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#ललक
kaminimohan · 10 months
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Free tree speak काव्यस्यात्मा 1417.
किसी को कहीं छोड़ कर आना
-© कामिनी मोहन।
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किसी को कहीं छोड़ कर आना
इतना सरल नहीं होता है
इस कठिनाई में छूट जाता है
एक गुज़रा हुआ अतीत
मैंने छोड़ा था, तुम्हें वहाँ
जहाँ से सारे सहारे अलग हो जाते हैं
अकेले कमरे में सिसकता हुआ रुदन
एक भय एक अपनेपन की कमी के साथ
बिल्कुल अकेले।
प्रेम और मोह का अंतर स्पष्ट नहीं
दुख है या कुछ और इसकी समझ नहीं
पूरे दिन की यात्रा और चुप्पी
आँसू को पीकर शांत
बस यूँ ही वापस होता रहा
दिन भर का सफ़र ख़त्म होता रहा
चुप्पी ख़त्म, बाँध रिसता रहा।
डबडबाती हुई स्मृतियाँ
और फफक कर बरसती सिसकियाँ
कविता रचती रही
एक उम्र जो मैंने बिताए थे
उसे आगे बढ़ाने की ललक में
आज तुम्हें अपने से दूर छोड़ कर चले आए थे।
शायद यही नियति है
पाँव पर खड़े होने की विनती है
जिस रास्ते से तुम्हें छोड़कर आए थे
वो रास्ते अभी भी लौटकर वापस नहीं आए है
तलाश है, उन्हें प्राण के प्रवाह की
टकटकी लगाए प्रेम के आस की
दर्पण की तरह देखने की।
ख़ंजर-सी चुभन है प्रेम की
कोई तृष्णा नहीं
चलते हुए
ढूँढ़ती हैं सड़के
भारी होते मन को
रोकती नहीं
पर देखती हैं सड़के।
दरवाज़े की ड्योढ़ी के दोनों तरफ
चलने को अभिशप्त तन को
यक़ीन है
इल्ज़ाम रहेगा मुझ पर
अफ़सोस न कहने का रहेगा मुझ पर।
रोज़ प्रेम की पुनर्व्याख्या को
आने और जाने वाले नज़्मों की आख्या को
अतिरेक से उकेरे शक्ल की व्याख्या को
भला यहाँ पढ़ सका कौन है
अरचित दुख की लिपि है
हर युग में जो अव्यक्त
अदृश्य रह सका वो मौन है।
-© कामिनी मोहन पाण्डेय।
kaminimohan
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apnaran · 17 days
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Sankalp: किसी भी कार्य को पूरा करने के लिए संकल्प का होना जरुरी
Sankalp: आप यदि कोई काम करने जा रहे हैं पर उस काम के प्रति आपका कोई संकल्प या करने की ललक नहीं है तो ऐसे में ज्यादा स्थिति यह बन सकती हैं कि आप जो काम करने जा रहे हैं वह या तो बीच रास्ते में छूट जाएगा या फिर आपका मोह उस कार्य से हट जाएगा। जो कि आपके तरक्की के राह में बड़ी बाधा भी बन सकती है। आइए इस पोस्ट के माध्यम से जाने ऐसा क्यों… एक समय की बात है जब बुद्ध अपने शिष्यों को पढ़ा रहे थे, उन्होंने…
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sharpbharat · 3 months
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Horoscope Know Your Day Wednesday 3rd July 2024 - राशिफल, जानें कैसा होगा आपका दिन-बुधवार 3 जुलाई 2024
मेष राशिस्वयं को उत्साही बनाए रखने के लिए अपनी कल्पनाओं में कोई शानदार तस्वीर बनाएं। आर्थिक रुप से आज आप काफी मजबूत नजर आयेंगे, ग्रह नक्षत्रों की चाल से आज आपके लिए धन कमाने के कई मौके बनेंगे। घर का कुछ समय से टलता आ रहा काम-काज आपका थोड़ा वक्त ले सकता है। किसी से आंखें चार होनी की काफी संभावना है। नई चीजों को सीखने की आपकी ललक शानदार है। दिन उम्दा है, आज के दिन अपने लिए समय निकालें और अपनी कमियों…
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ashfaqqahmad · 5 months
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काया पलट
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क्राईम फिक्शन के हैशटैग के अंतर्गत डेविड फ्रांसिस सीरीज़ का ‘डेढ़ सयानी’ के बाद यह दूसरा उपन्यास है— लेकिन क्रम में इसे पहले नंबर पर रखा जायेगा, क्योंकि डेविड के जीवन का पहला लिखने योग्य पंगा इसी कहानी में सामने आता है। यूं समझिये कि ‘डेढ़ सयानी’ प्रकाशित भले पहले हुई हो, लेकिन वह कहानी बाद की है, जिसे अगले एडिशन में सही क्रम दिया जायेगा… इसी वजह से इसे इस सीरीज़ का पहला क्रमांक दिया गया है, जो चीज़ पाठकों को कन्फ्यूज कर सकती है। डेढ़ सयानी का क्रम उन कहानियों के बाद आयेगा, जो डेविड ने अब याद करनी और लिखनी शुरू की हैं।
यह एक तरह से डेविड की अतीत यात्रा है— वह पैसिफिक के एक आईलैंड पर बैठ कर अपने उस अतीत को याद कर रहा है, जो लिखने योग्य है। इस अतीत में ही उसके चरित्र का विकास है। उसके साधारण से श्रेष्ठ बनने का सफ़र है। एक आम आदमी से जेम्स बॉण्ड बनने की पड़ावों से भरी प्रक्रिया है। जो आदमी वर्तमान में दस गुंडों को अकेले और निहत्थे पीटने की क्षमता रखता हो— उसके अपने से कम दो मामूली लड़कों से पिट जाने की दास्तान है। इस यात्रा में डेविड के अतीत से जुड़ी नौ कहानियां सामने आयेंगी— जिन्होंने इस कैरेक्टर को दशा और दिशा दी है।
