अकड़ते, ऐसे ही निर्लज्ज हो जाते और परमेश्वर के सामने बिना किसी शर्म के घमण्ड करते, और ऐसे ही ऐंठ कर बात करते? (हाँ।) तुम सब सौ प्रतिशत ऐसा ही करते! तुम लोग बिलकुल करते! मनुष्य के प्रति शैतान का रवैया उन्हें यह देखने की अनुमति देता है कि शैतान का स्वभाव और सार परमेश्वर से पूर्णतः अलग है। शैतान का कौन सा सार-तत्व परमेश्वर की पवित्रता के विपरीत है? (उसकी दुष्टता।) शैतान का दुष्ट स्वभाव परमेश्वर की पवित्रता के विपरीत है। अधिकांश लोग परमेश्वर की इस अभिव्यक्ति और परमेश्वर की इस पवित्रता के सार-तत्व को इस कारणवश नहीं पहचान पाते क्योंकि वे शैतान के प्रभुत्व के अधीन, शैतान की भ्रष्टता के अंतर्गत, और शैतान के जीवन जीने के दायरे के भीतर रहते हैं। वे नहीं जानते हैं पवित्रता क्या है, या यह नहीं जानते हैं कि पवित्रता को कैसे परिभाषित करें। परमेश्वर की पवित्रता का एहसास कर लेने के बावजूद, तुम किसी निश्चय के साथ परमेश्वर की पवित्रता के रूप में इसे परिभाषित नहीं कर सकते। यह परमेश्वर की पवित्रता के विषय में मनुष्य के ज्ञान का भेद है।
मनुष्य पर शैतान के कार्य की किस तरह के विशिष्ट लक्षण दिखाई पड़ते हैं? तुम लोगों को अपने अनुभवों के माध्यम से इसके विषय में जानने में समर्थ होना चाहिए—यह शैतान का सबसे अधिक विशिष्ट लक्षण है, वह कार्य जिसे वह सबसे अधिक करता है, वह कार्य जिसे वह हर एक व्यक्ति के साथ करने की कोशिश करता है। शायद तुम इस विशिष्टता को न देख पाओ, इसलिए तुम सब यह महसूस नहीं कर पाते कि शैतान कितना भयावह एवं घृणित है। क्या कोई जानता है कि यह लक्षण क्या है? मुझे बताओ। (वह हर काम मनुष्य को नुकसान पहुंचाने के लिए करता है।) वह मनुष्य को कैसे नुकसान पहुंचाता है? क्या तुम लोग मुझे और अधिक विशेष तौर पर तथा और अधिक विस्तार से दिखा सकते हो? (वह मनुष्य को लुभाता, फुसलाता एवं प्रलोभन देता है।) यह सही है, यह विभिन्न पहलुओं को दिखाता है। यह मनुष्य को ठगता है, आक्रमण करता है एवं दोष भी लगाता है—इनमें से सब कुछ। क्या और भी कुछ है? (वह झूठ बोलता है।) धोखा देना और झूठ बोलना शैतान में स्वाभाविक रीति से आते हैं। वह ऐसा इतनी बार करता है कि झूठ उसके मुंह से बिना सोचे निकलता है। और कुछ? (वह कलह के बीज बोता है।) यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है। मैं तुम लोगों को ऐसी बात बताऊंगा जो तुम लोगों को भयभीत कर देगी, परन्तु मैं तुम लोगों को डराने के लिए ऐसा नहीं करूंगा। परमेश्वर मनुष्य पर कार्य करता है और मनुष्य परमेश्वर के रवैये एवं उसके हृदय में पोषित होता है। इसके विपरीत, क्या शैतान मनुष्य को पोषित करता है? वह मनुष्य को पोषित नहीं करता है। वह बस मनुष्य को हानि पहुंचाने के विषय में सोचता है। क्या यह सही नहीं है? जब वह मनुष्य