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'दवाओं पर ध्यान दें': भाजपा ने झारखंड के मुख्यमंत्री की कोविड -19 पीड़ितों के लिए 'मुफ्त कफन' की घोषणा की निंदा की
‘दवाओं पर ध्यान दें’: भाजपा ने झारखंड के मुख्यमंत्री की कोविड -19 पीड़ितों के लिए ‘मुफ्त कफन’ की घोषणा की निंदा की
रांची: भारतीय जनता पार्टी ने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की कोविद -19 से मरने वाले लोगों के शवों को कवर करने के लिए मुफ्त कफन उपलब्ध कराने की घोषणा की निंदा की है। भगवा पार्टी ने कहा कि झारखंड सरकार को इसके बदले मुफ्त दवाएं उपलब्ध कराने पर ध्यान देना चाहिए था. राज्य में कोविड -19 को शामिल करने की रणनीतियों पर चर्चा करने के लिए अपने कैबिनेट मंत्रियों की समीक्षा बैठक की अध्यक्षता करते हुए,…
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1857 की क्रांति में हरियाणा
1. 10 मई 1857 को मेरठ में हुए सैनिक विद्रोह की चिंगारियां 13 मई 1857 को हरियाणा में स्थित अम्बाला छावनी पर पड़ी , जिसके परिणाम स्वरूप 300 विद्रोही सैनिक गुड़गांव की ओर चले रास्ते में उनकी झड़प कलेक्टर विलियम फोर्ट से हुई | अंत में फोर्ड जान बचा कर भाग गया |
2. हरियाणा में 1857 की क्रांति में सम्मिलित प्रमुख व्यक्तियों में अहमद अली , बल��लभगढ़ के नाहर सिंह और पटौदी के अकबर अली थे तथा साथी दो अहीर भाई राव तुलाराम और गोपाल देव भी शामिल थे |
3. जयपुर राज्य के अंग्रेज रेजीडेन मेजर ऐडन ने निवासियों के विद्रोह को कुचलने का प्रयास किया , किंतु हरियाणा के सोनहा व् तावडू के संघर्ष में उसे पराजित होकर भागना पड़ा |
4. रोहतक पर स्थिति को नियंत्रित करने के लिए अंग्रेजों ने अंबाला से एक सेना , अगस्त को हडसन के नेतृत्व में भेजी थी |
5. तावडू प्रदेश की रियासत ने 1857 की क्रांति में अंग्रेजों को महत्वपूर्ण सहयोग दिया |
6. हडसन ने रोहतक को जिन्द राज्य के अधीन किया |
7. हिसार , हाँसी तथा सिरसा में स्थित लाइट इन्फेंंड्री ने बगावत की थी |
8. अंग्रेजों ने हिसार पर अधिकार करने के लिए जनरल वार्न कोर्टलैण्ड के नेतृत्व में फिरोजपुर से सेना भेजी | 17 जून को ऊधा नामक गांव में नवाब नूर मोहम्मद खान के साथ झड़प हुई | इस युद्ध में 530 क्रांतिकारी मारे गए | अंग्रेजों ने नवाब को पकड़कर फांसी पर लटका दिया | 17 जुलाई को वार्न कोर्टलैण्ड के नेतृत्व में सेनाएँ हिसार पहुंची थी |
हरियाणा में 1857 की क्रांति के नेता
करनाल , जलमाना , थानेसर , लाडवा, अंबाला, तथा जगाधरी से 1857 की क्रांति का नेतृत्व किसी नेता द्वारा नहीं किया गया |
हरियाणा में 1857 की क्रांति का युद्ध लड़ा गया
हरियाणा में स्वतंत्रता की चिंगारी 10 मई, 1857 को अम्बाला छावनी (Ambala Cantonment) में प्रज्जवलित हुई थी। इस चिंगारी ने मई 1857 में मेरठ में आग का रूप लिया, जो स्वतंत्रता का प्रथम संग्राम कहलाता है। हरियाणावासियों ने इस संग्राम में बढ़-चढ़ कर भाग लिया था।
राव तुला राम और उनके चचेरे भाई गोपालदेव जैसे पड़ोसी अग्रणी विद्रोह की मदद में भाग लेते थे। लंबे समय से जनरल अब्दुससमद खान, मुहम्मद अजीम बेग, रावकिशन सिंह, राव राम लाल, सभी अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने के लिए भाग लिया करते थे।
अंग्रेजों के आगमन से ��ूर्व दिल्ली में साम्राज्यों का उत्थान-पतन होता रहा। जो भी नया शासक दिल्ली के सिंहासन पर बैठा उसने सदैव यह प्रयत्न किया कि दिल्ली के चारों ओर बसे हुए यहां के युद्ध-प्रिय लोगों को अपने साथ रखा जाये। यदि कभी किसी शासक ने हरियाणा के लोगों को दबाने और उनके आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप का प्रयास किया भी तो यहां की जनभावना ने उग्र रूप धारण कर लिया, यही कारण था कि जब भी दिल्ली के सिंहासन पर नया शासक बैठता था तो वह गंगा और घग्घर के बीच के प्रदेश की सर्वोच्च प्रतिनिधि परिषदखाप पंचायत को पूरी मान्यता प्रदान करता था।