जिन पाठकों ने ‘डेढ़ सयानी’ नहीं पढ़ी, उन्हें इस कैरेक्टर के बारे में बता दूं कि यह एक योरोपियन पिता और भारतीय माँ से उत्पन्न संतान है, जो आर्थिक रूप से काफ़ी सम्पन्न है। किसी तरह जिसे बचपन से ही जासूसी किताबों और फिल्मों का चस्का लग गया और उसकी फितरत में वैसा ही कोई कैरेक्टर बनने की जो ललक पैदा हुई तो उसके व्यक्तित्व का विकास भी उसी मिज़ाज के अनुरूप होने लगा। इस आकर्षण के चलते ही जिसने शुरू से ही हर तरह की ट्रेनिंग ली, और हर तरह के तकनीकी ज्ञान में भी दक्षता हासिल की। फिर जब जवान होने और पढ़ाई पूरी होने के साथ ही माता-पिता एक रोड एक्सीडेंट में एक्सपायर हो गये, तो वह भी मुक्त हो कर अपने जेम्स बॉण्ड बनने के सफ़र पर निकल पड़ा।
लेकिन व्यवहारिक रूप से ऐसा कुछ हो पाना आसान नहीं होता। क़दम-क़दम पर पेश होने वाली मुसीबतें असल स्किल और जीजिविषा का सख़्त इम्तिहान लेती हैं— यह अलग बात है कि इन मुसीबतों से हार मान कर पीछे हटने के बजाय वह आगे बढ़ता जाता है और उसकी शख्सियत निखरती जाती है। ख़ुद को बारहा ख़तरे में डाल कर, निश्चित दिखती मौत के मुंह से अपने को वापस खींच कर, अंततः वह वैसा बनने में कामयाबी पाता है, जो वह होना चाहता था। ख़ुद को जासूसी दुनिया के किसी फिक्शनल किरदार की तरह ड्वेलप करना और दुनिया भर के अपराधियों को उनके अंजाम तक पहुंचाने की सोच रखना उसका एक खब्त था— लेकिन यही अकेला खब्त नहीं था।
उसे प्रकृति से भी कम लगाव नहीं था, वह ज़र्रे-ज़र्रे में एक अप्रतिम सौंदर्य ढूंढने का जज़्बा रखता था। उसे सब्ज़ जंगलों से प्यार था, उसे सूखे रेगिस्तानों से प्यार था, उसे गहरे समंदरों से प्यार था, उसे गर्व से सीना ताने खड़े पहाड़ों से प्यार था। वह पूरी दुनिया को घूम लेना और देख लेना चाहता था— चप्पे-चप्पे को महसूस करना चाहता था और सृष्टि रचियता की उस कारीगरी को निहारना चाहता था, जो हर जगह थी… ज़मीन के हर हिस्से में थी।
लेकिन यह दो शौक ही नहीं थे, जो उसके सर पर खब्त की तरह सवार थे, बल्कि जितनी दिलचस्पी उसे इन दोनों चीज़ों में थी, लड़कियों में उससे कम दिलचस्पी नहीं थी। औरत के मामले में उसका अपना दर्शन था— वह ज़मीन के हर हिस्से में पाई जाने वाली, हर रंग और नस्ल की औरत को भोग लेना चाहता था लेकिन ऐसे किसी रिश्ते में बंधना उसे स्वीकार नहीं था, जो उससे ज़िम्मेदारी की डिमांड करता हो। लड़कियां उसकी कमज़ोरी थीं और उसने जवान होने के बाद से ही ‘आई कांट सी ए डैमसेल इन डिस्ट्रेस’ के सिद्धांत को अपना रखा था— उसकी ज़िंदगी के ज्यादातर पंगे तो इसी सिद्धांत के चलते थे।
तो यह कैरेक्टर ड्वेलप होने के साथ वह सब पाता है, जो इसने पाना चाहा था, लेकिन जहां से इसकी यह फसादी यात्रा शुरू होती है— वहां इसके साथ कुछ चमत्कार जैसा घटा था… जब सात अक्तूबर की रात दिल्ली से मुंबई पहुंच कर वह अपने घर में सोता है और उठता है तो पाता है कि तारीख़ पंद्रह अक्तूबर हो चुकी थी, वह अपनी वास्तविक उम्र से पच्चीस-तीस साल बड़ा और अधेड़ हो चुका था, उसका शरीर भी काफ़ी हद तक बदल चुका था, मुंबई के बजाय अब वह न्यूयार्क में किसी जगह था, अपने घर के बजाय एक आलीशान घर में था और सबसे बड़ी बात कि अब वह डेविड भी नहीं रहा था, बल्कि न्यूयार्क के टॉप लिस्टेड अमीरों में से एक अमीर राईन स्मिथ बन चुका था।
अब ऐसा कैसे हुआ… सोते-सोते उसका शरीर, उसकी उम्र, उसकी जगह, उसकी हैसियत कैसे बदल गई— इस गुत्थी को सुलझाने का नाम ही ‘काया पलट’ है।
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satyam-mathematics · 6 months
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1.अंधकार से प्रेरणा कैसे प्राप्त करें? (How to Draw Inspiration from Darkness?),अन्धकार से प्रेरणा प्राप्त करने की 5 रणनीतियाँ (5 Strategies to Draw Inspiration from Darkness):
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अंधकार से प्रेरणा कैसे प्राप्त करें? (How to Draw Inspiration from Darkness?) व्यक्ति चाहे तो क्या नहीं कर सकता है।अंधकार क्या,पत्थर,पेड़-पौधों,पशु-पक्षियों,जलचरों आदि से प्रेरणा प्राप्त करके भी आगे बढ़ा जा सकता है।यदि व्यक्ति में ललक,जिज्ञासा है तो उसे आगे बढ़ने से कोई भी नहीं रोक सकता है।
Read More:How to Draw Inspiration from Darkness?
