#वशिष्ठजी
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thomascalisto · 6 months ago
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#GodMorningMonday
जो हिन्दू श्रद्धालु बिना गुरू के मनमाना आचरण करते हैं,वे श्रीराम तथा श्रीकृष्ण से बड़ा तो किसी को नहीं मानते।
वे तीन लोक के मालिक होते हुए भी गुरू धारण करके भक्ति किया करते थे तथा अपने-अपने गुरूदेव के चरणों में दण्डवत् प्रणाम किया करते थे।
[श्री रामचन्द्रजी के गुरू ऋषि वशिष्ठजी थे तथा श्री कृष्णजी के गुरू ऋषि दुर्वासा जी थे।संदीपनी ऋषि तो अक्षर ज्ञान कराने वाले अध्यापक थे।ऋषि दुर्वासाजी आध्यात्मिक गुरू श्रीकृष्णजी के थे।}
आप की क्या ब���नियाद है,आप बिना गुरू के भक्ति करके कल्याण चाहते हैं।
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santbharatgroups · 8 years ago
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Kamada Ekadashi Vrat Katha (कामदा एकादशी व्रत कथा )
Kamada Ekadashi Vrat Katha (कामदा एकादशी व्रत कथा )
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Kamda Ekadashi
धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवन्! मैं आपको कोटि-कोटि नमस्कार करता हूँ। अब आप कृपा करके चैत्र शुक्ल एकादशी का महात्म्य कहिए। श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे धर्मराज! यही प्रश्न राजा दिलीप ने गुरु वशिष्ठजी से किया था और जो समाधान उन्होंने किया वो सब मैं तुमसे कहता हूँ। प्राचीनकाल में भोगीपुर नामक एक नगर था। वहाँ पर अनेक…
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superbalkrishna · 8 years ago
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Kamada Ekadashi Vrat Katha (कामदा एकादशी व्रत कथा )
Kamada Ekadashi Vrat Katha (कामदा एकादशी व्रत कथा )
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Kamda Ekadashi
धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवन्! मैं आपको कोटि-कोटि नमस्कार करता हूँ। अब आप कृपा करके चैत्र शुक्ल एकादशी का महात्म्य कहिए। श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे धर्मराज! यही प्रश्न राजा दिलीप ने गुरु वशिष्ठजी से किया था और जो समाधान उन्होंने किया वो सब मैं तुमसे कहता हूँ। प्राचीनकाल में भोगीपुर नामक एक नगर था। वहाँ पर अनेक…
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anilkulkarni · 8 years ago
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Kamada Ekadashi Vrat Katha (कामदा एकादशी व्रत कथा )
Kamada Ekadashi Vrat Katha (कामदा एकादशी व्रत कथा )
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Kamda Ekadashi
धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवन्! मैं आपको कोटि-कोटि नमस्कार करता हूँ। अब आप कृपा करके चैत्र शुक्ल एकादशी का महात्म्य कहिए। श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे धर्मराज! यही प्रश्न राजा दिलीप ने गुरु वशिष्ठजी से किया था और जो समाधान उन्होंने किया वो सब मैं तुमसे कहता हूँ। प्राचीनकाल में भोगीपुर नामक एक नगर था। वहाँ पर अनेक…
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mahilautthanmandal · 8 years ago
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Kamada Ekadashi Vrat Katha (कामदा एकादशी व्रत कथा )
Kamada Ekadashi Vrat Katha (कामदा एकादशी व्रत कथा )