को हानि पहुंचाने का विचार करता है, तो क्या वह ऐसा मानसिक दबाव की स्थिति में ��रता है? (हाँ।) अतः जब मनुष्य पर शैतान के कार्य की बात आती है, तो यहाँ मेरे पास दो वाक्यांश हैं जो शैतान की दुर्भावना एवं दुष्ट प्रकृति की व्याख्या अच्छी तरह से कर सकते हैं, जिससे सचमुच में तुम लोग शैतान की घृणा को जान सकते हो। मनुष्य के प्रति शैतान का नज़रिया ऐसा है कि वह हमेशा हर एक पर बलपूर्वक "कब्ज़ा" करना और उसे हासिल करना चाहता है ताकि वह उस बिन्दु तक पहुंच सके जहाँ वह मनुष्य को पूरी तरह से नियन्त्रण में रखे और उसे नुकसान पहुँचाए ताकि वह इस उद्देश्य एवं वहशी महत्वाकांक्षा को हासिल कर सके। "बलपूर्वक कब्ज़ा" करने का अर्थ क्या है? क्या यह तुम्हारी सहमति से होता है, या बिना सहमति के होता है? क्या यह तुम्हारी जानकारी से होता है, या तुम्हारी जानकारी के बगैर होता है? यह पूरी तरह से तुम्हारी जानकारी के बगैर होता है। ऐसी परिस्थितियों में जहाँ तुम अनजान रहते हो, संभवतः जब उसने कुछ भी नहीं कहा होता है या संभवतः जब उसने कुछ भी नहीं किया होता है, जब कोई आधार नहीं होता है, और कोई सन्दर्भ नहीं होता है, वहाँ वह तुम्हारे चारों ओर होता है, और तुम्हें घेरे हुए होता है। वह तुम्हारा शोषण करने के लिए एक अवसर तलाशता है, तब वह बलपूर्वक तुम पर कब्ज़ा करता है, तुम्हें हासिल करता है तुम पर नियंत्रण करने और नुकसान पहुँचाने के अपने उद्देश्य को हासिल करता है। मानवजाति के लिए परमेश्वर के विरुद्ध शैतान की लड़ाई में यह एक अति विशिष्ट इरादा एवं व्यवहार है। इसे सुनकर तुम्हें कैसा लगता है? (दिल में भयभीत और डरे हुए।) क्या तुम सब घृणा महसूस करते हो? (हाँ।) जब तुम लोग घृणित महसूस करते हो, तो क्या तुम लोग सोचते हो कि शैतान निर्लज्ज है? जब तुम लोग सोचते हो कि शैतान निर्लज्ज है, तो क्या तुम लोग उन लोगों के प्रति घृणा महसूस करते हो जो तुम्हें नियन्त्रित करना चाहते हैं, ऐसे लोग जिनके पास हैसियत एवं रुचियों के लिए अनियन्त्रित महत्वाकांक्षाएं हैं? (हाँ।) तो शैतान मनुष्य पर बलपूर्वक कब्ज़ा करने और उसे काबू में करने के लिए कौन से तरीकों का उपयोग करता है? क्या तुम लोग इस विषय पर स्पष्ट हो? जब तुम लोग बलपूर्वक "कब्ज़े" एवं "काबू" जैसे दो शब्दों को सुनते हो, तो तुम लोगों को अजीब-सा एवं घृणा का एहसास होता है, है न? क्या तुम लोगों को उसका खराब स्वाद महसूस होता है? तुम्हारी सहमति या जानकारी के बिना वह स्वयं को तुम पर कब्ज़ा करने देता है, तुम्हें काबू में करता है और भ्रष्ट करता है। तुम्हें अपने हृदय में क्या महसूस होता है? क्या तुम्हें घृणा और नफरत का अनुभव होता है? (हाँ।) जब तुम शैतान के इस तरीके से नफ़रत और घृणा महसूस करते हो, तो तुम्हारे अंदर परमेश्वर के लिए किस प्रकार का