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100newsup · 7 months
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Hardoi: श्रीमद्भागवत कथा के छठे दिन भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का किया वर्णन
बेनीगंज/हरदोई: अहिरोरी ब्लाक के काईमऊ गांव में श्रीमद्भागवत कथा के पांचवें दिन कथा समापन पर श्री श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया गया। वासुदेव बने स्थानीय ब्रजेश तिवारी जब नन्हें से कृष्णा को लेकर कथा प्रांगन में पहुंचें तो श्रोताओं में कृष्ण जी के दर्शन की ललक मानो अत्यंत प्यासा होने का संदेश दे रही हो। तत्पश्चात छठे दिन बृहस्पतिवार को भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन किया गया। इस…
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abhinews1 · 7 months
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जी.एल. बजाज के छात्र-छात्राओं को किया उद्यमिता की ओर प्रेरित
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जी.एल. बजाज के छात्र-छात्राओं को किया उद्यमिता की ओर प्रेरित
मथुरा। स्टार्टअप्स की बढ़ती संख्या और इसके प्रति रुझान बताता है कि युवा अपने इनोवेटिव आइडिया तथा विजन की बदौलत नया बिजनेस शुरू करने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं। एक बिजनेस आइडिया को सफल कारोबार में तब्दील करना आसान नहीं होता। इसके लिए कई प्रकार की तैयारी करने के साथ योजना बनानी पड़ती है, जिससे कि आइडिया को सही तरीके से क्रियान्वित किया जा सके। यह बातें जी.एल. बजाज ग्रुप आफ इंस्टीट्यूशंस मथुरा के प्रबंधन अध्ययन विभाग और इंस्टीट्यूशंस इन्वोशल काउन्सिल के तत्वावधान में आयोजित कार्यशाला के अतिथि वक्ता डॉ. राहुल कपूर (टर्निप इनोवेशन्स के संस्थापक और निदेशक) ने एम.बी.ए. और बी.टेक के छात्र-छात्राओं को बताईं। अतिथि वक्ता डॉ. कपूर जिन्हें बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के लिए पेटेंट एनालिटिक्स, शोध, शिक्षण, पेटेंट सर्च और परामर्श में व्यापक अनुभव है, ने छात्र-छात्राओं को बताया कि आज के समय में एंटरप्रेन्योरशिप मैनेजमेंट, एंटरप्रेन्योरशिप डेवलपमेंट, सोशल एंटरप्रेन्योरशिप जैसे स्पेशलाइज्ड कोर्सेज को लेकर काफी उत्साह देखा जा रहा है, क्योंकि इनकी मदद से उद्यमिता में करियर बनाने के इच्छुक युवा अपनी स्किल, नॉलेज एवं एटीट्यूड तीनों को बेहतर तरीके से विकसित कर सकते हैं। अतिथि वक्ता ने कहा कि युवा पीढ़ी उद्यमिता की ओर तेजी से अग्रसर है। वह जोखिम लेने से भी संकोच नहीं कर रही और नये आत्मविश्वास के साथ देश की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में योगदान दे रही है। डॉ. राहुल कपूर ने छात्र-छात्राओं को बताया कि प्रबंधन अध्ययन क्षेत्र में उज्ज्वल और गतिशील भविष्य है। उन्होंने कहा कि अब युवा समझने लगे हैं कि अर्थव्यवस्था के विकास में उद्यमिता कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। इसलिए शीर्ष से लेकर तमाम अन्य इंजीनियरिंग एवं तकनीकी संस्थानों से निकलने वाले ग्रेजुएट्स नौकरी में जाने के बजाय अपने इनोवेटिव आइडियाज के जरिये आसपास की समस्याओं का समाधान निकालने के प्रयास में जुट रहे हैं। स्टार्टअप से न सिर्फ उनका खुद का विकास हो रहा है बल्कि वे प्रतिभाशाली युवाओं के लिए भी अवसर उपलब्ध करा रहे हैं। संस्थान की निदेशक प्रो. नीता अवस्थी ने कहा कि एंटरप्रेन्योरशिप में वह क्षमता है, जिससे देश की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ किया जा सकता है। विभिन्न समस्याओं का समाधान निकालकर समाज में व्यापक बदलाव लाया जा सकता है। काम करने के नये अवसर उत्पन्न किए जा सकते हैं तथा स्किल डेवलपमेंट किया जा सकता है। प्रो. अवस्थी ने कहा कि जो भी बड़े सपने देखने में विश्वास करता है, जुनूनी है, धैर्य के साथ काम कर सकता है, जिसमें सीखने की ललक है, दूसरों को सुनने की क्षमता है, वैसे सभी लोग उद्यमिता में अपना चमकदार भविष्य बना सकते हैं। अंत में प्रबंधन अध्ययन विभाग के प्रमुख डॉ. शशि शेखर ने अतिथि वक्ता डॉ. कपूर तथा निदेशक प्रो. नीता अवस्थी को उनके मूल्यवान योगदान के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया।