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धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवन्! मैं आपको कोटि-कोटि नमस्कार करता हूँ। अब आप कृपा करके चैत्र शुक्ल एकादशी का महात्म्य कहिए। श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे धर्मराज! यही प्रश्न राजा दिलीप ने गुरु वशिष्ठजी से किया था और जो समाधान उन्होंने किया वो सब मैं तुमसे कहता हूँ। प्राचीनकाल में भोगीपुर नामक एक नगर था। वहाँ पर अनेक…
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madhavklim · 8 years ago
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Kamada Ekadashi Vrat Katha (कामदा एकादशी व्रत कथा )
Kamada Ekadashi Vrat Katha (कामदा एकादशी व्रत कथा )
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धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवन्! मैं आपको कोटि-कोटि नमस्कार करता हूँ। अब आप कृपा करके चैत्र शुक्ल एकादशी का महात्म्य कहिए। श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे धर्मराज! यही प्रश्न राजा दिलीप ने गुरु वशिष्ठजी से किया था और जो समाधान उन्होंने किया वो सब मैं तुमसे कहता हूँ। प्राचीनकाल में भोगीपुर नामक एक नगर था। वहाँ ���र अनेक…
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sitakrim · 8 years ago
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Kamada Ekadashi Vrat Katha (कामदा एकादशी व्रत कथा )
Kamada Ekadashi Vrat Katha (कामदा एकादशी व्रत कथा )
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धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवन्! मैं आपको कोटि-कोटि नमस्कार करता हूँ। अब आप कृपा करके चैत्र शुक्ल एकादशी का महात्म्य कहिए। श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे धर्मराज! यही प्रश्न राजा दिलीप ने गुरु वशिष्ठजी से किया था और जो समाधान उन्होंने किया वो सब मैं तुमसे कहता हूँ। प्राचीनकाल में भोगीपुर नामक एक नगर था। वहाँ पर अनेक…
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klimhrim · 8 years ago
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Kamada Ekadashi Vrat Katha (कामदा एकादशी व्रत कथा )
Kamada Ekadashi Vrat Katha (कामदा एकादशी व्रत कथा )
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धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवन्! मैं आपको कोटि-कोटि नमस्कार करता हूँ। अब आप कृपा करके चैत्र शुक्ल एकादशी का महात्म्य कहिए। श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे धर्मराज! यही प्रश्न राजा दिलीप ने गुरु वशिष्ठजी से किया था और जो समाधान उन्होंने किया वो सब मैं तुमसे कहता हूँ। प्राचीनकाल में भोगीपुर नामक एक नगर था। वहाँ पर अनेक…
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santbharatram · 8 years ago
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Kamada Ekadashi Vrat Katha (कामदा एकादशी व्रत कथा )
Kamada Ekadashi Vrat Katha (कामदा एकादशी व्रत कथा )
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Kamda Ekadashi
धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवन्! मैं आपको कोटि-कोटि नमस्कार करता हूँ। अब आप कृपा करके चैत्र शुक्ल एकादशी का महात्म्य कहिए। श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे धर्मराज! यही प्रश्न राजा दिलीप ने गुरु वशिष्ठजी से किया था और जो समाधान उन्होंने किया वो सब मैं तुमसे कहता हूँ। प्राचीनकाल में भोगीपुर नामक एक नगर था। वहाँ पर अनेक…
