#राधा अष्टमी का महत्व
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Radha Ashtami 2024: Radha Ashtami Vrat Katha : राधा अष्टमी पर जरूर करें इस कथा का पाठ, बरसेगी किशोरी जी की अपार कृपा
Radha Ashtami Vrat Katha in Hindi: राधा अष्टमी 11 सितम्बर, बुधवार को है। राधा अष्टमी का पर्व हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन मनाया जाता है। राधा अष्टमी पर श्री राधा और श्रीकृष्ण की विधि-विधान के साथ पूजा करके राधा अष्टमी व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार राधा अष्टमी का पाठ करने से भाग्य लक्ष्मी की कृपा बरसती है और व्रती मनुष्य के जीवन में…
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Ahoi Ashtami Vrat 2024 Date: अहोई अष्टमी पर राधा कुंड में स्नान का क्या है महत्व? नोट करें शुभ मुहूर्तAhoi Ashtami Vrat 2024 Date:अहोई अष्टमी 24 अक्टूबर 2024, गुरुवार को है। अहोई अष्टमी के दिन माताएं अपनी संतान की खुशहाली के लिए सुबह से शाम तक व्रत रखती हैं। शाम को आसमान में तारे देखने के बाद व्रत तोड़ा जाता है।
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श्री कृष्ण जन्माष्टमी : कब, क्यों और कैसे मनाई जाती है
यह त्योहार कृष्ण पक्ष की अष्टमी या भाद्रपद महीने के आठवें दिन पड़ता है। इसे गोकुल अष्टमी भी कहा जाता है।
ऐसा मानते हैं कि , भगवान कृष्ण का जन्म वर्तमान समय के मथुरा, उत्तर प्रदेश में हुआ था। इनका जन्म एक कालकोठरी में और कृष्ण पक्ष की अंधियारी आधी रात को हुआ था ।
मान्यताओं के अनुसार, कंस मथुरा का शासक था। उसने अपनी बहन देवकी और बहनोई वासुदेव जी को कारागार में डालकर रखा था क्योंकि उसे यह श्राप मिला था कि देवकी की कोख से उत्पन्न होने वाली आठवीं सन्तान एक पुत्र रूप में होगी जो कंस का वध करेगी। अतः आठवें पुत्र के इंतजार में उसने जेल में ही उत्पन्न देवकी के सात सन्तानों की हत्या कर दी थी। दैवीय लीला से जब आठवें पुत्र श्री कृष्ण का जन्म हुआ तो योगमाया ने वहां उपस्थित सभी पहरेदारों को गहन निद्रा में डाल दिया और वासुदेव जी को निर्देश दिया कि अभी ही वह कारागार से बाहर निकल कर पुत्र को यमुना जी के रास्ते से ले जाकर गोकुल पहुंचा दें।
वासुदेव व देवकी को सारी बात समझ में आ चुकी थी कि यही प्रभु अवतरण हैं जिनके हाथों कंस का वध होगा। वैसा ही सब कुछ हुआ। समय आने पर भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण के हाथों कंस का अंत हुआ।
इसी कारण इस दिन का बहुत ही महत्व माना जाता है और देश भर में इस दिवस को उत्सव की भांति मनाया जाता है।
मथुरा और वृन्दावन में कैसे मनाई जाती है जन्माष्टमी?