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pankaj1973 · 9 months
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*🌞~ आज दिनांक 13 जनवरी 2024 रविवार का हिन्दू पंचांग ~🌞*
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https://youtu.be/oAAXKhpHS7Q?si=Jf3VpDOF5Jkf_29v
*⛅दिनांक - 13 जनवरी 2024*
*⛅दिन - शनिवार*
*⛅विक्रम संवत् - 2080*
*⛅अयन - उत्तरायण*
*⛅ऋतु - शिशिर*
*⛅मास - पौष*
*⛅पक्ष - शुक्ल*
*⛅तिथि - द्वितीया सुबह 11:11 तक तत्पश्चात तृतीया*
*⛅नक्षत्र - श्रवण दोपहर 12:49 तक तत्पश्चात धनिष्ठा*
*⛅योग - वज्र सुबह 10:14 तक तत्पश्चात सिद्धि*
*⛅राहु काल - सुबह 10:06 से 11:27 तक*
*⛅सूर्योदय - 07:23*
*⛅सूर्यास्त - 06:14*
*⛅दिशा शूल - पूर्व*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:38 से 06:30 तक*
*⛅निशिता मुहूर्त - रात्रि 12:22 से 01:15 तक*
*⛅व्रत पर्व विवरण - पंचक (आरम्भ रात्रि 11:35)*
*⛅विशेष - द्वितीया को बृहती (छोटा बैंगन या कटेहरी) खाना निषिद्ध है । तृतीया को परवल खाना शत्रुओं की वृद्धि करने वाला है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
*🌹 सूर्योपासना का पावन पुण्यदायी पर्व – मकर संक्रांति – 15 जनवरी 2024*
*🌹 संक्रांति का स्नान रोग, पाप और निर्धनता को हर लेता है । जो उत्तरायण पर्व के दिन स्नान नहीं कर पाता वह ७ जन्म तक रोगी और दरिद्र रहता है ऐसा शास्त्रों में कहा गया है ।*
*🌹 संक्रांति के दिन देवों को दिया गया हव्य (यज्ञ, हवन आदि में दी जानेवाली आहुति के द्रव्य ) और पितरों को दिया गया कव्य (पिंडदान आदि में दिया जानेवाला द्रव्य ) सूर्यदेव की करुणा-कृपा के द्वारा भविष्य के जन्मों में कई गुना करके तुम्हें लौटाया जाता है ।*
*🌹 मकर संक्रांति के दिन किये हुए शुभ कर्म करोड़ों गुना फलदायी होते हैं । सुर्यापासना और सूर्यकिरणों का सेवन, सूर्यदेव का ध्यान विशेष लाभकारी है ।*
*🌹 इस दिन तो सूर्यदेव के मूलमंत्र का जप करना बहुत हितकारी रहेगा, और दिन भी करें तो अच्छा है । आप जीभ तालू में लगाकर इसे पक्का करिये । अश्रद्धालु, नास्तिक व विधर्मी को यह मंत्र नहीं फलता । यह तो भारतीय संस्कृति के सपूतों के लिए है । बच्चों की बुद्धि बढ़ानी हो तो पहले इस मंत्र की महत्ता बताओ, उनकी ललक जगाओ, बाद में उनको मंत्र बताओ ।*
*मंत्र है : ॐ ह्रां ह्रीं स: सूर्याय नम: । (पद्म पुराण)*
*🌹 यह सूर्यदेव का मूलमंत्र है । इससे तुम्हारा सुर्यकेन्द्र सक्रिय होगा और यदि भगवान् सूर्य का भ्रूमध्य में ध्यान करोगे तो तुम्हारी बुद्धि के अधिष्ठाता देव की कृपा विशेष आयेगी । बुद्धि में ब्रह्मसुख, ब्रह्मज्ञान का सामर्थ्य आयेगा । अगर नाभि में सूर्यदेव का ध्यान करोगे तो आरोग्य-केंद्र सक्षम रहेगा, आप बिना दवाइयों के निरोग रहोगे ।*
*📖 लोक कल्याण सेतु – दिसम्बर २०१९*
*🌹 शनिवार के दिन विशेष प्रयोग 🌹*
*🌹 शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष का दोनों हाथों से स्पर्श करते हुए 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र का 108 बार जप करने से दुःख, कठिनाई एवं ग्रहदोषों का प्रभाव शांत हो जाता है । (ब्रह्म पुराण)*
*🌹 हर शनिवार को पीपल की जड़ में जल चढ़ाने और दीपक जलाने से अनेक प्रकार के कष्टों का निवारण होता है । (पद्म पुराण)*
*🔹आर्थिक कष्ट निवारण हेतु🔹*
*🔹एक लोटे में जल, दूध, गुड़ और काले तिल मिलाकर हर शनिवार को पीपल के मूल में चढ़ाने तथा ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र जपते हुए पीपल की ७ बार परिक्रमा करने से आर्थिक कष्ट दूर होता है ।*
*📖 ऋषि प्रसाद - मई 2018 से*
https://t.me/asharamjiashram/6496
*🌞संत श्री आशारामजी बापू आश्रम🌞*
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mewaruniversity · 9 months
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मेवाड़ विश्वविद्यालय हॉस्पिटल, गंगरार में व्यवसायिक शिक्षा ट्रेड "हेल्थ केयर" में 10 दिवसीय इंटर्नशिप कार्यक्रम संपन्न हुआ।