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jayshrisitaram108 · 3 years ago
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___________श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड_____________
❀❀❀❀❀❀❀❀जय श्री राम❀❀❀❀❀❀❀❀❀❀
🏹🏹🏹🏹🏹 🏹🙏🙏🙏🏹🏹🏹🏹🏹🏹🏹
ग्यान गिरा गोतीत अज माया मन गुन पार।सोइ सच्चिदानंद घन कर नर चरित उदार॥25॥
जो (बौद्धिक) ज्ञान, वाणी और इंद्रियों से परे और अजन्मा है तथा माया, मन और गुणों के परे है, वही सच्चिदानन्दघन भगवान् श्रेष्ठ नरलीला करते हैं॥25॥
प्रातकाल सरऊ करि मज्जन। बैठहिं सभाँ संग द्विज सज्जन॥
बेद पुरान बसिष्ट बखानहिं। सुनहिं राम जद्यपि सब जानहिं॥1॥
प्रातःकाल सरयूजी में स्नान करके ब्राह्मणों और सज्जनों के साथ सभा में बैठते हैं। वशिष्ठजी वेद और पुराणों की कथाएँ वर्णन करते हैं और श्री रामजी सुनते हैं, यद्यपि वे सब जानते हैं॥1॥
जय जय राम जय श्री राम २अक्षर का प्यारा नाम
राम नाम को जपने सेही बनजाते सब बिगड़े काम
श्री राम जय राम जय जय राम
श्री राम जय राम जय जय राम🏹🙏🚩
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karanaram · 3 years ago
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🚩गुरुपूर्णिमा आषाढ़ पूनम के दिन ही क्यो मनाई जाती है? जानिए रहस्य. 🚩 21 जुलाई 2021
🚩आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरुपूर्णिमा एवं व्यासपूर्णिमा कहते हैं । गुरुपूर्णिमा गुरुपूजन का दिन है । गुरुपूर्णिमा का एक अनोखा महत्त्व भी है । अन्य दिनों की तुलना में इस तिथि पर गुरुतत्त्व सहस्र गुना कार्यरत रहता है । इसलिए इस दिन किसी भी व्यक्ति द्वारा जो कुछ भी अपनी साधना के रूप में किया जाता है, उसका फल भी उसे सहस्र गुना अधिक प्राप्त होता है । इस साल 23 व 24 जुलाई को गुरुपूर्णिमा है।
🚩भगवान वेदव्यास ने वेदों का संकलन किया, 18 पुराणों और उपपुराणों की रचना की । ऋषियों के बिखरे अनुभवों को समाजभोग्य बना कर व्यवस्थित किया । पंचम वेद 'महाभारत' की रचना इसी पूर्णिमा के दिन पूर्ण की और विश्व के सुप्रसिद्ध आर्ष ग्रंथ ब्रह्मसूत्र का लेखन इसी दिन आरंभ किया । तब देवताओं ने वेदव्यासजी का पूजन किया । तभी से व्यासपूर्णिमा मनायी जा रही है । इस दिन जो शिष्य ब्रह्मवेत्ता सदगुरु के श्रीचरणों में पहुँचकर संयम-श्रद्धा-भक्ति से उनका पूजन करता है उसे वर्षभर के पर्व मनाने का फल मिलता है ।
🚩भारत में अनादिकाल से आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरुपूर्णिमा पर्व के रूप में मनाया जाता रहा है। गुरुपूर्णिमा का त्यौहार तो सभी के लिए है । भौतिक सुख-शांति के साथ-साथ ईश्वरीय आनंद, शांति और ज्ञान प्रदान करनेवाले महाभारत, ब्रह्मसूत्र, श्रीमद्भागवत आदि महान ग्रंथों के रचयिता महापुरुष वेदव्यासजी जैसे ब्रह्मवेत्ताओं का मानवऋणी है ।
🚩भारतीय संस्कृति में सद्गुरु का बड़ा ऊँचा स्थान है । भगवान स्वयं भी अवतार लेते हैं तो गुरु की शरण जाते हैं । भगवान श्रीकृष्ण गुरु सांदीपनिजी के आश्रम में सेवा तथा अभ्यास करते थे । भगवान श्रीराम गुरु वसिष्ठजी के चरणों में बैठकर सत्संग सुनते थे । ऐसे महापुरुषों के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए तथा उनकी शिक्षाओं का स्मरण करके उसे अपने जीवन मे लानेके लिए इस पवित्र पर्व ‘गुरुपूर्णिमा’ को मनाया जाता है ।
🚩गुरु का महत्त्व-