जन्माष्टमी से 10 दिन पहले रासलीला, भजन, कीर्तन और प्रवचन जैसे विभिन्न सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रमों के साथ शुरू होता है यह उत्सव । रासलीलाएं कृष्ण और राधा के जीवन और प्रेम कहानियों के साथ-साथ उनकी अन्य गोपियों की नाटकीय रूपांतर पेश किए जाते हैं। पेशेवर कलाकार और स्थानीय उपासक दोनों ही मथुरा और वृन्दावन में विभिन्न स्थानों पर इसका प्रदर्��न करते हैं। भक्त जनमाष्टमी की पूर्व संध्या पर कृष्ण मंदिरों में आते हैं, विशेषकर वृन्दावन में बांके बिहारी मंदिर और मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि मंदिर में, जहां माना जाता है कि उनका जन्म हुआ था। मंदिरों को मनमोहक फूलों की सजावट और रोशनी से खूबसूरती से सजाया गया है।
पंचांमृत अभिषेक
अभिषेक के नाम से जाना जाने वाला एक विशिष्ट अनुष्ठान आधी रात को होता है, जो कृष्ण के जन्म का सटीक क्षण माना जाता है। इस दौरान कृष्ण की मूर्ति को दूध, दही, शहद, घी और पानी से स्नान कराया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण के अभिषेक के दौरान शंख बजाए जाते हैं, घंटियां बजाई जाती हैं और वैदिक मंत्रो का पाठ किया जाता है। इसके बाद भक्त श्रीकृष्ण को 56 अलग-अलग भोग (जिन्हें छप्पन भोग के नाम से जाना जाता है) अर्पित करते हैं। उनके लड्डू गोपाल स्वरूप को जन्म के बाद झूला झुलाते हैं और जन्म के गीत गाये जाते हैं।
नंदोत्सव
जन्माष्टमी के अगले दिन मनाया जाने वाला नंदोत्सव एक खास कार्यक्रम है। कहते हैं कि जब कृष्ण के पालक पिता, नंद बाबा ने उनके जन्म की खुशी में गोकुल (कृष्ण का गाँव) में सभी को उपहार और मिठाइयां दीं। इस दिन, भक्त प्रार्थना करने और जरूरतमंदों को दान देने के लिए नंद बाबा के जन्मस्थान नंदगांव की यात्रा करते हैं। इसके अलावा वे विभिन्न प्रकार के समारोहों और खेलों में भाग लेते हैं जो कृष्ण के चंचल स्वभाव का सम्मान में आयोजित किए जाते हैं।
दही हांडी पर्व का महत्व
दही हांडी का पर्व कृष्ण जन्माष्टमी के अगले दिन देश के कई हिस्सों में मनाया जाता है । महाराष्ट्र, गुजरात , उत्तर प्रदेश के मथुरा, वृंदावन और गोकुल में इसकी अलग धूम देखने को मिलती है। इस दौरान गोविंदाओं की टोली ऊंचाई पर बंधी दही से भरी मटकी फोड़ने की कोशिश करती है ।
जन्माष्टमी पर दही हांडी का खास महत्व होता है । भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं की झांकिया दर्शाने के लिए दही हांडी पर्व मनाया जाता है।
दही हांडी कार्यक्रम
दही हांडी कार्यक्रम, जो कृष्ण की मां यशोदा द्वारा ऊंचे रखे गए मिट्टी के बर्तनों से मक्खन चुराने की बचपन की शरारत से प्रेरित एक कार्यक्रम है। मथुरा और वृंदावन में जन्माष्टमी समारोह का एक और मुख्य आकर्��ण है। इस कार्यक्रम में युवा, पुरुषों के समूह ऊंचाई से लटके हुए एक बर्तन तक ��हुंचने और उसे तोड़ने के लिए मानव पिरामिड बनाते हैं, जिसमें दही या मक्खन होता है। यह अवसर वफादारी, बहादुरी और टीम वर्क को दर्शाता है। इसमें बड़ी संख्या में दर्शक भी शामिल होते हैं, जो तालियां बजाते हैं और इस दृश्य का आनंद लेते हैं।
दरअसल, भगवान श्री कृष्ण बचपन में दही और मक्खन घर से चोरी करते थे और उसके साथ ही गोपियों की मटकियां भी फोड़ देते थे । यही कारण है कि गोपियों ने माखन और दही की हांडियों को ऊंचाई पर टांगना शुरू कर दिया था लेकिन कान्हा इतने नटखट थे कि अपने सखाओं की मदद से एक दूसरे के कंधों पर चढ़कर हांडी को फोड़कर माखन और दही खा जाते थे । भगवान कृष्ण की इन्हीं बाल लीलाओं का स्मरण करते हुए दही हांडी का उत्सव मनाने की शुरुआत हुई थी ।
प्रभु की लीला कभी व्यर्थ नहीं होती है। उसका कोई न कोई कारण अवश्य होता है।
ऐसा मानते हैं कि पैसों के लिए गोपियाँ अपने घर के सारे दूध , दही और माखन मथुरा में जाकर कंस की राजधानी में बेच आतीं थीं। वे सब बलवान हो जाते थे जबकि ग्वाल बाल सीमित रूप में इसे प्राप्त कर पाते थे। तब प्रभु की बाल लीला ने माखन चोरी करने का निर्णय किया था ताकि ये सभी हृष्ट पुष्ट रहें और मथुरा तक ये न पहुंच सके।
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Radha Ashtami 2021, राधा अष्टमी कब है ?, राधा अष्टमी व्रत का महत्व, पूजा...