मेवाड़ विश्वविद्यालय हॉस्पिटल, गंगरार के द्वारा गंगरार तहसील के बुढ ग्राम स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय के 11वीं व 12वीं कक्षा के छात्रों के लिए शीतकालीन अवकाश में स्कूल व्यवसायिक शिक्षा ट्रेड "हेल्थ केयर" का 10 दिवसीय प्रशिक्षण संपन्न हुआ। इस अवसर पर मेवाड़ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. (डॉ.) आलोक मिश्रा ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारत एक विकासशील देश है और आने वाला समय में स्वास्थ्य के क्षेत्र में रोजगार की अपार संभावनाएं हैं। उन्होंने बताया कि वोकेशनल कोर्स जहां स्टूडेंट्स को कोई खास स्किल सिखाते हैं, वहीं इससे उनमें आत्मविश्वास और आगे बढ़ने की ललक भी पैदा होती है। व्यवसायिक शिक्षा में दिलचस्पी बढ़ाने के लिए बुनियादी शिक्षा से ही विद्यार्थी को प्रशिक्षित किया जाता है। स्वास्थ्य शिक्षा के क्षेत्र में भी उच्च शिक्षा के लिए मेवाड़ विश्वविद्यालय में पैरामेडिकल विषय के विभिन्न प्रकार के कोर्स और डिप्लोमा कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा युवा स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़कर अपना भविष्य संवार सकें।
इस मौके पर चिकित्सा अधीक्षक डॉ. ज्ञान माहेश्वरी ने बताया हेल्थ केयर कोर्स में 12वीं कक्षा पास करने के बाद छात्र किस फिल्ड में काम कर सकते है ,आगे पढ़ सकते हैं एवं छात्रों को बदलते परिवेश और तकनीक के साथ जोड़ना इत्यादि के बारे में भी जानकारी दी गई। साथ ही चिकित्सा अधीक्षक डॉ. ज्ञान माहेश्वरी ने छात्रों को हॉस्पिटल मे फ्रंट डेस्क, वार्ड मैनेजमेंट, फर्स्ट एड किट, NICU/ PICU, आपातकालीन परिस्थिति में मरीज की देखभाल, ऑपरेशन थिएटर आदि के बारे में विस्तृत जानकारी बच्चो को बताई।
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dainiksamachar · 9 months
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ऋषभ पंत की तरह कार हादसे में हुआ था घायल, मौत को मात देकर क्रिकेट के मैदान पर बना रहा नाम
केपटाउन: आठ साल पहले फर्स्ट क्लास डेब्यू करने वाले 21 वर्ष के की आंखों में कई सपने थे। हर युव��� खिलाड़ी की तरह वो भी इंटरनेशनल क्रिकेट खेलना चाहते थे। साउथ अफ्रीका के हीरो बनना चाहते थे। क्रिकेट जगत में अपनी अलग पहचान बनाना चाहते थे। लेकिन फिर उनके साथ ऋषभ पंत वाली घटना हो गई, 2016 में भयावह कार एक्सीडेंट। फिर से क्रिकेट खेलने की उम्मीद खत्म हो गई थी। लेकिन बेडिंगहम ने हार नहीं मानी। घटना के बावजूद उनके सपने नहीं टूटे थे और न ही उन्होंने हालात से समझौता किया। मौत से लड़ते रहे और उसे मात देकर एक ही साल में क्रिकेट के मैदान पर लौट आए। भारत के खिलाफ पहले टेस्ट में डेब्यू देश के लिये क्रिकेट खेलने की ललक उन्हें फिर मैदान पर ले आई। प्रथम श्रेणी क्रिकेट में 89 मैचों में 6000 रन बनाने के बाद सेंचुरियन में पिछले सप्ताह भारत के खिलाफ दक्षिण अफ्रीका टीम में उन्होंने डेब्यू किया। उनके बल्ले से अर्धशतकीय पारी भी निकली। अब वह अपने शहर केपटाउन में पहला टेस्ट खेलने जा रहे हैं। भारत के खिलाफ दूसरे टेस्ट से पहले डेविड बेडिंगहम ने कहा, ‘मैं रन बनाऊं या नहीं , मेरे परिवार या दोस्तों को इससे फर्क नहीं पड़ेगा। मेरे लिये इस मैदान पर खेलना ही खास होगा।’ न्यूलैंड्स पर शतक बनाने का सपना एक्सीडेंट के बाद लौटने ही डेविड बेडिंगहम ने बल्ले से तबाही ला दी थी। वह बोलैंड के लिए 2017-18 सीएसए प्रांतीय वन-डे चैलेंज टूर्नामेंट में सात मैचों में 283 रन के साथ टूर्नामेंट के टॉप स्कोरर रहे।। उसी सीजन 3-दिवसीय कप में भी सबसे ज्यादा 790 रन रन बनाए। अपने घरेलू मैदान पर खेलने को लेकर उन्होंने कहा, ‘अब तक मैं यहां मैच देखने ही आता रहा हूं लेकिन अब यहां खेलना सपने जैसा है। मेरे दोस्त लगातार फोन कर रहे हैं। यह पूछने के लिये नहीं कि मैं खेल रहा हूं या नहीं बल्कि टिकटों के लिये।’ बेडिंगहम ने कहा, ‘मैंने बहुत कुछ सहा है। 2016 से अब तक। अब यहां टेस्ट खेलने का मौका मिलना वाकई खास है। मेरे माता पिता यहां है जिन्होंने काफी उतार चढाव देखे हैं। मैं पढाई भी पूरी नहीं कर सका। मुझे उन्हें बहुत कुछ देना है। मेरा सबसे बड़ा सपना न्यूलैंड्स में शतक जमाने का है।’ रोहित और विराट को कहते हैं कॉपी उनके स्कूल के सीनियर जैक कैलिस और हर्शल गिब्स बचपन में उनके हीरो थे लेकिन किशोरावस्था में उन्हें रोहित शर्मा और विराट कोहली की बल्लेबाजी देखने में मजा आता रहा। उन्होंने कहा, ‘भारतीय खिलाड़ियों में रोहित शर्मा और विराट कोहली मेरे पसंदीदा है। जब मैं 13 से 18 साल के बीच था तो कैलिस और गिब्स की तरह खेलने की कोशिश करता। जब भी कोई मैच खराब होता तो कोहली या शर्मा की तकनीक कॉपी करता।’ http://dlvr.it/T0sMdr