एहसास होता है? (कृतज्ञता का।) तुम्हें बचाने के लिए परमेश्वर के प्रति कृतज्ञता का भाव। अतः अब, इस घड़ी, क्या तुम्हारे अंदर वह चाहत या वह इच्छा है कि परमेश्वर तुम्हारी समस्त जिम्मेदारी ले ले और तुम्हारे सर्वस्व पर शासन करे? (हाँ।) किस सन्दर्भ में? क्या तुम इसलिए हाँ कहते हो क्योंकि तुम्हें शैतान के द्वारा खुद पर बलपूर्वक कब्ज़ा किए जाने एवं काबू में किये जाने का डर है? (हाँ।) तुम्हारी मानसिकता इस तरह की नहीं हो सकती है, यह सही नहीं है। डरो मत, परमेश्वर यहाँ है। डरने वाली कोई बात नहीं है। एक बार तुम शैतान के बुरे सार को सम�� जाओगे तो, तुम्हारे अंदर परमेश्वर के प्रेम, परमेश्वर के अच्छे इरादों, परमेश्वर की करुणा और इंसान के लिये उसकी सहिष्णुता और उसके धार्मिक स्वभाव की अधिक सटीक समझ या उन्हें गहराई से संजोने का भाव होगा। शैतान कितना घृणित है, फिर भी यदि यह अभी भी परमेश्वर के विषय में तुम्हारे प्रेम और परमेश्वर पर तुम्हारी निर्भरता एवं परमेश्वर में तुम्हारे भरोसे को प्रेरित नहीं करता है, तो तुम किस प्रकार के व्यक्ति हो? क्या तुम तैयार हो कि शैतान तुम्हें इस प्रकार से नुकसान पहुंचाए? शैतान की दुष्टता एवं भयंकरता को देखने के पश्चात्, हम पलटते हैं और तब परमेश्वर को देखते हैं। क्या परमेश्वर के विषय में तुम्हारी जानकारी में कुछ बदलाव आया है? क्या हम कह सकते हैं परमेश्वर पवित्र है? क्या हम कह सकते हैं कि परमेश्वर दोष-रहित है? "परमेश्वर अद्वितीय पवित्रता है"—क्या परमेश्वर इस उपाधि के अंतर्गत आ सकता है? (हाँ।) अतः इस संसार में और सब चीजों के मध्य, क्या केवल स्वयं परमेश्वर मनुष्य की इस समझ के अंतर्गत आ सकता है? क्या और कोई भी हैं? (नहीं।) अतः परमेश्वर मनुष्य को आखिर देता क्या है? जब तुम ध्यान नहीं दे रहे होते तो क्या वह तुम्हें थोड़ी देखरेख, देखभाल एवं परवाह देता है? परमेश्वर ने मनुष्य को क्या दिया है? परमेश्वर ने मनुष्य को जीवन दिया है, और उसने मनुष्य को सब कुछ दिया है, और किसी चीज़ की मांग किए बगैर, और किसी गुप्त इरादे के बगैर वह बिना किसी शर्त के मनुष्य को आपूर्ति करता है। वह मनुष्य की अगुवाई एवं मार्गदर्शन करने के लिए सत्य का उपयोग करता है, अपने वचनों का उपयोग करता है, एवं अपने जीवन का उपयोग करते हुए मनुष्य को शैतान के नुकसान से दूर ले जाता है, शैतान के प्रलोभन से दूर ले जाता है, शैतान के बहकावे से दूर ले जाता है और वह मनुष्य को शैतान का दुष्ट स्वभाव एवं उसका भयंकर चेहरा दिखाता है। क्या मानवजाति के लिए परमेश्वर का प्रेम एवं चिंता सही है? क्या इसे तुम सभी लोग अनुभव कर सकते हो? (हाँ।)