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भगवान गणेश की स्थापना के बाद उनका ग्यारहवें दिन विसर्जन कर दिया जाता है। शास्त्रों के अनुसार भगवान गणेश महादेव के पुत्र और माता पार्वती के पुत्र हैं। गणेश चतुर्थी और गणेश विसर्जन को महाराष्ट्र सहित पूरे उत्तर भारत में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है तो चलिए जानते हैं गणेश विसर्जन 2020 में कब है (Ganesh Visarjan 2020 Mai Kab Hai), गणेश विसर्जन का शुभ मुहूर्त (Ganesh Visarjan Shubh Muhurat), गणेश विसर्जन का महत्व (Ganesh Visarjan Ka Mahatva), गणेश विसर्जन की पूजा विधि (Ganesh Visarjan Puja Vidhi) और गणेश विसर्जन की कथा (Ganesh Visarjan Story) Ganesh Visarjan 2020 Date : गणेश विसर्जन 2020 में कब है, जानिए शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि और कथा Deepaksingh31 July 2020 6:33 PM 2 Ganesh Visarjan 2020 Date : गणेश चतुर्थी 22 अगस्त 2020 (Ganesh Chaturthi 22 August 2020) को मनाई जाएगी और 1 सितंबर 2020 को अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान गणेश का विसर्जन (Lord Ganesha Visarjan) कर दिया जाएगा। इन 10 दिनों में भगवान गणेश की विधिवत पूजा करके उन्हें उनकी मनपसंद चीजों का भोग लगाया जाता है और ग्यारहवें दिन पूरे विधि विधान से गणेश जी का विसर्जन कर दिया जाता है तो चलिए जानते हैं गणेश विसर्जन 2020 में कब है, गणेश विसर्जन का शुभ मुहूर्त, गणेश विसर्जन का महत्व, गणेश विसर्जन की पूजा विधि और गणेश विसर्जन की कथा। गणेश विसर्जन 2020 तिथि (Ganesh Visarjan 2020 Tithi) 1 सितंबर 2020 गणेश विसर्जन 2020 शुभ मुहूर्त (Ganesh Visarjan 2020 Shubh Muhurat) Also Read - Janmashtami 2020 Date And Time : जन्माष्टमी 2020 में कब है, जानिए शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि और कथा गणेश विसर्जन के लिए शुभ चौघड़िया मुहूर्त प्रातः मुहूर्त (चर, लाभ, अमृत) - सुबह 9 बजकर 10 मिनट से दोपहर 1 बजकर 56 मिनट तक (1 सितम्बर 2020) अपराह्न मुहूर्त (शुभ) - दोपहर 3 बजकर 32 मिनट से शाम 05 बजकर 07 मिनट तक (1 सितम्बर 2020) सायाह्न मुहूर्त (लाभ) - रात 8 बजकर 07 मिनट से रात 09 बजकर 32 मिनट तक (1 सितम्बर 2020) रात्रि मुहूर्त (शुभ, अमृत, चर) - रात 10 बजकर 56 मिनट से सुबह 3 बजकर 10 मिनट तक (2 सितम्बर 2020) चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ - सुबह 08 बजकर 48 मिनट से (31 अगस्त 2020) चतुर्दशी तिथि समाप्त - सुबह 09 बजकर 38 मिनट तक (1 सितंबर 2020) गणेश विसर्जन का महत्व (Ganesh Visarjan Importance) गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेश की स्थापना को जितना महत्व दिया जाता है उतना ही महत्व भगवा्न गणेश के विसर्जन को दिया जाता है। माना जाता है कि गणेश चतुर्थी के दिन से भगवान गणेश को भक्त अपने घर पांच, सात या ग्यारह दिनों तक विराजित करते हैं और उनकी पूरी विधिवत आराधना करते हैं। Also Read - Janmashtami 2020 Ki Kab Hai : जानिए जन्माष्टमी पर क्यों फोड़ी जाती है दही हांडी Loading... इसके बाद भगवान गणेश का विसर्जन चतुर्दशी तिथि को कर दिया जाता है और उनसे प्रार्थना की जाती है कि वह इसी तरह अगले साल भी आएं। शास्त्रों के अनुसार भगवान गणेश की स्थापना करके उनका विधिवत पूजन करके विसर्जन करने से मनुष्य के जीवन की सभी परेशानि��ां समाप्त होती है और उसे जीवन के सभी सुखों की प्राप्ति होती है। गणेश विसर्जन पूजा विधि (Ganesh Visarjan Puja Vidhi) 1. भगवान गणेश का विसर्जन चतुर्दशी तिथि के दिया किया जाता है। विसर्जन से पहले उनका तिलक करके किया जाता है। 2. उसके बाद उन्हें फूलों का हार, फल, फूल,मोदक लड्डू आदि चढ़ाए जाते हैं। 3.