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prakhar-pravakta · 9 months
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शारजहां सीमेंट फैक्ट्री में सचिन को असिस्टेंट इंजीनियर की पदवी एकेएस विश्वविद्यालय कि डिप्लोमा सीमेंट टेक्नोलॉजी के होनहार छात्र हैं रजक
सतना। एकेएस विश्वविद्यालय सतना के डिपार्टमेंट आफ सीमेंट टेक्नोलॉजी के छात्र सचिन रजक का चयन शारजाह सीमेंट लिमिटेड कंपनी में हुआ है । विश्वविद्यालय के डिपार्टमेंट आफ सीमेंट टेक्नोलॉजी के होनहार छात्र सचिन रजक ने रोजगार क्षेत्र में बड़ी छलांग लगाई है । ट्रेनिंग एंड प्लेसमेंट ऑफिसर बालेंद्र विश्वकर्मा ने बताया कि सचिन रजक में सीखने की गजब की ललक और आगे बढ़ने की खूब भूख है। सचिन ने यहां तक पहुंचने के…
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nedsecondline · 9 months
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पीड़ा / Pain  – Kaushal Kishore
  किसी को खो देना  उतना पीड़ादायक नहीं होता,  जितना खुद को खो देना, किसी को पाने की  लगातार ललक में… 🦋🦋🦋🦋 The pain of losing someone  cannot be compared, to the intensity of losing oneself, in the relentless pursuit  of finding someone… * –Kaushal Kishore Source: पीड़ा / Pain  – Kaushal Kishore
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bundelijhalak · 10 months
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मैं जागती आँखों से सपने देखने वाला और रचनात्मकता के जुनून में जीने वाला हूँ । मैं बचपन से ही रंगमंच की ओर आकर्षित हो गया था और तभी से मैं रचनात्मक गतिविधियों में शामिल हो गया। मेरे स्कूल के दिन मेरे थिएटर युग की शुरुआत थे। यह मेरे सपनों की एक यात्रा है रंगमंच से होते हुए सिनेमा के बहुआयामी आकाश को छूते हुए लोक कला, संस्कृति और साहित्य के पड़ावों से गुजरते हुए एक यायावर की यात्रा है । मंजिल तक पहुचने का प्रयास है।
सपने जो मैं खुली आँखों से सृजनात्मकता के लिए देख रहा हूँ.....। मेरा अपना विश्वास है कल ये सपने आकार लेंगे... साकार होंगे।
एक रंग यात्रा, एक अनन्त यात्रा.... लक्ष्य निश्चित है! गंतव्य नही!.......
Gaurishankar S Ranjan          (रंगमंच एवं फिल्म, टी.वी. निर्देशक) 
हर कलाकार की अपनी एक जीवन यात्रा होती है और उसी में सम्मलित होतीं हैं न जाने कितनी अन्य अंतर्यात्राएँ जो हमारे साथ - साथ चलतीं रहतीं हैं। किरदारों और असल जिंदगी के समानांतर चलने वाली यह जो अंतर्यात्राएँ हैं वह अकसर हमें बहुत कुछ सिखलातीं रहतीं हैं।
बेचैनियां और अलमस्ती का एहसास कराने की कुब्बत भी मुझे इन्हीं कलाओं ने दी है और इसके साथ ही एक संस्कृतिबोधक निश्छल मन दिया है  जिसने मुझे लोकसंस्कृति के प्रति समर्पित कर दिया। एक कलात्मक जीवन दृष्टि ने मुझे अपना बना लिया।
गाँव के ठेठ देसीपन ने मुझे गढ़ा - मढ़ा और सजाया - सँवारा।  साठ के दशक में बुंदेलखंड के हमीरपुर जिले के छोटे से गाँव अजनर में 2 मई 1969  में जब मैंने पहली बार आँख खोली तो हँसता - मुसकराता , प्राकृतिक संपदाओं से समृद्ध गाँव देखा। बस गाँव की वह चंदन- सी माटी , पेड़ , खेत - खलिहान, ताल, नदी ,पोखर से लवरेज लोकजीवन, लोकसंगीत मेरी साँसों में समा गया जो आज भी मेरी साँसों मे कस्तूरी सुगंध की तरह महकता रहता है।
मेरे पिताजी श्री सुखलाल पशु चिकित्सक थे। उनकी पोस्टिंग गाँव में ही होती थी। नौ साल की उम्र झाँसी जिले के गाँव बिजौरा (गुरसरांय) झांसी उ.प्र. में आ गया। गाँव का गँवईपन , लोकमानस और लोकसंस्कृति के अनूठे , अप्रितम जीवन ने आँचलिक विरासत को सहेजने, सँवारने की अदम्य लालसा के अँकुर मेरे मन की माटी में बो दिए जो आज भी पल्लवित , पुष्पित और फलित हो रहे हैं। गाँव के इसी परिवेश ने मुझे कलात्मक अभिरुचियों से जोड़ा।
कुछ सालों बाद वर्ष 1976 में बिजौरा (गुरसरांय) झांसी  से अतर्रा (बांदा) उ.प्र. जाना पडा  अपने पूर्वज ग्राम कैरी, बिसंडा ब्लाक तहसील बाबेरू के पास। तब तक लोकसंस्कृति से जुड़ाव के जुनून ने मेरे मन के भीतर एक कलाकार को जन्म दे दिया जिसके कारण मैं बचपन से ही सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेने लगा।