🚩गुरुदेव वे हैं, जो साधना बताते हैं, साधना करवाते हैं एवं आनंद की अनुभूति प्रदान करते हैं । गुरु का ध्यान शिष्य के भौतिक सुख की ओर नहीं, अपितु केवल उसकी आध्यात्मिक उन्नति पर होता है । गुरु ही शिष्य को साधना करने के लिए प्रेरित करते हैं, चरण दर चरण साधना करवाते हैं, साधना में उत्पन्न होनेवाली बाधाओं को दूर करते हैं, साधना में टिकाए रखते हैं एवं पूर्णत्व की ओर ले जाते हैं । गुरुके संकल्पके बिना इतना बडा एवं कठिन शिवधनुष उठा पाना असंभव है । इसके विपरीत गुरुकी प्राप्ति हो जाए, तो यह कर पाना सुलभ हो जाता है । श्री गुरुगीतामें ‘गुरु’ संज्ञाकी उत्पत्तिका वर्णन इस प्रकार किया गया है-
गुकारस्त्वन्धकारश्च रुकारस्तेज उच्यते ।
अज्ञानग्रासकं ब्रह्म गुरुरेव न संशयः ।। – श्री गुरुगीता
🚩अर्थ : ‘गु’ अर्थात अंधकार अथवा अज्ञान एवं ‘रु’ अर्थात तेज, प्रकाश अथवा ज्ञान । इस बातमें कोई संदेह नहीं कि गुरु ही ब्रह्म हैं जो अज्ञानके अंधकारको दूर करते हैं । इससे ज्ञात होगा कि साधकके जीवनमें गुरुका महत्त्व अनन्य है । इसलिए गुरुप्राप्ति ही साधकका प्रथम ध्येय है । गुरुप्राप्ति से ही ईश्वरप्राप्ति होती है अथवा यूं कहें कि गुरुप्राप्ति होना ही ईश्वरप्राप्ति है, ईश्वरप्राप्ति अर्थात मोक्षप्राप्ति- मोक्षप्राप्ति अर्थात निरंतर आनंदावस्था । गुरु हमें इस अवस्थातक पहुंचाते हैं । शिष्यको जीवनमुक्त करनेवाले गुरुके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनेके लिए गुरुपूर्णिमा मनाई जाती है ।
🚩गुरुपूर्णिमा का अध्यात्मशास्त्रीय महत्त्व-
इस दिन गुरुस्मरण करनेपर शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति होनेमें सहायता होती है । इस दिन गुरुका तारक चैतन्य वायुमंडलमें कार्यरत रहता है । गुरुपूजन करनेवाले जीवको इस चैतन्यका लाभ मिलता है । गुरुपूर्णिमाको व्यासपूर्णिमा भी कहते हैं, गुरुपूर्णिमापर सर्वप्रथम व्यासपूजन किया जाता है । एक वचन है – व्यासोच्छिष्टम् जगत् सर्वंम् । इसका अर्थ है, विश्वका ऐसा कोई विषय नहीं, जो महर्षि व्यासजीका उच्छिष्ट अथवा जूठन नहीं है अर्थात कोई भी विषय महर्षि व्यासजीद्वारा अनछुआ नह���ं है । महर्षि व्यासजीने चार वेदोंका वर्गीकरण किया । उन्होंने अठारह पुराण, महाभारत इत्यादि ग्रंथों की रचना की है । महर्षि व्यासजीके कारण ही समस्त ज्ञान सर्वप्रथम हमतक पहुंच पाया । इसीलिए महर्षि व्यासजीको ‘आदिगुरु’ कहा जाता है । ऐसी मान्यता है कि उन्हींसे गुरु-परंपरा आरंभ हुई । आद्यशंकराचार्यजीको भी महर्षि व्यासजीका अवतार मानते हैं ।
🚩गुरुपूजन का पर्व-
गुरुपूर्णिमा अर्थात् गुरु के पूजन का पर्व ।
गुरुपूर्णिमा के दिन छत्रपति शिवाजी भी अपने गुरु का विधि-विधान से पूजन करते थे।
🚩वर्तमान में सब लोग अगर गुरु को नहलाने लग जायें, ति��क करने लग जायें, हार पहनाने लग जायें तो यह संभव नहीं है। लेकिन षोडशोपचार की पूजा से भी अधिक फल देने वाली मानस पूजा करने से तो भाई ! स्वयं गुरु भी नही रोक सकते। मानस पूजा का अधिकार तो सबके पास है।
🚩"गुरुपूर्णिमा के पावन पर्व पर मन-ही-मन हम अपने गुरुदेव की पूजा करते हैं.... मन-ही-मन गुरुदेव को कलश भर-भरकर गंगाजल से स्नान कराते हैं.... मन-ही-मन उनके श्रीचरणों को पखारते हैं.... परब्रह्म परमात्मस्वरूप श्रीसद्गुरुदेव को वस्त्र पहनाते हैं.... सुगंधित चंदन का तिलक करते है.... सुगंधित गुलाब और मोगरे की माला पहनाते हैं.... मनभावन सात्विक प्रसाद का भोग लगाते हैं.... मन-ही-मन धूप-दीप से गुरु की आरती करते हैं...."