इसके बाद भगवान गणेश के मंत्रों का उच्चारण किया जाता है और उनकी आरती उतारी जाती है। Also Read - Radha Ashtami 2020 Kab Hai : राधा अष्टमी पर करें ये आसान उपाय, प्रेम और वैवाहिक सुख की होगी बरसात 4.भगवान गणेश को पूजा में जो भी सामग्री चढ़ाई जाती है। उसे एक पोटली में बांध लिया जाता है। 5. इस पोटली में सभी सामग्री के साथ एक सिक्का भी रखा जात��� है और उसके बाद गणेश जी का विसर्जन कर दिया जाता है। भगवान गणेश के विसर्जन के साथ ही इस पोटली को भी बहा दिया जाता है। गणेश विसर्जन की कथा (Ganesh Visarjan Story) पौराणिक कथा के अनुसार गणेश चतुर्थी से लेकर महाभारत तक की कथा वेद व्यास जी ने गणेश जी को लगातार 10 दिनों तक सुनाई थी। जिसे भगवान श्री गणेश जी ने लगातार लिखा था। दसवें दिन जब भगवान वेद व्यास जी ने अपनी आखें खोली तो उन्होंने पाया की गणेश जी का शरीर बहुत अधिक गर्म हो गया है। जिसके बाद वेद व्यास जी ने अपने पास के सरोवर के जल से गणेश जी के शरीर को ठंडा किया था।इसी वजह से गणेश जी को चतुदर्शी के दिन शीतल जल में प्रवाह किया जाता है। इसी कथा अनुसार गणेश जी के शरीर का तापमान इससे अधिक न बढ़े। इसके लिए वेद व्यास जी ने सुगंधित मिट्टी से गणेश जी का लेप भी किया था। जब यह लेप सूखा तो गणेश जी का शरीर अकड़ गया था। जिसके बाद मिट्टी भी झड़ने लगी थी। जिसके बाद उन्हें सरोवर के पानी में ले जाकर शीतल किया गया था। उस समय वेदव्यास जी ने 10 दिनों तक गणेश जी को उनकी पसंद का भोजन भी कराया था। इसी कारण से भगवान श्री गणेश को स्थापित और विसर्जन भी किया जाता है। इन 10 दिनों में गणेश जी को उनकी पसंद का भोजन भी कराया जाता है।
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सूनी गोद भरने के लिए अहोई अष्टमी के दिन करें राधा कुंड में स्नान
सूनी गोद भरने के लिए अहोई अष्टमी के दिन करें राधा कुंड में स्नान
भारत त्योहारों का देश है। यहां हर महीने कोई न पर्व आता है जिन्हें लोग पूरे उत्साह और श्रद्धा भाव से मनाते हैं। यहां महिलाएं अपने पति और बच्चों की लंबी आयु के लिए व्रत और पूजा करती हैं। ऐसी ही एक पूजा जिसका बड़ा ही महत्व है, जी हां हम अहोई अष्टमी के दिन राधाकुंड स्नान के विषय में बात कर रहे हैं। प्रत्येक वर्ष कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष अष्टमी को महिलाएं देवी पार्वती की पूजा अर्चना करती हैं। इस…
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देश में मनाई जा रही है Radha Ashtami, जानें इस दिन का महत्व
आज देश भर में Radha Ashtami मनाई जा रही है। भगवान श्रीकृष्ण के नाम के साथ हमेशा राधा रानी का नाम भी लिया जाता है। श्री कृष्ण जन्माष्टमी के 15 दिन बाद Radha Ashtami का पर्व आता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को Radha Ashtami व्रत रखा जाता है। इस साल Radha Ashtami 14 सितंबर, मंगलवार को मनाई जा रही है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, राधा रानी की पूजा के बिना भगवान श्रीकृष्ण की पूजा अधूरी मानी जाती है। कृष्ण जन्माष्टमी की तरह ही Radha Ashtami का त्योहार बड़े धूमधाम के साथ मनाते हैं।
जानें, Radha Ashtami 2021 शुभ मुहूर्त
Radha Ashtami तिथि 13 सितंबर दोपहर 3 बजकर 10 मिनट से शुरू होगी, जो कि 14 सितंबर की दोपहर 1 बजकर 9 मिनट तक रहेगी।
जानें, Radha Ashtami का महत्व – जन्माष्टमी की तरह ही Radha Ashtami का विशेष महत्व है। कहते हैं कि Radha Ashtami का व्रत करने से सभी पापों का नाश होता है। इस दिन विवाहित महिलाएं संतान सुख और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जो लोग राधा जी को प्रसन्न कर देते हैं उनसे भगवान श्रीकृष्ण अपने आप प्रसन्न हो जाते हैं। कहा जाता है कि व्रत करने से घर में मां लक्ष्मी आती हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