जब मैं प्राचीन प्राथमिक विद्यालय अतर्रा (बाँदा ) की चौथी कक्षा का छात्र था तभी मुझे रंगमंच से जुड़ने का अवसर मिला। मैंने विद्यालय के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लिया और मण्डल स्तर पर झाँसी में आयोजित खेलकूद समारोह में पी. टी. , चित्रकला तथा ढिडिया नृत्य में भाग लेने पर पुरस्कृत किया गया। यहीं से मेरी रंगमंचीय यात्रा की सुखद शुरुआत हो गयी। अभिनय और ललित कलाओं को सीखने - समझने की ललक मन में कुलाँचें भरने लगी।
फिर एक बार पडाव बदलने का समय आया और वर्ष 1980 में मै राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त (दद्दा) की साहित्य नगरी  चिरगाँव (झांसी) उ.प्र. में आकर महाकवि केशव, बुंदेली शिरोमणि महाकवि ईसुरी के साहित्य के संस्कारों ने मेरी जीवन यात्रा को पूरी तरह अभिनय और रंगमंच की ओर समर्पित कर दिया। इसी दौरान मेरे अध्यापक श्री जगदीश श्रीवास्तव के सानिध्य में रामयश प्रचारणी समिति चिरगांव के साथ कई वर्षों तक रामलीला और नाटकों के मंचन मे अहम भूमिका निभाई ।
वर्ष 1986 में अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए कदम आगे बढ़ाया और शौकिया थिएटर ग्रुप  के साथ जुड़ गया। जहां एक अभिनेता के रूप में कई नाटकों मे अभिनय किया।
वर्ष1991 मे पहली बार चिरगांव (झांसी) मे सिनेमा हाल के अंदर सेट लगाकर “उधार का पति” नाटक का मंचन किया परिणाम दो दिन दो शो हाउसफुल और यहीं से मेरा  रुझान रंगमंच की ओर कुछ ज़्यादा ही बढा और दिल्ली की ओर कदम बढ गये।
इसी दौरान क्रांतिकारी मास्टर रुद्रनारायण सिंह सक्सेना के पौत्र श्री मुकेश सक्सेना जी से मुलाकात हुई और वे अपने साथ दिल्ली ले गये। उनके मार्गदर्शन मेंं रंगमंच के विभिन्न आय��मों  को जानने का मौका मिला। आदर्णीय मुकेश सक्सेना जी के अनुज के रूप मे जीवन को नई दिशा मिली रंगमंच का सिलसिला शुरू हुआ तो तो फिर पीछे मुड़कर कभी नही देखा।
दिल्ली मे श्रीराम सेंटर फार आर्ट एंड कल्चर से एक साल  का रंगमंच और अभिनय प्रशिक्षण मे प्रवेश लिया। इसी दौरान मैडम अमाल अल्लाना के  निर्देशन मे हिम्मतमाई (Bertolt Brecht's play Mother Courage ) नाटक मे काम  करने का  मैका मिला जिसमें फिल्म अभिनेता मनोहर सिंह मुख्य भूमिका मे थे।
इसी दौरान समझ में आने लगा कि रंगमंच क्या है रंगमंच का विस्तार क्या है रंगमंच जो हम करते थे अपने गांव में वह नहीं जो अब  देख रहे हैं वह सच है। फिर एक बार पढ़ने का सीखने का और समझने का सिलसिला नए सिरे से शुरू करना पड़ा जो काफी रोमांचक था। सम्पूर्ण रंगमंच....अभिनय और अभिनय के साथ बैकस्टेज जैसे कि कॉस्टयूम, मेकअप, लाइटिंग, प्रॉपर्टी अनेक विषयों पर जानकारी हासिल करना और सीखना।
वर्ष1992 मे भारतेंदु नाट्य अकादमी लखनऊ मे चयन हो गया। भारतेंदु नाट्य अकेडमी में नाटक की विभिन्न विधाओं का विस्तार पूर्वक अध्ययन करने का अवसर प्राप्त हुआ।  यहां देश के जाने माने अनेक निर्देशकों के साथ काम करने का एक अलग अनुभव रहा। यहां भी भरपूर सीखने का मौका मिला और अनेकों रंग मंचीय प्रयोगों से निकलकर फिर वापस दिल्ली आ गए।
वर्ष 1996 में दिल्ली मे सूचना एवं प्रासारण मंत्रालय भारत सरकार के गीत एवं नाटक प्रभाग मे बतौर अभिनेता दो साल तक काम करते रहे । यहां भी एक अलग तरह का अनुभव रहा नेशनल ड्रामा ट्रुप के साथ कई नाटकों में अभिनय किया और देश के कई शहरों में सफलता पूर्वक प्रदर्शन किये। फिर वर्ष 1997 में दिल्ली सरकार के साहित्य कला परिषद रंगमंडल मे चले गये । यहां भी तीन साल रहे और देश के जाने-माने कई निर्देशको के साथ अनेक नाटको मे अभिनय किया।
मेरा रंगमंच का सफर  विशेष रूप में अभिनेता ,निर्देशक और अध्यापक  के रूप में रहा है। लगभग 60 से अधिक नाटकों में अभिनय और 30 से अधिक नाटकों का निर्देशन किया है, जिसका मंचन देश के भिन्न-भिन्न स्थानों पर 200 से अधिक बार हो चुका है। देश के लगभग 50 से अधिक रंग जगत के प्रतिष्ठित व्यक्तियों के साथ कार्य किया है जिनमें  - पद्मविभूषण हबीब तनवीर, प्रो.बी.एम.शाह, सुश्री अमाल अलाना, प्रो. देवेंद्र राज अंकुर, श्री बादल सरकार, श्री वागीश कुमार सिंह, प्रो.हेमा सिंह, श्री उर्मिल कुमार थपलियाल, श्री जे.पी.सिंह, श्री अवतार साहनी, श्रीमती चित्रा सिंह, सुश्री चित्रा मोहन, श्री सुरेश शर्मा, श्री प्रवीर गुहा, श्री निरंजन गोस्वामी आदि प्रमुख है।