🚩इस प्रकार हर शिष्य मन-ही-मन अपने दिव्य भावों के अनुसार अपने सद्गुरुदेव का पूजन करके गुरुपूर्णिमा का पावन पर्व मना सकता है। करोड़ों जन्मों के माता-पिता, मित्र-सम्बंधी जो न से सके, सद्गुरुदेव वह हँसते-हँसते दे डा़लते हैं।
🚩'हे गुरुपूर्णिमा ! हे व्यासपूर्णिमा ! तु कृपा करना.... गुरुदेव के साथ मेरी श्रद्धा की डोर कभी टूटने न पाये.... मैं प्रार्थना करता हूँ गुरुवर ! आपके श्रीचरणों में मेरी श्रद्धा बनी रहे, जब तक है जिन्दगी.....
🚩आजकल के विद्यार्थी बडे़-बडे़ प्रमाणपत्रों के पीछे पड़ते हैं लेकिन प्राचीन काल में विद्यार्थी संयम-सदाचार का व्रत-नियम पाल कर वर्षों तक गुरु के सान्निध्य में रहकर बहुमुखी विद्या उपार्जित करते थे। भगवान श्रीराम वर्षों तक गुरुवर वशिष्ठजी के आश्रम में रहे थे। वर्त्तमान का विद्यार्थी अपनी पहचान बड़ी-बड़ी डिग्रियों से देता है जबकि पहले के शिष्यों में पहचान की महत्ता वह किसका शिष्य है इससे होती थी। आजकल तो संसार का कचरा खोपडी़ में भरने की आदत हो गयी है। यह कचरा ही मान्यताएँ, कृत्रिमता तथा राग-द्वेषादि बढा़ता है और अंत में ये मान्यताएँ ही दुःख में बढा़वा करती हैं। अतः मनुष्य को चाहिये कि वह सदैव जागृत रहकर सत्पुरुषों के सत्संग, सान्निध्य में रहकर परम तत्त्व परमात्मा को पाने का परम पुरुषार्थ करता रहे।
🚩संत गुलाबराव महाराजजी से किसी पश्चिमी व्यक्ति ने पूछा, ‘भारत की ऐसी कौनसी विशेषता है, जो न्यूनतम शब्दोंमें बताई जा सकती है ?’ तब महाराजजीने कहा, ‘गुरु-शिष्य परंपरा’ । इससे हमें इस परंपराका महत्त्व समझमें आता है । ऐसी परंपराके दर्शन करवानेवाला पर्व युग-युगसे मनाया जा रहा है, तथा वह है, गुरुपूर्णिमा ! हमारे जीवनमें गुरुका क्या स्था�� है, गुरुपूर्णिमा हमें इसका स्पष्ट पाठ पढ़ाती है ।
🚩आज भारत देश में
जाय तो महान संतों पर आघात किया जा रहा है, अत्याचार किया जा रहा है, जिन संतों ने हमेशा देश का मंगल चाहा है । जो भारत का उज्जवल भविष्य देखना चाहते हैं । लेकिन आज उन्ही संतों को टारगेट किया जा रहा है ।
🚩भारत में थोड़ी बहुत जो सुख-शांति, चैन- अमन और सुसंस्कार बचे हुए हैं तो वो संतों के कारण ही है और संतों, गुरुओं को चाहने और मानने वाले शिष्यों के कारण ही है ।
🚩लेकिन उन्ही संतों पर षड़यंत्र करके भारतवासियों की श्रद्धा के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है ।
🚩"भारतवासियों को ही गुमराह करके संतों के प्रति भारतवासियों की आस्था को तोड़ा जा रहा है ।"
अतः देशविरोधी तत्वों से सावधान रहें ।
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rastranews · 4 years ago
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माघ मास महात्म्य, चौथा अध्याय
माघ मास महात्म्य, चौथा अध्याय