सुहागिन स्त्रियां इस दिन व्रत रखकर राधा जी की विशेष पूजा करती हैं। इस दिन पूजा करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। Radha Ashtami का पर्व जीवन में आने वाली धन की समस्या को भी दूर करता है।
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भाद्रपद की अष्टमी को मनाई जाती है राधा अष्टमी, जानें तिथि, शुभ मुहूर्त और महत्व
भाद्रपद की अष्टमी को मनाई जाती है राधा अष्टमी, जानें तिथि, शुभ मुहूर्त और महत्व
राधा अष्टमी 2021 तिथि: जब-जब श्री कृष्ण के नाम का है, तब तक राधा का नाम है I ये दो नाम एक साथ जुड़ने के लिए हैं। कृष्ण जन्माष्टमी के 15 दिन बाद ही राधा अष्टमी का जन्मदिन है। भाद्रपद की अष्टमी के दिन अष्टमी मेनेई जा है। साल अगस्ता अष्टमी 14 सितंबर को इस महीने में सुधार होगा। खुशहाली के लिए श्री कृष्ण की खुशहाली सुनिश्चित है। इसलिए जब-जब श्री कृष्ण का नाम है, तो राधा रानी का नाम साथ में है। कृष्ण…
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#जन्माष्टमी के बाद राधा अष्टमी#राधा अष्टमी#राधा अष्टमी 14#राधा अष्टमी 14 सितम्बर#राधा अष्टमी 2021#राधा अष्टमी कब है#राधा अष्टमी व्रत#राधा अष्टमी व्रती#राधा अष्टमी शुभ मुहूर्त
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राधा अष्टमी जिस दिन भगवान श्रीकृष्ण की प्रेमिका राधा का जन्म हुआ था। भाद्र मास के शुक्ल पक्ष के अष्टमी तिथि को माता राधारानी का जन्म मथुरा के बरसाना गाँव में हुआ था। उनके माता-पिता का नाम कीर्ति तथा वृषभानु था। वे बरसाना गाँव के सरदार थे। आइए विस्तार से जानते हैं।
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सुदामा के इस श्राप के कारण बिछड़ गए थे राधा-कृष्ण, कृष्ण से 100 साल तक राधा के दूर रहने की ये थी वजह
चैतन्य भारत न्यूज राधा-कृष्ण का प्रेम जितना चंचल और निर्मल रहा उतना ही यह जटिल और निर्मम भी है। सदियों से भले ही कृष्ण के साथ राधा का नाम लिया जाता रहा है, लेकिन प्रेम की ये कहानी कभी पूरी नहीं हो प���ई। राधा अष्टमी के इस खास दिन हम आपको राधा-कृष्ण की प्रेम कहानी के बारे में बता रहे हैं- आखिर क्यों शादी के बंधन में नहीं बंध सके राधा-कृष्ण आज भी ये सवाल लोगों के मन में आता है कि राधा और कृष्ण का प्रेम कभी शादी के बंधन में क्यों नहीं बंध सका? जिस शिद्दत से कृष्ण और राधा ने एक दूसरे को चाहा, वो रिश्ता विवाह तक क्यों नहीं पहुंचा। क्यों संसार की सबसे बड़ी प्रेम कहानी विरह का गीत बनकर रह गई। क्या वजह है कि राधा से सच्चे प्रेम के बावजूद कृष्ण ने रुकमणी को अपना जीवनसाथी चुना था। उनकी कुल 8 पत्नियों का जिक्र मिलता है, लेकिन उनमें राधा का नाम नहीं है। इतना ही नहीं कृष्ण के साथ तमाम पुराणों में राधा का नाम नहीं मिलता है।
भगवत गीता से महाभारत तक कहीं नहीं राधा का नाम राधा का अंतिम समय कहां बीता और किन हालात में राधा ने जीवन के अंतिम क्षण बिताए। जिस राधा को कृष्ण की परछाई समझा जाता था, उसका क्या हुआ। ये सब एक रहस्य बन चुका है। राधा का नाम भगवत गीता से लेकर महाभारत तक कहीं नहीं मिलता। राधा के बिना जिस कृष्ण को अधूरा माना गया है, उनकी कथाओं में राधा का नाम तक नहीं है। इस रहस्य को समझने के लिए उनके धरती पर उतरने की वजहों को जानना होगा। यहां हुई थी राधा और कृष्ण की पहली मुलाकात ऐसा कहा जाता है कि राधा धरती पर कृष्ण की इच्छा से ही आई थीं। भादो के महीने में शुक्ल पक्ष की अष्टमी के अनुराधा नक्षत्र में रावल गांव के एक मंदिर में राधा ने जन्म लिया था। यह दिन राधाष्टमी के नाम से मनाया जाता है। कहते हैं कि जन्म के 11 महीनों तक राधा ने अपनी आंखें नहीं खोली थी। कुछ दिन बाद वो बरसाने चली गईं। जहां पर आज भी राधा-रानी का महल मौजूद है। राधा और कृष्ण की पहली मुलाकात भांडिरवन में हुई थी। नंद बाबा यहां गाय चराते हुए कान्हा को गोद में लेकर पहुंचे थे। कृष्ण की लीलाओं ने राधा के मन में ऐसी छाप छोड़ी कि राधा का तन-मन श्याम रंग में रंग गया। कृष्ण-राधा की नजरों से ओझल क्या होते, वो बेचैन हो जाती। वो राधा के लिए उस प्राण वायु की तरह थे जिसके बिना जीवन की कल्पना करना मु��्किल था।