अपने अब तक के जीवन में पीछे मुड़कर उन सब कार्यों को देखो जिन्हें परमेश्वर ने तुम्हारे विश्वास के उन सभी वर्षों में किया है। तुम इसे गहराई से महसूस करो या न करो, क्या यह अत्यंत आवश्यक नहीं था? क्या यही वह नहीं है जिसे प्राप्त करना तुम्हारे लिए अत्यंत आवश्यक था? (हाँ।) क्या यह सच नहीं है? क्या यह जीवन नहीं है? (हाँ।) अतः इन चीज़ों को देने के पश्चात् कुछ वापस करने के लिए या बदले में कोई चीज़ देने के लिए क्या परमेश्वर ने तुम्हें कभी प्रबुद्ध किया? (नहीं।) तो परमेश्वर का उद्देश्य क्या है? परमेश्वर यह क्यों करता है? क्या परमेश्वर का उद्देश्य भी तुम पर पर कब्ज़ा करने का है? (नहीं।) क्या परमेश्वर मनुष्य के हृदय में अपने सिंहासन को ऊंचा उठाना चाहता है? (हाँ।) अतः परमेश्वर के द्वारा अपने सिंहासन को ऊंचा उठाने और शैतान के बलपूर्वक कब्ज़ा करने के बीच क्या अन्तर है? परमेश्वर मनुष्य के हृदय को पाना चाहता है, वह मनुष्य के हृदय को ग्रहण करना चाहता है—इसका क्या मतलब है? क्या इसका अर्थ यह है कि परमेश्वर मनुष्य को अपनी कठपुतली, एवं अपनी मशीन बनाना चाहता है? (नहीं।) तो परमेश्वर का उद्देश्य क्या है? क्या मनुष्य के हृदयों को ग्रहण करने की परमेश्वर की इच्छा और शैतान के बलपूर्वक कब्ज़े, और उसके काबू करने में कोई अन्तर है? (हाँ।) परमेश्वर तुम्हारा हृदय किसलिए चाहता है? और इसके अतिरिक्त, परमेश्वर किसलिए तुम पर काबिज़ होना चाहता है? तुम सब "परमेश्वर मनुष्य के हृदय को ग्रहण करता है" किस तरह से समझते हो? हमें यहाँ पर परमेश्वर के प्रति ईमान��ार होना होगा, नहीं तो लोग हमेशा, ग़लत समझेंगे और सोचेंगे कि: "परमेश्वर हमेशा मुझे ग्रहण करना चाहता है। वह मुझे किसलिए ग्रहण करना चाहता है? मैं नहीं चाहता हूँ कि कोई मुझे ग्रहण करे, मैं जैसा हूँ बस वैसा ही रहना चाहता हूँ। तुम लोग कहते हो कि शैतान लोगों पर कब्ज़ा करता है, किन्तु परमेश्वर भी लोगों पर कब्ज़ा करता है। क्या ये एक समान ही नहीं हैं? मैं किसी को भी मुझ पर कब्ज़ा करने की अनुमति नहीं देना चाहता हूँ। मैं जो हूँ, हूँ।" यहाँ अन्तर क्या है? इस पर ज़रा सोचो। मैं तुम लोगों से पूछता हूँ, कि क्या "परमेश्वर मनुष्य को ग्रहण करता है" एक खोखला वाक्यांश है? क्या मनुष्य को परमेश्वर ग्रहण करता है का अर्थ है कि परमेश्वर तुम्हारे हृदय में रहता है और तुम्हारे प्रत्येक शब्द एवं प्रत्येक गतिविधि पर शासन करता है? यदि वह तुमसे कहता है कि बैठो, तो क्या तुम सब खड़े होने की हिम्मत नहीं करते हो? यदि वह तुमसे कहता है कि पूर्व दिशा में जाओ, तो क्या तुम पश्चिम दिशा में जाने की हिम्मत नहीं करते? क्या यह कोई अधिग्रहण है जिसका अर्थ कुछ ऐसा है? (नहीं, ऐसा नहीं है। परमेश्वर चाहता है कि परमेश्वर के अस्तित्व को मनुष्य जिये।) परमेश्वर ने सालों से मनुष्य का जो प्रबंध किया है, अतः इस अंतिम चरण में अब तक मनुष्य पर किए गए परमेश्वर के कार्य में, उन सब वचनों का