श्री चित्रकूटं शरणम् प्रपद्ये श्री वशिष्ठजी कहने लगे कि हे राजन! अब मैं माघ के उस माहात्म्य को कहता हूँ जो कार्तवीर्य के पूछने पर दत्तात्रेय ने कहा था. जिस समय साक्षात विष्णु के रुप श्री दत्तात्रेय सत्य पर्वत पर रहते थे तब महिष्मति के राजा सहस्रार्जुन ने उनसे पूछा कि हे योगियों में श्रेष्ठ दत्तात्रेयजी! मैंने सब धर्म सुने हैं अब आप कृपा करके मुझे माघ मास का माहात्म्य कहिए। तब दत्तात्रेय जी बोले…
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santshriasharamjiashram · 4 years ago
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यदि आत्मज्ञान मे रूचि नही है तो.. ऐसी दुर्गति की तैयारी करो.. ! Motivational Video
यदि आत्मज्ञान मे रूचि नही है तो.. ऐसी दुर्गति की तैयारी करो.. ! Motivational Video
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वशिष्ठजी ने दिया श्री राम भगवान को सत्संग
संसार नाशवान है
मनुष्य को पुरुषार्थ करना चाहिए
मनुष्य जन्म आत्म साक्षात्कार करने के लिए ही मिला है
मैं सच्चिदानंद परमात्मा स्वरुप हूं
ब्रह्मज्ञानी संत और उनके सत्संग से ही समाज और मनुष्य को परम लाभ
जीवन में विवेक और वैराग्य लेकर आओ
मनुष्य को हमेशा सम रहना चाहिए
मनुष्य को भोग नहीं भोगना होना चाहिए
विश्व परमात्मा स्वरुप है
संत…
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272 अयोध्या का दरबार आज अयोध्या में बहुत दिनों बाद दरबार लगा है। राजसिंहासन सूना पड़ा है, वशिष्ठजी सभाध्यक्ष हैं।
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*कामदा एकादशी*
*15 अप्रैल 2019 को प्रातः 07:08 से 16 अप्रैल, को प्रातः 04:22 तक एकादशी है ।*
*विशेष ~ 16 अप्रैल 2019 मंगलवार को एकादशी व्रत (उपवास) रखें ।*
🙏🏻 *युधिष्ठिर ने पूछा: वासुदेव ! आपको नमस्कार है ! कृपया आप यह बता��ये कि चैत्र शुक्लपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है?*
🙏🏻 *भगवान श्रीकृष्ण बोले : राजन् ! एकाग्रचित्त होकर यह पुरातन कथा सुनो, जिसे वशिष्ठजी ने राजा दिलीप के पूछने पर कहा था ।*
🙏🏻 *वशिष्ठजी बोले : राजन् ! चैत्र शुक्लपक्ष में ‘कामदा’ नाम की एकादशी होती है । वह परम पुण्यमयी है । पापरुपी ईँधन के लिए तो वह दावानल ही है ।*
🙏🏻 *प्राचीन काल की बात है: नागपुर नाम का एक सुन्दर नगर था, जहाँ सोने के महल बने हुए थे । उस नगर में पुण्डरीक आदि महा भयंकर नाग निवास करते थे । पुण्डरीक नाम का नाग उन दिनों वहाँ राज्य करता था । गन्धर्व, किन्नर और अप्सराएँ भी उस नगरी का सेवन करती थीं । वहाँ एक श्रेष्ठ अप्सरा थी, जिसका नाम ललिता था । उसके साथ ललित नामवाला गन्धर्व भी था । वे दोनों पति पत्नी के रुप में रहते थे । दोनों ही परस्पर काम से पीड़ित रहा करते थे । ललिता के हृदय में सदा पति की ही मूर्ति बसी रहती थी और ललित के हृदय में सुन्दरी ललिता का नित्य निवास था ।*
🙏🏻 *एक दिन की बात है । नागराज पुण्डरीक राजसभा में बैठकर मनोंरंजन कर रहा था । उस समय ललित का गान हो रहा था किन्तु उसके साथ उसकी प्यारी ललिता नहीं थी । गाते गाते उसे ललिता का स्मरण हो आया । अत: उसके पैरों की गति रुक गयी और जीभ लड़खड़ाने लगी ।*