बतौर अध्यापक जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में ड्रामा इंस्ट्रक्टर के रूप में काम किया और “आस” एन.जी.ओ. के साथ भवाली (नैनीताल) में कई सालों तक नाट्य निर्देशक के रूप में काम किया और इसके साथ साथ छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में स्थित वंदना आर्ट्स कोंडागांव मे कई सालों तक रंगमंच  की गतिविधियों से जुड़ा रहा और वहां पर राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव के आयोजन भी किए।
वर्ष 2000 मे  दिल्ली से मुम्बई चले गये। मुम्बई मे कई साल तक बतौर सह निर्देशक कई जाने-माने फिल्म, टी वी निर्देशकों के साथ काम किया। और रंगमंच से किसी न किसी रूप मे जुडे रहे। 2003 नवी मुंबई एरोली के डी.ए.वी. पब्लिक स्कूल के 800 छात्रों के साथ भारत के 5000 वर्ष के गौरवमई इतिहास का सफल मंचन किया।
वर्ष 2009 से बतौर निर्देशक टी वी सीरियल का निर्देशन कर रहे हैं। अभी तक हिंदी, भोजपुरी मे कई सीरियल सोनी टीवी, ज़ी टीवी, स्टार प्लस, ज़ी पुरवईया, अंजन टीवी, महुआ टीवी, ज़ी गंगा, दूरदर्शन आदि के लिये 2000 से अधिक एपीसोड निर्देशित किये हैं। 
वर्ष 2017 मे फिर एक बार नई दिशा मे कदम बढ़ गए अपनी जन्मभूमि बुन्देलखण्ड के लिए। बुन्देलखण्ड की लोक कला संस्कृति और साहित्य  के संरक्षण-संवर्धन एवं बुन्देली को विशाव पटल पर लाने के लिए https://bundeliijhalak.com/ वेबसाट के माध्यम से बुंदेलखंड ही नही अपितु देश- विदेश मे बुंदेली संस्कृति को जन-जन तक पहुचाने का प्रयास शुरू हो गया और साथ ही रंगमंच और फिल्म मेकिंग की विधाओं का आन लाईन/आफ लाईन प्रशिक्षण अपनी गति ले चुका है। अपनी वेबसाईट https://filmsgear.in/ से रंगमंच एवं फिल्म मेकिंग की जानकारी , मार्गदर्शन एवं दिशा निर्देश उपलब्ध है ।
बुंदेली लोक विधा “रावला” पर आधारित लोक नाट्य को प्रयोगात्मक एरिना रंगमंच पर प्रदर्शन करने हेतु शोध चल रहा है। इस विधा की खास बात यह है कि पुरुष अभिनेता ही अभिनेत्री का चरित्र निभाता है और ये गंवई अभिनेता इतने निपुण होते है कि वह अपने नाट्य प्रदर्शन के दौरान दर्शकों से सीधा संवाद कर सकते है उनके सवालों का जवाब दे सकते हैं साथ ही दर्शक को अपने प्रदर्शन के साथ जोड लेंगे,  ऐसा लगेगा कि वह दर्शक उन्हीं की नाट्य मंडली का ही एक चरित्र है। 
स्थिति और परिस्थितियों के अनुकूल यह अभिनेता अपनी विषय वस्तु बदलने में सक्षम होते हैं। अभिनेता कब,  कैसे इंप्रोवाइजेशन कर दें कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन नाट्य विधा पर इसका नकारात्मक प्रभाव नहीं पडता और फिर अभिनेता पुन: अपने मूल विषय वस्तु पर आकर प्रदर्शन को आगे बढ़ा देते हैं।
एक रंग यात्रा, एक अनन्त यात्रा.... लक्ष्य निश्चित है ! गंतव्य नही !.......
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writerss-blog · 1 year
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जिंदगी की तलाश
जिंदगी तलाश में हम चलते चलते कहां आ गए राह में भटकते रहे मंजिल से दूर आ गए देखते मुड़कर पीछे हैं जब कुछ यादें छोड़ आ गए, एक सुनहरे जीवन की ललक में हम अपने सपनों को छोड़ आ गए । जो सोचा नहीं था कभी जिंदगी ने हालात वैसा दे दिया, अब चाहत रही ना कोई जीने एक सहारा दे दिया, एक ख्वाहिश अधूरी है अब भी उसको पाने की रही, उसको हासिल करने को फिर नई राह फिर चल दिया ।।
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iammanhar · 1 year
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Day☛1019✍️+91/CG10☛In Home☛ 09/08/23 (Wed) ☛ 22:11
आज बुधवार के कारण ऑफीस बंद था, घर में रहकर काम किया।मैडम के साथ आज EFHCG का डाटा एंट्री किया, मिलजुलकर काम करना अच्छा लगा।
साथ में काम करने से काम में सहोलियत होती ��ै, मैडम जी अभी पूरा एंट्री करना नही जानती मगर try तो कर रही है, धीरे धीरे सीख जायेगी।
सीखने की ललक हमें आगे बढ़ाती हैं , महिलाएं भी बहुत कुछ कर सकती है, उसे सही मार्ग दर्शन की जरुरत होती है।
Baby पहले से ज्यादा एक्टिव रहने लगी है, पूरा दिन खेलती रहती हैं, अब तो हल्की हल्की ठोस खाना भी खाने लग रही हैं।
Gn
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