मनुष्य पर क्या असर होगा जिन्हें परमेश्वर ने कहा था? क्या यह ऐसा है कि जो मनुष्य परमेश्वर की अस्तित्व को जीता है। "परमेश्वर मनुष्य का हृदय ग्रहण करता है" के शाब्दिक अर्थ को देखने पर, ऐसा प्रतीत होता है मानो परमेश्वर मनुष्य के हृदयों को लेता है और उन पर कब्ज़ा करता है, उनमें रहता है और फिर बाहर नहीं आता है; वह मनुष्य के हृदय का स्वामी बन जाता है, और वह अपनी इच्छा से मनुष्य के हृदय पर प्रभुता करता और उसका प्रबंध करता है, ताकि मनुष्य वो करे जो करने के लिए परमेश्वर उससे कहता है। अर्थ के इस स्तर पर, ऐसा प्रतीत होता है मानो हर व्यक्ति परमेश्वर बन गया है, और उसने परमेश्वर के सार को धारण कर लिया है, एवं परमेश्वर के स्वभाव को धारण कर लिया है। अतः इस स्थिति में, क्या मनुष्य भी परमेश्वर के कृत्यों को अंजाम दे सकता है? क्या "अधिग्रहण" को इस रीति से समझाया जा सकता है? (नहीं।) तो वह क्या है? क्या तुम उस जीवन को जानते हो जो परमेश्वर मनुष्य को प्रदान करता है? मैं तुम सब से पूछता हूँ: सारे वचन एवं सत्य जिन्हें परमेश्वर मनुष्य को प्रदान करता है क्या वे परमेश्वर के सार और उसके अस्तित्व का प्रकटीकरण हैं? (हाँ।) यह निश्चित है। किन्तु सभी वचन जिन्हें परमेश्वर मनुष्य को प्रदान करता है क्या वे स्वयं परमेश्वर के अभ्यास के लिए हैं, एवं स्वयं परमेश्वर के धारण करने के लिए हैं? इसके विषय में सोचने के लिए एक मिनट लीजिए। जब परमेश्वर मनुष्य का न्याय करता है, तो वह किस कारण से ऐसा करता है? ये वचन कहाँ से आए? मनुष्य का न्याय करते समय जब परमेश्वर बोलता है तो इन वचनों की विषय-वस्तु क्या होती है? वे किस पर आधारित होते हैं? क्या वे मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव पर आधारित होते हैं? (हाँ।) क्या वह प्रभाव जिसे मनुष्य पर परमेश्वर के न्याय के द्वारा हासिल किया जाता है, वह परमेश्वर के सार पर आधारित होता है? (हाँ।) अतः क्या परमेश्वर द्वारा मनुष्य का अधिग्रहण एक खोखला वाक्यांश है? निश्चित तौर पर ऐसा नहीं है। तो परमेश्वर मनुष्य से ये वचन क्यों कहता है? इन वचनों को कहने का उसका क्या उद्देश्य है? क्या वह मनुष्य के जीवन के लिए इन वचनों का उपयोग करना चाहता है? (हाँ।) परमेश्वर ने जो कुछ कहा है, वह उस समस्त सत्य का उपयोग मनुष्य के जीवन के लिए ��ाहता है। जब मनुष्य इस समस्त सत्य और परमेश्वर के वचन को लेकर उन्हें अपने जीवन में रूपान्तरित करेगा, तब क्या मनुष्य परमेश्वर की आज्ञा मानेगा? तब क्या मनुष्य परमेश्वर का भय मान सकता है? तब क्या मनुष्य बुराई से दूर रह सकता है? जब मनुष्य इस बिन्दु तक पहुंच जाता है, तब क्या वह परमेश्वर की संप्रभुता एवं प्रबन्ध को मानेगा? तब क्या मनुष्य परमेश्वर के अधिकार के अधीन होने की स्थिति में होता है? जब