🙏🏻 *नागों में श्रेष्ठ कर्कोटक को ललित के मन का सन्ताप ज्ञात हो गया, अत: उसने राजा पुण्डरीक को उसके पैरों की गति रुकने और गान में त्रुटि होने की बात बता दी । कर्कोटक की बात सुनकर नागराज पुण्डरीक की आँखे क्रोध से लाल हो गयीं । उसने गाते हुए कामातुर ललित को शाप दिया : ‘दुर्बुद्धे ! तू मेरे सामने गान करते समय भी पत्नी के वशीभूत हो गया, इसलिए राक्षस हो जा ।’*
🙏🏻 *महाराज पुण्डरीक के इतना कहते ही वह गन्धर्व राक्षस हो गया । भयंकर मुख, विकराल आँखें और देखनेमात्र से भय उपजानेवाला रुप - ऐसा राक्षस होकर वह कर्म का फल भोगने लगा ।*
🙏🏻 *ललिता अपने पति की विकराल आकृति देख मन ही मन बहुत चिन्तित हुई । भारी दु:ख से वह कष्ट पाने लगी । सोचने लगी: ‘क्या करुँ? कहाँ जाऊँ? मेरे पति पाप से कष्ट पा रहे हैं…’*
🙏🏻 *वह रोती हुई घने जंगलों में पति के पीछे पीछे घूमने लगी । वन में उसे एक सुन्दर आश्रम दिखायी दिया, जहाँ एक मुनि शान्त बैठे हुए थे । किसी भी प्राणी के साथ उनका वैर विरोध नहीं था । ललिता शीघ्रता के साथ वहाँ गयी और मुनि को प्रणाम करके उनके सामने खड़ी हुई । मुनि बड़े दयालु थे । उस दु:खिनी को देखकर वे इ�� प्रकार बोले : ‘शुभे ! तुम कौन हो ? कहाँ से यहाँ आयी हो? मेरे सामने सच सच बताओ ।’*
🙏🏻 *ललिता ने कहा : महामुने ! वीरधन्वा नामवाले एक गन्धर्व हैं । मैं उन्हीं महात्मा की पुत्री हूँ । मेरा नाम ललिता है । मेरे स्वामी अपने पाप दोष के कारण राक्षस हो गये हैं । उनकी यह अवस्था देखकर मुझे चैन नहीं है । ब्रह्मन् ! इस समय मेरा जो कर्त्तव्य हो, वह बताइये । विप्रवर! जिस पुण्य के द्वारा मेरे पति राक्षसभाव से छुटकारा पा जायें, उसका उपदेश कीजिये ।*
🙏🏻 *ॠषि बोले : भद्रे ! इस समय चैत्र मास के शुक्लपक्ष की ‘कामदा’ नामक एकादशी तिथि है, जो सब पापों को हरनेवाली और उत्तम है । तुम उसीका विधिपूर्वक व्रत करो और इस व्रत का जो पुण्य हो, उसे अपने स्वामी को दे डालो । पुण्य देने पर क्षणभर में ही उसके शाप का दोष दूर हो जायेगा ।*
🙏🏻 *राजन् ! मुनि का यह वचन सुनकर ललिता को बड़ा हर्ष हुआ । उसने एकादशी को उपवास करके द्वादशी के दिन उन ब्रह्मर्षि के समीप ही भगवान वासुदेव के (श्रीविग्रह के) समक्ष अपने पति के उद्धार के लिए यह वचन कहा: ‘मैंने जो यह ‘कामदा एकादशी’ का उपवास व्रत किया है, उसके पुण्य के प्रभाव से मेरे पति का राक्षसभाव दूर हो जाय ।’*
🙏🏻 *वशिष्ठजी कहते हैं : ललिता के इतना कहते ही उसी क्षण ललित का पाप दूर हो गया । उसने दिव्य देह धारण कर लिया । राक्षसभाव चला गया और पुन: गन्धर्वत्व की प्राप्ति हुई ।*
🙏🏻 *नृपश्रेष्ठ ! वे दोनों पति पत्नी ‘कामदा’ के प्रभाव से पहले की अपेक्षा भी अधिक सुन्दर रुप धारण करके विमान पर आरुढ़ होकर अत्यन्त शोभा पाने लगे । यह जानकर इस एकादशी के व्रत का यत्नपूर्वक पालन करना चाहिए ।*
🙏🏻 *मैंने लोगों के हित के लिए तुम्हारे सामने इस व्रत का वर्णन किया है । ‘कामदा एकादशी’ ब्रह्महत्या आदि पापों तथा पिशाचत्व आदि दोषों का नाश करनेवाली है । राजन् ! इसके पढ़ने और सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है ।*