उस पंचायत के मुखिया को वजीर की उपाधि देने की परम्परा पड़ गई थी। मुगलकाल के अन्तिम दिनों में जब मुगल शक्ति क्षीण हो गई थी तब इस प्रदेश का पंचायती शासन और भी मजबूत हो गया था। इसी कारण तो अंग्रेजों के आधिपत्य के पश्चात् विदेशी शासकों को इस क्षेत्र पर अपना अधिकार स्थापित करने के लिए बल-प्रयोग करना पड़ा था तथा कठोर दमनचक्र चलाकर यहां के लोगों की विद्रोही प्रवत्ति को समाप्त करने के अथक प्रयास ब्रिटिश सरकार ने किये।
बिशारत अली, जो ब्रिटिश सेना में कार्यरत था, पड़ोस के एक रियासतदार सबर खान के साथ मिलकर विद्रोह की जिम्मेदारी संभाली। आस-पास के सभी लोग मिले और ब्रिटिश संपत्ति और निवासियों पर हमला करना शुरू कर दिया। 1857 की जन-क्रान्ति के दौरान हरियाणा के एक कोने से दूसरे कोने तक बिजली की तरह विद्रोह की लहर फैल गयी जिससे अंग्रेज़ शासक स्तब्ध रह गये। अंग्रेज़-शासकों के अपने शब्दों में जन-आन्दोलन के सूत्रपात के साथ ही उसका स्वरूप इतना संगठित और सर्वव्यापी था कि देखकर आश्चर्य होता था। प्रारम्भ के कुछ दिनों में ही लगभग सारे हरियाणवी प्रदेश से अंग्रेज अधिकारियों को मार भगाया गया था, सरकारी आफिसों को जला डाला गया था। खजाने लूट लिये गये और जेलों से कैदियों को मुक्त करवा दिया गया था। थानों, डाकखानों और तारधरों पर जनता ने अधिकार कर लिया था।
1857 की क्रांति में असफल होने का मुख्य कारण क्या था ( What was the main reason for the failure of the revolt of 1857 ) ?
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1857 की क्रांति के असफल होने का सबसे बड़ा कारण, जो की इतिहासकार मानते है, वह है अपनों की ही गद्दारी । हरियाणा के स्वतंत्रता-आन्दोलन के इतिहास का यदि सूक्ष्म दृष्टि से अध्ययन किया जाये तो यह बात पूरी तरह स्पष्ट हो जाती है कि महान् ऐतिहासिक अवसर पर पटियाला, नाभा और जींद के शासक यदि अंग्रेजों का साथ न देते तो अंग्रेजों के लिए दोबारा दिल्ली पर अधिकार करना असंभव था। इस तथ्य की पुष्टि स्वयं उस समय के अंग्रेज सैनिक कमांडरों ने की है। सन् 1918 में लिखे गये करनाल के गजेटियर में कहा गया है, "करनाल के विद्रोह की सूचना ज्यों ही जीन्द के राजा को मिली, उसने अपने सैनिक दस्तों को कूच करने का आदेश दिया। वह 18 मई को करनाल पहुँचा और शहर व उसके आस-पास शान्ति स्थापित करते हुए ब्रिटिश सैनिक दस्तों के आगे-आगे पानीपत की ओर बढ़ा। "
श्री वी.डी. सावरवर ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'दी इण्डियन वार ऑफ इंडिपेंडेंस-1857 (The Indian War of Independence-1857)' में लिखा है – "यदि वे रियासतें (पटियाला, नाभा और जींद) निष्पक्ष भी रहतीं तो जन-क्रान्ति की सफलता की पूरी आशा थी। परन्तु जब पटियाला, नाभा और जींद फिरंगियों से भी अधिक बेदर्दी से इस जन-क्रान्ति की जड़ें उखाड़ने के प्रयत्न में लग गये तो दिल्ली और पंजाब के बीच सम्पर्क टूट गया। इन रियासतों ने बादशाह द्वारा भेजे गये सहायता संदेशों को रद्द करते दए संदेश-वाहकों की ही हत्या कर दी और अपने राजकोषों से फिरंगियों के ऊपर धम-वर्षा करने लगे तथा पूरी सैनिक सहायता फिरंगियों को देने लगे। उन्होंने अंग्रेजों के साथ मिलकर दिल्ली पर हमला बोला और उन देशभक्तों को अपनी तलवार के घाट उतारा जो अपना सब कछ छोड़कर जन-क्रान्ति में संघर्षरत थे।"
उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट होता है कि जहां एक ओर हरियाणा प्रदेश के योद्धाओं ने सिर पर कफन बांध कर देश की स्वतन्त्रता के लिए अथक प्रयास किये थे वहीं दूसरी ओर इन रियासतों के सैनिक अंग्रेजों की मदद के लिए उनके साथ खड़े थे।
सन् 1857 की जन-क्रान्ति की असफलता के पश्चात्, ब्रिटिश सरकार ने हरियाणा के अधि
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