सुदामा ने दिया था राधा को श्राप कहते हैं कि राधा को कृष्ण से विरह का श्राप किसी और से नहीं बल्कि सुदामा से मिला था। वही सुदामा जो कृष्ण के सबसे प्रिय मित्र थे। सुदामा के इस श्राप के चलते ही 11 साल की उम्र में कृष्ण को वृन्दावन छोड़कर मथुरा जाना पड़ा था। श्रीकृष्ण और राधा गोलोक एकसाथ निवास करते थे। एक बार राधा की अनुपस्थिति में कृष्ण विरजा नामक की एक गोपिका से विहार कर रहे थे। तभी वहां राधा आ पहुंची और उन्होंने कृष्ण और विरजा को अपमानित किया। इसके बाद राधा ने विरजा को धरती पर दरिद्र ब्राह्मण होकर दुख भोगने का श्राप दे दिया। वहां मौजूद सुदामा ये बर्दाश्त नहीं कर पाए और उन्होंने उसी वक्त राधा को कृष्ण से बरसों तक विरह का श्राप दे दिया। 100 साल बाद जब वे लौटे तब बाल रूप में राधा कृष्ण ने यशोदा के घर में प्रवेश किया, वहां रहे और बाद में सबको मोक्ष देकर खुद भी गोलोक लौट गए। श्रीकृष्ण ने क्यों नहीं किया राधा से विवाह? कृष्ण की होकर भी उनकी न हो पाने का मलाल राधा को हमेशा रहा। अंतिम समय में जब राधा ने खुद को अपनी अर्धांगनी न बनाने का कारण कृष्ण पूछा तो कृष्ण वहां से बिना कुछ कहे चल पड़े। राधा क्रोधित हो गईं और चिल्लाकर ये सवाल दोबारा किया। राधा के क्रोध को देख कृष्ण मुड़े तो राधा भी हैरान रह गईं। कृष्ण राधा के रूप में थे। राधा समझ गईं कि वो भी कृष्ण ही हैं और कृष्ण ही राधा हैं। दोनों में कोई फर्क नहीं है। राधा कृष्ण की न होकर आज भी उनके साथ पूजनीय हैं। राधा-कृष्ण के प्रेम की ये कहानी अधूरी होकर भी अमर है।
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🌹 श्री कृष्ण जन्माष्टमी, 12 अगस्त, बुधवार 🌹
श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष के रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। जन्माष्टमी 12 अगस्त, बुधवार को मनाई जाएगी। हालांकि इसकी धूम धाम 11 अगस्त को भी बनी रहेगी क्योंकि अष्टमी तिथि 11 तारीख को है । 12 तारीख को रोहिणी नक्षत्र होने के कारण सभी वैष्णव 12 को इस साल जन्माष्टमी मनाएंगे ।
प्राचीन काल से ही हिंदू धर्म में जन्माष्टमी के त्योहार को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। मान्यता है कि श्री कृष्ण भगवान विष्णु के ही अवतार हैं। जिन्होंने द्वापर युग में अनेकों राक्षसों का वध किया था। साथ ही यह वही परम पुरुषोत्तम भगवान हैं जिन्होंने कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था। आज पूरी दुनिया गीता के ज्ञान का लाभ ले रही है। हिंदू धर्म में भगवान श्री कृष्ण को मोक्ष देने वाला माना गया है।
🍁💐 जन्माष्टमी व्रत/पूजन का महत्व : 💐🍁
जन्माष्टमी का महत्व बहुत अधिक है। सभी वैष्णव एवं कृष्ण भक्त जन्माष्टमी का व्रत करते हैं। शास्त्रों में जन्माष्टमी को व्रतराज कहा गया है यानी यह व्रतों में सबसे श्रेष्ठ व्रत माना गया है। इस दिन लोग पुत्र, संतान, मोक्ष और भगवद् प्राप्ति के लिए व्रत करते हैं। माना जाता है कि जन्माष्टमी का व्रत करने से सुख-समृद्धि और दीर्घायु का वरदान मिलता है। साथ ही भगवान श्री कृष्ण के प्रति भक्ति भी बढ़ती है। जन्माष्टमी का व्रत करने से अनेकों व्रतों का फल मिलता है।
🌻☘️ जन्माष्टमी पूजा विधि ☘️🌻
💢- एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछा लीजिए.