अय्यूब या पतरस जैसे लोग अपने अंतिम चरण पर पहुंच जाते हैं, जब यह माना जाता है कि उनका जीवन परिपक्व हो चुका है, जब उनके पास परमेश्वर की वास्तविक समझ होती है—क्या शैतान उन्हें तब भी भटका सकता है? क्या शैतान उन पर अभी भी कब्ज़ा कर सकता है? क्या शैतान अभी भी स्वयं को उनके साथ बलपूर्वक जोड़ सकता है? (नहीं।) तो यह किस प्रकार का व्यक्ति है? क्या यह कोई ऐसा व्यक्ति है जिसे परमेश्वर के द्वारा पूरी तरह से प्राप्त कर लिया गया है। (हाँ।) अर्थ के इस स्तर पर, तुम सब इस प्रकार के व्यक्ति को किस प्रकार देखते हो जिसे परमेश्वर के द्वारा पूरी तरह से प्राप्त कर लिया गया है? परमेश्वर के लिए, इन परिस्थितियों के अंतर्गत वह पहले से ही इस व्यक्ति के हृदय को ग्रहण कर चुका है। किन्तु यह व्यक्ति कैसा महसूस करता है? क्या यह ऐसा है कि परमेश्वर का वचन, परमेश्वर का अधिकार, और परमेश्वर का मार्ग मनुष्य के भीतर जीवन बन जाता है, फिर यह जीवन मनुष्य के सम्पूर्ण अस्तित्व पर काबिज़ हो जाता है और फ़िर यह उसके जीवन और साथ ही उसके सार का निर्माण करता है जो परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए पर्याप्त है? परमेश्वर के लिए, क्या इस घड़ी मनुष्य के हृदय पर उसका अधिकार है? (हाँ।) अब तुम लोग इस स्तर के अर्थ को कैसे समझते हो? क्या यह परमेश्वर का आत्मा है जिसने तुम्हारा अधिग्रहण किया है? (नहीं, ये परमेश्वर के वचन है जो वास्तव में हमारा अधिग्रहण करते हैं।) ये परमेश्वर का मार्ग और परमेश्वर के वचन हैं, जो तुम्हारा जीवन बन गए हैं और ये ऐसे सत्य हैं जो तुम्हारा जीवन बन गए हैं। इस समय, इंसान के पास वह जीवन है जो परमेश्वर से आता है किन्तु हम यह नहीं कह सकते हैं कि यह जीवन परमेश्वर का जीवन है। दूसरे शब्दों में, हम यह नहीं कह सकते हैं कि जिस जीवन को मनुष्य को परमेश्वर के वचन से पाना चाहिए वह परमेश्वर का जीवन है। अतः चाहे मनुष्य कितने ही लम्बे समय तक परमेश्वर का अनुसरण करे, चाहे मनुष्य परमेश्वर से कितने ही वचन प्राप्त करे, मनुष्य कभी परमेश्वर नहीं बन सकता है। भले ही परमेश्वर किसी दिन यह कहे, "मैंने तेरे हृदय का अधिग्रहण कर लिया है, अब तू मेरे जीवन को धारण कर," क्या तब तुम्हें लगेगा कि तुम परमेश्वर हो? (नहीं।) तब तुम क्या बन जाओगे? क्या तुम्हारे अंदर परमेश्वर के प्रति सम्पूर्ण आज्ञाकारिता नहीं होगी? क्या तुम्हारा शरीर एवं तुम्हारा हृदय उस जीवन से भरपूर नहीं ��ो जाएगा जिसे परमेश्वर ने तुम्हें प्रदान किया है? जब परमेश्वर मनुष्य के हृदय को ग्रहण करता है तो यह एक बहुत ही सामान्य-सा प्रकटीकरण है। यह एक तथ्य है। अतः इसे इस पहलू से देखने पर, क्या मनुष्य परमेश्वर बन सकता है? जब मनुष्य परमेश्वर के सारे वचनों को प्राप्त कर लेता है, जब मनुष्य परमेश्वर का भय