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dixitgvns · 7 years ago
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👏👏 कल से आगे - भाई-बहनों, कल के आर्टिकल को आगे बढ़ाते हुए आज हम सप्तऋषियों के बारे में चिन्तन मनन करेंगे, राजा दशरथजी के कुलगुरु वशिष्ठ ऋषि को कौन नहीं जानता, ये दशरथजी के चारों पुत्रों के गुरु थे, वशिष्ठजी के कहने पर दशरथजी ने अपने दो पुत्रों को ऋषि विश्वामित्रजी के साथ आश्रम में राक्षसों का वध करने के लिये भेज दिया था। कामधेनु गाय के लिये ऋषि वशिष्ठजी और विश्वामित्रजी में युद्ध भी हुआ था, वशिष्ठजी ने राजसत्ता पर अंकुश का विचार किया तो उन्हीं के कुल के मैत्रावरूण वशिष्ठजी ने सरस्वती नदी के किनारे सौ सूक्त एक साथ रचकर नया इतिहास बनाया, ऋषि होने के पूर्व विश्वामित्रजी राजा थे, और ऋषि वशिष्ठजी से कामधेनु गाय को हड़पने के लिए उन्होंने युद्ध किया था। लेकिन विश्वामित्रजी हार गये, इस हार ने ही उन्हें घोर तपस्या के लिए प्रेरित किया, विश्वामित्रजी की तपस्या और मेनका द्वारा उनकी तपस्या भंग करने की कथा जगत प्रसिद्ध है, विश्वामित्रजी ने अपनी तपस्या के बल पर त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग भेज दिया था, इस तरह ऋषि विश्वामित्रजी के असंख्य किस्से हैं, सज्जनों! माना जाता है कि हरिद्वार में आज जहां शांतिकुंज हैं उसी स्थान पर विश्वामित्र ने घोर तपस्या करके इंद्र से रुष्ठ होकर एक अलग ही स्वर्ग लोक की रचना कर दी थी। विश्वामित्रजी ने इस देश को ऋचा बनाने की विद्या दी, और गायत्री मन्त्र की रचना की जो भारत के हृदय में और जिह्ना पर हजारों सालों से आज तक अनवरत निवास कर रहा है, माना जाता है इस देश के सबसे महत्वपूर्ण यज्ञ सोमयज्ञ को कण्वों ने व्यवस्थित किया, कण्व वैदिक काल के ऋषि थे, इन्हीं के आश्रम में हस्तिनापुर के राजा दुष्यंतजी की पत्नी शकुँतलाजी एवं उनके पुत्र भरतजी का पालन-पोषण हुआ था। वैदिक ऋषियों में ऋषि भारद्वाजजी का उच्च स्थान है, भारद्वाजजी के पिता बृहस्पतिजी और माता ममताजी थीं, ऋषि भारद्वाजजी रामजी के पूर्व हुये थे, लेकिन रामायण के एक उल्लेख के अनुसार उनकी लंबी आयु का पता चलता है कि वनवास के समय श्रीरामजी भारद्वाजजी के आश्रम में गये थे, जो ऐतिहासिक दृष्टि से त्रेता-द्वापर का सन्धिकाल था। माना जाता है कि भरद्वाजों में से एक भारद्वाज विदथ ने दुष्यन्तजी के पुत्र भरतजी का उत्तराधिकारी बन राजकाज करते हुये मन्त्र रचना जारी रखी, ऋषि भारद्वाजजी के पुत्रों में दस ऋषि ऋग्वेद के मन्त्रदृष्टा हैं, और एक पुत्री जिसका नाम रात्रि था, वह भी रात्रि सूक्त की मन्त्रदृष्टा मानी गई हैं, ॠग्वेद के छठे मण्डल के द्रष्टा ऋषि भारद्वाजजी हैं, इस मण्डल में भारद्वाजजी के 765 मन्त्र हैं, अथर्ववेद में भी (at Banaras Hindu University)
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