💢- भगवान कृष्ण/ बाल गोपाल की मूर्ति चौकी पर एक पात्र में रखिए.
💢- भगवान कृष्ण से प्रार्थना करें कि 'हे भगवान कृष्ण ! कृपया पधारिए और पूजा ग्रहण कीजिए.
💢-भगवान को गंगाजल एवं पंचामृत से स्नान कराइये । गंगाजल न हो तो शुद्ध जल का उपयोग करें ।
इसके बाद अब श्री कृष्ण को वस्त्र पहनाएं और श्रृंगार कीजिए.
💢- अब दीपक/ धूप जलाएं ।
💢- फिर अष्टगंध चन्दन या रोली का तिलक लगाएं और साथ ही अक्षत (चावल) भी तिलक पर लगाएं.
💢- कृष्ण को उनके प्रिय भोग बनाकर अर्पण करें जैसे पंचामृत, माखन मिश्री, पेड़े, खीर, मेवे की मिठाई, मनोहर लड्डू, रबड़ी, रसमलाई।
ये सभी वस्तुएं घर मे आराम से बनाई जा सकती हैं ।
ये सभी कृष्ण की प्रिय भोग पदार्थ हैं ।
💢- तुलसी का पत्��ा विशेष रूप से अर्पण कीजिए । तुलसी कृष्ण प्रिया है ।
💢- मधुराष्टकम / कृष्ण कृपा कटाक्ष स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं ।
💢- कृष्ण महामंत्र-
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।
इस मंत्र का जाप अति लाभदायक होगा, क्योंकि यह राधा और कृष्ण, दोनो का संयुक्त मंत्र है ।
💢- यदि फल/दूध पे व्रत रख सकें तो बेहद अच्छा है ।
🌹❤️🙏 जय श्री राधे कृष्णा 🌹❤️🙏
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जय जय माँ.... वर्तमान शक्ति..... अष्टमी व्रत प्रकृति माँ संपूर्ण संसारिक संतान को वर्तमान शक्ति का महत्व समझाती है कि यदि वर्तमान समय की धारा मिट्टी के साथ संपर्क करती है तो भविष्य मलिन हो जाता है... धारा का विपरीत राधा होता है ... यदि वर्तमान काल की वायु विपरीत दिशा की ओर राधा बनकर बहरी है तो प्रकृति माँ भविष्य को स्वच्छ करती है... वर्तमान बौद्धिक राधा शक्ति संसार की रक्षक है... #दुर्गा_अष्टमी_की_हार्दिक_शुभकामनाएं https://www.instagram.com/p/B-a1mGkpv6x/?igshid=1wch4k1kwvwy9
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Radha Ashtami 2020: 25 अगस्त को राधा अष्टमी, जानिए इस दिन का महत्व और पूजा विधि
Radha Ashtami 2020: 25 अगस्त को राधा अष्टमी, जानिए इस दिन का महत्व और पूजा विधि
कई पौराणिक कथाओं के अनुसार जब श्रीविष्णु का कृष्ण अवतार में जन्म लेने का समय आया तो वै अपने अनन्य भक्तों को भी पृथ्वी पर चलने का संकेत किये। तभी विष्णु जी की पत्नी लक्ष्मी जी, राधा के रुप में पृथ्वी पर आईं थीं।
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"नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की" आधी रात में होगा बाल गोपाल का जन्म, भजनों से सरोबार हो उठी छोटी काशी
जयपुर। जन्माष्टमी का पर्व देशभर में मनाया जा रहा है। मंदिरों में श्रीकृष्ण के जयकारे गूंज रहे हैं। भक्त अपने आराध्य के आगमन को लेकर आतुर हैं। बाल गोपाल कान्हा के दर्शन करने के लिए मंदिरों में भीड़ लगी है। छोटी काशी के गोवि��ददेवजी मंदिर में भीड़ को देखते हुए सुरक्षा व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं।
मटकी फोड़ने की मची धूम
राधा गोविंद के मंदिरों को रोशनी से सजाया गया है। मंदिर परिसर पूरी तरह भक्तिमय माहौल से सरोबार है। अब सिर्फ इंतजार है तो कन्हाई के जन्म का। दरअसल, इस बार 2 और 3 सितंबर को जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जा रहा है। देश के कुछ हिस्सों में तो यह उत्सव रविवार को मनाया गया। बाकी जगह सोमवार को जन्माष्टमी पर्व की धूम मची है। लोगों में बाल गोपाल के जन्मोत्सव को लेकर खासा उत्साह नजर आ रहा है। मटकी फोड़ने के लिए गोविंदा लगे हैं। मंदिरों में सुरक्षा के लिहाज से चाक चौबंद व्यवस्था है।