मानता है और बुराई से दूर जाता है, तो क्या मनुष्य परमेश्वर की पहचान और सार को धारण कर सकता है? (नहीं।) चाहे जो भी हो, मनुष्य आखिर मनुष्य ही रहता है। तुम एक रचना हो; जब तुमने परमेश्वर से परमेश्वर के वचन को ग्रहण कर लिया हो और परमेश्वर के मार्ग को ग्रहण कर लिया हो, तो तुम केवल उस जीवन को धारण करते हो जो परमेश्वर के वचन से आता है, और तुम कभी परमेश्वर नहीं बन सकते हो।
अभी-अभी अपने विषय पर लौटते हुए, मैंने तुम लोगों से एक पूछा था कि क्या अब्राहम पवित्र है? (नहीं।) क्या अय्यूब पवित्र है? (नहीं।) इस पवित्रता के भीतर परमेश्वर का सार निहित है। मनुष्य में परमेश्वर का सार या परमेश्वर का स्वभाव नहीं है। यहाँ तक कि जब मनुष्य ने परमेश्वर के समस्त वचन का अनुभव कर लिया हो और परमेश्वर के वचन के सार को धारण कर लिया हो, तब भी मनुष्य को पवित्र नहीं कहा जा सकता है; मनुष्य, मनुष्य है। तुम सब समझ गए, है न? तो तुम लोग अब इस वाक्यांश को कैसे समझते हो "परमेश्वर मनुष्य के हृदय को ग्रहण करता है।" (यह परमेश्वर का वचन है, परमेश्वर का मार्ग है और उसका सत्य है जो मनुष्य का जीवन बन जाता है।) तुम लोगों ने इसे याद कर लिया है, मैं आशा करता हूँ कि तुम लोगों में और अधिक गहरी समझ आ गई है। कुछ लोग पूछ सकते हैं, "तो ऐसा क्यों कहते हैं कि परमेश्वर के सन्देशवाहक एवं स्वर्गदूत पवित्र नहीं हैं?" तुम सब इस प्रश्न के बारे में क्या सोचते हो? कदाचित तुम लोगों ने इससे पहले इस पर विचार नहीं किया होगा। मैं एक साधारण-सा उदाहरण देता हूँ: जब तुम किसी रोबोट को चालू करते हो, तो वह नृत्य एवं बातचीत दोनों कर सकता है, और जो कुछ वह कहता है तुम उसे समझ सकते हो। तुम उसे प्यारा और सजीव कह सकते हो परन्तु रोबोट इसे नहीं समझेगा क्योंकि उसमें जीवन नहीं है। जब तुम उसकी विद्युत आपूर्ति को बन्द कर देते हो, तो क्या वह तब भी इधर-उधर हिल-डुल सकता है? जब यह रोबोट सक्रिय होता है, तो तुम देख सकते हो कि यह सजीव एवं प्यारा है। तुम इसका मूल्यांकन कर सकते हो, चाहे यह एक सारभूत मूल्यांकन हो या सतही मूल्यांकन, किन्तु स्थिति चाहे कुछ भी हो तुम्हारी आँखें इसे हरकत करते हुए देख सकती है। परन्तु जब तुम उसकी विद्युत आपूर्ति बन्द कर देते हो, तो क्या उसमें किसी प्रकार की विशेषता दिखाई देती है? क्या उसमें तुम्हें कोई सार दिखाई देता है? जो कुछ मैं कह रहा हूँ क्या तुम उसके अर्थ को समझ रहे हो? कहने का तात्पर्य है, यद्यपि यह रोबोट हिल-डुल सकता है और यह रुक सकता है, फिर भी तुम यह कभी नहीं कह सकते कि इसमें "किसी प्रकार का सार है।" क्या यह सच नहीं है? हम इस पर और अधिक बात नहीं करेंगे। इसके अर्थ की एक सामान्य समझ के लिये तुम लोगों के लिए इतना पर्याप्त है। हम अपनी संगति यहीं पर समाप्त करते हैं। अलविदा!