स्वार्थ सिद्धी योग में जन्मेंगे कन्हाई
इंद्रदेव भी लड्डू गोपाल कान्हा के दर्शन करने के लिए आतुर हैं। इस त्योहार को मंदिरो व घर घर में श्रीकृष्ण के बाल अवतार कन्हाई की पूजा की जा रही है। पंडितों के अनुसार, इस बार अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के चलते इस दिन का महत्व और बढ़ गय़ा है। अष्टमी और सोमवार के संयोग के कारण सोमवार रात 8.04 बजे से सर्वाथ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग शुरू होगा। यह योग अगले दिन की सुबह 6.01 बजे तक रहेगा। कृष्ण का जन्म वृष लग्न में हुआ था। सोमवार को भी वृष लग्न में बाल गोपाल का जन्म होगा।
कंस का संहार करने के लिए लिया अवतार
पुराणों के अनुसार, मथुरा का राजा कंस प्रजा पर अत्याचार कर रहा था। कंस के जुल्मों से जनता तंग आ चुकी थी।निरंकुश कंस के संहार और अत्याचारों को समाप्त करने के लिए भगवान विष्णु के आठवें अवतार के रुप में श्रीकृष्ण ने जन्म लिय़ा। उस समय देवकी कारागार में बंद थे। इसके चलते मथुरा नरेश कंस के कारागार में देवकी के गर्भ से बाल गोपाल का जन्म हुआ।
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इस बार पूरे देश में जन्माष्टमी का त्यौहार पंद्रह अगस्त से ठीक एक दिन पहले यानी कि 14 अगस्त को मनाया जाएगा. यह त्यौहार भगवान कृष्ण के जन्म लेने की ख़ुशी में मनाया जाता है. पुराणों की मानें तो कहा जाता है की कृष्ण भगवान ने भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को अवतार लिया था. इसके बाद से ही इस दिन को लोग कृष्ण ��न्माष्टमी के ��ौर पर मानाने लगे. कृष्ण भगवान और राधा को प्रेम का प्रतीक माना जाता है. इस त्यौहार को देश-विदेश के लोग बहुत ही धूम-धाम और पूरी आस्था के साथ मनाते हैं. janmashtami.
क्योँ मनाया जाता है जन्माष्टमी का पर्व
मामा कंस के अत्याचारों से परेशान होकर, उनके विनाश के लिए, भगवान कृष्ण ने भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जन्म लिया था. कृष्ण भगवान का जन्म मथुरा में आधी रात को हुआ था. मथुरा भगवान की जन्म-भूमि है, इसलिए इस त्यौहार को मथुरा में बहुत ही ज़्यादा धूम-धाम के साथ मनाया जाता है. दूर-दूर से लोग मथुरा और वृन्दावन में जन्माष्टमी का पर्व देखने के लिए आते हैं. पूरे मथुरा के मंदिरों को दुल्हन की तरह सजा दिया जाता है, जिसकी वजह से हर तरफ रौशनी हो रौशनी दिखाई देती है. इतना ही नहीं, यहां के मंदिरों में कृष्ण भगवान को आप गोपियों संग रासलीला का आनंद लेते हुए भी देख सकते है. शास्त्रों के मुताबिक 5 हज़ार 243 साल पहले भगवान कृष्ण का जन्म मथुरा की भूमि पर हुआ था.
व्रत रखने का भी है महत्व
जन्माष्टमी के दिन बहुत सारे लोग व्रत भी रखते हैं. हिन्दू धर्म में इस दिन व्रत रखने का बहुत महत्व है. इस दिन अगर आप व्रत रखते हैं तो घर में सुख-समृधि आएगी और शांति बनी रहेगी. स्कंद पुराण की माने तो जो व्यक्ति सब जानते हुए भी इस दिन व्रत नहीं रखता, उसका जन्म जंगल में सांप के रूप में होता है. इसके विपरीत जो इस व्रत को पूरे विधि-विधान और आस्था के साथ रखता है, उसके घर में लक्ष्मी बनी रहती है और सारे बिगड़े काम बन जाते हैं.
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