स्रोत: सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया
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इस्लाम धर्म के स्त्रोत
इस्लाम धर्म के स्त्रोत
इस्लाम धर्म के स्त्रोत
इस्लाम धर्म अपने आदेश, सिद्धांत और नियमों देवत्व रहस्योद्घाटन (ख़ुरआन और हदीस) से निकला। यही इस्लाम के स्त्रोत है। इन्हीं से इस्लामिक नियम, सिद्धांत और आदेश निकलते हैं। हम आगे इन दोनों के बारे में छोटा सा प्रसंग लिखेंगे ।
रसूल की वाणी
ईशवर ने अपने रसूल पर पवित्र क़ुरआन अवतरित किया, और वहयी (रहस्योद्घाटन) द्वारा हदीस उतारा। ईशवर ने कहा ��ह तो बस एक प्रकाशन है जो की जा रही है। (अल-नज्म, 4)
https://www.path-2-happiness.com/hi/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%A4%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%97/%E0%A4%B8%E0%A4%A6%E0%A4%BE-%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6/%E0%A4%87%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%AE-%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%A4
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ग्रह वाणी, आज होरा बुथवार 4 november 2020
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ग्रह वाणी, आज होरा बुथवार 4 november 2020
विभिन्न ग्रहों की होरा में कुछ निश्चित कार्य किए जाए तो सफलता निश्चित ही प्राप्त होती हैं।
सूर्य की होरा – सरकारी नौकरी ज्वाइन करना,चार्ज लेना और देना,अधिकारी से मिलना, टेंडर भरना व मानिक रत्न धारण करना।
चंद्र की होरा – मोती धारण करना। यह होरा ��भी कार्यो हेतु शुभ मानी जाती हैं।
मंगल की होरा – पुलिस व न्यायालयों से सम्बंधित कार्य व नौकरी ज्वाइन करना, जुआ सट्टा लगाना,क़र्ज़ देना, सभा समितियो में भाग लेना,मूंगा एवं लहसुनिया रत्न धारण करना। बुध की होरा – नया व्यापार शुरू करना,लेखन व प्रकाशन कार्य करना,प्रार्थना पत्र देना,विद्या शुरू करना,कोष संग्रह करना,पन्ना रत्न धारण करना।
गुरु की होरा – बड़े अधिकारियो से मिलना,शिक्षा विभाग में जाना व शिक्षक से मिलना,विवाह सम्बन्धी कार्य करना,पुखराज रत्न धारण करना।
शुक्र की होरा – नए वस्त्र पहनना,आभूषण खरीदना व धारण करना,फिल्मो से सम्बंधित कार्य करना ,मॉडलिंग करना,यात्रा करना,हीरा व ओपल रत्न पहनना। सोने-चांदी का व्यापार, ललित कला संबंधी कार्य, नवीन वस्त्र धारण करना व अन्य वैभव विलासिता संबंधी कार्य।
शनि की होरा – मकान की नींव खोदना व खुदवाना,कारखाना शुरू करना,वाहन व भूमि खरीदना,नीलम व गोमेद रत्न धारण करना।
7. शनि- नीलम व गोमेद धारण करना, गृहारम्भ करना, कारखानें स्थापित करना, लोहा-मशीनरी संबंधी कार्य, वाहन क्रय करना, न्यायालय संबंधी कार्य, कृषि कार्य, तेल संबंधी कार्य। ।। श्री गणेशाय नम:।। ।।होरा।।
04 – Nov – 2020
बुध 06:33 – 07:28 चन्द्र 07:28 – 08:22 शनि 08:22 – 09:17 गुरु 09:17 – 10:11 मंगल 10:11 – 11:06 सूर्य 11:06 – 12:00 शुक्र 12:00 – 12:55 बुध 12:55 – 13:49 चन्द्र 13:49 – 14:44 शनि 14:44 – 15:38 गुरु 15:38 – 16:33 मंगल 16:33 – 17:27 सूर्य 17:27 – 18:33 शुक्र 18:33 – 19:38 बुध 19:38 – 20:44 चन्द्र 20:44 – 21:50 शनि 21:50 – 22:55 गुरु 22:55 – 24:01 मंगल 24:01 – 25:06 सूर्य 25:06 – 26:12 शुक्र 26:12 – 27:17 बुध 27:17 – 28:23 चन्द्र 28:23 – 29:28 शनि 29:28 – 30:34
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